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1. 85; धरसि 1. 205, 6, ए लाश्ाद्टा ६ 1४. 109 ; सत्वन् 1. 100, 1, ए 11810110 1४. 7118
गऽ 16 ्118 ससेमन् 1. 29, 7८ फरठ) 1४. 149 ; हरिमन् 1. 50, 71, स्णि ४. 50; मखः
1. 34, 2 तणा ४. 23 €{6.
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¶ 18 श्लातपा-०त 10 शुहल' 8078 1४. 747, एए लाश वि 0 चरि, सि. 1. 1
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श | | 31781106 11118{श्ः68 11856 काऽ, 0) 30119 [. 209 (2). 01. 2307
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व्याख्येयं. 17088501 ‰.011, 110१८, €4108 वचनानीति कवा वधेनेति वा, शत्, 88 शि" && {16
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98.98 यस्मिसतु पसे वधेनेहि नि चनं तस्मिन्पशे यनेयेम शब्दो मेधवभेनेति योज्यः । उदकशब्दछ तस्मिन्पेश्ध्या- `
हार्योऽभिव्जँनसवधात् । 0 ॥
* तपु 7. २8०, 898, यद्वा विपूवैत्सर्तेगेत्यथात्य- यथा वेसरो निःपादकगताभ्यां विरूडभ्यां नातिनभ्यामश्च-
्यचीत्यस्मेकारस्या कारः \ पृषोदणदित्वात् । विविधं सराणि त्वजात्या गदैभत्वजात्या संपन्नः ! रवं यावद निष्पाद्को
न विस्तीणौनीत्यथैः । वासराणि वेसणणीत्यवं भाषे पूवेभागापरभागो नद्नताभ्यां विरुदधाभ्यां शीतोष्णाभ्यां पूवे-
परशब्दस्य ५ भागगकेन शीतेनापरभागगतेनोष्णेन संरव॑धाद्वेसरसदूरत्वा- `
१ ॐ 4 वि ? 7 ^ ¢ £.
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दायिनो वा द्िगुणं कामयत इति वत्ति । द्योकयोनोाटाः । नठनं । त्तो वेकनाढा; । मत्व्थीयस्य लुक् । नटेधैनि नाटः ।
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जनानां स्वभूतस्य सस्यस्य सम्यगत्तारो गवादिरूपेणावस्थिता उवै विस्तीर्णे गंतव्ये दयेतेऽ मेध्ये स्थितस्याहं वयं यवादो
यवादिधान्यस्यान्नायो मनुष्रूपेणावस्थित्ा सलास्मिन्संसारमंउके कश्छिद्युक्तो योगाभ्यासरतो भूत्वा सुमुखः सन् सवसातारं
सं सारवंधस्य मोचकमिच्छात् । मामेवेच्छति । अघो सपि च ववन्वान् संभक्ताहमयुक्तमयोगिनं पृयग्ननं भुनजत् । युनञ्मि
वद्रामि । पुरूपव्याययः ॥
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9 क्यौ प्रस्तारपंक्ती दिद्वाट्शकद्य्ट-
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8. वती शाक्िसो वि-
0९. कवत्ती ` शिद्ा तिस्रो वि-
स्तिसखो वि-
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1 8. रदषा रकादशीनसखयौ कशेति लक्षणलसिताः
५ 0. राट् रूपाः एकादश्िनस्लयो रेति लशषणत्छसिताः
| अ. रादूपा रएकादशिनस्तरयोऽष्टकशचेति ठकणएलसषिताः ।
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(लला ६4१६, 0 ४. ध50, 0 इव 7101172 07 0. 8110 2. 36861068, #. 16868 श्ञाखा-
लग्नमलधूत्याद्चपनयनं । इदं, \\111011 1६ 711. |
| 0.४. 1. 21, व्याकृत्य ४. व्यावृद्छ 3. (११९९), 1. €. व्यावृत्य.
7.४. 1. 6. हविहिहुरूपं ४. दधिहेतुरूपं +.
| .४. 1. 23. शाघ्तिकीः ४४. शाश्चतिकाः).
2.४. }. 21. इषशब्द- ४४. उपशब्द 1, एला) 15 पषा.
{.‰.1. 22. चोदान्नः भ. वोदा +, एला) 15 बद (
1. ४1. 1. 6. अनै बलप्राणनयोरस्मािछप् ४. ४; ए 162 जनँ बलप्राणनयोः \ असाण्क्िप् 1. |
[2.४1 1. 13. कृवायाजि० ५. कुवापाजि० ‰ एल) 15 पद |
ए... 1.2. हेतुमति च ए. हेहुमणिच् 0, प्ल 15 पाण. {1 ॥6 ईप 090 एत्ल ५ ५ ८
८०९ + ण], 7 शफात् 12९८ एष्टा 16668887: 10 800 इति णिच्,
१. णो. 1. 6. पार ६.१.१२. गऽ 15 8 स्ििऽ6 वप्रजंश्षण), शशु, 88 1 086 अतण, व
तछा 8 7प्ंञप्ावलावपत्ाएद् 0 प्ल फमल 02888६6; 1 ण्म ६0 06 पा ४.१.१९. =
ए. णी. 1. 3. ऊपिन्
फ. डः स्सिन् 1, 7111611 18 7121६, >8 गध 06 869 901 0411. |
1 | ? ^^.
ए... 1.9. त्वं वायोः प्र. त्वं सात्तस्शिनो वायोः 0 11161) 15 1114.
ए. 1.1. 23. तीथेग्युलायां वा कथः सवाग्बुखायां 15 70 पत् 7 8. 00], &8 27068807
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अआशिरिङ ! यासुद् 0: 1161 15 12111.
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ध ए. 11. 1.6. वेदेषु फ षु
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ॐ ९. ज. 1. 39. तेऽपि दग्धा अन्यथा न यन्तसाधनमित्यथेः. € 96 {गत ए 21088807 ४९66
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871] व्व्मलः: सुसं तं रक्षः । न हु यज्ञसाधनमित्यनिप्रायः र
१. अ. 1. 9. पाशचैयोरेव स्थितं एए. पार््रैयोरखस्यिं 04.
01 २ क, 1. 5. तिष्ठल्समद्धि ए. किष्त्समंगि 1, प्र11611 15 1140४ 85 अनः 15 16्र्ला.
1 ए. श्त. 1. 24. दिसितुमुदयताः ए. दिंसिदुसुदयुक्ताः 1. ।
ध 2. अर. 1. 6. धास्क पोषकं भवसि फ़. धारक पोषकं वासि | ।
। ध ` १, ए. 1. 17. शकटस्य व्रीहीणां #४. शकटस्यत्रीहीर्णा ४, 11 18 11911
ए. शष. 1. 4. काभ्यामश्िनोवैहुभ्यां #४. कन्यां । अश्िनोवैडुभ्यां #, 11161 18 1101६, 0
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गा]. अकी. 1. 12, कत् लुह्मरौषला€
ए. उप, 1. 39. 4 पिल युष्मानुतयुनामि, 11. 2008 उकच्येण शोधयामि, 1611 15 161 0प॥ ष
„एणः प्रलयः, 98 ऋ 25 च 0 6 एह [06 लः सूयेस्य. 0
0. पा. 1 16. वगा6€ प्रश्नप्रा 25 701 एष. पा. 4 68, 1, एण ४1. 4, 7 द
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2. उणा. 1. 4. लिः कृच्छानिनोदूललादीनिः 1. 85 पाताणि, 016) 18 1
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र. उ, 1. 8. यतस्त्वतथिपरं ४. यतस्तव शिं #, पाथा 18 ४.
>. +र. 1. 6. मुधुभिदक्श्चासि ४४. सथधुलिद्धश्चासि 4.
क, 1. 21. तद्रूनजलेन फ. तदतनलेन 1 एनत 18 एल.
1. 1. 9. प्राशिव्रहरेण ४. प्राशित्रहरण, 1101 9111४ ए. 7, एए; 980.
71. 1. 22. संगुलिदानासक्तं मा दुहेत्ययैः \#. स्गुलिदानासक्ते मा दहेवयथैः 4, ए 11111 18 11211.
21४. 1. 1. तहुत्पत्रा त्वं ४४. तदुप्पत्रत्वात् 2, 116] 86थ018 र्था.
कः
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1. ४. 1. ४. हे उपे उपरितनशिल त्वं ४. हे उपके उपरितनशिले त्वं 4, 11161) 15 11004.
1, 1४. 1. 0. वाकखखरूपा ४४. वालासरूपा #, 116 16 0. |
0. +. 1. 24. पिष्टवपनीया ५४. पिषटसंयवनीया, 710 भ]$ 8, एण @अ50 # 09 सयवं
१. 5. 1. २५. किं च सस्माद्० र. किंच सतोऽस्माद्० 1161 18 11211
९. उर. 1. 8. निष्काशितः 1४. निष्कासितः 9, ८] 18 ला, 866 280600015
लगाया, 8.४. 1. 24. निः कारनेन ५४. निष्कासनेन ४ ४ =
2. >. 1. 13. पूदैस्यामाहवनीयः पालकोऽस्तीति भावः! फ. पूवैस्यामाहवनीय खव पालकोऽस्तीति
नावः रश ८
षि. करस. 1. 24. विविधं रपति वेदतयरूपेश शब्दं करोतीति विरप्शी । यजो वेदिं प्राप्नो विष्णुः संबोध्यते ४
€, 705 9 9], यज्ञे 15 710४ क्रू]0 160 98. 2. गए, 2 10168801. ४९१९९" 84.168,
प( 150 1४ च. शद्८मातवक, +€ 1258306, 85 [17166., 4068 1191; (णाऽ प्रह (णलङ,
® बेदतयरूपेण शब्दं करोहि ५ पा९६ ्र6€ (भपरल ग लन्रलः यज्ञः 07 विष्णुः. १४6 टा
१५२ इति विप्प्फी यज्ञः, 0 000770९ इति विरष्छी यज्ञे वेदित्वं प्रापो विष्णुः. 11116 [रला 8668
धातवो ता [ालापिजा, 0 (णप, शम प0) 06 4०१68 ए168, विरप्शिनिति \ अमतिं ।
महव्राम । म च चिष्णुधेजञे वेदित्वमापन्नः । स हि लिभिर्वेदेनिवैतयैमानो षिविधं रपति शब्दे करोति ।
{ि. ५1. 1. 18. पंचम्य्यी पण्नो फ, पंवम्यर्ये पलयो #, एा1९), (णाल ४06 8€तथ
र पष्ठी, 15 1114
१. +}. 1. 19. धाती प्र. दात्री ४, फाला, दगाऽवलाह फा ६०68 00 शला |
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ए. अ]. 1. 18. बहिनशं फ, वहिषे जुं 0, (पला) 18 पष्ट
ए. जप. 1. 2. केदनमसि फ. केदनसाधतमसि #, 01101 18 [कध्ला |
` 2. उकण). 1. 6. कया फ. श्रुनिकथा, 101 छण 8. 2, एण 8156 #, पनी ना†8 |
कृत एदणि.€ इनि. ` 4 ^ ^ 7
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7 ए 7/4 6.४.
ˆ 2. 1. 1. 19. परिक्राममिति परिक्रामति, 101 गाए 2, एण 2150 ॥॥
९. द. 1. 26. ए. 188 दवितीयं प्राश्नाति । उपटूतो चोः पिता । रवं द्यौः पिता जगत्पाठक उप
इगयादि समानाः, 111९1} 8ध्नप३ 0{€ा'
1. ए. 1.7. मां व्रब्माणमव पाठय! ४४. मामध्वयुमव । पातय 1. {12 185 गकु मानव । पालय.
1. ताक. 1. 23. अतः अआकृतमार्षे ए. अतः पर, 1101 काक 2, एप 2150 1. एर इद
र्पाते सन्ने) इतः प्रभृति प्राकृत्रमाष. | -:
ए. 18. 1.5. प्यासिषीमहि च ४४. सा प्यासिषीमहि च }#, 111९} 18 11011 ह
ए. पा, 1. 2. पृथिवीं बंधिभागानादाय ५ पृथिवीं वधिभोगानाद्ाय 11, 116] 18 11011,
भिर्भो मि
{1 र९{& 2180 1188 पृचिवीसर्वयि .
7. ब]. 1. 20. 14. 188 16॥ल€ाः तति 67 न) {116 16861110 28810164 {0 2] {{1€
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01 010 ०0111 "101 0 18९ 0667 19886 (0ण्छा. \*6 1686, हे गाहुषिदो यड्वेच्तायो देवा
गाहुमित्वा ! इश् गव्यैः । गययीस्तं ज्ञानायाः । अस्मदपेयो यज्ञः प्रवृच्च इति जात्वा गातुमित । यज्ञ प्रत्यागच्छत् ॥
{2,11.1 24, +. 980, [116 {€ गलः 1188. 1088 संबंधः, आत {66 फ8 110 16068811
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पसमाशामगन्मही त्यनेन सं्वंधः प्रयेकं }.
2. 171. 1. 1. व्चैसाद्यपेति ए. वर्च्ाद्यपैति 11, पयात। 15917001. = (ए 885, यज्ञमुपगच्छतः
पुरुषस्य सवैमेवेतदपेति वचैादि । अतोऽनेन पुनसपायति ।
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21. ०९४४ च्ुतवः ; 1. 3, 1 8१08 संवं धने धथ युष्माक; भरतो ध्यासः; 1. 27; छअग्निमपि ताभिरेकाद्०. 2. 65; 1. 2,
1. &, 1४16808 व्याख्याताः; 1.9, ५ 2५8 क्रद्धं ४६ शिशिरस्तु : भ्रा्रवान्; 1.72, ग्निरिव. 2.64; 1.3 भागः; 1.7, सापि
1. 28, + ०0०5 गायती पितुदेवता श्थ पुलकामेति ; ४९४ पत. ?. 65" 1. 4, अग्नि वावादित्यः. ?.67: 1.7, महान् । |
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1. 21, चयेतभ्यः. ?. 69, 1.8, पृणोति ; 1. 72, तस्य तनवा०; बहुलं 6०.16१ छप, २. 79, 1. 6 विद्यमानान्. ?.{7,1.5,
1. 13, चतं; 1.26, जातवेदसे ४४० ऋल्िताय ; 14. वेदय- प्राथेना. . ?. 74; 1.28, पु पोतादि; 1. 24, यद्? यदा वयं
हिरण्यमु हरण्यमुषा.; "1. 20; ( शुहुमस्तद्ा तदा. । ९.46. 1 | 183 297 ॐ 01020६1८
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९7९7740. |
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10 फ८र्ा, प 105 शक्लः [00प०ा8, 1 18 ००४ तलङन 00 एथत भाङ् 10660464 ध
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31६. [आ 118 नदा चल 1८ शद (प्री 4 ; 6 लणतल्टप्नगाऽ कात
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एप 25 अपगु 78588668 शल् € गफ हत् 19 9] (ल 389. |
7. 3 1. #ष्टन्लाोऽ0प्ऽ ८0
8. 3 २. एप्णाछ०ण'§ दगु, धकःला तिना) 8{€ण्टाऽ०'8 8. 1 पध्का8९1106त ४116 (लाप
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{16 #110]€ 9 1, पाप णु 18, 1 96ा6र&, एलःष्लपक् प्र प्डजकणक, 6ण्ला, 96 प्5 = |
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1, १. 10. #1. 470" ए. (णृ, इलाह †0 € क़ 10. प्रश्ण तित 10018. 1 फ88 वलाण्त्व् =
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2 ए. ए17148 18671018. |
11. 08, ४ 118. 160४ 706 ए 707. 80290 (श एव्व णाना, वद्ाल्लंपट दलाल
11) #, (प 1€€ 06 {1676 ऽप] (०018 211 11271119] 1101658.
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0? {11686 4. 18 एवान] ऽपपणण+€त ए ८ 10111 भत ए 4. {77 ११८५५८६ (१.
( १, ऽव1त3 ए 108; 2 1. 35 इपणु०6्त् ए 9 2, वगलकदात5 ए (12, 80 6717168
ए ए 4. 5८. १५४. = 10 तलप [2552468 {16 ^. 76201128 शल€ ९116८४९
फ़ ^ 7; प6 8. रव्वताण्डऽ 0 8 35;
४ ५ ॥ ॥
2388 1. [716 16. (इ. 46, 2.) महान् गुरः पूज्यः ^. महान् गुरः पूज्यमानो वित् (18. गुणे पूज्येः 8 1. 2. 1.
ए. 1.1. 26. (कर. 46, 1.) वेया ॥ वैता 2. ज्ञाता ^. 8 1. 2 4. | |
| ए. 1. 1. 70. (द. 46, 7.) वेद्यां 4. (8. ; ५668 111 21. 2. 104,
ए. 1. 1. 28. (दर. 46, 1.) अपां समीप इवधेः (12. अपसामित्ययेः ^. 84. 2. 4.
. 1. 1.19. (ट. 46, 7.) अथवा (4. ; 06651 4. 2 1. 2. ५. 2. 866, 7081), [0126685 यहा
| 2180 1€76 करमैखामुपस्पे. |
० ए. 1. 1. 29. (र. 46, 7.) पुनः प्राथितः ^. ए 1. 2. 2; पुनः 16681 70 (8.
1 2.3. 1. 3. (९. 46, ग.) 7. (श्ाक-8 18. (2 4) €? "€ -शगानफ्नषट 7एवकृलातला। |
४ ८गापालाईधा.क 0] एला86 1; होत्ता देवानामाद्दाता जातः प्रहुतः यतः नभोवित् प्रथमनभस आकाशस्य वेदितवान्
| अतः महान् सर्वेभ्यो भूतिभ्यः प्रयममाद्हाने आादिभूतत्वेन महत्वं नृषा । नपु मनुष्येषु जटराग्निरूपेणावस्थितवान् । होतु-
रनेरभयो्लोौक योरेव वावस्यानं । नभोविदितयनेन नभसि \ अपामुपस्थे द्विः सह स्थाने । विद्ुदूपेण । खवंरूपोऽग्निः
८ | पृथिव्यगरनःसु पराभूत \ दधिः पृथिव्यत्ेजसो धारकविनापि च यः । स र्व वसूनि विधते । वसूनां य॑ता । यो नियंता
(1 | भवति ! स रव विदधातु शक्तो । तनूपाः । तनूनां देवसतुष्यादिशरीणणां याता रक्षकः सो स्म्य शञरीरपोधकानि वसूनि
विदधातु । इत्याशास्मरे ॥ | | म
ए. 2. 1. 9. (2. 46, 2.) सधस्थे सस्थान (14. 860. 7081. ; १668 111 ^. 8 ग. 2. 4 #.
९. 2. 1. 9. (९. 46, 2.) निगूढं (1. ; १6९७१ 110 ^. 8 7, 2. 4. #. |
0.1.69; (र. 46; 2.) परि्रेत (4. 4. 2 4; १66९४ 1 87. 2. 0.
ए. 2.1.29. (क. 46, 2.) वि्तीनं ^. 2. 8 4. विक्छीनां 3 7. 2. 24.
१. 2.1.13. (-&. 46, 2.) स्तोतिः (1४. ; १९९७१ 7 4. ए. 7. 2. #. स्तोवादिहविभिषेनमिच्छनो } 4
2.५. 1. 3. (रर. 46, 2.) चात्मन इच्छतो ॥ अनिमि्षतो (1. सआात्मानमिच्छतः 4. 2 7. 2. #.
| ` 2. ५.1.24. (क. 46, 3.) पलाय्याष्ु 8. पलायाप्ु ^. पलार 8 7. 2. ‰¶. पलायमानस्यापतु ¬ 4.
2.2. 1. 4. (९. 46 3.) अश्या भूमिः 1 तस्या भम्या मूधेनि । भूम्यामित्यथैः। तला विदत् लब्धवान् । सोऽग्निः 08.
। चाग्र्या मद्धि भरम्यानित्यैः । तताविंदत् कयवान् सोऽग्निः 4. अगच्याः भ्रम्याः मूद्खैनि भूम्यामित्य्ः तताषिदत् `
` कमवान् सोऽग्निः 84 त एप 26160 1710 अविदत् प्राप ततः. सष्याया गोमूषेनि | अविदत् प्राप ततः ए 1. 2.
अश्ाया गोमूयैनि सर्विंदन् प्राप्रव॑तः # |
#
24.1.24. (२. 46, 3.) सुखस्य वधयित सन् (8, 4, 8 4; एप 8146764 1१0 सुखरूपः 1; सुलरूपः 5 1. ४.
2.०. 1.26. (द. 46, 3.) यत्तस्यादिवस्य वा 8. आदियस्य यज्ञस्य वा ^. 2 2. 2. 14. मुखस्य यस्य वा ‰ 4.
` 2. 3.1.7. @. 46, 4) 08. [न्प७8 0 प16 फ णत्8 एकता चाहवनीयं 910 सभ्नणणां- = `
, 3.1. 7. (द. 46. 4) 0५. 2685 नेतारं प्राययितारं, 4. ? 7, ५. 11. 1896 नेतारं चरति म्र, =
1
ए^ एष168 [ए0का0क8. 3
९. 3. 1. 77. (. 46, 5.) जेतव्यान्शवृन्नयंतं ॥ नेतव्यान् (8. 8 1. 2. #. जेतव्यं ^. शतृन् जयंत ‰ 4.
९. 3. 1. 18. (>. 46, 5.) भूजेयंतभिेकं पदं कृत्वा भूरदीन् लोकाञ्चयंतमिति व्याचकार ॥ भूजैयंतमिति (रकं
पदमिति 11121.) कृत्वा €{८. (8. भूजयंतभिि रुकद्मिति मावा €{९, 4. भूजयंतं इति मत्वा भूरादीन् जयंतमिति
व्याचचकार 1. 2. (मूतदीन् +{.) उन्मीये भूजेयंतमित्येकयदं मत्वा €{८. 8 4. {7 1118 (लाद 0
1116 §01118-ए९वत, सवकुताव, 8.40) ४5 {116 86 वाणम ग 0त8. = व166 16 5978, प्रत्ययं
जयंत मित्यनेन संवंधयितव्यः भरः प्रथमेकवचनमिद्ं दि तीयेकवचनस्य स्थाने द्रव्य |
९. 3. 1. 24. (>+. 46, 5.) ग्रीणधनस्तुततिं ॥ प्रीणनस्तुतिं (^. ^+. 8 4 प्रीणवस्तुमिं 8 1. 2.
९. 4. 1. 12. (-. 46; 6.) 3 7. 2. प. तत् शो ल्ाश्चाक्प्रिणा 0 येतेः, ४12. अकासोऽधिवाचकः
तेनायमधेः । सथिकानां शतूणां यंता: नियमनानि तेः सह शतुनिग्रहं कुवैन्नि्ययेः !
¢. 4. 1. 22. (९. 46, 7.) शितौ चयः श्चेतिमानमंचतः॥ श्ितिमान चयंत (2. श्रेतिमानमंचतः ^. शतिमा-
चयवंतः } 1. 2. 9. शतिमानमंवेतः 94. 0 €पक्मिश्ष्िणा 0 ऋनयः. 41110 {16 प
811111४९ <८1101040 4068 710६ छट्टपाः 7 +ए्1186ा1, 707 71 (ला प्रा0दर8 (न्ना,
11 15 ९०ल्ला$ 0प्6त् ट्ल्छप्वा् ६0 एवै). ४. 1, 124
|
5. 1. 7. (>. 46, 8.) रसशाय 4. (2. 8 4. रदणानि 82. 2. #.
ए. 5. 1. 8. (>. 46. 8.) मदं स्तुत्यं ^. (2. 34. मंदरं मादनीयं 8". 2. ४.
९. 5. 1. 9. (>. 46, 8.) यष्टूतमं वा ॥ {81684 ग (15, (8. 81016 16808 यजमाना धाहुभिवादधिरे,
एए प्रा {प्र पोहा यषटूतमं 13 ए 116), (0 ¶#] (116 11866 पिल य 10 मि.
।६।
02.00:
1, 26.
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7. 7
10111110 [पै वृ्लादिवधादिरूपेण कमेखा सायेति गच्छति ¦! अथेतिमैतिकमे । यदा अथे ईश्वरं कुर्वति 1. 98 1. ६06
5व.111९, € ९८]){ वृ्तवधादि-. भ. 1125 सयति 9 4. £17€8 कलिः संपादितवान्, केन कृतेन कर्त्वेन वृला-
दिवधादिषूपेण कमणा । तथा देवासः देवाः मयि क्रुं पि वेनन् । संपादितवंतः । वृतादिवधा मम अनीकं सेन्यं कभ
प्रज्ञा वा सूयैस्पेव दुष्टरं मां खयेति गच्छंति सथिरम तिकमे । यद्वा खथेमीश्रं कुषेति ॥
7. 13. 1. 4. (+. 48, 4.) खलनिप्पाद्ने यथा ॥ खलनिष्पादने ^. (2. खलनिष्याद्मे 8 4. 860, 7118
ने न; खत्दनिष्पादनेन 231. |
0. 16. 1.10. (६. 49, 3.) इदानीमिव कृतानीत्यनुवदति ^. इदानीमेव ऋृचानुवददि (४. इदानीमेव कृतान्य-
नुवदति 1 4. इदानीमेव क्रियत रयनुवदति 31, स
7. 16. 1. 22. (+. 49, 4.) प्रदेशं 37. देशं 4. 4. 8 4. [7 शा. ठपात् 1 ०6 प्रदेशनं१
1. 17. 1. ५. (\. 49, 5.) ग्रं करे +. 4. प्रदमकर (8. नघ्नं मृदं यके कर 3 1. 48 1] {€ ५
१188. + ॐ¶व114. 01१6 अडभावशदधादसः 11 15 (€ {8४ 8वक 22 1686 आयवे कर. 1116 188.
` 9 {€ {448 ८६, 10णटण्टाः 0196 सकर,
| (1
१. 22. 1. 16. (ई. 5०, 5.) चम मत्यादिष् ! सौणादिक च्ातन््र्ययः । छंदस उमादे ञः ॥ चम गत्यादिषु सोणादिक 1
ालन्परययः दस उरादिरदेशषः 1 ^. (8 4. 86९. 70871. कस््रन्ध, 2110. आओमादेशः.) खम गत्यादिषु ्ोणादिक ॥
अतन्प्र्ययः खांदसः उमादेशः (2. सखोमचादिषशादिको वन्प्रययः दांदस उवडङदेशः 4. सोमच्रादिषु आओणादिको ध
तनप्र्ययः । हादस ऊडदेशः 8 1.
| | 2.23. 1.19. (क. 57; 2.) सौचिको नामाण्निः। 81. सोचीको नामाग्निः 8 5. ^. सोचीको नान 010, (1
& ।
18 {8
8816 एकलः € €ण€ः 8 70906 2 4९701 0८्८पाः
(-. 47, 1.) वृ्छवृच्धिभ्यां ८\. (2. 8. . @. [. 7, 3; एए 21. ण्ण. 1.
ए. 1. }. 8. (. 48, 3.) प्छ देवा मपि 10 वुवैते 6 {€ 18 हरल) पणा 8. 4. }88
् | ८.217.748 1110 पि 183.
1125 17688 सौचीकः. 116 889. 07 116 ए18तव लद एथ. 18. 8. 76808 अभिचक्राम
सौचीको भयादग्निरिति शरुतिः. 18, प्र. (8 8716116) 16205 अपचक्राम देवभ्यः सोचिकोऽग्निरिति श्रुतिः ।
सूचिकः, 111 {€ 85188 0? {व्र 18 दण्ला क़ भ1150, {8त119ुर9ा14, शति 1) {116 (वा) 2-
08118, फो" ध्6 आन ४ णप. 7 पाततिण्छठ सोचीकः 1 शरा) 0१९ भनपलीक क €
ध्न ५6 ॥1171(-9714701, {100६1 णिता ्ध्लुकक 176 (णाल 0068 0०४
४ | 1 {118 ५४86 &1%€ 2) € 1010द्ा९न् त हक्षा11181681 ९१ [19020010
[र 2. 26. 1, 6. (प. 57, 5.) संमत्या ।. 1 01१ € ल्लः #0 106 तव संमत्या.
९. 6.1. 47, (कर, 52, 6.) तोदादिकः 4. 2. 8. 17 116 79४णक्ष2 चोविजौ 18 सोधादिकः.
?. 27. 1. 14. (>. 57, 9.) प्रधानस्य प्रमुखे ^. 1. 4. प्रधानदविषोऽग्रे 9. 5९९. पद.
. 20. 1. 19. (९, 5 9.) शरोण्दाया इ वा खम्नयो ॥ शयीरदायादा इ वा साग्नेया 94. शयीर्दायाद्! ₹
को अग्नयो ^. श्रदाया इ वा अग्नयो (2. ; 6९8† 1) 9 1.
॥ ए. 48. 1. 46, (द, 52, 9.) शनुजातव्यं ^. 8 1. 4 सनुत्य ८.2.
। ए. 29. 1. 1. (-. 52, 2.) किंचसास इत्यथैः 7 1. 4 (६. किंच सासमिव्यैः ^. 1 86 व0षफप्णि
^ | 200४ 11५8 7883886. = 9वक ४ प्श्क 129 17160१6 ‰ एधि @९6 0 इण€ णिता प
५ = 786 17 {76 प्राकर 02. 115 कषणा 2 (जता फ 2-50ि 2 1. 23) 1४68 चदरमा मे
1, बरदा समे ब्र्या ब्रां त्वामुं वृणे 25 {11 0.05 ०5९ र 116 ऽधलनरद्लाः 70 श्युगूनप पट 115
० ४ 12111081, 11116 16 काऽ 0? 116 81910). 18 चंदूमास्ते न्रा स ते द्या ब्रद्माहं ते मानुषः 1. ।
. | 4 5 {176 (ाालणथफ 81815, 11 फएप्यातै इद्लपि 0 फल्वो शप 118४ 5116, एद. इणो,
५ 13 16, ए, (भावाथ. = |
हि | क ए. 29. 1. 3. (द. 52» 2.) त्देबोनयं भवक्तीति ॥ तदेवाभयं भवतीति (2. तदेवाभयं त्रीति ^. ते देवा भवतीति
+ हि?4; वच्व्छ रा 91. ॑ |
2.5. 1. 25. (2. 5, 5) जीवति मृतशब्दो जायते तस्य ॥ जीवति सति प्र याज्ञायते तस्मा: (2. जीवति .सति
५ | मृतश न्दो जायते तस्य 3 3. जीवति प्रजाया जायते तस्या 8 1. जीवति प्र याजायत तस्याः 4. सुएभयर्व यस्मिद्नये
1 मृतशब्दस्बमग्ने 1 षश %08. य आहिताग्नि मृतशब्द श्रुत्वा का तत प्रायश्ठित्निरिति 411.- 81. # 1. 9.
2 51 9 (2, 55, 4) शुषं सेवध्वमिति । रवं बहूच्यमानेऽग्निमनूंति सदे देवा ॥ नु षश्नं ईति सेवध्नं ¦
रवं बहू व्यान अग्निमनूर्चति सवे देवा 4. जुषध्वं सेवश्वमिति रवं बहूव्यमान् । ग्निमनूदयंति सवे देवा 9 4. ^.
जुषश्वं इति एवं बहूच्यमाने अग्निमनूद्यति स्वे देवा 87. ` 6 †€् 18 (मला, वात त्वपः
लापकवृिभान 1 ४ 1 क
` 2. 33. 1. ५. (556 ) खग्नयेतरठे ्ातिक्रमण ॥ अगन नरो ठेख्यातिक्रमेश ^. अग्नि नसे वेद्यतिक्रमणे
84. प्ट चस्व॑रले न्ने (2. , अग्नि नरो देति चभिक्रमणे ए ५.
| ५.1.०५. (६.८3. 7) दोकान 4. 8 4.11. चलदीयाचयान् 0. === =
` ए. 34 1.29. @. 53१ 7) भियमसान् (8 प्रियमात्मानं ^. 84. #. _ ष
। 2.97.1.7. (द. 54, २) देवाना र्खयेन 8 4. 08. णोन ‰ निवारयेन 1“ -
2 0 स उपायवर्जिते दुरे वरामेतयादिषु ॥ उत्तरगक्ेषु उत्यते व्जतषु हूर तत्रामे
स 84 स्स सामु नतु ५. जस साड 1
6, २.) वयो 8. 2. 9. 8. 3. 08 बयः, ए 116 परऽय, पऽ = |
1 85 प्ल उठ प. 67, प. प्रसर |
४.५ 17745 1861710 प्न 5
35. 9. ग. 2 धात् त्रट् {0 एष्व [वर्ठ दक्षा) वयोै, 1008880 ॥ 8.९०] ९1968
वयोधैः 171 011 14८९६. 15 18 वा, पा०डडणि6 धा), 28 1166 18 70 आल्] त
25 ए8४०१}118 |
१. 39. 1. 24. (-५. 55) 1.) अवेव्य ॥ सहित्य +. सहेय ^. 94. 1668} 111 (8.
>. 3५. 1. 25. (+. 55; 1.) निधाना ^. निधना 14. भ. 168 71 €8
2. 4०. 1. 2. (५. 55, ~) 4४ {6 लात् म एटा§€ ए, 8 4. 2408 : इति विद्युदूपदर् इति च वाजसनेय
यद्धा पर्जन्यस्य रूपमाह तदान! वायुरस्यंदरम्य भरातावगेतव्यः ४
?. 4०. 1. 10. (~. 55, 2.) ~+ लः उपादितवानसि ^. 1128 भूतभव्योभया न्वयाययेत्यधैस्यावृत्तिः ।. ए 4.
\ का बूतभव्योभयान्ययाय पे ते व्यचस्यावृ्िः. ~. 1118568 17 {6 $द्षा16 11४९९ भयाद्यमथं स्यात्
(२. 1४ पाट्. = यनव्यस्यावृचिः ५0 ९ एल
1. 4०. 1. 12. (५. 55 2.) +ल प्रियधरूतं (२. 1115618 अंतर क्ं आ सपृणाद्दिति वीते । प्र त्नं जातं ९1९.
0. 41. 1. 11. (>. 55, 4.) सत्योच्छः ॥ 0116 © [0९05 यद्योच्छः, पै 116 €] 81 € 18 1९8 0
{1€1€ 171 91 {€ +>.
{. 41. 1. 25. (५. 55, 5.) अननमनः प्राणनं ॥ सननं प्राणनं ^. अनेन मनः प्रीणनं 1. 3 4. अनेन मनः
प्राणने (8
{. 41. 1. 25. (>+. 55, 5.) सम्यगननोपेतं +. सम्यगनेनोपेते #1. 8.4. सम्यगमननोपेते (8
ए. 42. 1. 1. (+. 5535.) जण 9. 23 4, अदु ठप कीलः ४08. 0668 11 ^. ए. ¢ #111.
2. 43. 1. 1. (+. 55, 7.) महतेंटण (६. महता तंतेण ^. 3 1. 4. ४५. ^ धा.
अन्यगा; । गच्छ! \. 23 4. (8.
0. 45. [. 20, (>. 56, 6.) संवंधिनं 4. (8. 9, 1051684 0 संवंधि, 211 184ल6006, 1 एठा
इदा 0 511१5
1, 46. 1. 21. (५. 35, 6.) चेत्सीः -\. (4. 9, 1703684 ग चेत्सीः. (16 ऽधा76 तप 7
07. ०८5 (व्ण चत् तो +8. 2. 1. ए. 1985.
१. 4. 1. 22. (५. 37.) लद त्ाा8 १6८8 10४ 106८6 2 [2658206 7 {16 4 पातश्ा181011 वै
६ 16 कष्टा ज पऽ वप्रा. 6 ापा्तकावपपवै, §व.फ8, पणि चत्वारि सूक्ता्युक्ता ऋषयो
द्वेषे त्वलिमदलं 1. ५. “ (८ [513 10606016 7 ६16 0४10९08 ग्म. 1४ 116 4 1-
11141 तध, इध {16 71९41 पा द {४8.* 15 दिऽ {0 धता), ४. 24, 11616 {16
प्रा" (वपुपिककायेड काः [वपव ४8 216 ला7ना€त १8 [5018.
0. 48. 1. 1. (3. 5, 1.) 1116 6४४ #न) 1116 19 /111 025 ला पाकर 618 त.
८प७३५५् 7 {6 ९८९ {9 एण. ए, 1 इध्ल€त् ‰ पडि 3886 णिः [णेषु तरल ५
ललात म पाह नप€€ श्िणााच्छ ग 8व्ा28 1188. कट) 19 एष्य व््रान्ति 1 =
वृपठञ०ण, चत् छित आतु, 9६ प्ल 06 16, प्6 एल्डपाौ चथ लमा 06 कण्ण =
ए & ललं शालीन ण 6 एपंप्ललछ ण ता्रणपाक्नील लपध्लेणा. 1 188 फएत्छा = |
०रोल्ललत् $, कट्ल्गताफ्ठ 10 686 कृषालक©ः, ¶ पषा फण ६0 72.४९ ए€5ा06त् सचप्रो्ेः = = `
एष््धणऽ€ 106 ० {€ 86. 8१९ 2. 18 -क०पात *06 प्रर एप णिः 176 च्ल 4६
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1.
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17. 4. 1. 5. (~. 56, 3.) अनुं गाः । खनुगच्छ 1 + अतु गाः । अन्वगाः । अनुगच्छ) 87. खनु गाः।
॥
| 6 १ 1748 1767110 7818. ध
क | शो रज्य, दक्षा, 7 716 पिः उ 916 085 8 1010 शणफएल्, 6 द्थ्यापा० 7€४त् स्यप्रोेः
| एए 70 9त0{ 8 [क्लाफएता016 राथप्रोे. मोः 18 2 फ०ात 0? तपि 0681100. ४
क: | "ल्छ्ा 11 {76 68180818 (अणक), 166 1 18 {0110६ ष प्रोष्िक. {106 (0
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+ । प्र130 21768 1116 106€द्ध1108 0 (८) 271त 0६. 1116 ^11181.8-1र08118, ¢1ए68 01081111)
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| 170 {116 88106 86786. 18108118 01९68 116 {01108 6८; दे पूदैनाद्र पटो त्तरभाद्रपदासु
। 2 ` प्रो मौः भद्श्च गौः (९ प्लााश्ली धता 8, 1257 तस्येव पाद् आसां तास्तवा । पूर्व परोरयदे दवे उतरे ठु भाद्रपदे
|. 1 ०५. ड खुदायशासां चतुः संख्य इहि वहुवनं । कदा पव परोपदे कदा उच्चर परोपदे ईति प्ाप्कयोष्ित्वाहटिवचनं । इतन
( । | भरतः 1. 71 1106 {स£-१€8 प्रोष 0€्८पाऽ 01166 1016 11) ए. 55, 8, 71 प्रोषटेश्ञयाः, रणाद
| २9 कपुगक्षं05 फ प्राके शयानाः. 1 [दा) 6०, एला86 5, स्वप्रोधेषु 18 1860 8 @11017€'
। | 1121116 {07 ^858171181 800 11 नि. |
( | | 6.28110, 1116 [2.58226 0010 तं ह सान्न 10 पराबभूवुः 18 €ए्यतवला+1 दणतप), अत 1 {18&
। ल्ल) शात् 119 ¶ 0पट॥ ४0 ९ 1687060 1 (गण ल्लप्प्ाक. एप 01}
। | 28 116 ण्टाश गुु05॥€ ग ९00्]व्ला पाश 13101.81100, (98 {0 810 10 शि 1
। 2 {)28822९, ए161*6 6 ८०1 701 1006 शि" सपद एन्], 2 8 01161666 ‰0 €
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८ प्रा 0 {16 ९तवतोणड ° (2. 7 असुगतं. (10 {118 18 00 {716 76841092 0फ्कातः =
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(५. 16108 ॐअ 1746 ला# 0), श्रत सकपात् इपएदन्छ प्रा€ 76ततणहु असुतर. 1 11660
| ककिताङ्ग पालात्णा काः ध6 908८९68 प तुद्य रूपे 8१ संततः परिधि %€ {00 12106, शातन 9
( ( 1716 ^पक्ा92 16016 निधाय अ0पत 06 01011{64. ८
¢ १. 48. 1. 22. (. 52, 9.) प्राहुयान ॥ प्रोप्नोति ^. 0४. 27. 4. #. |
ए. 49. 1.6. (इ. 57 5.) केषनं 1. 966 (६ भ 8 ऊ-काप(व-शी 08 1. 13, 35. ४५
?. 49. 1.18. (इ. 57, 5) सिवा, इश्ला08 {0 18१6 1216 पितरः 25 8 1 दप्रण्ठ, वेष् ॥
10 8१९ 168. जनः {78168 0 मनः.
। ए. 5. 1 24. (द, 58, 70) &. 198 7० वणापरलािक, एप आपुक् 5818068, यत्ते अप इत्ति .
यत्ते सूपैभिति यतचे पवैतानिति यतते वि्चमितति चत ऋचो लिगदसिद्धाः 1. {116 56 7 9, 6 11. ध
ए ५. 188 06 उा९, छ ८वुं 148 76वताटु यने विश्वमिदं लञगरिति ९८. (12. 26805: सप्रमो \ यत्ते = 04
अप इति ! अष्टमी । यत्ते पवैतानिति ! नवमी यतते विश्वमिदं जगदिति । दशमी \ रकाद ! यत्त पणः पशणवत्त इरि । न
चतस्र ऋचः निगदमिद्धा पंचम्यां पः परावत इतं हरदेश इयधैः ॥ षष्ां भूतं च भव्यं चेत्यनेन €†९. (€ `
थ 98 हरल 28 पशद्ला तणा 9. र ५1
{
ए. 53. 1. 2. (क. 58, 25.) 176 ऽशृशाध९ पला {701 ण {16 वमान एप 6 ऽपुग्०६60 #०
116 17 {1९ फण इह छयाय जीवसे 41 ५6 198. 271९6 प्रपंच 28 २ आपस, 1
। 2.55. 1. 26. (ए. 59 २.) निचि पायदेवता 4. 2 4. निचछतिः प्राणदेवता 2. निचछतिदेवता 2 1. 14.
नालति ¢. 5. + नको सेरा
च म १4
भनवेता ¢ 2411
४.4 17148 1.771108 18 1
7. 56. 1. 24. (+ ) हिनस्तु ॥ मा सागच्छतु #. म खागच्छहु 87. हिनसु ^. (~ 1111. हिनस्ति (4
हिनस्तु 8९९. 11187. मे प्रागच्छतु 8 4
ए. 57. 1. 21. (४. 60, 1.) सुब॑धोजीविताद्धानरूपोऽर्यो देवदा ^. 8 4. सुबंधोसाम जीविहायां इहानरूपो यो
देवता । (8. सुवंधोर्जीवितद्धानरूपो चै देव्ता 8 1
१. 54. 1 (>. 60, 1.) ^+ ल स्ङैनरेतुभूषो {116 01त हस्तः 11112111 16 16069166
?. 58. 1. 16. (-&. 60, 2.) तस्य धल शतुः १९९8४ 1 ^. (8. 8 1. 4. 08 निययिनं (फ़
16 8 रोक 7016 (णो ए88 17{6ात6त् 0 नियाभिनं, 2110 71€व01 †0 € 1861६
घ0€" 1116 7157 निययिनं. 1 4. 1125 11066 नियमिनं (8९) 6 ल्ल) निययिनं 871त् रथं.
2. 59. 1. 12. (९. 6० 5.) अनयेंद्रमाद्धयतेऽसमाव्यये ॥ शनयासमातिपु असमात्यथं इद्र 1. अनयासमातिषु अस
मात्यये दे इद्र 1. 4. अनया इंद्रस्य समा सा त समाये तता घवाणि (४. अनया ईं मा सने ससमात्यधै हे इद् ^.
१. 6०. 1.6. (इ. 6० 6.) वणा€ ल््वला किण #06 सिककककाश8 18 20877) (ग.
{7851684 ग चय शेपे ^. 84, 3 1. 2114 ८ पा 78१6 अत शेषे, 1. अत चोक्त, (9. सतारोषश्ोष
‰. 69. 1. 7. (>. 6०, 6.) पुनकवैनुमेतयवरुन् रषांतःपरिधीत्यद्रवीत् ते सा वध्वमिति तत्निराह । अयं माता (~
पुनवैनुमेत्यतरुवौ तमाद् ध्वमिति तत्नियह त्रयं माता ^. (3. ८ #1]. पुनव नुमेद्यन्रुवन् एषाः परि द् ध्वीत्यद्रवीत्
तमादध्वमिति तदिरदन्रयं मात 9 4. पुनवैतुमे्यजवीत् तमादश्वभिति । हन्नियहं त्रयं माता 8 1. पुनवैनुमेयनवीत्
तमादध्यमिति 1 ठल्निसहं तक्नयं माता ४ | |
९. 6०. 1. 19. (>. 6०, 7.) दवेपरेन यचालिषएु ॥ दपदं यद्लिषु ^. 87. देपदं यद्दचिषु 34. दैषदं यहम
विषु (2. (116 ६० 988. ण {76 7 ध्ततलर क्म 1650 द्वेषदेन यथादिषु. ^ पिर. ४. 24.
?. 6२. 1. 15. (९. 61, 171.) सत्राधिका नाभानेदिष्ठो मानवो वैश्वदेवं तदिति ॥ सघ्राधिके्ादि 287. (38.
सपरेयादि ^. ^ 7111. सप्राधिका नाभानेदिष्ठो मानवो वेश्वदैवं तदि 02. सप्नाधिजा नाभनेदिष्टौ मानवौ वैश्वदेवे
तदपि 24 |
" ए. 62. 1. 17. (>. 6. 107६.) उद्धय चोत्तमं सूक्तं ॥ उदं सूक्तं ^. उचुत्ं सूक्तं (28. उदवु स चोत्तमं सूक्तं (६.
उद्वतं च उद्धतं सूतं (४4111. उ ~ ~ सूक्ति 31 उद्धृत्य चोत्तमं सूक्तं 3 4
{, 62. 1. 17. (. 61, 11६.) अवेतरेयव्रा्यशं । ^. (2. ए 1. 4. ¢ 111. अतं तेत्तिसेये त्राणं (9
2. €2. 1. 22. (९. 6२, 7111४.) अनुष्ठाय मुदंति । (8. 87. अनुष्टाये पयेनुष्टाये मुद्यंति ^. 3 4. ]71. एश
सनुष्टयानुष्टये मुद्यंति ( 711. अनुष चानुष्टये मद्यंति (2,
0. 62. 1. 22. (र. 61, 171६.) सूक्ते शंसय ॥ सूक्ते गनं यते ^. सूक्तं संयते 84. 08. सूक्ते संयते (~ 14111.
मृक्रे संस्त्य ते (1. सूकिसंस्तूनेये 087
` ‰. 62. 4 (, 61, पा) वस्ति गाः ॥ वसिष्ठाः सहल ^. 9. ¢ 111. वशिष्ठ गा 68. 81
वशिष्टः सहस्र 8 4.
ए. 62. 1. 25. (इ. 61, 1011.) यज्ञं पारं प्रापय्य ॥ यपर पारं प्रापय ^. ¢ 4111. यज्तपां र प्राप्य 91
-यन्पपरं पारं प्रपद्य (४. यक्तपारं प्राप (98. यत्तपर पार प्रापय्य 8.4 | ^ ८
९. 62. 1. 25. (द. 61, 7771.) सहं प्राहुः । तं च तदहोसरघरं ॥ सहं प्रादुः ते च तद्वासहस्तं 4. सहं प्रदुः
ते च तदोघख ©. 8 4 सरं प्रादुः ते च तद्ासदस्त ^ 1111. सरसं खीकरुवैषं 23 1. 2
९. 63. 1. 14. (इ. 67, २.) भागप्रदाने प्रवतैमाना ॥ भगप्रदाने वतमाना ^ भागप्रदाने च व्तैमानाः (~
५
च <
` भागप्रदाने प्रवैमाना ¢ 1111, 8 4. भगं प्रकतमाना (8. 8 1.
?. 63.1. 15. (र. 67, 1.) गोलाभसाधनतेन 8 4. मोलाभसाधनत्वेना ^. गोलभसाधन (8. | मोलामस्रा-
4111. ऋणलाम साधयन 8 1. 8 ४1
?. 63. 1.25. (ङ. 67, 1.) तेन नाभानेदिष्टः ॥ तेन यतनिा० ^. ८. 74111. तेन यत्राना 92, 4. 2. ~
8 ए 17148 1710713.
?. 64. 1. $ (द. 67, 9.) यथा चनः ॥ यथा धनं 4. (8. (^ 1711. यथा घनं (8. 87. यथा 34.
९. 6६. 1. 16. (ऋ. 67, 5.) लिः अस्तेः सिपि 24. 8. एाश्मानुर 8 1862 ; 100 ^, 1. ¢.
111]. 11 आतपात् 097९ ए शरसे; सिपि लङि वहुलं हंदसीतीडभावे स्ड्छादिना सुलोषः. 9 ए
एकि. 3, 149, 2.
?. 66. 1. 25. (द. 67, 8.) 8 9478108 णप्ात् 18त] एललिः दथचेताः {0 ४ 2810811007, 06
का; 1876 † 98 1116 इपर ग & 6 56016106, 000८८ 1 (ए यः कश्चिःपगावुृक्
गृ] 1620719 0 {16 188. ऽता (गलप 70 न6 [0988406 फपल 0110008 ; 876 8{{€1
11110118. 728 870प्रात् लं17©' © १११९ 0 प0त618000
?. 68. 1. व. (क. 67.) हे ईदू ते तुभ्य (9. 84. टे हुभ्यं ^. 0107111, 8 ". ^8. हे रद्र
5 १, 68. 1. 12, (क. 67, 11.) पायोकक्षणं ^. ( 0111, 84 पयोलक्षण 21. 3. ~
ध १. 68. 1. 13. (र. 67, 71.) ए€0"6 तदोदकं 81] 16 1188. नन्द अयजत. {7 1118 + €6
1 पशु, 1४ एण्पात् [कष९ एदल १९८९887 10 एत16 ते सत यदायजतं
7. 68. 1. 25. (द. 61, 12.) तो नामकारणः । (४. 9 4 81. €. त्वा नामकरणः (2. ^ 0111
पक व]र9ा 2 ०६६१ 111 16 86156 07 10101181 50. |
९. 69. 1. 73. (२. 67, 72.) थनं जानति । 08. धनं जानं 2. धनं न जानंति 8 4. ^. 0 धा].
धनं जननंति 8 7.
\ १. 79. 1. 21. (ष, 61, 16.) स खवागनं 1. 9वफवा08, ईश्ला08 10 1896 फा{{ल) स वाग्निः शात्
| 10 1896 (0006 †1 € एजण78) १९ इविर्वोदुमशक्तः सन्. 11118 © [18.96 स ठवानिः इविर्वो-
दुमशक्तः सन् ^. ¢ 11111. स शवानः 8. 8 1.4. सोम खवाग्नि हवि वोढुं खशक्तः सन् (8
४ ए. 71. 1. 11. (९. 67, 19.) छिना विप्रा चतस्य प्रथमजाः सत्यस्य प्रथमजाः स्यभूतस्य व्रणः प्रयमोत्पन्नाः ॥
दिनाः विप्राः ऋतस्य प्रथमनाः सग्यभूतस्य च्र्वणः प्रथमोत्पन्नो (86९. 11181. त्राः) 3 4.
हिज ~ ~ - ऋछतस्य प्रयमजाः सायभूतस्य ब्रा्यणः प्रयमोत्यन्ना (८8.
दिना; ऋतस्य हस्य प्रथमजाः सद प्रथमजाः स्यभूतस्य व्रब्मणः प्रथमोत्यत्ना ^. (~ 1111.
(-छिनाः ऋतस्य प्रथमजाः सस्य प्रथमजाः सस्य भूतस्य ब्रमणः प्रयमोत्यवाः (8. 33.
?. 71. 1. 26. (द. 67, 20.) ऋणि शिशुः शंसनीयो ॥ श्रेणिः न शिशुः नसेतेन 8 4 श्रेणिः न शिशुः
नसेनेन ^. ¢ 11111. प्रणिन शिशुः नसोनेन ~. 37. धरेण ना सनेन (8.
?. 76. 1. 26. (2. 62 1.) वहुवचनं ।. (118 18 116 1684178 ग श] {16 188. 11151९86 9
षणौ ए6 शपात् €पल्टः परसेषदं. = विकृवा02, पाके, 100 ८€्ए्लः, (1). 1€28त 6 ध
{71त्तांकलु गाता एला३68, 18९6 ९0181161-6त् ॥16 86000त् (थाणा). [पत्् (सानङ)
गच्छशत [पाः णिः 16 प्रप्त कलहण) [प्श्य शात् 7) पीक ८886, 106 1686178
0? {16 186. पणा" 96 लुक्न. = ^11 +€ 2788. 186 प्राघ्राः स्व, एप 3 1. @7त
(18. 1876 आनश्षीरे, 8 4. सानशिरे 86९. 70दथा1., 1116] 16941700 0८्लााः§ 8150 क) {116 निव = 0
प्रदा |
2. 79. 1. 12. (+. 62 7.) ऋृषयोऽगिरस 612. {1118 10888826, {101 भणुश्चलाप्क चकद्ला
701 {76 108006१ 814, 18 106 {0 6 प्रात् 7 क 1188. 9 क फार. = 11816कत्
9 तत्पुखयाय च कर्मणि 4. 34. 804 ¢ शा] 1€बत कमणि, (9. 28. 3 7. कमैशि. "6 10171
1680 तत्पुरा च कमोणि (1 2 ४
४.८ 12748 12110718. 9
#. 81. 1. 12. (९. 63, 1.) वृघ्नाभिञ्जवयोस्तृतीयेऽ हनि वेश्वरैव रता्सूक्तं वेदे वं निविद्धानं ॥
[ पश्याभिञ्वपोडहयो स्मतति इनि वेश्यरेवश्स्तरे एतत्स वेश्वदेव निविद्धानं ! 8
पृष्याभिस्वपठ्छहयोस्तृतीये हनि वेश्वदेवे निर्विद्धानं ? 4, रेता्सूक्त वेश्वरे नं 111 71४
[ पृष्याभिश्रवयोः त्रतीये हनि वैश्वदेवे रुतत्सृक्त वेश्वदे वनिविद्ातं ^+
( यृथ्याभिस्मवयोः नृतये हनि वेश्चदेवे रततसृक्तं वेश्वदेवनिविद्वानं ¢ 11111.
पष्यानिञ्चवयोः तृतेये इनि वेश्वदेवे रतत्सक्तं बेश्वदेवं निविग्धानं 7 7.
| षषयाभिस्रवयोः तृतीये इनि वेश्वदेवे एतत्सूक्तं वेश्देवं निविद्धानं 9.
. 81. 1. 19. (>. 63, 1.) जेयं ^. ८ 11], 8 1. (8. 84. ज्ञातैः (8.
2. 88. 1. 10. (९. 63, 15.) भ्रा दद्व 6 176 भा ०४४ 866 दिए. 1. 189, 1.
०. 91. 1. 5. (९. 64. 3.) गंतुमशक्यं ॥ गृहितुमशक्यं ? |
ए. ५1. 1. 17. (क. 64, 4.) रो मत्वर्थीयः ॥ सो मत्री: ^. ^ 1111. शब्टाद्यो मर्यः 3 4. 86९. 11811.
हविष्य रो मत्वर्थीयः (2. शब्दा खसो मत्वर्थीयः (8. 237. 1 +. 64 16; 99, 6. 3212 {8468
71/111101ट478 ल्लः &इ वलातर्ह्त् तिना ६00४ ए फाल्छा§ 9 {0 10886881 96 वी568, ए12. १८
धत 140, (दोह "08868877 70 काप." 1.6. 0्ंऽ©ा8 ; गः 16 {दर68 + 88 8 [00886886
वीर, वव्िदा€त् ६0 थय, हएा"८ फालका] ^ {00856887 पात119त70688,* 810. करालि)
{0 € ९०६, {0 काली 9. प्ट [00886881१€ ऽपी ड 15 206, णा. ४८1०, 21812 #0 ६6
द०ाा0प्रात् 06 टदा त ^ एताा{6त् फा {17086 प])0 26 [008868856त 0 18411101.
1688. 1 18 10 {0881016 10 1684 [धकशत ; 0781, ए6८वप56 1116 88. 216
111811171005 80811085 1४६; 86८0)त1$, ए06८कपऽ6€ कषप) 18 16ण्टाः ६९५ 28 2 {ल्लवण
{€} 0" 1088 01 015 {621.8166 |
{>. 9.4. 1. 20. (-९. 64, 70.) ततः शशमानस्य शं समानं स्तोतत्ो ऽ स्मान्पातु ॥ दतः शशमानस्य शं समानं स्तोतु नो
स्मान्पातु ^. ततः शशमानस्य शंसमानं स्तोहुं नो स्मान्पाहु 3 4. ततः शशमानस्य शंसमानं स्तोनु नां स्मान्पाहु ~ 1111
ततः शशमानस्य तत्समानं स्तोतुं नो स्सान्पातु (४. तततः शशमानस्य शशमानं स्तोतुं नो स्मान्पातु 73 1. 8. 1४
71101} 96 शं समानान्, 0 जंसमानस्य स्तोतुः, 11 20१८ा76व् ए शंसः, 0 {06 (णत्एना 0608
९९1) (ध्रा तततः, 4.8 1{ 15, शशमानस्य ०८1 06 0151 €2]12160. 0 {16 8९९. 8110. जं समानं,
1५ ध8 पला एव्मतड 9 स्तोतृन् 71 07वला" 10 08४6 2 [पण् 0 नः
. 95. 1. 13. (इ. 64; 72.) हे मरुतो 61†८. {1616 1188 एला. 9 0780 श्ट्लाालाह 1) श्ना ना =
9148. ;: ^. ए€््ा08 फणंप्रा हे देवाः ये देवाः, © 1411 एण् हे इंद्रा ये-देवाः, 2. 8 4. ~3. 8 7.
प हे इद्रादयो देवाः, 81 प्ल श्] व0णपठ यां धियं यत्वमै मे मद्यं दातुमिच्छय, 910 16\ णार
+ „
‰1०८९९. 0 16 णण्ट्वप्गाऽ हे मरतः ९{९. = ला€ [गष कद 8, [वदप पवाली = ` |
५85 इपुगाल्् 19 > प्ट पमल कषात् प्रांऽ 706 जड वर्विलफवाःत8 [पडला प्रा = |
{17€ साह {1866. | ए 1
ए. 101. 1. 12. (६. 65, 8.) चरणवत् ॥ लकषणवत् ^. 0 11111, 8 4 68. 37. ©. 1628 पितृवत् |
पयः उदके पि घतः सिंचत 1. "1116 88106 18. 1185 बहधान्यविकरणविन 1181624 07 {16 अइूत्यधिकरण्त्वेन = ` ` |
07 {116 0५6 #€
01, श~
1. 106. 1. 26 (> 60, 5 ) विष्कभ. 41110181 211 116 (38. 1686 €11€/ चिष्तर ८ | । ५ |
{0 १५717748 1.711078715.
80010 16 0011160, 0 %{ 16857 वा 806त शिल सूय.
देभ्यः 8 1. 8. कुत्सितेभ्यः (18. 86८. 7181.
4 | निर्जहा (8. ए 7.
| १. 146. 1. 2. (द. 69, 10.) प्रतान् ॥ सन्वान् ^. ( 01111. सत्वान् 8 4. 8. 67. 3 ६ पाश
€ सान्, एए 11 18 10016 व्ल] 11181 1४ 85 11611 0 प्रत्नान्.
{. ¢. 129. 1. 15. (>. 70, 4.) चकारस्येकारवरीव्यप्याः पश्चादल्लोपः ॥ अकारस्येकाय वशेव्यापतयया पश्चादल्लोपः +^.
| "छलोपः (८ 111, शल्लोषः 87. अकारस्य इकासो वरै व्यापत्या पश्चादल्लोपः (३. अकारस्येकारो वरौययात्पपश्ठा-
ग दल्लोपः 3 4. 86९. 11811. अकारस्य इकारो वशैव्यापत्या पश्चादलोपः (2. {1116 {61 15 121त्]$ ८०८८
0 पा 07 6 पशो म {76 2188. 1 370 पात् 78४९ [टलित'हत् 10 फा 66 इकारवरैव्यापन्याः
| पश्चाद्ल्लोपः, 0. 11} 116 न्ा126 ग वावैह्रिपाका ४, 0, 11016 ८०तल्ल $, त14011170119. 110
01146111, 116 ¢ 18 7757 0651709९त्, कात् श्रतिलाककात३ {66 18 1079 0 ८, ०
| प्रि०फएलक्ल, $वकथ)2 25 €प्वलणतङक 88806 11 19118 = सपा०€त् 2 शिवा)
तावेद178, फ्ा0पा एण 28 चिः 88 तादैषटा19, 87त् (18 16 १०७३ ए 5व700 18
1116 £» 07" 88 101 88 176 £ 88 ण68न)†, {76 9ा]मृश्चो) ग {76 शरक& ल०्णात् 79
॑ 08१6 {वला [012366. = [ ।
क . 2. 152. 1. 25. (-. 77, 1.) परमं ।. 106 1168. 0 प्€ एता126९१8४ 13८ अजरं 816
9 नुः.
| | 2. 133. 1. 24. (९. 77, 7.) (06 28586 7) 1706 +विष्लोदकएकृथार 1 प्र नाई #&,
पपत ] 10088688, 7पा)8 28 01008: तदिति प्रतिपद्यते तदिति वा सन्नमन्रमेव तदभिप्रतिपद्यत रतां वाव
` म्रनापतिः प्रथमां वाचं व्याहरे काक्षरद्मक्षणं ततेति तातेति तयेवेतत्कमारः प्रथमवाचं व्याहर्त्येकाश्ग्द्यछरां तेति तातेति
तयेव तद्तवतया वाचा प्रतिपद्यते ! तदुक्तमृषिणा वहस्यते प्रथमं वाचो अग्रमियेतञचेव प्रथमं वाचो खगं येरत नामेयं
दधाना. इति वाचा हि नामधेयानि धीरयंते यदेषां शरे यदरिप्रमासीदिवेतञ्येव भेषमेतदरिप्रं मेणा तदेषां निदितं गहाधिरि-
तीदमु ह गुहाध्यात्ममिमा देवता खद् उ अआविरधिदेवततमियेतच्द भवति !.
9 £. 156. 1. 96. (र. 47, 7.) गए6 वप्म॑क्षमा ऋृच्छ॑तीव से उदगत्ामिति 18 €्ग1शा16व एक पयः
णि ऋच्छति वै तो कर्णो सेऽभिष्यक्ताः संतः शब्दाः । रतावपि च उद्गतं परयुडच्छत इव ग्रहणाय ।,
4 ¢. 738. 1. 70. (द. 71, 70.) प्रतिभरूतेन ^. 0 1011, 2 4. 8. 87. परिभूतेन (8. {10प07
एवत्रापत्ला2 7710707 6 १९160 १6 1 कठपात् 76 1106 पााप्ञपश्च छलाो (भि)
एक्ीणराप्राला2, = रिक)9 एणकः फा०6 [पिए ग 8110017 सखिभ्रूतेन ?
2. 39.17. (द. 72, 77.) करमणि प्रयोगं ॥ कर्मणि प्रयोगे ^. 0170111. 4 87. करमैणि प्रयोगेषु (8.
ध 1 । 40 1. 72. (ह, 72, 77.) न निषत्तः ॥ निघातः ^. 010711. ए 4- 8 7, 8. प्रतिघातः (8.
(८. 4. 1.3 टा ‰. ८} । ` खदित्यसृष्टावित्ययः 3 4
| .2. 715. 1. 26. (द. 60, 5.) मतं सृ 1. 11118 18 {76 1680171 9 क] ५16 298. ; ल्लः मतं
2. 118. 1. 9. (+. 68, 3.) कुसीदेभ्यः ॥ ऊसीदेभ्य॑ः ^. ( 1111. कुमीरेन्यः (2. कुसीरेभ्यः 7 4. कुर्सि-
| ?. 120. 1. 24. (ङ. 68, 9.) वटस्य पवैणः यकैतात् ता गा निरजैभार । बलेन निरजहार ॥ वलस्व पै । वान् भासा
८ = 3 निजभारं वलेन निर्हार 4. वलस्य पवान् भामा निजैभार वलेन निर्नैदोर ^ 111. वस्य पवैणः } पवैतान्
1 भमो निजैभार वल्टेन निर्जैहार 2 4. वलस्य मल्जानं निर्मभार वनेन जहा 9. पवैतान् भूमौ निर्जभार वत्छान्
५ ^ 1187 शाण ण एव. ४, 4 144 81 137 (शर€इ 11868 फलाः 6 तच्छ्रिप्लौनगा ग
` (९७7०
*.^ 1745 17710815. 11
9 4- सखधिष्ठार्नात्सकः (23. नां तत्स (13. 860. 71191. अष्टानां तत्स° 9 1. 116 लात 0 8 वे108:8
21 पा116111 18 1101 लृ€््ेा {0 106 |
7. 143. 1. 13. (९. 72 8.) [1 € वकपप्िपणीकिवाकृषाप8, प्0ल© #6 8706 0 8. एला
11111" [0258806 0९८८8 ([. 13, 8), 1176 115४ लत8 प्र इदरश्च विवसँशचेयेते । ॑
1. 146. 1. 5. (>. 73, 5) स इद्रस्तसा सवधैणेन ग्रा पयितीर्भिंहो वृष्ठीःप्रावपत् तमांसि च प्रावपत् । व्यनाश्चयदिवरधैः ॥
स दस्युः त्राः खवपैशेन गापयितीमिंहो वृषटीः प्रावपत् व्यनाशयदिव्यथैः । तमांसि ९,
स दस्युः तम्ताः खवर्भेणेन गरापयिता मिहो वृष्टः प्रावपत व्यनानायदित्याधैः तमांसि ^ 1111.
सह दस्यु तमाः खवभ॑णेन गोपयितरी्मिंहो वृचा तमनाः प्रावपद्िनाशयदित्यथेः । (2.
स दस्युः ताः अवपेणेन गराययिल्षीनिंहो वृष्टीः प्रावपत् विनाशयदि्यथैः । तमांसि 8 4.
स द्स्युः त्राः अवपेणेन गरापयितीरभिहो वृष्टः प्रावपयत् व्यानाश॒यदित्ययैः 1 तमांसि 3 7.
स दस्युः तस्नाः ्ावर्पैखेन गापयितीर्भिटो वृष्ठीः प्रावपचचमांसि विनाश॒यदित्यथैः (8. |
116 ल 18 ल्ग 70 ब € 88. पिः ण 9], 1 श०पणात् € इद्रः 1181686 ण
दस्यु, 1९८६०8९ {16 2९ €< १९६८१९त्, एबन1&8 10 1018, 710४ {0 16 क्प. - ठर्ण
€) 1 ,८९ कलक्९त् दस्युः, 1116 86607 181 0? त्1€ इच{ला66 जपा 06 17ल्गणा]1€।†€
£. 7147. 1. ~. (९.73; 7.) ^+ लः शीघ्रं गतो माँ, {76 488. २00 कती ^. (2. 23 4. 78. कानि
(! 3111]. कात्नि 871. मत्तो माम, 11161 { १० 70 पातलऽक्ात् | |
?. 147. 1. 21. (९. १३, 9.) 116 लगफाप्लातकक 10 एला8€ 9 15 1€ग 0 70 भा ल6 ४88.,
1 708 06 8द्ला 170 रिवैकको28 (नाा1060काक 10 1116 8904-6, 1. 4, 7, 4, 9: सस्यंद्रस्य
चक्रमायुधमप्सवंहरिष्ष खा स्वेतो निषत्त निपणमासन्मेवहननाघसुतो तदपि चास्मा इंद्राय मध्विदुदकमपि चच्छछयात् 1
वशं नयति । पुथिव्यानतिपित्त विमुक्तं यटूधर्द् कमस्ि तत्पयो गोपोषधीषु चाट्धाः \ आखाद्धाति ॥
ए. 153. 1. 5. (र. 75, 4.) सिचो सिच्यमानो भटो नयसि उदक्पूरयद्य्चदा ^. सिचो सिच्यमानो भटो नयसि
उदकपरं पं चदा ^ 1111. सिचो सिच्यमानो भटौ नयसि उदक्पूरं यद्यदा 3 4. सिचो सिच्यमानो तदो नयसि ।
उदकपूर यद्यदा (६. सिचो सिच्यमानो भये नयसि उदके पृर्यं यद्यदा (8. 8 1. {† §6्ल)8 7710880}916
{0 165०८ 11९ छत, { आतपात् दमपव्लप्ा€ 8०09 1116 क्षिचौ सिच्यमानो चटो (पटो)
नयसि ¦ उदकेन पूर्यसि |
{, 153. 1. 1५. (>. 75, 5.) ^+ लः 18 ए€ा86, 68. 1786118 10 {76 {650 ; सितासिते सरितो यत्न
संगमे तवा प्रतो दिवमुत्पतंति । वे वे तन्वं १विसुजंति धीरस्ते जनासोऽखमृतत्वं भजते ॥
9. 1. 16408 : सितासिते सर्ति यत्तं संगथे तताजुतासो दिवमुत्प॑तेति ।
ये वे तन्वभे विसजति धीरास्ते जनासो समृतत्वं भर्ते ॥
8. 2. 17) प्रशा: सितासिते सि यतरं संगये त्वामुतासो दिवमुत्पतंति ।
| र्वे तन्वं१ विपुंजंति धीपस्ते जनासो अमृतत्वं भजंते ॥
€ 5ा)6 श्ला56€ 0९८प्ा§ 711 {176 चवि प्रक-उभ1 8, 10. 1079; |
सितासिते सरिते यतं संगथे ततां सुतासो दिवमुत्पतंति!
` रदे तन्वंभवि सजति धीणस्ते जनांसो अमृतत्वं भजंते ॥
ए. 155. 1. 2. (ह. 76, 2.) यथा 0 ४176 {€† 18 160 छण 0 रिकषकषा)8, ५ ॥
ए. 156. 1.2. (ग. 76, ०) धृतोऽछ ॥ धूतैः चश्च ^. 0 धा]. भृताश्च 02. धू सश्च 84. 08
19 .ष्^ 17748 1. (11075.
कए {ला वलते. |
?. 159. 1. 2. (द, 74 1.) 0 (€ 66 म धाऽ क, 866 क क्ा8] 21101 9 {16
¢ एिं-१९2, ण्ण. 1. ]2. वप ति
ि ?. 159. 1. 7. (३. 27, 1.) बहुवचनं 4. ८ 1111, (8. 8 4. ८5. 287. ^. क. 3. 77, 7.
0 ६: 2.1.59. 1. 70. (६. 77, 2.) न स्तुतवानस्मीतः पूव ॥ न स्तुतो स्मि इतः पूवं ^. (~ 111], (28. 87. न
सतुतो स्मि इतः इतः पूरव 34. न सुतो स्माभि पूवि (8. | ॥
. 2.16. 1. 5. (द. †4; 4.) परिष्कतीर इव ॥ परिसर इव ^. ( 111, 23 4. 23.87. परिणा ५ ६.
॥ 2. 160. 1. 10. (ई. ¢, 4.) ^+ ल सत्न 11616 ९718 8 [प्रा 7) ^. 271 ¢ प्रा], 6 -
| ५ 16116112 10. 2. 78, 7, तपैयितासे ।.
ध + | 2.67. 1.५. (द. 7, 5.) प्रसिद्धयानाः ॥ प्रसिद्धे यो नः 02. प्रसिद्धयानाः 3 4. प्रसिद्धायाना प्रवृद्धयाना
4 ` 81. 8. | | |
० ए. 168. 1. 19. (र. 79, 6.) चकं विविधं करोषि ॥ 45 21] 1116 788. ९1*€ {1115 1€ 41118,
५ 1616 € € 116 वनपः प्राव {116 0151{शः€ 18 तप१९ 10 8858118, 11111186] +110
| 11115{00ए चकते 01 चकं 1. ॥
९. 169. 1. 9. (९. 80, 1.) 81184्पा"]1 2 100, 888, सोचीको वेश्चानयेऽग्निक्धैपिः । वाविशिष्ट-
त्वात्न सिः 1. | | | 1 ॥
2. 172. 1. 4. (९. 87, 1.) य इमेति तयोदश द्वितीयं ^. ~ 1111, 84. (एप. ) य इमेति योद
| वयोदज्ञं 4. सप्रे वयोदश्ं 8. 831. 1 {116 €पक< पिल धल $ क॑कुद्{118-01411118118;
(८ | 909 80608 ग एक्का) 88 त, 11880प्7716, जन्मा वे खयंभूः ^. ¢ 111, 9. 2 4, ५6
। 1888806 01116 171. ए 7. (12. एकलइ 61000) @१8 च वे स्वयंभु. 1116 5का116 2188.
^ 168९ ० भोवन शणाः विश्चकमौ 7) {€ वुप्म॑भ0ण वित ्र€ प्रपा, ६९८ 8150 गा
` शका, 6, 2; एक. उका. रण्वा. ॥
2. 178. 1. 23. (+. 87, ०.) ^ गलः गपृचिव्योरूपादानानरैत्वात् ए 7. ४008 तयोः स्योपतेः पूैमपादानानरै
त्वादित्ये; । आत्साच्रयप्रसंग इति शेषः. † 870पात 06 खोत्पतेः पूर्वैमुर, ए+ 1176 + 11016 15 दुश्वणषए
2 11व7011181 7016, शत {166 18 110 11866 ग 1 €ण्ला 10 ©. [॥ च्ल्लपाःऽ, 110९८
1 उ प्ातारगा§ {8 ५ । |
2. 173. 1. 46. (क. 87, 2.) [186दत् ग प्र6 शंण]16 किं खिदासोदिति 11 ^. ¢ 1111, ८8. ए 4;
€ त 7 3 7. स्वरूपेण किं पदायै सूये ॥ भूदिति प्रश्ायैः । न किंखि० 171 013. खरूपेण किं पदां रूपो
भूदिति प्रह्नायेः भिद्या न किंखि° 1४ 88 [7070809] 016व7{ {0 खरूपेण कियदार्धरूपोऽभूदिति प्रष्मायैः।
. नक्ििंखि० €९.; 0" € श0पात् {6 न किंचिदासीदिति । ५ , ^.
` ?. 5.1. ~. (इ. 81, 5.) पणा6 व्णााल)( 10 यजख 15160 0 7 911 {98 |
9.14. (क. 8 3.) हता्देवेषु (थ. तत्यदेषु ^. ततत्यतेषु © 11111. ृत्त्पदेषु ए 4. तत्त्पदे
| ` ?2.280.1. 3. (द. 82, 6.) वल वुप्म॑क्षौणा तणा) कल आपति इश्याऽ 10 16 {श्ल पिमा)
| छश एणः 1४ एव्ा& हणा {16 -7व्व्लर्€त् {छप पवष 280 0 वृ], 21
। शपपथरभञिपाशुणवणकण णिः हथवशकाऽपडाावावणशा). ` [1 112त्श्ः (णा
| फ, 1116] शा |
४
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७
| * ध. $ 9.8 र
€ 2 (ल्ला7ाद8्। †{€ला) ९011€0{6त 111 10इला0818110, 17 11161 ९886 कष 18 1
६69 ण्छाकृ प्ल णा 9वै108 & (एप 01105 76श्लधु€8 18.
त १
# 1 तवन्ण कालौ फल धल, 35 1 एक्ट शाष्छण ४ 28 पदा. + 096 प
1 ५ । {0 ६8९€ ॐ अप्प €्ाप०0द्ष ण कशा काफुफ166 ©18 8 शा
४ 7748 7,7610प्ा§, 13
?. 180. 4. 14. (-. 82, 7.) सवैवेदातवेद्यं ॥ 11116 516 18 116 1681112 0 {€ 188.
112111011878; 07 सवैवरदा् 18 ०] € ए्लक दगाणाणना ए860811 30९11118 0 सववेदा,
भल 7106880 भल्लः 188 ९0866 10 सवैीवदानं
?. 189. 1. 16. (६. 82, †.) ° कत्वात् नादयत् सत् काष्टापाषाणादिवत्संबोद्धुमयोग्यत्वात् ॥ {1116 81216 0 {16
788. 18 28 {0110 8: |
4. ° कत्वात् काष्टपापाणादिवात्रेण बुद्धमयोग्यत्वात्.
¢ 1111 ° कत्वात् काष्टपाषाणादि वातिरेण सं वुदधमयोग्यत्वात्
(&. ° कत्वात्का्टपापाणादि तरेण संवधमयोग्यत्वात्.
84. °कः त्रौ काएटपापाणादिवदतरेण संवदधः अयोग्यत्वात् |
91. °कत्वात् रवमज्ञानमपि ना्॑तमसत् ईश्वरतत्वावरकत्वात् नापि सूत् बोधमानात्र निवैत्वात्
(98. ° कत्वात् ख काष्टपापाणादि वारेण संबुदधमयोग्यत्वात्
{६ 15 गाङग क़ 2 रटलिः€०९€ 10 कधथपताद्ा28 ९0101161" 0 {16 #&] प्ाः-९६९2 {72
वि वा18.5 सातु दवा 6 168{ग6्त् ऋं इना१6 वतंणत् ग वलभक्र. 06 हिलाल
(णाोदलुप्णाः प एणी, ल्गपणाला्श्च68 18 €ंवलाधफ {76 59116. = क्पक9, 109, 18 068
07 [ागाव्मा९९ ; वातै 88 ण्ट 18 706 श{ण्ुलालः 70, णिः 1४ 01668 6 शंन,
001" >{0द्€पी€ाः ऽग, शिः 1 ९8710 {€ 61661४60 11176 0०06 211व 80168, 80
17101816, 100, 15 701 क†0दएजल रणाद, एः 1 60रदा§ {16 6886066 0 {116 इपु्रला16
गत, एमा 18 1 10८ उगपर्लएट, 0 1 दद्या € एल०७६त् अण्ण 0 पतल
5871017. = $पएतलण्ट ॥क धश्ीतदा2, 1016 काष्टाश्मादिवद्नोधयिहुमगोग्यत्वात्, 701, ४8
010९886 फ कलः 5, काष्टाङ्मादिवद्रोधयितुमयोग्यत्वात्, { ए ९]# पाक्णा6 10 पणद6 का~
{117 ग ध€ सत्रेण, फ 1011 15, 10 कशश्लः, ऽप्ग४6 ४ ग्] 88. वला6 19 वष्ट
ए६्€प अ) रतवाप्रना, {0 दसतुण688 19४ 9 द0णात् 70४ 06 एएलण्ठ्लर्€्त् काकण इ०गालत19
९186 {0 {द 1 8417664, 088 वक 912 108 896 821, 1 1६ (पात ५ €
6८१९५ €्दलु0 28 लाटा 10 81068 914 ००0 : कण्ठक, © (का &0 ०90 पिपीलः
77 6 [णडल 9४6 ग जाः 118. पारकालपश्8, 90त पप्र फ णि. ल्) तिना गणय
8001668. {116 †»€1856 0व्८पा§ 7 {6 व कातफुक-ऽवा]) 1112, (0080 9208 000-
लात धाला6 दक् कलााठर् छपा कािलपा्नल8. 1 कल॑क्षा) नर ॥€प्न्लि 88 शात 28६1,
०९८56 8] € 56, 18१6 11
९. ६3. 1. 21. (. 84, 1.) {0 30116 ९6068 8 व0४/3 दगाालाकष 1 क्ष, एकक्नपा). `
{. 4, 1, फ]1€€ प्र8 एलाऽ6€ ०८्८प्ाह ए) शा एवा12008, 15 एलः |
१. 184. 1. 24. (९.85, 2.) सोमो नक्षवाणामेषां । न छं तायत इति नता ग्रहचमसाद्यः ॥
4. सोमो नक्षतराणामेषां न घं वायत इति नक्ता ग्रह वने द्युलोके
¢ 11 सोमो न्ताणामेषां नं छ तायत इति नघा ग्रह वने दयुलोप- ` ध |
(8. सोमो नक्षतवाणं न क्ष तायं इति नसत ग्रहवमसादयः \. `
4 4.8. सोमो नदताणामेषां न छ वा्यंह इति नसा ग्रहवमसादयः. `
क 8. सोमो नचतराखामेषां न घत्राणाय त इति नघता ्रहचमसाद्यः.
14 ए^ ए1ए^8 18671078.
\
ऽता०्8. 7) प्र6 सगल #0 ध्€ 3काताका18-50788 18. 16), 7. 7249}.
9 17€ € 0 {€ णएिप्नल्लाि) ^ त1ुषरक2, 10 € 01811111 116 प 418118.11"8-80111885.
1! 38 5810, नल्॒त्ाणि ह तेनस्कामानि । खव ग्रह् इचुच्यते. |
ए. 288. 1. 10. (क. 85, $.) यः पपिवान् मेयुनकामाथै चिकित्साद्ययै ॥ ~^ यः पपिवानं वैधे तु कामारधं.
क 0 रा य: पपिवानं वै ये नुं कामा. (2. यः पपिवान न वोधनकामाधे. 2 4. &९८. था). यः पपिवान् ।
[क त वनकामाथै चिकित्सा्यधे. (1. यः पपिवान् पिवान् वधेनकामाधै न्विकित्सादय्य. 81. यः पिवान् वैन । कामां
4 चिकित्सद. हि
"स ९. 789. 1. 13. (ह. 85, 5.) आप्यायस समिति प्रातःसवने ^. 0 11111, 08. 3 4. अप्यायख समेति 23 1.
0 + 08, € शपा] णताप्ा8 0ण्ा0 {0 6 ्ाप्पायख समेतु ते: £ ^1४. 1. ४1. 53.
(२. श. ?. 91. 1. 5. (द. 86, 8.) येनोपशेे च सोपशः ॥ येना नो वति स ओपशः ^. (111. गयानिः नुवंति
0 अ ओपशः 9. येनोपशवति स ओपशः 84. स मनु षः रूपशः 0. समूषः 81. िणप्राट् कला8८्व
५ एणा 10 706 {116 {सप व्गणल्दपाथभाङ, णत दीपना प (€ 10 # 1. 54, 9.
/ ` ए. 194. 1. 19, (द. 8ः, 26.) चिलि ॥ निविचे ^ (8. निवि । चष्टे ¢ 1111. तिविचे 9 +
८. विनष्टे 8. विनिचष्टे 3 1. |
(9) ए.297.1. 6. (ह. 85, 22.) वृहितंवां ९8. ; १०९७४ 7" ^. © #7111, 3 4. 8 1. 8. 116 [दलप
| 3 71162160 7 ^. 2 4, 1116 ए0प्न 9 (8 18 गल €डललशुधणाश् रला.
?. 297. 1. 19. (ए. 85, 24.) अथास्या योक्त विचूतेत् ॥ अथा योक्त विवृते ^. (+ ध. सयास्या योक्त
¢ शि चिृजे् 2. श्रयास्या योक्तविवृतित् 3 4; 0668४ धा 7 1. (18. { 112१6 (60166664 6 15४ 71
४ 20001.081106 पा 116 कपक्षा2-501195 (01. 288, 17018९16 पताल, ४, ]. 384). (€
कणः ८यलाणा 18 101 7ाना्016त 7 # वाव 81478 (1110-8 01-298. 116 एप प्रथ
¡8 70 8 &11त्]6 कला, 18 अफ कण) फ़ 2 1दत्, एष & होप्वाल फा एणपलौ 516 28
11066 &.#€ाः 8116 188 06671 21160, ९0760, 216 १168860 © 1116 0871180९. "एला
6 षता 18 पाछिडाला०्त् श्भा, प्र इलाकक्ष8 षट 0 1. [48 [ष्पा 0४ वे
18 101 11601016त् 171 06 एल॑लइएपाट वाल्नाश्मिक. |
2. 99. 1. 26. @. 85, 29.) शामुल्यं शामूलमित्यथेः ॥ शामुलखं शामुल्यमिग्ययैः ^. ^“ 1111, (8. शयालुस्यं
शामुल्यमि्य्ैः 2 1. शामुल्यं शामलमियधैः (12. शामुस्यं शमं शरीर० 3 4.
| -2. 299. 1. 26. (र. 85 29.) शञसीरावच्छन्रस्य । 4. शसीरचत्रस्य ~ 11111. शरीरां छिनिस्य (7
शतोयाद्वतस्य (2. शसीरशिननस्य 9 4. | 1
९. 200. 1. १५. डि. 85, 51.) यद्वा ननाद्यमास्यात् ॥ जनात् यत् ध्लाख्यात 4. जनात् यस्यात् ( 110
जना यमाख्यात् 8. जनात् यमाख्यात् 8 4- जनात् यमाख्या 9. 9 7.
ए.2०. 1. 94. (क. 85, 34.) चतुपयोग्यं । 2 7. 4 09. 0 7711, 08. सतुपभोग्यं ^. = `
2. 2०2. 1. 6. (इ. 85, 35.) तूषाधानं 8 7. 4. 02. 08. तूपाधानं © 111. रूपाधानं ^. {1116
त्नानि 15 कोपिठपा४, एण 7 3 वरप लत्व को कषा भर वैडवडवाकाण,
षडा), वात्. वतप ए्त॑क्ाश्ा 88 एवा8 म लिणा्6 07688. ५. 4 ५
?. 9०. 1. 7. &. 85, 35.) यच्विधा वास्मे ^. य ध्स वस्य [11]. यन्विधा वास्य (9. यत्विधा वास्मे > 4.
यस्विधा वै 18. यन्विधा वसे 87. (18 1 00 एण पतलञश्ात्. = ४?
2. 2०3. 1.5. (द. 85, 37.) 88 दपुगक्षणक्षीणा 38 एल् लदव्मतापरथःत, ण €
_ का ऊण्पात् 0९ सकट 7 पाल णत् पण, शृगृश्यल्णत पवत् |
88. 16976 [016 तणा. कवा 1
प्ण [लीं एप, कशुः कील 1 28 #6 तप्, फन शपि
, सिन्नस्य 1; 1.
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च मौ ,४१०१०,१८५९
एए 8 1.ए८क10प्ा8, 15
ध{कवा1{8111800218.111018, 1108६ 07 {116 1188. 18१9९ 786 १९त् 8 त्य, तां ऊरू सा ईर्यस्व
स्वेतः ^. तां जुरू आ ईर्यस् सर्वैः (~ 111. तां रस्यख आ ईरयः सवैतः (12. तां कुर् आ रस्यख सवैतः {2 4.
तां ऊरू अत खव सवतः (98. 1) 81. धा 18 [€ 0 एलौफल्ला) तां 2त ऊरू उशती. 011€
11101 (0 लदप८ सरू, 1116 वामोषूः, 00 ८ > छत एठणात € 100 पप्डपशं वलः
पधक दा)8 10 8९. 1 976 1 06 98886 88 11 18, ९€९कप86€ 1{ 18 प्र 08810916
771 $व8 क) पक्त {0 {वप€ पकप ४8 8 17046ृल0तला+ 10८6
4+# {116 € 0 >. 85. (णा. ऽ, 28.) ५16 गान्णा०& 11118 0८्८पा8 :
अविधवा भवं वधोणि शतं साग्रं तु मुत्ता ।
तेज॑सखी च य॑शस्वी च धमे पतित्र॑ता ॥१॥
जनयद्वहूपुताणि' मा च दुःखं लमेत्छचित् ।
भति ते सोमपा नित्यं भवेधमेपरार्यणः ॥२॥
अष्टपुता भव त्व च सुभगां च पतिव्रता ।
भरते पितुभरतुददयानंदिनी संदा ॥३॥
इदस्य ठु यथंद्राणी प्रीधररस्य यथा श्रिंया।
शंकरस्य यथा गोरं तद्वररपि भरि" ॥४॥
सल॑यैयानुसूया स्याह सि्टस्याणरधती ।
कौशिकस्य यथा सततं तथा तमपि भिरि १५॥
धरुवेधि पोष्या मयि मलं त्वादादरुहस्पतिः ।
मया पत्या प्रजावती सं जीव शदः शतं ॥६॥
16 8८९70{8 816 कण्टा). 700 8. ‰.. 1. प. 132 (गल ०्मस€) ; धल 8.6 [18660 81
11016 व तावा 17 क्लः 2188. 1. [7ताइला€ पताल, #. 194
{. 207. 1. 4. (९. 86, 71६.) संविवादं ^. ¢ 9111, (2. सविवादं 3 4; १6९8 71 8 7. @ :
ट (त्सा 0, 8.४. काल शाक्ववला्भकचै पशात प्रपनंडकथु 106 ऽत
प्रा, ए तीएवु)पिष {16 2100717 | | |
7. 3०7. 1. 13. (र. 86, 177४.) अग्निष्टोमः स्यात्. 016 ©प[066#8 अग्निष्टोमसंस्वः स्यात्. 076 |
+8. ^. २९९8 अग्निष्टोम स्यात्, एल् एश कवठ षन, ल्वा णिः का कतुल्लीकह ण
अग्निष्टोमः. | 0
ए. 86, 1. 48 8 7888206 18 [पाद्वह (366 ^ व्वेवलाकु, 1874, 378 चक्ष.) 1 पप्तुमा = |
` प्र€ ए९०्वाए5 ° प्ल अड् [एलु 298. ; | । | 0१ |
ए. माधवभदटरासतुति वि हि स्तोतारिेषा ्गिंद्राण्या वाक्यामिति म्यते । त्था च नभि दार्ये कल्पितं हवि ^~
माधवभद्ास्तुतति वि हि त स्तोतरियेषा ऋिंदराण्या वाक्यामिति मन्यते! तथा च तद्वचनिद्रापये कल्पितं हविः = `
माधवभदट्रासतु वि हि सोगोरित्िषा ऋणिंद्रास्या वाक्यमिति मन्यते ! तथा च तद चनमिंद्राख्ये कस्पि्तं हवि
4. माधवभटटास्तु वि हि सोतोरियेषा ऋभिंदरास्या वाक्वमिति मन्य॑ते । तथा च तमिंदरार्ये कल्पितं रपि
माधवभट्ारहु वि हि रोपियिषा ऋणि द्राख्या वाक्यमिति मन्यते । तथा च तद्ध चनमिंद्रारयो कल्पितं हविः
16 १८६17743 17671078.
कश्चित् इदं एतस्य वृषा विषये. वतमान सत तें द्रमिंद्राणपं वदति तस्मिन् पल्षे च सा ऋचो यनर्पः॥
कश्छित् इटं पुलस्य वृषा विषये वरमानस्ततेदरिंद्राणीं वदति तस्मिन् परे त्वस्या ूचो यमेः ॥
कथिन्मंदो ऋअदुषत् । ददरषुतस्य वृषाक्पेविषये वैमानसतवेंदूमिद्राणीं वदति हस्मिन्पक्ष त्वस्या ऋचो यमेः ॥
कश्छित् इरदपुतस्य वृषाविषये विमानः तेद ददरमिद्राणी वदति तस्मिन् पशे त्वस्या ऋचो यमर्थः ॥
कश्छिन्मुगो हुदुषत् । ईद्रपुतस्य वृषाकपेविपये वतमानः ततेद्रभिंदराणी वदति त्स्मिन्पले त्वस्या ऋचो यमेः ॥
कण्ठिन् मणो इ ग्ूषत् इद्रपुत्रस्य वृषाकापः विषये वतैमानसलेद्रमंदराणौ वदति तस्मिन् पक्षे त्वस्या चछचो यमैः ॥
ए. 208. 1. 12. (इ. 86, 2.) अथिश्चल्ितः ॥ व्यथिः चलितः ^. (0 (111. व्ययिश्चल्ितः 34. खल्ितः (8.
चतः (9. चलनः 3 7
ए. 90. 1. 24. (द. 86, 8.) ^+ लाः रकः किंशब्दः 80111611110 18 1€फ छप, ववश्ापत8)), 01
व््भ्करं शावती वा181111210.
ए. 914. ]. 15. (क. 86, 4.) व¶6 195 [911 अव त्वयियस्सुरिद् इंद्राणी वदति 18 1 छप 17
थ्] ४88. रव्लु 62. 1 19९6 7056160 1 शकष 7 18 वहुशा8{ {16 ^+ प्ा्श्ााक््))
गृ) कापा), 0कलल" 125 एवल इ6ण्लादक प्€8 0151608060 10 18 प
87 {7©€ 18 7० गाल" थक 9 ला०पतण 106 एकीन, धात् लशा {{1€
2110018. 0 {16 †्0 एलाऽ९8,
२. 214. 1, 24. (द. 86, 18.) उद्धानं ॥ उदनं ^+. उद्धनं ¢ 11111. उड्तं (8. 8 7. उहहनं (४.
गुनं 8 4. सुना 1 शपुणाशा९त ए श्प वा. 68 0 व्नणरली€णत 7१6 095घ} 24118311 87185
1116 ]त(काला ल्वा), {16 हन7त50ा6, {6 #0माप, -प्र6€ एन्6€ श्त छद, {16 फलः
0६. वष€ वपच्छ्णा 15, फल ग 686 18 गलका पलाल ए 82102. {6 1188. &16
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10581181, ;8 71110101 इल्ला) {0 € {116 एतत् 17{€46त्, गण ए 10 {6 86156
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1 कश्या 3101716. नत 0" 161, 10] ८०68 76 क्ाला' 10 {106 2788. ए12, पततााक्ाव
01" ०१7४708. (^. {0818 [. 9, 29). श] प्ल्क्ाल ०४10 26 ००४४8, 17 1४ €0पावि
6 [0१6१ क 3 पणात्, 100, परऽ प३6त 10 9 व्य् उलाील्य् इथा§6. = -एण्ला)
11881970 एत € 0881016, णिः प्र78, 100, 15 ०06 ग ध 0ए९ प्र &8.
९. ५5.1.18. (ए, 86, 20.) मृगोद्वास ॥ मृगो वाः स 4. 2. © प. मृगोवास० 8 4. (7. मृगोवा 31.
९. 914. 1.1. (ग. 86, 25.) 4४ {6 एष्छ्ाणपद् ग प78 एल86 106 19४६, ३00 ; हे इद्र विसूज्य-
भातमनेन भंत्ेण वृषाकपिराशञास्ते । ^. ( 111, 34. 68. 87. डे इद्र विसृज्यमानं अनंतरमंतेण वृषाकपिण-
सत {1 ५ |
2.4. 1. 1. (इ. 86 45.) भल 18 लपुभ९त् 98 8, एणदद्तिए6; शर लति ^. ८ 20111. शर
भठति ० 2. शततम भलतिर्भेर 84. शर ठ भमिति भे (8. 837. 0 8418018 15 116 1187726
ण 8 710 1 176 एिवावैतद09, 06868 060 17€ फश्चा6 9 8 इणां च्िपाठपः
80711181, कात 1118 10111 कललः {0 € कणा प्ालाप्गा6त् 10 ४6 7666070 एल'86
एप 092 0०७8 70 [लात ॥8ध 10 पण ॥पलुणल कौमा, 'ए}066298 फ़ {शृतं 002
21 ॥€1९€ 1{ 70) 01213
णिः 00912, 8912, 7116711 स्ुगुक्ष) 16 0 इदा वात0कः
(4 ॐप इ. वपक्् भु. एव्मलाा्]0242, 11151686 0? {€ {10169208 बुष्य. ध ुभ्यत । ॥ ॥ |
४१५ 17/48 1.26110प्ा83 17
^. 218. |. 2. (2.8, 3 ) मारकव्यापारान् ॥ मार्क (ह्) व्यवाह न् यक्षसान् 234. मारक यवाह न् यक्षान् 4.
मारकचवाहन् राहसान् ^ 1111 ; १८८७४ 10 €9. 7 1, €? मारव्यवहासन् ¢
7. 222. 1.9. (र. 87, 15.) मधर ^. 22 मधुरं + 4. 3. मधर ¢ [शा]. रमधर 8 |
7. 228. 1.9. (२. 88, 3.) सलोषामि ^. 0 [1], ८8; १९०८७ 70 (8. 2 4. 210 ए 1 ५:11
णाल ट् 15 1 छप ए पालो सवकद्8 कण्यात् काकष्ठ प ५९५ {16 {€गछल्म् शिला)
रकल] फव्टुः 10 आका, १6 णता) 188] 9) 10068१6 ° {6 कगाऽ, 85
1107 पराप्ताछफ्ा {0 [रा |
1. 230. 1. 4. (९. 88, 7.) आभिदुख्येन नुहूतुः ॥ आभिनुस्पेनानुहदुः ¢ 11111, 68. ए 4 आभिमुख्येन
मनुहवुः ^+. साभिमुसख्मेन नुः (17. सभिसुख्येनानुहः {3 1
[". 234. 1. 2. (>. 88, 16.) उत मन्येऽह्मेनमनयोि ॥ उत मधये ह् मेनमनयोषहि ^. उत्त मत्ये इमेनमसयो$
८ 1111. उत मन्ये द्मे मम तयो 9. उच्च मयि हमेनमनयोहिं 9 4. उन्तमे हन्यमे नस मापोभे ©.
{ दवाा0६ पत् तर6 व58406; 1 पलौतल्, च्ला€ अआा-€ 170 81180168 2167180 |
2. 234. 1. 14. (र. 88, 14.) 4 शला वेचि 016 62 [088 इति 9 =
1. 1. 7. (+. 8५, 4.) (1€ +{68.178€र संतरि्षं च 2.61" सगरस्य, 210 21] 18९ प्रेप्यानि (51
ध 1.12. (>. 89, 1.4.) यद्यदा दया- यद्यदा च शक्तया ॥ यद्या 18८पा18 च शक्तया ^. यद्यदा. च
एकवा ^ +1111, (7. यद्यदा व शक्तया 4. यदाच श्सनस्वाने 831. (2. ० 1128 {€ 0288826
६11५ 16245, यद्यया हेया चमद्यस्य द्धितीयार्ये ष्म । अभूतमपद्युडायनागच्छद्ल्लो भिनहो भिनदः यद्यदा च शक्तया.
¢. 243. 1. 4. (+. 9०, 2.) 45 11;8 18 9 क) यल, 1185 एला पट} 16दत्, 070
६9 115 (एतना 0 ह्राद, प0सन68, 176 ४88. ०76 शि] तग ९0116108 2
11181017] 1106 वक य118 8 (लि, 10 6लाः, 18 01 &६{& $ त्राला).
1. 245. 1. 17. (>. ५०, 5.) माययेति ४ ययेति 81. 07. यये चेति ^. पयेवति (¢ 111. तथो वशयति
(५. य रख्वं वैति {3 .4. 8९८. उक्षा] |
1. 252. 1. 3. (६. 97, 4) 1106 ]द्लपा2 & {© चत ग एल.88 4 2116 {116 ९1111110 9
लात ठ पल्लवाः त पा प्€ 38. क८ 0 एला86 0व्टणाह 10 106 88718-5९08 11
2, 7, 1, प € लगा प्रलाप $ 11616 ईणिधऽ 1116 061] 1081048 7€8{01170 {€
(011 तेव [८व्रदाटु ण तिवकवा)प (2
1. 254. 1. 21. (९, 91, 11.) कालाय शपुणन्नाद्षप्रण 0 हविष्कृति 18 दष्टा) 7 02. उत वा पि ४
या हावः कु्िभप्मिन् तयज्नमनुगीष्ठतीति शेपुः (8. उतत वा खधि वा हविष्कृति हविषां कृत्तकर्णं यस्मिन् स हविष्कृत्
त्सिन्यज्ञ हवौपि ददतीति संस्कृति्ैस्मिन् तद्य्ञमनुतिष्टतीति शेषः ^. ¢ ५711, ए 4 (कृतं करणं). (8. 8 7. (कृतं _
करं ६0 ददातीति स हविप्कृत् यस्मिन् तद्यज्ञमनुिष्टतीति शेयः) ५
अनुप्रविष्टो भवेति (8. 23: 9
। ए. 261. 1. 12. (क. 9२ 71.) उवा (६5 708 ल्लः 95 8 अदपान- गः तथा 1690
(>. 1" 21. (>. 91" 13) अत्वे भवेति + 0 11711. अतुप्रवे्ा भवति 089. सतुप्वेो भवेति 84. = :
९४ 0 € {740816१ ; ॐत [€ छव्ल्इ [86 7 {थत सधा) 90 प्क7450ा1821) =
` क 8. 100879९. = (ध. 1125 चहुभिदक्तो गिनस्तम्मिरराश्ंसो
01. 1. 22. (९. 92, 12.) बोधतं, 14 €8. १९], 18 लपु ०6त् ए वध्येत & [00881716 1
। प्ट कए एल्ल) पदत्ला 9 (6 प [लऽ वप् णलः. 4
201" #}©16 1 थ ८
५ 18 ए^ 71148 18610 प्ा8.
० आल्व्छ्छशा, € 88. श्प ट ए€ बुध्येत; 1161, प्प) 1 701810४ ४6 {1811060 {6 र
( वध्येत, ९8111101 {€ ९9160 10 बुष्येयां. +
9 | ` ए. 262. 1. 9. (द. 92 13.) 1116 8817116 18018. 0८" 170 81] 16 1189. | { 18९ 0
(| 1 ४ #11211080 कामयमान 110 नं 11110 कलपु ९णप ९८ लाल7त2107, 0प्ठ 11
त शणप्रात 06 688 10 १० 80 ; अन्नममि प्रप । अस्मभ्यमन्नं कामयसमानमिति शेषः । खचेंत । स्तुते \. |
१ ए. ०64. 1. 18. (क, 9, 24.) पुरप्रृतत्वेना° ॥ याुरपतंतत्वेना° ~. पद्युरपतंतत्वेना° (~ 21111. पदयुर-
6 | यतचिना० ए 4. 88९. 11221, पदुर्पवयं॑तं तत्वेन्य 4. पदयुरयतत्वेना 8 1. पदुर्पय॑तंत # (६.
(& ` ए. 264. 1.10. (द. 93, 1711.) ^5 अक्ष छवा धगर प्र€ प्का6 ग 6 शपपाण
५ 10 © नाम्ब; पाः 1 1188 6०1 16 80. व्र€ तलण१९8 पापैः तणा) पृथुः, वात् दण्ट) त {1
५1 | 19 पल.ऽ© गाला तास्वः पाथ्यैः 00८६, 16 {धुए९8 पाथ्यैः 88 2 86021816 07. 111€
| ॥11प्ात-210 94, 10 फ९एला, 16808 पाथ्यैः, 810 1116 (01716018 10187718 पृथोर्पयार्ये स्यत्.
ए. 266. 1. 9. (ई. 9३, 7.) वायु ^. ¢ 01111, (2. 9 4. ए. क. सूर्यश्च 984. 86९. 71811. 81. (9
ए. 266. 1. 71. (र. ०५; 8.) प्रति शीध्रं ॥ -^11 138, 01117 यज्ञं 0016 प्रति ; 3 4. 86९. 107).
नि ९080885 116 पापं पथलुक्ाए९ प्रति 170 अति.
| . 266. 1. 23. (द. 95; 9.) चक्रं रथस्म चत्र र्म न ) चक्रादि । तद्रदित्वथैः॥ चक्रं र्यस्य चक्रं रशमि
| चक्रादिकं तद्दिचयैः। ^. ¢ 11111. चक्र रयस्य चन्रं रश्मि न यथा रश्मिः चक्रादिकं तट्दित्ययैः (8. चक्रं रथस्य
4 चन्र रषिम चक्रादिकं तद्टदितय्ैः 8 4. [1. 7087). न रश्मि व 17186116. 8.िल€ाः रङ्मिं 86. 7181. चक्रं रथस्य
५ चक्र रषिं न रङ्मिमिव चक्रादिक तद्रदि्यैः (8. (चक्रोदिः 87.
् ए. 267. 1. 25. (ट. 9, 12.) विस्तृताचमीन्वधेयंति तद्वदि्यथैः ॥ विस्तुतान् रश्मीन् वद्यं तद्दित्ययैः ^.
{ ५ विस्तुतान् रर्मीन वद्धेयंत तइदित्यथेः 0 10111. विस्ुताद्रइमीन् वद्यं तद्धदित्यथैः (8. विस्तृतान् रषमीन् वधयत
। तद्वदित्यधैः 2 4. ` विस्तुतान् रइमीन् वधैयित तद्ददि्यथेः ए 1. &8. {1716 {€ 18 (गाप).
| ॑ ए. 269. 1. 2. (र. 93, 15.) युवनाश्चनामकस्य ॥ बुश्चनामस्य ^. यु नामस्य (~ 21111. यु नामस्य (8.
(१ | युश्चनामस्य 3 4 ८. 10181. युवना्छनामकस्य ए 4. 860. एवा), युवनाश्चनामकस्य (9. व्युवनाश्चनाम कस्य
284. (€ {छप 18 (दगापए.
ए. 1.1. 6. (इ. 94; 5.) सोमं धगिथ सत् 810 न्यक् पप्र 06 ‡दला 25 व) 11106€ु€ातला0
0 | क
. 275. 1. 18. (क. 95, अप+.) ऋषिका ^. © #11, (8. 8 4" 7. 9. (8; 4८65६ त ए.
सच्रृषिः 54. 886. पाका, ` | व
९. 5.1. ०4. (द. 95, 71.) पुत्र 2. ए 4. 86९. पाका. 8. पुत्ोऽख 4. 0 711, 8 4. एः
ए. 06. 1. ए. (क. 96, 4074.) तत्यादन्यत ॥, तिल्याद्यच्च 4. तल्यादन्यग्नं ¢ }¶111. तदान्यत च (ध.
10
। कराल 88886 7. प्र6 ुतीष्वतस क, नाजण्डा) रल द्ग, प्श 06 1850760
` (णपुष्छपाशा, 88 णात; = ` 1 | ८61 |
५
| परस्वसि रजधीवय्ठतसृषैशौ पुण । न्यवत्सतसंिदं कृत्वा तस्मन्धमे चचार च ॥२०॥ `
कया तस्य च संवासमसूयन्पाकशासनः । पेतामहं चातुरागमिद्रवच्चापित्स्यहु रा
5 ॐ यनात एप पठि 4० यय ककल 0 एण, प वथो |
शः
>
१. 1716 1281110 प्न. 19
स तयोस्तु वियोगा पाश्रैस्यं वज्मव्रवीत् । प्रीतिं भिंद्धि तयो्ैजर मम चेदिच्छसि प्रियं ॥२२॥
तयेदयक्ता तयोः प्रीतिं वज्रोऽभिनःलमायया । तत्तस्या विहीनस्तु चचायोन्मत्वनृपः ॥२३॥
चरन्सरसि सोऽपश्यदातिरूपाभिवोवैशीं । सखीनभिरातिरूपाभिः पंचभिः पातो वृतां ॥२४॥
पुन रद्धयतः प्रीया दुःखात्सा चन्रवीन्रुपं । सप्राप्याहं त्वयाघेह् खगे प्राप्स्यसि मां पुनः ॥२५॥
सनाद्टानं प्रति चाख्यातमितरेतस्योरिद्ं । संवादं मन्यते यास्त इतिहासं तु शो नकः ॥२६॥
£. 206. 1. 16. (९. 95, 101४.) उत्याय जित्वा तौ मा गन्धेयेवं जल्यकोऽन्यतः ॥
उत्याय भिस्वा ता वा गद्ये जल्यको न्यतः ^.
उद्धाय जित्वा त्ता वा गद्धे्ेव जस्यको न्यतः ^ 1111.
उय जित्वा त वो गद्ेव्येवं जञत्यको नुपा (8.
उयाय जित्वा तावा गद्धेयेवं जत्पवतीत्ययं 8 4. 860. 11181.
उथावा जित्वा गदेयेवं जको न्यतः. 2 1.
उत्याय जित्वा वा गद्ेव्येवं जकेो न्यतः (~ ‰.
उत्याय जिचा वा गद्धेयेवं जस्यति कोऽन्यतः 911840 पा-ए51811$8.
{16 द०नललन 18 ट, 7 एकपात् प्लक्ष), «16, {06 [्10, 91& 56 त 1991112
(वपत 6 {70 कका, 8000४ तिमा 116 गाला 846 ग {16 7000, 170 1101 @0106
1८! (88 800, €{6
2. 276. 4. 23. (-&. 95 1776.) साश्रं सापश्यदु° ^, साश्चां सापश्यट्° 0 11177, स सा पर्य (4. साशा
सापश्यदु° 8 4. साश्ः सा पशु 3. 2 7
76. 4. 24. (५. 95> 77111.) रषोऽप्यसू् चयत् 9९11. इतिहासः
76. 1. 26. (र. 95, 111.) [1 1106 छप्रकलः तिम 6 इ॑गु्8-0ाक्ष्राादा)9, ए ५१
1068807 \+ €7€§ 6410) 185 योग 18168 0 ज्योग्.
. 279. 1. 21. (९. ५5, 5.) पस्मयेवं मंतव्यं किमिति कातरो ॥ परम्युप सव्ये किमिति कासे ^. ¢ 11.
परमप्येवं मंतव्यं किमिति कातरो (8. (18. पसमप्यापरः किमिति कामुक तरो ए 4. 86९. 77187). परमप्मरं किमिति
|
| +२ ॐ ‰ ५.
?. 280, 1. 8. (५. 95, 6.) साच्रयाचं (४. साशिरार्थं ^. (^ 111}, 8 4. 283. 81
ए. 281. 1. 14. (3. 95, 9.) 168 मर्तो.
2. 281. 1. 18. (९. 95, 9.) जिद्धाभिसत्सीयाः सृक्ता भखयंतः ॥ जिद्धाभियत्मीयाभिः सृुक्ता भखयंतः ^. निद्धा-
भिसत्मीयाः सूक्ता भषयंतः ¢ 1111, 8 4. (सृक्वाः 8 4. 8९९. 00811. 8 1.) निद्धाभिसत्सीयस्य भ्वतः 2. 8.
[ (शार &प८६8 {16 01008 16ववा7 द
९. 284. 1. 7. (+. 95; 14.) 6६0 आखास्स्या ५ | 1 ^ 1
९. 286. 1. 1. (ॐ. 95, 28.) ^ 1} 176 ४88. 6840. यजासि ; 11 8 4. ग1]ए 1 18 81{€1.6त 86८ र 1
11287. {0 यजाति | 1
2. 288. 1. 1. (इ. 96, 4.) इयतः स्यृदणीयः 8. हयैः स्यृहीणायः +^. ¢ 01111. हसतः स्पृरणीयः 84. ` |
दशेत: टशौनीयः (18. ; 0668 7 8 1 | |
ए. 288. 1. 2. (द. 96, 4.) अश्वरनीसे वा 8. {८18 वाीलपा ४0 इक पादाः §वैकुका)8 (016.
` । ए. 68 अण आङो वा, एण 9] 6 गलः ४88. 80 पाः क्ला6 एड | ध
4 णदटाप्रशोक शाजल तलतर्प्0ण हार्ला, 4 76405 असाध्वाहकतयो वा. | ( 11111 1116066 {6 `
५ होर€ धल ९, एफ {6 कपण 15 तारत्पल, ६, व्ण्पात् परमै तऋक्त6 गा 76 प्ल 1 ८
५ ध. प, .7९1ए74 8. 18८7110 प्न18.
४ 210 1185 16 ल्गनप ए68ताो ट, असाधा वतैते दा. ए 4 51168 0प॥ पकी{6षटाः [1666460
| इये 1 [पऽ 77 चा, [16 871, 1 06 हाएला 16 6द्ता7ट ० &-8. 28 1116 11108
00८ 91 ्लार्0ि€ 106 ० [लषन 10 0६56 718पातला8{8716172, एप { शम)
101 दलन) लालः ०त7रक्षाशनून 18 वु पा{6 (तल्ला, शात् ालत्रलः 238.011रस्वा श्च
५.४५ 71187 7107 1896 660. 81188 कपु.
4 6 ए. 290. 1. 8. (द. 96, 9.) पुरतः प्रचस्य सोमस्य प्रीत्या चलतः ॥ पुरतः प्रस्य सोमस्य प्रियवलजः 2 4. ^.
5 27. पुरतः प्रस्य सोमस्य प्रिया वलतः ¢ 14111; 06९७१ 7 4. पप्तः प्रकृष्य सोमस्य प्रिया चलतः (8
| ए. 290. 1. 19. (र. 96, 70.) हे इद त्वा. 17686 फएणःत§ ध्न {0 [8४6 ९९1. २५५९ {लि
५ "108, शा) 1€{6€166 10 दधिष
१ ए. 294. 1. 27. (द. 9, 5.) भोजयित्य 4. भाजयिच्य 02. ¢ 71, 8 4. 8 7. 7. कथ). तिव्नत
५. ५ +. 79, सेवध्वं
1 ४ | ?. 294. 1. 29. (इ. 97, 5.) विकर्ता ॥ 3110] 1४ 6 दछिविकर्णतत {
| ए. $>. 1. 2०. (श. 98, 11.) कुरुङ्कलजातमपि ॥ श्रूताङकजालमपि 4. ८ 21111, ८ 8. भूताकरुठजात्तमपि
५ (६. भूताकुलानालसपि 24. भूताकुलजास्मयि 37. उलकुलजातमपि
र ,: ?. 3०6. 1. ०0. (श. 99 2.) मायाञुरी ॥ = 8वैका8, 705, 2४९ 1680. माया 17081९त ० सायाः,
1" {70प्] 8006 2188. 168व् चासुसैः, एकल) 18 म [006 ए६९, पलक 18९6 संभवति -
ए. 3. 1. 3. (९. 99, 3.) संग्रामे १९९8४.
1: ए. 314. 1. 15. (ऋ. 100 4.) रूपस्य प्राि माकिः मा भूत इतः परं मानुषं रूपं मा भूदि; ^.
4 ख्यस्य प्राभि मां किः मा भूत इतः पर मा उपं ₹ यं सा श्रदिव्यपेः ^ 0111].
0 | रूपस्य प्राधिमैकिः मा भूत इतः पर मानुघं रूप भा भूदिह्यथैः 3 7.
पस्य प्राभि कमो कनै श्रूह् इतः परं मातुषं खूं मा भूदिव्य्थैः 9.
रूपस्य प्राभिमकिः मा शत् इतः परं खातुषं रूपं मा भूदिवयैः 3 4.
पस्य प्राभि मा किमी भूत् इतः परं मानुषं रूपं ना भूदियकैः (& | र
{ 18४९6 7681016 116 {€ 26९01100 0 {16 88. एए 16 ए९ध््ाा1 8668 {0 € |
९०01 111 ध] ग पला.
?. 32०. 1. 22. (र, 701, 70.) दलयध्वं. (1118 एठपात् ल्ल, &९९०त79् 10 6 41९1074116
10 06 {116 र्लए़ गुणुण्श6 ग सीव्वश्नं, एप 06 288. 21४6 ० एष्माछपह 1८ वता
?. 522. 1. 5, (क. 101, 11.) शवकवा)9, ऽत्नाा5 ६0 1896 168त् वह्वी. 8. भा 1188 प्र वद्धि.
प्रा, 0 "06 168 91668 गा), {16 0{06€' 188
९. 322. 11. 12 8116 18. (>. 701, 11.) शब्टमानो 1188.
2. 322. 1.13. (९ .101, 71.) ह्विजानिद्धिनायः । तयोरतश्चरति ॥ दिजातिः विजानन दिषामतश्चरति ^. (भा
दिनानि विजानन् तेषाम॑त््चरणि 87. द्विजानि हडिज्ान म रषपामत्श्चरति (18. द्विजातिः डिजाये तेषामंतश्चरितं (व. ==
हिजानिः विजानन् नेषामतश्चरति 34. = 4
ए. 322. 1.16. (द. गया, पव.) तात्यां ॥ त 1 संघा ^. तसंला८ पा. तस्यं (8. तस्यां?
गा सचां (वः त्सवा 0.4. ~ १
?. 323. 1. 2. (ङ. 707, 10.) उहधातन 28 701 थलु]8176त क 88808 8 |
८ 2. 323. 1. 5. (-. 701, 12.). ग्रीरदितिः ^. ^ 0011], 69. 84.68. य्रीदितिः 37. ्यदितिः१ ५1 |
` गोष्व॑तः गोरूपस्यंत० (7
4 १, मोरूपस्थांत? 8 7
१4.171 5 1.761710 8. 21
५ {716 €. ग [कणा 103 (भा. 5, 25, पकषापर्कक्ष16) प्€ गाण९ 1118. 0८८प्8
श्वसो या सेनां मरुतः परषामभ्येतिं न सोज॑सा स्मपैमाना ॥
तां गूहत तमसापं॑नरतेन यथामीपामन्यो अन्यं न जानात् ॥१॥ |
सथा खमितां भवता शीषाणा सर्ह॑य इव ।
तेषां वो खण्निदग्धानामग्निमूढ्ड्टानामिं द्रौ इंतु वरवरं ५२५
(1. ^ (1४४ 8-१€08. (आ. >, 6.
2. 339. 1. 21. (ई. 7०4 9.) इ्यायां चक्थै करोषि ॥ हायायमे ह वेमेव करोपि ^. दत्यायमे हवमेव करोषि
( #111. हत्यायां मे हवं चक्धै करोषि (2. हव्याय ~ ~ चकं करोषि {3 4. दयाय चकं करोषि 2.1. हताय
मे हे वम चक्रै करोषि (|
?. 341. 1. 71. (क. 105, 1.) वाततेनाप्यते ^. तेनाप्यते अप्यत (1 11111. वातेनाप्यायते (19. तेनाप्यते ‰ 4.
वात 031 | |
0. 345. 1. 14. (र. 1९5 ग7.) कामित्तिवानित्येः ^. (11111, 8. 2 4. 1. 11810. कानित्वानि््ः (9.
का्ित्तवानित्यथैः > 4. 860. 11281
£. 349. 1. 28. (>. 166, 5.) 716 तवलरक्षमजा म अचिंव 718 6 76660 ४0 1081-0 1188
1४. 95 त 96. €रश््पु ला{0)8 निंबलिंवक्चिंबहिंबडिवस्तंवसं वादय इति शिनोतिरवैप्रययो मु मेति
निपात्यते 1; 8110 116 8008 अततेधेन् । दुःखानि तनूकुवैनप्राप्पते, 1 1180 {0 ८112716 देतुनातं 11110 हेदुनाति्ं,
{व111 साति 88 & ९858 (एभप्रल]016. =
९. 349. 1. 19. (९. 106, 5.) लादेशः ^. ^ 1111. आजादः (19. 98 4. 86८. 71211. (8 ; १६९७४
771 8 7. ॐवकव28 गिल्तृप्लापकक ८७68 1118 आजि शः, 21110९11 16 ०प्वा्थाफ़ €द्भाक्ण)
0 2010. + 11. 1, 39, 2४९8 790 वपप्रिलत क 0 10 | . |
£. 349. 1. 26. (५. 106, 5.) 0९6श्षद्ष2 वुप०॑€5, & (गाणा 00) 11841188, 8 8616006
ए 117९) 18 70 त छपा दणफाला{थि फ, अकपटा) 11 ९168868 16 आालद्षा70६ 0 88108.
\लिः सपृ्क्माताहि क्जिंवात्ताः श॒ततरा, 2710 शातपंता 28 मुखनामानि, 116 82.78 सुखवाचिनः सर्वे सुखकारयि
(1.९ सुखकर $पि) स्युरिति माधवः । कालतयेऽप्यश्चिनोः सुखस्य विवक्षितत्वेन विशोषभेदादपुनरक्िः !. € {ल
तपणं€8 {वाद्या : भहटृभास्करमिश्चस्तु शिंवाता सुखनमितत् । सुखो ! शता । शंततयो सुखततगे । `
शातपंता ॥ शंतमो । उभयवापि वरीविकारदेः (रादि) पृषोदरादित्वात् 1. 11151684. 0 सुखस्य विवधितत्वेन ((,8.),
९१९) (~ 711 185 सुखकरत्वस्म, 93 4. 860. 1811. सुखकरत्वमस्मद्विवधितत्वेनः ¢. सुखकरण्बमस्म विवक्षितत्वे,
81. खश्चिनोः सुखकरत्वमस्मद्विवधितत्वेन, (18. अश्चिनोः मुखकरन्वस्म विवलितं त्वे ! .
7. 353. 1.6. (ई. 106, 9.) 116 16847 ग 116 0841-8. 1४. 290. 15 इपु016
फ श ८ 288. कका€ ग्ट्द्ताह आरा ^ प्ील्लो8 कताम), इखस्तुद् च, 0051 06 शाण = |
` गृल6 15 7० इलो शणत् 85 वु8, प्रत16 श088 18 9 (गाणा एल्वाल पणत्, भरात् = |
` गष {० #€ व्छाभंपस्व् 79 € ततऽ, = वा© सौ 18 षप हरल आ एष्लातोषण्ा |
हवा्तिण, कलाः 7 एन्दद्ोणष्ठोतऽ कलमा फट पित् शूिचड, कत् प्ा6 इवाा6 फण् 18 =
१€]€8{6त ग 068, 106 (९8 €व1{0प म 16 एता-अपि 0.25 7160685 इहखस्तुद् च ४ ४
णा व 2 प्र गणण8 {6 फणात 0 078 0१68 7€णाश्षष (0
?. 354. 1. 7. (2. 106, 11.) गोष्व॑तरमोरूधस्यव० ॥ गोषटतः गोरूपस्यव० 4. गोषः गोरूपं स्यव० ¢ 04111.
गोष्टतरथं धनं वोचत्तः खव (3. गोष्व॑ः गोरूपस्यांत° 8 4. 86९. 87.
ण. 1 4.
22 ^ {1717148 17110815.
१. 354. 1. 22. (क. 106, 21.) दिद्यात्तं 1116808 170 & 81101 ©0110888, 8] 11816
वी पु्षाव18118, 880085{01127181197170्}07, 8.
ए. 356. 1. 4. (ड. 107; 3.) रुतेभ्यो न भवेति ॥ रखते न तवति 4. रते न भवंति (८ 111, 2. 84
81. 8
ए. 264. 1. 5. (र, 198, 3.) व दण्णा्ाल्श्यक 18 एल वपफूलाःट्तिः क 81 | 1116 189
वहूनां 13 1. 1116 रकस्याः, प्क्ष) 765 0 गवां गोपतिः,
१. 365. 1. 16. (द. 108, 10.) ए8€णि"€ सा {16 188. 840 अन्यान्, 10088101 11168111 07 परन्
ए. 566. 1. 26, (६. 100, 2.) (178 क€लि'8 10 16 एव्व सप्त 139.
ए. 568. 1. 20. (इ. 109, 4.) 17151684 ई पतिव्ली + 1. ©, € 18४९ सुकृतवती 71 ^. (8.
2.4. € 11 | | |
1. 369. 1. 5. (र. 109, 5.) बहस्तिनामलत्टभतेति ॥ एवं खं पतिः मालमल्भतेति ^. ख्वं सं पतिः मामलभतेति
(1 1711, 2.4. रवं खपतिं वुहस्यतिनामल्भतेति (18. खवं खपतिं मामठेति 8 7. ८.9
` ए. 369. 1. 77. (क. 109, <.) नुदो च पऽ 6 2 पाथ. 10 7471. 111. ०, 178 \१+€ 7714
18 नलालाा8 7 176 शि. द्युतिगमिजुहोतीनां डे च 8110 1 नुहोतेदी्- 9९6 2150 [वता
9 [{[. 6. ष |
९. 576. 1. 4. (ह. 77, 1.) € [णलः 18 ९९1€तव € पि ना6 अष्टादष्ट 1) ^. (~ 111, ~
2.4, चअष्टादष्ट 7) 27, दिष्ट 10 (2. 1716 -86९01त् प्रौ€, अष्ट् 71. ^ . € 17111, (3. 5 4. (४. 83 7:
ए 116 ग्वा णि 15 अष्टादेष्र, + पीलवः श्राति प्6 एललइपाह -दप्रनावा क 21१6 {11
(1016 070, अखष्टाटद्र
` 2. 374. 1.15. (>; 113, 3.) 1106 त ० {11€ ल्गाालाका-ए़ 18 16 छप 7) अ} 116 188.
९. 387. 1. 7. (ड. 114, 3.) भवति ^. 0 111, 0४. 5 1. 8. 84
ए. 393. 1. 3. (द. 714; 4.) ९9. 16808 यद्वा समदनं सवैतो गतो गमनं तच्रीठ्ं प्रपचजात्माविष्टवान् सृष्टा
ङ,
देवानु प्राविशदिनि भुतः । वायुपघ्षे बाद्यादिरूपेण वेवेश सः इदं विश्वं. 1115 100]र5 1106 1716 [था त
€ ग्ट वमल वा) 8 पाका 7016, [लप 1 28 1 (प 10 १11 116
छत्राः 88. यद्वा समदनं पायुरूपेण विवेश ^. यद्वा समंदनं वायुरूपेण विवेश ( 1111, 3 4. यद्वा समुद्धनं
वायुरूपेण विवेश (8. यद्वा समुद्रं न वायुरूपेण विवेश 3 1. (1181 15 11€1त€त 1) (8. 18 €% वला
9 018प्ल्णा एलका 106 एकचक्र, अत {16 ल6 एतरकण, पल्वलाः त18८प58६त्
एफ प्र6 एल्तक्षाक ए1108णु7ाल8 ; < ४९५. 82 [1 3, 1. 864. शकाः प [पाृ68€
समुद्रं 28 €[18160 28 समुद्ूवे सवैतो गमनं । तच्छीलं प्रपंचजात्तमाविष्टवान् ।. बाद्यादि 11312111 ऽध्ल
एल" 1180. वायुरूपेण 01" वायुादिरूपेण, 1€९8186 {16 एका2111811108, 18 116एला' 14118, {16
एक णवत एष्छााणा1 शाप 21888, 16] 1561 18 81] पाप: अर ४8६.0159758-
11 भुश्री 118 €{८. ` 866 ४९१. 80118 [. 5, ¢ : रतेन मातरिश्चा व्याख्यातः । रतेनाकाशोत्पल्चिप्रतिपादनेन
वायोरत्त्िरपि प्रतिपादिता भवरीव््ैः । आकाशाद्वायुरिति धुतः ।. ए0्† 10 8 ९४86 € 80पात्
९6९४ बाद्य, ॐत 710 बाद्यादि. = ` = ` 4 |
7. 394. 1. 1. (९. 114, 6.) (06 प्रपाः 0 @7व7148 ण्ट ए 9218 18 53, 1101 56
0 लाः (वाऽ पव 06 इला 7 ए. इभा, एना भत पा |
।
न
पए एए 8 1, 70त10 18. * : 28
समासातिस्य डः न याभिष्टत्वाद° (~ (11. समासात ~ नि ड स्त्रियाभिष्टचाद्०° (४. समार्सातस्याङः स््रियामिषटत्वाद
8 4. 36९. 087. समासरातस्यङ त यामिष्टवाद्° (13. समासांतस्य ङ न यामिष्टत्वाद० ए 1 |
?. 397. 1. 15. (ऋ. 715, 2.) हेतो ^. ¢ #111, ८2. ए 4. 281. 08. £ ए. 1. 2 126. `
2. 4००. 1. 13. (क. प, 7.) 38 वल्कः प्री 98118, 1684. वसु वे, 88 76 (0पात 0
0116४186 8१6 ¶प०॑€तव 29. णा. 3, 106. वए€ 298 188. 1684 वसुः स्तवे, 01 #16
9017119. 21889. वमु श्वे, ट्, [0फ लल, पाशु ग्लुणछडलप 0 वसुः स्तवे 8110 चसु सवे ।.
110प्ौ) 1 [क्क शश्ऽ हाए्ला 6 एडका, छण्ला फल-€ ४06 1488. 001४ 1 ए€णि'6
स्त €{८., $€ 711 {78 1988826 [ ल] ०7126 10 ाभीप€ ॐ चहलन. & 2900. भा.
9.30. 2. |
2. 4००. 1. ¢. (९. 715; 7.) € फणत्३ सित द्योतमाना {0 जनान् 76 @1रला) $ @8. णार.
£. 4०1. 1. 19. (. 176, 1.) शिपश्वृहटिपततक्षक8, 21768 पभय, € इना ग उप्र
(0160१००6 § 18. ° {16 + ाप्ा्र्ााशा)ौ 21965 © ्ाश्ाए8, ; §वकवा18, 91118 17)
( #111}., 2. 21.84; एप इध्याः 1) £
2. 4९5. 1. 10. (-&. 116; 7.) ^ €: सुतः {16 138. 84 द पि वेच्च्वादुदाचचत्वं ^. दुपि वेदयावाद्युदात्ततव
¢ 01111. सुवेत्याचयुदाच्चव्वं (६. हुः पिवे्याचयुदाच्तत्वं 8 4. दुः पि वे श्रु त्वाद्युदान्तत्वं (8. दुः पिवेदयत्वाच्युदाचत्वं 9 1.
?. 4०8. 1. 12. (ङ. 777, 4.) व्यरिरेकेण निंदामाह् ॥ व्यपिरेकेन निंदामाह (1. व्यतिरेकान्वयाभ्यामाह 4...
^ 1111, €8. ए 4. पतिः 31. £ एला868 7 806 3 |
2. 418. 1. 12. (९. 119, 11.) अकाद्ल ॥ अकामे 38.
ए. 422. 1. 20. (ॐ. 120, 6.) क्सेखः 1081680 9 कथय 10 116 [{109त1-5017185 [11. 99, 7 `
110९८ 16 १€84112 € 5 € ए1&16त् 0 {6 (दनणालाव कफ; 18 ९011661. क
९. 428. 1. 24. (र. 7127, 4.) प्रायारेभा साग्नेय्याद्याः कोणदिश ईषार्नाता वा ॥ प्रारभाः अग्नेयाद्याः कोणदिशः
ईशितव्याः ^^. ^ 1111 ; (4. 16६४५68 ०४४ भा] @८लु0॥ दीशतव्याः. प्रारभा आाग्नेयाद्याः कोणदिज्ञः ईशितव्याः
ए. म्रारभा आाग्नेयाद्याः कोणरिषो ईशतव्याः 27
{. 439. 1. 9. (ई. 121, 7.) (8. गाङ 1१68 {76 [गानष्णाणह ॥तवकृलातला ल्यु क्रमा
धारयंत्यः सापो ह अपो ह खाप रकं व विश्वमायन् सर्प जगद्पूरयन् यत् यस्माच्तत् तसद्धतोः देवानां देवादीनां सर्वेषा
प्राणिनां खसु प्राणभूतः टकः प्रजापतिः समवतैत समजायत । यद्वा । यत् यं गभं दधानाः पो. प्ट
168४8 ०) {€ कप््ागत $ 9 ©9. गोद, 1 186 90}0४6त 1 71 16 (ला, 66886 0
5९९15 (वु प८त् 1 ए दगो68 0016 न
7. 438. 1. 1. (र्. 125; 2.) पाला€ 18 8 ]क०प्ा, [सफलय आाकाज्ञे 07 आकाशस्य 910 इमं वेनं
11) 8] {11८ ६६. 1 4. € धा], ए 4. 6 ]ध्छपा)2 18 10610106 10 16 ॥€ष्॥ पक्किरिका _ ` | ८
वक्तास्ति; 1 11. 11ल6 876 १०४5 ४0 1701८816 ४; 17 08. 710 (8. 76 द्मपापलान्िक ==
०0९5 07 \ध1{116प शा 30166 ग @. 07015810.
?. 452. 1. 14. (कर. 126, 4.) अनुकूले वेचे ! 08. 2 7. अतुकूल्वेये ^. 01111. चअतुकूले वेय 84. =` 1
ए. क. कवेर 8 4. 86९. पा | ^
९. 456. 1.1. (र. 227; 4.) चदसः शपो लुक् 966, ॥0फ्ल्ष्ल {16 शभरा) 10 106
1654 ४68९ | 5
(1 ६ € त ग २. 127. (श्या. 4, 14) #€ गान््छण् 11118 ०ल्टफा§, = 1 148 ब्य) = `
| एषपण€त् श्षात् तइ्लप्ऽ8€त 70 प्प 8 रिश (6218, रण्. [प. क. 498. परा पाल |
| च्छव्कुक्तग ग प्रच गडा (० एदाऽ९७, 186 पणं होरल। प्र6 व९८्लयाा8, 28 #6 {99
‰५ ^ 7148 1८61075. | ।
वा6 00706 प्प णतक. = व06 16४, 00, 18 (वणप तआ, इ6ण्लक् 12668. 1 0196
1116 {€इ{ त्रिणा) 8. 1. 876 8, 2:
| आ संवि पाथिवं र॑; पिुररायिः धाम॑भिः
| दिवः सदसि बहती वि तिस आ त्विषं वतिते तम॑ः ॥१॥.
य ते चि नुचक्ष॑सो युक्तासो नवतिनैवं ।
अशीतिः संतयष्टा* उतो ते सततं सप्ततिः ° ॥२॥०
` | रीं प्र पदे जननीं" सवैभरूतनिवेशनीं ¦
भद्रां भगवतीं कृष्णां विश्वस्य जगतो निशा ° ॥३॥
संवेशनं संयमनीं ग्रहनशरूवमाल्तिनी ° ।
प्रपन्नोऽरं शिवां यावी भद्रे पारमशीमहि भद्रे पारमशीमद्यो नमः ५४॥
स्तोष्यामि प्रयतो देवीं शरण्यां बद्धचभ्रियां ।
सहस्रसमिता दुगी जातवेदसे सुनवान सोमं ॥५॥*०
शां व्यथै तदहिजाती नाभृषिभिः सोमपाधिताः" ।
ऋग्येदे त्वं समुत्पत्नारातीयतो नि दहाति वेदः ॥६॥
ये त्वां देवि प्रपद्यति": ब्राह्मणा हव्यवाहनीं । ५
अविद्या वहूविद्या वा सा नः पषेदति दुगीणि विश्वा 151
अग्निवशीा ": शुभां सौम्यां कौरिपिष्यंति ये डिजाः
ततां तार्यतनि ८ दु्मौणि नावेद सिधु दुरितात्यण्निः ॥४॥ °
दर्गेषु विषमे घोरे संग्रामे प्पुसतंकटे ।
अग्निचोरनिपातेषु सवैग्रहनिवारिणि "° स्ैग्रहनिवारि्यों "† नमः ॥९॥
दुर्गेषु पिषमेषु त्वं संग्रामेषु वनेषु च ।
` मोहयित्वा प्र पद्यते तेषां मे अभयं कुश तेषां मे अभयं कृणु ॥१०॥ "°
केशिनीं स्वैभरूतानां पंचमीतिचनामच। |
सामां स्मा निशा देवे स्वतः परि रक्षतु सवेहः परि रसत्वो नमः ॥११॥
कामग्निवशी हषसा चलती वैरोचनीं कमेपटेषु जुष्टं
दुभौ देवीं शग्णमरं प्र ये सुतरसि तरसे नमः सुतरसि तरसे नमः ॥१९॥
दुगी दुर्गेषु स्थानेषु शं नो देवीरभिष्टये
य इमं दुगास्तवं 2 पुख्यं रातीसूक्तं जपेत्सदा “८ ॥१६३॥
राती कुशिकः सोभरे रातिवै भाष््राजौ राविस्तवं गायतं ०२ ।
तसू जपेन्नित्यं तत्काल उप पद्यते ५ ॥१४॥
५ पितुरः प्रायि 8.7. पिप्राय 8.2. | | ४ ` 20 ). 8. इष, 32. र, द. 29. + ्४-५८९४
7.42 ° रत्ती 8.72 + सष्टा8.7.2. 5 सप्रति 8.7. सप्रतीः 8.2. = ० 0 440०-९
419 जननी 1.4 दिश्या 9 9 गृहः 8.1... 10 पला968 58 एणा 77 8.4.
11 समुपाश्चित्ताः 1 | 18 यं गिनि 8, 2. । ॥ ५ तस्ति९! | ५ ^ 15 10 }{8. प. 445. 01008
० 8 [068512४9 816 1616 11086066 16 इष्य्रहनिवरेण 8. 2.. °वारणे? 17 < गह्या 8. 7. 18 त्वां
+. ‰17^8 1. 2110818 [8 25
3016 188.; 9. 2. 2100 ए 01 ए81587{2, €गाल्ला०, ४५१ 166 176 सपा, काल
01167 189. 2196 र्िलाः [एना 142.
4.€ा` ए. 128 (+ 8]. #¶ 11. 7, 16) € ग10ण 11118 (८८8. 116 ध(८ला{8
316 कण्टा णा 8.2: |
वोचमिंटूममुतो हवामहे यो गोजिदननिर्दश्चनिदयः 1
इमं नो यज्ञं विहवे जुंषस्वास्य कमा हरिवो मेदिनं त्वा ॥१॥'
आयुष्यं वर्चस्यं ययस्पोधमोद्िंदं । °
इदं हिर॑ण्यं वचैखन्जेलाया विंशतादु मां ° ॥२॥ ५
उ्ेवीजि पुतनापाटरभासार धनंजयं ।
सवः सम॑या ऋद्धयो हिर॑ण्ये ऽप्मिन्समार्हि ताः ५३॥
शुनमहं हिरस्यस्य ऽ पितुनै्मिव ° जग्रभ ।
तेन मां सथैत्वचमकैर पूरुषं प्रियं ॥8४॥
सम्राजं च विरजं चाभिश्या चमे भ्रुवा
लष्सी राष्टस्य या मुखे तया मामिदं सं सुन ॥५॥
ऋम्तेः प्रजातं परि यदधिरस्यममृतं जज्ञे अथि मपु \ "
य शनद्धेद स इदनमरहैति › नरामुुभेवति यो विभति ५ &॥
यद्वेद पजा वरूणो यहु देवी सर॑स्वती \ ° |
ईदटरो यद्वा चेद् तन्मे वचस खायषे "° ॥5\
४ न तदर्॑सि न पिंशाचाश्चरेति देवानामोज॑ः प्रथमजं दे ३ तत् ।*‡ |
| ८ । = »। यो विभति दाक्षायणाहिरख्यं स देवेषु कृणुते दीचैमायुः स म॑नुर्षु कृुते दीम <
यदाव॑श्नन्दाश्षायणादिर्ण्यं शतानीकाय सुमनस्यमानाः 113
तत्त + खा वंश्चामि श॒दशार्दायायुंष्मान्नरदशिेधासंत् ` ° ॥९॥ 9
तादु ७ भधंमल्सुवणं धनंजयं धरुणं धारयिष्पु । | 1
ऋछशक्सपल्नायं च कृरषद्ा रेह मां मेहते सौभ॑गाय ॥१०॥ = ` क,
भियं मां कुरू देवेषु प्रियं स्जसु सा कुरू ।
परियं विर्ेषु गोतेषु मयि धेहि चा रच *' ॥११॥
णिनरयेनं विराज॑ति सूर्यो येनं विजंति! ~ | 1
रब्येनं भिनति तेनासमान्बबगस्यते विरन समिधे रक्षा = |
युः ५६५०
र 4 न
~ 7) (४
‡ वृष्य, उष्य, इ. 7, 14 4 प्य ए. 1. 432 त-ष्ठ्तडे ४. 3 पव, ~ @&. $ ग्थधिष्णछड्ान त ^
पा्ण8-उथा 018 (116. प. 144), ए. 138. ॐ °ङ्ाटिमां + पद, इभ. शद. 5०. ८ ° स्यस्व 8.2 ¢ ~ ५
पितुमोनिव 8.2, १ 4 ४-२९१९ उ, 26 1, ०० नजर 8.1. °नद्हेए स इवेदम १ ० ^4198-९९0०, ए. 26; (0
1 च 04. 4: युषा 8.7 ब (११११. 4 पृषं 18 पृप्णन्त् 88 9 (सीना० प्क |
| । छि एल्पुर य प्ह ककषाकपपमषवञपुष ए 8 8. प९ 1७878 दाघ्लायखं , प्ण, 18 9180 #6 एष्थकोण् म काला 58. = =
० पथु, इन्दी, इदा. 52. वमणपवम 1. 38, ०४ तन्म 8.1, "; ०सन् ६. 2. गं 4१०१९. =
चता दुष 8.2. ग (4 (्श्४-२९0० ए, 286, 4 पा
आए. 6०. गोद्रषु8.२.५ * हारका 8.२ = ० प्म
26 ^ [1 ¶^8 17471108.
५ | ९.6५. 1. 26. (द, 229, 7.) सृषटिस्यितिप्रलयादीना सृष्टिस्यि्यादि्रलयादीनां ^. ¢ 01711, (2. सृषटिस्वि-
1; ग्यादिः प्रतयादीनां 8 1. €8. सृष्टिस्थि्यादि प्रतयादीनां 8 4. सृषटिस्वि्यादि प्श्क 186 6€्था) 01
श्] 91 द्प्कुक्माश््ण). 0 प्रलयाणिदीना.
९. 465. 1. 26. (ए. 229, 2.) चाकषेपसुखेन ॥ वादेषसुखेन (12. चेशासुखेन ^. ¢ 11111. चोपेशषामुखेन
ए 4. 81. ©. एण आकषेपमुखेन, 0 कथ 0 ०प्रंव्00 ० आणण, सात् उपेश्षामुखेनः 07 पथ
~? १151917 0 व}ऽइला, ऋणया ४6 शुणााव्बण6, = 1 866 1118 78 60177160 0 दैप 202.8
| | | न्णफरलाश्चक़ 0) 16 गथो{ितकण-णक्षााात9 11. 8 9 3.
८ क 2. 465. 1. 21. (२. 129, 2.) प्रकृतिप्रत्ययाभ्यां. छदा 0णङ्ग छ्षाभाा तणंड 28 कललितएट ४0
9 6 दाव ग इण्कवोै एतिन, फवऽ हाण्ल) | एदि, @त #0 116 एश 16 171
आपााला(०9्, 98 7ताका71 00001 पणा पोप 81त् १९]€१७1९6 01 {116 762 82.
( प ˆ 2. 466. 1. 22. (-. 129, 3.) तदूषता तदात्मनां ॥ तद्रूपां तदात्तां ^. 3 4. ४. 57. तदूपतां
4 | तदात्मा तं © 11711. तदरूपतां तदात्मनां (8. 1 00 10४ 866 10 {118 8शा{€1€6 (01068 7
4" 7€€. 1
| 2. 4०. 1.71. (र. 149; 7.) प्रकृतिश्च परतिज्ञादुष्टौतानुषरोधात् ॥ प्रकृति ज्ञा दु्टंतानुपयेधात् ^ - ( #11].
५ प्रकृतज्ादृ्टंतानुरेधात् (8. निष्प्र 7 1878. प्रकृतिश्च प्र्ञादूषटंतानुषरोधात् 8 7. 8 4 प्रकृतिश्च प्रतिज्ञा
। दूटं तातुपरेधात् ८.8. 266 ० 176 7016 प्णद्ल प्ल (ल्णापालाौ फ़ {0 ¶ऽ छप.
4 ९. 441. 1. 20. (इ. 10, ए.) {16 [0858286 ति) शतसंख्या 10 पाठका 18 {6861760 10 (1.8.
0], नौला 18. न) 1 णाक, 128 18 एक ]क्छपा2 कलाकष्ित5, हणा कीलः
विस्ताप्वान् 1† ००१8 यदुक्तः सगीत्टोको यज्ञः व्यं सवै जगत् सवैजनेन व्यायुः, 11116 1116 01117 99. £156
श्] 601 पालकाः 10 व्यापुः. 1 1976 8१060 पित्त (० दपा, 28 1116 पणत €्फश्मा€त
ए पालकाः. 716 8988886 1188 86 पल. |
ए. 471. 1. 25, (ॐ. 239 2.) 1051686 ° खवयनेन € 7680 स्वैननेन ^. 11111, €8. 8. 5 1.
सवजने 84. न 171 पधा. खसर्नेनेन १ {1110६ 1116 10288906 71 (8. 18 लिए 071 (0८९,
1४ होरा 1 28 1तातकणटठ 9 [त्व 00 #6 08 0 (6 (लप कलाल {लो
0 शिक). | | क
ए. 472. 1. 24. (द. 15० ०) 8 7. 6.8.84 ए. पशा. 80 गिल अनुवादौ, नाके अष्ठिन्निति शोध्यं
कृतव्याख्यानं वा. 1 | क 3 9
2. 474. ॥। 4. (९. 139, 4.) टापं चापि ^. 0111. आपं चेव 9. 81. 8 4. दापं चापि (2.
एकन. 1प्र. 7, 4 धात ©उथ्ा2 शकता. | त
?. 418. 1. ०. (द. 13० 5.) आज्यद्ध्यादि ^. ¢ 1111, 08. 8 7. 8 4 ओषध्यादि° (ध.
2. 482. 1. 0 (द. 132, 5) शणाः अस्सिरृषो {0 इति मतेः प्रकृततिसखरवं 211 18 16 0 # 4.
९.48. 1. भा. (ए. 152, 5.) मित्रो वर्णो वा ॥ मितावरुणो वा 4 ¢. मितावरुणौ
५ भित्तावरुणो 81.08. मनिवावरूणो 84. 7्वाष्ट-वा- = ५
, ` ४2.483. 1. 26. (क. 132, 7.) दक 7001 वनधैदं 10 उभयत्र 211 28 16४ 0४ 1 ^. 7],
0 । 1 1 ^ 1
1० एप्प यता #. (9. (1
वा (३.
„ णपाफ़ कशी? ४6
ठ क ६ ६ ८1.
~ ^
ध १५ भ श ` ५। ॐ 2. 10. ॥ ५.८ ५ ८ ॥ ५
ए 8745 1707108. 27
12. पुण्यं पुणखयकामात्सकं कामं क्रियते तेन व मोगप्रदानाय इदं शचरौरमार्यत् इति परपरस्य मनसा शरीरस्य निष्पादकं
ते शणीणात्सके
ए. 499. 1. 19, (ह. 136, 7.) {0 €श्कोक्ना110 116 बक्षी, ४06 एटलछि"ला९€ #0 20. 1. 3, 62,
15 पथा) 07 2720160. | | |
९. 499. 1. 13. (-. 156, 4.) सालोडयति ; 116 269. 18९6 सालोकयति
९. 49. 1. 26. (र. 137; 7.) 6 7008 रा ग 06 त्मा लायक 18 पल्ला 1) शा
{16€ 118४
९. 5०5. 1. 8. (2. 738, 5.) अखप्रहुतसेनः ॥ प्रकृतसेनः 4. (~ 0111. अहतसेनः (2.; १९९७ 7) 8 4
981. 2
?. 5०9. 1. >. (इ. 159; 6.) ए 070 जानाति {0 जानाति 18८18. 10 9] 2798. € ९60 8
९. 5०9. 1. 24. (द. 140, 1.) 776 वप्रजंक्षपना तणा (16 4198, 15 1616, 28 61861161,
0101६60. 8 1. 4. 1१6 गतो विनियोगः ।.
ए. 571. 1. 5. (3. 140, 3.) इत्यस्य ॥ 016 7110101 €ग7]€0पा'€ इत्यते |
ए. इव, 1. 12. (र. 149, 4.) {8684 ग जायमानेयत्मीयेस्तेजोभिः ^. ^ 11111, (8. € 10
यज्ञमानेरात्मीयेः स्तोतुभिः 11 8 1. 4. ¢ | |
ए. 57. 1. 21. (ङ. 142, 6.) वाजा वेगा 2. वाजाः खगाः ^. ¢ 17111, 68. साडः 84. 8 7 1
{16 ०1 ण्ह वेगाः (वमाः) 2५ खगाः 876 76्छाक 116 88716. = .
?. 577. 1. 26. (र. 142, 6.) अवा कौिव्यः \ सद्धा कव्य: ^^. अवा कतैव्यः ( 11111. अङ्गा वरीव्यैः (2
कौव्यः 8 1. 4 बद्धा कौव्यः (2. @ 29). णा. 3 78, फाला6 € वाक्€ 18 10266
५९60660४ 00 81४ |
4 किलाः [979 142 (प्र. 8, 5) "€ शगाण्खणट 1118, 0८्८पा8. 116 व्ल शषः
रा शा]:€ 17 80706 ग {€ 1788.., एप 80 (शलल्ञडर 9 [ ल पाला 0पौ, (पफ
&, 2. 87 ४० #88. एग 0 क्था, 1. 10. ९1४6 (8 [पो ;
हिमस्य त्वा जयायुणागने परि व्ययामसि ।
उत हदो" हिं नो भरुवोऽभ्निदैदाहु भेषजं ! शगेतहदो हि नो श्वुवोऽग्निरैदाहु भेषजं ॥२४
संतिकामगिनमजनहूवैद्ः* शिशुरगमत्* ।
अजातपुतपक्षाया दृदयं मम भूयते ° ॥३॥
विपुलं वनं ° बद्धाकाञं चर जातवेदः कामाय ।
मां च" रस पुता शरणमभू्व ॥४॥ = `
पिंगा लोहितग्रीव कृष्व नमोऽस्तु ते ।
अस्माननि वरैशस्योनां ° सागरस्योमेयो यथा ॥५॥
ईद्रः° घतं ददाहु बरूणमभि षिचहु !
तवो निधनं यातु नयस्व "० ब्रह्मतेजसा ॥६॥
२ इदौ 8.2, = 2 86 क्षम्य ए, २०6, 3. प्च, उण, उषा, 5. वम् इष्य ए. 6.2. भ श्र
द्वै 8.2. °जनहू ए. जनयहू ८. = “ शिशुला 8.2 ˆ दयते इयते ° विपुलव॑तं ४ मांच.
माश्च 3.2. . 5 स्थां नि बह रस्योनां 8.2. अस्याहि बहे स्योना 7 | ध इद्र 3.2. = : इंद्र }/.
र
28 | ^ 17748 1, 07पा5.
कपिलजदटपं सवैभक्षं चागिनिं प्रत्य््रैवर्तेः ¦
वरणं च वजाम्यग्रे मम पुवांश्च रक्षतु मम पुरवाश्च रद्वा 2 नमेः ॥५॥
सायं वषशतं जीव पिबे खाद च मोदट् च।
दुःखितांश्च हिजांश्ेव प्रां च पशु ° पाठय ॥४॥
यावदादिग्यस्तपति यावद्धानति चंद्रमाः |
यावद्वायुः अवायति* तावज्नीव जयाजय ॥९॥ |
येन केन प्रकारेण को वीनामलु® जीवति । |
` परेषामुपकारा्धं यज्जीवति स जीवति । शतां वैश्वानरीं ° सर्वदेव" नमोऽस्तु ते ॥१०॥
0116 18. 8408: न चोरभयं न च सपेभयं न च व्या्रभयं न च मृयुभयं ।
४ यस्यापि मृदयुनै च मृदुः सै लभते सपे जयते ॥
?. 52०. 1. 24. (र. 144, 1.) (6 [0/8 06 18 दाएला 85 ऊध्वैकृशान ४ (© 111, ^. (01108
(६. 28 उश्वैकृश॒न 71 (18. 8 7. 4 (नल्ए०गः€§ 18. 9 6 प्र ्तक्ा)र)१ 188 1018 4,
2110 80 788 81180&्पा-पंऽ72, (066). एप 88 16 {दष ग ५6 £-?€68 128 {116
81011 ¢ {€ 18706 7्ाप्5† 06 8]€्¢ ऋण 8004 4. | |
?. 525. 1. 14. (र. 144, 7.) +ला सभिषुतः 2 {16 © 0 {116 (व्गपााला्षफ, ^, 248
यद्वा अस्मचतद्यदाभिमूुख्येन सुतः प्रेणििः ने हुं न्वयः 1, ¢ 111 यद्वा स्मतं चस्मत्त यदाभिमुस्येन सुवः परेरितिः
तेँदुरिपयम्बय ।, (+. यद्वा अस्मत् अस्मत्तः त्वदाभिमुख्येन सुतः प्रेरितः तेनेंदरेणे्यन्वयः 1.
2. 525. 1. 2. (-. 145 1.) 7700 यदि वारू्यसि 10 आल्िंगनमिति {11616 18 ॐ [वलपा1& 77
81. 68; 2 4. 2108 0 प्र6 शष्ठ, 6 फणप8 तणा यदि वारण्यसि 10 निष्करीणामीति.
१. 525. 1. 91, (क. 4 1.) ^ वलाः परिकिरति, 87. 48. 20 ०) 2 00८6 10 तत प्रथमा.
3 4. १०७६ {€ 88016, [पए+ 8448 7. 77का-छ71 116 008 7070 यदि वारूख्यसि {0 निष्करीामीति.
{1 हार {€ श्द्ाला+8 70 फट्) [ [896 प्रतलत् {0 16506 8ग06 वतत ग ४6,
(0पद्ु, काका 6 कपा ० 4 ए0कक्षा09 धात् ऋऋ {0प {76 त त {16 ए. 6858
11 88 ¶1100881016 0 1681016 {76 {€ 1 8 8व{इकिलगत शालः
कणः {€ 086 णवी) ग {6 @रपावला क6 त 5006 81910 70 +€ 60010118
(ल्पता अ88 [. 6; 6 864. 1 कलाद्षा परिकिरति, (0प्ह्ठा © 000. 11285 परिक्रीय, 214
निष्क्रीणामि 1115680 0 ©001128 परिक्रीणाभि, {1 176 व्क] भी, 10 क €्ण्य, 6 1684
वरूणाय त्वा परिक्रीणामि, 24 20811 सोमाय त्रा परिक्रीशामि. {11611 यवो भूत उच्चरया स्थाप्योत्ताराभि-
स्तिसुभिरभिमंच्योत्तस्या प्रतिद्धना हस्तयोणवध्य शयनकके बाहुभ्यां भीरं परिगृ दीयन् उपधानलिगया वङ्यो भवति
स्पल्नीताषना वेति ।
4. यदि वारूख्यसि वरुणाला निष्क्रीणाति यदि सोम्यसि सोमाच्या निष्क्रौणामौीति । श्चोभूत उ्तस्यो
¢ 1111 116 का 98 4, कवल नि ` | .। भूत उक्तरयोरि-
8. = 16 वथा6 98 4. छव्लटि मि . 3 यवोभूतत उच्चरयोः
4- उत्तराभिस्तिसृभिरभिमंन्य उत्तरया प्रतिदत्रं हस्तयोवध्य शय्याकाले बाहुभ्यां भतरं परिगृहीयाह् `
|
४.4 21745 28671015. 29
^. उपधानलिगया वश्यो भवति सपल्नीवाधनं चेति । अयमर्थः । आद्यया पाठा नामोषधिः खातव्या ।
(~ 111 वि ड | नाम षधि
। (४. वशो त नाम ्लोषधि;ः |
¢ ततस्तिसृभिरोषभेरभिमंन्ने षषटयावद्धा सोषधिः यथा भक्ती स्पृशति तथा तस्य भहैयल्ठिगनमिहि ।
(¬ भा] | |
(4. ततस्िसु योषधेर वद्धा खोपधिः
1081680 0 श्भरूते 0716 €]06८8 यवैः क्रीतं. |
2. 529. 1. 78. (+. 46, 3.) रस्ये सत्तं ॥ अरय । घतं ^. ¢ 111. सपेषितं (8. ; १6८७ 17
8. 8. अर्ख्ये छतं 3 4. 170 गश. सपेषितं ए०पत 106 116 68" 76877; 866 2180
1 शावा )8 1. 5, 5 0. 604. 11. 15, 24.) (त
2. 529. 1. 25. (९. 146, 4.) ^ ला" सादयति {16 (णाणव 13 तलीलंल 10 9] 188.
९2 (नु (2; एप, ्ला'€, 100, 1 18 ऋणा, 9. 21१९३ निष्टं गामभ्विद्ठन् त्वदीयं नमो च्यते 2.0
साद्धयति ; 1118 ¶ (व्ा10 6506. (16 वनानि 00 {76 वष्षितीकड-0क्षाा1भ) 9
€ {. 5; 5; 13 7 ए
334 1. 77. (-. 148, 5.) 46 स्यान, {16 188. 15ल† समुद्रा ^. ¢ 11111, 9. 8 4. ससमुद्
व 571. सहु भः त्समुद्् 23
(| “ . 535. 1. 18. (२. 149, 1.) अचैतस्यं ^. 0 1111. स्तो ^. 0 14111, 2 4. 87. &2
त अचैतस्या्पे (18 ¦ अ्चैतो (
| 06681. 234. 81.08. |
अचैटेर्णयसूपः 18. (011. 232. अविनो हेर्ण्यस्तृयः 1५९, 8118०, 118. ए. 1. पत. 1823
। ९. 536. 1. 7. (+. 149, 1.) ^#€ शिक्षकः साक्षी ^. ¢ प], 8 4. 17 एथ. ; १८९७६ चर €8.
4. | ए1. 8. सारथिः?
~ £. 537. 1. 6. (९. 149, 3.) अतो हेतोः ^. ¢ भ], (&. अतो हेतुभूतो 31. ©. देतुभूतः 8 4 |
+ 86८, 1181 11
. 539. 1. 23. (ए. 150, 4.) विशेषणसपेघस्यापि धनशब्दस्य समासश्छांदसः ॥ विशेषणस्यापि समासः ^.
विशेषे्स्यापि प्षमासः ¢ #111. विशेषेण साशषेपस्यापि नशब्दस्य दादषः (8. 81. 908 समासः. विशेषेण
साक्षेपस्यापि समासः 34. विज्ञे विशेषेण सापेधस्यापि धनशब्दस्य दांदसः (४. |
^ लाः [कया 157 (पा. 8, य) #ऋ€ गारक 11112 ल्पा ;
मेधां मदमंगिरसो मेधां सार चर्षयो दुः" \
मेधाभिंदरश्वाग्नि्च मेधां धाता ददातु ? ते * ॥१॥४
1 | मेधां मे ¢ वरणो राजा मेधां देवी सरखतौ ¦
1: मेधां मे" अश्विनो देवावा धनं पुष्करस्रजा ॥२॥
1 | या मेधा अप्सरासु गंधर्वेषु च यन्मनः ध
देवी या मानुषौ मेधा° सा माया वि्षतादिमां ॥३॥'० = `
" ऋ
५ विदु हि, = &5४. काउ (218. प२. 144), ए:.154.- ~ -. दधा. ` ` + मे (8. प्र, 144. ५ र
° £. पक्ष. उण्णा, ए, 15. प्रा, 7. इ. 4० ^ 8.9. पत 8.2. 5 रतो 8.9..-9 शेषु
रशसु ४ 9 युगा 10 &९6 वृ्ष, द ए. वय, 0
1, ८ ~ *8.
80 ^ 11/48 16110218.
० | यन्मे नोक्तं तदरमतां शकेयं यदनु तुव
क निशामतं निशामहे मयि घ्रं सह प्रियेण मू या । ब्रह्णा स गमेभटहि ॥\8\
19 श्॒णीरं मे विचक्षणं वाद्य मशरुमल्तमा \“
1. | | अवुमहमसौः सूर्य बरदणानौ° स्व शरुते मे मा प्र हासीः ५५॥ '
| ह + मेधां देवी मनसा रेजमाना ॑धवैनुष्ं प्रति नो जुषख
ह & अद्यं मेधां वद मद्यं श्रियं वद मेधावीऽ भूयासमजराजरिष्णुः ॥६॥
| सदसस्यतिमडतं प्रियमिं द्रस्य काम्यं ।
1 सनिं मेधामयासिषं ॥७॥
० यां मेधां देवगणाः पिहस््रोपासते ।
८ | | तया मामद्य मेधयाग्ने मेधाविनं कु7० ॥४॥ 7
(4 ६ ४4 मेधाव्यहं सुमनाः सुप्रतीकः छडद्धामनाः स्यमतिः ˆ सुशेवः
महायज्ञा धारयिष्णु; प्रवक्ता "° भूयासमरये “ सखधया प्रयोगे ॥९॥
( ए. 546. 1. 0. (द्, ग, ग.) रके त वल, पणः रक, एततः 18 #6 र र्धत7ाट 07 18. 28४
॥ गृधङ्ामः गक, 6 उं 09888668 पथ 06 86्ला) 17) {116 £ इष्वा (वृत 90788 ॑
: | 17. 3, 87 17 8 §ऽनण€फ]181 तशि शिता) 17 {176 89 शुक्2- 08111021), 1. 5;
क | ?. 554. 1. 19. (द. 158, 1.) ¶16 8660710 एक, [686१९ 7 (8. एणा + 78
1 ^ प्ला#8 गा, 18 10 १6 ऽप्फृ16त पण ४11. 47; 13
५ | | 2. 56०. 1. ५ (इ. 16०, 4) 106 ०९ 15 1 छप 0 80 8)8
(व 2.56. 1. 1. (९. 2675 ¶6 वृप्॑क्ीम, इद्रो देवाशु न 18 एण. {॥ 15 नग1{6त
1 | 281, 84; एप ०7 ©. ^. ©. € धा] दष6 14: शुनं नः 0 शुना
2. 961. 1.28 (र. 161, 6.) 15168 ग आतुरस्य 1116 1188. 186 आअपितस्य ^. (2. (~ 111]
+", 68; 0668 00.81. 84 ह | |
९. 566. 1. 29. (. 165, 1.) हुवुकादुवुकात् ॥ तुक् चुतुकात् 4. इषुकात् कुबुकात् ~ 111. दुवुकात्
चुद्ुकाद° (+. ; १९681 17) 87. 84. 2 # ५4
ए. 64. 1. 9. (क. 1655 8.) मतन्नौ 25 एथऽ८पा776, (लवण 6 [ततपल8 {116 गा
` आलो 7 ए (वनतल्ञृगात३ {0 16 10780 पिपा, 18 मतल 11" 716 €>
11801. इृदयास्विविशेष, 28 £1एल) छप ‰{211441181.8, 8861118 1107861151९81
?. 52. 1. 14. (द. 165; 3.) अक्नंयस्मिननिति, ए7018.017 {1 [0180688 घा10681004
?. 573-1. (र. 166, 1.) ^. 91 ©. 2 & ए710९8. म्रयाखसमये निगंमनाच ज रतत्सूतित च ¦
1 शषनः ना समानानामिवयभिनरमेननिति ^. प्रयाणसमये नि्दनमार्गे जपेत सूविततं च । ्युषभं मा समानानामिव्यभिक्र-
मेबरिति 2. ¢] शष फ ^. (16 0प्ल€' 88, 12९6 7071 1
८3
1 तदूवतां ण. प्रदर 8.2. भद् भ न्रवेक दवे १. ` 5 निज्ञामत निशा मयि शरुतं सह व्रतेन भूयासं >
तिञ्चामयि सयि त्रत ८. निशामतं निश्ामहे मयि व्रतं सह व्रतेषु भूय ॥ सं 8.2. ^ मधुमहुहा 8.2. मधरुमदूहा ५
7 सीत् ८. ° त्विय, = ° प्रथ, इफ,
४.4 21748 18617110 प्8. 31
?. 578. 1. 8. (९, 168, 2.) 9119, 86608 10 8.२९ 68 खयुक् (18 खयुक् ^. (~ 1111
सुयुक् 0 1. 8. 8.4
2. 583. 1. 4. (-. 174 4) घमैकाठे 23 4. 8. धनैकाले ^. ¢ 11111. क्मलोके (9. ; १६९३ प) ए 1.
2. 583. 1. 24. (-. 77, १.) ^© तद्भिप्रायेरेदमुक्त, ^. (8. 2111 0 11711 2१ 2 पप्रा ००,
णप८॥ 1 व्थााणं 770. शरूयते हि तस्य द्रो विरूपेण धनुज्यामल्वि रुद्रस्य त्वेव धनु रतिं शिर उपपेष । स
प्रवागभ्या भवदिति 4. ज्यामच्ि रुद्रस्य वेधं वे नुरालिं शिर उप्पिपेष 676. (14111. श्रूयते हि तसेद्ो दग्निरूपेण
धनुञ्योमिद्धति तथा रुद्रस्य त्वेव ध छे त्तिः शिर उप्पिपेष स प्रवग्या भवदिति ४. 116 50 18 1णत् 7
कालि ला पराश, एं णाः 7. पऽ णिता. 6 पकफठ 1 1 (€ इकाणुक्षता9. 86
06 एच ज चाल पल्ला एषणः; 1 प6 वध्तितकदाःवध््ः8, 8 16
लाप ज #6 पाका (सपु, करवप्र #6 कफकाशयाक्णक एगतगा तआ {€
740 दिवु; 580 अ {€ वपतृकुक्-एक्ना०ा8 ए, > 6; ॐत 1181698
78118109 1. 18. [ 11876 16870164 € {€ (०णव्लपा्षाक, एण 1 ध्लथि त०पपिा
६0 पप्तः. |
7. 589. 1. 3. (-. 174. 2.) 76 दणक्ापलातकाक 10 {08 एला8€ 18 एका 78 7 ग्ा 6 1188.
£. 594. 1. 72. (>. 177; 1.) हदा इष्स्येन । तातसथ्यातचाच्छन्दयं ॥ च्यृक्ये तता तस्य त्तो वद्यं ^. इदस्य त
तातस्यत्तोव द्य 1111. इदा इस्येन तास्या ता खब्दां । (8. इदा इष्स्येना तारस्दा । ता च ब्द 37. द्ये
तता या तस्याचदब्द्यं (10. इदा द्स्थे तेनात्मना 8 4. 860. एका]
९. 594. 1. 25. (९. 177; 1.) वृक्षिज्ञानानां ^. 3 7. 3 4. ` वृिज्ञानानां ¢ 7. दच्विह्ञानानां ¢ 23;
९९8 77 ©. | |
2. 596. 1. 12. (ड. 178, 1.) ताच्यैपुतः ^. (8. ¢ 11111, 8 4. 27. 8.
£. 596. 1. 23. (९. 178, 1.) 07 गगीदिः €. 866 71068 ॥ 16९९. `
१. 597. 1. 9. (९. 178, 1.) जयतव उग्र्ययः ॥ दूट्प्र्ययः ^. इट्प्रययः 0 4111, 84. 281. 08.
इडग्र्ययः (2. 92118 -४९0९, ]. 674, यजतेवै डिरप्र्ययः
2. 6०4. 1. 22. (>. 185 1.) चृचः ५ सत्या चः ^. (८.8. अत्या ऋचः (11111. इव्याचरू त्रमेण (18
अनृचः {3 7. अग्यचः 3 4. 86९. 1 |
?. 6०6. 1. 26. (>. 184; 1.) गमेपातापप्रसवा ॥ स्नावपातापप्रसवा ^. ¢ 14111. खावपाताप्रसवा (2.
स्रावपातप्रसवा 2 4. 860. 7127. सावपातप्रसवा 931. स्राचणतापप्रसवा ~ 9.
4{1€} [1 पोा) 184 (* 11. 8, 42) ध्€ गाला 11112. 0८८ ;
नेजमेष: पर पत सुपुत्रः पुनय पत \2
शस्ये मे पुत्रकामाय गर्मैमा धेहि यः पुमान् ॥१॥
यथेयं पुथिवौ मद्यताना गमैमादधे । `
वं तं गमेमा धेहि दशमे मासि सूतवे ॥२॥
विष्णोः श्रे्टेन रूपेणास्या नाये गवीन्यां ।
पुमांसं * पुना भेहि दशमे मासि सूतवे ॥३॥
^ लाः [ष्टा 187, 8. (#ाा. 8, 45.) € गाह 1112 0८्८पाः§
अनीकवंतमूतयेऽग्निं गीभिंहेवामहे । स नः पषेदति डिषः॥
५,
८०
५ 1 तेज. 2 48४, (पाप. 14. 68, काइ 218. 2. 144); ए. 137 3 4 ्म-क60प्र, 252.
॥ ` + दुश्चास्ा. २ &प्ि-१९08 ए. 265 0, ; (1. | (0
ॐ प्र पए्ा77^8 1.ए(67ा0प्रा8. |
2. 614. 1. 6. (>. 289, 5. ) स्तूयते सूये सर्त इयथेः ॥ स्तूयते सूये सवत इत्यथैः ^. (1 1111. सेवत इत्यथैः (8.
सूयते सूपे स्तवह इयथः 8 1. 9 4. सूं सवन इथेः 9. | |
?. 614. 1. 4, (ए. 19, 2.) त्वाह्ादुयूष ॥ त्वात् ऋग्धूप ^+. (८ श]. ल्नादृयूष 8. त्वात् सग्रुप 3 1.
ष
1/1; 1.
2.66. 1. 47, (द. 974 2.) 4 ¶लः किंच 1616 18 सिन्त: ^. 0 1111, सखि न 8 4. सितो पीडायाः (२.
प्लत; 08. त्वि नः 7. व कक एष्ला फला णि स त्वं, 0 तत प्व्यतोऽपि.
` (किलः एणा 291. (प्रा, 8, 49), 2 {€ ९14 ¢ 6 क्षणाय, {6 नतद
18. प्व्लपाऽः = | |
अ , : भंज्ञानमुशनावदत्स॑जञानं वरुणो ऽ वदत् ।
संज्ञानमिंद्शाग्निश्च संज्ञानं सवितावद्त् ॥१५
4 संज्ञानं वः खेभ्यः संज्ञानमरणेभ्यः । `
9 संज्ञानमश्विना युवमिहास्मासु नि यच्छतं ॥ ह ५ 6
यत्कक्लीवान्संवननो पुतो ्रंगिरसामवे ।
५ . कतेन नोऽद्य विश्वे देवाः षं परियां समजीजनन् ॥
४६८ क्षं वो मनांसि जानतां समाकूतिमेनामसि । न, |
| खसो यो विमना जनस्तं समावतेयामसि ॥ `
तयोर वृणीमहे गां यज्ञाय गातुं यज्ञपतये 1
` देवौ खस्तिरस्तु नः खस्तिमेनुषेभ्यः ॥ड ४
ऊ जिगातु भेषजं । शं नो स्तु द्विपदे शं चतुष्पदे ॥
1, &#, ए. 11. 4; 4; 6. 009९-6 च. 52, ए, 2 ° भवेत् ६४. 9४, 69101. (218. (५२. 144); ए. ए
$ 40 2-ए608 ऋ. &. 4 ता, इव. [. 6, 76. व्र य. 1. 5 7, (एम, ८.1. 9.
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डन ८४५२५८८
सायणाचायेविरचितमाधवीयवेदाथेप्रकाश्नामकभायसहिता
शमेण्यदेशोत्पन्नेनेगलर्देश्निवासिना भटरमोक्षमूलरेण संशेधिता `
परीमद्वारतवषेमहायल्यमात्यानामनुमत्या च न
सतरणाभिधाननगरे ५
५, „ 1
न विद्यामंदिरसंस्यानमुदरायंचाल्ये मुद्रिता 4
॥
{
॥
ध ( संवत् १९३१ वर्षे क
॥
0.2 ॥ अषटमा्टकप्रथमाध्यायप्रयमवनी्यटमाष्टकाष्टमाध्यायेकोनपंचाशवगेपयैतं ॥ =
५. ८ ॥ समापना चेयमृग्वेदसंहिता तद्राष्यं च समापनं ॥ ५.1 |
1
1
॥ प्रीगखणेशाय नमः ॥
ध यस्य निःश्चसितं वेदा यो वेदेभ्योऽ सित्ठं जगत्।
॥ निमे तमहं वदे विद्याती्थंमरेश्वरं ॥
सघ्रमे ऽरममध्यायं व्याख्यायाचायै वंशजः ।
अष्टमे सायनाचाये आदिमं व्याकरोत्यथ ॥
४. अच्छा म इति चतुर्थेऽन्छवाकेऽष्टादश सूक्तानि । तच प्र होतेति चतुथे दश्च
~ सक्तं ॥ प्र होता दशेत्यनुक्रांतं। खनवतेमानाद्वालेदनस्य वत्सप्रेराषे। अनादेश-
५ परिभाषया चेष्टुभं । आग्रेयं । पूवेसूक्तेन सहोक्तो विनियोगः ॥
॥ तच प्रथमा ॥ |
प्र होत्तां जातो महान॑भोविनृषद्ां सीददपामुपस्थं।
दधियों धायिसते वयांसि यंता वसूनि विधते त॑नूपाः ॥१॥
होता । जातः! महान्। नभःऽवित्। नृऽसदां । सीदत् । अपां ! उपऽस्थे ।
द्धिः यः। धा्यिं। सः। ते। वर्यासि। यंता । वसूनि । विधत्ते । तनूऽपाः ॥१॥
>----
=
यो नृषदाप्निरपां । संतरिसनामेतत् । अंतरिकस्योपस्य उत्से वेद्युतरूपेण
सीदत् निषोऽभूत् स इदानी होता यजमानानां होमनिष्यादको जातः प्रादुभूतो
महान् गुणैः पूज्यो नभोविद॑तरिक्षस्य वेच्ा। यतस्तचोत्पननोऽ तस्तस्य ज्ञातता
नृषल्ला नृषु सीदन् ॥ सदेः कनिप् कृत्स्वरः ॥ प्र सीदत् । वेचां प्रसीदति । खपामु-
पस्य महिषा खगुभ्णतेति हि निगमः, अपां समीप इत्यथेः । कमेणामुपस्य उप-
स्थाने समीपे वेद्यामुक्तत्कृ्णः सन्। अथवापामुदकानामुपस्थे मध्ये योऽ षि ध
नो निगूढ उश निष सने वद्यं परती ।
ण्ण. ण.
॥ स्पृग्वेट्ः
योऽच्रिरैधिधाता यज्ञस्य धारकः सन् धायि वद्या निहितो ऽभत् सो
विधत्ते परिचस्ते ते त॒भ्यं वयांस्यन्नानि वंस्नि धनानि च यत्ता निर्या
भवतु । किंच तनूपाल्ते तन्वः पाता च भवविति शेष
॥ थ हित्तीया ॥ `
इमं विधतो अपां सधस्थे पुं न नष्टं पदर ग्मन् ।
गृहा चत॑तम॒शिजो नमोभिरिखतो धीरा भगवोऽविंटन् ॥२।
ष भ्य
इमं । विधतः । खपां । सधऽस्थे । पमु । न) नह । पटः । दपु । 2
न्।
भये क
गृहा । चतं । उशिजः । नम॑ःऽभिः। इच्छतः । धीराः ¦ भगवः । अविंटन् ५२॥
1
इममग्रिसपामुटकानां सधस्थे सहस्याने सध्ये निगूढं विधंतः परिचर
उपचारं वदतो व्षयश्च पदेः पल्ायनमार्व्यंजकेने्टं चोरादिभिरपटतं पम्
मिवानुग्मन्। अनजग्मः ॥ गमेलडिः मचे घसेति चट् ॥ तेषु मध्य गुहा गुहा-
यां चतत । चतिर्गतिकमो । अप्सु विल्टीनमित्यथैः । उशिजः कामयमाना नमो-
भिर्नमस्करिः स्सोचैर्वे्छेत आत्मन इच्छतो धीरा धीमतो भूगवोऽ विंटन् । लब्ध
वतः । अग्रहैविवोंदुमतहमानस्य पल्वाग्याप्सु प्रवेशो देवानामन्वेषणं चाग्रस्लयो
ज्यायांसं इत्य स्प्टमाखरातं । ते° सं०२,६.६.६.। खन्वेषणं कुवेता मध्य भृगूखः
मभ्रिलान इमं विधंतो अपां सधस्थे हिता दधुभृगव इत्यचोक्तं । ° सं० २.४.३.।
ध ॥ अथ तृतीया ॥
इमं चितो भयविंददिच्छनेभूवसो मूधन्यश्यायाः।
स शेव॑धो जात आ हर्म्येषु नाभियंवां भवति रोचनस्य ॥ ३॥
इम । चितः। भूरि । अविदत् इच्छन् । वेभुऽवसः । मूधेन । अघ्यायाः
सः। शेऽ वृधः । जातः । आ । हर्म्येषु । नाभिः । युवां । भवति । रोचनस्य ॥३।
ग्युमि
म० १०. ०४. सू ४९.। ॥ अष्टमो ऽ्टकः ॥ | ई
। अथ चतुर्थी ।
दर होतारमुशिजो नमोभिः प्राच यज्ञ नेतारंमध्वराण
विशमकुखन्रतिं पावकं हव्यवाहं दधतो माषेषु ॥४॥
मंदरं । होतारं । उशिजः । नम॑ःऽभिः। पराच । यज्ञ! नेतारं । अध्वराणौँ ।
विशां । अकृणखन्। अरतिं । पावकं। हव्यऽवाहं । दध॑तः । माषेषु ॥४॥
उशिजः कामयमाना ऋत्विजो मंद मादनीय होतारं रोमनिष्प
गाहपत्यादाहवनीयं प्रति प्रागंच॑त्तं यज्ञ यजनीयमष्वयाणां यागानां नेतार प्राप-
मानुषेषु सनयेष् सध्ये टधतो दधाना ऋत्विजो विशां यजमानाना-
विशं प्रजानामरतिमये । स्वामिनमित्यथेः। नमोभिनेमस्करिः ।
थे: । अङ्खन् । आअकुवेन् । खप्रीतं कृत वतः ॥
थ पचमी ॥
प्र भूजंयत्त सहां विपोधां मरय अमूर पुरा दमा
न्यतो गभं वनां धियं धुहिरिश्मघ्रुं नावाणं धन॑चे ॥५
प्र) भरः। जर्यतं । महां । विपःऽधां । सूराः! खमूरं ! पुरां । दमाणं।
नय॑तः। गभे । वनां । धियं । घुः । हिरिऽ श्मश्रु! न । अवे णं । धनंऽखचे ॥५॥
हे होतस्त्वं जय॑तं जेतव्याञ्श्चञ्जयतं महां महातं विपोधां मेधाविनो धत्ता-
मिं प्रभूः । प्रभव । समर्थो भव । स्तोतुमिति शेषः । उङगीयस्तु भूजेयंतमित्ये-
पट् मला भूरारीक्लोकाञ्यंतमिति व्याचकार । न केवलं त्वमेक एव अपि
तु मूरा मूढाः सर्वेऽपि पुरुषा आअमूरममूढं पुरं दमाणं दारकं ॥ आणादिको
मनिः । प्रत्ययस्वरः ॥ गभैमरण्योगनैनूतं वनां वननीयं ॥ वा छदसि । पा० ६.१.
१०६. १०७.। इति वचनादसि प्वेभावः ॥ हिरिष्मश्रं नावाणं । नेत्युपमार्थीयः ।. ` 1
उमशुरब्टोऽच रोमसामान्यवचनः। हरितरोमोपेतमवीणमरणशीलमश्वमिव ।. `
उक्षक्षणाश्ववदरितंकेशस्यानीयज्वालोपेतं धनच प्रीणधनस्तुतिं ॥ शक्ष्वा- ५
दित्नात्पररूयत्वं ॥ $हशमब्िं नयतो हविभिः प्रापयंतो धियं कमं स्तो वाधुः। '
गालव सिचो लृक्॥ =
इत्य्टमस्य प्रथमे प्रथमो वगः ॥
| ॥ऋण्वेदः॥ [अ०४.,अ०१,व्०२.
५
1
(1 ` = ॥ अथ षौ ॥
नि पल््याख चितः सत॑भूयन्परिवीतो योनो सीदर्दतः
अत॑ः संगृभ्या विशां दमूना विध॑मेणा्यचेरींयते नृन् ॥६ै॥
नि । पल्याख । चितः । स्तमुऽयन्। परिऽवीतः। योनो । सीदत् । अंतरिति ।
अतः । सं ऽगृभ्यं ! विशां । दमूनाः विऽधमेणा 1 ख यतरः । ईयते । नुन् ॥ ६
चितस्िषु स्थानेषु गाहेपत्यादिषुं तायमानः स्तभूयन् यजमानगृहान् तभयि-
तुमिच्छन् ॥ इच्छार्थे क्यचि तदताच्छतरि रूप ॥ परिवीतः परितो ज्ाला-
भियाप्तः सन पर्यास यागगहेष योनावंतः स्वीये वेद्यात्मके स्थाने निषीदत् ।
ध निषीदति । अतोऽस्मात्स्यानादिश्ं प्रजानां संबंधीनि हवीषि संगुभ्य संगृद्यद्रा-
८. दीचदिश्य प्र्ानि चरूपुरोडाशादीनि स्वीकृत्य दमूना देवेभ्यो दानमना यजमा-
नाय वाभिमतप्रदानमना विधमैणा तासां विविधेन कमणा निमित्तेन दानमना
देवेभ्यो दानपर्षे विविधगमनरूपेण कमेणायतैः शचरूएां नियमने: सह नृन्दे
वानीयते । ग्छति॥ |
॥ अथय सघ्रमी ॥
अस्याजरासो द्मामरि्ां अचेद्मासो अम्रयः पावकाः
श्वितीचय॑ः श्वाचासों भुरण्यवो वनषैदो वायवो न सोमाः ॥७॥
अस्य । अजरासः। दमां । अर्तिः । अचैत्ऽधूमासः। अग्रय॑ः । पावकाः
श्वितीचयः । चासः । भुरण्यवः । वन ऽ सदः । वायवः । न । सोमाः ॥७॥
अच बहुविन स्तूयते । अस्य यज्ञमानस्य संवंधिनोऽजरासो जरारहित दमां
टमनीयानां रसछःप्रभुतीनां ॥ टमेः क्रिपि सावेकाच इति विभक्तेर्दा्तत्व ॥ तेषा-
येषां
` मरितरास्तारका अचेद्मासोऽचैतोऽचैनीया धूमा धूमोपतिता ज्वाला वा येषां
च तथोक्ताः पावकाः शोधकाः श्वितीचयः श्वेतिमानमंचंतः ॥ शितिः श्वेतः
णादिक इः ॥ ्वाचासः । धिप्र
नषेदो वनेषु सीर्दतः ॥ संहितायां दसं रुतं ॥ वायवो न सोमा ग॑तारः सोमा
५ ६ र 1
वंतीति॥ = `
म०१०.अ०४. सूचय] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ प
1 -. | ॥अघाष्टमी॥
प्र जिड्धयां भरते वेपो अग्निः प्र वयुनानि चेत॑सा पृथिव्या ¦ ।
त माय यवः शुचर्यतं पावकं मदु होतारं दधिरे यजिं ॥४॥ `
ग्र । जिह्ल्या । भरते । वेप॑ः\ अभ्रिः । प्र! वयुनानि । चेत॑सा । पृथिव्याः
तं । आयवः भुचर्येतं । पावकं । मंद । होतारं । दधिरे । यर्जि्ं ॥४
योऽग्रिजिंद्धया ज्वात्या वेषः! कमनामेतत् । कम भरते त्था योऽच्िवै
युनानि प्रज्ञानानि स्तोचाणि पुथिव्या रछणाय चेतसान्पहयुक्तेन मनसा प्रनरते
तमग्रिमायवो गत्तारो मनष्याः भुचयतं दीयमानं पावकं शशेधकं मंदं स्तुत्य
होतारमाद्धातार होमनिष्पादकं वा यजिहमतिश्येन यष्टव्यं यद्ूतमं वा ट्धिरे ।
धारयंति
॥ अथ नवमीं ॥
न द्यावा यमपि पुथिवी जनिंष्टामापर्व्टा भृग॑वो यं सहोभिः।
#;; $ठ्छन्य प्रथमं मातरिश्वा देवास्तंतश्ुमेन॑वे यज॑चं ॥९॥
व द्यावा । यं । सखम्नि । पृथिवी इति । जनिं । आपः। चदा । भुगवः। यं । सहःऽभिः
्छन्यं । प्रथमं । मातरिश्वा । देवाः । ततक्षुः । मन॑वे । यजं ॥९॥ `
यमनं द्यावापृथिवी च्यावापुथिव्यौ जनिं खजनिषातां ॥ जनेलडिः व्यत्ययेन
परस्मेपद्ं ॥ आपश्च यमुदपादयन् वेदयुतरूपेण त्वष्टा च यमजनयत् भृगवश्च य॑
सरोभिवेकतेः स्तोचादिसाधनेलैव्धवंतः । भृगवोऽविंदन्निति द्युक्तं । ऋ०सं०१०. `
४४.२.। इठ्छन्यं स्तुत्यं यं प्रथमं मातरिश्वा वायुरूदपादयत् छन्ये देवाश्च मनवे
" राज्ञे मनोरथाय यजचं यषटव्यमम्निं ततक्षुः निष्पादित वतः ५ क
क | ॥अखयदश्मी॥
। . संल देवा दधिरे हव्यवाह पुर्स्पृरो मान॑षासो यजंचं।
स या्म॑नमरे स्तुवते वयां धाः प्र देवयन्यशसः सं हि पू्ीः ॥१०॥
सयं! ा। देवाः । दधिरे । हव्यऽवाहं । पुरऽस्पृहः । माद्षासः । यजं ।
+
8 ` ॥ ऋनेदः ॥
५
हे अमरे हव्यवाहं यं त्वा त्वां देवा दधिरे धारितर्वतो माषाः
परस्पृहो बहुकामान् स्पृ यंतो यजचं यष्टव्यं टधिरे धारितवंतः हे अग्रे स लं
यामन् यामनि यज्ञे स्तुवते मद्यं वयोऽननं धाः। देहि । हे अमरे चत्नो देवयन् देव-
कामो यजमानः पूर्वीव वहूनि यशसो यंसि । सं हीत्युपसमेश्चुतेयोग्यक्रि
याध्याहारः । संप्राप्नोति खत्टु ॥
॥ इत्यष्टमे प्रथमस्य दिततीयो वगेः ॥ ¦
जगृभ्मा त इत्यटचै पंचमं सूक्तमांगिरसस्य सप्रगुनानन आष चेषभं । विकुंटा
नामासुरस्री । सा चेदूसहं पुचं कामयमाना कृच्वांद्रायणादिकं तपस्तेपे ।
मत्सहशोऽन्यः कश्चिन्मा जनिेति वुदधुट् एव तस्याः पुचोऽजायत तादश
वेकंट इटो देव्ता । तथा चान॒क्रातं । जगृभ्मा्टौ सपतगरवेदुटमिंद् तुष्टावेत्यादि
गतो विनियोगः ॥ ५५
॥ तच प्रथमा ॥
जगृभ्मा ते दिंणमिंट् हस्तं वसूयवो वखपते वसूनां ।
विद्चा हि त्वा गोप॑तिं भूर गोनामस्मभ्यं चिचं वृष॑णं रयिं ट्: ॥१॥
जगृभ्म । ते । दर्धिंणं ! इद् । हस्त । वसु ऽयव॑ः । वखुऽपते । वसूनां ।
॥
विद्च। हि। ला गोऽप॑तिं। शूर । गोना । असभ्यं । चिच । वृषणं । रयिं । दाः ॥१॥
. वसूनां वखपते बहूनां धनानां स्वामिन् इट् ते तव दश्छिणं हस्तं वसूयवो वस-
कामा वयं जगृभ्म। गृहो मः। यथा बहुप्रदस्याधथिनो मह्यमदच्ञा न ग॑तव्यमिति हस्त
गृहि तद्त् । हे भूर विक्र त्व त्वां गोनां गोपतिं । अच वृच्यवृकिभ्यां स्वा-
मित्वं बहुत्वं च प्रतिपाद्यते । बह्ीनां गवां गोपतिं विच्च ' जानीमः। अत्तोऽस्सभ्य
चिच चायनीयं वृषणं वेकं रयिं धनं दाः । देहि ॥ क
छथ दवितीय ॥....
समूद धरुणं रयीणां ।
चिच वृष॑णं रयिं दः॥२॥
०१०. अ०४. सू०89.] ॥ अष्टमोऽ टकः ॥ -* "++
व्ायुधं शोननवजाद्यायुधं स्ववसं शोभनरसषणं सुर
चतुःसम॒द् चतुरः सम॒टान्यो यशसा व्याप्रोति तं धरूशं ` केषां ¦ रयी
त्यं पुनःपुनः कतेव्यं शंस्यं स्तुत्यं भूरिवारं भूरीणां टःखानां वारक
बहुनिर्वेरणौयं वा लां विद्चेति शेषः । तादश्णोऽस्मभ्यभित्यादि पूवैवत् । यडा हे
इट् उक्तगुणविशिष्टं पुबाख्यं रयिं दाः। टेहि ॥
॥ अथ तृतीया ॥
सुब्र्माणं देवतं वृहंत॑मुरः गभीरं पृथुवुंसमिंद् ।
श्युतच्छषिमुयमभिमातिषाहमस्मभ्यं चिचं वृष॑णं रयिं द्: ॥३॥
सुऽबद्याणं ! देव ऽ वतं । वृहतं । उरं । गभीरं । पुथुऽवुधरं । इट् ।
शरुतऽऋषि। उग्रं । अभिमातिऽसहं । सस्सभ्यं । चिच । वुर्षणं । रयिं । दाः ॥३।
हे इद् वं खबह्माणं। बह परिवृढं स्तृतिल षणं कमे । शोभनस्तुतिकमित्यथैः ।
देववंतं महातसुर् विस्तीणे गभीरमखरादिभिरगम्यं पृथुवु विल्तृतमूलं `
श्रुतच्छपि श्चुता षयो येनं तादश्मृषीणां ख्यापयित्तारं प्रथितज्ञानं वोय-
मृद्रूणंवलमत खवाभिमातिषाहममिमातीनां शच्रणामभिभवित्तारं हंतारम-
स्मभ्यं चिच पूज्यं वृषणं वषेकं पुचं रयिं धनं दाः । देहि । अथवा विशेषणवि-
शेष्यभावः । उक्तल्ृणं पुचाख्यं रयि दाः ॥
॥ अथ चतुर्थी ॥
सनदाजं विप्रवीरं तरुत्रं धनस्युतं भूणुवासं सुदं ।
दस्युहनं पूभिर्दमिंद् सत्यमस्मभ्यं चिचं वृषणं रयिं दाः ॥४॥
सनत् ऽवाजं । विप्रऽ वीरं । तस्चं । धनस्पृतं । मूणुऽवांसं । खऽ्टष्ं।
दस्युऽहनं । पूःऽभिदं । इट् । सत्यं । अस्सभ्यं । चिं । वृषणं । रयिं दाः॥४॥ `
सनद्वाजं ठब्धाननं विप्रवीरं मेधाविनं पुचं तस्तं तारकं धनस्पृतं धनानां
पूरङं स्प्र्टारं वा ॥ स्यृणोतेः स्पृश्तेवोत्तरपदं ॥ नप्ुवांसं वधेमानं सदस शेभ-
नवल स हनं शत्रूणां हंतारं पूभिदं शत्रूणां
ॐ
(1
पुरां भेत्तारं सत्यं सत्यकमाणं । =
| भदूवातं विप्रवीरं स्वषमस्मभ्यं विच वृषणं रथिं द्; ॥५॥ =
| | अश्व॑ऽवंतं। रथिनं । वीरऽवत। सहसिणं । शतिनं । वाज । इट् । =
भद्ऽवौतं\ विप्रवीरं । स्वःऽसां। अस्मभ्यं । चिच । वृषणं । रिं । दा ॥५
. अश्वावंतं बहभिरदस्पेतं रथिनं रथवंतं वीरवंतं वीरः पूरूषेरुपेतं सहसि
| ' सहस्वत । संख्यातगवादियुक्तमित्यथेः । भदूनातं भदगणं कल्याणः सवक
(४. ` परिवृतं विप्रवीरं किपरवीरे्ोपेतं स्वधौ सवस्य संभक्तार वाज बलवत
(1. इद शिटमुक्तं ॥ ` ष | ।
५ ˆ ॥ इत्यष्टमस्य प्रथमे तृतीयो वगः ॥
| ॥अथषष्ी॥ `
॥ वि प्र सपनगुमृतधीतिं खमेधां वृहस्यतिं मतिर्छा जिगाति। `
1 य ्ंगिरसो नम॑सोपसचयोऽ स्सभ्य॑ चिचं वृष॑णं रयिं द्: ॥६॥
प्र सप्र । कतऽथींतिं 1 सऽमेधां । वृहस्यतिं । मतिः। अच्छ । जिगाति
1
यः आगिरसः। नम॑सा । उपऽसच॑ः। असभ्यं । चिच । वृषणं । रथि । दाः ५६॥
गुं मां मतिः स्तुतिर्देवविषयाच्छा जिगाति । कीहशं सप्नगुं । ऋतधीति
सत्यकमाणं सुमेधां शोभनप्रज्ञं बहस्यतिं बहतो मंचस्य स्वामिनं! यः सप्रगुरा-
गिरसोऽगिरोगोचोत्मनरोऽहं नमसा नमस्कारेण देवान्ुमसद्यः । उपगतः । यज्ञा
नमसाजेनोपसद्च उपसटनीयो देवेर्याद्य इत्यथः । ताहशायास्सभ्यं मद्यं चिच
` वृषणंरयिंदाः॥
म० १०, अ०४. सू०8४.| ॥ अष्टमोऽषटङः ॥ ९
वनीवानो वनन्वतः ॥ हदसीवनिपाविति मत्वर्थीयो वनिप् ॥ मम सप्रगोदै-
तासो दूतसह्णः । टूता यथा भतुरभिमताधे प्रापणीयं प्रापयंति तङत्सत्यान्गु-
णान्प्रापयतः स्तोमाः स्तवाः समती स्वस्येद्रस्याससङहिषया अन्दक्त्डा बुदीरियान
याचमाना इद् चरति । प्राघ्रुवंति। पुनश्च त एव विशे्य॑ते। हरिस्पुश्णे हृटये स्प॒शतः
सत्यस्य प्रियभूता इत्यथेः॥ हद्युन्यामित्युपसंख्यानात् डरत्टुर् ॥ मनसा सन्चोदिक्तेन
वच्यमाना उच्यमानाः । अस्मन्यमिल्याटि गतं ॥
॥ अपाष्टमी ॥
यत्ता यामि टडि तनं इद् वृहतं छयमसमं जनानां ।
भि तद्छावापृथिवी गृणीतामस्मभ्यं चिचं वृषणं रयिं दाः ॥४॥
यत् । त्वा । यामि । टद । तत् । नः । इट् । वृहतं । क्यं । अस॑मं । जनानां ।
ऋभि। तत्। द्यावापुथिवी इतिं गृणीतां। अस्सभ्य। चिचं। वृषणं । रयि। दाः॥४॥
हे ईट् ता त्वां यडघ्यमाणं यामि याचामि । वणेलोपष्छांटसः। याच्यमानं
तद दि । देहि ॥ ददातेर्त्मोटि यत्ययेनं परस्मेपदं । बहुलं ंदसीति शपो त्दुक् ॥
तदिति सामान्येन निदिष्टं विशेषयति । बुहंतं महांतं शयं निवासं जनानामन्ये-
षामसममसाधारणं देहि । त्वया दातव्यं द्यावापृथिवी आअभिगुणीतां । अस्मन्य-
मित्याटि गतं ॥
॥ इत्यरटमस्य प्रथमे चतुथो वगः ॥
अहं भवमित्येकादष्चै षष्ठं सूक्तं ! पर्वसूक्तेन सप्रगुना स्तुतो इष्टः सबिद-
माटिस्क्चयेण स्वयमात्मानमस्तौत् । तस्महेकुटस्यदस्य वाक्यत्ादयस्य वाक्य स `
च्छषिरिति परिभाषयेद् ऋषिः । वेकुदस्येदस्य च स्तूयमानव्राद्या तेनोच्यते सा
देवतेति परिभाष् एव देवता । दशम्येकादशीसप्रम्यस्तिष्टभः । शि्टाखिष्टुवंत-
परिभाषया जगत्यः । तथा चानक्रातं ! सप्रगुस्तुतिसंहष्ट आत्मानमुत्तरेस्तिनिस्तु- ¦
५ ध ` हावाहं भुवमित्येकादशं्ये चिष्टुभौ सप्रमी चेति ॥ अतिरात्रे हितीयपयेाये होतुः ` 4
शस्त एतत्सूक्तं । सूचितं च । अहं सुवमपाय्यस्यांधसो मायेति याज्या । आ०६.४.।
` इति ॥ समूढवहस्य दशराचस्य तृतीये इंदोमे निष्केवल्येऽपेततसूक्तं । अहं भुवं तत्त॒ ४
द्वियमिति निष्केवस्यं । आ०८.४.। इति सूचितं ॥ ` 1 न
॥ ऋण्वेट्ः ॥ क
त. 4 जव प्रवमा ॥.... ~ -
अहं भुवं वसनः पूवयस्यतिरहं धनानि सं जयामि शष॑तः। =
भोजनं ॥१॥
मां हवते पितरं न जंतवोऽदहं दाभुषे वि भजा
अहं । भवं । वसनः । पृव्यैः। पतिः। अहं । धनानि । सं । जयामि । शद्छतः
॥
7 ५ प {४
+ ॥
मां । हव॑ते । पितर । न । जंतवः । सह । दाशुष । वि । भजामि ! भजन ॥१।
हमिंदो वसनो धनस्य पूर्व्यो सुख्योऽसाधारणः पतिः स्वामी भुवं । अभवं ॥
भवतिैडिः बहलं डंदसीति शपो लुक् । अचि श्ुधातुश्ुवामित्युवडदशः । अडा-
भावण्डांदसः ॥ तथाहं श्वतः । बहूनामैतत् । वद्योः चोः संवंधीनि धनानि
समित्य कीभावे। सह जयामि । किंच मासेव जंतवः प्राणिनो यजम्मना हवेते
छाह्यति। पितरं न। पिततरमिव पुराः। अहं दाशुषे दारे यजमानाय भोजनम
विभजामि । ददामि ॥ ०
॥ . थं हितीया ॥
८ । । |
॥) न प ५ $ ४ न
अहमिंदो रोधो वको अथ॑वैणएस्िताय गा अजनयमहेरधि । =
५
अहं दस्युभ्यः परि नुम्एमा ददे गोचा शिन् दधीचे मातरिश्वने ॥२॥
५५
आहं । इदः । रोधः । वसः । अथ्॑वेणः। चितायं । गाः । अजनयं । खहेः। अधि! = -
अहं । दस्युऽभ्यः। परि ।
नभ्णं। खा टदे । मोचा। शिन् । टधीचें। मातरिश्वने ॥२।
॥
१ 1
श चे 1 ~ ^ ॥
आद्यपाटस्येतिहासमाहुः। आथैवणं टध्यंचं मधुविद्ावंतमिंद् आगत्य मधुविा
कस्यचिन्न ब्रयां इति नियमितवान् । यटि ब्रयाष्वे शिरो हरासीत्युक्कवान्
चायैवणेऽश्िभ्यामवाच। इटं वेत्तन्मधु टध्यङ्मयवेणोऽश्िभ्यासुवाच । श जा°
१४.४.५.१६.।. अश्वस्य शीष्णौ प्र यदीमुवाच । ऋ° सं° १,११६. १२.। इति हि
` श्चुतिः। स चेद् स्आगत्य ट्धीचः शिरोऽहरटिति तचोच्यते। इटो ऽहमयवंणशोऽथवंणः
तथा चितयेतन्नामकायाघ्ाय कूपपतितायोचरणाथेमहेर्मेषस्याध्युपरि गा उटका-
नयं णप्राथेनं सं मा तपत्यभित
शमि ¦ संस्क
म०१०. ०४. सू०४४.] ॥ अष्टमो ऽ्टकः ॥ ११
स विनयन् । किमथे । मातरिश्वने म
कायषेये वषेकामाय प्रवषेयितु [पच्छ
पुचायं टधीच रुतन्ाम-
मद्यं चटा वज॑मतक्षदायसं मयि देवासो ऽ वृजन्रपि
ममानीकं सूयस्येव टु्टरं मामायेति ङतेन कैन च ॥३॥
मद्य । ष्टा । वज । खतशषत् । रायस । मयि । देवासः । अवृजन् । खि । ऋतं ।
ममं । नीकं । सयेस्यऽइव । ट्स्तरं । मां । आयति । कतेनं । कर्वन । च ॥३॥
रू सहसा नि शिशमि दाभुषे यन्मा सोमास उक्थिनो अम॑दिषः ४॥
हं ¦ एतं । गव्ययं । अश्व्यं । पभ्नु । पुरीषिणं । सायकेन । हिरण्ययं
₹। सहस नि। शिष्णमि। दामुषे। यत्। मा। सो मांसः। उकिथन॑ः। अमंदिषुः ॥४।
अहमेतं गव्ययं गोमयमश्व्यमश्वमयं हिरण्ययं हिरण्याले कायोपेतं पुरीषिणं
पुरीषमुट्कं सीररूपं । तङखतं पुं शचुसंबधिनं । जात्येकव चनं । पभुसंघमि
सायकेनायुधेनाजयं । तथा पुर पुरूणि सहखा सदखाणि शस्ताणि निशि-
रोमि टाणुषे हविदे्वते यजमानाय वेरिनाशयेत्यथः । कदेति `
नोपेत्ताः संतः । अथवा
उच्यते ¦ यरा मा मां सोमासः सोमा उक्थिनः ९
सोमेन श्खे्ोपेता यजमाना अमंरिषः । तपेयति ॥ `
। सथं पचमी ॥
अहमिदरो न परां जिग्य इडनं न मृत्यवेऽव तस्थे कट् चन ।
त १२ ॥ ऋग्वेद्ः ॥ ` ०४, ० १, ०९, |
अहं। इदः! न । परां । जिग्ये । इत् । धन॑ । न । मृत्यवे । अव॑ । तस्थे कट् । चन ।
सोम । इत् । मा! सन्वंतैः। याचत । वस॑ । न । मे पूरवः । सस्ये । रिषाथन ॥५॥ ।
[ प कि जन
॥।
टो धनस्य सर्वस्य स्वाम्यहं धनमात्मीयं न परा जिग्य इत् । नैव प
वयामि । मदीयं धनं न पराभूयत इत्यथैः । किंचाहं मृत्यवे सर्वेषां मारकाय कदा
चन कदापि नावत्तस्थे। नावस्थित्तो भवामि । इद्रभक्ता न मृत्युभाजो भवंति किलत |
किमु वक्घव्यमिंदरस्य मृत्युविरहे । यस्मादेवं तस्सात्सोमं स॒न्वतो हे यजमाना वस
युष्मदभिमतं धनं मेत् मामेव याचत । हे पूरवो मन्थाः सख्ये मा रिषाथन । .
मा रिष्टा भवच । मह्यं मा विनाशयत ॥ |
॥ इत्यष्टमस्य प्रथमे पंचमो वगेः ॥ ध
॥ अथ षष्ठी ॥
अहमेताञ्शाश्वसतो ददद ये वज युधयेऽ खत ।
` आ्धय॑मानों अव हन्मनाहनं ह्व्दा वटन्बन॑ मस्युनेमस्िनः ॥६॥
अहं । एतान् । शाश्व॑सतः । ऽद्धा । इंटर । ये । वज । युधये । अर्एवत ।
आऽडय॑मानान्। अव॑। हन्म॑ना। अहनं । हन्टहा। वद॑न्। अर्नमस्युः। नमस्विनः॥६॥
व ॥ 9
५
अहमिंद् एतान्वद्यमाणाञ्शश्वसतो भुणं प्राणतः प्रवृद्धवल्ाञ्श्चून् वाचा
५
वो । युग्मभूतानित्यथः । तानहनमिति संबंधः । एतानित्युक्तं कानित्याह । य
शव इटं शचूणां दारं । इदः शचरूणां दारयितेति निरुक्तं । इहशं वजं बतिविन !
यदा वजवंतं युधये युद्वायाकृणखत अकुवेत । तानेतानित्यथेः । पुनः कीदश्णन् ।
आद्यमानान् एहि युध्यस्वेत्या्यतः शचून् नमस्िनो नमनवतो बलान्नाम-
यिल्वानमस्युरप्रणतिशीलः सन् द््ट्दा हानि भयजनकानि स्थिराणि वचनानि
वट्न् अहनं ! हतवानसि ॥ ` क
1 चच संप्री ५
अभी$दमेकमेकों अस्मि निष्वाक्छभी दा किमु चय॑ः करति ।
` से न पषोन् मतिं हन्मि भूरि किं मा निंदति शच॑वोऽनिंदरा
नष्वाट् । अभि। हा । किं।
[4 २
॥ एकः। अस्सि। नि
४
मर १०. अ०४. सूर] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ १३.
अहमिदमिदानीमेकं शचुमेकोऽसहाय एव सन् खभ्यस्मि ! खनिभवामि । =
किंच निष्षाट् सपत्नाज्निःषहमाणोऽहं इया हावयसद्यो शच् छभ्यस्मि । किमि
रति । कुवैति । तानणभिभवामीत्यथेः। किं बहूना । सले न
निष्प नीणेव्रीद्यादिस्लभाननायासेन प्रतिहरति कषेकः तहत्पषाचि- `
षुरान्भूरि वहूञ्शचन्प्रतिहन्मि । मा मामनिंदा इंदरहिता इंट्मजानत इंट्विरो-
धिनः शचवो मासिंदं किं निंदंति । निंटितुमशक्ता इत्यथैः । खचाभिभवासीत्यादि
निस्त द्ष्टव्यं ॥
| ॥ ऋयाषटमी ॥
अह गुगभ्यों खतिथिग्वसिष्करमिषं न व॑चतुरं विछ धारयं ।
यत्प णेयश्च उत व। करंजहे प्राहं महे वुंचहत्य म्म रवि ॥४॥
अहं । गुगुऽभ्यः। त्तिथिऽग्वं । इष्वर । इषं । न । वृचऽ तुर । विषु । धारयं ।
यत्। पणय ऽघरे। उत । वा। करजऽहे । प्र। अहं । महे। वुचऽहव्य । अश्तुख्वि ॥४॥ |
अहमिंदो गुगुभ्य एतनासकेभ्यो जनपदेभ्यो ररूणायातिथिग्वमतिथिगोः
पुचं दिवोदासमृषिमिष्करं निष्कतोर वृचतुर शचरूणां हिंस् विशु प्रजासु सध्य
उषं नामिव तासामन्ं यथा भोगाय भवति तद्वटन्रस्यानीयं धारयं । धारितवा-
नस्सि। कदेति उच्यते! यद्यद् पणैयच्चे पणेयनामक्स्याखुरस्य हइननवति उतापि
च करंजह एतच्ामकस्य हननोपेते महे महति वृचहत्ये संमामेऽभुश्ववि ।
ुताऽ भवं ॥
॥ पथय नवमी ॥
प्रमे नमी साप इषे भजे भदरवामेषं सख्या कणत डता ।
दिद्यं यद॑स्य समिथेषु मंहयमादिदेनं स्य सुकथ्य करं ॥९॥ ध
प्र) मे। नमीं। सायः इषे मृजे । भूत्। गवा । एषे । सख्या । कृणुत । हिता । =
छं । यत्। अस्य । संऽद्येषं । महयं । खात् । इत् । एन । शस्य । उक्थ्य । कर ॥९।
मे मम मत्संबंधी नमी । नामकतवान्नमः स्तोचं । तदस्यास्तीति नमी स्तोता `
सापः सर्वेराच्रयणीय इषेऽब्ाय भजे भोगाय प्रभत् ! प्रभवति । तं मत्स्तोतार
र 9 १४०य,. ए, श
ष्
।
॥2
(न व्याय शरीराय
1 मत्ंबंधिनः स्तोतुजैयाथे समिथेषु संपरामषु
आदिदनंतरमेवेनं स्तोतारं शस्यं स्तुत्यमुक्थ्यसुक्याहे कर । अकार ।
~
॥ अथ दशमी ॥
प्र नेम॑स्मिन्दहरे सोमो अंत्गोपा नेम॑माविरस्था कृणोति
[गो
1
तिग्मभृगं वृषभं युयुत्सन् दुहस्त॑स्थौ बहुले बद्धो अतः ॥१०॥
प्र। नेम॑स्मिन् । दहणे। सोम॑ः। खंतः। गो पाः। नेम । खावः । अस्था । कृ गोति।
सः। तिग्मऽभगं। वृषभं । युयत्सन्। दुहः। तस्थो । बहुले । बद्ः। अंतरितिं ॥१०॥
[ ॥ ५
+
अन कि { = ॥ 0
नेमस्मिन् । नेमशब्दोऽदंपयैयः। यष्टाय्टा च च पुरूषो युध्यतो । तयोरेक
स्मिन्यष्टरीत्यथः। तस्मिन्रतः सोमो दहे । दश्यते । तं नेममङमेकं गोपा गोपा-
यितेदोऽस्या सेपणसाधनेन वजेणाविष्कुणोति । प्रकटयति । ष्एचुभिरनभिभूतं
करोतीत्यभेः। स यच सोमो न दश्यते स तिग्मणुंगं तीषूणायुधं वृषभं बाणान्वषे-
यंतमिदरेणानगृहीतं प्रति युयुत्सन् योद्धुभिच्छन् दुहो द्रोग्धा वद्धः सन् बहुले ऽध-
करेऽ तस्तस्य मध्ये तस्थौ । तिष्टति । यदैवं व्याख्येयं । नेमस्मिन्निदभक्तेऽतः
सोमो दहे । नेममन्यं गोपाः स्वभक्तरसषक इद्रोऽस्था वजेणाविष्कृणोति । `
आविष्करोति। वजेण पीडयतीत्यथेः। स नेमो दुहस्िग्मणुगं वृषभमिंदरयुयुत्सन् । ।
शिष्टं समान ॥
१ ॥ थेकाटशी ॥
` आरित्यानां वसूनां स्द्वियाणां देवो देवानां न भिनामि धाम \
ते मां भद्राय शव॑से तत्ुरप॑राजितमस्तृतमषांठ्ठहं ॥११॥
दित्यानां। वसूनां । रदरयाणं । देवः । देवानां । न । मिनामि । धाम॑ ।
ते। मा । भारय । शव॑से । ततुः, अप॑राऽजितं। अस्त॑तं । अषांठ्ठहं ॥११॥
णां यद्वा स्टरपु्राणां मरतां च देवानां
यादयो मा मां मदाय
र आदित्यानां वसूनां
म०१०. ०४. सू० ४९. ॥ अष्टमो ऽकः ॥ १५
अहं दामित्येकाटशच सप्रमं सूक्तं । वेकुंठ र्वषिर्देवता च । दितीयेकादश्यौ
चिष्टनो । शिष्ठा जगत्यः । अन्क्रांतं च । अहं दामंत्योपाघे चेति ॥ हितीये
रा्िपयाये मचावरूणस्येदं सूक्तं । सूचितं च । अहं टां पाता सतभिंदो अन्त
सोम । सा० ६.४.। इति ॥
॥ तच प्रथमा ॥
खरं टां गुणते पूब्ये वस्वहं बह्म कुणवं मद्यं वेनं ।
अहं भवं यजमानस्य चोदितायज्वनः सासि विश्व॑स्मिन्भरं ॥१॥
अहं । दां । गृणते । पूरये । वस॑ । अहं । ब्रह । कुणवं । मय॑ । वधंनं ।
अहं । भुवं । यजमानस्य । चोदिता । अ्यज्नः। साधि । विश्वस्मिन् । भरे ॥१॥
अहमिदरो गृणते स्तुवते पूव्ये मुख्यं वख धनं दां । अदां । अहमेव वद्य
परिवृढं कमं स्तृतिलक्षणं मद्यं वेनं कुणवं । करोमि । स्तोतुः संबंधि स्तोचं
तस्मे धनं प्रयच्छन् मह्यमेव वधेनं कंरोमीत्यथेः । तथाहं यजमानस्य मामुदहिश्य
यष्टधेनस्य चोदिता प्रेरको भुवं । भवामि । अयज्वनोऽयष्ः । अयशारमित्यथैः ।
तं विश्वस्मिन्भरे सवेस्मिन्नपि संग्रामे सासि । अभिभवामि ॥
॥ खथ डितीया ॥
मां धुरि नाम॑ देवतां दिवश्च ग्मश्चापां चं जंतवः ।
अहं हरी वृषणा वित॑ता रघू अहं वजं शव॑से धृष्णवा दद् ॥२॥
मां । घुः । इट् । नामं । देव्ता । दिवः। च । ग्मः। च। सपां । च ! जंतवः
अहं। हरी इति वृषणा। विऽनता। रघू इति । खहं। वज । श्वसे। धृष्णु । आ । टदे ॥२॥
इटं नामेद्रनामानं मां देवता देवानां मध्ये दिवो द्युलोकस्य । गमा पृथिव्या- `
पोऽतरिं । रतेषु लोकेषु जततवो जाता मा मामेव धुः । दधुः! धारयति हविभिः ` |
पुंस्वोपेतो विव्रता विविधकमोणो रघू लघू शीभरगती अश्वो नियोजयामि `
र्थे । तथाहं धृष्णु धषेकं वजमायुधं शवसे बत्करायाददे । स्वीकरोमि ॥ र
भश्च । खहं यज्लगमनाय संामगमनाय वा हरी हरितवणों वृषणा
॥ ऋग्वेदः ॥ [आअ० ए, ०१, व० $,
हमत्व कवये शिश्चथं हयेरहं कतसमावमाभिरू1
अहं भुष्णस्य प्रथिता वधयैमं न यो रर आये नाम दस्यवे ॥३
|. ~ आहं । अत्व । कवये । शिश्नथं । हथैः । अहं । कुत्तं। आवं ! भिः । ऊ ऽभि
अहं । भुष्ण॑स्य । स्र्थिता। वधः यमं। न\ यः। ररे । खाय । नामं । टरस्यवे ॥३॥
| क: | ॥ खथतुत्तीया॥ ` |
भे,
(५ अहमिंदोऽत्कमाच्छादकं शचुपुच कवय उ श्न ऋषये तस्य सुखाथे हेवं
. नद्रकरिः प्रहरिस्तत्साधनेरायुधेवौ शिश्नथं । ताडितवानःस्म । प्रथतिवैधकमे ।
| रकिंचाहं कत्समेतन्नामकमृषिमाभिरूतिभिवेधादिरूपे । कुत्साय शुष्णमभुषं नि
(4 हीरित्यादि संबार । रषणयव । अस्त । पर्वमेव कतान्यपि रशणानीदानी-
मिव कृतानीत्यनुवदति । ङू्साय भृष्णस्येतन्वामकस्याखरस्य प्रथिता हिंसिता ।
तस्य हननायेत्यथेः। वधर्वेजं यमं । प्रहरणाय नियमित्तवानस्मि। खपि चाहमाये-
मायसंवंधि । आयाणां देयमित्यथेः । ताणं नाम । उदट्कनामतत् । नामकमुट्क
दस्यवे श्चव उपक्षपयित्रे न रर। न ट्चवानस्सि। यत्वाये पूज्यमित्यसाधारण नाम्
दस्यवे न टच्ववानस्सि। ऋचेदस्यात्मस्तुत क्त्सरषणभ्ष्णवधादिकं आवः कुत्समिदर
| ष्णं पिपर कुयवं वृचमिदेत्यादिषु बहुधा प्रमंचितं ¦ पतोऽच
थविस्लरभयाच छ्टिख्यते ॥
॥ खथ चतुर्थी ॥
अहं पितेव वेतसूरमिर्धये तुपरं कसाय स्मर्दिभं च रथय ।
छ #
हं भूवं यज॑मानस्य राजनि प्र यज्धरे तुजये न भरियाधुषे ॥४॥
हं । पिताऽर्व ! वेततसून्। अभिष्टये । तुमं । कुत्साय । स्मत् ऽ चभ । च । रंधयं।
॥ । # |, नि,
अहं । भवं । यजमानस्य राजनिं। प्र! यत्। भरं तुजजये। न। पिया । आः
^ अहमदः पितेवं पिता प्रचायेव । स यथा तस्मे निवौहाथमभिमतं प्रदेशं
प्रसाधयति तददेतसन् एतन्नामकाज्ञनपदानभिष्टयेऽनीच्छते कसाय सहषय तुय
मं च रयं । वशमनयं । खहं यजमानस्य राजनि राजनाथ भूव । ऊभव।
जमानायाधृे ना
म०१०,अ०४, सू*४९.] ॥ अष्टमोऽ टकः ॥ १७
७ , "4 "` +» ` कौ द्वच चंचमीं ॥
अहं रथय मृगय चरुतवेणे यन्माजिंहीत वयुना चनानुषक् ।
अहं वेशं नम्रमायवेऽकरमहं सव्याय पञ्ुभिमरंधयं ॥५॥
हं । रंधयं । मृगयं । शुत्वै णे! यत्। मा । अजिंहीत । वयुनां । चन । आदषर्।
अहं । वेशं ! नरं । पायवे । अकर । अहं । सव्याय । पट्ऽगृभिं । खरधय ॥१५।
पहभिंदो मगयमेतन्रामकमसुरं श्रूतवेण एतन्नामकाय महषेये रंधयं । रध्य-
तिवेशगमने । वश्मनयं । यदयस्माच्छतवा मा मामजिरहीत । आओहाङ गतौ ।
अगच्छत् । तदेवोच्यते वयुना प्रज्ञानेन स्तोचेणान्दषर् अनुषक्तोऽभूत्। चनेति
पूरणः। अहं वेशमेतन्बामानं नखं प्रं कर । अ काषे ॥ करोतेलुङिः कमृदरूहिभ्यष्छद्-
सीति चुरङ्ः। अडभावष्डांदसः॥ आहं सव्यायेतनामकाय पञ्जभिमेतन्ना मकमरधय
॥ इत्यष्टमस्य प्रथमे सत्रमो वगः ॥
॥ खथ ष्ठी ॥
अहं स यो नव॑वासवं बृहद्रथं सं वृचेव दासं वृचहास्जं ।
यज्ञधेय॑तं प्रथरयंतमान्ुषण्दूर पारे रज॑सो रोचनार्करं ॥६॥
[` अहं । सः) यः। नव॑ऽवास्वं । बृहत्ऽरयं । सं । वृ्ाऽडव । दासं । वृचऽहा। खर्जं ।
८ यत्। वधेयं । प्रथयंतं। आनुषक् । टूर! पारे । रज॑सः। रोचना । खर्र ॥६॥
घ्हमिंद्रः सोऽसि योऽहं नववास्त्वं बृहदथं च वृचेव वृचमिव टदासमुपक्ष-
पयितारमिव नववास्त्वं बृहद्रथं चास्जं । अहं भस्नमकरवं । रुजो भगे । यद्यदा
वधेयतं वधमानं प्रथयंतं प्रथमानं चोभो शच्र् आचषगानषक्तः सन् रोचना
थ दूरे पारेऽकरं कृतवानस्मि ॥
॥ अथय सप्रमी॥
छ्महं सथेस्य परि याम्याभुभिः प्रेतशेभिवेहमानं स्रोजसा ।
. ` यन्मां सावो मष आह निरिज ऋधषे दासं कृत्यं हथैः ॥७॥
रोचनस्य रजसो लोकः
न क
+
अहं सयेस्य देवस्यासुभिः शीघ्रगामिभिरेतः
स्रोजसात्मीयेन बलेन प्रकर्षेण परियामि। परिग
मा मां मनषो मनुषस्य सावः सोमाभिषव आह ब्रूते । आड यतीत्यथः।
माह । निरजे । निणिगिति रूपनाम । यज्ञस्वरूप । तदानी
कर्तव्यं । हंतव्यमित्यथः ! दासमुप्पयितारं शचं हथेहेननसाधनेच्छधक् वृषे ।
पथक्रोमि । ऋथग्ि्यव्ययं पृथगर्थे ॥
त ॥आखधाष्टमी॥ =
अहं स॑प्रहा नहुषो नहर प्राच्रावयं शवसा तुवेशं यढ! `
अहं न्यन्यं सह॑सा सह॑स्करं नव व्राध॑तो नवतिं च॑ वश्यं ॥४॥ +
| अहं। सप्रऽहा। नहषः। नहुःऽतरः। प्र। अश्वयं । एव॑सा। तु वेशं । य
॥ | _ ति, ति \ ४
+
अहं । नि। अन्यं । सह॑सा । सहः। कर्। नव ' व्राधतः । नवतिं । च । वक्षयं ॥४॥
[1 धथ शधिः शकर
६
अहं सप्रसंख्याकानां पुणं श्चणां वा हंता! सप्र यत्पुरः शमे शरदीः । ऋग्वे
१,१७४.२. इत्युक्तं । यद्वा सप्र नसुच्यादीन् हतवान् । रिच नहुषो बधक्स्यापि
। नहृष्टरो ब॑धकतरोऽहं श्वसा बलिन तुवैशं यदुं च प्रा्रावयं । शचुसंबंधिगवा-
रिप्रदानेन श्रावित्तवानस्मि । तौ यथा लो श्रुतो भवतस्तथाकाषेमित्यथेः ।
किचांहमन्यं चास्मत्सोतारं सहसा बलेन सहो बलिनं करं । अकाषै॥ करोतेलुडिः |
कृमृहरुहीति चेरङ। अडभाव आः ॥ किंच नव नवसंख्याका नवतिं च नवति-
संख्या काश्च । नवोत्तरनवतिमित्यथेः । कथंभूताः । व्राधतो वधमानाः । वद्य ।
अवहं । व्यनाश्यमित्यथेः ॥ =. |
५ 1 ॥ ५ 1
42. 1 -ण्कषनवमी ॥
अहं सप्र. खवतों धारयं वृषां दूविल्व॑ः पृथिव्यां सीरा धि ।
अहमशेसि वि तिरामि सक्रतुयधा विटं मन॑वे गातुमिष्टये ॥९॥
। अहं। सप्त सवतः धारयं । वृषा । विल्वैः । पृथिव्यां । सीराः। अधि
6 0
युधा। विदं। मन॑वे। गातुं । इष्टये
भम , कथ 1
म०१०. ०४. सू०्४९.] ॥ अष्टमोऽषटङः ॥ १९
श्च मनवे मषयायेष्टये तस्य गमनाय गातुं मागे युधा संप्रहारेण । निरोध-
परिहारेणेत्यथेः। विदं । अलभं । प्रायद्छमित्यथेः । विदेत्ताभाषेस्य पुषादित्वात्
। पा० ३.१.५५. चेरङ् ॥
॥ यं ट्श्मी ॥
अहं तदाख धारयं यदाखु न देवश्चन त्व्टाधारयदुत् ।
स्पारे गवामू्ध॑ःसु वश्णास्वा मधोमेधु वाच्यं सोम॑माशिरं ॥१०॥
अह्। तत्! ्ास्। धारयं। यत्। खास्। न। देवः। चन। चटा । खधारयत्। रुशत्
स्यार! गर्वा । ऊधःऽस्। बक्ष्णास्। ञ्रा। मधोः। मधु । चाच । सोम! आऽशिरं ॥१०॥
अहं तत्मरसिडं पय स्रा गोषु धारयं धृत्तवानस्मि ॥ धृञ् धारणे । णयंतस्य
लङः रूपं ॥ यत्पय आस गोषु देवश्चन व्वा देवश्स्पी सूयो वादेवो न
चनाधारयत् धतु नाशक्रोत् । कीहर् पयोऽधारयमिति चेत् उच्यते रुशत् । दीप्रं
स्याहं स्पृहणीयं । केषु प्रदेशेषि्युच्यते । गवामूधःसु । उद्धततरेषु गवां पयोधा-
रणप्रदेशेषु । किच मधूटकं वक्षणासु । नदीनामेतत् । वहनंशीत्छास नदीषु
पारया मीत्यनुषज्यते । नद्युटक्धारणस्यावधिरूच्यते । आ मधोः । आओट्कोत्पततेः ।
गामिवषेसमयपयेत्तमित्यथेः । कीहशं मध्विति तट्च्यते । श्वाच्यं । श्ठाजमिति
शिप्रनाम । सिप्रगमनाह । यद्वा ्वाव्यमिं्युत्तरज् संबध्यते । श्चाच्यं सुखावहं
सोमं प्रत्याशिर धारयं ॥
॥ खथेकाटशी ॥
एवा देवाँ इदो वियये नृन् प्र ्योल्नेनं मधवां सत्यराधाः
विश्वेत्ता ते हरिवः शचीवोऽभि तुरासः स्वयशो गुणंति ॥११॥
एव । देवान् । इद्रः । विये । नुन् । प्र । व्योत्नेनं । मघऽवा । सत्यऽरांधाः ।
| विश्वां इत्। ता।ते। हरिऽवः। शची ऽवः अभि। तुरासं । स्वं ऽ यशः, गृणति ॥ ११॥ ५
अयानम् इद्भावं परित्यज्य कृषिभावेनाह । एवेवसुक्तप्रकरेण देवान्
नुदो देवः प्रवियये । प्रकर्षण गमयति । तस्मात्परचीः प्रजाः प्रवीयते प्रती-
चीजोायंत इति बाद्यणं । सिमन्यस्हायेन नेत्याह । च्योल्नेन स्वीयेन बलेन । कीश
इद्रः । सधवा धनवान् सत्यराधाः सत्यधनः। अथ प्रत्यष्टोणाह । हे हरिवो क ५
णि ते तव संबंधीनि येषु कमेखु तुरार्वरमाणा ऋत्विजोऽभिगृणंति । `
। =
19 ४ 1 र~ +
अभिष्टु वंति ॥ 3 7.
| म्र वो मह इत्य्टचेमष्टमं सूक्तं ! आदितो म । के ते नर इत्यादिके
५ अभिसारिरयौ । आदितो हौ दशाक्षरी ततो हौ दशको साभिसारिणी । तदुक्त
वैराजो जागती चाभिसारिणी । ततसख्िष्टबेका । ततो ड जगत्यो । पूव वहषिदेवते ।
। तथा चानुक्रातं। प्रवो महे सप्र िजगत्याद्य॑तं क तेऽभिसारिण्याविति ॥ महाजते
निष्केवस्य एततसृक्तं निविद्धानं । सूचितं च । प्र वो महे मदमानाया डति ५
निविद्धानं । ० ्आा०५.३. इति ॥ | ४
॥ तच प्रथमा ॥ | । [र
प्र वों महे मंद॑मानायांधसोऽचेों विश्वानराय विष्वामुवे। = .
इट्य यस्य खम॑लं सहो महि श्रवों नुम्णं च रोद॑सी सपयेतः ॥१॥ `
प्र। वः। महे। मंदैमानाय अंध॑सः। चे । विश्वानराय । विश्व्मुवे! `
` + स्य यस्व खऽमंखं सह मर्हि। च मृं घ रोदसी इति । सयवा ५१४
हे स्तोः वस्वं । पूजार्थे बहुवचनं । महे महते ऽधसः। अंधसेत्यथेः। सोमेन
मंटमानाय मोदमानाय विश्वानराय सरवैस्य नेते ॥ नरे संायामिति दीधः ॥
` विश्वाभुवे सर्वस्य भावयित्रे मद्यमिंदराय प्राच । अचेतिः स्तृतिकमो । प्रोचारय ।
यस्य ममेदूस्य समसं सु मंहनीयं सहो बलं महि महच्छवोऽन्ने नृम्ण खसं च
रोदसी द्यावापृथिव्यौ सपैयतः । पूजयतः । तस्मा इदराया्चेति समन्वयः ॥
| ` ॥अथद्ितीया॥
सो चिनु सख्या नय इनः स्तुतश्चकेत्य इदो माव॑ते नरं । ॥
विश्वास धूषँ वाजकृयेषु सत्मते वृचे वाप्स १५ भूर मंसे ॥२॥
[निः
म०१०. ० ४, सू०५०.] ॥ अष्टमो ऽ हकः ॥ २१
पुनः कतेव्यः। परिचरणीय इत्यर्थः । खच प्रत्यछ्षवाटः ।
४६
च बत्कृत्येषुं च वृरे वाप्सु मेधे वततेमानेषूटकेषु च निमित्तेषु हे णर त्सभि लहे ।
ऋअभिष्रयसे
॥ खथ तुततीया ॥
केते नरद् येतं इषे येते सुल्नं संधन्य१भिर्यछ्षान्।
के ते वाजांयासयांय हिन्विरे के श्तु स्वासर्वराख पोस्ये ॥३॥ `
के । ते। नरः । इद । ये । ते। इषे । ये। ते । सन्नं । सऽधन्य । इयस्ान् । `
ते। वाजय असुये।य । हिन्विरे । के। अप्ऽस्। स्वाखं। उवैरसु । पोस्ये ॥३॥
हे इट् ते क नरः के मनुष्या इति प्रश्चः । ते महातो मया ज्ञातव्या इत्यभि-
प्रायः । प्रशटव्यानाह ! ये नरास्ते तवेषेऽन्राय प्रभवतीति शेषः। ये चते सुखं
सुखं त्वदीयं खधन्यं धनयुक्तमियस्ान् गच्छंति । इयसतिगंतिकमो । त्रदीयमन्न
सुखं धनं च ये त्रभे ते के महात्मान इति । किच ३ ते तवारयायासरसंबधिनें
तेषां वधनिमित्ताय वाजाय बलाय हिन्विरे । प्रेरयति सोमादि हविः । के वाप्सु
त्वासु स्वापेकषितेषटकेषवैरास सर्व॑सस्याद्मास भूमिषु पोस्ये पुंसे चेति तेषु
निमित्तभूतेषु हविः प्रेरयंतीत्यन्वतेतते। उक्तविधा महातो दुलेभा इति भावः ॥
मा कक
भृवसत्वभिंदेति दशेषणैमासयोमेहंदस्य हविषो याज्या । सूचितं च । महां इटो य
ओजसा भरुवसत्वमिंट् ब्रह्मणा महान् । १.६.) इति ॥ देवकवां हविःषिद्रस्य ज्ये्ठ-
स्थेषेव याज्या । भुवस्वमिंद्र बद्यणा महाननमीवास इक्छया । खरा०४.११. इति हि
सूचितं ॥ एषेव भूनाम्येकाहे निष्केवस्ये सूक्तमुलीया । सूचितं च । शस्यसुक्तं बृह- `
स्पतिसवेन त्वं भुवः प्रतिमानं पृथिव्या भुवस्वमिद् बरह्मणा महान् । आ ९.५.।
इति ॥ अस्याः पाटस्तु ॥
भुवस्वभिंद् बह॑णा महान्भुवो विष्वैषु सव॑नेषु यज्ञिय॑ः।
भुवो नृ्यीत्नो विश्वस्मिन्भरे व्यष्टश्च मंच विश्वचर्षेणे ॥४॥
हे इट् त्वं बह्यणास्स्कतेन परिवढेन स्तोचेण महान्भुवः। अभवः ॥ भवतेर्तटि
भूसुबोख्विडीति गुणप्रतिषेध उवडादेशः ॥ तथा विश्वेषु सवेषु सवनेषु यक्ियो ग
यष्टव्यो भुवः । अभवः। तथा विश्वस्मिन्भरे संमामे नृन् नेतृणां शरणां च्योत्नः। |
च्यावयिताभवः । हे विश्वचषेणे सवस्य दृटरिद्र म॑चो मर्चा
भवः सर्वेषां मध्ये ॥ ग नः
| , ॥अथपचमी॥ ` : ।
ष अवा नु कं ज्यायान् यजर्वनसो मही त ओमाचां कृष्टयो विदुः! ।
असो कमजरो वर्धाश्च विषेदेता सव॑ना तूतुमा वषे ॥५॥
अवं । नु कं । ज्यायांन्। यज्ञऽ व॑नसः। मही । ते ओमात्रां । कृष्टयः । चिदु
#
असंः। न । कं । अजरः । वरधोः। च । विश्वा । इत्। एता। सव॑ना । तूतुमा । कृषे ॥५।
हे इ त्वं ज्यायान् प्रशस्यतरस्त्वं यज्ञवनसः संभक्तयज्ञान् स्तोतृन् च कं शिप्रमव ¦ |
॥ ऋध्येतारो च कमिति पटद्यं कुवैति तथापि हिकं चकमित्यादीनि नवोत्त-
णि पदानीत्युक्तवान्यास्काचायेः । अतः केवत्रानां हिकं नकमिग्येवमादीनां ` |
॥ क्ग्वेट्ः ॥ ` [अर ए, ०१, व०९.
#॥
यावानर्थः स एव विशिष्टानामपि। त्तिरीया अप्येकमेव पटं कुवेति ॥ आअवेत्युक्त
द्रस्यावनप्रसिदधिं टशेयति । हे इट् ते तवोमाचां रणं मही महदिदुः कृष्टयो
मनया ऋषयः ॥ खोमाचां । अम गत्यादिषु । ञ्ीणादिक खआचन्प्रत्ययः। ह्ांदस
उमदेशः ॥ किंच चमजरो जयारदहितोऽसः । भव । नु कं सिप्र वधाश्च । वधेस्व
हविगाज्यादिना । किंच विश्वेत् सवोखययेतानि सवना सवनानि तूतुमा
तूणोनि कृषे । करोषि ॥ कृषे । खांदसे लिटि इंदसि वेति हिवेचनाभावः ॥ , +
~ पखयवही॥
एता विश्वा स्वना तूतुमा वृषे स्वयं सूनो सहसो यानि दधिषे ।
शेषे
॥ 4.4 + 4. ४
एता । विश्छा। सव॑ना । तूतुमा । कृषे। स्वंय) सूनो इतिं । सहसः। यानि । ट्धिषे
94 थण भ पके ` थे, » क भः
वरय । ते । पाच । धमैशे। त
तना) यज्ञः। मं: बरं । उत्ऽ यतं । वच॑ः ॥६॥
4
| चानक्रातं। वषट्करेण वृक्णेषु भातु सौचीकोऽभ्रिरपः परविश्य देवैः:
५१ इुचस्वम्ने वक्यं । अतोऽ ग्रिवाक्येषु देवा देवताग्रिच्छैषिः। देवोक्तश्न्निदेवता देवा
ऋषयः । अनदेशपरिभिषयेदमुक्तरं च बे चेषटुभे विशेषानभिधानात् । तथा
म० १०. अ० ४. सू०५१.] ॥ अष्टमोऽ रकः ॥ २३
पाचं रणं मवव्स्साकं । किंच धमे धार्णायं तना धनं भववितिं शेषः ।
किच तभ्य यज्ञो मचः । इज्यते ऽनेनेति यज्ञकरणसाधनभतो मचो यजरित्यथेः
र्य परि वृदं शस्लमित्यथंः । तट्भयात्मके वच उद्यतं भवतीति शेषः ॥
॥ अपथ सप्रमी ॥ `
ये ते विप्र ब्रह्मकृतः सते सचा वसूनां च वखनश्च दावने ।
प्र ते सन्नस्य मनसा पथा भुवन्सद् सुतस्य सोम्यस्यांधसः ॥७॥
विप्र । ब्रह्मऽ कृतः । सुते । सचा । वसनां । च । वरखनः। च । दावने
सुन्नस्यं । मन॑सा । पथा । भुवन्। मद। सुतस्य । सोम्यस्य । अंधसः ॥9॥
हे विप्र मेधाविन् इट् ते तुभ्यं ये ब्रह्मकृतः स्तोचकृतो हविष्कतारो वा स्तोतारः
सचा संधीभूताः सते सोमेऽभिषुते वसूनां बहूनां धनानां वसनश्चेकत्य निवा-
सयोग्यस्य धनस्य च दावने दानाय परिचरतीति शेषः । अच वसनासिति
बहूवचनेनैहिकभोगसाधनानि धनान्यभिप्ेतानि । एकवचनांतिन च. निवास- `
योग्यं स्वमाख्यं घनमभिपरेतमित्यवगंतव्यं \ तेऽनषहातारः सुखस्य सुखस्य त्छाभाय
मनसा पथा मनोमार्गेण । स्तोचवत्मेनेत्यथेः ! प्रभवन् । प्रभवतु । उक्वसखदानाय
योग्या भवंलित्यथेः । कदेत्युच्यते । खुतस्याभिषुत्तस्य सोम्यस्य सोमसंबंधिनोऽध-
सोऽन्बस्य मदे सति ॥
॥ इत्य्टमस्य प्रथमे नवमो वगः ॥
महतरिति नवचै नवमं सूक्तं । वजभूतेन वषट्कारेण देवानां हविवेहनेन
च हतेषु धातृषु कनिष्ठः सीचीको नामाप्निवेषट्कारहविवेहनान्यां नीतो देवेभ्यो
कर अ
निगैत्यापः प्राविशत्। स च मत्स्यैः प्रदशितः सन्न्वेष्टमागतेर्दवेः सहेदमारिसूक्त- . `
अयेण संवादं क्तवान् । अस्य सूक्तस्य हितीयादियुजश्चतसरो विश्वे देवाः शस्तनेति `
षटचम्चरसक्तं चेति टशर्चोऽग्रिवाक्यं । अयुजः प्रथमायाः पचचो यमेच्छाम
मनसेत्येकाटशचैम॒च्तरसूक्तं च देवानां वाक्यं । त्र तदद्य वाचः प्रथमं मसीयेति
थ ` क
)
\
५ ता
आसन् ते देवेभ्यो हव्यं वहतः प्रामी यंत सोऽग्निरविभेदित्थं वाव स्य ्ातिमारि
ष्यतीति स नित्तायतत सोऽपः प्राविशं देव त्यादि । ते° सं० २.६.६.।
तचाद्या देवा अग्निमाहुः ॥ ˆ = `
4 महत्ुर्वं स्थविरं तदासीचेनाविंशटितः प्रविवेशिथापः । कः
विश्वां अपश्यदहुधा ते अम्रे जातवेदस्तन्वो देव णकः ॥१॥ , |
महत्। तत्। उर्व स्थविर तत्। आसीत्। येन॑ । आऽविं्टितः प्ऽविवेिंथ। अपः ।
क विश्वाः। अपश्यत्। बहुधा । ते। ग्रे । जातं ऽ वेदः । तन्व॑ः। देवः । एकः ॥१॥ 1
. तटुस्वं वध्यमाणं प्रावरणं महत् स्थविरमत्यतं स्थूले च तदासीत् येनोर्बेना-
विष्टित आवेशटितः सन् हे ग्रे प्रविवेशिथापः । उदकानि प्रविष्टवानसि । हे
अग्रे जातवेदो जातप्रजलान विष्छाः सवोसतन्वस्तनूः सवण्यगानि बहुधा बहुपर-
कारमेको देवोऽपश्यत् । ह्टवान् ।
व ` ` ॥अथितीया॥ वि
को मां द्द कतमः स देवो यो मे तन्वो बहूधा पयेप॑श्यत् ।
क्वाहं भिचावरुणा धियंत्यमरेविंश्वाः समिधो देवयानीः ॥२॥
कः मा। दटशे। कततमः। सः देवः। यः। मे! तन्वं: । बहधा । परिऽसखपश्यत्।
॥ क्कि कीनि भि वफ
हि $ र ~ |
कं! अहं ! भिचावरुणा। धियंति। अग्नेः । विश्वाः । संऽडध॑ः। देव ऽयानीः ॥ २॥
इदमग्र वाक्यं । एको देवोऽपश्यदित्ु्ते पृच्छति। रो मा मां ददश हृष्टवान् ।
स देवः कतमः। यो मे मम तन्वस्तनूबेहुधा बहुप्रकारं स्थिताः पयेपश्यत् परि-
दृष्टवान् । हे मिच्ावरूणा मिच्ावरुणो अग्रेमेम विश्वाः सवाः समिधो दीघ्रा
हृष्टा इत्युक्त यदि हष्टा्चेच्हि क श्यति क
० १०. अ०४. सू०५१.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ २५
रेच्छाम । तवा । बहधा । जात्तऽ वेदः । प्रऽ विष्ट । अग्रे! अप्ऽस्। ओषधीषु
तं । त्वा 1 यमः चिकेत । चिचभानो इति चिचऽभानो । दशऽखतसूष्यात् ।
ति ऽरोच॑मानं ॥३॥
एवमग्रिना पृष्टा देवा अभि बुवंति। हे जातवेदो जातप्रजाग्रे ला लामनेच्छाम।
कीहशं त्वां । अष्सृट्केप्रोषधीषु च वहुधा प्रविष्ट । अन्विष्य च तं तादशं प्रविष्टं त्वा
त्वां यमो देवोऽ चिकेत ज्ातवान् हे चिचभानो चायनीयरश्मे । कुच स्थितं
ज्ञा्तवानिति तट्च्यते । टश्शंतरुष्यात् । सअंतरूषयं गूढमावासस्थानं तच्च स्थान
दश्संख्योपेतं । तादशं स्थानमतिरोचमानमतीत्य प्रकाशमानं । खम्रेहि गूढानि
दश स्थानानि भवंति पुथिव्याट्यस्यो लोका ्ग्निवाय्वादित्यास््यो देवा आप
ओषधयो वनस्पतयः प्रारिशरीरमिति दश स्थानानि ॥
॥ अथ चतुर्थी ॥
होचाटहं व॑रुण बिभ्यदायं नेदेव मा युनजन्रच॑देवाः।
तस्य मे तन्वो बहुधा निविष्टा एततमथे न चिकेताहलमनिः ॥४॥
होचात्। अहं! वरुण। विभ्य॑त्। ञ्रायं। न। इत्। एव। मा। युनज॑न्। अच॑। देवाः!
स्यं) मे। तन्व॑ः। बहूधा । निऽवि्टाः। एतं । खथे। न। चिकेत । अहं । खम्रिः॥२॥
अनया देवगणा मां ज्ञाततवत्त इति निश्चित्य गृहनस्य प्रयोजनमाह । हे वरूण
देव अहं होचाडोत्तव्यात्। हविवेहनादित्ययेः। तस्माहिभ्यदायं । सागत्तवानस्मि।
अतो मा मामेवेवं पवप्रकरेणाचास्मिन्हविवेहनप्रयोजने नेच्युनजन् मेव योजयत
देवाः। तस्य ताहशस्य बिभ्यतो मे तन्वो बहूधा निविष्टा ऋष्सु । एतमथेमेतद्ध-
विववैहनकायेमभ्रिरहं न चिकेत । न बुध्ये । नागीकरोमि ॥
॥ अथ पचमी ॥
एहि मनर्देवयुयेज्ञकामोऽरकृत्या तम॑सि सषेषयम्रे ।
सुगान्पथः कणहि देवयानान्वह हव्यानि सखमनस्यमानः ॥५१॥ _
छ । इहि! मनुः । टेवऽयः। यज्ञऽ कामः! अरऽकृत्यं । तम॑सि । सेषि। उपरे ।
करम् पः + कुणि देवऽयानान्। वहं । हव्यानि । सुऽमनस्यमा नः ॥५॥
नेवमुक्ता देवाः पुनरप्रिमाहयंति । हे अम्र णहि । आगच्छ \ मनरमचयो
२६ ` ॥ ऋष्विद्ः ॥ `
यष्टा. मननीयो मनू राजा वा देवयुर्देवान्यष्टमिच्छन् यज्ञकामश्च भव
रहि । चिं ङुवैन् यज्ञकामो भवतीति चेत् उच्यते । अरंकृत्य केवलं तेजः पुंजमे-
वालेकुवैन् । यद्वेदमुच्चरच संबध्यते । वमलक्त्यात्मानमलत्कुवेन् तमस्यन्येज्ञ
तमशक्येऽधकारे क्षेषि । निवससि । हे अम्रे आगत्य च देवयानान् देवानं
चेमनुषया गद्धति तान्पथो मामान् सगान्कुणुहि। कुर ॥ कृवि हिंसाकरणएयोश्च !
धिन्विकृर्योरचतयुपरत्ययः ॥ संमत्या नो यज्ञनिष्पत्ैरदवयानाः खपया भवंति ।
वह हव्यान्यस्सदीयानि समनस्यमानः सौमनस्यमा चरस्वं ॥
॥ इत्यष्टमस्य प्रथमे दशमो वगः ॥
॥ अथ षष्ठौ ॥ 4 "4 4 `
अप्रः पूवे भात॑रो अर्थमेतं रथीवाध्वानमन्वाव॑रीवुः।
तस्मा्िया व॑रुण दूरमायं गोरो न सोभोरंविजे ज्यायाः ॥६।
छमरः। पूरव । भातरः । अथे । एलं । रथीऽडव । अध्वानं। अनु । आ। अवरीवुरिति।
३ ६
तस्मौत्। भिया। वरुण। दूरं । आयं । गोरः। न । से्ोः। अविजे। ज्यायां; ॥६।
अनयागरिः स्वपत्ायननिमिचमाह । हे देवा अग्रेमंम पूवं पूवेमुत्न्ना
ात्तरो भूपतिभुवनपतिभूतानां पतिरिति चयोऽयजा एतमथे हविवहनाख्य-
मथैमन्वावरीवुः। अनुक्रमेण वृत वं्ः ॥ तच वृणोतेयेत्टुगंतासुडिः भष्डांदसो
लुक् । बहुकं इंदसीत्यक्तं ॥ आवरणे दृष्टातः । रथीवाघानं । अध्वानं यथा रथी
वृणुते तडत् । ते भ्रातरस्तथा कुवैतो हताः । तस्मान्मरणाद्चिया भीत्या ह
वरुण दूरं देशमायं । किंच कछभ्रोरिषुसेषुधंदषो ज्यायाः सकाशद्रोरो न मृग
इव स यथा विभेति च्छेति वा त्दविजे । कंपे । ओविजी भयचलनयोः ।
अनुटातेत्तोदादिकः । तस्य लड्ु्तमे रूपं ॥
` ॥अथसप्रमी॥
यथां युक्तो जातवेदो न रि्याः।
| म०१०. अ०४. ९०५१.] ॥ अषटमोऽष्टकः ॥ २७
शि इदं देवानां वाक्यं । हे अम्र यदायुरायु्मजरं जरारहितमस्ति तत्ते कुमे
८ तथा तेनायुषा य॒क्तस्वं हे जातवेदो जातग्रज्ञ यथा न रिष्या न धियसे तथा कुमः,
खथ वहासि वह समनस्यमानः सौमनस्यं कुवेन् वोढव्यं वहन् । तदेव दशं-
यति । हविषो यजमानप्रचस्य भागं । केभ्यः । देवेभ्यः । हे सजात शोभन-
जन्मगे
॥ अधाष्टमी ॥ =
प्रयाजान्मे खनयाजांश्च केव॑तरानूजँस्वंतं हविषो दत्त भागं ।
। धृतं चापां पुरषं चौषधीनामग्नेश्च दीधेमायुरस्तु देवाः ॥४॥
, प्रऽयाजान्। मे। अनऽयाजान्। च। केव॑ततान्। ऊजैस्वंतं। हविषः। दच। भागं ।
धृतं। च। अपां पुरषं । च ओषधीनां । खम्रेः। च। दीध। आयुः । सस्तु । देवाः ॥५।
छनेनाभ्रिहेविर्वंहने दातव्यान्युक्का ट्ेति प्रतिजानाति । हे देवा मे मद्य
| प्रयाजान् प्रधानस्य प्रमुखे यष्टव्यानेतन्नामकान् हविभागान् तथान्याजान् अन
1 प्रधानात्पश्चाचषटवयानेत्ामकान् केवल्ानसाधारणान्दत् । प्रयच्छत । तथोजे-
6 स्वंतं प्रत्यभिधारणात्सारवंतं हविषः सर्वस्यापि चरूपुरोडाशदेभागं खिष्टकृदाख्य
भागं दच् । अथवोजैस्वंतं हविषो भागं प्रयाजान्याजाख्यं टचेति योज्य ।
किंचापां सारभतं ताभ्य उत्पन्नं वा धृतमाज्यभागादिसाधनं ओषधीनामोषधीभ्य
उत्पन्नं परूषं च भागं ट । किचाप्रेमेम दीधेमायुश्वासतु । वषट् कारकृतवधनय ना
कि भटित्यथैः । अमुभितिहासं प्रस्तुत्य कोषीतकिबराद्यणं तस्मादाहुरश्रयाः प्रयाजा
|. शओआगरेया अन्हयाजा आग्रेयमाज्यमाम्नेयः पुरोडाश इति । शएरीरदाया इ वा अग्नयो
१ भवतीति च ब्राह्मणं पुरूषाइुतियैस्य प्रियतमेति च ॥
ॐ < ~
४ ~ न ~ - =
. ॥ अथ नवमी ॥ 1
1 तवं प्रयाजा अ॑नयाजाश्च केवत उजैस्ंतो हविषः सतु भागाः।
त्वरि यज्ञो$ यम॑स्त् सर्वस्तुभ्यं नमतां प्रदिश्तखः ॥९॥ 1
तव॑ । प्रऽयाजाः। अन्ऽयाजाः। च । केवले । उजेस्वंतः। हविषः। संतु। नागाः
तव॑।अमरे। यजः। अयं। अस्तु सवैः। तुभ्यं । नमेतां । प्ऽदिशः। चतसः ॥९॥
~ व एः स
स
ˆ ॥ क्वेद्ः ॥ [० ४. अ० १, व०१२.
संतु । हे अग्रे अयं सवो
नमतां ! सत
नेऽसाधारणा ऊजैस्वंतो बलवतो हविषो भागाः
| तवास्तु । तथा प्रदिशः प्रदृ्टा मुख्याश्चतखो दिश
एहि हंवि्वेहेति शेषः ॥
॥ इत्यष्टमस्य प्रथम रकाटण्णे वगः | १६
घे देवाः शस्तनेति षड़चं दशमं सूक्तं सोचीकस्याम्रेराधे वेश्वदेवं । गतः
चितं च । विश्वे
सक्तविनियोगः । सुगादापनात्पूवैभाविनि जपे विनियुक्ता
देवाः शस्तन मा यथेहाराधि होता निषदा यजीयानिति ॥
॥ सेषा प्रयमा ॥ | । ४, ॥
विश देवाः शस्तनं मा यथेह होतां वृतो मनवे यन्निषद्य । `
प्रमे ब्रूत भागयेयं यथां वो येन॑ पथा हव्यमा वो वहानि ॥१॥
। विश । देवाः। शास्तन॑। मा। यथा । इह । होतां । वृतः । मनवे । यत्। नि ऽस ।
्र। मे। जूत। भागऽधेय। यथां । वः। येनं । पथा । हव्यं । आ। वः । वहांनि ॥१॥
; नो
एतत्सूक्तं कृत्माम्रेयं । हे विश्वे देवा यूयं मा मां शास्तन । अनलं टज ।
। 4 #
भवतः । यद्यस्मानिषद्य स्तौमि तस्माच्छास्तन । मे मम भागधेयं प्रतूत । यथा
वो यूयं भागं कस्यित वंतस्तथा तं भागं प्रतरूत येन च पथा वो हव्यमावहानि ।
वहनं करोमि ॥
८. 4 य चितीया ॥
अहं होता न्य॑सीदं यजीयान् विश्वं देवा मरूतों मा जुनंति ।
. अह॑रहरभ्विनाध्वयेवं वां ब्रह्या समिद्धवति साहंतिवो ॥२॥
अहं । होता । नि। असीद् । यजींयान्। विश्व । देवाः। मरूतंः। मा । जुनंति।
उपरहं;ऽपहः। अश्विना, आध्वयेवं। वां। बह्मा संऽइत्। भवति। सा।आऽह॑तिः ।वां॥२।
नयसीदं । निषसोऽ
व्यन् ूतनोऽह होत
विशे वयाप्ना मरतो देवा जुति
यथेह यज्ञे होता देवानामाद्भाता सन् वृतो होतुत्वेन वृत्तो ऽहं मनवे स्तौमि
सन् नय शोऽस्मि। निषदने तं निषखं
भरेरत हविवंहनाय । हे अश्विना वां युव
न म - न <
8
॥
॥
म० १०. ऋ० ४, सू०५२.] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ २९
केच सा स इत्यथेः। स च समित् समिडश्चदरमा वां युवयोरहोमाथे वां युवाभ्यां
क्रियमाणायाध्वयेवकमेण आह तिभेववित्यथेः । सोमात्मरो हि चंदमा इयते ।
एष वे सोमो राजेत्युपक्रम्य तदेवोभयं भवतीति हि खंटोगबाद्णं । अथवेवं
योजना । याहुतिराध्वयेवमनिततवह्यां होतव्या सा वां युवयोयुवाभ्यां भवति ।
भवत् । खध्वयेवं वामित्यस्येव विवर्णमेतत् ॥
॥ अथ तृतीया ॥
अयं यो होता किर स यमस्य कमपुहे यत्समजति देवाः ।
अरहरहजायते मासिमास्यथा देवा द॑धिरे हव्यवाह ॥३॥ `
यं। यः। होता। किः ऊ इति सः। यमस्य । कं। खपि। ऊहे। यत्। सं ऽखजंति। टेवाः।
ऋअहंःऽअहः। जायते । मासिऽमांसि । अथं । देवाः । दधिरे । हव्य ऽ वाहं ॥३॥
योऽयं होता स रिः। को भवति। कीहभो भवति । तस्य को व्यापार इत्यथेः।
नस्योच्रमुच्यते । यमस्य मल्योभीतिः सनिति शषः ! कमपि हतमूहे । वहति ।
यडा सवेमुिग्जातं नियमयतीति यमो यजमानः । तस्य कमपि हुतमूहे वहति
देवान्प्रति यत्समंजंति यद्विः प्राघ्रुवंति देवाः । रिचाभ्निरहर्हः प्रतिदिनमभि-
होचाथं जायते । प्राटुभैवति । तथा मासिमासि प्रतिमासं जायते पितुयज्ञाये ।
एतत्कालइयमुपत्ठस्षणं पक्षचतुमासषण्माससंवत्तरादीनां । अपरे पुनरेव-
माहः । अहरहः सूयात्मना जायते मासि मासि चंद्रात्मनेति । अथ तमिममभ्निं
टेवा दधिरे हव्यवाहं ! हविषां वोढारं । एवमभ्रिरात्मानं स्वयमेवोक्तवान् ॥
॥ अथ चतुर्थीं ॥
मां देवा द॑धिरे हव्यवाहमप॑म्लुक्तं बहू कच्छा चरतं ।
अ्रिविहयान्यज्ञं न॑ः कस्ययाति पंचयामं विवृतं सघ्रततुं ॥४॥
मां। देवाः । दधिरे! हव्यऽवाहं । खपऽम्तुक्त । बहुं । कृच्छ्रा । चरत ।
अग्निः विद्वान्। यज्ञं। नः। कस्ययाति। पंचऽयामं। जि ऽवृत । सप्ऽततु ॥४॥
मामन्नं देवा हव्यवाहं हविर्वोढारं टधिरे । कृतवंतः । कीदशं मां । अपम्तयुक्त त ।
मनीषया रा! ट्धिर इ्युच्यते। अयममप्नि विदान् सवे जाननोऽ स्माकं यज्ञ करः
म्यागतं । बह कृच्छ्रा बहूनि कृच्छाणि स्थानानि चरतं गच्छतं । कया = `
कल्ययाति।
३० | ॥ ऋग्वेदः ॥ ० ४. ०१, व्० १३,
कीदशं यक्तं पंचयामं । पंचविधगमनं । पांक्तो हि यज्ञः। चिवृत्तं । सवनचयभेदन
चिप्रकारं । सप्तत । सप्तभिष्ंदोमयेः स्तुतिभिविंस्ृततं ॥
॥ थ पंचमी ॥
आ वों य्यमृतत्ं खवीरं यथां वो देवा वरिवः कराणि
आ बाहो वैजमिंदरस्य घेयामथेमा विग्डाः पृतना जयाति ॥५॥
आ । वः! यशि । अमृतऽल्वं । सुऽ वीर । यथां । वः । देवाः । वरिवः । कराणि ¦
आ । बाड्धोः। बज । इंटस्य । धेयं । अथं । इमाः, विश्वाः। पृतनाः। जयाति ॥५॥
देवा वो युष्मानायस्ि । आयाचे । किं । अमृतत्मविनाश्त्वं खवीरं
चं च! हे देवा वो युष्मा वरिवः परिचये हवीरूपं धनं वा यथा कराणि
करवाणि तद्थमित्य्थः। किंचेद्रस्य बाद्धोवेजमाधेयां । साहयामीत्यथंः । अग्रेहा-
तृत्वाभाव इटरस्य सोमाद्याभावाइुबेलवेन वजधारणं नोपपद्यते । अतस्तत्कृता
५
जं माहयामीत्य्थैः। अथेवं सत्तीमा विश्वाः सवाः पृतनाः शचुसेना जयाति ।
जयति । जयतु वा ॥ |
॥ सथ षी ॥
चीणिं शता ची सहखांण्य॒मरिं चिंशचच देवा नवं चासपयेन् ¦
ञीध॑न्धुतिरस्तणन्बरहिरस्ा आदिद्ोतरं न्यसादयत ॥६॥
चीणिं। भता ची। सहसांसि। अभि । चिंशत्। च! देवाः। न व । च। असपययन्
जीन् धृतः अस्तणन् । बहिः। अस्मे। खात् । इत्। होतारं। नि। खसादयंत ॥६॥
पके अक #
चीणि शतानि चीणि सहस्राणि चिंशचचच नव च एतत्संख्याका देवा अग्मि
मामस्षपयन् पयैचरन् । परिचयोप्रकार उच्यते । धृतः श्षरद्धिराज्येरोश्न्। सिक्त-
-वंतः। अस्मा छग्रये मद्यं च वहिरस्वृणन् आस्तृत वतः आदित् आस्तरणनतर
होतारमाद्ातारं न्यसादयंत । नियमेनासादित वतः ॥
॥ इत्य्टलस्य प्रथमे ह्ाद्शो व्ंः॥ `
म०१०. अ०४. स०५३.] ॥ अष्टमोऽटकः ॥ ३१
॥ तच प्रथमा ॥
यमेच्छम मन॑सा सोऽयमागाद्यज्स्य विद्ान्परषश्चिकिवान ।
स नो यकदेवतात्ता यजीं यानि हि षत्सदतरः पूर्वा अस्मत् ॥१॥
यं। रेच्छाम। मनसा। सः। अयं। स्रा! अगात् । यज्ञस्य! विदान्। परूषः। चित
| न् |
सः। नः। यक्षत् देवऽताता। यजी यान्। नि। हि। सत्सत्। अंतरः। पू वैः। अस्मत् ॥१
यमग्रिमेच्छामान्वि्टवंतो वयं मनसा हविःप्रापणवुद्या । मद्यं ॑हवि
प्रापयविति वुद्धत्यथः । सोऽयमध्रिरागात् आजगाम । कीहश्णेऽग्निः । यजस्य
यज्ञं विद्वान् । तथा परुषः परूषि संधातव्यान्यगानि चिकितान् अभिगच्छन् ।
सोऽभ्रियेजीयान् यष्टृतमो नो ऽस्मान्देवताता देवतातौ यज्ञे यक्षत् । यजतु । नि
हि षत्सत् न्यसीटत्वतु वेद्याभिति शेषः । कीदशः सन् । अंतरः । ऋषिजां
यष्टव्यानां देवानां च मध्ये संचरन्! खअस्सत्पूवेः । अस्मत्तो देवेभ्यः पू वेभावी सन् ।
अग्निं समिध्य पश्चाडि देवा आहूयते ॥
दश्पूणेमासयोः पुराराधीत्येषा जा । सूचसुदाहतं ॥
॥ सेषा डितीया ॥
अरि रोत्तां निषदा यजीयानभि प्रयांसि सुधितानि हि ख्यत् ।
यजामहे यस्ियान्हतं देवां ऽव्छामहा ईड्यो आज्येन ॥२॥
राधि । होता । निऽसटा। यजी यान्। अभि । प्रयासि) सुऽधित्तानि । हि । ख्यत्
यजामहे । यसियान् । हतं । देवान् । ईच्छा महे । ई्गान् । आज्येन ॥२॥
अपयमग्रिर्रोता होमनिष्पादटको यजीयान् यष्तमश्च सन् निषदा वेद्यां निष-
टनेनाराधि । सिदधोऽभूत् । आहुतियोग्योऽभूित्यथैः । तथाभूतो ऽयं सुधितानि ॥
सषु निहितानि प्रयांसि चस्पुरोडाणदयन्नान्यभि हि ख्यत् । अभिचषे । सवतः
पश्यति। हीति पादपूरणः । कया वृद्धेति ! य्ञियान््व्यानाहृतिभाजो देवान् `
इत शीभ्रमाज्येन यजामहे तथेड्यान् स्तुतिभाजो देवान् स्लुलयेव्छामहा इति
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खरममतीषिः कव्या । `
= म करि चितं च । अग्निर्होता न्यसीदद्यजीयान् साध्वी-
मकर्देवः । आ० ३.१३. इति ॥ ५ ~ ~
॥ कण्वेटः ॥ [० ए, ऋप०१, व० १३,
॥ सेषा तृतीया ॥
साध्वीर्मकर्द्ववींतिं नो अच्च यज्ञस्य जिह्ामविदाम गुह्या
स आयुरागात्रभिरवसांनो भदराम॑कर्दवहूतिं नो अद्य ॥३॥
| साश्ची। अकः देव ऽवींतिं। नः । सद्य । यज्ञस्य । जिड्ां। खविदाम। गद्या ।
प्न {ए
सः। आयुः आ। अगात्। स॒रभिः। वसानः। भद्रं । खकः। देव ऽति । नः। अद्य ॥३॥
अयममिरद्य नो ऽस्माकं देववीतिं देवानामागमनवंतं देवानां हविभश्णोपेतं
वा यज्ञं साध्वीमकः। साधुमक्रोत्। वयं च यज्ञस्य जिड्धां गुह्यां गृढतरां जिड्ा-
मविदाम । कब्धवंतः स । अप्रिहिं यज्ञस्य जिह्ा तेन देवानां पानान्निद्धावे-
नोपचारः । स ताहशेऽग्निः सुरभिः सगंध आयुर्दवेदे्मायुष्यं वसान आच्छा-
टयन्ागात् सगच्छति । आरागत्य च नोऽस्मटथे टेवहतिं टेवानामाद्धानवंतं यज्ञं
भदामकः ! कस्याणं क्तवान् आद्येटानी ॥ | |
टश्पूणेमासयोः सामिधेन्यथे प्रेषितेन होचा तदद्य वाच इत्येषा जप्या ।
. सुगादापनात्पूवेमपि जणा । सूचितं च । तदद्य वाचः प्रथमं मसीयेति समाप
। ० १,२.। इति ॥ | |
| ॥ सेषा चतुर्थीं ॥
तद्य वाचः प्रथमं म॑सीय येनासौ अभि देवा असाम ।
ऊजोद् उत यज्ञियासः पंच॑ जना ममं होचं जुंषध्वं ॥४।
तत्। अद्य वाचः। प्रथमं । मसीय। येन॑ । अस॑रान्। अभि। देवाः। असम ।
ऊजेऽट्ः। उत । यज्ञियासः । पंच॑ । जनाः । मम॑ । होचं । जषध्वं ॥४॥
के ॥ [1
चते
इदमुक्तरं चाम्रेवोक्यमि्युक्तं । अघेदानी प्रथमं । मुख्यनामेतत् । वाचां मुखं
` तद्वाचो वचो वचनं मसीय । मंसीय । उच्चारयामि । येन वचसाहं देवाश्च
वयमसुरानन्यसाम । अभिभवेम । किं तत्मरथमं वचनमित्युच्यते । ऊजौदो हे
नाद् उतापि च यक्षियासो यज्ञाहा हे पंच जना देवमनष्यादयो यूयं मम होचं
बहूच्यमानेऽम्रिमनूदयंति सवे देवा इत्यभिप्रायः । अच
म०१०., अ० ४. सू० ५३] ॥ अष्टमो ऽकः ॥ ॐ
(छं दिव्यात्पा्स्ान् ॥५॥
पच । जनाः । ममं । होचं । जुषतां । मो ऽजातताः। उत । ये । यक्तियांसः
थिवी । नः। पाथिवात्। पातु! अंह॑सः। अतर । दिव्यात्। पातु । खः
पच जना देवादयो मम होचं हवमाड्धानं ज॒षंतां । सेवतां । अपि च गोजाता
यामुत्पन्नाः । यद्ञा गोशब्देन तज्जं पयञ्चादिकमुच्यतते । हविरथे प्रादुभूता
इत्यथः । ताहश्ण ये संति । उत्तापि च ये य्षियासो यज्ञाः संति ते मम
होचं जुषतां । रिच पृथिवी पुथिवीदेवता पार्थिवात्पृथिवीसंबधान्नोऽस्मा
नहसः पापात्प शतु । तथांत्तरिषशमतरिषरदेवता दिव्यादांतरिकछाट्हसः
स्मान्पातु ॥
॥ इत्यष्टमस्य प्रथमे य वगेः
मनि नहि । ख० १.११.। इति ॥ सग्रिहोबह्येमेऽणनयोटक्धारा खावणीया । सूचितं
। गाहंपत्यादविच्छिन्नामुदकधारां हर्तुं तन्व्रजसो भानमन्विहि । आ
२,। इतिं ॥ खग्न्यतरात्ये ्ातिक्रमणेऽनया गारपत्याहवनीययोमेध्य उदकेन
भस्मना चापूर्येत् । सूचितं च । गाहेपत्याहवनीययोरंतरं भस्मगाज्योदकराज्या च
सतन्तयात् । ० ३.१०.। इति ॥ आग्रिमास्तेऽयेषा धाय्या । सूचितं च । तंतु
तन्वनजसो भानमन्िद्येवा न इतने मघवा विरप्शी । सख०५.२०.। उति ॥
॥ सेषा षष्ठी ॥ ः
तंतु तन्वन्रजसो भामन्विहि ज्योतिष्मतः पयो रस धिया कृतान् ।
ऋनुर्बणं वयतत जोगुवामपो मभेव जनया देव्यं जनं ॥६॥
तंतु ।तन्वन्। रज॑सः भावं । अन । इहि।ज्योतिंषतः। पथः । रस् । धिया । कृतान्। `
` अनर्व । वयतत । जोरगुवां। अप॑ः! मनः । भव । जन्यं । देव्य
हक १ त्त् विस्तारयन् रजसो रजनात्मकस्य तमो कस्य कः कंस्य ३ भातं
णए0ा,. प
॥ ्ग्वेट्ः ॥ [० ४, ० १, व० १४.
भासकमादित्यमन्विहि । अगच्छ । रश्मिडाया सूयमडल प्रविशेत्यथें
ज्योतिष्मतः प्रकाशवतो यज्ञस्य पथो गमनमागान् सथवा ज्योतिष्प |
स्वमस्य पथो मामीन्देवयानान् रक्ष । पाठय । कीहश्णन्म मीन् । धिया
ऊतान संपाटितान् । किंच सोऽगिजोगुवां स्तोतृणामपः । कुमनामतत् ।
4 । व्याप्यं कमीानुस्बणमनतिरिक्तं वयत । करोतु ! यदेवं यज्ञ उर्बण क्रियते तः
1 चेषा शंतिरिति हि ब्राह्मणं । स त्वं मनुभैव । संतव्यो भव । स्तुत्यो भवेत्यथं
किच रिव्यं जनं देवसंघं जनय ! उत्पादय । यज्ञाभिगसन वत कुवित्यथेः ।
(1 धव
॥ थ सप्रमी ॥
अक्षानहो नद्यतनोत सोम्या इष्कुणुध्वं रशना ओत पिंशत ।
अष्टा वंधुरं वहताभितो रथं येन॑ देवासो अनयन्नभि प्रियं ॥७॥ |
अषक्षऽ नहः । नद्यतन ! उत । सोम्याः । इष्कणध्वं । रशनाः ख । उत । पिश्त। |
५
| क वि कैक |, वि
, ञ््टा ऽव॑धरं। वहत । अभितः । रथं । येन॑ । देवासः अनंयन्। अभि । प्रियं ॥७॥ (
| ष ,
अच यज्ञजिगमिषवो देवाः परस्परं ब्रुवते । हे सोम्याः सोमाहौ देवा यूमम-
छानहोऽसेषु नद्यान् वंधनीयानश्वान्रद्यतन । नद्यत । वभ्नीत रथे । उतापि च
` गणना अण्ववंधनप्रयहानिष्कणध्वं । निष्कुरुत । सम्यक् संस्कुरत ॥ नकारलो-
पष्छांटसः ॥ उत्तापि च आ पिंशत । पिश अवयवे । अश्वान कुरूतेत्यथं
अषशावंधुरं । वंधुरं सारथिनिवासस्थानं ! अषटसंख्याकवधुरोपेतं रथं स॒येसंबधि-
नमभितः सवैतो वहत । सूयैरथेन साकं युष्मदीयाचथान्यज्ञं प्रति गमयतेत्यथेः ।
येन देवासो देवाः भरियमस्माननयन् अभिगमयंति तं रथमभितो वहतेति
संबंधः यदा तं यज्ञं प्रति वहतेति योज्यं ॥ 5 न,
वैवाहिके प्रयाणे यदि नावा ताया नदी स्यात् तदानीमश्मन्वतीत्यधंर्चेन
८ ¢ वधूं नावमारोहयेत् उच्चरेणाधेचेन नदीसुत्कमयेत् । सूचितं च । अश्मन्वती रीयते
सं रभध्वमित्यधेर्ेन नावमायोहयेदुरेणोत्कमयेत् । आ० गृ-१.४.। इति ॥ 4
1
_--------=---=-----------
10
=
ग
सेषा्टमी ॥
त॑रता सखा
1 विडांसः। पदा । गुर्यानि।
म०१०. ०४. स्०५३.] ॥ अष्टमो ऽकः ॥ ३५
अश्मन् ऽ वत्ती ।
रीयते । सं । एव्वं । उत् । तिष्ठत । म्र । तरत् । ससायः।
सअच। जहाम) ये अस॑न् । खशेवाः। शिवान्। वयं । उत्। तरेम । खभि। वाजान् ।
ऋअनयापि देवा यज्ञजिगमिषवः परस्परं बवते । अश्मन्वती नाम नरी
रीयते । गच्छति । री गरिरिषणयोः। तां यज्ञगमनायोचरीतुमु्चिष्ठत । उद्रच्छत ।
तथा कृवा प्रतरत । तां नदीमुह्घयत । हे सखायो यजमानस्य ससिभूता इति
देवानां संबोधनं । अचास्यां नद्यां जहाम । परित्यजाम । कानित्युच्यते ।
येऽ श्वाः । शेवसिति सखनाम.। येऽसखभता आसन् भवन् अस्मानाचित्य
वतेते ताञ्ञहाम । तथा क्वा शिवान् सुखक्याणि वाजाननानि हवीषयभि
प्ाघरुमुत्तरेम ॥
॥ अथ नवमी ॥
तवष्टा माया वेदपसामपस्तमो विभत्पाचा देवपानानि शंतमा ।
शिशीते नृनं प॑रं स्वायसं येनं वृश्चादेतशो बह्मणस्यतिंः ॥९॥
तवष्टा। मायाः। वेत्। अपसा । अपःऽ तमः। विभ॑त्। पाचां।देवऽपानानि। शंऽत॑मा।
शिशीते । नूनं । परमं । सऽञ्आायसं। येन । वृश्चात्। एतशः । बहणः। पत्तिः ॥९॥
पयं वष्टा देवशिस्पी मायाः । कमेनामेतत्। कमणि पाचनिमाणविषयाणि
वेत् । वेत्ति । जानाति । स च वष्टापसां शेभनकमेवतां मध्येऽपस्तमो ऽति-
श्येन शोननकमोा देवपानानि । देवाः पिबंति येषु तानि पाचा सोमपाचाणि
वित् धारयन्व्तैतत इति शेषः । स च व्ष्टा नूनभिदानीमस्नो हविवेहनायां-
गीकृते सति स्वायसं शोभनायःसारभूतं परण्तुं शिशीते । तीद्णयति । व्रा
पाचसंपाटनाथे येन परमूनेतश एतश्वणो ब्रह्मणस्पतिव्रेदणो मचस्य पाता
पाचादिसंपादनरूपस्य कमणः स्वामी वा वुश्चात् वृश्चति ॥ ध
॥ थ टशमी ॥
४) सततो नूनं कवयः सं शिशीत वाशीभियोभिरमृताय तरय । `
विह्ांसः पदा गद्यानि कतेन येनं देवासो सम॒तत्वमां न्मः ॥१०॥
सतः। नूनं । कवयः। सं । भिशीत। वाशीभिः। याभिः। अमृताय । तशय! =`
क्तेन । येन॑ । देवासः । अमृतऽलं । आनभुः ॥ १० ०। ०॥
१५४५6
कीतिं मघवन्महित्वा भूय इावृधे वीयोय । रे° आ०५.३.। इति ॥
॥ ऋग्वेदः ॥
हे कवयो मेधाविनस्वष्टमेम शषा ऋभवः सतः । संतत इत्यथः । प्र
यूयं नूनमिदानी सं शिशीत । अत्यथं तीदणीकुरत वाशीः । यानिवाशीनिः
पाचारएयमताय सोमाय । तत्पानायेत्यथेः। यद्वा युष्माङममतत्वाय तटथे तकछषष।
संपादयथ । हे कवयो विहांसो ययं गद्यानि गोपनीयानि पदा पदानि निवा-
सस्थानानि कतेन । कुरत । येन स्थानकरणेन देवासो देवा यूयममृतवमानभुः |
प्रापघ्रा यूयं । णवं स्वशिघानाह् ॥
॥ अथेकाटभी ॥
गर्भे योषामरद॑धुवैत्समासन्यपीयेन मनसोत जिद्धया ¦
स विश्वाहा सुमनां योग्या भि सिंषासनिं वनते कार इज्नितिं ॥११॥
ग । योषां । अदधुः । वत्सं । आसनि । अपीच्यैन । मन॑सा । उत । जिह्धयां
१ 1
सः। विश्वाह सऽमर्नाः। योग्याः छभि। सिसासनिः। वनते कारः इत्। जिति ॥११॥
ते महतो गर्भे मृताया गोमैध्ये याहङे चमेणि मृताया गोः संबंधिनि योषां
कांचिद्रामदधुः । धारितवंतः। निश्वमेणो गासरिणीत धीतिभिरित्युक्त । तथासनि
मृताया आस्ये वत्छमटधुः। केन साधनेन । खपीच्येन समनसा । देवत्वमाङां छता ।
उतापि च जिया । सादश्यप्रधानोऽ यं निर्देशः । जिह्नावदायतया वाश्येत्य्थंः ।
यदा जिद्धया युक्तां योषाभिति संबंधः । सिषासनिः संभजनशीत्टः स कभसघो
चाहा सर्वेष्हःस् सवदा योग्याः स्वोचिताः खमनाः स्तुतीरभिवनते । स च
संधो जिति शचुजयं कामं कार इत् कर्तेव । शचुजयकत्तेव ॥
॥ इत्यष्टमस्य प्रथमे चतुटेष्णे वगंः ॥
तां सु त इति षड्चं हादशं सूक्तं वामदेवगोचस्य बृहटुकथस्याषं चेष्टुभमदरं ।
तथा चानक्रातं । तां ख षड् बृहदुक्थो वामटेव्यो वेति ॥ समूढस्य दशराचस्य
िततीये छंटोम एतत्सूक्तं । सूचितं च । अपूव्या पुरुतमानि तां सु ते कीति महां
इट् । ा०४.७.। इति ॥ महाव्रते निष्केवस्यं एतत्सूक्तं । स॒चितं च । तां सु
च्छ ए. ० १, २०१५.
म० १०. स०४. सू०४४.] ॥ अद्टमोऽ टकः ॥ | ॐ.
तां। स।ते। कीति। मधऽवन्। महिऽत्वा यत्। त्वा। भीते इति रोदसी इति। अद्यत!
। खावः देवान्। सखा। खतिरः। दास॑। आओजः। प्र ऽजाये|। त्वस्थे। यत्। खशि सः ३ट॥१॥
हे इद. मघवन् धनवन् ते तव संवंधिनी महित्वा महल्वेनागतां की
खष्ु कौतेयामीति शेषः । किंच यद्यदा त्वा ल्लां प्रति भीते अस्रेभेयं प्राप्रे `
रोदसी द्यावापृथिव्यावद्भयेतां खवेत्यत्रूतां तदानी देबान्प्रावः । प्रारछषः । तथा
दासं देवानामुपकछषयकतेारमसरमात्िरः । व्यनाश्यः । असुरान् हत्वा देवानां
रणेन द्यावापुथिव्योर्भीतिं पयेहरः । इति यदस्ति किंच तल्स्या एक्स्ये प्रजये `
यजमानरूपाये यदत्सशि्षः प्रायच्छस्तां कीति कीतेयामीत्ययैः ॥ |
॥ अथ डितीया ॥
यट्च॑रस्तन्वां वावृधानो बलत्ठानीद् प्रब्रुवाणो जनेषु ।
मायेत्सा ते यानि युडधान्याहूनेाद्य श्रु नद पुगा विवित्से ॥२॥
यत्। खचरः । तन्वा । ववृधानः । बत्डानि । इट् । प्रऽबुवाणः। जनेषु ।
माया। इत्। सा। ते। यानि। युद्धानि। आहः! न । अद्य शच्। नन! पुरा। वि वित्से ॥२॥
हे इट् तन्वा शरीरेण स्तोचेण वा वावृधानो वधमानो जनेषु प्राणिषु
बत्ानि प्रब्रृवाणो वृचरवधाटिरूपाणि सामथ्यौनि प्रकषण कथयन्नचर इति
यत्संचारं कृतवानिति यदस्ति ते तव सा गतिमोयेत् मायेव । मृषेत्य्थेः ।
किंच यानि युद्धानि शचविषयाएयाहुवरैवते पुराविद ऋषयस्तान्यपि मायेव ।
कत इत्याह । अदयेदानी शचं हंतव्यं न विवित्से । न तभसे । खद्य मा भूत् पूवे
हतवानस्मीति यडषे तदपि नेत्याह । नन्विति प्रश्रे । ङि पुरा शचुमलभघाः ¦
तदपि नेत्यथेः ॥
॥ अथ तृतीया ॥
क उ न्त ते महिमनः समस्यास्मत्पूवे छषयोऽतमापुः
यन्मातरं च पितर च साकमजनयथास्तन्व 4; स्वायाः ॥३। १
ऊं इतिं \ नु! ते! महिमनः । समस्य । स्मत् पव । ऋषयः। खतं । सपुः।
यत! मात्तरं। च। पित्तरं। च) साकं। अजनयथाः । तन्वः । स्वायाः ॥३॥
हे इद्र ते तव महिमनो महिखः समस्य सवस्या पारमस्मदः
3४ ॥ चुग्वेटः ॥ [० ४, ०१, व्० १५,
ऋषयः क खापः । प्राघ्नुवन्। न कोऽपीत्यथेः। यद्यपि महं प्रख्यापयति तथापि
न कारत्छ्यनेति । तच कारणमाह । यद्यस्मान्मातरं पितरं च ¦ द्यः पिता पृथिवी
मातेति हि श्रुतं । अतो द्यावापृथिव्यावित्यथेः । ते उभे अपि साकं सहेव
। स्वायास्तन्वः स्वकीयाच्छरोरादजनयथाः। उद्पादयः। अतो नापुरिति संबंधः
क ॥ खथ चतुर्थी ॥
चत्वारिं ते खसुर्यीणि नासाद्।भ्यानि महिषस्यं संति ।
मंग तानि विश्वानि वित्से येभिः कमणि मघवञ्डकथे ॥४॥
चल्ारि । ते ¦ खसुये।खि। नाम । सटभ्यानि । महिषस्यं । संति ।
| त्वं । संग) तानि विष्चाचि। विक्छे। येभिः! कमणि । मध ऽवन्। चक्थे ॥४॥
कणषवके 1) प
॥
. हे इद्र महिषस्य महतः पूज्यस्य ते तव च्ायसुयारखयसखरविधातीन्यदा-
| भ्यान्यन्येरिस्यान्युद्रसृक्त उपांत्यवजिते दूर तन्नामेत्यादिषु प्रतिपादितानि
| यानि नाम नामङानि शरीराणि संति अंग ससे त्वं तानि विश्वानि सवी
- वित्से । अदाभ्यान्यहिंस्यानि वेत्सि जानासि । येभिर्येनामभिः कमणि वृचव-
५ धादिरूपाणि चकं कुरूषे हे मधवन् तानि वेत्सीति ॥
(४ | ॥ खथ पचमी ॥
त्वं विश्वां दधिषे केव॑त्ानिं यान्यावियो च गुहा वसूनि ।
काममिन्मे मघवन्मा वि तारील्वमांलाता लमिंदरासि दात्ता ॥५।
चं । विश्वा । ट्धिषे । केव॑तरानि । यानि । खाविः। या। च । गृहा । वसूनि।
काम॑। इत्। मे, मधऽ वन्। मा। वि। तारीः। वं! आऽ ज्ञाता लव । इट्। खसि। दाता ॥५॥
| हे डटर तरं विश्वा सवौणि केवल्ान्यन्येवामसाधारणानि वसूनि धनानि
दधिषे । धारयसि । विश्वानीत्युक्तं कथं विश्वत्वमित्यत आह । यान्याविराविभू-
तानि सर्वः प्रसिद्धानि वसूनि वासयोग्यानि धनानि संति या च गुहा गुहायां
६
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दि िभ
1.
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म०१०. ०४. सू०५५,] ॥ प्टमो ऽकः ॥ ३९
५ ॥ सथ षष्ठी ॥
यो सदधाञ्ज्योतिषि ज्योतिर्यो अस॑जन्मधुना सं सर्धूनि
ध प्रियं शूषमिंटरौय मन्म॑ बह्यकुतों वृहर्ुक्थादवाचि ॥६।
:। अरदधाह्। ज्योतिंषि । ज्योतिः। स्ंतः। यः। असुजत्। मधुना। सं! मधूनि।
ऋध । प्रियं । नूषं । इद्।य। मन्म॑ । बद्यऽ कुतः बृहत्ऽउक्थात्। अवाचि ॥६॥
य इटो ज्योतिषि द्योतमान आदित्याटिके तेजस्यंत्तज्यो तिस्तेजोऽटधात् धारि-
तवान् । यदादित्याग्न्यारिषु तेजो ऽस्ति तदिद्कतमित्यथेः । यश्च मधुना मधुरेण
रसेन मधूनि सोमादिमधुदटूव्याणि समसृजत् समयोजयत् । यज्वा मधुना । खच
मधुरब्टेन सवः सेव्यमान स्रादित्य उच्यते । तेन सह मधन्युटकानिं समसुजत् ।
खथ सप्रति तस्मा इद्राय प्रियं प्रीतिजनकं भूषं बं शचूणां शोषकत्वा्गतकरं
मन्म मननीयं स्तोचं बह्मङतो मंचकुतो बृहदुक्यात् प्रभूत शस्रयुक्तात् एतना-
मराहषेमेच्ो ऽ वाचि । उक्तमभूत् ॥
॥ इत्यष्टमस्य प्रथमे पंचदशे वगः ॥
ह टूर तदित्य्टचें चयोटशं सूक्त । कष्याद्याः पूवेवत् । ट्र इत्यनुक्रांतं । गत
। सूक्तविनियोगः ॥
॥ तच प्रथमा ॥
ट्रे तताम गद्यं पराचेये्ला भीते खह्लयेतां वयोधै ।
उदस्तभ्नाः पृथिवी द्यामभीके भातुः पुच्ान्मधवन्तिषिषा णः ॥१॥
दूरे) तत्। नाम गद्य । परचेः। यत्। त्वा । नीते इति । खड्येतां । वयःऽधे।
उत्। अस्तम्नाः। पृथिवी। यां । अभीक । भातुः । पुवान्। मघऽवन्। तित्विषाणः॥१॥ `
ऋअनया चत्वारि ते अकयाणि नामेव्युक्तस्याद्यं नाम स्तूयते । हे इद तेतव
तद्ष्यमाणं नाम सर्वेषां नामकं शरीरं पराचः पराङ्मुसेमेनथेः । मन््याणा- `
` भिवयथेः। गद्यं गोपनीयमप्रकाशितं सत् टूर इतो विप्रकृष्टे दूरदेशे वतेत इति
शेषः यद्यदा चा ल्वां रोदसी द्यावापृथिव्यौ भीते सत्ती आड्येतां ! अवेत्यव्रूतां ।
किम । वयोधे। अन्नस्य निधानार्थं । जगतोऽ नरस्य साधनायेत्य पि थः। तदानी
तेन शरीरेण रीर णभीके । अंतिकनामेतत् । ¦ पृथिवी द्यां चोः
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॥ ५१
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| @ ॥ ण्वेट्ः ॥ | ऋ ८, ऋप० १, व° १६.
कुवन् । हे मघवन् ~
षाणो दीपयन् ॥
परस्परवियुक्त यथा भवति तघास्तभाः।
इद भातुः पञजेन्यस्य पुचान् पुचस्थानौयान्तुद कसर
(८ | ॥ थ हितीया ॥
महत्तन्नाम गुद्यं पुरुस्पृग्येन भूतं जनयो येन भय ।
प्रतनं जातं ज्योतिस्य प्रियं भियाः समवित पंच॑ ॥२॥
महत्। तत्। नाम॑ । गुह्यं । पुरुऽस्युक् । येनं । भूतं । जनयः । येनं । भवयं
१ [|
परतनं । जातं । ज्योिः। यत्। सस्य । प्रियं । प्रियाः । सं । अविशत् । पंच ॥२॥
[0 [वय 1. 1 चवे स्वक = व्यमि
हे इद् तव तदरुद्यं गोपनीयमन्येरविज्ञातं पुर्स्युक् बहुभिवृच्यधिभिः
णीयमाकाष्णत्मकं नाम शरीरं महटत्यत प्रवड येन नाजा भूतं भव्य च पूवं जनयः।
उत्यादित्तवानसि। भूतभव्योभयान्वयाय येनेत्यथेस्या वृत्तिः स्यात्। आकाशात्म
परमेश्वरस्वरूपाद्भूतभव्यात्सकं जगदुत्पद्यते ! आङाशद्वायुरित्यादिगरुतेः
प्रत्नं पुणणं पूवेकात्रीनं यञ्ज्योतिर्घयो्तमानमादित्याख्यसमुदकाख्यं वास्यंदटुस्य
यभतं तच्च जातमत्पनं परियाः प्रीयमाणः पंच । पंच जना इति शेषः। भीमसेनो
भ भीम इतिवदेक्देशलक्षणा । निषादपचमाश्चलायो वणः समविशत । संविशते
स्वनिवेहाथे भजंत इत्यथः ॥
5. ` ॥सखयतृतीया॥ _ _
आ रोद॑सी ऋषुणादोत मध्यं पंच॑ देवाँ ऋतुशः सप्रसप्त ।
चतुखििंश्ता पुरुधा वि चे सरूपेण ज्योतिषा विव्रतेन ॥३॥ ^,
आ । रोद॑सी इति । खपृणात्। आ। उत । मध्य।पंच॑।देवान्। ऋतुऽशः। सप्रऽसंपर।
चतुःऽचिंशता। पुरूधा। वि चषटे। सऽरूपेण । ज्योतिषा । विऽव्रतेन ॥३॥ `
॥ ू 5 ~ ५ ५
तोऽपु-
मध्यं चुभूम्यपेष्या मध्यभूतमतरिशमपृणादिति
५ ष ५ ॥ श ^ १ ४ ^ #
` अयनिद्र् आत्मीयेन शरीरेण तेजसा वा रोदसी द्यावापृथिव्यावा स
` शात् । प्रयति | उतापि
। न
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~ य प = ध 1 श
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म०१०, ०४. स्०्पप.] ॥ अष्टमोऽषटकः ॥ ४१
चतुख्िशता चतुखिंशसंख्याकेन देवगणेन सह पुरुधा बहुप्रकारं वि चरे
विपश्यति । सवेदेक्ते । अष्टौ वसवं एकादश रद्रा डाटशादित्याः प्रजापतिश्च
वषट् कारश्च विराट् चेति चतुख्विंश्छं देवानां । केनेति तट्च्यते । सरूपेण `
समानरूपेण ज्योतिषा प्रकाशकेन विवतेन विविधेन कमणा ॥
॥ थ चतुर्थी ॥
यदुब ज्ओो्छः प्रथमा विभानामजनयो येनं पुषटस्यं पुष्टं ।
यत्ते जामित्मर्वरं परस्या महन्महत्या संसुरत्मेर ॥४॥
यत्। उवः। ओख्छ॑ः । प्रथमा । वि ऽभाना । अज॑नयः। येनं । पुष्स्य॑ । पुष्टं ।
यत् । ते । जामिऽतवं । अवर । परस्याः । महत् । महत्याः! असुरऽत्वं। एकं ॥४॥
अच प्रसंगल्सूयात्मकेदसंबधिन्युषाः स्तूयते ॥ हे उष उषोदेवते विभानां
विभासकानां यहनष्बादीनां प्रथमा प्रथमभूता सव्योच्छः । विभासनमकरोः।
खये द्युषसः प्रादुभेवंति पश्चाटन्यानि तेजांसि । येन च तेजसा पुष्टस्य पोष-
युक्तस्यापि पटाथेस्य पुटमतिश्येनं पोषयुक्तमादित्यलजनयः । उटपाट्यः । यत्
यद्वा ते तव जामिं बांधवसवरमवाङ्मुखं । सस्मटभिमुखमित्यथेः । कीदश्या-
स्तवेत्युच्यते। परस्याः! उपरि स्थिताया इत्यथंः। तदिद् महत्यास्तव महटतिप्रवृ्ध-
मेकमसाधारणमेकमेवं वारं प्रदृ्टबत्ठ वद्नं ! तवं वत्वेन कृत मित्यथेः ॥
महाव्रते निष्केवल्ये विधुं टदाणसित्येषा । सूचितं च । आ याद्यवेङ्गप
वधुरे्ठा विधुं द्द्ाणसिति ॥
॥ सेषा पचमी ॥
विधुं ददाणं समने बहनां युवानं संतं पलितो जगार ।
देवस्य पश्य काव्यं महित्वाद्या ममार स द्यः समान ॥५॥
विऽघुं। टदराणं । समने । बहूनां । युवानं । सते । पलितः । जगार ।
देवस्य । पश्य ! काव्यं । महिऽत्वा । अद्य । ममार । सः । द्यः । सं । आन ॥५॥
अनया काल्रात्मर इदः स्तूयते । विधुं विधातारं सवेस्य युद्वादेः कतर ।
६२ | ` ॥ ऋग्वेदः ॥ [० ४, प° १. वं० १७,
जण जगार । निगिरतीद्राज्ञया । एवसुक्तलक्षणं वध्यमाणल्दश्षणं
कालात्मकस्येटस्य महित्वा महचेनोपेतं काव्यं सामथ्ये पश्य ! पश्यत हे जनाः
तथा जरसा प्राघ्नोऽ यं ममार । बियते । स द्यः परेद्युः समान । सम्यक् चेते
पुनजैन्मां तर प्रादुभैवतीत्य्थः । तदेवं चत्वारि नामानि शरीराण्युक्तानि
॥ इत्यष्टमस्य प्रथमे षोडशो वैः ॥
५
॥ अथ षष्ठी ॥
शक्मना शाको अरुणः सपण आ यो महः शूरः सनाद्नं
यच्चिकेत सत्यमित्तन मोधं वखं स्याहेमुत जेतोत द्ात ॥ ६॥ |
शकम॑ना। शकः। अरुणः । सुऽपणेः। आ । यः। महः । शूरः । सनात्। अनीव्छः।
यत्। चिकेतं । सत्यं । इल्। तत्। न। मोधं। वख । स्पाहै। उत । जेता । उत। दाता ॥६॥
शाक्मना । शक्मेव शक्य । शक्मना बलेन शकः शक्तः । शकु शक्तो ।
स्वशयेव सवे कतुं शक्त इत्यथः । न हीद्स्य सहायांतरापेक्षास्तीदूतादेव । अर-
णो ऽरुणवणेः सखपणेः क्थिच्छोभनपणैः प्या गद्छतीत्यध्याहारः। उवसर्मश्रुतेयो-
ग्यक्रियाध्याह्यरः! यो महो महान् भरो विक्रांतः सनात् पुयणोऽनीनव्छोऽनीडो
नीडस्याकता । न हीट्रौऽग्रिवत् कचचिटपि यज्ञे निकेतनं करोति । एवं सुपणंरू- ^
पेणेदरमाह । स पस्मीद्रौ यच्चिकेत कतेव्यत्वेन जानाति तत्सत्यमित् सत्यमेव न तु ।
मोघं व्यथे भवति ! स स्पार स्यहणीयं वसत जेता जयति चभ्यः सकाशगत् ॑
उतापि दाता प्रयच्छति च स्तोतृभ्यः । न लोकाव्ययेत्यादिना षष्ठीप्रतिषेधः ॥
॥ खथ सप्रमी ॥
रेभिदैे वृ्णया पेस्यानि येभिरौददृचहत्यंय वज्ी। =
ये कमणः क्रियमाणस्य मह छंतेकमेमुदजायंत देवाः ॥७॥ | 1 क
आ। एभिः, ददे वृष्ण्या पोस्यानि। येभिः। ञी॑त्। वृचऽ हत्याय । वजी ।
\ ॥ ५. ४ 1 ॥ि & ‡
` ये। कमेणः। क्रियमाणस्य । महा । ऋतेऽक्मे। उत्ऽअ्जाय॑त । देवाः ॥७9॥ ` .
म०१०. ०६, सू०१६] ॥ अटमोऽष्टकः ॥ ४
वषेति । ये च मरतो देवा महा महदण क्रियमाणस्य कमणो वृशिप्रदान-
लक्षणस्य साहाय्याथेमृतेकमेमृतकमे वृष्टिप्रदानकमं प्रत्युटजायतोन्मुखा जायंते
स्वयमेव तेरेभिदेट् इति समन्वयः ॥
॥ अथाष्टमी ॥
युजा कमणि जनर्यचिश्वोजां अशस्तिहा विश्चमनास्तुराषाट् ।
पीती सोम॑स्य दिव खा वृधानः भूरो नियुंधाधमहस्युन् ॥४॥ ॥ि
युजा। क्माणि। जनयन् विश्चऽस्योजाः। अशस्तिऽ हा । विश्चऽम॑नाः। तुराषाट्
पीत्वी । सोम॑स्य । द्विः। आ । वृधानः। शूरः । निः युधा। अधमत् दस्यून् ॥४॥
स इंदो युजा मरतां साहाय्येन कमणि प्रवर्षणदीनि जनयन् उत्पादयन्
वि्छौजा व्याप्रवल्ोऽश्सिहय रसोदा विश्वमना व्याघ्रमना अत्यंतं मनस्वी
तुणषादट् तूणेमभिभवित्ता शच्रूणं । ए वंमहाद्भाव इदः सोमस्य सोमं पीती
पीत्वा दिवो दयु्ोकादागत्य सोमं पीत्वा वृधानो वधेमानः भरः सन् युधा-
युधेन प्रहारेण वा दस्यून् शचून्निरथमत् निधेमति । यु्ेनाखरानपवाधत
इत्यथः ॥
॥ इत्यष्टमस्य प्रथमे सप्रदश्णे वगः ॥
इदं त इति सप्रचै चतुर शं सूक्तं । वामदेवपुचो बृहदुक्थ षिः । चतुथी
पंचमीषष्ट्यो जगत्यः । आरितस्तिखः सघ्रमी च चिष्टभः । विश्वे देवा देवता ।
तथा चाचक्रातं । इटं ते सप्र वेश्वटेवं तु चतुथ्योद्यस्तिसो जगत्य इति ॥ गतः
सक्तविनियोगः ॥ आहवनीये वाद्यादिकार्णेनायतनानिष्कम्य शम्यापरासा- `
दवाचीने देशे दीणमाने सति तमभ्रिमनया पुनरायतने संवपेत् । सूचित च । `
आहवनीयमवदीणमानमवेक् शम्यापरासादिट् त एकं पर ऊ त एकमिति
स्वपेत् । ख० ३.१०.। इति ॥ (6.
4 ॥ सेषासूक्तप्रणमा॥
इदंत णक पर ऊ त एकं तृतीयेन ज्योतिषा सं विंश्स्व । 1
॥ पृग्वेट्ः ॥ | [० ४८, ०१, व्० १६,
इट् । ते। एक । परः। ऊ इतिं । ते। एक॑ । तुतीयैन । ज्योतिषा । सं ।
संऽवेने । तन्व॑ः। चारः । एधि । प्रियः । देवानां । परमे । जनिं ॥१॥
रतदादिभिवृहदुक्यो वाजिनं नाम स्वपुचं मृतं वटति । हे मृत पुच ते तवेदं ।
उपरि ज्योतिषेति वघ्यमाणवादबेदंश्ब्देन ज्योतिरभिधी यते । इटं ज्योतिरण्न्या-
` स्यमेकं । एकोऽ शः । अतस्तमसिं तव देहगताग्नयंशेन बाद्यमभ्निं संविशस्व ।
संगच्छस्व । तथा पर उ न्योऽपि ते तवे वायुख्योऽ शः । ते तव प्राण-
वायुाख्येनांशेन संविशस्व । शरीराप्निम्राणवायोवैद्याप्निवायौैकवार्दश््मिति
नावः। तथा तृतीयेन ज्योतिषादित्याख्येन तेजसा तवात्मना संविशस्व । सू्यग-
तात्मचेतन्यदेहगतात्मचेतन्ययोरभेदादंशवं । तचोऽहं सोऽसौ योऽसौ सोऽहं सूये
आत्मा जगतस्तस्थुषश्चेति श्युतेरात्मनः सूयेप्रवेशो युक्तः । तन्वस्तन्वाः संवेशने
तस्मन्सूये संविश्य चाररेधि । कल्याणो भव । कीहशस्वं । परियः । तेन सह
प्रीयमाणः । कीडशे तस्मिन् । देवानां परम उत्तमे जनिते जनके । देवानां
दयेतत्परमं जनितं यः सूयं इति हि श्युतिः ॥
[र | ॥ अथ हितीया ॥
तनष्टं वाजिन्तन्वं 4 नय॑ती वाममस्मभ्यं धातु शम तुर्यं ।
अहूतो महो धरूणांय देवाग्दिवीव ज्योततिः स्वमा भिंमीया; ॥२॥
अहूतः। महः। धरुणाय । देवान् । द्वि ऽइव । ज्योतिः। स्वं । आ। मिमीयाः ॥२॥
हे वाजिन् एतन्नामक पुर ते तव तन्वं शरीरं नयंती स्वशरीरं प्रापयती
तनूरियं पृथिवी । उभयोरपि पार्थिंवताचव शरीरस्य पृथिवीप्राप्रौ सत्यां
` तस्यास्तव शरौरनयनं युकं । ताहभी पृथिवी वामं वननीयं धनमस्मभ्यं धातु!
/ दधातु। श्म च खलं तुभ्यं धातु। दधात् सन् महो महतो
देवान् त्तव कारणभूतान् दिवीव ब । इ
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निपात्ताना
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म०१०. अ०४. सू०५६.] ॥ अष्टमोऽटकः ॥ प
५ वाजी । असि। वाजिनेन । खुऽवेनीः। सुवितः। स्तोमं । सुवितः। दिवं । गाः।
सुवितः। धमे प्रथमा । शद । सत्या । खवितः। देवान्। सवितः । अन्दं । पत्स॑ ॥३॥
हे पुच त्वं वाजिनेनान्नरसेन बलेन वा वाज्यसि तद्वान्भवसि । कीहशस्त्वं ।
सुवेनीः । खष्ट कांतः ॥ वी गत्यादिषु ॥ तादश्ल्वं सवितः सुष्र प्रररितस्वं स्तोमं `
पूते त्वया कृतं स्तोच तटभिमानिदेवसन् गाः । अन्वगाः । आअनुगर्ड । तथा
सुवितो दिवं गाः । तथा सुविते धमेचवया संपाटितानि धमीार्यनुगच्ड ।
कीहश्ानि । प्रथमा सुख्यानि सत्या सत्यफत्ानि । तथा सुवितो देवान् इदादीन्।
तथा सुवितः पत्म पत्तञ्ज्योतिरयाटित्याख्यमन्त गाः ॥
॥ अथ चतुर्थीं ॥
महिम्न एषां पितरश्चनेशिरे देवा देवेधदधुरपि ऋतुं ।
समविव्यचुरुत यान्यल्िषुरेषां तनूषु नि विविभुः पुन॑ः ॥४॥ `
महिग्बः। एषां ! पित्तरः। चन । ईशिरे, देवाः। देवेषु अटधः। अपिं । ऋतुं । | |
| सं।अविव्यचुः। उत। यानि अवििषुः। खआ। एषां तनूष । नि। विविभुः। पुनरिति ॥४।
पित्तरश्चनास्मत्पितयोऽपंगिरस एषां देवानां मरहिश्नो महद्नस्येशिरि । ईश्वरा
अभवन् । ते देवा खपि देवत्व प्राप्रा अंगिरसो देवेश्िंद्रारिषु ऋतु संकत्पमटधुः।
धृतवंततः । उतापि च यानि तेजांस्यविषदी्यते तानि समविव्यचः । संगता
| आसन्! एषां देवानां तनूषु शरीरेषु नि विविष्ुः । निविशति पित्तयोऽगिरसः।
[ तस्वमपि तथा कुवित्यथेः ॥
॥ अथ पचमी ॥
सहोभिर्विश्वं परि चक्रमू रजः पूवो धामान्यमिता मिमानाः
तनूषु विश्वा भुवना नि येमिरे प्रासारयत पुरुध प्रजा खनु ॥५॥ =.
` सहःऽभिः। विष्व॑। परि । चक्रमुः। रज॑ः। पूवे । धामानि । अमिंता। मिमानाः
तनूषु । विश्वां । भुव॑ना। नि। येमिरे। प्र! असारयंत। पुरुध। प्रऽजाः। अन॑ ॥५॥ `
मदीयाः पितरः सरोभिबेलेः स्वीयेविश्वं सवे रजो लोकं । लोका रजां- ` 1 |
स्युव्यत इति निरक्तं। पूवे पूवाणि धामानि स्थानान्यमिततान्येरमितानि मिमानाः
1 षणा, श । (५ न
४६ ॥ ऋग्वेदः ॥ `. | ० ए, ० १, व्० १४.
परिखिःदतः परिचक्रमः। पयैक्रामन्। रिच तथा कुवेतो विष्ठा सवाणि भुवना
भूतजातानि नियेमिरे । नियमितवंतः। किंच पुरुध पुरुधा बहुप्रकारं प्रजा खनु
ज्योतीषुदकानि वा प्रासारयंत । प्रसारितवंतः । अस्त्मितरः पूवेऽगिरस
स्वसामर्थ्येन सवै त्रोकं व्याय पुरातनानि महनष्टचादीनि परिच्छिद्य सवेभूतानि
नियम्य प्रजा अनूट्कानि तेजांसि वा प्रसारितवंत इत्यधेः । अतस्वमपयवं
क्विति भावः ॥ |
॥ अथ षष्ठी ॥
दिधां सूनवोऽख॑रं स्वविदमास्थांपयंत तृतीयेन कमणा !
स्वां प्रजां पितरः पिव्यं सह आव॑रेप्रदधुस्तंतुमातंतं ॥६।
धां । सनव॑ः ! असर । स्वःऽविदं। आ । अस्यापयत् । तृतीयेन । कमणा
स्वां प्रऽजां। पितरः । पिच्य । सहः। आ। अर्वरेषु। अदधुः । तंतु । आऽ ततं ॥६।
सूनव आदित्यस्य पुचा देवा अ्रंगिरसः । देवानां द्येतत्परमं जनिचं यत्सूयै
इति प्रटशितत्रादादित्यस्य सनव इति गम्यते । असुर बत्छ वत्तं स्वविंट् स्वेज्ञं
स्वगस्य लेभकं वादित्यं तृतीयेन कमणा प्रजोत्पदयाख्येन । बह्यचयेणषिन्यो यज्ञेन
देवेभ्यः प्रजया पितृभ्य इति श्रुतेः प्रजोत्पादनस्य तृत्तीयकमेत्वं। तेनादित्यं हिधास्था-
पयत । दिप्रकारमास्यापयंति । उदितं चास्तमितं च कुवेति। उद्राभं च निग्राभं
च जह्य देवा अवीवृधन्निति संचस्य ब्राञ्मणेऽसो वा आदित्य उद्यनुद्राभि एष
निमोचन्नियाभः । ते सं०५.४.९६.६.। इति श्रतत्वाहेवानामादित्यस्य दिःस्याप-
नमुदयास्वमयकरणमिति गम्यते । किंच पितरो मदीया संगिरसः स्वां प्रजां ।
उत्पादेति शेषः । पिष्यं सहः पितुरादित्यस्य संबधिनमपराभिभवस्षमं बल म-
वरेष्राटधुः । निकृषटेषु स्वप्रजाभूतेषु मयेषु स्यापितवंतः । यथा पिव्यं धनं
सम्यक् परिरच्य स्वपुचेभ्यः प्रयच्छंति तइत्ितुरा दित्यस्य प्रकाशदिवलं मन्घेषु
न्यट्धुरित्यथेः । किच ` तंतु प्रजासाततं विततं कृतवत इति शेषः । पुवपोचादि-
रूपेणानवच्छिननां प्रजामित्यथेः। अयं द्यातततंतुर्यत्मजेति ाह्यणं । प्रजातंतुं मा
१,११.१. इति
2० ब्रा०३
८
च । ततुं तन्वन् । ऋ° सं°१०.५३.६.। इत्यस्य
4
` र ~ 1
म०१०. अ०४. सू०५३.] ॥ अष्टमो ऽ रकः ॥ ४७
॥ अथ सप्रमी ॥
नावा न सोद प्रदिशः पृथिव्याः स्वस्तिभिरति दुर्गाणि विश्वं ।
स्वां प्रजां बृहदुक्थो महित्वा व॑रे्ठदधादा पंरषु ॥ ७॥
नावा। न। छोदः। प्रऽदिशः। पृथिव्याः, स्वस्तिऽभिः। अति । दुःऽगानिं। विश्वां ।
स्वां । प्रऽजां। वृहत्ऽऊंक्थः। महिऽत्वा। आ। अव॑रेषु। अट्पात्। आ । परु ॥७॥
नावा नोदकोत्तरणसाधनेनेव छोट उदकं यथा मनष्या नावोदकमतितरंति ।
यथा स्वस्तिभिः सेमेरा सवि दुगौणि दुःखेन गंतव्यान्यतितरंति तदङह-
दुक्थः स्वां प्रजां वाजिनं मृतं पुचं महित्वा स्वमहच्चेना वरेष्रग्न्यादिष्राटधात् ।
कृतवान् । तदा परेषु सूयादिष्राटधात् । एवमृषित्रैते स्वयमेव वा स्वात्मानं
परोशेणाह् ॥
॥ इत्यष्टमस्य प्रथमेऽष्टाटश्णे वर्मः ॥
मा प्र गामेति षडुचं पंचदशं सूक्तं गायचं चेश्वदेवं । रेष्वाकोऽसमातिनाम
राजा । तस्य बंधुः सु्वधुः भ्रुतवधुविप्रवधुशचेति चत्वारः पुरोहिता आसन् । ते
च गोपायनाः। स च राजा तास्त्यक्कान्यो मायाविनावृषी पुरोहितत्ेनावृणीत ।
ततो वंध्वादयः क्रंडाः सत इमं राजानमभिचरितवंतः । एतज्ज्ञाला मायाविनं
पुरोहितावेषामन्यतमं सबंध प्राणेवियोजिततवंतो । मृतस्यास्य भातरो बंधुः
श्रुत वंधुविप्रवंधुखिल्येते ऽ विनाश्राप्निहेतुभरूतमिद् हृष्टा जपंति स्म । अतस्तेऽस्य
सूक्तस्यषेयः । प्रतिपाद्यल्लादावतेमानं मनो देवता । तथा चानक्रांतं । अथ
हेष्वाको राजासमाति्गोपायनान्ब्वादीन्परोहितांसत्यक्कान्यो मायाविनो चे्ट- `
तमो मत्वा पुरोदधे ! तमितरे क्रुडा अभिचेरूः । अथ तो मायाविनो सवंधो
प्राणानाचिशिपतुरय हास्य भातरो मा म्र गामेति षट्कं गायचं स्वस्त्ययनं
जश्रेति ॥ अग्रिसमीपहेर्णतरगमनसमय इदं सूक्तं ज्यं । सूचितं च । प्रनजे-
दनपेक्षमाणो मा प्र गामेति सूक्तं जपन्निति ॥ महापितुयज्ञेऽयेतदत्िग्भिजेणं। ` 9
स॒चितं च । मा प्र गामाम्रे तं न इति जपंतः। खा०२.१९.। इति ॥ निविदः.
` स्थानातिपत्ताविदं सूक्तं शस्वा सूक्तांतरे निवित्मसेघ्नवया । सूचितं च । स्थानं
चेनिविदोऽतिहरेन्मा प्रगामेति पुरस्तात्सूक्तं शस्त्वा । खआ०६.६.। इति ॥
४ ॥ ऋग्वेदः ॥ अ० ७, अ०१, व° १९.
1
॥ तत्र प्रथमा ॥
मा प्र गाम पथो वयं मा यज्ञाद्र सोमिनः । मातः स्थुंनों अरातयः ॥१
मा प्र। गाम । पथः। वयं । मा । यज्ञात् । इट् । सोमिनः। मा । अंतरितिं। स्थः
` नः । अरंतयः॥१॥ ५
अचोक्ताख्याने शद्यायनकं । असमातिं राथप्रौ्ठं गोपायना सभ्यगमंस्ते
खांडवे सन्मास्ताथ हास्षमातौ राथप्रोष्े किल्ाताङुत्टी ऊषतुरसुरमायो तं ह
स्मान्न निधायोदनं पचतोऽग्रौ मांसमथासुरा अन्नं टग्ध्वेष्ारुवः पराबभूवुः
` तमसमातिं राथप्रोष्ठं गोपायनानामाहतयो ऽभ्यतपन् सोऽनवीटिमो रिल्ा- ।
| ताङु्टी इमा वे मा गौपायनानामाहूतयो ऽभितपंतीति तावत्रूतां तस्य वा
< स्वामेव भिषजौ स्व सावां प्रायश्चिचचिरावां तथा करिष्यावो यथा चेता नाभि-
तपतीति । तौ परेत्य सुबधोगोपायनस्य, स्वपतः प्रमच्तस्यासुमाहृत्यांतःपरिधि
न्यध्चामित्यादि । तं सबधोरसमादातु सांडवादसमाति प्रतिगखतो गोपायना
वटति । हे इद्र वय गोपायनाः पथः समीचीनान्मागेन्मा प्र गाम । मा परा-
गच्छाम । असमातिगृहमेव गच्छाम । मा च सोभिनोऽसमातेयज्ञात्मगाम ।
मा स्थुमा तिष्ठतु नोऽस्माकमतमेागेमव्येऽरातयः शवः । यज्ञा सोमिनः
सोमवतो यागान्मा प्रगाम ॥ |
५ ॥ खथ इडितीया ॥ |
यो यज्ञस्य प्रसा्धनस्ततुरदवेष्ठाततः । तमाहुतं नशीमहि ॥२॥
यः। यज्ञस्य प्रऽसाधनः। तंतु । देवेषु । आऽत॑तः। तं। आऽहुंतं । नशीमहि ॥२॥
४ ४ 1 +
योऽयमग्न्याख्यस्तंतुराहवनी यादिरूपेण विस्तृतो यज्ञस्य प्रसाधनः प्रकर्षेण
साधयिता देवैः स्तोतृभि्छेषिगभिरविस्तारितो वर्तेते वेद्यां तमाहुतं सवतो
हयमानं नशीमहि । प्राघरुयाम । नश्तियेभरिक्मी ॥ = `
पिंडपितुयज्ञे १ न्वा हवामह इति तृचेन पिंडाभिमानिनः पित्तर उप-
म०१०. अ०४,. सू०५७.] ॥ आअद्टमोऽ टकः ॥ ४९
॥ सथ तततीया ॥
मनो न्ता हुवामहे नाराश्सेन सोमेन । पितृणां च मन्म॑भिः ॥३॥
मनः। न। आ। हवामहे। नाराशसेन । सोमेन । पितृणां । च । मन्म॑ऽभिः॥३॥
वयं बधुश्युतवध्वादयो मनः खबंधोः संवंधि मायाविभिरपहतं ख धिप्रमा
हुवामहे । केन साधनेनेति तदुच्यते । नाराशंसेन नराशंसचमसगतेन सोमेन ।
नरः शस्यत इति नगशसाः पितरः । तेषां चमसानां कंपनमेव होमः । तथा-
विधेन सोमेन पितुणामंगिरसां मन्मभिमेननीयिः स्तोचैश्च ॥
॥ सथ चतुर्थीं ॥ = २
छातं एतु मनः पुनः ऋवे दाय जीवसे । ज्योर् च सथं दृशे ॥४॥
आ । ते। एतु । मनः । पुनरिति । ऋवे । ट्षाय। जीवसे ज्योर्। च । सूये । शे ॥४॥
हे सुबंधो ते मनः पुनरेतु । अभिचरतः सकाशत्पुनरागच्छतु । किमथेमित्यु-
च्यते । ऋत्वे कमंणे तो किक्वेदिकविषयाय दसाय बलाय च । यद्वा ऋषिऽपानय
टका प्राणाय । प्राणो वे टक्षोऽपानः ऋतुरिति हि शरुतिः । जीवसे जीवनाय
च । ज्योक् च चिरकालं सूये शे सूये दष्टं । खत्यंतंचिरजीवनायेत्यथेः ॥
॥ च पचमी ॥
पूर्ननैः पित्तरो मनो ददातु देव्यो जन॑ः । जीवं नातं सचेमहि ॥१५॥
` पुनः। नः। पितरः। मनः। ददतु । देव्यः । जन॑ः। जीवं । बाते । सचेमहि ५५।
नोऽस्माकं पितरः पितुभूता अंगिरसो जनः 1 तेषां संघ इत्यथैः । स च ५ ५
जीवं व्रातं प्राणादीदिियसंघातं पुनददातु। तथा देव्यो जनः। जनश्ब्द्; संघवचनः।
देवानां सघोऽपि जीवं ब्रातं च ददातु! वयं च तदुभयं सचेमहि । प्राघ्रुयाम ॥ `
॥ अथ षष्ठी ॥
वयं सोम वतते तव मनस्तनूषु विधतः । प्रजावतः सचेमहि ॥६॥
वयं । सोम
एण. श् ^.
हे सोम देव वयं वंष्यादयस्ठव बते तदीये कमेणि । व्रतमिति कमेनाम ।
म । बते। तव॑ । मन॑ः । तनूषु । विभ॑तः। प्रजा ऽ व॑तः। सचेमहि ॥६॥
॥ | ॥ क्रग्वेट्ः ॥ ` | | प्ण ७, ० १, व° २०.
तव तनूषु त्वदीयेश्ंगेषु च मनो विभतस्तात्पयेयुक्तां बुं धारयतः प्रजावतः
, ग्रजाभिः पुचपोचादिभियोक्ताः सचेमहि । संगच्ेमहि । जीवं नातं चेति शेषः ॥
॥ इत्यष्टमस्य प्रथम एकोनविंशो वगः ॥
यत्ते यममिति वादश्च षोडशं सूक्तमानष्ट्भं । बंध्वादय चछषयः सुवंधुदे-
` इान्निगेततस्येदवियव्सहितस्य मनसः पुनस्तस्मिन्प्रवेशनाथेमिदं सूक्तं हष्टूाजपन् ।
अतस्तेऽस्यषेयः । प्रतिपादत्वादावतेमानं मन -एव देवता । तथा चानु्रात
यच्च इति हादश्चेमानषटुभं मनस्मावतेनं जेपुरिति । गतो विनियोगः ॥
॥ तच प्रथमा ॥
यतते यमं वेंवस्वतं मनो जगामं दटूरकं । तत्त आ वतेयामसीह एयाय जी वसे ॥१
ए
यत्। ते। यमं। वेवस्वतं। मनः । जगामं। टूरकं। तत्। ते। आ । वतेयामसि। इह ।
दप ऋति भे [र चैकि ॥ >) [क्
छयांय । जीवसे ॥१॥ ५ 9 +
पुरुषस्य भरियमाणस्य मनो नाम महडूतं बहधा विशी भवति । तस्य
पुनःसंभरणमचोच्यते । हे मियमाण पुरुष यत्ते तव मनो वेवस्वतं विवस्वतः
पुचं यमं टूरकमत्य॑तं टूर यथा भवति तथा जगाम ते तव तन्मन आ वतेया-
मसि ! आवतेयामः । किमथे । इह याय । इह तोके निवासाय । जीवसे
चिर्कात्जीवनायेत्यथेः ॥
॥ अथ डितीया ॥
यतते दिवं यत्पुथिवी मनो जगाम दटूरकं। तत्त आ व॑तेयामसीह छष्याय जीवसे ॥२॥
यत्। ते। दिवं । यत्। पृथिवी । मन॑ः। जगामं। टूरकं। तत्। ते। आ । वतैयामसि।
` ` इहं । स्यांय । जीवसे ॥२॥ ह 4 4 ६ =
- हे खरव॑धो यन्मनो दिनं जगाम यञ्च पृथिवी दूरं ।दूरकमिति क्ियावि- =
` शषणं। तदिह निवासाय जीवनाय चावत्तयीमः ॥ ५. |
॥
थ तततीया ॥ (9
८
कं। तत्त आ व॑तेयामसीह छ्याय जी वे ॥३।
श.
म०१०,अख०४. स्०५४.| ॥ अष्टमोऽ टकः ॥ ५१ .
हे खबंधो यन्मनो भूमिं चतुभटिं । चतुद यशो यस्याः सा । तां जगाम
तदावतेयामः ।
| ॥ अथ चतुर्थी ॥
यत्ते चतखः प्रदिशो मनो जगाम टूरकं। तत आ व्॑तेयामसीह छयाय जी वसे ॥४॥
यत्। ते। चततखः। प्रऽदिरशः। मन॑ः। जगाम । टूर । तत् ते। खा । व्तैयामसि।
इह । छुयाय । जीवसे ॥४॥ |
हे खबंधो यत्ते मनः प्रदिशः प्रकृष्टा महादिश्शतसो जगाम तदावतैयामः ॥
॥ अथं पचमी ॥
यत्ते ससुद्मणव मनो जगाम टूर । तत्त खा वतेयामसीह् सूर्याय जीवसे ॥५॥
यत् । ते । समुद् । अणेवं । मन॑ः । जगाम । टूरकं । तत् ते। आरा । वतेयामसि।
इह । छयाय । जीवसं ॥५॥
हे सुबधो यत्ते मनोऽ णवं । अणेास्युटकानि । तंतं समुदं मेघं वा जगाम
तटावतेयाम
॥ यं षष्टी ॥
यत्ते मरीचीः प्रवतो मनो जगाम ट्रकं। तत खा व॑तेयामसीह सयां जी वसे ॥६॥
यत्। ते। मरी चीः। प्रऽ वतः। मन॑ः। जगाम । टूरकं। तत् । ते । आ! वतैयामसि।
इह । एयाय । जीव्से ॥६॥ = `
हे खबधो यत्ते मनः प्रवतः प्रगखतो्मरीची दीत्रीजेगाम तदिति गतं ॥
॥ इत्य्टमस्य प्रथमे विंशो व॑ः ॥
५ ॥ अथ सघ्रमी ॥ 1.1 4
यत्ते अपो यदोषधीमनो जगामंदूरकं । त्त आ व्॑ेयामसीह कषयाय जीवसं ॥७॥
यत्। ते! अपः। यत्। स्ोर्षधीः। मन॑ः। जगाम॑। टूरकं। तत्। ते। खआ। वतेयामसि
इह । शयाय । जीवस ॥७॥
२. ॥ ऋग्वेदः ॥ प० ४, प० १. वं० २१. |
3. ॥ अथाष्टमी ॥ ~ ` ~
यत्ते सूये यदुषसं मनो जगाम॑ टूरकं। तत्त आ व॑तेयामसीहं याय जीवसे ॥४॥
यत्। ते सूय । यत्। उषसं । मनः। जगामं। टूरकं । तत् । ते। आ । वतेयार्मा
इह । कषयाय । जीवसे ॥४॥
हे खवंधो यत्ते मनः सू सूयेभिव यहुषसं तदिति गतं ॥ ` |
॥ अथ नवमी ॥
यत्ते पवेतान्वृहतो मनो जगामं टूरकं। तत्त आ व॑तेयामसीह याय जीवसे ॥९॥
| यत्। ते । पवेतान् । बृहतः । मन॑ः । जगाम । टूरकं। तत् । ते। आ । वतेयामसि ॥!
इह । याय । जीवसे ॥९॥
हे सुब॑धो यत्ते मनो बृहतः पर्व॑तान् तदिति गतं
॥ खय टशमी ॥
यते विश्वमिदं जगन्मनो जगामं दूरकं। तत्त आ व॑तेयामसीह कषयांय जीवसे ॥१०॥
यत् । ते । विश्वं । इद् । जग॑त् । मन॑ः। जगाम॑। टूरकं। तत्। ते। आ । वतैयामसि।
इह । छयांय । जीवसे ॥१०॥ |
हे खवंधो यत्ते मनो विश्वमिति तदिति गतं ॥ चतस ऋचो निगदसिाः ॥
॥ अथेकाटशी ॥
यत्ते पराः परावतो मनो जगाम दूरकं। तत्त आ व॑तेयामसीह याय जी वसं ॥११॥
यत्। ते। पराः। पराऽवतः। मन॑ः। जगाम । दूरकं ! तत्। ते। आ । वर्तयामसि ।
इह । क्षयाय । जीवसे ॥११॥ 1 9
` हे खवंधो यते मनः पराः पराव
।
॥
=.
तोऽत्यंतं दूरदेशाज्नगाम तदिति गतं ॥
इाटशी ॥ ल
छयाय
आ व॑तेयामसीह
म० १०. ०४. सू०५९.] ॥ अष्टमोऽषटकः ॥ ` ५३
हे खबधो यत्ते मनो भतं च भव्यं चेत्यनेन भूतभव्यात्मङ्व्यतिरेकेण कस्यचिट्-
भावाह्तेसानस्य पृथगेवाभिधानात् कृत्लं प्रपंचमुक्तं भवति । तच सवच गतं
मनो जीवनाय निवासाय चावतेयामः ॥
॥ इत्यष्टमस्य प्रथम एकविंशो वः ॥
प्र तारीति दश्च स्रदरं सूक्तं ब॑ध्वादीनां याणां गोपायनानामाषे। आदित
सघ चिष्टभः। अष्टमी पंचाष्टका पंक्तिः । नवमी षडष्टका महापंक्तिः । दशमी
पच्युत्तय । आर्यो द्श्कावष्टकास्तय इत्युक्तत्षछणसद्वावात् । एकाराधिक्याद्-
रिग्विश्बणेयं वेदितव्या । सक्स्यादितश्चतसो देहात्माणानिगैमयिच्या निकौतेनि-
वृच्यथे ब॑ध्वादयोऽजपन्। मो घु णः सोमेति चतुथ्यामेव मृत्युनिवृयथे सोमम-
स्तुवन् अतश्चतसृखं निकतिर्दवता चतुथ्याः सोमश्च । अखनीते मन इति इाभ्या-
मखनीतिनान्नी टेवीलस्ववन् अतस्तयोः सा देवता । पन्नो असुमित्यस्याः पथि-
व्याद्या लिंगोक्ता देवताः। ततस्तिसृभिः श््टाभिः पंक्तिमहापंक्तिपंक्यु्तराभिद्या-
वापुथिव्याविति द्यावापृथिव्यो देवते। समिदत्यधेचैस्यंदो देवता। तथा चानुक्रंतं॥
प्र तारीति दश्च चतसो निच्छैपनोदनाथं जपु्चतुध्या सोमं चास्तृवन्मृत्योर-
पगमायोच्चराभ्यां देवीमसुनीतिं सप्रम्यां त्विगोक्देवताः शटाभिः पंक्तिमहा-
पक्तिपं्सयु्तराभिदचयावापुथिव्यो सभिदरेतीदरं चाधेर्चेनेति । गतो विनियोगः ॥
॥ तच प्रथमा ॥
प्र तायेोयुः प्रतरं नवीयः स्यातरिव क्रतुंमता रथ॑स्य ।
ध च्यवानं उत्तवीत्यथं परातर सु निकतिजिहीतां ॥ १४
म्र। तारि। आयुः । प्रऽतरं। नवीयः स्यात्ताराऽ इव । क्रतु ऽमता । रथस्य ।
धं । च्यवांनः। उत् । तवीति । अथे । पराऽतरं। सु । निःऽ कतिः जिहीतां ॥१॥ . `
सखबंधोरायुरायुषयं प्र तारि । प्रबधतां । प्रपूवेस्तिरतिवेधनाथेः । कथं प्रवधे-
तामित्युच्यते । प्रतरं प्रवुदतरं नवीयो नवर । योवनोपेतमित्ययेः । निच्छत्यनु-
यहादेवमायुवेधेतां । तच दृष्टातः । ऋतुमता कमेवता सारथिना रथस्य स्थातारेव .
रथे स्थिताविव वर्धते तडत्! अधाय च्यवानो जीवितात्मच्यवमानोऽथे स्वाभि- =
ठकषितमायुल्येष्णसुत्तवीति । वधेयति । स॒वंधुप्राणपहबीं निक्ैतिः पापदेवत्ता
कलाः श ।
| ॥ ऋग्वेट्ः ॥ ` [ऋप्० ४, ० १. वं २२,
॥ अथ इहितीया ॥
सामन्रु राये निंधिमन्वन्तं करा महे ख पुरुध रवासि ।
तानो विश्वानि जरिता स॑मु परातरं ख ¦
म॑न्। च । राये। निधिऽमत्। च । अनं । करामहे । स । पुरुध ।
ता। नः विश्वानि। जरिता। ममनु । पराऽतर। सु, निःऽचऋतिः। जि
| धानवटन्नं हविश्च यामहे ) कमैः। खच न्विति चायं
कमं इत्यथैः । तदेवाह । सु सृष्ट परध पुरुधा बहप्रकारं च वांस्यनानि हवी
करामहे। ता तानि हवीषि नोऽस्माकं संवधीनि विश्वानि सवाणि जरिता जीणो
सृता वा । जरा स्तुतिः । नि०१०.४.। ममत्तु । स्वदतां । आस्वाद्य च निके
परात्तरमत्यंतं ट्रदेशं जिहीतां । गच्छतां ॥
॥ अथ तृतीया ॥
अभी ष५येः पोस्यभेवेम दयोने भूमिं गिरयो नाजान् ।
तानो विश्वानि जरिता चिकेत परातरं सु निछेतिजिंहीतां ॥३।
अभि । सु। येः । पस्य । भवेम । चः । न । भूमिं । गिरय॑ः। न । अर्जान् ।
ता। नः। विश्वानि जरिता। चिकेत। पराऽतर सु! निःऽकंतिः। जिहीतां ॥३॥
वयमयो ऽरीञ्श्चन्पास्येः पस्वेवेतेः सु सुद्ठभिभवेम । दोनं भूमिं सयो
यथा स्वरश्मिभिभेमिमभिभवति तडत् । गिरयो नाजान् । गिरिवेजः । ते
यथाजानजनशीत्डान्मेघानभिभवंति तदत् । ता तानि यानि नोऽस्माभिः
कृतानि स्तोचाणि तानि विश्वानि सवखि जरिता स्तुता सती निक्छैतिधिकेत ।
भ
जानाति । शष्टसुक्तं ॥ ` ध
~ ~य चतय ॥.
7
षु शः सोम मृत्यवे पां दाः पर्येम न सू्ँमुचरतं ।
1
म० १०, ०, स्०५९.। ॥ ष्टमो ऽ एकः ॥ | पप
(अ हे सोम नोऽस्मान् सु सष म॒त्यवे मो परा दाः मेव परादानं कर् । मत्व-
त धीनान्योऽस्मान्मा कार्षीः । कितु न्विदानीमुचचरतमूध्वे गख्छतसुदयंतं सूये पश्येम ।
चिगर्कात्ठं जीवेमेत्यथेः । जीवाभावे सूयादश्नादित्यभिप्रायः । किंच दुभि
अह नमेतत् । अहोभिदिवसेहितः प्रेरितो जरिमा जराभावो नोऽस्माकं सु
सु स्तु ! शिष्टमुक्तं ॥
॥ खथ पचमी ॥
खक्षनीते मनो अस्मास धारय जीवातवे सुप्रतिरान सायः
रारधि नः सूयस्य संहशि घृतेन त्वं तन्वं वधेयस्व ॥५॥
अखऽनीते। मनः । सस्मार । धारय । जीवातवे । खु । प्र। तिर । नः । आयु
` ररधि । नः । सूयेस्य । सं ऽहिं । धृतेन । चं । तन्वं । वृधेयस्व ॥५॥
हे असुनीते मन्ष्याणमसूनां नेचि देवि स्म
| <। मनः पनधोास्य | व
जीवातवे जीवितुं ख प्रतिर सष वधय नोऽस्माकमायुः। किंच रारि स्थापय
स्मान् सूयेस्य संहशि चिरसंदशेने । त्वं च धुतेनास्माभिदेतेन तन्वं शरीरं
वधेय बधय नन |
॥ इत्यष्टमस्य प्रथमे इाविश्णे वगैः ॥
(र अथ षष्ठी ॥
अख॑नीते पुन॑रस्मास चक्षुः पुन॑ः प्राणमिह नो घेहि भोगं ।
५ ज्योर् पश्येम सूयमुच्चरतमनमति मृव्छयां नः स्वस्ति ॥६
ऋसं ऽनीते । पन॑: । अस्मास । चश्चुः। पनरिति । प्राणं । इह । नः । घेरि ! भोगं ।
ज्योक् । पश्येम । सये ! उत्ऽ चरतं । खनुऽमते । मुक्छय । नः । स्वस्ति ॥६॥
1 हे असनीते प्राणदायिनि देवि अस्मास । अस्मदीय सुबधावित्यथेः। पुनश्वसुः ४: 1
* ग्रकाश्कं नयनं । ईश्णसामथ्येमित्यथेः । किंच पुनः प्राणएमस्मास धेहि । =
स्थापय । वयं च ज्योक् चिगरमुच्रंतमुद्रच्छतं सूये पश्येम । हे अनुमते देवि स्वस्ति `
विनाशं यथा स्याच्या नोऽस्मान्मव्छय । सखय ॥
र ॥ अथ सघ्रमी ॥
५६ ॥ ऋग्वेदः ॥ [० ४, ०१. व० २३.
पुनः! नः। अस । पृथिवी । ददातु । पुन॑ः । दयीः । देवी । पुन॑ः । अंतरं ।
स्तिः ॥७॥
पुन॑ः! नः। सोम॑ः । तन्वं । ददातु । पुनरिति । पषा । पर्थ्या । या ।
[ग
पृथिवी देवी नोऽस्मन्यमखं प्राणं ददातु पुनः । चीरदेवताखं द्दातु । तथा-
तरिक्षम॑तरिखदेवतासं ददातु । तथा. सोमो नस्तन्वं शरीर पुनदेदातु । तथा
पूषा पोषाभिमानिनी देवता पथ्यां । पंथा संतरिष्षं । नि०११.४५.। तच भव
वाच॑ । वागात्मङः श्ट द्याकाशादुत्यदते । तां पुनदैदातु । किंच या स्वस्तय ¦
लोके वेदे च स्वस्िरुच्यते तामपि पूषा प्रयच्छतु यद्वा पूषा पोषं प्रयच्छतु ¦
या स्वस्तिवीम्राख्ी रेव्यस्ति सा पथ्यां वाचं प्रयच्छतु । वाग्वे पथ्या स्वस्तिरिति
ब्राह्मणं ॥
॥ अथा्टमी ॥
शं रोद॑सी सुवंधवे यह्वी ऋ्छृतस्य मातग ।
भरतामप यद्रपो चः पुथिवि छमा रपो मो षु ते किं चनाम॑मत् ॥५।
शं । रोदसी इतिं । सुऽवंधंवे। यद्धरी इतिं । ऋतस्य । मातां ।
भरतं । अप॑ । यत् रप॑ः, चोः! पृथिवि, छमा । रप॑ः। मो इतिं । ख । ते। किं।
चन । आममत् ॥४॥
॥
५
इदमादिभिस्तिसुभिच्यौवापृथिव्योः स्तृतिः । रोदसी द्यावापृथिव्यो खबंधवे
शं सुखं प्रयच्छतां । कीदृश्यौ ते । यज्ली महत्यौ । ऋतस्य यक्स्योदक्स्य वा
मात्तरा निमेाच्यौ ! यदपः पापं कृच्छमस्ति तट्प भरतां ! अपहरतां । अपनयतां ।
हे द्यः हे पृथिवि हे द्यावापृथिव्यो कषमा छमायां सत्यां । यद्वा मा पृथगुच्यते ।
शषमाणपहरतु । एवमुक्ता सनं बंष्वादयो बरुवते । हे खवंधो ते त्वांमोषु मेव
1 1 सुषु किंचन पर रपः कृच्छमाममत् । हिनस्तु ॥ 1
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म०१०. ०४, सू०६०.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ ५७
अवं । डे इतिं । अवं । चिका । दिवः। चरंति । भेषजा ।
क्षमा । चरिष्णु । एककं । भरतां ! अप॑ । यत्। रपः। द्यौः । पृथिवि । छमा । रप॑ः ।
मो इतिं । सु। ते। रिं। चन । ्आममत्॥९॥ `
दिवो च्ुलोकाद्धेषजा भेषजानि इके दिकं चिका चिक चाव चरंति । अचा-
शिनौ बिकमवचरतः। इच्छा सरस्वती भारती चिकमवचरति । स॒मा समायां
ॐ $
चरिष्णु चरप्येककमेकं भेषजमित्यभिप्रायमाह । तानि सवखि खबधोः प्राणं
र्लिति शेषः ॥
॥ अथ टमी ॥
सर्िद्रेरय गाम॑नडाहं य आवहदुशीनराण्या अन॑ः ।
भरतामप यट्पो चोः पुंथिविक्षमारपोमोषु ते किं चनाममत् ॥१०॥
सं। इट् । रय । गां । अनडाहं । यः। आ । अवहत् । उशीनराण्याः । सनः।
भूतां । अप॑ । यत् रप॑ः । द्योः पृथिवि । छमा । रप॑ः । मो इति । स । ते। कि।
चनं ! सआममत् ॥१०॥
हे इट् समीरय प्रेरय ¦ किं । गां गंतारमनडाहमनोवहनसमथे । योऽनडा-
नावहदावहत्यस्मान्प्रति किं । अनः शकटं । कस्य । उभशीनराणया एतन्नामिकाया
` ओ्ओषधेः । ययातेमनलिपंति सोशीनराणी । भरतामित्यादि गततं ॥
॥ इत्यष्टमस्य प्रथमे चयोविंशणो वगः ॥
छा जनमिति इादशचंमष्टादशं सूक्त । गोपायना बध्वाद्य ऋषयः । षष््या- `
र्वगस्त्यस्य स्वसेषां मातषिका । आदितः पंच गायव्यः । खष्टमीनवम्यो पक्तौ
शटा अन्दष्टभः । आदितश्चतसुणामनसमातिनाम्नो राज्ञः स्तूयमानत्वात् स एवं
देवता । पंचम्या इटः । षष्ट्या खपसमातिः । तततः पचानां सुबंधोजीविताहा-
नरूपोऽ्थो देवता । खयं मे हस्त इत्यस्या कब्धसंङस्य खबंधोः स्यशेनहेतुभूतो `
` देवता । तथा चानक्रतं । आ जनमिति इाद्श्चैमानष्टुभं चतसृभिरसमाति- `
मस्तुवन्पंच्येदरं षष्ठयागस्त्यस्य स्वसा मातिषां राजानमस्तोत्पराभिः सबधो्जी-
वमाडयंस्त म॑त्यया तब्धसं्मस्पृणन् पंचम्याद्या गायच्योऽ्म्याे पंल्ली इति॥ `
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॥ कग्वेटः ॥ [अ०४, ख०१, वं० २४.
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॥ तच प्रथमा ॥ [र क
आ जनं वेषसंहशं माहीं नानामुप॑स्तुतं । अगन्म बिथतो नम॑ः ॥१।
वयते
मा । जनं । वेषऽसंहशं । माही नानां । उप॑ऽ स्तुतं । अगन्म ! वि॑तः। नम॑ः ॥१॥
| इटमाटिभिश्तिस॒नी राजानं स्तुवंति । वयं ब॑ध्वादयो जनं जनपद्मसनीति-
स्वभूतमागन्म । अभिगताः ॥ गमेः मंचे धसेति चेदुक् । म्बोश्वेति मकारस्य
नकारः ॥ दीहशं जनं । वेषसंहशं । दीप्रदशेनं । माहीनानां महतामुपस्तुतमु-
पगतस्तुतिं ॥ तादौ चेति गतेः प्रकृतिस्वरः ॥ कीडशा वयं । नमो नमस्कारं
म बिभो धारयतः । कुवत इत्यथैः । यद्वा जनमसमातिमित्यथेः । शिष्टं समानं
नमो विभत इति राजकृते नमस्कारं धार यंत इत्यथः ॥
स
स
|
॥
॥ अथ हितीया ॥
। अस॑मातिं नितोशनं त्वेषं निययिनं रथं । भजेरथस्य सत्म॑तिं ॥२॥
अस॑मातिं । निऽतोभनं । वेषं । नि ऽययिनं । रथ॑ । भजेऽर॑यस्य । सत्ऽप॑तिं ॥
. असमातिं राजानं नितोशनं शचूणां हतार । नित्तोशतिवेधकमो । ल्ेषं
दीघ्रं । निययिनं गयभिव्युपमाप्रधानो निर्देशः । रथवत्सवाभिमतप्रा्िसाधनं
५ भजेरथस्येतनामकस्य राजो वंशे जातं । यद्ेतन्नामा कथचिटस्य शचुः । तस्य
निययिनं ॥ हलदतादिति सघ्रम्या अलुक् ॥ सत्पतिं सतां पालक ॥ ^
॥ अथ तृतीयां ॥
यो जनान्महिरषो ईवातिततस्थौ पवीरवान् । उताप॑वीरवान्युधा ॥३॥ `
यः। जनान् । महिषान् ऽइव । अतिऽ तस्थौ । पवीरवान् । उतत । अप॑वीरवान्
योऽसमातिजेनान् स्ववियो
पैः । क इव । महिषान्
नितसं वाभ्यक्रमी मा
म०१०. अण. सू०६०.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥ ५९
॥ अथ चतुर्थी ॥
यस्ये्लाकुरूपं चते रेवान्म॑राय्येधते । दिवीव पंच॑ कृष्टयः ॥४॥
यस्यं । इष्वाकुः। उप॑ । व्रते। रेवान्। मरायी। एधते। दिवि ऽइव । पंच॑ । कृष्टय॑ः॥४॥
यस्य जनपदस्येष्लाङ् राजा चरते कमणि रक्षणरूप उपेधते प्रवते । कीदशः
सन् । रेवान् रयिवान् मरायी शच्रुणां मारकश्च सन् । विरशेषणदयेन जनानां
दानादिरूपेण धनलाभः परराजोपद्वापिश्चोक्ता भवति एवं सति तदिषयस्याः
पच कृष्टयो निषादपंचमाश्चतारो वणा दिवीव द्युलोके यथा संकस्यसिङ्ाः संतः
सुखिनो भवति तडत्ससिनो भवत्तीति शेषः ॥
॥ अथ पंचमी ॥
इद्र सचासमातिषु रथच॑प्रोष्ेषु धारय । दिवीव सूरये दशे ॥५॥
इद्र । चा । ससंमातिषु । रथ॑ऽ प्रोष । धारय । द्विऽईव । सू । हशे ॥५॥
पनयद्माद्यतेऽसमात्यये । हे इट् शचा छचाणि बत्ानिं र्थप्रोषेषस-
मातिषु। एकस्मिन्बहुवचनं पूजाथ । रथप्रोषेऽसमातौ धारय \ दिवीव सूये दिवि
यथा सूयं हे सर्वेषां संदशेनाय स्थापितवानसि तङटच बलं धारय ॥
॥ सथ षषी ॥
अगस्त्यस्य नद्यः सघ्रीं य॒नस्ि रोहिता ।
पणीदयक्रमीरभि विश्वानाजन्रराधसः ॥६॥
अगस्त्यस्य । नत्ऽभ्यः । सप्री इतिं । युनि । रोहिता।
पणीन् । नि । क्रमीः । खमि । विश्वान् । राजन् । अराधसः ॥६॥
अनयागल्यस्य स्वसा वंष्वादीनां माता राजानं सौति । हे राजन् असमाति ` ^
त्वमगल्त्यस्यर्षेन्यो नंदयितुभ्यो बंध्वादिभ्यो निमि्तमूतेभ्यस्तेषां धनप्राप्ये सप्री `
सपणस्वभावावश्ौ रोहिता रोहितवर्णो युनसि । योजय रथे । तथा कृवा ` ।
विश्वान् सवौनराधसोऽदातृन् अयजमानान्पणीन् वणिजो लग्धकान् नि निकृ `
: । अभिभव ॥
षम्य मके चहविवोवनः॥ ===
५०
9 | ॥ ऋग्वेदः ॥ [अ०४. ऋ०१, व०२५.
त ॥ थ सप्रमी |
अयं मातायं पित्तायं जीवातुरागमत् ।
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इदं तवं प्रसर्पणं खर्व॑धवेहि निरिहि ॥७॥
अयं । माता । अयं । पिता । अयं । जीवातुः । आ । अगमत् ।
किणि ॥ क ॥ 1... ति _ , |
इदं । तवं । प्रऽसधणं । सुर्वधो इति खऽरवधो । आ । इहि । निः । इहि ॥७॥
छच शेषे शाटयायनरं । अथाभ्रिं देपदेन सूक्तेनास्तुवन् ग्निः स्तत आआज-
गाम। आगत्य चाह रिंकामा मागच्छतेति। सबंधोरेवाखं पुनवेन्दया मेत्यज्ुवन्
एषांतःपरिधीत्यत्रवीचमादङ्गमिति । तन्निाह अय मातायं पितेति । शणेन
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सतुतः स राजा सप्ीतसतस्यौ गोपायनानमि ।
सक्तेन तेऽस्तुवनम्िं बेपदेन यथाचिषु ।
अथाग्रिर्रवीदेनानयमंतःपरिध्यसः ।
खबंधोरस्य चेष्वाकोमेया गुप्रो हिताधिना ॥
सुर्बधवे प्रदायासं जीवेत्युक्ा च पावकः । |
स्तूतो मोपायनैः प्रीतो जगाम चिदिवं प्रति ॥
अयं मातेति ह्टाल्ते सबंधोरखमाइ यन् ।
शरीरमभिनिर्दिश्य सवंधोः पतितं भुवि ॥
सुक्तशेषं जगुश्वास्य चेतसो धारणाय त इति ॥ ऋ
अयमम्िमाता । अयमेव पिता । अयं जीवातुजीवयितागमत् । आजगाम । ५
अतो हे सुवंधो जीवपरिधो व्तमानेटं तव शरीरं तव प्रसपेणं प्रकर्षेण सपेण-
साधनं । अत्त इदं प्रत्येहि ! आगच्छ । निरिहि । निगेच्छ परिधेः सकाशात् ।,
खन्य एवं व्याचक्षते । हे निगेतम्राण सुबंधो अयं । विभक्तिव्यत्ययः। इय मातायं
तायं जीवातुजीवनफत्वभूतः पुचश्चागमदिति संबध्यते । सरवे त्वामागता
सिताः संतः । शिष्टं समानं ॥ 4
॥ अथाष्टमी
म० १०. अ०8. सू०६०.] ॥ खष्टमोऽषटकः ॥ ` | ६१
~ य्था । युगं । वरया । नद्यति । धरूणाय । क ।
एव । दाधार। ते! मनः। जी वात॑वे। न । मृत्यवे । खथो इति । अरिष्ट ऽत्तातये ॥४॥
यथा युगं वरचया पाशेन नद्यंति बध्ति धरूणाय रथादिधारणाय । कमिति
पादपूरणः। एवैवं ते मनो दाधार परिधावभ्रिः । किमथे । जीवातवे । जीवनाय ।
न मृत्यवे मरणाय न । अथो पि चारिटतातये। विनाशय । स्वाधिंङस्तातिः॥
॥ अथ नवमी ॥
| यथेयं पुथिवी मही दाधरेमान्वनस्यत्तीन् ।
^ एवा दाधार त्ते मनों जीवातवे न मृत्यवेऽथो अरिष्टतातये ॥९॥
यथा । इयं । युथिवी । मही । दाधार । इमान् । वनस्यतींन् ।
एव । दाधार। ते। मन॑ः। जी वातवे । न । मृत्यवे । अथो इतिं । अरिष्ट ऽत तये ॥९॥
` यथेयं पृथिवी महीमान्वनस्यतीन्वृ्षादीन्दाधार । शिषटमुक्तं ॥ `
॥ अथ दशमी ॥ |
यमादहं वेंवस्वतात्स॒वंधोमेन खार ।
जी वातवे. न मृत्यवेऽथो अरिष्टतातये ॥१०॥
यमात् । अहं । वेवस्वतात् । सुऽ बधोः । मनः । आ । अभ्रं ।
जीवातवे । न । मृत्यवे । अथो इतिं । अरिष्ट ऽ तात्तये ॥१०॥
इयं निगदसिङ्धा ॥
र ॥ थेकाटशी ॥
। ५ १ग्वात्तोऽवं वाति न्यक्तपति सूयः।
लीचीन॑मध्या दुहे न्य॑गभवतु ते रप॑ः ॥११॥
्यर्। वात॑ः! अवं। वाति। न्यक्। तपति । सूयः।
नीचीन॑। सश्या। दुहे । न्यर्। भवतु । ते । रप॑ः ॥११॥
वातो वायुचुलोकाक्यम्मिचीनमव वाति । गच्छति । सूर्यश न्यक् तपति।
। नीया गोनिः दुग्धे। एवं ते रपः पाप न्यप्रिचीन भवतु ॥ 1.
॥ चण्वेट्ः ॥ [आ०४. ऋ०१. व° २६
॥ अथ ाद्शी ॥
अयं मे हस्तो भग॑वानयं मे भग॑वत्तरः ।
मे विश्वभेषजोऽयं शिवाभिंमशेनः ॥१२॥ |
भैष ष
१,
५
अयं । मे \ हस्तैः । भर्ग॑ऽवान् । अयं । मे । भगवत्ऽतरः । |
॥
यं । मे । विष्ठऽमेषजः । अयं । शिव ऽखभिमशेनः ॥१२॥
॥ > कदम, षदे के
सखनया व॑ध्वादयो कन्धजीवं छबंधं पाणिभिरस्पुश्न्। खय मे हस्तो भगवान्
भगवचरः । आतिशएयेन
न |
यस्मात्सजीवं सुवधं स्पशति तस्मात् । तथायं मे हः
| भगवान् । तथायं मे हस्तो विश्वभेषजो जीवचिकित्सासाधनसर्वोषधवान् /
त्त्स्यानीयो वा। अयं शिवाभिमशेनो मंगलस्यशेनः । यततो जी वतं स्पृशत्यत |
| इत्यथः
॥ ॥ इत्यष्टमस्य प्रथमे पंचविंशे वगैः ॥ ~
. ॥ दशमे मंडले चतुर्थोऽनुवाकः ॥
[2 चमेऽनुवाकेऽष्टौ सूक्तानि । तचेदमित्येति सप्रविंशत्युचं प्रथमं सूक्तं मान- (|
नाभानेरिष्टस्य । इद्मादीनि षट् सूक्तानि वेश्वदेवानि । तथा चानुक्रातं । प
इदमित्था सप्राधिका नाभानेदिष्ठो मानवो वेश्वदेवं तदिति ॥ पृष्ठयस्य षष्ठेऽहनि ।
1 टेवशस््ेऽभिक्नविकातिदेशगप्राप्रस्योषासानक्तेत्यस्य स्यान इट् सूक्तं । सूचितं च।
उङत्य चोचमं सक्तं ची णीदमित्या रोद्मिति । आ०४.१.। इति ॥ खचैतरेयत्राद्यण।
नाभानेदिष्टं वे मानवं बह्चये वसंतं भरातरो निरभजंत्सो ऽबरवीदेत्य किं मन्यम |
भाक्तेयेतमेव निष्टावमववरितारमित्यब्रवचित्यादि । ठे बा०५.१९६.॥ तच नाभा-
नेदिष्ठो धातृभिभागे निराकृतः पितृसामीणयमागत्य किं मह्यं भागं न कस्पित्तवा-
नसीत्यपृच्छत्। स च किमनेन भागेन । अंगिरसः स्वगं सन्तमासीनाः षष्टा- =, -
हःपयैतमनुष्ठाय सुद्यंति । तानिदमित्येति सूक्ते शसय ते स्वगं यतौ वसिष्ठा
म०१०. ०५, सू०६१.] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ ६३
पितरमेव पृच्छ कस्म भागः प्राघ्रुयारित्युक्तः पितृसमी पमागत्य पिच्रा रटायायं
भागं इति तेनोकस्ववे वायं भाग इति मम पिताब्रवीटिति प्रत्यबाच। ततो यथाथै-
कथनेन तुष्टः पुरूषो नाभानेदिष्टायेव स्वं भाग प्रादादिव्युक्तं ॥ तथाध्वयबाद्यणेऽपि
मनुः पुकेभ्यो दायं व्यभजत् स नाभानेटिष्ठं वे मानवमित्यादिनायमथे उच्छः ।
तत्स वेमचानुसंधेयं ॥
॥ तच सक्ते प्रथमा ॥
इटमित्या रोद गतैवचा बह्म ऋत्वा च्यामंतयाजो ।
ऋण यर्स्य पितरं मंहनेष्ठाः पषैत्यक्ये अहना सप्र हो तुन् ॥१।
इटं । इत्था । रोर । गूते ऽ व॑चाः। जह्य । ऋत्वा । शव्या । संतः । आजौ ।
्राणा।यत्। अस्य। पितर मंहनेऽस्थाः। पत् पक्थे। अह॑न्! आ। सप्र। हो तुन्॥१॥
गूतेवचा उद्यतवचनो नाभानेदिष्ठ इदं बह्म स्तोचं रौद्रं सुद्रप्रणीतमित्येत्थ-
मिदानीक्रियमाणप्रकारं ऋता प्रज्ञानेन निष्पाचं स्तोचं शव्यामंतः कर्मणि सन्त- `
मध्य स्जावंगिरसां संघे करोतीति शेषः । यत्स्तोचं क्राणा भागं कुवाणा भागं
कुर्वी णावस्य पित्ता पितरावन्ये च मंहने्ठा भागप्रदाने प्रवतेमाना भातरशच
गोत्ाभसाधनत्वेनाकस्ययन्निति शेषः । तेन नाभानेदिहः पक्थे पक्तयेऽहन्
अहनि । षष्टेऽहनीत्यथैः । ते ष्टमेवाहरागत्य सुद्यंति तानते सूक्ते षष्ठेऽहनि
प्सयेत्युक्ततात् । सप्र होत॒न् होतुप्रणस्तृनाह्मण स्याटिकान् आख पषेत्। सवे-
तोऽपूर्यत् । इदमित्थेति सूक्तभ्यां यक्पार प्रापयामासेत्यथंः ॥
॥ सथ हितीया ॥
स इहदानाय टभ्यांय वन्वज््यवानः सूदैरमिमीत वेदिं। `
तूवैयाणो गुतेव॑चस्तमः स्षोदौ न रेतं इतऊति सिंचत्॥२॥
सः। इत्। टानाय॑ । दभ्यांय। वन्वन्। च्रवानः। सूः । अमिमीत । वेदि
4 तूवेयाणः। गूतेवचःऽतमः। छोरदः। न । रेतः। इतःऽ ऊति । सिं चत् ॥२॥
५ स इत् स कृष्णश्वासी पुरुषो सद्राख्यो दानाय स्तौतृणां धनप्रदानाय क 2
` दभ्याय शत्रूणां वधाय च वन्वन् स्तोतृन्संभजन् सूदैः सूटकेहिसकेः श्तेच्यव
वेदिमभिमीत । पररि ॥ मतवान् ।
तयनानो `
१ ६ | ॥ च्रग्वेट्ः॥. प० ४, ०१, व० रयै.
तं कृष्णशवास्यु्तरत उपोत्थायानवीन्मम वा इदं मम वे वास्तुहमितीति ब्राह्मणं ।
६ तदेवाह । तूर्वयाणस्तूणेगमनो गृतेवचस्तमो ऽत्यतमुद्यतवचा रुद्रः छोदो नोदक-
५ मिव। उदकं यथा घनः सिंचति तददेतः स्वसासथ्येमितऊती तोगमनवद्यया भर्वा
( सिंचत्। प्रेरितवानित्यथैः। यद्वानेनौचया्धनोच्राभ्यां च प्रासंगिक्यश्चिनोः
| स्तुतिः क्रियते । तरूवैयाणस्तूणेगमनो ऽ तिश्येनोद्यतवचनो रुद्रः छोदौ नोदक-
0 रेत उत्पादनसामथ्येपितं रेत इतऊति सिं चत्। जनयामासाश्विनौ । खन्य-
चेतऊतीत्यश्विनोरभिधानाटन्यच तयो स्द्पुचत्वसिदेश्चायमर्थो त्ठभ्यते ॥
॥ अथ तूतीया॥
। मनोन येषु हरवव॑नेषु तिग्मं विपः श्यां वनुथो द्रवता । 4,
आ यः शयेोनिस्तुविनुम्णो अस्याच्रीणीतादिशं गभस्तौ ॥३॥
मन॑ः। न । येषु । हवनेषु । तिग्मं । विप॑ः। शच्या । वनुथः। दवता ।
स्मा । यः। श्योभिः। तुविऽनुम्णः। अस्य । अश्री णीत । ज्ञा ऽदिशं । गभ॑स्तौ ॥३।
छश्विनो युवां मनो न मन इव । यथा मनस्तिग्मं तीद्णमान् धाव-
गद्छत्येवं येषु हवनेष्राद्धानेषु विपः स्तोतुः शच्या प्रज्ञानेन गंतव्यसिति ह
वृद्धा दवता दूवंतौ गच्छतो वनुः संभजथः। योऽध्वयुरा आभिमुख्येन तुवि-
नुम्णः प्रभूतहविलै छषणधनः सन् अस्य कमेणि प्रवृत्तस्य मम संबंधी शयोभिर-
गु्दीभिरीणीत्त ीणाति । किं कृत्वा । गभस्तौ हस्ते धृत्वादिशं । इटमश्िभ्या-
ति निदिष्येत्यथेः । ताहशं मदीयमध्वयुं येषु हवनेषु वनुथः संभजयस्तो युवां
हव इत्युत्तर संबंधः ॥
1 ` ॥ खथ चतुर्थी ॥ 9
कृष्णा यद्रोध्ररुणीषु सीदहिवो नपाताश्विनाहुवेवां। 1
तं म यज्ञमा ग॑तं मे अन्तं ववन्वांसा नेषमस्मृतध्रू ॥४॥ `
अरुणीषु ।सीद॑त्। दिवः । नपाता । अश्विना । हुवे । वं
॥
ऋअस्मुंतभ्र उत्यस्मुंतऽभू ॥४॥
म०१०,अ०५. सू०६१.] ॥ ष्टमोऽ टकः ॥ ६५
नपाता दीयमानस्य स्वगेस्य प्रकाश्णत्मकस्य यागस्य वा न पात्तयितारौ हे
अश्चिनो वां हवे । आद्ये । वीतं कामयेथां मेऽनरं हविलेक्षणं । तदये मे यज्ञमा
गतं । सखागच्छतं । इषमनं ववन्वांसा न । संभजमानावश्ाविव । तडदागतं ।
कीहश्णे युवां । खस्मृतध्र। अस्मतदोदो । मयि दोहमस्मरतो ॥
॥ अथ पंचमी ॥
प्रथिष्ट यस्यं वीर्कमेमिष्णटनु्टितं नु न्यां अपोहत् ।
पुनस्तदा वृहति यत्कनाया दुहितुरा खनुभृतमनवे ॥५॥
प्रथिष्ट । यस्यं । वीरऽकंमं। इष्णत्। अनुस्थितं । नु । नयः । पं । स्मोहत्।
पुनरितिं। तत्। आ। वृहति। यत्। कनायाः दुहितुः। आः। अनु ऽ भृतं । खन वा ॥५॥
यथा स्वांशेन मगवाबुट्ः प्रजापति वास्तोष्पतिं रुटमसुजच्देतदादिभिस्िसु-
भिवेदति । यस्य प्रजापतेरिष्णदेषणवद्लीरकमे । किंगव्यत्ययः । येनं रेतसोत्चा
वीरा भवंति ताहयेतः प्रथिष्ट प्रथितमासीचदेतो ऽनुषटितं प्रजापतिनापत्याे `
निषिक्तं नर्यो नरेभ्यो हितो यज्ञ नेतृभ्यो देवेभ्यो हितो स्ट ऽ पौहत्। अपोहति ।
तदेवाहं । पुनस्तदरत आ वृहति । सवेत उत्सिदत्युद्रमयति पुरुषाकारेणं स्वय-
सुत्पन्नः सन् । कीदशं रेतः। यदेतः कनायाः कांताया दुहितुः स्वपुच्याः । तस्या-
मित्यथेः । तच प्रजापतिनानुभृतमाः । आसीत् । अस्तेः सिपि । कीहशौ रूट:
अनवे । अन्यस्मिन्नप्त्युतः। प्रजापतिर्वे स्वां टुहितरमभ्यध्यायदिवमित्यन्य आहू
रुषसमित्यन्ये । ठे° जा० ३, ३३.। इति ब्राह्मणं ॥
॥ इत्यष्टमस्य प्रथमे षडिंशे वगः ॥
| ॥ खथ षष्ठी ॥
मध्या यत्कत्वेमभ॑वटभीके कामं कृणखाने पित्तरिं युवत्यां ।
मनानयेतों जहतुवियंता सानो निषिक्तं सुकृतस्य योनो ॥६॥
मध्या। यत्। कपि । छभ॑वत्। अभी । कामं । कंणवाने । पितरं । युवत्यां ।
मनानक्। रेत॑ः। जहतुः। विऽयतां। सानो । निऽसिंक्त। सुऽकृतस्य॑। योनो ॥६॥ ॥
‰ „ = ॥ऋण्वेद्ः॥ [ऊ०४,अ०१.व०२७.
भीके समीपे यत्कतरै कमाभवत् मिथुनीभावास्यं तदानीं मनानगस्यं रेतो जहतुः।
| ल्यक्तवंतो । किं कुवीणाविति तचाह। वियंतौ । परस्यरमभिगच्छतौ । प्रजा-
। पतिना-सानौ समुच्छिते स्थाने सुकृतस्य यज्ञस्य योनो निषिक्तमासीदित्ययेः ।
तततो रुदर उत्पन्र इत्यथः ॥ | [
3 + ˆ ॥ अथ सप्रमी॥
पितता यत्स्वां दुहितरं मधिष्कन्ध्मया रेत॑ः संजग्मानो नि षिचत् ।
#
भणे
स्वध्योंऽजनयन्बहयं देवा वास्तोष्यतिं बतपां निरत श्न् ॥७॥
|,
॥,
| पितता। यत्। स्वां । दुहितई। अधिऽस्कन्। छमया। रेत॑: । सं ऽजग्मानः। नि। सिंचत्।
| मुऽञ्ाध्यः। अजनयन् बह । देवाः। वास्तोः। पति । व्रत ऽपां । निः। अत्तछषन्॥७
निमी कि कि सि क = चेमे
1 पिता प्रजापति्यद्यदा स्वां दुहितरं दिवसुषसं वाधिष्कन् अध्यस्कदत् तदा-
नीमेव छमा पृथिव्या सह संजग्मानः संग्छमानः प्रजापतिरस्मिललोके रोहितो
भूवा रेतो नि षिंचत्। निषेकमकयोत् । तामृश्यौ भूत्वा रोहितं भूतामन्येदिति
बाद्यणं । ° बा० ३. ३३.। तदानीं स्वाध्यः सुध्यानाः सुकमाणो वा देवा बह्ा-
जनयन् । उदपादयन् । किं तद््येति तदाह । वास्तोष्पतिं यज्ञवास्तुस्वामिनं
व्रतपां व्रतस्य कमणो रछ्षःप्रभृतिभ्यः पालकं निरतक्षन् समुदपादट्यन् । यज्ञवा-
स्वामित्वं दचा कमेरछषक्तेन निमित वंत इत्यधेः ॥ `
सयाम ॥
स ई वृषा न पेनैमस्यदा्ञो सदा षैरदप॑ दधचैताः,
सरत्पदा न ट्िंणा परावृङ न ता नु मे पृशन्यो जगुधे १४॥
। वृषा न। पेन । स्यत्। आजो। सत्। आ। पर रत् अयं । दभऽचैताः।
सत् पदा। न
1 ५ ट 9.4
दक्वा । पराऽवृक्। न। ताः नु । मे पन्य । जगु ॥४॥
ष्यन्वटति। `
पुरतः प
म०१०. अ०५, सू०६१.] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ ६9 ४
पदानि न सरत् न सरति । अस्मटभिसुखमागख्छति । मे मम संबंधिन्यस्ता |
गा ऋअंगिरोभिदेत्ताः पृश्न्यः पथिकानामभिस्पशेनकुश्ल्लो सद्र न जगृ न
| गृह्ातीव्येवमाशस्ते ॥ |
॥ अथ नवमी ॥ `
मधू न बहिः प्रजायां उपच्दिरप्निं न नम्र उप॑ सीददूधः
सनितेध्मं सनितोत वाजं स धता ज॑ज्ञे सह॑सा यवीयुत् ॥९॥ १
मघ । न । वहः । प्रऽजायांः। उपब्दिः। अग्नं । न । नम्रः। उप॑ । सीदत्। ऊरध॑ः।
( सनिता । इध्मं । सनिता । उत्त । वाजं । सः। धती । जज्ञे। सह॑सा । यविऽयुत् ॥९॥
`, 1 वास्तोष्पतिना रुदरण गोयमानेऽ स्मिन्यज्ञे वहिवंह्िवदाहको राश्सादिमैकष
न शीघं नोप सीदत् । नागद्छति। यो बहिः प्रजाया उपब्दिरूपपीडको भवति
यज्ञविघाताथेमागच्छति । वतिगादिरूपायाः प्रजाया न पीडां करोत्यहनि ।
| तथोधः । राचिनामेतत् । राचावप्यमिं ज्वत्ेतं नम्रो विवस्नौ रारसादिर्नोप
सीदत् । एवं रुदर रसितरि सति सोऽग्रिरिष्मं सनिता जज्ञे उत्पन्नः उतापि
च वाजमन्नं हविः सनिता जज्ञे । स धतो यज्ञस्य फत्दस्य वा धारक उत्पनः
| सोऽब्रिः सहसा बलेन यवीयुद्यज्ञमिश्वयितृणां रसः प्रनृतीनां योद्धा जज्ञे ॥
+ | ॥ अथ ट्शमी ॥
भ मू कनायाः सख्यं नव॑ग्वा तं वदैत ऋृत्ंक्तिमग्मन् ।
हिबहेसो य उप॑ गोपमागुरदक्षिणासो अच्युता दुदु्छन् ॥१०॥
मदु । कनार्याः। सख्य । नव॑ऽग्वाः। ऋतं । वदैतः। ऋतऽगुक्ति। खग्मन्।
विऽबहेसः। ये। उप॑। गोपं । आ । अगुः | सदधिणासः। अच्युता । ुधुन् ॥१०॥
` नवग्वा अंगिरसः। गवामयनाख्यं स्तमनुतिष्ठतामंगिरसां मध्येये नवसु `
मासेषु लकगगावः संत उत्थितास्ते नवग्ाः। त कृतं वदतो म
कमनीयायाः
५... ६४ ऋण्वेद्ः॥ ० ए, ०१, व० र.
॥
पगताल्तेऽटक्िणा दशिणारहिताः । अदक्षिणानि सखाणीत्याहूरिति हि वचनं
६ ये यजमानास्त ऋति इति। ते चाव्युतोदकान्यक्षी णनि फलानि वा दुधुक्षन् ॥
॥ ५ ॥ इत्यष्टमस्य प्रथमे स्रविंशो वगैः ॥
ॐ ®
| | ॥ अथिकादशी॥
(( | मष्षू कनायाः सख्यं नवीयो रधो न रतं ऋतमितुरण्यन् ।
। शुचि यतते रेक्ण आय॑जंत सवदषांयाः पयं उस्षियायाः ॥११॥
मु! कनायाः । सख्यं । नवींयः। राधः । न। रेतः । ऋतं । इत् । तुरण्यन् ।
| भुचिं। यत् ते ।रेकणः। आ। अर्यजंत। सःऽ दुधायाः। पय॑ः। उसियायाः॥११
५ मक्षु शीघ्रं कनायाः कमनीयाया घमेदोग्ध्या नवीयो नवतरं सख्यं प्रायेति
। शेषः । अथवा नवीय इति राधोविशेवणं । नवतरं राधो धनमिव रेतः सिच्य-
9 मानमृतमुदकं तुरुण्यन्। दिवः सकाश्त्मेरित वंतः। हे इद्र ते तुभ्यं यद्यदा रेक्णः
। पाथोलक्षणं धनमाभिमुखमयज्ा पूजयन् । कीदशं रेक्णः । सवटुघायाः। सवब-
कि्यिमृतनाम । खमृतदोग्ध्या उसियाया गोः पयः पानयोग्यं रसतं । तदोटकं
तुरण्यच्धिति । अचाध्वयुव्राह्मणं । अंगिरसो चै सच्रमासतं । तेषां पृश्िघेमेधुगा-
सीत् । सजीन्वेणाजी वत् । तेऽब्रुवन् 1 कस्मे नु सन््मासहे येऽस्या सोषधीनं
ज्ञनयाम इति । ते दिवो वृष्टिमसृजंत । त° ब्रा २,१.१.। इति ॥
;
५. ^ ॥ आथ दशौ ॥
पश्वा यतश्वा विता सुतितिं व्रवीति वक्तरी रराणः ।
| वसं वेसुत्वा कारवोऽनेहा विश्च विवेष द्विंणसुप चु ॥१२॥
पश्चा £ यत्| पश्चा। वि $ युता बुधंत ४। इति । व्रवीति । वक्तरि । प्यणः
वसतः वसुऽना। कारव॑ः। अनेहा । विषं । विवे दरविणं । उप॑ । च ॥१२॥ |
स्तोतारः यश्चा पभुना । गोसमृहेनेत्यथैः । तिन वियुता वियुक्तानि ¦
गोस्थानानि ' ुधंताजानन् तदानीं कारवः। कारुणि्यर्थः। `
म० १०. अ०५. सू०६१.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥
दरविणं गोरूपं पणिनिरपहतं धनं छु । मध्ित्यथेः । णीघ्रमुप विर्व
व्याप्नोति पुनरादातुं । अयमथः । यदेद्रस्य स्तोतारो ऽसुरेरपडतमात्मीयं
जानंति ततः प्रागेवागव्येदस्तं न्यसूधटिति ॥
॥ अथ चयोदशी ॥
तदिन्व॑स्य परिषद्वानो अग्मन्पुरू सदत नाषेद्ं बिभित्सन् ।
वि शुष्ण॑स्य संमंयितमनव विदत्पुरुप्रजातस्य गुहा यत् ॥१३॥
तत्। इत्। नु । अस्य । परिऽसद्यानः। अग्मन् । पुर । सर्दतः। नासेदं । बिभित्सन् ।
वि । गुष्णंस्य । संऽय॑यितं । अनवे । विदत् । पुरुऽप्रजातस्यं । गुहां । यत् ॥१३॥
तदित् तवैव नु सिप्रसस्यैदरस्य परिषद्वानः परितो वतमानाः परिचारका
रष्मयोऽग्मन् । प्रकाश्नाथेमगच्छन्। पुरं पुरूणि कृचिमाणि सदतः सीदतो ऽसुरा
नाषेद्ं नृषदः पुतं बिभित्सन् । भेचुमेच्छन् । विचायं शुष्णस्येतनामकस्यासुरस्य
पुरप्रजात्तस्य बहुप्रादुभावस्य संग्रथितं मम विदत् । < त्ति । अयर्मिंदौ यदमुरस्य
टुक्ञयं ममं गुहा गुहायां गोपितं तडिटत् ॥
॥ अथ चतुटेशी ॥
भर्गो ह नामोत यस्य॑ देवाः स्व णे ये चिंषधस्थे निषेदुः ।
अम्रिहे नामोत जातवेदाः शरुधी नो होतछतस्य होता्ुक् ॥१४॥
भगैः। ह । नाम॑ । उतत । यस्य॑ । देवाः । स्व॑ः । न । ये। बिऽसधस्ये। निऽसेदु
अभ्रिः। ह। नाम॑। उत। जातऽवेदाः। ्रधि। नः। होतः। ऋतस्य होता । अभु ्॥ १४॥
उतापि च भर्गो ह नाम तत्तेजः किल प्रसिडं यस्य तेजस श्माप्रेयस्य संबं- `
धिनि चिषधस्थे बहिषि ये देवाः संति ते सवे स्वणे स्वगे यथा तथेव निषे-
दुनिषीदंति । उतापि च तत्तेजोऽग्रिहे नामभिः किलि नाम । उतापिचनजा-
तवेदा जातप्रज्ञो जातानां वेदितेतदपि तस्य तेजसो नाम । अग्रेभेे इत्यभ्रिरिति `
जातवेदा इति च चीणि नामानीत्यथेः । अथ प्रत्यक्षकृतः । हे होतर्होमनि-
७० ॥ऋण्वेद्ः॥ [ऋ०४, ०१, व०२९,
| | वि ॥ अथं पंचदशी ।
५. उत त्या मे रौदरौवचिमंता नास॑त्याविंट् गूतैये यज॑ |
मनुषदुक्तव॑हिषे रण॑णा मंटू हितप्रयसा विषु यज्यं ॥ १५।
उत। त्या । मे। रोद । अविंऽ मता । नासत्यौ । इट् । गूतै । यज॑ध्य |
मनुष्त्। वृक्तऽ व्॑हिषे। ररांणा। मंदू इतिं हितऽप्रयसा। विक्षु! यञ्य् इत्ति ॥ १५।
(५. उतापिचहेडदर त्या तौ प्रसिन्लौ रौद्रौ स्दरपुौ। छषोदो न रेत इत
1. सिंचत् । कण्वे १०,६१.२.। इति हि रटपुचत्वमुक्तं । अचिमंता दीधिमंतो ना-
सत्यावश्चिनो मे गूतेये स्तुतये यजध्यै यागाय च भवेतामिति शेषः। किंच मनुष्रत्
मम पितुमेनोरिव । तः
यज्ञे यथा तथव वृक्छवरहिषे स्तीणेवरहिषे मह्यं रराणा
| रममाणो म॑दू मदिष्ण् हितप्रयसा प्रेरितथनो विष्छुविष्वस्मदीयेषु तथा ज्य `
यष्टव्यो भवतमिति शेषः ॥
॥ इत्य्टमस्य प्रथमेऽ्टाविंशे वर्गः ॥ |
॥ अथ षोडशी ॥
अयं स्तुतो राजां वंदि वेधा अपश्च विप्रस्तरति स्वसेतुः ' ।
| स क्ीव॑तं रेजयत्सो अभ्रिं नेमिं न चक्रम्ैतो रधुटु ॥१६॥ क
॥ छ अयं । स्तुतः। राजां । वंदि । वेधाः । अपः, च। विप्रः। तरति। स्वऽसैतुः। ४ ।
8 सः वीत रेजयत् । सः । निं । नेमिं । न । चक्रं । अपैतः । रषुऽदु॥१६॥ =
ह सयं वेधाः सर्वस्य विधाता राजा सोमः स्तुतः सर्वर्वदि। लूयतेऽस्माभिः। ` ८
म० १०, ०५, सू० ६१. ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥
॥ खथ सप्नदशी ॥
1 = व 92 क 4. न=]
स िधुर्वेतरणो यष्टा सवधु धेनुमस्वं दुह्य ।
॥ १७।
दुह्य!
पयेमणं । वरू येः ॥ १७॥
सौऽग्िहिंवधुद्धेयोरततोकयोगेधुभूतो वचेतरणः स्वैस्य विशेषेण तारयिता
यज्ञा वितरणा्हो हविःप्रदानाहो यष्टा देवानां याजकोऽग्रिः सवधुममृतोपमप-
योदोग्धरी धेनुमस्वमग्रसूतां निवृह्प्रसवां श्यवे ुहध्ये दोहायाकरोत् । यद्यदा
शयुभमिचावरूणावयेमणं च व्येष्ेभिज्य्ठेः प्रशस्ते वैरूये वैर णीयेरूक्येः श्तेः सं
वृजे सम्यक् स्तोति । यदा स शयु्भिचावरुणायम्लां स्तुतिं करोति तदा तेषा-
माज्ञयाग्िनिवृच्चप्रसवां पयोरीग्धीमक्ोटिति ॥ ¢
सः। चिऽवंभरः। वेतरणः। यष्टा । सवःऽधुं । धेनुं ।
शकि ` भि शथे ॥ 1 हि ।
सं । यत्। मिचावरुणा । वजे । उक्थे
षी
॥ अधा्टाटशी ॥ 4
तद्धुः सूरिदिवि ते धियंधा नाभानेर्दि्ो रपति मर वेन॑न् ।
सानो नाभिः परमास्य वां घाहं तत्पश्चा कतिथश्चिदास ॥१६॥
त्ऽबधुः। सूरिः । दिवि। ते। धियंऽधाः । नाभानेरदिष्ठः। रपति । प्र वेन॑न्।
= | | <. ६
सा।नः। नाभिः। परमा।अस्य। वा। घ। सहं । तत्। पश्चा। कतिथः। चित्। आस ॥१४६॥
तङ्कः । सेव पृथिवी वंधिकोत्मच्यधिष्टानतरेन यस्यासौ तद्ंधुः । तन्मातृ
इत्यथः । सूरिः स्तुतेः प्रेरको दिवि वतेमानस्य ते तव स्वभूत इति शेषः
॥ चऋणग्वेद्ः ॥ ०४, ख० १, व्० 39.
1 ॥ अयेकोनविंशी ॥ क
. इयं मे नाभिरिह मे सधस्थमिमे मे देवा अयमस्मि सवः
१ दिजा आह प्रथमजा ऋतस्येदं धेनुर॑दुहज्नायमाना ॥ १९॥ ध
इयं। मे । नाभिः । इह । मे। सधऽरस्यं। इमे। मे । देवाः। अयं । असि । सवेः। _ (
िऽजाः। हं । प्रथमऽजाः। ऋतस्य । इट् । धेनुः। अटुहत्। जाय॑माना ॥१९॥
: इयं माध्यमिका वाग्मे नाभिः संनाहिनी । आदित्यस्य तस्याश्चाभेदाद-
स्यर्षमाध्यमिका वाग्बंधिका भवति । तथा च ब्राह्मणं साया वागसौ स
रादित्य इति ब्राह्मणं । इहास्मिन्मडले मे मम सधस्थं स्यानं । इमे मे देवा
द्योतमाना रश्मयो मे मम स्वभूताः । अयमहमस्मि सवैः । सूयेस्य स्वस्योक्तेन न
प्रकारेणभेदा्तहारा सवेोत्मकलं । अह विंचेत्यथेः। दिजा विप्रा कतस्य प्रथमजाः
| सत्यस्य प्रथमजाः सत्यभूतस्य ब्रह्मणः प्रयमोत्यच्ाः । नुः पृश्चिदेवता साध्य
मिका वाग्जायमानेद्ं सवेमटुहत् । टटोह । उटपाटयदित्यथैः ॥ ॥ -.
0; ॥ अथ विंशी ॥ श
अधासु मंदरो खंरतिविभावावं स्यति दिवतेनि्ेनेषार् ।
` उध्वौ यच्छेणिने शुदेन्मष्ू स्थिरं शेवृधं सूत माता ॥२०॥ ; 4
| अध॑। आमु । मंद्रः। अरतिः विभाऽवां। अवं । स्यति। दिऽवतेनिः। वनेषाट्। `
- ऊष्वी।यत्। घरेणिः। न । शिषः । दन् । मु स्थिरं । शेऽवृधं। सूत। माता॥२०॥ = `
मंदो मोदमानोऽरत्िगता विभावा दीधिमान् हिवतै-
` निहयोर्लोकियोभं ता ता वनेषाट् वने काष्ठानामभिभवितताग्रिरव स्यति । अवसन्नो
भवति यागाथ । यचच योऽमिरबेन्पुला णिन शिष्तुः शंसनीयो
. दन् शचन्दमयति तरि निश्चलं शेवृधं सुखस्य वधेकं मातारणि
कै
अष्टमो ऽ टकः ॥ ७३ [छ
अध॑ । गाव॑ः। उप॑ऽमातिं । कना्याः। अनुं । चित्। परा । शयुः [ति
त्वं । सुऽदूविणः। नः। लं । याट् । आश्व ऽस्य । ववृधे । [वि
मरति क्स्य चिच्छूतस्य प्रवृद्धस्य ्रांतस्य वा । आत्मनो निर्देशः । = ।
नाभानेदिष्टस्य कनायाः कमनीयायाः स्तुतेगावो वाचः । यज्ञा वाचः (ह
तयः कनायाः कमनीयायाः स्ुनेरुपमातिसुपमानभूतमिंदरमनु परेयुः । अनु `
पणगच्छति । हे सुद्रविणः सुधनाप्रे तं शुधि । णृणु । नोऽस्माकमिममिदं 1
याट् । अयाट् । यज । तं चाश्वन्रस्य । अश्वप्नोऽश्वमेधयाजी मनुः । तस्य पुचस्य
म सूनृताभिः स्तुतिभिवेवृधे । वर्धसे । पुरूषव्यत्ययः । अथवायं वधत इति ` [जि
परोक्षेण निर्देशः ॥ 1 1 १ | (शि
॥ अथ हार्विंशी ॥ ^ क |
अध तव्िद् विद्यकस्मान्महो राये नुंपते वज॑वाहुः। (हि
| षा च नो मघोन॑ः पाहि सूरीननेहसस्ते हरिवो अभिषटों॥२२॥ छ 1 0
४ अध । तवं । इट् । विधि । अस्मान्। महः । राये। नृऽपते । वज॑ऽबाहुः। ` &
१ रख । च। नः। मघोनः पाहि । सूरीन्! अनेहसः ते। हरिऽ्वःअभिष्टो॥२२।
1 हे इद्र अधाधुना वजवाहृस्वमस्मान्महो महते राये धनाय विहि । जानीहि ! [|
हे इर मधोनो हविष्मतः सूरीन् स्ुतिप्ररकाननोऽस्मानछ्ष च। हे हरिवो हरिभ्यां | |
तदनिद्र ते तवाभिष्टावभिगमनेऽनेहसोऽपापाः स्यामेति शेषः ॥ न
1 ॥ सथ चयोविंशी॥ व ॥
अध यदराजाना गवि्टो सर्॑तसरण्युः कारवे जरणयुः। = (0
प॑षदेनान्
विग्रः पेष्टः स द्यंषां बभूव परां च वषदुत
लान् ~ 8
विभ गरेः । सः । हि। एषां । वमू । पर॑ । च । व्॑त्। उत । पथ्
हे वरुण त्वं विप्रश्चासि विप्रवत्पूज्यः गुदो वा भवसि । अवसश्चान्नः
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विश्वच्र यस्मिना गिर॑ः समीचीः पूवीवं गातुदाषतूनुतयि ॥२५॥ `
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गिरस्ः पषेत् पारयत्वित्यात्मन एवाशस्ते ॥
५ ॥ सथ चतुर्विंशी ॥
अधा न्व॑स्य जेन्यस्य पुष्टौ वृथा रेभत इमहे तदू तु ।
। सरण्युरस्य सूनुरश्नो विप्र्॑षासि अव॑सश्च सातो ॥२४॥
अर्धं । नु । अस्य । जेन्यस्य पु । वृथा । रेभ॑तः । ईमहे । तत्। ऊ इतिं ।
सर्णयुः। अस्य । सूनुः । अश्वः । विप्रः । च । असि । अवसः । च। सातौ ॥२४।
नया वरुणं पृथक् स्तौति । अधा नु रिप्रमस्य जेन्यस्य जयशील
तत्या जेतव्यस्य वा तत्स्वभूतं गवादिधनं पुष्टो पोषे निमि सति तस्य पुष्यथ ५
वा वृथानायासेन रेभंतः स्तुवं्तौ नु सिप्रमीमहे । याचामहे । सरण्युः शीघधस- ५
र्णशीत्ोऽश्वोऽस्य वरुणस्य सूनुः पुचः। वरुणाद्यश्च उत्पन्नः । खथ प्रयक्षकृतः ५
सातौ
तामेऽस्माकमनत्ठाभाय प्रवृच्चश्च भवसि ॥ ।
ष ॥ अथ पंचविंशी ॥
` शुवोयदि सख्यायास्मे श्धीय स्तोमं जुजुषे नम॑स्वान् ।
युवोः । यदि । सख्यायं
स्तोमं । जुजुषे । नम॑स्वान्।
सं ऽश्चीः। पूर्वीऽईव। गातुः दात्। सूनृतयि॥२५॥ = | `
। अस्मे इतिं । शीय ।
। यस्मिन् आ गिर॑ः,
युवोयुवयोः शधाय बल वतेऽस्मे अस्मान
सख्याय
५
गृणानः। अत्ऽभिः । देवऽवान्। इतिं । सुऽ बंधः । नम॑सा ।
धेत्। उक्थेः। वच॑ःऽभिः। आ। हि। नूनं। वि। थ्व! एति। पय॑सः। उसियां
य हि नूनं
॥
।।
देवताभिर्देववान् सुवंधुः शोभनवंधनः स वरूण
श्वेति पय॑स उक्सियांयाः ॥ २६।
याः॥२६॥
खि सरतीत्यथेः ॥
त ऊषु णो महौ य॑जचा भूत दैवासर ऊतय सजोर्षाः ।
ये वाजां अन॑यतता वियतो ये स्था निचेतारो अमूराः ॥२७॥
ते। ऊ इति । सु । नः। महः। यजाः ।
4
भूत । देवासः । ऊतये । सऽजोर्षाः
ये । वाजांन्। अन॑यत । विऽयंतंः । ये । स्थ । निऽचेतारः। अमूराः ॥२७॥
ऋनयषिरगिरस
पूरणः । महो महते नोऽ
ये च यूयममृराः षष्ठाहःप्रयोगमोदयरहिता इत्यथैः । ताहश्
आस्ते । हे यजचा यष्टव्या देवासो देवाः ते यूयं । ऊ इति
कमूतये रक्षणाय सजोषाः संगता भूत । भवत ।
ये च यूयमगिरसो मद्यं वाजानन्नान्यनयत प्रापयत वियतः सत्ततसुक्याय वि-
विधं गच्छतः संतः।
निचेतारो गवां विविक्तारः स्यं भवथ ते सजोषा भूतेति समन्वयः ॥
1
इत्य्टमस्य प्रथमे चिणो वैः ॥
॥
1;
नैः
तिवचोभिनुंनमिदानीमा गद्छव्विति शेषः। हीति पूरणः तस्य या-
थेसुखियाया मोः पयसोऽध्वा मार्गो व्येति । सवनाय
॥ रथ सप्रविशी ॥
1.11
सूचितं च । इदमित्था रोट्रमिति प्रागुपोत्तमाया ये यज्ञेनेत्यावपते । खा०४.१.। छ
॥ ऋग्वेट्ः ॥ ०७८, ०२, व०१.
यस्य निःश्वसितं वेदा यो वेदेभ्यो ऽखित्ठं जगत्
निर्ममे तमहं वद् विद्यातीथेमहेश्वरं ॥
व्याख्याय प्रथमं विह्वानष्टमस्या्टक्स्य सः
ध्यायं सायणशामात्यो हितीयं वयाचिरीषेति
तच ये यसेनेवयेकादश्च॑मनुवाकापेषया हित्तीयं सुक्तं । मानवस्य नाभानेटि-
हस्या । आदितश्चतसो जगत्यः । पंचम्यनुष्टप् । षष्ठी बृहती । सघ्रमी सतो-
हती । अष्टमीनवम्यावनुष्टनो । दशमी गायत्री । एकादशी चिष्टप् ।
घरां विश्वे देवा अंगिरसो वा देवता । सप्रमी वेश्वदेवी । अष्टम्याद्यासु
यज्ञेनेकादशद्याः षक्रगिरसां स्तुतिवीत्या चिषटप्पंचम्यनुषटुष्प्रगाथोऽनुष्ुभो गा-
ची चतसोऽत्याः सावर्णेदानस्तुतिरिति ॥ ष्ेऽहनि वेश्वदेव शस्व एतत्सूक्तं । ~
इति ॥
॥ तच प्रथमा ॥
ये यज्ञेन दक्िंणया समक्ता इदस्य सख्यम॑मृतत्वमां नश ।
तेभ्यो भद्मगिरसो वो अस्तु प्रतिं गृन्णीत मानवं सुमेधसः ॥१॥ ।
। द््षिंणया । सं ऽअ॑क्ताः । इंदरस्य । सख्यं । अमृत ऽत्वं । आनभ ।
। अंगिरसः। वः। खस्तु । प्रतिं । गृभ्णीत । मानवं । सुऽमेधसः ॥१॥ |
चे , (के \ „शि कि ।
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५ ^ 1 ध
नाभानेदिष्ठः स्वपिचा मनुनाभ्यनुज्ञातः स्मासीनानंगिरसोऽभ्येत्य मां
त युष्मभ्यं यज्ञं प्रज्ञापयामीति यदुक्तवान् तदुच्यते । इतिहासस्विद-
॥,
। पथय डितीया ॥ |
तेनाभिटन्परिवत्सरे वद्धं ।
न प्रति गृभ्णीत मानवं सुमेधसः ॥२॥
। उत्ऽञ्नाज॑न्। पितरः गोऽ म्य । वसुं । ऋतेन । अभिदन्। परि वत्सेरे। वः
भवनत किकः ` केके प्के ॥
गिरसः। वः। अस्तु । प्रतिं । गुमभ्णीत । मानवं । सुऽमेधसः॥२॥
पित्तरोऽ स्माकं पू वैजल्वेन पितृभूता ये यूयं मोमयं गवात्सकं पणि-
भिरपहतं वसु धनसुटाजन् तेरधिष्ितात्पर्वतादुटगमयन् । विच ऋतेन सत्यभूतेन
रिवत्सरे पयोागते वत्सरे संप्रणें । सचांत इत्यथैः । तच वत्ठं वत्छनामानं
पहतारमसुरमभिंदन् व्यनाश्यन् तेभ्यो वो युष्मभ्यं दीधोायुचं प्रभूतजीव-
तु । शेषं पूवेवत् ॥ | ४
॥ अथय तृतीया॥ 1
तेन सूयेमायेहयन् दिव्यप्रथयन्पृथिवीं मातरं वि ।
प्रजास्व्मगिरसो वो खस्तु प्रतिं गृभ्णीत मानवं सुमेधसः ॥३॥ `
[१ ॥ १
तेनं । सूयं । आ । अरोंहयन्। दिवि । अप्र॑ययन्। पुथिवीं। मातरं । वि
५: हे गिरः
#
्रजाःऽत्वं । छंगिरसः। वः। अस्तु । प्रतिं । गृभ्णीत । मानवं । सुऽमेधसः ॥३॥
दि [१ ॥ ^ | सि) शे । जाः ` ज ऋः - उक, [प ति ति ।
11
परेरकमादित्यमारोहयन् अस्थापयन् किंच मात्रं सर्वेषां निमी पृथिवं
क
व्यप्रथयन् प्रसिामकुर्वन् सचादिक्मकरणेन तेभ्यो युष्मभ्यं सुप्रजास्वं सुपुचत्व-
छंगिरसः ये भवंत चछतेनं सत्यभूतेन यज्ञेन दिवि दयुत्मोके सूये सुषु
४ ॥ ्छग्वेद्ः॥ [ऋ०४, ऋ०२. व०२,
टृ्टारौ हेऽगिर-
: पचा ऋषयोऽ तीद्वियाथेः
हे देवपुचा देवानां पुता
कं गुहे
सोऽयं नाना नाभानेदिष्ठः पुरोवर्ती जनो वो यु
कस्याणं वचो वदति । तद्वाक्यं यूयं ष्वृणोत्तन । महतादरेण
॥॥
तघ्रनघ्रनथनाश्चेति तनवददेशः। तेभ्यो युष्पभ्यं सुब्रह्मण्यं शोभनं ज
इटानीमागतं मानवं मां प्रति गृभ्णीत । प्रतिगृह्धोत ॥ |
५ क ॥ खथ पंचमी ॥
वि्ूपास इहष॑यस्त इद्॑भीरवैपसः
ते अंगिंरसः सूनवस्ते अपरैः परि जरि ॥५॥
क विऽषूपासः। इत् । ऋष॑यः । ते । इत् । गभीरऽवेपसः। ` ^ `,
0 ते । अंगिंरसः । सूनवः । ते । अपरैः । परि । जसिरे ॥५॥ #
परोक्षतयर्षिंराह । ऋषयः कर्मणां दृष्टार एत खषयो विरूपास इ
^ रेतो रूपतश्च नानारूपा भवंति । त इत् त एवामी अभिरसौ ग॑भीरवेपसः।
| वेप इति कमेनाम । गंभीरकमाणो भवंति । त इमेऽगिरसः सूनवः पुचाः
| खल्ु। तदेवाह । त इमेऽगिरसोऽग्रेः परि जज्ञिरे सवेतो जाताः प्राटुभूताः। ॥
| येऽगारा आसंस्तेऽगिरसोऽभवलिति ब्राह्मणं । खच निरुक्तं च द््टव्यं ॥ ह
0 1 ` ॥ इत्यष्टमस्य डितीये प्रथमो वगः । 4.
क. ` ॥कयवही॥ क
8 येयः जसि विरूपासो दिवस्परिं। ४ 1
कि. नु दश॑ग्बो अंगिंरस्तमः सचां देवेषु मंहते ॥६॥ =
@ रि। जिरि विऽशूपासः । दिवः । परिं। = |
रःऽत्तमः। सचां । देवेषु ।
ध 9 ॥
<,9 । (
० १०.अ०५. सुर चैर.| अषशटमोऽषटकः॥ | ७९
अथ सघ्रमी ॥
दरेण युजा निः संजंत वाघतो जं गोम॑तमश्विनं । ५५
सहं मे दर्दतो अष्टकण्यं 4: वों देवेश्रत ॥७॥
इद्रेण । युजा । निः । सृजतत । वाघतः । जं । गोऽर्म॑तं । अश्विनं ।
अ
च
सहं । मे । ट्दतः। अष्ट ऽ कणेः । रवः । देवेष । त्रत ॥७॥
क्का केष | सि ति । ङ
वाघतः कमणां वोढारो विश्वे देवा खंगिरसो वेंदरेण युजा सहायेन निःसुजंत्त ।
निरगमयन् । किं । गोमंतं गीयुक्तमश्चिनमश्चवंतं पणिभिर वरडं वजं । ते
मां प्रति सहस्रं सहसखरसंख्याकं धनं सत्तपरिवेषणमषटकणयेः । अष्ट इति अन्
प्रो निष्ठायां रूपं । विस्तृतकणोः । उपलषषनमेतत् । व्याघ्रसवोवयवा गाश्च
दत्तौ मद्यं प्रयच्छतो देवेषिंदरादिषु रवो हविलक्ष णमन्तं कीर्तिं वाक्रत । अकृषत ।
करोतेटडिः मंचे घसेति बटुक् । णवं नाभानेदिषेनांगिरसः स्तुतासतस्मे ` धनं
प्रादुः । तदुक्तं शोनकेन । षयो ऽगिरसस्ुष्टा यदटुमौनवाय तु । तत्पुण्याय च
कमाणि ये यज्ञेनेत्यकीतेयत् ॥
उत्राभिश्वतसृभिरस्मे मानवायषेये सावणिना यदलं तत्मशस्यते । तदुक्तं
्ोनकेन । सावणिना च यदत्तं मानवाय महडसु । तटुक्तं सूक्तशेषेण प्र नूनं
जायतामिति ॥ ष
॥ अपथाष्टमी ॥
प्र नूनं जायतामयं मनुस्तोक्मेव रोहतु ।
1 ः
यः सहसरं शताभ्वं सो दानाय मंहते ॥४॥
म्र । नूनं ! जायतां । खयं । मनुः । तोक्व॑ ऽइव । रोहतु! `
। शत ऽश्वं । सद्यः ! दानाय॑ । मंह॑ते ॥४॥
श
महे ॥ १०॥
1 । परिऽविषे।
दिष्टी कस्यारदेशि णसा गोपरिणसो
दासा दासवत्प्रेयवत्स्यितो तेनाधिषठितौ यदुश्
वर्णेमनोभोजिनाय ममहे । पन्नन्प्रयस्छ
५.१५
॥ प्मोऽश्कः ॥ | ¦
रिष्टो हिंसितो भवतु । यद्वा
स्य यत्तमाना गच्छती द्
षु प्रसिद्धा भवदित्यथेः । तस्या
तिरतु । प्रवधेयंतु । अ््राताः कम
सों
[नलत्छसाः
सवे कमं कुवेतो त्मन्मनो वाजं गोल्शषणमनमसनाम । संभजेमहि ।
नाभानेरिष्ठोऽदमलभ इत्याश्णसते ।
॥ इत्यष्टमस्य डित्तीये हितीयो वैः ि |
य इति सप्रदशचे तृतीयं सूक्त घतेः पुचस्य गयस्याषे । षोडशीसघ्र- `
3 दश्यो चिष्टुभो । पंचदशी चिष्ुव्नगती वा । श्टाश्चतुटेश जगत्यः । स्वस्ति नः
ति इ पथ्यास्वस्तिदेवताके । शिष्टा वेश्वदेव्यः । तथा चानुक्रतं । परा-
ना गयः ्लातो दिबिष्टुवंतं तु स्वस्ति नस्तिष्टुबा सह चोच्रया पथ्यास्व-
क स्िदे व्येति ॥ पुष््याभिक्षवयोल्तृतीयेऽ हनि वेश्वदेव एतत्सूक्तं वेश्वदेवं निविडधानं ।
५५ ॥ तच प्रथमा ॥
परावतो ये दिर्धिषंत आपं मनुप्रीतासो जनिमा विवस्व॑तः
, ययते नैहष्य॑स्य वहिषिं देवा आसंते ते अधि बवतु नः ॥१॥ `
# भत
पराऽवतत॑ः।ये। दिधिंषे। आं । मनुऽप्रीतासः। जनिम । विवस्व॑तः।
` ययातिः । ये। नहू्॑स्य । बहिषिं । देवाः। आसते । ते । अधिं । बवतु । नः ॥१॥
ये देवाः पराव
रयंति। यद्वा हवि
( कुमे इति परस्यरं
44
|
| ० ७, प० २, ठ
५.4 ॥ ऋग्वेदः ॥
८ . ॥ खय हित्तीया ॥
4 विश्वा हि वों नमस्यानि वंद्या नामानि देवा उत यज्ञियानि वः ।
पषण प्ण्क
जाता अरदितिरद्यस्परि ये पंथिव्यास्ते स॑ इह श्चुता हवं ॥२॥
| विर्वा।हि। वः! नमस्यानि। वंद्य । नामानि, देवाः। उत्त। यक्षि्यानि। वः
श
९)
` ये।स्थ।जाताः। अरतिः। अत्ऽन्यः। परि ये। पुथिव्याः। ते। मे। इह । शुत । ह्व ॥२॥
1 हे देवा इदरादयः । हिरवधारणे । वो युष्माकमेव नामानि नमनीयानि
६ विश्वा सवशि शरीराणि नमस्यानि नमस्काराहोणि भवंति वद्या वंद्यानि
~ स्तोतव्यानि च भवंति । ये यूयमदितेरदीनाद्युलो कादयः । खंतरिछनामेतत् ।
ऋंतरिक्षात्। परिः पंचम्यथंद्योतकः । पृथिव्याश्च जाताः प्रादुभूताः स्थ भवथ ते
| यूयमिहास्मिन्यज्ञ आगत्य मे मदीयं हवमाद्धानं श्रुत । भृशुत ॥
\
|
ऋग्रिष्टोमे वेश्वदेवशसते येभ्यो मातेगयेषा धाय्या । सूनितं
यत्पृश्चिगभो येभ्यो माता मधुमत् । सखआ०५.१४.। इति ॥
@
खयं वेनश्चोट्-
: ॥ सेषा सूक्ते तृतीया ।
येभ्यो माता मधुमत्पिन्वते पयः पीयूषं चौरर्दितिरद्रिहाः
॥
पिन्व॑ते । पय॑ः। पीयूषं । चयौः। अदितिः । अद्िऽ बहीः
षऽभगन्। सुऽखभ्न॑सः। तान्। आदित्यान्। अनु। मट्। स्वस्तय॥३॥
#
म०.१०५. ख० प, सूर &३.] ॥ इपृ्टमो ऽकः ॥ | ४३ |
। ॥ अथ चतुर्थीं ॥
छंसो अनिंनिषंतो अहेणां वृहदेवासों अमृततल्मांनभुः । ¦ ।
तीर्था सर्हिमाया अनागसो दिवो वष्मौणं वसते स्वस्तये ॥४॥ ॥
चशसः । अनि ऽमिषंतः। अरेणा । वृहत् । देवासः । अमृतऽचं । आननः । क ५५
# ॥
#
तिःऽरयाः। सर्हिंऽमायाः। अनागसः। दिवः वष्मारं । वसते । स्वस्तये ॥४॥
^ भैना किनतः शमि
नृचषसः कम॑नेतुणां मनुष्याणां द्टारोऽत खवानिमिषतो निमेषमकुवाणाः |
सवेदा जागरूका देवासी देवा अहेणा त्रोकस्य परिचरणशाधें स्तोततव्यत्वाय ध
वृहबुंहितममृतवममरणएधमेमानभुः । प्राप्नाः । देवाः खल मनुथेः पूज्याः । ॥
तस्मात्पूजाहेतुं देवत्वमानशिरि । खत एव ज्योतीरथा दीष्यमानरथोपेता अहिमा- ४
दप्यहतव्यप्रज्ञा अनागसः पापरहिता आदित्या दिवो द्युत्मोकस्य वष्माणं
नाभिस्थानं समुच्छितं देशं स्वस्तयेऽविनाशय लोकस्य समकर णाध वसते ।
अधिवसति । यद्वा स्वतेजसाच्छादटयंति ॥
1.1
॥ अथय पचमी ॥ ४
सघाजो ये सुवृधो यज्ञमा ययुरप॑रिङता दधिरे दिवि षयं ।
तौ आ विवास नम॑सा सुवुक्तिभिंमेहो आदित्या अदिं
संऽराज॑ः। ये। सुऽवृध॑ः। यज्ञं । आऽययुः। अप॑रिऽङ्कताः। दधिरे । दिवि । क्यं
विवास। नमसा। सुवृक्तिऽभिः।म दत्यान्।अर्दितिं स्वस्तय ॥५॥ `
याजमानाः सवृधः सुवृद्ा ये देवा
तोऽ परिङ्ताः य
कुवे 4. .' :
भै
, ब् | ४ #
| ॥ पथं ष्टा ॥ ।
“ कोवः स्तोमं राधति य॑ जोष छ
| को वोऽध्वरं तुविजाता अरं करद्यो नः पधेदतयह॑ः |
कः। वः। स्तोमं । राधति । य॑ । जुजोषथ । विश्वै । देवासः। मनुषः स्थनं
कः। वः अध्वरं तुविऽजाताः। खरं । करत्। यः। नः। पषैत्। अति । अंहः स्व स्तय ॥६।
ऋषिर्दवान्प्रति बहूधा वितकेयति । हे देवा वौ युष्माकं कः रोमं
चिवत्पं चटशदिल्ठक्षणं राधति संसाधयति । न क्थिदस्तीत्यथेः । यद्वा मटन्यः
को वो युष्पण्यं स्तोमं करोति यूयं यं स्तोतार जुजोषथ । सेवध्वे । जुषी प्रीति-
सेवनयोः । लेटि शपः च्चः । अडागमः । विं च हे मनुषो मतारो ज्ञातारो हे
ध विश्च देवासो देवा यूयं यति यत्संख्याः स्यन भवथ । यच्छनब्टाटपि हांद्सौ
इतियः । हे तुविजाता धाचादिविभागेन बहुजनना हे देवा युष्मटथं को
` बा यजमानोऽध्वरं यज्ञमरं करत् अलंकरोति सुतिभिरैविरभिश्च मदन्यो ना- `
सती्यथैः । यो यज्ञो नोऽस्मान् स्वस्तयेऽविनाशयांहः पापरूपं माग॑मवेदि-
कमति पेत् अतिपारयति तं यज्ञं को वाल्क्रोतीति ॥
॥ थ सघ्रमी ॥ 3. 4
हं शोचा प्रथमामायेजे मनुः समिद्लाप्रिमेनंसा सत्र होत्तेभिः | | | ॥
त: कते सुपां स्वस्तये ॥७॥
:। समिंद्धऽदभिः। मन॑सा। सप्त! होतंऽभिः। `
यदत । सुऽगा। नः! कते । सुऽ पथा । स्वस्तये ॥७॥
1
मनु्ाणं प्रथमभा
म० १०, ख०५, सू०&३.| ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥
॥ अथाष्टसी ॥
य ईशिरे भुव॑नस्य प्रचेतसो विश्व॑स्य स्थातुजेग॑तश्च मतत॑वः ।
ते न॑ः वृतादर्कुतदेन॑ंसस्ययेद्या देवासः पिपृता स्वस्तय ॥४॥
ये । ईरिरि। भुव॑नस्य । प्रऽचेतसः । विश्व॑स्य । स्थातुः । जग॑तः। च । मंत॑वः।
ति। नः। कृतात् । अर्वुतात्। एन॑सः। परि । अद्य । देवासः। पिपृतत । स्वस्तय ॥४॥
प्रचेतसः प्रकृष्टज्लाना मंतवः सवस्य वेदितारो ये देवाः स्थातुः स्थावरस्य
ी जंगमस्य विश्वस्य सवस्य भुवनस्य लोकस्येशिर ईश्वरा भवंति । अथ
त्यक्ुकृतः । हे देवासो देवा य उक्गुणस्ते यूयं नोऽ स्मान्कृतात्कायिकात्पा-
पात् खकृत्तात्तसचरणादिभिरकृतदेनसः किंतु मानसात्मापाचाद्यासिन्दिने स्वस्त-
येऽविनाशयायुषोऽभिवृद्धये पिपृत्त ! पारयत । पापरहितान्कुरतेत्यथः ॥
॥ खथ नवमी ॥
भधर सुहवं हवामहेऽहोसुचं सुकृतं दष्यं जनं !
भन्निं मिचं वरुणं सातये नगं चावापृथिवी मरतः स्वस्तय ॥९॥
भेषु । इदु । मुऽह्वं । हवामहे । संहःऽसुचं । सुऽ कृतं । दैव्यं । जनं ।
त्क पके = चवे
अभ्रिं । मिं । वरणं । सातये । भर्ग । द्यावापृथिवी इतिं । मरतः । स्व स्तय ॥९॥
अरोसुचमंहसः पापस्य मोचकं सुहवं शोभनाहानभिंद् भरेषु ।
भजेयंति विनाशयति शच्रूनचेति भरः संयामाः । तेषु हवामहे ।
| ४६ [र ॥ ऋग्वेदः ॥
५. : पृथिवीं द्यामनेहसं महीमू षु मातरं सु्रतानां । आ०४.३.। इति ॥ प्रयाणे ऽ नयेवं |
| नावमारोहेत्। सूचितं च । सुबामाणं पृथिवी द्यामनेहसमिति नाव ।आआर्गृश्र, .।
&.। इति ॥ पा |
५ ` ॥ सषा सूक्ते दशमी ॥ =
तामसं पृथिवी ननं वमौ एमदिति मुमि
देवीं नारव स्वरामनांगसमस॑वंतीमा स्हेमा स्वस्तये ॥१०॥
॥ ^ भुऽरामांणं। पृथिवीं । दयां । अनेहसं । सुऽ शमे। णं । अर्दितिं ¦ ऽप्रनीति।
न #
| देवी। नार्व॑। सुऽऋरिां। अनागसं । असं व॑तीं। आ । रुहेम । स्वस्तय ॥१०।
ब्युलोको नौरूपकतया स्तूयते । सु्रामाणं सुषु चायंतीं पृथिवीं विल्तृत। ।
(1 नेहसं पापरदहितां सुशमाणं शोभनसुखयुक्तामदितिमदीनां सुप्रणीतिं सुप्रणयनां
. सु प्रणेचीं देवीं देवसं बंधिनीं स्वरि्ां शोभनारिजां जलत्ाहर्णश्ीलदास्युक्ता- |
` मनागसं पापरहितामख वंतीमगच्छंती मविनश्वरीं नावं नावमिव स्थितां दयां
स्वस्तयेऽविनाशाय देवलप्राप्रय आ रुहेम । वयमारोहेम । रोहतेत्ठिडिः
शषिङ्त्यरुप्रत्ययः ॥
1 1 जत्व्टमस्य चित्तीये चतुर्थो वगेः ॥ ।
4 ६: ॥ अथेकाटशी ॥ ( ^ {
यजा अधिं वोचतोतये चारयध्वं नो दुरेवाया अभिहतः ।
पृणतो देवा अव॑से स्वस्तय ॥११॥ |
तये । चायंध्वं। नः। दुःऽएवांयाः। खभिऽहूतः। `
षत् देवाः । अवसे । स्व् यै ॥११॥ `
` = यमादि्यासो न्यया सुनीतिभिरति विश्वानि दुरित स्वस्तये ॥१३॥
। अष्टमोऽ टकः ॥ |
॥ खथ इाट्शी ॥ ` ५
अपामीवामप विश्वामनाहुतिमपारातिं दुविदांमधाय 7
| आरे दैवा षो अस्मच्यंयोतनोर णः
अप॑। अमी वां । खप॑। विश्वा । अनाहूतं । अप॑ । अरातिं । दुःऽविदर्चां। खघ ऽयतः
। # 1... कि १ |) ति ॥
आरे, देवाः । इष॑ः। अस्मत् । युयोतन । उरू । नः
देवा अमीवां रोगादिकं यन्वा रोगवद्वाधकं शचुमस्मन्लो टूरेऽप कुह्न ! ` `
पृथह्ररुत । तथा विश्वां सवामनाहूतिं देवानामनाह्ानवुद्धिं यडा देवानां `
महाशचु पृथङ्करुत । किच आअरातिमदानं त्लोभवुदधिं या देवेभ्यो हविषाम- (ल
दातार शचुमप गमयत । पि च अधायतः पापमिच्छतः श्चोटुविंदबां दुवि-
ज्ञानं दुष्टां बुधिं इत्थं च इषो बषट् सवोञ्छब्रूनस्मटस्मत्त खरे ट्रे युयोतन । =. `
पृथङ्करुत । एवं सति यूयं नोऽस्सभ्यमुर विस्तीणै शमं सुखं स्वस्तये क्स्याणाय `
प्रयच्छत ॥ ४ |
| ॥ अथ चयोट्गी ॥ 09
अरिष्टः स मतो विश्वं एधते प्र प्रजाभिंजोयते धमेणस्परि । ¢+
अरि्टः। सः। मतैः । विश्वः । एधते । प्र प्रऽजाभिः। जायते । धमैणः। परि ।
|, 1 दि | [ भेको = पे , पेषः
अं।आदि््ासः। नय॑य। सुनीततिऽभिः। तिं । विश्वानि । दुःऽइता । स्वस्तय ॥१३॥
हे विश्वे देवा विश्वः सर्वो मर्तो स मनुष्योऽरिष्टः केिटणहिंसितः
` एधते पश्ाटिभिवेधेते । तथा धममेशस्यरि धारकात्कमणोऽनंतरं स म
प्रजाभिः पुचादिभिः म्र जायते। प्रक्षेणाविभूतो
देवा नि सवाणि टुरिता दु
नयथ । अतीत्य सन्मां
८८ . ॥ ऋग्वेदः ॥ [अ०४, स०२, व०प,
यं । देवासः। अवथ । वाज॑ऽसातो । यं । शूरऽसाता । मरतः । हिते । धने ।
# 2 व
| प्रातःऽयावानं। र्थं। इट् । सानसिं । सरिषत। ञ्जा । रुहेम ।
देवासो देवा बाजसातावन्भजनेऽन्रत्ाभे वा यं रथमवथ र्थ हे मरतः
शूरसाता । संमामनाभेतत्। शूराः स्यंति सिदतेऽचेति भूराः
योडभिरतेति तस्मिन्युद्धे यं रथं हिते निहिते धने धनसुदिष्य । निमिततात्कमे-
(1 योग इति सघ्रमी । तदुदिश्य र्य । सर्वेषां देवानां मुख्यत्वादिदरमेवाभिलष्य
` वदत्यु्तरर्धेन । हे इद् सर्वेषां मुख्य प्रा्तयोवाणं । प्रातरेव युद्धं प्रति गंतारं
` सानसिं संभजनीयमरिषंतं केशचिटणर्िंसितं । यदहंद्रसहायानां मरुताम बाधकं
तं रथं स्वस्तयेऽस्माकं रक्षणाय वयमा सहेम । आरोहेम ॥
#
. म्रायणीयेष्टौ पथ्यास्वस्तेयोगस्य स्वस्ति नः पथ्यास्वित्येषानुवाक्या उत्तग
याज्या, सूचितं च। स्वस्ति नः पथ्यासु धन्वस्विति इ अग्रे नय सुपथा राये
| अस्मानिति । उदयनीयायामेत्त रव विपयेस्ते याज्यानुवाक्ये । सूचितं च ।
9 विपरीताश्च याज्यानुवाक्या इति ॥
ध सेषा सूक्ते पंचट्शी ॥
पर्यासु धन्व॑सु स्वस्त्यप्सु वृजने स्व॑ वंति ।
पुचवृथेषु योनिषु स्वस्ति राये म॑रुतो ट्धात्तन ॥१५॥
नैषु । स्वस्ति । राये। मरतः । दधातन ॥१५॥ `
म०१०., ०५. सु ६४. ] ॥ खष्टमोऽष्टकः ॥ = ४९
॥ अथ षोडशी ॥
सिरि प्रप॑थे श्रेष्ठा रेक्णस्वत्यभि या वाममेतिं।
मसानोंअमासो अरणे नि पातु स्वावेश्ण भ॑वतु देवगोपा ॥१६॥ "`
स्वस्तिः। इत्। हि। प्रप॑थे । चेष्ठा । रेक्ण॑स्वती । अभि । या । वामं । एति ।
सा। नः। अमा। सो इति। अर॑णे! नि। पातु। सुऽआवेशा। भवतु। देव ऽ गो पा ॥१६॥
| या पृथिवी ग॑तुमुद्युक्तानां प्रपथे प्रकृष्टाय मागौाय स्वस्तिरित् छेमकारिण्येक
भवति चेष्ठा प्रशस्यतमा रेक्णस्वती धनवती या पृथिवी वामं वननीयं यज्ञ
भ्येत्युत्तरवेद्यात्मना वाभिप्राप्रोति सा पृथिवी नोऽस्साक्ममा । गृहनामैत्त् ।
~ गृहं रक्षतु । तथा सो सा उ सेवारणे गंतव्ये देशेऽरणेऽरमणेऽरण्यादिके देशे वा
नोऽस्मान्नि पातु । नित्त रक्षतु । तथा देवगोपा देवा मोपायित्तारे यस्या
संति सा पृथिव्यसाकं स्वावेश शोभननिवासा भवतु ॥ प
॥ थ सप्रटशीौ ॥
` शवा क्तेः सूनुरवीवृधद्वो विश्वं आदित्या अदिति मनीषी ।
` ईशानासो नरो अमर्त्येनास्तावि जनों दिव्यो गयेन ॥१५॥
# # चैः #
` एव) छतेः। सूनुः । अवी वृधत्। वः । विश्वं । स्रादित्याः । अदि
ईशनासंः। नर॑ः । अम्॑येन । अस्तावि ! जन॑ः । दिष्य । गयैन ॥ १७॥
` सुष्पान्मनीषी प्राः स्तोता अतिरेतनामकस्य
रीत्यावीवृधत्। स्तुतिभिरवधेयत्। वधते
हेतेन स्तुतेन येन देवजनेन नरो मनुष्या ईशानासो धनस्येश्वशः
। स्तोतेः कमणि लुडि च
॥ उत्यष्टमस्य डती
सूनुः पुचो गयो नाम रख्वेव- `
एये्तस्य त्टुडिः रूपं । समर्त्येन मनुष्य- `
॥
|
॥
८. : ९० ` ॥ ऋष्वेद्ः॥
५ | ॥ तत्र प्रथमा ॥ ° ७
कथा देवानां कतमस्य याम॑नि सुमंतु नामं भृखतां म॑नामहे
कौ मुक्छाति कतमो नो सय॑स्करत्कतम उती अभ्या व॑ वतेति ॥१।
कथा । देवानाँ । कतमस्य । याम॑नि । सुऽमंतुं । नामं । भ्वुखतां । मनामहे ।
कः। मृच्छाति। कतमः। नः। मर्यः। करत्। कतमः! ऊतती। अभि) आ। ववतेति॥१॥
| १ | क । |) ति, | जनने
॥ |
# व, कि, । कके
ऋषिबेहुधात्मानं विततकेयति । यामनि । यांति गद्धंत्यवैेति यामा यज्ञः ।
तस्मिञ्मुखतामस्माभिरक्तानि स्तचराणि देवानां मध्ये कतमस्य देवस्य सुमंतु
सुष्टु मननीयं स्तोतव्य नाम कथा कथं मनामहे । उच्चारयामः। अस्मान्को वा
मृक्ाति। मृच्छतिरूपद्याकर्मेति यास्कः । कृपां करोति । कतमो वा नोऽस्माकं
न मयः मुखं करत् । करोति । कतमो वोती । चतुध्याः पू वसव णेदीधैः । ऊत्या!
: अस्माकं रक्षणायाभ्या ववतेति । अभ्यागच्छ तीत्यथेः
क, ॥ अथ हितीया ॥
१ ्तूयति ऋतवो हृत्सु धीतयो वेन॑ति वेनाः पतयंत्या दिशः
1
न मडिता विद्यते अन्य एभ्यो देवेषु मे सधि कामां अयंसत ॥२॥
्रतुऽयंतिं । कत॑वः। हत्ऽसु ! धीतयः । वेन॑ति । वेनाः। पतर्यति। आ। दिः ध
॥ । \ ॥ चिक
चषके #
न) मडिता। विद्यते । अन्यः। एभ्यः। देवेषु । मे। अधि । कामांः। अयंसत ॥२॥
जोक जञ । भे, श)
हिताः ऋतवः प्रज्ञाः ऋतूयंति। अम्रिहोचादि
ताः प्रज्ञा वेन॑ति । देवान्कामयंते । वेनो
दिशेऽस्माभिनिदिष्यमानाःप्रयैमाणाः
अआगद्छधंति । यत एभ्यो यो
ते । किं बहूना ।
7: कामा अयं
म०१०.अ०१. सु०्ध8.] ॥ अष्टमो ऽकः । ५
यः नराशंसं । वा । पूषणं । अगो । अमि । देव ऽइ । अभि । अचसे। गिरा। ` ज
सूयामासां। चंदरम॑सा । यमं । दिवि । चितं । वात । उषसं । सक्तु । अश्विना ॥३॥ [१
: स्वात्मानं संबोध्याह । नराशंसं । उभे वनस्पत्यादिषु युगपदि्युभय- १
पदप्रकृतिस्वरत्व । संहितायां विप्रक्षेष्छां दसः । नरः शंसनीयमेतन्नामानं पूषणं ` [
स्वातृणां धनदानेन पोषकमेतन्नामानं । तथागोद्यमगूहितमयेगतुमणक्यं देवेद्ध ` क
वामदवाद्निच्छेषिभिदीपितमग्निं च गिरा स्तुत्यभ्यचैसे । अभिषटहि । तथा 3
सूयामासा चंदमसा। मा इति चंद्रमसो विशेषणं । माति पक्षमिति माखंटमाः। क
तो सूयोचंद्रमसो दिवि दयुत्ोके स्थितं यमं च चितं चिषु लोकेषु ततं स्वमहिम्ना त
। विल्लृतं चिस्यानं वा तमिदं वातं वायुसुषससुषःकालमक्तु राचिमश्िनाश्चिनौ ।
चेतान्देवांस्ततलिगेः स्वोचैरभिष्टहि॥ 0
१. ॥ अथ चतुर्थी ॥
कथा कवि्सवीरवान्कयां गिरा वृहस्यति वावृते सुवृक्तिभिः ।
अज एकपात्सुहवेभिच्छेकभिरहिः शृणोतु सुध्यो $हवीमनि ॥४॥
कथा । कविः तुविऽरवान् । कया । गिरा । वृहस्पतिः ववृते । सुवक्तिऽभिः।
भवेन
५ ` अजः। एकऽपात्। सुऽहवेभिः। छक्र ऽभिः।सहिः। णृणोतु। बुष्यः। हवीमनि ॥४।
कविः ्रंतप्रज्लोऽभ्रिः कथा कथं केन प्रकारेण तुवी ।रवान्बहस्तोतुयुक्तो भवी
मलथीयप्रत्ययावृत्तिः । यज्ञा तुविशब्दस्य रो मत्र्थीयिः। बाहस्ययुक्तदे
भवति।कयावा गिरा स्तुत्या बहुमान्भवति । वृहस्पततिरेतन्नामरो देवः सुवृ
शोभनाभिः स्तुति भिस्तथा वावृधे ! तथेक्पात् एको ऽसटाय एव पत्ति
तादशो दिवौ धारयिताज एतनामको देवश्च सुहवेभिः शोभ
द्विः स्तोतैवोवृधते। एते चयो देवा वधति। चरिवपेश्षय
९ ` ॥ग्वेदः॥ ` [अ०४.अ०२, व०७.
क छस्य । वा । अदिते । जन्मनि । वरते। राजाना । मिचावरूणा। आ। विवाससि । 3
च #।
अतूतेऽपंथाः। पुरुऽरथ॑ः। अयमा । सप्रऽहोता । विषुंऽरूपेषु । जन्म॑ऽसु ॥५॥
#'
हे अदिते पृथिवि दक्षस्य सूयैस्य जन्मनि तस्सिज्ञाते वरते तस्य यज्ञक्मणि
राजाना राजंतो मिच्रावरुणौ विवाससि । वाशब्द उपमाथेः। यधा तवं वेदिभूता
सती तौ पयेचर एवमिदानीमपस्मदयत्ञे कुविंति पृथिवीमाशस्ते । सीऽयैमारीणां
तमसां यत्ता नियंता सूयो विषुरूपेषु नानारूपेषु जन्मसु कमेस्वन्वहमुद्न् सप्र-
होता। सप्त रश्मयो यस्मिबसाज्लुहति प्रिपंति स एताहशो भवति। सतूतैपंधाः!
अत् तेसत्वरारहितः पंथा यस्य स। नियतगतित्वात्। चरमाणो द्यनियतगतिभैवति।
पुरूरयः। रथो रहतेः। प्रत्यहं भुक्तिभेदाह्हुरहणो भवति ॥ यदा हे अदिते प्रात्त-
स्तनि संध्ये दशस्यारित्यस्य जन्मन्यदयाख्ये जन्मनि कमणि । उद्यत्यारित्य इत्यर्थः
`. वाश्ब्ट्ः श्रुतिसामथ्यादस्षस्य वा जन्मनि त्व्तस्तवं वा जन्मनि दस्ादिति। रा-
जाना दीयमानो मिचावरणा । अह्वे भिचो राचिवैरुण इति श्चुतेरहोराचौ
भिचावरूणावुच्येते । तौ विवाससि । परिचरसि । कथं । तदनुप्रवेशेन । अधं हि
संध्याया राचिमनुप्रविशत्यधेमहरिति । उत्तरैः पूर्ववत् । सप्रहोता । इहयते-
रचेतिकमेण इट् रूपं । सप्रषेयो भरव्वाजादयो होतारः स्तोतारः संतीति । अथवा
सप्रहोता । मलििम्ुचांहसस्पत्तिसहिताः सप्तैवो यस्य होतारो भवंति तादः
अच निरतं । दकस्य वादिते जन्मनि कमणि चते राजानौ । नि० ११.२३.
इत्यादि 4 ५ ५
| ॥ इत्य्टमस्य हितीयेषष्ठोवगैः॥
॥ सथ षष्ठी ॥
वाजिनैः। मितश्टवः।
ए १ न)
मृत ।
चिः सप्ेकविंशतिसंख्याकाः ।
चयाणां गणानां प्रधानन्रूताः । तदाद्या नदीमेही मेहात्यपस्तासासुदका
भिषवाधे वनस्पत्तीन्दारूमयांश्चमसादीन्प
म्रवो वायुं रथयुजं पुरधि
॥ अष्टमोऽ टकः ॥
॥ अथ सघ्रमी ॥
यज्ञः । तस्मिन्निव त्मनात्मनैव
दातारः। ते भुरखंतु येऽश्वाः समिथेषु
घु । संयामनामेत
भिरतरेति। तेषु सं
मेषु महो महदनं जभिरे । शत्रुभ्य आ
कृणुध्वं सख्याय पूषणं ।
ते हि देवस्य सवितुः सवीमनि ऋतुं सचंते सचितः सचेतसः ॥७॥ `
प्र। वः
ते। हि । देवस्य । सवितुः। सवीमनि । ऋतुं । स
क
॥ थयादटमी
# 1
चिः सप्र सखा नो महीरपो वनस्पतीन्पवैर्ता अभ्रिम्!
कृशनुम
चिः। सप्र । सखाः। नद्यः। महीः। अप
कृष्णनु । सल्तृन्। तिथं । सऽ
सखाः सरतीनं
स्था स्ट
¦ । वनस्यतीं
मूतये ।
सवृन्तियं सधस्य आ रदं रुटरषुं सद्यं हवामहे ॥४॥
वायुं । रथऽयुजं । पुरऽधिं । स्तोमिः। कृणुध्वं । सख्याय । पूषणं ।
॥।
द । दियं । हवामहे ॥४
रतीनेदयो नदीः । सरस्वती सरयुः
न्पर्वतान्सोमाभिषवाथे
त्रामानं गंधवेमस्तृनिषूण
11)
9 1
महे ॥४॥
॥
कै
हखसाः सहसखसषख्या-
त् । संप्रायते योद्ु-
हरति ॥ हयहोभैः॥ .
चते। सऽचित॑ः। सऽच॑तसः॥$
हे स्तोतारो वो यूयं वायुं रथयुजं रथस्य योक्तारं पुरंधिं बहुकमाणमिदरं पूष-
णमेतनामानं च स्तोमेस्विवृत्पं चदश्णरिल्स्षणेः 1
प्रकुरुष्व । यथा तेऽस्मावं धनादिप्रदानेन सखायो भवंति
चितौ ज्ञानयुक्तास्ते देवाः सचेतसः परस्परं समानवुद्धयः
देवस्यादिस्य सवीमनि प्रसवेऽहि रतुं यज्ञं सचते सेवंते तस्मात्मकुरूध्वं ॥
सख्याय सखिकमेणे प्र कृणुध्वं ।
तथा कुरुत । हि यस्मात्स-
संतः सवितुः सवेपरेरक्स्य
तीन् पवेतान्। अभ्रिं । ऊत्तये ।
9 + ` ॥ ऋग्वेदः ॥ `
॥ अथ नवमी ॥ ` |
सरस्वती स्युः सिंुरूभिमिंमेहौ महीरवसा तु व
| देवीरणपों मातरः सूटयित्वो घृतवत्पयो मधुमन्नो अचैत ॥९॥
` सरस्वती सरयुः। सिधुः ऊभिऽभिः। महः। मरीः। खव॑सा। आ। य॑तु। व्छणीः।
३
| देवीः। आप॑ः मातरः सूटयित््व॑ः। घृतऽ व॑त्। पर्यः। मधंऽमत्। नः। अचेत ॥९।
महो महतोऽपि महीमेहयोऽत्य॑तं महत्य ऊभिभिः सहिताः सरस्वती सरयुः
सिंधुरेतदाद्या एकविंश्तिसंख्याका वकणीरिमा नद्यो ऽवसा रसषणेन हेतुना यंतु ।
अस्मदीयं यज्ञ प्रत्यागच्छतु । ततो देवीर्दवनशीत्ा मातरो मातृभूताः सूट्यिल्वः
१.५
प्रेरयिष्यस्तासामापो घुतवद्खुतयुक्तं मधुमद्यधुसहितमात्मीयं पयो नोऽसखभ्य-
भंचेत। प्रयच्छत ॥
॥ अथ टशमी ॥
` उतत माता बृहदिवा शृणोतु नस्वष्टा देवेभिजेनिंभिः पिता वर्चः ।
॥
४ ऋभुध्षा वाजो रथस्यतिभगों रणः शंस॑ः शशमानस्य पातु नः ॥१०॥
` उतत।माता। वृहत्ऽदिवा। शृणोतु । नः। त्वष्ट । देवेभिः। जनिंऽभिः। पितता। वर्चः
|+) भि
9 ऋशुल्षाः । वाजः। रथःपतिः । भगः। रण्व. । शंसः, शशमानस्य । पातु । नः॥१०॥ ` न 1
चय |) # ..॥
1 (0 र १ ५ #
तापि च वृहदिवा । महदिवेति यास्कः । महती रिवा दीरि्यस्याः स
ऽस्माकमाहहानं भृणोतु । तथा देवेभिरदवेर्द्रारिभिजेनिभिर्द-
सर्वेषां व्व्टेतन्नामकोऽस्मदीयं वचः भ्वृणोतु । तथभैा
; कनीयान् रथस्यती रथस्य पतिभेगश्च
ञ्च ततः शशमानस्य शंसमानं
भैक
८
0, ५
(41).
म०१०. ०५, सू०£8.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥
रणवः । संऽहौ । पितुमान्ऽईव । सय॑ः। भदा । स्दराणां । मरतां ! उप॑ ऽस्तुतिः
` गीनिः। स्याम् । यशसः । जनेषु । आ । सद् । देवासः । इया । सचेमहि ॥११॥
॥ | क्ये क | [त
संह्टो संदशेने रणो रमणीयो मस्द्रणः पितुमानिवाज्वानिव क्षयो नि-
वासः स्तोतृणां भवति । रुद्राणां रुदूपुचाणां तेषां मसुतासुपस्तुतिरनुयहवुदिभदा
कस्याणी भवति । तस्माज्जनेषु जनानां मध्ये वयं गोभिर्मवादिभियैशसो यश-
` स्ठिनः स्याम । भवेम । आ अनंतरं हे देवासो देवौ युष्मान्सदा सवैदेव्छयान्ेन
हविकेशणेन सचेमहि । सचेम । संगद्धेम ॥ ५
॥ अथ ाद्शी ॥ ॥
यांमे धियं मरत इट् देवा अद॑दात वरुण भि यूयं!
कते कगे चि
तां पीपयत् पयसेव धेनुं कुविद्रिरो अधि रथे वहाय ॥१२॥
यां । मे । धर्यं । मरतः । इद । देवाः । अद॑दात । वरुण । मित्र । यूयं ।
तां । पीपयत । पय॑साऽइव । धेनु । कुवित्। गिरः! अधि । रथे । वहाय ॥व२॥ = ` `
हे मरूतो हे इट देवा हे वरुण हे मित्र यूयं यां धियं यत्कमे मे मह्यमददात `
रत्तवंतः स्थ । मरत इत्यत्र वाक्यभेदादनिधातः । पूवेपूवेस्याविद्यमानल्वेनान्चु- ` 1
दात्तत्ं । तां धियं पीपयत । फलेनाणाययत । तच दष्टातः । पयसेव धेनुं । `
नवप्रसूतिकां गां छीरिण यथापाययंति तडत् । किंच । गिरोऽससदीयाः सतुतीरधि `
रथ आत्मीये रथे कुविद्गहुवारं वहाथ । प्राप्नाः स्य । सतुतेषु सत्सु यज्ञ प्रत्यागमनाय ` ^
1. पा नव 1 |
अ 0 1
न॑ः सजात्यस्य मरुतो.
९६ ` ॥ ऋग्वेदः ॥ ` [० ४, ०२. व॑०ए,
४
॥ द र
रवेदिलक्षणे देशे प्रथसमेव संनसामहे हविषा यच संगच्छेमहि तचैव देशेऽदि. ॥
तिर्दवानां माता नोऽस्माकं जामित्वं मनुथेः सह बाधवं दधातु । विदधातु ॥:
४ १ 4 ५
` . ॥खथचतुदे्ी॥ 7
ते हि द्यावापृथिवी मातरा मही देवी देवाज्ञन्मना यल्ियं इतः ७
५ । ४ ॥ १,
उभे बिभूतं उभयं भरीमनिः पुरू रेतसि पितृभिश्च सिंचतः ॥१ ४॥ 1
ते इतिं । हि | द्यावापृथिवी इतिं। मातरा । मही इति, देवी इतिं, देवान् । जन्सना ४
यज्ञिये इतिं । इतः। .
इति। विभुतः। उभयं। भरीमऽभिः। पुर । रेतासि। पितृऽभिः। च सिंचतः॥१४।
1 [1 नि [१ 1... ' भषणे # भनि विमि ॥। 0
यजा ते द्यावापृथिवी द्यावापृथिव्यौ देवानिंदरारीज्ञन्मनेवेतो हि। प्रा्ुतः
ण गततौ । लिटि रूपं । किचोभे द्यावापृथिव्यो भरीमभिभरशेनानाविधेरभयं .
जनं देवान्मनुधांश्च बिभृतः धारयतः पोषयतः। तथा पितृभिः पात्ठेकेरद्वेः संगते -
ते पुर पुरूण्यात्मीयानि रेतास्युटकानि सिंचतः। सरतः । प्रत्य्ेण धारयतः ॥ `
॥ थ पचटशी ॥
॥ षा होचा विश्व॑मन्नोति वाये नृहस्यतिररम॑ति ¦ पनीयसी ।
वृहस्यतिः। अरम॑तिः । पनीयसी ।
1
वृहत्। अवी वशंत्त। मतिऽरभिः। मनीषिणं; ॥१५॥
॥
॥।
||
ॐ
[.
०५, सू०द५.] ॥ अष्टमोऽ्टकः
॥ अथ षोडशी ॥
कविस्तुवीरवा कतज्ला दविणस्युट विंरसश्चकानः
उक्थेभिर मतिभिश्च विप्रोऽपींपयत्रयों दिव्यानि जन्म॑ ॥१६॥
भषणे चक 9 [१
एव । कविः। तुविऽर्वान्। ऋतऽजञाः। द्वि णस्युः। दविंण्सः। चकान्ः।
उक्थेभिः अच॑। मति ऽभिः। च। विप्रः । अपी पयत्। ग्यः । दिव्यानि । जन्म॑ ॥ १६॥
कविः ऋरंतप्रज्स्तुवीरवान् । मल्वथीयिप्रत्यया वृत्तिः । वहुस्तुतियुक्त तसा
यजस्य वेदिता दविशस्युधेनकामः। सर्व॑प्रातिपदिकेभ्यो लालसायामिति सुगा-
गमः, तस्येव विश्दटवचनं । दूविणसश्चकान इति, पश्चादिधनं कामयमान इत्यथः
विप्रौ मेधावी गयो नामषिरेवसुक्तप्रकारेणाच सूक्त उक्थेभिः शस्तेमेतिभिः स्तुति-
निश्च दिव्या दिव्यानि दिवि जातानि जन्म जननानि देवानपीपयत् अवधयत् ।
सअस्तावीरित्यथेः ॥ 1
॥ अथ सप्रदभी ॥
एवा सते: सूनुरवीवुध्लो विश्च आदित्या अरिते मनीषी ।
ये [ पथ कने
ईशनासो नरो अमर्त्येनास्तावि जनो दिव्यो गयेन ॥१५॥
। खतेः। सूनुः! अवीवृधत्। वः। विभ्वे । आदित्याः। अदिते । मनीषी! `
ईश्णानासः। नरः । अमर््यन । अस्तावि । जनः । टिव्यः। गयेन ॥१७॥
इयं व्याख्यात्ता ॥ 4
॥ इत्य्टमस्य हडितीयेऽष्टमो वगः ॥
अमिरिद्र इति पंचदश पंचमं सूतं । वसुक्रपुचस्य वसुकणेस्याषे वेश्वदेवं म
| ०७, ०२, व०९,
| ` ॥ ऋग्वेदः ॥
अग्न्यादय आदित्यादयो वृहबुहती स्वदयोश्च सोमाय एते देवाः सजोषसः
संहत्य ॥ ५
॥ थ हितीया ॥
इदराम्ी वुचहत्यैषु सत्प॑ती भिधो हिन्वाना तन्वा $ समोकसा ।
अंतरिक्ष मद्या प॑पुयेजसा सोमो घुतश्रीमेहिमानंमीरयन् ॥२॥
दाम्नी इतिं । वृचऽह्यैषु । सत्पती इति सत्ऽप॑ती । मिथः। हिन्वाना । तन्वां ।
` संऽञ्चोक्सा।
अंतरं । महिं । आ। पप्रुः। ्रोज॑सा। सोम॑ः। धुतऽश्रीः। महिमानं । ईरयन् ॥२॥
वृचहत्या युद्धानि । तेघ मिथः परस्यरं तन्वा शरीरेण तचस्येन बल्तेन शचू-
न्हिन्वाना प्रयतौ सत्पती सतां पती समोकसा समानस्यानाविंदराम्री । घृतथी-
५ रूदकं वसती वयेाख्यं यमाणो महिमानमात्मीयमीरयन् स्वैचोदीरयन् उच्रमयन्
। सौमश्च। एते सर्वे च महि महदंतरिक्षमोजसा स्ववलेना पपरुः । आपूरयति '
(पपरष
1 | ॥ अथय तृतीया ॥
तेषां हि महा महताम॑न वणं स्तोमाँ द्य॑म्येतज्ञा ऋतावृधा ५
वम॑णैवं चिचरांधसस्ते नो रासतां महये सुमिच्याः ॥३।
अनर्वा । स्तोमान् । इव॑मि। छतऽज्ञाः। तऽवृधां। =`
ऽरंधसः। ते। नः। रासतां । महये । सुऽमिव्याः॥३॥ `
॥ # "वि | ॥ 1 ॥
म० १०, ०५. सूच्दप.] ॥ अष्टमो ऽकः ॥ ~ 4
॥ अथ चतुर्थी ॥ १.५
< स्वणरमंतरिक्षाणि रोचना द्यावाभूमो पृथिवीं स्व॑भुरोज॑सा। ` =“
क | छा इव महर्य॑तः सुरातयो देवाः स्तव॑ते मनुषाय सूर्यः ॥६॥ | ॥
अ स्व. नर् । अतरिसाणि । रोचना । द्यावाभूमी उतिं | पृथिवीं । स्कु । चो्जसा । # । ८
पृाःऽडन । महर्यतः । सुऽरातय॑ः । देवाः । स्तवंति। मनुषाय । सूरय॑ः॥४॥ ` क
चषि # कि ।
(२५१९ स्वैरं सर्वस्य स्वस्वकर्मणि नेतारमारित्यमंतरिक्षाणि । द्यावापृथिव्योरंतरा `
| मध्ये धियति निवसंतीत्यंतरिक्षाणि मध्यस्थितानि रोचना रोचमानानि तेजांसि |
॥ ` ावामूमौ द्यावापृथिव्यो पृथिवीं विस्ीणेमंतरिक्षं च एतानादित्यादीनोजसा
` स्ववलेनेव देवाः स्कंधः धारयंति । स्वभ इति सोबो धातुः। लिटिषखूपं।
. किंच पृछा इव । ददिष धनानि संपचेयंत इव । अत एव महय॑तः स्तोतन्ध- ` +
५ नादिभिः पूजयंतः सुरातयः सुदाना मनुषाय मनुथाय सूरयो धनानां प्रेरका "४
` एते देवाः स्तवते । अस्मिन्यज्ञे सूयते ॥ ^
1 ९ ॥ खथ पंचमी ॥ 1 + |
छ, ^ भिचा शिक्ष वरूणाय दाभुषे या सषराजा मन॑सा ज प्रयुच्छतः (1 व ~ |
+ ययोधाम धमेणा रोच॑ते वृहद्ययोरूभे रोद॑सी नाधसी वृतो ॥५॥ श
भिचाय॑। शि । वरूणाय । दाुषि । या। संऽराजां। मन॑सा । न। प्रऽ्यु्छतः। `
। ययोः।धाम। धमैणा। रोच॑ति। वृहत्। ययोः। उमे इतिं । रोदसी इति । नाधसी इति। `
=
त
| ` दाशुषे धनानि स्तोतृभ्यः प्रयच्छते मिचाय वरुणाय च शित् । हर्व
तिदानकमो । सम्राजा समाजो स
वेस्य या यौ भिचावरूणौ मनस
१०० ॥ ऋण्वेद्ः ॥ ० ४. छ० २, व० १०.
॥ # ॥ चय षष्टी ॥
1 गौवैतेनिं पर्येति निष्कृतं पयो दुहाना बतनीर॑वारतः ५
वभय ॥ # चवि द कने, । -
ग सा प्र॑न्ुवाणा वरूणाय दाशुषे देवेभ्यो दाश्डविषां वि वस्व॑ते ॥६॥
^" ५ + ~ ॥ [त पि ॥ ॥ १ भे
या। गौः। वत्तैनिं । परिऽरुति । निःऽ कृतं । पय॑ः, दुहाना । चतऽनीः। अवारतंः
म
| ओ कणन #
सा । प्रऽन्नुवाणा । वरूणाय । दामुषें । देवेभ्यः। दाशत् । हविषां । विवस्वते ॥६।
. येयं मदीया पयः क्षीरादिकं दुहाना व्रतनीराश्रयणपयःप्रदानेन कमेणो नेची
४४ गोनिष्कृतं संस्कृतं वतेनिमावासस्यानं यज्ञम वारतोऽ वरणेनाप्राथनेनेव पर्येति
परिगच्छति । स्वयमेवागच्छति । प्रब्रुवाणा मया प्रखतूयमाना सा गौदाषुषे `
इविदै्वते वरुणाय देवेभ्योऽन्येभ्य इद्रारिभ्यश्च हविषान्नेन विवस्वते देवान्प- ४
रिचरते मह्यं मां रितं दाश्त्। पयः प्रयच्छतु । टदाम्ु दाने । केवयुडागमः ॥
। यदा गीरिति माध्यमिका वाक् या पय ऊज दुहानासा नो मंदेषमूजं ट्हाना 1
^ । ७,१००,११.। इत्यादिषु हष्टत्वात् । तत्परतया पूवेवद्योज्यं ॥ `
॥ अथ सघ्रमी॥ ` , ४
` दिवक्षसो अभ्रिजिहा ऋतावृध कृतस्य योनिं विमृशंतं आसते! ` क
तव्य १प आ च॑क्रुरोज॑सा यज्ञं जनित्वी तन्वी ठनि मामृजुः ॥७॥ ि
अश्निऽजिद्धाः। कृत ऽवृधः। तस्यं । योनिं । विऽमृशंत॑ः। आस्ते
र
# # कि
खच अपः।स। चक्तुः। छजसा। यज्ञं। जनिवी। तन्वि । नि। ममूज्ञुः॥७॥ 4
: । खघ व्यप्र । अमुनि रूपं "|
। खप्रिना हवीषि ल्विहंत्य
०५, सू० ६५. ॥ ष्ट मोऽ टकः
॥ अथाष्टमी
परिकिता पितणं पूवेजाव॑री ऋतस्य योनां छयतः समोकसा ।
वी वरूणाय सत्ते घृतवत्पयो महिषाय पिन्वतः ॥ ४
ता । पितरा । पू वैजाव॑री इतिं पूर्वऽजाव॑री। ऋतस्य । योनां । छयतः
संऽखखोक्सा। |
वापृथिवी इति । वरूणाय । सत्ते इति सऽत्रते । घृत ऽ व॑त्। पर्यः। महिषाय ।
पिन्वतः ॥४॥
५ # 2, व,
परिकिता परितो निवसंत्यौ स्वैच व्यापिन्यो पितरा सर्वेषां मातापितुभूते
अत एव पूवेजावरी पूवे जाते समोकसा समाननिवासस्याने एते द्यावापुथि-
व्यावृतस्य यज्ञस्य योना योनो स्थाने छयतः । आहुत्यधिकरणत्वेन निवसतः ।
हविधानरूपे वा शियतः। किंच सवते समानकमेणी ते महिषाय महते पूज्याय
वा वरूणाय । तं यष्टुं । उपलक्षणमेतत् । अन्यान्देवानपि । घृतवद्करणवत् पयं
उटकं पिन्वतः । सिंचतः। उदकेन द्यन्नं जायते ॥
॥ य नवमी ॥
वृषभा पुरीषिरेद्रवायू वर्णो भिचो अयमा । `
देवां आदित्यां अर्दितिं हवामहे ये पाधिंवासो दिव्यासो अप्सु ये ॥९॥
चककि
यजन्या वातां । वृषभा । पुरीषिणा । इटवायू इतिं । वरूणः। मिचः। अयैमा ।
देवान्। आदित्यान्। अदिति हवामहे। ये। पाधि वासः दिव्यास॑ः। अप्ऽसु । ये॥९॥
नवतयो
०२ ॥ ऋग्वेदः ॥ ` [० ४, ख० २, व०११.
॥ अथ दशमी ॥
वटर वायुमृभवो य ओहि देव्या होतारा उषसं स्वस्तये।
1 ६
वृहस्यत्तिं वृचरसादं सुमेधसंमिंदियं सोमं धनसा उ इमहे ॥१०॥ `
तटं । वायं । ऋभवः । यः। ओहि । देव्यां । होतारौ । उषसं । स्वस्तये
` वृहस्पति । वृचऽखाद्। सुऽमेधसं। इद्धियं। सों । धनऽसाः। ऊ इतिं । ईमहे ॥१०¦
उक्ये ॥ “ # शनो ` कणे
त ह ध
हे ऋभवः। ऋतेन सत्येन भांतीत्युभवः। उर प्रभूतं स्वतेजसा भां तीति वा ।
हे मेधाविनः। यः सोमः स्वस्तये कल्याणाय युष्माकं मदाय व्वषटप्रभूती नोहि ।
स्मोहिगेत्यथेः । भोवादिकः । आवहति प्राप्नोति । तथा बृहस्पतिं सुमेधसं सुप्रजं
॥ वि ^
| “ वृचरखाद् वृचस्यामुरस्य खादितारमिदं च प्राप्रोति धनसा धनं संभजमाना वय- |
सिंदवरियमिदज्नष्टं तं सोममीमहे । धनं याचामहे । इमह इति याचाकमो । इङः
गतौ । देवादिकः । बहुलं डदसीति विकरणस्य तनुर् ॥ न
न ॥ इत्यष्टमस्य हितीये दशमो वमः॥ `
1 ॥ ऋअथेकाटशी ॥ ४
च्य गामश्वं जन्यत ओओष॑धी वेनस्यतीन्पृथिवीं पवतां अपः
| (व
ये दिवि रोहय॑तः सुदानव सायो वरता विसुजंतो अधि समि ॥११॥
क ५
गा । अश्वं । जन्यैतः। श्ओोष॑धीः। वनस्यती॑न्। पृथिवीं । पवेतान्। अपः
;। सुऽदान॑वः। आये । ्रता। वि ऽसृजंत॑ः। सधि । समि ॥११॥
| म०१०.०५. सू०६५.] ॥ अटमोऽटकः ॥ १०
॥अखथज्वाद्शी॥ |
ज्यु महसः पिपृथो निरश्विना श्यावं पुतं वभिसत्या खजिन्वतं । ५
कमद्युवं विमदायोंहथुयुवं विष्णाप्वं 4 विष्वकायावं सृजः ॥१२॥
क ५ &
¶
भुज्यं । अंह॑सः पिप॒थः। निः। अश्विना । श्यावं । पुचं । वधिऽ मत्याः । अजिन्वत्तं। `
चोः दोः श र । ॥. ध के भष ४
कमऽद्युवं। विऽमदा्। ऊहथुः! युवं । विष्णाप्नं । विश्व॑काय । अवं । सृजणः॥१२॥ 7
1 | [ति ० 1 '!
हे अश्विनाश्ववंतो सवे व्याघ्रुवंतौ वेतन्नामको हे देवौ अहस उपद्वकारिणः -
समुदाद्धज्यं तुपुचमेतन्नामानं निः पिपृथः । निःपारयथः । नितरं रक्षणः ।
पात्ठनपूरणयोः । जोहोत्यादिकः । निष्टोम्यं पारयथः समुदात् । १. ११४. ६.।
इति निगमः । तथा श्यावं हिरण्यहस्तनामानं पुं वभिमत्या एतन्नाभिकाया
अजिन्वतं। अप्रीणयतं । अदत्तं । हिरण्यहस्तमश्चिना रराणा । १,११७.२४.। इत्यादि ~ ५
नेगमः। तथा कमद्युवं कामस्य दीपनीं वेनपुचीं जायां विमदायषेये युवमृहथुः। `
| प्रापयथः । युवं रथेन विमदाय । १०.३९..। इति निगमः) तथा विष्णाप्बमे- |
| त्न्नामानं विनष्टं पुत्रं विश्वकायषेय स्नीयाव सृजथः । अदत्तं । प्म न नष्टमिव
दशनाय । १.११६. २३.। इति निगमः ॥
1 . ॥अथवच्योद्शी॥
पावीरवी तन्यतुरेकपादजो दिवो धती सिंधुराप॑ः समूद्धिय॑ः
विश्वं देवासः शृणवन्वचांसि मे सर॑स्वती
सह धीभिः पुर॑ध्या ॥ १३॥ ६ ४ ५ | | | |
पावीरवी । तन्यतुः । एकऽ पात्। अजः। दिवः। धते । सिंधुः । आप॑ः।
देवासः। भुणवन्। वचाँसि। मे। सरस्वती । सह ।
५) ५ ४ ५ ५ + ॥
ादुपवती तहु सनयिवी वागाधयमि
र ययव ~
0 ` ॥ कम्वेदः ॥ प° ७, प° २, व्० १२,
॥ अथ चतुदश ॥
विश्वे देवाः सह धीभिः पुर्या मनोयेज॑चा अमृतां ऋतलाः।
रातिषाचो अभिषाच॑ः स्वर्विदः स्व१भिरो बहा सूक्तं जुषेरत ॥१६।
2 शे + भषको › ॥ १ #, ^) ५ ५६
शवं । देवाः। सह । धीभिः। पुर॑ऽध्या । मनोंः। यजैवाः। अमृताः । ऋत ऽज्ञाः
रातिऽसाचः। अभिऽसाच॑ः। स्वःऽ विद॑ स्व॑ः गिर॑ः। बह॑। सु ऽउक्त। जुषेरत ॥१४।
धीभिः कमेभिः सहिताः पुरंध्या प्रज्ञानेन युक्ता मनो्मनुष्यस्य यज्ञे यजचा
| अटव्या अमृता मरणधमेरहिता ऋतज्ञाः सत्यविदो रातिषाचो दीयमानं हविः
सेवमाना अभिषाच स्राभिसुख्येन यज्ञं समवयंतः संगत वतः स्वर्विद्ः सवैर
लभका विश्वे सवे इद्रायो देवाः स्वः सवे गिरोऽसखदीयाः स्तुतीवरेख महच्चान्नं
सूतं सुषु वक्तव्यं स्तोमं । यद्वा सुषु मेण सह दत्तमनं जुषेरत । सेवतां ।
जुषी प्रीतिसेवनयोः, तौदादिकः। अनुदातेत्! लिडिः मस्य रनादेशणभावष्डांदसः
बहुलं इदसीति स्डागमः ॥
॥ श 3
| ॥ अथ पंचदशी ॥
ये विश्वा भुवनाभि प्र॑तस्थः
श्मनि #
ॐ
ने नों रासंतामुरुगायमद्य यूयं पांत स्वस्तिभिः सद नः ॥१५॥
। वसिं्ठः। अमृतान् । ववंदे। ये। विश्वां । भुव॑ना । सभि। प्रऽतस्थुः।
क तति , [प
। प ^ ४ +
ते। नः। रासतां । उरूऽगायं । अद्य । ययं । पात । स्वस्तिऽभिः। सद्ा । नः॥१५॥
यमृषिरमृतान्मरणरदहिततान्देवान्वरवंदे
। एवमल्हा वीत्
॥ तच प्रथमा ॥
देवाव वृहच्डवसः स्वस्यं ज्योतिष्क अध्वर
वरस्य प्रचेतसः ।
^: | ये वावृधुः | प्रतर | विश्ववेदस इद्ज्ये्ठासौ अमृतां ऋतावृधः ॥१॥ | ५ | | | = | |
= देवान्। हवे । बृहत्ऽ वसः। स्वस्तये । ज्योतिःऽ कृतं: । अध्वरस्य । प्रऽ्चैतसः।
ये। ववृधुः। प्रऽतरं। विष्वऽवेदसः। इईऽय्ये्ठासः। अमृताः। कतऽ वुृ॑ः॥१॥ ` ४
प्रभूतान्नाञ्ज्योतिष्कृत आदित्याख्यस्य तेजसः कतैन्प्रचेतसः प्रकृष्ट-
ानांस्तान्देवानध्वरस्यास्य यज्ञस्य स्वस्तयेऽविनाशाय निर्विघ्न यङ्परिसमाघ्रये ध
हुवे । आद्धयामि । विश्ववेदसः सवेधना इट्रज्येष्ठासः। इटो ज्येष्ठः प्रधानो येषां । ०५
इद्नेतृका इत्यथः । अमृता मरणधमेरहिता ऋतावृधो यज्ेन प्रवृद्धा ये
` प्रतरमत्यंतं ववृधुः । वधते ॥ ि 1.
॥ अथ दितीया॥ ५
इदरसूता वरुणप्रशिष्टा ये सूयैस्य ज्योतिषो भागमांनणुः। =`
मस्ते वृजने मन्म॑ धीमहि माघोने यज्ञं ज॑नयत सूरय॑ः॥२॥ ` `
* इदऽप्रसूताः। वणऽप्रशिष्टाः। ये। सूस । ज्योतिंषः। भागं । आनशुः
धोने । यज्ञं । जनयत ।
| मस्त्ऽगणे । वृजने । मन्म । धीमहि। मा
1)
# त ति ति ।
। इदरपसूता इद्रेण तत्का्यषु परेरिता वरुणप्रशिष्टा वरुणेनानुषि्टा अनुमो
दित्ता ये मरतो ज्योतिषो द्योतमानस्य
सुष्यादित्यस्य भागं भजनीयं
वि 11 11
य नमन्नकयवनाणावः
१०६ ॥ ऋण्वेद्ः॥ [०४.०० २, ब० १२.
५ इदः । वसुंऽभिः। परि । पातु । नः ग्य । आदिलः। नः। अरदितिः। शमे । यच्छतु। `
रुदः । रुद्रेभिः । देवः। मृच्छयाति। नः। ववष्टा । नः म्रारभिः। सुविताय । जिन्वतु ॥३॥
वसुभिरेतन्नामकेर्टभिरदेवेः सहित इद्र नोऽस्मदीयं गयं । गृहनामेतत् ।
प्राप्रवयं गायते शन्छतेऽ चेति वा गृहं गयं । परि पातु । परिरछ्षतु । तथादितिर्द् ॥
वमातादिवदवेः सह नोऽस्मभ्यं शमे सुखं प्रयच्छतु । किच देवो दीप्यमानो रूदो |
रदेभिः स्वपुतमेरद्धिः सह नोऽ स्मान्मुक्छयाति । सुखयतु । मृड सुखने! ठेव्यृडा-
गमः । पि च व्हा प्रजापतिग्राभिर्दवपत्नीभिष्डदोभिः सुविताय सुषु प्राप्त
` ब्यायाभ्युट्याय नोऽस्माज्जिन्वतु । प्रीणएयतु ॥ |
॥ सय चतुर्थी ॥ ि ध |
१ अदितिद्यीवांपृथिवी ऋतं महदिद्राविष्णू मरूतः स्ववहत्।
देवा आंदिर्यां अव॑से हवामहे वसूनुदरान्संवितारं सुदससं ॥४॥ न,
अदितिः। द्यावापृथिवी इतिं । ऋतं। महत्। इद्राविष्णू इतिं! मरुत॑ः। स्व॑ः। वृहत् वि
देवान्। आदित्यान् । अव॑से। हवामहे वसून् । रदरान्। सवितार । सुऽ दंस॑सं ॥४॥ क
अदितिद्यौवापृथिवी द्यावापृथिव्यो महद्यहान् ऋतं सत्यभूतोऽग्िरदरिविष्ण्
` मरुतश्च बृहत्परिवृढः स्वरादित्य एते देवाः सवच स्वमहि्ना वतते । एतन्दे- `
वानादित्यारीनसुदंससं सुकमाणं सवितारमेततरामानं चावसे रक्षणाय हवामहे। `
# ~ +" ¢ ५
म०१०. अ०५. सूु०६& | ॥ अष्टमोऽष्टङरः ॥ १०७ `
धवनीयपूतमृत्सङकानि चीणि पाचाणि यच नियते संभज्य <
यंसन् । प्रयच्छतु । यच्छतेर्तेदि सिणडागमः ॥ ` ध 1
॥ इत्यष्टमस्य हित्तीये डादशो वैः ।
[ब
॥ पथ षष्ठी ॥ ८ ` 4
वृषा यज्ञो वृष॑णः संतु यज्ञिया वृष॑णो देवा वृष॑णो हविष्कृतः ।
वृष॑णा द्यावापृथिवी ऋतावरी वृषां पजन्यो वृष॑णो वृषस्तुम॑ः॥६॥ = ।
वृषा । यज्ञः। वृष॑णः । संतु । यज्ञियाः । वृष॑णः। देवाः। वृष॑णः । हविःऽकृतः।
= वृष॑णा । द्यावापृथिवी इतिं । ऋृतर्वरी इत्यृतऽ व॑री । वृषा । पजन्य । वृषणः ।
वुषऽस्तुभ॑ः ॥६॥ 2
॥
` यज्ञ एषो ऽस्मदीयो वृषा कामानां वर्षित्तास्तु। तथा यक्लियाः यज्ञहा
वृषणः संतु। किच देवाः स्तुतिकारिण ऋव्विजो वृषणो धनवषेणे कारणानि संतु
साधुस्तुत्तिकरणेन । तथा हविष्कृतौ हविषां कतरोऽ ष्वयूौदयो वृषणोऽव्ययतया
` मंचसाहित्येन च हविःप्रदानेन। अपि च ऋतावरी यज्ञवत्यो द्यावापृथिवी द्यावा- ` `
[+ पृथिव्यो वृषणा हविसत्मादनेन कामानां वषैयिच्यौ भवतां । तथा पर्जन्य इंट `
। वृषापां विता भवतु । वृषस्तुभो वषेणशीलस्तुतिभिर्दवान्स्ुवंतः सवे ऋत्विजो `
| वृषणोभवु॥ त र 1
31 ` ॥ अथ स्तम
अम्रीषोमा वृष॑णा वाज॑सातये पुरप्रश
` यावीजिरे वृषणो देवयज्यया ता
स्तवा वृषणा उप॑ब्ुवे।
चिवरूं वि यंसतः ॥७॥ `
( ` , ॥ सथाम 4 =
धृतत्रताः स्चिया यज्ञनिष्कृतों वृहदिवा खंष्वराणांमभिधियः। `
अब्निहोतार ऋतसापों खदुहोऽपो असृनननु वृचतूयं ॥४॥
धृतऽत्रताः। छचियाः। यज्ञनिःऽकृतः। वृहत्ऽदिवाः। अध्वराणां! ऋभिऽधिर्यः।
। अभ्निऽहोतारः। अतऽसाप॑ः। अदू; । अपः। असृजन्। अनुं । वचऽ तू ॥४॥
क ६ \
धृतव्रता धृतकमाणो जात्या छ्षचियाः। यडा शचं वलं । तदह यज्ञनिष्कृतः
यज् प्रति निगेमनं यज्लनिः। तस्य कतारो वृहहिवा महातेजस्का अध्वराणां रसो
` भिररहिसितानां यज्ञानामभिध्ियोऽभिसेवका सम्रिोत्तारोऽम्रिर्दोताड्ाता येषां |
तादश ऋतसापः। षप समवाये । सत्यभाजोऽत एवादुहः केषां चिदपयदोग्धारः।
यदा दुहेः कमेणयोणादिकः किप्! केिटप्यिंस्या एवंप्रभावा देवा वृचतूर्ये । वृच-
॥ येते हिस्यतेऽचेति वृचतूयेः संमामः। तस्मिन् अपामावरकशच्रुवधेऽप उदका- ५
न्य्वसृजन् । अन्वसारयन् ॥ =
द | ॥ अथ नवमी ॥
द्यावापृथिवी जनयन्नभि बताप ओओष॑धीर्वनिनांनि यक्षि । ४. ह:
अंतरं स्वथरा पं॑परुरूतये वशं देवासस्तन्वी $ नि मामृजुः ॥९॥ भ ५
द्यावापृथिवी इतिं। जनयन्। अभि। चता। आप॑ः। ्ोष॑धीः। वनिनानि। यक्षियां। `
अतर । स्वः। आ । पप्र । ऊतये । वं । देवासः । तन्वि । नि । ममजुः ॥९॥
म० १०, स०५, सू०६९,]
धतोरः। दिवः। ऋभवः । मुऽहस्ताः वातापजेन्या । महिषस्य । तन्यतोः। . ` क
॥ सआपः। ओष॑धीः! प्र, तिरतु। नः, गिर॑ः भर्गः, रातिः। वाजिनः य॑त् मे।ह्व्॥१०॥ =
|
9 ह
॥
८ दिवो द्युलोकस्य धतोरो धारयित्तार ऋभवः सत्येनं भासमानाः सुहस्ताः
णशोभनवज्वाद्यायुधयुक्तहस्ता देवास्तथा महिषस्य महतस्तन्यतोः शच्य्स्य । तनु `
विस्तारे । ऋतन्यजीति यतुच्प्रत्ययः। शब्दस्य कतारौ वातापजैन्या वातश्च पजैन्यशच
॥
तत्काया खाप ओषधीरोषधयश्च नोऽस्माकं गिरः स्तुतीः प्र तिरत । प्रवधेयंत्
प्रू वेस्तिरति वृद्धेः । तथा रातिरीता भगो भजनीयोऽयैमा च वाजिन
छअभ्रिवेयुः सूयेस्ते वे वाजिन इति तैेत्निरीयव्राद्यणं । रते देवा मे मदीयं `
हवमाड्लानं यतु । अभिगच्छतु ॥ ` ४ ५ | |
प ॥ इत्यष्टमस्य तीये चयोदशो ब्गैः॥. ` .
समुद्रः सिंधू रजो अंतरिंसमज एकपाच्ननयिल्तुरंणेवः। = ¦
7, ॥ नि ध
अहिंवुभ्यः णृणवडर्चासि मे विश्वं देवास उत सूरयो मम॑ ॥११॥
क समृदरः । सिंधुः । रजः । अंतरिक्ष । अजः । एकंऽपात्। तनयिल्तुः । अणेवः |
अर्हः बुध्य॑ः। भृणवत्। वचसि । मे। विश्च । देवास॑ः। उत । सूरय॑ः। मम॑ ॥११॥
` समुद्रः समुंदनशील्ः स्यंदमानोदकः सिध
तरा मध्ये ` कितिसुषितं रजो मध्यमल्ोकमज
। उतापि च सूरयः म्रा
+`. । , ४ ५,
न
११९ | | (1 | ॥ चछण्वेट् तटः ॥
वयं वो युष्मदीयाय देववीतये
सिन् स य् ३ यज्ञाय स्याम यज्ञकतारो भवेम । ततो नोऽस्मदीयं यज्ञं
साधुया । सुपो याजदेशः । साधु कल्याणं प्रांचं प्राचीनं प्रणयत । प्रकृ चनं
` कुरुत । हे आदित्या हे रद्रा र्ट्पुचा मरुतो हे सुदानवः शेभनदाना हे वसव |
मेमानि शस्यमानानि द्य बद्याणि स्तोचाणि जिन्वत । प्रीयत ॥ ध
: (४ अपोयामेऽ चावाकातिरिक्तोक्यस्य देव्या होतारत्येषा परिधानीया । सूचितं
च । उभा उ नूनं देव्याः होतारा प्रथमा पुरोहितेति परिधानीया । खा०९.११.।
इति॥ नि ध
॥ सेषा सूक्ते चयोदटशी ॥ ध ध ८
देव्या होत्तांरा प्रथमा पुरोहित ऋतस्य पंथामन्वैमि साधुया ।
र [| ॥. ३ ॥ ५
धस्य पतिं प्रतिवेशमीमहे विश्वान्देवां अमृतां अप्रयुद्छतः ॥१३॥
- देषया। होतारा। प्रथमा। पुरःऽर्हिता। ऋतस्य । पंथा । अनुं । एमि । साधुऽया।
ऋः = दानि
भैष
` छेस्य। परति। प्रतिं ऽवेशं। ईमहे। विष्ांन्। देवान्। अमृता न्। अपर ऽयुच्छतः॥१३॥
१ + + ^ पि कि ।
मा सुख्यो पुरोहिता पुरोहितो पुरतो निहितो देव्या देवसंवंधिनोहोतास
होतारावेतनरामानावग्न्यादित्यावन्वेमि । हविभिरनुगच्छामि। तत तस्य यज्ञस्य «`
पथां पं हिव्येनान्वेमि । अनुगच्छामि । सनंतरं ` `
पतिं पालयितारमेतन्नामानममृततान्मरण्धमै- `
वोन्देवांश्चेमहे । धनं याचामहे॥ =
+
णेन च वंधुष्रस्मासु धनं प्रेरयतेति भावः ॥
| ॥ अथ पंचदशी ॥ ५४ ~
देवान्वसिष्ठो अमृतान्ववद् ये विश्वा भुवनाभि प्॑तस्थुः। क
ति नो रासंतामुरगायमद्य यूयं पात स्वस्तिभिः सद् नः ॥१५॥ ` ५
देवान् । वसिष्टः । अमृतान्। वर्वंद्। ये। विश्वं । भुव॑ना । अभि । प्रऽतस्थुः ५
। नः। रासंतां। उरुऽगायं । अद्य । यूयं । पात । स्वस्विऽभिः। सद । नः ॥' ।
एषक् पूवमेव व्याख्यायि ॥ 7
॥ इत्यष्टमस्य हितीये चतुदेणे वगः
इमां धियमिति ाद्श्चै सप्रमं सूक्तमांगिरसस्यायास्यस्यार्ं चेष्टभं । इदमुचवरं 1
च वृहस्यत्िदेवतताकं। तथा चानुकरंतं । इमां धियं डादशयास्यो वाहैस्यत्यं विति॥
आभनिक्लविकेषुक्थ्यषु स्तोमवृज्ञो ब्राह्मणाच्छंसिन इदं सूक्तमावापाथ।
५ इमां धियमिति त्रा्यणाच्छंसी विष्णो कमिति सूक्ते! खा अ
~ ॥ तच प्रथमा ॥
इमां धिं सप्नणीं्णीं पिता न॑ ऋतम॑जातां वृहती म॑विंदत्
तुरीयं सिज्ननयदिष्वज॑न्योऽयास्यं उक्यमिंदर
० ां । धिय । सप्रऽशींष्णीं। पिता। न
` तुरीयं । स्वित्। जनयत्। विष्वऽज॑नयः
तऽ प्रजातां । वृहती । अविदत् ।
५ के कितिति, ` शिति
११२ : ॥ ऋण्बेट्ः॥ ¦ [अ०४, खं०२, वरप,
~ ---*
्शिरस्कां सघ्रभिः शिरःस्यानीयेस्तदत्मधानभूते्मैरदरणेरपेतां । यद्वा सप
मयश्िरस्कां । ऋतप्रजातां यजार्थमुत्यन्ां वृहती मिमां तनुं नोऽस्माकं द
पितागिरा खविंदत्। लब्धवान् । कमेणां ध्यातारं वृहस्यतिं पुचमत्भतेत्यर्थः ।
` येऽगारा आसंस्तेऽगिरसोऽभवन् यट्गायः पुनरवशंता उददीष्यंत तद्हस्यति-
भवदिति ब्राह्मणं । ० ब्रा०३.३४.। तथा तुरीयं स्वि्वप्रारमपि जनयदजनयडि- ध
जन्यः सवैजनहित इदरायेश्वराय बृहस्पतय इदाय वोक्थं स्तोचं शंसन् अयम-
यास्यौ नामिः । पूवमेव नोऽस्माकं पिताकार्षीदित्याह॥
1 4
ह ५५ र
| ` - .॥ अथ हितीया॥ न
ऋतं शंसंत ऋजु दीध्याना दिवस्युचासो असुरस्य वीराः। ` 1
<
विप्रं पदमंगिरसो दधाना यज्ञस्य धामं प्रथमं म॑नंत ॥२॥. . `
५
1
ऋतं । श्स॑तः। ऋजु दीध्यानाः । दिवः । पुचासंः । असुरस्य । वीराः ।
` विप्रं पदं। अंगिरसः। दर्धानाः। यज्ञस्य । धाम॑ । प्रथमं । मनत ॥२॥ `
। > [0 ह कठ, चदे क, शो. क्या)
ऋतं सत्यभूतं स्तोचं शसंतः स्तुवत छज्ु कस्याणं दीध्यानाः कमणि ध्यायतो `
दिवौ दीप्रस्यासुरस्य प्रज्ञानवतोऽग्रेरगिरसः पुचाः। अंगिरसो दऽगरिभ्यो जाता `
९ ॥।
. इ्ुक्त। अगरष्गिरा इति। वीरा विक्रांतप्रजञा एतेऽगिरसो विप्र प्रज्ञापकं यज्ञस्य „`
भाम धारकं पद् बृहस्पत्याख्यं दधानाः कमेणा धारयतः संतः प्रथममादित खव ` `
मनत । स्तुवंति । प्रजञापकवं द्येतत्स्यानं यद्हस्यतिरिति ॥ ~
भै +
५ ५" 0
देवसुवां हविःषु वृहस्यतये वाचस्यतय इत्यस्य याज्या हंतिरिवेव्येषा । सूचितं . `
बृहस्यते प्रथमं वाचो अयं हंसेरिव ससिभिवीवदद्धिः। आ०४.११.। इति ॥
स० १०. ०५, सू० £$, | ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥
विधिपन् शिथिलयन् अभिकनिक्त
न्पशनाजिहीषठः स वृहस्यतिवतते । यज्वा वावदद्धिरत्यतं स्तुवद्धिः
. ॥ अथ चतुर्थी ॥
अवी हार्यं पर एकया गा गुहा तिष्ठतीरनृतस्य सेतो ।
वृहस्पतिस्तम॑सि ज्योति रिच दुखा आकविं हि तिञ्च आवः ॥४॥
अवः । दाभ्या । परः। रकया । गाः । गुहां । तिष्ठतीः । अनुतस्य । सेतो !
हस्यतिः। तम॑सि । ज्योतिः । इच्छन् । उत्। उस्राः। आ। अकः। वि। हि। तिखः।
आवरित्यांवः ॥४॥
ज्योतिः कतुमिच्छन् तच स्थिता उखा गा उदाकः । उदकात् । प्रादुभूता
अकाषीति । इत्थमयं तिसोऽसुराणं हारो व्यावः, विवृत्तवान्सत्वु । वृणोतेतडि
मंचे घसेति चक् । बहुलं छंद्सीत्यडागमः॥
3 3. ॥ अय-पचमी ॥...
` विभिद्या पुरं शयथेमपाचीं निलीिं साकमुद्धेरवृतत्। ५
ई। पाची ।
११३
द्दानिसुख्येन शब्टयन् गाः पणिभिरपहता-
११ | | ॥ छग्वेटः
=. ॥ खथ षष्ठी ॥ |
क इट वलं रंधितारं दुघानां करेणेव पि चकत रवेण
स्वेदाजिभिराशिर॑मिच्छमानोऽरोदयत्यशिमा गा खं॑सुष्णात् ॥ 8 ति
इदः । बलं । रकितारं। दुघानां । ररेण॑ऽइव । वि । चकत । रवैण। `
. स््ेदाजिऽभिः।आऽशिर। इच्छमांनः।खरोदयत्। पणिं। खा गाः, अमुष्णात् ॥ ६
इट् ईश्वरो वृहस्यतिदैघानां सीरस्य दोग्ध्रीणां गवां रकितारं वल्मसुरं
स्रायुधकर इव स्थितेन रवेण शब्देन वत्टं वि चकते । विचिच्छेद् । किंच
जिभिः । स्वेदांजयो मरूतः कछषरदाभरणाः । तेः सहाशिरमाश्रयणं संयोग
मानः कामयमानः पणिं वलठस्यानुचरमेतन्नामानमसुरमरोटयत् । व्यनाशयत् । |
७ ततस्तेनापहता गा अमुष्णात् । आजहार ॥
५ चि; ॥ इत्य्टमस्य हितीये पंचदशे वर्मः ॥
क ॥ अथ सघ्मी ॥
भः
| सई सचयेभिः ससिंभिः भुचद्धर्गोधायसं वि ध॑नसेर॑दैः।
॥ बरहणस्यतिवृष॑भि वैरहिधै्मस्वदेभिदैविंणं व्यानट् ॥७॥
सत्येभिंः। ससि ऽभिः। भुचत्ऽभिः। गो ऽधांयसं। वि। धन ऽसेः। पदटेरित्यटदै
कि कि |
प्तिः । वृष॑ऽभिः। वराहैः । घमेऽस्वेदेमिः । द्रविणं । वि । आनट् ॥७॥
=...
मानचन्-
॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ | प्प `
2 . ते। स्येन॑। मन॑सा। गोऽप॑तिं। गाः। इयानास । इवणयंत । धीभिः ड
। मिथःऽञक््यपेभिः। उत्। उि्याः। असृजत । स्वयुर्ऽभिः॥४॥ =
गाः परिभिरषहतान्पभूनियानासोऽभिगच्छंतः सत्येन यथारथभूतेन मनसा ।
स्ते मर्तो धीभिरत्मीयेः कमैभिरेतं वृहस्यतिं गोपतिं तदाहरणेन गवां क
. स्वामिनं कुमे इतीषणयंत । रेच्छन् । बृहस्यतिश्च मिथोखवद्यपेभिः । पातः
मणयो णाटिकः प्रत्ययः । अवद्यरूपादमुराद्रसितव्या गावौ येषु मरू
छत इति ते तथोक्ताः । तैः स्वयुभ्भिः स्वयमेव युकतेमेरुद्विरख्िया गा उद- र
सजत । पवेतान्निरगमयत् ॥ | | ` र
| ॥ अथ नवमी ॥ =
तं वधेय॑तो मतिभिः शिवाभिः सिंहमिव नान॑दतं सस्य ।
हस्यतिं वृष॑णं भूरसातो भरेभरे अनुं मदेम जिष्णुं ॥९॥ ` +
तं । वुध्यतः। मतिऽभिः । शिवाभिः । सिंहंऽईव । नान॑दतं । सधस्स्ये। `
। भरेऽभरे । अनुं । मदेम । जिष्णुं ॥ ९॥ १८
सधस्थे । सह तिष््॑यच देवा इति सधस्यमंतरिखं। तस्मिन् सिंहमिव नानदतं ` ध
पुनःपुनः शब्दायमानं वृषणं कामानां वषितारं जिष्णुं जयशीत्टं तं वृहस्पति त ।
वधयंतो मरतो वयं मूरसातौ भूरेः संभजनीये भरे भर संयामे शिवाभिः कल्या- ` 4
शीभिः स्तुतिभिरनु मदेम । अनुषटुमः । स्वोतृपरतेन वा मोजनीमं.॥ ८ ध
व 1 (1 कय दशमी 4: 1
जमस॑न
+
यदा वा
दिश्वरूपमा
भवंतो ज्योतिविभतो धारयतो देवाश्च स्तुवंति ॥
॥ पथेकाटणी ॥
थे कीरिं चिद्धवंय स्वेभिरेवेः
सत्यामाशिषं कृणुता वयं
पवा मृधो सपं भवंतु विश्वास्तदो दसी भृणुतं विश्वमिन्वे ॥११॥ ॥
सत्यां । आऽशिषं। कृणुत । वयःऽे । कीरि। चित्। हि ! अवण । स्वेभिः एवः
पश्चा । मृधः। छप॑ । भवंतु । विश्वाः। तत्। रोदसी इतिं । भुणुतं । विश्वमिन्वे इतिं
| विष्वं ऽइन्वे ॥११॥ |
यथाथा कृणुत । कुरत । तथा युयं स्वेभिरत्मीयेरेवेगैमनेः कीरिं
मामवथ। रक्षथ । हिरवधारणे पश्चा । पश्चा च इटसीति निपातितः, पश्चादिष्ठाः
ष सवा मृधो हिंसिष्योऽप भवंतु । नश्यतु । तरिदमस्माभिरक्तं वचनं हे विश्वमिन्वे
` विश्वस्य प्रीणएयिच्यो हे रोदसी द्यावापृथिव्यो वृणुत ॥
4 5.८ ॥ खथ इाट्शी ॥ क
` रो महा महतो अंणेवस्य वि मृधोनैमभिनदरदस्यं । र
हन्बहिमरि णत्सप्र सिंधून्दवेद्यौवापृथिवी प्राव॑तं नः ॥१२॥ 3 ॥
इद्रः महा । महतः । अणैवस्य॑ । वि । मूधानं । अभिनत्। अर्वदस्यं! 4 1
बु हस्यतिमेहतो पशणेवस्योटकवतो ऽवु |
नत् । व्यद्छिनत् । तट्च्यते । अहिमह॑तः
: सप्र सपंणणीताः सिंधूः
५
। अशटमो ऽ टकः
छ उक्थे ब्राह्मणाच्छंसिन एतत्सूक्तं । सूचितं च 1
। ० ६.१.। इति ॥ 4
| तच प्रथमा ॥ ८
उदप्रुतो न वयो रक्षमाणा वाव॑दतो अभिय॑स्येव घोषाः! ` ष
गिरिभिजो नोमेयो मर्दैतो वृहस्यतिं मभ्य4 का खनावन् ॥१॥ वि
उट्ऽभरुत॑ः। न । व्यः । रक्ष॑माणाः । वाव॑द्तः। अभि्य॑स्यऽइव । घोष:
| गिरिऽभरजः। न। ऊमेय॑ः। मदैतः। बृहस्यतिं। अभि । अङाः। अनावन् ॥१॥
उदप्रुत उदकस्योत्रमयितारो वयः पक्षिणः। पक्वात्सस्याद्रष्माणाः कृषीवलाः क
- `. न उपमां । यथा शच्ायते । यथा च वावदतः पुनःपुनः श््दायमानस्याभि-
यस्येवाभरसमूहस्य घोषाः शब्दा यथा भवंति । किंच गिरिभ्रजो गिरिभ्यो मेचेभ्यो
| अष्टा निगेता ऊमेयोऽप्समूहा मदंतः शब्दायमाना भवंति तथणाका सअ्चकाः ४
स्तोतारो वृहस्यतिमभ्यनावन्। खभिष्टुवंति । नु स्तवने ॥ न
० ६ पथ हितीया ॥ "अ ४
गोभिंरंगिरसो नक्षमाणो भग॑ इवेद॑येमणं निनाय । 1
११ 2. जने मिचो न दंप॑ती अनक्ति वृहस्पते वाजयाभ्नू ूरिवाजो ॥ २॥ (५ 1
सं। गोभिः। आंगिरसः । नक्षमाणः। भग॑ःऽइव । इत्। अयैमणं । निनाय । `
ति । नकर ` कि
ध ध | जने । मिचः। न। ट््पती इतिं ट्ऽप॑तती । नक्त । बृहस्यते । वाज्ञय् | आम्पून् ऽइव [~
व ॥ 1
1. आजौ ॥२॥ 0 ८ 0
. ंगिरसोऽगिरसः पु्ो नसमा: सतेजसा वयाभुवन् भग इ
त शा वहस प्रेरकं स्तोतार गोभिः
वह. ॥ प्ृग्वेट्ः॥ ` | ० ए, ख० २, व० १७.
| . . ॥ खथ तृतीया ॥
साध्वया अतिथिनीरिषिराः स्वाहाः सुवण सअनवद्यरूपाः। = |
1, ॥
वृहस्यतिः पवेतेभ्यो वितूयो निमा ऊपे यवमिव स्थिविभ्यः ॥ । {-
॥ | ~ [१ ५ भ
| साधुऽञ्योः। अतिथिनीः। इषिराः। स्याहाः । सुऽवणेोः । अनवद्यऽदूपाः
0] के जि, ॥ कमिण ॥ ॥ | ~ |
बृहस्यतिंः। पवैतिभ्यः। विऽत्रूथ॑। निः । गाः । ऊपे । यर्वऽइव ।
|, 1 शक सकमक
साध्वयौः साधूनां कस्याणानां पयसां नेचीरत्तिथिनीः सततं गच्छती रिषिरा
एषणीयाः स्पाहाः स्युहणीयाः सुवणाः शेभनणुक्कादिवणेपिता अनवद्यरूपाः
॥
शस्यरूपा एता गाः पर्वतेभ्यो वलतवसं ब॑धिभ्यो वितूये निर्गमय्योपे । देवसमीपे
निवपति । प्रापयति । तच हष्टांतः । यवमिव । यथा यवं स्थिविभ्यः कुसीं
ह आदाय निवपति । इवम् वीजसंताने । लिटि रूपं । यद्वा साधुनयनादिगुणयुक्ता
गा अपः पवेतेभ्यो मेघेभ्य आहत्य सर्वच वषेति ॥
ह ॥ अथ चतुर्थीं ८१
आघरुषायन्मधुन ऋतस्य योनिंमवधिपन्नक उल्कामिव दयोः ।
४ । ध
# +
वृहस्यतिरुढरन्रश्मनो गा भूम्यां उद्गेव वि त्वचं बिभेद्॥४॥
४ | १ ॥) "|
` ` ` आऽप्रुषायन्। मधुंना। ऋतस्य॑। योनिं । अवऽसिपन्। अकैः। उस्कांऽईव। चोः
उद्रन्। अश्मनः । गाः भूम्याः । उज्ञा ऽ ईव । वि। त्वच॑ । विभेट् ॥8 |
| ति आ १ \\
=
५
नागुषायन् पृथिवीमाभिमुख्येन सिंचन् । मुष श्ञष सेहनसेचन- `
१
रणेषु । व्यत्ययेन विकरणस्य शायजदिशः। ऋतस्योटकस्य योनिं मेधमवस्िपन्
बृहस्यतिद्योदयुलो कादुल्कामिवोल्कां यथोद्धरति तच्च-
धिष्ठितान्नाः पणिभिरपहतान्यभूनुद्धर
भेद्। विभिन्रामकाषीत्। सवेच गा
४ ^ ५
| ॥ अष्टमोऽष्टदः ॥ ११९ ` ८
| उंतरिात्। उद्धः । शीपा॑तटेऽइव । वात॑ः । आजत्। `
मतुऽमृभयं । वतस्य । अथंऽईव । वात॑ः। ञ्चा । चक्रे। आ । गाः॥१॥ 4
स बृहस्यतिर्जयोतिषा तमसावृते पवैत्तविवरे कृतेन सूर्येणंतरिक्षाचमोऽपा- `
जत् । अपागमयत् । तच हर्टातः । उद्गः शीपालमिव ! ययोटकाद्वातो वायुः
| पालं शेवाल८मपगसयति तद्त् । ततः सोऽयमनुमृष्याच गावस्तिष्ठंतीति `
चाये निश्चित्य वत्स्य स्वभूतस्य पवेतस्यांतमेता गा ख चक्रे । सा समंता-
टका । अभमिव। यथा वायुरंतरिक्स्थितमभं मेघमाकिरति तइत्॥ ।
1. 5 „ॐ *॥ थ षष्ठी ॥
६ यदा वलस्य पीय॑तो जसुं मदहस्यतिरधितपोभिररकैः। = - `
दन्नं जि परिविष्टमाद॑ंदाविनिधीरकृणेदुखिरयाणां ॥६॥
६ यदा । वल्दस्यं । पीय॑तः। जसुं । मेत्। बृहस्पतिः । अभ्नितप॑ःऽनिः। उ्कैः। = `
` दत्ऽभिः। न। जिला । परिऽविषटं । आदत् । आविः! निऽधीन् ! अकृणोत्!
८. उसियांणां॥६॥ ` ए
* पीयत्तः। पीयतिरहिसाकमेा । हिंसकस्य वत्स्य जमुमायुधं यदा यस्मिन्काले ` ॥
5 ट् भिनच्चि। केन साधनेन । अग्रित्तपोभिरम्रिवत्पनशीलरकैरचैनीये रभ्मिभिः। `
अषि वा म्॑र्भिनति। किंच दन्निः। पदन्नोमासित्यादिना दंतशब्दस्य दङ्ावः। ` `
यथा दतिः परिविष्टं भ्यं जिद्धा भक्षयति तत्स परिविष्टं पवते पणिभिः परिवृत्तं
वल्नामानं यदाददभकछयद वधीत् तदानीं तेरपहतानासुसियाणां गवां निधीना- =. `
| श
£ विरकयोत्। आवियूतमकरोन् 1
॥ इत्य्टमस्य हितीये सद्,
॥।
॥ ऋम्बेट्ः॥ [आ०४, ०२, व०१४,
वृहस्मतिगुहा गुहायां सदने स्थाने स्वरीणां शब्टायमानानामासां गवां
त्यत्तत्मसिद्धं नाम नामधेयं यद्यदामत हि ज्ञातवान्ल्टु ॥ मनु अवबोधने ।
ल्ुडिः तनादिभ्यस्तथासोरिति सिचो लुक् ॥ तदानीं पवैतस्थिता उक्िया
नात्मनेवासहायेन पवैतं भिच्लोदाजत्। उदगमयत् । तच दृष्टातः । अडेव
शकुनस्य पशिण आंडानि भिचा तच स्थितं गभैमुद्रमयति तडत् ।
2 ॥ अधाष्टमी ॥
.अश्रापिन्ं मधु पयेपश्यन्मत्स्यं न दीन उदनि क्षियंतं ।
` निष्टज्जभार चमसं न वृक्षाङहस्यतिंविरवेणां विवृत्य ॥४॥ -
क
अघ्रा । खपिंऽनचं । मधं । परि । अपश्यत् । मत्यं । न । दीने । उदनिं ।
निः। तत्। जभार । चमसं । न । वृश्ात्। वृहस्यतिंः। विऽरवेणं । विऽकृत्य ॥४।
बृहस्यतिरन्नाश्मना व्याप्नया शिलियापिनङधं पिहितं मधु गोलक्षणं पयैपश्यत्
परितोऽद्राक्षीत् । तच हष्टातः। मत्यं न । यथा दीने भुष्क उदनि । उद्कशब्द्-
स्योदन्नादेशः। उदके सियंतं निवसंतं मत्स यथा पश्यति तत् । हषा च तत्रो
| लक्षणं मु विरवेण विविधेन शब्देन विकृत्य वलं हिचा निजेभार। कथमिव ।
चमसं न। चमंति भर्यत्यचेति चमसः सोमपाचं। तं यणा वृंस्ाजिहेरति तदत ।
इणेलिटि रूपं । हयहोभैः ॥
` ॥ अथ नवमी ॥ ४
ण न्नानं न पवणो जभार ॥९॥
।सः।ञरकेणं। वि। व वाधे।'
` ` ` पि
1
तमां
नं । न । पर्वणः । जभार ॥९॥
:। मन्ना
म०१०. ख०५, सू° ६४. | ॥ अष्टमो ऽ्टकं
स
= ॥ खथ टशमी ॥ =
हिमेव पणा मुषिता वनानि वृहस्यतिनाकृुपयदलौ गाः
अनानुकृत्यम पुनश्चकार यात्सूयोमासां मिथ उच्चरातः ॥१०॥ `
हिमाऽडइव ! पणो । सुषित्ता । वनानि । बृहस्पतिना । अकृपयत्। वलः गाः
अनत॒ऽ कृत्यं । अपुनरिति। चकार। यात्। सूयेमासां। भियः! उत्ऽ चरतः ॥१०॥
हिमेव यथा हिमेन पणा पणोानि पद्यपचाणि सुषित्ता मुषितानि भवंति
तद्द्त्ठेन वनानि वननीयानि गोधनानि सुषितान्यभूवन्। वेषण
बृहस्यतिनागतेन हेतुना वत्दोऽकृपयत्। अस्मे ता मुषिता गाः प्रायच्छत्। तचा-
ननुकृत्यमननुकरणीयमपुनः कतेव्यं च तत्कमे चकार । यथा तत्पश्चात्करणीयं न
भवति यथा पुनरकरणीयं तथाकार्षीदित्यथेः। विं तदित्याह । सूयेामासा सूयेचं-
दमस मिथः परस्परमहोराचयोरुच्रात उच्चरत इति यात् तच्चकार । यादिति
राद ५ ॥ खथेकादशी ॥ =. `
| आभि श्यावं न कृशनेभिरश्वं न्बेभिः पितरो चयामपिंशन् ।
राच्यां तमो अरद॑भूर्ज्योतिरहन्वृहस्यतिभिनददिं विद्रा: ॥११॥ = `
अभि । ध्यावं। न । कृशनेभिः । अश्च । नसंचेभिः। पितरः । द्यां । अपिंशन् ।
राच्या। तम॑ः। अदुः। ज्योतिः। अह॑न्। वृहस्यतिंः। भिनत्। अद । विद्त्। गाः॥११॥
पित्तरः पालयिता देवा चां द्युलोकं नक्षचेभिराश्चिन्यादिभिरभ्यपिं
अभितोऽदीपयन् । पिश अवयवे । खयं दीपनायां वर्तेते । तच दृष्टातः
| नं। यथा श्याववणेमश्ं कृशनेभिः सोवर्णेरानरणेरलंकुर्वैति
` तमो निहितवं्तः। किंचाहंन् अहि ज्योतिः
५.
1
परर । ॥ ऋ्ेदः
,
प्० ८, इप० २, '
इट् । कमं । नम॑ः। सथियायं। यः। पूर्वीः । अनुं । आऽनोनं वीति ।
स्यतिः। सः हि। गोभिः सः। अचः । सः वीरिभिः। सः। नृऽभिः। नः। वर्यः।
(अ धात् ॥१२॥ ` `
॥ क, < 4 ४ ॥
. ` अभियायामेषु भवायांतरिष्याय मध्यमाय वृहस्यतय इदस रोव
` मकमे। वयमकाष्मं। यो बृहस्मतिः पूवीविहीच्छे चो ऽन्वनुक्रमेणानोन वीत्यत्य्थ-
माभिमुख्येन वीति स वृहस्यतिरेव गोभिरणेश्च युक्तं वीरेभिः पुचैनैभिभत्या-
दिभिश्च सहितं वयोऽन्नं नोऽस्मभ्यं स्तोतृभ्यो धात्। दधातु । प्रयख्छतु। त्छब्दा-
वृत्तिरादरथो ॥ ` ध |
| ~ ॥ इत्यष्टमस्य दितीयेऽष्टादशो वर्गः ॥
॥ इति सायणाचायैविरचिते माधवीये वेदा्थप्रकाशे दाश्तग्या दमे मंडले
"~ पचमोऽनुवाकः 4. ` ~
षष्ेऽनुवाे षोडश सूक्तानि । भद्रा इति ादशचं प्रथमं सूक्तं वश्यश्वपुचस्य
` सुमितरस्याषे । आदितो हे जगव्यावय दश चिष्टुभः । अष्नरदेवता । तथा चानु-
तम्यते | द्राः सुमिचो वाश्यश्च आ्नेयं हिजगत्यादीति । गत्तौ विनियोगः ॥
ध. "5 ॥ तचःप्रयमा १... |
सुरणा उपेतयः। `
मं पि | | न ४ व । | त्र । | +
£ यदी. सुमिचा विशो अय इधते धुतेनाहुतौ जरते दविद्युतत् ॥१॥ `
:। सुऽरणाः। उप॑ऽइतयः।
५ ॥ अश्मोऽहटकंः 1
धी
धुतममरवेश्यश्वस्य वध॑नं घृतमन्नं घृतम्वस्य मेर्दनं । - ` `
घृतेनाहुत उविया वि प॑प्रथे सूये इव रोचते सपिरांसुतिः ॥२॥
५ ५ ६ +
# [मी ॥ १८. क्क ४ +
1@
= धृतं । छग्रः। वभ्रिऽ श्वस्य । वधेन । घृतं । अ घृतं । ऊ इतिं । अस्य । मेद॑नं ।
1 कनि , [॥ ॥ |
1@
# [यि
ह. धुतेनं। आ ऽहुतः। उविया । वि। पप्रथे) सूर्यःऽइव । रोचते । स्थिः
{@
[1 |) वि 1 1
त
वध्यश्वस्य संबंधिनोऽग्रेघेतं दीयमानं हविर्वधेनं भवतु। तथा घृतमन्रमदनीयं
भवतु । तथास्या्नेधेतमु घुत्तमेव मेदनं पुष्टिकरं भवतु । येनाभमिः पुष्टो भवति
५५,
। तन्मेदनं । तेन घुतेनाहूतोऽ ्रिरुवियोर्वत्य॑तं वि पप्रथे । स्वतेजसा विप्रथितौ
भवति । तथा सपिरासुतिः सपिरासूयते यस्मिन्निति सौऽभ्मिः सूये इव रोचते । |
दीष्यते। < व | ध
। "1 छथ ुतीमा॥ . `. `
| यतते मनुयेदनींवं सुमिजः समीधे चरे तदिदं नवीयः। ` -
षस्वं स वाजं टषिं स इह प्रवो धाः॥३॥ .
स रेवच्छोच स गिज
। यत्। ते । मनुः । यत्। अनीकं । सुऽमिचः । सं ऽस्य । खमन । तत्। इटं । नवीयः!
` सः। रेवत्। शोच। सः। गिरं; । जुषस्व । सः। वाजं । दूषि । सः। इह । अरव॑ः। धाः॥३॥
-=- ~~~
| . हेमे ते ल्रदीयं यदनीकं रथिमसंधं मनुरेतन्नामको यथा समीधे ह
- सम्यग्दीपयति सुमि एतनामकोऽदहं समीधे । सम्यग्दीपयामि ॥ जिईधी
लिटीधिभवतिभ्यां चेति किचचाब्रलोपः॥ तदिदं सोऽयं रश्मिसंधो नवीयो नव~
#
। स त्वं रेवद्धनयुक्तं यथा भवति तथा शोच । प्र
। स त्वं वाजं शचुवत्ठं
| +र ` ॥ ऋग्वेद्ः॥ [अ०४६. ०२, ०१९.
यं । त्वा । पूव । ईक्छितः। वभरिऽखश्वः। संऽइधे। छग्र । सः । इदं । जुषस्व ।
सः। नः! स्तिऽपाः। उत । भव । तनूऽपाः। दाचं । रस्त । यत् । इट् । ते
इति ॥४॥
ईच्छितः। व्यत्ययेन कतैरि क्तः। स्तोता वश्यश्ठो मम पिता पूवे पूवेसिमिन्काते
| संजातं यं ल्वा समीधे हविभिः सम्यगदीपयत् स वभिदानीं मया क्रियमाणमिदं
` स्तोचं जुषस्व । सेवस्व । यद्वा वशध्यश्वस्तस्य पुचोऽहं सम्यग्दीपितवानस्सि । स चं
नोऽस्माकं स्िपाः। पृषोदरादिः । पल्य गृहं । तस्य रसषकी भव । यद्लोपस्थि-
ताञ्ज्योतिरोमादीन्यागान्पात्छयतीति स्िपाः । अस्मदीयानां यज्ञानां पात्यिता
` भव। उतापि च तनूपाः स्वांगानां रको भव । किंच दाच त्नं रक्षस्व यदिट्
धनं ते तव स्वभूतेष्स्मे अस्सु तिषठति॥
9 ॥ अय पंचमी ॥ वि | ॥
भवां दयुम्नी वश्यशोत गोपा मा त्वां तारीद्भिमांतिजेनानां ।
£ शूरं इव धृष्णुच्यवनः सुभिचः प्र नु वोचं वाध्यंशवस्य नामं ॥५॥
। भव॑। दुखी! वाधिऽञ्चश्व। उत। गोपाः मा। ला तारीत्। अभिऽमातिः।जनाना। `
1 ऽइव । धृष्णुः। च्यवनः मु ऽमिचः। प्र । नु) वोचं । वार्भिंऽऋश्वस्य। नाम॑॥१॥ `
४ ५ कमे ,
^ ४ ्
द्योततेये्णे वान्नं वा । तदान्भव ।
#
0
॥)
11
म०१०.अ०६, सू०६९. ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥
हे अम्रेऽज्या । अजंति गच्छःतीत्यजयो जनाः । तेभ्यो हितानि पर्वत्या पर्व
तभवानि वसूनि गवादिलक्षणानि सं जिगेध । शच्रुभ्यः संजितवानसि ! तथाय
बलवद्धिः कृतान्दासा दासिरसुरेः कृतान्वृचाण्युपद्वान्सं जिगेथ । तन्हतवानसी- = `
त्यथैः। जि जये । छ्ठिटि रूपं । भूर इव धुष्णुजेनानां च्यवनस्वं पृतनायृन्संाम-
कामानभि याः । अभिभव । पृतनायूनित्यचर ल्ोपाभावष्डांदसः । अश्वाघस्या-
दित्यात्वं विधीयमानमस्माद्पि व्यत्ययेन भवति ॥ `
॥ इत्यष्टमस्य हितीय रकोनविंशो वैः ॥
1
| ॥ अथ सप्तमी ।॥
दीथैतंतवहदुषायमभिः सहस॑स्तरीः शतनींय् ऋभ्वा । ध
द्युमान् दयुमत्सु नृनिमूज्यमा नः सुमिचेषुं दीदयो देवयत्सु ॥9॥ 0:
दीधेऽतंतुः। वृहत्ऽउक्षा। अयं । अभ्रिः सहख॑ऽस्तरीः। शतऽनीयः। ऋभ्वां।
चुऽमान्। दयुमत्ऽसु। नृऽभिः । मृज्यमांनः। सुऽभिचेषु । दीदयः। देवयत्ऽ ॥७॥
दीधैत॑तुः । येयं संतनोति ते तंतवः स्तोचाटयः । प्रभूतस्तुतिमान्वृहदक्षा। `
उक्षा सेचको रश्मिः । ग्रभूतरश्रिमयुक्तः सहखस्तरीहेवीरूपवहाच्छाटनः शतनीथ `
आह वनीयादिङ्ञरिणए बहूविधनयन न्वा महान्दुमत्सु दी्िमत्सु मध्ये द्युमा-
नतिश्येन दीभ्रिमानयमग्रिनैभिः कमेनेतृभिक्ौविगभिमेज्यमानोऽ लं किय ५
ति मृजू शोचा काग्योः। स लं देवयत्सु देवान्कामयमानेषु मुमिचेष्रस्ामु
टयः । दीप्यस्व । दीद्यतिरदी्िकमा ॥ न
क न ॥ अथाष्टमी ॥ ` 1 4
ले धेनुः सुदुघां जातवेदोऽसतव समना संवधुक्। =
॥. न्निरमरे सुमितेभिरिष्यसे देवगह्निः॥४॥ = ` `
दुघां । जातऽवेदः! अस्चतऽ इव । समना । सवः
१२६ ॥ ऋग्वेदः
: तवय्यस्तीति भावः । ताहशस्वं नृभिः कमेनेतृभिदं
| तदच्धिर्देवयद्विर्देवकामेः सुमितेभिरस्ाभिरिध्यसे । ह
= न ॥ अथ नवमी ॥
¢. देवाधित्ते अमृतां जातवेदो महिमानं वध्यश्च प्र वोचन् ।
यत्संपृं मानुषीविंश आआयन्वं नृभिंरजयस्वावुंधेभिः ॥९॥
| देवाः) चित्। ते। अमूर्ताः। जातऽवेदः महिमानं । वाभिऽखश्व। प्र! वोचन्,
कि । श य
ध यत्। संऽपृद्छं ।मानुंषीः। विः। स्ाय॑न्। तं । नृऽभिः। अजयः। ला ऽवृधेभिः॥९॥
। कि ष |
2 क हे जातवेदो हे वाध्यश्वाम्रे ते तव महिमानममृत्ता देवाश्िदेवा अपि प्र वोचन् ।
(५ प्ररुवंति । यद्यदा मानुषीमनु्सं बंधिन्यो विशः प्रजाः संपृच्छं देवे: सह को वा
अमसुरान्हतीत्येवमादिकं संप्रश्नरमायन्पाघ्रवंतस्तदा त्वं नृभिः सर्वस्य नेतृभिस्वा-
वृधेभिल्वया वर्धितिर्ेवेः सह कमेविश्नकारिणस्तानजयः। जितवानसि ॥
। ५ ५.६ ॥ अथय दशमी ॥ `
५ ` पितेवं पुचमंविभरपस्ये त्वामर वध्यश्वः स॑पयेन् ।
जुषाणो अ॑स्य समिधं यविष्ठोत पूवी अवनोनेोरधतश्धित् ॥१०॥
` पिताऽईव। पुचं। अविभः। उपऽस्थे । तां। प्रे । वभिऽञश्वः। सपर्यन्।
| ` जुषाणः शरस्य । सऽं । यविष्ठ! उत ।पूरवै॑न्। अवनोः। बाध॑तः। चित् ॥१०॥
हे अग्रे त्रासुपस्थे पृथिव्या उपस्थान उच्चरवेद्यां सपयैन् परिचयाकमी परि-
चश वान् । हविभिः पोषित्तवान्वा । कयमिव ।
स्थापयति पोषयति वा ॥
र्ड्यादिना तिपो लोपः ॥
मम वा समिधं जुषाण
भवन््राधंतं वधमानं हिंसक वावाभिनत् । अवाङ्नुखं कृत्वाच्छिनत् । यद्वा त्वमेव्
तमवाभिनत् । अवाड्वुखं कृवामिनः । अद्छिनः । प्रथममध्यमयोः समान-
मेतटूपं ॥
॥ अथ इाटशी ॥ |
अयमभ्िवैध्यचवस्यं वृबहा संनकात्मेदञो नम॑सोपवाक्य॑ः। `
स नो अजामीरूत वा विजामीनभि तिं शधंतो वाध्यश्च ॥१२॥ ॥
अयं। अम्निः। वभिऽञखष्वस्य। वृचऽहा। सनकात्। प्रऽईदः। नम॑सा। उपऽ्वाक्यैः। =
सः। नः। सजामीन्। उत। वा। विऽजामीन्। खभि। ति शधतः। वाभि ऽ खश्च ॥१२॥
दीपितो भवति। तथा त्स्य नमसा नम
हे वाध्यश्च वश्यश्वकुते मथनेन समुत्पन्नाप्रे स ववं नोऽस्माकमजामीनज्ञातीऽशचः
उत्त वापिवा शधेतो हिसतो
।त्। अधिः। वधिऽखश्वस्यं । शचन्। नृऽभिः। जिगाय ।
नं । चित्। अट्हः। चिचभानो इतिं चिचऽभानो । अवं । व्रातं । अभिनत्
वृधः । चित् ॥११॥
तम्भिः शश्वत् सवेदा शच्रज्जिगाय । जितवान् । अथ प्रत्यक्षः । हे चिच-
नानातेजस्क चायनीयदीत्रिमनप्रे लं समनं चित् । समनमिति संमा-
म । तमप्यट्हः स्वतेजोनिः । अथ तव स्तोत्ता वाध्यश्चो वुधश्चिष्स्वयं वृधो
वैध्यश्वस्य सुतसोमवद्धिरभिषुतसोमेः । अनुवाद्
छाण्कि, ॥ १ 1 , ॥ वि । # रि पमो ४ । ॥ ।
वृचहा शत्रूणां हंतायमम्मिः सनकाच्चिरादारभ्य वध्यश्चस्य हविषाप्र्ःम्र्वेण `
सकारेण सहोपवाक्य उपस्तोतव्यो भवति!
जामीन्विविधाञ्सातीनयभि तिष्ठ । अभिभव
पृग्वेटः [ ० ४, ऋ० २. ० २१,
५ व ॥ तच प्रथमा ॥
समिधं जुषस्वेक्छस्यदे प्रतिं हये घृताची ।
व्मैनपृथिव्याः सुदिनत्वे खहामृष्वो भ॑व सूक्रतो देवयज्या ॥१।
द इमां । मे। अग्रे । सं ऽध॑ । जुषस्व । इल्छः। पदे । प्रतिं । हयै । धुता
1 त्
देवयज्या ॥१।
(= हेऽग्र इठ्छस्यद् इव्छायास्यदे । एतद्वा इव्छायास्यट् यट्॒रवेटिनाभिरिति
~ ब्राह्मणं । उत्तरवेद्यामिमां मे मदीयां समिधं जुषस्व । सेवस्व । तथा धुता
9 घुतमंच॑तीं सुच प्रति हये । प्रतिकामयस्व । विच हे सुक्रतो सप्रज्ञ पृथिव्य
. वष्म॑वष्मेणि समुच््छिते पूर्वोक्ते देशेऽद्ां सुटिनववे तन्निमित्तं देवयज्या देवयागेनं
। हेतुनोध्वों जातामिरन्नतो भव ॥
: ॥ अथ हित्तीया ॥
आ देवानांमययावेह यातु नराशुसों विश्वशूपेभिरशचैः। `
ऋतस्य पथा नम॑सा मियेधो देवेभ्यो देवत॑मः सुषूदत् ॥२॥ ॥ न
। पैन शये | |.) ४
आ । देवानां । अयऽ यावा । इह । यातु । नराशंस॑ः । विश्व ऽरूपेभिः। खः
न् । पृथिव्याः । सुदिनऽत्वे । अह । उष्वैः। भव । सुक्रतो इतिं सुऽक्रतो ।
( ऋतस्य । पथा । नम॑सा । मियेध । देवेभ्यः । देव ऽ त॑मः। सुसूटत् ॥२॥
देवानाममयावामे गंता नराशंसः । उभे वनस्पत्यादिषु युगपदिति पूर्वोचचर-
योयुगपत्प्कृतिस्वरत्व । नरः शंसनीय एतन्रामकोऽभ्रिर्विंशवरूपेभिनानारूपेरणे
आ यातु। आगत्य च मियेधो मेध्यो यज्ञहितः स्तु्ि- `
व्यः सोऽब्रिहेविनेयनयोग्येनतैस्य यज्ञस्य पथा `
इदादिभ्यः सुषूटत् । हविः प्रेरयतु
पधययाधादययनपयापयवययय
1५५१९.
४
श
॥ ष्टमोऽटकः ॥ १२९
शश्चत्ममल्य॑तं नित्यमि हविष्मतः संभृतहविष्का मनुष्यासो मनुष्या यज-
माना दूत्याय । दूतस्य भागकमेणी इति यत्मरत्ययः। टूतकमेणे हविर्वैहनलसणाय
तन्निमिचमीक्छते । स्तुवंति । स त्वमेवं स्तुतो वहिष्टर्वोदुतमेरशवः सुवृता सुवतेनेन
येन च सह देवानिंदरादीना वसि । अस्मदीयं यज्ञं म्रत्यावह् । प्रापय । त्ततस्त्व
होता भवन् इहास्मिन्यज्ञे नि सदं । निषीद् ॥ = .
म १९, ऋ ६. सू 90, |
५
् ८१
` ` ॥ अय चतुर्थी ॥ अ
वि प्रयतां देवजुष्टं तिर्या दीधे द्राघ्मा सुरभि भूत्स्मे। _
४ ॥ ॥ । ।
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अहेच्छता मन॑सा देव बहिरिद्ज्येष्ठां उशतो य॑ंछिदेवान्॥४॥ `
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[१ प ++
वि । प्रथतां । देवऽजञुं । तिरा । दीधे । द्रा्ना। सुरभि । भूतु । अस्मे इतिं ।
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५, चतः कक # 1 ॥ “ # ॥
५ भ
सर्हेक्छत्ता । मन॑सा । टेव । बरहिः। इद ऽव्ये्ठान्। उश्तः। यसि । देवान् ॥४॥
॥ # 1 चे
हे बहिनामकाप्रे देव जुष्टं देवैः सेवितं तिरश्चा तिर श्चीनं ति्यैगंचनि
बहिविं प्रथतां । विशेषेण विस्तृतं भवतु । तथा दीधं चेदं द्राष्मा दाधिन्रा ।
दीर्ंशब्टस्य मनिचि प्रियस्थिरेत्यादिनो दाधिरादेशः। अकारस्येकारवणेव्यापन्याः
प्रशचाद्लोपः । दाधिन्ना युक्तं भवतु । स्मे अस्मदीयं वरः सुरभि सोमादिह-
विंनिधानेन सुगधं भूतु । भवतु । हे देव द्योतमान हे बरहिरेतनामकाग्नेऽहेव्छता ।
निं
हेत इति क्रधनाम । अक्रुध्यता मनसोशतो हवीषि कामयमानानिंटृज्ये्ठानिं-
द्रप्रधानन्देवान्यक्ि यज । पूजय ॥ = ` ` `
ध ॥ अथ पचमी ॥ | (
दिवो वा सानुं स्युश्ता वरीयः पृथिव्या वा माच॑या वि अ॑यध्वं! . `
7 ध (६ '
# ५ ५ १ # १ ५५ ४ ए
उशतो महिना महन्निरवं रथं रथयुधोरयव्वं ॥५॥ =` =
1. ५ ^
॥ क ५ ॥ भ , ८ + १६ ५ 1 ¢ ॥ 1 ॥ ॥
हि +
। वा । सानु । स्पृशत । वरीं यः। पृथिव्या । वा । माच॑या । वि । यध्वं ।
ारः। महिना । महत्ऽ र
५५५
भिः । देवं । र्थं । रथञ्युः। धा
च ¦ `" को भकः ` किः, , ` कणेः 4५ , ‡ 4
॥
१३०
महिना मरिन्ना म
धारयध्वं । धारयत्त॥ =. |
। । ॥ इत्यष्टमस्य हितीय एकविंशो : ॐ *५
` देवी दिवो दुहितरं सुश््पे उवासानक्ता सदतां नि योनो ।
आ वां देवासं उशती उत उरौ सीदंतु सुभगे उपस्थं ॥६॥
देवी इतिं । दिवः। दुहितर । सुभिष्ये इतिं सुऽभिर्पे । उषसानक्तां । सदतां ।
आ । वां । देवासंः। उशती इतिं । उशंत॑ः। उरौ । सीर्टूतु । सुभगे इतिं सुऽभगे ।
सय 10) 4, =
देवी द्योतमाने दिवो चुलोक्स्य दुहितरा दुहितरो सुशिस्ये शोभनरूपे उषा-
सानक्धोषाश्च नक्त चाहोराचौः योनो यज्ञस्य स्थाने नि सटतां । निषीदतां । ह
उशती उशत्यौ कामयमाने हे सुभगे शोभनधने हे देव्यो वां युवयोरूरौ विस्तरं
उपस्थे समीपस्ये स्यान उशतो हवीषि कामयमाना देवासो देवा आ सीदतु ।
॥ )
उपविशतु ॥ ` 8 क 4
5 र. "4 खथ सप्तमा ॥ ~
ऊर्ध्वां मावां बृहदम्मिः समिद्धः परिया धामान्यत्ति
विदुरा दरविणमा य॑जेथां ॥७॥ `
५ \
॥
: । संऽई्वः। प्रिया । धामानि । अदितेः! उपऽस्थे
्। विदुःऽत॑र। दरविणं । आ । यजञेणां ॥9॥
( "न ध \
द ~ 1 ^ #
ॐ ऊ
म० १०. अ० ६, सू° 99. ॥ अष्टमो ऽ टक
॥ अयाष्टमी ।
तिदो देवीबेहिरिदं वरीय आ सोदत चकृमा व॑ः स्योनं। `
#
मनुष्द््ञं सुधिता हरवींषीव्छां देवी घृतप॑दी जुषंत ॥४॥
तिख्ः। देवीः । बहिः । इदं । वरीयः । आ । सीदत । चकृम । व॒ः । ₹
मनुध्रत्। यज्ञ । सुऽधिता। हवीषि । इका । देवी । घृतऽप॑दी । जुषत ॥४॥
। |,
हे तिखो देवीरिक्छाद्यास्तिखो देव्यो वरीय उहतरमिदं बर्हिरा सीदत । का-
लाध्वनोरिति हितीया । अत्यतं तस्मिन्निषीदत । कुत एतत्तचाह । वो युष्मटधं
स्योनं विस्तीणेमिद् चकृम । वयं कृतवंतः । वाक्यभेदाटनिघातः । इकतन्ाभिसा
देवी द्योतमाना सरस्वत्ती घृतपदी दीप्रपदोपेता भारती चेता मनुष्रन्मनोयेज्ञे
यथा हवीष्यसेवंत तद्वदस्रदीयं यज्ञं सुधिता सुष्टु निहितानि हवींषि च जुषत
सेवतां ॥
त्वाष्टस्य पशोर्वैपायागस्य देव त्व्टरिति याज्या । सूचितं च । देव त्व्टयद
चारूत्वमानट् पिश्गरूपः सुभरो वयोधाः । आ०३,६.। इति ॥
४ ॥ सेषा सूक्ते नवमी ॥
देवं त्वयेदं चारूत्मानड्यदंगिरसामभ॑वः सचाभूः । `
स देवानां पाथ उप प्र विद्वातुशन्य॑स्ि दविणोद्ः सुरत्नः ॥९॥
देवं । लष्टः। यत्। ह। चारुऽत्वं । आन॑ट् । यत्। सं्िंरसां । अभ॑वः । सचाऽभूः।
|
सः। देवानां । पा्थः। उप॑ । प्र। विद्ान्। उथन्। यधि । टूविणःऽद्ः। सुऽ रत्नैः ॥९॥
हे देव ल्वष्टरेतनामक तं यन्चारूत्वं हविभिः कल्याणषूपत्वमानट् प्राप्रवान् ।
= ५५
पर | ` ॥ ऋग्वेदः ॥ ` [खअ० ४, अ०२, वर २३. `
छ । | व्ेषादश्मी॥
| | वनं॑स्यते रशनयां नियूया देवानां पाथ उप॑ वक्षि विहान्।
५.4 दति देवः कुणवं॑दवीष्यव॑तां द्यावापृथिवी हवं मे ॥१०॥
। रशनया । निऽयूय । देवानां । पाथः । उप॑ ! वकि । विडान्
० स्वद।ति। देवः। कृणवत् । हवीषि । अव॑तां । द्यावापृथिवी इति । हवं । मे ॥१०
। ह वनस्यते वनस्यतिविकार यूप विहाज्ञानानस्वं रशनया रज्ज्वा नियूय वद
` परिव्याय पाथोऽननं देवानामिंद्रादीनासुप वकि । उपवह् । प्रापय । ततौ देवो
` वनस्यतिः स्वदाति, हविःप्रापशेन स्वदयतु। तथा हवींथस्माभिदेत्तानि कंणवत्।
| देवानां करोतु । तथा मे मदीयं हवं देवविषयाट्हानं द्यावापृथिवी द्यावापृथि-
(^, व्याववतां । रतां ॥ = _
॥ ऋथेकाट्शी ॥ ए
` आग्रं वह वरूणमिष्टयं न इद दिवो मरतो संतरिंसात्। `
सीर्दतु बरहिविश्वं आ यज॑चाः स्वाहा देवा अमृतां मादयंतां ॥११॥
स्मा । प्रे । वह । वरुणं । इष्टये । नः! इद । दिवः। मर्त॑ः । संत्तरिंसात्। `
सीर्दतु। बर्हिः । विश्व । आ। यज॑चाः। स्वाहां । देवाः। अमृतः । माटयंतां ॥११॥
[नि । ि।
हे ग्रे वं नोऽ स्माकमिष्टये यागायेदरं वरुणं च मस्तश्च दिवो दयुलोकादंन- `
च्लासदीय यज्ञमा वह । प्रापय । स्ागतास्ते यजचा यष्टव्या विश्वे सर्वेदेवा
सीदंतु । तचासन्ना भवंतु । ततोऽमृता मरणधर्मरहिता देवाश्सवाहा
॥ इत्यष्टमस्य हितीये ह्याविंशे वगेः॥ ( ५
। आंगिरसस्य वृहस्यतेरापै नवमी
क्ेनधिः परमपुरूषाथंसाधनं परत्र्जानं स्तुतवान् ।
। ष्टमो ऽ टकः ॥
॥ तच प्रथमा ॥
प्रथमं वाचो अयं यत्ेरत नामधेयं दधानाः ~ 4
| यदेषां शरेष्ठं यद॑रप्रमासीप्मेणा तदेषां निर्हतं गुहाविः ॥१।
१ वृहस्पते । प्रथमं ! वाचः । अमरं । यत्। प्र । रेत । नामऽधेय॑। दधानाः
यत्। एषा चर यत्। सरिप्रं। आसीत् प्रेणा। तत्! एषां । निऽ हितं गुह । आविः॥१॥
| बृहस्पतिरनेन सूक्तेन विदित्तवेदाथोन्वालन्हघला सयमानः स्वात्मानं संबो-
ध्याह् । हे बृहस्यते ऽतरात्मन् प्रथमसुत्पद्यनंत्तरमितर वागुच्चार्णात्मागेव नामधेयं `
नाम दधानाः पदार्थेषु निद्धाना बात्का यत्मेरत पेरित वंतस्तद्वाचोऽयरं भवति '
यत्तत तातेत्यादिकं वाक्यं पूवेमभिधाय पश्चादन्या वाचो वदिषयंति खलु तस्माद्वा
चोऽय। अस्यां दशयामवस्थितान्नात्ान्पश्य। तथेदानीमेषां चे प्रशस्यतमं यद्य-
च्ारिप्रं पापरहितं वेदाथेज्ञानमासीदेषां तञ्ज्ञानं गुहा गुहायां निहितं गोपं तत्वे `
{1 णा। मकारल्टोपष्डांद्सः। परम्णाविभेवति । वेदाभ्याससाते सरस्वती स्वा्थमेभ्यः
॥ प्रकाश्यतीत्यथेः । एवं विसये बृहस्यते प्रथमं वाचो अयमित्यादिकमारण्यक- `
मनुसंधेयं । ए° आा० १,१६.॥ क ११
॥ थ् हितीया ॥ १
सक्तुमिव तित॑उना पुनतो यच धीर मन॑सा वाच्मक्रत।
र ^ । ध 4
अचा सखायः सख्यानि जानते भदेषां लृश्ीनिंहिताधि वाचि ॥२॥
५ सदु ऽइव । तित॑उना । पुनंतैः । यच । धीर्ाः। मन॑सा । वाचं । छक्रत। = `
अच॑।सखांयः।सख्यानि। जानते।भदरा। एषां लषः निऽहिता। अधि । वाचि॥२॥
। तितउना। परिपूयतेऽ नेनेति । यद्वा तता विस्तृता भृष्टयवा चरेति तितञः॥ =`
तनोतेडेउः स
न्वच्च । उ० ५.५२.। इति उप्रत्ययः । सन्वद्वावादितं ॥ उक्तनिरवैचने
रष्व टुं पुनाति तदत् कृत
प्मन्कात्ते विदत्संधे वा
यच य
१३४. ॥ ऋग्वेदः ॥ ० ७. ० २, व० २६३.
| लश्स्ीभैवति। अधिः सप्रम्यथेद्योतकः। अथेज्ञानं वाचि पश्याम इत्यथः । तितउ
परिपवनं भवति ततवद्ला तुज्वद्ा तिलमाचतुन्रमिति वा सक्तुमिव तितउने-
£~ त्यादि निरुकमनुसंधेयं । नि०४.१०.॥
५ बाग्देवत्यपशोर्वपापुरोडाश्योयेज्ञेन वाच इत्यादिके इ ऋमेण याज्ये। सूचितं च।
यस्तेन वाचः पटवीयमायन्निति इं देवीं वाचमजन यंत देवाः । सा०३.४.। इति ॥
+. ॥ सेषा तृतीया ॥
यज्ञेन वाचः प॑दवी्यमायन्तामन्वविंद्नषिंषु प्रविष्टां ।
तामामुत्या व्य॑दधुः पुरुचा तां सप्त रेभा अभि सं नंवंते ॥३॥
नि यज्ञेन । वाचः। पदट्ऽ वीय । आयन् । तां । अनु । अविंट्न्। ऋषिषु । प्रऽवि्ां
५ तां। खाऽभूृत्य । वि। अटधुः। पुरुऽचा। तां । सप्र । रेभाः। अभि । सं । नवते ॥३॥
विदिताथ धीराः पदवीयं । वेतेरचो यत् । संज्ञापू वेकस्य विधेरनित्यवाह्नुण-
५. भावः। पदेन यातव्यः पंथाः पद्वीयः । तं वाचो माग यज्ञेनायन् । प्रावतः
. ऋषिष्रतीदियाथेदशिषु प्रविष्टां तां वाचमविंदन् । अत्भंत । अनंतरं तां वाच-
2. ` मानुत्याहत्य पुरूचा बहुषु देशेषु व्यदधुः । व्यकाषौः । सवेन्मनुष्यानध्यापयामा
|| | ॥ (०, $ ई + ने ौ र
# स्त्यः! एताहशीं वाचं रेभाः शब्दायमानाः पक्ठिणः पक्िरूपाणि गायच्या-
दीनि सत्र दास्यमि सं नवते। अभितः संगच्छते ॥
ध ॥ 1 ५. + `. ॥ सच चतुर्थीः॥
। उत्त लः पश्यन्न ददशे वाचमुत त्वः गुखन्र मुंणोत्येनां।
त
कमौदिविषयज्ञानवजितां वाचं शुणुवान् शुतवान् । केवलं प्ाटमाचेशे
८
म०१०. ०६, सू० $१,.|
॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ १३५
गमयति । आत्मानं विवृणुते प्रकाश्यतीत्यथेः। तच दष्टाः । जायेव । यथोशती
संभोगं कामायमाना सुवासाः शेभनवसना जाया पवये भवै ऋतुकाले संभोगा्ं
यमात्मानं विवृणुते तद्वदेनां पश्यति शृणोति चेति विदितवेदा्ेस्य प्रशसा
अकः पश्यन्न पश्यति वाचमित्याटि निरुक्षमच ट्ष्टव्यं । नि०१,१९. ॥ | |
॥ अथ पंचमी ॥ = ` |
उत त्वं सस्ये स्थिरपीतमाहर्नेनं हिन्वंत्यपि वाजिनेषु ।
१ कके चवण ष
अधेन्वा चरति माययेष वाचं .मुष्ुवँ अफला म॑पुष्यां ॥५॥
५
उत। वं । सख्ये । स्थिरऽ पीतं । आहुः । न । एनं । हिन्वंति। अपिं । वाजिनेषु ।
अधेन्वा । चरति। मायया । एषः। वाच॑ । भुष्रुऽ वान् । अफलं । अपुष्पां ॥५॥
तसुतेकमपि सख्ये विदुषां संसदि। या सत्कथा सा ससिकमेतवात्सख्य मित्युच्यते!
सा च वाचा क्रियते । अतो वाक्संवंधाह्ाक्सस्ये स्थिरपीतं । मधु यस्य हृदये `
स्थितं भवति । यदा स्थिरपीतं स्थिरप्राध्धिमाहः । यज्ञा तस्सिञ्जञाता्थेमाहः।
ोके यथा जाताथे पुरूषं पीताथेमिति वदंति । विंचेनं विज्ञाता पुरषं वाजि- ` ४
नेषु । वागिनेश्वरा येषां ते वाजिना अथा वाच आयत्ताः स्वलु । वाग्जयेधर्येषु
नापि हिन्वंति । अपिशब्दो ऽन्वर्थे । केचिटपि नानुगद्ंति । अयमेवातिश्येन :
विदानित्यथेः । यडा वाजिनेषु सारभूतेषु निरूपणीयेष््ेध्नं न हिन्वंति । न ५
वहिः कुवंति । एनं पुरस्कृत्येव सवै वेदाथे विचार यंतीत्यथैः । इत्यथः प्रशस्तः। =
अनंतरमु्तरार्धेन केव पाठको निंद्यते । एषोऽविज्ञाता्ः पुरुषो ऽथेन्वा धनु . ¦ |
विवजिंत्तया कामानामदोग्ध्या देवमनु्यस्थानेषु वाक्रतिरूपया मायया चरति। `
किं जुवेन् । अफलामपुष्पां । वाचोऽथेः पुष्यफले । अ्थवर्जितां । यदा वा- `
चोऽर्थो याज्ञदेवते । यज्ञे भवं ज्ञानं याज्ञ देवतासु भवं ज्ञानं देवतं । तदर्जितं `
१ स चरति । यथा वंध्या पीना नोः रविं
द्रोण णमा सीरं दोग्धी
| ॥ ऋ्पृग्वेट्ः ॥ ० ४, ० २, व° २४. |
| ॥ अथ षष्ठी ॥ क च ~
यस्तित्याज सचिविदं ससांयं न तस्य॑ वाच्यपि भागो अरि क,
` यदीं शृणोत्यलकं भृणोति नहि प्रवेद सुकृतस्य पंथा ॥६॥ [व
यः । तित्याज॑ । सचिऽविद। सखायं । न । तस्यं । वाचि । अपिं । नागः। स "1
| न यत् । ६ । मृणोतिं । अलैवं। भ्ृणोति। नहि । प्र ऽवेद । मुऽकृतस्ं पर्या ॥६॥
सचिविदं सचिशब्टः सखिवाची । ससिविदं । योऽध्येता स वेदस्य सला
संप्रदायोच्छेदनिवारकवेन वेदं प्रत्युपकारित्वात्। तादशसुपकारिणएमध्येतार वेी-
सचिवित्। तमभिज्ञं सलायमध्येत णां पुरुषाणं स्वाथेबोधनेनोपकारिलात्स-
सिभूतं वेदं यः पुमांल्ित्याज पराथेविनियोगेन परित्यजति । त्यजतेलिय््-
५ पस्युधेथामानृचुरि्यादिना निपातितः । तस्य पुरुषस्य वाचि स स्यां त्टोकिक्यां
१ छशस्तीयायां वाच्यपि भागो भजनीयः कश्चिदर्थो नास्ति । इेमयं पुरूषो यदेटव्य- त
तिरिकतं शृणोति तदलकमल्ीकं व्यथेमेव भृणोति । हि यस्माक्कतारणत्सुकृतस्य
पंथां पंथानं न प्रवेद् । अद्धाराहित्याटनुष्ानमाग न जानाति । तस्मात्तदीय- ॥
श्रवणमपि निःफल्मित्यथेः। हितीयचतुथेपादयोरभिप्राय आरण्यके दशितो न १
` तस्यान्ते भागोऽस्तीत्यादिना । तथा तं योऽनू्सृजत्यभागो वाचि भवत्यनागो =
॥ नाके तदेषाभ्युक्ता । ते° आ० २.१५.। इत्यध्वयुभिश्च ॥ र
1 ६ ॥ खथ सप्रमी॥ | 4 4.
अकखंतः करंवंतः सखायो मनोजवेध्वसमा वनूवुः। = 4
। आदं उप्तं उत दाइ चतां उत दस्र, ==
` अक्षण्ऽवंतः। वं रीऽवंतः। सलांयः। मनःऽजवेषु । अस॑माः । बभूवुः।
` आदप्ासः।उय ‡ऽईव। लालवंः। ऊ इतिं। ले। टदधे॥9॥ `
नुहितिनुद्।
तरं । तथा च
म॑०१०. ०६. सु०ऽ१.] ॥ अष्टमोऽषटकः ॥ १३
मिति । ताहशणः ससायः। समानं स्यानं ज्ञानं येषामिति सखायः । तेषु वाक्येषु
बाद्येष्रिद्वियेषु समानज्ञाना इत्यथेः । ते मनोजवेषु । मनसा गम्यते ज्ञायत इति
जवाः प्रज्ञाद्याः । तेश्र॑समा अतुस्या बभूवुः । भवंति । तेषु मध्ये केचिदा-
दघ्नासः। सखास्यश्ब्टस्य पुषोट्रादिलादाकारादेशः । आस्यटपघ्ा आस्यप्रमाणोटका
हटा इवेति मध्यमप्रज्ञानाह । खथ त्व णके। सवैनामतवाज्जसः शीभावः । उप-
कश्षासः कश्षसमीपप्रमाणोदका हदा इव । आअस्पोटका इत्यथः । अनेनास्पप्रजा-
नाह । तथा त एके ल्लात्वाः । लातेः कृत्यार्थे लन्प्रत्ययः । पा० ३.४.१४. स चार
कृत्यतृचश्च । पा० ३.३.१६९. । इत्यहोर्थे च भवति । साना अशछ्ोभ्योटका हटा
इव दह्ये । हश्यते। अनेन महाप्रजलानाह । उः पूरणः । ससिमंतः कणैवंतः ससा-
| योऽसि चशरित्यादिकं निरूकमचर द्षटव्यं । नि०१.९.॥ ` न
॥ अथयाषटमी ॥
हदा तदेषु मन॑सो जवेषु यद्कदयणाः संयञंति सखायः ॥
भके कि [1 | ॥ ॥ १ ^
अचाहं तवं वि ज॑हर्वे्याभिरो्हन्याणो वि च॑रत्युवे॥४॥ = `
हृदा । तष्टेषु । मन॑सः। जवेषु । यत्। ब्राह्मणाः । सं ऽयज्ते । सखांयः। `
अच॑। अहं । तवं । वि। जहुः। वेद्यामिः। हं ऽब्रह्याणः। वि। चरंति । ऊ इतिं।ते॥॥ `
१ ५ ५ 3 ४ ५ क । । ह । 5 ,
ससायः समानख्याना जाद्यणा हदा बुहिमतां हृदयेन तष्टेषु निधितेषु परिक- `
स्मितेषु मनसो जवेषु ग॑तययेषु वेदार्थेषु गुणदोषनिरूपणा यद्यदा संयजंते संगच्छते, 1
यजिरतर संगतिकरणवाची । अचास्मिन््राहमणसंपे तमविज्ञाताथेमेवं पुरषं वेद्या- . `
भर्वेदितव्याभिविद्याभिः प्रवृत्तिभिवौ वि जहुः । विशेषेण परित्यजंति । अहेति `
वनिश्वये । ओहव्रह्माणः । उद्यमानं बह्म विद्याश्रुतिमनिवुदिलछणं येषां ते `
चरति । यथाकामं वेदार्थेषु विनि ४
र ,
१३४ ` ॥ च्ृग्वेट्ः ॥ .. [० ४, ०२, व०२४,
अनया वेदाथानभिज्ञा निंदयते । इमे येऽविदांसोऽ वगवाचीनमधोभाविन्य-
लोके ब्राद्यणेः सह न चरंति ये परः परस्ता्देवेः सह न चरति ते नाद्य-
णासो ब्राह्यणा वेदाथेतत्परा न भवंति । तथा सुतेकरासः सोमं सुतमभिषुतं
कु्वैतीति सुतेकया ऋव्विजः। तेऽपि न भवंति । अप्रजङ्यः। जानातेराहगमहन
इति किप्रत्ययः । अविांसस्त एते मनुष्या वाचं लोकिकीमभिपद्य प्राण तया
पापया पापकारिण्या वाचा युक्तास्ते सिरीः । छंदसीवनिपावित्तीप्रत्ययः । सुपां
सुल्ुगिति जसः सुः । सीरिणो भूत्वा तंच कृषित्टष्णं तन्वते । विस्तारयंति ।
(१ कु्वैतीत्य्थः । सर्वथा वेदार्थो ज्ञेय इत्यभिप्रायः ॥
॑
५
(^ । सोमप्रवहणे सर्वे नंदंतीत्येषा । सूचितं च । सोम यास्ते मयोनशरुव इति तिखः
` स्वे नंदति यशसागतेन । खआ०४.४.। इति ॥
(1 ॥ सेषा दशमी ॥ ४ 3
सर्वै नंदति यशसागतेन सभासाहेन सख्या सखायः
किरस्विषस्युत्िंतुषणिर्खंवामरं हितो भव॑ति वाजिनाय ॥१०॥
संव । नटति । यशसां । आऽगतिन । सभाऽसहेनं। सख्या । सखायः
किल्विषऽस्पृत्। पितुऽसनिः। हि। एषां । आरं । हितः। भवति । वाजिनाय ॥१०॥
` ` सायः समानख्यानाः समानक्ञानाः सर्वे सन्या मनुधाः सभासहेन सभां `
सोदुं शङ्कुवता सख्यवििजां प्रतिभूतेन यज्ञ प्रत्यागतेन यशसा यशस्विना सोमेन `
हतुना नंदति । हृष्टा भवंति । स हि स एव सोम एषां जनानां किस्विषस्पत् ।
: यः सखस्मादन्यः पुरुषः शेष्ठतामशरुते स किस्विषं भवति बाध्यत्वेन । यथा पापं
परूपस्य शबोवाधकः । यद्वा । यज्ञे सा-
॥ |
।
4.44
रधरसायणाचायेविरचिते माधवीये वेदायेप्रकार ऋक्संहिता-
०१०, अ०ध. सू०ऽ१.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ १
॥ अथेकाटशी ॥
ऋचां वः पोष॑मास्ते पुपुष्रागायतरं त्वो गायति शक्रीषु। । |
बरह्मा त्वौ वद॑ति जातविन्यां यज्ञस्य मातां वि मिमीत उ त्वः ॥११॥
ऋचां । त्वः पोषं । आस्ते । पुपुष्रान्। गायचं । लः। गायति । शक्षरीषु।
ब्र्मा। त्वः वरदति। जातऽ विचयं । यज्ञस्य । मां । वि। भिमीते। ऊ इतिं । त्वः॥११॥
अनया होचाचुतिङ्कमेंणां विनियोगमाचषशे । त एको होतचा पोषं यथा.
धि कमणि प्रयोगं पुपुष्रान् । एको धातुरनुवादाथंः । बह्लीच्छैचः पुष्यन्
शंसन्नास्ते । त्व एकं उद्राता शकरीषु । शक्ये चः । सभिच्छेभ्मिवं हंतुभिंद्रः |
समर्थोऽभ्रूदिति शक्रयेः। तासु गायतं साम गायति । त्र एकी बद्या च जातविद्यां
जाति जाते कतेव्ये प्रायशित्तादो वेदयिचीं वाचं वटति । बरह्मा हि स्व वेदितुं
योग्यो भवति खल्नु । चादित्टरोपे विभाषेति न निघातः। त्र एकोऽध्वयुश्च यज्ञस्य
माचां । यज्ञो यया मीयते ऽभिषवमहणादिकया क्रियया ततां माचां यज्ञशयेरं वि
मिमीते । अत्यये निमिमीते । ऋचामेकः पोषमास्ते पुपुष्रान होत चैनीत्या- `
दिनिर्क्तानुसारेणार्थोऽभ्यधायि । रवं बृहस्यतिविटित्तवेदाधे तुष्टाव ॥ ` 9
॥ इत्य्टमस्य डितीये चतुर्विंशो वर्मः ॥ ०. ०
वेदा्थैस्य प्रकाशेन तमो हाद निवारयन् । ` (
पुमधाश्वतुरो देयादिद्यातीथेमहेग्वरः ॥ ए 1
इति श्रीमदराजाधिराजयरमेष्वरवैदिकमार्प्रवतेकध्रीवीरवुक्भूपालसामरज्यधु- `
भाषेऽषटमाष्टके हितीयं
"नी
-प६० ॥ ऋग्वेदः ॥ ` [खं० ४, ख० ३, च०१,
यस्य निःश्वसितं वेदा यो वेदेन्योऽखिले जगत्! `
निमेमे तमहं वंदे विद्यातीथेमहेश्वरं ॥
प्राज्ञः श्रीसायणाचार्यो व्याख्याय चरमेऽष्टकै।
स्फुटं डितीयमध्यायं तृतीयं वक्घुमुद्यतः ॥ भ
तच देवानामिति नवच॑मनुवाकापेश्षया चतु सूक्तं । आनु्टभं देवदेवत्यं ।
कनाखनः पुचो बृहस्यतिरांगिरस एव वा बृहस्यतिकरषिः । अथवा. दस्य
दुहितादितिच्छैषिः। तथा चानुक्रातं । देवानां नव लोक्यो वा वृहस्पतिदाशा-
यण्यदितिवेो देवमानुष्टभमिति । गतः सुक्तविनियोगः॥ ` |
तच प्रथमा ॥ १, ५६.
देवानां नु वयं जाना
वोचाम विपन्यया । `
उक्थेषु शस्यमानेषु यः पश्यादुत्तरे युगे ॥१॥ [ि
देवानाँ । नु । वयं । जानां । प्र वोचाम । विपन्ययां। ^
उक्येषुं ¦ शस्यमानेषु । यः । पथ्यात् । उत्ऽत॑रे । युगे ॥१५ `
अदितिदा्षायण्यनेन सूक्तेन स्वयं यथादित्यानजनयत्त् वीति । वृहस्यत्यु-
षिपक्षे स ऋषिरदितेः सकाश्णदादियोत्म्तिप्रकारमाह । वयं देवानामादित्यानां
जाना जन्मानि प्र वोचाम प्रकथयाम । विपन्यया विस्य्टया वाचा । वयमिति
जाथे बहुवचनं । अथेकवदाह । यो देवानां गणः पूर्वे युग
मानेषु यागे शस्तेषठनु्ीयमानेषुत्तरे युगे वतमानं स्तुवंतं
शस्यमानषु
म०१०. ०६. सू०ऽ२.] ॥ अष्टमोऽ टकः ॥ १६१
= जहाणोऽन्नस्य पतिरदितिरेतेतानि देवानां जन्मानि कमर इव स यथा
(7 भस्तयाम्मिसुपधमति प्रजलनाथेमेवं समधमत् । उदपादयदित्यथेः । देवानां पूर्व
वित्यथेः । तेषामुपादानकारणादस्तो नामरूपवर्जितवेनासत्स-
मानाद्न्यणः सकाशत्सन्ामरूपविशिष्टं देवादिकमजायत । प्रादुरभूत् ॥ असहा ।
दमय आसीच्ततो वे सदजायतेति हि श्रुतिः । न सदात्मकस्य प्रपंचस्यासत्का-
रणत युक्तमिति वाच्यं हंदोगेः कथमसतः सन्नायेतेत्यसत्कारणत्माक्षिणय सदेव
सोम्येदमग्र आसीदित्यवधारितल्वात् । डां० उ० ६,२.। तद्यसत्कारणप्रतिपादकवा-
( क्यानां का गत्तिरिति चेत् तेषामव्याकृतल्वाभिप्रायत्वात् तच्चेदं तद्यंव्याकृतमासी-
( दिति श्रुतेः । यद्येवं तद्येदितेः सकाणात्कथं देवाद्युत्पच्विः । वायोरम्रिरित्यादिवत्
॥ श
4 अधिष्टानसकाशादुत्पत्ैः। यद्वा देवानां कारणभूतं सदसतो ह्मणः सकाशाट्त्मन्न-
॥ मिति योजनादुकन्यायोऽस्मिन्पकषेऽपि समान एव ॥ |
| ९, २ ॥ खथ तृतीया ॥ व
॥ देवानां युगे प्रथमेऽसतः सर्दजायत । वि
। तदाशा अन्वजायत तदुल्ञानपंदस्यरिं ॥३॥ ष ५
देवानां । युगे । प्रथमे । असतः । सत्। अजायत । क ५
तत् । ज्मा
५ पूवोधसुक्तं । तदन्वाश्ण दिशोऽजायंत । तत्परि तदन्वित्यथैः । उक्तानपट्ः । =
उन्नानमूध्वेतानं पद्यत इत्युत्तानपदो वृक्षाः । तेऽजायंत । प्रादुरभवन् ॥
शाः.। अनुं । अजायंत । तत् । उत्तान ऽपंदः । परि ॥३॥ ५
4 5. 1 अयं चतुरी क 1
| भूजैस उत्तानपदो भुव आश अजायंत। `
1 अिनिदेशो अजायत दस्षाहरदितिः चरि ॥ ९॥ र ध | | | : 1 ८
“| शुः। जज्ञे, उ्तानऽपंद्ः। भुवः। आशः अजायंत। = `
। अजायत् । ट
॥ ऋग्वेदः ॥ [० ४, ऋ० ३, व०२. न `
। तथा हि । खदितिदेस्लो अजायत टशराइटितिः
४.
~. परीति च तत्कथमुपपद्येत । समानजन्मानो स्यातामित्यपि वा देवधर्मेणेतरे्तर-
क जन्मानौ स्यातामितरेतरप्रकृती । नि०११.२३.। इति ॥ ` |
1 ऋरितिदेवताङे पशवरितिद्यजनिषेयेषा हविषो ऽनुवाक्या । सूचितं च । श
क अदितिद्यजनिष्ट सुचामाणं पृथिवीं द्यामनेहसं । आ० ३.४.। इति ॥ त
0 ॥ ॥ सेषा पंचमी ॥. [र ५.
. अदितिद्यैज॑निष्ट दक्ष या दुहिता तव॑। `,
६ तां देवा अन्व॑जायंत भद्रा अमूं वंधवः ॥५ ' इ
= अदितिः। हि । अज॑निष्ट । दं । या । दुहिता । तव॑ ।
तां । देवाः। सनु । अजायंत । भदाः। अमृतं ऽबंधवः॥५॥
४ हे दक्ष तव या दुहिताभूत्सादितिरननिष्ट हि पुचानादित्यान् । तदेवाह । तां ,
| ` देवा अन्वजायत भद्राः स्तुत्या भजनीया अमृत्तवंधवोऽमरणवंधनाः॥ छ
(7 ॥ इत्यष्टमस्य तृतीये प्रथमो वगेः ॥
(१८ ॥ अथ षष्टी ॥
| र्देवा अदः सलिले सुसंख्या अतिंहत ।
` ऋचां वो नुत्यतामिव तीनो रेणुरपायत ॥६॥
येत्। देवाः। अदः। सलिले । सुऽसं॑ए्याः। अतिंहत।
` अच॑। वः, नृत्यतांऽडइव। तीच्रः। रेणुः अप॑ । आयत ॥६॥ ॥
५ न 1 ॥ प पि ॥)
अटौोऽसुष्मिन्सति
॥॥
नृत्यतामिव वौ युष्मावं संबं
। अपागच्छत्। दिवं प्रति गत
यदय
न
म०१०.अ०द.सु०ऽ२.| ॥ अषश्टमीऽष्टकः
यत् । देवाः । यत्तयः। यथा । मुर्वनानि । अर्पिन्वत । `
अचं । समुद्रे । आ । गृठव्हं । आ । सूये । अजभतेन ॥७॥
यद्यदा हे देवा यत्तयो यथा । वृष्या नियमयतीति वा वर्षेन याततयंतीति वा ष
यतयो मेघाः। ते यथोद्केनुवनानि लोकं पूरयति तदत्स्वतेजोभिरपिन्वत प्रित- `
वं्तोऽच ससुद्रेऽप्स्वा गृ्ठहं निगृठ्ट्हं सूये प्रातरूट्यायाजभतेन । आहत वतः ॥
॥ अथाष्टमी ॥ ।
अष्टो पुचासो अदितिरये जातास्न्व¶4स्परिं। + ध
देवाँ उप प्रेसप्रभिः परं मागीडमांस्यत् ॥४॥
अषौ । पुचासंः। अतिः । ये । जाताः। तन्व॑ः। परि । ` ४4
। देवान्। उप॑ । प्र एेत्। सप्रऽभिः। परां । मातीडं। स्यत् ॥॥
अष्टो पुचासः पुचा मिचाद्योऽ दितेभेवंति । येऽदितेस्तन्वः परि शरीराज्जातां
तराः । अतदितिरष्टो पुता अध्वयुत्राह्मणे परिगणिताः । तथा हि । ताननुक्र- `
भिष्यामो मिचश्च वरूणच्च धाता चाय॑मा चांश् भगश्च विवस्वानादित्यश्चेति । (अ
. तथा तैव प्रदेशं तरेऽदितिं प्रहुत्याजनात । तस्या उच्छषणमट्टुस्तत्मराश्नात् सा १, ` ॥
रेतोऽधत्त तस्ये चत्वार श्रारित्या अजायंत सा हितीयमपचदित्य्टानामादित्या- | |
नासुत्प्सिवेणिता । ते° सं० ६.५.६.१.। सादिति; सप्रभिः पुतर्दवानुप
गच्छत् । अष्टमं पुं मातीडं सूयै परास्यत् । उपरि प्रािपदित्यथैः ॥ `
॥ ॥ |
च
. १४४ | ॥ऋग्ेद्ः॥ ०५. अ० ३. व°
ष
[५
# । ® आ
ति; लौकेऽधारयत् । प्राणिमरणजननादीनां सूर्योदयास्तमयायत्तता
` य्ृद्धमांडमजायतेत्यादि ब्राह्मणं । ते° सं° ६.५.६.१.॥
5 ० ॥ `इत्य्टमस्य तृतीये हितीयो वर्गैः ॥ ५
ध जनिष्ठा इत्येकाट्श्चं पंचमं सूक्तं शक्तिपुचस्य गोरिवीतेराषे मारूतं चेष्टुभं
त्था चानुक्रातं। जनिष्ट एकादश गोरिवीत्तिरिति ॥ अभ्रि्टोमे मरुत्व
|. इदं सूक्तं निविद्धानं। सूचितं च । जनिष्ठा उग्र इत्येकभूयसीः शस्वा म
निविदं दध्यात्। आ०५,१४.। इति ॥ सोमिकचातुमोस्येषु वेश्वदेवेऽ पेत
निविद्धानं । सूचितं च । जनिष्ठा उग्र उयो जज्ञ इति माध्यंदिनः । सा०९.२.
| इति ॥ महातरतेऽपि निष्केवस्य एतत्सूक्तं । तथेव पंचमारण्यङे सूचितं जा
> उग्रः सहसे ठुरायेति निविङ्धानमिति ॥ |
॥ तच प्रथमा ॥
1 जनिं्ा उमः सह॑से तुराय मद् ओजिष्ठो बहुत्दानिंमानः
| भ ^
॥
044 व॑धेचिदं मरतश्िटचं माता यद्वीरं टदधनडनिंष्ठा ॥१॥
॥ ॥ ० + | | ष
॥ ५
1 जनिं्ठाः। उग्रः । सर्हसे। तुणय॑ । मंदरः । ओजिष्ठः । बहुल ऽअ॑भिमानः।
` छर्वधेन्। इद्र । मरूतः। चित्। अच । माता । यत्। वीरं । दधनंत् । धनिं्ठा ॥१॥
हे इद् महसे बत्राय तुराय शत्रणां हिंसनाय लमुय उद्रूणेवत्टो जनिष्ाः
अजायथाः । कीहशस्वं । मंद: स्तुत्य ओजिष्ठः । ओजः शरीरवत्े । अतिशयेन
बहुत्काभिनानौ भूयिष्ठाभिमानी । इहशं महानुभावमिंद्रमच् वृचरवधरे मर-
~ नरि +
॥ ष्मो ऽ टकः ॥
वेगैतुभिमेरुद्धिः सहितमिंदं निषेति सं बंधः। तेऽपि मरतः
तोचेणेदरं ववृधुः । अ वधेत वृचं जिधांसंतं । अथं भी वत
परिवृत्तानीव गवांदीनि तानि ययावरणापगमे निर्ग्छंति तइततान्युटकानि ष्वाँ- १,
तादधकाररूपात्मपितादासन्नात्माप्रााद्रभ गभैभूतान्युदकान्युदरंत। उदगच्छन् ॥
1 . ॥अथतृतीया॥ ५.
ए)
व ऋष्वा ते पादा प्र यज्निगास्यव॑धैन्वाजां उत ये चिदच॑।
तमिद् साल्ावृकानसहसरमासन्द॑धिषे अश्विना व॑वृत्याः॥३॥ `
४
८ , “ ऋश्वा।ते। पादा । प्र। यत्। जिगासि । अव॑धैन्। वार्जाः। उत । ये । चित्। अच ।
# [ग ५ | [..
॥
` त्वं। इट् । साल्ावृकान्। सहसरं । आसन् । दधिषे! अश्विना । आ । ववृत्याः ॥३॥
५
| हेते पादावृश्वा। महांतौ । ताहशल्तवं यद्यदा जिगासि गच्छसि तदानीं वाजा `
“ हे इट् तवं सहसरं सात्दावृकानासननास्ये दधिषे । धारयसि तदानीमश्विनाश्विनावया
४ ५ ॥ि ॥ अथ चतुर्थीं १,
च [ समना तूशिरपं यासि यज्ञमा नास॑त्या सख्याय वि। ` ५
॑ ` " वसाव्यामिंद् धारयः सहस्राश्विना शरूर द दतुमेधानिं ॥४॥ ५
. समता, तूः । उप॑ । यासि । यज्ञं । आ । नास्या । सख्याय । वि! = छ
। | वसाव्यां। इट् धारयः। सहसा! अश्विना । मूर। ददतुः। मघानिं॥8॥ = `
संमामे तूशिर्वरमाणोऽपि यज्ञमुप यासि ।
प° ४, ० ३, व्० ४,
॥ ण्वेट्ः ।
१४६
मर्दमानः । ऋतात्। अरि प्रऽजयिं । सखिंऽभिः। इदः । इषिरेभिः। अथे
आ। आभिः हि। मायाः उप॑। दस्यु खा।अगात्। मिह॑ प्र।तमराः। अवपत् तमा सि॥५॥
इद्र छताद्यज्ञादधीषिरेभिगेमनशीकिः ससिभिमेरुन्धिः सह मंद्मानो माचनप्-
जाये यजमानाय धनं प्रयच्छति । स चेद् आभिः प्रजाभिनिंमित्तमूताभिमाया
टस्युसं बंधिनी विनाशयितुं टस्युसुपागात्। स इदस्तम्रा अवषेणेन गुापयिची्मिहो
वृष्टीः प्रावपत्। तमांसि च प्रावपत् । व्यनाश्यदित्यथेः ॥
॥ इत्यष्टमस्य तृतीये तृतीयो वगेः ॥
॥ अथ षष्टी ॥
सनामाना चिद्खसयो न्यस्मा अवाहन, उषसो यथानः
ऋशवैरगच्छः ससिंभिनिंकामेः साकं प्रतिष्ठा हद्यां जघंय ॥६।
सऽनांमाना। चित्। ध्वसयः। नि। सस्मे। अवं । अहन् । इदः । उषसः! यथा । खन॑ः।
ऋशैः। अगच्छः ससिंऽभिः। निऽकमिः, साकं प्रतिऽस्था । हृद्यां । जघंथ ॥६
प्ण्णने # # 0 # 1
अयमिद्रो वृच हतुं सनामाना चित् समाननामानो नि ष्वसयः । न्यगमयत्।
अदस्व वृचमवाहन्। अवहतवान्। यथोषसो ऽनः शकटमवनाशितिवान् तडत्।
अथ प्रत्यषटणोच्यते । हे इट् त्वमृष्रेदीभ्रिमेहद्धिवेा निकामेनितरां वृचवधं काम-
यमानः सखिभिमेरुद्धिः सावं वृचं हंतुमगच्छः। आगत्य च प्रतिष्ठा प्रतिष्ठानानि
त्वेत
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॥ सथ सप्रमी ॥ क
दासं कृणखान रषये विमाय ।
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म०१०.अन्दै. सू०9३.] ॥ अष्टमोऽटकः ॥ १९७
ध्ये मनव षये सामान्येन मनुष्याय वा पथो मागैन्स्योनां कथं । कृतवा- ४,५
नसि । अथवा देवचा देवेषु मध्ये गंत्तव्यान्मागानिति वा संबंधः । स्योना
करथतयुक्तमेव विवृणोति । अंजसेव यानानिति । इवत्येवकारर्थे । अंजंसेवाकुटि- 6
लेनैव यानान्गंतृन्मागौनकरोः । अथवा मार्गेनाकुटिलेनैव गंतुश्चकथे । यथा
त्तो शीघ्रं गतो मागे इति मार्गस्य गंतृत्लोपचार स्तदटचापि यातृ द्रष्टव्यं ॥ ।
॥ अथयाशटमी ॥
च्मेतानिं पप्रिषे वि नामेश॑न इट् दधिषे गभ॑स्तौ । +
अनुं त्वा देवाः शव॑सा मदुनुपरिवुप्रान्वनिन॑थक्थं ॥४॥ `. |
तं । एतानि । पप्रिषे । वि । नाम॑ । ई्णानः। इद् । दधिषे । गभ॑स्तौ! ` ह
अ। त्वा । देवाः । शव॑सा । मदति । उपरिऽवुप्रान्। वनिनः । चकं ॥४॥
हे इद्र ल्मेतानि नाम नामानि नामकान्युदकानि वि पप्रिषे । विपूरयसि। |
हे इद्र ईशानः सवेस्येश्वरस््वं गभस्तौ हस्ते दधिषे धारयसि वजं धनं वा । किच `
त्वा त्वां एवसा बत्ठेनोपेतं देवाः सर्वेऽनुमदंति । अनुष्टवंति। स त्वं वनिन उद्- ~
कवतो मेषानरश्मीन्वोपरिवुप्नानुपरिमूलानधोमुलांश्चक्थं । कृतवानसि ॥ - `
| | ॥ खथ नवमी ॥
चक्रं यदस्याप्स्वा निष्॑तमुतो तद॑स्मे मष्व॑च्छद्यात्। ` 4
पृथिव्यामतिषितं यदूधः पयो गोदा ओष॑धीषु ॥९॥ त ५
च । यत्। सस्य । अप्ऽसु । आ । निऽ स॑ । उतो इतिं । तत्। अ
„र्दा
# भवधो
पृथिव्यां । अतिंऽसितं । यत्। ऊर्ध॑ः। प्यः । गों । अदधाः ।
बच रमी
| १४४ ॥ चग्वेटः ॥ इष० ८, प° 3, व° ५.
४ इट्सामथ्ये षरा केचिरेनमश्वादाटित्याटियायोदितवानिति वदति यद्यद्यपि उ
तथायहमेनमोजसो बलाज्जातं मन्ये । जानामि । अस्य तेजख्िवं दष्टा सूयो-
टूत्मन्न इति तेषां मतिः। अहं चौजःपदाथोज्जात इति मन्ये यत्तोऽयं वृचा;
वानिति । खयवायं मन्योः ऋोधादियायोदितवान् । अतो हभ्यघु शचुसं बधि
युद्धेषु हर्म्यश्चैव वा तस्यो । तिष्ठति । यत्तौऽयं प्रजज्ञ उत्सन्न
स्वस्येत्यथैः । सामथ्यै वेट् । जानाति । न दन्यो जञातुम
॥ थेकाटशी ॥
वय॑ः सुपणा उप॑ सेदु परियमेधा ऋषयो नाध॑मानाः ।
अप॑ ध्वांतम गहि पथि चकुमुसुग््य १स्मान्निधर्येव बज्ान् ॥११॥
(क व्य॑ः। सुऽपणोाः। उप॑ । सेदुः । इ । प्रियऽमेधाः । ऋष॑यः । नाधमानाः
इ अपं ।ध्वातं। ऊगहि। पूथि। चुः मुमुग्धि। अस्मान् । निधयांऽ इव । व ्ान्॥१९
वयो गंतारः सुपणेोः सुपतना आदित्यरषमय इद्रसुप सेदुः। उपसन्ना खभवन्।
. ` कीहशः । प्रियमेधाः प्रिययज्ञा ऋषयो द्श्टारो नाधमानाः प्रज्ञां याचमानाः
याचनप्रकार उच्यते । हे इट् ध्वांतमंधकारमपोणहि । परिहर । पूधिं पूरय च
चश्षुस्तेजः । मुमुग्धि मोचय चास्मान् निधयेव बद्धान् । निधा पाश्या भवति ।
` पाश्या पाशसमूहः । पाशसमूहेन वद्धान्यथा मुंचति तडत् । अचर वयो वेहू
ˆ वचनमिग्यादि निरुक्तं दृष्टव्यं । नि०४.३.॥
॥ इत्यष्टमस्य तृत्तीये चतुर्थो वगः ॥
९ # (र ॥ ५ ¢ ¢ ५
षड्चं षष्ठं सूक्तं । षाद्या पूेवत् । वसूनां षच्छि्यनुकरतं ॥
नियोगः ॥
&
धायेमाणल्वात् । युद्धादिकमेणा वां निमिचेनाक्
। केरित्युच्यते ! रोदस्योद्यावापृथिव्योः सं बंधिभिर्दैवेमनुथे-
चेत्यथः । सातौ संय्ामे जेतव्ये सति येऽवैतो वा गदतो रथिसमंत्तौ भवंति
नुं वा हिंसां वा सुश्रुणं सुप्रसिद्वामत्यंतटुजैयविषयां सुशुतः
कुवंति तेरपीद् आआकृष्यत इति ॥ व
सुश्रवसः प्रसिद्धाः
॥ थ हितीया ॥
हव॑ एषामसुरो नक्षत दयां श्रवस्यता मन॑सा निंसत शं ।
। चक्षाणा यत्रं सुविताय देवा चीनं वरभिः कृण्वत स
हव॑ः । एषां । असुरः । नसत । दां । चवस्यता । मन॑सा ।
चक्षाणा: । यत॑ । सुवित्त
य॑ । देवाः । चीः। न । विभिः
एषामनुष्टातृणमगिरसां हव आड्दानश
त् तचत्या इदरसं बधिनो देवाः चरवस्यतानमिच्छता म
निंसत । प्राप्नवंतः। यच यस्यां पृथिव्यां चकाणाः पणिभिरपहता गाः पश्यं
~ देवाः सुवित्ताय सुषु हिताय स्वात्मनोऽभ्युदयाय द्यीनौदित्य इव वरिभिर्वैरणी
` स्खेस्तेजोभिः कुणवंत। प्रकाशमकुर्वन्। गवां म्र
` ` अथवा एषां यज्िनामपहतानां गवां हवो
मरिताञ्ंगिरसः चवस्यतान्नं कीर्ति वेच्छता
गाः प्रदशेयितुमित्यथेः। इतरत्समानं ॥ ` 1
ऽसुर इदस्य प्रेरको
चकेषे। पकृ त्ते।
१५० ॥ ऋग्वेटः
चास्मदीयां स्तुतिं च यज्ञ च साधंतः साधयत
ताम्यनस्यमसाधारणं वा धातु । प्रयद्धतु ॥ `
| 1 ॥ खथ चतुर्थी
स्मा तच इंटायव॑ः पनतामि य ऊवे गो्म॑तं तित
सकृस्वं ये पुुपुचां महीं सहस्रधारां बृहतीं दुटु
आ। तत्। ते। इट् । आयवः । पनत । अभि । ये। ऊवै। गोऽरम॑तं । तितु
सवृत्ऽस्वं । ये । पुरुऽपुचां । मही । सहसरं ऽधागं । बृहती । दुधुष्न् ॥४।
हे इद्र ते तवायवो मनुया अगिरसस्तत्तदा पनत । सा सवतः पनतं
येऽगिरसो गोमतम् व संघं पणिभिरपहत प्रप्र तितृत्सान् हिसि
च सार्थस्य सनंतस्य द्ेेव्याडागमः । यद्योगादनिधातः। सभ्यः
` सकृस्वं । या सकृ सूः । तां सृप
विरूपपुत्ां सहखधारां बहुल कामानासुत्पादयिचीं बृहतीं वि
. यद्वा पुरुपुत्रां बद्धोषधिवनस्यतिरूपपुचां सहखधारं बहूका
परज्यां वा बृहतीं परिमाणरहितां दिवं दुधु्न् दुटुहुः। ते पनंतेति २
हो रजायतेत्याद्युकत । ऋ ° सं० ६, ४५.२२.॥ च `
| ॥ अथ पंचमी॥
1 ^
वृकि भत यो वलं नये पुरषुः॥५॥ =`
ध्वं । अना नतं । दमर्यतं । पुतन्यून
स०१०. अ० ६, सू०७५.] ॥ अष्टमो ऽकः ॥ १५१
सुतस्य रसिन इति सामप्रगाचः । खआ० ५.१५.
पंचमारण्यके सूचितं च । यडावानेति धाय्या
॥ सेषा षष्ठी ॥ |
यद्वावान पुरुतमं पुराषाव्छा वुंचहंदौ नामान्यप्राः!
अचेति प्रासहस्यतिस्तुविष्मान्यदींमुश्मसि क्वे करत् ॥६॥
यत्। ववानं । पुरुऽतमं । पुराषाट्। आ । वृचऽहा। इद्रः । नामानि । अप्राः
अचेति। प्रऽसहः। पतिः तुविष्मान् । यत्। ६। उ्मसि। कवे । करत्। तत्॥६।
यद्यदा पुरूतमम्यतं प्रवृद्धतमं वचं ववान हंति पुराषाट् शचुपुराणामभिभ-
वितेद्रस्तदानीमानंतरमेव वृचर्दो नामान्युदकान्यप्राः। पूरयति। व्यत्ययेन मध्यमः! `
सोऽयमिंदरः प्राहः शचरूणां प्रकर्षणाभिभविता पतिः सर्वस्य स्वामी तुविष्मान्। ` ०
तुवीति बहुनाम तत्सामथ्योदनं परिगृद्यते । वहुधन इत्यर्थः । इहणः सन्रचेति। `
सर्वः प्रजञातः। स महानिंदरौ यदीं यदेतत्कर्मो्मसि वयं कामयामहे तत्कवरत्। =.
करोत्येव । इट् भवविदं भवत्विति यत्कवामयामहे तचदानीमेव करोत्येव नोरास्त म
इत्यथः । सेतदेव प्रत्यपद्यत यद्वावान पुरुतमं पुराषाच्ित्यादिकं ब्राहय |
एे° बा० ३,२२.॥ 4 ए
॥ इत्य्टमस्य तृतीये पचमो वगैः॥ |
सु व इति नवै सप्रमं सूक्तं । म्रियमेधपुचस्य सिंधुष्ठित आधे जागतं ` ५
नदीदेवताकं । तथा चानुक्रातं । प्र मु नव सिंधुक्िष्मेयमेधो नरीस्तुतिजागतं ~
विति। गतोविनियोगः॥ 1 1
४
॥ खथ डितीया
म्र तेऽरदरूणो यात॑वे पणः सिंधो यद्या अभ्यदरवस्वं ।
भूम्या अधिं प्रवतां यासि सानुना यदेषामय्रं जगतामिरज्यसि ॥२॥
नेष्ये ६ ध ५
प्र ते। अरदत्। वरूणः। यात्तवे। पथः सिंधो इति । यत्। वाजान्। सभि। सदरवः। तव!
. प्ठेकि पिः) किपः. # #
भूर्म्याः। खरधि। प्रऽवत्ता। यासि सानुना । यत्। एषां । ख्यं । जग॑तां । इरज्यसि ॥२॥
हे सिंभो देवि तै तव यातवे गमनाय वरूणो देवः पथो मामीन्प्रारटत् ।
प्राचीनं व्यल्िखत् । सा हि प्राक् प्रवहति । खथणवा प्रकृष्टमितरनदीभ्यो ऽप
विच्लृतं व्यदारयत् यद्यस्माद्े भत्टष्य त्वमनभ्यद् वः! खभ्यगच्छः।
किंच त्वं भूम्या छध्युपरि सानुना समुचितेन प्रवता मार्गेण यासि । गसि ।\
सिंधुः सल पवैताि न मागेण गच्छती मेषां
वैषां जगतां जगमा
100
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म०१ ५. ॥ अष्टमो ऽ्टकः ॥
धो उति शि इत्। न। मातरः!
राजां ऽइव। यु्वा। नयसि
# ति ।
०, छ०६, सू०$
ऋभि।त्वा, वाच्ाः।खषेति। पय॑साऽइव
प्रऽ वर्ता । इनं
चक केन्य
।त्व। इत्। सिचो। यत्। आसां। अं
धो ता त्वां शिशुमिन्न मातरः पुचरमिव वाश्राः शब्टेय॑त्य
ऽभ्यषेति । अभिगच्छंति ! पयसेव धेनवः पयसा युक्ता नवम्रस
विच युध्वा गुद्धकृदराजेव त्वमिच्मेव सिचौ सिच्यमान भटौ
मवतां त्वया सह गच्छतीनामयमग्र इनक्षसि। व्याप्नोषि । सवासां पुरतो गच्छसि।
॥ अथ पंचमी ॥
इमं म गंगे यमुने सरस्वति मुत्र स्तोम॑ सचता परुष्ण्या ।
असिक्या म॑ुडृये वितस्तयाजीकीये मुणुद्या सु
मे। गंगे । यसु
घोमया ॥५। |
रस्वति। भुतुदवि। स्तोमं । सचत । परूष्णि। आ।
येः पादम व्यि
वृधे । वित्तस्तंया। आजोकीये । णृगुहि । आ । मुऽसोम॑या ॥५॥ `
अच ग्रधानभूताः सप्र नदस्वदवयवभूता नद्यसिसः स्तूयते । हे गंगे हे यमुने
हे सरस्वति हे शुतुद्रि हे परुष्णि । हे असिक्यावयवभूतया सहिते मरुडधे हे वित-
स्तया सुषोमया च सहित आजीकीये तवं च एवं सप्र नदयो
सदीयमा सचत। आसेवध्वं । पृणुहि। भु
च साहित्यं निरुक्त उक्तं । वितस्तया
अचर गगा गमनादित्यादि निरुक्तं दृष्टव्यं । ९.२६.॥
॥ इत्यष्टमस्य तृतीये ष्टो वैः ॥
ने। स
इमं ।
असिन्या । मस्त्ऽ
यूयंमेस्ं
त। आजीकिीयाया वितस्तया सुषोमया
चार्जकीय स्रा गृणुहि सुषोमया चेत्ति।
॥ अथ षष्ठी
तृष्टामया मथमं यात॑वे सजूः सुसं रसयां रेया त्या ।
इतरा नः
तिका गाव इव।
नयसि । यद्यदासां
स्तौचम-
हिरण्ययी हिरणमयाभरणा सुकृता वाजि
१५४ 1 क्रग्वेदः॥ इप० ४, ० 3, वं० $,
प्रथमं तृष्टामया नद्या सज्; सषंगतासि । पचा
मेहल्वा च सह सजूभैव याभिस््ं सरथं समानं रथ
॥ अथ सप्तमी ॥
ऋजीत्येनी रुश॑ती महिला परि जर्यासि भरते रजासि
अद्धा सिंभुरपसांमपस्तमाश्वा न चिरा वपुषीव दशेता ॥$
ऋजीती । एनी । रुश॑ती । महिऽत्वा। परि । जयासि । भणते रजासि ।
पकक केम, शनत
अद॑न्धा। सिधुः। अपरसा। अपःऽत॑मा। अश्वा। न। चित्रा । वपुंषीऽ इव । भेता ॥७
ऋजी्यज्ञगामिन्येनी श्वेतवणो रुशती दीयमाना सिंधुजेयांसि वेगवंति रजां-
टकानि परि भरे । प्रभरति । ताहश्यदन्धाहिंसिता सिंधुरपसां कमवतीनां
मध्येऽपस्तमा वेगाख्यकमेवती भवति । अश्वा न वडवेव चिता चायनीया वपु!
वपुष्मती योषिदिव टशता टश्नीया भवति ॥
^ १ ॥ अथाष्टमी ॥
सिंधुः सुरया सुवासा हिरण्ययी सूर्वृत्ता वाजिनीवती ।
ती युवतिः सीलमावत्युताधि वस्ते सुभगां मधुवुधं ॥४॥
†। सिंधुः सुऽरथा । सुऽ वासाः । हिरण्ययी । मुऽर्कृता। वाजिनी ऽवती।
युवतिः। सीलमांऽ वती। उत। अधि । वस्ते। सुऽभगा । मधुऽवुरध
|
सिधुः खश्वा शोभनाश्वोपेता सुरथा शोभनरथा सुवासाः शोभनवस्तोपेता
सेयं ॥
नी वत्यन्नवत्यूणोवत्ती । तस्याः समीप-
: क्रियंते । युवतिनित्यतरूणी स्वेदा
देशे हि
॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ १५५
। आजो ।
शोभनयारं वाश्विनमश्ववंतं रथं युयुजे । युनक्ति । तेन
छतु । अस्मिन्नाजौ संयामे यज्ञे वास्य सिंधुरथस्य
। इरावतः पुचस्य सपेजातेजेरत्कणेनाग्न सा
सानिषवाथो ये यावाणस्वहेवत्यं । तथा चानुक्रातं। सा वोऽष्टौ सप
यावतो जरत्कणो याव्लोऽस्तोदिति ॥ ावस्तोच एतत्सूक्तं । सूचितं च । आ व
ऋजसे प्र वो सावाण इति सूक्तयोरंतरोपरिष्ात्पुरस्ता्वा । आ०५.५.। इति ॥
॥ तच प्रथमा ॥
अह॑नी सचाभुवा सदःसदो वरिवस्यातं उद्धिद् ॥१॥
जसे । ऊजा । वि ऽउषटिषु। इट । मरुत॑ः रोद॑सी इतिं । अनक्तन ।
# 0 # शिधि
नूजे सारभूतानामन्नवतीनां बोषसां वयुष्टिषु विभातेषु
यामि । यूयं सौमेनेद्रं मरतो रोदसी चावापृथिव्यौ चा-
मेनेदं म
१५६ ४ ॥ ऋग्वेदः ॥ [अ० ४, ०३, व्०४.
नोतन । अभिषुणुत ।
¦ सन् अत्यो न धृतोऽश्च
हे मावाणो यूयं तदु तमेव चठ प्रशस्यं सवनं सोमं
अथेकवद्ाह । अद्िरिभिषवमावा हस्तयतो ह्ताभ्यां गुह
इव भवति सोतयभिषवकतैयेध्वयो । सं यथा हस्ता नन्
तडत् । अरयो य्राव्णामभिषवाय प्रेरको यजमानोऽभिभरूति श्चूणामभिभावुवं
पोस्यं बलं विदचचि। तभते खत्तु देवेभ्यः । यद्वाभिषवायाध्वयुदेः प्रेरितो मावा-
निभूति पोस्यं विदद्यजमानाधे । विच महे महे रये चिडनायापि यद्य मा- ।
वा वेतोऽश्वा स्तरते । तनुते । प्रयति ॥
॥ अथ तृतीया ॥
तदिद्यस्य सव॑नं विवेरपो यथा पुरा मन॑वे गातुमश्रेत् ।
गोअणेसि वाटे अश्वनिर्णिजि मेमं ष॑वरोँ अशिश्रयुः ॥३॥
तत्। इत्। हि । अस्य । सव॑नं । विवेः। अपः। यथां । पुरा । मनवे। गातुं । अर्ेत्।
गोऽणंसि। वाटे अश्वऽनिनिजि। ्र। ६। अष्वरषु । अध्वरान्। अशिश्वयुः ॥३।
इदिति पूरणः। अस्य याव्णएस्तत्सवनमभिषवोपे्तमसदीयं सोमयागाख्यमपः
कम विवेः। व्यापरोतु । विपूरवैस्य केतेलैद्यदादित्राच्छपो लुक् । केेविपूर्वैस्य वा
| . द॑दे श्लौ वापररूपमिति संदेहादनवयहः । समासस्वरः । यथा युरा मनवे
॥ रञ्ञे गातुं गमनमश्रेदाजगाम तडद्यापरोतु। किंच गोञ्चणसि गोरूपेऽपहतर्गोभिः
परिवृते तथाश्चनिणिजि। निणिंगिति रूपनाम। अ्वरूपे। अपहतैरशचेवैत इत्यथः!
ईहे चाष्ट ष्टुः पत्रे हतये सतीति शेषः । ईमेतानध्वरानसुरेरहिस्यानथ्वरसा-
भकानोपलानध्वरषठशि्युः । आश्रयति पूर्वे यजमानाः ॥ ` 1
४ सष चतुथी. 6
भायत निच्छतिं सेथता
मतिं
म०१०.अ७०६, सू०ऽ६.] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ ॥
सु यज्ञं नागच्छति तथा । किंच सेधत निषेधतामतिं हिसामतिं रकष
| ` किंच नोऽस्माकं सवेवौरं बहुपुचादयुपेतं रयिं धनमा सुनोतन । अभिषवेन पुच- ` 18
[. नां लाभादेवमुक्तं । किंच देवाव्यं देवम्रीणनं श्रोकं भरत । संपादयत
॥ अथ पंचमी ॥ (|
दिवश्चिदा बोऽ म॑वत्तरेभ्यो विभ्वना चिदाश्वपस्तरेभ्यः (9 ॥
~ वायोधिदा सोर्मरभस्तरेभ्योऽम्ेधिंट्चै पितुकृर्चरेभ्यः ॥१५॥ आ
आ । वः। अम॑वत्ऽतरेभ्यः। विऽभ्बना। चित्। आश्वपःऽत्रेभ्यः। = |
- आ। सोम॑रनःऽ तरेभ्यः। अम्रः । चित्। अचे। पितुकृत् ऽ तंरेभ्यः ॥५॥ ध
वश्चिद्ादित्यादप्यमवक्तरेभ्योऽत्यंतं बल्रवद्यो वो युष्मभ्यमाच । अस्तीद्- ` (॥॥
ध्वयु; । यज्वा हे ऽभ्वयूौदयो वो यूयसुच्यमानटक्षणेभ्यो ग्रावभ्य खा सवेतोऽचै। आ
| ऋचेतेत्येवं प्रतिवाक्यं योज्यं । विभ्वना चित् । विभ्वा सुधन्वनः पुः । तेनाणा-
पस्तरेभ्यः। शीधरकमभ्य इत्यथेः। विभ्वादीनां याणां चमसादिशीघरकमे म्रसिडं। 1
वायोश्िच्वायोरपि सोमरभस्तरेभ्यः सोमाभिषवार्थेनात्यतेन वेगेन युक्तेभ्यः। वा- ` |
योरपि मावाणो वेगवतो भवंति सोमाभिषवाथे । खप्रेश्चिदमरेरपि पितुकृत्तरे- ४
'\ भ्योऽत्यत्तमन्नसाधकेभ्यः। इदरभ्यो सावभ्यः प्रीणनाय यूयमचैतेति ॥ ` 01
य ॥ इत्य्टमस्य तृतीयेऽष्टमो वगेः ॥ |
| ॥ अथ षष्ठी ॥ 0;
| यश्सः सो्व॑धसो मावांणो वाचा दिविता दिवित्मता ।
| यच्॑ दुहते काम्यं मध्वांघोषर्य॑तो अभितो मिथस्तुर; ॥६॥ (0 =
| _ श्रतु । नः। यशसः सोतुं । संध॑सः। यावांणः। वाचा। दिविता दिवित्मता,
(५1 काम्यं । मधु । आऽयोषय॑तः। अभितः । मियःऽतुरः॥६॥ `
यावाणो नोऽस्सभ्यं;
0." - 916. : ॥ चरग्वेद्ः॥ . ` (ऋ०५, छ० ३, व०१०.
| स्तोचश्स््ादिरूपं वा शब्टं कु्वैतः। अभितः सवतो भिधस्तरस्वरमाणाः । सा ४
`. : दीर्निमह्ेति॥ `. ` ` ल च ८, ५, * |
1 | |. . . ॥ अथसप्रमी॥ ` |
| मुन्वंति सोमं रथिरासो अद्रयो निर॑स्य रसं गविषो दहंति ते
क
दह॑यूभरुपसेच॑नाय कं नरो हव्या न मं॑जेय॑त आसभिः ॥9॥ =.
सुन्वति । सोमं । रथिरासः । खद्रयः। निः । अस्य । रसं । गो ऽद; दुहंति। ते |
# ॥)
` दहतिं । ऊधः । उपऽसेच॑नाय। कं । नरः । हव्या । न । मजेयते। आसऽभिः ॥9
| रथिरासौ रथवंतो रंहणएवंततोऽद्रयो यावाणः सोमं सुन्वंति । यावाणोऽस्य
सोमस्य रसं निदुहंति । निःशेषेण दहंति गविषः स्तुतिवाचमिखंतः संतः ।
(1 दुहतयूधा रसं सोमसंबंधिनं । किमथे । उपसेचनायामनेः । कमिति पादपूरणः ।
(क नरो नेतारोऽभिषवकतार ऋत्विजो हव्या हवीषि चाग्न्युपसेचनानंतरमासभिः
स्वस्थेमेजेयते । ्तधयंति । शेषभछणेन भुद्ीकुवैति । यहाम्रौ होतुदेशपवि-
चात्मुरासभिरास्यो पलितैः स्तोतैर्मजेयंते ॥ 7
1 ~ 1. ॥ अया्टमी ॥
` एते न॑रः स्वप॑सो अभूतन य इदटरय सुनुथ सोममद्रयः
वामंवामं वो दिव्याय धाश्ने वसुंवसु वः पार्थिवाय सुन्वते ॥४॥
ए । नरः । सुऽञ्प॑सः। अभून् । ये। इदराय। सुनु । सोमं । अदयः
वामंऽबांमं। वः दिवयायं। धाक ।वसुंऽवसु । वः । पार्थिवाय । सुन्वते ॥४॥ `
^।
, ५ हनो नैतरो हेऽ णो य ्लपसोऽभूतन । ोमनाभियवकमोणो भवत ।
ये गूयमिद्राय सोमं: सुनुथ वो यूयं वामंवामं यद्यदननीयं धनमस्ति तत्तरिव्याय
४.1
तिजसे
म० १०.०६. सु०99. ॥ खष्टमो ऽषट्कः॥ 6 ध |
॥ तच प्रथमा॥ ` ४ + .
अभपुषो न वाचा प्रुषा वसुं हविष्म॑तो न यज्ञा विंजानुष॑ः। `
मास्त न ब्रह्माणंमरेस गणम॑स्तोथेषां न शोभसे ॥१॥ ` ~" ५ १.
:। न। बाचा। परुष। वसुं । हविष्म॑तः। न। यज्ञाः । विऽजानुष॑ः। |
बलाणं । अरसं । गणं । अस्तोषि । एषां । न । शोभसे ॥१॥ .. |
न मेधा्निगच्छत उट्कविंदव इव वाचा स्तु्ा प्रीता मर्तो वसु ` च
सिंचति । व्यत्ययेन बहुवचनं । किंच हविष्मतो न यज्ञा हविर्भियुक्ता `.
| विजानुषो जगतो विजनयितासे भवंति । अय समुटायेनाह । तेषा- `
रुतं शणेनमानानां सरतां बरह्माणं महांतं गणमहसे पूजाथं नास्तोषि। |
न स्दुतवानस्मीतः पूवे । तथा शोभसे शोभाधेमपि मारुतं गणं ना- `
स्तौ नूतनेन स्तोवेण स्तोमीत्यथैः ॥ ४ |
॥ खथ हितीया ॥ ^
मयोसो अंजीरकृणखत सुमास्तं न पूरवीरितिपैः। ` ` ह
द्वस्पुचास् एता न येतिर आदित्यासस्ते अक्रा न वावृधुः ॥२॥ ए
| ध्रिये । मयोसः। खं जीन्। अकृखत । सुऽमारतं । न। पूर्वीः । अरतिं । एप॑ः ०1
र्। आदित्यासः । ते। क्राः । न । ववृधुः ॥२। क
। एताः । नं ा
भषणे धि धि
मयोासो मारका मनुयरूपा वा मरूतः । पूव मनुष्याः संतः
1 “ # ।॥
वशेषेण मरा आसन्। तेऽजीनंजकान्याभरणान्यकृखत । कुवैति। कि ` |
५ एरीरणोभनाध। सुमारुतं शोभमानानां मस्तं गणं ूवीवह्यः =
तः सेना गा पराभावयंतीति शेषः । विच दिवी दयुदेवताया धाः 0 ध 1 |
गंतारो न येरिरे । निग॑च्छंति। त आदित्यासोऽदतिःपुबा |
। ०१६० ॥ ्ण्वेट्ः ॥ ` | ० ७, ० ३, वं०१०.
भ्र।ये। दिविः। पृथिव्याः। न।. वहं । त्मना । रिरिषे । अथात् । न
४: पाज॑स्वंतः। न । वीराः पनस्यव॑ः । रिषिद॑सः । न । मयोः । अभिऽ
ये मरतो दिवः पृथिवयया न पृथिव्याश्च । नेति चार्थे । हेणा
॥ नैव रिरिषे । अतिरिक्ता अभवन्स्व शरीरेण । अभान्नाभादिव सूयेः
जस्वंतो न वीरा बलवतो वीरा इव पनस्यवः स्तुतिकामा भवंति
५: दसी न मयै रिश्तामसितारो मनुष्या इवाभिद्यवोऽभिगतदीघ्रयो नवंति॥ `
1 ` ॥ अथ चतुर्थी ॥
(1 युष्माकं वुप्रे अपां न याम॑नि विथुयेति न मही चरथयेतिं ।
५ ४ व =
विश्सुयैज्ञो अवीगयं सु वः प्र्यस्वंतो न सचाच आ ग॑त ॥४॥
(1. युष्माँ । बुपरे । अपां । न। याम॑नि । विथुयेतिं । न । मही । अथयेति ।
| विश्वऽप्सुः। यज्ञः। अवक् अयं। सु । वः। प्रय॑स्वतः। न । सचाच॑ः। आ। गत ॥४।
हे मरुतौ युष्माकं वु परस्यरसंघातेऽपां न यामनि प्रवृद्धानामुदकानां गमन
इवं मही महती भूनं विथुयेति। न व्यथते! नापि श्रथयेति। न विशीणौ भवति
शीघ्रगतयोऽपि यूयमेनां न पीडयध्वमित्यथेः। विश्वप्सुविं्वरूपोऽयं यज्ञो याग-
साधनं हवि्वो युष्माक्मवोगभिमुखं सु सुषु गख्छति । प्रयस्वतो नान्नवंतः परिः
८
४
| ्कतो
इवं सुखप्रदाः संतः सचाचः सहांचना आ गत । आगच्छत । संघाकरे- ८
तेत्यथेः । सप्र गणा वै मरत इति धृतेः ॥ ` ५ ¦
नो न रषनमिर्नोतितो न मासानि = |
#॥
॥ अष्टमो ऽषटकः ॥ १६१
1 रिशादसो रिशतामसितारस्तबदविशादसः स्वायत्तयशसश्च ।
चि प्रवासो न प्रवासिनं इव पथिका इव प्रसितासः प्र
: परिमुषः परितो ग॑तारो भवय ॥ =
॥ इत्यष्टमस्य तृत्तीये दशमो वेः ॥
॥ खय षष्ठी ॥ ए न,
वसवो राध्यस्याराचिद्ेष॑ः सनुतयुं योत ॥६॥
वह्वे। मरूतः । पराकात् । यूयं । महः । संऽवरं णस्य । वस्व॑ः
॥
। वसवः । राध्य॑स्य । आरात् । चित्। ेष॑ः। सनुतः । युयोत ॥६॥
ष पि
हे मरुतो यूयं यद्यदा पराङादत्य॑त
महत्सं वरणस्य
हे वस
नरः
दूरदेष्णङहध्व आगच्छय तदानीं महो
संवरणीयं राध्यस्य संराधनीयं वस्वो वसु धनं विदानासः प्रयखंती
हितान्! निगूढानित्यथेः । सनुतसित्यंतरितनाम ॥
॥ अथ सपमी ॥
यज्ञे छभ्वरे्ठा मर्द्यो न मानुंषो ददात् । कि
दधते सुवीरं स देवानामपि गोपीथे खस्तु ॥७॥ ` ४
। यजञे। अष्वरऽस्याः। मस्त्ऽभ्य॑ः। न । मानुषः । ददाशत् ।
यूयमाराच्चिहूरादेव युयोत । पृणङ्कुरुत । कानित्युच्यते । देषो इषटन् सनु-
२ ` = ` ॥ क्रम्वेद्ः॥ : ` [अ०४,अ०३.व०१२. |
5, ^. - 4 चप्राषहटमी॥ - , `
॥ < 5 ४
हि यज्ञेषु यज्ञियास ऊमां दिव्येन नान्रा शंनविष्ठाः।
ते नोऽवतु रथतूमनीषां महश्च यामं
|
क) न
च॑कानाः॥४॥ ` ॑
ते। हि। यज्ञेषु । यक्ि्यासः। ऊमाः । आदिषयेनं । ना । शंऽभ॑विषठाः
: ते। नः। अवंतु । रथऽतूः। मनीषां । महः। च । याम॑न् । खध्वरे । चकानाः ॥४
1 ।. ..1 | ॥ क
# ॥ रि
ते हि ते खलु यज्ञेषु यागेषु यज्ञियासो यज्ञाहो यष्टव्या ऊमा अवितार आदि
व्येन नान्नादित्यसंबधिनोट्ेन शंभविष्टाः सुखस्य भावयितारः । यद्ादित्यास्येनः
नाम्नादित्यनामकेन देवेन सह शभविष्ठाः। ते मरुतौ नोऽस्मानवतु । रयतू रथ- २
हुरो रथस्य यज्ञगमनसाधनस्य त्वरयित्तारः संतो मनीषां स्तुतिमवंतु । रसतु । ह ।
कीहश्णल्ते । अध्वरे यामन्यामनि गमने महौ महडवि्चकानाः कामयमानाः ॥
ध ५ ॥ इत्यष्टमस्य तृतीय एकादशो वगैः॥ `
विप्रास इत्यष्टचै दशमं सूक्तं । पंचम्याद्यास्तिसो चवितीया चेति चतस्रो जगत्यः। `
| श्टाश्चतसस्िहुभः, पूर्ववहषिदेवते। तथा चानुक्रातं । विप्रासो डितीया पंच-
म्याद्याश्च तिसौ जगत्य इति । गतौ विनियोगः ॥ ` .
विप्रासो न मन्म॑भिः स्रध्यों देवाव्यो$न यजञैः स्वघरसः। `
॥।
1 ॥ तच प्रथमा॥ =
;। न । यज्ञैः सुऽखप्रसः।.
। म्य; । अरेपसः ॥१॥
1, + ५ ^ त
ष्टम ऽष्टकः ॥ | १६३
; । तथा क्ितीनां निवासानां स्वामिनो मया न मनुष्या इवारेष-
। यथा प्रतिपहाथेमन्य ॥ गत्वा स्वगृह एवानुतिष्टतो निर्दोषा भवं
: । इह्णः शोभेतं इत्यथः ॥
| ॥आखथङतीया॥
ज॑सा रुक्म व॑सो वातासो न स्वयुज॑ः सद्यऊतयः! `
नं ज्यष्टाः सुनीतयः सुशमो माणो न सोमा ऋतं यते ॥२॥
ये। भाज॑सा । रुक्म ऽ व॑ससः। वात्तांसः। न । स्व ऽयुजः। सद्यःऽऊतयः।
~ :1 न । ज्याः । सुऽनीतय॑ः । सुऽ शमै।णः। न । सोमा; । ऋतं । यते ॥२॥ |
रत्तो ऽग्रिनोभ्रिरिव । स यथा भाजसा तेजसा शोभते तदङ्खाजसा युक्ताः
9
च रुक्म वसो रूक्माल कृत वषस्का वातासो न प्रत्यक्षवाता इव स्वयुजः स्वयं-
युज्यमानाः सद्यऊतयः सद्योगमनाः प्रज्ञातारो न प्रकषण ज्ञात्तारो ज्ञानिन इव =
पूज्याः सुनीतयः सुनयनाः सुशमाणो न सोमाः सुमुखाः सोमा इव ते |
यमतं यते यज्ञ गच्छते यजमानाय गच्छतेति ॥
॥ खथ तृतीया ॥
| ~ ये धुन॑यो जिगत्नवोऽम्रीनां न जिह विरोकिणः। ` धि
मैत न योधाः शिमीवंतः पितृणां न शंसा सुरातयः ॥३॥ === `
वाततासः। न । ये। धुन॑यः । जिगल्नव॑ः। अम्रीनां । न । जिड्याः। विऽरोकिणंः।
णऽ वं्ः। न । योधाः। शिमीऽ वतः । पितृणां । न । शंसाः। सुऽरातयः ॥३॥ |
इव धुनयः शत्रूणां कंपयिता क
मस्तामेव दष्टातकथनं संचरणस्व 1
न जिहा अम्रीनां
तो न योधाः
| ।
कि ॥ ऋग्वेद्ः ॥ ` [० ४, अ० ३, व० १३.
0 ॥ अथय चतु
रथानां न येव॑राः सनाभयो जिगीवांसो न शूरा अभिद्यव
वरेयवो न मये घृतपरुषोंऽनिस्वतारो अके न सुटः ॥४॥
रथानां । न ये। अराः! सऽनाभयः। जिगीवांसः । न । शूराः । अभिऽदयवः। |
वरेऽयव॑ः। न। मये । धृतऽपुष॑ः। अभिऽस्वतोरः । अके । न । ॥
# [मौ ककः ह शे |.
ऋनि
रथानां न रथचक्राणामिवाराः। ते यथा बहवोऽपि सनाभयः समाननाभनयो
भवंति तद्ये परस्परं सनाभयः समानबंधना एकस्मिन्नेवांतरिषछे वतमानाः
परस्परं वंधुभूता इत्यथैः । जिगीवांसो न भूरा जयशीलाः शूरा इवानिद्यवौोऽनि- = \
गतदीप्रयः। विच वरेयवौ न मयोः । वृतं वर परस्मं प्रदातुमि्छतौ मनुष्या इव
धृतपरुष उटकतेक्ताः। उदकपूवै हि वणि वसूनि दीयते नियमेन । वृष्टयुटक-
प्रदा इत्यथः । निंचाभिस्वतारोऽक न । अकेमचेनीयं स्तोचमभिस्वतारोऽभित
शब्टयितारो वदिन इव सुष्टुभः सुशब्दाः ॥ 1
॥ अथ पंचमी ॥
अश्वस न ये य्यष्ठास आशवो दिधिषवो न रथ्यः सुदानवः ।
आपो न निननैरुदभिंजिगल्नवो विश्वरूपा छंगिंरसो न साम॑भिः
॥-...
सः ।न्। ये। ग्ये्टासः | आशवं ८ दिधिषवं ;। न। रय | । ध
।उट्ऽभिः। जिगत्नव॑ः। विश्व ऽरूपाः। खंगिरसः। न साम॑ ऽभिः॥५॥
नाश्चा इव ज्येष्ठाः प्रशस्यतमा आरवः शीघ्रगमनाः । तथा
धारका इव रथ्यो रथस्वाभिनः सुदानवः सुदानाः। तथापो
जिगत्नवौ गमनशीत्लाः । तया विश्च-
नांगिरस इव सवदा सामगा इत्यथः ॥
अष्टमोऽष्टकः ॥ १६५
धुऽमातरः। ओआऽददिरासंः । ख्दरयः । न । विश्छहां।
सुऽमातरः। महाऽयामः। न। याम॑न्! उत। तविषा ॥६॥
कैकः पे 0
ग्रावाणो न मेधा इव सिंधुमातरो नदीनिमोतारः ।
शीलान्यद्रयो न वजाद्यायुधानीव विश्वहा स्वैदा शचरणां
सवेदाद्यो न वजा इवं शचूणामादर्दिरस आ्आदरणणीत्ाः
तृकाः शिभूत्ा न शिशव इव कऋीव्छयो विहतैारः । उतापि
ऽस्मद्यज्ञमागद्छतु ॥
॥ थ सप्रमी ॥
उषसां न देत ष्वर्यः भुभंयवो नांजिभिर्येश्चितन्
ययियो भाज॑हष्टयः परावत्तो न योज॑नानि ममिरे ॥७॥ `
व॑ः । अध्वर ऽधियः। मुभंऽयवंः। न । खंजिऽभिः। वि। अश्वितन्
= ५ ~ त | 4 ।
यियः। चाज॑त्ऽऋष्टयः। पराऽवतः न । योज॑नानि । मभिरे ॥ऽ॥
॥
#
ये मर्त उषसां न केतव उषसां रश्मय इवाध्वरथियो यज्ञस्याश्चयिता
भवंति । तथा शुभयवौ न कल्याणकामा वरा इवांजिभिराभरेव्यैश्छितन्दी यते ।
श्विता वशे । तडि रूपं! तथा सिंधवो न नद्य इव ययियो गमनशीत्ा भाज-
यमानायुधाः परावतत न टूरा्वानीना वडवा इव योजनानि द्रदेशन्म-
परिच्छिटति । तेऽस्मद्यज्ञमागद्डंविति ॥
॥ अथाष्टमी॥ ४
वाः कृणुता सुरल्ानस्मान्सोतृन्मरूतो वावृधानाः। `
वो रत्नधेयानि संति ॥४॥ `
॥
1
गात सना `
। नः।देवाः। कृणुत । सुऽरत्ना न्। सस्मान्। स्ठोतुन्। मरूतः। ववु
॥ निकणिः
1 ४ ‡ + ति ५ ५ वि ‡
। हि। वः । रत्न
मामो न महाञ्जनसंघ इव यामन्यामनि गमने विषा दीष्या युक्ता भवंति ।
ससय
स
य
|
|
|
क
१६६ वि ^ ्पृण्वेट्ः॥ ` | ० ए. ० 3, व० १४६.
सखिभूतं स्लोचमधि गात । अधिगच्छत । वौ युः रत्नधेयानि र्नदानान्यस्म-
हिषयाणि सना चिरकालादारभ्य खत
॥ इत्य्टमस्य तृतीये चयोटशो वगः ॥
| अपश्यमिति सप्रचैमेकादशं सक्तमाम्रेयं चैष्टं । सोचीकगुणोऽम्रिक्छेषिः ।
वेश्वानणुणो वाथवा सभरिनाम वाजंभरपुचः। तथा चानुक्रत । अपश्य सप्र सा
चीकोऽग्रिवेश्वानरो वा सप्निवी वाजेभर आग्रेयं विति ॥ प्रातरनुवाकाश्चिनश-
स्लयोलष्टमे हंटसीदमादिके बे सूक्ते । सूचितं च । अपश्यमस्य महत इति सूक्ते
| । छा०४.१३.। इति ॥ |
॥ तच प्रथमा ॥
अप॑श्यमस्य महतौ म॑हित्वमम॑त्यस्य म्योमु विषु ।
नाना हनू विभति सं भरेते असिन्वती वप्छ॑ती भूयेत्तः ॥१।
अप॑श्यं । अस्य । महतः । महि ऽत्वं । अमत्यैस्य । मन्यासु । विसु
नानां हन इति । विभ॑ते इति वि ऽभ॑ते । सं । भरते इतिं । असिन्वती इति
बप्सती इतिं । भूरिं । अत्तः ॥१॥ ` |
मव्योसु विषु मनुयरूपामु प्रजासु तासां हदयेऽमव्यैस्यामरणस्वभावस्य वेश्ान-
ररूपेण वतेमानस्य। यद्वा मत्योसु विष्वुविग्यजमानरूपासु प्रजास्व मत्येस्य सवदा
जागरितस्य । खथ दावाग्रिरूपो ऽग्रिरूच्यते । खस्याग्रेहेन् शिप्रे नाना विभृते वि-
भिन्ने सं भरते । संभरतो दतः । तथा कृवासिन्वती असंखादत्यो स्तोतारं बप्सती
भक्ष्यो भूरि
प्रभूतं काष्ठमरण्ये वतेमानमचः । भद्यतः ॥
॥ अथ इहितीया ॥
आअस्यामे्महतो महनीयस्य महित्वं महल्चमपश्यं । पश्यामि । कीहशस्यास्य |
न
| म० १०, ख० ६, सू०७९.| ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ त. + +
तं निहिते चंदरसूयोत्मना । तावेवाक्षिणी इत्यथैः । इहशो योऽभि- =
रसं ताटज्िद्धया वनान्यत्ति काष्ठानि भष्टायति टदाहभूतोऽस्मा अग्र 1
# कते छु मध्ये ॥ ५१
॥ खय तृतीया ॥ |
परतरं गुद्यमिच्छन्बुमारो न वीरुधः सपेदु्वीः। =
सं न पक्रमविदच्छुचंतं रिरिदहांसं रिप उपस्थं अंतः ॥३॥
श्रु प्र। मातुः । प्रऽत्रं । गुद्यं । इच्छन् । कुमारः । न । वीरधः। सपेत्। उर्वीः। ऊ
ससं । न \ पकं । अविदत् । शुच॑तं । रिरि सं । रिपः। उपस्थं । अंतरितिं ॥ ३॥
उयमम्रिमीतुः पृथिव्याः सं बंधिनी रूवीविह्णी वीरो लता इच्छन् तथा प्रतरं |
प्रकृष्टतरं गुह्यं मों तासां वीरुधां मूतमपीच्छन्कामयमानः प्र सेत् प्रसपेति
| - प्रसरत्ति। किमिव । कुमारो न। कुमार इव। स यथा ल्लन्यं पातुं जानुभ्यां सपेति
। तद्त् । ससं न पक्तं पक्रमन्नमिव भुचंतं दीयमानं नीरसं वृक्षं रिपः पृथिव्या
क उपस्थेऽतस्त्संगे ऽतर विदत् । विंदति । पुनः कीहशं । रिर्हिसं । आकाशमास्वाद्- `
[ए यंतं । यह्वा मूलेमेातरं पृथिवीं रििद्धंसं । द ,
। अथ चतुथी ॥ ४
न तदामृतं रोदसी प्रज य॑मानो मातरा गभे अत्ति। व
{. नाहं देवस्य मव्यैशिकेताप्निरंग विचैताः स प्रचेताः ॥४। त 1
| त्तत्। वां। ऋतं । रोदसी इतिं प्र। जवीमि। जाय॑मानः । मातरं । गैः । चति।
~ न।अहं देवस्य । मर्थः चिकेत । खभ । अंग । विऽ चेताः । सः ।प्रऽचेताः ॥४॥ | ५ 1
॥ ध... (| || च्ण्वेट्ः | | | चपर ए, प्र (| त् १ ४.
अथ पचमी॥ ~
सहस॑मशभिर्िं चष्ठेऽप्रं विश्वतः प्रतय
् यः स्मे! अन॑ । तृषु। आऽदधांति । आन्यः । धुतः पुष्यति । न
यो यजमानोऽस्मा अग्रये तृषु सिप्रमन्माटधाति करोत्याच्येधतेः एरटूपे-
दीत्रैवी सोमरसेजैहोति पुति पुष्णाति चैनं काष्ठैः । तस्मे तमित्यथेः। तं सहस्रं
सहसखसंख्याकेरकभिरसिस्यानी याभिरपरिमिताभिनज्बल्ाभिवि चक्षे । विचष्टे ।
विपश्यति । अथ प्रत्यश्कृतः। हे अग्रे त्वं विश्तः सवतः प्रत्यङ्सि । प्रत्य गं च
भवसि । अस्मदानुक्ल्येन प्रवतेमानो भवसि ॥
तस्म । सहसरं । अक्षऽभिः। वि। चसे । अमन । विश्वतः । प्रत्यङ् । असि । तवं ॥५।
॥ अथ .षष्ठी ॥ 1
किं देवेषु त्यज एन॑क्थोमत्ने पृछामि नु तामविान् । ध
अक्री कन् ऋीव्छन्हरिरत्तवेऽटन्वि पं॑वश्श्वकते गामिवासिः ॥६॥ ` +
किं। देवेषु । त्यजः । एनंः। चक्थे। अग्रे । पु्धामिं। नु । चां । अविंहान्
ककः = शके ॥ ॥
अक्रीव्छन्। ऋरीव्छन्। हरः अत्तवे। अटन्। वि। पवैऽशच । चकते। गां ऽइव अखसिः॥६॥ न
हे अप्रेत्ां नु सिरं देवेषु किं त्यजः ऋोधमेनः पापं च चकं कृत्तवानसोव्य-
विह्ानहं पृच्छामि सांडवं दहंतमग्निं पृच्छामि । किंचाक्रीव्छन् क्विहेशेऽ विहरन्
त्या दहन्हरिहेरितवणेः सन् अत्वेऽचव्यमटन्
१ | `
गा
५५४
७०. अष्टमो ऽ टकः ॥ | १६९. | |
विषूचो विशष्रगचनानश्वान्व्याप्रान्महतो वृक्षान्सवेत्तो गंतुनश्वानेव वा क
युजे युक्ते वनेजा वने प्रवृद्धः संपन्नः सन् कीहणशानश्चान् । ऋ जी तिभिकेजु- "५
रशनाभी रश्नास्थानीयानिलेताभिगुनीतान्परिगृहीतान्वेशटितान् ।
नुगत्तिभिः प्रसिङाभी रश्नानिगभीतान्गृहीतान्स्वकीयानश्वान् शक
योजितवानित्यथंः । तादश्णेऽग्रिश्चरटे चश्ाट् शकत्ीकरो
ऽस्माकं मिचभूतो वसुभिवीसके रश्मिभिः सुजातः सुदु प्रवृद्धः सन् । 1
नृधे सम्यग्वधेते पवेभिः काष्ठरुडेवावृधानो वधेमानः ॥ . ९."
॥ इत्यष्टमस्य तृत्तीये चतुदेश्णे वगेः ॥ ॥
सभिमिति सप्रचै इादशं सूक्तं सौचीकस्य वेश्वानरस्याग्रेराषै चेषभ- ए
य॑ । सश्निः सधिमित्यनुक्रंतं ॥ प्रातरनुवाकाश्विनशस्तयोरुक्तो विनियोगः ॥ |
॥ तच प्रथमा ॥ 1
भ्रिः सिं वाजभर ददात्यम्रिवीरे श्रुत्यं कमेनिष्ठां। `
च॑रत्समंजन्नम्रिनोरी वीरस पुरंधिं ॥१। ॥
अभ्रिः । सप्तिं । वाजंऽभरं । ट्दाति। अभ्रिः । वीरं । शरुत्यं । कमेनिःऽस्थां।
।वि। चरत्। सं ऽञ्रंजन्। अनिः नारीं वीरऽकुसिपुरऽधि॥१ = `
मनिः सप्तिं सपैणस्वभावमण्ं वाजंभरं युद्धे श्चूज्जिवान्रसंपाटवं ददाति `
:। तथाभ्िवीरिं वीयेवंतं पुतं शरुत्यं पितृव्यपदेश्कं कमेनिः्ठां यगेऽनन्य-
। म्री रोदसी द्यावापृथिव्यो समंजन् सम्यगंजयन्वि चरत्। विविधं |
नोरी योषितं वीरकुक्िं वीरप्रसवकुषिं पुरंधिं च क्ेति॥ |
4 अरितीम ~
| १७० ` : ॥ ऋग्वेदः ॥ ` [अ० ८, अ० ३, व०१५.
प्रेरयति समत्सु संयामेषु । युद्धे स्वभक्तं स्वयं सहायः सन् जयिनं करोतीत्यपेः ।
तथाग्रिवचाणि पुरूणि बहूञ्शचरन्दयते । हंति ॥ `
5 ५ ष ॥ अथय तृतीया ॥ |
ध अम्रिहै त्यं जर॑तः कणेमावाम्मिरद्यो निर दहज्नरूथं ।
अभ्निर्ं घमं उरु्दंतरमिनैमेधं प्रज यांसृजत्सं ॥ २।
षे कणा भषणे | ४ ।
अभ्रिः ह । त्यं । जरतः। करीं । स्राव । अभ्रिः अत्ऽभ्यः। निः। अटहत्। जरूथं । 4
शनिः प्न वैकि
सम्रिः। सर्चिं। धर्मे। उरुयत्। संतः। अम्निः। नृऽमेर्धं। प्रऽजया। असृजत्। सं ॥३।
५ छप्रिहायमम्रिः खलु चं तं प्रसिडं जरतः कणे जरत्कणेनामानमृषिमाव। रर
तथायमभ्निरद्यो जरूणमेतन्नामानमसुरं निरदहत् । निदेग्धवान् । तथाग्रिरचिं
महषि धर्मेऽते वीसेऽवस्थितसुरुषयत् । ररक्ष । तथायमब्रिनैमेधमेतनामकमृषिं
प्रजया पुादिलक्षणएया समसृजत् । संयुयोज ॥
॥ अथ चतु्थीं ॥
अमप्रिदादूविणं वीरपेशा अभ्रिकषिं यः सहां सनोति ¦
अग्रिदिवि हव्यमा त॑तानामरेधामांनि विभूता पुरूचा ॥४॥
\ पन । ` भेवति ४ कषक कके
:। दात् । द्रविणं । वीर ऽपेशाः। सभ्रिः। ऋषिं। यः। सहसा । सनोति
हव्यं । सआ्आ। ततान । प्रे: । धामांनि। विऽभता । पुरुऽचा ॥४॥
# क 1 च्य
पेशणः पेरकज्वालारूपो द्रविणं धनं दात् ददाति! तथाभ्रिक्रैषिं `
प्रयच्छतीति शेषः । ऋषिविशेष्यते.। य ऋषिः सहसा गवां सह-
नि शरीराणि विभूता
यधिष्णयादिषु धित्या |:
॥
11
म०१०., ख० ६, सु० ७०. ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ १७१
र ्रिं। उक्थेः। ऋष॑यः । वि। इयते । अप्रं । नर॑ः । याम॑नि । वाधिततास॑ः। `
ग्रं । वयः । संतरे । पत॑तः! अभ्रिः । सहसरा । परि । याति। गोनां ॥५॥
अभ्रिमुक्येः शस्तेकषयः पूर्वे वि इयते । विविधमाड्भयंति यज्ञे स्वीये! अयि
मनुष्या यामनि संयामे। यातिवैधकमैसु पटिततः। बाधित्तासः शचुभ्यो वा-
ताः प्राप्ुवंति जयाथ । तथाभ्निं वयः पधिणोऽतरिसषे पत॑तः, पश्यंति राचिषु
द्मां वर्यासि नक्त नाध्यासत इति बाद्यणं । यद्ञा दावभूतमभ्रिमंतरिष्षगा
वयः पतंति । तथाच्निर्गोनां सहसा सहसाणि परि परितो याति । गछति ॥ `
॥ अथ षष्ठी ॥
विशं इक्छते मानुषीयो अभ्रिं मनुषो नहुषो वि जाताः। `
प्रिभाधर्वी पथ्यामृतस्यातरर्गव्यूतिपेत आ निष॑त्ता ॥६॥
म्नि । विशः । इच्छते । मानुषीः । याः। अगिं । मनुषः । नहुषः । वि । जाताः
अनिः पर्या । कृतस्य । अपनः । गव्यूतिः । ुते। आ । निऽसं्ता ॥६॥
विशः प्रजा ऋविग्यजमानलृछणएणा डठ्छते। स्तुवंति । या मानुषीमोानुघयो
मनुष्याज्जातास्ता इव्छते । तथाग्निं मनुषो मनुथा नहुषो राज्ञः सकाशणाज्नाताः
धं स्तुवंतीति । अग्रिभौधर्वीं । वाङ्गमेतत् । वाचं णृणोति । कीणं
प्रजा विवि ॥
। ऋतस्य यज्ञस्य पथ्यां पथि हितां । अग्रेमेहात्मनो गव्यूतिमार्मो घृत
आज्य स्रा निषत्ता सवतो निषसो भवति ॥ नि
च सामी
ऋभवस्ततसुरभिं महामवोचामा सुवृक्ति! ध ६ 0
जरितारं यविष्ठा महि द्रविणमा य॑जस्व ॥७॥
ब्रह्य! ऋभवः । ततसुः। अभि । महां । अवोचाम । सु
` ®
+ ;
१७२ ` ॥ क्ृग्वेट्ः॥ ` [ख० ४. अ० ३. व० १६.
हे अग्रे महि महदूविणं धनमा यजस्व । प्रयद्छेत्यथेः । अच प्रतिवाक्यमग्न्यभि-
धानं तस्य स्तुत्यतप्रदशेनाथे ॥
॥ इत्यष्टमस्य तृतीये पंचदश वगः ॥
| य डइमेति सप्नच चयोटशं सूक्तं भुवनपुचस्य विश्वकमेण आधे चेषटुभं विश्वकमे-
देवत्यं । तथा चानुक्रतं । य इमा विश्वकमौ भौवनो वेश्वकमेणं विति । गतः
सूक्तविनियोगः। अच वाजसनेयकं । बह्मा वे स्वय॑भूस्त पो ऽतत् ¦ तरेत न वे
तपस्यानत्यमस्ति हंताहं भूतात्मानं जुहवानि भूतानि चात्मनीति तत्स्वेषु भूते-
घ्रात्मानं हुतेत्यादि । ° बरा १३.७. १,॥
॥ तत्र प्रथमा ॥
य इमा विश्वा भुव॑नानि जु्हषिर्दोता न्यसीदत्विता न॑ः!
स आशिषा द्रविंणमिच्छमांनः प्रथमवरं खा विवेश ॥१॥
यः। इमा। विशा । भुव॑नानि । जुद्धत्। ऋषिः होता । नि । खसीदत्। पिता। नः
अन्मे [1.11
सः! आऽशिषां । द्रविणं । इच्छमानः । प्रथम्ऽ छत् । अवरान् । आ । विवेश ॥१॥
किति = योक # [0 प्
"ऋच निरस्त । विश्वकमौ स्वैमेधे सवाणि भूतानि जुहवांचकार स खात्मान-
मपततो जुहवां चकार। तद्भिवादिव्येषग्भैवति य इमा विश्वा भुवनानि जुहदि-
ति।नि०१०.२६.। इति ॥ यो विश्वकर्मेतन्ामक ऋषिभुंवनपुचो होता होमनिष्पा-
टकः सन्विश्वा सवाणि भुवनानि जुद्दोमं कुवन् । प्रथमं सवे जगदुतवेत्यथेः
पश्चादप्नौ न्यसीटत् पिता जनकः! आत्मकृतेन कमणा देहोत्तेः । न चैकस्य
जन्यजनकभावो विध्यते तपोबलेन शरीरदयस्वीकारात्। स एकधा भवतीत्यादि-
श्रुतेः। स ऋषिराश्िषाशिःप्रतिपाटकेन सूक्तवाकादिना दविणं धनं स्वगाख्य-
प्रथममग्रेभुवनेणख्छादयितावराविविप्रकृष्टः
ये एव पुनविंशेषेणोक्तः ।
म०१०.अ०६. सू०४१.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ १७३
यमेक एवासीत् । तथा हि श्रुतयः) आत्मा वा इदमेक एवायम आसीत् सदेव |
सोम्येद्मय स्ासीदिव्यादिकाः। स ताहश्ः परमेश्वर आशिषा बहुः स्यां प्रजायेये-
व्ये वंरूपया पुनःपुनः सिसृक्षया द्विणमिच्छमानः धनोपलसितं जगद्धोगमाकां-
समाणः प्रथमच्छत्पथमं सुख्यं निःप्रपंचं पारमार्थिकं रूपमावृखन् अवरान्स्व- र
हृद्यप्रदेशाना विवेश । स्चाविष्टवान्. जीवरूपेण । तथा च श्रूयते सो `
त बहुः स्यां प्रजायेयेति स तपोऽतप्यत स तपस्त्नेदं सवमसृजत यदिदं `
सूषा तदेवानुप्राविशदिति । एवमन्या खण्युपनिषद् उदाहायोः॥ त
वेश्वदेवस्य पण्णोव॑पाया अनुवाक्या विं सिदिव्येषा । सूचितं च । विं सिदा- ज
धिष्ठानं यो नः पिता जनिता । ्रा०३.४.। इति ॥ .
|
॥ सेषा इहिततीया ॥ "0. 1
विं सिंदासीदधिष्ठान॑मारभ॑णं क्तमत्स्ित्कथासीत्। = ` र
भूमिं जनयंन्वि्वक॑मा वि द्यामोर्णोन्महिना विश्वच॑स्षाः॥२॥ `
8 विं। स्वित्। आसीत्। अधिऽस्थानं । आऽरभ॑णं । कतमत्। स्वित्। कया । ्सीत्। = =`
यतः भूमिं । जनयन्। विष्वऽक॑मा। वि। दयां । ओर्णोत्। महिना। विश्वऽच॑क्षाः॥२॥
| त्च तस्यदितीयस्याधिष्ठानजगदुपादानकारणद्यसंभवात्सृषिरनुपपन्ने्यासिपति।
हि घटं चिकीषुः कुलालो गृहादिकं किचित्स्यानमधिष्ठाय मृटूपेणरभ-
` दरेण चक्रारिरूपेरुपकरणेधेटं निष्पादयति । तद्वदीश्वरस्य जगदाश्रयद्चावापृयि- `
0 व्योर्त्माटनवेत्छायामधिष्ठानं किं स्विदासीत् । किं नामाभूत् । न किंचिदित्यथेः।
रंभणं कतमष्स्वित्। आरभ्यते ऽनेनेत्यारभणसुपादानकारणं । तदपि
सत्यथ
पूवैमेचे जगत्मलयकाले संहत्य पश्चाप्िसुश्षायां स्व सृष्टा तच प्रविष्ट ख्युक्तं। `
॥ ऋण्वेद्ः ॥ ` [० ४, ० 3, व० १६.
॥ अथ तृतीया ॥ =
विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतों मुखो विश्वतो बाहुरुत विश्वत॑स्यात् ।
सं बाहुभ्यां धम॑ति सं पत॑चेदयोवाभूमी जनयन्देव एकः ॥३॥
!
क अ 8 ॥ ^
विश्वतं;ऽचश्षुः। उत । विश्वत॑;ऽमुखः। विश्वतं:ऽ बाहुः । उत । विश्वतंःऽपात्
ष #
+ सं बाहुऽभ्याँ। धम॑ति। सं । पत॑चरैः। द्यावाभूमी इतिं । जनयन् । देवः। एकः ॥३
० अनया सवीत्मकवेन कुल्ालादिवित्क्षणएत्वादधिष्ठानाद्यभावेऽपि खट शकरो-
` तीत्याह । विश्वतश्चष्षुः सवतो व्याघ्नचश्ुः । उतापि च विश्वतोमुखः । तथा वि-
५. श्चतोवाहः। उतापि च विश्वतस्पात् स एवंविधः परमेश्वरः स्वस्मिलेलोक्यसुत्मा-
दयतीत्यथेः। कथमित्युच्यते । बाहुभ्यां दिवं सं धमति । धमतिगेतिकमो । सम्यर्
प्रेरयति । तथा पततरैगंमनशीतेः पादैः पृथिवीं संधमतीति । उभयोरेव अवशं
प्राधान्याभिप्रायं। एवं द्यावाभूमी जनयन् दिवं च पृथिवीं चोत्मादयन्देवी चोत-
मानः स्वप्रकाशः परमेश्वर एकोऽसहाय एव वत्तेते ॥
ॐ ®
1 ॥ अथ चतुर्थीं ॥
कि खिडनं क उ स वृ आंस यतो चा्वापृथिवी निं्टतस्षुः।
मनीषिणो मन॑सा पृ्छतेदु तद्यदध्यतिंरद्धव॑नानि धारयन् ॥४॥ `
| किं। स्वित्। वनं । कः। ऊँ इतिं । सः। वृ्षः। आस । यत॑: । द्यावापृथिवी इतिं ।
स्संित्मोढे वने वंचिन्महांतं वृक्षं चिरा
। अष्टमो ऽकः ॥ ५०
पृच्छतेव । किंचेश्वरो भुवनानि धारयन्यत्स्थानमध्यतिष्ठत् तदपि पृद्धत ।
एतस्य सवस्यापुत्तर बह स वृक आसी दित्याटिकसुच्चरं ॥
क
धेषु वेष्वकमेण एककपालस्य या ते धामानीव्येषा याज्या । सूचितं च ।
न्हविषा वावृधानो या ते धामानि परमाणि यावमा । आ०२.१४६.। इति ॥
पशेहेविष रुषेव याज्या । सूचितं च । या ते धामानि परमाणि यावमा
य इमे द्यावापृथिवी जनिची । आ० ३.४. । इति ॥
सेषा सूक्ते पंचमी ॥
धामानि परमाणि यावमा या मध्यमा विंश्वकमनरुतेमा ।
यातेध
शषा ससिभ्यो हविषि स्वधावः स्वयं य॑जस्व तन्व॑ वृधानः ॥५॥
।ते। धामानि। परमाणि । या! खवमा। या। मध्यमा विश्वऽ कर्मन्। उत। इमा।
णद । सि
खिऽभ्यः। हविषि । स्वधाऽवः। स्वयं । यजस्व । तन्वं । वृधानः ॥५॥
अनया भोवनो विश्वकमा जगत्कारणं विश्वकमेदे वं स्तौति । हे विश्वकमेन् या
यानिते तव परमाणि शरीराणि संति या यानि च मध्यमानि शरी-
च या यान्यवमावमानि धामानि शरीराणि संति उतापि
शरीराणि सखिभ्यो ऽस्मनभ्यं यष्ट हविषि मयि ह विभूते
शि्छ । देहि । हे स्वधावो हविलैक्षणान्नवन् स्वयमेव त्वं तन्वं स्वकीयं
हविषा वधेसानः सन् । अनेन धामचेविध्योप-
रीराणि मध्यमभूतानि मनुघादिश्रीराणि निकृ्-
शरीराणि च परिगृहीतानि । किं बहूना सवे जगदुपात
निरवयवस्य परमेश्वरस्य वियहाभावात् तदेत बहू
दिश्रुतिभ्यः परमेश्वरस्येव देवाटिभेदेन बहूभावावगमात् ॥
ॐ क
शौ वपापुरोडाशयोरविंश्वकमेन्हविषेति कमेण
न्हविषा वावृधान इति इ विश्वकमा विः
॥
|
॥
। प्रं° ८, उप्० 3 , व° १७. |
0
विश्व॑कमेन्हविषां वावृधानः स्वयं य॑जस्व पृथिवीमुतद्यां। `
मुदय॑लन्ये अभितो जनांस इहास्माकं मघवां सूरिरस्तु ॥६।
वीं । उत । दयां ।
श्चंऽकमैन् । हविषां । ववृधानः । स्वयं । यजस्व ।
। | क कषये थ
मुदय॑तु। अन्ये। अभित॑ः। जनासः । इह । अस्माक । मघऽवा । सूरिः । सस्तु ॥६
{८ हे विश्वकममेन् विश्वविषयकमेन् एतन्नाम परमेश्वर हविषा हविभूतेन मया
4 विश्वकमणा मया टचेन वा हविषा ववृधानो वधमानः । विश्वक्मा सवाणि
भूतानि जुहवांचकार स आत्मानमपंततो जुहवां चकारेति हि निरुक्तं पूवेसु-
दातं । स्वयमेव पृथिवीसुतापि च द्यां दिवं च स्वसुषटे द्यावापृथिव्यो स्वयं
प्रवृद्धः सन्यजस्व । पूजय । अन्ये मत्तोऽन्ये जनासो जना अयष्टारोऽस्द्यागवि-
रोधिनो वा द्यतु । सुग्धा भवंत्वभितः सवेत्तः । अथ परोश्षकृतः । इहा!
1 गेऽस्माकं मघवास्मत्मचेन हविलैष्छणेन धनेन धनवान् स सूरिः स्वगादिपः
प्रेरको ऽसतु । भवतु । अच विश्चकमेन्हविषा वधमान इयादि
(8 । १०. २७. ॥ | ५.
अथ सप्तमी ॥
वाचस्यतिं विश्वर्कमो णमूतय मनोज्ञुवं वाजं अद्या हुवेम ।
विश्वानि हव॑नानि जोषदिश्वण॑भूरव॑से साधुकम ॥७॥
। विश्चऽकंमौणं । ऊतये । मनःऽजुवं । वाजँ । अद्य । हुवेम ।
ति
ने । हव॑नानि । जोषत् । विश्व ऽभूः । अव॑से । साधुऽकमै ॥७॥
स्य वचसः स्वामिनं विश्वकमोाणं विश्वकतारं मनोजुवं
ऊतये तपेणाय हुवेम । आयाम । सदे
म० १०. ख० द. सू० ४२.| ॥ अष्टमो ऽकः ॥ १३७ |
॥ त्त्र प्रथमा॥ त
च्ुषः पिता मन॑सा हि धीरो घुतमेने सजननरमरमाने। = ५६
दता अर्दहहंत पूवं आ्ादिद्यावापृथिवी खंप्रयेतां ॥१॥
॥ भेक
च्ुषः। पितता। मन॑सा । हि । धीर॑ः धृतं । एने । अजनत्। नन्न॑माने इतिं । `
1। इत्। संताः। अर््हहंत । पूरवे । आत्। इत्। द्यावपृथिवी इतिं । अप्रयेतां ॥१॥ " 5१
भकः पोः श्रणेनीक
य
सनि,
+ । ६ |
चघुषश्वकुरुपलधितस्येद्वियसंघात्मकस्य शरीरस्य पितोत्मादयिता। य्वा चक्षुः ५
ख्यापकं तेजः। तस्योत्मादयित्ता मनसा न हि मत्समोऽस्ति कश्चिदिति वुद्या हि
खल्व धीरो धृष्टो विश्चकमे प्रथमं धृतसुदकमजनत् । सजनयत् । सापो वा इद्म-
ग्रेऽप एव ससजेादाचित्यारिशुतिस्मृती स्यातां । पश्चादेने द्यावापृथिव्यो नम्रमाने
तस्मिन्तुदक इतस्ततश्चत्मेत्यौ योऽजनयत्। अथ यदेदयदेवांताः पथेतप्रदेश्शः पूर्वे
पुराणा द्यावापृथिव्योः संबंधिनो ऽ दहत हढा खभवन् । विश्वकमेणा हटाः संपा- `
दिता इत्यथैः । आदिटनंतरमेव च्ावापृथिवी द्यावापृथिव्यावप्रयेतां । यथाकामं
वेश्वकमेणस्य पण्णेहेविष एषानु वाक्या । विश्वकमौ विमना आबिहायाः
स्वदासीदधिष्टानमिति सूचितं ॥
+ ॥ ्ेषादततीया॥ =
विश्छकमा विमना आहया धाता विधाता परमोत संहक्। ॥ (8
तेषामिष्टानि समिषा म॑दंति यवां सप््छषीन्पर एकमाहुः ॥२॥ =
क॑मो।विऽम॑नाः। आत्। विऽहायाः। धाता विऽधाता। परमा। उत। संऽहक्। `
। सं। इषा। म सप्रऽऋषीन्। परः एक । आहुः॥२॥ `
मोदेन चधा व्याख्येयः! तच प्रथमं देवतमधिकृत्यो- `
५
नादिकमेणां कतादित्यः
यस्मि्रारित्ये तं देवं स्रघीन् । स्रषिन्य इत्यथः । तेभ्यः परः परस्तादेकमेवा-
दित्यमाहूमेचविद्ः ॥ अध्यात्मपक्ष उच्यते । विश्चकमोा यः परमात्मा प्राणप्रका-
शन्यासुपेतः सन् बहूकमा भवति स च विमना विभूतमना विहाया वस्तुतो
महान् विशेषेण सुकृतटुःकृतफल्दस्याघ्रा धाता विधाता च परमत संहक् परमश्च
सद्षद्ियाणां । तेषां सप्रषीणां द्षुणामिंद्रियाणामिष्टानि स्वरूपाणीषानेन सह
१७४ , ॥ऋण्वेट्ः॥. [० ४, ख० ३. ब० १७.
सं मदंति संमोदते यच यस्मिन्नात्मनि तमात्मानं सप्र्षीन्सिघ्रसं ्याकेभ्यः सपेणस्व-
भावेभ्यो वा परः परस्ताहतेमानमिंद्ियादयतीतमेकं परमात्मानमाहुस्तखविद्
अच विश्कमा विभूतमना व्याच्ेत्याटि निरुक्तमनुसंधेय । १०.२६.॥
पूर्वोक्त एव पशौ पुरोडाशस्य यो नः पितित्येषा याज्या । सूचितं च । यो नः
1 पिता जनिता यो विधाता या ते धामानि परमाणि यावमा । सा०३.४.। इति ॥
म ॥ सेषा तृतीया ॥ ४
। यो न॑ः पिता जनिता यो विधाता धामानि वेद् भुव॑नानि विर्वा ।
|) # कणे णि | #
यो देवानां नामधा एकं एव तं संप्रश्नं मुवना यंत्यन्या ॥३॥
यः। नः। पिता । जनिता । यः। विऽधाता । धामानि । वेद । भुव॑नानि। विश्वां ।
यः देवाना । नामऽधाः। एकः। एव । तं । संऽप्रघनं । भुवना । यंति। अन्या ॥३॥
भि | 1 भमव [त कमे
यो विश्वकमो नोऽस्माकं पिता पाठ्यिता । न केवलं पालकः विंतु जनि-
तोत्पादकः । किमनेनास्ाकमुत्पादक इति संकोचेन यो विधात्ता सर्वस्य जगत
त्पाद्को यो विश्वकमे नोऽस्माकमुत्पन्नानि धामानि देवानां तेजःस्थानानि वेट्
। विं बहुना । विश्वा विश्वानि भुवना भूतजातानि वेद् वेचि । यश्च देवा-
। म०१०.अ०६. सू०्४८२.] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ १७९ `
ति पूव ऋषयोऽस्मे विश्वक्मणे टूविणं चर्पुरोडाशदिलक्षणं धनं सं सम्य- ठ
गायजंत । सवेतो यजते। जरितारो न भूना । स्तोतारो यथा भूखा महता स्तोचेण वि
यजंति तडत् । ये महषेयोऽसूरते सरणवजिते सूते सरणसहिते स्थावरजंगमात्मे ; ५
निषत्ते निषसखे नि्चतमवस्थित इमानि भूतानि भुवनानि । प्राणिनि
इत्यथेः। समकृखन् सम्यग्धनादिनाप्रूजयन्। अथवायम्थैः । ये स्यावरजंगमात्मरे ६
जगति वतेमानानेतान्प्राणिनस्तेजसा समकृणखन् ते पूवे ऋषयो टृ्टारो र्म-
यो ऽस्मा आादित्यात्मकाय विश्चकमेणे ट्विणं तेज आयजंत ॥ “|
॥ पथ पचमी ॥
परो द्वा पर एना पुंथिव्या परो देवेभिरसुरेयैदसत ।
तं स्विद्रभे प्रथमं दभर आपो यन॑ देवाः समपश्यत विश्वै ॥५॥ ।
: । दिवा । परः। एना। पृथिव्या । परः । देवेभिः । अररे: । यत्। अस्ति ।
वं । स्वित् । गभे । प्रथमं । ट्रे । आप॑ः । यच॑ । देवाः । संऽञखपं॑श्यंत । विश्वँ ॥५॥
दीश्वरतच्चं दिवा परो दयुोकाद्पि परस्ताइ्तमानं तथेनास्याः पृथिव्याः `
परः परस्ताइतेमानं तथा देवेभिरदैवैः परस्ताबतेमानमसरेश्च यत्परः परस्वाइतेमानं
गुहायामवस्थितं कं स्विद्रभे गभैवत्सवेस्य माहकं तमापः प्रथमं ट्रे! धृत्तवत्यः।
यस्मन्गर्भे देवा इद्राटयो विश्वे सर्वेऽपि समपश्यत । संगताः परस्परं पश्यंति।
एवं जाननरेव क्थित्तखवित्परघ्रं करोति ॥ क,
॥ अथ षष्ठी ॥ . ए
प्रथमं द॑भ चापो यत्र॑ देवाः समगच्छत विश्च । ५
नाभावध्येकमपितं यसिचििश्वानि भुव॑नानि तस्थुः ॥६॥
। द्भे। आप॑ः । यत॑ । देवाः । संऽगच्छत व्विं। =
॥,
न्। वि्वानि। भुव॑नानि । तस्थुः॥६॥ ==
१४० ॥ ऋग्वेदः ०४, अ०३, व०१८, `
ति! यस्स विश्वानि भुवनानि सवाणि भूतजातानि तस्थुः । तिष्टति । अथ-
वाजस्य जन्मरहितस्य ब्रह्मणः स्वसृष्टे जत्ते शयानस्य नाभो स वजगज्गथक उ:
एकं बह्यांडमपितं स्थापितं । शिष्टं समानं ॥ अथास्सिनरथं स्मृतिः । सप एवं
५ ससजोदो तासु वीयेमवाकिरत् । तदट्डमभवदेमं सूयंकोटिसमप्रभं ॥
त ० ॥ अथ सप्तमी ॥
1: नतं विदाथ य इमा जजानान्यदयुष्नाकमंतरं बभूव ।
| नीहारेण प्रावृता जसां चासुतृप उक्थशासंश्चरंति ॥७॥
। न।तं। विदाथ। यः। इमा। जजानं। अन्यत् । युष्माकं । अंतरं । बभूव ।
५ न नीहारेण प्रावंताः। जरणा । च ।
व । असु ऽतृप॑ः । उक्यऽ शसः । चरति ॥७॥
हे नरास्तं विश्वकमाणं न विदाच न जानीय य इमेमानि भूतानि जजान ।
उत्पादितवान् । देवदत्तोऽहं यज्लटत्तोऽहमिति वयमात्मानं विश्वकमाणं जानीम
इति यट्व्येत तदसत् न द्यहप्रत्ययगम्यं जीवरूपं विश्वकमेणः परमेश्वरस्य तच्चं |
किंतु युष्माकमहप्र्ययगम्यानां जीवानामंतरमन्यदहप्रत्ययगम्यादतिरिक्तं सर्वैवे- `
दांत्तवेद्यमीश्वरतचं बभूव । भवति । विद्यते । जी वरूपवत्तटपि कुतो न विद्य इति
चेत् श्रूयतां । नीहारेण प्रावृता यूयं नीहारसदशेनाज्ञानेनाच्छनाः। सतो न जा-
नीथ । यथा नीहारो नात्यंतमसदृष्टे वरकवात् नात्यंतं सत्काष्टपाषाणाटि वत्सं
बोद्ुमयोग्यत्वात् ख्वमज्ञानमपि ना्यतमसदीश्वरतखावरक्त्वात् नापि सहौ-
चनिवत्येत्वात्। इहशेनाज्ञानेन सरवे जीवाः प्रावृत्ताः। न केवले प्रावृत्तलं विंतु
देवोऽहं मनुोऽहमित्याद्यनृतजल्यनेन प्रावृताः। किंचासुतृपः केनाणु-
पायेनासून्प्राणां ष ¦ । उद् स रभा इत्यथेः। न तु पारमेश्वरं तं विचारितवंतः
म०१०. ०६. सू०४३.] ॥ अष्टमो ऽ टकः
॥ त्च प्रथमा ॥ ना पि
ति। विश्। सातषक्। | न
कमे किक नकौ | "नि | | | जः ;
यें । त्रयां । युजा । सहःऽकृतेन । सहसा । सह॑स्वता ॥१ '
ऋोधाभिमानिन्देवं । मन्युमेन्यतेदीभ्रिकमेणः करोधकमेणो वधकमेणो ९
वेति निरुक्तं ।१०.२९.। यो यजमानस्ते तुभ्यमविधत् परिचरति हे वज वज-
वत्सारभूत सायक सायक्वच्छ वणां हिंसक स मनुयः सहो बलं वाद्यमोजः शरीर ५
षगनुषक्त पुष्यति त्टनुयहात्संम्रामे । यस्मादेवं तस्मादयं दासमुपशषय- ५
रमायेमस्मचोऽधिकं चोनयविधं शचं साद्याम । अभिभवेम । केन साधनेनेति ष
त्वया युजा । त्या सहायेन । सहायो विशेष्यते । सहस्कृतेन बल्डोत्पा- ५
न सहसा सहमानेन परान् सहस्वता बलवता । इहरेन त्या सहायेनेत्यथेः॥ `
थय इडित्तीया ॥ व
मन्युरिदरो मन्युरेवास देवो मन्युरोता वर्णो जातवेदाः। `
मन्युं विशं ईते मानुषीयेः पाहि नो मन्यो तप॑सा सजोषाः ॥२॥ 1
मन्युः । इः । मन्युः । एव । आस । देवः। मन्युः । होता । वरूणः। जात ऽ वेदाः ("१
शंः। ईक्छते । मानुषीः याः। पाहि नः। मन्यो इति। तप॑सा सऽजोषाः॥२॥ =
# चैति #
यं मन्युरिदरो मन्युरेव देवः सर्वोऽपि मन्युरेवास । अभवत् । मन्युरेव होता =
दकोऽग्मिः। तथा मन्युवेरुणोऽपि जातवेदा जातप्रज्लो वरुणश्च । सवे-
घु मन्युसद्धावात्। या मानुषीमेनुषौऽ पत्यभूता विशः ` 1
क्छते । स्तुवंति । हे मन्यो तपंसेतन्नामङेना सत्पिचा
१४२ | | ॥ ऋग्वेदः ॥ प ४, ०३, व° १४.
2 अभि । इहि । मन्यो इतिं । तवस । तवींयान्। तप॑सा । युजा । वि । जहि । चरून्
क अमिचऽदहा वचऽहा । दस्यऽहा। च । विश्वा । वसूनि । आ । भर । तवं । नः ॥३
= हे मन्यौ त्रमभीहि । अभिगख्छास्मदयज्ञं । कीदश्सतवं । तवसो बलत्छवतोऽ
तवीयान् अत्यंतं बत वान्। स त्वं तपसास्सत्यिचा युजा सहायेन शचून्वि जहि ।
, किंचासिचहामिचाणां हंता। समिचोऽल्िग्धः। तथा वृचहावरकाणा शचूणा इता
त्था दस्युहा च। दस्युरुपक्षयकारी शचरुः। ताहश मन्युदेव त्वं विश्वा सवेणि वसूनि
धनानि नोऽसभ्यमा भर । आहर ॥
॥ सथ चतुर्थी ॥
वं हि म॑न्यो अभिभूयोजाः स्वयभूनामो अनिमातिषाहः।
विष्वच्॑णिः सहुरिः सहावानस्मास्वोजः पृत॑नासु धेहि ॥४॥
त्वं । हि! मन्यो इतिं । अभिनरतिऽसोजाः। स्वयं ऽभूः । भामः। अभिमाति ऽसह
प्म व कैक
विश्वऽच॑षेणिः। सहुरिः । सहावान् । अस्मासु । ओज॑ः । पृत॑नासु । पेहि ॥४॥
हे मन्यो तमभिभूत्योजाः परेषामभिभावुक्बलः स्वयंभूः स्वयमेवोत्पनो भामः
च्ुडोऽभिमातिषाहः। अभितो हिंसंतीत्यभिमातयः शवः तेषामभिभवितावि-
श्वचषेणिः सर्वेषां दृष्टा सहुरिः सहनशीलः सहा वान् सहनवान् इहशसत्वमस्मासु
पृतनासु संगामेप्रोजो वत्ठं धेहि । देहि ॥
5: :॥ अंध पचमीः॥
‡ सन्नप परेतो अस्मि तव ऋत्वा तविषस्य प्रचेतः
। 1
मन्यो अक्रतुजिहीक्छाहं स्वा तनू बेत्देयाय मेहि ॥५॥
। तवं । ऋत्वा । तविषस्य । प्रचेत
जिहीक्छ। अहं । स्वा । तनूः। बत्ऽदेयाय। मा, आ,
1. \
गः।सन्।
०
॥।
गमनसि?ि
भि प्रेहि
जुहोमि
मभि ! प्र। इरि ! टशिणतः। भव । मे। ख
॥ थय षष्टी ॥
प मेद्यवोाङ् प्रतीचीनः सहुरे विश्वधायः
वजिन्नमि मामा व॑वृत्स्व हनाव दस्थरत बोध्यापेः ॥६॥ `
अस्मि। उप॑ं। मा। आ। इहि । अवर । प्रतीचीनः। सहु
मन्यो इतिं । वजिन्। अभि। मां। आ। ववृत्स्व । हना व।
# ॥ _
॥ पथ सप्तमी ॥
वचाणिं जंघनाव भूरि ।
ते धरूणं मध्वो अम॑सुभा उपांमु प्रथमा पिबाव ॥७॥
ध॑। वृचाणिं
जुहोमि । ते! धरणं । मध्वः! अयं । उभौ । उपऽच्ंप्न । प्रथमा । पिबाव ॥७॥
ह दक्षिणतो भ॑वा मेऽधा
#
॥ [४००
शभे ष्य
॥ इत्य्टमस्य तृतीयेऽष्टादशो वगैः
श
तथा चानुक्रंतं । त्या
1 तनूमेम शरीर
+
कषक
५
॥ अष्टमो ऽष्टकः
कमेरहितोऽहं जिहीव्छ । क्रुं कृत वानित्य
धित्तवान् । अथेदानीं
मां प्राघरुहि
हे सहुरे शचरणां सहनशीलः विश्वधायौ विश्वस्य धतेमेन्यो खयं जनोऽदहं ते
तवास्मि कमेकृत् । यत्त एवसत्तः प्रतीचीनः प्रतिगंतावीङसदभिमुखं मा मामु-
उपागच्छ। हे मन्यो वजिन् मामभ्या ववृत्स्व । खभ्यावतेस्व । किमथेमन्या-
ते चेत् उच्यते। हना वावां दस्यञ्शचन्। उत्तापि चापेवेधुं बोधि! वुध्यस्वं॥
1
मन्यो चतुजगतय॑तरि
१६३
थः । यद्वा अहमेव लत्सहायमेव ऋौ-
र्वं बलदेयाय बलदानाय मेहि ।
रर । विश्च ऽधायः
न्। उत बोधि | पे ॥६ ॥
। जंघनाव । भूररि।
कणो = पनः
कि , , पोते त)
हे मन्यो खमि प्रेहि । अभिगच्छ । मम युद्धं गत्वा च मे मम दक्षिणतो भव ।
शचुन्भूरि प्रभूतं जंघनाव । हनाव । ते तुभ्यमयं जेषं मध्वो मधु
जुहोभि। उभो तरं चाहं चोपांश्चप्रकाशं प्रथमा प्रथमो संतो पिवाव॥
|
॥
|
॥
॥
॥
| [र ¦ ॥ | ख० ८, ० ३. व° १९.
॥ तच प्रथमा ॥
त्वया मन्यो सरथ॑मास्जंतो हषंमाणसो धृषिता
तिग्मेषव आयुधा संशिशाना अभि प्र यंतु नरो अभिरूपाः ॥१
|,
त्वया । मन्यो इतिं । सऽर्थं । आऽ रजंतः । हषैमाणासः ।
तिग्मऽईबवः। आयुंधा। संऽशिशणनाः। अभि। प्र। यंतु । नरः ।
॥ # ०
. हे मन्यो हे मसूतव्वया सरथं समानमेकमेव रथमारुद्येति शेषः । आरुजंतो
गद्छतौ हषेमाणसो हृष्टा धृषिता धृष्टा द्णवाखा आआयुधायुधानि
संशिश्णनाः सम्यग्निश्यंतो नरो युद्धस्य नेतार ईदादयो देवास्वदनुचया वाग्रूपा
अग्रिवचीदणदाहादिकमाणः। यदा संनद्धाः कवचिनोऽभि प्रय॑तु युद सहायाथं ।
खचर त्वया मन्यो सरथमारुद्य सजंत्त इत्यादि निरुक्तमनुसंधेयं । १०.३०.॥
| | ॥ खथ हितीया ॥ व,
छभिरिंव मन्यो विषिततः स॑हस्व सेनानीनेः सहुरे हत एथ ।
शष
हत्वाय शचरन्वि भ॑जस्व वेद् श्ओोजो भिमानो वि मृधो नुदस्व ॥२॥
छअभ्रिःऽईव। मन्यो इतिं । व्िषितः। सहस्व सेनाऽनीः। नः। सहुरे । हतः एधि
` हत्वाय॑। शच्रून्। वि । भजस्व । वेदः । ओज॑ः मिमानः। वि । मृध॑ः । नुट्स्व ॥२॥
हे मन्यो अभ्रिरिव बिषितौ ज्वत्वितः सहस्वाभिभव शचरृन् । हे सहुरे सहन-
शीत सेनानीरेधि भव नोऽस्माकं संयामे हूतः सन् । विच हत्वाय हत्वा शचरून्वि
भजस्व प्रयच्छास्माकं वेदौ धनं शचरुसंबंधि । विच ख्ोजौ मिमानोऽस्मावं बलं
। घातयेत्यथेः ॥ ` व
॥ खथ तृतीया ॥
त्सुगसुद्रूणे
वशी त्वं वशं नयसे प्रापयसि शचं ॥
या युजा वयं द्युमतं धोषं विजयायं कृण्महे ॥8।
एकः । बहूनां । असि । मन्यो इतिं । ईक्छितः। विशं ऽ विशं । युधये । सं । शिशाधि
1 ॥ |) [1 11 | भप [
अकृचतऽ रक् । त्वया । युजा । वयं । चयुऽमंतं । घोषं । विऽजयायं। कृण्महे ॥४।
पणे १ ॥ | #
तुतसत्वमेक एवासहाय खव वहूनां शचणामसि । भ
पयाप्नो हंतुं ! खतो विशं विशं तां तामस्महिरोधिनीं प्रजां युधये युद्वाय सं शि-
्णधि। ट्ण कुरू! विच हे खकृत्तरगच्छिनरीप्र च्या युजा सहायेन वयं
मततं दीश्रिमत घोषं सिंहनाट्वंतं विजयाय विश्टिजयाये कृण्महे । कुमः ॥
॥ सथ पचमी ॥
विजेषकृदिंटर इवानवव्रवो ऽस्माकं मन्यो अधिपा भवेह ।
॥ कि #)
भ्रियं ते नाम॑ सहुरे गृणीमसि विद्या तमुत्सं यतं आ बभूथं ॥५॥
पवि
जेष ऽ कृत्। इद्रःऽ इव सनव ऽ बवः। सस्मार । मन्यो इति। अधिऽपाः। भव इह्।
प्रियं । ते! नाम॑ । सहुरे । गुणीमसि । विद्य । तं । उत्सं । यततः । आऽ बभूथ ॥५॥
छप्रवचन इति यास्कः । ६.२९. । इहश्स्त्वमस्माक्मधिपा अ
हास्मिन्यज्ञे। हे सहुरे शचूणां सहनशीत्े ते प्रियं नाम
गृणीमः स्तुमः। यतो नानः स्तोमा बभूयाभवसि प्रवृ
॥ ^ पै
रं विद्माजानीमः॥
तथानवन्रवोऽनिंदितवचनः। अनव्र- `
॥
१४६ | ॥ ऋग्वेदः
आ ऽभूत्या । सहऽजाः । वज । सायक । सहः ।
। नः। मन्यो इतिं । सह । मेदी। एधि । महा ऽधन
॥
| ` ह वज वजवत्सारभत हे सायक शच्रणामंतकराभि
मत्या । आभूतिरभिभवः। तेन सरजाः सहेवोत्पर
विभर्षि! धारयसि । हे मन्यो ऋत्वा कमेणा सह नोऽ
कुचति तट्च्यते। महाधनस्य । संमामना सतत् । सयाः
बहुभिराहूतेति मन्युसंबोधनं ॥ |
४ वि ॥ अथ सप्रमी ॥
संसष्ट धनम्चय समाकतमस्मभ्य टचा वरह्णंच्च स्यु
भियं ट्धाना हर्दयेषु शच॑वः पराजितासो अप नि यंतां ॥3।
सं ऽसुष्टं । धनं । उभर्यं । संऽञ्ार्वृतं । अस्मभ्यं । ट्त । वरणः । च । मन्युः
1
भिर्य। दधानाः। हर्दयेषु । शच॑वः! परांऽजितासः । प॑ । नि । तयां ॥
संसृष्टमविभागमापन्बसुभयमुभयविधं धनं समाकृतं सम्यगानीतम
कः। वरुणश्च देवो मन्युश्च । भियं भयं हृदये दधानाः श्चवौऽसदिरोधिनः परा-
जितासः पराजिता अप नि त्यतां । अपनित्ीना भवतु । `` नी.
| ॥ इत्यष्टमस्य तृतीय एकोनविंशो वगैः॥ ४
५
॥ इति सायणाचायैविरचिते माधवीये वेदाथेप्रकाशे दशमे मंडले षष्ठोऽनुवाकः
|
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तिसोऽनृसषरा इति दे गृभ्णामीति डे `
नयचित्येकाघोरचश्षुरिति चेवमेता दशचै-
म० १०, ख० 9, सु० ४५, |
॥ पष्टमोऽष्टकः ॥ १६७
ट्यिच्यो । ये वध्वश्वंदरसिति टपत्यौः छयरोग
ताक! परिशिष्टानां षोडश्णनां सूया देव्ता ॥ तथा चा
व ं । सूक्तविनियोगो लंगिकः क्ष
॥ तच प्रथमा ॥ ए
सत्येनोत्तभिता भूमिः सूर्येणोत्तभिता चयः ५ 3
दित्याच्ति्टति दिवि सोमो अधि धितः॥१॥
सव्येन । उत्तभिता । भूमिः । सूर्य॑ । उक्चभिता । चः ।
ाटित्याः। तिष्ठंति । दिवि । सोमः । सधि । चितः॥१॥
व्येन ब्रद्मणानंतात्मना । द्या खल्टु देवानां मध्ये स्यूतः । तेनाधः
मरूत्भिता। उपरि स्वभिता । यथाधो न पततेच्चया कृता । यडा स्येनानृतप्रति-
योगिना धर्मेण भूमिरूचभितोदधता फल्ठिता भवत्तीत्यथंः । खसति सत्ये भूम्यां
सस्यादयो न फलंति । तथा सूर्येण देवेन चोरुतभिता । सूर्यो हि
ट्धार । ऋतेन यज्ञेनाटित्या अरितः पुचा देवाखिष्ठति । यज्ञेन
1
जमानदतेन `
त्या देवा उपजीवंति । दिवि द्युलौर सोमो देवानामाप्यायनकारी वल्ली- `
1
श्वाधि धितः । अधितिष्ठति । इति स्वपतिं सोमं सूया स्तौति क
॥ पथं हितीया ॥ >
सोमेनादित्या बलिनः सोमेन पृथिवी नही। == =.
अथो नं चाणामेषामुपस्ये सोम
५ म् | आदित्याः ॥ बलिनः । | सोमेन | पृथिवी ) मही 1 | 1 ८ ¢ ॥
। नक्ष॑चाणां । एषां । उपऽस्थ। सोम॑ः । आऽर्दितः ।
हितः ॥२॥ ५3
[क
॥ थ तृतीया ॥
सोम॑ मन्यते पपिवान्यत्तंपिंषत्योष॑धि ।
सोमं यं बह्मा विदन तस्यान्नाति कश्चन ॥३॥
सोम॑ । मन्यते । पपिऽवान्। यत्। सं ऽपिंषंतिं । ओष॑
सोम॑ । यं। ब्रह्माणः । विदुः । न । तस्य॑ । अघ्नाति । कः । चन
# पनि ॥ 1
सोमं मन्यते कः । यः पपिवान् । मेथुनकामाये चिकित्स!
द्यमित्य्ः । यं सोममोषधिं वल्लीरूपं संपिषति । सासथ्यादरासायनिकाः। न च
साक्षात्सोमः। तहि कः। उच्यते, सोमं हि तं मन्यते यं बद्याणः। यड यशब्द)
` ब्ाह्मणशब्टपयायोऽस्ति कुतो नु चरसि ब्रह्मन् तस्मे मा न्रूया निधिपाय बह्मनि-
त्यादिप्रयोगात् । बाद्यणा इत्यथः । ते चतििंजो यजमानश्च यागसाधनभूतं संस्कते
विटूजानंति तस्यांशं । यद्वा कमणि षष्ठी । तं सोमं कच्चन नाघ्राति । कथ्चिदय-
क
ति शेषः। यज्वेनं भक्षयितुमहेति नान्य इत्यथेः। एवमोषधिपश्ते ॥ अच चंद्रपकष
। तं सोमं मन्यते पपिवान् पीतवान्यजमानो यद्यमौषधिरूपं संपिंषत्यभि-
रष्वयादयो यजमानश्च । न च स सोमः । कस्तं । यं बह्याणो नाद्यणा
कथयंति चंद्रमसं न तस्याश्नाति कश्चनादेवो देवेभ्योऽन्यो
मयो वा । यज्लाहेषोमस्यासोमत्वं न निंदाये अपि
,
म०१०. स०9, सूर ४५ ॥ अष्टमोऽटकः ॥ १९ :
हे सोम आदच्छदिधानेः। आच्छादयति विधानानि येषां विदयते त आखदि- `
ः । तेगुपितः। तिगुपितः सघ्रभि
पाले रिसं । एते वा खमुष्पिंल्लोके सोममरन्निति बाद्यणं । माव्णाभिच्छूखन् ।
अभिषवयाव्णं ध्वनिं णुखन्नेव तिष्ठसि । ते त्वां पाथिवः पाथिवो जनो नघ्नाति। `
न हि दयुस्थश्दरूपोऽच्येः पानयोग्यो भवति । चंद्रमा वे सोमो देवानामननं तं ५
मास्यायामभिषुखंतीति वाजसनेयकं ॥ ^
1 ॥ अथ पंचमी ॥ ` 2 |
यचा देव प्रपरि्वेति तत आ प्यायसे पुन॑ः क
वायुः सोम॑स्य रिता समानां मास आकृतिः ॥५॥ = =
यत्। त्वा । देव प्रऽपि्वति । ततः । आ । घायसे। पुनरिति । भ
वायुः! सोम॑स्य । रिता । समानां । मासः । आऽवतिः ॥१॥ 0
हे देव सोम यद्यदा रा त्वा प्रपि्व॑त्योषधिषूपं विष्रपि सवनेषु ततीऽनंतरमेव
पुनरा यायसे सरापायस्वं समिति प्रातःसवने सं ते पयांसीव्यु्तस्यौः सवन-
योराणायसे । किंच वायुस्तव सोमस्य रिता । यथा न शुष्यति तथा । वायुः
पोषकः प्रसिङ्ो लोके । विच मासः परिमीयत इति मासःसोमः।सचसमानां
संवत्सराणामाकृतिराकता व्यवच्छेटको भवति । संवत्सरे संवत्सरे वसंतादिका-
करष्नु्ीयमानवादसंते वसंते ज्योतिषा यजेतेति श्तेः । यदा सोमाधारवनस्प- 0
तिविकारपहद्वारेण वायुः सोमरसस्य रिता भवति । वायुगोपा वनस्पतय इति ४
श्चुतः । एवं वल्लीरूपसोमपष्े योजना ॥ चंदरपछ्षे तुहेदेवसोमयद्यदाव्वाल्वां
वंति रष्मयोऽ परयक्षे तौऽ नंतरमेव पूवेपषे पुनराणायसे । वायुश्च सोमस्य `
रक्ठिता । वायुधीनल्वाच्चद्गतिः। किंच समानां संवत्सराणां मासः । षष्टयेकः |
त्। मासस्याकृतिश्च कते त्वं चासि । एकककलाश्षयसं
वृिन्या हि मासः | 1
क
| ४९ , ह ॥ ऋण्वेटः ॥
` री । आसीत्। अनुऽदेयो । नाराशंसी । नि ऽचः
. सूययाः। भद ।'इत्। वास॑ः । गाथ॑या । एति । परऽ कृतं ॥ ६।
आभिः सूयो स्वविवाहमस्तौ दित्युक्त । सूय साविच्री रति । : ।रेभ्यः काथ्च-
रीः शंसति रेभंतो वे देवाश्वपैयश्च स्व ल्ोकमायन्धित्यादित्राह्मणएविहिता
रेभ्य । २ बा०६,३२.। सार्यनुदेग्यासीत् । दीयमानवभूविनोदनायानुदीयमाना
वयस्यासीत् । तथा नाराशंसी । प्राता रलमित्यादिका मनुघाणां नार-
शरस्य: । सा नाराशंसी न्योचनी । उचतिः सेवाकमा । सा वधूगुरूषाये दीयमाना
दास्यभवत् । सूयाया मम भदरं वासो विचि दुकूलादिकमाच्छादनयोग्यं वसं -
गाथया परिष्कृतमल्ं कृतमेति । गाथा गीयत इत्यादि्राद्चणौक्ता गाथा । तया
गाथया वत्परिष्कृतमस्ति तदासोऽभवदिति ॥
॥)
॥ थ सप्रमी ॥
चित्तिरा उपव्हैणं चुरा अभ्यंज॑नं \
द्यौभूमिः कोशं आसी द्यदर्यात्सूये पतिं ॥७॥
१ न
` चि्तिः। आः। उपऽव्हैणं। चुः आः। अभिऽञ्जनं ।
चयी । भूमिः। कोशः। आसीत्। यत्। अयात्। सूयो । पतिं ॥७॥
रेवांजनमासी दिति । चो भूमिश्च को आसीत् । कोशस्था
स्वकीयं नवभतेारं सोममयाद्गच्छ न्दः
॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ १९१ `
रथस्य स्तोमाख्िवृदाटयः प्रतिधय आसन् । प्रतिधी्यत इति प्रतिधय
येगायतकाष्ठादयः। तथा कुरीरं डंदः कुरीरनामकं इंदोऽनस ओओपशोऽभवत्,
येनोपशेएते स स्ोपशः। ताहशायाः सूयाया खश्चिनाश्चिनौ वगा वरावास्तामिति
शेषः। तस्या विवाहे पुरोगवः पुरोगंता पुरतौ गंता। यः पूवमेव प्रस्तावाधे गच्छति
त्स्थानीयोऽप्रिससीत् ॥ प्रजापतिर्वे सोमाय राज्ञे दुहितरं प्रायच्छल्सूथा साविचीं
सर्वे रेवा वरा आआगच्छल्ित्यारि हि बाद्यणं एे° ्ा०४..। खचायमनिप्रायः
विता स्वटुहितरं सोमाय प्रायच्छत् सोमाय दास्यामीति मनीषाम-
समये पुच्या उपचारे प्रदानान्युक्तान्यभवन्। तथा च सत्यश्चिनो `
संतावाजिं पुरतो गत्वा तामल्मेताभिति । उच्र्ापि सोमो वधूयुरभव-
9 दित्यादिनायमेवाथेः स्यष्टौ भविति । योषावृणीत जेन्येत्यादि कमुक्तं । १.११९.५.॥
॥ थ नवमी ॥
सोमो वधूयुर॑भवदश्विनांस्तामुभा वरा । ^
सूयी यत्पतये शंसत मनसा सविताद्दात् ॥९॥ =`
सो्मः। वध्ऽयुः। अभवत् । अश्विना । आस्तां । उभा । वरा ।
॥ रि ॥ ति षि |
ध सूथा । यत् । प्यं ! शंसंतीं । मन॑सा । सविता । अददात् ॥९॥
सोमो वधूयुवैधूकामो वरोऽभवत् । तस्मिन्समयेऽभ्विनाशविनावुभोभो वर
` वरावास्वां । अभूतां । यद्यदा सूयो पत्ये शंसंतीं पतिं कामयमाना । पयोप्रयोव-
नामित्यथेः। सूये मनसा सहिताय सोमाय वराय सविता तत्पिताददात् प्रादात्
॥ अथ टश्टमी ॥
|
|
| १९ ` ॥ऋष्वेद्ः॥ ` [अ०४.अ०३.वग्रर.
र्पयेपिधानमासीत् । भुक्तौ दीप्र सू यीचंदरमसावनङ़ाहौ रणस्य बोढारावास्तां । ।
अभवतां । यद्यदा सूय गृहं सोममयादगात् ॥ ४
॥ व ॥ इत्यष्टमस्य तृतीय एकविंशे वगः ॥
(1 ॥ खअथेकाटभी ॥ ` |
५४ ऋक्सामाभ्यां मभिर्हितो गावं ते सामनावितः
श्रो ते चक्रे खस्ता दिवि पंथां्चराचरः ॥११।
ऋकर्ऽसामाभ्यां । अभिऽ हितो । गावो । ते । सामनो । इतः
1 रोच । ते । चक्रे इतिं । आस्तां । दिवि । पंथाः । चराचरः ॥११। वि
| हे सूर्ये देविते तवक्सौमाभ्यासभिधानीस्यानाभ्यामभिहितौ गावो गोस्था-
3 यौ सूयोचंद्रमसो सामनो सामानो संतावितः। गच्छतः । अनोवाहो पत्युगृहं
ध प्रति गद्छतः। ते तव श्योचं \ रोते इत्यथैः! वरस्य गुणयाहिणी श्रोते एव चक्रे
आर्तां मनोरूपस्य रथस्य चोचे चक्रे खभवतामित्य्थः। दिवि पंथाश्चराचरः। चला-
चत्दः। त्यं गमनसाधनभूतो मार्गो ऽभूत्। रसं चारप्रदेशे दचुत्ोकं आसीत् ॥ „4
(3 ॥आथदह्वादशी॥ ` |
` शुचीं ते चक्रे यात्या व्यानो अश् आर्हतः ।
` ` अनं मनस्मयं सूयोरोहत्मयती पर्ति ॥१२॥ |
2 गती चक्रे इतिं । यात्याः। विऽआआनः। खक्षः। आऽहतः।
नं सूयो । आ। अरोहत् प्रऽयती । पतिं ॥१२॥ =`
नस्चकरे चंक्रमणशीले रागे भु
उभयरथचक्रच्छिद्रगाभिनी या `
भूत्। मनस्मयं मनोमय
। अष्टमो ऽ टकः ॥ . १९३
॥ अथ चयोटणी ॥ ५ ~ ४
सूयायां वहतुः प्रागात्सविता यमवासुंजत् । |
ने गावोऽजञैन्योः पद्ये ॥१३॥
५9
हन्यते
वहतुः । प्र । अगात्। सविता । यं । अवं ऽअसुंजत् ।
हन्यते । गाव॑ः । अजुन्योः । परि । उद्यते ॥१३॥
लेः केः # कि, |
रित्सितायाः सूयोाया वहतुः । कन्याप्रियाथे दातव्यो गवादिपटार्थो
वहतुः । स च प्रागात् । तस्या खपि पूवेमगच्छत् । यं वहतुं सवित्तास्याः पिता-
वासुजत् अवसृष्टवान् ! प्रादादित्यथेः। कदा सागच्छत् कदा वहतुरित्युभयोः काल
। अघासु मघास्ित्यथेः। मघानक्चेषु गावः सवित्रा दन्ना गावः सोमगुहं
प्रति ह्यते । टडेस्ताद्यते प्रेरणाथे । अजैन्योः। फ्गुन्यो स्यिथः । त योनेकछचयोः
सवितुः सकाशात् परि सोमगुहं प्वयुद्यते । नीयते रथेन ॥ `
॥ अथ चतुटेशी ॥ ५
यश्चिना पुच्छमांनावयांतं चिचक्रेणं वहतुं सूयोयांः
पमन
देवा अनु तद्वमजानन्पुचः पितरा ववृणीत पूषा ॥१४॥
न
अश्विना । पुच्छमानो । अयातं । चिऽचक्रेणं । वहतुं । सूयोयाः।
॥ प, ॥
देवाः। अनुं । तत्। वां । अजानन्। पुचः। पितरो । अवृणीत । पूषा ॥१४६॥
1 कणि पिम,
हे अश्विनाश्चिनो यद्यदा पृच्छमानो सवित्तारं प्रष्मयाततमगच्छतं । केन सा-
चिवाहमित्यथैः। तत्तदानीं वां युवां सवितारं प्रति गच्छतो विश्वे सरवे देवा अन्व
पुचोऽश्विनोः एुचः पूषावृणीत । व्
यातं तदुच्यते । चिचक्रेण चक्रचययुक्तेन रथेन । कि पृच्छमानो । सूयोया वहतुं `
^
| १९ | | ` 1 क्ृग्बेट्ः॥ ` [ऋ०४. अ० ३, व्० २३.
हे भुभस्यती उदकस्य स्वामिनौ यद्यावयात्तमगच्छतं । कं प्रति । वरेयं वरणी-
यायाः सूयायाः संवंधिनं वैरयोचितव्यं वा सवितारमित्यथेः । किमथ
गंतुं । वां भवतोः संप्रति हश्यमानमिदमेकं चक्रं करासीत्पुरा । क वा युवा दष्राय
दानाय प्रवृत्तौ तस्थथुरित्यश्विनो निवासं पृछति ॥
॥ इत्यष्टमस्य तृतीये हाविशे वगैः ध
~ | अथ षोडशी
हे त चक्रे सूय बरह्माणं ऋतुथा विदुः। :
| ` अथेकं चक्रं यहुहा तद्॑ञातय इविटुः ॥१६॥ |
न ्े इतिं । ते। चक्रे इतिं । सूर्ये । बह्माणः । ऋतुऽथा । विदुः ।
५९ ५ अथं । एव॑ । चच्रं । यत्। गुहा । तत्। अद्धातर्यः। इत् । विदुः ॥१६॥
| अथ स्वयमेव स्वात्मानं प्रति सूयो वदति । हे सूर्ये ते तव इ चक्रे प्रति पुरा
। | इषे दे एव चंदरसूयौत्मङे ऋतुथा ऋतुषु विनिदिषे चक्रे बह्याणो बाद्यणा विदुः
(व छअथेकं चक्र तृतीयं सं वत्सगत्मवं गुहा गुहायां निहितं यदस्ति तदङ्धातय इत्
` एतन्मेधाविनामसु पठितं । मेधाविन एव विदुः । जानंति ॥ |
4. ॥ अथ सप्रटशी ॥ व
य न
य देवेभ्यो मिचाय वरूणाय च । ५.
चतस इटं तेभ्यो ऽ करं नम॑ः ॥१७।
मिचायं । वरूणाय । च । ५
तसः। इद् । तेभ्य॑ः । अकरं । नम॑ः॥१७॥
# ॥ ५:46
ग्न्यारिभ्यो सिचाय वरुणाय चये
ल न | इटं ४
म०१०, ०9. सूर ४. | ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ १९५
घूवैऽञअपरं। चरतः! मायया । एतौ । शिप्् इतिं । ठत । परि । यातः! अध्वरं ।
नि । अन्यः । भुवना । अभिऽ चदं । ऋतून् । अन्यः। विऽदधत् । जायते । |
पुनरिति ॥१४॥ ` 4
सूयैः। अन्यस्तमनुचरति चंदरमाः। एवं पूवौपरं पौ वैपर्येण
नेनैतावारित्यचंदौ चरतः! गच्छतो दिवि। तौ शम् । शिणुवद्ध- |
मणान्नायमानत्ाह्वा शि इत्यच्यते! शिम्म् संतो ऋीक्छतावंतरिष्षे विहरतावध्वरं `
यातः । यज्ञं प्रतिगच्छतः । तयोरन्य आदित्यो विश्वानि भुवनान्यभिचषटे । न
खभिपश्यति । ऋतृन्वसंतादीनन्यवंदमा विटधत्कर्वन्मासानधेमासांच वुविन्पुनजा- `
यद्युभयोरपि पुनजोतिरस्ति तथापि सूर्यस्य सवदा प्रवृद्धेरुदयो नाभिप्रेतः। |
१ चंद्रस्य तु रासवृदधिसङ्गावात्पुनः पुनजायत इत्युक्तियुंक्ता । चंद्रमा वे जायते पुन-
0 नाम्नयेकाहे भक्तपक्ते चांदमसीषिः। तच नवौ नव इत्येषा याज्या ।
सूचितं च ! नवो नवो भवति जायमानस्तररिविंश्वदशेतः । आ ९.४.। इति ॥
॥ सेषेकोनविंशी ॥ 1
नवोनवो नवति जाय॑मानोऽह्लौ केतुरुषसमेव्यये। = क
ध भागं देवेभ्यो वि दधात्यायन्प्र च॑दूमास्विरे दीषेमायुः ॥१९॥ ५
{... :ऽनवः। भवति । जाय॑मानः । हू । केतुः । उषसा । एति । अर ५
भागं ।देवेभ्यः। वि। द्धाति। आऽयन्। प्र चंद्रमाः । तिरते दीधे । आयुः ॥१९॥ =`
` अयित मा जायमानः प्रतिदिनं जायमान एकेककतवाधिक्येनोत्पद्यमानः सन्
#
नूतन एव भवति । एतत्पूवेपक्षाद्यभिप्रा
॥ ऋग्वेदः ॥ ` [० ४, अ० ३, व° २४.
1
| ॥अथविभी॥. न
सुकिंशुकं भ॑रमत्टिं विश्वशूयं हिर॑ण्यवर सुवृतं सुचक्रं
कनि श कथये
आ रोह सूर्ये अमृतस्य लोकं स्योनं पत्यै वहतुं णुच ॥२०॥
= सुऽकिम्ुकं। शमलं । विश्वऽरूपं। हिरण्यऽ वशे । सुऽवृतं । सुऽचक्र ।
# #
चककि
| 1 (न ]
आ । तोह । सूर्ये । अमृतस्य । लोकं । स्योनं । प्यं । वहतुं । कृणु ॥२०।
१, विंमुकं शोभनर्विनुकवृक्षनि्मितं तथा श्म एर्म ए
रूपं नानारूपं हिर्ण्यवरी हितरमणीयवशे हिरण्यातट कारयु्त
सुचक्रं भणोभनचक्रोपेतं रथं हे सूयं खारोह । अमृतस्य त्रो
पत्ये सोमाय वहतुं वहनमात्मनः प्रापणं कृणुष्र । कुर । अच निरुक्त दव्य ।
9 ॥ उत्य्टमस्य तृतीये चयोविंशौ वगैः ॥
॥ खथेकविंभी ॥
५ उदीश्रीतः पतिवती द्येरषा विश्वावसुं नम॑सा गीभिरीके ।
अन्यामिच्छ पितृषदं व्यक्तां स ते भागो जनुषा तस्यं विद्धि ॥२१॥
उत् ई्ै। अत॑ः । पतिंऽ वती । हि । एषा । विष्वऽव॑सुं। नम॑सा । गीःऽभिः। ई !
अन्यां । इच्छ । पितृऽसदं । विऽञ्॑क्ता । सः। ते। भागः। जनुषां । तस्य॑ । विद्धि ॥२१॥ ` ४
५ ॥ }
णं विवाहः स्तूयते । हे विश्वावसो अतः स्थानात्कन्यासमीपादुरीषे ।
कन्या पतिवती हि संजाता । अत उदीर््रेति वातःशब्दो योज्यः ।
वै नमसा नमस्करिण गीभिः स्तुतिभिष्रक्छ । स्लोमि
मीति यदि बूषे तद्यन्यां पितृषदं पितृकुले
र
॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ १९
उत्। इत । अत॑ः । विश्वावसो इतिं विश्वऽवसो। नम॑सा । ई$व्छामहे । चा । . ५
न्या । सं । जायां । पत्या । सुज ॥२२॥ ५3 `
अतोऽस्माच्छयनाङे विश्वावसो कन्यास्वामिन् गधववोदीषवै । उद्रच्छ । इर
गतौ । आदाटिकः। अनुदात्तेत् । तस्य तोरि रूपं । विश्वावसुनौम गंधर्वैः कन्या- ` .
भा लभामि तेन कन्यामिति हि संच: स ताहशदेव लां नमसा `
। महे । स्तुमः । स त्वमन्यां प्रप्य वृहननितंवां कन्यामिच्छ । जायां #
1 पत्या सह पुनः सं सुज ॥ ।
॥ अथय चयोविशी ॥ ।
बनृछ्रा ऋजवः संतु पंथा येभिः सखायो यतिं नो वरेयं । च
म॑येमा सं भगो नो निनीयात्सं जांस्यत्ं सुयम॑मस्तु देवाः ॥२३॥ ` ६
अनृक्षरा । ऋजव॑ः। संतु । पंथाः ! येभिः । ससायः । यंति । नः । वरेऽयं। ५
अयेमा। सं। भग॑ः। नः निनीयात्। सं। जाः। पत्यं । सुऽयमं। अस्तु देवाः॥२३॥ = ०
हे देवाः पंथाः पंथानो मागो अनृक्षराः । ऋश्षर वटक उच्यते । कंटकरहिता = ` ¢
` चजवोऽकुटिलाश्च संतु येभिः पथिभिर्नोऽस्माकं सखायो वरमरेषिता वरेयं `
प्रति यंति गच्छति ते पंथा इति किंचायेमा देवो नोऽस्मान् `
1
| सं निनीयात् । सम्यक् प्रापयेत् । तथा भगो देवः सं निनीयात् । हे देवाआआसं-
कुतमिति रेषः । तथेदं जास्पत्यं जायापत्योयुंगलं सुयममस्तु ।
। सुमिथुनमस्तु॥ ॥ [त
{ विमोचने प्र त्वा मुंचामीत्येषा । सूचितं च। अथास्या योक्घ विचु- `
। ¢ वर्थस्य पाणादिति 1 1
१९४ ॥ ऋग्वेदः ॥ ` [ऋ०४. ०३, वऽ २५.
हे वधुतात्ांप्रमुंचामि येन त्वा चां सविता वरुणस्य प्रेरकः सुशेवः भुखोऽव- |
ण्ण
घ्ात्। बंधनं कुततवान्। यज्ञांगपक्षे पल्लीं योक्तेण बध्नाति । बंधनस्य वरूणोऽ भि-
मानी । अतो वरणपाशाचोक्कात्ममुं चामि। येन योक्केण सविता कमणामनुज्ञात।
टेव ऋलिकपाशेनावधात्। तं मोचयित्वा चतैस्य यज्ञस्य योनौ स्थाने यागभूमौ
सुकृतस्य तमके कमेक भूलोके चारिष्टामहिंसितां तव पुचराद्यं पत्या सह दधामि ।
1पयामि॥ व शी 8
व ॥ पथ पचविशी ॥ `
प्रतो मुंचामि नामुतः सुव्लाममुतस्र। `
यथेयमिंद् मीदुः सुपुचा सुभगासति ॥२५॥ _
प्र। इतः मुंचामि। न। अमुतः । सुऽवहां । अमुतः करं। =
यथां । इयं । इट्। मीदुः । सुऽपुत्रा । सुऽभगा । अस॑ति ॥२५॥ ` |
स
स
-ॐ<
इतः पितृकुलात्म मुचामि त्वां नामुतो भगृहात्ममुचामि । असुतो भतृगृहे
सुवद्वां करं । यथेयं कन्या हे इद्र मीढः सेक्तः सुपुचा सुभगा सुषुभाग्या वासति
भेवति तथा कुर् ॥ 1 (0;
` ॥ इ्यष्टमस्य तृतीये चतुविंश वगंः ॥
विवाहानंतरभाविनि प्रयाणे पूषा वेतो नयवित्यनया, रथादियानमारोहयेत् ।
सूचितं च। पूषा ततौ नयतु हस्तगृद्येति यानमारोहयेत् । आ° गु०१.४.॥
न ..::. ॥ सैषा षडशी ॥ | ह.
एषा चेतत नैगु हसतगृदयग्वनां त्वामर वहतां स्थेन। =
‡ ९ ह । | #
गृहान॑छ गृहे
) यथासो वशिनी तवं विदथमा व॑दासि ॥२६॥ `
पूषा। ्वा। इतः। नयतु । हस्तऽगृदयं । अध्वना । ला । प्र। वहतां । रथेन। =
गृहान्।गच्ध। गृ असः। वशिनी! । चं । विदथं । आ। वदासि दै॥ = ^
म० १०, ०9, सू० ८५.। । ष्टमो ऽ टकः ॥ १९९
त्येषा वध्वा गृहप्वेशिनी । सूचितं च । इह प्रियं प्रजया ते समृध्य-
गृहं प्रवेशयेत् । आर गृ०१,४.। इति ॥ 0.
. सेषास्प्रविंशी॥
मृध्यतामस्मिन्गृहे गाहेपत्याय जागृहि । `
त्या तन्वं 4सं सुंजस्वाधा जिव्री विदथमा वदाथः ॥२७॥ ।
यं । प्रजया । ते। सं । ऋध्यतां । सस्मिन् । गृहे । गाहे ऽ पत्याय । जागृहि ।
तन्वं । सं । सृजस्व । रधं । जितनी इति । विदथं । आ । वदाथः ॥२७।
हे वधु ते तवेहास्िन्पतिकुले प्रियं प्रजया सह समृध्यतां । अस्मिन्गृहे गाहै-
गुहपतित्वाय जागृहि । बुध्यस्व । एनानेन पत्या सह तन्वं स्वीयं शरीर सं
सृजस्व । संसुष्टा भव । खधाथ जित्री जीणो जायापती युवां विट्थं गुहमा वदायः।
सखाभिसुख्येन वदतं ॥ `
॥ अथाष्टाविंभी अ
| नीललोहितं भवति कृत्यासक्तियज्यते। ` 44
| अस्या जञातयः पतिरवधेषुं बध्यते ॥२४॥ ५
ल ऽ लोहितं । भवति । कृत्या । आसक्तिः । वि । खज्यते।
रर्धते। अस्याः । ज्ञातयः । प्तिः । वंधेषुं । वध्यते ॥ २४॥
वृत्याभिचाराभिमानिनी देवता नीललोहितं भवति । नीतं च लोहितं च
तस्या रूपं भवतीत्यर्थः सा कृत्यासक्तिरासक्तास्यां सं बद्धा व्यज्यते । त्यज्यत इत्यथः
भ॑जा वसुं ।
॥ ^. ५
पति ॥२९॥
कृत्यायामपगतायामस्या वध्वा ज्ञातय एधते । वधते । पतिवधेषु सांसा-
|
| ` ॥ कम्वेट्ः ॥ ` [० ए. ऋ० ३, व° २६,
वस्तं परा देहि। परात्यज। धृतप्रायशित्ताथे बरह्मभ्यो ्ाहयणेभ्यौ वसु धनं वि भज!
प्रयद्ेत्यथः। किमथे वधूवासःपरित्याग इति चेत् उच्यते । एषा कृत्या पडती पा-
दवती सती जाया भूत्वी भूत्वा पतिं विशते । कृत्यारूपवास् 'प्रवेश्णत् कृत्या जाया
( भूत्वा विशत इत्युपचयेते। अतस्त्यस्यागे कृषयेव त्यक्ता भवतीत्यथेः। यदि वधू-
वासः स्वयं निधत्ते तदेवं भवतीति वधूवासःसंस्पशेनं निंदायुक्त ॥
व ॥ खथ चिंशी ॥
अश्रीरा तनूभैवति रती पापयामुया ।
` पतिर्बभ्वो$ वास॑सा स्वमंग॑मभिधित्सति ॥ ३०॥
अश्रीरा तूः । भवति । रण॑ती । पापया । अमुया ।
“ पतिः। यत्। वध्वः । वास॑सा । स्वं । खगं । अभि ऽधित्सते ॥ २०॥
चापि वधूवासःसंस्यशेनिंरोच्यते । तनू वैरस्य सं बधिन्यश्रीराश्रीका भवति ।
कथं स्यादित्युच्यते । रुशती । रश्टिति वणेनाम । दीप्रयासुयानया पापरूपया
वृत्या युक्ता चेत्तनूः । तदेवाह । पतियंद्यदि वध्वो वाससा स्व मंगमभिधित्सते
क छः
. ॥ इत्यष्टमस्य तृत्तीये पंचविंशे वगेः ॥
1 ॥ खयेक्चिंशी ॥ `
1
, भे व॑द व॑हतं यच्छा यंति जनादन ।
नानकं देता न्तु मह आग॑तः ॥२१॥
चंदं । वहतुं । यष्माः। यंति । जनात् । अनुं ।
। तान् । यज्ञिया
याः । देवाः! नय॑तु । यत॑ः। आऽग॑ताः ॥३१॥
यचा व्याधयोऽनु :
तान्नव
॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ . ` २9 ^
॥ सेषा हार्चिंभी ॥
य आसीदति दंप॑ती ।
गेनिटैगसतींतामपं द्रांलर्तयः ॥३२॥ ५
। विदन् । परिऽपंचिन॑ः। ये । आआऽसीर्दति । दंप॑ती इति दंऽप॑।
तुऽगेभिः। दुःऽगं । अति । इतां । अपं । द्रतु । अरातयः ॥ ३२
नः पयेवस्यातारः श्चवीो मा विदन् मा प्रापयन् ये परिपं
द्यभिगक्छति । सुगेभिः सुगेमैणेदिग दुःखेन गंतुं श्क्यं दुर्गमं देश- `
तां । अतिगच्छतां । अरातयोऽदातारः शववोऽप दातु । अपगद्धंतु |
न° १०. ० 9.
॥ अथ चयस्तिंशी ॥ + व,
तुमंग वधूरिमां समेतं पश्यत ।
सौभाग्यमस्यै द्ायाथास्तं वि परतन ॥३३॥ 1 व
: । इयं । वधूः । इमां । संऽएतं । पश्यत । 1
सौभाग्यं । स्ये! दारय । अर्थं । अस्तं । वि । परां । इतन ॥३३॥ `
इयं वधूः सुमंगलीः शोभनमंगत्ता । खत इमां सवै आशीः कतरः समेत । (2
गच्छत । तां पश्यत च । तां संगताश्च दष्ास्या ऊढाये सोभाग्यं दाय टचा- ।
। गृहनामेतत् । स्वस्वसं बंधिनं वि परेतन । विविधं पराग््छत ॥
॥ अथ चतुरशी ॥ = ` क
५1 क ।
तृष्टमेतत्कटु कमेतदेपाषव॑बिषवजञेतदरचवे! ==
| . सूयी यो ब्रह्मा विद्यात इाधरयमहेति॥३8॥
कटुकं । एतत्। अपाष्टऽ व॑त्। विषऽ व॑त्। न । एतत्
1 # शि < " ॥
। बह्मा । विद्यात् । सः। इत्। वाधूऽयं। सहति ॥३९॥ ८
वस्तपरित्यागः प्र
1
8
| २0 . ॥ कृण्वेद्ः॥ [च्४.ऋ०३.व०्२ऽ.
१ ॥ि ॥ थ पंच्िंशी ।
साश्संनं विशसनमथो अधिविकतेनं ।
सूयोयांः पश्य रूपाणि तानि ब्रह्मा तु शुधति ॥३५
॥
आऽ सनं । विऽशसंनं । अथो इतिं । अधिऽविकतनं।
| सूयां; । पश्य । रूपाणि । तानि । बरह्मा । तु । शुधि ॥३५॥
॥ 1,
निधीयमानं ! ताश
। तान्याश्सनादीनि
वासांस्यवस्थितानि सूयाया रूपाणि भवंति । तानि पश्य । एवभूतान्याशसना- .
दीनि पुर सूयोस्वशरीरि स्थितान्यमंगत्ानि वासांसि विधते । तानि रूपाणि
सूयाविद्ह्या तु ब्राह्मण एव तस्माद्वाससः सकाश द्छुधति । अपनयति
॥ इत्यष्टमस्य तृतीये षडिशे वगैः ॥ _
[1 ॥04
ह विवाहे कन्याहष्तयरहणे गृभ्णामीत्येषा । सूचित्तं च । गुभ्णामि ते सौभगत्वाय
हस्तमित्यगुष्टमेव गृह्यरीयात् । छा० १.७,। इति ॥
#
म॑ ते सोभगताय् हस्तं मया पत्यां जरर
ञअरयेमा संविता पुरंधिमेदयं त्वादुगोहैपत्यायदेवाः ॥३६॥ ` ॐ
। सोभगऽल्वायं । हस्तं । मयां । त्यां । जरत्ऽशख्॑िः। यथां । अस॑ः
ऽधिः। मद्यं । चा । खटुः। गाह पत्याय। देवाः ॥ ३६
। किमे । सौभगत्वाय सोभाग्याय
भवसि । भगोऽयेमा सविता पुरधि
||
५
॥ अष्टमोऽषटकः ॥ ०३ |
ई्यस्व ! यस्याँ । बीजं। मन्
ष्याः । वपंति।
। उशती । विऽश्रयति। यस्या । उशतः । प्रऽ्हराम। शेपं ॥३७॥ = `
तः प्रेरय । यस्यामूरौ बीजं रेतोलश्षणं मनुया वपत्याद्धते । या
ती कामयमाना विश्रयाते । यस्यामूरावुशंतः कामयमाना वयं
ग्यं पुस्प्रजननं प्रहराम । ऊरो व्यंजनसंवंधं करवामेत्यथैः॥ =
॥ अथाष्टचिंशी ॥ । | 0.
| आणे ॥, । ^
खये । परि । अवहन्। सूथा । वहतुनां । सह । (५
न €. ।
1 भे 1 ॥ र ॥
नरितिं। पतिंऽभ्यः। जायां । दाः । पने । प्रऽजयां। सह ॥३ॐ४॥ |
॥
# मयः 1... कि) [6 त । ¢
+
गंधवे हे अग्रे तुभ्यममे पयैवहन् । प्रायच्छ नित्यैः ! कां । सूथा । केन सह ।
त्वं च तां सूया वहतुना सह सोमाय प्रायच्छः । तडदिदानीमपि ४
तिन्योऽस्मन्यं जायां प्रजया सह टाः | देहि॥ =
॥ उथेकोनचत्वारिशी ॥ ४
पुनः पत्नीमभ्रिरदादायुषा सह वचसा । 1
दीघोयुरस्या यः पतिर्जीवाति शरदः शतं ॥३९॥ 0
नरितिं। पत्नीं । अग्निः खदात्। आयुषा । सह । वचसा!
ऽआंयुः। अस्याः। यः । पतिः। जीवाति । शरदः । शतं ॥३९॥ = ।
© त ॥ ऋण्वेट्ः॥ ` उप ४, प° ३, व्० २४८.
सोम॑ः प्रथमः । विविदे । गंधर्वैः ।
तृततीय॑ः। अभ्मिः। ते । पर्तिः। तुरीयः
1 जातां कन्यां सोमः प्रथमभावी सन् विविदे। ल
न्धवान्। अग्रिक्लृतीयः पतिस्ते तव ।
॥ इत्यष्टमस्य तृतीये सप्रविंशे वगः
॥ येकचल्ारिशी ॥
रयिं च॑ पु्ां्ादाट्भ्रिमद्यम
सोम॑ः। ददत्। गंधवीय॑। गंधवैः। ददत्। अग्रयै। ।
` रथिं। च। पुचान्। च। अदात्। अभ्रिः, मद्यं । अथो इति । इमां ॥४१। |
सोमो गंधवीय प्रथमं ददत्। प्रादात् गंधर्वोऽग्रये प्रादात्। अघो खपिचा
रिमां कन्यां रयिं धनं पुचांश्च मद्यमदात् ॥ `
५. | ॥ अथ हिचत्वारिभी ॥ |
इहैव स्तंमा वि यदं विश्वमायुव्ैशुतं।
च्रीठतो पुतैनप्र॑भि्मोदमानो स्वे गृहे ॥४२॥ ।
1 ॥ ४ शकक मधत स्वथ परो ८
इह । एव । स्तं । मा! वि । योषं । विश्वं । आयुः । वि । अश्रुतं ।
| 1
चैः नघरंऽभिः। मोदमानौ । स्वे । गृहे ॥४२॥
४
त पा । नः। प्रऽजां। जनयत् । प्रजाऽप॑तिः। खाऽजर
# चनः [नी
ु ा स॑ । सं । अनङ्घु।
स्मा विश। श। नः। भव । डि ऽपदे। शं!
॥ भ्म #, 1. । |,
कं प्रजामा जनयतु । अयमा चाजर
गमयतु । सा त्मदुभेगत्कीटैमगल रहिता
रानदूषयति सा दुमैगत्दी । ततोऽन्यादुमैगल्ी । ताहशी । |
प शं भव। तथा च शं चतुष्पदेभव॥
| । अथ चतुश्वत्वारिंशी ॥ ५
ष धि शिवा पमुभ्यः सुमनाः सुवचः 7 ष
ध दवकामा स्योना शं नो भव डिप् शं चतुष्पदे ॥४४॥ `
ुः। अपतिऽन्नी। एधि । शिवा । पशुऽभ्यः। सुऽमनाः। सुऽवचौः।
५.१ देवऽकामा। स्योना । शं । नः। भव, हिऽपदं। शं! चतुःऽपदे॥४४॥ =
| = हे वधु वमधोरचषुः कोधादभयंकरचसुरेधि । भव । तथापतिघ्नी भव । तथा ।
(५ शुभ्यः शिवा हितकरी भव सुमनाः सुवचोाश्च भव । वीरसूः पुचाणामेव प्रसविची 1
देवकामा स्योना सुखकरा च भव ॥ न
। ॥ अथ पंचचत्वारिणी ॥ ` ४
५ इमां तव्मिद्र मीदुः सुपुतां सुभगां कृणु । ¢
५ द्स्यां पुचाना ध॑हि पतिमेकादशं कधि ॥४५॥ 4
1 1 "इजा । रं । इट् । मीदु । सुऽपुचा।सु भगौ । वणु । `. | ^ 1 ¦
प
४ 0 | स्यां | पुरान् | शा) धेहि | पतिं ॥ एकाट्श । | कृधि ॥ ६५ ॥ „8 | | | ध |
च कृणु । कृधि । अस्यां वध्वा दश पुचान
। 0 ॥ ऋग्वेट्ः ॥
संऽराजी। रे । भव् । सं ऽगजी । ड
।
नर्नादरि । संऽरज्ञी। भव । संऽराजी । अर्थि
हे वधु णुरादिषु त्वं सघाज्ञी भव । देवृषु देवरेष्रित्य
समंजंव्वित्येषा वरस्य दधिप्राशने वधूवरयोहैदयस्यशेने
च सूचितं । समंजंतु विश्वे देवा इति दधः प्राश्य प्रतिप्रय
हृटये 1 आ गु०१,४.। इति ॥ .
सर्मजंतु विश्वै देवाः समापो हद॑यानि नो त
सं मातरिश्वा सं धाता समु दष्टं दधातु नो ॥४७॥
सं । जंतु विश्व । देवाः । सं । आप॑ः । हर्दयानि! नो ।
सं। मातरि । सं । धाता । सं । ऊ इतिं । देघ्री । द्धातु । नो ॥४७।
विश्वे देवाः सर्वे देवा नौ हृदयानि मानसानि समंजंतु । सम्यगंजतु । अपग-
तुः लादिङ्े्णनि कृत्वा त्ोिकवेदिकविषयेषु प्रकाशयुक्तानि कुवेष्वित्यथेः। आ-
ध पश्च समजंतु । तथा मातरा नौ हृदयानि सं दधातु । आवयोबुँद्धीः परस्यग-
नुकूलाः करोत्वित्यथैः। धाता च सं दधातु । देष्टी दाजी फल्कानां सरस्वतीत्ययेः
च सं ट्धातु ! संधानं करोतु ॥ न -
| ॥ इ्य्टमस्यतृतीयेऽष्टाविंशोवगैः॥
दाथैस्य प्रकाशेन तमो हादे निवारयन् ।
शवहुरे देयाडिद्ातीयमेगवरः ॥ ==
कँ तृतीयोऽध्यायः
1
०१०. ०9. सू-७६.] ॥ अष्टमो ऽटकः ॥ २०७
यस्य निःखसितं वेदा यो वेदेभ्यो ऽखिलं जगत्
निमेमे तमहं वंदे विद्यात्तीयैमहेश्ठरं ॥
मो ऽध्याय आरभ्यते । तच चि हीति चयोविंश्त्यचं हित्तीयं 9 ॥
पुचः। स चेँद्राणीदश्चेते चयः संहताः संविवाद् कृतवंतः
च वि । ह सोतोरसृषत किं सुबाहो स्वंगुर इदाणीमासु नाधि
सिदराण्युषिः । उवे संव वृषाकपायि रेवति परह नामेति
(१ कपेवाक्यानि । अतस्तासां वृषाकपिच्छैषिः । सवै सूक्त
तथा चानुक्रोतं । वि हि ्यधिरकैदौ वृषाक्पिरिदरा
ष्ेऽहनि ब्राह्मणच्छसिन उक्थ्यशस्त
षाक्पिं शसद्यथा होताज्याद्यां चतुथं ! खा०४.३.। ५
णि चिपदासु न स्तुवीरन्सामगा यरि वेदमहरभरिरोमः स्यात्तदानीं ब्ाह्म-
५ माध्यंदिने सवन आरभणीयाभ्य उष्वैमेततसूक्तं शंसेडिश्वजित्यपि । तथा = ` ।
~+ च सूचितं, सुकीति बराह्मणद्छसी वृषाकपिं च पंक्तिशसं । आ०४.६.। इति ॥ क
वै | ॥ तच प्रथमा॥ ` क
वि हि सोतोरसंशत नेद टेवम॑मंसत्त। = ` क 1
यत्राम॑दङगृषाकंपिरयेः पुष्टेषु मत्ससा विश्वसादिद् उरः ॥१॥
हि। सोत्तौः । असुत । न । इद । देवं । अमंसत। =
वुषाककपिः। खयेः। पुष्टेषु । मत्ऽसंखा। विश्व॑ स्मात्। इः । उत्ऽ
सृत । यागं प्रति मया विसृष्टा अनुज्ञाता
वृषाकपे्विंषये वतमानः । तचे
। सोतोः सोमाभिषवं कतु वि यसु
न्यजमाना इत्यथैः । किंच मम पतिमिंदरं देवं न
यच यस्मिन्देशे पुष्टेषु प्रवृदधेषु धनेश्रयेः
॥ खथ हितीया ॥
परा हद् धाव॑सि वृषाकपेरति व्यथिः
| नो अह प्र विंदस्यन्यत् सोमपीतये विश्वस्माद् उत्तरः ॥२॥
परां। हि। इंट । धावसि । वृषार्वपेः । अरतिं । वयथिः
नो इतिं । अहं । प्र। विंदसि। खन्यच॑। सोम॑ ऽपीतये। विश्व॑स्मात्। इद्रः । उत्ऽत॑रः
हे इद् तमत्यत्यतं व्यथिश्चलिविततौ वृषाक्पेवषाक्पिं परा धावसि ।
छन्यच सोमपीतये सोमपानाय नौ ह नेव च प्र विंदसि।
सोऽयमिंदो विश्वस्मादुच्वरः ॥ ` |
॥ खथ तृतीया ॥
किमयं लां वृघाकपिश्वकार हरितौ मृगः
प धि ॥
यस्मा इरस्यसीदु न्वर्यो वां पुष्टिमदसु विश्व॑स्माद् उक्चरः ॥३
॥ * ॥
किं। अयं । लं । वृषाकपिः । चकारं । हरितः । मृगः
यस्मे । इरस्यसि। इत्। ऊं इतिं । नु । अयैः। वा। पुष्टिऽमत्। वसुं । विश्व॑स्मा ।
| गात 31 1
1 ६ \' ॥ ४ ¢
द्द मति
त्। यस्मे वृषाकपये पुष्टिम
प्रयद्छस्येव ।
त्। इद्रः। उत्ऽ त॑रः॥४॥
ष्ट पुतं यमिमं वृषाक्पिमभिरसि परिपालयस्यस्येनं वृषा-
याथ षष्टी । वराहयुवेयहमिच्छन् च्चा नु सिप्रं जंभिषत् । भयत ।
विति शषः । श्वानो हि वराहमिच्छति । सिद्धमन्यत् ॥
॥ अथ पंचमी ॥
तष्टानिं मे कपिवयेक्ता व्य॑दूदुषत्
मभि
न्व॑स्य राविषं न सुगं दुष्कृते भुवं विश्व॑स्मादिद उच॑रः ॥५॥
या तष्टानि । मे । कपिः । विऽञ॑क्ता। वि। अट् ुषत् !
नु) स्य । राविषं न सुऽगं। दुःऽकृते । भुवं । विश्व॑स्मात् इदः । उत्ऽतं रः॥५॥
प्ये तष्टा तष्टानि यजमा तानि प्रिया परियाणि व्यक्ता
शषेणाक्तानि हवीषि कथिद्षाकपेविषये वर्तमानः कपिव्यैटूदुषत्
ऽहमस्य तत्कपिस्वासिनो वृषाकपेः शिरो नुं सिप्र राविषं ।
ते दुष्टस्य कमेणः कचं वृषाकपयेऽस्मे सुगं सुखं न सुवं । खहं न.
न नवामीत्यथेः। अस्या मम पतिरिदौ विश्वस्माटु्रः ॥
। इत्यष्टमस्य चतुर्थे प्रथमो वभैः
॥ अथ षष्ठी ॥ $
याुतरा भुवत् । य
न सक्थ्युद्यमीयसी विश्व॑स्माद् उत्तरः ॥&॥
पयस
स
स
त
ट
॥
दपण (+ ष ४, त् २,
य
तै
२१०
इति । किंच सन्मतो ऽन्या प्रतिच्यवीयसी पुमांसं प्रति शरीरस्यात्यतं
नास्ति । किंच मह्तीऽन्या स्वी सक्थ्युद्यमीयसी संभोगे ऽव्य तसुत्सध्री नास्ति
मच्चोऽन्या काचिदपि नारी मेथुनेऽनुगुणं सकथ्युद्यच्छतीत्यथेः । मम पतिरिद्रो
4 विश्वस्मादुचचरः । उस्कु्टः ॥
५. (7 ॥ थ सप्रमी ॥
छव सुत्दराभिके य्थवांग भविष्यति ।
सन्म अंब सकं मे भिरोँ मे वीव हृष्यति विश्वस्माद् उत्तरः
। पव । सत्ाभिक। यथां ऽइव । अंग । भविष्यति ।
| ॥,.॥ ॥ ए इछ == क, भवेति अके के
भसत्। मे। अंब । सक्थं । मे। शिरः । मे। विऽडईव । हृष्यति । विष्व॑स्मात्। इदः
उत्ऽ तरः ॥७॥ त ६
एवमिंदरणया शप्रो वृषाकपिन्रैवीति । उवे इति संबोधनार्णो निपातः । हे
खव मातः सुलाभिके शोभनत्ठामे त्रया यथेव येन प्रकरिशेवोक्तं तथेव तदंग
कषिप्रं भविति । भवतु । किमनेन त्वदनुप्रीतिकारिण यहेण मम प्रयोजनं ।
किंच मे मम पितुसत्वदीयो भसङ्ग उपयुज्यतां । किंच मम पितुसत्वदीयं सक्थ
| चोपयुज्यतां । किंच मे मम पितरमिंदं त्वदीयं शिरश्च प्रियाल्ापेन वीव यथा
कोकिलादिः पर्ची तद्वद्ुषयति । हषेयतु । मम पितेटौ विश्वस्माटु्चरः
1 1 अग्रारमीं 1...
किं सुबाहो स्वगुरे पृथुष्टो पूथुजाघने ।
४८
॥४॥
प समीभि। वृषाकपि विस् । उत्
॥ ष्टमो ऽ टकः ॥
॥ अथ नवमी ॥ 9, 9 |
व मामयं शणररमि म॑न्यते । 3
. दरपत्नी मरुत्सखा विश्व॑स्मादिंद् उत्तरः ॥९॥ (नि
मा। अय । शराः । अभि । मन्यते! । ::
म। वीरिणी ।इद्रऽपत्नी। मस्त्ऽ संसा । विष्व॑सात्। इदः। उत्ऽत॑रः॥९॥ =
व्रवीति । शारुधौतुको मृगोऽयं वृषाक्पिमीामिंद्ाणीमवी-
विजानाति । उतापि चेंटरपत्नीदस्य भायेाहमिद्राणी वीरिणी
खा मरुन्ियुंक्ता चास्मि । भवामि । यस्या मम पतिरिंदौ विश्च
थ ट्श्मी ॥
संहो स्म पुरा नारी सम॑नं वाव॑ गच्छति । क
वेधा ऋतस्य वीरिणीदपत्नी महीयते विश्व॑सरादिंद् उरः ॥१०॥
। पुरा । नारी । सम॑नं । वा । अवं । गच्छति ।
। वीरिणी । इद्रऽपत्नी । मही यते। विश्व॑स्मात् । इदः! उत्ऽत॑रः॥१०॥
स्तस्य सत्यस्य वेधा विधाची वीरिणी पुचवततींदरपत्नीद्स्य भादराणी
संहोचं स्म समीचीनं यज्ञं खल्टु समनं वा संमामं । समनमिति संसामनामसु 2
पाठात् । अव प्रति पुरा गच्छति । महीयते स्तोतृभिः स्तूयते च । तस्या मम॒
पतिरिद्र विश्वस्मादुत्तरः ॥ ९ च
| ~ इत्यष्टमस्य चतुर्थे हितीयो वगेः ॥ =
ए ॥ छथेकादली ॥ 2
. नर्षु सुनगामहम्वं।
। चन जरसा मरते पतिर्विश्वस्मार्िद् उ्तरः॥११॥ =
। सु भगा । खह् । ऋच्चव् ।
[ि ॥ च्छृग्वेट्ः ॥ , ०३,
हान्या न हि मरते! न खल्टु म्रियते। यद्वद् वृषाकं
शब्दो वृषाकपिपरतया योज्यः । अन्यत्समानं ॥
॥ अथय इाट्शी ॥
नाहमिंदराणि रारण सब्युवृषार्कपेच्छते ।
यस्येदमर्ं हविः प्रियं देवेषु गर््छति विश्वस्माद उर्तरः ॥१२
न । अहं । इट्राणि। ररण । सख्युः । वृषाकपेः! ऋते ।
कये सव #
` यस्य॑। इदं । र्ण । हविः। प्रियं देवेषु । गच्छति । विश्वस्मात्। इद्रः । उत्ऽ तरः ॥ १२।
। इद्राणि अहमिंदः सख्युमेम ससिभूताद्षाक्पेच्छैतते प्रियं वृषाकपिं विना न
. ररण। न रमे। अषयमप्सु भवम्धिवे सुसंस्कृतं प्रिय प्रीतिकरमिदसुपस्थितं हा
वेषु देवानां मध्ये यस्य ममेद्स्य सकाशं गच्छति ! यश्चाहमिंद्ः सवेस्मादुच्चर
यह्लायम्थेः। हे इदाणि वृषाकपेः सख्युरिद्राहतेऽहं वृषार्पिने रारण । न रमे।
1 अन्यमान ॥ |
॥ खच चयोट्शी ॥ |
वृषाकपायि रेवति सुपु आद् सुलुषे। `
इद्र उक्षणः प्रियं काचित्करं हविर्विंशव॑स्मादिटर उरः ॥१३॥
वृषाकपायि । रेवति । सुऽपुंते। आत्। ऊ इतिं । सुऽसुषे।
ते। इदः। उक्षण प्रियं । काचित्ऽ करं । हविः। विश्वस्मात् इदः उत्ऽ तं रः॥१३॥
॥ ५ ५ ॥ ५ २५ ^ ^ । 4 #।
॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ | |
॥ अथ चतुदेशी ॥ |
४. ^ ५
हि मे पंच॑द्श साकं पच॑ति विंशतिं । | ^
।
व॑ः। इत् । उभा । कुष्टी इतिं । पृणंति। मे विश्व॑स्मात् ! १८.५८ ५
(नी भैम # धिह
रः ॥१8॥ | ।
5
।
वृषभान् साकं सह मम भायेयेदाण्या प्रेरिता यष्टारः पचंति। उतापि =.
तान्भष्यामि । जग्ध्वा चाहं पीव इत् स्यूत एव भवामीति शेषः £ +
ति! मे मदथे पंचदश पंचदशसंख्याकान् विंशतिं विंश्तिसंख्या-
॥ अथ पचट्शी ॥ ८. 1
म्युगो ऽ तयुधेषु रोरूवत् । |
हृदे यं ते सुनोति भावयुविश्वस्मा दिद उत्तरः ॥१५॥ `
तेग्मऽभ्वुगः। संतः । यूथेषु । रोसू्वत्। ` ५
। इदर। श । हृदे। यं।ते। सुनोति । भावयुः। विश्व॑स्मात्। इदः। उत्ऽत॑रः॥१५॥ =`
णी ब्रवीति, तिग्मभुंगस्तीस्षणप्ुंगो वृषभो न यथा वृषभो ययेषु गोसं- `
रुवच्छन्द् कुवन् गा अभिरमयति त्था हे इद् त्वं मामभिरम्येति `
व । हे इद् ते तव हृदे हृदयाय संथो द्नो मघनवेत्करायां शब्दं कु्वेन्
शेषः । विच । ते तुभ्यं यं सोमं भावयुभावमिच्छतीद्राणी
च्छ श ८, २४ ४ )। ६ ५ 9
२१४ | | ॥ ऋण्वेट्ः ॥
न । सः । ईशे । यस्य॑ । र्ते । खंतरा। सक्थ्या । कपुत्
सः। इत्। ईशे। यस्य॑। रोमशं। निऽसेदुष॑ः। विऽजुभ॑ति। विश्व॑
हे इद्र स जनो नेशे मेथुनं कपु नेष्टे न
नी संतरा रवते त्वे सेत् स एव
शक्रोति यस्य जनस्य निषेटुषः शयानस्य रोमशमुपस्थं विज्
यस्य च पतिरिदरौ विश्वस्माटुत्तरः ॥
॥ थ सप्रटशी ॥
नसे य्य रमं नि व । ` = `
सेदीशे यस्य रतेऽतरा सक्थ्या ३ कपृद्िश्वस्माटिद् उरः ॥१७॥
न। सः। ईशे। यस्य । रोमशं । निऽसेदुष॑ः। विऽजुभ॑ति ।
सः। इत्। ३शे। यस्य।र बते। अंतरा! सकथ्य। कपुंत्। विश्व॑स्मात् इद:। उत्ऽ तंरः॥१७
भये, पड
जनो नेशे मेथुनं कतुं नेष्टे यस्य जनस्य निषेदुषः शयानस्य रोमशमुपस्थं
विजुंभते विवृतं भवति । सेत् स एव जन ईशे मेथुनं कत शक्रोति यस्य जनस्य
कपृत् प्रजननं सक्थ्या सक्थिनी ऋंतरा रंबते ठंवते । सिद्धमन्यत् । पूर्वोक्तव्य-
तिरिकोऽच दृष्टयः । पूर्वैस्यामृचि यियप्सुरिदरा णीद वदति अच त्वयियप्सुरि दर
इद्राणी बद्तीत्यविरोधः ॥
1. ` ॥ अपाश्टादशी + ५
वृषार्वपिः परस्तं हतं विदत्। `
धस्यान | | आचितं विश्स्मादिद् उर्वरः ॥१४॥ =
॥ |
॥ :\ ^ ६ ^
५
। रध॑स्य । अन॑ः । आऽ चितं । विश्व॑स्मात् । इद्
= &
॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ १५ |
॥ अथेोनविंशी ॥ | |
नवन्दासमाय । ~,
त्वनोऽभि धीरमचाकशं विश्व॑स्मा उत्तरः ॥१९। 9
| ॥ भेण
ऽ चारवशत्। विऽचिन्वन्। दासं आयै। 7 |
चन भण ॥ |
र ।
पाकऽसुत्नः। अभि धीर। अचाकशं । विश्व॑स्मात्। इदः। उत्ऽत॑रः॥१९॥ |
विचाकशत् पश्यन्यजमानान् दासमुपक्षपयितारमसुरमायै- "3
थङ्कवेन् अयमहमिंद् टमि । यज्ञ प्रति गच्छामि। यज्ञंगत्ला
तीति पाकः । सुनोतीति सुला । हविषां पकः सोमस्याभि- `
विपक्कन मनसा सोमस्याभिषोतुवो यजमानस्य संबंधिनं व
मि । तथा धीरं धीमंतं यजमानमभ्यचाकशं । अभिपश्यामि योऽह- £
स्माटु्तरः ॥ ५१ प
॥ पथ विशी ॥ 4
तच च कति स्वित्ता वि योजना । "० क.
केशचणरभ | ॥
१५५
यसो वृषाकपेऽस्तमेहि गृहौ उप विश्वस्माद् उरः ॥२०॥
धन्वं । च । यत् । कृतच । च । कति । स्वित्। ता। वि । योजना। प
नेदीयसः। वृषाक्पे। खस्तं। आ। इहि। गृहान्। उप॑ । विश्वस्मात् । इद्र उत्त्ऽत्तरः॥२०॥ ` प
धन्वं च यत्क
॥
ति मनेः
| धन्व निरुट्कोऽरण्यरहितो देशः। कृतव कर्तनीयमरण्यं । यद्यच्च धन्व च वृतं
ासमरण्यमेवंविधं भवति न ्वत्यंतविपिनं । तस्य शचुनिल- `
| २१६ | [म ॥ ्पुग्वेटः | ० ४, प० ४. व०&,
पनः। आ। इहि । वृषाकपे । सुविता । कल्पयावहै
|) ति | भेक भके ककरतेने वधः शकि
यः। एषः। स्वप्रऽनंश्नः। अल्तं। एषि । पथा। पुन॑ः। वि
त्। इदरः। उत्ऽ त॑ रः॥२१॥ |
प
अक भ
५ मणि कल्ययावहे । इदाण्यहं चावामुभो पयेालोच्य कुयौव । किंच यः स्वभ्न- 4
शन उटयेन सवस्य प्राशिनः स्वघ्रानां नाश्यितादित्यः स एष वं पथा मार्गेणा-
` स्तमात्मीयमा वासं पुनरेषि । गच्छसि । यतोऽहमिंटो विश्वस्मादुचतरः । तथा च
८ यासः । सुप्रसूतानि वः कमाणि कल्ययावंहे य एषः स्वप्रनंश्नः स्वप्रानाश-
` यस्यादित्य उदयेन सोऽस्तमेषि पथा पुनः। नि०१२.२४.। इति ॥
५ ॥ अथय हाविंभी ॥
छ युदचो वृषाक्पे गृहमिद्राज॑गंतन। `
ह क्र पस्य पुल्वघो मृगः मगज्ञनयोप॑नो विश्वस्माद् उत्तरः ॥२२॥ `
प [रि | ॥
्। स्यः। पुल्वघः। मृगः। वं। अगन्। जनऽयोप॑नः। विश्व॑स्मात् इद: । उत्ऽत॑रः॥२२॥
1 यत्। उदचः। वृषाकपे । गृहं । इट्! अज॑गंतन । व
= गत्वा पुनरागतं वृषाकपिमिंद्रः पृच्छति । हे इद् परमेश्वयेवन् हे वृषाकपे गूय- कि
मुद उद्राभिनः संतो मत्रृहमजगंतन । आगच्छ । एकस्यापि वहुवचनं पूजाधै। `
तचभवतः संधी पुल्वघो बहूनां भौमरसानामत्ता स्यः स मृगः क्ताभूत् । जनयो- छ >
'पनो जनानां मोट्यिता मृगः वं वा देशमगन् । अगच्छत् । सोऽहमिंदो विश्व
। यददराणीवाक्यमिद्। खचर यास्कः। यदुरदंचो वृषाकपे गृहभिंदराजगम
पुत्धो मृगः क स बह्ादी मृगः । मृगो मा्गैतिकमेणः । कमगमदेशं `
५ जनगोपनः । नि०१३.३। 1 $
म्र १6९. प्र 9, स्यू? ८9 | | पष्टमो ऽ छक ॥ | | २१9 4 | ४
नमनेन मेण वृषाकपिराशल्ते । हे भदेण विसुज्यमान शर । `
पशनाम मृगी । हेति पूरणः। मानवी मनोदैहितियं विंशतिं `
चान् साकं सह ससूव । अजीजनत् । त्यस्थे तस्ये भदरं भजनीयं ~"
लोड लुड् । यस्या उद्रमामयत् । गर्भैस्थेविशतिभिः पुतः ्ः
द्रो विश्वस्सादुचरः ॥ ॥ि छ
॥ इत्यष्टमस्य चतुथे चतुथो वगः ॥ (,9. =
|.
त्यु चं तृतीयं सूक्तं । पायुनाम भारद्ाज छषिः। डाविं- - ¦
। शिष्टा एकविंशतिच्िषटभः । रसोदा्निर्देवता । तथा चा- `:
णं पचाधिका पायुराग्रेयं रा्ोघ्रं चतुरनुष्टवं्तमिति । गतः सूक्त- `
गः! संगाराभिविहरणे परि लग्र इत्येषा जप्या । सूचितं च । धि
त्वाग्रे पुरं वयसित्यतेन । खआ०५.१३.॥ (7 १
जिंघमिं मितं प्रथिहमुपं यामि शमे । 7
मंड
इःसनोदिवासरिषःपाहुनक्तं॥१॥ `
जिघमिं। भिचं। प्रथिष्ं।उप॑।यामि।शमै।
ऽभिः। संऽइद्धः। सः। नः। दिवा सः। रिषः। पातु नर्त ॥१॥
५
सां हतार वाजिनं बल वंतसन्रव॑तं वाग्रिमा जिधमि । घुतेनाज्ु- `
चं यजमानानां सलायं प्रथिष्ठं पृथुतमं शमे गृहमुपयामि।
ऽयमम्मिः शिशनो जात्ास्तीष्णीकुवेन् करतुभिः कमैपरः पुरुषैः `
राच 1
` चास्माचकत
॥ अथ हितीया ॥
नेक
1 | ॥ ऋग्वेद्ः ॥ ` [अ०४,अ०४. ०५,
हे जातवेदो जातधन जातप्रज् वा तं समिधः सम्यग्दीप्रोऽयोद्टोऽ योमयदंषटः।
तीर्णः सन्नित्यथेः । यातुधानानारसानचिषा ज्वालयोप स्पश । संदहेत्यथेः
किच त्वं मृरदेवान् मठदेवान्मारकव्यापारााछषसाजिद्या ज्वालया सस्व । मा-
र्येत्यथेः। मारयित्वा च ऋव्यादो मांसभक्षकाचाश्षसान्वृ छी द्िसन् आस्येऽपि
धत्स्व। अपिधेहि। आख्छादयेत्यथेः ॥
1
क ॥ अथ तृत्तीया॥ ।
उभोभयाविन्ुपं धेहि दष्टा हिंसः शिशानोऽवरं परं च ।
उत्तार परि याहि राजज्ञभेः सं धेंद्यभि यातुधानान् ॥३॥
उभा । उभयाविन्। उप॑ । धेहि । ट्टा । हिंखः। शिश॑नः। खव॑रं। पर॑ । च ।
ि उत। अंतर ्े। परि । याहि। राजन्। जभेः। सं । घेहि। अभि। यातुऽधानान् ॥३॥
हे उभयाविन् उभाभ्यां दष्ाभ्यां युक्ताग्रे लं हिंखो राक्सानां हिंसकल्वसुभोभे
द्रा दष्टे श्णिनस्तीचणीकुरवन्तुप धेहि । वधार्हेषु रसेषु प्रतिष्ठापय । किंचावरं
परं च जगदूष। उत्तापि च हे राजन् दीप्राम्रे त्म॑तरिषे स्थितानाससान्परि याहि।
रिगच्छ। परिगव्य च तान्यातुधानानाकछसाज्ञमेभरणसाधनभूताभिरष्टाभिरभि सं
धेहि । संयोजय । भरयेत्यथैः ॥ [
| ॥ अथ चतुर्थीं ॥
॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ €
॥ अथ पंचमी ॥
भिधि हिंखाशनिहैरसा हत्वेनं
हि ऋव्यात्कविष्णुवि चिनोतु वृक्ण ॥५॥
स्य । भिंधि । हिंखा । अशनिः । हर॑सा! हंतु । एन् ।
प्ृणी हि। व्य ऽआअत्। ऋविष्णुः। वि । चिनोतु । वुकंणं ॥५॥
॥ 1
प्रस वप्रे तं यातुधानस्य राक्षसस्य त्चं भिंधि ।
भचत्चं यातुधानं हिखा हिंसनशीलं ततवाश्निवेजं हरसा तापेन
हतस्य रारसस्य पवैाणि एरीरपवाणि च प्र गृणीहि । छिदीत्यथेः।
रसं बंधिषु सत्सु वृक्णं दित्रसंधिमेनं यातुधानं ऋविष्णुभासमिच्छन्
मांसभक्को वृकादिवि चिनोतु । भक्षयवित्यथेः ॥ =
। इत्यष्टमस्य चतुथे पंचमो वगः ॥
अपथ षष्टी ॥
तवेदस्ति्ट॑तमप्र उतत वा चरतं ।
॥,)॥ ॥ शिवि, ॥
पथिभिः पततं तमस्ता विध्य शवा शिशानः ॥६॥
। जातऽवेदः! तिर्ध॑तं। अग्रे! उत । वा । चरतं ।
॥ 1 2५४ ४) # # र
ऽभिः। पतततं । तं । अस्त । विध्य। शवे । शिशानः ॥६॥
प्रजामरे त्वं यच पृथिव्यां तिष्ठतसुतापि च चरतं यद्वारि
गच्छतं यातुधानमिदानीं संप्रति पश्यसि तं यातुधा-
सप्ता तं शिशनः शगंस्तीद्णीकुवैन् शवा रए विध्य ॥
२२० ॥ऋण्वेद्ः॥ [ऋ०४.अ०४, व०६,
वालेनानादालभमानाद्यातुधानादारसाहष्टिभिरा
भिरात्मीयेरायुधविरेषेः स्य-
शुहि । पारय । रछेत्यथेः । विच पूर्वो मुख्यस्वं शोशुचानः प्रज्वलन् नि जहि
मां ह॑तुमुचुक्तं यातुधानं मारय । विच तं यातुधानमामाटोऽपक्षस्य मांसस्य भष्-
काः चविका: शब्दटकारिण्यः । दषु शब्दे । यद्वा चिका नाम पक्षिविशेषाः
नीगेव्योऽदंतु । भक्षयंतु ॥ ।
2 (1 ॥ अथा्टमी ॥ = ४
| इहम्र ब्रहि यतमःसोच्प्रेयो यातुधानो य इदं कृणोति ।
| तमा र॑भस्व समिधां यविष्ठ नृचस् सपे रंधयेनं ॥४॥
॥ इह । प्र । ब्रूहि । यतमः। सः! खप्रे। यः यातुऽधानंः। यः। इद् । कुणोतिं।
विके णि # त १ ऋक [ क्व
क तं। आ। रभस्व । संऽइधां। यविष्ठ, नुऽचक्षसः। चक्षे । रधय । एनं ॥४॥
कौ चके कके सपर चे क्रे
0 हे यविष्ठ युवतमाग्रे यो यातुधानो रशूसोऽस्मद्यसविश्नकारी यश्चान्योऽपि न
1 पिशाचादिरिदं यज्ञदूषणादि करोति स यतमः। तमववधारणां । इहास्मिंसतवहि-
षययागक्मंणि वतेमानाय मह्यं प्र ब्रूहि । तं पापकारिणं समिधा स्वकीयेन
तेजसा सस्व । हंतुं प्रारभस्व । तत रुनं पापिष्ठं नृचक्षसो नृणां द्ष्टुस्तव चक्षुषे
तिजसे रधय । वशं नय । तेजसा संदहेत्यथैः ॥
1 ॥ अथ नवमी ॥
= तीष्णेनम्नि च्ुषा रघ यज्ञं मांचं वसुभ्यः प्र ण॑य प्रचेतः ।
हिस रणँस्यमि णोपुचानं मा त्वा दभन्यातुधाना नृचुः ॥९॥
} +; ;
` तीष छतन। चशुंषा। रष यज्ञं मां च॑। वतुंऽभ्यः। मर नय। प्रचेत इतिं प्रऽ चेततः
५ हिसं। छंसि। ख श्रोणं त्वा। ट्भन्। यातुऽधानाः, नुऽ चः ॥९।
तेजसा यज्ञमस्मदीयं यागं र् । पालय। `
वसुभ्यो वसूनामयोय प्र शय।
॥अष्नोऽषटकः॥ == रे |
॥)
पश्य । विषु । तस्य॑ । चीणिं । प्रतिं । गृणीहि । अयां । ५५५
हर॑सा । मृणीहि । बेधा । मूर्तं । यातुऽधानंस्य । वृश्च ॥१०॥ `
नि ="
7 नृणा दृटा तवं विषु मनुथेषु हिंसक््वेन वतमानं रक्षो रा
शकय । छवत्टोक्य च तस्य रघसस्तीण्यमामाणि शिरांसि
त्यथः । ततस्तस्य रक्षसः पृष्टीः पाश्वेस्यानाशसानपि हरसा
। मारय । एवं वेधा यातुधानस्य तस्य राक्षसस्य मूले
॥ इत्यष्टमस्य चतुर्थे षष्ठो वैः ॥
॥ अथेकाटशी ॥ ` 0
प्रसितिं त एलृतं यो अग्रे अनृतेन हंति ।
मज्ञातवेद्ः समसमेनं गृणते नि वृङ्धि ॥११॥ = ।
ऽधानः प्रऽसिंतिं । ते । एतु । ऋतं । यः । अग्रे । अनुतिन । हंतिं । |
अर्चिषां । स्मयन् । जातऽवेदः संऽअष्ं । एनं । गृणते । नि । वृङः ॥११॥ ` |
जातग्रज्ञम्ने ते त्वदीयं प्रसिति ज्वात्कराप्रवंधनं यातुधानो रा्स-
गच्छतु । चिवेदं यत्तत्सु बद्धं भवति हि। किंच यातुधानो राकस `
व्येन हंति । हिनस्ति । तं यातुधानमचिषा स्वकीयेन तेजसा
च निष्पेषणकमो । एनं यातुधानं गृणते
ङि । निगृह्य वजेय वृकेण ॥ `
॥ अथ हादशी ॥ `
२२२ ` ॥ ऋग्वेदः ॥ ` [अ०४, अ०४, वं०9.
ससं पश्यसि । किंच सत्यं धूवैतमसप्येन हिसंतमचितमललानं देव्येन दिविभवेन
ज्योतिषा तेजसाथरववग्योष । नितरां दह । टध्यङ्यवो र्सां हिति प्रागुक्तं ॥
त ५ ^
| ` ` ॥ अथ चयोटशी ॥
द्य मिथुना शपातो यद्वाचस्तृष्टं जनयत रेभाः
मन्योमेन॑सः शरव्या $जार्यते या तयां विध्य हृद॑ये यातुधानान् ॥१३
. यत्। अगरे। अद्य । मिधुना। शपतः । यत्। वाचः । तृष्टं । जन्येत । रेभाः ।
मन्योः। मन॑सः। शरव्यां । जार्यते। या । तयां । विध्य । हदये । यातुऽधार्नान्॥१३
रैः
क
हे अग्रे यद्यदाद्यास्मिन्नहनि मिथुना स्तीपुंसो शपातः परस्परमाक्रोशतः ।
यद्यदा रेभाः स्तोतारो वाचः संवंधि तृष्टं कटुकं परस्पराक्रीशत्ठक्षणमधरं वा जन-
यंत । परस्यरमाक्रोश्तीत्यथेः । तदा मन्योदीत्रिस्य क्रुडस्य वा तव । तथा च या-
| स्कः । मन्युमेन्येदीत्रिकमेणः क्रोधकमेणो वधकमेणो वेत्ति । मनसः सकाशा
५ शरव्येषुजायते तया शरव्यया यातुधानानाक्षसान्हटये विध्य । ताडय । मारयेत्यथेः॥
॥
|,
1 ॥ अथ चतुदेशी ॥ ^
परा भ्वृणीहि तप॑सा यातुधानान्परम्रे रो हरसा मृणीहि ।
परार्चिषा मूरदेवाजञ्छूणीहि परांसुतृपो अभि शोभुंचानः ॥१४॥
णीहि । तप॑सा । यातुऽधानांन्। परा । अग्ने । रः । हर॑सा । णुणीहि।
॥ [र्न के , कषमि #
मरूरऽदेवान्। भृणीहि। परां। अमुऽतृप॑ः। खभि। शोभुं चानः ॥१४॥
स्तपसा तापेन परा गृणीहि । मारय । किंच रो हरसा .
किंच मूरदेवान्मारव्यापारावाक्षसानचिषा स्वकी- `
चासुतृपो मनुथाणामसुभिलृप्रा ये तानपि
॥ ° 1
\ ह
9, 1
म् १ ©. दप 9, सू (१ ५ | | २२ 3 | ॥
अद्यास्मिन्रहनि देवा अग्निपुरोगाः सरवे देवा वृजिनं प्राणिनां प्रारेवैजितारं `
यातुधान पर भृरतु । अथनमार्यात्तं रार्सं तृष्टाः कटुका सस्माभिर्क्ताः शप- ।
थाः प्रत्यग्यतु । किंच । वाचास्तेनमनृत्तवचनमेनं यातुधानं शरवः शरा ममन् `
ममण्यु्छतु । गच्छतु । विश्वस्य व्याप्तस्याभनेः प्रसितिं जालं । तथा च यास्कः ५
प्रसितिः प्रसयनाच्तुवो जाले वेति । जाले यातुधानो राक्षस एतु । गच्छतु ॥ ` 1
॥ इत्यष्टमस्य चतुर्थे सप्रमो वैः ॥ =
॥ खथ षोडशी ॥ छा
यः पौरषेयेण क्रविषां सम॑क्ते यो अण्न पभुनां यातुधान॑ः। ` ४
| े हरसापि वृश्च ॥१६॥
क्रविषा । संऽखंक्ते। यः। अरष्येन । पमुनां । यातुऽ्धानंः।
:। ख्यायः । भर॑ति सीरं । अनरे । तेषाँ । शीषीणिं । हरसा । अपिं । वृश्च ॥१६॥ = `
तुधानो रासः पौरूषेयेण पुरुषसं बधिना विषा मांसेन समक्त `
। यश्चाण्येनाश्वसमूहेन । तदीयेन मांसेनेत्यर्थः। सात्मानं संग-
। यो वा यातुधानोऽन्येन पणुनात्मानं संगमयति । यो वा याहुधा- `
ऽध्याया गोः छषीरं भरति हरति । हे खप्रे लं तेषां सर्वेषामपि राघसानां `
शिरांसि हरसा चदीयेन तेजसा वृश्च । हिंद्धि॥
उव सारथी ॥ ~
णं पय॑ उच्चियायास्तस्य माशीद्यातुधानो नृचछः। ` व
॥
२२४ ` ~: ~ वा ऋेहःः॥ - ख०४. अ०, व ०४,
तिगतं राक्षसं ममन् ममैशि प्राण्वियोगस्यानेऽ चिषा स्वकीयेन तेजसा विध्य
ताडय 1 मारयेत्यथेः ॥
॑ ५ ` ॥ अधा्टादशी ॥ क,
। विषं गवाँ यातुधानाः पिवं्ा वुंच्यंतामर्दितयेदुरवाः। `
॥ १ ऋते ॥ ४
[र † वि । |
¦ संवित्त द॑दातु परं भागमोषधीनां जयतां ॥१६॥
#
विषं । गर्वा । यातुऽधानांः । पिवतु । आ । वुच्यंततां । अदितये । टुःऽएवाः |
, . परां) एनान् । देवः। सविता । ददातु । परा । भागं । ओष॑धीनां । जय॑तां ॥ १४॥ ५
हे अग्रे यातुधाना राक्षसा गवां पनूनां गृहे स्थितं विषं पिबतु । किंचादि-
त्येऽदित्यथै टुरेवा दुस्तरा यातुधाना खा वृच्यंतां । चदीयेरायुधेरच्छिदय॑तां । किंच
सविता देव एनानारसान्पया ददातु । सिंहेभ्यः प्रयच्छतु । अपि च। तेऽमी रसा
छ ओषधीनां स्वभूतं भागं भजनीयमन्रं परा जयतां । लभंतामित्यथेः ॥ ह
८ क ॥ आथेकोनविंशी ॥ म
सन्द॑प्रे मृणसि यातुधानान ला रक्षांसि पृत॑नासु जिग्युः । 1.4
#
#
अनुं टह सहमरान्कव्यादो मा ते हेत्या सुत रे्व्यायाः -॥१९॥ क
सनात्। अग्रे मृणसि । यातुऽधानांन्। न । त्वा । रासि । पृत॑नासु । जिग्युः !
॥ ति | रि र्थं ॥
5 + 9 ^ १
अनु । ट्ह। सहऽमूरान् । ऋ्यऽअद॑ः। मा । ते। हेत्याः। मुखत । दर्यायाः॥१९॥ `
लं सनाच्िरदेवारभ्य यातुधानानाक्षसान्मृणसि ! बाधसे तथापि ला
मेषु रछांसि रर्सा न जिग्युः । नाजयन् । किंच । स त्मधु-
ए 3
नोऽस्मानधराहधिणएतः। उक्चरादिदिक्समभिव्याहारादधरश्ब्धोऽच `
ति विज्ञायते । उदक्ताटु्रतश्च रघ । पाहि । उतापि च। हे छ्र ५
मतः पुरस्तात्पूवेतश्च नोऽस्माचक्ष । चतसृषु दिष्ववस्थितेभ्यो रास्- ।
त्यथेः। विच । ते तव संबंधिनस्ते पिष्टा अतिश्येन तयमान
ॐ `
: शेगुचततो ज्लेतः संतो रश्मयोऽघशंसं पापशंसकवं राक्षसं |
कुवेतु ॥ ए
॥ इत्यष्टमस्य चतुर्थऽटमो वैः ॥ ` ए
॥ पथेकविंशी ॥ | 7 । ३
काव्यैन परि पाहि राजन्! |
प मता अमत्येख्वं न॑ः ॥२१॥ =: ष
। अधरात् उद॑क्तात्। कविः । कारयन । परि । पाहि । राजन् । ध
अजरः । जरिम्णे । अप्र । मततन्। अम॑त्यैः। तं । नः ॥२१॥ =
[ “
1
क्तादुत्तरतश्वास्मान्परि पाहि। परितो रछ्।किंच। `
ग्रेऽजरो जरारहितस्वं मां सखायं जरिम्णे जरये कुर । त्वत्र
वामीत्यथेः । एतदेव दशेयति । हे अग्रेऽमर्तयो मरणधमेरहितस्वं `
वत्तो नो ऽस्माञ्नरिम्णे जराय कुर्वंति शेषः ॥
अथ शावती. 1
वयं विप्रं सहस्य धीमहि ।
हतार भंगुरावं
ुराव॑तां ॥२२॥
२२६ | ` [अ०४, अ०४, व०९.
` ` विषेश भंगुराव॑ः मति रवसे दह। = `
४ अमरं तिग्मेन शोचिषा तपुरमाभिकरिभिः॥२३॥ ५
, ` विषें। भगुरऽव॑तः। परति । स । रक्षसैः । दह । न 7.
`... " ते तिग्मेन । शोचिषा । तपुःऽअयाभिः। ऋषटिऽभिः॥२३॥ ` त
हे अग्रे तवं भगुरावतो भंजनकमयुक्तानक्षसो रा्सान्विषेण व्यापन तिग्मेन
तीष्ेन शोचिषा तेजसा प्रति दह । भस्मीकुरु । तथा तपुरयाभिस्तपनशीला- `
माभिक्छैटिभिः। ऋष्टय आ्ायुधविशेषाः। ताभिरपि प्रति दह ॥
| ॥ खथ चतुविंशी ॥ ` | | |
प्रतयगरे मिथुना द॑ह यातुधानं किमीदिनां। ` `
सं लं शिशामि जागृद्यदन्धं विप्र मन्म॑भिः ॥ २४॥ ४ ॥
` श्रति। अग्रे । मिथुना । टह । यातु ऽधानां । किमीदिनां। |
ध क सं। ला । शिशामि । जागृहि । अर्न्धं । विप्र । मन्म॑ऽभिः ॥२४॥
हे ग्रे वं मिथुना मिथुनभूतानि किमीदिना किमिदानीमिति ये चरंतित्ते `
किमीदिनः। तान् । तथा च यास्कः॥ किमीदिने किमिदानीमिति चरते किमिदं `
किमिदमिति वा । नि०६.११.। इति ॥ यातुधाना यातुधानानाक्षसान्म्रति दह ।
किंच। हे विम्र मेधाविन्नम्रेऽदव्धं केनायरहिंसितं त्वा लां मन्मभिः स्तुतिभिरहं सं |
क.
शिशामि, स्लौमीत्यथैः। अतसं जागृहि । निद्रां मा कुरू । बुध्यस्मेत्यः ॥
यातुधानस्य राक्षसस्य हरो हरणणशीले बलं प्रति गृणीहि।
राशसस्य वीये च वि सज । भजय ॥
इत्य्टमस्य चतुर्थं नवमो वैः
५
कोनवि्त्युचं सूक्तं चतुथे चेष्टभं । मूधन्वानृषिः। स चांगिरसो
वेश्वानरुणकोऽग्रिश्च समुदितो देवता । तथा चानुक्रातं ।
मृधेन्वान्वामदेव्यो वा सोयेवेश्वानरीयमिति ॥ व्यूढस्य दशरा-
ग्रिसारूत एतदेश्वानरीयनिविदधानं । सूचितं च ! हविष्यांत-
तिः स राजा । सा०४.४.। इति ॥ ५
॥ तच प्रथमा ॥
विदि दिषिस्पृ्याहुतं जुष्टम । 1
भुव॑नाय देवा धमैरे कं स्वधयां पप्रथंत ॥१॥
जरं । स्वःऽ विदि । दिषिःऽस्पृभिं । आ ऽहूतं । जुष्टं । अमरौ
पुवेनाय ! देवाः । धमेणे । कं । स्वधया । पप्रथ ॥१॥ `
मात्मकमजरं जरारहितं जुष्टं देवानां प्रियं यद्विः स्वविदि
दिवि स्प्र्टयेग्रावाहूतममिहूतं तस्य सोमात्मकस्य
भरणाय भुवनाय भावनाय च धमेणे धारणाय च कं सस्य सुख-
देवाः स्वधयान्नेन पप्रथंत । प्रथयति । तथा च यास्कः । हवियेत्मा-
दिविस्पृश्यभिहुतं जुष्टमम्रो तस्य भरणाय च भावनाय च
¦ कमेभ्यो देवा इममग्रिमब्रेनापप्रथंत। नि ०७.२५. इति ॥
ह। | न | पण ह, पर ४ न वर ५8,
णि देवा इद्रायः पृथिवी भूमिश्च द्यौश्चापोऽतरिष्षं चोदकानि वौ- ।
षधीरोषध्यश्चारणयन् । अरमंत । प्रीतिं कृतवत इत्यथैः ॥ न:
॥ सथ तृतीया ॥ ॥४ ~
. ` देवेभिन्विषितो यषयिभिरमिं स्तोषाण्यजरं वृहतं । `: ४
# यो भानुना पृथिवी दयामुतेमामाततान रोदसी अंतरं ॥३॥ <
देवेभिः नु। इषित्तः। यलियैभिः। अरिं । सोषाणि। अजरं । वृहतं
यः। भानुना । पृथिवीं । चां । उत। इमां । आऽततानं । रोदसी इतिं । अंतरं ॥३॥ ।
ध यक्ञियेभियजञहिदेवेभिर्दवेरिद्रादिभिनुं सिप्रमिषितोऽहमजरं जरारहितं बृहंतं
महांतमस्निं तं वेश्वानराग्िं स्तोषाणि। स्वोषामि। यो वेश्वानराब्निभीानुना तेजसा
पृथिवीं भूमिमुतापि चेमां द्यां दिवं चात्ततानातनोति । तदेव दशयति । रोदसी
| द्यावापृथिव्यौ चाततानातनोति । विस्तारयतीत्य्थः ॥ 4 ।
19. र. ६९
५ | ॥ अण चतुथी ॥
यो होतासीत्मथमो देवजुष्टो यं समांजन्बाज्यैना वृणाना: । हि
स प॑तचीत्वर स्था जगद्यच्छराचमप्रिरंकृणोन्नातवेदाः ॥४॥* =
होता । आसीत् । प्रथमः । देव ऽजु्टः। यं । संऽञआांज॑न्। आज्येन । वणानाः। `
सः। पतचि। इत्वर। स्थाः। ज्गत्। यत्। खाच । अम्निः। अकृणोत्। जातऽ वेदाः ॥४॥
देवैः सेवितः प्रथमो सुख्यो होतासीदभूत् । यं च
वृणाना आज्येन समांजन् समंजति जातवेदा जातप्रजञो
#
| म, ध | ८ अ | ।
: । उक्थं: । सः । य्षियः । अभवः
तप्रज्ञाग्रे यद्यस्वं भुवनस्य चैत्धोक्यस्य मू्ेन् मूनि रोचनेना-
स्थतवानसि तं वेश्वानयाग्निं चा त्वां मतिभिरचैनीयाभिर्गीभि
। प्रपद्यामहे । हि गत्ताविति धातुः । स वेश्वानरल्वं
दावापृथिव्योः पूरयिता यक्तियो यज्ञाहेश्वाभवः। भवसि ॥ `
॥ इत्यष्टमस्य चतुथे द्श्मो वगैः ॥
॥ अथय व्ी॥ +.
भ॑वति नर्तमम्निस्ततः सूर्यौ जायते प्रातर्ढयन् । |
। नक्तं । अभ्निः। तत॑ः । सूर्यः । जायते । प्रातः । उत्ऽयन्।
य्ि्यानां | एतां | पपं १। यत्| तशि | चर॑ति | प्रजानन् ् ॥६ ॥
तदधीनत्वात् । ततो राचेरनंतरं प्रातरुद्यन् सूर्यो
एव वेश्वानरोऽग्निः सूरयो भवतीत्यथेः । विच । यज्ञियानां
देवानां गां मन्यते कवय इति शेषः यत््रजानन्
: सन्नपोऽ तरिं कमं वा चरत्ति। तथा च यास्कः
मूधा यः सर्वेषां भूतानां भवति नक्तमभ्रिस्लतः
४,
श्व
(न
शंनीयः समिधः सम्यग
[ख०४. ख०४. ०११.
| | सै ध
“ श्र ५ /
रोऽग्रिमेहिना महेन हरन्यः सवं
निचचस्थानो विभावा दीभिमंशच सनरोचत दीप्यते तस्जिनष्ानरेऽयनौ
1
श र ५ ६ ॥ # 1
॥
तनूपाः शरीराणां रक्षका विश्वे सर्वे देवाः सूक्तवकिनेदं द्यावापृथिवी इत्यादिवाक्येन
स्लोचाणं वचनेन वा. हविराजहवुः । आभिमुख्येन जुहुवुः ॥ ` `
~; ॥ -अधाटसीः॥ 9
सूक्तवाकं प्र॑थममादिद्प्मिमादिडविरजनयंतदेवाः। |
| सश्षां यज्ञो अभवत्तनूपास्वं चोरवद् तं पुंयिवी तमापः ॥४॥
सूक्तऽवाकं। प्रथमं। आात्। इत्। अभ्रं । आत्। इत्। हविः । अजनयत । देवाः
सः। एषां। यज्ञः! अभवत्। तनूऽ पाः। तं । चः । वेद्। तं । पुथिवी । तं । आपः ॥४॥
\ ० प्रथमं पूवे सूक्तवाकभिदट् द्यावापृथिवी इत्यादि वाक्यं मनसा निरूपयति ,
। आदिदनतरमेवाम्मं मथनेनोत्पाद्यंति । आादिदनंततरमेव देवा हविरजनयंत । स
ध वेश्वानरोऽग्रिरेषां देवानां यज्ञो य्टव्योऽभवत् । भवति । स तनूपाः शरीराणां
| , रक्षिता च भवति । तमम द्युलोको वेद। जानाति । तमसि पृथिवी भूमिरपि 4
जानाति । तमभ्रिमापौऽतरिक्षं च जानाति ॥
र ॥ अथ नवमी ॥ ` त
देवासोऽज॑नयंताम्नं यस्सिननाजहवुभु वनानि विश्वं । "+
अचिषा पृथिवीं
क;
च्यामुतेमामंजूयमांनो अतपन्महित्वा ॥९॥ ध
। यस्मिन्। आ । अजुहवुः! भुवनानि । विश्वां
। इमां । ऋजु ऽयमांनः। अतपत्। महिऽचा॥९॥ =`
८)
/** . ॥
भककमेन , पिकः पादे ॥
एभिसुस्मेन
भूतान्याजुहवु
१
4
मि
हर
टमी ॥ ॑ | # ।
दवा भिमनीननब्डिमी रोदसि |: =
# स स्ओषधीः पचति विश्वरूपाः ॥१०॥ = ` ि
देवास॑ः। अमन । अजीजनन्। शर्तिऽभिः। रोद्सिऽग्रं ।
खन्। चेधा। शुवे । कं। सः। ओष॑धीः पचति । विश्वऽरूपाः॥१०॥
भ | 1 1, । <
न +
भः कमेभी रोदसिप्रं द्यावापृथिव्योरापूरयितारमम्रिं सूया-
स्तोमेन हि स्तुत्या सस्वजीजनन्। उत्पादित वं्तः। अपि च । (
ममन यज्ञे चेधा भुवे चेधा भावायाकृणन् । कु्ैति। स
रूपाः सवंरूपा ्रोषधीत्रीहाद्यास्तेन तेनोपकारेण पचति ॥ अच (त
वाय पृथिव्यामंतरि्े दिवीति शाकपूणिः । यदस्य दि
न तृतीयं तदसावाद्त्य इति हि बाद्यणं ।नि०ऽ.ख.। इति ॥ ` ` ्
म, ॥ इत्यष्टमस्य चतुथं एकादशो व्ैः॥ ` क
मेन हि यं दिवि देवासोऽभ्रिमजनयज्छक्तिभिः कमेभिद्यवापृथिवयोः ८
वेस्वेधा ह
हि| [1
५
। अदधुः । यक्ञियांसः। दिवि। देवाः । सू । आदितेयं। ।
मिथुनो । अभूतां । आआत्। इत् । प्र! अपश्यन् । भुव॑नानि ।
+
¢ £ ¢ ष
५ ॥ ।
+ न
{ <. ५ ४
क हयं दादवी ष. -
(1) विश्वस्मा अगिं भुर्वनाय देवा वेंश्वानरं केतुमहामकृरन् ¦
ध, आ यस्ततानोषसो विभातीरपो ऊर्णोति तमो अर्चिषा यन् ॥१२॥ `
। विष्॑स्मे। अमि । भुव॑नाय । देवाः। वैचवानरं। कतुं । अहाँ । अकृखन्। `
१. ओआ।यः। ततान॑। उषसंः।विऽभात्तीः। अपो इति।ऊर्णोति। तम॑ः । अ वचिष। यन्॥१२॥
॥ 1 वे केकि #
। म्रज्ञापकमकृखन्। खकुवेन्। यो वेश्वानरोऽम्िरुषसो विभातीविविधं दीणमान।
^ आ ततान विस्तारयति। किच। सोऽयं यन् गच्छन् तमोऽधकारम्चिषा तेजसापो
ऊणोति। अपगमयति॥ ४;
॥ अथ चयोदशी ॥ `
` वश्वानर कवयो यज्ञियासोऽग्रिं देवा अ्ंजनयन्रजुथे। ;
| न॑ मरलममिनच्वरिष्णु यकषस्याध्य॑ं तविषं वृहतं ॥१३॥
| वश्वानर कवयः, यञ्ञियांसः। अभि । देवाः। अजनयन् । अज्ुथै।
र: नक्ष्चं । प्रतनं । अमिनत् । चरिष्णु । यस्य । | पर्धिऽदखषं । तविषं । बृहत ॥१३॥
कवयो मेधाविनो यज्ञियासो यज्ञाहा यज्ञसंपादिनो वा देवा अजु जरा तै
` वजितमरहिस्यं वा वेश्वानरं विष्ठनरहितं सू योत्मकमप्रिमजनयन्। उत्मादितवंतः
देवेस्त्मादितौ ऽभ्रिनं्चं कृतिङादि प्रतनं पुराणं चरिष्णु चरणशीतटरं यस्य ।
पूजाः । प्रयक्षमित्यादो दशनात् । ऋग्वे०२.५.१. यस्य पूज्यस्य देव-
(४ 4 ९ | ` ॥ऋग्वेद्ः॥ ` [अ०४. ०४, ०१२.
| ` देवाइद्रादयो विश्वसमे भुवनाय वैश्वानरं विश्वनरदितमग्रिमहां दिवसानां केत
स्वामिनं वा तविषं वृदं वृहतं महांतममिनत्। हिंसित्तवान् । `
२३३ प
व्यो परिबभूव परि-
वेश्वानरोऽम्निमेहिना महचेनोवी ्यावारप
|, अयमवस्तादधस्तात्तपति । उतापि चायं सूयोत्सको देवः पर- ति
| ॥ ध पचटशी ॥ =
महं देवानामुत सत्यानां । +
नत्समेति यर्देतरा पितरं मातरं च ॥१५॥ ` 1.
1 णवं । पितृणां । सहं । देवाना । उत । मल्योनां ।
विश्व । एजंत्। सं । एति। यत्। संतर ! पितरं । मातर । च ॥१५॥
चोतापि मन्यानां मनुथाणां च इेसुतीद्ोमागोंदेवया-
वं । अखश्वोषं । यदश्वं पितरं पालकवेन पितृभूतां द्यां ॥
मातृभूतां पृथिवीं चांतण द्यावापृथिवीमध्ये भवति तदिद् `
सदेजदेवत्मोकं पितृलोकं च गच्छत् ताभ्यां देवयानपि- `
। मागेोन्यां ` समेति । गद्छति । तो च मार्गो भगवता दशितो |
मुङ्कः षण्मासा उ्तरायणं। = "न
गछति बदह्य ब्रह्मविदो जनाः॥ ८
9 कृष्णः षण्मासा दशिणायनं । $ ।
[|| । यात्यनावृत्तिमन्यया वतेते पुनः ॥ 1
१ सृत्ती पाथे जानन्योगी सुद्यति क्श्चनेति ॥ = `
ादश्णे नन 44 1 ५
२३४ = ॥ऋण्वेदः॥ [अ०४, अ०४. व०१३.
| ` समीची संगते इ द्यावापृथिव्यो चरतं गच्छ॑तं शीषेतः शिरसो जातसमुत्पन्
व
तथा च निगमांतरं । उत्त मन्येऽहमेनमनयोरि भशिरस्तोऽयं प्रात्तजोयत इति ।
` यद्वा सवेशिगोभूतादादित्याज्जातमित्यथैः। मनसा । मन्यतिरचतिकमी । अ्च॑नी
स्तुत्या विमृष्टं शोधितं संस्कृतम विभूतः। धारयतः। सोऽ म्रयुच्छन्रप्रमाद्न् तर-
रिः धिप्रकारी भजमानो दीणमानोऽम्िरविश्वानि भुवनानि परतयङ्भिमुख
| १ {1 ॑ 17 । ट मन्यते [: 4
स्थो । तिष्ठति । तथा च शरूयते । तस्मात्सवे एव मन्यते मां प्त्युटगादिति ॥
4 अय स्दणीः?
यत्रा वदति स्व॑रः परश्च यजन्योः कतरो नो वि वेंद्।
¢
आ शकुरित्सधमाद्ं सखायो नंत यज्ञं क इदं वि वोचत् ॥१७॥
कजे #
यच । वतते इतिं । अव॑रः । परः । च । यज्ञऽन्योः । कतरः । नो । वि वेद्।
मको भि
आ। शेकुः। इत्। सधऽमा्द् । सलांयः। नुत। यज्ञ । कः। इद् । वि । वोचत्॥१७॥
यत्र यस्मिन्काले ऽवरः पाथिवोऽम्रिदषयो होता परुश मध्यमो वायुश्चोभो वदेते
विवादं कुवत यज्ञ्यो्ज्ञस्य नोना वावयोमेध्ये करो भूयिष्ठं यज्ञ वि वेट्
वेत्ति तत्र ससायः समानख्याना ऋविजः सधमादं यज्ञमा शेकुः । कतु शङ्कु वंति ।
तथा यज्ञं नक्ुता्रुवतेऽनुतिष्ठंति च ये तेषां विदुषां यज्ञमश्रुवानानां
४५१
ध्ये
विद्वाननुष्टाता वेदमस्य विवादस्य निणयरूपं वाक्यं वि बोचत्। बवीति। माध्य-
मिकमिमसम्नं वीति ॥ तथा च यास्कः। यच विवदेते देव्यौ होतारावयं चागि-
ससौ च मध्यमः कतरो नौ यज्ञे भूयो वेदे्याङकवंति तत्सहमदनं समानल्याना
` ऋविजस्तेषां यज्ञं समश्ुवानानां को न इदं विवश्य॒ति । नि०७.३०.। इति ।
पृच्छामि वः कवयो विद्मने वं ॥१
०१०.अ०७. सू०४९.] = ॥ अषटमोऽष्टकः॥ = ५ 9
‡ | आपश्च कति । उ | र्ति पूरणः | स्विच्डन्दो इच विचारणां ९] हे |
। उपस्यिजमिति स्यधायुक्तं वचनमुच्यते । पूर्वोक्तं ` -
म विंतद्यहमजानन् हे कवयो मेधाविनो युष्माचिद्मने वि- 1
| पयालोचनङ्केशमंतरेण पृच्छामि । अचोचराणि वाल- 9
शितानि। एक एवाम्निबेहुधा समि एकः सूयो विश्वमनु प्रमूलः। |
भाव्येवं वा इदं वि बभूव स्वै । ४,५४.२. इति ॥
॥ थेकोनविंशी ॥ |
माच । उषसः । न । प्रतीकं । सुऽपर्यैः । वसंते । मातरिश्वः ।
। उप॑ । यज्ञं । आऽयन्। ब्राह्मणः। होतुः । अव॑रः। निऽसीद॑न् ॥१९॥ `
प्रश्रस्तस्य निणेयमनया वदंति । हे मातरिश्षो
` मातयतरिष्े सन् माध्यमिक वायो यावन्मात्रं यावदेव सुपण्यः सुपतना राय `
उषसः प्रतीकं मुखं प्रकाशाख्यं ट्शेनं वा । नेति पूरणः । वसतत अच्छादयंति ` `
होतावरो निकृष्टो होतुरस्यारवेश्वानरस्य देव्यस्य होतुनिषीदन्
५
0 ध विशन् यज्ञमायन् उपगच्छन् उप दधाति । होतृकमे स्ववुद्धीो
त्ये | यानन्माभसुषसः प्रत्यक्तं भवति प्रतिटशेनसिति ४० ॥ र
नस्य संप्र प्रयोग इहेव निधेहीति यथा सुपणयैः सुपतना एता
वस्ते मातरिश्वज्योतिवैशेस्य तावदुपदधाति यज्ञमागच्छन्तराद्मणो होत्ता- = `
र होतृजपस्वनमनर्वेश्वानरीयो भवति। नि०ञ.३१। इति॥ `
र
इत्यष्टमस्य चतुथे चयोदशे वर्गः ॥
२३& = ॥@्वेदः॥ [अण्५.खषण्डवन््ट.
॥ इद्र । स्तव । नृऽत॑मं । यस्य॑ । महा । विऽववाधे। रोचना । वि । ज्मः। संतान्। |
कि । [प शरे | 1
आ। यः। प्रो । चषैणिऽधृत्। वर॑ःऽभिः।प्र।
॥ १ केकि. - कके
ऽभ्यः। रिरिचानः। महिऽत्वा ॥१॥ |
` हे स्तौतस्वं नृतमं नेतृतममिंटू स्तव । स्तुहि । यस्येदरस्य महा महच्चं । विभ- ॥
क्रि्यत्ययः । रोचना परेषां तेजांसि विबबाधे विबाधते । अभिभवतीत्यथैः। वि 6
4 यश्वट्शचषेणीधृन्मनुथाणां धत सिंधुभ्यः
` ज्मः पृथिव्याशांतान्पयेतानभिभवति'
| ससूदरेभ्योऽपि महित्वा महच्चेन प्र रिरिचानः प्रवधैमानश्च सन् वरौभिस्तमसां
वरङ्स्तेजोभिरा पप्रौ द्यावापृथिव्यावापूरयति ॥
॥ अथ डितीया ॥ ॥
- स सूयः पयुरू वरास्येदरौ ववृत्याद््यैवचक्रा। ` (
{ अति्ठतमपस्यपन सगे कृष्णा तर्मासि विषां जघान ॥२॥ `
सः। सूयः । परि । उर। वरसि । आ । इंदुः । ववृत्यात् रथ्यां ऽइव । चक्रा न
अतिष्ठं । अपस्य । न । सगं । कृष्णा । तमांसि । लिया । जघान ॥२॥
# दषे ग्र ध प
सूयः सुवीयेः स प्रसिद्ध इद् उर् बहूनि वरांसि तेजांसि पयो ववृत्यात्। पया-
वतेयति। तच हषटांतः। रथ्येव यथा सारथी रथसंवंधीनि चक्रा चक्रार्यावतैयति `
` तद्वदित्यथेः। किंच सोऽयमतिष्॑तं शीग्रं ग्छंतमपस्यं न क्मण्यमिव सरी । सज्य ˆ `
इति सर्गोऽश्वः। कृष्णानि तमांसि विषया दीघ्या जघान । हंति ॥ ` 4.
॥ खथ तृतीया ॥
इद्श्चिकाय न स्खायमीषे ॥३॥ :
दमया । दिवः। अस॑मं । द्य । न
शः
द केत ककत त पवि तोल पमु दतत पयोदः न
॥ ॥
{८
1
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मन १९७.
०७. सू०४९.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥ 29,“ -“ `: `
॥ अथ चतुर्थीं ॥ ++ ०
रय गिरो अनिंरशतिसगौ अपः प्रेरयं सग॑रस्य वुध्रात्। ` क ॥
पृथिवीमुत द्यां ॥४॥ ५४ ि
पर । ईरयं । सग॑रस्य । बुध्रात्।
शचीभिः, विष्वक् । तस्तभं । पृथिवीं । उत । दां ॥४।
गा अतनूकुतविसगी उपयुपरि वतेमाना या गिरः स्तुत- ` छः
गरस्य । सगरं समुद्र इत्यंतरिकछषनामसु पाठात् । बुध्रात्प्देशणदप . `
परेरयामि । इटः शचीभिः कमेभिः पृथिवीसुतापि च द्यां दिवं
कषेणेव यथा रथाक्षेण तडदि्रर् स वेतस्त स्तंभ । अस्तभ्नात् ॥ 9
॥ अथ पंचमी ॥ ह प
धुनिः शिमीवाञ्छर्मां चजीषी | =
छ
कि
॥ न नावगि प्रतिमानांनिदेभुः॥५॥ `
मे । शनिः । शिमीऽवान्। शरऽमान्। ऋजीषी!
त्यथः । इदट्रमवोग्र देभुः । दग्योतिरचाक्षेणक्मी। `
या नाङषेयंति ! तछघनि भवंत्तीत्यथेः । सख
॥
त
०
० ८, ०४, व्ं० ११,
।
, न यस्य द्यावापृथिवी न धन्व नांतरिशं नाद्रयः सोमों अछाः
ते
यद॑स्य मन्युरधिनीयमांनः शृणाति वीक सजति
नायस्यद्यावांपृथिवी इति। न। धन्वं। न। अंतर छ्। न। खदयः। सो म॑ः। ससारितिं
` यत्। अस्य। मन्युः ्धिऽनीयमानः। गृणाति । वीक । सजति ।
चव यके क कोते [गै # 1 # 1
द्यावापृथिवी द्यावापृथिव्यौ यस्येदरस्य प्रतिमानभूते न भवतः। न धन्व । उद्-
9 कमपि प्रतिमानभूतं न भवति। नांतरिस्ं। खंतरिकषमपि प्रतिमानभूतं न भवति ।
नाद्रयः । पवेताश्च प्रतिमानभूता न भवंति । तस्येटूस्य सोमोऽसाः । छरा
किंच यद्यदास्येटूस्य मन्युः करोधौोऽधिनीयमानः शच्रृणामुपरि प्राणमाणौो
तदानीमयमिदरौ वीक हदं शुणाति । हिनस्ति । स्थियणि रुजति । भिनति च। ध
| ॥ अथ सघ्रमी ॥ ,
जघानं वृं स्वधितिवेनेव सरोज पुरो अरंदन्न नर
विभेदं गिरि नवमि कुभमा गा इट अकृणुत स्वयुग्भिः ॥७॥ ।
` जधानं। वृच । स्वऽधितिः। वना ऽइव । रुरोज । पुर॑ः । छर दत्। न । सिंध॑न्।
. बिनेद। गिरि। नर्व॑। इत्। न। कुंभं । आ। गाः। इदः । अकृणुत । स्वयुक्ऽभिः॥७॥ `
वृचमसुर जघान । हतवान् खपि च स्वधितिः परम्पवेनेव वनानीव पुरः ।
। सजति । भिनत्ति । शतचुनगरीभिंला च सिंधून्नदीररदत् वृयु- `
ति संप्रत्यये । किंच । गिरि मेषं नवं न नवमिव कुंभं कलशं
वेच: स्वयुग्भिः स्वयं युज्यमानैर्मरु्विगा उदकान्या
२३९.
स्तोतृविषयाणामं
नं शस्तमिव पवे पमुनां पवैणि वृजिना वृजिनानिस्तो-
सि । हंसि । किंच । मिचस्य वरुणस्य मिचावरुणमोधाम्
व निचं येऽज्ञा नृश्ता जनाः प्र मिनंति प्रकर्षेण हिसंति
॥ खय नवमी ॥ | क ि ।
रवाः प्र संगिरः प्र वरुणं मिनंहिं। = `
तुमरं वृषन्वृषांणमरूषं शिशीहि ॥९॥ ` $ 1
च । प्र। अयमण । दुःऽरवाः। प्र। संऽगिरः । प्र। वरणं । मिनंतिं। `
शं
॥
+ | ति |
ध ` नि। अभिषु) वधं । इट् । तुम । वृष॑न् । वृषाणं । अरषं । शिशीहि ॥९॥ = `
दुरेवा दु्टगमना जना भिचं देवं प्र मिनंति प्रहिसंति अयैमणं चदेवंप्रमि- `
गिरः समीचीनस्तुतिमतो मरुतश्च प्रमिनंति वरुणं च देवं प्रमिनंतितेष्र- ` 1
तुषु । तानुदिश्येत्यथेः । हे वृषन् कामानां वषेकेद तं तुमं गमनशील `
वृषाणं कामानां व्ेकमरुवमारोचमानं वधं वजं । वधो वज इति वजनाममु
पाठात् । नि शिशीहि । तीषणीकुर् ॥ ` 04 |
१ ॥ अथ दशमी ॥
द्वि इट इशे पृथिव्या इटं अपामिंट् इत्यवैतानां ।
वृधामिद् इन्मेधिराणमिंटूः छेमे योगे हव्य इद्रः ॥१०॥ =`
दिवः । इदः । ईशे । पृथिव्याः । इद्रः । अपां । इटः । इत्। पवैतानां ।
। योगे । हव्यः । इद्
यस
। मेधिणां । इट्
. २४९. ॥ ऋग्वेदः ॥ ० ४, ०४. व° १६.
॥ अथेकाटश्णी ॥
प्राभ्य इटः प्र वृधो अहभ्यः प्रांतरिंछात्म स॑मुटस्य॑ धासेः ।
1,
क
प्र वात॑स्य प्रथसः प्र ज्मो खंतात्म सिधुभ्यो रिरिचे प्र सितिभ्यंः ॥ ११॥ र
म्र।अक्तुऽन्य॑ः। इद्रः प्र। वृधः। खर्हऽभ्यः। प्र। अंतरिंसात्। प्र। समुद्रस्य । धासेः। ५
: - प्र।वात॑स्य।प्रथ॑सः। प्र ज्मः। छंतात्। प्र। सिंधंऽभ्यः। रिरिचे। प्र। कित्ति ऽभ्य॑ः॥१९
के 8
क 0
| ईदोऽक्तुभ्यो राचिभ्यः प्र वृधः। प्रवृद्धः । अहभ्यो दिवसेभ्योऽपि प्र वृधः।
अधिकः। अंतरिछादपि प्रवृद्धः समुद्रस्यागेधोसेधारकात्स्थानादपि प्रवृद्धः। वा- `
१. तस्य वायोः प्रथसः प्रथिन्नोऽपि प्रवृद्धः! ज्मः पृथिव्या संत्ात्पयेतादपि प्रवृद्धः।
, स्िंधुभ्यो नदीभ्यश्च म्र रिरिचे। अतिरिव्यते। महन्भवतीत्यधैः । धितिभ्यो मनु-
" सेभ्योऽपि प्र रिरिचे॥
ध = ॥ अथ ्ाटभी ॥ 4 |
` मर शोभुचत्या उषसो न केतुरसिन्वा तै वतैतामिंद्र हेतिः। ए
सन्नि किच द्व आ सुनानस्तपिं्ेन हेषसा दरोघमिचान् ॥१२॥ ५ वि
भ्र। शोगुंचत्याः। उषसंः। न । केतुः। असिन्वा । ते। वर्ततां । इद् हेतिः। `
भ्यो # कि । [. १
र र
` अश्मा ऽइव । विध्य। दिवः। आ। सृजानः। तपिष्ठेन हेष॑सा। दो्धऽमिचान्॥१२॥ `
॥
1 | | हे : इट् | ति | तवासिन्वा भेट्नरहितं हेतिवेजाख्यमायुधं शोभुचत्या ज्वत्रत्या ् 1 |
उषसो न यथोषसः केतुः पताक्स्थानीयो रभ्मिस्तदच्छवुषु प्र वतेतां । किंच । (०
` त्पिष्ेनाि
तिशयेन शचरूणां तापयिच्या हेषसा शब्टकारिण्या हेत्या दोधसिचान्
येषां ते दोधसिचाः । ताञ्शचून्विध्य ।
ताडय । तच दष्टाः
1
॥;
॥अथच्योदशी॥
न गाव॑ः पृथिव्या आपृग॑मुया श्यते ॥ १४॥
इद् । चेत्या असत्। अघस्य । यत्। भिनद॑ः। रः। आऽईष॑त्। ` |
शसने। न । गाव॑ः । पृथिव्याः। आऽपृक्। अमुया । र्यते ॥१९॥
रिषुवा चेत्या चेतयितव्या श्चुषु छोप्रव्या करि स्वित् कदा `
यद्यदा हेत्या त्वमधस्य । हितीयार्थे ष्ठी । अहतमेषदयुच्वाथमा- `
भिनदोऽभिनत् । यद्यदा च शच्या भिचक्तुवौ मिचाणं क्रएस्य् कर्मण
॥ संबधिनि शसने विशसनस्थाने गावो न पश्व इवा- ` 9
तोऽसुयानया पृथिव्या संगता युद्धे श्यतेशेखे॥ =
॥ अथ पंचदशी ॥ क
नस्ततस्रे महि ार्धत ओगणास इद् ! श
अक्तवस्ता अभिणुः॥१५॥ `
राध॑ः । ओगणास । इट्
सधे बोडी ॥ -: 78
छ
५1 ॥
पुरूणि हि त्वा सव॑ना जनानां बरह्माणि मंद॑न्गृणता
चे्ये १ कि
` इमामाघोषन््रव॑सा सहति तिरो विश्वौ अचैतो याद्यवीङ्ः ॥१६॥
| पुरूणि) हि) ला सव॑ना । जनानां । बद्याणि । संदन् । गृणतां । ऋषींणं ।
इमां ्राऽघोष॑न्। खव॑सा। सऽहंतिं। तिरः विश्वान्। अचैतः। याहि। अवाङ् ॥१६॥
1 ॥ कि
हे इद् चा लां जनानां संबंधीनि पुरूणि बहूनि सवना सवनानि ब्रह्माणि
स्तो्राणि च मंट्न्। स्तुवंति मोदयंति वा । गृणतां स्तुवतामृषीणामिमां सहति
स्तुतिं चमाधोषन् महती शब्टवती चेयं स्तुतिरिति वदन् अतः स्तुवतीऽन्याविि
श्वान्सवानपि तिरस्िरस्ृत्या वसा र क्षणेन सहा वाङससटभिमुखं याहि । गच्छ ।
9 ए . ॥ अथ सप्रदशी
५ त ‡ ॥ # ॥
। एवा ते वय्िंद्र भुजतीनां विद्याम॑ सुमतीनां नवानां!
॥ 4 ह
# श # क -.
॥ विद्याम् वस्तोरवसा गृणतो विश्ामिंचा उत तं इद् नूनं ॥१७॥
जके भेके शे [न ॥ ॥
4
शएव।ते। वयं। इद् । मुंजतीनां । विद्याम । सुऽमतीनां । नवानां । १
विद्याम वस्तोः अव॑सा, गुणतः । विश्चाभिंचाः। उत । ते । इट् । नृनं ॥१७॥
५ कि ॥ |
। 1 ठ # |
हे इद् ते तवेव भुंजतीनां रछंतीः परिया वयं विश्वामिचयुचा रेणवो विद्याम ।
भेमहि ! उतापि च हे इद्र ते तव नवानां नूतनाः सुमतीनामनुप्रहवृद्ीवै-
क्षणाय गृणतो नूनं ल्वा स्तुवंत एव विश्ामिचा विष्ामिचपुचा
#
संजितं धनानां ॥१४॥
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च षठ सूक्तं । नारायणो नामरधिरत्या बिष्टुप् श्ट अनु-
विलशूणश्चे्तनो यः पुरुषः । वे० सू०१,४.१.। पुरुषान्न पर
उ०३.११,) इत्यादिश्चुतिषु प्रसिद्धः । स देवता ! तथा चानुक्रतं ।
यणः पोरषमानुष्टुभं चिषटुवंतं विति । गतो विनियोगः॥ _ `
॥ तच प्रथमा ॥ ^.
7 पुरुषः सहस्राक्षः सहख्ंपात्। = ` `` ` -
विश्वतो वुत्वात्यतिष्हश्णगु्यं ॥१॥
न
| णीषो। पुरूषः । सहखऽअ्ः। सहसंऽपात्। ` छ
वत॑ः । वृत्वा । अति । अतिष्ठत् दशऽ्छगुलं ॥१॥ =. `
रह्मादेहो विराडाख्यौ यः पुरुषः सोऽयं सहखशीषौ। `
वादनतेः शिरोभियुंक्त उत्यथेः। यानि सवेप्राणिनां शिरांसि `
:पातिवात्तदीयान्येवेति सहस्रशीपरेतं। एवं सहसासित्वं सह- `
हाडगोल वृत्वा परिवेष्टय ज
। द्शगुलठमि-
क
¢
॥ पृग्वेट्ः | ० | छ, | ० ध, वू १.७.
देवत्वस्यायमीशानः स्वामी । यदयस्मात्कारणादन्नेन प्राणिनां नोग्ये-
नान्रेन निमित्तभूतेनातिरोहति स्वकीयां कारणावस्यामतिक्रम्य परिहश्यमानां
प्राप्रोति तस्ात्माणिनां कमेफलभोगाय जगदवस्थास्वी कारानरेदं त
५ (0 अं त्यां +.
। एतावानस्य महिमातो ज्यार्याश् पूषूषः। =
पादोऽस्य विश्वां भूतानिं चिपार्दस्यामृतं दिवि ॥३॥ `
एतावान्। अस्य । महिमा । अत॑ः । ज्यायान् । च । पुरुषः स.
ष पादः । खस्य! विष्वा । भूतानि । चि ऽपात् । अस्य । अमृतं दिवि ॥ `
भ
` ` - -इतीतानागत
विश्वा सवीणि भूतानि काठ्चयवर्तीनि प्रारिजातानि पाद्! चतुधो ऽशः। अस्य ५
पुरुषस्यावशिष्टं चिपात्स्वरूपममृतं विनाशरहितं सदिवि चोतनात्म |
तु्थीं (16 {य
१ ॥ सथ वचतुर्थी॥ .. 9.
॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ २४५
वि । # कृत्लमेकां शेन स्थितो जगत् । भ गी०१०.४२.। इति । ततौ मायायामागत्यनंतः
| येगादिरूपेण विविधः सन् व्यक्रामत् व्याप्तवान् । किं
तष्य । साश्नं भोजनादिव्यवहारोपेतं चेतनं प्राणिजातं अन-
रिनद्यादिकं । तदुभयं यथा स्यात्तथा स्वयमेव विविधो
४
$ ॥ अथ पंचमी ॥
: ौ इ राजो अधि पूरुषः! - `
र अत्य॑रिच्यत पथ्चाङ्भूमिमथों पुरः ॥५॥ |
|| ` | तत्। विऽराट् । अजायत । विऽराज॑ः। अधिं । युकूषः+ `
॥ 2 तः। अति । अरिच्यत । पश्चात् । भूमिं । अथो इतिं । पुरः॥५॥
५4... विश्वङ् व्यक्रामदिति यदुक्तं तदेवाच प्रपंच्यते । तस्मादादिःपरुषा्िराङ्यइदे-
: परमात्मा स्वयमेव स्वकीयया मायया विराडेहं बह्याडरूपं
परविश्य जद्याडानिमानी देवतात्मा जीवोऽभवत् । एतच्चा- `
वा एष भूतानीद्वियाणि वि~
मद इव व्यवहरन्बासवे माययेति । ख
८ 1 विराङव्यतिरिक्तो देवतियेद््-
आ पश्याहे वादिजीकमावाट्ध्वे भूमिं ससर्जेति शेषः । अथो भूमि-
८. | नां पुरः ससजै। पूयते सप्नभिधोतुभिरिति पुरः एरीराणि ॥
| ` ॥ ऋण्वेद्ः ॥ ` (०५, ०४, व०4४, ५
। पूरवक्करमेणेव रीरेप्त्मेषु सत्सु देवा उततरसृषटिसिदयथं वायद्वय- |
स्यानुत्पननवेन हविरंतरासंभवात्पुरुषस्वषटपमेव मनसा हविद्धेन संकल्य पुरूषेण `
पुरषाख्येन हविषा मानसं यज्ञमतन्वतान्वतिष्ठन् तदानीमस्य यज्ञस्य वसंतो वसं-
ततुरेवाज्यमासीत्। अभूत् । तमेवाज्यत्रेन संकस्यितवंत इत्यथः । एवं मीष्प इघ्म्
आसीत्। तमेवेध्मतेन संकस्यितवंत इत्यथः। तथा शर्विरासीत्। तामेव पुरो-
` डशदिहविष्ेन संकस्यित व॑ इत्यथः पूवे पुरुषस्य हविःसामान्यरूपत्रेनसंकस्यः। `
। अनंतरं वसंतादीनामाज्यादिविशेषरूपतवेन संकस्य इति दश्व्यं॥
॥ थं सघ्रमी ॥
1 तं यज्ञं बर्हिषि प्रोशन्युरूषं जातम॑यतः ष न =
तेन॑ देवा अयजत साध्या ऋष॑यध्चये ॥७॥ =` .. ` „4
तं । यज्ञं । बहिषिं। मर। श्मो्न्। पुरषं । जातं यतः । थ
र कैन । देवाः। अयजंत । साध्याः । ऋष॑यः ।च।ये॥७॥
यज्ञ यज्ञसाधनमभूतं तं पुरुषं पुत्वभावनया यूपे वज बहिषि मानसे यज्ञ
म्रोशन् । प्रोक्ितिवंतः। कीहशमित्यचाह । खयतः सवेसृषटेः पूवे पुरषं जातं पुरष-
विनोत्नरं । एतच्च प्रागेवोक्तं तस्माद्िराक्छजायत विराजो अधि पूरुष इति।
तेन पुरुषरूपेण पणुना देवा अयजंत। मानसयागं निष्पादितवंत इत्यथैः । केते ` ४
. देवा इत्यवाह । साध्याः। सृषटिसाधनयोग्या; म्रजापतिप्रभृतयः। तदनुकूता षयो 4
चद्रशटारश्च ये संति ते सर्वेऽणयजतित्यथैः ॥ = `
मबद
) `" कः
त 1 9 ॥ अया्टमी ॥ त
वा वना पृषदाज्ये! 1
कै वायव्यानारण्यान्याम्या्चये ॥४॥ =
अष्टमो ऽष्टकः ॥ २४७
*
क्रे । उत्मादितवान् । आरण्या हरिणादयः । तथा ये च
या गवाश्वादयस्तानपि चतरे । पमूनाम॑तरिघ्वारा वायुदेवत्यत्वं यजुबरीदयरे
नायते । वायकः स्थेत्याह वायुवे अंतरिघस्याध्यक्षाः। अंतरिषदेवत्याः सलु
। वायव रवेनान्परिद्दाति । त° बा०३.२.१.३.। इति ॥ =“
॥ अथ नवमी ॥ =
तस्माद्जञातस वेहुत चः सामानि जरि । 9
सि जजिरे तस्मादयजुष्तस्माट्जायत ॥९॥ ` ४ ।
तेस्मत्। यज्ञात् । सवेऽहुत॑ः। ऋच॑ः। सामानि । जक्तिरि।
किक चषके
। जलिरे। तस्मात्। यजुः । तस्मात् । अजायत ॥९॥
स्तस्मात्पू वोक्ता्यज्ञाहचः सामानि जरि । उत्पनाः । तस्माचज्ञाद्-
दासि गायव्यादीनि जकर । तस्माद्यजाद्यजुरणजायत ॥
॥ थय टशमी ॥ ^
तस्मादश्वा अजायंत ये के चोभयादतः ५
गावो ह जक्षिरे तस्मात्तस्मांज्नाता अजावयः ॥१०॥
तस्मात् अश्वः । अजायंत । ये। के। च । उभयादः। `
# ` |
# ति षि ३
। ह । जङ्ञिरे। तस्मात्। तसन् जाताः । अजावय॑ः ॥१०॥
प | 1 ॥ कि |
वोक्तादयज्ञादश्वा अजायंत । उत्पन्नाः । तथा येकेचाष्वव्यतिरिक्ता गदे-
। तस्मादज्ञादजावयश्च जाताः ॥
गत्रावश्च जङ्िरि ।
रा्चोभयादत ऊग्बाधोनागयोरुभयोदेतयुक्ताः संति तेऽपजायंत । तथा
॥ इत्यष्टमस्य चतूरथेऽश्टदशे वेः ॥ `
॥
४ "` ॥ ऋग्वेद्ः ॥ ` [अ०४. ख०४. व०१९.
| प्रप्नोचररूपेण ब्राद्यणादिसु्ि | वक्तु ब्रद्यवाटिनां प्रश्ना ख्ये । प्रजापतेः
प्राणरूपा देवा यद्यदा पुरषं विरादरूपं व्यदधुः सं र
ोत्पाटितवंतस्तदानीं कति-
धा कतिभिः प्रकारेव्ये कस्ययन्। विविधं कस्पित्त वंत: । स्य पुरुषस्य सुखं
: ौत्। को वाह्. अभूतां । का ऊरू कौ च पादावुच्येते । प्रथमं सामा
पश्चन्मुखं किमित्यादिना विशेषविषयाः प्रश्नाः ॥ मः
1 ॥अथद्वाद्शी॥ |
. ब्राह्मणोऽस्य सुख॑मासीब्ाह् राजन्यः कृतः।
(9 ऊरू तद॑स्य यदैष्य॑ः पद्यां मूदरो उंजायत ॥१२॥ = `
ब्राह्यणः। सस्य । मुखं । आासीत्। बाहू इतिं । राजन्यः । कृतः। `
ऊरू इतिं । तत्। अस्य । यत्। चेर्यः। पत्ऽभ्यां । भटः । अजायत ॥१२
| दानीं पूर्वोक्तानां प्रश्नानासुच्राणि दशयति । अस्य प्रजापतेबाद्यणो बाद्य- |
णत्वजातिविशिष्टः पुरुषो सुखमासीत् । सुखाट्त्पन्र छय्थैः । योऽयं राजन्यः
छचियत्वनातिमान्पुरुषः स बाहू कृतः । वाहुतेन निष्पादितः। वाहृभ्यामुत्पादित
` इत्यथः । तत्तदानीमस्य प्रजापतेयेदूरू तटूपो वेश्यः संपन्नः । ऊरूभ्यासुत्पन्न =
८ इत्यर्थः । तथास्य पद्या पादाभ्यां शूद्रः गुद्वजातिमान्पुरुषोऽजायत । इयं च॒ न,
मुखादिभ्यो बादयणादीनामुत्म्तियजुःसंहितायां सप्रमकांडे स मुखतस्िवृततं निर- “`
प्रश्नोत्तरे उभे सपि तत्परतयेव योजनीये॥
| ध ` ॥अथच्रयोदशी॥ क ।
सो जातश्वछोः सूयो अजायत । =. ` `
हायुरजायत ॥१३॥
1
। अजायत ॥१
1 क
३।
॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ २४९
| ओ ॥सयवचतुदेशी॥ न
। आसीद्तरिं शीर्ण चोः सम॑वतेत। ==
न. दिशः श्रोचात्तथां लोकाँ अ॑कस्पयन् ॥ १६॥ (व
भ्याः। सासीत्। अंतरिषं । भीष्ण । चः ! सं।अवतेत।
भूमिः। दिशः ्रोचात्। तथां । त्रोकान्। पकस्ययन्॥१४॥ `
| मेनःपरभृतिभ्योऽकस्ययंस्तथातरिक्षादीक्चोकान्प्रजापतेना-
अकल्पयन् उत्मादितवंतः । एतदेव दशेयति । नाभ्याः प्रजाप- ` 1
शौषणेः शिरसो दयोः समवेत । उायन्रा । अस्य पद्यां . ०
अस्य च्रोचाहिश उत्पन्नाः ॥ त 1
| ॥ अथय पंचदशी ॥ छ 96. ॥
रिथयस्विः सप्र समिधः कृताः 1
| यद्यज्ञं तन्वाना अव॑न्पुरषं पणुं ॥१५॥ 4
सप्र अस्य । आसन् । परिऽधयः। चिः । सप्च। संऽडध॑ः। कृताः। `
देवा %
` देवाः। यत्। यज्ञं । तन्वानाः । अवन् । पुरुषं । पशुं ॥१५॥ ` (आ
ज्ञस्य गायव्यादीनि सप्र हंटांसि परिधय
परिधय उत्तरवेदिकाख्य आदित्यश्च सप्तमः परिधिप्रतिनि-
एवान्नायते । न पुरस्तात्मरिदध्यादिल्यादित्यौ द्येवोद्यन्ुरस्ताद्- `
एत आदिव्यसहिताः सप्र परिधयोऽच सप्र डंटोरूपाः। तथा `
निगुणीकृतसप्रसंख्याका एकविंशतिः कृताः । दादश मासाः पंचतै-
एक्विंशतिदा
ऽस्ति तं पुरुषं देवाः प्रजाप
तन्वानाः कुवाणः पभुमवश्चन्
२५० = ॥ऋण्वेद्ः॥ . [अ०४. अ०४. व०२०.
यज्ञेन । यज्ञं । सयजंत । देवाः । तानि । धमि । प्रथमानि । आसन्
| ति त षि | ठ | हि)
ते ह । नायै । महिमान॑ः। सचंत । यच॑ । पूरव । साध्याः । संति । देवाः ॥१६॥
५ के चमषः अमे ॥१ं
५ पूवे प्रपंचेनोक्तम्थं संिष्याच टैयति । देवाः प्रजापतिप्राणरूपा यज्ञेन #
` = यथोक्तेन मानसेन संकल्पेन यज्ञं यथोक्तयज्ञस्वरूपं प्रजापत्तिमयजंत । पूजित-
` वंतः। तस्मात्पूजनात्तानि प्रसिद्वानि धमाणि जगदूपचिकाराणां धारकाणि प्रथ #
मानि मुख्यान्यासन् । एतावता सृष्टिप्रतिपादकसूक्तभागायेः संगृहीतः । खथो- ॥
पासनतत्फत्कानुवादकमभागाथेः संगृह्यते । यच यस्मिन्विरादटप्राभ्रिरूपे नाके पूर्वे
साध्याः पुरातना विराडुपास्तिसाधका देवाः संति तिष्ठति त्ाकं विगटप्रा्निरूपं ध
स्वम ते महिमानस्तदुपासका महात्मानः सचंत । समवयंति । प्राप्रुवंति ॥ |
॥ इत्यष्टमस्य चतुथे एकोनविंशे वर्गैः ॥ि
5. ॥ इति दशमे मंडले सप्रमोऽचवाकः ॥ `
१ ,
अष्टमेऽनुवाके नव सूक्तानि। सं जागुवद्धिरिति पंचदशच प्रथमं सूक्तं वीत-
॥: हव्यपुचस्यारुणनाग्न आषेमग्रिदेवत्यं । खंत्या चिष्ुप् शिष्टा जगत्यः। तथा चानु-
| ऋति। सं जागुवद्धिः पंचोनारुणो वेतहव्य आग्नेयमिति ॥ प्रातरनुवाकाश्िनश्स्ल- `
योजेगते छंदसीद् सूक्तं । सूचितं च । सं जागृवद्धिश्चिच इच्छिशेवसुं न चिम `
हसमिति जागतं । ख० ४.,१३.। इति ॥ 9.
रं ॥ ^
1 ॥ तच प्रथमा ॥ ध
दमे दमूना इषय॑न्निकस्यदे । ५
विभुविभावां सुषखां सीयते ॥१॥
जरमा माणः। इध्यते । दभे। दमूनाः । इषयन् । इक्छः |
ऽभुः। विभाऽवा। सुऽसखां। सखिऽय
|
|
५
म०१०, अ० ६, सू०९१.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ . ५१
५ | ॥ ॥अथङितीया॥
रत ्रीरतिंथिगहेगृहि वनैवने शिश्वि तक्कवी रिव ।
| ते आ सेति विश्योऽ विशंविशं ॥२॥
। वने ऽ वने । शिध्िये। तक्रवीःऽइव।
। आ। छोति। विश्य॑ः। विर्थऽविशं॥२॥
यविभूतिरतिथिरतिथिभूतः सोऽ प्रिगैहेगृहे यजमानानां | गृहेषु 07,
सर्वेषु वनेषु च शिश्िये। यति किंच जन्यो जनहितः सोऽग्रिजैनंजनं `
। 4 गद्छन्निव नाति मन्यते। न विसृज्य गद्छतीत्ययैः। तदेव टश | |
विड्भ्यो हितः सोऽग्निर्विशे मनुघाना कषेति । किंच । विशंविशं १
विश्षः प्रजा सधिति्टतीति रेष; ॥ त #
त तमेक इद्यावां च यानिं पृथिवी च पुथ॑तः ॥३॥
ऋतुना।असि। सुऽऋतुः। खप्रं। कविः। कार्येन असि। विश्वऽवित्।
। त्। एक॑ः इत्। द्यावा । च। यानि । पृथिवी इति । च। पु्य॑तः॥ ३॥
ऋतुना कर्मणा सुक्रतुः
किच काव्येन मेधाविकमेणा कविर्मेधाव्यसि । विच विश्ववि-
वमुवोसयितासि। विच हे अग्रे तमेक इदेक `
किंच द्यावा च पृथिवी च द्यावाभूमी यानि वसूनि
क
ए
` तमोष॑धीदेधिरे गभमृतियं तमापो अग्रि जनयत मातरः
9
| प०४, ऋप०४. व०२१.
ष
हे गरे तवलिियमृतौ भवं धृतवंतं पूतेन सहितं योनिं निवासस्यानमिक्छाया-
स्यद् उत्तरवेद्यां प्रजानन् वमासद्ः। आसीदसि । किंच ते तव रमय उषसामि
यथोषसामेतयः प्रलाः प्रकाशत्दक्षणा आगतयो वा । सूयेस्येव - - -
^. ॥ अथं पचमी.
तव धियो वस्येव विदयुत॑श्चिचाश्िकिच् उषसां न केतवः ।
यदोष॑धीरभिस्॑ो वनानि च परि स्वयं चिनुषे अर्नमास्ये ॥५॥
तव॑। धिय॑ः वथेस्यऽइव । विऽदयुतंः। चिचाः। चिकित्रे । उषसा । न । केतवः
यत्। ्चोषधीः
॥ 1 कमे ^ के
भिऽमुं्टः। वनानि। च। परि । स्वयं । चिनुषे। अन्तं । आस्ये ॥५।
॥ 1 भे
धितुरमेघस्य सं बधिन्यो विद्युत उषसां न यथा चोषसां केतवः प्रजा
नास्वन््याः प्रकाशाः प्रज्ञायते तइटित्यथः। कटेत्यचाह । यद्यदा त्वमोषधीवीह्याद्या
वनान्यरण्यानि चाभिसृष्टः सृष्टो दग्धुं विसृष्टः सन् स्वयमात्मनास्ये मुखेऽनम-
ट्नीयं स्थावर्तलरष्णं परि चिनुषे । परिक्िपसीत्यथंः ॥
॥ इत्य्टमस्य चतुरं विशे वग
॥ अथ षष्टी ॥
+ 1]
~ˆ यचा
4; ^ [र
तमित्समानं वनिनश्च वीरुधो ऽतवेतीश्च सुव॑ते च विश्वहा ॥६॥ |
५॥
। जनयत । मातरः
कणेः = शिनि = दिः ` केतके
: 1 द्धिरे। गभे । विर्यं । तं । आप॑ः। ख
। च। वीरधः। खरंतःऽ व॑तीः। च । सुव॑ति। च । विश्वहा ॥६।
गभैभूतं तं प्रकृतमभ्रिमोषधीरोषध्यो दधिरे । धारयंति ।
नीया सापश्च जन्यत । जनयंति ।
वेशगत्स्वतुस्यं | तमित्मेवागिं | अलं
५
णान्। अनुं । तृषु । यत्। अनना ।
। यथा । पृथ॑क् । श्धासि । छपर । अजराणि । धतः ॥७॥ =
अम्र यद्यदा लं वातोपधूत वायुना कंपिततो वशान्कांतान्वनस्यतीननु प्रति `
प्रमि (रतश्च सन् अन्नान्यदनीयानि वनस्यत्यादीनि स्थावराणि ६
षठः र न इतस्ततो गच्छसि तदानीं धरत: काननानि टहतस्ते तवाजराणि “1
से तेजांसि यथा रथ्यो रथिनस्तङत्यृथगा यतंते । गच्छं्ति॥
ग.
१ । ॥
हविषि । आ। समानं। इत्। तं । इत्। महे। वृणते। न। अन्यं तत्॥४॥ =`
कारं प्रज्ञायाः कीरं विदथस्य यज्ञस्य प्रसाधनं प्रकषण साधकं होतारं
इात्तार परिूतिममतिश्येन शचरृणां परिभवितारं मतिं सतारं यं चाम-
ह इति शेषः । तमित्तमेवाग्िमर्भऽस्ये हविषि च पुरोडाशदिके हविषि
॥ अथ नवमी ॥
त्वायवो होतारमग्ने विदथेषु वेधसं; ।
होतारं
२। अग्ने । विदथेषु ।
| ध | ॥ ऋण्वेटः ॥ इूप० ¢, षु० &, व° २२, | ।
तव्रि होचं तवं पोचमुवियं तवं नेष्टं त्वम
तव॑ प्रशस्तं त्म॑ध्वरीयसि क्या चासि गृहर्पा
` तव॑। मे| होचं। तव॑। पोचं। विर्यं । तव॑ । नेष्टं । तं । अन्नित्
तव॑ प्रऽशसतं । लं। अध्वरिऽयसि। बह्मा। च। असिं । गृहऽप॑तिः। च। नः। दमे ॥१०॥
# भैमि 1
हे अग्रे तव होचं टोतृकमे त्या विना तस्याभावात् । किंच तवेवलिंयमृत्तौ
भवं प्राप्रानुष्टानकाठे पोचं पोतृरूमं चया विना तस्यायभावात् ।
नेष्टं नेषटकमे। किंच । तायत ऋतं यज्ञं कतुमिच्छतो यजमानस्य तमेवाभनिनं
कश्चित् । विच तवेव प्रशं प्रशास्तृकमे । किंच हे अमे त्रमेवाप्वरीयसि । अध्वरं |
यज्ञं कतुमिच्छसि । तव हेतुत्व ्त्कतैत्वं । किंच त्वमेव ब्रह्मासि त्वया विना तस्या-
भावात्। किंच नोऽस्माकं दमे गृहे गृहपति्येजमानोऽसि त्वया विनास्माकं यज- ४
मानवाभावात्॥ = ए
॥ इत्यदटमस्य चतुथे एकविंशो वैः ॥ म
५ 9 ॥ अयेकाटशी ॥ ति
यस्तुभ्यमग्ने अमृताय मत्येः समिधा दाशदुत वां हवि्वुति । ॥
1 भ भनेको [१ १ †
1 ततस्य होतां भवसि यासि टत्य ५ सुपं त्रूषे यजंस्यध्वसैयसिं ॥११॥ 9 ॥ । | |
यः। तुभ्यं । छन्ने । अमृताय । मव्यैः। संऽडधां । दा्त्। उत । वा । हविःऽर्वुति। `
, ` भके भ
यासि दूर्यं! उप॑ । ब्रूषे । यज॑सि । अध्वरिऽयसि॥११॥
(9 कनि ` शकण नः न
स्मदा ऋचो गिः सुदतयः म॑ग्मत। ^
सूयवो वसंवे जातवेदसे वृधाम चिडधेनो यासु चाः
तयः। वाच॑ः। अस्मत्। ्आ। ऋ च॑ः। गिर॑ः। सुऽ
ुऽस्तुतयः। सं । अग्मत।
। जातऽवेदसे। वृदां । चित्। वैनः । यासु । चान॑त्॥१२॥ `
जातप्रजञाय वसवे वासयितरेऽस्मा अम्रये मतयः पूजयिच्य इमा
दथ धनकामाः सत्योऽसखदखत्तो निर्गत्या समग्मत । आभि- `
1: । सुष्टुतयः शेन- `
गान्मिका गिरो वाचः। तथा यामु वृद्धासु चित् स्वत एव |
वधनः पुनराप वधयित्ता सन््निश्चाकनत् । स्तोतृन्कामयते । इमा `
| मतय इत्ययः । 01.
:. ... ॥ अथय चयोद्शी ॥ ~... ~
८ इमां मल्लाय सूष्ुतिं नवीयसी वोचेय॑मसा उशते गृणोतु नः। `
४ भूया अंतरा हृदयस्य निस्पु जायेव पत्य उशती सुवासाः ॥१३॥
#
न संगच्छते । तमिमम्निं प्रीणयंचित्यथेः । काः पुनष्
\
॥
॥
॥
॥
॥
~ &
इमां । परत्नायं । सऽ तिं ( नवीयसीं | वोचेयं | स्मे | उशते | णोतु | नः | | । ०
१... याः। अंतरा हृदि। खस्य निऽस्मृशे। जायाऽईव । पवये । उशती । सुऽ वासाः ॥१३॥
पु कामयमानायासा अम्रये नवीयसीं नवतरा- `
वा सुदृतिं शणेभनस्तुतिं वोचेयं । अहं वघ्यामि । सोऽभिरस्दीयां `
। किंचाहमस्या्ेहेदि हृद्ये त्रायता मध्ये निस्पृशे संस्यशेनाय। `
ननायेत्यधेः । भूयाः । भूयासं । व्यत्ययेन मध्यमः । उग्रेहैदिस्यृगहं स्या- `
अथवा मम सुषटुतेरतुप्रवेष्टा भवेति योज्यं । समानमन्यत्। तच दटातः।
दिना मंडिता जायोशती कामय
रष ॥ ऋग्वेदः ॥ अ०४, अ०४. व०२३.
। अश्वांसः। ऋषभास: । उष्षणः। वशः। मेषाः। अवऽसृष्टासः। आऽहुताः प |
ङ
कीलाल ऽपे। सोम॑ऽपृष्टाय। वेधसे । हदा । मतिं । जनये । चार । अम्रये ॥१६। ५
# 1 # चि । कि ॥ ग
५ यस्मिनन्रावुक्षण उष्षाणएः। वा षपूर्वस्य निगम इति : । सेचन-
| समथा अश्वासोऽश्वा कषभासो वृषभाश्च वश्णः स्वनाववध्याश्च मेषाश्चावसृष्टासो
देवताेमवसृष्टाः परित्यक्ताः संतोऽश्वमेध आहुता आभिमुख्येन हता भवंति की-
लालपे सोचामण्यां सुरां पिकते। कील्ालमिव्युदकनामसु पाठात्। उदकं पिकते
मोमपृष्ठाय।सोमयुक्तः पृष्ठ उपरिभागौ यस्य तस्मे सोमपृष्टाय वेधसे विधात तस्मा
. अम्रयेहृदा हदयेन चार कल्याणीं मतिं स्तुतिं जनये। जनयामि। उत्पादयामि॥
ए ॥ अथ पंचदशी ॥ |
| अहाव्यप्रे हविरस्य ते सुचीव धृतं चम्वीव सोमः।
॥ ॥
वाजसनिं रयिमस्मे सुवीरं प्रशस्तं धंहि यशसं वृहतं ॥१५॥ ष
अहावि । उभर । हविः। आस्य । ते । सुचिऽईव । घृतं । चम्विंऽइव । सोम॑ः। ध
बाजऽसनिं। रयिं। अस्मे इतिं । सुऽ वीरं । प्रऽशस्तं । धेहि! यशसं । वृहतं ॥१५॥ `
हेम्न ते तवास्ये मुखे हविः पुरोडाशदि हविरस्माभिरहावि। सततं प्रसि
प्यते । तच हष्टातो । घुतमाज्यं सुचीव । यथा सुचि । चम्वीव सोमः। यथा
[ च
भि । देहि ॥
॥ इत्यष्टमस्य चतुर्थे हाविंशो वर्गः ॥ `
हितीयं सूक्तं मनोः पुचस्य शायोतस्याष जागतं बहुदेव-
यज्ञस्य शयोात्तो मानवौ वेश्वटे
अनि जागतमिति । ५
म० १०. ० ए. सुर ९२, | अटमोऽ टकः ॥ 9 |
। ॥ तच प्रथमा॥
यज्ञस्य वौ रण्यं विश्पतिं विष्णं होतारमक्तोरतिंधिं विभाव॑सुं! `
शोचञ्छुष्कासु हरिणीषु जभुरतृषां केतुयेजतो द्याम॑शायत ॥१॥ |
७ >
यज्ञस्य । वः । र्यं । विश्यति । विशं । होतारं । खक्तोः। अतिथिं! विभाऽव॑सुं। । `
च॑न् ! भुष्कांसु हरिणीषु । जभुँरत्। वृषां केतुः। यजतः। द्यां । अशायत ॥१॥
हे देवा वो यूयं यज्ञस्य रथ्यं नेतारं विश्पतिं मनु्ाणां पालकं स्वामिनं वा क
| शं देवानां होतारमाह्ातारमक्धो राचैरतिथिमतिथिभूतं विभावसुं विविध-
प्रथनं तमम्रिं परिचरतेति ेषः। गुष्कासु भुष्कमूतास्वोषधीषु शोचन् ज्वलन् ॥
हरिणीषु हरितवशेस्वादरौस्वोषधीषु जनुरब्नछयन् कुटिलं गच्छन्वा वृषा का- `
मानां वित्ता कतुः प्रज्ञापको यजतो यष्टव्योऽम्नि्चौ दिवमशायत । प्रतिशेते ॥ ` न
| ॥ खथ डित्तीया ॥ 0 क
इमम॑जस्यामुभये चकृखत धमाणंमभिं विदथ॑स्य साधनं । ==
अकं न यमुषसंः पुरोहितं तनूनपातमस्षस्यं निंसते ॥२॥ =
इमं । अंजःऽपां। उभयं । अकृखत । धमार । अमं । विदथस्य ।सा्धनं। = =
( अरु । न । यं । उषसः । पुरःऽर्हितं । तनू $$ नपातं । अरुषस्यं। निंसते ॥२॥ ॥ .
। ६ उभये देवमनुया संजस्पामंजसा रक्षकं धमाणं धारकमिममम्नि विदथस्य
| यज्ञस्य साधनं साधयितारमकृखत । खकुवेत । किंच । अरुषस्यारोचमानस्य वा- `
| योस्तनूनपातं पुतं यहं महांतं पुरोहितसुषसोऽद्ं न स्वरश्मिभिरंनकमा दित्यरि ¦
| निंसते, चुंवयंति। आश्रयत् इत्यथः ॥ 1
अमृतलमाशतादि
1
॥ च्रण्वेटः ॥ .
प्रज्ञानानि बट् सत्यानि स्युरिति मन्महे । वयं कामयामहे । विच । अस्याघ्नेवया
अस्मदीया अन्राहुतयोऽ चवे भक्षणाय प्रहुता आसुभेवेयुरिति कामयामहे । किंच ।
यदा यस्मिन्काले घोरसौ घोरा अप्रजाता खमृतत्वमविनाश्ित्वमाशत प्राश्रुवंति
आदिदनंतरमेवास्माकमृतिजो देव्यस्य देवेषु भवस्य जनस्याग्रेरथोय चकिरन्। कि
` रेयुः। अम्र हवीषि प्रधिपेयुरखित्यथेः ॥ ` वि `
॥ अथ चतुर्थीं ॥
ऋतस्य हि प्रसिंतियोरिरः व्यचो नमो मद्य 4रम॑तिः पनीयसी ।
दरौ मिचो वरुणः सं चिकिचिरेऽथो भग॑ः सविता पूतदक्षसः ॥४॥
ऋतस्य । हि। प्रऽसिंतिः। द्योः। उर् । व्यच॑ः। नम॑ः। मही । अरम॑तिः। पनीयसी
इदः। मिचः। वरूणः। सं। चिकिचिरे। अथो इतिं । भग॑ः। सविता। पूतऽदछसः॥४॥
। २५४ ० ४. ऋ०४. व०२३.
ह
तस्य यज्ञस्य सं वंधिनमम्िं प्रति प्रसितिविस्तृता चीरर् विस्तीणे व्यचो
व्याप्रम॑तरिछषं च पनीयसी स्तुत्यतमारमतिः पयेतरहिता मही पृथिवी च नमो
नमनं कुवेतीति शेषः । अथो अपि चेनमभ्रिभिंदौ भिचश्च वरुणश्च भग सविता
पूतदक्षसः शुद्धवत्छरा एते देवा एनमम्रिं सं चिकिचिरे ! य्येष्ठयाय संजानते ॥
4 8 ॥ अथ पचमी ॥
मर रुद्रं ययिना यंति सिंधवत्तिरो महीमरम॑तिं दधन्विरे, `
परियन्ुर जयो वि रोरवज्नठरे विश्वमुक्षते ॥५॥
अरमतिं । ट्धन्विरे। `
ना । यंति । सिंधवः । तिरः । महीं!
येभिः परिज्मा परिऽयन्। उर। जय॑ः। वि। रोऽवत्। जवर । विष । उक्षतं ॥५॥
ना गमनीलेन र्दे सदुतेण मस््रशेन
मी मरुतोऽरमतिं । रमतिविरामोऽवसानं ।
०१०. ०४, सू०९२.| ॥ ष्टमो ऽ टकः ॥ २५
: ॥ अथ षष्ठी ॥ क:
ऋणा रुद्रा मर्तो विब्र्ु्टयो दिवः श्येनासो असुरस्य नीक्छय॑ः। |
तेभिश्चष्टे वरूणो भिचो खयेभेदरों टेवेभिंर्वशेभिसर्वैशः ॥६॥
्राणाः। स्द्राः । मरुत॑ः । विश्चऽ कृष्टयः । दिवः । श्येनासः। असुरस्य । नीक्छय॑ः।
तेभिः, चष्टे! वरूणः । मिचः। अयेमा । इदः । देवेभिः । अववेशेभिः । खवैशः ॥६॥
| # व
सुरस्य मेघस्य नीक्छय स्ावासभूता दिवौऽतरिष्संबंधिनः श्येनासः श्येनाः
शसनीयगतयो विश्वकृष्टयो व्याघ्रमनुघया रुद्रा रुट्पुचा ये मरुतः ऋणः स्वाधि-
कारकमाणि कुवाणा ससत इति शेषः । तेभिसतेरवेशेभिरण्ववद्धिः सोमवद्धिवा
वेभिदवेः सहा वेशोऽ श्ववान् सोमवान्वेद्टे । प्यति । वरुणश्च मिचश्चायेमा
सोमवद्धिमेरुदधिः सह पश्य॑ति ॥ (त
॥ अथ सप्रमी ॥ ` य
इदे भुजं शशमानास आशत सूरो हशीके वृष॑ण्च पोस्य । `
न्व॑स्याहेणां ततधिरे युजं वजे नृषरदनेषु कारवः ॥७॥
इद । भुजं । शणमानासंः । आशत । सूरः । हशीके । वृष॑णः । च । पेोस्ये। =
प्र। ये। नु। अस्य । अरण । तत्तसिरे ! युजं । वजं । नुऽ सदनेषु । कारवः ॥७॥
# शकम # चिः तनै ॥, जामे ‰ पठने ड
प्मानासः शरमानाः स्तोतार इद् स्तुते सति भुजं पालनमाश्ते प्राप्रु
वंति । सूरः सूरय स्तुते सति हशीके दशनं सवेवस्तुविषयं प्राघ्ुवंति । वृषणौ वषिं-
तं च प्राघ्रुवेति । किंच ये कारवः स्तोतारोऽस्येद्रस्याहणा
५४०.५
सीदंति तिष्ठंति तेषु यज्ञेषु युजं सहायमिंदरस्य वजं प्राुवंति ॥
# {न ५ 1 ॥ १ ५८
॥ अथाष्टमी ॥
तिरि प्रकृ्टानि कुवैति ते स्तोतारो नृषदनेषु । नरः क्तेन
#।
ठ ॥ ऋछग्वेट्ः ॥ ० ७, ०४. व०२४.
५ च
सुरः सूर्योऽयस्येद्रस्य परमेश्वरस्य परमात्मन आयां परिपालयितुं मन्वानो
| रितोऽश्वान्मेरयतीति शेषः । परेरयन्नष्वन्या रीरमत् । आभि
कश्चिहेवोऽपि सृष्टौ भयते बिभेति स देवस्तवीयसः प्रवृद्वादिदरात्य
व बिभेति । तथा च तचिरीये पठितं । भीषासाह्वातः पव
इत्यादिना। किंच। वृष्णः कामानां वधितुभीमिस्य सवेभयंकरस्य परमात्मन
| शरस्य दिवेदिवेऽन्वहमभिश्वस आभिमुख्येन श्वसत्तो जठरादुदयदतरिधात्सहूरिः
सहनशीत्ोऽ वाधितो बाधरहितः स्तन् । स्तनयति । शब्दं करोति ॥
॥ थ नवमी ॥
सोमं वो अद्य रुद्राय शिक्॑से छयदीराय नम॑सा दिदिष्टन ।
येभिः शिवः स्वरवो एवया व॑भिरदिवः सिष॑क्ति स्वय॑शा निकामभिः ॥ ९॥ 1.
स्तोम॑ । वः। अद्य । रुद्रायं । शिक्षसे । छयत्ऽवींराय । नम॑सा । दिदिष्टन ।
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अ
१
१५.
पतेः = पति जि
येभिः ! शिवः । स्वऽवा॑त् । एवयावंऽभिः। दिवः । सिस॑क्ति । स्वऽ्यशः । °
निकामऽभिः॥९॥
यावभिरण्वेागच्छच्रिर्येभिर्येमेरुङ्धिः सह स्ववान् ज्ञातिमान् स्वयश्णः स्वभू-
` ततकीतिः शिवः सुखक्ररः परमेश्वरो दिवो दयुतोकाद्यजमानान्सिषक्ि सेवते हे ।
ऋतिजो यूयमद्यास्सिन्यागे निकामभिनियताभिलषितेमैरद्धिः सहिताय सय- `
ब्वीराय सितिश्चवे शिक्रसे शरणे शक्ताय रुद्राय नमसान्नेन नमस्कारेण वा सह॒ `
१ स्तोचं दिदिष्टन । दिशत । सृजत । गमयतेत्यथः
॥ थ टशमी ॥ ् क
। अभ॑रंत वि श्रवो वृहस्यतिंवैषभः सोम॑जामयः
ो वि धांपयदेवा दकषिभृ्गवः सं चिंकिचिरे ॥१०
। चरवः । वृहस्पतिः ।
वृषभः
| |
म १०.०४, सू० ९२.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ | २६१
सेवि धारयत् देवान्कमेयोग्यान्विधृतानकरोत्। अच निगमः। यततेरथवी प्रथम
पथस्तते । ऋग्वे १.४३.५.। इति । अथ टेल: सह देवा विश्वे भगव पुषयश्च
चिरे । अथवेणा कृतं यज्ञं गत्वा पणन्सं्ञातवंतः ॥
॥ इत्य्टमस्य चतुथे चतुर्विंशो वगैः॥ `
॥ खयेकाटभी ॥
ते हि चावापृथिवी भूरिरेतसा नराशंसश्वतुरेगो यमोऽदिततिः
देवस्वषटा द्ूविणोदा ऋभु्णः प्र रोदसी मरतो विष्णुर हिरे ॥११।
हि। द्यावापृथिवी इतिं । भूरिऽरेतसा। नराशंसः। चतुःऽऋंगः। यमः। अदितिः।
#
देवः। चा ।दूविणःऽदाः।ऋृभुक्षण॑ः। पर रोदसी इतिं । मरत॑;। विष्ण॑ः। अर्हिरे॥११॥
म च #
भूरिरेतसा बहूदक द्यावापृथिवी द्यावापृथिव्यौ यमो देवोऽदितिशच तर्टा देवश्च
द्विणोदा अग्निश्च ऋशुष्षण भवश्च रोदसी र्दरस्य पत्नी पत्यौ वा मरुतो देवा
विष्णुश्च एते विश्वे देवाश्चतुरंगश्चतुभिरग्रिभियुक्तः ! तस्मिन् नराशंसो नराशस-
नामधेये यज्ञे प्राहिरे। अस्माभिः स्तोतृभिः पूज्यंते ॥
॥ अथ दाटशौ ॥
उत्त स्य न॑ उशिजासुविया कविरहिः शृणोतु वृध्यो$ हवीमनि ।
मासां विचरता दिविश्ठितां धिया श॑मीनहुषी अस्य बोधतं ॥१२॥
स्यः। नः । उशिजा । उविया । कविः। सहिः णृणोतु । बुध्य॑ः। हवीमनि।
7मासा। विऽचरता। दिविऽधित।। धिया। शमीनहुषी इति । अस्य । बोधतं ॥१२।
|
५
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4 1 1 कि ।
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॥ ऋग्वेदः ॥ { ० ए. ० ४. व० २५.
। क ॥ अथ चयोदशी ॥
: पूषा चरथं विश्वदैव्योऽपां नपादवतु वायुरिष्टयं ।
आत्मानं वस्यो अभि वात॑मचैत तद॑श्विना सुहवा याम॑नि श्चुतं ॥१३॥ वि
` भ्र। नः। पूषा । चरं । विश्वऽर्दव्यः। अपां । नपात्। अवतु । वायुः । इष्टये ।
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[0 [= |) भम च ^ कै
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सात्मानं । वस्य॑ः। अभि । वातं । अर्च॑त । तत्। अश्विना। सुऽहवा। यामनि। शुत ॥१३।
जि ति ति | [1 क्या [1 ६ भ
पूषा देवो नोऽस्माकं सं वंधि चरथं जंगमं प्रावतु । प्रकषण रक्षतु । किंच वि-
शवदेव्यो विष्वदेवहितोऽपां नपाद्वायुरि्टये यज्ञस्य निष्वृ्यथे प्रावतु । किंच । 1
त्मानं सर्वेषामात्मभूतं वातं वायुं वस्यो वसीयः प्रशस्यततरमन प्रापु ! खस्म-
भ्यमन्ं कामयमानभिति शेषः। हे अश्विनाश्चिनो सुहवा स्वाह्ानो युवां यामनि
५. गमने तदिद् स्तौचं रुतं । प्पुणुत ॥ ` | 0
॥ अथ चतुदैशी ॥ 9
विशामासामभ॑यानामधिक्ठितं गीभिर स्वय॑शसं गृणीमसि ।
म्माभिर्विंश्वाभिरदितिसनवेणमक्तोयुवानं नृमणा अधा पतिं ॥१४॥
विशं। खासा । खभ॑यानां। सधिऽक्ित्त। गीःऽभिः। ऊ इति । स्व ऽयशसं । गृणीमसि,
; म्नाभिः।विष्वाभिः। अदितिं अनवै्ण।खक्तोः। युवानं । नृऽमनाः। अध॑ । पतिं ॥१६॥ ===
६ द $ 7 8 .
सारभयरहितानामासां विशं मनुयाणामधिसित्तमतनिवसंतं
तदीर्तिमेनमभिं गीभिः स्तुत्तिभिगैणीमसि । वयं स्तुमः । किच । `
प्रत्यत पतयुरपरत्यतवेनाप्रतिगतामदितिमदीनां देवमातरं विश्वाभिः
मः । किंचाक्तौ रचेयेवानं स्वतेजसा मि ५
म०१०. अ०५, सू*९३.। ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ २४३ `
रभत्। अचं । जनुषां । पूवैः । अंगिराः । यावाणः। ऊष्वाः। अभि चकुः। खष्वरं। `
विऽहांयाः । अभ॑वत् । विऽचक्षणः । पाथः । मुऽमेके । स्वऽधितिः।
1 वन॑न्ऽवति ॥१५॥ ८ ह
अगिरा नामपिरालिज्येन वृत्तः स देवान्सतौति । अचास्मिन्यज्ञे जनुषा जन्मना == `
पूवः मरत्लोऽगिरा नामर्षी रेभत्। देवान्स्तौति । मावाणश्नोष्वी उद्यताः संतोऽधवरं `
यज्साधनं सोममभि चुः । अभिपश्यंति । विचक्षणो विदृ्ट येभ्य ध
रमिषवसं धिभिः शब्देविंहाया महानभवत्। हषटोऽभूदित्य्थः। अस्यद्य स्वधि- `
वजो व गे पाथोऽ्साधनं सुमेकं शोभनमुदकं निरगमय-
= ~> ॥ इत्यष्टमस्य चतुथं पंचविंशे व्मैः ॥ = ` ।
महीति पंचदशचं तृतीयं सूक्तं । तान्वो नाम पृथोः पु ऋषिः । हितीया- (^
चयोदशी चेति तिसो ऽनुष्ुभः। नवम्यक्षरसंस्यया पंक्तिनं पदेः। एकादशी `
1स्ण्य्टकद्वाद्शक्द्य्टक्वती । पंचदशी पुरस्ताइहत्यादयद्वाटशकव्य्टका ।
शिष्टा नव प्रस्वारपंक्तिद्छदस्काः। आच्च जागती हो गायो सा प्रस्तारपंक्तिः।
विश्वे देवा देवता । तथा चानुक्रतं । महि तान्वः पाथः प्रस्तारपां कत पुरस्ताङह- `
^. व्यत चयोदश्युपाचये चानुष्टभो नवम्य्रैः पंक्तिरेकादशी न्यकुसारिणीति । गतो ॥
{::. ` चविनिमोगः॥ 1 9
[| ॥ तच प्रणमा॥ क
| महिं द्यावापृथिवी भूतमुर्वी नारी' यह्वी न रोद॑सी सरं नः। स
चैष
नेः पातं | सद्य स एभिनैः पातं भूषशिं ॥ १॥ ३ स = 1
|| ` द्यावापृथिवी इतिं । भूतं । उवी इतिं । नारी इतिं । यी इतिं । न । `
| तेभिः। नः। पातं। सद॑सः एभिः। नः। पातं । भूषसि ॥१॥ ==
॥ ऋग्वेदट्ः ॥ ` [अ०४, ख०४. व० २६,
॥ खथ हितीया ॥
यसेय॑ज्ञे स मर्यो देवानसंपयेति । त
| यः सुननेदीधेशुततम आआविवासावयेनान् ॥२॥ ॑
यज्ञेऽय्॑ञे। सः। मयैः । देवान्! सपयेति। `
| 0 वि भैषि
८ यः। सुनः दी्ेश्ुत्ऽत॑मः। ्ाऽविवासाति। एनान् ॥२
1 स मर्यो मनुषो यज्ञेयज्ञे सर्वेषु यज्ञेषु देवान्सवेन्सपयेति परि
(4 शु्तमोऽतिश्येन दीधैस्य वहोः शास्लस्य श्रौता यो मनुष्यः सुने: सुखकरेहं
विभिरेनान्देवानाविवासाति परिचरति । असुखकरेहेविभिः कृतमपि कम समं 1
। न भवतीत्यर्थः । | | |
1 पथ तृतीया ॥
श्वेषामिरज्यवो देवानां वामेहः । `
ध शवे हि विश्वम॑हसो विश्वं यज्ञेषुं यक्सियांः ॥ ३।
विश्वेषां । इरज्यवः । देवानाँ । वाः । महः! . त
(1 श्व । हि । विश्वऽ स॑हसः । विश्वं । यज्ञेषु । यसषिया॑; ॥ ३। ॥
हे विश्वेषामिरज्यवी सुवनानामीश्वरा देवानां चोत्तमानादिगुणयुक्तानां भवतां
. महो महदा वरणीयं धनं विद्यत इति शेषः । तदस्मभ्यं टत्तेति भावः। किंच विश्वे
॥ खथ चतुर्थीं ॥ 8
१ क ज
उत । नः। नक्त। अपां । वृषणखसू इतिं वृषण्ऽवसू। सूयामासां। सद॑नाय। स ऽधन्या।
सचा। यत्। सादि) एषां । अहिः । वुपेषु । बुक््यः॥१॥ =
उतापि च हे वृषण्वसू वषैएधनावभ्विनौ युवामपामुदकानां संबंधिनो सथन्या `
सथन्या समानधनौ सूयोमासा सूयौचंद्रमसौ वुभे्॑तरिकषेषु निवासः नेषु मेधेषु `
यद्योऽ हिवक्यो देवो सादि सीदति तिष्टयेषामेभिः सचां सहं युवां नक्तं राचाव- `
हनि चोरूयतसिति वष्यमाशेन संबंधः ॥ ` ५
` ॥ शयष्टमत्य चतुथं षड वर्गैः ॥ , `
| ॥अथयषषी॥ ` ` -: ५ ४
उत नो देवावश्विना भुभस्यती धाम॑भि्मिवावक्णा उरूथतां। ` ६
१. महः स राय एषतेऽपि धनवैव दुरिता ॥६। 1
उतत।नः। देवो। अश्िना। मुभः। पती इतिं । धाम॑ऽभिः। मिचावरूणो । उरूषयतां। `
क महः । सः । रायः। आ । इवते । अति । धन्व॑ऽइव । दुःऽइता ॥६॥
रक्षेतां । यं यजमानं पुरुषममी देवा रषंति स महो महांति रायो धनान्येषते ।
भिसुख्येन प्राभोति। गच्छति । विच टुरितता दुरितानि शीघ्रमत्यतिगंतातिक्राता
॥
1 २६ ि | | ॥ | ण्वेटः | प ¢, ० ©, व° २.७.
। उत चिदपि च र्द्रा रुद्रपुबावश्िनाश्िनौ नोऽस्मान्मुक्छतां । सुखयतां ।
। रथस्यत्ती रथस्य पतिः पूषभुवाजोऽन्नवन्भिगश्च परिज्मा परितो ग॑ता वायुर
विश्वे सरवे देवासो देवाः सुखयतु । हे विश्ववेदसो विश्ववेदाः सवेप्रजाः सवेधना वा
हे ऋभुश्णो महातो ब्रह्मादयो देवा यूयं सुखयत ॥
#
॥ अथा्टमी ॥
४ ऋभुकछमुष्षा ऋभु्विंधतो मद् खाते हरीं जूजुवानस्यं वाजिनां।
दुष्टरं यस्य सामं चिहधग्यज्ो न मानुषः ॥४॥
भुः। ऋभुशाः। ऋभुः। विधतः। मदः। आ। ते। हरी इतिं । जूजुवानस्यं। वाजिना ।
दुस्तर । यस्यं । साम॑ । चित्। ऋध॑क् । यज्ः। न । मानुषः ॥४॥
| ऋभुक्षा महानिंद् ऋमुयेज्तेन भाति । किंच विधतल्वां परिचरतो यजमानस्य
मदो होऽ णुभुयेज्ञेन भाति । हे इद् सखा ज॒ज्ुवानस्य प्रति शीध्रमागच्छतस्ते तव
हरी अश्वावपि वाजिना वाजिनो बलत्छ वतो । विच यस्थेद्स्य संबंधि साम चिद्री-
यमानं सामापि दुष्टरं रषरोभिरप्रापणीयं । एष यज्ञो मानुषो मनुयस्षाधारणो न।
किच । धर् पृथक्! दिव्य इत्यथैः ॥
॥ छथ नवमी ॥
कृधी नो अह्यो देव सवितः स च॑ स्तुषे मघोनां! ` |
सहो न इद्र बहिभिन्षां चषेणीनां चक्रं र्म न योंयुवे ॥९॥
हयः । देव । सवितरिति । सः। च। स्तुषे, मघोनां ।
बहि ऽभिः। नि। एषां । चषेणीनां । चक्रं । रध्िमं। न। योयु
क नोऽस्मानहूयोऽनवनतवदनानतन्नितान्वृरि
धनवतां यजमानानां संबधिभिच्छषि षे
म० १०.०४६. सू०९३.| ॥ अष्टमोऽ्टकः ॥ २६9 =. ` `
आ।एषु। चा वा पृथिवी इति।धातं। महत्। अस्मे इतिं । वीरेषु विश्वऽच॑षणि। व॑ः ५
पृक्षु । वाज॑ः
1
सातये । पृक्षं । राया! उत। तुणँ ॥१०॥ ‰ = `
हे यावापृथिवी चावापृथिव्यौ युवामस्मे अस्माकं संवंधिदेषु वरिष पेषु `
: ` ' सवेमनुथोपेतं महच्छवो यश आ धातं । आध । टं । किच वाजस्य
वल्दस्य सातये संभजनाय पृक्षं पालकमननं दतं । उतापि च तुवैशे श्चरूणां तर- `
णाय राया धनेन सह पृक्षमन्नं दतं ॥ न
॥ इत्य्टमस्य चतुर्थे सप्रविंशो वर्गः ॥
॥अयेकाद्शी ॥ =
एतं शंस॑मिंदास्मयुषं कूचित सहसावन्भिषटये सदां पाह्यभिष्टये! `
` मेट्तां वेदता वसो ॥११॥ 1
एतं । शंसं । इट् । अस्मऽयुः। तं । कूऽचित्। संतं । सहसाऽवन्। अभिष्टये । सद्ा । ` [6
। पाहि। अभिष्टये। ध 1
मेटतो । वेदत । वसो इतिं ॥११॥ भ | म
हे वसो वासयितः सहसावन् वलगवनिदरामयुरस्मान्कामयमानस्वं कूचित क `
चिदपि संतं स्थितमेतमिमं शसं स्तोत्तारमभिष्टयेऽभिलकषितसिद्यथेमपि चाभिष्टये
4; यागाथे सदा सवेदा पाहि । रस । विच वेदता वदीयेन प्रज्ञानेन स्तोतारं मां `:
मेट्तां । बुध्यस्व ॥ 1 4
4 ` ॥ अथ हादी ॥ न. |
1: श मे स्तोमं तनानं सूरय दयुतद्यामानं वावृधत नृणां 1 ५ ए
} संवननं नाच्ंतदेवान॑पथयतं ॥१२॥ = `
मे।
1 । मे । स्तोम । तना । न । सूरय । दयुतत्ऽयांमानं । ववुध॑त्त। नु 1
। अन॑पऽच्युतं ॥१२॥ `
० ८. व्० रेष्ठ.
॥ अथ चयोट्
` वावत येषं राया युक्तैषां हिरण्ययीं ।
` नमिता न पैस्या वृथेव विष्टं ॥१३।
५ ॥ 1१ ६ शर [ १ ॥ [1 - , २
. ववते। येर्षा । राया । युक्ता । एषां । हिरण्ययी
[1 प [ ॥ शकि
| नेमऽधिता। न। पैस्यां। वृथंऽइव । विष्टऽख॑ता ॥ १३॥
ध येषां देवानां स्वभूतेन रायासखभ्यं दातव्येन धनेन युक्ता स्तुतिराववतं तेषा-
। मेषामथोय हिरण्ययी हिरण्मयी हिरण्यालं कारवत्मरीतिकरास्मन्मुखात्सुनःपन- ५
रावतेत इत्यथः । तच दृष्टातः । पोस्या पस्यानि बत्कानि नेमधिता न नेमधितती
| संयामे। विष्टता यापघ्रावसाना वृथेव यथा घटिकायंचमात्ा तइ
| ॥ खथ चतुदेशी ॥
पर तहुःशीमे पृथ॑वाने वेने प्र रामे वों चमर्ुरे मघवत्सु । 1
, | । ।
* भे इुह्काय पंच॑ शतास्मयु पथा विश्रायषां ॥ १६॥
` भ्र। तत्। दुःऽशीमे। पृथवाने । वेने। प्र। रामे। वोचं । असुरे । मघव॑त्ऽसु ।
१ |) क ज. कथम
^ ५५
य । युक्ताय । पच । शता । सस्मऽयु । पया । विऽच्राविं । एषां ॥ १४॥
^
तथा चानुक्रांतं। प्रेते ष
चेन 1
सघ्रमी
मावस्तोचं। सूचितं च । अवटमेवेतयेके ग्र वो मावाण इत्येके।
म्र। रते।
यत् । खटूयः। पवे
# र ति ।
| (८
६
वदतु प्र वयं व॑ट्
वटत्
॥. कि । ५9
1
४.
रि |
पृथेः पुचः कश्चित्मद्य एव
एवाधि रिटि ॥
त
पि. २९ |
प्र सद्य इत् सद्य एवाधि
॥ इत्यष्टमस्य चतुर्थेऽष्टाविंशो वैः ॥
न
प्र। वयं।
\
क (म क क
मरत इति चतुदेचं चतुरं सूक्तं । कंदूाः पुचस्य सपेस्यार्व
शी चिष्ः शिष्टा एकादश जगत्यः सोमाभिषवाधीा त
दूना सर्पो ऽदः काद्वेयो याव्णोऽस्तौत्यंचम्य्॑ये चष्ट
त ॥ ावस््तोच एतत्सूक्तं । सूचितं च । पेते वरदवित्यवदं प्राग
व जसे ग्र वो मावाण इति सूक्तयो । आ०५.१२,। इति ॥
॥ तच प्रथमा ॥
क चषि #
स्तुतिलक्षणं वाचं वदत । पठत्त । यद्यदा
सोमाभिषवाधे सिप्रकारिणः पर्व॑ता मावाणः स
श्रोतव्यं घोषमभिषवशब्दं भरथ पोषय
दाम मावभ्यो वाच॑ वदता वरद्॑यः
यदद्यः पवतः साकमाशवः छोकं घोषं भरथेदाौय सोमिनः ॥१।
वदाम। याव॑ऽभ्यः। वाचं
ताः। साकं। आशवः चछोई। घोष॑ । भर॑य
1
। वट्त
के एः = सै)
। वर्दत्ऽभ्यः
दस्या्े पंचमी सप्तमी
द् प्रागुत्तमाया आ
यज्ञा । इदमेकमेव सु
० ५.१२.। इति ॥
¢
र॑थ। इदरय। सोमिनः ॥१॥
एते यावाण उपलाः प्र वदंतु । अभिषवशब्दं कुर्वैतु ! वयं यजमाना वद्यो `
निषवशब्टं कुवेद्यो यावभ्यो माग्णामथाय वाचं प्र वदाम । किंच हे तिजो `
द्य आट्र्णीया ददा आखांशवः
णः सर्वे यूयं साकं संहेद्रायेद्राथे `
थ तदानीं सोमिनः सोमवंतः सोमेन
परौ
0 | | ॥ऋष्वेद्ः॥ [अ०४. अ. व०२९.
शतवत्सहस्रवत् यथा शतं मनुथाः सहस्रवदपरिमिता मनुयाश्च वदति तद-
देते यावाणो वदंति । श्ट कुवैति । किंच हरिभिः सोमसंसमाडरितवर्णेणसभि-
रास्येरमि क्रदि । सौममभिल्ष्य देवानाह यंतीत्यथेः । किंच सुकृतः शेभन-
कमाणो गरावाणो विष्ठी यज्ञं प्राण होतुर्दवानामाद्ातुरपरः पूवे चित् पूवैमेवादच
भक्षणीयं हविराशत । प्राघरुवंति ॥
त 1. ॥ खथ तृतीया ॥
एते व॑द्यविदन्नना मधु न्यस्यते अधिं पक्र आमिंषि ।
| वृक्षस्य शखामरुणस्य बप्स॑तस्ते सून॑वे वृषभाः प्रेम॑राविषुः ॥३॥
एते। वट्ति। अविंदन्। अना । मधुं । नि। ऊखयंते । अधि । पक्े। आमिंषि ।
वृक्षस्य । णसा । अरुणस्य । बप्स॑तः ते । सूभ॑वोः। वृषभाः। प्र। ३। अराविषुः ॥३॥
# [1.1
पपक्ष [8
+
अरुणस्यारुणवणेस्य वृषस्य शाखां बप्सतो भ्यंतस्ते सूभवेाः शोननभक्षा
वृषभाः प्रेमराविषुः । प्ररूवंति। यथा पक्र आमियध्यामिषे ऋरव्यादो मांसमस॒काश्च
मांसविषये यथा न्युंखयंते शब्ट्विशेषं कुवैति तद्देते यावाणो व्दति । शब्दं
कुवेति। विच । मधु मदकरं सोममनास्येनाविदन् । त्वभते ॥
ध ॥ अथ चतुर्थी । ॥
# 0 ।
[हदति मदिरेण मंदिनेदं करोभ॑तो ऽ विदन्नना मधु ।
7 धीः स्वसुभिरनतिषुरधोषर्यतः पृथिवीसुपंब्टिभिः ॥४॥
भिः । अनतिषुः। आऽघोषर्यतः। पृथिवीं । उपन्टिऽभिः॥४।
म०१०. अ०४.स०९६.] ॥ अष्टमो ऽकः ॥ २७१ |
तुऽपणेः। वाच॑ । ख्रत । उप॑ । दवि । आऽ खरे । कृष्णाः । इषिराः। अनर्तिषुः
नि यंति। उप॑रस्य नि ऽकृतं । पुरू । रेतः । दधिरे ।
1, 1 प
येऽश्चि्तः॥१॥ `"
1 1) जन्ये
सुपणाः सुपतना यावाण उपोपलष्य समीपे चव्यंतरिषे वाचमभिषवशब्द्-
मचत । कुवेति । किंच । स्माखरे । मृगाणां चज आखरः । तस्मिन् इषिरा गमन- `
कृष्णाः कृष्णमृगा इव सूयेश्ितः सूयेवद्छेतवणे द्रप्सा अनतिषुः । नृत्यंति।
मावभिः पीडितं सदुपरस्योपलस्य न्यगधोमुखं सोमं नि यंति! निगम- `
किच पुरु बहु रेतः सोमलक्षणमुट्कं दधिरे । धारयंति ॥ `
` ॥ इत्य्टमस्य चतुथं एकोनविंशो वगैः ॥ ५ |
॥ अथ षष्ठी ॥ 4
उमा इव प्रवहतः समाय॑सुः साकं युक्ता वृष॑णो विभ॑तो धुरः । ०५
यच्छरूसतो जयसाना अराविषुः मुख शषा प्रोयथो अवैतामिव ॥६॥
उगराःऽइव । प्रऽवर्हेतः । संऽञ्नाय॑मुः। साकं । युक्ताः! वृष॑णः । विभ॑तः। धुरः। `
॥
॥
॥
|,
संतः । जयसानाः। अराविषुः । गुखे । एषां । प्रोयथ॑ः। अवैतांऽइव ॥६॥ `
वृषणः। फले वेत्तीति वृषा यज्ञः। तस्य धुरं भारं विभतो धारयत एते मा-
वाणः साकं सोमेन सह युक्ताः संतः प्रवहंतौ रथं प्रक्षेण वोढार उया उद्रणो `
अश्वा इव समायसुः । समायखंति । सायता भवंततीत्यथेः। यद्यदा संतोऽभि- `
षवसमय उत्सतननिपतनव्यापारजनितेन वायुना संत इव स्थिता यावाणो
जयस्ानाः सोमं मरसमाना अराविषुः शब्दायते तदानीमेषां पाव्णां संबंधी प्रो-
थयो सुखाच्छन्दः प्ृखे । धूयते । तच दृष्टातः । अर्वत्ताभिवाश्वानां संबंधिनो _
द्वेषाणब्टो यथा तद्दित्यथेः ॥ =
॥ अथ सप्तमी ॥
#
५१ १
२9२ * « ॥ ऋण्वेट्ः । [ख० ७, ०४, व० ३०
हक्तेन संवंधिनस्ते टशवनयः । तान्याव्णः। डितीया्ये चतुथी । ट्शकष्येभ्यः। ` (|
कष्याः प्रकाश्का अंगुत्यो येषां ते दशकष्याः । तान् । दश्योक्तेभ्यः। योक््वडंधने ५५
साधनभूता दशंगुकयो येषां तान्। दशयोजनेभ्यः। सोमेन सह योजने साधनभूता |
दशंगुलयो येषां तान् । दश्णभीमुन्यः। कमाख्यभितो व्याघ्रुवंत्तीत्यभीशवोऽगुटयो |
1 दश येषां त्तान्। अजरेभ्यो जरविवजितान्दश दशभिधुरो धूभिरहिसितृभिः। तृतीयार्थे ।
प्रथमा। युक्ता युक्तान्। डितीयार्थे प्रथमा । वहद्यो वहतौऽभिषवास्ये कमेणिव्या- ` ॥
` भियमाणानचेत। स्तुत । हे ऋषिज इति शेषः ॥ अचर यास्कः । अवनयोऽगुलयो
भवंत्यवंति कमणि रक्ष्याः प्रङाश्यंति कमणि योक्ताणि योजनानीति या-
ख्यातमभीशवोऽभ्यश्रुवते कमाणि टश धरो टश युक्ता वहद्यः, धधवेतेवेधकमेण ५
इयमपीतर धूरेतस्मादेव विहति वहं धारयतेवा । नि० ३,९.। इति ॥
सस
0२.
॥ अथा्टमी ॥ 9
ते अद्रयो ट्शंयंचास आशवस्तेषामाधानं पयति हयेतं । 4.
त ऊ सुतस्य सोम्यस्यांध॑सोंऽभोः पीयूषं प्रथमस्य भेजिरे ॥४॥
ते। अद्रयः । दशंऽ यंरासः। आशवः । तेषा । आऽधानं । परं । एति । हयेतं।
ते। ऊ इतिं । सुतस्य । सोम्यस्य । ंध॑सः। अंशोः । पीयूषं । प्रथमस्य । भेजिरे ॥४॥
अद्य आद्रणीया आशवः क्िप्रकारिणस्त एते प्रकृता सावाणो दश्यचासौो `
दशयाः तेषामेषां माज्णां संवंधि यदाधानं प्र्ेपणमभिषवकमे हयेतं स्पृहणीयं
येति 40; । परितो गच्छति । त रते मावाण एव सुत्तस्याभिषुतस्य सोम्यस्य सोमस्य
॥ अथं नवमी
सतेऽणुं दुहतो अध्यासते गविं।
॥ अथ दशमी ॥
वृषां वौ अंभुनं किरा रिषाथनेक्छा वंतः सदमित््य
रेवत्येव मह॑सा चारवः स्यन् यस्य॑ मावाणो अजंषष्वमध्वरं ॥१०॥ ~
वृषा । वः। खंभुः। न । किक । रिषाथन } इव्छां ऽ वंतः। सद। इत्। स्थन । सआशिताः। `
# प्व ॥
रेवत्याऽइव । मह॑सा । चार॑वः । स्थन । यस्य॑ । पावाणः। अजुंषध्वं । अध्वरं ॥१०॥ =`
अभुः सोमो वो बुष्माकं वृषा यज्ञे वर्धिता भविष्यति । यूयमपि न रिषाथन
ल । न रिषय। न शीण भवच किल । विच । इल्छावंतौऽन्रवंत इव ययं 1
सट्मित् सदेवाशिता भोजिताः स्थन । भवथ । किंच । रेवत्येव यणा रेवंतस्तेजसा `
युक्ता भवंति तइन्महसा तेजसा युक्ताश्चारवः कल्याणः स्थन । भवय । हे मावाणौ ` `
यूयं यस्य यज्मानस्याध्वरं यज्ञमजुषध्वं । असेवध्वं ॥ = `
॥ इत्यष्टमस्य चतुर्थे चिंशो वेः ॥
अथेकादशी ॥ =. ` 4
तृदित्ठा खतुंदिलासो अद्रयोऽश्रमणा अम्पुथिता अमुत्यवः। 0
। अनातुरा अजराः स्थाम॑विष्णवः सुपीवसो तुषिता अतंष्णजः ॥११॥ =`
| तृदित्काः। खतुंदिलासः। खदूयः। अश्चमणाः । अुथिताः । अमृत्यवः
अनातुरः अजराः स्थ। अम॑विष्णवः। सुऽ पी वसंः। अतृ पितताः अतुंष्णए ऽ जः ॥११॥
अश्रमणाः अरमणव्निता अप्पथित्ता अन्येरशियित्कीकृ
-्
ट््ः॥ प° ४, ०४, च० ३१.
| | २७४
| श्रुवाः। एव। वः। पितरः युगेऽगयगे!
2 अज्ुयसः। हरिऽसाचंः। हरिदरिवः। आ । दां । रवेण । पृथिवी । सणुश्वुः ॥१२
मऽकामास्ः। सद॑सः । न । यजते
0 कि |
हयावाणो युगेयुगे सर्वेषु युगेषु भुवा निश्वत्ाणववौयु
` पितृभूताः पवैताः सेमकामासः सेमकामाः सदसो न युजते । सदास्यात्मना न
संयोजयति अज्ुयोसो जरारहित हरिषाचः सोमस्य संभक्तारो हरिद्वः सोम-
समगाडरितवणे द्यां दिवं पृथिवीं च रवेणाभिषवश्ब्देनाभुश्चवुः । प्रावयति
1 | ॥ अथ चयोटशी ॥
तदिङ॑द्यदूयो विमोचने याम॑नंजस्पा इव घेदुपच्दिनिः। `
८ वर्प॑तो बीज॑मिव धान्याकृर्तः पुंचंति सोमं न भिंनंति वप्संतः ॥१३॥
# श ^ केति
1 तत्। इत्। वदंति। खदरयः। विऽमोच॑ने। याम॑न्। संजःपाःऽईव। घ। इत्। उप्
वप॑तः। बीजऽइव धान्यऽकृत॑ः। प॑चति । सोम॑ । न । मिनंति । बप्स॑तः ॥१३
# कि. ।
ध
[
|
1
| दूय आआट्रणीया यावाणो यामन् यामनि गमनेऽजस्पाः । अंजसा पाति
र्तीत्यंजस्याः । तेषां रधानामिवोपष्टिभिस्तदित्तदेवाभिषवकमे विमोचने घेत्
तत्सोमरसविमोचनवेत्ायामपि वदंति । प्रकाशयति । किच । बप्सतः सोम भक्ष
यंतो पावाणो वपंतो धान्याकृत्तः कृषीवला बौजमिव यथा पुंच॑ति तत्सोमं
पुंचंति संपचैयंतीत्य्थः । नैनं मिनंति । न हिसंतीत्यथेः ॥
॥ अथ चतुदेश्षी ॥ `
\
॥
=
म०१०. ०४, सू० ९५. ॥ अष्टमोऽ टकः ॥ २७५
सुच । विशेषेण मुंच विच । अद्यो वि वतैतां । अभिषवशब्टं
न । इत्यष्टमस्य चतुथे रकचिशो वगः
दास्य प्रकाशेन तमो हादे निवारयन् ।
पमथोाश्चतुरो देयादिद्यातीपे महेश्वरः ॥
इति चरीमद्राजाधिराजपरमेश्वरवेटिकमागंप्रवतेक्ीवीरवक्रभूपाठसामाज्यधु-
रेधरेण सायणाचार्येण विरचिते माधवीये वेदाथेप्रकाश ऋकसंहिता-
नाथे ऽ्टमा्टके चतुर्थोऽध्यायः समाघ्नः ॥
यस्य निःश्वसितं वेदा यो वेदेभ्यो ऽखिलं जगत्!
निमेमे तमहं वदे विच्यात्तीथेमहेश्वरं ॥ क,
याटमारटकेऽध्यायश्चतुथेः संप्रटशितः
धीमता सायणर्येण पंचमोऽच प्रदश्येते ॥ ` |
तच हये जाय इत्यष्टाट्शचं पंचमं सूक्तं चेषटभं । अचानुक्रमणिका । हये चू
नोवशीमेक्छः पुरूरवाः पूर्वोषितात्कामात्पुनरासाद्यावरोद्ुमेच्छत्सा तमनिखी
परत्याचष्ट हय इषुया कटा सुदेवोऽतरिसप्रां सचेति तिखेव्छवाक्यं शिष्टा उवेश्या
इति । हये जाय इषुनं ध्रिये या सुजूणिः कदा सूनुः सुदेवो अद्यांतरिखपरां सचा `
यदासु जहतीष्रित्याद्यासिखश्चेति नवचें रेक्छस्य पुरूरवसो वाक्यानि । अतस्तासां =
ऋषिः। शिष्टा नवोवेश्या वाक्यानि । तस्ता सषिका । उभयो वाक्येषु |
4
स=
न
५ यच देवं गिरिसुता सवेभावेरतोषयत्। ° ` व |
। : आअचाविशन्पुमान् स्त्री स्यादित्युक्ता तच प्राविशत् ॥४।
। 0 स्वीभूत्वा नी डितः सोऽगाद्छरणं शिवमजसा । ^.
| इयं प्रसाद्यतां राजन्नित्युक्तः शुना नुषः ॥५।
| ज्ञगाम शरणं देवीमात्मनः पुंस्वसिये। |
५ 1 अक्रोत्सा नृपं टेवी षरमासात्मापतपुसूवनी ॥६॥ |
. ततः कटाचित्लीकाते बुधः सोंदयेमोहितः।
५ अप्तरोभ्यो विशिष्टां तामिष्छां संगतवान्मुदा ॥७9॥ `
५ तदिव्छायां सोममुताज्जनातो राजा पुरूरवाः
8 तमुवैशी तु चकमे प्रतिष्ठानपुरे स्थितं ॥४६॥
(>+. तस्याटन्यच् नम्रं तां हृष्टा यामि यथागतं ।
। सुतावुरणको त्वं च समीपं कुर मे दूतं ॥९॥ ॥
(4. ` ; इति सा समयं कृवा रमयामास तं नृप, 1 1
चतुरब्डे गते राजौ देवेरुरणकञयं ॥१०॥ #
| हतं तस्य ध्वनिं श्रुत्वा नम्र णव स भूपतिः ।
| उत्थाय जित्वा तो मागद्छेत्येवं जत्यसो ऽन्यत्तः ॥ ११॥
। तत उन्मचवद्ाजा दिह्षुस्तामितस्ततः। 4.
कुवैन्नन्वेषणं तीरे सरसो मानसस्य तां ॥१३॥
प्सरोभिः सहापश्यत्पुरूरवाः। 6
भोक्घमुर्वणीं च पुरूरवाः ॥१४॥
दुता च ्रत्याचरे ब्रनेतितं।
पोऽपयसूचयदिति ॥१५॥
अथसा नष्टसमयाद्युवेशी तु दिवं ययो ॥१२।
4142
प
यत्तःख्ोति विस्षवती तस्ये हा!
जाये मनसेत्यादि । श० ब्रा०११.५.१.॥ ` ४ + क ए
ह गंधव अन्यत
र इव जत मेऽजनं इव पुच ९ |
हायमीसां चक्रे क्यनुत्द्वीरं
णं प्रमेथुः। सा होव
ति डितीयं प्रमे थेवोवाचां
पमजन < स्याद्यचाह् ९ स्यामिति स नम्र रुवानूत्मपात चिरं तन्मेने यदास
येधास्यत ततो ह गंधव विद्युतं जनयां चक्रुस्तं यथा दिवेवं नम्रं द्दशे ततो
पुनरेमीत्येचिरोभूता ९ स आध्या जल्पन्कुरुसेच ९ समया चचारा-
नं वव्राज तद ता अप्सरस स्तयो भूत्वा परि
त ९ हेयं ज्ञात्लोवाच अयं वे स मनुष्यो यस्िनहमवात्समिति ता होचु-
तस्मे वा खआविरसामेति तथेति तस्मे हाविरासुस्ता ९ हाय ज्ञातल्वाभिपरोवाद् हये |
॥ । तच सुक्ते प्रथमा ॥ $ |
हये जाये मन॑सा तिं घरे वचाँसि मिश्ा कंणवावहे नु ।
न नौ मचा अनुदितास एते सय॑स्करन्परतेरे चनार्हन् ॥१॥ ` `
हये । जाये । मन॑सा । तिषठ । घोरे । वर्चासि। मिघ्ा । कृणएवावहे।नु। `
सचा: खनुदितासः। एते। मर्यः! करन्। परऽ तरे । चन । अर्ह॑न् ॥१।
श जाये मनसास्रदुपयैनुरागवता मनसा युक्ता सती तिष्ठ । सणमाचं
व निवस । हय इत्यस्य निघाताभावष्डांदसः । किमथे संस्यानमिति
चांसि वाक्यानि भिश्राणएयुक्किप्रयुक्तिरूपाणि न्वद्य रिप्रं वा कृणवावहे। =.
पाकर णः वकणव्योरचेत्यप्रत्ययः। किमथे वचसः करण-
२७४
। किं! एता! वाचा । कृणव । तव॑ । अहं । म्र । अक्रमिषं । उषसां । अयियाऽइव
# ककः भन #
॥ कग्वेट्ः ॥ ` [० ४, ० प, वं०१.
+: पुरूरवः। पुन॑ः। अस्त । परं । इहि दुःऽखपना । वातःऽइव । अहं
| अनया तसुर्वेशी प्रत्युवाच । एतेतया वाचा केवलया पुनःसं
~ एव । वि करवाव । अहं विदानीं वत्सकाशत्मा्रमिषं । सतिक्रांतवत्य
५ अतिक्रमे दष्टांतः । उषसामयियेव । बह्वीनासुषसां मध्येऽम्याये |
` मराक्रमीद्यधाहमपीति । यस्मदेवं तस्माद्ध पुरूरवस्त्वं पुनरस्मत्सकाश्णट
। | परेहि। परागच्छ। मा ममाभिल्ाषं कार्षीः । तस्या टुयेहत्वमाह । अहं वात इवं
1 वायुरिव दुरापना दुष्प्रापा दुरापा वास्सि। टुणपा वा अहं तवयेतद्यस्मि पुनगुं
(८ हानिहीति हेवेनं तटुवाचेति वाजसनेयकं । ० ब्रा० ११.५.१.७. ॥
॥ खथ तृतीया ॥
इघुनं धिय इषुधेरसना गोषाः शतसा न रंहिः।
अवीरे ऋतो वि द॑विद्युतन्नोरा न मायुं चितयत् धुन॑यः ॥३॥
गन # ॥ के ए पी
इषः । न । धिये । उषऽधः । असना । गोऽसाः। शतऽसाः। न । र्हः! `
अवीरे । ऋतो । वि । टविद्युतत्। न ! उरा! न । मायं । चित्तयंत । धून॑यः ॥३॥
(0 । क | कि मि आ |
अनया युदूरवाः स्वस्य विरहजनितं वेङक्व्यं तां प्रति चूते । इषुधेः । इषव
धीयतेऽचेतीषुधिनिषंगः । ततः सकाश्णरिषुरसनासनाये प्रक्षेपं न भवति ध्ये
वजयाध । वद्िरहाचुद्धस्य नुद्ावप्निधानात् । तथा रहिर्वेगवानहं शचुसका-
शाद्रोषास्तेषां शचरुणां गवां संभक्ता नाभवं । तथा शतसाः शएतानामपरिमितानां
। किंच । अवीरे वीरवजिंते ऋतो राजकमेणि सति
। न मत्सामथ्ये । किंच । धुनयः कंपयितारोऽस्मदीया
सपम्या उदेशः। विस्तीणे संमामे मायुं । मीयते
त्यादिनोण् । सिंहनादं न चितयत् ।
भौ
म०१०., ०४. सू० ९१ ॥ अषटमोऽशटकः ॥ ` ३
वसुं । दध॑ती श्वशुराय । वय॑ः । उष॑ः । यदि । वष्टि । खंतिंऽगृहात्। ` |
नन । यस्मिन्। चाकन् । दिवा । नक्तं । प्रथिता । वेततसेन॑ ॥४॥ |
इदसुत्तरं चो वैशी वाक्यं । आचेन पुरात्मना कृतमुषसे निवेदयति । हे उषः `
यसु वेशी वसु वासवं वयोऽन्नं वष्वुराय भतः पुरूरवसः पिचे दधती प्रयद्छती
तच गृहे स्थिता यदि पतिं वष्टि कामयते तदांतिगृहात्। स्वभतेभोगगृहांतिके यः
रस्य भोजनगृहं तर्दतिगृहं । तस्मानृहात्सो वैश्यस्तं पतिगृहं नने । व्याप्नोति।
नन्गृहे चाकन् कामयत उवेणी । सा चोवेभी टिवा नक्महनि राजीः. ` .. `:
वैत्तसेन। शेपो वेतस इति पुस्प्रजननस्येति निरुक्तं! ३.२१.। पुस्प्रजननेन श्नथिता ` `
ताडिता च भवति । एवमुवेश्यात्मानं परोक्षेण निदिदेश ॥ |
॥ अथ पंचमी ॥ ५
चिः स्म माहं: प्रययो वेततसेनोतत स्म मेऽव्यत्ये पृणासि । 1.1
पुरूरवोऽनुं ते केतमायं राजा मे वीर तन्व4स्तदासीः ॥५॥
चिः। स्म! मा । अहः । च्रययः । वेतसेनं । उत । स्म । मे! आव्यते ! पुणासि।
भै कि शमने थे , जनि क्षे चे ॥ 1 ध १ भै
हरवः। अनुं । ते । केतं । आयं । राजा । मे । वीर । तन्वः । तत् । आसीः ॥५॥ `
अनेन युूरवसमेव सं बोध्योक्तवती । हे पुरूरवस्वं मा मामहो ऽहनि वै
ट्डेन पुव्यजनेन चिस्िवार । दिचिचतुभ्यैः सुच् । प्रथयः स । सश्नथयः। अता-
डयः। कृचोचेप्रयोगे । पा०२.३.६४.। इति का वाचिनोऽहःशब्टाट्धिकरणे षष्ठी ।
उतापि च । स्मेति पूरणः! अव्यत्ये । सपत्तीभिः सह पयायेण पतिमागच्छति
सा व्यती । न तादृश्यवयती । तस्थे मे मद्यं पृणासि । पूरयसि। एवं बुद्धा हे पुरू-
रवस्ते तव केतं गृहमन्वायं । अन्वगमं पूवे । हें वीर राजात्व चमे ममतन्वः
शरीरस्य तचटासीः। खभवः। सुखयितेति शेषः । परमेवं मंतव्यं किमिति
भवसीत्युवाच ॥ = # ए
| ॥ ््यष्टमस्य पंचमेप्रथमोवगः॥
,
६. -*. - २60 | | ॥ ऋग्वेदः
५६ #
#
^: या। सुऽजूणिः। चरेण: । सुन्रेऽ आपिः, हुदेऽ चुः
1] तै
| ताः। अंजय॑ः। अरुणर्यः। न । ससुः । ध्ये । गावः । न । धेनवः । अन वंत ॥ दै
[१ । [ ति षि त |
(0 ूरवसी वाक्यं । या सुजूणिः सुजवेतनामिकास्ति तथा या श्रेणियो सुल-
| . आपियी हृदेचक्षुः । नकारः समुचये । ताभिश्वतसृभिरालिभूताभिमानि
सहिता मंथिनी संथनवती संदभेवती चरण्युश्वरणशीत्छो वेश्याजगाम । यद]
नीव्येतत्ससिभूताप्सरोनामधेयं । या सुजूणिः सुजवो वंशी सा ताभिः सह जगाम
ता छष्ठरसोऽजय ख्भरणोपेता अरूणयोऽरूणवणे न ससुः। पूवेवन्न गच्छति,
श्चिये ्रयशाय धेनवो नवप्रसूता गावौ न गाव इव । ्राच्रयाथे यधा गावोऽन-
4 वंत शब्दायते तथा न शब्टयंतीति व्यतिरेके द्टातः ॥
, ॥ खथ सत्नरमी ॥ अ
3 सम॑स्मिज्ञाय॑मान आसत ग्रा उतेम॑वधेन्नद्य4ःस्वगू ताः ।
महे यच्छा पुरूरवो रणाया व॑धेयन्दस्युहर्याय देवाः ॥७॥
सं । अस्मिन् जाय॑माने! आसत । म्राः। उत । ३ । अवधन्। नद्यः । स्वऽ गू
[णन [क त सि 1 शष्ठ पिनि प | 1 ॥
महे। यत्। त्वा । पुरूरवः । रणाय! अव॑धंयन्। ट्स्युऽहत्यांय । देवाः ॥७॥
चै क
अनयेताभिः सह संसगैख्वयानुभूत इतयु वैशी वदति । अससन्पुरूरवसि जाय-
सति ग्रा खष्सरसो देववेश्या अपि समासत । संगता अभवन् । अथवा
ज्ञायमाने यज्ञा प्रवधंमाने सति म्रा देवपल्योऽपि समासत । समभवन्। उतापि
गुतः स्वयंगामिन्यो नद्यस्तासामाच्रयभूता अवधेयन्।
साचा तवां महे महते रणाय रमणीयाय संपामाय
वास्वामवधेयन् ॥
।अष्मोऽषट्कः॥ =. २
क्यानि। तचादितो ान्यामुवेशीमन्याश्च सह स्तौति । यद्य- ` 1
; पुरूरवा अत्वं स्वकीयं रूपं । अक्त इति रूपनाम । जह-
मानुषीषु देवताभूतास्वप्तरःसु मानुषः सन् निषेवे ऽभिमुखं ।
नीं ता खप्सरसो मत् मतोऽ पापसृत्याचसन्। चसतिगेतिकमेा। गच्छं ॥
यने ह्टातः। तरसंती भुज्युनं । तरसन्राम मृगः । तस्य स्री सुन्युभोग-
मृगी । सा यथा व्याधाज्ञीता पलायते । किंच । रथस्युशे ना-
रथे नियुक्ता अश्वा इवं । यथा ते पत्कायते तहत्मलायत इति । उवेष्या- `
नेकाभिरस्माभिः सह भोगमनुभुक्कवानसी्युक्तः प्रत्याचष्टे ॥ ` ०
॥ अथ नवमी । 9 ४
पु मर्तो अमृतासु निस्पुक्सं रोणीनिः ऋतुभिनं पक्त ।
तता आतयो न तन्व॑ः शुभत स्वा अश्वासो न क्रीव्छयो दरदशनाः॥९॥ `
यत्। आसु । मः! अमृतासु । निऽस्पुर्। सं । लोणीिः। ऋरतुऽभिः। न। पुक्ते।
| ताः। आतय॑ः। न। तन्॑ः। मुभत। स्वाः अ्वासः। न । क्रीक्य॑ः। दं्दशनाः॥९॥ `
1... यद्यदास्वमृतास्वप्सरःसु मर्यो मनुः पुरूरवा निस्पृर् निःशेषेण स्मृश्त् |
. सोणीभिवाग्मिः कतुभिनं कमेभिश्च सं पुंक्ते संपकं करोति । नकारः ससुच्याधेः। . `
` ता अप्सरस आतय आतिभूतास्तदानीं स्वासूहन्व आत्मीयानि रूपाणिन भुभत।
, न प्रकाश्यंति । स्वासो नाश्वा इवं ऋीक्छयः संक्रीडमाना दद्शना ददगुका
त्मीयाः सुक्क भक्षयतः । ते यथा चापल्येन धाव॑तः स्वरूपं न प्रय-
रथिकाय तददिति दुःखाूते ॥
| ॥अथद्श्मी॥
या पत॑ती दविंद्योद्रंती मे अपया काम्यानि ।
२४२ ०४, ऋ०५, व°
ष
टभिमततान्यटकानि वा मे मद्यं भरती संपादयती । यदागतायास्लस्याः सकाश-
(५: टपो व्याप्नः कर्मसु नर्यो नरेभ्यो हितः सुजातः सुजननः पुचो जनिष्टो अजनि-
॥ तदानीं समोवेशी दीधेमायुः प्र तिरत । प्रवधेयति । प्रजामनु प्रजायसे
त्तद ते मत्यीमृतं । ते° ्ा०१,५.५.६.। इति हि मचः
स ॥ इत्यष्टमस्य पंचमे हितीयो वगेः ।
ध ०
#
प; ॥ ऋथेकादशी ॥
1 जज्िष इत्था गोपीथ्याय हि दधाथ तत्पंरूर्वो म ओज॑ः । |
शसं त्वा विदुषी सस्मिनरहन्न म आभुणोः किममुग्वदा
जजलिषे। इत्या । गोऽपीथ्याय। हि । दधाथ । तत् । पुरूरवः
| अशासं । ला । विदुषी । सस्िंन्। अर्हन्। न। मे। आ। अमु
५ वदासि ॥११॥
ध्याय । गोः पृथिवी । पीथं पाठनं । स्वाधिकस्तदितः 1 भूरसष-
। खाय जक्षि हि। जातोऽसि खत्टु पुचररूपेण । आत्मा वे पुचनामेति श्रुतेः
। पनदव्ाह। हे पुरूए्वो मे ममोदरे मग्योजोऽपत्योत्मादनसामध्यै दधाथ । मयि
इत्थेत्यं गोपी
हतवानसि । तत्तथास्तु । अथापि स्थातव्यमिति चेच्चाह । अहं विदुषी
काये जानती सस्मिन्नहन् सवैस्मिन्नहनि त्वया कतेव्यं त्वा चामश
। त्वं मे मम वचनं नाण्ुणोः । च म्ब
ताथेमपात्यन्वदासि हये जाय इत्यादिः
०९५. ॥ अष्टमो ऽ टकः २४६३
तर । जातः। इच्छात्। चन् । न । अश्रं । वतेयत् । विऽजानन्।
इति ट्ऽप॑ती । सऽम॑नसा। वि। यूयोत्। अध॑ । यत्। अरिः । रभुरेषु
दीदयत् ॥१२॥
५
दा कस्मिन्काले सूनुस्तवोद्रजातः सन् पित्र मा-
तत् इद्छेत्। इषु इच्छायां । ठेटि शपीषुगभियमां इ इति खादेशः। लेटोऽडा-
त्यडागमः। कदा वा विजानन्पितर मामधिगच्छन् चक्रन् क्रटमानो नाध
नेति चार्थे । विच । कः विविधः सन् सूनुः समनसा समनसौ समनस्क
पती चां मां च वि यूयोत् । विष्ेषयेत्। यु मिश्रणामिश्रणशयोः ।
दीषेः । अधाधुना यद्यदाभ्निस्तव
। दीदयतिर्दीप्निकर्मेति ने
थ चयोटशी ॥ क
ध्ये शिबायं। |
ना,
1 इमुवर्शं वाक्यं। हे पुरूग्वः। लां प्र ५
| वाष्पं वत्तेयते। वतेयिष्यति। साध्य श्ाध्याते व
विमुंचन् न करत् । नकारा
न शिवाये शिवे रस्या समु-
रये । रोत्यति
{
॥
४ ॥ ऋण्वेट्ः ॥ [अ०४. ख०५, व०३.
ऽदेवः। अद्य । प्र ऽपतत् । अनावृत! पराऽवतं । परमां । गंतवे। ऊ इति ।
अध॑ । शयीत । निःऽ कतिः उपऽस्थ। अधं । एनं । वृकाः । रभसासंः। अद्युः ॥ १४
अद्य परिद्यूनः पुरूरवा उवाच । सुदेवस्वया सह सुक्रीडः पतिरद्य प्रपतेत्
चैव प्रपततु । अथवानावृदनावृत्तः सन् परमां परावतं दूरादपि दूरदेशं ग॑तवे
गंतुं महाप्रस्थानगमनं कुयेत्। खधायवा यचकुचापि गंतुं समथो निद्छनेः पृथिवया
, उपस्थे शयीत । शयनं कुयात् । यद्वा निकौतिः पापदेवता । तस्या उपस्थ उत्संगे
संनिधौ भियतामित्यथैः । अधाथवेनं वृका अरण्याः वानो रभसासो वेगवतो
ऽद्युः । भक्षयतु । अचर वाजसनेयकं । सुदेवो ऽद्योह्वा वधीत प्र वा पफचचदेनं वृका
वा श्वानो वाद्युरिति हैव तदटुवाचेति ॥
॥ अथ पंचदशी ॥ ५ |
पुरूरवो मा मथा मा प्रप॑प्तोमात्वा वृकांसो अशिवास उ छन्
स्ेणानि सख्यानि संति सात्दावुकाणां हर्दयान्येता ॥१५॥
पुशूरवः। मा। मृथाः। मा। प्र। पप्ठः। मा। तवा वृकांसः। अरिवासः। ऊ इति छन्
न । वे। खेणानि। सख्यानि । संति। सालावृकाणां । हर्दयानि । एता ॥१५॥
` तमित प्रल्युवाच। हे पुरूरवस्वं मा मृथाः । मृतिं मा प्राघरुहि । मियतेदैडिः
चासि इस्लादगादिति सिचौ ल्ोपः। तथा मा प्र पप्तः। खचैव पतनं मा कार्षीः ।
पतेठैडिः टृदिात्पुषादीत्यादिना चरः । पतः पुमिति पुम्। तथा त्वा त्ामशि-
णुभा वृकासो वृका मा उ छन्। उ इत्येवकारार्थ । अक्षन् । माभ्यवहारयंतु
>>
शः। मने घसेति बुटक्। गमहनेत्यादिनोपधालोपः
चेति चत्वै । बाहल्काट्डभावः। अथ स्वलेहस्या-
मर १०,.अ० ४, सू ९५.
)
॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ "= 3
॥ थय षोडशी 8
राचः शरदश्चत॑सः। "१
कं सकृद्हं आश्नां तदेवेदं तातुपाण च॑रामि ॥१६॥ ग
1 विषूपा मनुथसं पक्षादिगतसहजभूतदेवरूपापत्यानुकूस्येन नानारूपा `
मनुथेश्रचरं तदानीं राजीः पूरयिचीश्चतसखः शरोऽ वसं । न्यवसं । ४
अत्यतसं योगेति हित्तीया । तदानीं घृतस्य स्तोकं सकृदह आघ्रा । तदेव तेनैव `
नाहमिद् संप्रति तातृपाणा त्रा सती चरामि ॥ ` 3
॥ अथ सप्तदशी ॥
अतरिषप्रां रजसो विमानीसुपं शिक्षाम्युवेशीं वसिं्ः ।
उप॑ त्वा रातिः संवृतस्य तष्टानि व॑तैस्व हर्दयं त्यते मे ॥१७॥
तरि ऽप्रां । रज॑सः विऽमानीं। उप॑ शिकछामि। उववशीं। बरसि्ः।
मुऽ कृतस्य । तिष्टात्। नि । वस्व । हर्दयं । तप्यते । मे ॥१५॥
|, # ^ 9) [1
॥ र । ॥
। चा । रातिः।
भैक
पकर |, वि
अंतरिप्रां स्वतेजसांतरिक्षस्य पूरयिचीं तथा रंनसो रजकस्योदकस्य विमानीं
{ निसीचीमुर्वशीं वसिष्टः समानानां मध्येऽत्िण्येन वासयिताहसुप शिसामि। `
{. नयामि । सुकृतस्य शोभनकमेणौ रातिदाता पुरूरवास्त्वा त्वासुप तिष्ठात्।
| उपतिष्ठतु। मे हृदयं त्यते । ऋतो निवतेस्व । एवं राजोवाच ॥ 00
|): इतिं लला देवा इम आंहरक यथेमेतद्गव॑सि मृचयु्वेधुः। २
५: त्र न्हविषां यजाति स्वगं उ त्रमपिं मादयसे ॥१॥ =
¢ ` २४४ | | ` ॥ ऋग्वेदः ॥ ०४. अ०५, वप.
| तै ततव संबंधिनो यदव्या्देवाम्हविषा यजासि। यज एव त्वमपि
मादयासे । मादयसेऽ स्माभिः सह । एवमाहुखियिथेः । यस्मदेवं करोषि त
भिल्ाषं हिवा सुखी भवेति सेयं पुरूरवसं प्रत्युवाच ॥
४ । ॥ इत्यष्टमस्य पंचमे चतुर्थो वगेः ॥
अथ प्रते मह इति चयोदशच षष्ठं सूक्तं । बरूनोामागिरस षिः । इदः
#॥
स्वैहरिवी नाम । इाटशीचयोदश्यो चिष्टभो शा एकाट्श जगत्यः । इ्-
स्याश्चौ हरी। तयोर सयमानत्वा्तदेवताकमिदं । तथा चानुकरातं । प्र ते सप्नोना
स्वैहर्सविदो हरिस्ततिर्दिचिष्ट बतं ॥ अतिराचे तृतीये पयाये बाद्यणाच्छसिन
एतत्सूक्तं । सूचितं च । प्र ते मह ऊती शचीवस्तव वीर्येणेति याज्या । सआ०६.४.।
इति ॥ षोडशिश्खेऽ याद्यस्तृ चः शंसनीयः । सुचितं च ! प्र ते महे विदथे शंसिषं
री इति तिसौ जगत्यः । आ०६.२.। इति ॥
। तच प्रथमा ॥ ` 1
महे विदथ शंसिषं हरी प्रते वन्वे वनुषो हयेतं मर्द्।
धृतं न यो हरिंभिश्वारू सेच॑त आ त्वां विशतु हरिंवपेसं गिरः ॥१॥ `
। ते । महे । विदथे । शंसिषं । हरी इतिं । प्र। ते । वन्वे । वनुषः । हयेतं । मट् ।
पके, ऋक = व्व भै ॥
| | ध ४
ृतं। न। यः। हरिंऽभिः। चाई। सेचते। आ। त्वा । विशतु । रिऽ वपैसं । गिरः ॥१॥
भच: ) , ने
| . इहेडइदते तव हरी अश्वौ महे महति विदथे यज्ञे प्र शंसिषं । अशंसिषं ।
ऋस्ताविषं । तथा वनुषः । वनु हिंसायां । हिंसकस्य ते तव हयेतं । हये गति-
कात्योः । तस्योणादिकोऽतच् । चिश्स्वरेणा तोदात्तः । कमनीयं मदं प्र वन्वे ।
प्रयाचेऽस्मदभिमतं । वनु याचने। य इदरो हरिभिहेरितवर्शेरश्वेमे्यागं गत्वा चार
सुपूतसुटकं सेचते वषेति तं ताह शं हरिवपेसं । वपं इति
माविश्तु गिरोऽ ससदीयाः स्तुतिवाचस्तव मदाय ।
अथ हितीया ॥
पूजयत् हे स्तोतारः स्तुतिभिः ॥
॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ ` | २४७
षयो योनििटस्य स्थानभूतं हरिम
भिसंसतुवंति ! किं कुवेतः । दिव्यं देव्
तथा हरी खश्ौ हिन्वंतः प्रेरयंतः। सोमेऽभिषुते सति
ौ प्रेरयति अतः स्तोतृणं हरिप्ररणलं । यद्वा दिव्यं सद् इदः प्राज्ुयाद्यथा
हरी स्तृतिभिरहिन्व॑तः प्रेरयंतः। यसिंडं धेनवो नवप्रसूतिङका गावो यथा पृणंति
दिभिः अच पुरस्ताटुपचारोऽपि नकार उपमाथीयिः । हरिभिहैरित वर्णे
रापृणंति पूरयति च । तथा यूयमपींदरायेदरस्य हरि वतं शूषं बल्मचेत ।
स्त
॥ अथ तृतीया ॥
छस्य वजो हरितो य आयसो हरिनिंकामो हरिरा गभ॑स्त्योः ।
दुखी सुशिप्रो हरिमन्युसायक इद नि रूपा हरिता मिमिशिरे ॥३॥
स्य। वजः! हरितः। यः! स्ायसः। हररः! निऽकामः। हरिः । आआ। गमस्त्योः।
शिप्रः। हररिमन्युऽसायकः। इर । नि । रूपा । हरिता । मिभिषठिरे ॥३॥
केः |,
ऋस्यद्स्य स वजो हरितो हरितव्णो य आयसीऽयःसारभूतोऽ लि निमित:
स च हरिररितव्णो वजो निकामो नितरां कमनीयः। स आ हंता शवरूणां । तादण्णे
वजो गभस्त्योहैस्तयोवैतेत इति शेषः । अयमिंटो द्युम्नी । शुनं द्योतमानं धनं ।
तान् सुशिप्रः टोभनहनुहैरिमन्युसायकः। यस्य मन्युः सायकः शचुहंताभिगंता वा
भवति । यद्वा शचरहता कोपः सायक्श्च यस्य स तादशो भवति । किं बहूना । इद
णि हरिता हरितानि नि भिभिष्ठिरि । निषिक्तानि बभूवुः । मिहः सन
(7
| ॥ अथ चतुरघी ॥ _
येतो विव्यचद्चजो हरितो न र्यं ।
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॥
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धु ॥
| ० ४, ०५, वं० ६.
हयेतः स्प न् व्यं शचरुसंघं । तच हाः । हरिः
तो न हरितवणा अध्वाहतारौ वाश्वा आआदित्यसं बंधिनः। ते यथा र्या रहणे
वेगेन. व्याघ्रुवंति व्याघ्रव्यं । योऽस्य वज ञ्रायसोऽयोविकारोऽहिं वृचं मेघं
दडनिस्ि । योऽयं महानुभाव हरिश्प्रः सोमपानरभसेन हरितवणेनासि
रोहनुवी हरिभरो ह्योभितैदरः सख शोका अभवत् । शुच दीप्तौ । अपरि
` तदी्ठिभैवति॥
॥ थय पचमी ॥
¢. ट
तवत्वमहयेधा उप॑
` ल्व ह॑येसि तव विश्वसुक्थ्य १मसामि राधो हरिजात हयेतं ॥५॥
| व्ंऽ्व॑। अह्येथाः। उप॑ऽस्तुतः। पूरवेभिः। इद । हरिऽकेश । यञ्वऽभिः
तं । हयेसि। तवं । विश्वं । उक्थ्यं । असामि । राध॑ः) हरिऽजात । हयेतं ॥५।
हे इट् हे हरिकेश हरितरोमवट्श्च त्वमेव सवेच यसञेऽहयेया अकामयथणाः
स्तीचं हवि वे । कीदशस्वं पूर्वेभिः पू वेतनेयेज्दभियेजमानेरूपस्तुतः सन्! हे हरि
त हरितवणेः सन् प्रादुभूत हारक्प्रादुभाव वां । शचुवधाथं प्रादुभूतेत्यथैः । हे
|. तादशेद त्वं तव स्वभूतमिति शेषः । विश्वं व्याप्र सोमचर्पुरोडाशादिरूपं सवे वा।
यह्वा यच यानि यानि हवींषि दीयते तत्सव वा । तथोक्थ्यं प्रशस्यमसास्यसता- `
` धारणएमसमं कृत्लं हयेतं कांतं राधोऽन्तं हविलेक्षणं हयसि । कामयसे ॥ `
, ॥ इत्य्टमस्य पंचमे पंचमो वैः ॥
॥ खथ षष्ठी |
सोम्यं मद् इटं रथं वहतो हयेताहरी। .
हयेत इदराय सोमा ह्यो दधन्विरे ॥६॥
। रथे । बहतः । हयैता ।
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॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ व
9. ४ #
॥ अथ सप्रमी ॥ क
अरं कामाय हर॑यो दधन्विरे स्थिराय हिवन्हरयो हरीं तुण। ` 8
ऋवेधिर्यो हरिभिर्जोषमीयते सौ सस्य कामं हरिवंतमानशे ॥७॥ क
0 #
५
माय । ह्यः । दधन्विरे । स्थिराय । हिन्वन् । हरयः । हरी इति । तुरा ।
भिः। यः। हरिऽभिः) जोष । ईय॑ते । सः। अस्य । काम॑ हरिं ऽवतं ्ानणे॥9॥ =`
णद | किः तषि #
ऋअरमलं पयैघ्नं कामायदकामनाय हग्यो हरितवणीः सोमा दधन्विरे तेच
हरयः स्थिराय युद्धेऽपत्मायितयेदराय तुरा तुरौ त्रमाणो हरी अश्वो हिन्वन्।
रयंति। योऽवद्धिररणकुणलिहेरिभिरथेजषिं नरैः सेव्यं संाममीयते गच्छति स `
रथो ऽस्यंदस्य स्वभूतं कामं कमनीयं हरि व॑तं सोमवंतं यज्लमानणे । व्याप्रोति॥
४ ध ¢ #
प ॥ ॥ अथा्टमी ॥ 9
| हरिष्मणर्हैरिकेणए आयसस्तुरस्पेये यो हरिमा अवधेत। =
~... अवद्ध हरिभिवोजिनींवसुरति विश्वा दुरिता पार्यषद्धरी ॥४॥ =
4 हरिऽश्मशारः । हरिऽकेशः। आयसः! तुरःऽपेय । यः। हरिऽपाः। अवघेत। =
„ आअवैत्ऽभिः। यः। हरिऽभिः। वाज्िनीऽ वसुः) अति । विशां । दुःऽइता! पारिषत्।
# ^ हरीइति॥४॥ = 4
व हरिश्मशारहैरित्तवणे्मशरुहैरिरेणो हरितिवणेकेश आयसोऽ योमयहदयः । . `
| | शरणां धातर इत्यथैः! एतादणो य इदरस्तुरसपेय तूणं पातव्ये सोमे हरिपा इरि. |
| " तवणेसोमपा अवर्धत वधते यश्वावेद्गिगैतृमिहैरिभिरेः सभेव वाजिनीवसुः।
| | बाजिनमनं हविलंखषणं। तदस्या अस्तीति वाजिनी क्रिया । सेव वसु धनं यस्य॒
तथोक्तः । यज्ञथन इत्यथैः । यद्वा वाजिनमेव वाजिनी । तदेव धनं
ण इटो हरी रथे योजयिता विश्वा विश्वानि सवौणि दुरि
२९० "सैर ४ ॥ ऋग्वेदः ॥ ` प° ए, ०, व० ७,
सुवा ऽइव । यस्यं । हरिणी इतिं । विऽपेततुंः । शिप्रे इतिं । वाजाय । हरि
ट्विध्वतः
पर।यत्। कृते। चमसे। ममूंजत्। हरी इति । पीत्वा
हयेतः
्थद्स्य हरिणी हरितवणावश्डौ विपेतततू रण इदमारोप्य विपत्त
शेयं । यद्वा यस्य हरिणी हरितवर्णं कनी निरे विपेततुः सोमं प्रति
तच हष्टंतः । सुवेव । यथा सुवा खुवौ हविषा पूर्णो पाचविशेषो होमा वि-
पतततस्तइत् । तथा यस्य च हरिणी हरितवर्णं शिप्रे हनू वाजाय सोमलक्षणा-
यान्नाय टविध्वतः कंपयतः। पुरतः प्रस्य सोमस्य प्रीत्या चटत्छतः । तथा यद्यदा
कृते संस्कृते चमसे वतमानं मदस्य मदकरं हयेतस्य कांत मधसोऽनं सोमं पीत्व
हरी अश्चौ प्र ममेजत् । प्रमि । तदानीं स्तुत इत्यथः ॥ `
५.4 ॥ अथ ट्शमी ॥
। उत स सद्यं हयेतस्य पस्त्योरत्यो न वाजं हरवा अचिक्रदत् ।
मही चिद्धि धिषणर्हयेदोज॑सा वृहदयो ट्धिषे हयतधिद्ा ॥१०॥ `
उत । स्म । सद्यं । हयेतस्यं। पस्त्योः । खत्य॑ः। न । वाजं । हरिं ऽ वान् । सचिक्रदत्।
भको
मही । चित् । हि । पिष्णा । अह॑येत्। ओज॑सा । बृहत् । वयः। दधिषे । हयेतः
चित्। खा ॥ १०॥
उतापि च हयेतस्य कमनीयस्यदस्य सद्य सदनं पल्त्योद्या वापृथिव्योः सं बंधि !
सोऽयमत्यो नाश्व इव वाजं संमामं हरिवान् अश्ववानचिक्रदत् । गच्छति । तथा
: । अतो वाजमचिक्रत् । तथा सति हयेतः कामय-
न्महडयोऽन्नमा दधिषे धारयसि । आाप्रयच्छसि। चिदि
०९४६. अष्टमोऽष्टकः॥ ` २९१
। हयेमाणः। महिऽत्वा । नव्य॑ ऽ नव्यं । हयेसि। मन्म॑ । नु । पियं ¦
मुर । हयैतं । गोः। आविः । वृधि । हर्य । सूरयै।य ॥११॥ ०
माणः कामयमानो सिला महेन रोदसी द्यावापृथिव्यावा । पूरय-
नव्यंनव्यं नवतरं प्रियं प्रियकरं सन्स मननीयं स्तोचं नु चिप्र
कामयसे । हे असुर बलवन् । असुः प्राणः । तन् । मतर्धीयि रः ।
:। जात्येकवचनं । गवां हयेतं स्पृह णीय पस्त्यं गृहं गोर्द्कस्योक्तगु णवं
नं वा हरय उदकस्य ह्व सूयोाय प्र प्रक्षेणाविष्कृधि । प्रक्टीकुर् ॥
अथह्लादणी॥ ५
खा त्वा हतं प्रयुजो जनानां रथे वहतु हरिंशप्रमिंद् ।
यथा प्रतिभृतस्य मध्वो हयेन्यज्ञं सधमादे टश णिं ॥१२॥ 3 |
। । चा \ हतं । प्रऽयुजः। जनानां । रथ \ वहतु । हरिऽश्पप्रि। इद् । ज
॥ 1
# वि
पिव! यथा । प्रतिंऽभृतस्य ! मध्व॑ः हयैन्। यज्ञ । सधऽमादं । दश ऽसि ॥१२॥ |
इट् हरिशिप्रं हरितवणेशिप्रं ता त्रां हयेतं यज्ञं कामयमानं प्रयुजो रथे
प्रयुक्ता खश्वा रथे स्थापयित्वा जनानामृलिग्यजमानानामंतिकं वहतु । प्रापयतु। `
प्रवहति । यथा येन प्रकरेण प्रतिभृतस्य ग्रहारिषु संभूतं मध्वो मधु सोमरसं
यज्ञं यागसाधनं दशोणिं ! ओओणएयोऽगुत्यः। दशभिरगुलिभिः संपादितंसौमं
हयैन् कामयमानः सन् पिव पिबसि सधमादे संमामे जयाथ तथावहविित्यधैः॥ `
खपाः पूर्वेषाभित्येषा पोडशिशसतस्य याज्या । सूचितं च । एवा हि शक्रो वशी
श्र इति जपित्वापाः पूर्वेषां हरिवः सुतानाभिति यजति । ख० ६.२.। इति ५...
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इटं सव॑नं केव॑लं ते । `
२९२ ` | ॥ ऋणग्वेटः पण ४. ०५, व० ¢,
अभिषुतान्प्रातःसवनिकान्सोमानित्यथेः । तानपाः। अपिवः। हे हरिव इती
बोधनं । हरिभ्यामश्ाभ्यां त्न्। यद्वा। छ क्सामात्मकाभ्यां हरिभ्यां युक्त । ऋः
| वा इटृस्य हरी ताभ्यामेव हरतीतिश््राद्यणं । अथो अपि चेद् माध्यंदिनं सवनं
केवलं ते तवेवासाधारणं । माध्यंटिनं सवनं केवत्टं ते । ४.३५.७.। इति हि
संचांतरं। तस्मिन्सवने हे इद् मधुमंतं माधुर्योपितं सोमं ममद्धि । पिव । आस्वा-
येत्य्थः। मदिरचास्वादनकमै । पिवतु सदतु वियतिति च संचरः सचा वृषन् । +
सचाशब्टो भूयि्टवचनः। हे भूयिष्ठ वर्षितरिद्र जठर आ वृषस्व । आसि चस्व ॥
॥ इत्यष्टमस्य पंचमे सप्रमो वगः ॥
या स्मोषधीरिति चयीोविंश्व्युचं सप्रमं सूक्तं । अयवेणः पुचस्य भिषम्राम्नञ्ाषे।
आनुष्टभमोषधिदेवताकं । तथा चानुक्रातं । या ्रोषधीस्व्यधिकाथवेणो भिषगो-
` षथिन्तुतिरानुष्भसिति॥ दीधित्तानां जराद्युपसंतापे संजात्ेऽनेन सूक्तेन माजेयेत्।
सूचितं च । श्ओोषधिसूक्तेन चाजाव्यानुमजेत् । आआ०६.९.। इति ॥
^ ष त ॥ तच प्रथमा ॥
या ओषधीः पूवे जाता देवेभ्यस्वियुगं पुरा
मने नु वभूामहं शतं धामानि स्र च॑ ॥१॥ \
याः। ञ्चोष॑धीः। पूवेः। जाताः देवेभ्यः । चिऽयुगं । पुरा ।
`. मंने।नु। बभूर्णा। अहं । शतं । धामानि । सप्र । च ॥१॥ ।
1 । ॥ त ॥ € शतन # भि
या ओषधयः पूवाः पुरातन्यो जाता उत्सन्नाः । केभ्यः सकाशात् । देवेभ्यो जग-
, म०१०,अ०४. सू०९७.] = ॥ अषटमोऽषटकः ॥ = ` २९३
इति । रक्तं च । या ओषधयः पूवे जाता देवेभ्यस्रीणि युगानि पुरा `
मन्य नु तडभूणामहं बनरुवणानां हरणनां भर्णानामिति वा शतं धामानि सप्र `
धामानि चयाणि भवंति स्थानानि नामानि जन्मानीति । जन्मान्यवाभि- = `
सप्तशतानि सप्तशतं पुरुषस्य म्मेणां तेशवैना दधाति। नि०९.२४.।इति॥ `
॥ अथ हिततीया ॥ ` क ना 1
शतं वो अव धामानि सहस॑मुत वो सह॑ः । प क त
| अधां शतऋचो यूयमिमं मे अगदं वत ॥२॥ ४ 0
णतं । वः। संव । धामानि । सहस । उत । वः । सह॑ः । ` 3
अथ॑ । यत्ऽकलः। गूं दमं ।मे। गदं कृत॥९॥ ==
हे छंव मातर ओषधयो वो युष्माकं धामानि स्थानानि जन्मानि वाश्तम- `
परिमित्तानि । उतापि च वो युष्पराकं सहः प्ररोहः प्रोद्रमः सहख्मपरिमितः। ` छ
थापि च हे शतक्रलः एतकमाणो यूयमिमं मे मां मदीयं वा जनमामयय-
स्तमगदं । गदौ रोगः । तद्रहितं कृत । कुरुत ॥ =
॥ अथ तृतीया ॥ स
| ओषधीः प्रतिं मोदध्वं पुष्पवतीः प्रसूव॑रीः। |
अश्वां इव सनि्वरीवींरधः पारयिष्णवः ॥३॥ ` १041
१
षधयः प्रति मोदध्वं । इमं रूण प्रति मुदिता हृष्टा भवत । कीह-
वत्यः प्रसूवरीः । प्रकषण सूयत उपभोगायेति प्र
। श्चा इवाश्रुवाना हया इवं सजित्वरी
| | ्ण्वेटः । ॥ | [० ¢, चप ॥ , ६ ©,
ओष॑धीः। इतिं । मातरः । तत्। वः । देवीः । उप॑ । हुवे । =
सनेयं । अश्वं । गां । वास॑ः । आत्मानं । तवं । पुरुष ॥४॥
व ह ओषधीरोषधयो देवीर्दव्यो द्योतनादिगुणका हे मातरो जनानां मातृभूताः ।
` मातृवदितकारितवान्मातृत्वोपचारः। अथ वा मात्र आारोग्यनिमाच्यो वो युष्माकं
संबंधनं भिषजं तघ्यमाणमिततीत्यमुप बरुवे । उप्रवीमि । किं तदिति चेदुच्यते ।
ओषध्यथमहमण्वं गां वासोऽभुकं किं बहुनात्मानमपि हे पुरुष चिकिसक तव.
| हुभ्यं सनेयं। ददामि ॥ व १.
॥ अथय पंचमी ॥ ` |
| खश्वत्ये वों निषदनं पर्णे वों वसतिष्कृता ।
गोभाज इत्किलासथ यत्सन वय पूरुषं ॥५॥
४ ऋश्वत्ये। वः। निऽसद॑नं । पर्णे! वः! वसतिः । कृता ।
१ 7 ऋ चैकि # 1 ववत ॥ |, #
गोऽभाजंः। इत्। किलं । असथ । यत्। सन व॑ध । पुरूषं ॥५॥
| हे ञ्ओषधिदेवता वो युष्पाकमश्वत्ये निषदनं नितरां वैनं । तथा वो युष्माकं
पणे पलाशे वसतिनिवासः कृता । तृतीयस्यामितो दिवि सोम स्ासीत्तं गाय-
च्याहरच्स्य पणेमच्छिद्यत तत्पर्णोऽभवत् तत्पणेस्य पशेत्वसिति । ते° ब्रा० १.१.
३.१०.। ब्राह्मणत्पलाश्स्य पणेतप्रसिद्धिः । अश्वत्थपत्काश्योयेक्ञयोग्यवप्राधा-
` न्यापेक्षयोपादानं । किंच गोभाज इक्कित् गवां भोजयिच्य एवासथ भवथ खलु
यद्यदि सनवथ संभजय्वे पुरुषं तर्येव भवयेति। वन षण संभक्तो । ठेटडागमः।
्रययः । यद्खौत्सगिकः शप् चेति विकरण्ता॥
पंचमेऽष्टमो वगः
म०१०.अ०८.सू०९७.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥
संयामे यथा संगता भवंति तडत्। तासां नानाविधानामोषधीनां संगमनं यसि- ध
्दशेऽस्वि तच विप्रः प्राज्ञो ब्राह्मणो भिषगुच्यते रक्षोहा रछोहंता । अमीवचा- `
तनः। अमीवो व्याधिः। तस्य चात्तनश्चवातयित्ता नाश्यित्ता च भवति तदानीं ॥
० ॥ अथ सघ्रमी ॥ ` वि
अश्वावतीं सो मावतीमूजैय॑तीमुदो जसं । र
आआवित्सि सवे ओष॑धीरस्मा सरिष्टतातये ॥७॥ # 0
अश्वऽवतीं । सोमऽवतीं । ऊजरयतीं । उत्ऽश्ोजसं। ` (+)
॥ # [त
` |. स्मा । अवित्ति । सवैः । ओष॑धीः । अस्मे । अरिष्टऽ ता तये ॥७॥ "4
# स भः कि १ ॥। १ । | |
ऋण्ावत्याटयः प्रधानभूता सओषधयश्चतखः। ताः स्वी ओओषधीरावित्सि।आजाने। `
त्यथः । खसमा अरिष्टतातये । अमुं रोगं विनाशयितुमित्यथेः॥ =
॥ खथयारटमी ॥ अ
उच्छुष्मा ओष॑धीनां गावो गोष्ठादिवेरते । "4५
५4 धनं सनिषयंतीनामात्मानं तवं पूरष ॥४॥ ` ॥
# ॥ ५
व उत्। शुष्माः । ओष॑धीनां । गाव॑ः । गोस्थात्ऽईव । ईते। = `
। ॥ १४१११११५ 4 ६ । ।
४, | धनं । सनिषयंतीनां । आत्मानं । तवं । पुरुष ॥४॥ १
. ओषधीनां शुष्मा बल्ान्युदीरते । उद्रद्धंति । रूग्णे स्ववीय प्रोदरमयंतीत्यथेः।
| | गावो गोष्ठादिव। ता यथा ततः सकाशदुरीरते तडत् । कीदशीनामोषधीनां। `
| . उच्यते । धनं स्वसामथ्यैल्छणं सनित नां दातुभिच्छतीनां । विं परतीतयुच्यते। |
1 पूरुष पुरुष रोगमस्व तवात्मानं शरीरं प्रति । य्वा पररोहतीरोषधीदेष्ा वदति। हे. `
प्वाद्योषधिस्वामिन् तवात्मानं वधेयितुं धनं सनि्यतीना षा)
२९४ ॥ ऋग्वेदः ॥ [० ७. ०५, व०१०.
हे ओषधयो वो माता जननीष्कृतिनौम। सर्वेषां रूणानां निष्कचीति प्रसिदधा
. यस्मात्सा रुग्णं निष्करोति । अथातो यूयमपि निष्कृत सिष्कृतयः स्थ ! भवय ।
कैच । यूयं सीराः सरणणीत्ाः पतत्रिणीः पतनवत्यश्च स्यन । भवथ । तप्रनविति
नदेशः । विच । पुरुषौ यद्यद्यामयति व्याधितो भवति तं नि
॥ अथ ट्शमी ॥
ति विश्वाः परिष्ठाः स्तेन इव वजम॑क्रसुः।
। ओष॑धीः प्राचंच्यवुयेक्किं च॑ तन्वो ऽरप॑ः ॥१०॥
तिं । विश्वाः । परिऽस्थाः । स्तेनःऽइव । जं । अक्रमुः ।
ओषधीः । प्र । अचुच्यवुः । यत्। विं । च । तन्वः । रप॑ः ॥१०॥
४ ई
॥
(4. विश्वा व्याघ्राः परिष्ठाः परितः स्थिता आओषधयो ऽत्यक्रसुः । व्याधीनतिक्रांत-
वत्यः। स्तेन इव बरजं । यथा स्तेनो वजमत्यक्रमीत् तहत्। तथा कृत्वोषधीरोषधयः
न
मराचुच्यवुः प्रच्यावयति यत्किंच तन्वो रूणशरीरस्य रपः पापं व्याधित्धक्षण-
` मस्ितदिति॥ प । ए
॥ इत्य्टमस्य पंचमे नवमो वगः ॥
क ॥ अथेकादशी ॥
यदिमा वाजय॑नहमोष॑धीहस्तं आदधे ।
आत्मा यष्स॑स्य नश्यति पुरा जीवगृभो यथा ॥११॥
+ इमाः । वाजय॑न् । अहं । ओष॑धीः । हतत । आऽद्े।
आत्मा। । नश्यति । पुरा । जी वऽगृभः। यथा ॥११॥ `
चैके
ट्ध स्आधारयामि। किं कुवन् । वाजयन् रूणं
रोगस्यात्मा नश्यति नष्टो नवति जीवगृभो
हजाद्चाधाद्यया `
॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥ " "4
ओषधीः । प्रऽसपेय ! अंग॑ऽञ्गं । परूऽपरः। == `
तत्त: यद्यं । वि । बाधसे । उयः। मध्यम
॥
1
॥
वै प्रसपेथ प्रक्षे
व ऽगात्पवेणश्च यष्सं व्याधिं वि बाधे । उग्र उद्रणेवल्ो मध्यम- =
# मेध्यमस्थाने वतमानो राजा यथोपद्वकारि णः समनंतरं शचरन्पदेपदे वि वाधते। १
र
न
॥ अथ चयोदशी ॥ ` 1
साकं यदस प्र प॑त चषिंण किकिदीविना ।
साकं वातस्य धराज्या साकं नश्य निहाकया ॥१३॥ ५
साकं । यद । प्र । पत । चाश । किकिदीविना। = ७.१
साकं । वात॑स्य । राज्यां । साकं । नश्य । निऽराकया ॥१३॥
हे अस्मदीयस्य पुरुषस्य शरीराधिष्टायिन्यश् व्याधे रं साकं सहेवप्रपत।
प्रकर्षेण शीध्रं गच्छ । केन साकमिन्युच्यते । चाषेण । सतिशीभ्रं पतता चाषाख्येनं (
पिणा सह । तथा किकिदीविना पसिणा च सहं । तथा वातस्य शीघं गतौ
बायोभाज्या | भ्रज गतौ । गतिवेगेन सह गच्छ । तथा निहाकया गोधिक्यासाकं
नश्य । नाशं प्राघरुहि ॥
॥ अथ चतुरशी ॥ 1
अन्या वों छन्याम॑वलव्यान्यस्या उपांवत्त। =
ताः सवैः संविदाना इदं मे प्रावता वच॑ः ॥ १४॥
खन्या । वः । अन्यां । अवतु । अन्या । अन्यस्याः । उप॑ । अवत । = =
ताः स्वौः। संऽविदानाः। इदं । मे। प्र। अवत । वच॑ः॥१४॥ `
4 "301 | ॥ क्रग्वेद्ः॥. | प्० ए, ऋप० ५, वर १५.
0 | ॥ अय पंचदशी ॥
याः पलिनीयौ. अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः ।
वृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुंचल॑सः ॥१५।
याः। फलिनीः । याः । अफलाः । सपुष्पाः । याः । च
बृहस्पतिंऽप्रसूताः। ताः। नः मुच॑तु । अहसः ॥१५॥
|
|
याः फलिनीः फल्वत्यौ या अफलाः फल वनिता या पुष्पाः पुष्परहिता
| याश्च पुष्पिणीः पुष्यवत्यो वृहस्यतिप्रसूताः। वृहस्यतिभेचाभिमानी देवः । तेना-
| नुज्ञाताः। ता नौऽस्मानंहसो मुचतु। मोचयतु ॥
॥ इत्यष्टमस्य पंचमे दशमो वगेः ॥
॥ अथ षोडशी ॥
५ मुंचतं मा पथ्या दथों वरूण्य।दुत ।
अधो यमस्य पदीश्गत्सवैस्मादेवकिस्विषात् ॥१६॥ `
मुंच॑तुं । मा! शपर्थ्यात् । अथो इतिं । वरूण्यात्। उत । „
^ अथो इति । यमस्य । पड़ीं शात् । सवेस्मात्। देव ऽरिस्विषात् ॥ १६॥
, मा मामोषधयः शएपथ्याच्छपथसंजातादेनसः सकाश्न्सुचंतु । अथो अपि च
भवान्मां सुच॑तु । वरुणोऽपि स्वपाशेन जातमाचं पुरूषं बध्नाति ।
1.
ड
उतेति पूरणः। अथो अपि च यमस्य पड़ीशात्मादनधनानिगडान्सुचतु । न केवलः
सवेस्माहेवकिस्विषाहेवेः कृतात्पापान्सुच॑तु ॥
॥ थ सप्रदशी ॥
०१०. ०७, सू° ९७, ॥ अष्टमोऽ टकः ॥ २९९
॥ अथा्टादशी ॥ क
धीः सौम॑राज्ीवेडीः शतविचक्षणाः । “ ` |
यासो
तासां लमं॑स्यु्तमारं कामांय शं हदे ॥१४॥
याः । खोषधीः। सोम॑ऽरासीः । बह्वीः । शत्तऽविचक्षणाः। `
। असि । उत्ऽ तमा । अर । कामाय । शं । हृदे ॥१९॥
षधी रोषधयः सौमराज्लीः ! सोमो राजा स्वामी यासां तास्तयोक्ता
बह्णीरसंल्याताः एतविचशणा वहद्श्ना हे सोमाख्य ओषधे तासामोषधीनां
त्मुत्तमासि । यस्मादेवं तस्मादरमलमत्यथे कामाय कांताय इदे हृदयाय शं सुख-
करी भवेति शेषः । "1, 9५4
॥ खथेकोनविंशी ॥
षधीः सोमराङीविषठिताः पृथिवीमनु ।
बृहस्यतिंप्रसूता अस्थे सं द॑त्त वीयं ॥१९॥ न
याः। ष॑धीः ! सोम॑ऽरा्ीः। विऽस्थिताः । पृथिवी । अतु
वृहस्पति प्रसूताः । अस्थे । सं । ट्त । वीये ॥१९॥
या स्रोषधीरोषधयः सोमराज्ीः पृथिवीमनु विष्ठिता विविधं स्थिता दिवः
सकाशदागत्य पृथिव्यां नानाभेदेन स्थिता बृहस्पतिप्रसूता बृहस्यत्तिनानुलातताः
सत्यो यूयमस्ये रूणतन्वे वीये सं दच्च । संधत्त ॥ ५
शय विगी॥ `;
भा वों रिषत्सनिता यस्म चाहं सामि व 1
दिषच्तष्यदपस्माकं सवैमस्वनातुरं ॥२०॥ = =
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(
स
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॥ ऋग्वेदः ॥ ` [० ए, ०५, व०११.
॥ ऋथेकविशी ॥
याश्चेदम॑पण्ृणंति याश्च॑ दूरं परागताः वि
ओ; संगत्य वीरूपोऽस्ये सं दत्त वीय ॥२१।
याः। च । इट् । उप ऽन्ति । याः। च दूर । पणऽगताः
सर्वः, संऽगल्य । वीरुधः । अस्थे । सं । ट । वीय ॥२१॥
|. सि
याञ्नोषधय इदं स्तोचमुपमृखंनि याशौषधयो दूरं परागताः सवा
संगत्य संगताः सत्यो हे वीरधोऽस्ये रूणतन्वे वीये सं दत्त ।
# छ
| ॥ खघ चाविंशी ॥
ञओष॑धयः सं व॑दति सोमेन सह राजञां ।
यस्मे कृणोति ब्राद्यणस्तं रजन्पारयाससि ॥२२॥
्ोष॑थयः। सं । वदते । सोभेन । सह । राजञ । ध
यस्म । कृणोति । ब्राद्मणः । तं । गजन्। पारयामसि ॥२२॥ `
स्रोषधयः सवः सोमेन राज्ञा सह सं वदति । संवादं कुवैति । किमित्यु
यस्ते रणाय ब्राह्मण छोषधिसामथ्य्ो बाणो वेद्यः कृणोति करोति चिकसां
तं रूणं हे राजन् पारयामसि । पारयामः । इतौ मसिः ॥ |
1... ॥ अथ अयोतिशीः॥
त्वमुंचमास्योषधे तव॑ वृश्षा उप॑स्तयः
$3 मी स्मो अभिदासति ॥ २३॥
सू०९४.] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ | ३०
प्रतीति इादशचेमषटमं सूतं चैेष्टुभं वृहस्यतिभिचादिसवेदेवताकं । ` ।
देवापिनामर्षिः। तथा चानुक्रातं । वृहस्यते इादष्णर्षिणो देवा-
देवासतुष्टाव । गतः सूक्तविनियोगः ॥ अस्य सूक्तस्याख्यानं निरक्त-
कारः प्रदशेयति । देवापिश्वा्टिषेणः शंतनुश्च कौरव्यो भातरो वभूवतुः। स शंतनुः 1
कनी यानभिषेचयां चक्रे देवापिस्तपः प्रतिपेदे । तततः शतनो राच्ये हादश वधाणि ‰ `
देवौ न ववषे । तमूचुनोखणा अधमेस्वया चरितो व्ये भातरमंतसित्याभिषेचितं ` 4
तते देवो न वधेतीति। स शंतनुर्दवापिं शिशिक्ष राय्येन । तसुवाच देवापिः ` ~
पुरोहितस्तेऽसानि याजयानि च वेति । तस्येतहषैकामसूक्तं । नि०२.१०.। इति॥ `
। भक
॥ तच प्रथमा ॥ |
वृहस्यते प्रतिं मे देवतामिहि भिचो वा यद्रणो वासि पूषा । |
आदियेवा यदमुभिमेर्लान्स पन्यं शंतनवे वृषाय ॥१॥ =
वृहस्पते । प्रतिं । मे । देवतां । इहि । भिचः । वा । यत्। वरूणः। वा। सि । पूषा
आरिव्येः। वा । यत्। वसुं ऽभिः। मरल॑न्। सः। पजन्य । 9ंऽ तनवे । वषय ॥१
तच बह्व प्रवृत्तो बृहस्पतिमनुधावति। हे बृहस्पते मे मम वृ्यथ प्रति देवतां
प्रतीहि प्रतिगच्छ । यष्टव्या देवताः प्रतिगच्छ । यदि त्वं मिचौ वास्यथवा वह-
णोऽसि यदा पूषास्यथवादिचिक्वादशदित्येररणादिभिवसुभिवैसकेर्टवसुभिधेर- `
भरुवादिभिः सह सरुत्वान् । महतौ देवाः । तद्ानसि । स त्वं पजैन्यं तपैयितारं `
मेघं शंतनवे राज्ञे वृषाय । वषेय । हंदसि शयजपीति व्यत्ययेन शपोऽपि श-
यजादेशः ॥ 1 (4
0 अधनितीना॥
दूतो अजिरश्िकिवान्वदेवापे अमि माम॑गच्छत्। ` 1
४.
#
धामि ते द्युमतीं वाच॑मासन् ॥२॥
नः प्रति मामा वं
१ । श श ।
। चत् । देव ऽ आपे । अमि । `
३०२ | | ॥ ऋण्वेदः॥ [ऋअ०४.अ०५, व०१९, ¦
नोऽस्रटभिमुखो मां प्रत्या ववृत्स्व । मां प्रत्याग
युक्तां वाचं स्तुतिरूपां दधाम्यासननास्येऽस्मदीये ॥
॥
ते तुभ्यं चदथे द्युमतीं दीघि
| ॥ अथ तृतीया॥
अस्मे हि दयुमतीं वाच॑मासन्वृहंस्पते ऋनमीवामिंषिगं
` ययां वृष्टिं शंतनवे वनाव दिवो दूप्सो मधुं आ विवेश ॥३॥ |
अस्मे इतिं । धेहि। द्युऽमतीं । वाच॑ । आसन् । वृहस्पते । अनमी वां । इषिरा
|, ॥ ` चक
ष्णि ४ श्वा
ययं । वटि । शंऽत॑नवे । वनाव । दिवः । दूपष्सः। मधुंऽमान्। आ । विवेश ॥३॥
| | ६. ` स
हे बृहस्यते त्वमस्मे अस्मासु द्युमतीं दी्रिमतौं वाचं स्तोचात्मिकामासन्नास्ये ५
` ऽस्मदीये धेहि । स्थापय । रीहशीं वाचं । अनमीवं । अमीवारहितां । वाचो `
ऽमीवा नाम गत्रदादिदोषः। तथेषिरां गमनशीत्ां । यया वाचा स्तुत्यालिक्या
(५ देवानिष्टा शंतनवे वृष्टिकामाय वनाव संभजेवहि वृष्टिं त्वं चाहं च दिवो ्ुलो-
् कात् । त्याधिष्ठितो दरप्स उदकस्यंदो मधुमान् माधुर्योपित आ विवेश । आं
५ ति वाचमिति समन्वयः ॥
ध ` ॥ अथ चतुर्थी ॥
आ नो द्रप्सा मधुमतो विशव देद्यधिरथं सहं । एद्
नि षींद् होचमतुथा य॑जस्व देवान्देवापे हविषां सपय ॥४६॥ न
` आ। नः, द््साः। मधुंऽमंतः। विशतु । इर । देहि । अधिंऽरयं । सहस ।
नि सीद् हों । ऋतुऽथा । यजस्व । देवान् । देव् ऽआपे । हविषां । सपये॥४॥ =
दसंत्याया मधुम॑तो माधू्येपिता आ विशतु ।हेद्द्रपर- `
यरि हिः `
@
ष्युपरि वतमानं सहस 4 सहससंस्यावं धनं देहि। येरि
वापे नि षीद् हों । विजय
कभ
म १०. ख० ४, सूर ९७. | ॥ ष्टो § छ कः ॥ . 3०3 वि
आटिः! होचं । षिः। निऽसीरदन् ।देवऽआंपिः। देवऽसुमतिं । चिकिवान्। ` |
# # ॥
सः। उत्ऽतरस्मात्। अर्धरं । समुदं । अपः। टिव्याः। असृजत् । वर्थोः। अभि॥५॥ ५
। ण ऋष्टिषेणस्य युचो देवापिच्छैषिर्देवसुमतिं देवानां कस्याणी 3 |
कवाज्ञानन् होत होतृकमं कौ निषीदन् निषरो भवति । स उत्तर-
स्मादुपरि वतेमानादतरिक्षास्यात्ससुद्राटधरमधो वतमानं पाधिवं समुद्रमभि दि-
व्या दिविभवा वधौ वषेभवा अपोऽसुजत्। सृजतु । खवाशिषेण ऋषशिषेणस्य पु ` 1
॥ छथ षष्टी ॥ "1
ता खट्वन्नाष्िषिणेनं सृष्टा देवापिना प्रेषिता मृछिणींषु ॥६॥ १
अस्मिन्। समुद । अधि । उत्ऽत॑रस्मिन्। आप॑ः देवेभिः। निऽवृताः। अतिष्ठन्। `
अटूवन्। आष्िषिणेनं। सृष्टाः। देवऽञख।पिना। प्रऽईपिताः। मृकिणींषु ॥६॥
अस्सिन्पाधिवे समुद पूरणीये सति । अधीति सप्रम्यथानुवादी । उत्तरस्मि- |
ऽतरिष्षाख्य आप उदकानि देवेभिर्योतमानेनिवृता निरडा अतिष्ठन् ता
शिषेणेनष्टिषेणस्य पुबेए देवापिना सृष्टाः प्रेषिताः प्रक्षणेच्छां प्राप्राः |
कांशिता मृष्िणीषु मृरटवतीषु परिमृष्टामु स्थलीश्द्रवन् । खवंति ॥ = `
ॐ ॥ इत्यष्टमस्य पचमे इादशे वः ॥ १
॥अथसप्रमी॥ ५ ८
: शंतनवे पुरोहितो होचाय॑.वृतः कृपयन्नदीधेत् । ^.
बृहस्यतिवौच॑मस्मा अयच्छत् ॥७॥ ४ |
:। हौचाय॑ । वृतः । कृपं
स्य्िः। वाच॑ । अस्मे
# जेविवनि
“2५.
1
॥ 1
44
|
¢ ॥ ऋम्वेटः ॥ [० ४, ०५, व० १३.
। ॐ । ॥ अथाष्टमी॥ ५ 4 ६६४२ ५
यंतां देवापिः भुणुचानो अग्र आष्टिपिणो मनुषः समीधे ।
विष्वभिरदवेरनुमदयमांनः प्र पर्जन्यमीरया वृष्टिम॑तं ॥६॥
~ यं। त्वा । देवऽञ्ापिः। शुपुचानः। अग्रे । आष्टिषेणः। मनुयः । सं ऽह्धे
ऽ मेतं ॥४।
ज नीम
वभिः । देवैः । आअत॒ऽमद्यमांनः । प्र । पजन्य । इेरय । वु
कनि ककि
# [न जके
हेम्न यंल्वा त्वां भ॒श्चानः स्तोचेण चलन् मनुय आष्टिषेणो देवापिः
समीधे सम्यग्दीपयति स ववं विश्वेभिः सर्वेरदैवेरनुमद्यमानोऽनुमाद्यमानः सन्
पजैन्यं मेधं वृ्टिमंतं वषेंणवंतं प्रेरय । गमय ॥
॥ अथ नवमी ॥ ५. (त
त्वां पूवं ऋष॑यो गीभिरायन्वामध्वरेषुं पुरुहूत विश्वे ¦ (1 |
सहस्राण्यधिरथान्यस्मे आ नो यज्ञं रोहिदष्डोप॑ याहि ॥९॥
॥
†। पूर्वे । र्षयः । गीःऽभिः। खायन्। तं । अध्वरेषु । पुरुऽदहूत । विश्व ।
सहस्राणि। अरधिंऽरथानि। अस्मे इति। आ। नः। यजञ। रोहित्ऽखश्च। उपं। याहि ॥९॥
` ` हेम्न लां पूवे ऋषयो गीभिः स्तुतिभिरायन्। आगच्छन् । तथा हे पुरुहूत ~+
| बहुभिराहूतामन विवे सर्वेऽपीदानींतना यजमाना अष्वरषु यज्ञेषु स्तुतिभिर्ग्छ-
तीति शेषः, किंच सहस्राणि सहसरसंख्यानि गोयूथान्यधिरथानि रथाधिकान्यस्मे `
अस्माकं शंतनुना दधिणात्रेन संकस्यितानि भवंविति शेषः । हे रोहिदश्व नौ
५ म० १०, ख०४, सू०९९. ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ ३०५
समपितानीत्यथैः। तेभित्तेः प्रतेः पू वोविहीस्तन्वस्तनूयुष्मदीयावधे- ` `
मदथे दिवो द्युलोराद्शटिमिषितः प्राथितः सन् रिरीहि, पूरय॥
॥ अथेकादशी
नवतिं सहघा सं प्र यद्ध वृष्ण इदरायभागं । =.
तवे त्य्याहता
। वधेय । नोऽ
थ तुष्टे दैवयानानणोलतानं दिवि देवेषु धेहि ॥११।
। छम । नवतिं । सहां । सं । प्र। यच्छ । वृष्णे । इटराय । भागं ।
पथः।ऋतुऽ्ः।देवऽयानांन्। अपि । चचीतदानं ।दिवि। देवेषु ।ेहि॥११॥ `
॥ हे अपरे गवामेतानि नवतिं सहसा सहखाणि च वृष्णे वषि इद्राय भागसं `
तत्मीत्यथैमृविग्भ्यो देहि । किंच देवयानान्पथो देवयानान्मागोाचिहां- नर
कालेकाल स्चीतानमपि कुरकुतजातमपि शंतन वं देवेषु मध्ये धेहि । व
स्थापय ॥ | ॥ ४ $.
अथ हाट्शी 4
दु्गहापामीवामप र्षासि सेध ।
टर्गहा दुर्गहाणि दुःखेनागहितव्यानि शच्ुपुराणि वि बाधस्व । तथा-
रोगमप सेध । त्तथा रछंस्यप सेध । अपवारय । अस्मात्समुद्रात् समुद्र
दिवी द्युलोकार्तरिसा्वापाभुदकानां भूमान बहुभाव
1
॥ ऋग्वेदः ॥ ` ० ४, ०५, व° १४.
३०६
॥ 1
` क॑ । नः! चिचं। इषण्यसि। चिक्तवान्। पुधुऽ गमान । वाच ववृधध्य ए
9
|, रि
` दत्। तस्य॑ । दातुं । शव॑सः। विऽउंहौ । त॑त् । वजं । वृचऽतुरः। अपिन्वत् ॥१
ी
॥
हे इद् नोऽस्माकं चिं चायनीयं कं धनविशेषमिषणएयसि । प्ररयसि । चि-
न सर्वथा मरेरणीयमिति जानन् । कीदशं तं । पृथुग्मान पृथुनाव प्राश्रुवत
वां शब्टनीयं स्तयं । किमथे च । ववृधध्ये। अस्माकं वनाय । क्च तस्येद्स्य
वसो बलस्य व्यौ ्युच्छने सति कदातु किं दानमस्माकं भवतीति शेषः । यं
वज वृचतुरं वृचस्यावरकस्य पापस्य हिंसकं वष्टा तक्षदतस्षत् साधु संपादितवान्।
|: ऋअपिन्वदसिंचच्च। तस्य शवसो व्युष्टाविति सं बंधः । यज्ञा हे इद्र कत्किं तस्य वजस्य
दानं भवति यं वजमिंदराधे तक्षदिति योजना । मद्य त्वष्टा वजमतक्षदायस । १०.
४४. ३,। इति संतर ॥
० क ॥ खथ हित्तीया ॥
स हि द्युता विद्युता वेति साम॑ पृथुं योनिंमसुरत्ा स॑साद ।
सनीङिभिः प्रहानो अस्य चातुनं ऋते सप्रथस्य मायाः ॥२॥ =
:1 हि। दयुता । विऽद्युतां। वेति । साम । पृथुं । योनि । खसुरऽत्वा । खा । ससाद्।
3 १ प
¦ ` सः। सऽनीक्छभिः। प्रऽसहानः। खस्य । भरातुः! न। ऋते । सघ्नथस्य । मायाः ॥२॥
` सहिसर खवर द्युता द्योतमानेन विद्युतेतन्नामकषेनायुधेन युक्तः सन् साम
पोचात्मवं यज्तसंब॑धि वेति। गच्छनि । तथासुरत्वासुरत्वेन बत्रेन युक्तः सन् पृथु
फंलस्योत्पाटकं यज्ञं ससाद । संगतौ भवति । स इदः सनीकनिः
मनेमैरुद्धियुक्तः परसहानो ऽभिभवन्भवति । तस्य सत्रथस्या-
। । यज्ञे न
9 ५ ©, ॐप० , सूर ९९. | |
7 जं भ्दरेगेततव्यं संयामं याता स इद्रः! न
दापगतदुषटपतनेन यन् गच्छन् सनिष्यन् तच शचुधनानि संभक्मिच्छन्
रि षदत्! परिषीदति ! कुचेत्युच्यते । स्वषाता । स्वषोतो सवेलाभोपेते संमामे ।
नवै युदधेऽप्त्युत इदः शतदुरस्य शुपुरस्यांतनिहितं यददो धनमस्ति तदनं
{ ॥ २
बलेनाभि भूत् । अभिभवति । निं कुवैन् । शिष्रदेवानबचयाञ्छ-
| वतैमानान् घन् हिंसन् ॥ |
ष, +
स यहयो $ वनीर्गोश्ववे जुहोति प्रधन्यांमु सखिः । स
अपादो यच युज्यासोऽरथा दरोण्यश्वास ईरते घृतं वाः ॥४॥ ` व
सः। यहः । अवनी: \ गोषु । अवै । आ । जुहोति । परधन्यासु । सिः! `
पादः यच । युज्यांसः। खरणाः दरो णिऽ श्वासः । ईरते । धुतं।वारितिवाः॥४॥ `
4 स इटौऽ वा मेघेषभिगता सिः सर्णकुश्त्ठः प्रधन्यासु प्रकृदटध ननिमि चसु 7 | ५
षु यह्यः। महनरामितत् । महतीरवनीः । अवंतीत्यवनय आपः। ताञ = |
ािपटि .
५ ति! यच यासु भूमिष्ठपादः पाद्रहिता अरथा रथवजिंताः |
। | ; युज्या इदस्य सख्यो नदो वावीरकी धुत्तसुटकमी रते प्रेस्य॑ति तचाजुहोति ८ स |
स्थेन गति । केनापि भन्या दरोर्यश्वासो दुतव्यापनायुज्यासौ
4. ॥ अघ पंचमी ॥ ० 7
मिर्स्तवार ऋभ्वा हिली गय॑मरे्वद्य आगात्। = 1
१
| वमरस्यं मन्ये मिथुना विव्॑ी अन॑मभीत्यांेदयन्मुषायन् ॥५॥
| सः, स्द्रभिः। अर्भस्तऽवारः। ऋभ्वा । हती! गरयं । आरिऽञ्वद्यः। आ । अगात्
१,
गतज्वरो मन्ये । अवगच्छामि । अयं वोऽ ्
मुष्णन् अगोदयत्। रोदयति । इदि शयजपीत्यहावपि सुषेः श्नः शयजादेशः ॥
॥ अथ षष्ठी ॥
स इस तुवीरवं पतिरेव चरीं दमन्यत्
अस्य चितो न्वोज॑सा वृधानो विपा व॑राहमयों यया हन् ॥६॥
सः। इत्। दासं । तुविऽरवं । पतिः । टन्। षट्ऽअष्षं । चिऽशीषेाणं । दमन्यत्।
[ ॥ न
स्य चितः। नु। ोज॑सा। वुधानः।विपा। वराहं । अय॑ःऽअयया। हननितिं हन्॥६॥
स इत् स वेदः पतिः सवस्य स्वामी दाससुपक्पयितारं तुवीरवं बहश टं
संमामे भयकरं शब्द् कुवेणं वृचं दन् दमयन् षक्छश्मक्ठिषटरोपेतं चिशीषाणं चि-
शिरस्कं त्वष्टुः पुं विश्वरूपं दमन्यत्। दमित प्रहतुभेच्छत्। अवधी दित्यथैः । यदा ।
दमयतीति दमनः। नंद्यादिवाछ्युः। स इवाचरति । उपमानादाचार इति क्यव्य-
त्यलोपण््ादसः । ततो त्ठङिः बहुत्टं इंदसीत्यडभावः । किंच । चित एतन्नाम
महषिरस्यद्स्योजसा बलेन वृधानो वधमानो विपांगुल्या । कीहश्या । अयोञ्य- `
या। अयोवत्कटिनिनसया वराहं वराहाकारसुटकवंतं मेघं व्य न्। विहतवान्॥ `
1 ॥ इत्य्टमस्य पंचमे चतुरैशो वैः ॥
01 ॥ थ सप्रमी ॥
ध साविषदशेसानाय शई ।
षोऽस्मत्सुजातः पुरोऽभिनदरहैन्दस्युहव्ये ॥७॥ `
। सुऽजांतः। पुरः। अभिनत्। अरैन्
म०१०. ख० ४, सू०९९.] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ ` = ३०९
नुष्याणां नेतृतमः संमामे भूराणं गसयितृतमः । यद्वा नृतमो नहुषो बंधक- र
शरास्मदस्मदथं सुजातः सुषु प्रादुभूतो ऽन् पूज्यः सन् दस्युहव्ये ! दस्यव उपकषप- `
यितारः शचवः। तेषां इत्यं हननं यस्मिन् तादृशे संयमे पुरः श्चूणां शरीराण्य- `
नत्। भिन्नवान् ॥ 24
॥ था्टमी । नन 9
सो अभियो न यव॑स उदटन्यन्छूर्याय गातुं विट अस्मे ।
उप यत्सीददिंहुं शरीरैः श्येनोऽयोंऽपारटिहेति दस्यून् ॥४६॥
र
;
म
सः। अभियैः। न । यव॑से । उटन्यन् । छषयांय । गातुं । विदत्। नः । अस्मे इति । ।
^ र 1
उप॑ ! यत्। सीदैत्। इट । शरीरः । श्येनः । अय॑;ऽञअपाष्टिः । हंति । दस्यून् ॥४॥
स इदटोऽभियो न । न भाजंतेऽपो विभतीति वाभाणि मेधाः । तेषां संघो
ऽभियः! स इव यवसे गवादिभक्षणसाधनाय तृणायोटन्यन् उदकं दातुमिच्छन् ।
तथा याय गमनाय निवासाय वास्मे असाव गातुं माग विदत् । अल-
भत । न इति पूरणः। तादृशः सन् यदयदटुं सोमं शरीरेः स्वशरीरावयवेरभेरुप
सीदत् उपगच्छति । य्छब्धयोगादनिघातः । तदानीं श्येनः । सादश्यप्रधानोऽयं |
निदेशः । श्येनसहशः श्येनवच्छसनीयगमनः। अयोऽपाषटिः । अपयश्िवयोपरियैस्य =
्देोऽपािः पाष्णिः । अयोमयोऽपाशिः पाष्षियैस्य सः । दसयूञ्ग्वृन्हं- = |
हिनस्ति ॥ ५. श
। सथ नवमी ॥ 9
स वाध॑तः शवसानेभिरस्य कु्सय शुष्णं कृपणे परादात्। =.
अयं कविम॑नयच्छस्यमानमत्कं यो शस्य सनितोत नृणां ॥९॥ ` ` ८
व्राधतः । शवसानेभिः। अस्य । कुलाय । शुष्णं । कृपण
। अनयत्। शस्यमानं । अत्व । यः। अस्य । सनिता
कर
सखः। न
॥ ऋग्वेदः ॥ = [अ०४. ०५, व०१५. ध
सुव्तमनयत् । वशं प्रापयत्तस्य विरोधिनं । यद्वा कविं भार्मवमेवं
शस्यमानं स्ववशमनयत्। यः कविरस्य
तुभिः
दरस्यात्क रूपं सनिता संभक्ता भवति ।
दिनेत्रणामिंदानुचरणां
(5: ॥ खथ ट्शमी ॥ ध ८
अयं दशस्यनर्थभिरस्य द्रो देवेभिरवश्णो न मायी ।
अयं कनीनं ऋतुपा अ॑वेद्यमिंमीतारर यश्चतुष्पात् ॥१०॥
अयं । दशस्यन् । नरय॑भिः। अस्य । दसः । देवेर्भिः। वरूणः। न। मायी। ` |
|
अयं । कनीन॑ः। तुऽपाः। अवेदि। अमिमीत । अर । यः, चतुःऽपात्॥१०॥
#॥ सिकाः कविः चि भवे,
00 अयरमिद्रो दशस्यन् स्तोतृभ्यो धनं प्रयच्छन् । दणस्यतिदीनकमा । न्ये
भिनेयेनहितैमेरुच्निरस्य । अस्यति। डांदसस्तिपो लोपः। यद्या व्यत्ययेन लोण्म- `
ध्यमः । तथा देवेभिर्योतमानेः स्वतेजोभिरैस्मो दभैनीयो वरूणो न वरूण इव ।
वरुणस्तमोवारक स्रारित्यौ वरूण एव वा। स इव मायी मायावान् तथायं कनीनः `
नीय चृतुपा कतौ पातावेदि) अज्ञायि। तथारर्मसुरमेतन्नामानममिमीत्त। `
मि ष्यात् । पादचतुष्टयोपेतः। मीडः हिंसायां । लडिः बहुत्ठ
ते विकरणस्य शुः ॥
१ छ ॥ ॥ ि ॥ ~ ५ ५.
(1 ॥ अथेकाटशी ॥
ऋजिश्व। वजं द॑रयद्षभेण पिप्रोः ।
भूत् । अभिभवति । केन साधनेन । वर्प॑सा । रूपनामेतत् । रूपेशेदरानुगृहीतिन ।
म० १०. स० ९. सू०१००.] ॥ अष्टमोऽ टकः ॥ ३११
॥।
यदेवमकरो्दा बजमदरयदिति संबंधः
॥ अथ हादशी ॥
र्वा महौ मुर वष्यांय वम्रकः यदिस्पं सपदि ।
स इयानः करति स्वस्तिम॑स्मा उषमूज सुधितं विश्वमाभाः ॥१२॥ =
एव । महः। असुर । वधथय । वकः । पट्ऽभिः। उप॑ । सत् । इद् ।
सः। इयानः। करति। स्व सिं । अस्मे।इष। ऊज सुऽधिति विर्॑। आ।अभारित्यभाः॥१२
पकक #
_ अनया स्तुतिमुपसंहत्याभिमतं वकः प्राथेयते । हे असुर बल्वन्निदं त्वा-
मेवेवमुक्तप्रकारेण महो महतो हविषः स्तोचस्य वा व्षथाय वहनाय महतः
स्वगदेः प्रापणाय वा पड्धिः पादेरुप सपैत्। उपागमत्। स इयान् उपागम्यमानः
सन् करति करोतु स्वस्तिमविनाश्मसमै वम्रकाय । तथेषमन्रमूजे रसं सुधितं
यण्विश्वं सवेमाभाः । आहर्तु ॥ ` 1
॥ इत्यष्टमस्य पचमे पंचदशे वगः ॥
सायणाचायेविरचिते माधवीये वेदाथेप्रकाशे दाशतय्यां दशः
मंडलेऽष्टमोऽनुवाकः ॥ =. .
म
न,
पुचस्य टुवस्योराषे वेश्वदेवं । हादशी चिषटुप् । शिष्टा जगत्यः । तथा चानुक्रंतं ।
इट् टुवस्युवादनो वेश्वदेवं तवत्या चिुविति । गतौ विनियोगः ॥
1 ^ | ॥ तच प्रथमा॥
नुवाे चयोदश सूक्तानि । तरद ह्येति इादशच प्रथमं सूक्तं वंटन-
४
|
|
0
॥
॥
।
३१२ ` ॥ ऋम्वेदः ॥ ` [अ०४,ऋ०५, व० १६,
भिषुतस्य सोमस्य पाता बोधि । बुध्यस्व । भवेत्यथेः। किमथे । नोऽस्माकं वृधे ।
वनाय ! विच देवेभिरदैवैः सह नोऽस्मावं शरुतं विश्ुतं यज्ञं सविता सवस्य
$ 9 स्वस्वकर्मसु प्रेरको देवः प्रावतु । प्ररछषतु । किंच सवेतातिं । स्वाधथिंकस्वातिनत्द् ।
| सवी सवीत्मिकां। यहा सर्वे तार्यतेऽस्यामिति सवेतातिः। डांदसो दीषेः। ता-
शीमदितिमखंडनीयां देवमातरमा वृणीमहे ।
अथ हितीया ॥
० भ॑य सु भ॑रत भागमृषियं प्र वायवे ुचिपे क्रद्दिष्टये ।
गोरस्य यः पयसः पीतिमानश आ सवेतांतिमदितिं वृणीमहे ॥२॥
भ॑य । सु। भरत। भागं । विर्यं । प्र। वायवे । शुचि ऽपे । ऊंदत्ऽइदटये ।
1 ऋ क) शफे ॥ [त
मरस्य । यः। पर्यसः। पीतिं । आनणे। आ। सवैऽतांतिं । अदितिं । वृणौमहे॥२॥ `
॥ ` भराय संमामङारिे सर्वेषां पोषकाय वेदरायत्वियं काले जातं प्राप्रकालटं भागं
मु भरत । सुष् संपादयत हे ऋषिजः। तथा णुचिपे गुदस्य सोमस्य माते ऋट्-
॥ दिष्टये शब्दितिगमनाय । वायोः शीघ्रगमने हि शब्दः प्रत्यक्षः । तार श्टणय वायवे
` देवाय प्र भरत भागसिति शेषः) यौ देवौ गौरस्य गोरवणेस्य पशोः पयसः पीतिं
च
पानमानशे प्राप्नोति तस्मे वायवे । शिषटसुक्तं ॥
~. , 4 शषतृतीयाः॥.. ५
देवः स॑वित्ता सांविषद्यं ऋजूयते यज॑मानाय सुन्वते ।
५ \ ॥
॥ न 8 “
पाकवदा सवेता तिमदितिं वृणीमहे ॥३॥... ८
। वय॑ः । ऋजुऽयते। यज॑मानाय । सुन्वते ।
। वृणीमहे ॥३॥
[१ 1) |) रि |
म०१०.अ०९.०१००्] = । अषटमोऽष्डः॥ = ३
॥ अथ चतुर्थी ॥ =
इदो अस्मे सुमनां अस्तु विश्वहा राजा सोम॑ः सुवितस्याध्येतु नः
यथायथा सिचरधितानि संद्धुरा सवैतांतिमदिंतिं वृणीमहे ॥४॥ `
इद्रः। अस्मे इति मुऽमनाः। अस्तु विश्वहा राजा सोम॑ः।सुवितस्यं। अधि । एतु। नः।
क ॥ कके [|
+> 4
यथा ऽयथा। मिचऽधितानि। सं ऽद्धुः। आ। सवेऽतातिं। सर्दितिं। वृणीमहे ॥४॥
इदरो देवोऽस्मे अस्माकं सुमनाः मुमनस्कोऽनुपहचेता अस्तु । भवतु । विश्वहा
सवे्रयहःसु । राजा सोमश्च नोऽस्माकं मुवितस्य सुवितं स्तोचरमध्येतु । अधि-
गच्छतु । यथायथा येन येन प्रकारेणास्माकं मिचधितानि मिचनिहितानि धनानि
दधुस्तथाधिगच्छतु सोमः । तथेदोऽपि सुमना अस्विति समन्वयः ॥ `
॥ अथ पंचमी ॥ |
ईद उक्थेन शव॑सा पर्देधे वृह॑स्पो प्रतरीतास्यायुषः ।
यजतो सनुः प्रमतिनैः पिता हि कमा स्वेतातिमदितिं वृणीमहे ॥५॥
इद्रः । उक्थेनं । शव॑सा । परः । दे । बृहस्पते । प्रऽतरीता । असि । आयुषः ।
यज्ञः। मनुः प्रऽम॑तिः। नः। पिता ।हि। कं। आ। सर्वैऽतातिं। अदिति । वृणी महे ॥५॥
अयमिंदर् उक्थेन शवसा स्तुत्येन बत्ठेन परूः पव यजियमस्मदीयं वा दधे ।
धारयति । हे बृहस्पत आयुषो ममायुयस्य प्रतरीता प्रवधेयितासि । भव । तया
यज्ञो मनुमैता प्रमतिः प्रकृष्टा मतियेस्य स नः पित्ता पालकः सन् वं सुखं
यच्छतु । यद्वा यज्ञो मंचो बुद्धिश्च प्रत्येकं सुखं प्रयच्छतु ॥ 1
|
पनरष 4
चारूरतंम तः
रतम आ स
ज॑रिता मेधिरः कविः। `
वतांतिमदितिं वृणीमहे ॥दै॥ ।
॥
|
॥
॥
। ६ १४ | | ॥ स्पृग्वेट्ः ॥ ` ` [ख० ४, स०प, व° १७५.
1
खलु । अथवा । इट्स्य नु संवंधि सुकृतं देव्यं सहो देवाहे बलमभ्रिगेहेऽस्रदीये
यागगृहे वतेत इति शेषः। इद्रस्य संबंधी सुषु संपादितौ देवानां बलभूतोऽग्रिनाहै- `
पत्यः सन् वतैत इत्यथैः । स चाग्निजेरिता देवानां स्तोता मेधिरः । मेधो यज्ञो
इहविवा। तद्वान् कविः क्रंतप्रज्ो यजो यशटव्यश्च भूत्! भवति । कुच । विदथे यज
@
५१५
किंच । सोऽगिश्वारश्चरणीयः । अंतमोऽ साकमंतिकतमश्च ॥
॥
० ~ ॥ इ्यष्टमस्य पंचमे षोडशे वगंः॥ `
~ ` ॥ अथ सघ्रमी ॥ 4
च
9 ४ कि | ॐ
न वो गुहां चकृम भूरि दुष्कृतं नावि वसवो देवहेक्छनं । र
मािर्नो देवा अनुंतस्य वधस आ सवेतांतिमरदितिं वृणीमहे ॥७।
# #
न । वः। गुहां । चकृम । भूरि । दुःऽकृतं । न । आविःऽत्य॑ । वसवः। देवऽहच्छनं।
क्ये के 1
माकिः। नः। टेवाः। अनुतस्य । वपेसः। आ । सवंऽतांतिं। अर्दितिं। वृणीमहे ॥9॥
[च ॥ ४
9 . हे देवा वो युष्माकं गुहा गुहायां प्रच्छने देशे भूरि प्रभूतं दुष्कृतं पापं । दोह-
मिव्यथेः। न चकृम । तथाविषटयमाविः संभूतं देवहेव्छनं देवानां कोधनं तन्निमित्तं `
` द्रीहंन चकृम। हे वसवो वाससा देवाः किंच। हे देवा नो ऽस्माक्मनृतस्य वपैसो
| रूपस्य प्रा्निमोकिः। मा भूत् । इतः परं मानुषं रूपं मा भूदित्यथेः। शिष्टसुक्तं ॥
1 ॥ अथाष्टमी ॥ ह
मीवां सविता सांविषन्यैग्वरीय इदप सेथतवदूयः ।
४॥।
न्य॑क् । वरीयः। इत्। पं । सेधतु । अदरयः। `
५
।आ। सवेऽततिं । अदितिं । वृणीमहे ॥४॥ `
म० १०.०९. सू०१००.] ॥ अष्टमोऽ टकः ॥
॥ अथ नवमी ॥ ह
मावा वस्तवोऽस्तु सोतरि विश्वा बेषांसि सतुतथुयोत्त। = `
कक
स नो देवः सविता पायुरीड्य आ सवततातिमदितिं वृणीमहे ॥९॥ व
उष्वैः! यावा । वसवः! अस्तु । सोतरि । विष्वा । देषासि। सनुतः । युयोत ।
1 # ऋणेन मिनि ५ कके - , ककन
सः। नः। देवः। सविता । पायुः । ईडय॑ः। आ। सवेऽतांतिं। अर्दितं । वृणीमहे ॥९॥
॥ ^
# 0 |
हे वस्वो देवाः सोतरि सोमाभिषवकतैरि मयि मावोध्वै उनतोऽस्तु। तेनोच््ि-
तेन विश्वा डेषांसि सवानपि इषटृन्सनुतः निगूढान्युयोत । पृथङ्करत । स सविता
देवौ नोऽस्माकं पायुः पाटठयिता । कृवापाजीत्यादिनोण् । प्रत्ययस्वरः । स ईड्य
ोतव्यश्च ॥ क क
॥ थ टशमी ॥ ५
ज गावो यव॑से पीवो अत्तन ऋतस्य याः सद॑ने कोशे अंगध्वे ।
तनूरेव तन्वौ अस्तु भेषजमा सवेतातिमर्दितिं वृणीमहे ॥१०॥ `
ऊजं। गावः। यव॑से! पीव॑ः। खचन । चतस्य याः। स्दने । कोशे । अंग्ध्वे।
॥ वि | पको केः भे
एव । तन्वः । अस्तु । मेषजं । ख । सवेऽतातिं। अदिति । वृणीमहे ॥१०॥
हे गाव आशिराथो यूयं यवसे तृणवति देशे पीवः प्रवृदधमूजे रसमच्तन । अत्त ।
या ऋतस्य यज्ञस्य सटने गृहे कोशे गोष्टे दोहनस्थानेऽग्ध्वे व्यजयथ ता अत्तन ।
तनूरेव । जन्ये जनकशब्ट्; । तनूरेव छीरसैव तन्वः सोमरसस्य भेषजमस्तु । यदा
पृथगेव वाक्यं । अस्माकं तन्वो मेषजमस्तु । किंच तनूरेव पश्ुशरीरमेव । पुना
यागे सति स्वगस्य संपादयितुं शक्यत्वात् ॥
।
॥ क्तुग्वेट्ः ॥ ` ० ४. ०५, वं० १४.
स्तोता । यजमानं साधुं सोमः कृत इति स्तौति । यद्वा शष्ठतां सर्वेषां जरयितिंद्
इदि एव सुत्तावतां सोमवतां यजमानानामवो रको भद्रा भद्या स्तुत्या प्रमतिः
| यस्यंद्स्य सिक्तये सेकाय पानायोधरदततरं दोणकलशं पू सोमेन पूण भवति
| सरवावः स्त एव प्रमतिरिति॥
1) ॥ । ¢ # #
व ॥ खथ इाद्भी ॥
चिचस्ते भानुः ऋतुप्रा अभिष्टिः संति स्पृधो जरशिप्रा खुश
॥ ति कनिष
ज्या रज्यां पश्च श्रा गोस्तूतूषेति पयेयं दुवस्युः ॥१२॥
चिचः।ते। भानुः । क्रतुऽप्राः। अभिष्टिः संति । स्युधः। जरणिऽप्राः। अधृष्टाः
#
+ ६
रजिं्टया । रज्या । पथ्ः। आ । गौः। तूतूषेति । परि । रर । दुवस्युः ॥१२॥
हेते भानुः प्रकाशश्ि् आश्वयेभूतश्चायनीयो वा। तथा ्तुप्राः स भानु-
रस्माकं कमणां पूरकोऽभिष्टिरभ्येषणीयः । हे इद्र ते जरणिप्राः स्तोतुणां धनस्य
५
रज्या रज्वा गौः पश्वः पशोरपं दुवस्युः परि चरणमिच्छन् एतन्नामषिः परि
तूतूषेति । अभित्वरयति ॥
| ॥ इ्यष्टमस्य पंचमे सप्रदशो वगैः॥
उदुध्यध्वमिति इादशचं डितीयं सूक्तं । सोमपुचस्य बुधस्याषे । आ वो धिय-
` मिति नवमी कपृन्नर इत्यंत्या च चे ज्ञगत्यौ । चतु्ीषष्ठयौ गायच्यौ । निराहा-
बृहतौ । शिष्टाखिष्टभः । विश्वे देवा देवता । ऋषििकस्तुतिर-
1 तथा चानुक्रातं । उङ्ुध्यथ्वं बुधः सौम्य ऋविक्सततिवी
वृहती पंचमीति । गतः सूक्तविनियोगः ॥
` वानिति पंचमी
४८
पूरयिष्योऽधृष्टा अन्येरप्रधूथाः स्पुधः स्यधाः संति । यस्मादेवं तस्मादूजिष्टयजैतमया
थः
म° १०. ख०९, सू० १०१] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥
ध्वं । जानीध्वं । उच्चर युष्माकं कतेव्यमेवोपदिशति। तथाग्निं समिधं । ह
ग्दीपयध्वं । जिईधौ दीपनो । रोधादिकः। लोटि ्रसोरल्लोप इत्यलोपः । बह
ऽनेके सनीक्छाः संमाननिवासाः । एकस्यामेव शलायां निवसतः । अहं च ` |
करामेतन्नामिकां देवतामभ्निसुषसरं च देवीमेतांस्वीन्देवानिंदावत इद्रेणयुक्तान्वो
, , यृष्मानवसेऽस्माकं रणाय नि नितरां इये । आद्हयामि ॥
ह ॥ अथ हित्तीया॥ ` (क
मद्रा कृणुध्वं धिय आ त॑नुध्वं नाव॑ंमरििपरंणीं कृणुधवं । ` ५
वमायुधारं कृणुष्व प्राच यज प्र ण॑यता सखायः ॥२॥ =. ` 1
मंदा । कृणुष्वं। धियः । आ । तनुध्वं । नावं । अरिवऽपरंणीं । कृणुध्वं । ।
इष्कृणुध्वं । आयुधा । अरं । कृणुध्वं । प्राच । यज्ञ प्र। नयत । सखायः ॥२। .‡
मंदा मंदरि मदक्राणि स्तोचाणि कृणुध्वं । कुरुध्वं । हे सखायः । कृवि हिंसा
करणयोः । धिनिविकृरव्योरचत्युप्रत्ययः। अकारश्वातदेशः। या करोतेव्यत्ययेनष्ुः।
त्था धियः कमणि चयनप्रदेशकषैणादीन्या तनुध्वं । विस्तारयत । तथारि्रपर .
५
क्षेशादिरूपेणारितेण पारयित्तयां नावं चयनाख्ां कुणुध्वं । कुरूष्वं । तथायुधा-
| अुधानि सीरयुगादीन्यरमलं कृणुधवं । हे साय विजः परांचं म्रागंचनं यज्ञं यष्व्य- `
` मम्निं प्र ख्यत । प्रकषण नयत । आदो कषेणं प्रां चं कुरूतेत्यथः ॥ ४
१ अवततीवा॥
र
युनक्त सीरा वि युगा त॑नुध्वं कृते योनो वपतेह बीजं । =.
| शष्ट सभरा असन्नो ने य् इत्सृण्यः पक्कमेयात् ॥३॥ | ध
सुगा । तनुष्व । कृते । योनो । वपत इह । बीजं । =
पक्त । खा । इः
ऽभ॑राः।अस॑त्। नः। नेदीयः इत्। सृण
शुषि व
।
॥.
न्तन
4
` ॥ ऋग्वेटः ॥ :
च कृष्टाकु्टयोनिंवपतेत्यथेः । सप्र याः
तथा नोऽस्माकं गिरा स्तुत्या प्रशस्त्या सहास्माकं श्रिरनं
सभरमसत् । भवति । भवतु । तथा नेदीय इरदतिक्मेव सुणयः। सृणिरंकुशः। संकु-
शवदक्रो लविचः। पक्त स्तं बमेयात्। आभिसुख्येन गच्छतु । शरुष्टिः सभरा असत्
सृण्यः पक्रमेयादिति चश्ब्टानुवृक्ेश्चवायोगे प्रथमेति प्रथमस्य निधात्ताभावः
‡ क
| ॥ खथ चतुर्थीं ॥
सीरां युंजति क्वयों यगा वि तन्वते पृर्क् ।
धीरं देवेषु सुख्नया ॥४॥ # प
सीरा । युंजंति । कवय॑ः । युगा । वि । तन्वते । पृथ॑ङ् !
धीराः देवेषु । सुख्नऽ्या ॥६॥ = =
सघ्रारण्या अकृष्ट
५
कवयो मेधाविन ऋत्विजः सी सीराणि क्षेणसाधनानि युंजंति । योज-
यंति । युगा युगान्यपि पृथङ् परस्परं वि तन्वते । भिन्रप्रदेशनि कुवैति! कीदशः
कवयः । देवेषु विषये धीरा धीमतः । किमथे । सुखया । सुन्रमिति सुखनाम ,
मुख्छया । सुखशब्टात्क्यजताद्धावे स प्रययादित्यकारप्रत्ययः । सुपां सुलुगिति
तृतीयाया कारः । अथवा धीरा धीमंतो देवेषु सुख्नया सुम्नेन । देवेषु सुखं भूया-
दिति । सुपां सुत्ुगिति विभक्तेयौजदेशः ॥
` ॥ अथ पंचमी।॥
ष
र॑हावानन्कुणो्तन सं व॑रतरा द॑धातन ।
दप ९. ; ि ३१९ | 4 |
ने । वयमवतमवटं सिचामहे । कीहशमवटं । उद्रिणं । उद्राववंतं । मुषेदं । सुषट :
तत शक्य । अनुप्तं । अनुपक्षीण । कटाचिदुटकोपक्षयरहितं ॥ `
| ॥अथयषष्ी॥ ` ` च 1
| इष्कृताहावमवतं सवरं सुषेचनं । =
उद्रिणं सिंचे खितं ॥६॥ = स
इष्कृतऽ आहावं । अवतं । सुऽवरचं । सुऽसेचनं ! त
उदि । सिंच । खितं ॥६॥ ५ ५ ण
इष्वृताहावं संस्कृताहावमवत्तमवटं द्रोणं सिंचे । सेचयामि । पुनः कीदश्म- `
वट । सुवरत्रं । शेभनवर्ोपेतं । सुषेचनं । शेभनोदकसेकोपेतं । उदं । उदरा
ववत । खिति । अक्षीणं ॥ व
॥ इत्यष्टमस्य पंचमेऽदटादशौ वर्मः ॥ 5
| ॥ अय सत्रमी ॥ ` - ~
प्रीणीताश्वान्हितं ज॑याथ स्वस्ति वाहं रथमिर््वुणुध्वं ।
#"
द्रोणांहावमवततमश्म॑चक्रमंस॑चकोशं सिंचता नृपां ॥9॥ `
प्रीणीत । अश्वान् । हितं । जयाथ । स्वस्तिऽवाहं । रथ॑ । इत् । कृणुध्वं । `
ऽसखराहावं । अवतं । अश्मऽ चक्र । संसंचऽ कोशं । सिचत । नऽ चानं ॥७॥
| विति सि 1
पथम
हे ष्विजो गूयमश्वान्यापनभीलान्वल्िवदेन्प्रीणीत । उचित्तधासोदकादि-
| प्रदानेन प्रीणयत। यथा सेचक्षेणाय प्रभवंति तथा कुरूतेत्यथेः । तथा कृतवा हितं `
पोचितं कषेणं जयाथ । जयथ । संपाट्यथ । तथा रथं चयनाख्यं हलाख्यं
स्वस्तिवाहमित् सुखस्य वाहकमेव कृणुध्वं । कुरुध्व । तद्ये दोणाहाः
नाथे बल्विवदानित्याहावो जत्छाधारः पाचविशेषः। स च
1
3२७: ~ ॥ ऋण्वेदः॥. [अ०४, अ०५. व०१९.
विशेषणं । कथं जयथ । वंधुसुदद्यो यथा हितं भवति तथा जयथ संयामं ।
स्वस्िवाहं । स्वस्तीत्यविनाश्नाम । अविनाश्वाहनं रथमिद्थं च वशुध्वं । इदिति
चाथ । अश्वरथं.च हदं कृत्वा संयामभूूमिं गला दोणाहावमित्यादीनि डितीया-
। तानि चूपाख्यसंयामविशेषणानि सिंचतेत्यनेन सं बध्यते । द्रोणो दुममयः स एव
रथ आहाव आहावस्यानीयो यस्य संमामस्य तं । अवतं । कूपनाभेतत् । कूपं
संमामाख्यं । खश्मचक्रं कूपप्रांतनिवद्धार्मसदशप्रहर्णायुधवंतं । असनानि वा
क्षेपणानि वा चक्राख्यायुधविरेषा यस्मिन् तं। व्याप्रचरणं व॑तं व्याप्तक्रमणवंतं वा।
चक्रं चक्तेवौ चरतेवे ऋरामतेर्वेति निरुक्त । अंसचकोशं । अंसचाणि धनूषि कव-
चानि च कोशस्थानीयानि यस्मिन् तं सिंचत नुपाणं । यस्मिन्योद्धार उटकवत्पी
यंते
मायते तं । हणं कूपसहशं संपामं सिंचत हे अस्मदीया योद्ारः । सूक्तस्य
वेश्वदेवत्वादे सेनि विश्वेषां देवानां प्रसादेन सवैमेतक्करतेत्यथैः । एवं निराहा-
` वानित्यादिषु कूपरूपव्याजेन संयामवणेनमवगंतव्यं ॥ = ˆ ` `
॥ अथाष्टमी ॥
9. वजं वृणुध्वं स हि वों नृपाणो वम सीव्यध्वं बहुल्मा पृथुनिं ।
भि
क्षै
ति पुरः कृणुध्वमायसीरधृशटा मा व॑ः सुसोचचचमसो हंह॑ता तं ॥४॥
वरजं । कृणुध्वं । सः। हि। वः। नृऽपानः। वमे । सीव्यधं । बहुला । पृथूनि!
कन्े
॥ ४ ^
पुरः वृणुध्वं । आयसीः । अधुं्टाः। मा । वः सुसोत्। चमसः । हहत । तं ॥४॥
॥
लिजौ बजं कृणुधवं । जं गोष कुरुध्वं । आभिरदोहाथं गोस्थानं कुरुत ।
ट वौ नृपाणः। नेतृणां देवानां पात्यः । देवपानसाधन इति । सां-
पेण वा गोः पयञ्चादिकं देवाः पिबंति खलु । वम वमी
पोभयत आच्छादकतात्पमयाजादीनि प्राच्यानि प्रती
म०१०. ०९. सु०१०१.]
वमे वमाणि कवचानि सीव्यध्वं बहूत्टानि पृथूनि च यथा भवंति तथा । पुरः
्वमायसीरन्येरधृषश्टाश्च । वश्चमसोऽदनसाधनो मा सुसोत् । मा सवेत्।
=|
चा
सा।
वर्ते ।
पयसा सरहषधाय मरही
॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥
ोरीदिललानुम् । कतिकश्तुतिपक्ष एवं । चे
[ह
ति । इति देवतानु्रहत्ग्धवत्टो वदति ॥
॥ अथ नवमी ॥
1 वो धिय॑ यज्ञियां वते ऊतये देवां देवीं य॑जतां यज्ञियांमिह ।
२२१
2 वपक्षे । स्स्मदीया योडारो
यूयं । नरो योद्धारः पिबंति प्रत्यथिनां प्राणानिति नुपाणः। स ताहशो युष्मदीयः
खत्दु । गो्पक्षे नराणां पानसाधनः स सत्तु । पातिः करणाधिकरणयोश्वेति ल्युट्!
नो दुहीयद्यवसेव गली सहस॑धारा पय॑सा मही गौः ॥९॥
त
॥ खथ दशमी ॥
ताग्मन्सयीभिः
वः। धिये । यजिया । वतत । ऊतये । देवाः । देवीं । यजतां । यिर्या।
इह ।
नः । टुहीयत् ! यवसा ऽइव ! गत्वी । सहसर॑ऽधारा ! पय॑सा । मही । गौः ॥९॥
देवाः स्तोतार ऋविजो वो युष्माकमूतये यलियां यज्लाहा धियं बुद्धिमा
प्रवतेये ! यद्वा । हे देवा छतिजो वौ यक्ियां धियं युष्माकं कतैव्यत्वेन
संबधिनीमस्माकमूतये रक्षणाया वर्ते । अपि च देवा एव संबोध्याः। हे देवा वो
युष्माकं धियं बुद्धिमा वतते । ्ावतेयामि । किमथे । ऊतये । अस्माकं रणाय ।
धियं। यज्ञियां यज्ञाहा देवीं द्योतमानां यजतां पूज्यां । इहास्मिन्यागेऽस्यां
वा। एको यङ्ियामिति शब्दः पूरणः । सा धीर्नो ऽस्माकं टुहीयत् । टुद्यात् ।
तच दृष्टातः । यवसेव यवसानि भश्यित्रेव गवी पुनगोष्ठं गत्वा । पीत्वीति वत् ।
महती गोयेथा दुग्धे तडत् ॥
श
३२२ ॥ ऋग्वेदः ॥ [अ०४,अ०५. व०१९.
तासासभूतानिवाशीभिस्तकषत पाचाणि । नकारोपजनष्डांदसः । मयटः टिच्ला-
रीप्। तानि पाचाणि सोमपूणानि दश दशसंख्याकानि कष्याभिः प्रकरः पयोयेश
परि ष्वजध्वं ।. संस्कुरुध्वं । आसाद्यत । यद्धा वाशीभिर्रमन्मयीभिरहैविधान शकटे
तक्षत । ते च दश कष्याभिदेशसंख्या काभी रज्नुभिः परि घ्रजध्वं । उभे धुरौ युग-
संबंधिन्यो वही वाहकावनडाहौ युनक्त । अथवायं म॑चश्चयनसेचकर्षणसाधनह-
लाविषयतया व्याख्येयः ॥ ` व
| ॥ खअथेकाटभी ॥
उभे धुरो वहिरापिव्दमानोऽतये्निंव चरति हिजारनिः ।
वनस्यतिं वन स्रास्थापयध्वं नि षू दधिध्वम्खनंत उत्सं ॥११॥
शि क दा |
उभे इति । धुरो । वहिः । आऽपिन्द॑मानः। अंतः। योनां ऽइव । चरति। दिऽजानिः।
वनस्पतिं । वने । आा। अस्थापयध्वं । नि । सु । ट्धिध्वं । अ्सनंतः
} 9 भेके सेको ऋः भावे +
हविधानशकटस्योभे धुगवापिब्दमान आशब्टमानो वह्िहैविवाहकोऽ
योना वंतरिव हिजानिदिजायः । तयोरंतश्चरति । तं वनस्पतिं वनस्पतिविकारं
शकटं वने वनसंवंधिनि वृके । मेणीभूत इत्यथेः। तचास्यापयध्वं । यद्वा वने वन-
नीये देश आस्थापयध्वं । तत्पथाच्तचत्यं सोमं सु सुष्टु नि ट्धिध्वं। सुखं यथा भवति
तथा स्यापयतासंद्यां । खभिषवप्रदेशे च पश्चाटुत्सं तद्रसमखनंतः संपाटयतेत्यथेः ॥
अथवायमपि मचः कषेणपरो व्याख्येयः । यस्य त्रंगलस्योभे धुरावापिव्टमान
शब्ट्मानो वहिरनङड़ान् अंतर्योनाविवेत्यादि समानं । ताहशं वनस्पतिं बनस्यति-
विकारं लग
9
म० १०, ०९. सूु०१०२.] ॥ अष्टमो ऽ कः ॥ । इदः "` |
हे नरो नेतार विज एष इद्रः कपृत्। सुखस्य पूरको यषटणां सलोतृणां च । 1
कमिति सुखनाम । तं कपृथं सुखस्य पूरयितारमिंदर चोदयत । प्रेरयत् । खुट्त । न
खुदत क्रीडयत । सुद क्रीडायां । भौवादिकः । यत्ययेन श; ।रेफलोपण्छादसः ४
संपिं्ट । संस्तुस्तेत्यथैः। किमथ । वाजसातये । अन्नस्य लाभाय । तदेवाह । ह 1
; नििम्यः पुरं । निष्ट दितिं स्वसपत्नीं गिरतीति निषिीरदितिः। तस्याः
मिदर साधः । सह पपिः प्रयासरूपेः क्मभिवीध्यंत इति सबाध ऋविजः 9
तथाविधा गयं सोमपीतये तस्य सोमपानायोतयेऽस्माकं रणाय वाच्यवय। `
व्यत्य्येनेकवचनं । स्राच्यावयतेत्यथैः ॥ ` ध ह >
॥ इत्य्टमस्य पंचम एकोनविंशे वर्गैः ॥ =. ।
` प्रते रथमिति हादश्चे तृतीयं सूक्तं । भम्येश्वपुनो सुद्रल ऋषिः। आद्या तृती-
यात्या चेति तिस्चौ वृहत्यः । शिष्टा नव विषभः। दुधणौ नाम सुद्रः। तदेवत्य- र
मिदमिंदृदेवत्यं वा। तथा चानुक्रोते। प्रते सुद्रलो भाम्येशवो दूषणेन वृषभेण चाजिं `
जिगायेति दरौधणं वाद्या तृततीयांत्या च वृहत्य इति, गतो विनियोगः । अचराहुः।
सुद्रलस्य हता गावश्चौ रेसत्यक्ता जरद्रवं । स शिष्टं शकटे कुता गतिक ऋजुराहवं ।
युयुजेऽन्यच च चोरमागोनुसारकः । दुघणं चायतः किप चोरेभ्यो जगृहे
इति ॥ तथा निरुक्तेऽपीयं कथा सूचिता । समुद्रतो भाम्येष्च ऋषिवैषभं च
च युक्ता संग्रामे व्यवहत्याजिं जिगाय । नि०९.२३.। इति ॥
॥ तच प्रथम
धूकृतमिद्रोऽवतु धृष्णुया। `
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: । अवतु । धृष्णुऽया।
' वैनवाते श, [न
। धन्ऽभसेषु । नः । अव ॥१॥
| ३२४ ॥ ऋग्वेदः ॥ [अ०४.अ०५. व०२०,
रूपधनमनजनकामेषु सत्सु । यला गोरूपथनस्य भरकेषु चौरेषु जेत्येषु सत्सु नो
ऽस्मानव । र ॥ 1 | त ॑
ता ष ॥ थय डितीया ॥
उत्स्म वातो वहति वासो अस्या अर्धिरथं यदजयत्सहसं
रथीरभून्सुद्रत्कानी गविष्टौ भरे कृतं व्य॑चेदिदरसेना ॥२॥
उत्। स्म । वात॑ः । वहति। वासः । अस्याः। अरथिंऽरथं । यत्। अज॑यत्। सहं ।
रथीः । अभूत्। सृद्रत्ठानी । गो ऽष्टौ । भर । कृतं । वि । अचेत्। इद्ऽसेना ॥२॥
सस्या रथीरभून्सुदतत्ानीति वष्यमाणत्वादस्य मुद्रत्स्य पल्याः सारयिभताया
वासौऽभुकं वातो वायुरुहति । ऊध्वं प्रापयति । खमजनितस्ेदापनयनाय ।
अथवा शीघ्ररथधावनजनितो वायुरम्ुकं चाल्यतीत्यथेः । कदेव्युच्यते । यद्यदाधि-
मधिकं रथमारुद्य सहस्रं सहसरसंष्याकं गोसंघमजयत्तदा । यद्या गोसहस्मज
यदस्या इति वा योज्यं । यद्योगाज्जयतेनं निघातः। गविष्टौ गवामपहतानामेषशणे
मद्रतानी मुब्रतस्य स्तर रथीरभूत्। सारधिरभवत्। छांदस आनुक् इदसेना स्तुत्या ` ।
परितुटस्येदरस्य सेना। यदवदरस्य श्चूणां दारयितुमुत्रलस्य सेनानीरूपा सुद्रत्रानी भरे `
संमामे कृत्तं संपादितं गोसंं व्यचेत्। व्यचिनोत्। शचुभ्यः पृथक् कृतवती ! चय-
तेत्यैडि बहत्टे दसी ति विकरणस्य त्टु् ।
॥
1. ॥ सथ तृतीया ॥
अतयच्छ जिर्घासतो वज॑मिंदराभिदास॑तः
४
दास॑स्य वा मघवन्नायैस्य वा सनुततयैवया वधं॥३॥
म०१०. अ०९, सू०१०२.] ॥ अष्टमोऽषटकः ॥ ३२५
॥ थ चतुर्थी ॥ ध.
उद्नो दद्म पिबज्नहेषाणः कूटं स्म तृहटभिमातिमेति। ` प ०. . 1
म्र सुष्कमारः रवं इ्छमांनोऽजिरं बाहू संभरत्िषांसन् ॥४॥ =`: 1
उद्नः । हृदं । अपिवत्। जहेषाणः । कूं । स्म । ृंहत्। अभिऽमांतिं । एति। `
ष्कऽभारः। ्रवः। इच्छमांनः। अजिरं । बाहू इतिं । अभरत्। सिसांसन्॥४॥
अचर वृषभः स्तूयते । वृषभ उद उदकस्य हूटमगाधजत्ाश्यमपिवज्नहैषाणः
अत्यतं हृषितः सन् । तथा कूटं पवेत भुंगं चौरेर्गोपिधाना्थं निहितं तहत ।
णुगेणए विर्हिसितवान् । व्यदारयदित्यथेः । तथा कृत्वाभिमातिमेति शत्रं गच्छति
हतुं । पश्वान्मुष्कभारः प्रवृद्धसुष्कः। प्रवृद्धस्य वृषभस्य हि सुष्कवृद्धिभेवति । तथा
प्रवृद्धो वृषभः चरवः । श्रूयत इति श्रवो यशः । इमान इच्छन् अजिरं गमन- `
शचं बाहू बाहृभ्यां वाड्रो वै प्रानरत् । प्रहत वान् । यद्वा । अजिरमिति सि~
म । सिप्रं सिषासन् संभक्तुमिच्छन् वाहू प्राभरत् । प्रस्रारितवानित्यथैः ॥
( ॥ खथ पंचमी ।॥ | ५ (र ५ १
८... न्यकरदयन्तुपयतं एनममेंहयन्वुषभं मध्य आजेः। ४ ध. ४
तेन सूभ॑वै शतवत्सहस्रं गवां सुक्तत्ः प्रधने जिगाय ॥५॥ 1
नि । सक्रदयन्। उपऽयंतः। एनं । अमेहयन् । वृषभं । मध्यं । आजेः! ‰ `
। सूभ॑वै । शतऽव॑त्। सहस । गवाँ । सुद्र॑तः । प्रऽधने । जिगाय ॥५॥
भपमः ॥ 1 : कषकः भ ` शो च्यक
तठ आह । तेनेति तच्छनब्ट जते यच्छ ब्टाध्याहारः । यमेनं वृषभं न्यक
पे गच्छतौ नरः । यथा प्रचडेन
वृषभं वषेकं सेक्तारमाजेः
® ` ५५
२९ ॥ ऋग्वेदः ॥ [० ४, ०५, व० २१.
7 ॥ खयवष
ककदेवे वृषभो युक्त आंसीदवा वचीत्सारंधिरस्य
दुधयुक्तस्य दव॑तः सहान॑स ऋदधंति ष्मा निष्यदों सुदत्तानीं ॥ ६॥
ककदेवे । वृषभः। युक्तः । आसीत् । अवावचीत् । सारथिः । अस्य । केशी ।
दुधैः। युक्तस्य । टव॑तः। सह । अन॑सा । ऋच्छति । स्म। निःऽ परदः । सुद्रतानीं ॥६।
कि
ककदैवे हिंसनाय शचरूणां वृषभो वषिता गोौयुंक्त खसौत्। रथे संवद्धोऽभूत्।
केशी केशवान् प्रयहवानस्य राज्ञो रथस्य वा सारथिमुत्रलानीत्यथेः । सारथ्यभि-
प्रायेण केशीति पुंलिंगता ! अवावचीत् । वृषभभयजनवं शच्रुभयजनवं वाक्रो
शमकरोत् । अथवा केशी केशिनी सारथिरस्य । असुमित्यथेः। अमुं वृषभं शब्ट्-
मकारयत्। वच परिभाषण इत्यस्य केवलस्यां तणीतिणयथेस्य यङ्त्टुगंतस्य लङि
रूपं । अथवास्य सारथिः सहायभ्रूतः केशी प्रकृ्टकेशे वृषभो ऽवावचीत् । भृश्म-
शब्ट्यत्। एवंभूतस्य टुधेदुधेरस्यानसा सह दरवतः शीरं शचुमध्ये रथेन सह धावतो
वृषभस्य भयंकरशब्देन निष्यदो निर्ग॑द्धतो योदारौ मुद्रलानीं सुद्रलस्य योषितं
सारथिभूतां प्रत्युच्छति ष्म । अगच्छनित्य्थः। पाधरेत्यादिनच्छैदेशः ॥
॥ इत्यष्टमस्य पंचमे विंशो वैः ॥ |
॥ अथ सघ्नमी ॥
उत प्रधिमुद॑हन्रस्य विद्वानुपायुनग्वंसंगमच शिन् ।
मध्यानामरहत पद्याभिः कवुररान् ॥७॥ `
उत्। अहन्। सस्य । विच्वान्। उप॑ । अयुनक्। वंसंगं । अचं । शिन्
ष्या॑नां । अरंहत । पद्याभिः । ककुत् ऽ मान् ॥9॥
म०१०, ख०९. सू०१०२.] ॥ अष्टमो ऽषटकः ॥ ३२७
॥ अयाटमी ॥ | ।
नमं्राव्यचरत्कपदीं व॑र्ायां दावीन्ह्यमानः। ` ` "अध
कुखन्बहवे जनाय गाः प॑स्यणनस्तविंषीरध्त ॥४॥ =
अष्टाऽवी। अचरत्। कपर्दी। वरत्रायां । दाऽ आऽनद्यमानः।
नि। कृखन्। बहवे । जनांय। गाः । पस्पशानः। तविषीः । अधत्त ॥४॥
नमिति सुखनाम । सुखं यथा भवति तथा । अष्टावी । खष्टा प्रतोदः ।
तदान् । दांदसो विनिः । कपदीं कपदेवान् अचरत् । संचरति । किं कुवैन् । |
वरचायां वध्यां दार कां रथांगनूतमानद्यमानः सवतो वधरन्। पुनः किं कुवन् । 1
बहवे जनाय स्वपुचभूत्यादिल्वक्षणाय नृम्णानि धनानि शचुसंवंधीनि सुखानि
वा कृखन् । गाः पस्पशनः स्पृशन् । स्पश बाधनस्यशेनयोः । छांदसो लिटि `
नच्। एवं कुवन् तविषी बेलान्यधत्त । धत्ते । जयं प्रापनोतीव्य्थः ॥ =
क
{
॥ अथ नवमी ॥
इमं तं प॑श्य वृषभस्य युंजं काष्ठाया मध्यं दुधणं शयानं ।
येन॑ जिगाय॑ शतव॑त्सहसखं गवां मूत्रलः पृतनान्यैषु ॥९॥ `
इमं । तं । पश्य । वृषभस्य । युजं । काष्ठाया । मध्य । ट्ऽ घनं । शयानं ।
जिगाय । शतऽ व॑त्। सहस्रं । गवा । मुरलः । पुतना्यैषु ॥९॥ `
कंचन सखायं सेनादिसहायाभावेन जयविषय उपहासं कुवाणं प्रति ब्रवीति ।
| राजा दूघणेन वृषभेण चाजिं जिगायेतयक्तवान्। पूव वृषभो वणितः! अच दुघणो
ते । हे सखे तमिमं दुघणं पश्य । कीहशमिममित्युच्यते । युजेरसमास इति
युज्यत इति युक् सखा । वृषभस्य सखिभूतं । वृषभो यावंततमथे र
। | ~. ॥ऋण्वेद्ः॥ [अन्ए,अ०्५.व०र१ः
॥ अथ टशमी ॥
४ आरे अघा को न्वि१त्था द॑दशे यं युंजति तम्वा ।
तृणं नोट्कमा भरतयु्तरो धुरो वंहति प्रदेरदिश्त् ॥१०॥ ` |
चवै
आरे! अधा। कः। नु। इत्या । ददे । यं । युंजंति । तं । ॐ इतिं । आ।
॥ 0 वि । ॥ # कन [ण
न। अस्मे। तृणं। न। उट्कं । आ। भरंति। उत्ऽ त॑रः। घुरः। वहति। प्रऽदेदिंणत्॥१०।
कये चिति कमि ऋ 1
य ञ्रारे समीप एवाधाघानि दुःखानि श्चुरूपाणि करोति तं को नरो चि-
दानीमित्येत्यं ददश । पश्यति । किंच यं दुधणं युंजंति रथे तसु तमेवा स्थापयंनि।
आरोहयतीत्यथेः। अथवा यं रथे युंजति तमेव प्रहरणथेमास्यापयंति। उभय विधं
कायमेकः करोतीत्यथेः । विंचास्मे तृणं ना भरति । नाहरंति । तोटकं नाहरंति ।
हरहोभं इति भवं । इहशो दुघण उत्तरो दरिणस्य वृषभस्य स्वयसु्तरः सन्
र्थभारस्य रथधुरं वहति प्रदेदिश्त् प्रकरेण जयं स्वाभिने प्रदिशन्! शचणां वा
भयं प्रदिश्न्वहति । दिश आअतिसजेन इत्यस्माद्यङ्लुगंताच्छतरि रूपं ॥
॥ अथेकादशी॥ ` 1
परिवृक्तेवं पतिविद्यमानट पी्याना कूच॑क्रेणेव सिंचन् । ` 3 क
॥ ^
एषा चिद्या जयेम सुमंगलं सिन॑वदल्तु सातं ॥११॥ `
परिवृक्ताऽडव। पतिऽविद्यं । आनट् । पीना । कूच्॑रेण ऽइव । सिंचन्। `
भनि जि #
एषऽरां । चित्। र्यां । जयेम । सुऽमंगर्ल । सिन॑ऽवत्। असतु । सातं ॥११॥ = `
०१०. ०९. सू०१०३.] ॥ अष्टमोऽ टकः ॥ ४,
ती्येषेषी । इहश्या तया रथ्या सारथिभूतया जयेम शवुभिरपहतं मोसंघं।
स्याः सात दत्त सभजन वा सुमगलं शेभनमंगत्वत् सिनवत् । सिनमनं 1
दच्चास्तु । गोरूपान्नवच्च भवतु ॥ ४ (७
॥ अथ इाट्श्ी ॥ 4 क
त्वं विश्वस्य जग॑तश्वसुरिदरासि च्छषः। =
यदाजिं वृष॑णा सिषाससि चोटयन्वधिंणा युजा ॥१२॥
त्वं । विश्वस्य । जग॑तः। चक्षुः । इू। असि । चक्ंषः। त.
वृषा । यत्। आजिं । वृष॑णा । सिसांससि। चोदय॑न्। वभिंणा । युजा ॥१२॥
। |
# # 1
कस्य विकस्पेनेटूत्वादादाविंदस्य स्तृतत्वादतेऽपींटः सयते । हे इद् त्वं वि- ` |
धस्य सवस्य जगतश्चल्सुषश्चक्ुष्मतः पश्यतो वा जगतश्च सषुरसि। प्रत्येकसुत्पत्तिविशि-
छुःसद्गावेऽपि सवस्य साधारणं चक्षुरसि । त्वया दृव्यानैहिकासुष्मिकपदाा-
न्पश्यतीत्यथः । तामेव हि यज्ञादिना लब्धु पुरुषाथेन्साधयंत्ति । यद्वा विश्वस्य
जगतो यच्िजं च्ुरस्ति तस्यापि चश्षुषस्वं चक्षुरसि । यद्यस्माइषाभिमतव्षक-
सुद्रठस्य मम संमामं विणा पाशेन युजा युजो युक्तो वृषणा वृषणौ
~ वषेकावश्वौ रथे योजयिता चोदयञ्शचुषु प्रेरयन् सिषाससि । आजिं संभक्तमि-
सि तस्माच्चक्ुरसि । अ (क
॥ इत्यष्टमस्य पंचम णक्विशे वैः ॥ (1
सखाभ्पुः शिशन इति चयोटशंचे चतुथे सूक्तमिंदपुचस्याप्रतिरथनास्न आष ।
चयोदश्यनुष्टप् शिष्टाखिष्टभः। वृहस्यते परि दीयेत्यस्या वृहस्यतिर्देवता। अमीषां
र्ता ख्या देवी देवता 1 शिष्टा रेद्यः। चयोदशी विकल्पेन मा
आपुः सप्रोनिदरोऽ प्रतिरयश्चतु्ीं बाहैस्यत्यो पात्याप्बाद्यत्य
चितयमिषु प्रणीयमानेषु टचि
शि ॥ कुग्वेटः [० ४८. ०५, व्० २२,
( ॥ तच प्रथमा ॥ | |
आभुः शिशानो वृषभो न भीमो घनाघनः कषोम॑णश्चषेणीनां । | |
- संकरंद॑नोऽनिमिष एकवीरः शतं सेना अजयत्साकमिंदः ॥१॥ र
शे ॥ ॥ । 0
चापप: । शिश्नः । वषभः । च । भीमः । घनाघनः शः! चषेणीनां ।
संऽक्रर्दनः। अनिऽमिषः। एकऽ वीरः। शतं । सेनाः। अजयत् । सावं । इद्रः ॥१॥
1 # # क्व चाकि भवनय कननमि कणि कणो सि
अयमिंद् आमु: शीघ्रकारी व्यापको वा श्श्णानो निशितः! शचरूणां भयजनकं
` इत्यथेः। कं इव । वृषभो न भीमः! विभेत्यस्ादिति भीमः । ताहशे वृषभ इव ।
0 स यथा तीष््णन्यां भुगाभ्यां भीमो भवति तडत् । खथवा । शिशानस्तीह्णमतिः।
व्यत्ययेनात्मनेपद्। वृषभो न भीमः । वृषभो यथा मगाभ्यां भयजनकस्तदच्छ चरणां
भयजनकच्च । घनाघनो घातकः शचणां हंता । पचाद्यचि हतेधेश्चेति डिवैचन-
1 मभ्यासस्याडागमो घत्वं च धालभ्यासयोः । चषेणीनां । चषेणएयो मनुष्याः
ष्याणां इष्याणां सोभणः सोभयिता । संक्रटनः सम्यक् ऋटयित्ता । प्राणिनामा-
` ~ क्षणेन प्रहारेण वा) अनिमिषश्वकषु्निमेषरहितः। सवदा स्वयज्ञगमनयुद्धादि- `
© कार्येष्रनलस इत्यथः । एकवीरः । वीरयत्यमिचानिति वीरः। णक्थासो वीरश्च ।
अथवा । एक एवं विक्रांतः । असाहाय्येन कायेक्षम इत्यथः! ईहशोऽयमिंदः शतं, `
` सेनाः साकं सहेकोचचीगेनेवाजयत् । जयति ॥ ५, क
क.
॥ अथ हितीया ॥
निमिषेण जिष्णुना युत्कारेण दुच्यवनेनं धृष्णुना ।
9
युधो नर इषुहस्तेन वृष्णा ॥२॥ `
जिष्णुना । युत्ऽ कारिणं । दुःऽच्यवनेनं ।
म०१०.अ०९. सू०१०३.] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ ३३१
नमिति पूवैस्याविद्यमानव्वनिषेधादुत्तरं निहन्यते । पुनः कीहशेनेदरेशेति । इषु-
हस्तेन वृष्णा वषिचा च ॥
॥ अथ तृतीया ॥
स इषुहस्तैः स निंषंगिभि॑वैशी संखा स युध इट गणेन ।
मपा बाहुश्ध्यं १ धन्वा प्रतिहिताभिरस्ता ॥३॥
हतः! सः। निषंगिऽभिः। वशी । संऽसंष्टा । सः । युधः । इद्रः । गणनं ।
॥,
जित्। सोमऽपाः बाहुऽ शर्ध । उपरऽधन्वा प्रतिं ऽहिताभिः। अस्त ॥३॥
पूवैमंच इदेणए जयतेव्युक्तं । खवेंटस्य जयसाधनसमथेवं दशयति । स इद् इषु-
भेटेमैरूदादिभिवेशी वथ्येस्वद्ान् । तथा निषंगिभियुक्तः । निषंगः सङ्गः ।
तडद्धिवैशी । स चेद युधो युध्यमानः सन् । इगुपधलक्षणः कः । अथवा युधो
युङहेतोगेखेन शचुसंधेन सह संख्टेरीभवनशीतः। यत ए वंविधोऽतः संसृष्टजित्।
रस्परेकमत्येन युद्धाय संसृष्टा भवंति तेषां जेता । तथा सोमपाः सोमस्य
` पाता । बाहुशर्धी । र्थो बलं । बाह्णोबेले बाहुबलं । तान् । मत्वर्थीय इनिः। `
यडा भुधु प्रसहने । बाहभ्यां शधेयत्यभिभवतीति वाहुशू्ीं । सुजातो शिनि-
| स्ताच्छीत्य इति शिनिः उयधन्वोद्यतधन्वा प्रतिहितानिः शचुषु प्रेरिताभिरिषुभि- _ `
“~ रस्ता मारयित्ता। यनेषृन्सुचति तच वृणा न भवतीत्यथेः। इेहशेनेद्रेणए जयतेति सं बंधः।
० ॥ खथ चतुर्थी ॥ 5
बृह॑स्यते परि दीया रथन रोदामि अपवाधमानः
प्रभजन्तसेनाः प्रमृणो युधा जय॑न्नस्माकंमेध्यवितता रथानां ॥४॥
क्षै
लयितरदव स्थेन परि दीय । परिगच्छ ।
3 ४ 4 ऋण्वेद्ः॥ . [अ०४. अ०५, व०२२.
` ` ॥ अय पंचमी ॥ | । च
बलविज्ञायः स्थविरः प्रवीरः सहस्वान्वाजी सह॑मान उयः ।
अभिवीये अभिसत्वा सहोजा .जेच॑मिंद् रथमा तिं्ट गोवित् ॥५॥ न
बलृऽविज्ञायः। स्थविरः प्रऽवीरः । सर्हस्वान्। वाजी । सहमानः । उयः।
अभिऽवीरः। अभिऽस॑ता । सहःऽजा । जे । ईट् । रथ॑ । आ। तिषठ । गोऽवित्।
स्वस्य भूतस्य वलं विजानातीति, बलविज्ञायः । यद्वा बलं ममायमिति
सरवबेलत्वेन विज्ञायत इति बलविज्ञायः । सवस्य वल्रभूत इत्यथैः । स्थविर
महान् प्रवीरः प्रर्षेण वीरः सहस्वान् पराभिभवसामथ्येवान् वाजी चेजन-
वान् अन्नवान्वा सहमानः शचूणामभिभवितोप उद्रणैवत्मोऽभिवीरः। अभिगता
वीरा वीयेव॑तोऽनुचरा यस्य स तथोक्तः। अभिसत्ाभिगतसत्रा सहोजा: सहसो
बलराज्नाते एव महानुभावस््वं हे इद्र जेत जयशीत्टे रथमा निष्ठ । अस्मत्सहा- `
याथमारोदुमहेसि । तं च गोविदुदकस्य स्तुतेवै लब्धा वेदिता वा॥ `
गोचऽभिरद। गोऽविद। वज॑ऽ बाहुं । जयतं । अन्म॑। प्रऽमृणंतं । ओज॑सा।
| मे
इम । सऽजाताः। अनुं । वीरयध्वं । इद । सखायः। अनु । सं । रभध्वं ॥ ६॥
भ + ॥ ध हि | षष्ठको ^ #
1 “ त ^ ॥ ४
गोचभिट्। गा उदकानि चायत इति गोचा मेधाः। यद्वा गोभूमिः। तां चायंत
गोचाः पवेताः । तेषां भेत्तारं गोविदमुट्कस्य लब्धारं वजवाह
। जय॑तं शब्रूनभिभ वतं जयनशीत्मज्म गः
$ [+ प्र । मृशं णतं
म०१०.अ०९. ०१०३] ॥ अष्टमोऽदकः । |
॥सखयसप्रमी॥ ि
अभि गोचाणि सह॑सा गाहमानोऽदयो वीरः शमनर । = `
¦ पुंतनाषाकछयुध्यो$स्माकं र सेनां अवतु प्र युत्सु ॥७॥ | | | ,
: । ट्यः । वीरः । शतऽरमन्युः। इदः । |
ठु च्यवनः । पृतनाषाट् । खयुध्यः। अस्माकं । सेनाः । अवतु । प्र । युत्ऽसु ॥७॥
अयमिंटो गोचाणयभाणि मेधान् सहसा बलेनामि गाहमानः प्रविशन् खद्यो
निदेयौ वीरो विक्रांतः शतमन्युवैहुयज्ञो बहुक्रोधो वा दुच्यवनोऽग्येरचास्यः। स्वयं
पृतनाषाट् शचुसेनानामभिभवितता । ददसि सह इति खिः। सहेः साडः स इति
मूधन्यदेशः। अयुध्यः संप्रहतुमशक्यः। युध संप्रहारे । हां दसः क्यप् ईहगिंदरोऽस्माकं
सेना युत्सु संग्रामेषु प्रावतु । प्रङर्षेण र्त ॥
| ॥ अथाष्टसी ॥ 1
इद्र आसां नेता वृहस्यतिरैखिंणा यज्ञः पुर एतु सोम॑ः : (व
देवसेनानांमभिभंजतीनां जय॑तीनां मस्तों यंचम॑ ॥४॥ ५
इदः । आसां । नेता । वृहस्यतिः। दश्छिंणा। यज्ञः। पुरः । एतु । सोम॑ः
॥,
। अभि ऽभंजतीनां । जय॑तीनां । मरतः । यंतु । अमं ॥४॥
॥ ककि
आसामस्मत्सहायाथेमागतानामयसिंदौ नेता नायकोऽस्तु । तथा तस्य वृह- `
स्पतिः पुर एतु । एवं दक्षिणा यज्ञः सोमश्च पुर एविति प्रत्येकं संबंधः । तथा
देवसेनानामभिभंजतीनामस्रटमिचानाभिसुख्येन मदैयंतीनां जयंतीनां । हंदसीति .
नाम उदात्तत्वं जयंतीनामित्यत्र बहुत्वचनान्न भवति । तासाममं मरुतो यंतु
। यतासुदस्यात् ॥९॥
१
३३४
मस्ाकं भवविति शेषः । किंच महामनसासुदारमनसां नुवन
तणां देवानां घोषो जयश्षब्ट् उदस्थात्। उत्तिष्ठति । अनूध्वेकमेत्वादात्मनेपटाभाव
। पा० १,३.२६. ॥
॥ अथ दशमी ॥
उद्खषेय मघवननायुधान्युत्सत्वनां मामकानां मर्नासि ।
उबंबहन्वाजिनां वाजिंनान्युदरांनां जय॑तां यंतु घोराः ॥१०॥
उत्। हषेय। मघऽवन्। आयुधानि । उत्। सत्वनां । मामकानां । मनासि
# षको = शयो) ॥ ॥ #
उत्। व्रऽहन्। वाजिनां । वाजिंनानि। उत्। रथानां । जयतां । यंतु! घोषाः ॥१०।
[म #
व
घोषा उद्यत ॥ ५ ध
॥ ॥ अथेकाट्श्ी ॥ ॥ि
अस्माकमिंटूः समृतेषु ध्वजेष्वस्माकं या इषवस्ता जयतु ।
९1
अस्माक वीरा उर्चरे भवंचरस्माँ ॐ देवा अवता हवेषु ॥ ११॥
अस्माक । इद्रः । सं ऽतेषु । ध्वजेषु ! अस्माकं । याः! इष॑वः । ताः । जयं
चव ॥) 9)
अस्माक, वीराः। उत्ऽ तरे। भवंतु । अस्मान्। ऊ इतिं । देवाः। अवत । हवेषु ॥११॥
पाक स्के न कः १
ऋअस्माकं सं वंधिश्चैव समृतेषु परसेनां संपापनेषु ध्वजेषु ध्वजवत्सु सेनिकेषिंटो
` रक्षिता भवतु । तथास्माकं या इषवः संति ता एव जयंतु शचरन्। तथास्माकं वीरा
रि भवंतु । हे देवा अस्मा उ अस्मानेवावत रक्षत हवेषु संयामेषु ॥
गृहाणांगान्यप्ते परैहि ।
॥ ण्वेदः ॥ ` अ०८, ०५, व०२३.
वानां च्यावयि-
मघवननिंदरास्रदीयान्यायुधान्युडषैय । उत्कृष्टं हषैय । प्रहरणेषुद्युक्तानि भवंति-
त्ये: । मामकानामस्मदीयानां सनां प्राणिनां सेवकानां मनांसि चोद्धषैय ।
हे वृबहननिंद् वाजिनामश्वानां वाजिनानि वेगा उद्यतु । तथा जयततां रथानां
म०१०.अ०९. सू०१०४.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥ ३
हयत्यगानि तेषामवयवाञ्शिरिञ्मादिकान्गृहाण । स्वीकुर्। अभि प्रहि। अभि-
तेषां समीपं गला च हृत्सु हृदयेषु शोकेनिरैह। नितरां भ
ढचवोऽधन तमसा सचतां । संगद्छतां ॥
] ॥
| ॥ अथ चयोदशी ॥
मरता ज्यत्ता नर इट वः शमे यच्छतु ¦
उया व॑ः संतु बाहवोऽनाधृष्या यथासंय ॥१३॥
। इत । जयत । नरः । इदः । वः। शमे । यच्छतु ।
उप्राः। वः। संतु । बाहवः अनाधृथाः । यथां । असय ॥१३॥ .
हे नरो नेतारः संप्ामस्य निर्वोढारो योद्धारः प्रेत । प्रकर्षेण गच्छत । गत्वा
न्प्रतिभटान् । तिङः परत्वा्चिङ्तिङ इति निघाताभावः । वो युष्मा-
द्रः शमे सुखं यच्छतु ! प्रयच्छतु \ वो बाहव उग्रा उद्रृणेबलाः संतु । भवंतु ।
नाधुष्या खन्येरनभिभाव्या यथा यूयससथय भविघयथ तथा उपाः संतु वो बाहवः॥
॥ इत्यष्टमस्य पंचमे चयोविंशो वगः ॥
असा वीत्येकाटशचै पंचमं सूक्तं! वेश्वामिच्रस्या्टकस्याषे चष्टभमेदं । तथा चा-
ऋतं । असायेकाटश्णदटको वेश्वामिच इति । गतः सूक्तविनियोगः ॥
॥ तच प्रथमा ॥ `
असावि सोम॑ः पुरुहूत तुभ्यं हरिभ्यां यल्मुप॑ याहि तूर्यं ।
गिरो विप्र॑वीण इयाना दधन्विर इट् पिवां सुतस्य ॥१॥
। सोम॑ः । पुर्ऽहत । तुभ्यं । हर ऽभ्यां । यज्ञं । उप॑ । याहि । तूर्यं ।
गिरः । विप्र॑ऽ वीराः। इयानाः। ट्धन्विरे । इट् । पिव॑ । सुतस्य ॥१॥ `
स्तोतृभिराहत तुभ्यं त्वदथं
त्मेणि त्तुङ्। अतो हरिभ्यां .हरितव
३३४ | ॥ ऋग्वेदः ॥ ० ४. ०५, ०२४.
धविगत्यधंः । इटरिचा
तस्यांशं सूतं सोमं वा पिव ॥
प्रथमे पयाये बाह्यणाच्छंसिश्स्तेऽप्सु धूतस्येत्येषा याज्या । सूचितं च । ख
धूतस्य हरिवः पिवेहेति याज्या । ा०६.४.। इति ॥ .
| ॥ सेषा सूक्ते हितीया॥
अम्सु धूतस्य हरिवः पिवेह नर्भिः सुतस्य॑ जठरं पृणस्व। `
मिमिषुयेमदरय इट् तुभ्यं तेभि॑वैधस्व मदमुक्थवाहः ॥२॥
अप्ऽसु । धूतस्य । हरिऽवः। पिव॑ । इह । नृऽभिः । सुतस्य॑। जठरं! पृण
[ग्नि पप
मिमिक्षुः । यं । दयः । इट् । तुभ्यं । तेभिः । वधेस ! मद॑ । उ
1 [|
ऽ वाहः ॥ र
॥।
हे हरिवः । ऋक्सामे वा इंटस्य हरी इति श्रुतेः । स्तोचश्सराधारभूताभ्याम्-
क्तामाभ्यां हरिभ्यां तइन्निद् अभ्स्वेकधानादिषूदकेषु भूतस्य कंपितस्य । अभिषु-
त्स्येत्यथेः। तथा नृभिः कमेनेतृभिः कमेनिवोहकेर्वयूदिभिः सुतस्याभिषुतस्य ।
उभयच क्रियायहणं कतेव्यमिति कममणः संप्रदानसंज्ञायां चतुर्थ बहूत्ठं छंदसीति
ष्टी । इहशं सोममिहाससिन्यज्ञे पिव । पीत्वा च जदरं स्वकीयं पृणस्व । पूरय च।
चादिलोपे विभाषेति प्रथमा तिङ्विभक्तिनं निहन्यते । यं सोममद्योऽभिषवया-
वाणो हे इद् तुभ्यं चदधं मिमिशषुः सेहुमभिषोतुमेच्छन्। अभिषवमकुवैनित्यथेः |
मिह सेचन इत्यस्य सनि लिड्युसि रूपं । हे उक्यवाह उक्थेः शल्ैर्दयमान
तेभिस्वेमेद्ं वर्ध॑स्व ॥
कितीये पयोये बराह्मण्छंसिनः प्रोपामित्येषा याज्या । सूबितं च । अश्वावति
प्रथमः प्रोयां पीतिं वृष्ण इयम सत्यामिति याज्या । आ०६.४,
। इति ॥
` ॥ केषा तृतीया ॥
नुम् । कमेणि हांदसो त्विट् ॥ यत एवमतः सुतस्याभिषु-
म०१०.अ०९. सू०१०४.] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ ५ "इ
हयश्वद् वृष्णे वषेकाय तुभ्यसुगरासुद्रूशे सत्यां पीतिं सोमपानं प्रेयसि । परेर-
यामि । किमथे । प्रये । प्रगमनाय । कस्य पीतिं । सुतस्याभिषुतस्य । अतो हे इद् .
शच्या श्त्या कमेणा वा युक्तो गृणानः स्तूयमानस्वं विश्वाभिः सवैीभिर्धेनाभिः `
॥॥
भविंश्वाभिधीभिः सर्वेः कमेभिश्वेहास्मिन्यागे मादयस्व । तृयस्व । मद्
स्र त्मनेपट्ं ॥ | क =
तृतीये पयाये बाह्मणाद्छंसिनः शस ऊती शचीव इत्येषा याज्या ॥ ऊती शएची-
वीर्येणेति याज्या । सा०६.४.। इति सूचितं ॥
॥ सेषाचतु्थी॥ ~ ध
ऊती शचीवस्तव वीयण वयो दधाना उशिज ऋतज्ञाः । `
प्रजावदिद् मनुषो दुरोणे तस्थुगैणतः सधमाद्यासः ॥४॥ 1
। शची ऽवः। तवं । वीर्येण । वय॑ः। दधानाः । उशिजः । ऋतऽज्ञाः।
प्रजाऽव॑त्। इट् । मनुषः । दुरोणे । तस्थुः । गुणतः । सधऽमाद्यांसः॥४॥
|
प्चीवः शक्तिवच्िंद् तवोयुत्या र क्षणेन तव वीर्येण वयोऽन्न प्रजावत्मरजो- `
पेतं दधाना धारयत उशिजस्वामेव कामयमाना ऋतजा ऋतं यज्लमहजानंतः
छंगिरसः सन्तमनुतिषटतः षेऽ हनि प्रयोगमूढाः संतो नभानेदिष्ेन पारं गता
यत्तोऽ तस्तेषामृतजत्ं । ईदश्णेऽगिरतसो मनुषो मनुष्यस्य यजमानस्य दुरोणे यज्ञ-
गृहे गुणंतस्त्वां स्तुवं्तः सधमाद्यासः सह मादतस्तस्थुः। तिष्ठंति । माटयतेः वृत्य-
स्युटो बहुलमिति वचनात्कतेयेचो यदिति यत्। छांदसः सधादेशः। अत्तौ वयमपि
शेमेत्यथं ५ 1 1
त,
येच सृरोः पलस्य पर्चो जनासः
३३४ : ॥छण्वेदः॥ [ख०४, ०५, व०२५
स्तोतारः सूनृताभिः प्रियसत्यात्मिकाभिवैग्मिः। एतत्मणीतिभिरित्यनेन समुच्ची
यते । विषिरेऽव्येभ्योऽथिभ्यो वितरणाय मंहिष्टामतिश्येन मंहनीयां तव संबं-
धिनीमूतिं रां दधाना आसत इति शेषः ॥ +
॥ इत्यष्टमस्य पंचमे चतुर्विंशो वर्मः
॥ खथ षष्ठी ॥
उप बरह्माणि हरिवो हरभ्यां सोम॑स्य याहि पीतये सुतस्यं ।
इद्र वा यज्ञः छम॑माणमान् दाँ अ॑स्यध्वरस्य॑ प्रकेतः ॥ ६॥
उप॑ । ब्रह्माणि । हरिऽवः। हरिंऽभ्यां । सोम॑स्य । याहि । पीतये । सुतस्य ।
५ । त्वा । यज्ञः। सर्ममाणं। आनट् । दाश्वान् । असि । अध्वरस्य । प्रऽङेतः ॥६।
हरिवो हरिवन्निद्र सुतस्याभिषुतस्य सोमस्य पीतये पानाय बरह्माणि
वृढान्यस्मदीयानि कमणि स्तोचाणि वोप याहि । उपागच्छ । केन साधनेनेति
तदुच्यते । हरिभ्यामश्वाभ्यां । ताभ्यां युक्तेन रथेनेत्यथेः । यद्वा हरिभ्यां हरिव इत्ति
संबधनीयं । हे इद् छषममाणं त्वा त्वां यज्ञः सोमयाग आनट् । व्याप्नोति । नश-
तिलडिः मंच घसेति चर् । हंदस्यपि इश्यत इत्याडागमः। अभ्नोतिरेव वा ल्विरि
खादसस्तत्मत्ययस्य तोपः। सघ्नोतेश्चेति नुडागमः। ऋध्वरस्य यागस्य प्रकेतः प्रङर्थेण
जानस्वं दाश्वानसि । दातासि कमेफल्स्य ॥ ॐ |
4 खयं सप्नमी ॥
सहस वाजमभिमातिषाहं सुतेरणं मधर्वानं सुवृक्तिं ।
उप॑ भूषति गिरो चप्र॑तीतमिंदं नमस्या जरितुः प॑नंत ॥७॥
सहसंऽ वाजं । अभिमाति
घि 9
#
म० १०. ०९. सु*-१०४.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥
॥ अयाष्टमी ॥ = `
मक्ता याभिः सिंधुमतत॑र इद्
# 9
कः विकर
`
नन्व # , 1
ः। नव॑ । च । सव॑तीः । देवेभ्यः । गातुं । मनुषि । च । विदः ॥४॥
देवीः। सुऽरणः। अमृक्ताः। याभिः। सिरं । अत॑रः । इट् । पूःऽभित्।
इद् त्रदाज्या सपेतत्संख्याका आपोऽत्रूपा देवीर्दव्यो गगाद्याः सुरणा: सुषु
रममाणाः शोननशब्टा वा। रणिः शब्टाथः। वशिरण्योरुपसंख्यानसिति भावेऽप्।
बहूतीहावाद्युदाच्ं द्यच् छंटसीतयुत्तरपदाद्युदाच्तं । अमृक्ता अहिंसिताः प्रवहतीति
शेषः । हे इट् पूभित् पुरां भेता तं याभिगगादिभिः सप्ननदीभिः सिंधुं समुदरम-
: । प्रावधेय इत्यथः । यद्वा सप्र सपेणस्वभावा उक्तलक्षणा आपो देव्यस्वया
प्रवहति याभिः सिंधुं नदीमतरः। किंच त्वं नवतिं नव च नवोत्तरनवति-
संख्याकाः खवंतीः प्रबहतीः सत्याः । नदीनामेतत्। नदीर्दवेभ्यः विरथे मनुषे
मनु्ाय भोगाथे च गातुं गंतव्यं तासां माग च विद् । अलभयाः ॥
॥ थ नवमी ॥ व
अपो महीरभिशस्तेरमुंचोऽजांगरास्वधिं देव एकः । द
#
इद्र यासं वंचतूय॑ चकथ ताभि॑विष्ठायुस्तन्वं पुपुथाः ॥९॥
अपः । महीः । खभिऽश॑स्तेः। अमुचः। अजागः। आसु । अधि । देवः । एकः ।
विष्व ऽआंयुः । तन्वं । पुपुष्याः ॥९॥
। वुचऽतूयै । चक्थं । ताभिः
॥ कण्वेद्ः ॥ ` [अ०४, ख०५, व०२६ै.
ुऽशस्तिः। उत । अपिं । धेना । पुरुऽहूतं । इट `
वृणोत्। ॐ इति। तटोकं। ससहे। शक्रः। पृत॑नाः। अभिष्टिः ॥१०
॥
ॐ क
वीरिश्यो वीरिगैततव्योऽतिश्येन वीरो वा ऋतुः कमैवान् सुशस्तिः शोभ-
नस्तुतिकः। उतापि च। अपीत्यनयथेकः। सपि च पेना । वाम्रामेतत्। प्रीणएयिची
स्तुतिवाक् पुरूहतमिंदरमीटे ! स्तौति पूजयति वा । यत उक्तत्क्षणोऽतः स्तोती-
त्यथः । किंचायं वृचरमावरकमेतन्नासकमसुरमादेयत् । हत वानित्यथैः। उ अपिच . `
लोकं । लोक्यत इति तोकः प्रकाशः । तमकृणोत् । अकरोत् । आवरकमसुः ।
हा प्रकाशं वृत वानित्यथेः । न केवत्टे तमेकमेव अपि तु शक्र इटोऽभिष्टि
शचूणाममिगता पृतनाः शचुसेनाः ससाहे । अभ्यभवत् ॥
1
॥ | ॥ अथेकाटणशी ॥
शुनं हुवेम मघवांनमिंदमस्मिन्भरे नृत॑मं वाज॑सातौ ।
शणतमुयमूतयं समत्सु घतं वृचाणिं संजितं धनानां ॥११॥
ल
। वेम । मघऽवानं। इद । खस्मिन्। भर । नृऽत॑मं। वाज॑ऽसातौ। `
खि । संऽजितं । धनानां ॥११॥
ए ॥ इत्य्टमस्य पचमे पंचविंशो वर्गैः ॥ |
` ` कदेव्येकादशचं षष्ठ सूक्तं । रद्रकुसपु्ो नाना दुभिचो गुणतः सुमिचः। यडा
| नाम्ना सुमिरो गुणतो दुमिच ऋषिः । हरी यस्य सुयुजा वजं यश्चक्र इति
“ पिपीलिकमष्ये एकादश्षटकादशके उष्णिहौ । त्या विषटुप्। आद्या गायजची वा ।
। शिष्टाभिः सवोभिः सप्रोष्णिहः। तथा चानुक्रातं ।
गुणतः सुमिचो वा नान्ना टुमि
म०१०. ०९. सू०१०५.] ॥ अष्टमोऽ टकः ॥ हि ३४१
का । वसो इतिं । स्तोचं । हयेते। आ । अवं । श्मशा । रुधत्। वारिति वाः
दीधे । सुतं । वातायांय ॥१॥
चमस्मत्कतेकं हयेते कामयमानाय कामयमानं लां ।
ति कमणः संप्रदानल्ाचचतुथी। कटा कस्मिन्काले ऽव रधत्।
। अवरुध्य च कदा वाः । वारयिष्यति । ताहशः कालः कदास्माकं
संभविषयतीत्याशास्ते । स्धेैडीरितो वेति च्रेरडदेशः। वारिति वृणोतेणयेताल्लङिः
सांटसः पो ये आधे सेरनिरट
पः। तच दृष्टातः । अश्रुते सेचमितति श्मशा कुस्या । त्ुप्नोपममेतत् ।
सहत उटकान्यवरुणधि अवरूध्य च वारयति तथयेत्यथेः। किमुदहिश्या-
वरोध इति तज्राह । दीधे सवनयरूपे णायतं सुतमभिषुतं सोमं प्रति । किमथेमिति
तदाह । वातापाय । वातेनाणतेऽधस्तान्निपात्यत इति वाताणसुदकं। तस्य प्रदा-
लायेत्यथेः ॥ |
॥ अथ हितीया ॥
हरी यस्यं सुयुजा वित॑ता वेरदैतानु शेषां ।
उभा रजी न केशिना पतिदेन् ॥२॥
इतिं । यस्य॑ । सुऽयुजा । विऽत्र॑ता । वेः । अवता । अनु । शेपा ।
उभा । रजी इतिं । न । केशिना । पतिः । टन् ॥२॥
॥
दुस्य हरी हस्तिवणावश्वौ सुयुजा सुष् नियोज्यो सुश्कितावित्यथेः
व्रता! चततमिति कमेनाम । विशिदिकमाणाववेतावरणकुशठो शपा शेषवतो ।
प्रशस्तपसत्वा वित्यथः। उभोभो रजी न रजसी द्यावापुथिव्याविव।
रजको सूयाचंदमसाविव केशिनो प्रकाशमानो केशवंतो वा । हशा-
` ॥ ऋण्वेदः ॥ ` अ० ८, अ०५. व० २६.
ऋप॑। योः। इदः । पाप॑जे। ्रा। मतेः। न। श्माणः। विनीवान्।
भ्मुभे। यत्। युयुजे । तविषीऽवान् ॥३॥
५, कुठ्कते
य इदः पापजे। स्या इत्यनथेकः। पापाज्जायत इति पापजो वृचः। तस्मिन्मर्तो
न मनुष्य इव शच्रमाणस्तेन सह यु च्राम्यन् विभीवान् विभ्यच्च भवति । खाम्य-
तेष्डट्सि लिट् । तस्य व्यत्ययेन कानच् । स इटो यद्यदा तविषीवान् मरद्धिर्व-
लि बैलवान्युयुजे युज्यते संपद्यते भुम शोभां तदानीमप योः । तस्य वृचस्याप-
यौरपयोजिता भवति ॥
॥ अथ चतुर्थी ॥
सचायोरिदृकुष आं उपानसः संपयेन्
नदयोवितरतयोः शुर इदः ॥४॥
सचां। आयोः। इद्रः । चर्दैषे। आ । उपानसः । सपयेन्। `
नदयोंः । विऽकतयोः। भूर॑ः । इदः ॥४॥ |
आयोः । मनु्नामेतत् । मनुस्य स्तोतुश्वकैषे पुनः पुनर्विलेखनाय । धन-
दानायेत्यथेः । सचा सह दातयये्नेः सहितः। यदायोः सचा सहायभूत उपा-
नसोऽन उपागतवान् । अत्यादयः कऋरांतादय्थे दितीययेति प्रादिसमासः । अन-
संतान्रपुसकात्। पा०५.४.१०३.१.। इति समासांत्टच्। आरूढरय इत्य्थः। सपर्यन्
धनैः स्तोतारं पूजयन् । यद्ञा व्यत्ययेन कततप्र्ययः। स्तुतिभिहेविभिंच्च पूज्यमानः
उक्तगुणएविशिष्टः सन् आ्आ। आगच्छति । उपसर्गश्रुतेरुचितक्रियाध्याहारः । कीदश
ॐ
इदः नदयोहंषाशब्दे कुवेतोविवतयोविशि्टकमेणोरश्वयोनियंता भरो विक्रांतः॥
५ 1 5 5. # " ५
। . ॥ अथ पंचमी॥
म०१०. ०९. सू०१०५.] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ न
रोहति । खधिशीरस्यासां कर्मेति कमणोऽधिकरणसंज्ञा । या । नेति चार्थे । व
तेन गुणो समुच्चीयते । प्रशस्तकेशो व्यचस्वंतो चेत्यथः । स शिप्राभयां हनृभ्यां ८
फिम्रणीवान् शिप्रवानिदरः। एको मव्ीयोऽनुवादः । वनोति । सोमान्याचते। |
वनुं याचनं । यद्वा वनुष्यति हंतिकमौ । शचून्हिनिस्ति ॥
॥ इत्यष्टमस्य पंचमे षर्डंशो वगः ॥
॥ छथ षष्टी ॥
दप्रोजां ऋषेभिंस्ततक्ष शूरः शव॑सा । `
भुन क्रतुभिमोातरिश्वं ॥६॥ 1
प्र। अस्तोत्। ऋृशठऽञोजाः। शभिः । ततष्षं । मूरः। शव॑सा ।
, 4.1
चनः
तुः । न । ऋतुऽभिः। मातरि ॥६॥ व
जा दशेनीयवलो व्याघ्तवल्ो वर्धैभिरैशेनीयेमैरद्धिः सह प्रास्तौत्। स्तुत्या-
सम्यङ् कृतमनेनेति प्रशंसति। यद्वा कमणि कुप्रत्ययः, प्रकर्षेण स्तुतोऽभूत्। `
| | य इद्रः शूरो विक्रातो मातरिष्डा वृ्टेनिमोातयेतरि के श्वसन्वतेमानः सन् शवसा
| बलेन क्रतुभिः क्रियमाणैः कर्मभिः । यद्वा ऋतुरिति प्रज्ञानाम । बलेन प्र्ताभिश्च
५: चकार । तच हर्टातः। भुन । ऋभव इव । सुपां सुल्टु-
। ` गिति जसः सुरादेशः। ऋभवो यथा कमेभिः प्रजञाभिश्चानन्यसाधारणरथचमसाटि-
6 निमाणमकुवेन् तदरित्यं
॥ अथ स्रमी ॥ 90
वजं यश्चक्रे सुहनाय टस्यवे हिरीमशो हिरीमान् ।
अरसहतुरहतं न रजः ॥७॥ : `. ¦ `
। यः । चक्रे। सुऽहर्नाय । दस्यवे । हिरीमशः। हिरीमान्।
कै
^
40
अरूतऽहनुः अहतं । न । रज॑ः ॥७॥ == `
नाय सुषु हननीयाय दस्यव उपदठपयिते शचवे तस्य
मायुं चकत कृतवान स लं वृजिना पिणीहीवयु्रसंयं
, ॥ऋग्वेदः॥ [ऋअ०४. अ०५, व०२5.
3: -" ॥ अथा्टमी ॥
अव॑ नो वृजिना भिंणीदयुचा व॑नेमानूचः ।
नाद्या यज्ञ धग्जीषति त्वे ॥४॥
पव । नः । वुजिना । शिशीहि । ऋचा । वनेम । सनुचः।
श
न । न्या । यज्ञः। ऋध॑र्। जोषति । त्वे इति ॥४॥
हे इद्र नोऽस्माकं वृजिना वृजिनानि वजनीयानि पापान्यव शिशीहि । अत्य
ननूकुर् । विनाश्येत्यथेः । वयं चचो स्तुत्या साधनेनानृचोऽरसतु
न्वनेम । हसाम । खव्रह्या । ब्म परिवृढ स्तोचं । स्तुतिविरहितो यज्ञ
सस्तुतिकादयज्ञत्पुथग्भूतस्त्वे त्वयि न जोषति । न सेवते लां । न
जुषी प्रीतिसेवनयोः । व्यत्ययेन शप् परस्मेपद् च ॥
. ॥ अथ नवमी ॥
ऊध्व यतते ेतिनी भूदयलस्यं धृषु स्यन् ।
पजूनावं स्वर्यश्सं सचायोः ॥९॥ *
ऊध्वो । यत् । ते । चेतिनीं । भूत्। यजस्य । धूःऽसु+ सन् । [
सऽजूः । नाव । स्वऽ्॑शसं । सचां । आयोः ॥९॥
हे इट् ते तव स्वभूता चेतिनी । चेताग्रिचयं । यद्वा चेतिनी क्रिया । सा यद्य
दो्वो्नता प्रवृत्ता भूदभूत् । यद्योगादनिघातः । कुच स्थानं इति । यज्ञस्य यागस्य
सद्मन् सदने । केविति । धृषु कमणां वोदृषुविकषु तदानीं सजूयेजमानेन मरुब्धिवे
पोमनुयस्य यजमानस्य सचा सह तेन साकं स्वय
त
तरणसाधनं तरणिं । आरोहसीति शेषः । एक
सीत्ययेः। यदा
सेचनी । भूत् । धिये । दविः खरेषाः 1.
उत् ॥१०॥
ध्रिये रयणाय पृश्रिर्गोः पृशिवर्णोपसेच
। भवतु । तथा ट्विररणिररेपा अपापा सती ते च्िये हविषः
यणाय भूत् । भवतु । यया टब्यो स्वे स्वकीये पाने पानसाधने मुख उत्सिंच
उपयाकृष पिबसि । सा ध्रिये भूदिति संबंधः॥
॥ अथेकादशी ॥ +
शतं वा यद॑सुये प्रतिं त्वा सुमिच इत्था दूरभिंच इत्यास्तोत् ।
सवो यस्यहव्यं कुपु प्रावो यरह॑स्युहर्य कुरसवत्सं ॥११॥
शतं । वा। यत्। अमसुये। प्रतिं । चा । मुऽमिचः। इत्या । अस्तोत्। दुःऽमिचः। इत्या ।
क्र कनि ॥ भ ` शिक्षो = प ॥ 1
आवः। यत् टस्युऽ हत्ये । कुत्स ऽपुचं। ्र। आ व॑ः। यत्। दस्यु ऽ हर्य । कुत्स ऽ वत्सं ॥११॥
हे असुये सवध्यत्वेनासुरसं बधित्वात््। त्रा त्वां प्रति शतं वा शतसंख्या
धनं । वाश्ब्धेनाप धनं वा! यद्यदा कामितवानित्य्थंः । यद्यदा च टस्य॒हत्ये
दस्युहनने शचुवधे कुत्सपुचं टुभिचमावो रस्ितवानसि । तथा कुत्सवत्सं
प्रावः प्रकषण ररितिवानसि । अव रसणादो । ठड्याडजादीनामित्याडागमः
पादादिल्लादनिघातः । पुनरुक्तिराट्राथे । तदानीं सुमिचौ नान्नेत्यमस्तोत् । तथा
गुणत इत्थमस्तोत् । तदिपरीतं वा दृषटवयं। सुभिनो नास्रा दुभिचो गुणत `
कात्यायनेन तथोक्तेः । स इत्येत्यमनेन कृतप्रकारेणास्तोत् ! अस्तावीत् ।
॥ च्ण्वेट्ः॥ ` [अ०४. अ० ६, व०५.
(१ स्य निःश्वसितं वेदा यो वेदेभ्योऽसित्टं जगत् ।
निमेमे तमहं वंदे विद्यातीथेमहेश्वर ॥
द्मे पंचमाध्यायं व्याख्याय चरतिकोविटः ।
सायणायेस्ठतोऽध्यायं षष्ठं च व्याचिकीषेति ॥ अ
॥
तचोभा उ नूनमिग्येकादश्चेमाद्यं सूर्तं । अनुवाकापेश्षया स्तम सूक्त । चैदु-
भमश्विदेवत्यं । कष्यपपुचो भूतां शो नामिः । तथा चानुक्रम्यते । उभों भूतांश
काश्यप आश्विनमिति ॥ अप्ीयोमेऽच्छावाकातिरिक्तोक्थ एतत्सूक्तं । सूचितं च
उभा उ नूनं देव्या हतास प्रथमा पुरोहितेति परिधानीया । आ०९.११.। इति ॥
॥ तच प्रथमा ॥ 1
उभा उ नूनं तदिर्दथेयेथे वि तन्वाथे धियो वस्ापसैव । = .*
ध सप्रीचीना यात॑वे प्रेम॑जीगः सुरिनेव पृश आतसयेधे॥१॥
१" उभो। ॐ इतिं । नूनं । तत्। इत्। अथेयेये इति। वि। तन्वाथे इतिं । धियः! वसनां! `
पणि $ केः ` शते
- - अपताऽद्व ५
सभ्रीचीना। यात॑वे। ।६।अजीगरितिं। सुदिना ऽइव ।पु्ः। खा । तंसयेथे इतिं ॥१
श्विना
वुभो युवां नूनमिदानीं तदिदस्माभिदीयमानं हविः क्रियमाणं स्तौ-
प्राथेयणः ॥ अथे याचायां । चोरादिकः । अनुदातेत् । उः पूरणः ॥
कमो वा वि तन्वाथे । विस्तारयथः । तनु विस्तरे ।
शब्दान्मतथीयिो विनिः। तस्य बहुलं ंदसीति
[च सुप आकारः ॥ ईमयं यजमा
०१०. स०९. सु०१०६.] ॥ अद्टमोऽ कः ॥ 3४७
त्वेन तद्वतो सूयाचंदरमसो स्वर्िमभियेणानरान्यत्वंकुंरतस्त इद्युवां पृः । अन्र-
मेतत् । भोक्तभिः संपृव्यंत इति पृश्ोऽन्ानि । आ तंसयेथे । समतादलंकुरूथः
तसि भूष अलकारे । तोदादिङः ॥
॥ अथ हितीया ॥
व फर्वैरेषु येथे प्रायोगेव श्चा्या शासुरेथः
टूतेव हि टौ यशसा जनेषु माप॑ स्थातं महिषेवावपानात् ॥२॥
॥ कलि कनि मि प
उष्टाराऽइव । फर्वैरेषु । येथे इतिं । प्रायोगा ऽइव । श्वाव्या । शमसुः। सा । इथः
टूताऽईव। हि। स्यः। यशस।। जनेषु । मा। अप॑ स्थातं। महिषा ऽइव । अव्ऽ पाना त्॥२
जन श्रद्द
उष्टरिव । उष्टः कामयततौ गंतव्यं देशमिव्यु्टारो प्रासंगस्य बवोढारावनड़ाहा-
विव । वश कातावित्यस्ाचुचि खांदसं संप्रसषारणमिडभावश्च । तो यथा संपूणे-
घासेषु सं चरतस्ङत्फयैरेषु स्तुतिभिहेविभिश्च पूरयितृषु जनेषु श्रयेथे । ततस्वीक-
रणा्थमाश्रयथः । फर्वतिः पूरणाथैः । अस्ारौणादिको. रन्प्रत्ययः । प्रायोगेव
प्रयोक्तवयावनडाहाविव । प्रपूवीद्युजेः कमणि घञ्युपसर्गस्य दीधः । थाधादिस्व-
डत्। यदा युद्धा प्रीक्तव्यावश्वाविव ्ाच्यो । वाचमिति धननाम । तच भवो।
धनस्य साधकावित्यथेः। तौ युवां शासुः शंसितुः स्तोतुः स्तुति प्रत्येथः। आग्छथः
इण् गतत । आदादिकः । टूतेव टूतताविव यथा राज्ञः प्रियतमो दूतौ जनपदेषु
यशस्विनो भवतस्तदज्जनेषु स्तोतृषु यश्सा यशस्विनो स्थो हि । भवथः सत्टु ।
योगाटनिघात्तः। मदिषिव महिषाविव यथा श्रातो महिषा-
ऽस्मिन्निति पानं हूदादि । अधिकरणे ल्युट् । पानमेवावपानं ।
३४४ 1 ऋषण्वेदः॥ [अ०४. ०६, व०१,
शकुनस्येव पठिण इव । यथा परिणः पशा पकौ संहत्य वतैमानौ तङत्सा- ५
युजा साक॑युजो सहावियुज्य वतेमानो भवथः । युजेः सत्सूहिषेत्याटिना किप् ।
पश्वेव पणू रव । सुप स्कारः । तो यथा चायनीयो तदच्चिचा चिचौ चायनीयो
सवां यज्ुयेजनावस्मदीयावा गमिष्टं । खागच्छतं । यजेरोणादिको भाव उसिन्प्र-
त्ययः । गमिषटं । गमेर्गदि सिच्वहुलं लेदीति सिप् । सिप आधधातुकवात्रमेरि्
परस्मेपदेषु। पा०७.२.५४.। इतीडागमः, देवयोर्देवानि खतो यजमानस्य यज्ञेऽथि-
रिवाग्रियेया हविभिः स्तुतिभिश्च दीणते तद्वदीदिवांसा दीदिवांसो स्तुतिभिदीध्नो
भवथः । दीव्यतेः कसो वस्वेकाजादिति नियमादिडिभावः। वलि लोपे तुजा-
रिवाटभ्यासस्य दीषेः। परिज्मानेव परिज्मानाविव। परित्तोऽ जतौ गच्छतः
करणाथेमिति परिज्मानावध्वयूं इव स्थितो युवां पुरू्रा बहुषु देशेषु यजथः। देवा-
न्पूनयथः। अश्विनो हि देवानामध्वयू इत्याम्नानात् । यद्वा परिज्मानेव परितो
गंतारो पुरो वा पश्चाद्वा तौ यथा बहुषु देशेषु यजथः संगच्छमानो भवथः। यज
देवपूजासंगतिकरणएदानेषु । पुरवा । देवमनुथेत्यादिना चाप्रत्ययः ॥ `
५. ॥ खथ चतुर्थी ॥ |
आपी वों अस्मे पित्तरेव पुबोयेव॑ रुचा नृपतीव तुर्ये ।
यैव पुष्टये किरणेव भुज्ये शटी वानव हवमा ग॑मिष्टं ॥४॥
आपी इतिं । वः। अस्मे इतिं । पितरं ऽइव । पुचा । उमा ऽईव । सचा । नृपती
1
.: . इवेिनपतीऽड्व।तथे। - - `
1
५५५
इयऽइव । पुष्ये । किरणाऽइव । भुवये । ुषटीवानऽइव । हव॑ । आ! गमिष्ट॥४॥ `
1
अस्मावं वो युवां । पूजायां बहुवचनं । आपी प्राप्नो बंधुभूतौ भवयः
परतराविव । यथाच पित्तरो प्रति पुजा पचो वंधुभूतो भवतस्तइत्
। षष्ठया आकारः । पुचाणां पितरो वंधू । तथोयेवोयाविव
समर १०. स०९. सूर ०६] ॥ ष्मो ऽ एकः ॥ ३४९ .
र्येव । इयौविव । इरन! तच भवौ । भावार्थे यत् । अन्नवंतावाद्मौ स्वजनपरि-
तोषणाय भवतः । तइद्युवां पुश्य धनादिदानेनास्माकं परितोषणाय भवथः सि-
रणेवे किरणाविव । यथाग्न्यादित्यकिरणो सर्वेषां प्रकाशनादिद्वरेण भोगाय भव~
तस्तदवुज्यो स्तोतृणां परिभोगाय भवथः । शु वानेव शुशटिवं्ाविव । श्ु्ीति
सिप्रनाम । मव्थीयो वनिप् । तदंतावश्वो यथा तष्य देशं प्रति शीघ्रं ग्ध
इत् । यद्वा शरुष्टीवानेव । श्रुष्टीति सुखनाम । तद्वतो पुरूषो यथा क्रीडाथेमा-
गच्छतस्लदवदयुवां हवमस्मदीयमाद्हानं प्रत्या गभिष्टं । आगच्छतं । हवं । नावेऽनुप-
स्गैस्येति इहयतेरप् संप्रसारणं च ॥ क 2
॥ अथ पंचमी ॥ = 4
वंसगेव पूषय शिंबात्ता मितेव ऋता शतरा शत॑पंता ।
बजेंवोच्वा वय॑सा धर्म्या मेर्षैवेषा संपयोरपुरीषा ॥५॥ ` त
ंसंगाऽइव । पूषयो । शिंवाता। मिचाऽईव । ऋता । शतरां । शत॑यंता। . = `
जां ऽइव । उच्चा । वय॑सा । घर्म्येऽस्था । मेषा ऽइव । इषा । सप्यो । पुरीषा ॥५॥ ॥
भः
वंसगेव वंसगाविव वननीयगमनौ वृषभाविव! तौ यथा पूषये पूषयों पूषणे
भवी । पुष्टावयवावित्यथैः । तद्दयुवां स्फीतांगावयवो । पुष पुष्टौ । रस्मादीणा-
दिको भावेऽखप्रत्ययः। तदंताह्ञावे इंदसीति यत् । तितसरितं । तथा शिवाता =
शिंबातो । सुखनामेतत्। शिवेन दुःखानां तनूकरणेन हेतुनातितें पराप्रमिति। शिन् , ` |
५ शने। अस्माद्छिबमिति बाहुत काडप्रत्यत्यौ मुर् च निपात्यते । खत्ततेः कमणि ` `
भञ् सुप आत्रादेशः । सुखकरौ भवथः। मिचेव भिच्राविव । भिचश्न्देन वरूणो `
ऽ्णुपत्कृष्यते । सहा वस्थित्तमिचावरुणाविवतेरतो सत्यभूतो तदद्यथायेदशिनो भव- `
थः। तथा श्तरा शतं शतसंख्या कानि बहूनि रायो धनानि ययोः संति तौ तथोक्तो।
देशः। यद्वा शतमनेकमिंद्वियप्रसादादि राति ददातीति शता सुख।
दां
त्०र,
३५० | = | इप्० ४, ऋष्०
वित्यथेः । उच्चा । उचचैःशब्टात्सुपो उदेशः । डिखाटिलोपः । घर्म्येष्ठा धघमेस्थो । १
मे दीप्रमंतरिकं । तत्संबंधिनि देशे सूयाचंदमसो रूपेणावस्थितो भवथः । सूया-
दूमसाविति यास्कः। यह्वा धर्मे प्रवर्ग्ये भवं घम्थे हविः। तच देवतालेनावस्थितो
` भवथः। विष्ठेरन्येभ्योऽपि हश्यंत इति विच्। तत्पुरूषे कृति बहुलमिति पू वेप
सम्या अतर् । मेषेव मेषाविव । तो यथावन परिचरणीयो तइद्युवामिषा
हवीरूपेणानरेन सपय सपयों परिचरणीयो भवयः । सपरश्ब्द्ः कंडाटिः । सपये-
: परिचरणकमो । पुरीषा पुरीषो धनादिदानेन स्तोतृणां पोषयितारो । यदा
हविभिः पोषणीयो भवयः । पुरीषं पृणातेः पोषयतेर्वेति यास्कः ॥
॥ इत्यष्टमस्य षष्ठे प्रथमो वगः ॥
पथ षष्ठी ॥
उदन्यजेव जेमना मदेरू ता मे जराय्वजरं मरायु ॥६॥ ; ५
` सृण्यांऽइव । जभेरी इति । तुफेरीतू इतिं । नेतो णऽईव । तुर्फरी इतिं । पैरीरा।
उटन्यजा ऽइव । जेमना । मदेरू इतिं । ता । मे। जरायु । अजर । मरायु ॥६॥
सृण्येव सृण्याविव । सृणिरंकुशः। तच साधुरिति यत्। अंकुष्णदो मच्तगजाविव ४
गाचविनामं कुवेतो । जन जुभि गाचविनामे। खसादौीणादिकोऽरिप्रत्ययः। = `
सृण्येव । सुशणििविधा मत्तगजस्येकचावस्यापयिथ्येका । अपरा वाधयिची ।
उ०४.४९.१०४.। इत्योणादिको निप्रत्ययः । किच्लादगुणः। कृटिका-
॥
म०१०. अ०९. सू०१०६.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ ३५१
स्तोतूजनानां धनादिदानेन पूरयितारौ । पृ पालनपूरणयोः । असादीकनि पूर्वै ८.
वत्वे निपात्यते । पवतेः पूरणाथोद्वा । उटन्यजेव । उदके भवसुटन्यं । पदन्ोमा ` १
इत्या दनाशस्मभृतिष्रुदन्नदेशः। त्र जाताविव निलो । कांतियुक्तावित्यथेः। `
जेमना जेमनौ जयभीलौ । जयतेरन्येभ्योऽपि हण्यंत इति मनिन् । दीधोभा- ध.
वण्छांटसः । मदेरू बल्दराति्येन मत्तौ स्तुत्यो वा । ता तौ पूर्वोक्तगुणावश्विनो ८
युवां मे मदीयं जरायु जराुजमत एव मरायु मरणशील्टं शरीरमजरं जरारहितं क
मरणएधमरहितं कुरुतं । नजो जरमरमिचमृता इति नज उक्तस्य जरणब्टस्या- `
दात्तत्वं ॥ | | "४. ि
॥ अथ सप्रमी ॥ ` ५ 3948 1
पजेव चचेर जारं मरायु छदेवाथैषु ततेरीण उयरा ।
ऋभू नाप॑त्सरमजा खरजु वायुने प॑फेर्छयेद्रयीणां ॥७॥ ` -:
पजाऽइव । चचेर। जारं । मरायु । छद्य॑ऽइव । अर्थेषु । ततेरीयः। उया।
ऋभू इतिं । न। आपत् सरमजा। खरऽजुः। वायुः। न। पपरत्। छयत्। रयीणां ॥9॥
हे उयोयावुदूणेतेजस्कावश्विनो पजेव पजाविव प्राजितबत्तौ वीराविव स्थि-
। यहा पजेव । जि जि अभिभवे । पादाभ्यामभिभवंतौ समयाविव स्थितौ
युवां चचेर चरणशील जारं जरायुक्तमत एव मरायु रणीं मदीयं शरीरमर्थेषु
` गेत्तवयेषु तरीतयेष्रापदादिषु छदयेवं। उटकनाभेतत् । उट्कमिव तर्तरीथः । अत्यंतं
तार्यथः। तरु क्लवनतरणयोः । यद्त्युगंताल्लरि हंदस्युभयथेति थस आधधातुक
` लेनेडागमः, वृत्तो वेति दीषेः। ऋभू न। भू इव । दा्ातिक्साम्याटचर हिवचनं।
` ऋभर् यथा स्वनिर्मितो रण आपत् तडत् खरमजा । खरं तीष्णं । मज्जयितारौ
मसो गु । अ्मादौणादिको
भोधभितारी। च न
` त्ययः। ताह युवां खर्ज वेगवानृभुभिदे्तौ रथो
॥ ऋग्वेटः॥ [ऋअ०४, ०६, व०२,
० + ॥ अयाष्टमी ॥ वि ‹
चर्मेव मधुं जटं सनेरू भगेऽविता तुफेरी फारिवार [र
पतरेव चचरा चंदनिंशिड्यन॑च्छंगा मनन्या३न जग्मीं ॥४ छ.
चमीऽइव। मं । जरर । सने इतिं । भगेऽअविता। तुरी इतिं । फारिवा। खरं ।
पत्तराऽईव। चचरा। चंद्रऽनिनिर्। मनःऽ ऋगा । मनन्या । न । जग्मी इति ॥६॥
५
धर्मेव घमेाविव महावीराविव जटरे स्वौद्रे मधु मधुनः। षष्ठया लुक्। धृतस्य
सनेरू संभक्तारो । वन षण सभक्तो । अस्मादौणादिरु एर्प्रत्ययः। भगेऽविता ।
गो धनं । तद्िषयरछषणयुक्ती । सवतिभावे छः । तत्पुरुषे कृति बहुलमिति बह्-
तवचन हा वयत्तुक् । यद्वा । अवतेल्लृजतस्य सुपो उदेशः । स्वरस्तु खां-
दसः । अरमलं तुफेरी श्चूणां हिंसितारो । अत्त एव फारिवा । फारिरायुधं ।
त्तौ भवतः । स्फुरतिवेधकमेा । अस्माखिचि चिस्फुरोणो वित्यालं । तदंतादि
प्रत्ययः। सकारलोपण्डांदसः। इंदसीवनिपाविति मल्थीयो वनिप् । सुपो डा-
देशः। पतरेव पतराविव पत्तनशीलौ पक्षिणाविव चचरा सं चरतो च॑द्निरिक्।!
निशिगिति रूपनाम सुपो तुर् । चंदनिणिंजो चंदसहश्रूपयुक्ती । यद्वा च॑टू-
माहलादिकं रूपं ययोस्तौ वर्तिते । मनक्रंगा मनसा प्रसाधनं ययोस्तौ । ऋ्छंजतिः
` प्रसाधनकमेो। अस्माद्ावे घञ् । वहूतीहिस्वरः। मनन्या न मनन्यौ यथा । मनने `
साधू) स्तुत्यावित्यथः। मननश्ब्टात्तच साधुरिति यत् । तिष्स्ररितं । ताहशाविव
यज प्रत्यागमनशीत्तौ भवतः । गमेराहगमहन इति कन्प्रत्ययः ॥ `
॥ अथ नवमी ॥
पादेव गाधं तरते विदाथः
भजतं चिचम्नः ॥९॥ `
1 पादाऽइव । गाध
। तः
सम. ५१९. ०९. सू० १ ०६] ॥ पष्टमो ऽ छ्कः ॥ | ३५३ | (9 |
जत्ठं वित्तस्तदद्युवां तार्येषु जलेषु गाधं विदाथः। जानीथः । विद् जने । लेख्य ` 1
गमः। कणेव यथा कणोवुक्तं श्ट विदतुस्तदद्युवां शसुः शसितारं स्तुतिं कुवीणं ५
जनमनु हि स्रराथः। अनुकं जानीथः खलु । स्ररतेर्लेदटयडागमः। हियोगा- "
टनिघातः। अधीगथेदयेष्णं कमणीति शासुरित्यस्य षष्ठी । अंशेवांशविव यथा-
वयवो तडत् यज्ञ॒ भजेते तद्युवां नोऽस्रदीयं चिरं चायनीयमन्नः कमे भजत्तं।
सआआश्रयत। खघ्रः। आश व्याघ्रो । असादापः कमाख्यायां हृस्वो नुट् च वा । उ
४,२०७.1 इत्यसुन् तत्सनियोगेन हृस्वो नुडागमश्च । नित्स्वरेणाद्युदा्तः ॥ न
॥ अथ दशमी ॥ जक
आरगरेव मध्वेरयेथे सारघेव गविं नीचीनंबरि। २
कम सकल ॥ 1
कीनारेव स्वेद॑मासिषिदाना छामवोज सयवसात्सचेथे ॥१०॥ =. `
1 अनिमि [ 1 [० कि, ^ र
आरंगराऽद॑व । मधु । आ । इग्येये इतिं । सारघाऽईव । गवि । नीचीन॑ऽबरि। `
॥ वि । चेः भिये = नमिः पे
कीनाराऽइव । स्वेदं । आखाऽसिस्विदाना । साम॑ऽइव । ऊजा । मुयवसऽखत्। `
सचेथे इतिं ॥ १०॥ 1
# # ॥
सआरगरेव । ग शने । अस्माद्नाव ऋदोरप् । अरमलं पयेप्तं गरः शब्टनं ।
तस्य सं बधिनो । तस्येदमित्यण्। शब्दवंतो मेघाविव यथा मधु जलं प्रेरयतस्तइ-
दयुवामेरयेथे । प्रेरयथः । ईर प्रेरणे । चौरादिकः । सारघेव सारघाविव । सरा
| मधुमरिका। सरधेव सारघा । प्रज्ञाटितासषः। ते यथा नीचीनवारे नीचीनद्रे
मधुपुष्ये मधु प्रेरयतस्तचचयुवां नीचीन वरे न्यग्भूतडारे गवि गोरूधसि सीरं प्रसि-
पथः । कीनारेव कीनाराविव कुत्सितिमनुघयौ यथा स्विद्यमानो भवततस्वदस्वेद्
यमानं जलमासिस्िदाना समंतात् स्वेदय॑तो प्रक्षारयतो भवथः । जिष्िदा
। अनुदात्तेत् । तस्माच्छादसे लिटि कानजादेशः । छसामेव । सेजेषे
तो मनिन् । हृस्वष्ांटसः। सामा छषीणा गोः सुयवसात् ।
सीररूपेणन्रेन समवेता
र
३१४ ॥ छग्वेट्ः ॥ [अ० ४. ० ६. व० ३,
ऋध्याम । स्तोमं । सनुयाम । वाजं । आ। नः। मच । सऽगयां । इह । उप॑ । यात् ।
८ भि शि # ॥
॥ ॥
यश॑ः न। पक्रं । मधु । मोषुं। संतः। आ। भूत ऽखं शः। अश्विनो ः। काम । अप्राः ॥११॥
५ ॥ 1) क ॥ ४ # [ | मेचक
हे अश्चिनौ वयं स्तोमं विवृत्पंचटशदिकम्ध्याम । ऋध्यास्म । वधयेम । ऋधु
वृज्ञो । अस्मादाशीरिङिः किटदाशिषीति यासुटः किलं । वाजं
युवाभ्यां सनुयाम । प्रयद्छेम । षणु दाने । तानादिकः । विधिलि
कै
टनिघातः। तस्माद्युवां सरथा सरथो समानरथावेकमेव रथमारूढं
स्मिन्कमंणि नौऽस्मदीयं मवं मननीयं स्तोचसुप यातं । उपागच्छ
न
॥
तं
गोष्रतर्गो-
रूधस्यवस्थितं पक्त परिणतमत एव मधु मधुर यशो न। यश इत्यन्ननाम । नश्चा ।
राज्यादिलक्षणं महावीरेऽवनीयमानमन्रं चापेश्यागच्छतमिति सं बधः। एव-
सुक्तप्रकारेण भूतांश एतनामषिरश्िनोः काममभिलाषमात्सी याभिः स्तुतिभिरप्राः
आपूरयत्। संपूणमकाषीदित्य्थैः । प्रा पूरणे । आदादिकः । व्यत्ययेन मध्यमः ॥
जि
ऋअचाश्िने सूक्ते सवाण्यपि पटानि टुब्युत्पादान्यस्माभिदिड्वाचं प्रदशितानि । `
निरुक्व्याकरणादिभिरथेविरेषे बृद्धिमद्धिरुन्नेयानि ॥ 1
1 ॥ इत्य्टमस्य षष्ठे डितीयो वमेः
आविरिव्येकाटश्चैमष्टमं सूक्तं दिव्यो नामांगिरस ऋषिः । प्रजापतेः सु
टक्िणा सा वर्षिका । शतधारं वायमिति चतुथी जगती शिष्टा दश चिदुभः
अनेन सृक्तेनषिग्भ्यो दीयमाना दकिणा तदातारो यजमाना वा स्तूयते । खतः
सेव देवता । तथा चानुक्रांतं । आविरिष्यो दरिणा वा प्राजापत्या ददं
तदानृन्वास्लोचतुधीं जगतीति । गतो विनियोगः ॥ |
॥ तच प्रथमा ॥
तम॑सो निरमोचि ।
म०१०. ख० ९. सू० १०७. ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥ ` ॥ ३५५ 9
दयो ऽभिधीयते । माघोनं । मधवेदः। इद्श्व सूयेश्चेचमासे तयोरिद् इति स्मरणात् । "न
तस्य संवंधि । तस्येदमित्यण। खत दते प्रत्यये सं प्रसारणमभिहितं । पा० ६.४.१३३ 4
स्वेविधीनां उंटसि विकतल्यितत्वाट तङितेऽपि संप्रसारणं । सूयेात्सशस्येद्स्य `
स्वभूतं महि महेन एषां यजमानानां यागसिद्यथैमाविरभूत् । प्रकाशितमुत्रत- क:
मभूत् । तच विश्वं सवे जीवं स्थावरजंगमात्मवं जगत्तमसः सकाशन्निरमोचि । ॥
निसुक्तमभूत् । सुंचतेः कमेत्ुडिः चिणि रूपं । अथानंतरं पितृभियेत्पितृभिरदवेरैहं १.
नो हविषामागमनाय तन्महि महज्ज्योतिः सूयख्यमागात्। आगच्छति । पथ्चाह- `
णाया या्गांगभूताया उरूमेहान् पंथा मार्गो ऽ दशि । सर्वेयेजमानेरै्टो ऽभूत् । ।
सर्वे यागं कृत्विग्भ्यो दक्षिणं टचचवंत इत्यथैः । १ +
| ॥ अथ तीया ॥
उच्चा ट्वि दिणावंतो अस्ये खश्वदाः सह ते सूर्यैणए। `
[१ चके
हिरण्यदा अमृतत्वं भ॑जते वासोदाः सोम प्रतिरेत खायः ॥२॥
उच्चा । दिवि। दक्षिणाऽ वंतः। स्थुः । ये । अश्व ऽटाः। सह । ते सूर्यण।
# श्न
दिरण्यऽदाः। अमृत ऽत्वं । भजंति । वासःऽदाः। सोम । प्र । तिरते । आयुः ॥२॥
४
टशिणवंतो दक्षिणाया देयेन तदंतो टक्िणां टच्रवंतो यजमाना उच्चः
स्थाने स्थिते दिवि द्युलोकेऽस्थुः। तिष्ठंति । सामान्येनोक्का दातृविशेषाणां फल- `
विशेषमाह । अश्वदा अश्वानां दातारो ये यजमानास्त सूर्येण सवस्य स्वस्वकमेणि
प्ररकेणादित्येन सह तिष्टति । ये हिरण्यदा हिरण्यदातारस्तेऽमृतत्वममरणधमैतवं
देवत्वं भजंते । अमृतं वे हिरण्यमित्यान्नानात् । तथा सौम्यं वे वास इति अव-
रत्सोम एव संबोध्यते । हे सोम वासोदास्वहेवत्यवसलाणां दातारो ये संनिते
त्वया सह तिष्ठतीति शेषः। एते सवे आयुजीवनं प्रतिरते । प्रवधेयंति । प्रपू वं
नैत्रीया +.
स्वो नहि ते पृणति । `
|
पृणति ॥३॥
१
४
६ ३५६ = ॥ ऋग्वेदः ॥ ०४, ०६, व०३,
देवी देवसंबंधिनी । देवाद्यजजावित्यञ् । ताहशी पूतिः पालिनी तत्साध्या
देवयज्या । डदसि निषटर्क्येति निपातितः । देवयागः। तद्गनरूता दक्िण न क-
वारिभ्यः 1 ऋ गतावित्यस्याच इः । उ० ४.१३४.। इतीप्रत्ययः । कुत्सितगतुभ्यो
ऽयष्टृभ्यः । एतेभ्यो न भवति । यडा देवानां स्वभूता पूषिः पूरयिची स्तुतिभिह-
भि ताहशी देवयज्या दिशा च तेभ्यो न भवतः । तच हेतुरुच्यते । हि यस्मात
कुत्सितगंतारो न हि पृणंति देवा्खैतुतिभिहैविभिवे न प्रीणयंति । पृण प्रीणने ।
तोदादिकः। अथेति प्रपर । यष्टणां देवयागादि कथं भवति । उच्यते । नरः कमणां ॥
नेतारः । अत एव प्रयतदक्षिणासो टत्तदक्िणा बहवो यज्ञमाना अवद्यभिया 1.
अवद्यपण्यवये गदयति यत्म्त्ययां ततेन निपातितः। पापभिया । विहिताननुष्टान
दुरितानि भवंति खलु । तस्माचद्वीत्या पृणति । देवान्प्रीणयंति । तस्माद्यष्टणां
देवपाल८नयागदक्षिणा भवतीत्यथेः ॥
॥ अथ चतुर्थीं ॥ | ट
शतधारं वायुमर स्वविदं नृचसंसस्ते अभि च्छते हविः।
४ ये पृणति प्र च यच्छति संगमे ते द्िंणां दुहते सप्तमांतरं ॥४॥
शतऽ्ारं । वायुं । अरे । स्वःऽ विद । नुऽचक्॑सः। ते । अभि । चक्षते । हविः।
५
क
ये। पृणति प्र। च। यच्छ॑ति। संऽगमे। ते । दधिंणं । दुहते । सप्नऽमांतरं ॥४॥
केतवे [1.9 | #
शतधारं बहुधारेणोपेतं वायुमेतन्नामकं स्वविद् स्वगेस्य ल भकं सवस्य वेत्तारं
वाकेमचेनीयमादित्यं च तो नुचससो नृणां दृषटनन्यानिद्रादीन्देवांाभिलष्षय ते
यजमाना दविषते । तेभ्यो दातुं पश्यति जानंति । चशेलेटि रूपं । विंच।संगमे।
कमेकरणाथेमृत्विजोऽ च संगच्छत इति संगमः। पहवृहनिशिगमश्चेत्यधिकरणेऽप्। `
| | रि | स्मन्यज्ञे ¦ ति | ५ | ये | अष्टारः | | पृणति | स्तुतिभि * ॥ प्रीणयंति | | मे त | | तेभ्यो
नयच् यद्योगादनिधातः। ते सप्तमातरं सप्तसं
यस्यां भवंति ं
ख्याका । \
9
सा। यहा
"1
म०१०.अ०९. सु०१०७.] ॥ अष्टमोऽष्टकः ३५७
दद्िणाऽवान्। प्रथमः। हतः। एति । टसिंणाऽ वान् पामऽनीः। मर । एति ।
त #
तं । एव । मन्ये । नृऽपतिं । जनानां । यः । प्रथमः। दधिंणं । आऽविवाय॑ ॥१५।
राहतो द्िणावान्यजमानः प्रथमः सर्वेषां सुख्यः सन् एति। सरवैच
गच्छति ्रामणीयामाणणां नेता धनवचेन तेषां कता दक्षिणावान् सो
प
५
ऽपमेति। सर्वेषा प्रथममेव गच्छति। तमेव नूह्तिं नराणं पार्ल
ऋषधिरहमववुध्ये
दिषु । तस्य लिटि रूपं। तं नृपतिमिति मन्ये । यद्वा जनानामिति पू वेवास्यशेषः ।
नानां मध्ये तमेव मनुष्याणां स्वाभिनमिति मन्ये ॥
॥ इत्य्टमस्य षष्ठे तृतीयो वगः ॥
॥ पध ष्टी ॥
तमेव ऋषिं तसुं बस्या णं माहयेलन्यं सासगासुक्यश्णसं
स शुक्रस्यं तन्वो वेद् तिसो यः प्रथमो दधिं णया रराध ॥६॥
तं । एव । ऋषि) तं । ऊ इतिं । बह्याणं। आहः। यज्लऽन्य॑। सामऽगां । उक्थऽ सं ।
जधा 1 1 } कन
सः। शुक्रस्य! तर्न्वः । वेद्। तिखः। यः। प्रथमः । ददिंणया । रराध
#
तमेव टक्षिणाया दात्तारमृषिमतीद्वियाथैदशचिनं । यदा । सत्कमेकरणेनर्षिमि-
त्याहुः ! तथा तसु तमेव बह्माणमाहुः । किंच । तमेव यज्ञन्यं । णीञ् प्रापणे ।
क्रिप्। उदात्तस्वरितयोयेण इत्यमः स्वरितत्वं । यज्ञस्य नेतारमध्वयुमित्याहुः । तमेव
सामगां सान्नं गातारमिति । तथोक्यशासं । शमु स्तुतो । किप् । संहितायां
दीधेष्छांटसः। उक्यशसं शस्ताणां शंसित्तारं होतारमिति ब्र वंति । दक्िणादानेन
तत्कर्मणः परियहात् । स दाता शुक्रस्य दीयमानस्य ज्योतिषस्तिसस्वन्वोऽग्नि
त्यात्मकानि चीणि शरीराणि वेद । जानाति । यद्वा शुक्रस्य दीप्तस्य
३५४ ॥ कण्वेद्ः ॥ ० ४. ० ६, ०४.
दिंणा । अशं । टधिंणा। गां । ददाति । दधिंणा । चंदं । उत्त । यत्। हिरण्यं ।
दधिंणा। अन्व । वनुते । यः। नः। आत्मा । टध्िणां । वमे । कृणुते । वि ऽ जानन् ॥७॥
[1.1 # #
चे दके कन ऋ
दकिणा तदातृभ्योऽश्ं ददाति । तथा गां च ददाति तथा चंदं सुवणै द्दाति।
उतापि च यद्धिरण्यं रजतमस्ति। रजतं हिरणए्यमित्याग्नानात्। तच्च ददाति । किंच
सान्नं वनुते ददाति । वनोतिरच दानाथेः । तस्मानोऽसखदीयौ य स्मात्मास्ति स
वमे विजानन् कवचं यथायुधानां निवारकं तददुरितानि वारयतीति कवचमिति
विजानन् द्िणामश्वादिदानशीत्तां कृणुते । ऋषिग्भ्यः करोति ॥
& ॥ अथा्टमी ॥
न भोजा म॑मृने न्यथैमीथुनं रिष्य॑ति न व्ययते ह भोजाः
५ॐ #
(=
` इदं यदश्वं भुव॑नं स्व्॑चेतत्सव दधिंशेभ्यो ददाति ॥४॥
न । भोजाः । ममुः । न । निऽऋथे। ईयुः। न । रिथंति । न । व्यथते । ह । भोजाः
॥
ऋणे चेव 1. जरे ॥ रि
इद्। यत्। वि्।सुव॑नं। स्व धरितिं स्व॑ः। च। एतत्। सवै दधिंणा। रभ्यः। दुदाति॥४॥
#
भोजा भोजयितारो धनादिरानेन टात्तारो न ममुः । न मियते । देवत्वं भजंत
इत्यथैः । अत एव न्यर्थं । ऋ गतो । उषिकुषिगतिभ्यस्यन्। समासे थाथारिस्वरः।
निकृष्टां गतिं नेयुः। न प्राशरुवंति । इर गतो । लिटि दीधे इणः कितीति दीधः
तथा न रिथिंति । केिदणहिंसित्ता भवंति । कमणि व्यत्ययेन परस्मेपद्ं । अत
एव मोजा दातारौ न वयथते । परस्यरं न भीता न बाधिता वा भवंति । ह प्रसिज्ञी।
- किंच । इद् परिहश्यमानं विश्वं सवै भुवनं यद्ूतजातमस्ति स्वश्च स्वगेत्लोकश्च
दक्षिणा स्वयमेभ्यसतहोतृभ्यो द्दाति । यच्छति ॥
15 १ कव नवमी ॥. ~:
योनिम भोजा जिग्युवध्वं१या सुवासाः ।
यये अहूताः पर्ति ॥९॥ |
म० १०. ख०९, सू०१०७.] ॥ अष्टमो ऽकः ॥ ३५९
तथा भोजा दातारो वध्वं वधूं नवोढां सीं जिग्युः। या स्वी सुवासाः शोमनवासा
तां जिग्युः । किंच । भोजाः शचृणां सुराया अंतःपेयमंतःपानं जिग्युः
ध पाने । भावे यत् । इद्यतीतीतं । आधधातुकलक्षणो गुणः । कृटु्तरपदप्रकृति- ॥
(4 स्वरव । ये श्चवोऽहूता बल्ाधिक्येनाहूयमानाः प्रयंति प्रसुखमागद्छति तान्भो- `
जा दछिणया दातारो जना जिग्युः । जयंति ॥ ", ह 1
॥ अधं दशमी ॥ =» ५
सुं भोजायास्ते कन्या ३ मुभमाना ।
भोजायाश्वं सं मृजत्याणुं भो
ोजस्येद् पुष्करिणीं व वेश्म परिष्कृतं देवमानेवं चिचं ॥१०॥
भोजाय । अष्वं । सं । मृजंति। आभु । भोजाय । आस्ते । कन्यां । णुभ॑माना। `
भोजस्य । इदं । पुष्करिणीं ऽइव । वेश्म॑ । परि ऽकृतं । देवमानाऽईव । चिच ॥१०॥ `
भोजाय दाच आसु शीघ्रगाभिनमश्वं सं मृजंति । परिचारकाः सम्यगल्ठ-
कुवेति । मृज् शो चां कारयोः । तथा कन्या । कन्यात्वेनाच संनिकषाटभिनवं
योवनं लष्यते । अमिनवयोवना भुभमाना शरीरावयवशोभया वल्राद्यले कार- `
श्तोभया च शोभमाना स्वी तस्मे भोजाय दाच आनते । तथा भोजस्य दातुरेव
हद्याह्ादकर वेश्म गुहं भवति । दीहशं । पुष्करिणौव । पुष्कराणि पद्यानि
यस्याः संतीति पुष्करिणी सरसी । सा यथा पद्चहंसाटिभिरत्ठेकृता भवति तडत् ` त
परिष्कृतं वित्तानादिभिरलंकृतं । परिपू वस्य करोतेभूषणार्थे संहितायां सुडागमः ५.
परिनिविभ्य इति सुटः षत्वं । गत्तिरनंतर इति गतेः प्रकृततिस्वरत्वं। तथा देवमानेव। `
सुपां सुतटुगिति प्रथमेकवचनस्याकारः । देवमानमिव चिचं मनोहरं वेश्मतस्य `
गि
५ ॥ खथेकादणी ॥ ` 1 1
वहंति सुवृद्रथो वतते रश्िंणायाः। `
भोजः शवरन्समनीकेषु जेतां ॥११॥ `
दष्िणाय
रर्थः। बतत | :
३६० [लि ॥ चूण्वेदः॥ = [आअ०६, अ०६, व०५,
सष चक्रादिवतैनं यस्य सोऽश्वादिसहितो रथौ वतेते । अथ प्रत्यक्षः । हे देवासो
हे देवा इद्रादयो भरेषु । भियत आहवनीयादिरूपेणास्निरतेति भय यज्ञाः। यज्ञा ।
भु भत्सैने। भृणंति भ्सैयंति योद्धारो चेति भराः संमामाः। तेषु भोजं दात्तारमवते।
रक्षत । ततो युष्माभिः पालितो भोजो धनादिदानेनं जनानां भोजयिता सन्
षु संयामेषु शचूञ्गेता जयशीत्मो भवति । जि जये । ताच्छीलिकलन् ।
अत एव न लौोकाव्ययेति शचरुशब्टस्य षष्ठीप्रतिषेधः ॥
॥ इत्यष्टमस्य षष्ठे चतुधा वगः ॥
किमिदंतीवयेकाटश्चं नवमं सूक्तं चैषटभं। रेद्रपुरोहितस्य वृहः
नाग्रोऽसुरंस्य भटः पणिनामकेरसुरेरयहत्य गुहायां निहितामु सतीषु वृहस्यति-
प्ररितेनदेण गवामन्वेषणाय सरमा नाम देवभुनी प्रेषिता । सा च महतीं नदी-
मुय वत्दपुरं प्राण गुप्रस्याने नीतास्ता गा ददशे । अथ तस्मिन्नेतरे पणय इटं
वृत्तातमवगच्छंत नां भिचीकतु संवादमकुवेन् । तत्र प्रथमातृतती याद्या खयु-
जोऽत्यावर्जिताः पणीनां वाक्यानि खच त ऋषयः । सरमा देवता । डितीया-
चतुथ्यद्या युज एकादशी च षट् सरमाया वाक्यानि । अतस्तासु सिः पणयो
देवता। तथा चानुक्रातं । किमिच्छंती पणिभिरसुरेनिगृूढ्व्हा गा अनेष्टु सरमां
देवभुनीमिंदरेण प्रहितामयुग्मिः पणयो भिचीयंतः प्रोचुः स तान्युग्मात्याभिर-
निदधती प्रत्याचष्ट इति । गतौ विनियोगः ॥
` प त्चप्रथमा॥
स॒रमा प्रेदमान् दूरे ह्यध्वा जग्रिः पराचैः ।
१
: का परितक्म्यासीत्कथं रसायां अतरः परयांसि ॥१॥
८
दरे । दि। अधां । जगुरिः । पराचैः ।
कम्या।आसीत्। कथं ।रसायां। अतरः पया सि॥१॥
जके धतिः कोके,
॥ ष्टमो ऽ कः ॥ ३६१
इनेत्यादिना विन्म्र्ययः । बहुलं दसि । पा०७.१.१०३.। इत्युत्वं । तादशो ऽयमध्वा
दूरे हि । विप्रकृष्टः खल्दु । यद्वा । पराचैः परंचनेजगुरिरत्यधं गंची पा
मनालोकमाना सतीदं स्थानं प्राप्नोति । दूरेऽयमध्वा यहच्छया गंत न शक्यते ।
अतो वयमेतां पृच्छामः । हे सरमे का कीदष्यस्मेहितिः । कोऽस्मास्वथेहितिः।
सु त्दपेशितार्थो निहितः। यद्ञा। अस्मासु कोऽर्थो गतः। दधातेहिनोतेवा
नि रूपं । आग्छत्यास्तव का कीदभी परितक्म्या रारिरासीत् । यद्वा तका-
तगत्यथैः । परितकनं परितो गमनं भमणं वा कीडश्मासीत् । कथं च रसायाः |
शब्दायमानाया अंतरिछनद्या योजनश्तविस्तीणायाः प्यांस्युटकान्यतरः । तीशे
वत्यसि। एतइद । अर किमिच्छंती सरमेदं प्रानडित्यादिकं निरुक्तं दूवयं ॥
9, | ५
॥ अथ हितीया ॥ ` 3 |
इदस्य टूतीरिंषिता च॑रामि मह इच्छती पणयो निधीन्वः
अतिष्कदो भियसा तन्नं आवन्चथां रसायां अतरं पयांसि ॥२।॥
इद्रस्य । टूतीः । इषिता । चरामि । महः । इच्छती! पणयः । निऽधीन्। वः। `
[ चिमे # व
अतिऽस्वर्दः। भियसां । तत्। नः। आवत्। त्था । रसायाः। अतर । पर्यासि ॥ २॥
त्टुगिति प्रथमेकवचनस्य सुष्छांटसः। सविता तेनव प्रावत 0
दीयं स्यानमागच्छामि । किमथे । वौ यष्मदीयान्युष्मदीये पवेतेऽधिष्ठापि-
महतौ निधीन्वृहस्पतेगोनिधीनिच्छती कामयमाना सती चरामि।किचि।
कद् । स्दिगेतिशोषणयोः । भावे किप् । अतिष्कदनादतिक्रमणन्नातिन, = |
भियसा भयेन तन्दीजल्टं नः । पूजायां बहुवचनं । मामावत् । अर्त् । तथा
प्रकारेण रसाया नद्याः पयांस्युट्कान्यतरं । तीणेवत्यस्सि ॥
क्रे ॥ चछग्वेद्ः॥ [सअ०४, अ०६, व०५,
तेषां वाक्यं । हे सरमे तव स्वामीद्रः कीदर्।
तस्य कीदशी दष्टः । हष्िरूपा सेना कियती । यस्य दूतीदूती त्मिदमस्मदीयं स्थानं
पराकादतिद्रादसरः । आगमः । इति तासुक्ैदानीं ते परस्यरमाहूः । एषा सर
1 गखधाच । आगच्छतु च । गमेर्टव्याडागमः। स्वामी भवाति । भवतु । न दये-
कस्या गोः वितु बहूनां गवां स्वामी भवतु । वृ्चावृक्तिभ्यां स्वामित्वं बाहुल्यं च
विवष्यते ॥ +.
1 ॥ अथ चतुर्थी ॥
नाहं तं वैद् दभ्यं दभत्स यस्येदं टूतीरसरं पराकात्।
तं गूह॑ति खवतों गभीरा हता इद्रेण पणयः शयध्वे ॥४॥
न। अहं । तं । वेद् । ट्भ्यं । दभ॑त्। सः। यस्य । इदं । दूती; । प्रसर । पराकात्। र
न। तं । गहंति । खवतः। गभीरः । हताः । इद्रेण । पणयः । शयव्वे ॥४॥
सरमा वंति । हे पणयः तमिदं दभ्यं हतव्यमिति न वेद् । न जानामि ।
५ दभेरचो यत्! कथं । स इंद्रो दभत्। सवोञ्जनान्दभति । हिनस्त्वेव । दभेर्तेटि रूपं ।
ध वाक्यभेदादनिघातः । यस्य दूतीदूत्यहमिद् युष्मदीयं स्थानं पराकादतिदूरादेश- `
, दसरं। प्राप्राभूवं। इटो हिंसितव्यो न भवतीत्यच युक्तिमाह । सवतः। सवणंखवः।
, ततमाचरति। स्ाचारर्थं क्रिप्। तुगागमः। जसि रूपं! खवणंशीला गभीरा गभीरा र
नद्यस्तमिंदं न गूहति । न संवृणंति । नाच्छादयति । विंत्वाचिष्कुर्ैति । व
यस्य महिना समुदं प्रतिसरामः। तस्मादर्हिस्य इत्येनं प्रकटीकुवेति । गुहू संवरणे
` भीवादिकः। तस्मादे पणयो यूयमिंदरेण तादश्पराक्रमेण हताः संतः शयवे
4
॥ अथय पंचमी ॥
: परि दिवो उंतान्सुभगे पतंती ।
क
म०१०. ख० ९. सू०१०८.] ॥ अष्टमोऽ टकः ॥
माना या गावः, सुब्व्यत्ययः । गा शेच्छः कामयसे ता एना गाहते लदीयः
कोऽयुध्यगुद्खाव सुजात् । अस्मात्पवेतादवसुजेत् । विनिगमयेत्। सजेर्गरि रूपं ।
युधेः क्ाप्रत्यये सलात्व्याटयश्चेति निपातितः । नञजसमासत्ाख्यवटिष्ण-
: । नजः प्रकृतिस्वरत्वं । उतापि च । अस्माकं तिग्मा तीद्णान्यायुधायुधानि
संति । तस्मादस्माभियृचमकृत्वा को नाम गा आहरति ॥
॥ इत्यष्टमस्य षष्ठे पचमो व॑ः ॥
॥ अथ षष्ठी ॥
असेन्या व॑ः पणयो वचास्यनिषव्यास्तन्व॑ः संतु पापीः ।
पे पे
खधुष्टो व एतवा अस्तु पंथा वृहस्पति वं उभया न मच्छात् ॥६।
सेन्या । व॒ः । पणयः । वचसि । अनिषव्याः । तन्वं: । संहु । पापीः ।
# कि कि | । कि । म,
अधुः । वः। एतवे । अस्तु । पंथाः । वृहस्पतिः । वः। उभया । न । मृक्छात् ॥६॥
सा तान्निराह । हे पणयो वो युष्माकं वचांसि पूर्वोक्तानि वचनान्यसेन्यासे-
न्यानि । सेनाहौणि न भवंति । सेनाशब्टा्तदहेतीत्य्े छंदसि चेति यत्मत्ययः
नजा समासः । ययतोश्वातदथे इत्युत्तरपदांतोदाच्त्वं । तथा तन्वो युष्मदीयानि
शरीराण्यनिषव्या इत्रहोणि न संतु पराक्रमरादित्येन । पूवेवत्मत्ययः । ओगण
इति गुणः । स्वरश्च ताहर्। यतः पापीः पापयुक्तानि खदु । रुदसीवनिपावित्ती-
प्रत्ययः । जसः शः । विच । वो युष्मदीयः पंथा मागे एतवे गतुमधृ्टोऽसम-
थो ऽस्तु । इण गतावित्यस्य तुमथें तवेगप्रत्ययः । तवे चातश्च युगपदिति धातौ
प्रत्ययस्य च युगपदुदात्तं । तच हेतुमाह । वो ुष्मदीयानुभयोभयविधान्पूर्वो-
क्ास्तन्वो रेह्छन्बृहस्पतिरिदरपरेरिलौ न मृक्छात् । न सुखयतु । वितु वाधेत्त । मृड
लेव्यडागमः ॥
` ॥ ऋवेः ॥ .. [अ०४, ख०६. व०६,
५ ॥ । ः । । $
ते पुनराहुः । हे सरमे अयं निधिरसदीयः कोणशोऽद्विवुः । बंध बंधने ।
वंधेवेधिबुधी चेति नप्रत्ययः । बुध इत्यदेशः। अद्विबेधरो यस्य तादृशः । तथा-
हर्मोभिरेभिरशरैश्च वसुभिरात्मीयिधेनेश्च व्यु्टो नितरां प्रा
गतो । कप्रत्यये च्चीटिततौ निष्टायामितीर् प्रतिषेधः । गतिरनंतर इति >
स्वरं । सुगोपाः। गुपू ररे । आयप्रत्ययांताक्किातील्लोपयल्छोपो !
पायित्तारो ये पणयस्तेऽसुरास्तं निधिं रसंति ! पाटयति । रेकु । रेकृ शंकायां ।
स्मीणाटिक उप्रययः। शकितं गोभिः शब्दायमानं पद्मस्साभिः पाल्वितं स्थान-
मल्क व्य्थमेवाजगंय । सागतवत्यसि । गमेकतिरि रूप ॥
॥.
र, ॐ ॥ ऋअया्टमी ॥' ४ 4
एह ग॑मनष॑यः सोम॑शिता अयास्यो अंगिरसो नवग्वाः
तमू वि भ॑जंत गोनामयेतदच॑ः पणयो वमन्नित् ॥४॥ =
छा । इह । गमन्! ऋष॑यः । सोम॑ऽशिताः। अयास्यः । संगिरसः । नवंऽग्वाः। = ।
। अथं । एतत्। वच॑ः। पणर्यः। वम॑न्। इत् ॥४॥
गोनां
तै। एतं। ऊवै। वि। भजंत।
| सरमा पुनः प्रत्युवाच । हे पणयः सोमश्तिाः सोमेन तीषणीकृताः सोमपानेन `
` मत्ताः। शिञ् निशने। कमणि क्तप्रत्ययः, तृतीया कमेणीति पूरवैपदप्रकृतिस्वरतं। 4
ह्ण नवग्वा नवगतयः। यदा । खंगिरसां सन्लमासीनानां मध्ये केचन नवसु
न् ते नवग्वाः । अनेन दश्वा अषुपलष्यंते। उभयविधास्तेऽगिरसष `
तैषां प्रयमोऽयास्य एतन्नामा च। त एत इह युष्मदीय स्थान सा गमन्।
गमेष्डदसि लुङ्लङलिट इति सार्वकालिको लङ खृदिच्चाच्चेरङ ।
गोः पाटांत इति डंटसि नुडागमः गवामूवै तं समहं वि
` म०१०.अ०९.सू्०१०४.] ॥ अषटमोऽष्कः॥ = शैष `
एव। च। लं । सरमे। आऽजगंं। प्रऽनांधिता। सह॑सा । देथैन।
स्वसार । त्वा । कृण्वे । मा । पुन॑ः। गाः! अप॑ । ते । गवां । सुऽभने। भजाम ॥९॥
॥ ॥ क्ये ऋषिक नैके
तयेवसुक्ते सति पणयः प्रणयवाक्यमाहूः । हे सरमे तवं देव्येन देवसंबंधिना
सहसा बलेन प्रवाधिता यथा तथा वलपुरं प्राण तच स्थिता गा हषा पुनरा-
गच्छेति तेन प्रपीडिता त्वमेवं चेदाजगंथागतवत्यसि ॥ चशब्टेदर्थे । निपातिय-
ादिहितिति तिङो निघाताभावः । गमेलिटि चलि रूपं । सह सूुपेत्यच सहेति `
यागावभागात्समासः । तिडः चोदाच्तवतीति गतेनिधातः। त्ित्स्वरः ॥ तहि तवा
लं स्वसारं भगिनीं कृणवे। करवै । समूहापेेकवचनं । त्वं तु पुनमा गाः। इदा-
दीन्मा गच्छ । अपि तहिं हे सुभगे सरमे ते बदीयानां गवां समूहं पवैतादपगमय्य
भजाम । लं च वयं च विभजाम । विभागं क्रवामेत्यथैः ॥
| ॥ थ दशमी ॥
नाहं वेद् भातृ नो स॑सृत्मिटरौ विदुरगिंससश्च घोराः। = `
५
0
` गोकामा मे अच्छदयन्यदायमपातं इत पणयो वरीयः ॥१०॥ =. क.
` न।अहं।वेद्। भातृऽलं। नो इतिं । स्वसृऽवं । इदः । विदुः। अंगिरस :। च। चोराः।
‡ गोऽकामाः।मे। खच्छदयन्। यत्। आयं। अप॑। अतः। इत । पणयः। वरीयः ॥१०॥
#
| 1) भि |
0 सरा तान्प्रत्याचष्टे । हे पणयः अहं भ्रातृत्वं न वेद् । न जानामि । तथा स्वसतव
| . चनो वेद्। नैव जानामि । क जानंति । तानाह। इदो घोराः शचूणां भयंकरा
. . अंगिरसश्च विदुः । जानंति । किंच । अस्मात्स्यानादहं यद्यदायमिंदादीन्प्रा्नवं । `
। इद्राद्य अच्छद्यन् । युष्मदीयं स्थानमाखादयंति । छद् अपवारणे।
कारणङ्धे पणयो वरीय उरूतरं गवां वृंदं परित्यज्यापेत । अन्यत्स्यानं प्र
यज्वा वरीयः प्रूतमतिटूरं देशं गच्छत । इत । इण् गतौ ।
दादीयसुनि प्रियस्थिरेत्यादिना वरादेशः ॥
क
अय पय गतो। तङि रूपं । तदा मे मदीया गोकामा युष्माभिरषहता गाः काम- `
॥ ऋम्वेदः ॥
पणयः। वरींयः। उत्
॥ 1 „ति |
तिः। याः। अर्विदत्। निऽगुहव्दाः। सोम॑ः। मावाणः
दूरं दृरदेशमित । गच्छत । युष्माभिरपहता गाव
विदारयत्य उद्यतु
भिबो-
३६९ -.
ट्र । इतं
जहा
` हे पण
नतीः
। यः यूयं वरीय उरतरं
कतेन स्येन मिनतीभिनत्यो दारस्य पिधायकं पवेत हिंसत्यो
तस्माद्र । यज्वा भिनतीः । व्यत्ययेन कमणि शतृ । मं
ध्यमात्तास्ता गावः । सुव्व्यत्ययः । गा ऋतेन स्तुतिभिगेतययनेद्रेण सहायेन बृह-
स्पत्याट्य उद्य । पवैतादुद्रमयंतु । निगूढा नितरां स्थापिता या गा वृहस्यति-
रविंदत् । लप्स्यते । तथा सोमस्ददभिषवकारिणो यावाणश्च विप्रा मेधाविन
` ऋषयोऽगिरसश्च लप्स्यते । विट लामे। तौदादिकः। तस्दसि टुडःलङ्लिद
इति भविषयट्र्थे लङः । शे मुचादीनामिति नुमागमः ॥ ।
॥ इत्यष्टमस्य षष्टे षष्टो वगेः ॥
= तेऽवदनिति सप्तचै दशमं सूक्तं । जुहनेम ब्रह्मवादिन्युषिः। जह्पुच ऊध्वेनाभा
नाम वा! षष्टीसप्रम्यावनुषभो । शिष्टाः पंच चिषटुनः
चानुक्रोतं । तेऽवदन्सप्र जुहूबैडजाया बाह्यो वोष्वैनाभा वेश्देवं
ति। गतौ विनियोगः ॥
। त्च प्रथमा ॥
षेऽ
ऋतेनं।
-ष॑यः। च विप्राः॥११॥
यमाना यु
विषे देवा देवता । तथ
कूपारः सलिलो मातरिष्ां।
तेनं ॥१॥
` नऽवदनप्रथमा ज॑डकिस्व
#दुह॑यस्तपं उयो मयोभूरापो देवीः प्रय
प्रथमाः । ब्यऽ
:। उयः। मयःऽभूः । आप॑ः
मजा
किस्विषे । अर्कूपारः।
। देवीः,
सलिल
प्रयमऽज
त ४ ष त । । |
नाः। च
नुष्टवतमि-
: । मातरि ।
तिनं ॥१॥ `
ष
म०१०.अ०९. सू०१०९.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥ ३६७
भवति दूरपारः । नि०४.१४.। इत्ति । अकुत्सित्तपारो महागतिरारित्यः । सलिलो
, `“ ग्देवता वरुणः। मातरिष्वा वायुवीकुहणः। हणेस्सुनि रूपं हर इति । हरति |
1 | विनाशयति तमांसीति हरस्तेजः । प्रभूततेजस्कः । तपः । तृतीयायाः सुः तपसा `
1. तापनेनोप उद्रूणोऽग्निः । मयोभूः सुखस्य भावयिता सोमः । देवीर्दैवय रापः क
1. हश्यः। ऋतेन सत्यभूतेन ब्रह्मणा प्रथमजा आदित एवोत्पादिताः। खत उपा- "4
| यमुक्ता प्रायशित्तमप्यकारयन्निति भावः ॥ ५ १, (1
वि ४ ॥ अथदहितीया॥ = 1
सोमो राजां प्रथमो ब॑ह्यजायां पुनः प्रायच्छदहणीयमानः। ` ॥
, अन्वर्तिता वरूणो भि आंसीदब्र्ोत हस्तगृह्या निनाय ॥२॥ न =
सोम॑ः। राज! प्रथमः। बरह्यऽजायां । पुनरिति । प्र। अयच्छत् । अहंणीयमानः।
अनुऽअतिता। वरूणः। मिचः। आसीत्।अभ्िः। होत हस्वऽगृद्य। आ। निनाय॥२॥ 0.
$
प्रथमो मुख्यः सोमो राजाहणीयमाणः । पापापगमनेनालज्नमानः सन्
तासेनामकिस्विषां ब्रह्मजायां पुननैहस्यतये प्रायच्छत् । ततो वरूणोऽन्वतिता । .
ऋतिः सोचो धातुधणायां वतेते । तस्य तृचि रूपं । सोमसनुमोदयिततासीत् ।
सर्वथा तवं परिगृहाणेति टयामकाषीत् । तथा मिचश्च । अनंतरं होता देवाना-
माद्धाता मनुषाणं हौमनिष्पादको वाग्रिहेस्तगृद्य तां हस्ते गृहीत्वा निनाय ।
आनेषीत् । प्रादादित्यथैः हस्तगद्य । नित्यं हस्ते पाणावुपयमने । पा० १.४.७७. ।
इति हस्वशब्टस्य गतिसंसायां पहिणा समासे ल्यप् ! एकाश्त्ो पष्डांदसः । यद्वा
हस्तश्ब्दात्परस्य गृहेष्छांदसो समासस्यपो ॥
न ~. कचतृतीया ध.
हरसनैव पाद्यं आधिरस्या ब्रह्मजायेयमिति चेदवोचन्!
प्रये तस्थ एषा तथां | पितं छचिय॑स्य ॥३॥ ` ॑
म॑" ल्ग् व री
३६४ ॥ ऋग्वेदः ॥ ` ०४, ०६, व० ७,
व्यमेव । पुनस्ते देवा इदानीमियं जह्यजायेत्येवावोचन् । अवादिषुः । चशब्द॒श्े-
दथ । खत र्व निपातेवेद्यरिहलेति तिडो निघाताभावः । बजञ् व्यक्तायां वाचि।
त्दुडिः बुव वचिः । अस्यतिवक्तिख्यातिन्योऽ ङ्किति च्ँरडादेशः । वच उमित्यु-
मागमः। डागमस्वरः। इदवधारणे। एषा बह्यजाया पुरा प्रद्ये । हि गतो वृद्खौ
| च। कमेण्यौणादिकः किप् । तुगभावग्डांद्सः । रिइचने संलापू वैकस्य विधेर-
नित्यलाहुणाभावः । उदात्तस्वरितयोयेण इति सुपः स्वरितत्वं । प्रहिताय त्वया
भायोन्वेषणाथे प्रेषिताय दूताय तथा न तस्ये । स्वात्मानं न . प्रकाशयति । तिष्ठ-
तेलिरि प्रकाश्नस्थेयाख्य योश्च । पा० १,३.२३. इत्यात्मनेपदं । छाघहर्स्याश्या-
भिति दूतस्य संप्रदानसंज्ञा । तच हष्टांतः। यथा एचियस्य राज्ञो गुपितं रक्षित
शष्ट राज्यं शवे यथा न प्रकाशयति तइटसो दोभोाग्ययुक्ततया तस्मे स्वात्मानं `
न प्रकाशितिवती । इदानी तु तद्राहि्येन प्रकाशमानेयं बह्मजायेवेत्यत्रुवन् ॥
५१४ ॥ अथ चतुर्थी ॥ 4"
देवा एतस्यांमवदत पूवे सप्रकषयस्तप॑से ये निंषिदुः ।
न
भीमा जाया बह्णस्योप॑नीता दुध द॑धाति परमे व्योमन् ॥४॥ ४.८;
` देवाः। एतस्यां । अवदत । पूर्व । सप्रऽऋषय॑ः। तप॑से । ये। निऽसेदुः। `
# रि 7 |
भीमा। जाया। बाह्मणस्यं । उप॑ऽनीता। ठुःऽधां। द्धाति। परमे। विऽञ्ोंमन्॥४॥
पूते चिरतना देवा आदित्यादय एतस्यां विषयेऽ वदतत । इयं पापरहितेत्यवा-
दषुः । तथा ये सप्रषेयः। समासस्वरः। सप्रसंख्याका ऋषयस्तपसे तपश्चर णाय
निषेदुनिषखा बभूवुः । सदेलिटि रूपं । उपसर्गेण समासः। यद्चोगादनिधातः
तेऽप्यवादिषुः। ततो भीमा शचुरूपाणां पापानां भयंकरी पतिवल्येषा जाया बा
॥ ।
०१०. ०९. सू० १०९. ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ ॥ ॑ £
ब्रह्मऽ चारी । चरति । वेविंषत्। विषैः । सः! देवानाँ । भवति। एक । संगं । ५
तेन॑ । जायां । अनुं । अविंदत्। वृहस्यत्तिः। सोमेन । नीता । जुं । न । देवाः ॥५॥ श
#
बृहस्यतिमामलभतेति जुहूः परोक्षतया वटति । हे देवाः पूवै स बह्यचारी
जायाभावेन जह्यचारी चरति । अतत एव चिषः सर्वेषु यज्ञेषु व्याप्रवान्देवान्वेविषत्।
तुतिमिहेविभिश्च व्या्रुवन् देवानामेकमंगं भवति । जायापती यज्ञस्य डे खगे त
, खल्ु । वेविषत् । विषु व्यापन । जौहोत्यादिकः। निजां चयाणां गुणः छौ । पा०ञ.
~ ४.७५. इत्यभ्यासस्य गुणः । शतुनेभ्यस्ताखखतुरिति नुमागमप्रतिषेधः । अभ्यस्ता- ,
| नामादिसत्ाद्यदात्तवं । तेन देवानां परिचरणेन वृहस्पतिजायां जुहूनाभिकां मा-
| मन्वविंटत् । अनुगम्यात्भत । नशब्द् उपमार्थे । पू यथा सोमेन नीतां सोमो `
ददद्रधवेयेत्यादिक्रमेण नीतां जदं जुं यथा ल्ग्वान् तइदिदानीमपि। जड ।
हु दानादानयोः अन्येभ्योऽपि दश्यत इति किष्। जुहोति चेति हिवेचनं दीधेश्च।
` उदात्तयणो हस्पू वौदिति विभच्युटात्ततवे प्राप्रे नोङ्धात्वोरिति प्रतिषेध उदाच्स्व-
रितियोयंण इति स्वरितत्वं ॥ क:
५ ॥ खय षष्ठी ॥ # 1
1. पुने देवा अददुः पुन॑मेनुषयां उत । 4 त
म. राजानः सत्यं कणवाना च॑द्जायां पुनंदेटुः ॥६। । ^ ५.
9 पुन॑ः । वे । देवाः । अददुः । पुन॑ः । मनुष्याः । उत। `
ध राजानः सत्यं । कृणखानाः। ब्रह्मऽजायां । पुन॑ः । टुः ॥६॥ |
। | क्राभहेतुमाह। देवा बजाया जुहूं बृहस्पतये पुनरददुः। वेशब्दः प्रसिदिवाची। `
| उत्ताणर्थे। मनुष्या खपि पुनरददुः एवं देवमनुथेः कृतं दानं स्यं यथाथ कृखानाः
टदुः। एवमव्यवहायेनिमितं पापमपि व्यनाश-
कुवाणा राजानोऽपि पुनल्तस्मे
३० ॥ऋण्वेद्ः॥ [अ०४,अ०६. वश.
देवैः । सुपां सुपो भवतीति जसस्तृतीयादेशः । देवा निकिस्विषं । अथोभावे
इव्ययीभावः। समासस्वरः। तस्याः किस्िषाभावं कृत्वी । लात्व्याट्यश्चेति निपा-
तितः कृत्व ब्रह्मजायां बरह्मणो वृहस्यतिभाये पुनदेय पुनदेखा। पुनश्चनसोष्छदसि
गतिसंज्ञा वक्तययेति.पुनःशब्दस्य गतिसंज्ञायां समासस्यपो। न स्यपीतीत्वप्रतिषेधः
` कृटुत्तरपदप्रवृत्तिस्वरत्वं । पृथिव्या ऊज रसमभूतमननं हवीरूपं भक्काय । क्तो यगिति
यगागमः। भक्घा विभव्योस्गायं बहूकी्िं बहुभिः स्तोतव्यं वा वाहेस्पत्यं यज्ञसु-
पासते । सेवंते ॥
क ॥ इत्य्टमस्य षे सप्रमो वगेः ॥
समिद इत्येकादश्च॑मेकादशं सूक्तं बैष्टभं । भागेवो जमदग्रिकीषिः। तस्य पचो
रामो वा यः परणुराम इति प्रष्यातः। आप्रीसूक्तमिद् । अतः समिदाद्याः सत-
. ` नूनपातो नराश्सवरजिताः प्रत्यृचं देवताः । तथा चानुकरातं । समिद्ध एकादश
जमटग्निस्तत्ुतो वा राम आपरिय इति ॥ पशौ जामदगन्यानाभिदमाप्रीसूक्तं य्वा
विशेषेण सर्वेषां । सूचितं च । समिद्धो खद्येति यथि वा । आ० ३.२.। इति ॥
छभ्रिचयनांगभूते प्राजापत्ये पणौ सर्वेषां नित्यमिदमाग्रीसूक्तं । सूचितं च । ।
प्राजापत्ये तु जामदग्न्यः सर्वेषां । आआ० ३,२.। इति ॥ |
= ॥ तच प्रथमा॥
नुंषो दुरोणे देवो देवान्यजसि जातवेदः
शिकिवान्तं दूतः कविरसि प्रच॑ताः ॥१।
¶
| ऽइ: अद्य । मनुषः । दुरोणे । देवः देवान् । यजसि। जातऽवेदः। `
# वि # कको, पि
सिम सिना सः सिः सचेताः
देवः स्वतेजसा दीणमानस्वं मनुषो म
चे गृहेऽद्यास्मिन्कम
जातग्रजामरे
०१०, ०९. सू०११०.| ` ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ ठ
1
२७4
हविःप्रापणेन हितकारी भवसि ॥ ` व
ध | ॥ अथ हित्तीया ॥ | ।
1 तनूनपात्पथ ऋतस्य यानान्मध्वां समेजन्स्वदया सुजि । `
मन्मानि धीभिरुत यक्षमुधन्देवचा चं कृणुह्यध्वरं नं; ॥ २॥ ४
षि
मेक ¢ ॥ किये ; ५
तन्नं ऽनपात्। पथः। ऋतस्य । यानान् । मध्वा । संऽञ्ंजन्। स्वदय । सुऽजिह ।
# मन्मानि । धीभिः। उत्त । यज्ञं । चछधन्। देव ऽचा। च । कृणुहि । अध्वरं ^ नः ॥२।
५ हे तनूनपात् । नपादित्यनंतरापत्यनामधेयं । गोर तनूरुच्यते । तता स्यां
४ भोगाः छषीराट्य इति । तस्याः पयो जायते पयस आज्यं तस्मादग्निः । यद्ांतरिषो
|. तत्ता आआपस्तन्वः। ताभ्य ख्ोषध्याटयः। तेन्योऽग्रिरिति । वरूप हे सुजि
| शोभनज्वात् । यडा जिद्धेति वाङ्म । शोभनवागग्रे ऋतस्य यज्ञस्य यानान्फ- `
ल्प्राष्रिहेनून्पणो मागेन्हविरख्यान्मध्वा मदक्रेण रसेन । यडा वाग्जनितेन रसेन
समंजन् सम्यग्दीपयन् स्वदय । स्वाट्यस्व । स्वादुकुर । स्वद् आस्वादने । णिच्यु-
पधावृद्यभावष्छांदसः। किंच । मन्मानि । मन्यतेरचेतिकमेणः। मननीयान्यस्मटभि-
प्रेतानि स्तोचाणि धीभिः प्रलाभिः कमैभिर्वोतापि च यज्ञं यजनीयं हविश्च ऋं धन्
कुवेन् नोऽस्मदीयमध्वरं यज्ञं देवच्रा देवेषु कृणुहि । कुर । देवशब्दादे-
` वमनुेत्यादिना सकषम्य्थे चाप्रत्ययः ॥ =` =
| आजद्धन ईड्यो वंच्चा यांद्यम्रे वसुभिः सजोषाः
| ॥ ५ ॥ य तृतीया ॥ च
तं देवानामसि यह होता स शनान्यक्षीषितो यजीयान् ॥३॥
# # +
निघातः । तथा कविः करांतप्रज्ञोऽत एव प्रचेताः परकृषज्ञानस्वं टूतो देवानां
छ
५५
३७२ ` ॥ ऋग्वेदः ॥ [अ०४, ख०६. चछ,
क तासि । ततौ यजीयान् । यषटशब्दादीयसुनि तुरि्ेमेयःस्विति तृचो लोपः
यदत्र, स त्वसमिषितो 9 साभिरध्येषितः | प्रायि ; स्न् एतान्दे वान्य । य॒ज्ञं ।
इविषा पूज्य ॥
6, ॥ अथ चतुर्थी ॥
प्राचीनं वहिः परदिशा पृथिव्या वस्तोरस्या वुं्यते
घ्य प्रथते वितरं वरीयो देवेभ्यो अदितये स्योनं ॥४॥
प्राचीनं । बहिः । प्रऽदिशं । पुथिव्याः । वस्तोः । अस्याः । वृज्यते
मे अहा ।
। खमे । खहा ।
वि। ऊं इतिं । प्रथते । विऽतरं । वरीयः। देवेभ्य॑;। सर्दितये स्योनं ॥४॥
यदिदं प्राचीनं प्रागंचितं प्राङ्मुखं बहिरस्ति तदिदं पृथिव्या वेदिल्कषणाया
वल्तौः। वस आद्धादने। तुन्परत्ययः। चतुथ्येथं बहुं ₹ंदसीति षष्ठी । यद्वा भाव-
` लक्षणे तोसुन् द्र्व्यः । वसनायाच्छादनाथेमहामये पू वैद प्रदिश्ण प्रकर्षण
। , दिश्यमानेन मतेणास्याः प्राच्या दिशे वृज्यते । स्तूयते । ह्यते । तथा च `
| ` निगमः। त खा वहंति कवयः पुरस्तादित्यादि। तच्चाहृतं वरीय उरूतरं बहिवितरं `
विस्तीरेत्तरं यथा भवति तथा वि प्रथते । विविधमेव वेद्यां प्रस्तृतं भवति । तथा
त देवेभ्योऽदितये वेदिलक्षणये पृथिव्ये च स्योनं सुखकरं भवति । विस्त बरहिषि
देवाः सुखं निषीदति ॥
५... | ॥ अथ पंचमी ॥
` व्यच॑स्वतीरर्विया वि च्यतां पतिभ्यो न जन॑यः भुन॑मानाः
देवीदास बृहतीर्विश्वमिन्वा देवेभ्यो भवत सुप्रायणाः ॥५।
व्यच॑स्वतीः। उविया । वि । श्रयतां । पतिंऽभ्यः। न । जनंयः। नुभ॑मानाः।
खंऽल्वाः । देवेभ्यः । भवत् । सुप्रऽअयनाः ॥५॥
म०१०.अ०९.
हित्रीयाया अष्यलुर्। सवस्य प्रीणएयिच्यः। हे यारो दे 9
1 यूयं देवेभ्यो देवानामपाय सुप्रायणाः सुप्रगमनाः सुवि व
` . ॥ इत्यष्टमस्यषषेऽ्टमोवगैः॥ ्
॥अथयषष्ठी॥ ` : |
छा सुशर्य॑ती यजते उपकि उषासानक्ता सदतां नि योनो । क 9
दिव्ये योष॑णे वृहती सुरको अधि धियं मुक्रपिशं दधाने ॥६॥ =
पा । सुस्वर्य॑ती इतिं । यजते इतिं । उपक इति । उषसानक्त। सदतां । ५
# दिव्ये इतिं । योष॑णे इतिं । वृहती इतिं । सुरुक्मे इतिं सुऽरूकमे । अधि
न भुक्रऽपिभं । दधाने इतिं ॥६॥ ` व
. सुस्वयंती । खय पय गतौ । शतयुपसगैस्य सोदिवेचनं डांदसं । सुधरुयत्यौ ध
। गद्धंत्यो । यडा स्वपेण्येतस्य वणेत्रोपः । सुष्वापयंत्यो । यजते यश्वये उपाके उप- `
राते उषसानक्ता। उषश्च नक्तं च । इंड उषासोषस इल्युषासदेशः। देवताबैचेति `
पूरवेिरपदयोयुगपत्मकृतिस्वरत्वं । अहोराचदेव्यो योनावस्मिन्यज्ञस्याने नि नि- ५
त्तरं नियमेन वा सदतां । आसीदतां । सदेटडिः खृदिचाङ्खेरडः । कीदश्ये । दिव्य 1
| , ~ दिविभवे योषणे योषितताविव प्रीणयिव्यो । यज्वा योषणे समिति परस्परतोऽवि-
[1 विक्ते बृहती गुशेमैहत्यौ सुरुक्मे शोभनदीपते। रुक । रोचतेमेकप्रत्यये कुत्वे च कृते
१ रूपं । शुक्रपिशं शोचमानरूपां श्रियमधि टधाने । अधिकं धारयत्य ॥ त
॥ अथ सप्रमी ॥ `
कीः. „, । ।
देवा होहांरा परथमा सवाथा निर्मान मं तुषो मदे)
| भ्रचोदयेता विदथेषु कारू प्राचीनं ज्योति 4
दिव्या होतांरा। प्रथमा । सुऽवाचां।
||
4
३७४ : ॥ ` . [अ० ७, अ० ६, व्०९.
त्यचरविजः स्वस्व ति विदथा यज्ञाः । तष्रुषिजो यजमानाश्च प्रचोटयता
प्रयतौ । कारू स्तुतीनां कतैरौ प्राचीनं पूवेस्यां दिशि यषटव्यत्रेन स्यितमा-
हवनीयाख्यं ज्योतिः प्रदिश प्रकृ्ेनोपदिष्टमार्गेण यद्वा प्रटिश्यमानेन म
दिश्तानिवैहतौ॥
5 ॥ सथा्टमी ॥
आ नों यज्ञं भार॑ती तूयमेषिक्छं मनुशचदिहं चेतर्यती ।
-तिसरो देवीवैरहिरेदं स्योनं सरस्वती स्वप॑सः सदतु ॥४॥ |
आ। नः। यज्ञं । भार॑ती । तूर्यं । एतु । इच्छां । मनुधत्। इह । चेतय ।
ॐ
` तिखः। देवीः । वहिः। आ। इदं । स्योनं । सर॑स्वती । सुऽअप॑सः। सदतु ॥४॥
शकष ` श्ये कके, =, कभ
(४ भारती । भरत आदित्यः। तस्य स्वभूता दीधिः । तस्येदमित्यथे उत्सादित्वाद्न् ।
। ट्दणजिति डीप् नोऽस्मदीयं यज्ञं तूयं धिप्रमेतु । आगच्छतु । तथा मनुष्व-
न्मनुषयो यथेदं मया क्ेव्यमिति जानाति तदञ्चेतयंती जान तीका देवी चेहास्ि-
न्वमेएयागच्छतु । तथा सरस्वती च! सखपसः सुकमाणः । अप इति कमेनाम ।
^ = आप्रोतेरसुन्यापः कमोख्यायां हृस्वः। वहुत्रीहावाद्यदातं रच्छ दसीनयुत्तरपदाद्यदात्त-
“८ ल्वं। एतास्विसो देवीरदिष्यः स्योनं सुखकरमिदं बहिरिमं यज्ञमा सर्दतु । आसीदंतु ।
प्राव॑तु । सदेर्तरोटि सीददिष्णभावण्डादसः॥ ` ।
४
॥ ५ # प $ ५
अ -्वषटस्य पशोवैपायां य इमे इत्येषानुवाक्या । सूचितं च । य इने द्यावापृथिवी
` जनि तन्नस्तुरीपमध पोषयित्तु । आ०३.४.। इति ॥ = `
1 ५ तषा नवती 1.
जनिची ख्पेरपिंण्डुव॑नानि विश्वां!
नीगद्िव नररमि यं षान् १९५ =
^
र
॥,
०१०. ख०९. सु०११०.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥ ३७५
वकरोत् । पिश अवयवे तौदादिकः । शे सुचादीनामिति नुमागमः । तथा विश्वा
सवैणि भुवनानि भूतजातानि रूपयुक्तान्यकरोत्। हे होतयेजीयान्यषतमो विहन्
जानंस्वमिषितो ऽस्माभिरध्येषितः प्राथितः सन् इहास्मिन्कः |
तं चष्टारं देवं यसि । स्तुतिभिरहेविभिवा यज । पूजय ॥ 1 ।
॥0 7 ॥ अथ टश्मी ॥` क
७ उपावसृज त्मन्यां समंजन्देवानां पाथं ऋतुथा हवीषि । ` १ =
वनस्पतिः शमिता देवो अभिः स्वदतु हव्यं मधुना धुतेनं ॥१०॥
॥ ^ +. उपऽञ्व॑सुज । त्मन्या । संऽंजन्। देवानां । पाथः तुऽया । हवीषि । अ
| ˆ वनस्यतिः। शमिता । देवः । अभ्रिः । स्वरदैतु। हव्यं । मधुना । धृतेन ॥१०॥ ` ध
शे # # ऋणे म
| ` ह. वनस्यते युप त्मन्या । आत्मशब्दस्य तुत्तीयेकवचने यदेशः । मवेष्राद्यदे-
रात्मन इत्याकारलोपः । आत्मने वततुथतीवृतो प्रापे काले देवानामयाय पाथः
` पमलक्षणमनमन्यानि च हवींषि समंजन् सम्यग्वयक्तीकुरवैन् उपावसृज! उपागम्य ``
प्रयच्छ । गति्मताविति गतेनिंधातः । किंच वनस्पतिर्योऽयं यूपः शमितैतन्ना-
मको देवः । यद्वा शामिचोऽग्रिर्देवो दीप्यमान आहवनीयाख्योऽग्रिश्चेते चयो 01
मधुना मधुरेण धृतेन । यद्वा मधुनोदकेन प्रोश्षणोपनयनादिगतेन धृतेन चहव्यं
कि इवनयोग्यं स्वदतु । स्वादु कुवेतु ॥ इ ०
८ | (५ ॥ अथेकाट्शी ॥ ^
ध | सद्यो जातो वय॑मिमीत यज्ञमब्निर्देवानांमनवत्पुरोगाः। 5
| अस्य होतः प्रदिश्यृतस्य वाचि स्वाहाकृतं हविर॑द॑तु देवाः ॥११॥ `
। सद्यः! जातः। वि। अमिमीत । यज्ञं। अभिः देवानां । अभवत् । पुरःऽगाः।
। स्वाहाऽ कृतं । हविः! ख्दत्। देवाः
जायमान एव यज्ञं व्यमिमी
॥ऋष्वेद्ः॥
ए प्रशिघ्नं हविः सर्वे देवा खदंतु । भक्षयतु । इद्
सुसंधीयतां ॥
प
मनीषिण इति दशचै ादशं स्तं वेरूपस्याष्टादंष्टस्याै चेषटभमेदरं। तथा चा-
। मनीषिणो दशाष्ट इति । गतौ विनियोगः ॥
॥ त्तच प्रथमा ॥
षिण प्र भरध्वं मनीषां यथायथा मतयः संति नृण ।
इर सचिरेरंयामा वृतेभिः स हि वीरो गिवैणस्युविंदानः ॥१॥
मनीषिणः । प्र। भरण्वं । मनीषां । य्था ऽयथा । मतयः । संति । नृणां ।
। र सथिः। चरा । याम् । कृतिभिः । सः । हि । वीरः । गिर्वणसम
@ ~; हे मनीषिणः स्तोतारो मनीषां मनस ईशिवींस्दुतिमिंदराय प्र भरष्वं। कुरत,
` नृणां कमेनेतृणां युष्माकं यथायथा मतयः संति भवंति तथा वुद्धानुसारेण स्तुि
कुरुध्वं । वयं च कृतेभिः कृतैः सचियेथाथेमूतिः स्ोचैरिद्रभेरयाम । यज परत्यागम-
याम । ईर गतो । एयंतस्य त्मोद् । हि यतो विदानो जानानः समथः स द्रौ
गिर्वशस्युः । गीरिवेनंति संभजंत इति गीवैणसः स्तोतारः । वनतेरसुनि रूपं ।
उपपदस्य दीधाभावण्डांदसः। तदतात्क्यप् । क्याच्छंदसीत्युप्रत्ययः । स्तोतृन्कामय-
नः खलु । अतस्तमभिष्टूत ॥ क
त 1 ५ ॥ थ डित्तीया ॥ | 1, |
गर्यो वषो गोर्भिरानद्
|
। म० १०. ०९. सु० १११. ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ 39७ `
1
सूता धेनुगृषटिः। तस्या अपदं वृषभो गोभिः समानट् । संव्याभ्रोति । त्थेषोऽपि
¦ । सवै स्वमहिन्रा व्याभ्रोति तथा तविषेण । महन्नामेत्तत्। महता रवेण च्ब्देनो-
, टनिष्ठत्। उचित उन्दतोऽभवत्। अत एव महांति चि महत्यपि रजास्युटकानि
भुवनानि वा सं विव्याच । संव्याघ्नोति ॥ [ि
क्र ~ 4: -# अण तृतीया ॥ 7 ५,
` | इटः किल श्रुत्यं अस्य वेद् स हि जिष्णुः पथिकृत्सूयेय।
| ˆ आन्मेनौ कृखनर्यतो भुवन्नोः पतिंदिवः सनजा अप्रतीतः ॥३॥
1 इदः! किलं । शरुधि । अस्य । वेद् । सः। हि । जिष्णुः । पथिऽकृत् । सूयेोय। |
+ | >. ` आत्। मेनां ।कृखन्। अच्युतः भुव॑त्! गोः। पर्तिः। दिवः। सन ऽजाः। अभ्र॑तिऽइतः॥२।
1 अस्यास्मदीयस्य स्तोचस्य शरुधे रवणायेदः किलद्र एव वेद् । जानाति । स ५
| हिस ण्व जिष्णुः शचरणां जयशीलः सूयौय पथिकृन्मागेकता भवति । किंच ।
५1 अच्युतः शव्ुभिरगंतव्यो वृषणश्वस्य मेनामात्मानं कृणन् कुवेन् इद आत्। आगच्छ ८
आ त्यस्मदीयं यज्ञं मेनाभवो वृषणश्छस्य सुक्रतो । १.५१.१३.। इति मंचाततरं । अस॒ = = `
क गतिरीघ्यादानेषु । भो वादिकः। - - 1 दिवो दयुत्टोकस्य चं पतिवत्! अभूत् भव- =. _
{ , तैर्ठट्। वाक्यभेदादनिघातः ॥ #
1 ` ॥ अथ चतुथी ॥ ४ न
1 इदौ महा म॑ह॒तो अंणैवस्य वरत्तामिनादंगिरोभिगणनः। ` | #
{ पुरूणि चिन्नि त॑ताना रजासि दाधार यो धरुणं सत्यत्ताता ॥४॥ क
अ दः । महा । महतः । अणैवस्यं । चता । अमिनात्। अंगिरःऽनिः। गृणानः। ` 1
१ ॥ कने ए णी म्म 7 री चणकः
नितोभिच्षिनिनणानः लूयमानः सन् महतोऽणौवस्य। अशौसः
चरता व्रतानि कमाणि महा
डि मीनातेनिंगम इ
शह पुरूणि । चित्। नि । ततान । रजासि। दाधार । यः। धरणं । सत्यऽताता॥४॥ =. |
5
त
, ३७४ ॥ ऋग्वेदः ॥ [० ४, ख०६, व०११.
( | * ` ॥ थण पंचमी ॥ `
दं दिवः प्र॑तिमानं पृथिव्या विश्वा वेद् स्वना हंति मुष्णं ।
महीं चिद्यामात॑नोत्सू्यण चा स्कंभ॑ चि्वंभ॑नेन स्कभी यान् ॥५॥ |
५
इदः । दिवः । प्रतिऽमानं । पुथिव्याः। विश्वं । वेद् । सव॑ना । हंति । शुष्णं ।
[स # नि च्यः,
मही। चित्। द्यां । ्रा। अतनोत्। सूर्यणए। चास्कभ॑। चित्। स्कमनेन। स्कभीं यान् ॥५॥
दिवो द्युलोकस्य पृथिव्याश्च प्रतिमानं महेन प्रतिनिधिररिदौ विश्वा सवीशि
सवना सवनानि वेद् । सोमपानां जानाति । भुष्णं सर्वस्य शोषक्मेतन्रामा-
~ नमसुरं हंति। वाक्यभेदादनिधातः। सपि च। महीं चिन्महतीमपि द्यां सूर्येणा-
तनोत्। सवेच प्रकाशयुक्तामकरोत्। स्कभी यान् स्क्भयितृणां मध्ये चेष्टः स स्कभनेन
चिन्निरोधनसाधनेन सामर्थ्यनेव चास्कभ् । द्युतोकमवरूदमकरोत् । सभिः सो-
धातुः । लिटि तुजादीनासिति दीषेः । चित्वभनेनेत्यच संहितायां सत्ोपः
` त्म्य स्तभरुट्ः स्थास्तभोरिति सत्ोप उक्तः । चित्पूवेस्य स्कभेरपि भवति
1 ंटोविषयत्वात् ॥ ६. हि
4 त ॥ इत्य्टमस्य षष्टे टशमो वेः ॥
0 ॥ अथ प्रष्ठी ॥
वजैण हि वुंहा वृचमसरदैवस्य मुप्मुवानस्य मायाः
विरभृष्णो च॑ धृषता ज॑घंथाथाभवो मधवन्वा्ौजाः ॥६॥
` वज्ेण। हि। वृचऽहा। वृचं । अस्तः । अटैवस्य । मुष वानस्य । मायाः।
। अच।धृषता। जघंय। अथ । अभनवः। मघऽवन्। बाहु ऽं जाः॥६॥
वृचमलः। अलृणाः। अवधीः । लृणा- =`
॥ म०१०.अ०९.सू०१११.] = ॥ अषटमोऽष्टकः ॥ ३७९... "<
.. ४ अ ०» १ ॥ सय सघ्मी॥
॥ सच॑त यदुषसः सूर्यण चिताम॑स्य केतवो राम॑विंदन्। ४
॥ आ यन्न ट्ह॑शे दिवो न पुनंयैतो नर्विरद्वा नु वेट् ॥७॥ 4 4
| . सच॑त । यत् । उषसः । सूर्यण । चित्रां । खस्य । केत व॑ः । रां । अविट्न्।
4. ` आ। यत्। न्च । दशे । दिवः। न । पुन॑ः । यत्तः नकिः । अद्धा । नु । वेद् ॥७॥
५
र यद्यटोषस उषःकात्ाः सूर्येण सू योत्मकेनेदरेण सचंत संगच्छते । सच समवाये
५९ भौवादिकः । तदानीमस्य स्वभूता; केतवः सवस्य प्रज्ञापका रश्मयश्चित्रां नाना-
शि वरी रां रायं चियमविंटन् ! अलभंत । पुनरुटयानंतरं यद्यदा दिवो नकषच न |
दहे न दृश्यते । हणेः कमणि लिट् । यद्योगादनिधातः। तदानीं यततः । शतस्य
शसि शतुरनुमो नदजादी इति विभक्तेरुदा्त्वं । सवच गच्छतोऽस्य रष्मीन्रकिनं
` : कश्चिन्न वेद्। जानाति । एतदा सत्यमेव ॥
४ ॥ खअथाष्टमी ॥
| ८ दूरं किं प्रथमा ज॑ग्मुरासामिंदरस्य याः प्र॑सवे ससुराप॑ः
"अ ह स्विदयं # वुभर आंसामापो मध्यं कं वो नूनमंत॑ः ॥४६॥ |
1
५ दुर । किलं । प्रथमाः । जग्मुः । आसां । इदस्य । याः। प्रऽसवे । ससुः । आप॑ः ।
¢ ं। स्वित्। अमं । क । बुधः! आसां । पः । मध्य । कं । वः । नूनं । अंतः ॥४॥ ==
भि [५०५
५५
1)
` आसामपां मध्ये प्रथमाः प्रथमगामिन्यस्ता आपो दूरं किल जग्मुः । दूरमेव
गताः । या आप इदस्य प्रसवे प्रेरणे । षू प्रेरणे । जवसवो चेति वक्तव्यमित्यप-
वादेऽच्। थायघञ्क्ताजविचाणामिवयु्तरपदांतौदात्ततं । तस्याज्ञायां सखुः। सर
गद्छंति खलु । अथ प्रत्यक्षकृतः। हे आप आसां युष्माकमयं कृ स्वित् । कु
+ वतते नुप मूलं च क । तथा वो युष्माकं मध्यं च क नूनमिदानीं
तोऽवसानं चक्र । स्ेगततादनिज्ञायमानगमना आसन्नित्यथेः । क । किम्शव्दात्
तीति कादेशः । तित्स्वरितः। सतः
44 अह - ॥ ऋण्बेट्ः ॥ ` [अ० ४, अ० ध. व०१५.
४५ ॥ अथ नवमी ॥ "म व
आदिदिताः प्र विविजे जवेन॑।
८ ऽधेदेता न रमंते नितिक्ताः ॥९॥
जयसानान्। खात् । इत् । एताः । प्र । विविजे। जवेनं ।
क मुमुचे अध॑ । इत्। एताः। न । रमते । नि ऽ तिक्ताः ॥९॥ ५
ईद् अहिनाहंतवयेन वृचेण मेधेन वा जयसानान्। मस अदने! अनुदातेत् ।
छंदसि लिटः कानच् । यस्ताः सिंधून् स्यंदमाना अपः सृजः । असृजः, निरण-
(0. यः । आदित् । इदवधारणे । ञ्नंतरमेवेता आपो जवेन वेगेन प्र विविजे। ` क
2 सर्वाल्यतं चलिता बभूवुः । ओविजी भयचलनयोः । उदाचतेत् । ए्ठिरीर्यो 3
1 पा०६.४.७६.। इतीरयो रे आदेशः । उतापि च । मुसुष््माणा इद्रेण मोचयितु-
भि्माणा या आपो मुमुचे । इद्रेण मोचिता अभूवन् । सुचेः कमणि लिद्। त
| अथेदनंतरमेव नितिक्ा नितं णुद्धा आपो न रमति । एकच न क्रीडते । क्तु 1
सवच गमनशीला इत्यथः ॥ (1
- ॥ अथय ट्शरमी ॥
सप्रीचीः सिंभुशतीरिवायन्सनाज्नार आरितः पूभिद्सां । न
॥
अस्तमा ते पार्थिवा वसुन्यस्मे जग्मुः नृता ईद् पूर्वीः ॥१०॥
| | ध (1 सथीचीः | सिंधु । उशततीःऽईव आयन्। सनात्। जारः आरितः | पूःऽभित्। मासां । हि
पार्थिवा । वसूनि। अस्मे इतिं । जगमुः सूनृताः इद् पूर्वीः ॥१०॥ =`
प्। अल्मोपदीरघो । वा दंदसीति पूवेसवणेदीधैः।
धुं समुदं भतारमायन्। आगच्छन् । तच दर्टातः।
म०१०. ऋं०९. सू०११२.] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥
छ इद् पिवेति दशचै चयोदशं सूक्तं बेष्टुभमिद नभःप्रमेदनो नाम विरूपगोच
॥ ऋषिः तथा चानुक्रम्यते । इद्र पिव नभःप्रमेदन इति । गतो विनियोगः॥
[ह
8 १.५
„६. । ॥त्चप्रथमा॥ - `. `
` इट् पिव परतिकामं सुतस्य परातःसावस्तव हि परूबैषीतिः। . . `
हषैस्व हंत॑वे शूर शवूनुक्येभिंशे वीयेर॑प्र नैवाम ॥१॥ - ` ` -*
इद् । पिव । प्रतिऽकामं । सृतस्यं। प्रा्तःऽसावः। तव॑ । हि । पूवेऽपींतिः।
हषैस्व । हंत॑वे। शूर । वन् । उक्थेभिः । ते । वीये । प्र। बरवाम् ॥१॥ _
हे इद् लं प्रतिकामं ये ये कामास्ता्ान्प्रति । अव्ययीभावसमासः । तस्य स्वरः |
| यथेच्छं सुतस्याभिषुतस्य यो भागस्तुभ्यं दातव्यस्तं पिब । आमंचितस्याविद्यमानवेन
दादित्वादनिधातः। प्रातःसावः प्रातःसवनेऽभिभूयमाणः सोमस्तव हि । तृतती-
यार्थे षष्ठी. ! त्येव पूवैपीतिः प्रथमत्त एवं पातव्यः। यहा प्रात्तःसावः । सप्तम्याः
मुः । प्रातःसवने तवेव प्रथमपानं खलु । रेद्वायवयहे ह्यादित ण्वेदरः पिवति। `
तत्पुरुषे दासीभारादित्वात्पूवैपदातोदा्तत्वं । यद्वा. वहुव्रीहिः । ततो हे भूरसमथे `
ं शचृन्हंतवे हंतुं हषैस्व । ष्टो भव 1 अथ ते तदीयानि वीये वृहननादिल-
सणानि वीयोर्युक्थेभिरक्थेः शसः प्र ब्रवाम । प्रकषण वदाम ॥ = .
2 , . | ॥आयहित्तीया॥. ~. 1 1 6
यस्ते रथो मन॑सो जवीयानेद् तेन॑ सोमपेयाय याहि। ` .. ५.
| तूयमा ते हरयः प्र दरवत येनियोसि वृष॑नि्ेदमानः ॥२॥ ` कि:
` यः ते । रथ॑ः। मन॑सः) जवीयान्। आ । इट् । तेन॑ । सोमऽपेयाय । याहि. `
1 प्र दूव॑तु। येभिः । यासि! वृष॑ऽभिः। मंद्मानः ॥२॥ ..
ोऽपि जवीयानतिश्येन गंता ते लदीयो यो रथोऽस्वि तेन रथेन
दीयं सोमं पातुमा याहि । आगच्छ । पा पाने । भावेऽचो
आर्थधाहुकलकछषणो गुणः
धधा
रं | ` ॥ ऋग्वेदः [खअ० ४, अ० ६, व०१२.
` “~ ॥अधतृत्तीया॥ . ।
हरित्वता वचसा सू्ैस्य चेष्टं रपेस्न्वं स्पशेयस्
अस्माभिर सखिंभिहवानः संभ्रीचीनो मादयस्वा निषद्य ॥३॥ ` `
हरित्वता । वचसा । सूथैस्य । चेः । रूपः । तन्वं । स्यशेयस्व ि
अस्माभिः । इट् । ससिंऽभिः। हुवान; चीनः। माट्यस्व । नि ऽसद्यं ॥३॥
रर , क्न क्ण श्तेः शर कभु । के प
हे इद हरित्वता । हरिच्छब्टान्मतुपौ खय इति वत्वं । हरिदणेयुक्तेन सू येस्य वच॑सा
तेजसा तत्सदः चेष्टे: प्रशस्यतमेरात्मीये रूपेस्तन्वमात्मीय शरीर मदीय वा । यडा
तायत इति तनूयेज्ञः। तं स्यशेयस्व । तेजोयुक्तं कुर । किच । सभीचीनः। विभा-
षांचेरदिर्स्ियामिति खप्रत्ययः । मरन्निः सहांचनसत्वं सपिभिः सखिभूतैरस्मा-
भिहंवान आहूयमानः सन् निषद्य यज्ञे निषसो भूत्वा मादयस्व ।
र
हृष्टो भव ॥ क. ४
6. अथ चतुर्थी ॥ ५. ५ |
यस्य त्यते महिमानं मदेषिमे मही रोदसी नाविविक्तां। `
तदोक आ हरिभिरिद्् युक्तेः प्रियेभिंयाहि भरियमन्नमच्छ॑ ॥४ १५.
, भके ५५ जि ` ५ ॥ ॥
यस्य॑ ।त्यत्।ते। महिमानं मरदषु। इमे इति। मही इतिं । रोद॑सी इतिं। न । अविविक्त ।
तत्। ओकः। आ । हरिंऽभिः। ईद् । युक्तः । प्रियेभिः। याहि। प्रियं । अनतं । स्ख ॥४।॥
महत्यो रोदसी चयावापृथिव्यौ यस्य ते तव सोमपानेन
महिमानं नाविविक्तां न पृथक्कुरुतः.
यद्योगाटत्तिधातः। प्रियेभिः परियतमे
९ ५ ९ र
म० १०, ख० ९. सूर ११२. | | न ८
यस्य यश॑त्। पथिऽचान्। इट् । गरन् । अननु ऽकृत । रयां । चक ।
सः ते। पुरैऽधिं। तविषी । इयति । सः। ते। मदाय। सुतः। इद् । सोम॑ः ॥१॥ =
। इ इट् पधिवान् । पिकः कसी वालेकाजाङ्सामितीडागमः। सोमं पीत- ==
वांसं । अनानुकृत्यानुकरणरहितेन सकृरहारेण शचुहननसमर्थन रण्या सायुगी- `
नेनायुधेन। रणशब्दात्साध्व् प्राग्धितीयो यत्। यस्य यजमानस्य शचरूज्गण्वइहु वार
चकथं हतवानसि । कृञ् हिंसायां । लिटि थलि यद्योगादनिधाते लि्स्वरः । स
यष्टा ते तदथं तविषं महतीं पुरंधिं वहीं स्तुतिमियतिं । प्रेरयति । ऋ गतो ।
जौरीत्यादिकः। अर्तिपिपर््योसत्य्यासस्येत्वं । अभ्यासस्यासवणे इतीयङ् \ हे इट
सुतोऽभिषुतः स सोमस्ते मदाय समर्थो भवति । य्वा । स यष्टा सुतः सोमः ।
मुव्व्यत्ययः । खभिषुतं सोमं चन्मदाय प्रेरयति ॥ ` [त
क
॥ इत्यष्टमस्य षे बादशो वर्गैः ॥ =. _ . ..
| | वक्यषी॥
भ न
पूरं आहावो म॑रिरस्य मध्वो यं विष्व इर्दमिहयेति देवाः ॥५॥ 4
` इदं ।ते। पाच । सन॑ऽविं । इद्र । पिवं । सोमं । एना । शतक्रतो इतिं तऽक्रतो। =
पणेः! स्ाऽहावः। मर्दिरस्य मध्व
: । यं । विश्वं । इत् ।
अभिऽ हंति । देवाः ॥६॥
१ हे इट् ते ल्टथे पाचं चमसादिर्क सनविकं । अस्माभिश्िरादेव त्टग्धं । विदु =
लाभे । कमेणि निष्ठा । हे शतक्रतो बहू कर्मननिदेनेतेन पाचेण सोमं पिव, यि.
मदिरस्य मदकरस्य मध्वो मधुनः सोमस्याहावः पानस्थानीयपाचविभेषः पणेः
पूरितौ [रता ऽभूत् । देन् स्यधोायां। निपानमाहाव इति निपातितः, स्तुतिभिराहूयम ॥ 1
| देवा अच सोमं पिब॑तीति। थाथादिस्वरः। यमिद्यमा हावमेव विश्वे सव
भहय यते । हय गतिकात्यौः । भोवादिकः । यद्योगाच्चिंडो
4 ` ` ॥ऋण्वेद्ः॥ ` [ऋ०४, छ 3.
1 | | \ त्वां । इद् । पुरुधा । जनासः । हितऽप्रयसः । वृषभ । इयते,
1. । ते । मधुंमत्ऽतमानि । इमा । भुवन् । सव॑ना । तेषु । हये ॥७॥ `
| | । वृषभ कामानां वषैक हितप्रयसः । प्रय इत्यन्ननाम । प्रीणन कास्त्वात् । |
| ~ विविधमाद्भयंति। दञ् स्पधायां । निसमुपविभ्यो इ इत्यात्मनेपदं । अस्माकं स्वभू-
। तानीमेमानि सवना सवनानि तते चदथे मधुमत्तमान्यतिश्येन सोमवंति भुवन् ।
|| अभवन् । तस्माच्चं तेषु सवनेषु हयै । सोमान्कामयस्व ॥ `
[~ ~ ~ ~. पनामी +
(| : प्रतं इद् पृव्याणि प्र नूनं वीयां वोचं प्रथमाकृतानिं।
| सतीनम॑न्युरच्रथायो खरि सुवेदनामकृणोबरेदणे गां ॥८॥
| | प्र।तै। इद् पू्याणिं। प्र। नूनं । वीये । वोचं । प्रथमा । कृतानि,
(4 सतीनऽम॑न्युः। ्च्रययः। अदि । सुऽवेटनां । अकृणोः । ब्रहय॑णे। गां ॥४॥
||| [| 0; हे डदरते तदीयानि प्रथमादितः कृतानि पूव्यि पुरातनानि च वीयौ वीयीणि
॥ ¦ ॥. नूनमिदानीं प्र वोचं । प्रक्वेण वदामि । एकः प्रशब्दे; पूरणः । वोचं । त्दुड |
ध ्रडः। कानि तानि । सत्तीनमन्युः। सततीनमित्युदकनाम । उदकाभिवषे- `
| । शबुदियुक्तस्वमदिं मेघमच्ययः। वजेणाहिसीः। बरह्मणे बृहस्यत्ये गां पणिभि-
| रणहतां सुवेदनां सुषु ज्ञापनीयामकृणोः। अक्ोरि्यादीनि॥
} | || ॥)
1 (| | ॥ , । ५ ध । । \
| ॥/ ॥ ॥ ^ २५ ५ ५ ४ ^ + 8
४ \\ |॥ ४ ^ : । ननः ; ५ ध
1 || |, ए. । । ५
| (| ॥ (॥ 4. ( ; ५५ / ४ 1 # ॥ \ \
0 निषु णएपते गणेषु त्वामाहुविप्रतमं कवीनां । ए १ ए |
महामे म॑घवञ्विचर्मच ॥९॥
ववति
म० १०. छ० १०. सू०११३.] ॥ अष्टमो मो ऽ टकः ॥ उण्पं
मकेमचैनीयमस्रदीयं चिवृत्पंचदशादिलक्षणं स्तोमं चिचं नानारूपं कृत्वाच ।
. पूजय । विधेहि । अचे पूजायां । भोवादिकः ॥ कक 1
` १ अच द्शनी।
अभिख्या नो मघवन्नाध॑मानान्ससं बोधि व॑मुपते संसीनां । ४ ~
रणं कृथि रणकृत्सत्यमुष्माभ॑क्ते चिदा भ॑जा राये अस्मान् ॥१०॥
अभिऽख्या । नः! मघऽवन्। नाध॑मानान् । सख । बोधि । वसुऽपते । सखीनां ।
रणं । कुधि। रणऽवृत्। सत्यऽभुष्प । छभ॑क्ते। चित्। आ। भज। राये। अस्मान्॥१० ॥
¢ ५
हे मधवन् धनवचिदर नाधमानान्। नाधृ नाय याचोपतपेश्वयाशीःषु। नो-
वादिकः। अनुदाचेत्। याचमानानोऽस्मानभिख्याभिख्यापनेन तेजसा युक्तान्कुर ।
। प्रसि्यान्वा कुर । हे सखे धनदानेन हे वसुपते वसूनां स्वामिन् त्वं सीना स्तोत्-
` वेन ससिभूतानामस्माकं स्वभूतानि स्तोचाणि बोधि । बुध्यस्व । बुध अवगमनं ।
भौवादिकः कोटि खोदसः शपो तुर्! इटस्युभययेति हेराधंधातुर्त्वेनाड्लिा-
टडिम्तश्चेति हेधिभावः। अत एव गुणः । सावेधातुक्त्वेन डि्लादतोदात्ततवं । वण-
गेपणं दसः । हे रणकृत् शुभिः सह युद्धकतेः अत एव हे सत्यमुष्म यथाथं- ति न „ |
बलोपेत लं रणं कृधि । कु ! शवृ्गहि ! करोतेर्त्रोटि शुमृणुपुकृवृभ्यग्छट्सीति ५
हेधिः। विच । अभक्ते चिदसंभजनीये स्यानेऽपस्मान्राये धनाया भजा । भागिन
“ कृरु द्मचोऽतस्तिडः इति संहितायां दीधेः॥ ५
ग ॥ इत्यष्टमस्य षषे जयोदशे वगः ॥ = _ -
। . ॥ इति स्ायणाचार्येविरचिते दाशतय्यां ट्श्मे मंडले नवमोऽनुवाकः ॥ १
शमेऽनुंवाङे षोडश सूक्तानि । तच तमस्येति दशचं परथमं सूक्तिं । शत-
नाम वैरूप च्छषिः । अत्या चिषटुप् शिष्टा जगत्यः ! तथा चानुक्रोतं
भ ,
द्शगचस्याष्टमेऽहनि म॑रूत्वतीय
नुवदिति मस्ूत्तीयं । आ
प्रजेदनस्विष्टवंत्तसिति ॥
तमस्य चावापृथिवी
॥ |
॥ ( ॥ 1
|. . ` ॥ ऋग्वेदः ॥ .
` तं। अस्य । द्यावापृथिवी इतिं । सऽचे
भेदो = शिकषि चगि
| यत्।रेत्। कृएानः। महिमानं । इदि । पीलौ । सोम॑स्य । ऋतुंऽ मान्। अवधेत ॥१।
| ` सचेतसा सह चेतयंत्यो द्यावापृथिवी द्यावापृथिव्यौ विश्वेभिः स्वेभिः स्वर्दवैः `
| ` सह। स्य, उन्वदेशेऽशदेशोऽनुदाचः। एतस्यदूस्य तं शुष्मं शचरूणां शोषकं बल-
| सन्वावतां। रतां । तस्य बलं पूवैमस्मान्तु। पश्चादेते अपि रछतामिति भावः।
| अकटड्। कृणखानो वृ्वधादिकं कुवाणः स. महिमानमिंद्रियसिंद्रस्यात्मनः
| पयैप्तं वयै च यद्यदत्माभोत्। इण् गतौ । ्रादादिकः । आडजादीनासित्याडा-
| गमः। तदा क्रतुमान्कमेवान् स सोमस्य # सोमं पीत्वावधेत । क्रियामहणं
| करव्यमिति कमेः संप्रदानसंज्ञा । चतुष्ये्ं बहुलं ची । `
|| कनात््याटयशचेति निपातितः ॥ ` | अ
॥ अथ हित्तीया ॥ 1
| | म्य विषुमेहिमानमोजसामु दथनानमधुनो वि र्॑ये । `
८ देवेभिर मघवां सयावंभिवृचं ज॑र््वौ अंनवहरेण्यः ॥२॥ = `
॥ तं।अस्य। विष्णुः! महिमानं । ओज॑सा । अंगु । ट्धन्वान् ¦ मधुनः। वि । रप्शते ।
|| देवेभिः। इटः मघऽवा । सयाव॑ऽभिः। वृचं । जघन्वान् । अभवत्! वरेणयः॥२॥ `
विष्ण्रेतन्रामकः। व्याप्नो यज्ञो वा। मधुनो मद्करस्य सोमर्स्याभुं तताड
॥ | ^ व | ( टथन्वान् प्रेरयन् । धवेगत्ययेस्य क्साविदि चानुमागमे कृते वल्लि लोपः, सोजसा
3 सर्वर्थेण संजातमस्येदस्य तं महिमानं वि र्ते । विविधं शब्टयति । स्तौति ।
यातेरात्तो मनिन्बिति कनिप्। सहगंतृभिर्दवेभिर्दवेम-
| | /
॥ | त
॥ ः
॥ {
॥
॥ | ८ . ६ । '
| सव वेरणीयः संभजनीयो > भवत् ॥
अष्टमो ऽकः ॥ ३४७9
म० १०.०१०. सू० ११३.
वुचेण स्म
घोरिचचेति सिचः किचभिकारश्वा तदिशः । हइस्वादंगादिति सिचो लोपः । यद्यो- `
गाटनिघातः। तिङि चोदा वतीति गतेनिंघातः। तदाविदे । कृत्यार्थे केनप्रत्ययः।
थाः सहास्थाः। तिहतेदडिः समवप्रविभ्यः स्य इत्यात्मनेपदं । स्था-
1
तव वृचवधादिकं वीय प्रजलापयितुं शंसं । अशंसं । शततेरहं स्तौमि । शंसु स्तुतौ '
ङः। वाक्यभेदादनिधातः। किंच । हे उमोद्ूणेवत अचास्सिन्काल एव ते त्वदीयं
महिमानमिंद्वियं वीये च विश्वे सर्वे मरूतस्मनात्मना सहेवावधेन् । वणेलोपः
ग्लांट्सः । अवधेयन् । मरुतौ हीद्स्य वीये नवति ॥ _ ।
ऋय चतुर्थीं ॥
धः प्राप॑श्यदीरो अभि पैस्यंर्ण। ॥
जज्ञान एव व्यवाधत् स्पृध
अवृयदद्विमवं सस्यदः सृनदस्तनानरकै स्वपस्यया पृथुं ॥४॥ ॥
जज्लानः। एव । वि। अवाधत् । स्पृधः प्र! अपश्यत् । वीरः! सनि चैीस्ये।रणं। |
अवं श्चत्। अदवि। अवं । स ऽस्यदः। सृजत्। अस्तभ्नात् नावं । सुऽ अपस्यया । पृथुं ॥8। ८
स इटो जज्ञान एव । जनी प्रादुभावे । खांदसस्य ल्विटः कानच् । जायमान
एव स्पृधः शचून्यवाधत । अत्यथेमपीडयत् । स्पृधः । स्यौ संघषं । कप् । अपः
स्पृभेयामिति निपातनेनैकव संप्रसारणदट्शेनाटचरापि भवति । अत एव वीरः `
समथः स रणं संमामभिलष्य पँस्यमात्मीयं बल प्रापश्य . |
मिति प्रक्वेण पश्यति। जानाति। विच । अद्रि मेधमवृश्चत्। वषेणाथमच्छिनत्।
अनंतरं सस्यदः । स्यंट् प्रसवणे । क्किप् । शसि नलोपः । सह स्यदमाना ऋअपोऽब :: `
। सुजत् । अवाङ्बुखमसृजत् | निरगमयत् । तणा पृथु मातं लाकं द्युत्रोकं प ५ ^
` स्वपस्यया । सुप आत्मनः क्यच् । अ प्रत्ययादिति स्वियामप्रत्ययः। ोभनकर्मेख- `
३४४ | ॥ ४ ॥ ऋण्वेटः ॥ र | ५ [० ८, चपर | 9 तप,
टपि च स इंदस्तविषीमहतीः सेनाः सचा संह वापत्यत । अगच्छत् । पट्
गतौ । देवादि
मीश्वरोऽभवरित्यथैः । स एव द्यावापृथिवी द्यावापृथिव्यो वरीयः । तृत्तीयायाः
सुः ! उरुतरेण महि्नावाधत । तयोरंतःस्थिताञ्छनून वधीदित्यथेः । धृषित; शतु
वे प्रगस्भः सन् आयसमयोमयं वजमवाभसत् । खधार्यत् । किमयं । सिजाय
हणाय दाभुषे हविदेहवते यज्वने च शेवं सुखं क्तु ॥ `
| ॥ इत्यष्टमस्य षे चतुदेशे वगः ॥ =
॥ अथ षष्टी ॥ |
टस्याच तविषीभ्यो विरप्शिनं ऋघायतो अरंहयंत मन्यवे ।
वुचं यदुम व्यवुंश्वदोज॑सापो विधं तम॑सा परीवृतं ॥६॥
॥
। अचं । तविंषीभ्यः। विऽरप्णिनं; । ऋघायत्तः । अरहयंत । मन्यवे ।
५ |, ति 1 @ ष ष ति, ।
श
वृचं। यत्। उयः। वि। अर्व त्। ओज॑सा । अपः। विभरतं । तम॑सा । परि ऽ वृतं ॥६॥
अचास्िन्काल एव विरप्शिन महतो विविधं शब्दायमानस्य वधोयतः
शचृन्हिसत इद्रस्य तविषीन्यः । षष्ठ्यथ चतुथी । बल्ानां मन्यवे प्र्यापना-
यारंहयंत। आपो निरणच्छन् । रहिगत्यथेः। उय उद्रणेः सोऽप उटकानि बिभतं
धारयंतं तमसा परीवृतं परितो वेशितं । वृणोतेः कमणि कः । गतिरनतर इति
स्वरः । संहितायामुपसर्गस्य घि । पा०६.३.१२२.। इति दीधेः । तं वृचं यद्य-
स्िन्काक ओजसा स्ववीर्येण व्यवृश्चत् खत्ययेमवधीत् ॥ `
९
चचवत्मी 4
|
` महा पूवैहता वपत्यत
मं० १०. ऋं० १०. सू०११३.] ॥ अष्टमो
हते सति ध्वांतमतिनिविडं तमोऽव दध्वसे । ख वध्वस्तं विनदटमभूत् । ध्वसेतिरट् ।
कित्वाबल्रोपः । इटूसतु महा स्वमहिन्ना पूवैहूतो प्रथमाड्धाने ऽपत्यतत । अगच्छः
शूणणां मथ्येऽयमेव प्रथममाहूयमानोऽनवदित्यथः ॥ ==
प
| 2 ऋपाहमी ४...
विश्व देवासो अध वृष्ण्यानि तेऽ व॑धेयन्तसौ्मवत्या वचस्ययां। ` ५
रङं वृचरमहिमिंदस्य हन्म॑नाम्िनं जंभंसषवन॑मा वयत् ॥४। 7
विर, देवासः । अध॑ । वृष्ण्यानि । ते । अव॑धेयन् । सोम॑ऽवत्या । वचस्यया |.
भलि भनि, धेत
. रं वृचं। पिं इदस्य । हन्मना । अभिः । न्। जंभेः। तृषु । न्नं । पावयत् ॥४॥ 1
- हे इद् अध वृचहननानंतरं विश्वे देवासो देवा ऋत्विजः सोमवत्या सोमयुक्तया
वचस्यया स्तुतीच्छया ते त्वदीयानि वृष्ण्यानि बलान्यवधयन् । वधेयंति । इट्स्य
हन्मना हननसाधनेन वजेण रं । रध हिसासंयद्यीः । हिंसित्तमहिं वृचमपामा- =
वरकं मेधं तृषु शीभ्रमन्मा वयत् । खभयत् । तज्जन्येनोदकेन संपादितमनंजनो
ऽभस्षयरित्यभेः । आवयतिर्तिकमो । तच हृ्टातः। अमिन । यथामरिजभेरात्मी- `
येरैतेरन्ं भयति तडत् ॥ [ए ५
व ` ॥ अथय नवमी ॥ । व | =
इटो धुनिं च चुमुरिं च दंभय॑ञ्छञ्ामनस्या मु ते दभीतये ॥९॥ क
भूरि । दसषैभिः। वचनेभिंः। ऋक्ंऽभिः । सस्येभिः । सख्यानि । म्र! वोचत।. ` .
इदः धुनिं । च । चुमुरिं । च । दंभय॑न्। शचडाऽ मन्या । गृषुते। द्रत ॥९॥ =
कधि ५ " ऋते = सवके
तारो द्ेभि्वधेनहेतुभिचछकमिः । ंदसीवनिपाविति वनिप््रत्ययः
पदत्वात्कुत्वं । मंचयुक्तैः सख्येभिः तदहेतीत्य
दितेन भाज्जस्वानावः । पद म
तं पुरूण्या भ॑रा स्वच्या येभिभेसेनिवचनानि शंसन् ।
' सुगेभिविश्वां दुरिता तरेम विदो षुं णं उविया गाधमद्य ॥१०॥ ।
॥ । #
| लं पुरुणिं। आ। भर। सुऽञच्च्या । येभिः । मसिः । निऽवच॑नानि ! शंसन् ।
| भु ध ॥ ॥ द
. सुऽगेभिः, विश्वां टुःऽइता। तरेम विदो इतिं! सु। नः। उविया। गाधं । अद्य ॥१०॥
। ॥ & अषि ॥ [त
५ ॥ कष्य चकि चोः +.
. हि डद लं स्वश्या स्वच्यानि शोभनाश्वयुक्तानि पुरूणि वहूनि धनानि मद्या
भर। आहर, प्रयच्छ। निवचनानि नितरां वक्तव्यानि स्तोचाणि शसन्बहं येभिधे-
५ नेसे । मन्यतिरच॑तिकमो । देवान्पूजयानि तानि देहि । मन्यतेर्ठटि बहुल हंद-
सीति विकरणस्य ल्ुर्। सिणडागमः। सिपः पिचेनानुदाचत्वाद्वातुस्वरः। सुगेभिः
सुषु ग॑तथेतेधनेः स्तोतैवो विश्वा सवेणि दुखिता दुरितानि पापानि तरेम । हे
` इद अद्यास्मिन्कमणि गाधं मथ्यमानं क्रियमाणं नोऽस्मदीयं स्तोचमुवियोरुतवेन
| बहुमानेन सु सुषु विदो। विद् उ। जानीद्येव ॥
॥ इत्य्टमस्य षष्ठे पंचटशो वर्गैः ॥
धर्मेति दश्च डितीयं सूक्तं । सधिनैम वैरूप ऋषिः । तपसः पुचो घर्मो वा ।
चतुर्थीं जगती । शास्तिः । तथा चानुक्रातं । घम सभिस्तापसो वा घर्मो
वैश्वदेवं चतुर्थीं जगतीति । गतौ विनियोगः ॥
4
ब ॥ तच प्रथमा ॥
1 चिवृतं व्यापतुस्तयोजु्ि मातरिश्वा जगाम ।
५ # ^ ५ ¢ ५ ५ # ५
न्विटुर्दवाः सहसामानमके॥१॥ `
आपतुः । तयोः । जुट । मातरिश्ां। जगाम ।
ति | । | । सि |
देवाः । सहऽसां
+"
व
। लेभिरे । प्रापुः । तदा दिधिषाणा लोक
धारणशीत्कासते दिवो द्युत्दोकस्य सं बंधि पय उद्कमवेषन् । व्याघ्नवंतः । ववषु
सित्यथैः। दिवस्पय इत्य षष्ठयाः पतिपुतेति सत्वं । दिधिषाणाः। धिष धारणे ।
चानश् । शपः शुः । यद्वा. धि धारणे । सनंतस्य चानश् । अज्मनगमां सनीति
दीधाभावष्डांदसः। यद्ला समंतो संगतो घमो स्वयं दीप्यमानौ जी
गजस्तमोगुणात्मिसां मायां व्यापतुः। नियतृनियंत्तव्यभावेन मातरिश्वा परमा- 0
त्मा तयोजैषटिं संभोक्तव्यपदार्थेः संजाता प्रीतिं जगाम । गतवान् । तं परमात्मानं
वेटमयभिमं सूयेमिति देवा जानंति ॥ #
॥ 44 ‰
४ ॥ अथय इडित्तीया ॥ ` ^
~ तिस देष्टाय निच्छतीर्पासते दीर््युतो वि हि जानंति वह॑यः। `
तासां नि चिक्युः कवयो निदानं पेषु या गु्येषु वरतेषु ॥२॥ क क
तिसः देष्टायं। निःऽछतीः। उप॑ । आसते । दीधेऽश्ुतः। वि। हि। जानंति । कया -::: ;
तासाँ । नि । चिक्युः । कवय॑ः। निऽदानं । पेषु । याः । गुद्येषु । तरते ॥२॥ `
निच्छैततीः । पृथिवीनामेततत् । अनेनेतरत्लोकावुपलष्येते । तचाधिषठिताल्ति-
सरोऽग्न्यादिदिवता देष्टाय हविषां प्रदानायोपासते । यजमाना उपासनं कुवते । ४
ततो दीश्ुतः प्रभूतकीचैयो वहयो जगतः प्रापिकास्ता देवता वि जानंति । एतैः
` कृतामरुपासनां मन्वत एव । यद्वा निकैतीः । निःरेषेणच्छैति गच्छतीति निच ध
त्यः। तास्तिखः सृष्टिस्थितिसंहृतीर्ष्रायात्मनः कमेभोगदानायोपासते ते ती्ंश्चुतो र
दी संसरि भ्खंतो मेतव्यहश्यादिपदा्ं जानतो मंचहच्यादिरूपमजानंतइत्य्ेः। = `
अत णव वहूयः संसारस्य वोढारस्ता न जानंति । कवयः क्रातदरिनस्तु तसां
सृष्टां निदानं मूलकारणं परमात्मानं नि चिक्युः । नित्तरं
नामग्न्यादीनां वा मू
नंति । परेषूत्कृष्टेषु वा गुह्येषु वा
संति तासां निदानं नि
३९२ ` ५ ऋण्वेद्ः॥ ` [अ०४.अ०प. व० १६.
४ (2 ९ २,.॥ ॥ तृतीया ॥ = ए |
| चतु्कयदी युवतिः सुपेशा तर॑तीका वयुनानि वते = - -
||. त्स्यौ सुपर वृष॑णा नि चैदतुयच॑ देवा द॑धिरे भागधेयं ॥३॥
॥ चतु:ऽ कपर । युवत्तिः। सू शां; । घुतःऽप्रतीका । वयुनानि । वस्ते।
तस्या । सुऽपसी । वृष॑णा । नि । सेदुः । यत॑ । देवाः । ट्धिरे । भागऽधेय ॥
ी ॥ ॥ १ ॥ र
| । ~ चतुष्क चतुष्कोणा युवतिः सतीरूपा सुपेशाः ष्नोभनात्टकारा घृतप्रतीका
|| भतरमुखहविष्फेताहभी वेदिवयुनानि ज्ञातव्यानि पदा्थेजातानि कमाणि स्तो-
| आणि वा वस्ते । आच्छादयति । तस्यां वेद्यं वृषणा वृषणौ हविषां विततारो
| सुपण सुपर्णो सुपतनो जायापती यजमानब्रह्माणो वा नि षेदतुः । निषसो
| . ` - ` - भवतः। यचं यस्यां वेद्यां टेवा खग्न्याट्यो भागधेयं । स्वाथिको धेयप्रत्ययः । स्वस्व-
॥|. भागं हविदेधिरे। धारयति ॥ यद्वा चतुष्कपदा नामाख्यातोपस्तगेनिपाताश्चलवारः
। ॥ कपदैस्थानीया यस्याः सा युवतिस्तरुणी नित्या घृतप्रतीका दीपमानवणीवयंवे-
॥॥ घौपनिषदी वाग्बयुनानि ज्ञानानि वलते । आच्छादयति । तस्यां वाचि सुपणा
॥ सुपो जीवपरमात्मानौ निषखौ भवतः । यच । इतराभ्योऽपि दश्यत इति तृत्ती- ¦
44 , यार्थे चर्प्परत्ययः। यया वाचा देवा भागं धारयंति ॥ ` |
¢ 0 1 1. |
| ` ` `श्वैः सपणः स समुद्रमा विवेश स इदं विष्वं भुवनं वि चशे!
ऋ ` तं पर्वन मन॑सापश्यमंतिंतसतं माता रष्व्दिस उं
व्हिमातरर॥४॥ .
:। समदं । आ । विवेश । सः । इदं । विश्व । भुव॑नं । वि। चदे ।
५ ¢.
+ ५ ५
सा। अपश्यं । खंतिंतः। तं । मातत । रेठिव्। सः। ऊ इतिं
शि. ` ककि - #
ए
॥ अष्टमो ऽकः ॥ ३९३
डि । तामेवोपजीवति । लिह आस्वादने ॥ यद्वा सुपणेः पक्षवान् निराधार-
।चार्येकः प्राणवायुः परमात्मा वा समुदं । समुदूव॑त्यापो ऽ स्मादिति समुदरमतरिखं।
॥
यद्वा समुद्रं सवैतो गमनं । तच्छीले प्रपंचजातमाविष्ट वान् । सृष्रा तदेवानुप्रा-
विशदिति श्तेः वायुप्े वायुादिषूपेणा विवेश। स इदं विश्वं सवै लोकं विचष्टे । ध
विशेषेण ख्यापयति । सति हि प्राणे परमात्मनि वा जीव॑तः पुरुषा त्कोकं विख्यातं ॥
कुवैति । तं देवमुपासको ऽहं पाकेन परिपक्रलानेन मनसां तितः । अंतिकशब्दाच- १
सिः। छंतिकस्य तसि कादिलोपो नवत्याद्युदात्तत्वं च । पा० ६.४.१४९. ४. इति ह
काटिललोपः। अंतिंके समीपे स्वहदयेऽपश्यं । तं प्राणं मात्ता वायेल्व्हि । वार्
प्राेऽतभैवतीत्यथैः। स्वापे हि वाग्व्यापारो न हश्यते प्राणव्यापारस्तु दश्यत इति॥ `
`: ~ ॥ अयपंचमी॥ ` ``
सुपर विप्राः कवयो वचोभिरेकं संतं बहुधा कस्ययंति। `
छंदांसि च दधतो अध्वरेषु पहान्सोम॑स्य मिमते डार्दश॥५॥ ०;
ऽपर । विमाः। कवः । वच॑ःऽभिः। एकं । संतं । बहुधा । कत्ययंति। = `
कि 1 कि । 1.1
दध॑तः। अष्वरषं। महान् । सोम॑स्य । मिमते । चार्दश ॥५॥ = - ध
॥
क्तौ , पणि कनि 1
प) , |
वयः ऋतप्रज्ञा मनुष्याः सुपण सुपतनमेवं संतं परमा-
छणेवैचनेवेहधा बहुप्रकारं कल्पयति । कुवत । किच तत॒ |
हंटासि गायच्या तोच 4
छंदांसि दधतः स्तोचश्स्ता-
णसाधनानि पचराण्युपाच-
गृह्यत एभिरिति महाः । यहवृरि
८ ° | सोमस्येति प | , | घी | ङा शेत्यच संख्येति &\ | ५; | ; ॥
प्रवे सामान्येन यज्ञयहानुक्केदानीं स्वेयहादिपूवैको यज्ञोऽभिधीयते । षटि
शान् । वुं श्ंतयौमौ । रेद्रवायवाद्यस््यौ हिदेवत्यपहाः। बलौ शुक्रामधिनौ ।
आयण उक्थ्यो भुवश्ेति चयः। ऋतुरहा दादश । रेदरापनो वैश्वदेवश्च दो ! चयो
मरुलततीयाः । को माद्: । आदित्यसाविनौ हलौ । वेश्वदेवः पात्नीवतौ हारिः
॥ि योजन इति चयो ग्रहाः । एवं षटिषरंशङ्धवंति । खत्यग्रि्टोमे पूवं षटि चशद्रदा
` ावंश्वदाभ्यो भिग्रहः घोडशीति चेति चत्वारः । एतांश्चतारिशत्सख्या कान्यहान्क
स्ययंतः सोमेन पूरयंतः। किंच । आद्वाद्श । ्डुयृयोादाभिविध्योः । पा० २.१.२३.
इत्यव्ययीभावसमासः। तस्य स्व॑रः। ादशसंख्याकप्रउगादिश्स्वसमा्धिपयेत खंदांसि
गायव्यादीनि दधतः संतः शस्रादिरूपेण धारयतः कवयो मनीषां । तृतीयाया
आकारः । मनीषया बुद्धेवं यज्ञं विमाय निमाय रथं । रमंत्यचेति रथो यज्ञः
तं रथं यज्ञमृक्सामाभ्यां प्र वतेयंति । प्रकषण संपाट्यंति । चतुर इत्य चतुरः
सीत्यं तोटात्तत्वं ॥ | [त 0
॥आथसघ्रमी॥ ` ` .
चतुदेणान्ये महिमानो अस्य तं धीरां वाचा प्र णंयंति सप्त ।
५१८ ॥
आभरनं तीथे क इह भ्र वो चचेन पथा प्रपिरवते सुतस्य ॥७॥
॥
चतुःऽदश। अन्ये। महिमानः । अस्य । तं । धीराः । वाचा । म्र! नयंति । सप्र
ारघानं । तीथं । क: । इह । प्र। वोचत्। येनं । पथा । प्र ऽपिर्वेते । सुतस्य ॥७॥
५ ^ ॥ १
च
` ` अस्य यज्ञरूपस्य परमात्मनोऽन्ये चतुदश चतुदेशसं्याका महिमानो विभूतयो
वंति । तं यज्ञं सप्र सप्रसंख्याका धीरा धीमतो होचादयो वाचा शस्रूपया
प्रक्षेण नयंति। आघ्रानं। आप व्याप्नो। ताद्डीत्किके चानशि व्यत्ययेन
व्यत्ययः ! व्यापनशील तीथे पापोत्तारणसमथे चात्वालोत्करमध्यदे-
च्छि । न कोऽपीत्यथेः । येन पथा यन
वा अतिशयेन पिबंति । पा पाने!
[त का) |
\
“~. ` मं° १. ख० १०. सू०११९६.| ॥ अष्टमोऽटकः ॥ ३९५ |
> सरखधा। पंचऽदशानिं। उक्था। यावत्! द्यावापृथिवी इति । ताव॑त्। इत् । तत् ।
सहसखधा । महिमान॑ः । सहसरं । याव॑त् । ब्रहम । वि ऽ स्थितं । ताव॑ती । वाक् ॥४॥
= ५३ 4
सहस्रधा सहखसंख्याकेषु बरह्मादिस्तंबपयेतेषु देहेषु पंचदशानि चष्ुःचरचंमनो
वार् प्राण इत्येतानि पंच तदाधार्वेन मातापिचौः सकाशदागतानि पृथिव्य्रेजो- ि
वायाकाशरूपाणि भूतानि मित्ठितानि दश। एवं पंचदश ।स्याकान्युक्ान्यु्कृ्टा-
न्यगानि विदधति प्राणििहेषु जातिषु । द्यावापृथिवी । षष्ठीदिवचनस्य सुपां सुत्टुगिति `
पूर्वसवरेदीधैः । द्यावापृथिव्यो यौवद्यत्मरिमाणमस्ति ता वदित्त्परिमाणमेवात्मा-
धिषटितं प्राणिदिहजातं भवति! यावत्तावच्छब्टयोयेत्देतेभ्यः परिमाणे वतुष्या सवे-
क ‡ नाम्न इति दीधः । विच । सहस्रधा सहखसंख्याकेषु सहसरं महिमानः सहस्रसं |
ख्याका महातो व्यवहारविशेषा भवंति । प्रतिविषयं प्रतिलक्षणं .दशेनश्रवणा-
` दिव्यवहारनिष्यत्तेः। सहखधेत्यच विधार्थे घाप्रत्ययः। ब्रह्म जगत्कारणं वस्तु या- ` , `
वन्बानाविधप्रारिषदिहरूपेण यावत्परिमाणं भूरूतवा विष्ठितं विशेषेण स्थितं वाक् ्
त्तावतती तत्मरिमाणा भवति। रकेकस्याभिधेयाथेस्येकेकनांमापेकषणात्। अन्यापि
शूयते । सवोणि रूपाणि विचिंत्य धीरो नामानि कृाभिवदन्यदास्त इति । +
(क) सहस्रधा पंचटशान्युक्थेति पंच हि दशतो भवंतीत्यादिकमारण्यकमचानुसंधेय (९
{- # रे०्सख०१,१६.॥ `. + ५.
|. . ह. ॥अथनवमी॥ = ५
स, कष्डर्दसां योगमा वेद् धीरः कौ धिष्एयां प्रति वाचं पपाद्। ` 1
१) ध । कमृत्विजांमषटमं गूरमाहुहेरी इद्रस्य नि चिकाय कः स्वित् ॥९॥ ^ ध
॥ ( करः दं्दसां । योग । दपा वेट् । धीरः । कः | धिष्ण्या ॥ प्रति । वाचं । पपाद्। 41 ध
., 1 कं। ऋत्विजा । अष्टमं । भूर) आहुः हरी इतिं । इदस्य नि। चिकाय । कः। स्वित्॥९॥ ` क
धीमान् को मानुष्डेदतां गायव्ादीनां योगं सुतश्लात्मना नियोगमा = `
एङ केचनाश्वा भूम्याः पृथिव्याः । अनेन द्युलोकोऽणुपलष्यते । बुलोकस्य
चांतं पथैतं परि चरंति । तदानीं सवेत ्ागद्धंति । तदा च तेऽश्वा रथस्य धृष
युगादिधिरिषु युक्तासो युक्ताः संतोऽस्युः । तिति । रभ्योऽश्वेन्यः श्रमस्य टायं
टौ अवखंडने। घञ्। कषात्त इत्य॑तोदाचत्वं । चरमस्य नाशकं घासादिकं वि भजंति।
देवाः प्रयद्ध॑ति \ यदा यस्मिन्काले यमो नियंता सूरयो हर्म्ये हम्यैस्थानीये रथे
` हितौ निहितो भवति तदेते भजंतीत्यथेः ॥ `
` ॥ इत्यष्टमस्य षे सप्रदशो वैः ॥
चिच इति नवर्चं तृतीयं सूक्तमाभ्रेयं । उपस्तुतौ नाम वृषटहव्यपुच ऋषिः ।
अष्टमी चिषटुप् । नवमी शक्ररी । आदितः सप्र जगत्यः । तथा चानुक्रातं चिच
इत्नव वार्हव्य उपस्तुत सगरं जागतं चिषुप्णक्येतमिति ॥ प्रातरतुवाकाश्ि-
|
नश्स्योजगति दंटसीटं सूक्तं । सूचितं च । चिच इच्छिशोवस न चिचमहसमिति
५
जागतं । खआ०४.१३.। इति ॥
॥ त्तच प्रथमा ॥
णस्य वक्षथो न यो मातरावयेति धात॑वे ।
ववसं सदयो महिं दूत्यं चर॑न् ॥१॥ `
;। न। यः। मातरौ । अपिऽएतिं । धातवे ।
॥ अष्टमौऽटकः ३९७.
०१०. ० १०, सूर ५११ ५,|
त्ादचानङभावः। पा०५.४.१३१. प्रत्येकविवस्षयेकवचनं । ऊधोरहितौ ऽयं लोकी
ऽसौ लोकश्चेनमम्मिं यदि जीजनदजीजनदजञनयत्। तहि स्तन पानाय न गच्छतीति
यक्तं । तथा न भवति । वितु द्यावापृथिव्यौ सर्वेषां कामदुधे खल् । तथापि न
पाति । तस्मादस्य हविवैहनं चिच । अध चोत्पचयनंतरमेव न्वद्यास्मिन्दिनि सद्-
स्तदानीमेव शीध्रं महि महदूत्यं । दूतस्य भागकमेणी इति
दूतकर्म चरन् ववक्ष । देवान्प्रति हवींषि वहति ॥ ^
॥ अथ डितीया॥ ॥ि 5.
अग्रे नाम॑ धायि दन्नपस्तमः सं यो बना युवति भस्मना दता ।
अभिप्रमुरा जुदधा स्वध्वर इनो न प्रोथ॑मानो यव॑से वृषा ॥२॥
ऋभ्निः। ह। नाम॑ । धायि। दन्। अपःऽ त॑मः। सं । यः। वना । युवति । भस्मना ।
अभिःऽप्रमुरं। जुदा । मुऽऋध्वरः । इनः। न । प्रोथ॑मानः । यव॑से । वृषां ॥२॥
अपस्तमः। अपःशब्टस्यां तोदाचत्रेन मल्र्थो तहुघ् इति लायते। अन्यथापः कमोा-
` ख्यायामित्यसुनि कृत आद्युदातत्वमेव स्यात्। अपस्वितमः कमेवत्तमोऽप्रिनाम ।
तृतीयाया लुङ् । नारा नमयितृणा हविषा स्तोत्रेण वा धायि । यजमानेधयेते
` खलु यत्तो न् यषटणां धनदाता । इदाञ् दाने । हेतौ हंदस्युभयथेति शतुराधेधातु-
कतवेनाकारलोपः। अत एव शपोऽसंभवः। योऽम्रिभैस्मना भासकेन प्रकाशकेन
तेजसा दता दतेन च वना वनान्यरण्यानि सं युवते संयुनक्ति! संदहतीति यावत् ।
यु सिच्रणामिश्रणयोः, व्यत्ययेन शः। आत्मनेपदं च । दता । टतशब्टस्य पहन्नित्या-
दिना दद्वावः। ऊडिदमिति विभक्तेराद्युदा्तवं । किंच ! अभिप्रमुरा । मूढा मोह-
च्छाययोः। अस्मात्किपि राल्लोप इति छकारत्ोपः । मुर सं वे्टन इत्यस्माद्वा
स्वरतवं। अभितः समुचितेनोद्यतेन । यद्वा सवतो हविभिं
नामकेन पा्विशेषेण स्वध्वरः शोभनयज्ञोऽग्निरदनीये ह
। तच ह्टातः। पौ
इनो न ! समैः प्रोमानः पयोप्रः पु्टांगो
+
॥
1
इछ ॥ ऋग्वेदः ॥ [अ०ए४.अ० ६. व० १४.
तं। वः! वि । न। दूऽसद। देवं । असः । इट । ोर्थतं प्रऽवर्प॑तं । अणेवं।
आसा, वहं । न। शोचिषा । विऽरप्शिनं। मरहिंऽतरतं । न । सरजं । अध्वनः ॥३॥
| इहे स्तोतारो वो यूयं तमम्मिमनिषटुत । कीश । विं न परषिणमिव दुष् ।
दवैक्षः। अरणिलिक्षणे वृक्ष सीदतं देवं द्योतमानं । अरंधस इदं स्तोतुणामननस्य
दयितां, प्रापयितारं। उदेरिच्चदेस््युप्रत्ययः निदित्यनुवृ्ेराद्युटाचतवं। प्रोतं
शब्टायमानं प्रवपंतसत्यथे वनानां दाहकं । णवं । अणेसः सलोपश्चेति मत्व्थीयो
: । ग्नो ्रास्ताहतिरित्या्दिक्रमेणोदक्वतं । सासा । आस्यश्ब्टस्य पहन्नित्या-
दिनासन्नादेशः । वैत पष्डां दसः । आस्येन वहं हविषां बोढार । यद्ासा ।
ंतिकनामेतत्। देवानां समीपे हविषां प्रापकं। वहने दशां तः । वहं न! बह्व
अनडानिति ्रवणाटनड़ाहमिव वहने समथे शोचिषा स्वदीघ्ा विरप्शिन । मह-
नामितत्। महांतं महिवतं न महाकमीणमादित्यमिवाध्वनः सरजतं ।. मागोन्सह
युगपदेव रंजय॑तं । र वंगुणमम्मिमभिष्त । सरजंतं । रज रागे । रजेः शतरि रजे
। पा०६.४.२६.। इति नल्टोपे सहस्य सभावे च कृते रूपं । यद्वा । सरतीति सरः ।
रस्योटकस्य जनयितारं । जनेस्तप्रत्यये कृते रूपमिति वा । व्युत्म्यनवधारणा-
द्नवग्रहः ॥ `
भै
1 ॥ अथ चतुर्थीं ॥
वि यस्य॑ ते जयसानस्याजर धोने वात्ताः परि संत्यच्युताः ।
रण्वासो युयुधयो न संलनं चितं न॑शत् प्र शिषंतं इष्टये ॥६॥
। ते । जयसानस्यं । अजर । धक्तोंः। न । वाताः परि । संति । अच्युताः
। युयुधयः। न । सत्वनं । चितं । नशत । प्र 1 यै ॥४॥
। ` आः जि भिः
॥ शमि, पि
म०व०छ०१०. सू०११५.] = ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ ३९९
ि।
्वाहवनीयादिषु स्थानेषु ततं विस्तृतं चामा नशत । स्तृतिभिरेविर्भिचच व्य्नुवंति।
आङ्पूर्व नशिव्योभिकमी । आक्षाण आनडिति व्याध्निक्मसु पाठात् ॥ १
। ` ॥यपंचमी॥ `
स इटभ्निः कणतमः कण्व ।सखायेः परस्यातरस्य त्तरूषः। = । >
अभ्रिः पातु गृणतो अप्रिः सूरीनभिदेदातु तेषामवो नः ॥१५॥ = ॥
सः। इत्। अभ्रिः! कण॑ऽतमः। कण्व॑ ऽसखा । अयेः। पर॑स्य । अत षः
ऋअप्रिः। पातु । गृणतः। अम्रः । सूरीन्। अभिः । ददातु । तेषां । अवः । नः ॥५॥
कण्वतमः । कणतेः शब्टाथादमपपरुषीत्यादिना वन्प्रत्ययः । सतिश्येन स्तोता ।
छत एव कण्वसखा । बहुवीहितात्समासांतोदाच्ताभावः । कणाः स्तोतारः सखायो
यस्य स तादशो ऽयैः। स्वामिन्यंतोदाचत्वं वक्तव्यभि्यंतोदातत्वं । स्वामी सवेस्येश्वरः
स इहं स एवाप्रिः परस्य च प्रकृष्टस्य च बाद्यस्यां तरस्याग्यवहितस्य समीपे वते-
मानस्य शचोस्तरुषस्तारयिता विनाश्यिता भवति । सोऽभ्रिगणतः स्तोतृन- ` ५
स्मान्पातु । रक्षतु । गृ शब्दे । त्यादिकः। शतुरनुमो नद्यजादी इति विभक्तेरुदात्ततवं।
तथा सूरीन् । षृ प्रेरणे । हविषां प्ररयितृनस्माचसषतु । किंच तेषामेषां नोऽस्मा- ५
कमवो रक्षणमन्ं वाप्रिदेदातु । प्रयच्छतु ॥ व .
॥ इत्य्टमस्य ष्ठेऽश्टादशो वगेः॥ ५
॥ अथ षष्ठी ॥ १
वाजिंत॑माय स्यसे सुपि्य तृषु चयवानो खनु जातवेदसे। = |
, अनुदर चिद्यो धृषता वरं सते मर्हितमाय धन्वनेदविष्यते ॥६॥ 1
| बाजिन्ऽत॑माय। सय॑ । सुऽपिचय। तष । वानः । अनुं । जातञ्चैदते। =
सते। महिन्ऽत॑माय। धन्व॑ना । इत्। अविषयते
धृषता। वर ।
४०० „क ॥ ऋग्वेट्ः ॥ ऋप० ७, ० ६. व्० १९.
११
(0
$कारलोपण्डांदसः। अनुदर चिदुदकव्जिते स्थाने । आपदीत्यथेः। शुभिः संजा-
= त्ायामापदि धृषता शक्रधषैणसमर्थेन धन्वनेदात्मीयेन धनुषेवाविष्यते पालकाय
` सते भूष्णवे । शतुरनुम इति विभक्तेरुदा्ततवं । मरहितमाय पूज्यतमाय दातृतमाय
वेहशायाग्रये योऽहं वरं वरणीयं हविः प्रयच्छामि सोऽहं सतुतिमपि तस्मे करो-
मीत्यथेः ॥ र
४ ॥ अथ सप्तमी ॥ |
` एवाभि्मेतैः सह सूरिभिवेसुं वे सहसः सूनो नृभिः ।
मिचासो न ये सुधिता ऋतायवो द्यावो न दुननरमि संति मानुषान् ॥७॥
` एव । मनिः । मतैः । सह । सूरिऽमिः। वसुः । स्तवे । सहसः । सूनर । नृऽभिः
मिनासंः।न। ये सुऽ्धिताः। ऋत ऽयव॑ः। द्याव॑ः न। चुननः। अभि। संति मानुषान्॥७॥
सहसो बलस्य सूनरः सुष्ट प्रेरकः। यद्वा सूनुरित्यस्य वणेव्यत्ययः। सूनर सुनुः ।
बलेन मथ्यमानलात्तस्य पुचोऽम्रिनैभिः कमेनेतृभिमेरतेमेनुथेः सह सूरिभिवि-
> इद्धिरस्माभिवसु धनमभिलष्येवेवं स्तवे । स्तूयते । वसु टव इत्य संहितायां पूवे-
५ पदाटिति षत्वं । मिचासो न सुट् इव सुधिताः सुहितास्तृघ्ाः । दधातेनिष्ठायां
क सुधित्तवसुधितेति निपातितः, सुधिताथोास्तृ्यथा इति काशिकायासुक्तं । छतयवो
यज्ञं कामयमानाः। न डंदस्यपुचस्येति दीर्धेत्वयोः प्रतिषेधः । ईंहश्ण ये सूरयो दयावो
न द्योतमाना इव दुननेः । दुखं द्योततेयेशो वान्नं वेति यास्कः । पग्रिप्रटततेवैलि-
, रात्मीयेयेशोभिवै मानुषाञ्शाचवाज्जनानभि संति । अभिभवति । यदुत्तयोगा- `
॥ अथामी॥ = `
तोपस्तुतस्य वंदे वृषा वाङ् ।
दराधीय आगः परतरं दधाना
म०१०. ० १०. सू०११६.। ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ ४०१
सहस्िननम्रे त्वा लामिव्येवसुपस्तुतस्थेतन्रामक्स्यर्षेमेम वृषा हविषां वषेयिच्री तेः `
ह सहिता वाक् स्तुति वदते । स्तौति । वृषा । इगुपध्ञेति कः । अजाद्यतष्टाप् । किच
वयं लां स्तोषाम । स्तवाम । स्तौतिर्ैययडागमः । ततस्त्वया सुवीरः शोभनपुचाः
| ˆ स्याम द्राधीयो दीैतममायुज्ीवनं प्रतरमत्यथं दधाना धारय॑तोभवेम॥
। 0 ४ | | १अथनवमी॥ ` 3 -
। इतिं चाग्रे वृषटिहव्य॑स्य पुचा उपस्तुतास ऋष॑योऽवोचन्। ।
तांश पाहि गंणतश्चं सूरीन्वषदुषच्छिवयध्वीसों अनसुन्रमो नम `इत्यृष्वीसो अन-
न् ॥९॥ 9 | रिक
इतिं । त्वा। अग्रे । वृषटिऽहव्य॑स्य पुराः । उपःऽसतुतासंः । ष॑यः। अवोचन्।
तान्। च। पाहि । गृणतः, च सूरीन्। वष॑ट् । वष॑ट् । इतिं । ऊध्वासंः। अ न् |
नम॑ः। नम॑ः। इतिं । ऊष्यीस॑ः। अनछन्॥९॥ = =, ` ५ द
हे अमरे त्वा त्वामियेवमुक्तप्रकरेण वृष्टिहव्यस्थेतन्नामकस्य्तैः पुचा उपस्तुतास
तश्च ॥/
` उपस्तुता एतदभिधाना ऋषयः सूक्कद्रटारोऽवोचन्। अभ्यष्टवन् । तानु न
पाहि। रस् । वायोगे प्रथमेति न निघातः । तथा गृणानः स्तोतृन् सूरीन्विदुषश्च
पाहि । वषडुषडिति मंचेणोष्वासो हविःप्रदानाचेमृष्वेसुखहस्ताः संतोऽनश्षन् । र
व्याघ्रुवन् । नक्षतिव्यी्निकमै । नमो नम इत्येवमूष्वौसः स्तोतुमुद्युक्ता अनशन्! `
य उक्तगुणास्तानुभयविधान्यषटन् स्तोतृन्पालय ॥ ` | 2
"॥ इत्यष्टमस्य षष्ठ एकोनविश्णे वगं व
^ 4
पिवेति नवच चतुथं सूक्तं चेषटभमेदं। स्थूरनाखः पुचोऽग्रियुताख्य छषिरब्रि- ` 1
:- यूाख्यो वा। तथा चानुक्रम्ये । पिव स्थोरोऽभ्ियुत्तोऽग्रियूषो वेति । गतौ
विनिग 1 1 $
¢ = ~ अतव ्मा 4 ~ ~.
ईद्वियाय पिवां वृचायहंतवे श्वि । = _
४०२ | ॥ि ॥ ऋग्वेदः ॥ | ०४
१
हे इट् लं महे महे प्रभूतायेदियायेंदस्यात्मनो जुष्टाय वीयाय
` दीयमानं पिव। इटरियमिंद्लिंगेत्यादिनेदियशब्टो यजंतत्वेन निपाततितः। हे श्वि-
षातिश्येन प्रवृद्ध वृ्राय हंतवे वृचं हंतुं सोमं पिव । क्रियायहणं कतेव्यमिति `
` वचस्य संप्रदानवं । तथा हूयमानोऽ साभिराहूयमानस्वं राये धनाय । ऊडिट्मि- |
त्यादिना विभक्तेरुदाच्त्वं । शवसेऽ्ाय । धनान्योः प्रदानाय सौमं पिब ! मध्वो
मटकणन्सरवीन्सोमान्पिव । वा रंटसीति पूवसवणेदीषभाव : । अनंतरं हे इद्र
तृपवुपो भवन् आ वृषस्व । अस्दभिलषितान्यासिंच । ददस्व । तृपत् । तृप तृप्र ।
तौदादिकः। अनित्यमागमशसनमिति नुमभावः ॥
॥ सथ डितीया ॥
अस्य पिब घ्युमतः प्रस्थितस्य सोमस्य वरमा सुतस्य । |
स्वस्तिदा मन॑सा मादयस्वावाचीनो रेवते सोभ॑गाय ॥२॥ =
अस्य । पिव्। षयुऽमत; । प्रऽस्थितस्य । इद । सोम॑स्य । वर । आ । सुतस्य ।
| स्वल्तिऽदाः। मन॑सा । मादयस्व । अवीचीनः। रेवति । सौभगाय ॥२॥
हे इद छ्ुमतः स्तुतियुक्तस्य । यद्वा ह वीरूपान्रवतः प्रस्थितस्य हविधानाटु्तरवेिं
प्रति प्रस्यापितस्य सुतस्याभिवुततस्य सौमस्य वरं वरणीयं त्वदीयं भागमाभिमुख्येन
पिब । प्रस्थितस्य । तिहतेः कमणि निष्ठा । गतिरनंतर इति गतेः प्रकृतिस्वर तं ।
त्तः स्वस्िदाः कस्याशस्य दाता त्वं मनसांत्तःकरणेन मादयस्व । इष्टो भव । छ
` महास्मानपि हषटान्ुरः। तदेवोच्यते । रेवते धनवते सौभगाय सोभाग्याय तदस्मभ्यं `
दातुमवेचीनोऽभिमुलांचनो भव । विभाषांचेरदिकस्रियामिति खः । रथिश- `
ब्दान्मतुप तं । रयेमेतो वहुल्मिति संप्रसारणं । पूर्वरूपत्रे गुणः। ` (
सुभग म्र इति पठ्यते । तस्योच्रपदस्य हन्गेति वृि्ने- `
स्तवान् । जित्स्वरेणादुदात्तलं ।
अथतृतीया॥ ` =
र
तय
म०१०. ख० १०, सू० ११६. `
॥ ष्टमोऽ्टकः ॥ ६०३
ड इद् त्वा त्वा दिव्यो दिवि भवः सोमो ममु । आत्मीयकलत्राप्रदानेन मादयतु। `
देवा दयपरपस्ते सोमस्य कल्ठां पिबंति ! मदे
त्वोदि व्यत्ययेन शुः । भीहीत्यादिना
पितः पूरवस्योदा्तत्ं। तथा पाथिवेषु पृथिव्यां भवेषु देवयजनेषु यः सोमोऽ खानि
यतेऽभिषूयते सोऽणस्माभिदेत्तो ममु । लां हषेयतु । येन सोमेन वरिवो वर. |
णीयं धनं चक्थं कृतवानसि स च ममु! करोतेतिट्। यद्चोगादनिधाति त्कित्स्वरः
विच येन शचृलिच्छणासि निर्गमयसि । सोऽपि ममु । लां सादयतु । रिणासि।
आ चिरे अमिनो यावि वृषा हरिभ्यां परिंषिक्तमंधः ।
#
गतिरेषणयोः । ऋादिः । प्वादीनां इस्वतवं ॥
#
५ ४ ॥ खथ चतुर्थीं ॥
गव्या सुतस्य प्रभृतस्य मध्व॑ः सचा सेद।मरुशहा वृषस्व ॥४। 4
आ । दिऽवरीः। अमिनः। यातु । इदः । वृषां । हरिंऽभ्यां । परि ऽसि क्त । धः
गवि,
आ । सुतस्य॑।प्रऽभंतस्य । मध्वः। सचा । सेद । अरुशऽहा। आ । वृषस्व ॥४॥
दिवहा इयोर्लोकयोः परिवृढः । यद्वा बाभ्यां स्तु्तशएाभ्यां वधेनौयः। वृहे वेधे
1थेस्य
कतैरि कमणि वासुन् । अमिनः, ऋअमते्मत्यथादोणादिक इनच् । स्वे क
गंता । यद्वा कात्यथोत् । सर्वेः काम्यमानोऽत्त एव वृषाभिलषितानां वषेक इदः १
चरिषिक्तं वसतीवरीभिः परितः सिक्मंधोऽस्मदीयं सोमलषणएमनं प्रति हरि 1
भ्यामेतन्नामकाभ्यामश्वाभ्यां सहा यातु! आगच्छतु । खयः प्रत्यक्षः । हे इद् अरूश्हा । व
पसशाः
श्चवः। तेषां हंता । अर्तिरौणादिक उशन्। बहुल्टं ंदसीति हतिः क्किप् =
सचा । सच्रम्या उदेशः। अस्मदीय सवे यज्ञे गव्यानडुहे चमेणि सुतस्याभिषुतस्य 1
` प्रभुत्स्य
५
न् खेदां खिद्यमानानां शचरणामुत्सि्त
पाचेषु प्रहतस्य । हपहोभः । ईहशस्य मध्वो मदक्रस्य सोमस्य पानेन `
५
त्वय आभिमुख्येन वृषस्व । वृष इवाचर। `
क्रप् । व्यत्ययेनात्मनेपट् । खेदां । खिद् देन्ये । कमि धजंत
¢ श (
अ. | , ॥ऋ्वेदः॥ [अ०४.ऋअ०६, व०२५.
` . नि। तिगमानिं। खाशयन्। भाश्यानि। अवं । स्थिरा । तनुहि । यातुऽजूनां।
° ` उयाय॑।ते। सरः । बलं । द्दामि। परतिऽङतयं । श्चरन् । विऽगदेषु । वृश्च ॥५॥
हे इद् भाष्यानि प्रकाश्यानि तिग्मानि तीष्णान्यायुधानि नितरां भाश्यन्
` प्रकाशयन् भाणु दीप्तो । स त्वं यातुजूनां । जु इति सोचो धातुः । चाजनस्तयव
जवतेदीधैः। क्रपेति क्ष् । दीधैस्यामि नुडागमष्डांद्सः । यातुधानानां स्थिरा
| . . स्थिराणि हढान्यपि शरीराण्यव तनुहि । अवस्ता्तनुभूतान्पा्तय । उयायोद्रृणे-
| बलायते तुभ्यं सहः शरुसहनसमधं बलं बलहेतुकं हविदेदामि। खहं प्रयच्छामि।
| त्तो विगदेषु। विविधं गदति शब्दायते । गदेधेजर्थे कविधानमित्यधिकरणे कः
4
1
॥)
शचुन्प्रतीत्य प्रतिगम्य प्रतिकृतं गत्वा वृश्च । तांण्डिचि । ओत्रश्रू डेटने । तोदा-
क ॥ र
टिक्स्य लोट् ॥ त ।
॥ इत्य्टमस्य षष्टे विंष्णे वगः ॥ .
“ ` ॥अथकष्ी॥ ४
व्यये ईट् तनुहि श्रवास्योज॑ः स्थिरेव धन्व॑नोऽभिमांतीः। ==
अस्मद्यग्वावृधानः सहोभिरनिभृषटस्तन्वं वावृधस्व ॥६॥ ,
वि। अयः इट् तनुहि । चवाौसि। ओज॑ः स्थिरा ऽइव । धन्व॑नः। अभिऽमांतीः
| ` असब्य॑र्। ववृधानः । सह॑ःऽभिः। अनिंऽभृष्टः । तन्वं । ववृधस् ॥६॥ `
1. हे इद् अयः स्वामी त्वं खवांस्यन्नानि । खव इत्यन्ननाम । सस्मभ्यं वि तनुहि । `
रय प्रयच्छ । तनोतिर्ोव्ुतश्च प्रत्ययाच्छदसि वावचनमिति हेटगनावः। `
तीः । अभितो मातिमानं येषां तेऽभिमातयः शवः । तन्प्र्योज `
ए्येव धन्वनो धनूंषि च विस्तारय तेः शचृन्गहीत्यथेः ।
11
| |
।
ऽकः ॥ | | ©
० १०. ० १०. सु०११६.] ॥ अष्टमं
1
। ॥ अथ सप्रमी ॥ = |
इदं हविमेघवन्तुभ्यं रातं प्रतिं सम्राक्हणानो गृभाय । =
भय
| इटं! हविः। मधऽवन्। तुभ्यं । रातं । प्रतिं । संऽराट् । अद॑णानः। गुभाय।
1
तो म॑घवन्तुभ्य॑ पक्तो$्खीट् पिन च प्रस्थितस्य ॥७॥
धथ क
ह~
तुभ्यं । मुतः। मधऽवन्। तुर्ये । पक्वः । अचि । इंट । पिव । च । प्रऽस्थित्तस्य ॥७॥ = `
५
हे मधवन्यनवन् सम्राट् सम्यगाजमान सर्वेषामीश्वेरेति वा । इदं सोमादिः
लक्षणं रातमस्माभिदेचं हवि ईद तुभ्यमहणानोऽक्ुष्यन् प्रति गृभाय प्रति-
गृहाण । महे्त्ोरि श्नाप्रत्ययस्य ददसि शयजपीति शायजादेशः। हग्रहोभं इति ४
+ भः, संनिपात्तपरिभाषाया अनित्यत्वा्टर्। हे मघवन् तुभ्यमेवायं सोमः सुतः
ङयि चेत्याद्युदाचत्वं । तुभ्यमेवायं पुरोडाशादिः पक्रः । हे इद्र तं पुरोडामडि ।
भ्य । विच प्रस्थितस्य हविधानादुत्तरवेदि प्रति प्रस्थापित्तं सोमं पिब । वाक्य-
मरेदादनिघातः । यहामंचितस्याविद्यमानतेन तिङ उन्चरत्वादनिधातः ॥ ५
( त ॥ अथाष्टमी ॥ 4
9 अदीदिट् प्रस्थितिमा हवींषि चनो दधिश्च पचतोत सोमं । क ए
प्रय॑स्वंतः प्रतिं हयामसि त्वा सत्याः संतु यज॑मानस्य कामाः ॥४॥ ;
कषय [| ५ क्ष ,
0 अचि । इत्। इट् । ग्रऽस्थिता। इमा । हवींषि । चनैः । ट्धिष्र । पचता । उत । सोमं। + =
# 1 [1
प्रय॑स्वंतः । प्रतिं । हयोमसि। चा । सत्याः । संतु । यज॑मानस्य । कामाः ॥४॥
4. इहे इट प्रस्थिता प्रस्थितान्युच्रवेदि प्रतीमेमानि। उभयचर डदेशः। हवी्ीत् ।
टवधारणे । भक्येव । चनः । चन इत्यन्ननाम । तहधिश्र । धारय । उदरे प्रशिप
तर्तरोटि हंदस्युभययेति चास आधधातुकतादिडागमः। पचता पचतानि सव-
नि च धारय । पचेभूमृहणीत्यादिना कमैर्यतच्पत्ययः । उता
प्रीणयतीति प्रयोऽन्नं । तेन ततः संतस्वा
०६ ॥ ऋग्वेदः
। ॥ ॥ अथनव
रदाभ्या सुवचस्यामिंयमिं सिंधाविव प्रेरयं नाव॑मरैः
| अयां इव पर चरंति देवा ये अस्मन्य धनदा उद्धितय्
। - भ्र। इटाम्रिऽभ्यां। सुऽवचस्यां । इयि । सिं धोऽइव । प्र
„ = अयाःऽइव । परि । चरति
. इद्राभ्निभ्यां देवाभ्यां सुवचस्यां। कदसि चेति यत्प्रत्यय
` प्रेयनिं। प्रेर्यामि । ऋ गतौ । जोरोत्यारिक
4 देवताडे चेतीदाग्न्योसुभयपदयप्रकृतिस्वरव प्राप्रे नोचरप
५ षेधः! सिंधाविव सिंघो नद्यां यचा नावं प्रेरयति तहदं
रस्यं । प्रावादिषं । ईर गतौ । णयंतस्य लद्युचतमस्यामादे
५५
` अस्मान्धनादिदानेन पूजयंति । ये देवा अस्मभ्यं धनदा धनस्य दाता
ऽसच्छनच् णामुदधे्तारश्च ये संति ॥
| ॥ इत्यष्टमस्य षष्ठ एकविंशो वगः
~ नवा इति नवचै पंचमं सूक्तं भिक्षुनोमांगिरस ऋषिः प्रणमाि
` शिष्टाः सप्र चिषटुभः। अचर धनस्यान्नस्य च दानं स्तूयते । अतस्वदेवत्यमिटं
चानुक्रातं । न वा उ भिक्ृधेनान्रदान प्रशंस्य जगत्याविति । गतौ विनियोग
1
॥ तच प्रथमा ॥
; ॥
॥।
म० १०. ०१०. सू०११३..|
कते । पा० ६.१.२०७. इत्याद्याच्तत्रं । सधातानां भोक्णां च मरणं समानं । विं
दानेन धननाशरूपेण । अत साह । उतो । उत्त शब्टोऽ प्यथ । पणतः प्रयच्छतः
पुरुषस्य रयिधेनं नोप दस्यति । नोपक्षीयते । दमु उपश्षये । देवादिकः। पृण टाने ¦
तोदादिकः। तस्य शचंतस्य शतुरनुमो नद्यजादी इति विभक्तेरादयुदा्ततं । दानम-
संगेनादातारं दूषयति । खपृणन् अप्रयच्छन् पुरुषस्तु सडितारमात्मनः सुखयितारं
न विंदते । न कुबापि लभते । इह बंधवोऽप्रदानान् सुखयति । देवा अपि
श 1
हविःप्रदानाभावात् ॥ १ - [र
॥ अथ हितीया ॥ 4
य आधाय चकमानाय॑ पिलोऽ न॑वानसन॑फितायों पजग्मुषे ।
न ॥ भवने #
स्थिरं मन॑ः कृणुते सेक॑ते पुरोतो चित्स म॑डितारं न विंदते ॥२॥ `
पर
यः । स्ाप्राय । चकमानाय । पित्व: । अन्ऽवान्। सन् । रफितायं । उपऽ जग्मुषे ।
1 ऋ । फन १ # रि |
| स्थिर) मन॑ः। कृणुते । सेव॑ते। पुरा । उतो इतिं । चित्। सः। मडितारं। न। विंदते ॥२॥
यः पुरुषः स्वयमन्रवानप्याघधाय ! खधायेतेऽसावित्याभो टुबेत्ठः । तस्मे पित्व:
पितूनन्नानि चकमानाय । चकमानः कांतिकम । रफिताय । रफतिरिसा्थः
टारिद्येण हिसित्तायोपजग्सुषे गृहं प्रत्यागतायातिश्येन मन आत्मीयमंतःकरण-
मदाने स्थिरं कृणुते कुरूते । मनःस्थेयेकरणेन तं ऊेशयतीत्यथेः । कृणुते । कृवि
हिंसाकरणयोः । धिनविकृण्ब्योरचेत्युप्र्ययः । करीतिव्येत्ययेन श्रुः । विकरणस्वरः
सति श्टोऽपि लसावंधातुरुस्वरं न बाधत इति लसावेधातुकस्वरः । न केवलं
केशकरणमपि तु पुरा तस्य पुरस्तादेव सेवते भोगान् सोऽपि मडित्तारमात्मनः
सुखयितारं न विंदते । न कुचापि लभते ॥
4 खय तृतीया ॥ (1
स इन्नोजो यो गृहवे ददात्यन॑कामाय चर॑ते कुशाय॑ । =
भवति याम॑हूता उतापरीषु वृणुते सखायं ॥३॥
भोजः। यः । गृहवे । ददाति। अन्न कामाय । चरते । कृष्णय॑।
। याम॑ऽहूतौ । उत । अपरीषु ।
{ ॥ ॥ ॥ # 1
॥
॥
|
„` ४9 | ॥ ऋण्वेद्ः [अ०४.अ०६, व०२२.
कृष्णाय दारिद्येशेताहशायातिथयेऽ नं ददाति प्रयच्छति । खभ्यस्तानामादिखिया-
दयदात्वं । यामहतौ । यामा गंतारो देवाः । अचर यातेरतिस्तुसुहुसु इत्यादिना
1 मन्प्रत्ययः । त स्हूयंतेऽ चेति यामहूतियेज्ञः । तस्मिन् तस्मे दाचे फलमरमल
। . पथैप्रं भवति। कामप्रदानं भवततीत्यथेः। उतापि चापरीषु। केवलमामकेति डीप्
अन्यासु शचवीषु सेनासु सखाय कृणुते । तद्ठदाचरतीत्यथेः । तस्य सरवे सखाय .
. .-: एव्. न शत्र इत्ययः ॥ ` |
स म ॥ अथ चतुर्थीं ॥
| नससलायो न ददाति सस्य सचाभुवे सच॑मानाय पि्ः।
(५ अपांस्मात्मेयान्न तदोको अस्ति पृणंत॑मन्यमरणं चिदिच्छेत् ॥४।
न । सः। सखां। यः। न । ददाति । सख्ये । सचाऽभुवें । सच॑मानाय । पित्वः
४ ` ऋअप।स्स्मात्। प इयात्।न। तत्! कः+ अस्ति। पृण अन्य। अरं णं । चित् इ्ेत्॥४)
0 व्यतिरेकेण निंदामाह । स पुरुषः सखा न भवति यः पुरुषः सचसुवे सवेदा
८ सहभवनशीत्छाय सचमानाय सेवमानायोपसजंनीभूताय सस्ये सखिजनायपित्वः `
। पितून्नानि न द्दाति। न प्रयच्छति। स सुहन्न भवतीत्यथैः। अस्माददातुः सख्युः `
0 सोऽप प्रेयात् । अपगच्छेत् \. यद्येनं परत्यज्य गच्छेत् । इण गतो । लिङि यासुट् 4
त्रि तदोको निवासः सदनं नास्ति! न भवति । सदनं हि बंधुभिः परिवृत्तं । पस
` गतः पुरुषः पृणंतमन्नादिकं प्रयच्छंतमन्यमरणं चिदये स्वामिनमेवेच्छेत्। कामये्त॥ ४
॥ अथ पंचमी ॥ छ
पृणीयादिन्राधमानाय तव्यान्द्राधीयांसमनुं पथ्येत पंथा । 1
च
षतं रायः ॥५॥ व ॥
दराधीयांसं । अनुं । पश्येत । पं
उप॑ । तिष्ठत । रायः
त आ त ।
०.अ०१०. सूु०११७.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥ "६
एकच नितिष्तीत्यथेः । तच हर्टातः । रथ्येव । यथा रथ्यानि । रथाद्यदिति तस्ये-
त्यर्थे यत्। रथसं बंधीनि चक्राणयु पयधोभावेना वतते तदावृ्तिमेव दणेयति।
अन्यमन्यं पुरुषं धनान्युप तिष्ठत । उपतिष्ठते । समवेतानि भवंति । उपदेवपूजा-
संगत्तकरण । पा०१,३.२५.१.। इत्यात्मनेपदं । तस्माङनानि देयानीति भावः ॥
॥ इत्य्टमस्य षषे ्ाविंशे वर्मः ॥ ५.
॥ अथषषठी॥ |
| मोघमन्नं विंदते अप्रचेताः सत्यं ब्र॑वीमि वध इत्स तस्यं ।
यैमणं पुति नो सखायं केव॑त्ठाघो भवति केवलादी ॥६॥ |
४
मों । अन॑! विंदते । प्रऽचेताः सतयं । ब्रवीमि । वधः। इत्। सः। तस्यं ¦
न। अयमण पु्॑ति। नो इतिं । सखायं । केव॑त ऽखघः। भ वति। केवलृऽआदी॥ ६॥
॥ 1 #
अदातारं टूषयति । प्रचेता अप्रकृ्ट्ानः। दाने चेतो मनो यस्य न भवति `
स मोघं व्यथेमेवानं विंदते! ठभते ! विदु लाभे । तौदादिकः। शे मुचादीनासिति
नुमागमः । इटं सत्यं यथा्थमेवेति बरवीमि । ऋषिरहं वदामि । न केवलं व्यथे
कितु तस्य पुरुषस्य स वधं इडध एवान परामृश्तः। तच्छब्टस्य वधसामानाधि-
करण्यात्पुसिगता । यथा शेरणावित्यच । पा०१,३.६७.। यत्कमे स एव कर्तेति ।
अथवा स निरथेको वध एव यः पुरूषोऽ यैमणं। उपलृक्षणमिदं । सवेन्देवानये-
. मादीन्न पुष्यति हविःप्रदानेन न पोषयति । नो नापि सखायं समानख्यानम-
भ्यागतमतिथिं भिचरव्भ च न पोषयत्ति । पुष पुष्टौ । देवादिकः । यच्छब्दाध्या- त
हारादनिधातः। अतत एव केवत्दरादी । खदेः मुजाताविति णिनिः! खत उप-
धालक्षणा वृद्धिः। केवल मसाकिकमनरं भुजानः स केवलाघो भवति । केवल-
पापवान्भवति । अधमेव केवलं तस्य श््यते । एेहिकामुष्िकमिति । तसरद्च-
+
#
तष्ानमपं वृक्ते चरिः । 1
६१० ॥ ऋग्वेदः ॥ ` [अ० ४. ० £, व०२३.
न र
कृषन् कृषिं कुर्वन्फाल आर्तं कषेकं भोक्तार कृणोति । करोति
माग यन्। इणः शतरि नुमागमः । गच्छन्पुरुषश्चरिचैरा
` भिनी धनमावजेयति । वृजी वजेने । आ्रदादिकः । अनुदाचेत्। वदन् शस्तराथे
ज्ुवाणो ब्रह्मा ब्राह्मणोऽवदतः शस्तराथेमन्नुवानाज्ननानीयान् । संभक्तृतमः पि ~
यकरौ भवति । वनोस्तृजंतस्येयसुनि तुरिहेमेयःस्विति तृचो ल्लोपः । ते यथा ५
स्वकमेणि प्रवतेमानाः परेषासुपकारकास्वथा पृणन् दाता पुरुषोऽपृणंतमदातारं
जनमन्यभितष्यापिः स्यात् । बंधुभेवेत् ॥
। ५
॥ अथयारटमी ॥ । " ं १)
ए्वपादूयो डिपदो वि च॑क्रमे हिपाच्तिपार्दमभ्येति पश्चात् । |
चतुष्पादेति हिपद्मभिस्वैरे संपश्य॑न्पंक्तीरपतिष्ंमानः ॥४॥ _
एकऽपात्। भूयः। डिऽ पदः। वि। चक्रमे चिऽपात्। चिऽपादं। अभि एति। पश्चात्।
। #
चतुःऽपात्। एति। डिऽ पटा अभिऽस्वरे। सं ऽपश्यन् पंक्तीः। उप ऽ तिष्ट मानः॥९॥
शत ने | शक वोप
` अचर पादश्ब्टो भागवचनः। एक्पदेकभागधनः पुरुषो हिपदो हिगुणधनस्य `
मागे भूयः तृतीयायाः सुः । भूयसा कालेन वि चक्रमे । विविधं गच्छति वेः
` पादविहरण इत्यात्मनेपद्। तथां हिपात्पुरुषस्िपादं चिभागधनं पुरषं पश्चाटभ्येति। +.
अभिगच्छति । चतुष्पाच्तुभौगधनस्तु हिपदां । बहुवचनादेकपादादय उपलष्यते। `
एक्पादधनादीनां पंक्तीरभिस्वरेऽ भिगमने संपश्यन् सम्यगीक्षमाणः सन्पतिष्ठ- `
अन्योन्यापेरया सवं उत्तमाधमाः। तस्माल्लमहमेव
भ्यो धनानि दटस्वेत्यथेः ॥
सू०११४.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥
जोरीत्या दिकः, संज्ञापू वैकस्य विधेरनित्यत्वादभ्यासस्य गुणाभावः। तचा संमातरा।
वत्सस्य मातरो धेनू समे अपि समं समानं पयो न दुहते । यमयो
जातयोः पुचयोरपि समा समानि वीयि न संति। तसाञ्जाती चिदेर्का
तो जातावपि समं न पृणीतः । न प्रयच्छतः । तस्माद्यस्य धनम
टदा दित्यः ॥
॥ इत्यष्टमस्य षष्टे चयोविंशो वगः ॥
हंसीति नवचं षष्ठं सूक्तममहीयुगोचस्योरुष्षयस्याषे गायं । र
! तथा चानुक्रम्यते । खरे हंस्युरुख्य आमहीयव आग्रेयं रारो गायवं
विति ॥ मथ्यमानेऽग्रावजायमान इदमनुवक्तव्यं । सूचितं च । अजायमाने त्वेत-
स्सिन्नेवावसानेऽम्रे हंसि न्यचिणमिति सूक्तमावपेत । खआ०२,१६.। इति ॥ प्रात्तर-
नुवाकाश्चिनश्सयोरपि गायत्रे हंटसीद् सूक्तं । सूचितं च। छम्रे हंस्यगिं हिन्वंतु नः
। आ० ४.१३.। इति ॥ दशमेऽहनि धिष्णयांगाराभिविहर्ण आद्या जणा । सूचितं
च। परि त्वग्रे पुर वयमिग्येतस्याः स्थानेऽग्रे हंसि न्यचिणं । खा०४.१२.। इति ॥
%#
॥ तच प्रयसा ॥
अग्र हंसि न्य१ चिणं दीनम ।
स्वे य शुचिव्रत ॥१॥
म्र । हंसि । नि । चिणं । दीन् । सर्वषु । चा ।
सये
स्वे। सये । भविऽव्रत ॥१।
प्ति कि |
हे शुचिव्रत पूतकमेन् दी्मानतेअस्क हे अग्रे अनिणमत्ारं शत्रुं तमोरूपं
नितरां हंसि
क - हेग | स्वाहुतौऽ सामभिः मुषाहूयमानः सन् उचिष्ठसि । अरणीभ्यासुच्रतो
भव। ऊभ्वैकमैलादात्मनेपदाभावः। उद्रत्य धृतानि धृतेन सहितान्यस्त भिदीय-
मानानि हवींषि प्रति मोदसे । हृष्टौ भव । मुद् हं । भौवादिकः । अनुदात्तेत् \
चद्यदा त्वा लं सुचो जुहधादीनि पाचाणि समस्थिरन् । संगतान्यनवन् । समत
प्रविभ्यः स्थ इति लुड्यात्मनेपदं । स्थाप रिचचेति सिचः किल्चभिकारश्ांतदिशः
` इष्वादगादिति सिचो त्ोपः । व्यत्ययेन मस्य एन् । तिङि चोदाद्वतीति गते-
| निधातः। श 3 4 प
6 । `. .:॥ तृतीया ॥ न
(५ स्र आहुतो वि रचतेऽभिरीकन्यौ गिरा ४ क:
|. सूचा प्रतीकमन्यते ॥३॥. , ` <
|. सः। आऽहतः । वि । रोचते । अभिः । ईव्छन्यः । "गिरा |
“ सचा प्रतीकं । अज्यते ॥३॥ ` =, 4, १
४ आहुत आभिमुख्येन हुतः । गतिरनं॑तर इति गतिः प्रकृतिस्वरः । गिरा स्तुति- `
लक्षणया वाचेक्छिन्यः स्तौतव्यः सो ऽप्रिवि रोचते । अत्यथं दीप्यते । तथा प्रतीकं |
सवष देवाना पूवमेव सचा भृतसदितयाजते। सिच्यते ॥ ==
५ ~ , (ऋअथणक्तुर्धी॥ 4
आह
म० १०. अ० १०, सू०११४.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥
अप्ोयामे होतुरतिरिक्तोकथ्ये जरमाणः समिध्यस इत्यनुरूपस्तृ चः
जराबोध तदहिविडि जरमाणः समिध्यसे । स्रा० ९.११.। इति ॥ तच प्रथमा सूक्ते `
पचमी ॥ |
जर॑माणः समिध्यसे देवेभ्यो हव्यवाहन ।
तं त्वां हवत म्यः ॥५॥
जरमाणः । सं । इध्यसे । देवेभ्यः । हव्य ऽ वाहन ।
तं । त्वा । हवत । मत्योः ॥५॥
हव्यवाहन हव्यानां प्रापयितः। हव्ये ऽनंतःपादं । पा०३.२.६६.। इति ञ्युट् ।
जरमाणः स्तोतृभिः स्वयमानः। जरतिः स्तुतिकम। स चं देवेभ्यो देवाथे समिध्यसे ।
हविभिः सम्यग्दीप्यसे। तं तादशं त्वा त्वां मत्या मनुयेषु साधवो यजमाना हवत ।
आड यंति । हयतेतेडिः बहूं दंदसीति संप्रसारण ॥
॥ इत्यष्टमस्य षष्ठे चतुविंशे वगंः ॥
॥ अथ षषी ॥ |
म॑ता अमत्य पृतेना्निं संपयेत्
अट्भ्यं गुहप॑तिं ॥६॥
€ तं । मताः । अम॑त । घृतेन॑ । अन्नं । सपयेत ।
9
अट्भ्यं । गृह ऽप॑तिं ॥६॥
हमत त्विजः अमत्यै मनुयधर्मरहितमम्निं घृतेन हविषा सपय परिचरत। `
सपरशब्दः कंदादिः। कीढशं। अदाभ्य । केश्िदप्यहिस्यं । देशेति वक्तव्यमिति एयत्।
गृहपतिं गृहस्य स्वामिनं यजमानरूपं । पत्याविश्वये इति पूवेपदप्रकृतिस्वरः ॥
॥ खच सघ्रमी ॥
। ~ । १चछेदः॥ = [ऋन्८७०६.बन
। , ३्प्रे ्मदभ्येनाहिस्येन शोचिषा तेजसा रक्षः। जातावेकवचनं । सवना
भसान्दह । विनाश्य । किच । ऋतस्य यज्ञस्य गोपा गोपायिता सन् दीदिहि ।
५ दीपस्व
9 ॥ अथाष्टमी ॥ = `
स त्मने प्रतीकेन प्रल्योष यातुधान्यः।
| उरुक्षयेषु दीत्॥४॥ ^ ^
03 सः। लवं । अग्ने । प्रतीकेन । प्रतिं । ओष । यातुऽधा्न्यः।
क उरूऽ येषु । दीय॑त् ॥४॥
ग्रे स त्वं प्रतीकेन वदवयवभूतेन तेजसा यातुधान्यो यातुधानी राक्षसीः
६, प्रतिकृ्टं दह । उष दाहे । भौवादिकः । तोरि हेलक् । जातेरस्तरीविषया-
दिति यातुधानश्ब्टस्य ङीष् । उदात्तस्वरित्तयोयेण इति स्वरितत्वं । किं कुवेन् ।
उरुषछयेषु विस्तीणेषु निवासेष्राहवनीयादिषु दीदत् । दीयमानः ॥
2 ॥ अथ नवमी ॥
ए तं त्वा गीभिररुष्यां हव्यवाहं समीधिरे ।
ए यजिष्ठं मानुषे जने ॥९॥ त
| तं। लला। गीःऽभिः। उरुऽशष्याः। हव्यऽवाहं । सं । धिरे ।
यजिष्ठं । मानुषे । जने ॥९॥ न
बहुनिवासा यजमाना हव्यवाहं हविषां बोढारं मानुषे मनुय-
संबधिनि जने जनमध्ये यजिष्ठं यषटृतमं तं त्वा तां गीभिःस्तुतिभिस्तत्सहिति
५।
इधेिदीधिभवतिभ्यां चेति क्लि नलोपः॥ |
०, अ० १०. सू०११९.] ॥ अष्टमो ऽकः ॥ ` ४१५
॥ तच प्रथमा ॥
वा इतिं मे मनो गामश्वं सनुयामिति । =
कुवित्सोमस्यापामितिं ॥१॥ = ` क
इति । वे । इतिं । मे । मन॑ः । गां । अवं । सतुयां । इतिं । ^
कुवित् । सोम॑स्य । अपाँ । इतिं ॥१॥ = .
इति वा इति सस्वि्येवंप्रकारेण मे मदीयं मनो वतैते । तं प्रकारं दयति ।
गामश्वं च सनुयां स्तोतृभ्यः प्रयच्छामीति । षणु दाने । तानादिकः । इतिशब्दो |
हेतो । यस्मात् कुविद्हवारं सोमस्य सोममपां । पीतवानस्मि । क्रियामहणं कते-
व्यमिति सोमस्य संप्रदानसंज्ञा । चतु्यर्े बहुलमिति षष्ठी । पा पाने । लुडि `
गातिस्थेति सिचो तुर् । कुविद्योगादनिघातः ॥ व
॥ अथ तीया ॥ क
म्र वातां इव दोधत उन्मां पीता ्यंसतत। -
कुवित्सोमस्यापामितिं ॥२॥ = ` 0
मर । वात्ताःऽइव । दोध॑तः । उत् । मा । पीताः । अयंसत । =, `
कुवित् । सोम॑स्य । अपां । इतिं ॥२। 1
दौधतौ भृशं कंपयमाना वाता इव वायवो यथा वृष्षादीनुद्यच्छंते तदवत्पीताः
सोमा मा मां प्रकर्षेणोदयंसत्त । उद्यच्छते । यमेदडिः समुदाङ्भ्यो यमोऽग्रये
। पा०१,३.७५.। इत्यात्मनेपद् । यस्माइहूवारं सोममपां ॥ |
~ वना
उन्मां पीता अयंसत रथमश्वा इवाशवः । ` १ ~:
१ =.
कुवित्सोमस्यापामितिं ॥३॥ =
। मा । पीताः । अयंसत । रथं । अश्ाःऽइव । आआश्वंः।
1 । ॥ अथ चत
५ उप॑ मा मतिरस्थित वाश्रा पुचर्मिव प्रियं व
( कृवित्सोमस्यापामिति ॥४। | = + |
। उप॑। मा। मतिः। अस्थित । वावा । पुचऽईव । परियं
(त कुवित् । सोम॑स्य । अपां । इतिं ॥४॥ ए गि
1 मतिः स्लोतृभिः क्रियमाणा स्तुतिमौ मामुपास्थित । संयोजयति । उपादिव-
(क पूजासंगतिकरणेत्यात्मनेपदं । कथमिव । वाश्रा पुचमिव । यथा वारा शब्दायमाना
धेनुः प्रियं पुचं वत्सं संगच्छति तडत् ॥
2 ॥ अथ पंचमी ॥ | |
अहं तैव वंधुरं पयेचामि हदा सतिं । |
त कुवित्सोमस्यापामितिं ॥५॥
अहं । तष्टाऽइव । वंधुरं । परि । अचामि । हृदा । मतिं ।
| कृवित्। सोम॑स्य । अर्पां । इतिं ॥५॥ ४ ।
॥ तरेव । तषा यथा वंधुरं सारथिनिवासस्थानं । तदान्वोपलष्यते । त्यानं
र्थं वा साधुकरोति तदहं मतिं स्तुतिं हदात्मीयेन मनसा पयेचामि । साधुर
८. । ॥ अथ षष्ठी ॥ | १ +
नहि मं अशिपद्चनाच्छातसुः पंच॑ कृष्टयैः। ` द
५ त्योमस्यापामितिं ॥६॥ ८ स
३ । अधिऽपत्। चन । अच्छौतुः । पंच॑ । कृष्टय॑ः।
। सोम॑स्य । अपाँ । इतिं ॥६॥ =
उभे रोदसी द्यावापृथिव्यौ मे मदीयमन्यं पक्षं चन पक्षमपि प्रति समाने न
भवत्तः ॥
उक्तमथ प्रतिपादयति । महिना महिन्रात्मीयेन द्यां द्युल्ोकमभि भुवं । अभि-
भवामि । तथा महीं महतीमिमां पृथिवीं स्वमहिखराभि भवामि । भवतेतैडिः
»
| ॥ खथ सप्रमी
नहि मे रोद॑सी उभे अन्यं पट चन प्रति | ¢ ३
कुवित्सोमस्यापामितिं ॥७॥ [क
नहि । मे। रोद॑सी इतिं । उभे इतिं । अन्यं । पलं । चन । प्रतिं । =
कुवित् । सोम॑स्य । अरां । इतिं ॥७॥ _
॥ अथा्टमी ॥ =
मि द्यां महिना मुवमभीरमां पंथिवींमहीं।
कुवि्सोमस्यापामितिं ॥६॥ | |
अनि । चां । महिना । भुवं । अभि । इमां । पृथिवीं । मही
कुवित् । सोम॑स्य । अपां । इतिं ॥४६॥ ४ ध
छांटसो विकरणस्य त्र् । भूमुवोस्तिडीति गुणे प्रतिषिद्ध उवङदेश्ः ॥
कुवित् । सोम॑स्य । अपाँ । इतिं ॥९॥ ` =
अथ नवमी ॥
हंताहं पृथिवीमिमां नि दधानीह वेह वां! ="
कृवित्सोमस्यापामि्तिं ॥९॥ = ` =. | ~,
हंत । अहं । पुथिवीं। इमां । नि । दधानि । इह ।.वा । इह । वा ।
1
५
[त
हतेति संभावनायामनुक्ञायां वा । संभावयाम्येतदनुजानामि वा । कि तत् '
पृथिवीमि
मिह वांतरि्े नि दधानि । इह वां द्ुत्टरोक इति हस्तेन
| प° ४, ० ६, व०२७.
॥ ॥
इ . ॥ ऋमग्वेट्ः॥ ` |
1 ञओषं । इत्। पृथिवीं । अहं । जंघनानि । इह । वा । इह । वा ।
<
[षी
॥
५६ कुवित्। सोम॑स्य । अपां । इतिं ॥१०॥ 8 ॥
` अहं पृथिवीमभिलष्यौषं स्वतेजसा तापकमाद्त्यिमिह वांतरिष् इह वा
५ द्युलोे जंघनानि । भृशं यापयानि । इदिति पूरणः । हंर्गत्यथेस्य यङ्तटुगं तस्य .
रोदि श्पो त्टुगनाव्ष्छादसः॥ -
(न ॥ अथेकाटशी ॥ ` ।
॥ ५ द दिवि मे अन्यः पक्षो $धो अन्यम॑चीकृषं । | . ८
1 कुवित्सोमस्यापामिति ॥११॥ = `
( ॥ि दवि । मे । अन्यः । पक्षः । अधः । अन्यं । अचीवृषं ।
कुवित् । सोम॑स्य । अपां । इतिं ॥११॥ ०५८९
मे मदीयोऽन्यः पको दिवि द्युलोके स्यापितः। अधः। पूवाधरावणामसी-
त्यादिनासिप्रत्ययः। प्रवृतेरधददेश्श्च । अधस्तात्पृथिव्यामन्यं पकछमचीकृषं । अकारे ।
| कृष विलेखने । श्यंतस्य त्ुडिः चङि नित्यं इदसीत्युकारदेशः। विलेखनं नामो- ` |
, त्मादनं। उदपादयं । आस्यापयमित्यथः ॥ ध
1, ॥ थय इाटभी ॥ |
` अहम॑सि महामहो ऽभिनन्यसुदीषितः। (4
1 कुवित्सोमस्यापामितिं ॥१२॥ 4 व
स्मि। महाऽमहः। अभिऽनन्यं । उत्ऽइेषितः।
। सोम॑स्य । अपाँ । इतिं ॥१२॥ = ` |
भवं नभ्यमंतरिघं ।
न्रभादेशश्च .। त्शणेनाभिप्रती `
सर 46. चप् ५ ©, सतू ५२७. ॥ | ऋष्टमो ऽ छक: ॥ र ) । ।
१ 8 + ॥ अथ चयोदशी ॥ ~ +~ | ८५
| गृहो याम्यरकृतं | देवेभ्यो हव्यवाहनः । = | (क ध अ
कृवित्सोमस्यापामितिं ॥१३॥ $ ४
गृहः । यामि । अररऽकृतः । देवेभ्यः 1 हव्यऽ्वार्हनः। ।
कुवित् । सोम॑स्य । अर्प । इतिं ॥१३॥ ` छु 1
गृहो हविषां पहीतारंकृतौ यजमानैर्लं कृतो ऽहं देवेभ्य इदरादिभ्यो हव्यवाहनो 1
हविषां वोढा प्रापयिताग्नयात्मा सन्यामि । हवीषि प्रापयामि । या प्रापणे लट्।
हव्ये ऽनंतःपादमिति वहेञ्युट् । जिच्वादाद्युदा्तः। समासे कृट््रपटप्रकृतिस्वरः । 1
इति यस्मात्कु विडहुवार सोमस्य सोममपां पीतवानस्मि। तस्मदेतान्यकाषमितीदः ण
स्वात्मानमेवास्लावीत् ॥ | | (क
| ˆ ॥ इत्यष्टमस्य षषे सप्रविंशो वगः (५
वेदार्थस्य प्रकाशेन तमो हादै निवारयन्! =
पुमथाश्रतुरो देयाहिद्यातीथेमहेश्वरः ॥
इति प्रीमद्राजाधिराजपरमेश्वरवेदिकमा्ैप्रवतैकश्रीवीर बुक्वभूपालसामराज्यधु-
रधरेण सायणाचायंविरचिते माधवीये वेदाथेप्रकाश ऋक्संरिता-
भाथेऽष्टमाष्टके षष्टोऽध्यायः ॥ =
| यस्य निःश्वसितं वेदा यो वेदेभ्योऽखिले जगत्)
| नि्ेमे तमहं वंदे विच्ातीथेमहेषवरं॥ =,
दिदिति नवचैमष्टमं सूक्तमयर्वेणः
। तदिन्रवाधरवैणो बृह
8
५५
४२9 ॥ऋण्वेद्ः॥ .[अ०४. अञ. व०१.
। छ्जा०९.४.। इति ॥ राशिमिणयाख्यायोरेकाहयोरपीदं निष्केवस्यनिविद्धानं । सू-
` निष्केवस्येऽयेततसूक्तं । तथेव पंचमारण्यके शेन
८. यें तां सु ते कीर्तिं मघवन्महित्ेति ॥ ` |
६ ` ` ॥ तच प्रथमा॥
तदिदास भुर्वनेषु ज्येष्ठं यतो जज्ञ उयस््वेषनृम्णः। |
स्यो ज॑जञानो नि रिणाति शचरूननु यं विश्वे मदुतयूमा; ॥१॥ वनाः
तत्। इत्। आस । मुव॑नेषु । ज्ये । यतः । जज्ञे। उपः वेषऽनुम्णः। =
| सद्यः। जज्ञानः। नि। रिणाति। शत्रून् । अनुं । यं । विश्वं । मदति । ऊमाः ॥१।
तज्जगत्कारणएत्वेन सर्ववेदा तप्रसिदं । इच्छन्दोऽ वधारणे । भुवनेषु । भू सायां ।
0 सत्सु पृथिव्यादिषु लोकेषु मध्ये जगत्कारणं जद्येव ज्येष्ठ प्रशस्ततममास । बभूव ।
५ तस्य परमाथेववात् तद्यतिरि क्तानां व्यावहारिकवाच्च । यद्वा ज्येष्ठ वृतमं जगत्का-
रणतेन सर्वेषामादिभूतं बभूव । अस्तेलिटि उट्स्युभयथेति सावेधातुकचाद्
: रिति भ्रूभावाभावः। यद्वा वृद्धं तदेव बह्म स्वप्रकाश्तयास । दिदीपे । खस गति-
` दीघादानेषु। खस्माक्िटि रूपं । यत उपादानभूताद्यस्माङ्ह्यण उग्र उद्ूणस्वेषनृम्णः `
प्रदीघ्रवलः सूयात्मक इट्रो जज्ञे। जातो बभूव । शरूयते हि चोः सूयो अजायतेति।
सूयोाचंटमसो धांत्ता ययापूवेमकल्ययटिति च । जनिकतुः प्रकृतिः । पा०१.४.३०. ।
इति प्रकृ्तेरपादानसंजायां यत इति पंचमी । जनेलिरि गमहनेत्यादिनोपधा-
` लोपः। िवेचनेऽचीति तस्य स्थानिवद्धांवाहिवेचनादि। यद्ुच्तान्धित्यमिति निघा-
न्मदेहादी-
त्प्रतिषेधः। स च जज्ञानो जायमान .एव सद्यः शीघ्रं शचूञ्णा्तयितुन ^
अ 6 बहि
ब्बिह्
। यद्लोपासकानां पापरूपाञ्शः
वे छतुमपिं वृंजंनि विग्र चियेदेते विभेवंूमाः। `
म० १०.०१०. सू०१२०.] ॥ अष्टमोऽ्टकः ॥ = ` ४२
प्राणिनोऽभीषग्रा्या हंति । अनुतवैक्षण इत्यनोः कमैप्रवचनीयत्वात्क्मप्रवच-
नीययुक्त इति हितीया । स ईटौ जज्ञ इत्यन्वयः ॥ ५
| , ॥ अथ हडितीया ॥
वावृधानः शव॑सा भूर्योजाः शचरदौसायं भियसं दधाति! ` |
अव्यनच्च व्यनच्च सल्ल सं तँ नव॑ प्रता मरु ॥२॥ -
` ववृधानः। शवसा । भूरिंऽञ्ओजाः। शत्रः । दासां । भियसं । ट्धाति।
अविंऽञ्जनत्। च। विऽञअनत्। च। सलि । सं । ते। नवत । प्रऽभुंता । मदेषु ॥२॥
शवसा बलेन ववृधानो वधेमानोऽत एव भूर्योजा बहूवल्दः शचः शातयितें
दासायोपक्षयकारिणे शचवे भियसं भीतिं दधाति । विदधाति करोति। खव्यनत् ।
विविधमनिति श्वसितीति व्यनत् प्राणवज्जंगमं । तद्िलकषणमव्यनत् स्थावरं ।
तदुभयमपि सलि संलातमिदरेण सम्यक्डोधितं भवति । सातेराहगमहन इति `
व्यत्ययेन कमणि कन्प्रत्ययः । यहां तणीतिणयथोत्कतेर्येव किन् । वृ्यादिना सम्यक् `
लापयिता शेधयिता भवति । न लोकाव्ययेति कमणि षष्ठयाः प्रतिषेधः । शिष्टः `
पादः प्रत्यृतः । हे इट् ते तव मदेषु हरषषु हविषा सुत्या च जातेषु सत्सु प्रभृता
प्रभूतानि प्रकर्षेण धृतानि पोषितानि वा स्वीणि भूतजातानि सं नवत्त ।
संगच्छले । स्तोतुं ह वीषि च दातुं समूहीभवंतीत्यथेः । नवतिर्गतिकमै । प्रभृता ।
विभर्तेः कमणि निष्ठा । शष्छंदसि बहुलमिति शपः । गतिरनंतर इति गतेः
प्रकृतिस्वरत्वं ॥
॥ अथ तृतीया ॥ ध ष
चष 1 भके
भ ॥ ५
` स्वादौ; स्वादीयः स्वादुना सृजा समदः सु मधु सधुनामि योधीः ॥३॥ =
क) & १.५५
श
:। स्वादीयः, स्वादुना। सृज। सं। खदः। सु। मधु । म्धुना। अभि। योधी
\ 0 ॥ 4 ¢
चे इतिं । ऋतुं । अपि । वृंजंति । वि । डिः। यत्। एते । चिः। भव॑ति । ऊर्माः
. , ॥ऋण्वेदः॥ [अ०६.अ०७.व०१.
| ४ ब्राहमणं । चयीमानि सवीणि भूतानि सवीणि मनांसि सरवे ऋत वोऽपि वृंजंतील्येव
तदाहेति \ यद्यस्मादेत ऊमास्तपैकाः । अवतेस्तपेणाथादौीणादिकी मन्प्रत्ययः ।
रत्वरत्याटिना वकारोपधयोरूट् । ईहश यजमानाः पूवेमेकाङिनः संतः पश्चा-
` हदषिवारं सखीरूपेण पुंरूपेण च जाताः संतः पुनरपत्येन साधं चिचिवारं जन्म-
भाजो भवंति। एक एवात्मा स्तीपुंरूपेण जायते । अधो वा एष आत्मनौ यत्प-
त्नीति श्रुतेः पुबोऽ पयाल्मिव । आत्मा वे पुचनामासि । श० ब्रा १४.९.४.२६.। इति
तेः । यत एवमेते ऽभिवृद्धा भवंति ततौ ऽ वगम्यते त््येवानुष्ठितं सवे कमे परि
समापयंतीति । तथा च ब्राह्मणं । बलो वे संतो भिथुनो प्रजायते प्राजापव्येति । `
हे इट् त्वं स्वादोः प्रियाद्ृहधनादेरपि स्वादीयः स्वादुतरं प्रियतरमपत्यं स्वादुना
स्वादुभूतेन मिथुनेन मातापिचात्मकेन सं सृज । संयोजय । यहा स्वादुना भावे
0 नोत्पन्नं तदपत्यमपि संयोजय । एतदेवाह । अटस्तदपत्यं सधु मधुर मधु -
५. हेतुना मिथुना तरेण पौचेण वा सु सुषभि योधीः । खभियोधय । अभितः ऋरीडय ।
धातूनामनेका्ेत्वाद्युध्यतिर ्रीडार्थे वतेते ¦ मिथुनं वे स्वादु प्रजा दि
बराह्मणमवानुसंधेयं ॥ 11
५ ॥ खथ चतुर्थी ॥ |
त्वा धना जर्यतं मदेमदे अनुमति विप्राः
यो धृष्णो स्थिरमा तनुष्व मात्वा दभन्यातुधाना दुरेवाः ॥४॥ धि
इतिं। चित्। हि। वा । धना । जयतं । मदऽमदे। अनुऽमरदति । विप्रः । `
ञओजींयः। धृष्णो इति स्थिर। आ। तनुघ्। मा। ता! दभन्। यातुऽधाना।ः।दुःऽएवा:॥४।
#
ण
तयु हे इद मदे मदे सोमपानजन्ये हषे सति धना शवुध-
ति त्वामनु पश्चात् । लक्षणेऽनोः कमैप्रवचनीयतवं ।
मदति । हष्यति । यद्वा त्वामनुमदंति । अनुक्रमेण
चेति निघाततप्रतिषेधः। हे धृष्णो शच
` म०१०.अ०१०.सू०१२०.] ॥ अषशटमोऽषटकः ॥ ` . . ४२३
४ ॥अथणपंचमी॥
` त्वयां वयं शश्दहे रणेषु प्रप्यंतो युधेन्यानिभूरि।
॥ 1
॥ भै
चोदयामि त आयुधा वचोभिः सं ते शष्णमि ब्र्य॑णा वयांसि ।
५
त्वयां। वयं । शशब्यहे । रणेषु । प्रऽप्य॑तः । युधेन्यानि । भूरिं । =
भैक ॥, | १ ॥ क । ॥ 1
चोदयामि । ते। आयुधा । वच॑ःऽभिः। सं । ते । शिण्णामि । बर्ण । वयांसि ॥५।
॥ 1
हे इद्र त्वयानुगुहीता वयं रणेषु संमामेषु शश्द्यहे । भृशं शचञ्शतयामः। शट्
शातने । अस्माद्यङंतान्महिङ-ष्छंदस्युभययेत्याधेधातुकवादततोल्मोपयल्ोपौ । किं
कुवेत्तः । युधेन्यानि योधनाहौशि । कृत्यार्थे त्तवेकेन्केन्यत्वन इति युधेरहीर्थे केन्य-
प्रत्ययः । भूरि बहूनि बहत्ानि । सुपां सुत्टुगिति शसो लुक् । प्रपश्यतः प्रकर्षेण
जानतः । खपि च ते तवायुधायुधान्यायोधनसाधनानि वजादीनि । शेष्षछटसि
बहुलमिति शे्टोपः। वचोभिः स्तुतिभिश्चोदयासि । शचून्परति प्रेरयामि । ते त्वदधं
ब्रह्यणा मचे स्तुतिरूपेण सहितानि वयांसि । अन्नामेतत्। हवित्ठेसणान्यनानि
सं शिशामि । सम्यग्मिश्यामि । संसकरोमीत्यथेः। शो तनूकरणे । खादसो विकार-
णस्य चुः । बहुत्ठे डदसीत्यभ्यासस्येतवं ॥ ४
॥ इत्य्टमस्य सपमे प्रथमो वगै; ॥ = . `
॥ अथ षष्ठी ।
सतुषेय्यं पुरुवपेसमृभ्वमिनतममाधमाथानां । ष
आ द॑षेते शव॑सा सप्र दानून्प्र साते प्रतिमानानि भूरिं ॥६॥
+
सपेयं । पुरुऽवपैसं । ख्व । इनऽत॑मं। आं । आधानं ।
भ्
। शव॑सा । सप्र । दानून्। प्र। साते । प्रतिऽमाना॑नि।
प्य ॥ 9 । ॥ # च्यक
, ॥ ऋग्वेदः ॥ ` [० ४, ०9. व०२, छ
` सुरवत्कानि प्र साते य इदः प्रसहते । यदा वहूनि प्रतिमानान्यसुराणां स्थानानि `
। ` प्र साते । प्राप्रोति । साक्षतिराप्नोतिकर्मेति यास्कः । षह अभिभवे । लेव्यडा- ॥
। गमः। सिद्रहृतमिति सिप् ! टवकत्षत्वानि । खांदसो दीधः ॥ र
६ | `: ॥ अय सघ्रमी॥ | . ।
नि तर्हधिषेऽव॑रं परं च यस्मिन्नाविथावसा दुरोणे ।
| आ मातरा स्थापयसे जिगत्नू अतं इनोषि क्वैरा पुरूणि ॥७॥
` नि) तत्। द्धिषे। अवरं । परं । च । यस्मिन्। आविथ अवसा ।दुरोणे।
1 आ। मातर । स्यापयसे। जिगत्नू इतिं । अत॑ः । इनोषि । क्वैरा । पुरूणि ॥७॥ =.
तदस्मिन्यजमानस्य गृहेऽवरमस्यं भोमं धनं परमुत्कृष्टं दिवि भवं धनं च हे इट्
1 त्वं नि दधिषे । निदधासि । निकिपसि यस्िन्दुरोणे गृहेऽवसा । अन्ननामेतत् । ध
तपेकेणान्ेन हविलैक्षणेनाविथ। अवसि तृयसि । अवतेस्तृ्थेद्छदसि लुङ
लङ्कलिट इति सावैकाल्किको लिट् । खत आदेरित्यभ्यासस्यालवं । यदुत्तान्नित्यमिति र
निधातप्रतिषेधः। अपि च मातरा सकलस्य भूतजातस्य निमाच्यौ द्यावापृथिव्यौ
जगन्न गमनणीले इतस्ततः प्रचत्ेत्यावा स्थापयसे। स्वकीये स्थानेऽवस्यापयसि। `
५ नेश्चस्येन यथावतिेते तथा करोषीत्यथैः। विष्रक्स्तन पृथिवीमुत द्यामिति नि-
गमातरं । १०.४९.४.। हे इद्र अतः कारणात्पुरूणि बहूनि कवेरा । कमेनामेतत्। ` `
-कवैरणि । शेष्डंदसि बहुलमिति श्लोषः । कमणि त्टौकिकानि वैदिकानि `
: चेनोषि। प्राप्नोषि! इण गतौ । व्यत्ययेन शरुः ॥ ४ न
ववेक्तीदराय म्ूषमयियः स्वषाः।! |
दुरश्च विष्वं अवृणोदप स्वाः ॥४॥ =.
विवक्ति । इय । भूषं । अगियः। स्वःऽसाः।
५
5
म०१०. ख०१०. सु०१२०.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ४२५
प्रसुखः श्रेष्ट इत्यथः । घच्छौ चेत्ययरशन्टाद्धवार्थे घच् । स्वषोः स्वगस्य संभक्ता। `
॥ स्वरदित्य इदः । असो वा आदित्य इद् इति श्रुत्यंतरात्। तस्य संभक्ता सेवक क
| ¦ । वन षण संभक्तो । जनसनखनक्रमगमो विट् । विडुनोरनुनासिकस्या- ` त
. दित्यां । सनोतेरन इति षल्वं । य इटो महतौ गोचरस्य पवैतस्य वलेनासुरेण
गवां पिधानाथे निहितस्य स्वराजः स्वयमेव राजमानस्य । क्रियायहणं कतैव्य- अ
सिति कमणः संप्रदानवाचतुथ्येर्थे षष्ठी । ईहशं पवेतं सयति । अपगमयति। सि `
छये । भो वादिकः। या गोश्ब्यातसमूहाथे इनिचकट्यय चश्वेति चप्रत्ययः। गोचरस्य
गौसमृहस्य महो महतः स्वराजः स्वयमेव राजमानस्य य इटः पसयत्ति । ईशे । |
छयतिरेश्वयेकमा । स्वशब्टोपपटाद्राजतेः सत्सूडिषेति किप् । कृट््तरपटप्रकृति-
रत्वं । दुरश्च विल्ृद्वाराणि च विश्वाः सवः स्वा वलासुरस्य स्वभूता अपावु- `
णोत्। खपगतावरणा अकरोत् । उद्वाटितवानित्यथंः। यहा टुरश्चापावृणोदिश्वा
` सवाः स्वाः स्वभूता गा विल्सध्ये वत्तेमाना अत्भतेति रेषः। एवंभूतो य इद्- 4
स्तस्मा इदाय विवक्तीत्यन्वयः ॥ | « + 2
॥ अथ नवमी ॥ ^
एवा महान्वृहहविवो अथवेवो चल्स्वां तन्व 4 मिंद्रमेव ।
स्वसारो मातरिभ्वरीररिप्रा हिन्वंतिं च शव॑सा वध्यति च ॥९॥ ०
एव । महान् । वृहत्ऽ्दिवः। सथ॑वा । अवं चत् । स्वां । तन्वं । इर । एव । `
सारः । सात्तरिभ्विरीः। अरिप्राः । हिन्वंतिं । च । शव॑सा । वध्यति । च५।९॥
महान्गुणेरधिकोऽथवे । उपचाराज्जन्ये जनकषब्टः ¦ यवर; पुचो बृहदि-
वाख्य ऋ षिदवेषु मध्य इद्रमेव प्रति स्वामात्मी यां तन्वं विस्तृतां स्तृतिमेवमवोचत्।
॥
२ .॥ क्ग्वेट्ः | प० ४, प० 9, व्°
| दिरण्यगमे इति दशचं नवमं सूक्त प्रजापतिपुचस्य हिरण्यगभाख्यस्याषे चेषुभं।
कश्ब्टाभिधेयः प्रजापतिर्देवता । तथा चानुक्रतं । हिरण्यगर्भो दश हिरण्यगभैः
जापत्यः कायमिति । गतः सूक्तविनियोगः ॥ प्राजापत्यस्य पशोवेपापुरोडाश- ~
हविषां ऋमेणदितस्तिसोऽनुवाक्यास्सतस्तिसो याज्याः । सूचितं च । हिरण्यगभेः ध
| समवतेताय इति षट् प्राजापत्याः । आ ३.४.। इति ॥ वरुणप्रघासेषु कायस्य
1 हविषो हिर्णयगभ इत्येषा याज्या । सूचितं च । कया नश्िच आ गुवद्धिरण्यगभः
| स्मवतेताय इति प्रतिप्रस्थाता वाजिने तृतीयः । आ०२.१७.। इति ॥ |
॥ ॥ सेषा प्रथमा ॥ ध
हिरण्यगर्भः सम॑वतेतायें भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् । |
स दाधार पृथिवीं दयामुतेमां कस्म देवाय हविषां विधेम ॥१॥ .
हिर्ण्यऽगभः। सं। अवर्तत । ख्ये । भूतस्य॑ । जातः । पतिः । एक॑ः। आसीत् । |
सः दाधार, पुथिवीं। दयां । उत्त । इमां । कस्म । देवायं । हविषां । विधेम ॥१॥
। ॥ ॥ क । नि ॥ 0 १ अन जनक
हिरण्यगर्भो हिश्ण्मयस्यांडस्य गमभेभूतः प्रजापतिरहिरण्यगभैः । तथा च तैच्चि- `
। रीयकं । प्रजापतिर्वे हिरणयगभेः प्रजापतेरनुरूपत्वायेति । यद्वा हिरण्मयोऽडो `
गभैवद्यस्योदरे वतैते सोऽसौ सूचात्मा हिरण्यगभ इत्युच्यते । अये प्रपंचोत्पत्ैः `
प्रार् समवतेत । मायाध्यक्षात्सिसुस्ोः परमात्मनः सकाशत्समजायत । यद्यपि
रमाक्मेव हिरण्यगभस्तथापि तदुपाधिभूतानां वियदादीनं सूष्छभूतानां ह्ण `
भूतस्य विकारजातस्य ब्यांडदेः सर्वस्य जगतः पतिरीष्ठर आसीत्। न केवलं ६
विस्तीण द्यां दिवमुतापिन्वेमा- `
मिमां भूमिं। यद्वा पृथिवीत्यतरिर्नाम । खंतरिषं
म०१०.अ०१०. सू०१२१.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥ ४२७ ` `
+
भावः सिद्धः। यदा तु योगिकस्तदा व्यव्ययेनेति द्ष्टव्यं । सावेकाच इति
स्य नं गोश्वन्सा ववति प्रतिषेधः । क्रियायहणं कतेव्यमिति कमणः संप्रदा- `
नत्वाच्तुर्थी । कं प्रजापतिं देवाय देवं दानादिगुणयुक्तं हविषा प्राजापत्यस्य कर
| पशशोवेपारूपेणेक्रकपालात्मकेन पुरोडाशेन वा विधेम । बयमृषिजः परिचरेम । न
धतिः परिचरणकमेा ॥ | 9 ५
| ॥ अथं डितीया ॥
` य आत्मदा बलदा यस्य विश्वं उपासंते प्रशिषं यस्य॑ देवाः व
यस्यं छायामृतं यस्यं मृत्युः कस्में देवाय हविषां विधेम ॥२॥ म
| ; । स्रात्मऽटदाः। बत ऽटाः । यस्यं । विश्वे । उपऽञ्ासते। प्र ऽ शिर्ष । यस्यं । देवाः। कर
1 # वि पयय
^ यस्य॑! हाया। अमतं । यस्य॑ । मृत्युः । कसमै । देवाय॑ । हविषां । विधेम ॥२॥ ५
॥ 0 # ॥ 1
॥
1
॥
` = : यः प्रजापतिरात्मदा आत्मनां दाता । आत्मानो हि सर्वे तस्मात्परमात्मन
उत्पद्यते । यथाग्नेः सकाशङिस्फुत्विगा जायते तडत्। यद्वा । आत्मनां णोधयित्ता। `
देष् शोधने । आतो सनिनिति विच्। बलदा बलस्य च दात्ता शोधयित्तावा।
। यस्य च प्रशिषं प्रकृष्टं शणसनमाज्ञां विश्वे सर्वे प्राणिन उपास्ते प्राथेयते सेवते
` वा। शासु अनुशिष्टौ! शस इटित्युपधाया इत्वं । शासिवसिघसीनां चेति षलरं।
- कृटुत्तरपदप्रकृतिस्वरतं । खासेरनुराचेचाल्षसावेधातुकानुदात्तवे धातुस्वरः । तिङि |
चोदात्तवतीति गत्िरनुदात्ता । तथा देवा अपि यस्य प्रणशसनमुपासते । अपि
चामृत्तममृत्वं। भावप्रधानो निर्दशः। यामृतं मरणं नास्त्यस्मिन्नित्यमृत्तं सुधा ।
, ` बहूवीहौ नजो जगरमरमिचमृता इत्युत्तरपदाचुदाच्तवं । तदपि यस्य प्रजापतेष्छाया
छायेव वति भवति। मृल्युयेमश्च प्राणापहारी इायेव भवति तस्मे कस्मे देवायेत्यादि
` समानं पूर्वेण हविषा पुरोडाशत्मनेति तु विशेषः ॥
॥ खथ तृतीया ॥
र ॥ कृग्वेटः ॥ अ०४, अ०9, व०३,
% १
| विभक्तेरुटाचत्वं । निमिषतोऽसिपद्मचल्नं कुवेतः । अचापि पू वेवडिभक्तिस्-
, दात्रा! जगतो जंगमस्य प्राणिजातस्य महित्वा महेन । सुपां सुलुगिति तृती-
| : याया आकारः, माहात्म्येनेक इदहितीय णव सन् राजा बभूवेश्वरो भवति ।
| भवतेणेलिि लितीति प्रत्ययात्पू वैस्योदाच्तवं । अस्य परिहश्यमानस्य हिपदौ पाद-
~ ` इययुक्तस्य मनुषयदेश्वतुष्पदो गवाश्वदेश्च यः प्रजापतिरीश् ईष्टे । ईश रश्व । ।
^ आदादिकोऽनुदाहेत् । तपस्त आत्मनेपदे्चिति तलोपः! अनुदाततत्वाल्लसा्व- ` `
. धातुकानुदाच्चत्े धातुस्वरः । अस्य । ऊडिटमितीदमो विभक्तिरुदात्ता । लो पादौ
यस्य स हिपात् । संख्यासुपू वेस्येति पादशब्दस्यात्यलोपः समासांतः । भसंज्ञायां
पादः पदिति पद्चावः। हिचिभ्यां पाहनित्येकदेशविकृतस्यानन्यत्वादुत्तरपटांत्तो-
। दातं । स्वरवजंमेषेव चतुष्पद इत्यापि प्रक्रिया । बहवीहौ प्रकृत्येति पूवेपद-
| प्रकृतिस्वरः । पूवेपद् नः संख्याया इत्यादयुदाच्तत्वं । इदुदुपधस्य चाप्रत्ययस्येति
|... विसजेनीयस्य षलं । उहशे यः प्रजापतिखस्मे कस्मा इत्यादि सुबोधं हविषा `
। हदट्याद्यात्मनेत्ययमच विशेषः ॥
+
॥ अथं चतुर्थी ॥ +
यस्येमे हिमवतो महित्वा यस्य॑ ससद रसयां सहाहुः
यस्येमाः प्रदिशो यस्य॑ बाह क्समे देवाय हविषां विधेम ॥४॥ | १
*)#
५ ` यस्यं। इमे । हिमऽ वतः । महिऽत्वा । यस्यं । समुदं । रसया | सह । आहः । ५
` यस्यं । इमाः, प्रऽदिश्ः। यस्यं । बाहू इतिं । कस्म । देवाय॑ । हविषां । विधेम ॥४॥ `
८ सति लन् न भति कत जका मो
यथा चिणो गच्छन्तीति । हिमवतो हिमवदुपलधिता इमे हश्यमानाः सर्वे प्वेता `
महच्वं माहात्म्यमेश्वयेमित्याहुः । तेन सृष्टत्ाचटूपेणावस्था-
रसो जले । तद्वती रसा नदी । अणशेञ्रादित्वादच् । जाता- `
कीः ।
1 मान ॥५॥
५ नं । चयोः। उया । पृथिवी । च । हट्ट्हा। येन॑ । स्वरिति । सतभितं येन॑ । नाकः।
यः अंतरि छे । रज॑सः । विऽमानंः । कस्म । देवाय॑। हविषां । विधेम ॥१॥ `
|, 1 बणे
3
५११ येन प्रजापतिना चोरतरिक्मुयोद्रूणै विशेषागहनरूपं वा । पृथिवी भूमिश्च
हट्ट्हा येन स्थिरीकृता । स्वः स्वश्च येन स्तभितं स्तब्धं कृतं यथाधो न पतति ।
तयोपयेवस्थापितमित्यथैः। य सित्तस्कभितस्वभितेति निपात्यते । तथा नाकं स्मदि ०
3 त्यश्च येनांतरिषे स्तमित्तः । यातरि रजस उटकस्य विमानो निनाता तस्मै
कसा इत्यादि गतं ॥
॥ इत्यष्टमस्य सघ्नमे तृतीयो वर्मः ॥
॥ सथ षष्ठी ॥ | 1
॥ कटसी अव॑सा तस्तभाने अभ्यक्तं मन॑सा रेज॑माने ।
यत्राधि सूर उर्दितो विभाति क्समे देवाय हविषां विधेम ॥६॥
` यं कर्दसी इतिं । अव॑सा। तस्तभाने इतिं । अभि। रेकषैतां। मन॑सा रेज॑माने इति।
~ यच्॑। अधिं । सूरः। उत्ऽइतः। विऽभातिं । कसम । देवाय । हविषां । विधेम ॥६।
ऋदितवानोदितवाननयोः प्रजापतिरिति करंदसी द्यावापृथिव्यौ । चयते हि
यट्रोदीच्तटनयो रोटस््वं । ते० ब्रा० २,२.,९. ४.। इति । ते अवसा ररे
॥
आपं ह यद्ुहतीविश्वमायन्गभे दधाना जनर्यती |
ततौ देवानां सम॑वतेतासुरेकः कमे देवायं हविषां ॥७॥
1 पजक
आपः। ह । यत्। वृहतीः। विं । आयन् । गभ । दधानाः । जनय॑तीः । अगिं
तत॑ः। देवानं । सं । अवतत । असुः । एवः । कसे । देवाय । हविषां । विधेम ॥७॥
बे किलक पोत शग |, क
बृहतीर्हत्यो महत्यः । जसि वा हंटसीति पूवैसवणेदीषेः। वृहन्महतोरूपसं-
व्यानमिति डीप उदात्तत्वं । अप्रं । उपत्क्षणमेतत्। अग्न्युपल सितं सवे विय-
दारिघूतजातं जनयंतीजेनयत्यः । तदथं गभे हिरण्मर्याडस्य गभभूतं प्रजापतिं
दधाना धारयं आपो हाप एव विश्वमायन्। सवे जगद्याप्रुवन् । यद्यस्मात्ततस्त-
। स्माङतीर्दिवानां देवादीनां सर्वेषां प्राणिनामसुः प्राणभूत एकः प्रजापतिः सम-
व्तेत। समजायत। यद्या यद्यं गभे दधाना आपो विश्वात्मना वस्थितास्ततो गभेभूता-
८ त्मजापतेर्देवादीनां प्राणात्मको वायुरजायत । अथवा यत् । लिटिंगवचनयोव्यत्ययः
उक्तलष्णा या पो विश्वमावृत्य स्थितास्ततस्ताभ्योऽद्यः सकाशदेकोऽहिती-
योऽसुः प्राणात्मकः प्रजापतिः समवेत । निश्वक्राम। तस्मे कस्मा इत्यादि गतं ॥
५ ॥ सखयाष्टमी ॥ `
स्विदा महिना पयय दाना जनीय ।
यो देवेष्धिं देव एक आसीत्कस्म देवाय हविषां विधेम ॥४॥ `
५
चित्। आप॑ः । महिना । परिऽऋअप॑श्यत् । दषं । दधानाः। जनय॑तीः । यज्ञं
हविषां । विधेम ॥४॥
४
1
म०१०.अ०१०. सू०१२१.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥ ४३
क ` ॥ अथ नवमी ॥ . ४ र.
[ | हिंसीज्जनिता यः पुंचिव्या यो वा दिवं सत्य्धमा जजान ।
य्चापश्वदरा वुंहतीजेजान कस्में देवाय॑ हविषां विधेम ॥९॥ »
ध मा। नः हिंसीत्। जनिता। यः। पृथिव्याः यः। वा । दिवं । सत्यऽधमोा। जजानं ।
यः। च । अपः । चंद्राः । वृहतीः। जजानं । कस्म । देवाय॑ । हविषां । विधेम ॥९॥
स प्रजापतिर्नोऽस्मान्मा हिंसीन्मा बाधतां यः पृथिव्या भूमेजेनिता जनयिता |
खष्टा । जनिता मच इति शिल्पो निपात्यते । उदात्तयणो हस्पू वादिति पृथि- +
शब्दाद्िभक्तेरुदात्ततवं । यो वा यश्च सत्यधमेो । सत्यमवित्तयं धमे जगतो धारणं
¢ यस्य स ताहशः प्रजापतिटिवमंतरिक्षोपलषितान्सवाल्लोकाज्ञजान । जनया- क:
मास । जनी प्रादुभोवे। णिचि वृन्लो जनीजृष्क्रमुरंज इति मिलान्मितां हस्व इति क
हृस्वत्वं । ततो लिट्य॒मंच इति निषेधादाम्परत्ययाभावे तिपो णलि वृह्धो त्वितीति =
्त्ययात्पू वैस्योदाच्ततवं । यश्च बृहतीमेहतीश्वदरा आह्वादिनीरप उदकानि जजान `
` जनयामास । ऊडिदमित्यादिनाप्शब्दादु्तरस्य शस उदात्तत्वं । तस्मे कस्मा इ्या- ५
^ रि ट् गतं ॥ | | न? 9 ५ [ि (ए ४
क -इठ्छादधाख्य इष्ययने प्राजापत्यस्य हविषः प्रजापत इत्येषानुवाक्या । सूचितं `
च) प्राजापत्य इठ्छादधः प्रजापते न त्वदेतान्यन्यः । आ २.१४.। इति ॥ केशनख- ५
1 कीटादिभिदुष्टानि हवी्नयेवाप्सु प्रिपेत्। सूचितं च। अपोऽभ्यवहरेयुः प्रजापते
` . न लदेतान्यन्यः। खा ३. १०.। इति ॥ चोत्ादिकमेस्वपयेषा होमाय । सूचितं च ।
तेषां पुरस्ताच्चतसर आज्याहतीजहयादग्र आयूंषि पवस इति तिसृनिःप्रजापते न
८. ( वदेतान्यन्य इति ध शारग् १४. इति ॥ 1
/ ॥ तेषा दशमी ॥ ` 0 ८; य
परि ता बभूव ।
स
य
४३२ क ॥ ऋण्वेदः॥ [अ०४, अञ, वरप,
सवाणि। शष्डंदसि बहुलमिति शेलोपः। जातानि प्रयमविकारभांजि ता तानि
~ ४ +
|. सवाणि भतजातानि न परि बभूव । न परिगृह्ाति। न व्याप्नोति । लमेवेतानि
| रिगृह्य खषटं शक्रोषीति भावः। परिपूर्वो भवतिः परियहाथेः। वयं च यत्कामा ध
यत्फलं कामयमानास्ते तुभ्यं जुहुमो हवींषि प्रयच्छामस्तत्फत्ं नोऽस्माक्मस्तु । `
भवतु । तथा वयं च रयीणां धनानां पत्तय ईश्वराः स्याम । भवेम । नामन्यतर- ।
स्यामिति नाम उटाचवं ॥ ५ 1
१, १ च न 11
१० ॥ इत्य्टमस्य सप्रमे चतूर्थो वगैः॥ ४
वसुं नेत्य्टचं दशमं सूक्तं वसिष्टपुचस्य चिमहस आषेमाग्रेयं । आद्यापं च
चिष्टभो शिष्टा जगत्यः । तथा चानुक्रांतं । वसुं ना्टौ चिचमहा वासिष्ठ आग्नेयं
9 7गतमाद्यां पंचमीं चते इति ॥ प्राततरनुवाकाश्विनशस्वयोराप्रेये ऋतौ जागते
` ईदसीदं सूक्तं सूचितं च वसुं न चिचमहसमिति जागतं । खा०४.१३.। इति ।
( ॥ तच प्रथमा, ४
। वसुं न चिचम॑हसं गृणीषे वामं शेवमतिथिमदषिण्यं। . ` ¢
५ स रासते शुर्धों विश्वधांयसोऽम्नर्ोतां गृहपतिः सवीय ॥१॥ ६
त वसं । न । चिचऽ म॑हसं । गृणीषे । वामं । शेवं । अतिथिं । अदिषेरयं।
वस् न वासवं सूयेमिव चित्रमहसं चायनी यतेजस्कमम्नि गुणी षे। गुणे स्तौमि ॐ
“ क सः। रासते। मुरुध॑ः। विश्वऽधांयसः। अप्निः। होत । गृहऽप॑तिः। सुऽ वये ॥१।
संप्रत्यये । संप्रति वासकमप्रिमहं चिचमहाः स्तौमि! कीहशं। ॥
मुखकरमतिथिमतिथिवत्पूज्यं । यदा हविवैहनाय सततगा- `
केनिति केन्यप्रत्ययः । नञा बहू
दोः , , „`
१
म०१०. अ० १०. सू०१२२.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ &३उ `
मीश्वरः । गेहे क इति यहः कप्रत्ययः । प्रहिज्येत्यादिना सं
इति पू वेपदप्रकृतिस्वरत्ं । शोभनं वीय यस्येति बह
टाद्यटा चत्व
तारणं । पत्यावेश्वयै `
वीरवी्यो चेव्युत्तरप- ` `
॥ थय हित्तीया ॥ |
जुषाणो छग्ने प्रतिं हये मे वचो विष्वानि विद्धान्वयुनांनि सुक्रतो । | ५
धृत॑निरिग्बमणे गातुमेरय तवं देवा अ॑जनयन्बनुं तरतं ॥२॥
्
जुषाणः । खगन । प्रतिं । हये । मे। वच॑ः । विश्वानि । विह्ान्। वयुनानि । सुक्रतो ` ष
॥ ति । 1
इति सुऽक्रतो ।
धृत॑ऽनिनिक्। बरहयणे। गातुं! आ । ईरय । तव॑ । देवाः। अजनयन्। अनु । वतं ॥२॥
हे खम्ने जुषाणः प्रीयमाणस्वं मे मम वचो वचनं स्तोचं प्रति हय । कामयस्व । ध
यै गतिका्योः। तथा हे सुक्रतो शोभनकमेन् शोननप्रज् वाचं विश्वानि सवशि
वयुनानि । ज्ञाननामेतत् । इह लातव्ये वतेते । लातव्यान्यथ॑जातानि विद्वाज्ञा- | `
नन्वतेसे । हेतो शतृप्रत्ययः । यत्तौ जानासि ततो हेतोमेदचनं कामयस्वेत्यथैः ।
हे धृतनिणिक् ुतेनाज्येन निशिज्यमान पुष्यमानशरीर। णिजिर् शौचपोषणयोः
यद्वा निखिगिति रूपनाम । दीघ्ररूपाग्रे बहणे बाद्यणाय यजमानाय गातुं गा-
- तव्यं ज्ञातव्यं वा यज्ञमेरय । आगमय । तव चरतं त्वदीयं यज्ञकमानु पश्चादेवा
|. | इद्रादयः सवेंऽजनयन्। यजमानाय फलानि जनयति । खतस्वदीयं यज्ञ यजमा-
` नाय प्रापयेव्य्ः। लक्षणेऽनोः कमेप्रवचनीयतवं । वततमिति कमप्रव चनी युक्त
इति हितीया । जनेख्येताच्छांदसो तङ् । जनीजुष्क्रसुरजो मंता्वेति भिचा-
न्मितां इृस्ठ इति हृस्वलं ॥ ` ॥
4 ॥ अथ तृतीया ॥ | -
सप्र धामानि परियनर्मर्यो दाश्दागुषं सुकृतं मामहस्व!
॥।
सु 9
ने । परिऽयन्। अम्॑यैः । दाश॑त् । दामे ।
1
४३४ र 4, ॥ ऋग्वेदः ०४, ०3. व०५.
म हवीषि दाशत् प्रयद्छति तस्मे दापषे ट्तवते सुकृते सुषु यागं कृत वते मामहस्व ।
| अपेशितं धनं दटस्व । महतिदीनकमे । सुकमेपापेत्यादिना सुपू वोत्कृजो भूति
काते किप् । यश्च यजमानः समिधा समिंधनसाधनेनेध्मेन हे ग्रे ते त्वामानट्
ह प्राप्नोति नशति्गतिकमी । अस्माद्छादसो लङ् । बहुलं इदसीति शपो त्ुर्।
छंटस्यपि हश्यत इत्याडागमः । अश्नोतेव व्यत्ययेन श्रम् । तं यजमानं सुवीरेण । ८
श्ोभनवीरः पुत्रा यस्य । वीरवीर्यो चेत्यु्तरपदाद्युदाचतवं । ताहशेन स्वाभुवा सुषा
समं्ाद्ष्णुना व्धिष्णुना रयिणा धनेन दातवयेन साधे जुषस्व ॥ न 0
॥ खथ चतुर्थी ॥ |
यज्ञस्य केतुं प्रथमं पुरोहितं हविष्मंत इच्छते सप्र वाजिनं ।
भृखंत॑मम्रिं घृतपुहमुश्णं पणत देवं पुंणते सुवीये ॥४॥ ५
ए
यज्ञस्य । कतुं । प्रथमं । पुरः ऽहितं । हविष्मतः । ईव्छते। सप्र। वाजिनं ।
9 भृतं । म्नि । धृतऽपुष्टं । उक्षण । पृतं । देवं । पृणते । सुऽवीय ॥४॥ .
` यज्ञस्य यागस्य क्तु प्रज्ञापकं प्रथमं सर्वेषु देवेषु सुख्यं प्रथमस्थानं वा पुरोहितं
परतो हितकारिणं । यद्वा पुरस्तात्पूवस्यां दिश्याहवनीयरूपेण निहितं । पूवा- ५
| धरेत्यादिना पूवैशब्टादसिः प्रत्ययः । तत्संनियोगेन प्रकृतेः पुरदेशश्च । तदधित- `
` | आ्रासवेविभक्तिरित्यव्ययसंजञायां पुरोऽव्ययमिति गतिसंज्ञा । धाजः कमणि निष्टा! `
` दधातेहिः। ततः समासे गिरनंतर इति गतेः प्रकृतिस्वरत्वं । वाजिनं बलवं- `
तमन्लवतं वा मृखतमस्मल्स्तुतीः आओोचेण जानत धृतपृष्ठं दीघ्रपुष् दीप्नांगमुक्षणं . ` ५)
दि भक्तार युवानं पृणते हविभिः प्रीणयिने ५
शने । तौदादिकः। शतुरनुम इति विभक्तेरुदात्तत्ं ।
रीषि ददते यजमानाय पृतं
द्योतमानं दानादिगुणयुक्त
, च]
म०१०. अ०१०. सू०१२२.] ॥ अष्टमोऽटकः १
त्वं । दूतः । प्रथमः । वरेण्यः । सः । हूयमानः । अमूरताय। मन्छ। क
1। मजेयन्। मरतः । दाणुषः। गुहे । त्वां । स्तोमेभिः । भूर्गवः। वि । ररचुः ॥५॥ प
को क्रमेति चैकि
ह शखघ्रे त्वं दूतौ देवानां टूतकमेणि नियुक्तः प्रथमो मुख्यः प्रथितः प्रख्यातो न
` वा वरेण्यः सभजनीयश्चासि । स त्वममृतायामरणाय तदथं नोऽस्माभिहेयमानो
हविषा तणेमाणो वा सन् मत्स्व । तृणस्व । मदी हर्षे ! ह्ांदसो विकरणस्य `
| तुर् । अपि च त्वां मध्यमस्थाने वेद्युतरूपेण वतमानं मरुतस्तचत्या देवगणा `
मजेयन् । माजेयंति । अल्टकुवेति । तथा दामुषो हवीषि दन्नवतो यजमानस्य छ
गृहे स्तोमेनिः स्तोमेः स्तोचभृगवो भृगुगोचा ऋषयस्त्वां वि रुरुचुः । विशेषेण
दीपयति । भृगुशब्दादुचरस्य तडितस्याचिभुगुकु्सेत्यादिना बहूषु लुक् । रुरुचुः ५
खच दीप्रौ । खस्माच्छांदसो लिट् । |
१ । इत्य्टमस्य सप्तमे पचमो वर्गैः ॥ =
+
प ॥ अथ षष्ठी ॥ क,
इषं टुहन्सुदुघां विश्वधायसं यजञप्रिये यजमानाय सुक्रतो
अम्र घृतलुस्ति्छेतानि दीद्यदतियेजञं प॑रियन्सुक्रतूयसे ॥६॥
#
@ इष दुहन्। सुऽदुघा। विश्वऽधायसं। यज्ञऽम्निये। यजमानाय। सुक्रतो इतिं सुऽक्रतो!
| आग्र। घृतऽलुः। चिः। ऋतानिं। दी॑त्। वतिः। यज्ञं । परिऽयन्। सुक्रतुऽयसे॥६॥
के प्रमे कमभि
सुक्रतो सुकमेन् शोभनप्रज्ञ वाग्रे यज्प्रिये यद्िहेविभिर्देवान्प्री णएयितरे यज-
मानाय विश्वधायसं विश्वस्य सवस्य धारयिचीं सुदुघां दोग्धुं सुशक्यां यङ्ञरूपिणीं
मिषभिषयमाणं यागफलरूपं पयो दुहन् स्षारयन् तया पृतसतुधृतेनाज्येन
ल्ातः। लातेरोणादिकः कुप्रत्ययः । यद्वा घृतो दीघ्रः लुः
स्वरत । $हशसूवं चि
स्थानानि यद्वा गाहेपत्या
॥ ग्वेद ॥ [अ०४. अऽ, व०$,
नि
॥ सय सप्तमी ॥ ध ध
त्ामिटस्या उषसो व्यषु दूतं कुखाना उयजत मानुषाः
वां देवा म॑हयाय्यांय वावृधुराज्य॑मग्रे निमृजंतो अध्वरे ॥७॥ ।
त्वां । इत्। अस्याः । उषसः विऽउष्टिषु । दूतं । कृणखानाः। अयजत् । मानुषाः
[| [ ति षि ति ।
त्वां । देवाः । महयाय्याय । ववृधुः । साज्यं । खगे । निऽमृजंतः । अध्वरे ॥७॥ ८
अस्या इदानीं दश्यमानाया उषसो व्युष्टिषु विवासनेषु प्रभातेषु सत्सु हे खप्रे `
त्वामिच्लामेव देवानां दृतं कृखानाः कुवा मानुषा मनुष्या खयजंत । यजंति । ध
वैदेवात्मकं वामेव यजंतीत्यथेः। तथा देवा अपि तवां महयाय्याय पूजाय । मह
पूजायां । अस्मादोणादिको भाव आय्यप्रत्ययः । सत्मनः प्ूजाथे वावृधुः । वधे-
यंति । किं कुवैतः। अध्वरे । वरो हिंसानिमित्तः प्रत्यवायः । तटूहिते याग आज्यं । ए
उपल छ॒णएमेतत् । आज्योपत्तधितं सवे हविनिमृजंतः । त्वयि निमाजेयंतः ।
प्रशिपितहत्यथेः॥ =, ध.
॥ अयाष्टमी ॥ ` 2
नि ता वसिष्ठा अत वाजिनं गृणतो अग्रे विदथेषु वेधसं:
रायस्पोषं यज॑मानेषु धारय यूयं प॑त स्वस्तिभिः सद् नः ॥४६। :
1
णयः। पोष॑। यज॑मानेषु । धारय । यूयं । पात । स्वस्िऽभिः। सदां । नः ॥४॥
म०१०, ख० १०. सू०१२३.| ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ ४३७
द्रप्सस्यायं वेनश्योदयत्पृश्निगभोः । आा०४.६. इति ॥ वेश्वदेवश्लेऽयेषा धाय्या `
चितं च । तष्ठनरयमयं वेनथ्ोदयत्मुभिगभीः । आ०५.१४.। इति ॥ `
॥ सेषा प्रथमा ॥
` अयं वेनघयोदयत्पृिंगभे ज्योतिजैरायू रज॑सो विमानै । =:
दममपां संगमे सू्ेस्य भुं न विप्रां मतिनीं रिहंति ॥१॥ =
अयं । वेनः। चोट्यत्। पृश्ंऽगभोः । ज्योतिःऽजरायुः। रज॑सः। विऽमाने। कः
इमं । अपां । संऽगमे। सूर्यस्य । शिं । न । विप्राः । मतिऽभिः। रिहंति॥१॥ = `
#
वेनः कांत एतत्संो मध्यस्यानो देवो ज्योतिजेरायुः। ज्योतिर्चोतिमानो मेधो
जरायुः। उदरे गभो येन वेष्टित्तोऽवतिष्ठते तज्जरायु। तदिव वेष्टको यस्य स तथोक्तः क
` मेधमध्ये गभेवद्वस्थित इत्यथैः! विमाने। विमीयते निमीयते ऽस्मिन्नाप इति वि-
मानमंतरिसं । रजस उट्क्स्य निमात्तयेतरिसे स्थितः सन्रयं वेनः पृथ्िगभीः।
रदित्यः। तस्य गभेभूताः । यदा पृश्नयः सप्रोऽज्वलवणाः सूरयैरश्मयः । तेषां
गभेभूता खंतरिष्स्था अपश्चोद्यत् । पृथिवीं प्रति प्रेप्यति। अपासुटकानामांत-
रिष्याणां सूयेस्य च संगमे संगमनेऽतरिसषँ स्थितमिमं वेनं विप्रा मेधाविनः
स्तोतारो मतिभिः स्तुतिनी . रिहति । रिहतिरचेतिकम । अचेति पूजयंति । स्तुवं-
तीत्यथेः । शिनं न । यथा बाले पुतं मातापिाद्या बांधवाः स्तुतिपदेरुपत्छा-
तयति तडत् ॥ ।
तस्मिनरेवाभिष्वे समुदादूभिमियेषा । सूते हि । समुदराटूभिसुदियतिं वेनो ध
- दरप्सः समुद्रमभि यज्जिगाति । आा०४,७.। इति ॥ + 1
वेनो नैनः पृं हवस्य भि । =
ष्ठ ॥ ऋग्वेदः ॥ अ०४, अ० 9, व०9,
` यर्ति। उद्रमयति। अधः पाततयततीत्यथैः। कीहशः। नभोजाः। नभस्याकाशे - --। `
इमं वेनमभि शब्दायते । नु स्तुतो । कुटादिः । हांदसो लुङ् ॥
2 ` ॥ अथ तृतीया ॥ ` |
समानं पूर्वीरभि वांवशानास्तिनत्सस्यं मातरः सनीच्ाः। र
ऋतस्य सानावधि चक्रमाणा रिहंति मध्वो अमृत॑स्य वाणीः ॥३॥
समानं । पूर्वीः । अभि । वावशानाः। तिष्ठन् । वत्सस्य । मातरः; । सऽनीच्छाः |
ऋतस्य । सानो । अधि। चक्रमाणाः। रिहंतिं । मध्वः । अमृतस्य । वाणीः ॥३
पूवीबह्यः समानं वेनस्यात्मनश्च साधारणं स्थानं मायामि वावशाना अमित्तः
` शब्दायमानाः यज्वा तमेव वेनमभिकामयमाना वत्सस्य वत्सस्यानीयस्य वेयु ५
ताग्रेमोतरो मातभूताः सनीष्छाः समाननित्या रवंविधा आंतरिष्या आपस्ति-
| छन्। तिष्ठति। खपि च। ऋृतस्योदकस्य सानावधि सानो समुच्छतिऽ तरिष्षस्याने
1 चक्रमाणाः प्रवतेमाना मध्वो मधुरस्यामृतस्योदकस्य वाणी वारयः शब्दा रिहंति । ४
इमं वेनमचेति । अलकुवैतीत्यथैः ॥ १
(1 न ॥ अथ चतुर्थीं ॥ ध
जानतो रूपम॑कृपंत विप्रां मृगस्य धो महिषस्य हि ग्मन् , ५
ऋतेन यंतो अधि सिंधुंमस्युविदत्र्वो अमृतानि नाम॑ ॥४॥
: । मृगस्य । घोषं । महिषस्य । हि। ग्मन्।
। अस्थुः । विदत् । गंधवेः। अमृतांनि। नामं ॥४॥ `
°स्य वनस्य रूप जानतो ऽकृपंत । स्तुवंति | कृषति ते | ६
सू०१२३.] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ ` ४३९
रणहेतुभूतानि नाम। उदकनामेतत्। नमनशीलान्युदकानि विदत्। वेद जानाति ।
त्तस्य वशे वतेत इत्यथः । अतस्तद्बक्तानां वृष्टिः सुलभा ॥ ` क
॥ अथ पंचमी ॥ 1
अप्सरा जारसुपसिष्मियाणा योषां विततिं परमे वयोमन्। |
चरव्ियस्य योनिषु प्रियः सनसीदत्पसे हिरण्यये स वेनः ॥५॥ क
अप्सराः । जार । उपऽसिष्मियाणा । योषां । विभति । परमे । विऽञ्ोमन्। 0
1 1 # भैमी कणे | ॥ 1 # कये शिः ॥ 1 ति 1
चर॑त् । प्रियस्य॑ । योनिषु । प्रियः। सन्। सीद॑त्। पक्षे । हिरण्यये । सः। वेनः॥ र
॥
^
अप्सरा अपां सारयिव्यप्सु ऋीडाथं सरती वोपसिष्मियाणा कांतसमीपसुप-
गत्येषद्संती । स्िङ् ईषडसने । खांदसो लिट् । तस्य लिटः कानञ्देति कानच् ।
इंहशी योषा स्वी विद्युटूपा जारमपां जारयितार । यद्वा जार उपपतिः। स इव =
प्रियमिमं वेनं परम उत्कृष्टे व्योमन् व्योमन्यतरिक्षे विभति । पोप्रयति । धास्यति
वा । यथा काचिदूपवतती योषिज्नारसुपगम्येषद्संती तं निजेने स्यले पुष्णाति `
तददनेन वेनेन विद्युटूमत इत्यथः । प्रियस्यास्य वेनस्य योनिषु स्थानेषु चरत्। `
विद्युटूषा योषिच्चरति गच्छति । अभिसारिकावृच्या स्वयमेव गच्छति । सचवेनः ` `
प्रियोऽस्या अनुङ्लतमः सन् हिरण्यये हिरण्मये हिरण्मयवद्नास्वरे हितरमणी- `
यरूपे वा पक आत्मनः प्षभूते मेधे सीदत् । सीदति । तया सहोपविश्ति ॥
॥ इत्य्टमस्य सघ्रमे सप्रमो वैः ॥ 9
॥
अमिष्टवे ना सुपणेमिन्येषा । सूचितं च । नाके सुपणेसुप यत्पतंतमिति
समाप प्रणवेनोपविशेत् । चा० ४, 9,। इति ॥ . |
॥ सेषा षष्ठी ॥
४४० - , ॥ऋग्वेटः॥ [अ०४.अ०9, व०छ,
नपततनं पतंतम॑तरिक्े ग॑तं हिरण्यपक्षं हिरण्मयाभ्यां पसाभ्यामुपेतं वर-
शस्य जलाभिमानिनो देवस्य दूतं चारं ग्रमस्य नियाम द्यताम्नर्योनो
२ नेऽतरिशे शकुनं पधिषूपेणए वतमानं मुरण्युं भतेारं। यद्वा वृष्टिप्रदानादिना सवस्य
जगतः पोषकं । भुरण धारणपोषणयोः । कंड़ादिः। अस्मादोणादिकं उप्रत्ययः ॥
॥ अथ सघ्रमी ॥ __
ऊर्ध्वो ग॑धर्वो अधि नार अस्थात्मत्यङि् चचा विभ॑ट्स्यायुधानि
वसानो खत्वं सुरभिं हे कं स्व4े नाम॑ जनत प्रियाणि ॥७॥
ऊध्वैः! गंधरववैः। अधिं । नादे) अस्थात्। प्रत्यङ्। चिचा। वि्भत्। अस्य! आयुधानि
५ [. . ॥ के भेक
सानः। अत्कं । सुरभिं । हशे। कं । स्व॑ः। न । नाम॑ । जनत । प्रियाणि ॥७।
` , उध्वं उपरिदेशे वतेमानो गंधों गवामुदकानां धतो । गवि गं धृञो व
गोश्ब्टोपपटा्ञ् धारण इत्यस्माप्रत्यय उपपट्स्य गंभावश्च । ईहशौ वेनः प्रत्यङ्
` अस्त्मत्यचनोऽभिमुषखः सन् नाकेऽध्यतरिसोऽस्यात् । तिष्ठति । किं कुवन् ।
` अस्यात्मनः स्वभूतानि चिचा चिचाणि चायनीयान्याश्चयेभूतानि वायुधानि विभ-
| हारयन् विभर्तैः शतरि भूजामिदित्यभ्यासस्येतवं । नाभ्यस्ताच्छतुरिति नुम्परतिषेधः
अभ्यस्तानामादिसित्याद्युदात्ततवं। तथा सुरभिं शोभनमत्कमात्मीयं व्याघ्र रूपं वसान
` सवेचा्छादयन्। किमथे हे दशनाथ । हशे विख्ये चेति केपरत्ययांतो निपात्यते।
कमिति पूरणः। तच दष्टांतः । स्वणे । स्वः शोभनारण आदित्यः । स यथात्मीयं
शेनाय सवेचाद्छादयति तडत् । तदनंतरं नाम नामानि नमनशीलान्यु-
सर्वेषामनुक्त्ानि जनत । जनयति । वृष्टिमुत्पाटयतीत्यथेः ॥
दमिव्येषा । सूचितं च दूप्सः समुद्रमभि यल्निगाति
म० १०. ० १०. सु° १२४. ॥ अ्टमोऽषटकः ॥ ४६१
विधमेन्विधमेणि विधारङेऽतरिक्षे स्थितो टूप्तो टूवणएशीलः । यद्या दृप्ता
उट्कविंदवः । तद्वान् । अशेञ्ादित्वादच् । गृध्रस्य गृधो रसानभिकांश्तः सू्ैस्य
० चष्सा तेजसा पश्यन् प्रकाशमानो वेनो यद्यदा समुदं समुंटनशीलं मेधमभि
¢ जगात्यनिगच्छति तदानीं भानुः सूयः शुक्रेण भुभेण शोचिषा तेजसा तृतीये
। रजसि त्टोके चकानो दीप्यमानः प्रियाणि सर्वेषामभीदान्युदकानि चक्रे! करोति ॥
॥ इत्यष्टमस्य सप्रमेऽष्टमो वैः ॥ `
इमं नो अग्र इति नवचे इाटशं सूक्तं । डितीयाद्याभिस्विसुभिरम्रिकौषिभूत्वा
स्वात्मानं देवतारूपिणमस्तोत् । अतस्तासां स एवधिर्दवता च । श्ाभिरम्नि
वरुणसोमा अस्तुवन् । अतस्तासां षां त ऋषयः । स्ाद्याप्नेयी । नवमी
देवत्या । शिष्टासु चतसुषु लिगोक्तदेवता । सप्रमी जगती शि्टास्िष्टभः । तथा
चानुक्रातं। इमं नो नवेद्युचमा निहवोऽग्रिवरुणसोमानामाद्याप्रेयी तिखश्चापे-
रात्मस्तवः शिष्टा यथानिपातं सप्रमी जगतीति । गतो विनियोग
॥ तच प्रथमा ॥ ` ।
इमं नो अग्र उप॑ यज्ञमेहि पंच॑यामं चिवृततं सप्तत ।
असो हव्यवाकूत न; पुरोगा ज्योगेव दीधे तम आशयिष्ठाः ॥१।
| | भ्यं
इमं। नः। अग्रे । उप॑ । यज्ञं। आ। इहि पंच॑ऽयामं। चिऽवृतं । सप्रऽत॑तु
भनि
कि ।
असः हव्यऽवाट्। उत । नः। पुरःऽगाः। ज्योर्। एव । दीधे । तम॑ः। आआ। अशयिष्ठाः॥१॥
भ्रातृषु हविवंहनेषुं मृतेषु मरणभीत्या कृतपल्रायनं गुहायां निगूढमम्निम-
ग्न्याद्याः सूक्तदर्टार ऋछषयोऽनयाइयन् । हे अग्रे नोऽस्माकमिमं यज्ञसुपेहि ।
उपागच्छ प्राप्ुहि । मा पलायिष्टाः । कीहशं । पंचयामं । यजमानपंच
नियमितं । यद्वा । धानाकरंभादिभिः पंचभिहेविभिः पंचभिः प्रयाजेवा ए
हविये्ञसोमयज्ञमेदेन सवनचयात्मना वा चिगुणं । सघ्रतंतुं।
वी प्राप्तं ।
1
॥
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॥
॥
॥
|
|
॥
॥
॥
श्रे ॥ ऋण्वेट्ः ॥ ` [ऋच्४
` -वास्मान्परित्यज्य दीष तमी महदंधकारं गुहायामाश्यिष्टाः। आस्थाय शयनम-
कार्षीः । इत ऊ तस्माष्यानादस्मानागखेत्यथंः ॥ = ` ।
अदवदिवः प्रच॑ता गुहा यन्परपश्य॑मानो अमृतवमेमि। `
शिवं यत्संतमभिंवो जहामि स्वात्सस्यादरंणीं नानिंमेमि ॥२॥ कि
ऋरदैवात्। देवः। प्रऽचतां। गुहां । यन्। प्रऽपश्य॑मानः। अमृतऽतं । रमि । ४
शिवं। यत्। संतं । अशिंवः। जहामि । स्वात्। सख्यात् । अरंणीं। नाभिं! एमि ॥२॥
१ ऋदेवाटदेवनशीतताहुहा गुहायां वर्तमानात् । सुपां सुत्ुगिति सप्नम्या त्टुर् #
(( परचता देवानां प्रयाचनेन हेतुना यन् निगेच्छन् देवो देवनभीलोऽहं प्रपश्यमानः `
(६ रेवैमैदधे कल्यत प्रयाजानुयाजादिलक्षणं हविभोंगं प्रपश्यमानो निरोक्षमाणः
८८ सन् अमृत्तत्रमेमि। मरणएधमेराहित्यं देवलं प्राप्नोमि । हशव्यत्ययेनात्मनेपदं। हविवं- ५
नाद्गीतः पत्ायितोऽबादिषु स्थानेषु निगृढः पुनर्दवैहेवि वैहनाय प्राथ्येमान- ॥
` ्सैरैेन हविषाहं देवलं प्राघ्नवानस्मीत्यथेः । यद्ययहं गुहातो निगेत्य प्रकाशमानः
. सन् शोभनं यज्ञं निवतैयामि तथापि शिवं शोभनं संतं भवंतं यज्ञमश्िवोऽशे-
1
1. भनरूपौऽप्रकाश्मानः सन यद्यस्िन्समा्धिकाक्रे जहामि पसि्यिजामि तदानीं
, नाभिं नहनशीत्ां बंधनशीत्ामरणीमश्वत्थमेव स्वात्सख्यादात्मीयात्ससित्वाचचि-
रकालमश्वरूपोऽहं तच न्यवात्समिति लेहवश्देमि। प्रप्नोमि ॥
॥खथतृतीया॥ क क
वयायां ऋतस्य धाम विमिमे पुरूणिं। `
व॑मयक्ियाद्यकञियं भागमेमि ॥३॥ `
धाम॑। वि। मिमे। पुरूणि
कि ॥
2
म०१०. ०१०. स्०१२९.| ॥ अष्टमो ऽ ष्टकः ॥ | ४8३ |
शेवं सुलमृदिश्य होता भूवाहमुक्थानि शंसामि । यतत एवं तखा्तारणादयक्ि `
याद्यलानहेत्प्देषन्निगत्य यज्ञियं यज्ञाहै वेदिल्क्षणं भूभागं हविलैक्षणं वेमि ।
प्राप्नोमि । यज्ञशब्दाटहोर्थे य्सविग्भ्यां घखजावित्ति घप्रत्ययः ॥ | [त
॥ अथ चतुर्थी ॥ व
बहीः समां अकरमंतरस्मननिदरं वृणानः पितरं जहामि । ` कि
प्रिः सोमो वरुणस्ते व्य॑वंते पयेव॑दरषटं तर्द॑वाम्यायन् ॥४। ~ क
| ब्धीः। समाः । अकरं । संतः । अस्मिन् । इद । वृणानः। पितरं । जहामि।
` अभ्रिः। सोमः वरुणः ते। च्य वंते। परिऽआव॑त। राष्ट । तत्। अवामि । आऽ यन्॥४।
अस्मिन्वेदिलसणएस्थाने बद्धीः समाः संवत्सरानकरं । अकष । चिरकालं
न्यवात्स । तद्र वृणानः संनजमानः पितरसुत्पादकमरण्यात्मवं जहामि । परि-
त्यजामि । यदा हं देवेभ्यो निर्गत्य गुहायां निगृूढस्तदा ते देवा अम्निःसोमो
वरुणश्च च्यवते । राष्टात्मच्युता अभवन् । एकस्याणग्रहेविर्वोदृत्वरूपेण देवतात्मना `
च पृथक्ात्परोनिर्दशः। आयन् पुनरागच्छन्नहं यदा्टमसुरेरषहतं पयो वते पयी-
वत्तेमानं मदभिसुखं पुनरावतेमानं तदराष्टं राज्यं यज्ञभूमिमवामि । असुरेभ्यो `
रक्षामि । पयोावत् । उपसुष्टाबुतेरन्येन्योऽपि दश्यत इति विच् । रात्सस्येति नि-
यमात्संयोगांतस्येति लोपाभावः ॥ ` व
न ` + अवपंचमी 1,
निमोया उ त्ये असुरा अभूवन च॑ मा वर्ण कामयति। ==
तेनं राजननरनुतं विविंचन्ममं राष्टस्याधिपत्यमेहिं ॥५॥ 3 1
:ऽमायाः। ऊं इतिं । तये । असुराः! अभूवन् । तं । च । मा । वरुण । कामयांसे। `
अनृतं । विऽविंचन्। ममं । राष्टस्यं
१ # गः क"
ट्ट ` ॥ऋण्वेदः॥ [अ५, अऽ. वर १०. "५
पृणङ्कर्वन् अपसारयन् मम राष्टस्य मया यत्साधितं राज्यं तस्याधिपत्यमधिपति- ५
त्वमीश्वरत्वमेहि । प्राघ्रुहि ॥ ` र ॥ ~ 9
। ~ . ` ॥ इ्य्टमस्यसप्रमेनवमो वगैः॥ ` ४
% छ 3 | '१्यष्ी॥ | ॥
1 इट् स्व॑रिदमिदांस वाममयं प्रकाश उवै वतर । ०४१५
हनाव वृचं निरेहि सोम हविषा संतं हविषां यजाम ॥६ै॥ ।
इदं। स्व॑;। इदं । इत्। आस । वामं । अयं । प्रऽकाशः। उरू । अंतरं । =
हनाव । वृं । निःऽ एहिं । सोम । हविः। ला । संतं । हविषां । यजाम ॥६॥ `
: इयमृगमरवैरुणस्य वा वाक्यं । हे सोम इटं स्वयं दयुत्ोकः। यदायं शोभना- |
रणः सूये इदमिदिदमेव वामं वननीयमास । बभूव । इदंशब्देन प्रकृतं स्वः परा- ध
मृश्यते । अयं च प्रकाशः प्रकाश्स्याधारभूत उरू विस्तीणेमिटमंतरि क्षं हे सोमेतत्सवै
पश्य । अत एवासिन्समय आ्आवां वुच्रं हनाव । हिनसाव । तदथ
ष्कम्यागद् । हविः संतं ततारूपेण हविभवंतं देवतात्मानं त्वां हविषा चरू-
| पुरोडाशदिना वयं यजाम ` | ॥
(1 ॥ अथ सप्रमी ॥ ८.
| कविः कवित्वा दिवि खूपमासंजटप्रभूती वरणो निरपः सुंजत्। ध
| केम कृणखाना जन॑यो न सिंध॑वस्ता अस्य व भुच॑यो भरिभति ॥७॥
कविः! कविऽत्वा। दिवि। रूपं। रा! खसजत्। खप्रऽभूती। वरणः निः
न॥
11
१ ०, 6 \ + ९
म०१०, अ०१०. सूर १२४६.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ ४४१५
भुं भास्वररूपं भरिभति । भृशं विभति धारयंति । दाधत्यादिपूे भरिभदिति
निपात्तनाहिभततेयेड्त्दुक्यभ्यासस्य जश्वाभावः ॥ ` |
४ भ ॥ खामी ॥
ता स्य ज्ये्ठमिद्वियं सचंते ता ईमा कषति स्वधया मर्देतीः
त्ता ३ विशौ न राजानं वृणाना बीभत्सुवो अप॑ वृचाद॑तिष्ठन् ॥४।
¦ । खस्य । ज्येष्ठं । इट्ियं । सचते । ताः! ई । आ । सेति । स्वधया । मर्दतीः।
भणण पे मि, भे
त्ताः। ई। विश॑ः। न । राजानं । वृणानाः। बीभत्सुव॑ः। अपं । वृ्रात्। अतिष्ठन् ॥४।
५,
ताः पूर्वोक्ता वृष्टा आपोऽस्य वरुणस्य ज्येष्ठं वृडततममिंदवियं वीये सचते ।
समवयंति । संभजेते । धारयंतीत्यथंः । आपो वरुणस्य पल्य आआसन्बिति श्रुतेः
स्वधया । अन्ननामेतत् । हविलेक्षणेनानरेनं मदंतीमोादंतीः। यद्वा व्रीद्याद्युत्माद्-
नहरिण हविषा मादयंतीस्ता अप ईेमयं वरुण आ सोति । सभिगच्छति । सि
` निवास्तगत्योः। डांदसो विकरणस्य द्टुर् । ताश्चेमेनं वरुणं विशो न विशः प्रजा
यथा राजानं स्वामिनं संभजंते तथा वृणानाः संभजमाना बीभत्सुवो भयेन कंप-
मानाः । यद्वा बद्धा वृरेणावृताः सत्यस्तस्मिन्हते सति तस्माद्ुचादपातिष्न् ।
उपक्रम्य तच तचावतिष्ते । बध वंधन इत्यस्माद्वातोमोन्वधदान्शान्यः । पा० ३,
१.६.। इति सन् अभ्यासस्य च दीषैः। सनारंसभिष् उसित्यप्रत्ययः। जसि छांदस
: उवडदेशः ॥ ८
1 ॥ खथ नवमी ॥
` बीभत्सूनां सयुजं हंसमाहुरपां दिव्यानां सस्ये चरतं । .
#
अनुष्टुभमनु चचूयेमांणमिंदं नि चिः कवयो
हंसं । आहुः । अपां । दिव्यानां । सख्ये । चरतं ।
अनुं । चचयेमाणं । इं । नि । चिक्युः । कवय॑ः। मनीषा ॥९॥. `
चरतेयेद्युत्परस्यातः । पा० 9, ४. ४७.। इत्यभ्यासादु्रस्याकारस्योतवं ।
। पा०७.४.४७.। इति तुकि प्राप्ने वयेत्ययेनाभ्यासस्य स्गागमः। एवंगुण
कवयः ऋरंतदशिन ऋषयो मनीषा मनीषया स्तुत्या नि चिक्युः । पूजयंति । यड ध
| मनीषा बुद्धा नि चिक्युः! जानंति । मनीषाणब्टाचुतीयायाः सुपां सुत्ुगित्ति `
| दुर चायु पूनानिशामनयोखियस्माच्ांदसे लिटि चायः कीति प्रकृतेः कीभावः। `
0) ४ #
काच इति यश्॥ | + ६
र ॥ इत्य्टमस्य सघ्रमे दशमो वग
अहमित्यष्टचं चयोदशं सूक्तं । अंभृणस्य महर्षटुहिता वाड्नम्री बह्यविटषीस्वा- `
| त्मानमस्तोत् । अतः सषिः । सच्चित्सुखात्मकः सर्वगतः परमात्मा देवता । तेन॒ `
ह्येषा तादाल्यमनुभवंती सवेजगटूपेण सवैस्याधिष्टानत्वेन चाहमेव सवै भवामीति
स्वात्मानं स्तौति । डितीया जगती श्ष्टाः सप्र चिषटुभः। तथा चानुक्रातं । ख ध
मष्टो वागांभुणी तुश्टावात्मानं डितीया । गतो विनियोगः॥
१
@ ॐ
क्षः
। ० अहं सद्रेभिवेसुभिश्चराम्यहरमादिगेरूत
४ अहं मिचावरणोभा विभम्येहिंदरामी अहमश्विनोभा ॥१॥ ==, `
अहं, रद्ेभिः। वसुंऽभिः। चरामि। अहं । आदिः । उतत । विश्वऽदवेः। ` `
1 ट ५, । 1 चन , । अ ) मि [१ [| ॥ ॥ प
अहं। मिचावरुणा। उभा। विभमि। अहं । इरानी इतिं ।
# +
हि |
॥ अष्टमो ऽ टकः ॥
विभमिं। अहं । त्वष्ट॑रं। उतत । पूषणं । भगं ।
न्वते ॥ २॥
यमभिषोतव्यं सोमं । यज्वा शचणामाहतारं दिवि वतमानं
सोममहमेव विभमि । तथा ववष्टारसुतापि च पूषणं भगं चाहमेव
हविभियुक्ताय सुप्राये शोभनं हविर्देवानां प्रापयिन
दवितृल्तृतंचिभ्य ईरितीकारप्रत्ययः । चतुर््यकवचने
णः स्वरितोऽनुदात्तस्येति सुपः स्वरितत्वं । सुन्वते सोमाभिषवं
कुवते । शतुरनुम इति चतुथ्यौ उदात्तवं ! इह्य यजमानाय दविणं धनं याग-
फलत्रूपमहमेव धारयामि । एतच्च बरह्मणः फत्ठदातृत्वं फलमत उपपत्तेः । ३,२.३४.।
इत्यधिकरणे भगवत्ता भाषयकारेण समथितं ॥
तां मां देवा व्यदधुः पुरूचा भूर्िस्याचां भूयेवेशय॑तीं ॥३।
। राष्ट । संऽगम॑नी । वसू नां । चिकितुषीं। प्रथमा । यज्ञियानां!
चां । भूरिं । आऽवेश्य॑तीं ॥३।
` अहं राष्ट । ङ्वरनामेतत् । सवैस्य जगत ईश्ठरी । तथा वसूनां धनानां संग-
मनी संगमयिन्री । उपासकानां प्रापयिच्री । चिक्तुषी यत्सास्षात्छतेव्य पर बद्य
तवती । स्वात्मतया सास्ा्कृतवतती । खत एव्, ४ यसियानां यज्ञाहाशां प्रथमा
चात्मनावतिहमानां
पृणोति! श्रु भ्रवणे । रुवः
4 स्थितां मां न जानंति तेऽमंतवोऽ मन्यमाना अजानत उप धियति
,संसरेण हीना भवंति । मनेरोणादिकंस्तप्रत्ययः
यज्वा भावे तुप्रत्ययः। ततो बहवीहौ नञऽसुभ्यामित्युह
मद्विषयज्ञानरहिता इत्यथः । हे श्रुत विश्रुत सखे श्रुधि । मया
दसो विकरणस्य त्दुक् । श्ुपृणुपृकृवृभ्य इति हेधिभावः ।
7 र्विः श्रद्धा । तया युक्तं । ्रद्लायत्नेन त्टभ्यमित्यथं
। वङत्तिरिष्यते । पा०१.४.५७.२.। इति श्रच्छन्दस्योपसगेवहतेमानत्वा
(,
क
।
| । म", भेन 18 ५2
मुऽमेां ॥५॥
रदाय धुरा तनोमि
जनाय समदं कृणोम्य
। हंतवे । ऊ इतिं ।
इतिं । सख । विवेश ॥६॥
भि , निष ॥
दे्यादयतयोयुगपदुदात्तवं । णु हिंसायामित्यस्म।
क्रियायहणं कतेव्यक्भिति कमेणः संप्रदानलाच्तुर्थ
भिः सह संमाममहमेव कृणोमि । करोमि । तथा दावे पूर
यामित्तयाहमेवा विवेश । प्रविष्टवती ॥
॥ थ सप्रमीं
योनिंरप्छं १तः संसुदे ।
1 अस्य मूधेन्। ममं
तत॑ः। वि। तिषे।भुव॑ना। अनुं । विश्वां उत । अमू । चं । वषर्णा । उप स्पृश्णमि ॥७॥
[० ४. अ० 9. व० १३
कारजातं वष्मैणा कारणभूतेन मायात्मकेन मदीयेन देहेनोप स्पुशामि । यह्धा ।
स्य भूत्ोकस्य मूधन्मृधेन्युपयेहं पितरमाकाशं सुवे) समुद्र जल्धावप्सूदकेष्र-
* त्मेध्ये मम योनिः कारणभूतो ऽभृणाख्य षिवेतेते। यद्वा समुद्रेऽतरिेऽप्सम्म- `
| येषु देवशरीरेषु मम कारणभूतं ब्रह्म चेतन्यं वतेते । ततोऽहं कारणात्मिका सती
| सवशि भुवनानि व्यापघ्रोमि। अन्यत्समानं॥
क | ॥खअचाष्टमी॥ `
अहमेव वातं इव प्र वाम्यारभ॑माणा भुव॑नानि विश्वा ।
परो दिवा पर एना पुंधिव्येता वत्ती महिना सं बभूव ॥४॥
सहं । एव । वात॑ःऽ इव । प्र। वामि । आ ऽख॑माणा । भुवनानि । विश्वा | |
1,
८ विश्वा विश्वानि सवाणि भुवनानि भूतजाततानि कायाण्यारभमाणा कारण- ` ।
रूपेणोत्पादयत्यहमेव परेणानधिष्िता स्वयमेव प्र वामि । प्रवते वात इव यथा
` वातः परेणाग्रेरितः सन् स्वेच्छयेव प्रवाति तदत् । उक्तं स्वै निगमयति । परो
दिवा । पर इति सकारातं परस्तादित्य्थे वतेते यथाध इत्यधस्तादर्थे । तद्योगे च॒ `
तुतीया सेच हश्यते। दिव साकाशस्य परस्तात्। एना पृथिव्या । डितीयाटौः स्वेन = `
इतीदम एनादेशः । अस्याः पृथिव्याः परः परस्तात् । चयावापृथिव्योरुपादानसु- +
` पलक्षण । एतदुपलधितात्सवेदिकारजातात्परस्ताहतेमानासंगोदासीनक्टस्य-
` बह्मचेतन्यरूपाहं महिना महिन्नेता वती सं बभूव ! एत्छन्देनोक्तं सवै परामश्यते। `
णएमस्याः । यत्तदेतेभ्यः परिमाण इति वतुप् । आ स्वैनान्न हत्यां । `
दात्मनाहं संभूतासि । मह्छन्टादिमनिचि टेरिति टिक्कोपः। ततः तृती- `
१ ४ ॥)
॥ ५: ॥ तच प्रथमा
न दुरितं देवासो अष्ट मत्यै।
न । तं । सरह: । न । टुःऽइतं । देवासः । अष्ट । मत्यं ।
1.
शिते शेत,
१
नाष्टेत्यन्वयः ॥
॥ थं डित्तीया ॥
तद्धि वयं वृणीमहे वरूण मिच्रायेमन् ।
४ + छ ॥।
* तत्। हि। वयं। वृणीमह । वरूण । मिच॑ । अथेमन्।
स्तोतारमंहसः पापाद्यूयं निः चां
नयथाभीषटं प्रापयण तबुणीमह
सो यम॑येमा मिचो न्य॑ति वरूणो अति हिष॑ः
` सऽजोर्षसः। यं। सयेमा । सिचः । नयति । वणः । ख
५
` हे देवासो देवाः आन्नसेरमुक् । तं मत्ये मनुषमंहः पापं दुरितं
दुगेमनं च नाट । न प्राप्रोति । अशेष्छांदसे त्दुडिः स्ट सतीति सिचौ लोपः
येना निरंहसो यूयं पाच नेणा च मत्येमति हि्षः ॥२॥
| येनं। निः। अहसः । यूयं । पाथ । नेथ । च । मत्ये । अति । हिर॑ ॥२॥
#
इत्यन्वयः
प्रापयति
` अडभावण्छांदसः । अरीन्नियच्छतीत्ययेमा प्रमीतेस्लायको देवो मिचः पापानां
निवारयिता देवौ वरुणः । एते चयो देवाः सजोषसः संगताः समानं प्रीयमाणा
वा भवंतो हिषो बेष्टञ्एचूनतिक्रम्य य स्तोतार नयंत्यभिमतं देशं प्र
हिरवधारणे । तद्धि तदेव रक्षणं वयं वृणीमहे प्राथेयामहे । सति शष्टोऽपि
विकरणस्य स्वरो लसावैधातुकस्वरं न बाधत इति वचना्तिङः एव स्वरः
शिष्यते । हि चेति निघातप्रतिषेधः। हे वरूण हे मित्र हे अयेमन् येन र्षणेन
;शेषेण र्य । पा रक्षणे । आदाि
निघातप्रतिषेधः । येन च रसृणेन मत्ये मनुष्य
४ |
शै
२ ॥ ऋ्वेदः॥ [अ०४,अ०७. व०१३.
ते। नुनं । नः । अयं । ऊतये । वूणः। मिचः। अयेमा ।
नर्थि्ठाः। ॐ इतिं। नः। नेषणि । पधि्ठाः। ऊ इतिं । नः। पर्षणिं । सति । दिषः॥३।
खयं वरूणो मिचथ्या्यमा च देवा नोऽसाकमूतये रक्षणाय नूनमवश्यं भवंतु
नेषणि नेत्ये विषये हे वरुणादयो यूयं नोऽस्मान्रयिष्ठाः। नयत । वचनव्यत्ययः
यदा प्रत्येकाभिप्रायेशेकवचनं । छांदसो तड । उश्ब्टः ससुचये पदपूरणाथा वा ।
पषणि पारयितव्ये विषये नोऽस्मान्डिषोऽति पषा: । अतिपारयथ । नयिष्ठा
इतिवत्मक्िया ॥
प् ॥ अथ चतुर्थीं ॥
यूयं विश्वं परिं पाथ वरूणो भिंचो अयमा ।
युष्माकं शमेणि प्रिये स्यामं सुप्रणीतयोऽति हषः ॥४॥
यूयं । विश्वं । पररि । पाय । वरणः मिचः । अयमा ।
युष्मा। शमेणि । प्रिये । स्याम॑ । सुऽप्रनीतयः। अति । दिष॑ः ॥४॥
हे देवा वरुणादयो यूयं विश्वं स्वै जगत्परि पाथ । परितो रक्षथ । हे सुप्र
णीतयः शोननप्रणयना मिचादयो युष्माकं युष्मदीये युष्माभिदेत्ते प्रियेऽनुक्ले
वेद्ये शमंणि सुखे वयं स्याम । भवेम । द्विषो देषटु्ाति क्रामेम ॥
॥ खथ पंचमी ॥
स्राटित्यासो अति सिधो वरुणो सिचो सयेमा ।
म०१०. अ० १०, सु०१२६.] ॥ अष्टमोऽ्टकः ॥ |
प ति ध
-: `...“ ॥ अचषष्ठी॥ ˆ ~: ` - ` ~“ ^ 4
4, स्ति ^ ८४
नेतार ऊषु णस्तिरो वस्णोभ्वोखयेमा। ` `
अति विश्वानि दुरिता राजांनश्चषणीनामति दिष॑ः ॥६॥
नेतारः । ऊ इतिं । मु ! नः। तिरः । वकणः । भिचः। अर्यमा। =
अति । विश्वानि । दुःऽइता । राजानः । चषैणीनां । अति । दिष॑ः ॥६॥
नेतारौ नयनकुश्त्ाः। नयतेः साधुकारिणि तुन्। वरुणादयो देवा नोऽस्माकं
पापानि सु सुष्टु तिरस्तिरोधानमदशेनं नयतु । उ इति पूरणः । चषेणीनां मनु-
्ाणां राजानः स्वामिनौ वहूणादयो देवा विश्वानि सवोणि दुरिता दुरितानि
दुर्गमनानि पापफल्दरूपाण्यस्मानति नयंतु । डिषो इषटञ्शचृश्चाति नयतु । ना-
मन्यतरस्यामिति चषेणिशब्दात्परस्य नाम उदाच्त ॥
ष ॥ अथ सप्रमी ॥ `
भुनमस्मभ्य॑मूतये वरूणो मिचो अयेमा
&
शमं यच्छतु सप्रथं आदित्यासो यदीमहे सति षः ॥७॥
शुनं । अस्मभ्यं । ऊतय । वरणः । मिचः। अथेमा ।
पषण
शमे । यच्छत् । सऽप्रथः । आदित्यासः । यत् । ईमहे । अति । दिष॑ः ॥७॥
॥ १ ् प भ्
रणाटयो देवा ऊतये रक्षाये सनं सुखमस्मन्यं स्तोतृभ्यः प्रयच्छंतु । तथा-
दित्यासोऽद्तिः पुचास्ते सप्रथः स्वतः पृथु विस्तीणे शमं सुखं च यच्छतु । अस्मभ्यं
ददतु । यच्छमे वयमीमहे याचामहे । हिषश्चाति नयतु ॥
1 ॥ अथाष्टमी ॥ = `
यथां ह त्यदच॑सवो गौय चित्पदि षिताममुचता यजचाः।
#।
प्रण 9, व° १४.
ऋण्वेद्ः॥ . [ख०४.
पदि पादे सितां बहा । पन्नित्यादिना पादशब्दस्य पदादेशः । ऊिदंपदादीत्या-
दिना सप्रम्या उदाचत्वं । षिञ् बंधन इत्यस्मान्निष्ठा । इहशीं गोये गोरी गौरवे
र (4
सोमक्रयणी गां । षिद्रोरादिभ्यश्वेति उष् । अमि पूवे इत्यच वा इंटसीत्यनुवते-
नात्पू वेरूपस्य पूवैसवणेदीधेस्य चाभावे येण । उदाचस्व रितियोयेण इति परस्या-
नुटाच्तस्य स्वरितत्वं । ऽहशीं गाममुचतं यथा खलत्तु यूय विश्वावसोभधवेान्मोचि-
तवंत एवौ एवमेवास्मदस्मच्तौ ऽहः पापं मुष वि मुंचत। विश्चेषयत । हे
नोऽस्माकमायुजीविनं प्रतर प्रतारि । प्रक्षेण त्वया प्रवधेतां । प्रपूरवैस्विरतिवेधे-
नाधः । प्रशब्दात्तरप्यमु च ङदसौत्यसुप्रत्ययः ॥ = ह
॥ इत्यष्टमस्य सप्रमे चयोटशे वगः ॥
राचीत्यष्ट चै पंचदशं सूक्तं सोभरिपुचस्य कुश्िकस्याषै । यद्वा भारद्वाजस्य सुता
राच्याख्यास्य सूक्तस्यषिका । गायचं राचिदेवताकं! तथा चानुक्रंतं । राची कुशिकः
सोभरौ राचिवौ भारहाजी राचिस्लवं गायतमिति ॥ दुःस्वपघ्रदशेन.उपोषितेन कचा
पायसेन होतव्यं । ततैतत्सूक्तं करणत्वेन विनियुक्तं । तथा चारण्यके शरूयते । स यद्य-
तिषां किंचित्पश्येदुपौषय पायसं स्थालीपाकं आपयिता राचीसूक्तेन प्रत्युचं हुता
० ०४, १०.।. इति ॥ छ
॥ तच प्रथमा ॥ `
राचरी व्यख्यदायती पुरा देव्य क्षमि
विश्वा अधि धियोंऽधित॥१॥
रची । वि । अस्यत्। आऽयती । पुरूऽ चा । देवी । अघऽभिः।
विश्वाः । सधि । धियः । अधत्त ॥१॥ - | :
वि 1 9
सआयत्यागद्धंती। आआङ्पूवैदेतैः शत येदारित्वाखयो लुर्। इणो यणिति यणा-
देशः । उगितश्चेति डीप् । शतुरनुम इति नद्या ` उदान्चतवं । अक्षभिरक्िस्थानीय
: । डंदस्यपि श्यत इत्यक्िशब्टस्यानङदेशः। यद्वा । अभिरं-
षण
न +
ज्योतिषा । बाधते । तम॑ः ॥२॥
वि त)
अमत्य भरणरहिता देवी देवनशीत्ता राचिरर विस्तीीमंतरिमाप्राः। प्रथ-
मतस्तमसापूरयति । प्रा पूरणे । आदादिकः । लङः व्यत्ययेन मध्यमः । तथा ४
निवतो नीचीनान् लतागुत्मादीन् उडत उत्थितान्वृक्षादींश्च स्वकीयेन तेजसा- `
वृणोति । तदनंतरं त्तमो ऽधकार ज्योतिषा यहनछचारिरूपेण तेजसा बाधते । [ि
पीडयति ॥ [र 9 9.
* ॥अथतृतीया॥ क
निर स्वसारमस्कृतोषसं देव्यायती । = 1
अपेदु हासते तम॑ः ॥३। षि ५ न
। ऊ इतिं । स्वसारं । अकृत । उषसं । देवी । आऽयती । ५
अपं । इत् । ऊ इतिं । हासते । तम॑ः ॥३॥ ध
आयत्यागद्छती देवी देवनशील्ता रािः स्वसारं भगिनीसुषसं निरकृत । नि- .
ष्करोति । प्रकाशेन संस्करोति । निवतेयतीत्यथैः । तस्यासुषसि जातायां नें तमो [ि
ऽपेद्वासते । अपेव गच्छति । ओहाङ् गतौ । लेटयडागमः। सि्रहूत् सिति सिप् ॥ द
जव चहुषी ष, ` : ` ` |
सानो अद्य यस्यां वयं निते यामन्नविं्महि। 1
` वृक्षे वंसतिं वय॑ः ॥४॥
सा। नः। अद्य। यरस्याः। वयं!
छे । न । वसतिं । वर्यः ॥8॥
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हे ऊर्म्ये । राचिनामेतत् । रा -वृक्यं वृकस्य स्ियं वृकं चास्माग्दिसंतं यवय ।
अस्मत ५ पृथङ्कर। अस्मान्वाधितुं यथा न प्राप्नोति तथा । स्तेनं तस्करं च यवय ।
` `" {[अ०४. ख 3, व० १४.
डांदसः शपो तुर् । तच दृष्टातः । वयः परिणो "|
पा० १.३.१७. इत्यात्मनेपदं ।
वृष्य न। यथा वृष्छे नीडाश्चये वस्तिं राच निवासं कुषैति तथ
क
४. ` | ॥ अथयपंचमी॥ ` `
नि यामासो अविक्षत नि पदतो नि पथिः! ` : 4
न श्येनासंधिद््धिनः॥५॥ =" ` क
` नि। मामासिः। अविक्षत । नि) पत्ऽवतः। नि। पशिणः। = | ए
` नि। श्येनास॑ः। चित्। अथिन॑ः ॥५॥ ` ` ५. . |
मासो यामाः। अच यामशब्टौ जनसमहे वतेते यथा. याम सगत इति ।
स्वे जना न्यविषत्त । तस्यां राचावागतायां . निविशते । शेख । निपूवीद्िश्ते- ५
दसे त्ुडिः पू वेवदात्मनेपदं । शल इगुपधादनिटः क्सः । क्सस्याचि । पा०. ^
३.७२.। इत्यकारत्मोपः । तथा पद्तः पाटयुक्ता गवाश्वादयश्च निविशते । तरथा =.
पिणः पक्षोपेताश्च निविशते ! अर्थिनः । सर्तेस्णो ` गमनं । चशीघ्रगमनयुक्ताः ` ।
यिनासश्चिच्छ्येना अपि तस्यां रा्यां निविशते । एषा राविः सवशि भूतज्ञा- =,
तान्यहनि संचारेण श्रांतानि स्वयमागत्य सुखयतीत्यथेः ॥ ` १
^ ॥खथषष्टी॥ ॥ि ति. 1
` यावय वृक्यं १ वृकं यवं स्तेनमूर्म्ये । = ` व, ॥
अथा नः सुतरां भव॥६॥ ` $ न 4
` . यवय॑ । वृक्यं । वृतं । यवय । स्तेनं । ऊर्म्ये 0
अथ॑ । नः । सुऽतरां । भव ॥६॥ ^
(0
५ । ०
सजय । अथानतर नाऽ स्माके सुतरा सुखेन तरणीया सेमकरी भव ॥
संसवे निमित्तभूते वेश्वदेवसृक्स्य पुरस्तदितच्छंस्यं । सूचितं च । ममाप्रे वच इति
पि वेतेश्ैव निविदो दध्यात् । आ०६.६.। इति ॥ समावतेनेऽनेन
%
ह
१२०. ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ ४५७
उप॑ । मा । पेपिंशत् । तम॑: । कृष्णं
उषः । णाऽईव । यातय ॥७॥
म० 4१०. चप० १०
शद्ुशं पिंशत् सवेवस्तुष्ठाशिष्टं तमोऽ धकारं कृष्णं कृष्णवशं व्यक्तं विशेषेण
| तवेस्यां जलं ¡ नेश तुपास्थितं । उपागच्छत् ।
गतकरण स्ात्मनेपट् । हे उष उषोदेवते त्वमृणेवणानीव त्तमो यात्तय । खप-
६. ॥ अथाष्टमी ॥
उपते गा इवाकरं वृणीष्व दुहितरिवः
रचि स्तोमं न जिग्युषै॥४॥ | |
उपं।ते। गाःऽइव। स्या । अकरं । वृणीष । दुहितः । दिवः ।
रिं । स्तोमं । न।. जिग्युषे ॥४॥
# ५
हे राचि राचिदेवते ने तवां गा इव पयसो दोग्धीरथेनूरि वोपेत्याकरं । स्तुतिभि-
रभिमुसीक्णेमि । करोतिष्डांदसे त्ुडिः कमृहरूरिभ्य इति च्रेराडदेशः । दिवो
दुहितः । द्योतमानस्य सूयेस्य पुचि । यद्वा दिवन्स्य तनये । परमपि हंदसीति
परस्य षष्ठ्यतस्य पूवोामंचितांगवद्वावात्पद््यसमुदायस्याष्टमिकं सवोनुटाचत्वं ।
त्मसादाज्निग्युषे शचरूजजिग्युषो मम स्तोमं न स्तोच्मिव हविरपि वृणीश्र । त्व
भजस्व । जयतेकिटः कमसुः । सर्छिंटोर्जेरित्यभ्यासाटुत्तरस्य जकारस्य
चतुर्थीं वक्तव्येति चतुर्थी । वसोः संप्रसारणमिति संप्रसारणं ॥ ९४
` ॥ इत्यष्टमस्य सप्नमे चतुरे वर्मः ॥
)
ममाम्र इति नवचं षोडशं सुक्तमांगिरसस्य विहव्यस्यापे चेश्वदेवं । संत्या-जगती
शिष्टास्तिष्टुभः । अनुक्रम्यते हि । ममाप्रे नव विहव्यो वैश्वदेवं जगत्यंतमिति ।
॥.
वेश्वदेवसुक्तस्या
4 ,
॥ ५ | ॥ ऋग्वेदः ॥ | ख० ७. अ० ऽ, व०१५,
| । | ॥ तन प्रयमा॥ । |
ममाभ्र वर्चो विहवेश्॑सतु वयं वेधानास्तन्वं पुषेम। `
मद्यं नमंतां प्रदिशशचत॑खस्वयाध्यसेण पृत॑ना जयेम ॥१॥ ` ष
: . मम॑। अग्रे । वचैः। विऽहवेषं। अस्तु। वयं । ता । इधानाः तनव॑ । पुषेम। `
| > #
"न मद्यं । नमतां । प्रऽदिशः। चत्त॑सः। यां । अधिंऽञअसेण । पृत॑नाः । जयेम ॥१॥ `
| ` हे अपरे । विविधमाहू्ते येषु भूरा इति विहवाः संमामाः । यद्वा विविधं
अ गाथे देवा आहूयंत एश्चिति विहवा यज्ञाः । इः संप्रसारणं च न्यभ्युपविषु
(५ । पा०३.३.७२.। इत्यधिकरणेऽय् स्षप्रसारणं च । थाथारिनोच्तरपदांतोदाचलं ।
( संमामेषु यज्ञेषु वा वर्चो दीषिस्वदनुगरहान्ममास्तु । भवतु । वयं च त्वा वामि.
० धानाः समिद्विदीपियंतस्तन्वं तव शरीरं पुषेम । हविर्भिवेधयेम । इधेः शान
| अरसोरल्लोप उदाक्तनिवृ्निस्वरेण शानच ादयुदात्तत प्राप्रे विभाषा वेखिंधानयोः
(1; । पा०६.१,२१५.। इत्याद्यदात्ततं । तन्वं पुषेम । पुषेततिडिः लिड्धाशिथङ्् । अपि
1९6 च मद्यं मदथे । डयि चेत्यस्मद् आद्युदा्तत्वं । चतसः प्रदिशः प्रकृष्टा दिशः ।
. ` तद्लासिनो जना इत्यथैः । नमंतां । स्वत एव प्रीभवंतु । नमतः कर्मकर्तरि
1 लोटि न दुहुनमामिति यक्प्रतिषेधः । त्यास्माभिरहेविभिः प्रवधितेनाध्यकषे-
| रे्वरेण सतता पृतनाः शचुसेना जयेम । अभिभवे ॥
1 ॥ कथ. चितीया॥ = ~ `
| मम॑ देवा विहवे संतु सव इदरवंतो मरुतो विष्णुरभरिः । ` ५
1 ममातरिकषमुर्टोकमस्तु मद्यं वात॑ः पवतां कामे अस्मिन् ॥२॥
मम॑ । देवाः। विऽहवे। संतु । सर्वै । इदरऽ वंत; । मर्तः। विष्णुः । अभ्िः।
मम॑। तरसं । उरुऽलोवं । अस्तु । मद्यं । वात॑ः । पवतां । कामे अस्मिन् ॥२॥
\ {५ ४
- म०१०.अ०१०. सूर१२८.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥
¢ „= ` ॥ खथ तृतीया ॥
मयि देवा दरविणमा यजतां मय्याशीरस्तु मयि देवहंतिः ।
देव्या होतारो वनुष॑त पूर्वेऽरिं्टाः स्याम तन्वां सुवीराः ॥३॥
॥ मयिं। देवाः, द्रविणं। आ । यजंतां। मयि । आऽशीः। अस्तु । म्यं । देव ऽहतिः
| देव्याः । होतारः । वनुष॑त । पूरव । अरि्टाः। स्याम । तन्वां । सुऽवीरा; ॥३॥
| देवाः स्वे दूविणं धनं मयि स्तोत्तयौ यजंतां । गमयतु । मद्यं द्दवित्यधैः । `
. तथाशीराशंसनीयं यज्ञफं च मय्येवास्तु । देवानां हतिराद्धानमस्सिज्िति देव-
हतियजञः। स च मय्यस्तु । अपि च देवानामिमे देव्याः । टेवाद्यजजाविति यञ् ।
ताहशण होतारः साधुहोमनिष्यादका मदीया ऋविजः पूर्वेऽन्यदीयेभ्य तिभ्यः `
| प्रथमभाविनः संतो वनुषंतत । देवान्संभजंतां । वनतेश्छा ट्से त्डिः व्यत्ययो बहू
(= ~ त्सिति चयो विकर्णा उप्रत्ययः स्िष्छपो च । अडभावग्लांदसः। वयं च तन्वा
शरीरेणारिशा अहिंसितः सुवीरः सुपुचाश्च स्याम । वेम । वीरवीयो चेत्यु्ञ-
रपदाद्युटाच्तत्वं ॥
॥ अथ चतुर्थी ॥
मद्यं यजंतु मम यानि हव्याकूतिः सत्या मन॑सो मे स्तु ।
एनो मा नि गां कतमच्चनाहं विश्वै देवासो अधिं वोचता नः॥४॥
मद्यं । यजतु । मम॑ । यानिं । हव्या । आऽ्कूतिः। सत्या । मन॑सः । मे। अस्तु ।
एनः। मा। नि। गां । कतमत्। चन । अहं । विश्व । देवासः। सधि! वो चत्त । नः॥४॥
कने काप्य्के शद
मह्यं मदथे यजंतु । ऋतििजो देवान्हविभियेजंतु । यद्वा षष्ठयर्थे चतुर्थी । मद्यं `
मदीया विज इत्यथः । मम स्वभूतानि हव्यानि यानि हवींषि चरूपुरोडाश- `
दीनि संति तैहेविभिरित्यथेः । तथा मे मनस आकूतिः संकस्यनमभीषटस्य प्राथेनं `
सत्या यथाथेमस्तु। अपि च । अहं कतमचच्चन किमथेनः पापं मानि गां। मा नियतं
निकृषटतरं वा. गच्छेयं । पापं मा काषैमित्यथैः। एतेमारिः तुडीणौ गा लुडि
: । गातिस्थेति सिचो त्टुर् । अपि च। हे विश्वे सर्वे देवासो देव
५ विवदिष
१
शतु
रधाम। मा वशं प्राप्नुयाम । तथा तं कुवित्यथैः । रध्यतिवैशगमन इति यास्कः ।
9.“ ॥ ऋण्वेदः ॥
॥ अथ पंचमी ॥
देवीः षद्ुवीरिर न॑; कृणोत विश्वै देवास इह वीरयध्ं।
मा हांसरहि प्रजया मा तनूभिमौ रधाम हिषते सोम राजन् ॥५॥
देवीः। षट् ! उर्वीः । उर \ नः । कृणोत । विश्वं । देवासः । इहं । वीरयध्वं
क्कि # भाक
। रजन् ॥५॥
[अ०७. अ०9. ०१६.
मा। हासहि। प्रऽजयां। मा । तनूभिः । मा । रधाम । हिषते। सो
क भनति श्थि र 1 |)
हे षड्वीः षट्संख्याका उव्यैः। एताश्चान्यवान्नायते । षण्मोर्वीरिहसः पातु चयो
पृथिवी चाहश्च राचिश्वापश्चौषधयश्चेति । इहश्यो हे देवीरदव्यः। जसि वा छंटसीति
पूरवैसवणैदीषैः । नामंचिते समानाधिकरणे सामान्यवचनमित्यस्याविद्यमानल-
निषेधेन षकूर्वीखित्यनयोरामंचितयोः पदात्परत्वादा्टमिकमामंचितानुदाच्ततं । ता
यूयभुर विस्तीणे धनं नोऽस्माकं कृणोतत । कुरुत । कृवि हिंसाकरणयोः । धिन्वि-
कृरष्योरचच्युग्रत्ययः । त्ननघ्रनथनाश्चेति तस्य त बदेशः । हे विश्वे सर्वे देवासो
देवा यूयं चेहास्मिन्धने प्राप्रव्ये विषये वीरयध्वं । विक्रामयत । तथा वयं तनं
भेमहि । तथा वीयेवंत्तो यूयं प्रयच्छध्वमित्यथेः। वीर विक्रांतौ । खपि च प्रजया
पुचादिरूपया मा हास्महि । वयं मा परित्यज्येमहि ¦ मा च तनूभिः शरीरे
येमहि। अस्मान्कदाचिदपि पुचादयः शरीराणि च मा परित्याक्षुखित्यथेः । ओहाङ्
हासावं स्वासिन् हे सोम हिषतेऽप्रीतिं कुवते । दिषेः शतयेदारिाच्छपो तुर्)
गनुम इति विभक्तेरुटात्ततं । षष्ठ्यथ चतुथी वक्तव्येति चतुर्थी । हिषतः श्चोमा
त्यागे । अस्मात्कमेणि लुडि चिखद्धावाभावे रूपमेतत्। तथा हे राजन् राजमान।
यद्वा हिषते शवे तदये मा रथास । परिपक्ता हननाहा मा भूम । रध हिंसा
१ इतयष्टमस्य सप्तमे पंचद्शो वगैः ।
_। , ॥ अथ षष्टी।
टन्परेषामद॑न्धो गोपाः परि पाहि नस्वं । `
` संराद्योः । संराचचिः पाक इति तदृतिः । माडः त्ुडि पुषादिवाह्रङदेशः ।
1
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|
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पदांतोदात्तत्वं ॥
०१०. ०१०, सू०पर८] ॥ अष्टमोऽ टकः ॥ ४
हे छम्रे परेषां शचरृणां मन्यं रोधं प्रतिनुदन् प्रतिमुखं प्रेरयन् तिरस्सुवैन् अदब्धः
हिंसितो गोपा गोपायिता गुपू रक्षण इत्यस्मादायप्रत्ययांतात्किपि वेरपृ-
क्तस्य त्ोपात्पूव वल्क लोपे रूपमेतत् । इहशस्वं नोऽस्मान्परि पाहि ! परितः
सवेतो रक्ष । ते श्चवः प्रत्यंचः प्रत्य चंत: प्रतिनिवतमाना निगुतः । गुड् अव्यक्ते
शब्दे । अस्मात्किपि तुक् । भयेन गत्रदश्टपमव्यक्तं शब्दं नितरां कुैतः पुनयेतु ।
स्वकीयं स्थानं पुनगे्ंतु । अपि च प्रवुधां प्रवृध्यमानानामेतिषां शत्रूणां चितं
ज्ञानसाधनं मनोऽमा सह युगपदेव वि नेशत्। विनश्यतु, परत्येकाभिप्रायेशेकवचनं।
णम् अटशेन इत्यस्माद्डांदसो तुङ् । पुषादिवाङ्चरडगदेशः। नशिमन्योरलिदोलव
वक्तव्यमित्य कारस्येत्वं ॥
॥ अथं सप्रमी ॥
धाता धांतृणं भुव॑नस्य यस्यिरदैवं चातारंमभिमातिषाहं।
इमं यज्ञमश्विनोभा वृहस्यतिरुवाः पातु यज॑मानं न्यधात् ॥७॥ त
धाता । धातृणं । वनस्य । यः । पतिः । देवं । चातारं। अभिमाति ऽसहं ¦
इमं । यज्ञं । अश्विना । उभा । वृहस्यतिः देवाः। पातु यज॑मानं । निऽअथोत्॥७॥
धातुणां खष्टुणामपि धाता सरष्टा भुवनस्य कृत्लस्य भूतजातस्य य इदः सविता
वा पतिः पालयिता तं देवं देवनशीत्टं चातारं सर्वेभ्यो भयेभ्यः पालयितारम-
भिमातिषाहमभिमातीनां शरणां सोढारमभिभवितारं एवंगुणविशिष्टिमिंदं स-
वितारं वा स्तौमीति शेषः । षह अभिभवे। ददसि सह इति रिविप्रत्ययः । छांटसं
विभच्छुदाचत्वं । उभोभावश्विनौ वृहस्यतिशेतत्ममुखाः सर्वे देवा इमं यज्लमनुष्टीय-
मानं यजमानं च न्यथाजिवृष्टादथेत्मापात् । यद्वाथैस्य प्रयोजनस्याभावो न्यं ।
»4
तस्मात्पातु । रक्षतु । सफलं कुवैवित्यथेः । नेरनिधाने । पा ६.२,१९२.। इत्यु्तर-
0 ॥ अथादमी ॥
उरत्यचा नो महिषः शमे यंसदस्िन्हवे पुसहूतः पुरषुः। `
स न॑ः मनि हेश मृक्येदर मा नों रीरिषो मा परां दाः॥४॥
। नः। मऽजयि।
हयंतऽस्मन्हवींषीति हवो यज्ञः । ज्ुहोतिरथिकरणेऽ ् । यद्चास्मिन्हवे त्वदिषय
॥ आद्धाने। भावेऽनुपसरगस्येति इ यतेर् संप्रसारणं च। नोऽस्मभ्यं शमे सुखं यंसत्।
| यच्छतु । द्दावित्यथैः। यमेर्गव्यडागमः । सिहूत्मिति सिप् । हे हरेश्च । हरी
| ` वयमव बाधामहे) निकृषटतरं विनाश्यामः। अपि च वसवो र्दा
ह नोऽस्मावं ये सपत्नाः रववस्तेऽप भवंतु । अपगता भवतु । स्वस्थानादपगताः 0
४६२ ॥ ऋग्वेदः ॥ ` [अ०४. ०७9. व०१$.
उरहव्यचा विस्तीणेव्यापनो महिषो महान्पूज्यो वा पुरुहूतो बहुभियेजमानेरा हूतः
५, रश्ुवेहुनिवासः। क्षियतेमिंतदूदिभ्य उपसंख्यानं । पा० ३,२.१७०.१.। इति द्प्र
॥ त्ययः । यद्वा पुरुभिबेहुभिः शस्यमानः स्तूयमानः । पूरवैवडप्रत्ययः । ञ्ओीणाटिके
४१ कमणि क्रिपि वानित्यमागमशसनमिति तुगमावः । ईह इदटरोऽ स्िन्हवे यज्ञे
न अश्वौ यस्य ताहश हे इद्र स त्वं नोऽस्माकं प्रजायै । दितीया्े चतुथी ¦ प्रजां
॥ पुचपोचादिकां मृच्छय। सुलय। नोऽस्ान्मा रीरिषः। मा हिंसीः! मा च परा दाः।
क परादानं परित्यागः । मा परित्याक्षीरसित्यथैः ॥
॥
ध ॥ अथ नवमी ॥
ये नः सपाना अप् ते भं वंलिदामनिभ्यामव॑ं बाधामहे तान् ।
( वस॑वो र्द्रा आंरित्या उपरिस्युभं मोयं चेचचारमधिराजम॑कऋरन् ॥९॥
1. ये। नः सऽपत्नाः। अप॑ । ते। भवंतु । इदाग्रिऽभ्यां । अव॑ । बाधामहे । तान्| |
वसंवः। रद्राः आदित्याः। उपरिऽस्ृ मा। उ चेत्चारं। अधिऽराजं। अरन् ॥९॥
ॐ ॐ
¢ मर्ता भवंतु । तान्सपल्नानिंदाप्रिभ्यां हविभिः स्तुत्या च प्रसनराभ्यासनुगृहीता
सादित्याश्च
| मा मामुपरिप्वृशमुन्रतपदस्य संस्प्रटारं सर्वेभ्यः
५
मासुपारस्पृशमुन्नतप घरष्ठमक्रन् । कुवत । तथोप-
मुद्रुणेबलं चेत्तारं चेतिततारं। छां
(0 छाद्स इडनावः। सवस्य ज्ञातारमधिराजं सर्वेषाम 1
भा कृतु । करोतिग्डांदसे त्हुडिः मंचे धसेत्यादिना बदर ॥ ८ {
॥
म०१०. ०११. सु०१२९.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ ४६३
तिप्रकयादीनामच् प्रतिपाद्यवात्तेषां कतौ परमात्मा देवता । तथा चानुक्रांतं ।
नासत्सत्न प्रजापतिः परमेष्टी भाववृत्तं तिति । गतो विनियोगः ॥
॥ तच प्रथमा ॥ `
नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परो यत् ।
किमावरीवः कुहं कस्य शम्भः किमांसीत्रहनं गभीरं ॥१॥
न । असंत्। आसीत्। नो इतिं । सत्। आसीत् । तदानीं । न । आसीत् । रज॑ः ।
# भे क
नो इतिं । विऽश्चोंम। परः। यत्।
किं। ्ा। अवरीवरितिं। कुहं । कर्स्य। शमेन्। अभः। किं। सआसीत्। गहनं । गभीरं ॥१॥
तपसस्तन्महिनाजायतेकमित्यादिनाये सृष्टिः प्रतिपादयिथते । अधुना ततः
प्रागवस्था निरस्तंसमन्तप्रपंचा या प्रतठयावस्थासा निरूयते। तदानीं प्रलयदश्श-
यामवस्थितं यदस्य जगतौ मूल कारणं तन्नासत्। एणएविषाणएवननिरुपाख्यं नासीत्।
न हि ताहशक्कारणादस्य सततो जगत उत्पत्तिः संभवति । तथा नो सत् । नैव =
सत् । आत्मवत्सच्ेन निरवाच्यमासीत्। यद्यपि सदसदात्मकं प्रयेकं विलशणंभवत्ति =
तथापि भावाभावयोः सहावस्थानमपि संभवति । कृतस्तयोसवादात्म्यमित्यभय-
विल्कक्षणमनिवच्यमेवासीरित्यथः॥ ननु नो सदिति पारमाथिकसखस्य निषेधः।
तद्योत्मनोऽ निवीच्यवप्रसंगः। खथोय्येत । न । अआनीदवातसिति तस्य सचमये
वध्यते परिभेषान्मायाया रवा सत्तं निषिध्यत इति । एवमपि तदानीमिति
विशेषणानथेक्यं व्यवहारदशयामपि तस्याः पारमाधिकसचयाभावात्। अय व्याव-
हारिकसच्वस्य । तदापि व्यावहारिकसत्ता पृथिव्यादीनां भावानां विद्यमानत्वात् कथं
` नौ सदिति निषेधः। तबाह । नासीद्रज इत्यादि । लोका रजास्युच्यत इति यास्कः।
अच च सामान्यापेक्षमेक्वचनं । योख्नो वध्यमाणताचस्याधस्तनाः पात्तालादयः
पृथिव्या नासन्धित्यथेः। तया व्योमां तरिं तदपि नो नेवासी
परल्तादित्यर्थे वतेते! परशब्टाच्छ
^:
न मं
॥वासीत्। परइ्तिसकारंतं =
ला दिव्य दाच्छादसस्तासेर्थेऽसिप्रत्ययः। परो व्योख्ः परस्तादुष- `
गे दयुललोकम्रभृतिसत्यललो कांतं यदस्ति तदपि नासीदित्यथैः। छ नेन चतु
ब्रह्मांडं स्वरूपेण | निषि न षड भवति । |
४६४ ॥ऋन्वेदः॥ [अ०४,अ०७. व०१७.
| ङिः तिपि रूपमेतत्। यद्वा किमिति प्रथमेव । तखमावरकमावणयात्। आ-
। वायाभावादात्रियमाणवत्तदपि खरूपेए नासीदित्यथः । आवृत्तं कुह कुच
| । --- देशेऽवस्यायावृणोति। आधारभूतस्ताहणो देशोऽपि नासीदित्यथेः। विशव्टात्सप्रम्यः
| इमत्ययः। कु तिहोरिति प्रकृतेः कादेशः । कस्य शमेन् कस्य वा भोक्तुजीविस्य शमेणि
५.1. ` सुखदुःखसाक्ात्कारलक्षणे वा निमिभूते सति तदावरकं तच्चमावृणुयात् । जी-
। + वानासुपनोगाथो हि सृष्टिः। तस्यां हि सत्यां ्र्मस्य भूतिरावरणं प्रलयदशायां
| चभोक्तारो जीवा उपाधिविलयात्मत्टीना इति कस्य कध्चिदपि भोक्ता न संभ-
(0 वतीत्यावरणस्य निमित्तानावादपि तन्न घटत इत्यथेः। एतेन भोग्यप्रपंचवन्नोक्त-
| प्रपंचोऽपि तदानी नासीदिव्ुक्गं भवति। विंणब्दाट््तरस्य डम्तः सावेकाच इति
^ प्राप्रस्योदाचत्वस्य न गोश्वन्साववर्णेति प्रतिषेधः, मुपां सुत्दुगिति शमेणः सप्रम्या
(१ तुर् । यद्यपि सावरणस्य ब्रह्मस्य निषेधेन तदंतगत्तमप्त्लमपि निराकृतं
1 तथाापो वा इदमये सलिलमासीदित्यादिश्ुत्या कश्विट्पां सद्ावमाशकेत ¦
1 तं प्रत्याचष्टेऽभः किमासीदिति । गहनं दुःपवेशं गभीरं दुःखस्थानमत्यगाधं
९. इहशमभः किमासीत् । तदपि नैवासीदित्यथेः । श्ुतिस्ववांतरप्रलयविषया ॥ `
1 ॥ अथ डितीया ॥
न मृ्युंसीदमृतं न तहिं न राया अहं आसीत्मङेतः ।
` आनीदवातं स्वधया तदेकं तस्माद्धान्यन्न परः किं चनासं ॥२॥
न। मृ्युः । आसीत्। अमतं । न । तहिं । न । राच्याः। अहः । आसीत् । प्रऽकेतः,
आनींत्। अवातं । स्वयां । तत् । एकै । तस्मात् । ह । अन्यत् । न । परः। विं।
चन।आसं॥२॥
ननूक्तस्य, मरतिसंहारस्य संहेपेशत्वात् स एव संहतो मृत्युविंद्यत इत्यत्त शह । `
मृरासीदिति । ननु यदि स नासीत् तहि तद्भावकृतममृतममरं म्ाि-
9
॥ प्राणि
म०१०.अ० ११. सु०१२९.] ॥ सअष्टमोऽ टकः ॥ ४६१
1धिकरणभूतः कालो विद्यत इत्यत आह ! न राच्या इति । न राच्या अहश्च
प्रज्ञानमासीत्। तद्ेतुभूतयोः सूया चंदमसोरभावात्। एतेनाहोचनिवेधेन
तदात्मको मासतुसंवत्सरपरभुतिकः स्वैः कालः प्रत्याख्यातः । कथं तरि नो सदा-
सीत्तदानीमिति कालवाची प्रत्ययः। उपचारादिति ब्रूमः। ययेदानीं्तननिषे-
धस्य कात्ोऽवद्छेटकस्तणा मायापि तद्वद्छेदहेतुरित्यवच्छेदकत्साम्येनाकाले
ऽपि कालवाची प्रत्ययः ॥ यट्वादिष्म बरह्मणः परमा्थसन्लमये व्यत इति तदि-
दानीं दशेयत्यानीदिति। तत्सकत्टवेदातप्रसिं जह्यतच्च मानीत्। प्राणितवत्। ननेवं
प्राणनकतुजीवभावापन्नस्येव बरह्मणः सच्चं स्यात् न विवसितस्य निरुपाधिकस्य
बह्मणः। अप्राणो दमनाः णुद इति तस्य प्राणसं बंधानावात् तच्ाहानीद्वातमि-
ति । सयमाश्यः । आ्ानीदित्यच धावथेक्रिया तत्त तस्य च भूतकात्रसं बंध इति
चयोऽथाः प्रतीयते । त्च समुदायो न विधीयते यथाम्नेयोऽद्टाकपात्र इति येन
बरह्मणः सच्चं न स्यात् । किं तरद्यनेन कतवमनूद्य भूतकालसच्रालक्षणो गुणो
विधीयते दभ्रा जुहोतीति वाक्यांतरविहिताभ्रिहोचानुवादेन तच गुणविधानं ।
तचाघनेन कतेतलविशिष्टस्य न ॒पूवेकासत्ता विधीये तन्निषेधानुपपत्निप्र-
संगात् अतोऽनेन कतेतेनेदानींतनेनोपलसितं यनिरूपाधिकं परं बह्य तस्येव
भूतकाल सत्ता विधीयत इति न कथ्िहोष इति ॥ नन्वीहशस्य बद्यणो मायया सह
संबधासंभवात्साख्याभिमता स्वतत्रा सटूपा सनच्नरजस्तमोगुणात्मिका मूत्दपरकू-
रिरिवाभिमतेति कथं नौ सदिति निषेधः। तचाह स्वधयेति । स्वस्मिन्धीयते धभियत
आधित्य वतेत इति स्वधा माया । तया तङ्खद्येकमविभागापन्नमासीत् । सहयुक्ते
ऽ प्रधाने । पा०२,३.१९.। इति तृतीया सहश्ब्दयोगाभावेऽपि सहाथेयोगे भवति
वृद्धो यूनेति निपात्तनादल्िगात्। खच प्रकृतिप्रत्ययाभ्यां तस्याः स्वातंच्यं निवायेते।
यद्यणसंगस्य बद्यणस्तया सह संधो न संभवति तथापि तस्सिन्रविद्यया तत्स्व-
व सं वंधोऽप्यध्यस्यते यथा शुक्तिकायां रजतस्य । एतेन सटूपत्वमपि तस्याः
तत्मरसंग इति कथं तस्य सच्नसुक्तमानीदवातमिति । बरह्मणे
प्रसंग इति कथं नो सदासीदिति सच्चप्रतिषेधः। मेवं ।
यटि माया बह्यणा सहाविभागापन्ना तरि तस्या अनिवाच्य-
¦ + ४६६ ॥ ऋपृम्वेट्ः ॥ ०४, प० 9, व० १9.
| तस्मा तस्मात्सत पूर्वोक्तान्मायासहिताङ्गणोऽन्यत्कं चन किमपि वस्तु भूतभो-
क तिङात्मकं जग्रास । न बभूव । इंदस्युभयथेति लिटः सावंधातुकवादस्तेभूनावा-
- (. भावः। ननु तदानीमन्यस्य सन्ननिषेधौ न शंर्यः। ससचच चाप्रसक्ततान्न निषेधो-
` । पयोग इत्यत आह पर इति । परः पर्तात्सुेरध्वे वतेमानसिद् जगत्तदानीं न
बभूवेत्यथैः । अन्यथोक्तरीत्या कचिटपि निषेधो न स्यादिति भावः ॥ |
(1 2 ॥ खथ तृतीया ॥ |
5 तम॑ आसीत्तमसा गृढ्टहमयऽप्रकेतं सलिलं सवमा इटं ।
; |) [व णन
| तुच्च्येनाभ्वपिंहितं यदासीचप॑सस्तन्म॑हिना जा यतिक ॥३॥
1 ` तम॑ः। आसीत्। तम॑सा । गृष्टहं । खमे । अप्रऽकेतं । सलितं । सवे । आः । इट् ।
॥ तुच्छ्येन॑। आभु। अपिंऽहित। यत्। आसींत्। तप॑सः। तत्। महिना। अजा यत। ए ॥२॥
ननूक्तप्रकारेण यदि पूवैमिट् जगन्रासीत्कथं तहि तस्य जन्म । जायमानस्य
| जनिक्रियायां केतेन कारकत्वात् कारकं च कारणावांतरविशेष इति कारकस्य
सतो नियतपूर्वक्षणवतितस्यावश्यंभावात् । खथेतहौीषपरिजिहीषेया जनिक्रिया-
याः प्रागपि तदद्यत इत्युच्यते । कथं तस्य जन्म । अत आह । तमसा गृूढ््हमय
इति । खगे सृष्टः प्राक् प्रठयद्शायां भूतभोत्तिकं सवे जगत्तमसा गूट्ट्हं । यथा
1
५१५.
नैशं तमः सवैपदार्थजातमावृणोति तडत् । सआत्मतच्लस्यावरकवान्मा यापरसंजञं
भावरूपाज्ञानम तम इत्युच्यते । तेन तमसा निगदं संवृतं कारणभूतेन तेना-
च्छादितं भवति । आच्छादकाच्स्मात्तमसो नामरूपाभ्यां यदाविभेवनं तदेव तस्य
जन्मेत्युच्यते । एतेन कारणावस्थायामसदेव कायेमुत्पदतं इत्यसद्वादिनो ऽसत्काये-
। वादिनो ये मन्यते ते प्रत्याख्याताः ॥ ननु कारणे तमसि तज्जगदात्मवं काये विद्यते
। चेत् कथं नासीदूज इत्यादिनिषेधः। तचाह तम आसीदिति । तमो भावरूपाज्ञानं
भूलकारणं। तटूयत्ता त्दात्मनां । यततः सवे जगत्मार् तम आसीदतो निषिष्यत्त = । `
इत्यथैः ॥ नन्वावरकत्वादावरकं तमः कतृ आआवायेत्वाज्नगत्कमे । कथं तयोः कमे
तादात्यं । तचाह । अप्रकेतमिति । अप्रकेतमप्रज्ञायमानं । अयमर्थः । यद्यपि
विद्यते तथापि व्यवहार
॥ ॥
शेषेण मायायां वित्मीनेऽतःकरणे समवेतं । सामान्यापेरमेकवचनं । सवेप्राणयं
म० १०. ०११. सू०१२९.] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ = ` ४६७
इट् दश्यमानं सवे जगत्सलिठं कारणेन संगतमविभागापन्नमाः। आसीत् ॥ ख-
|
ेत्ठेडि तिपि बहुत उंट्सीतीडभावे हर्ड्याग्भ्य इति तिलोपे तिनस्तेः । पा
४.२.७३.। इति पयुंदासादकाराभावः ॥ यद्वा सलिलमिति द्ुप्नोपमं । सलिल
सिव । यथा स्षीरेणाविभागापनं नीरं टुर्विज्ञानं तथा तमसाविभागापन्ं जगच
क्यविज्ञानमित्यथंः ॥ ननु विविधविचिचरूपभूयसः प्रपंचस्य कथमतितुख्छेन
तमस्ता कीरेण नीरस्येवाभिभवः। तथा तमोऽपि समीर वडत्रवदित्येवोच्यते । तरि
टुबेत्दस्य जगतः समेसमयेऽपि नोद्धवसंभव इत्यत आह । तुच्च्येनेति। ख सम॑-
ताद्गवतीत्यामु । तुच्च्येनं । ह्यांटसो यकारोपजनः । तु्छेन तुच्छ कस्यनेन सदस-
हडित्क्षणेन भावरूपाज्ञानेनापिहितं छादितमासीत् । दधतः कमेणि निष्टा ।
ट्धातेहि । गतिरनंत्तर इति गतेः प्रकृतिस्वरत्वं । एकमेकीभूतं कारणेन तमसावि-
भागतां प्राप्रमपि तत्कायेजातं तपसः खष्टव्यपयातलोचनषूपस्य महिना माहाष्सये-
नाजायत । उत्पन्न । तपसः खषटव्यपयाल्ोचनरूपत्वं चान्यचाश्नायते । यः सवेज्ञ
वैविद्यस्य ज्ञानमयं तप इति ॥
॥ थय चतुर्थी ॥
कामस्तदये सम॑वतेताधि मन॑सो रेत॑ः प्रथमं यदासीत् ।
सतो वंभुमसंति निर॑विटन्हदि प्रत्तीष्यां कवयो मनीषा ॥४॥
कामः तत्। खरे । सं । अवतेत । अधिं । मन॑सः। रेत॑ः प्रथमं । यत्। सासीत्।
सतः। बंधु । अस॑ति । निः। अविंटन्। हदि । प्रति ऽइष्यं । कवर्यः । मनीषा ॥४॥
ननूक्तरीत्या यदीश्वरस्य पयोत्टोचनं जगतः पुनस्त्पन्ञो कारणं तदेव विंनि-
बंधनमित्यत आह कामस्तट्य इति । अग्रेऽस्य विकारजातस्य सृष्टेः प्रागवस्यायां
परमेश्वरस्य मनसि कामः समवतेत । सम्यगजायत । सिसृक्षा जातेत्यथेः । इश्वरस्य
सिसुष्ा वा किंहेतुकेत्यत आह मनस इति मनसोऽतःकरणस्य संबधि वासना-
4
तःकरणेषु समवेत्तमित्यथेः । एतेनात्मनो गुणाधारत्वं प्रत्याख्यातं । ताहशं
भाविनः प्रपंचस्य वीजभूतं प्रथममतीति कस्ये प्राणिभिः कृतं पुण्यात्मकं कमे यद्यतः
४४४ ॥ ऋग्वेदः ॥ ० ४. ०७, व०१७.
जगत्सुजति । तथा चान्नायते । सोऽकामयत बहुः स्यां प्रजायेयेति स तपो ऽतप्यत
स तपस्तद् सवमसृजत यदिदं किंचेति धुत्यात्मनेत्थमवगमितेऽ थे विडटनुभव-
मणनुमाहकतवेन प्रमाणयति सत इति । सतः सनचेनेदानीमनुभूयमानस्य सवस्य
जगतो बंधं वंधकं हेतुभूतं कस्यांतरे प्राण्यनु्टितं कमेखमूहं कवयः ऋरंतदभेना
छततीतानागततवततैमानाभि्ला योगिनो इदि हदये निरूढया सनीषा मनीषया
बुद्धा । सुपां सुलुगिति तृत्तीयाया लुङ् । प्रतीष्य विचाये । छन्येषामपीति सांहि-
तिको दीः, असति सदहिलक्षणेऽव्याकृते कारणे निरविंदन् । निःकृयालभत ।
विविव्याजानन्नित्यथंः ॥
॥ पथ पंचमी ॥
( तिरशीनो वित॑तो रश्मिरेषामधः स्विदासी$दुपरिं स्िदासी३त् !
क रेतोधा आंसन्महिमानं आसनस्वधा अवस्वात्मरयतिः परस्तात् ॥५॥ `
( तिरथीनैः। विऽत॑तः। र्मः । एषां । अधः। स्वित्। आसी३त्। उपरि । स्वित् ।
0 ॥ आसी३ त् । | क
रेतःऽधाः। ्ासन्। महिमान॑ः। आसन्। स्वधा। अवस्तात् प्रऽय॑तिः। परस्तात् ॥५॥
एवमविद्याकामकमाणि सृरेर्हतुवेनोक्तानि । अधुना तेषां स्वकायेजनने शेच्यं
॥ प्रतिपाद्यते । येयं नासदासी दित्यविद्या प्रतिपादिता यश्च कामस्तदय इति कामी
मनसो रेतः प्रथमं यटासीदिति यत्करमेषामविद्याकामकमंणां वियदादिभूतजा-
तानि सृजतां रश्मी रर्िमिसदशौ यथा सूयेरश्िमरुद्यानंतरं निमेषमाचेण युग-
त्सव जगद्याभ्ोति तथा शीप्रं सवेच व्याध्रुवन् यः कायेवर्गो विततो विलृत
स्विदासीदिति वध्यमाणमचापि संवध्यते ॥ विचायेमाणानां । पा
प्रथमतः किं तिरश्रीनस्तियेगवस्थितो मध्ये स्थित आसीत् किवाधोऽध-
छात्किमासीत् । उपरि स्वि
आकाशः संभूत
आकाशा
शडायुवायो
सुतः । तबोदात्च इत्यनुवृत्तेः स चोदात्तः । स्विदिति वित्ते ॥ स
सीदिति च ।पाच्छ.
क
॥॥
म० १०, ०११. सु०१२९.] ॥ अष्टमो ऽ टकः
विधातारः कतारो भोक्तारश्च जीवा आसन् न्ये भावा महिमानः । स्वार
इमनिच् । महातो वियदाद्यो भोग्या आंसन्। एवं मायासहितः परमेश्वरः सव
जगलसृ्रू स्वयं चानुप्रविश्य भोक्कभोग्यादिरूपेण विभागं कृत्तवानित्यथेः । अय-
मेवाथेस्वेत्तिरीयके तत्सृषटा तदेवानुप्राविशदित्यारभ्य प्रतिपाद्यते । तच च भोकतु-
भोग्ययोमेध्ये स्वधा । अन्रनामेतत् । भोग्यप्रपंचोऽ वस्ताटवरो निकृ आसीत् ।
प्रयतिः प्रयतिता भोक्ता परस्तात्पर उत्कृष्ट आसीत् । भोग्यप्रपचं भोक्तुप्रपंचस्य
शेषभूतं कृतवानित्यथेः। विभाषा परावराभ्यां । पा०५.३.२९.। इति प्रथमार्थे ऽस्ता-
तिः। अस्ताति चेत्यवरशब्टस्यावादेशः । अवस्ताटिति संरितायामीषा अस्ाटि
त्वात्मरकृतिभावः ॥
॥ अथ षष्टी ॥
को अद्धा वेट् क इह प्र वोचत्कुत आज।ता कुतं इयं विसिः ।
अवेग्देवा अस्य विसजेनेनाया को वेट् यतं ्ाबभूवं ॥६।
कः । अधा! वेट्। कः। इह । प्र। वोचत् । कुतः। आऽ जाता । कुत॑ः। इयं । विऽसुटिः।
अवीर देवाः । अस्य । विऽसजैनेन ! अथं । कः। वेद्! यत॑ः। आऽ बभूव ॥६॥
वं भक्कभोग्यरूपेण सृष्टिः संयरहेण प्रतिपादिता । एतावद इदमन्ं चेवाना-
दश्च सोम एवान्मभ्रिर्ाद इतिवत्। अथेदानीं सा सृ्िदुविानेति न विस्तरे
भिहितेत्याह । को अद्धेति । कः पुरुषोऽ दा पारमार्थयेन वेद् । जानाति । कौ
वेदास्मिरीके प्र वोचत् प्रत्रूयात् । इयं दृश्यमाना विसुष्टिविंविधा भूतभोतिक-
भोक्भोग्यादिषरूपेण बहुप्रकारा सृष्टिः कुतः कस्मादुपादानकारणात् कुतः कस्माच्च
निभिचकारणादाजाता । समंताज्नाता । प्राटुभूता । एतटुभयं सम्यक्गो वेद् । को
वा विस्तरेण वकु शङ्कुयारित्यथेः। ननु देवा अजानंतः। सवेल्ास्ते ज्ञास्यति वक्तु
च शङ्कवंतीत्यत आह । अवागिति । देवाश्चास्य जगतो विसजेनेनं वियदादिभू-
त्मखयनंतरं विविधं यद्गोतिकं सजेनं सृषिस्तेनावेागवेाचीनाः कृताः । भूतसुषटेः
पश्चाज्जाता इत्यथः । तथाविधास्ते कथं स्वोत्यत्तेः पू वेकाट्ीनां सृष्टि
9
: । उक्तं दुविज्ञानत्वं निगमयति । खथेवं सति
। तद्मतिरिक्तः को नाम मनुादिरवेद तज्जगत्का
॥ ऋग्वेदः ॥ . [आअ० ४. अ०ऽ, ब १७.
5, ॥ ऋसभ तै 4. 1
इयं विसंशटियेतं आबभव यदि वा दधे यदिवा न #॥
यो अस्याध्यक्षः परमे योमन्सो संग वेद् यदि वानवेद्॥७॥
इयं । विऽसुष्िः। यत॑ः। आऽबभूवं । यदिं। वा । दधे । यदि। वा।न। - `
यः। अस्य। अधिंऽञअशः। परमे। विऽञ्ममन्। सः। अंग । वेदट्। यदि। वा। न। वेद ॥७॥
१
उक्लप्रकारेण यथेदं जगत्सजेनं दुविज्ञानमेवं सृष्टं तज्नगहुधेरमपीत्याह । इय-
मिति। यत उपादानभूतात्परमात्मन इयं विसुषश्टिविंविधा गिरिनदीसमुद्रादिरूपेण
विचिता सृष्टिरावभूवाजाता सोऽपि किल यदि वा टधे धारयति यटिवानं
धारयति । एवं च को नामान्यो धतु शक्रुयात्! यदि धारयेदीश्वर एव धारयेन्नान्य
इत्यथैः । एतेन कायेस्य धारयितृत्वप्रतिपादनेन बद्मण उपादान कारणत्वमुक्तं भव-
ति। तथा च पारमा सूच । प्रकृतिश्च प्रतिजाद्टातानुपरोधात्। १,४.२३.। इति ।
यद्लानेनाधर्चेन पूर्वोक्त सृषटदुजोनत्वमेव हढयति । को वेदेत्यनुवतेते । इयं विविधा
सृष्टियेत खआाबभूवा समंतादजायततेति कौ वेद् । न कोऽपि । नासत्येव जगत्तौ जन्म
कदाचिदनीदशं जगदिति बहवो भंता भवत्यपि । यतः । जनिकतुः प्रकृतिखित्य-
पादानसंज्ञायां पचम्यास्तसिट् । यस्मात्परमात्मन उपादानभूतादावभूवं तं पर- `
मात्मानं को वेद् । न कोऽपि । प्रकृतितः परमाणुभ्यो वा जगज्जन्मेति हि बहवी
अताः। तथा स एवोपादानभूतः परमात्मा स्वयमेव निमित्तभूत ऽपि सन् यदि
वा टधे विदध इदं जगत्ससजं यटि वा न ससजे। असंदिण्धे संटिग्धवचनमेतच्छा-
स्लाणि चेत्ममाणं स्युरिति यथा । स एव विदधे । तं कौ वेद । अजानंतोऽपि
बहवो जडात्मधानाद कतेकमेवेद् जगतस्वयमजायतेति विपरीतं प्रतिपन्ना विद
धतौ विधानमजानंतोऽपि । स एवोपादानभूत इत्यपि कौ वेद् । न कोऽपि।
उपादानादन्यस्तटस्य एवेश्वरो विटध इति हि बहवः प्रतिपन्नाः । टेवा पि यन्न
जानंति तद्वोचीनानामेषां तत्परिज्ाने केव कथेत्यथेः । यद्येवं जगत्सुटिरत्यंत-
दुरवबोधना तरि सा प्रमाणपहतिमध्यास्त
इत्याशक्य तत्त्लाव इश्वरो वेट् प्रमा-
ऽध्य इश्छर
सनत्कुमारनारदयोः सं वादे। स भगवः उस्मिन्प्रतिष्ठित इति स्वे महिम्नि । डां० उ°
७,२९.। इति । इहो यः परमेश्वरः सो संग । छंगेति प्रसिद्धौ । सोऽपि नाम वेट्
जानाति । यदि वान वेद् न जानाति को नामान्यो जानीयात् । सर्वञ्च ईश्वर
एवं तां सृष्टिं जानीयात् नान्य इत्यथः ॥ |
॥ इत्यष्टमस्य सप्नमे सप्रदश्नो वगैः ॥
श््टाखिषटुभः। अचापि यज्ञादीनां केषां चिद्धावानां सृष्टिः प्रतिपाद्े । अतः सष्ट-
व्यतेन प्रधानभूतो योऽथः सेव देवता । तत्तो प्रजापतिरेव देवता ।. तचा
चानुक्रातं । यो यज्ञो यज्ञः प्राजापत्यो जगत्याद्चेति ¦ गत्तो विनियोगः ॥
॥ तच प्रथमा ॥
यो यज्ञो विश्वतस्वंतुभिस्तत रकंश्तं देवकर्मेभिरायतः
इमे वयति पितरो य आंययुः प्र वयाप॑ वयेत्यासते तते ॥१॥
यः। यज्ञः । विच्छतंः। तंतुंऽभिः। ततः । एवऽ शतं । देव ऽकरमेभिः। आऽर्यतः ।
इमे। वयंति। पितरः। ये। खा ऽययुः। प्र। वय। प॑! वय । इति । मासते । तते ॥१।
# ति त ।
ततुभिसठनितृभिविस्तारयितृभिर्वियदादिभूतियैः सगात्मको यज्ञो विष्ठतः सर्व-
तस्ततो विस्तृतः । तथे कशतं । एकं च शतं चेकशतं । संख्येति पूर्वेपटप्रकृतिस्वरतव।
एकोत्तरश्तमित्यथेः। बह्या येषु शतसंख्येष्रात्मीयसं वत्सरेषु जी वति तदभिप्रायेणाच
शतसंख्या । जी वता तेन प्रजापतिना साधेमेकश्तमित्युच्यते। यथा शतायु पुरुषः
शतवीये आ्ात्मेकशत इति । ऋत्यंतसंयोगे डितीया । बद्यणः शतसं वत्सरपयेतं
दिश्य भोक्ृभिः कृतेः कमेभिरायतः । दीधींभूतः । तावत्कात्ाव-
। एवमायामविस्तार्वान् । ‡ -। पितरः पालकाः प्रजापति
स
स
४७२ ` वि , ॥ ऋण्वेद्ः॥ . [अ०४.अ०३. व० १४
( तंत॒संताने । समुचयेऽन्यतरस्यां । पा०३.४.३.। इति लोट् । तस्य लोरौ हिस्वा- ५
(; वित्यनुवृततेरिरादेशः। शब्गुणायदे्णः। अतो देरिति त्टुर्। प्र वयाप वयेति वयतः ४
(व प्रवाणमपवानं च कैत इत्यथः । ए वंभूताः संतस्ते विश्सृजस्तते विस्तृते सत्यलोक
॥ शआ्रसते। प्राणरूपेण प्रजापतिसुपाप्षते ॥ =
। यद्वा ज्योतिष्टोमादियज्ञ णवंरूपक्त्वेन पटात्मना व॑णयेते। यो यज्ञो ज्योतिद्टो-
॥ मादिरतंतुभिस्तंतुस्थानीयेरप्रि्टोमाल्यम्रि्टोमादिसंस्याभेदेः सघ्रभिष्डंदोभिवो सवे
| तनो विश्वतस्ततो विस्तृतः तथेकशतं । तृतीयार्थे प्रथमा । एकाधिकेनाभ्रिचयने
ैवकमेभि्गवामयनप्रभुतिकेविश्वसुजामयनतिरेकाहादिसचात्मकेवी यतो दी-
धीभूत एवमायतौ विस्तारवान्यज्ञात्मकोऽ यं पटः प्रजापतिना सृष्टः । तं पटं पित-
रोऽस्माकं पितुभूता इमेऽगिरसो वयति । तस्य पटस्य प्राचीनतंतुस्यानीयानि ^
८: स्तुतशस्त्राणि प्र वय त्वं कुरु छप वय तिरश्चीनततुस्यानीयानि यजूषि त्वं कुवित्येवं
परस्परं नियुंजञाना आसते । नियुंजंति ॥ एवं विस्तृतस्य यजस्य प्रजापतेः सका-
शटुत्पच्तिसुत्तरया प्रतिपादाते ॥
॥ सेषा डितीया ॥ ६
५ ~
ध ध गि)
पुम एनं तनुत उर्त्युणएत्ि पुमान्वि तंते अधि नाकं अस्मिन् ।
इमे मयूखा उप॑ सेदुरू सदः सामानि चक्तुस्तस॑राण्योतंवे ॥२॥ ` . कः
पुमान् । ए्न्। तनुते । उत् । कृणत्ति । पुमान्। वि । तन्ने। अधिं । नाे। अस्मिन्। - ५ 4
मे। मगूलाः। उप॑। सेदुः। ऊ इतिं । सदः । सामानि। चक्रः। तस॑राणि । ओतं वे ॥२॥
( # ति |
॥ \* ५ ¢ ^
पमान् पुरुष ञ्नादिपुरुषः प्रजापतिरेनं यज्ञं तनुते । विस्तारयति । सृष्टवानित्यथः।
तथा च ब्राह्मणं । स प्रजापतियेक्मतनुत तमाहरतेनायजतेति । प्रजापतियेङम-
कः स्वगलोकः। नभारनपादित्यादिना नज
यज्ञ विस्तारय सप्नम्यथोनु
म०१०,अ०= ११. सू०१३०.] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ ४७३
उपसद्य च सामानि रथंतरादीन्यो्तवे वयनाय यज्ञाख्यं वस्लमोतुं तस्ताणि तियं
रणि तिरश्वीनसूचाणि चक्रुः ॥
॥ अथ तृतीया ॥
तीते मा किं निदानमाज्यं किमासीत्परिधिः क असीत् ।
छद्: किमासीत्मरडगं किमुक्थं यदेवा देवमय॑जंत विश्वे ॥३॥
त। प्रऽमा।प्रतिऽमा। किं। निऽदानं। आज्य । विं । आसीत् परिऽधि
कः । आसीत् ।
छंदः । कि । आसीत् । प्रडगं। विं । उक्थं । यत्। देवाः । देवं । अरय॑जंत। विर्व ॥ ३॥
विश्वस्जेनोपायत्वेन प्रजापतिना सृष्टे यज्ञे विश्वस्य खष्टारौ विश्वसृजो देवा
विश्वसजेनाय तं यज्ञमन्वतिष्ठन् । तस्मिन्समये जगती ऽनुत्पतेजगदंतः पाणिनौ
यागोपङ्र्णभूताः पदाथाः कथमासन्नित्यनया प्रश्नः क्रियते । यद्यदा विश्वे सरवे
साध्या देवा देवं प्रजापतिमयजंत तदानीं तस्य यज्ञस्य प्रमा प्रमाणसियत्चा का
कथभूतासीत् । तथा प्रतिमा हविःप्रतियोगिचेन मीयते निमीयितत इति प्रतिमा
देवता । सा चं तस्य यज्ञस्य कासीत्। तथा निदानमादिकारणं यागे ऽप्रवृत्तस्य
प्रवतेव फलते किमासीत्। तरथाज्यं घृतमेतदुपल रितं हवि वौ तस्य यज्ञस्य किमा-
सीत् । तथा परिधिः । परितो धीयत इति चयः परिधयो बाहुमाचाः पलाण-
दिवृष्छजन्याः। परिपू वादधातेरुपसर्गे घोः किरिति किप्रत्ययः । सामान्यापेक्षमे-
कवचनं ! परिधयः क आसन्नित्यथेः। तथा तस्य यज्ञस्य गायव्याटिकं इटः किमा-
सीत् । तथा प्रडगसुक्यं । उपत्क्षणमेतत् । आज्यप्रडगादीन्यक्थानि शस््ाणि
वा कान्यासन् । एतेषु प्रश्ेषु चयाणामुत्तरं बुचेनाह ॥ ५
॥ ५६
५ ॥ अथ चतुर्थी ।
छपर य्भवत्सयुग्वोष्णि्हया सविता सं ब॑भूव ।
उक्थेमेर्हस्वान्वृहस्यते वृहती वाच॑मावत् ॥४।
४७४ ॥ ऋण्वेट्ः ॥ [ऋअ० ४, अ० 9, व० १४.
देवतासु मध्येऽग्निष्डंटःसु गायची चोभावपजायेतामिव्य्थैः। तथा च तैत्तिरीयकं ।
प्रजापतिरकामयत प्रजायेयेति स मुखतस्िवृतं निरमिमीत तमभ्रिर्देवतान्वसृज्यत
गायची दंट् इति । उण्णिहयोण्णिकहंटसा सह सविता देवः सं बभूव । तस्मात्म-
जापतेजेज्ञे। टापं चापि हलेतानामिति वचनादुष्णिहश्ब्टाटराप्। तथा महस्वान्
जस्वी सोम उक्थेः स्तुतशस्वेरनुष्टभानुषटष्डंदसा च साधं तस्मादेव प्रजापतेर-
जायत । तथा बृहस्पतेदवस्य वाचं वाक्यं बृहतीच्छद् आ्ावत्। अरसत्। सखगच्छ्वा ।
हत्या साधं वृहस्यतिरपि तस्मात्मजापतेजे् इत्यथः ॥ | |
॥ अथ पंचमी ॥ # „
विराण्मिचावरूणयोरभिश्रीखिद्रस्य चिषटुविह भागो आहुः ।
विश्वन्देवाज्ञगत्या विवेश तेन॑ चाङ्गपर ऋष॑यो मनुषाः ॥५॥
विऽगाट्। भिचावरूणयोः। अभिऽ रीः । इदस्य । चिःऽस्तुप्। इह । भागः। सहः ¦
विश्वान् । देवान्। जगती । आ । विवेश । तेन॑ । चाङ्गे । ऋष॑यः। मनुष्याः ॥५॥
अपि च मिचावरूणयोर्दवयोविंराट्ङदौऽभिश्रीः। सभिथ्िता। आधितासीत्।
विजा सह भिचावरूणवपि प्रजापतेः सकाशटजायेतामित्य्थः । इहास्मिन्यज्ञे
ऽहः सवनचयषूपस्य भागो मध्यदिनिसवनाख्यो ऽशखिष्ष्डटशचैदस्याभिश्चयणी-
यावास्तां । ताविद प्रजापतेः सकाशटजायंतेत्यथेः । तथा च तै्तिरी यकं । उरसो
बाहुभ्यां पंचदशं निरमिमीत तमिद देवतान्वसुज्यत तच चिष्टुष्डंदो वृहत्सामेति ।
तथा विश्वान्सवन्दे वाज्ञगतीडद् आ विवेश । प्रविष्टवती । विश्वे देवा जगती च
जापतेरजायतेत्यथेः । तथा च तेत्तिरीयकं । तं विश्वे देवा देवता खन्वसुज्यत `
जगती डटो वेरूपं सामेति । उक्तेन प्रकारेण प्रतिमा कासीत् इटः किमासीत्
प्रडगं किमुक्यमिति चयाणामुत्तरं जातं । आज्यं किमासीत् परिधिः क सीदि
पुरुषसूक्ते । १०.९०. दष्टव्यं । तच द्ये वमाम्नायते देवा यज्ञमतन्वत
पीष्म इध्मः शरडविः। सप्रास्यासन्परिधयस्िः सप्र समिधः
+
म०१०. अ०११. सू०१३०.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ ४७१
त्यनयोरपि प्रर्नयोप्येवसुत्तरं पूर्वे विश्वसृजोऽमृताः शतं वषेसहखाणि दीधिताः
तेति एतेन वे विश्वसुज इदं विश्वमसृजंतेति च तेतिरीये । ते° बा०३.
१२.९.। समाम्नायते । सतस्तस्य यज्ञस्य सहसखसं वत्सरपरिमितः कात्छः प्रमाणं
विश्वस्य जगतः सजेनमादिकारणं प्रवतेव फलमित्यथेः । एतटुक्तं भवति । यद्
विश्वसृजो देवा देवं प्रजापतिं विश्वसुजामयनासख्येन यागेनायजन् तदोक्ताः सव
गोपकाराः प्रजापतेः सकाशणटजा्यतेति ! यतोऽग्न्यादिदिवताभिः सह गाय-
च्यादीनि सप्र डटांसि जातान्यतौ हेतोस्ेषां ंटसामग्न्यादयो देवता इति । खटी
विचितौ सूबितं च। अभ्रिः सविता सोमो बृहस्यतिमिचावरूणाविंदौ विश्वे देवा
देवता इति । एवं प्राजापत्यो यज्ञोऽनुष्ठितः। तेन यज्ञेनषैयो मनुष्याश्च चाङ्खपरे ।
चक्ुपिरे । कृप्राः सृष्टा आसन् । कृपेः कमणि त्विटीरयोरिति रेखदेशः । वृ
रो लः । पा०४.२.१४.। इति त्छलं । तुजादित्वादभ्यासषदीधेः । तेनेव यज्ञेन स्वै
जगदसृजननित्यथेः ॥
॥ खथ षष्ठी ॥
चाप्र तेन षयो मनुष्यां यज्ञे जाते पितरो नः पुरे ।
पश्य॑न्मन्ये मन॑सा चक्ष॑सा तान्य इमं यज्ञमयजंत पूव ॥६॥
चाङ्खप्रे । तेनं । ऋष॑यः। मनुष्याः । यज्ञे। जाते । पिततः नः । पुराणे ।
पश्य॑न् । मन्ये । मन॑सा । चसा । तान्। ये । इमं । यज्ञं । अय॑जंत । पूर्वै ॥ ६॥
पुराणे चिरतनेऽस्मिन्यज्ञे जाते विश्वसृडिर्दवेः सम्यगनुष्ठिते सति तेन यज्ञेनषेयो
मनुा नोऽस्माकं पितरः पूवेपुरूषाश्च चाङ्रपरे। अकल्पयत । असुज्यत । इममीहशं
यज्ञं ये पूर्वे साध्या देवाः प्रजापतेः प्राणभूता खयजंतान्वतिष्ठन् तान्देवान्प्राणा-
त्मना सवच वतेमानांक्षसा दशेनहेतुना मनसा पश्यन् जानन्मन्ये । तानेव वि-
.-.;. ` , 89 ॥ऋण्वेदः॥
1 चिवृत्पंचदशदिभिः सह वतमानाः सहस्तोमाः । सच्छदसो गायव्या-
६: दिभिष्डंदोभिः सह वतेमाना आवृत आवतेमानाः सहप्रमा: । प्रमितिः प्रमा
यज्स्येयच्चापरिलानं । तेन सह वतमाना देव्या देवस्य प्रजापतेः संबधिनः । यहा
देवानां यष्व्यानां सं बंधिन ऋषयो द्रष्टारः स्रसंख्याकाः शीषेण्याः । यदा मरी
चिप्रमुखाः सप्तषैयो हो्ादयः सप्र वषटूतरो वा । एवंविधा एते पूर्वेषां पू्वेपु
रुषाणामंगिरःप्रमृतीनां विश्वसुजां देवानां वा पंथां पंथानमनुषशटानमागंमनुदं
ऋमेण जात्वा धीरा धीमतः संतोऽन्वात्तेभिरे । अनुक्रमेणार््ध वतः । यागानुष्टाने
प्रवृच्वा इत्यथैः । रथ्यो न । यथा रथिनो रथेन युक्ता रथस्य नेतारः सूता रश
नश्वनियोजनाथीन्प्रयहान् सम्यग्रथस्य नयनाय हस्तेनान्वारभते । अन्वारभ्य च
10 सम्यङ् तं रथं प्रवतेयंति एवमेते ऽपनुष्टानमागे श्रुतित ऽ वगम्य सम्यगन्वति-
क ॥ इत्य्टमस्य सप्रमेऽष्टाटश्ने वगैः ॥
ध. ऋष प्राच इति सप्रचै तृतीयं सूक्तं कीवतः पुचस्य सुकीर्तिराषे । चतुथ्येनुष्टुप्
शिष्टाः षट् विष्टभः। चतुथीपिंचम्यावश्विदेवत्ये शिद्ा र्यः । तथा चानुक्रातं ।
भ अप प्राचः सुकीतिः काश्ीवत्तो मध्येऽनुष््पसोत्तरा चाश्िन्याविति ॥ षष्ठेऽहनि
ब्राह्यणाद्धंसिन उक्यशस् एतत्सूक्तं । सूचितं च । सुकीति बाद्यणाच्छसी वृषाकपिं
च पंक्तिशंसं । खआ०४.४.। इति ॥ चातु्षिंशिकेऽहनि माध्यंदिने सवने मेचावस्-
` शस्याप प्राच इत्येषारभणीया क्डत्परगाानंतरं शंसनीया । सूचितं च । कतः
` म्रगाथा.खप प्राच इद्र विर्वा अमिचान् । आ०७.8. इति ॥ अहगेणेष्रपि बि-
हःसु तस्येव तस्मित्रेव शस्व सारभणीया । सूचितं च । आरभणीयाः
न्कडतोऽहरहः शस्यानीति होचका हितीयादिष्रैव । ० ७.१. इति ॥ `
॥ सेषा प्रमा ॥
#
म० १०.०११, सू०१३१.] ॥ अष्टमो ऽषट कः ॥ ४७७
इत्यकारत्कोपे चाविति दीधे्वं । अनिगंतोऽ चततौ वप्रत्यय इति गतेः प्रकृतिस्वरत्व
तादण्णन्विश्वान्सवोनमिताञ्शचूनप नुदस्व! अस्मन्नोऽपगमय । तथा हे सभिभते
शचूणामभिभवितरिदरापाचोऽपसुखमंचतः पृष्ठभागे वरतैमानान्स्वीञशचूनप नु-
दस्व । अपि चोदीच उष्वेमंचत उपरि वतैमानान् । उत्सू वटं चतः पूवैवत्किन्य्
इदित्यं चेरकारस्येकारः । पूर्वैवतस्वरः । तथाविधानपि शचनप नुदस्व । तथा ह
भूर शौयेवन्निदराधराचोऽधरदेशएमधोभागमंचतश्चाधस्तनानपि शचूनप नुद्
अधरशब्टोपपदादचतेः सि पू वैवत्मक्रिया । चाविति पू वैपदस्यांतोदाचः । उरो
विस्तीर्णे तव संबंधिनि लया दत्ते एमेन् शमेणि गृहे सुखे वा यथा वयं मदेम
निरूपद्वाः संततौ हयेम तथा तं सवैच वतेमानानस्रदीयाञ्फच्न्वि ना शयेत्य थैः ॥
` ॥ अथ हितीया ॥
कुविदंग यव॑मंतो यवं चिद्यथा दात्य॑नुपूर्वै वियूय॑ ,
इरहहेषां कृणुहि भोज॑नानि ये बर्हिषो नमोवृक्तिं न जग्मुः ॥२॥
कुवित्। अंग । यवं ऽमंतः! यवं । चित्। यथां । दाति । अनुऽपूवै। विऽय॒यं |
हऽईह । एषां । कृणुहि । भोजनानि । ये । बहिष॑ः+ नम॑ःऽ वक्ति
ग हे इट् यवमंतौो यवादिधान्ययुक्ताः कषेका यवं चित्। उपलक्षणमेतत्!
वगोधूमारीन् अनुपूवे यो यो धान्यविशेषः प्रथमे पच्यते तेनानुपूर््येण वियूय
पृथङ्कत्य यथा कुविद्हूलं दाति लुनंति । दाप् लवने । खदादिकः। विपूवोच्यौ-
तेस्य॑पि युञ्ुवोदीधिष्डदसि । पा० ६.४.५४.। इति दीर्धः । एवमिहेदास्मिन्नस्मिन्देशे
सवेस्मिनेषां यजमानानां भोजनानि । धननामेतत् । भोगसाधनानि धनानि
कृणुहि । कुरु । यस्मिन्यस्मिन्देशे यङनमपेकितं तदनुगुणं प्रयद्छेत्यथेः । उक्तश्च
प्र्यया्दसि वावचनमिति हेटैगभावः। एषामित्युक्तं के पुनरिम इत्यत आह ।
ये यजमाना बहिषो यज्ञस्य नमोवृक्तिं नमसो हवित्टै्णएस्याचस्य नमस्कारा-
त्मक्स्य स्तोचस्य वा वजेनमकरणं न जग्मुने प्राभ्रुवंति वितु स्वैदा हविभियै-
नंति । स्तुतिभिः स्तुवंति च । एषां कृणुरीत्यन्वयः ॥
४७४६ ॥ ऋग्वेट्ः । ० ४. ० 9, व° १९.
|,
गव्यः । इटं । सख्याय॑ । विप्राः । अष्ठऽ यतः । वृष॑णं । वाजय॑तः ॥३॥
नरि, स्थूरं । ऋतुऽथा। यातं । असति । न । उत । व॑ः । विविदे । संऽगमेषु ¦
एकेन धूर्येण युक्तमनः स्थूरी्युच्यते। ऋतुयतो । यद्यस्मिन्काले प्राप्यं तद्यो- `
ग्यकालठे स्थूयेनो यातं तं देशं प्राप्तं न्यस्त । न हि भवति । एकेन धुर्येण युक्तः
शकटः शीं गंतव्यं न प्राघ्नोतीत्यथेः । उतापि च संगमेषु संयामेषु चवोऽननं
यशोवान विविदे। न लभते । इद्रसतूक्तवित्दकछ्षणएः । वृषणं वधितारं तमिदं
गव्य॑तौ गा इतो विप्रा मेधाविनो वयं सख्याय सखिकमेण आआह्याम इति शेषः
कथंभूताः । अश्वायंतोऽश्ानघात्मन इच्छतः । वाजयतो ऽनकामा बल्कामाश्च।
सोचामण्यां सुरामहाणणं पुरोनुवाक्या युवसिव्येषा । सूचितं च। युवं सुराम-
मश्चिनेति महाण पुरोनुवाक्या । आ०३.९.। इति ॥ ` ति
॥ सेषा चतुर्थी ॥
युवं सुराम॑मश्विना नसुचावासुरे सचां ।
विपिपाना भुभस्पती इदं कमेस्वावतं ॥४॥
` युवं । सुरामं । चश्विना । नमुचौ । आसुरे, सचां। ` ५
विऽपिपाना। सुभः। पती इतिं । इट । कमेऽसु । आवतं ॥४॥
॥ ति
हे खश्िनाश्चिनो हे सभस्पती उदकस्य शोभनालकारस्य वा पतती पालयि-
तारो सुरामं सुषु रमणसाधनमिद् हविविपिपाना विशेषेण पीतवंतौ युवं युवां `
सचा संता संगत्तावासुरऽसुरपुते नमुचावेतत्सङेऽसुरे हतव्ये सति कमेसु योधन-
कमेसविदूमावतं । रसतं । विपिपाना । पा पान इत्यस्ाखिटः कानच् । बहुले
9
दसीत्यभ्यासस्येवं । शुभस्पती इति सुबामंचित इति षष्ठयंतस्य परांगवद्वावात्व- `
छ्यामचितसमुदायस्या्टमिकं सवोानुदात्ततवं ॥ 4
पूवाक्तानामेव यहाणां पुचभिवे ति याज्या । सूचितं च । पुच्मिव पितराव-
श्विनोभेति याज्या । खआ०३.९.। इति 1
म० १०. ख०११, सू०१३२.] ॥ अष्टमो ऽकः ॥ 9९
पूचंऽइव । पितरो । अश्विना । उभा । इदं । आवः । कर्थः । दंसनाभिः
यत्। सुऽरामं। वि। ज्ञपि बः। शचींभिः। सर॑स्वती । चा। मघऽ वन्। अभिष्एङ् ॥५॥
हे इट् त्वां पितरो मात्तापितरौ पुरमिव । पिता मातेति पितुः शेषः । उभौो-
भावश्विनो काव्यैः प्रश्स्येदेसनाभिरात्मीयेः कमेभिरावधुः । मध्यमो व्यत्ययेन ।
आ वतुः । ररक्षतुः । त च सुरामं सुखेन रमणसाधनं हविर्यद्यदा शचीभिः शक्तिभिः
साधे व्यपिवो विशेषेण पीतवानसि तद् हे मघवन्धनवन्निद् सरस्वती देवी ला
वामभिष्णर् । उपासेवत । भिष्णर् उपसेवायां । वंड़ादिः । छांदसो यगभावः ।
लङि बहुलं खंदसीति शपौ त्टुर्। हर्ड्याग्भ्य इति ल्टोपः ५
॥ अथ घष्ठीसप्तम्यो ॥
इद्रः सुरामा स्ववां अवोभिः सुमृन्धीको भ॑वतु विश्ववेदाः
बाधतां षो अभ॑यं कृणोतु सुवीयैस्य पत॑यः स्याम ॥६।॥
दः । सुऽचामां। स्वऽवान्। अव॑ःऽ भिः सुऽमृव्छीकः । भवतु । विश्वऽवेदाः।
बाधतां । बषः । उभ॑यं । कृणोतु । सुऽवी्ेस्य ! पत॑यः ¦ स्याम ॥ ६।
तस्य॑ वयं सुमतो यक्षियस्यापिं भद्रे सौमनसे स्याम ।
स सुत्रामा स्ववां इट अस्मे आराचिहेष॑ः सनुतयुंयोतु ॥७।
तस्य । व॒यं । सुऽमतो । यक्तियस्य । पिं । भदे । सोमनसे। स्याम ।
सः।सुऽचामा। स्वऽवांन्। इद्रः। अस्मे इति। आरात् चित्। ेष॑ः। सनुतः। युयोतु ॥9॥
चातारमिंदमित्यस्मिन्वगे । ४.७.३२.। व्याख्याते । अक्षरार्थस्तु सुचाता धनवान्
सवस्य वेदितंदो रक्षणेः सुषु सुखयिता भवतु शच्च हिनस्तु भयराहित्यं च करौ-
त्वस्माकं ! अतो वयं शौननवीयोपेतस्य धनस्य स्वामिनो भवेमेति ॥ सप्रम्यास्तु
तस्य यज्ञाहेस्येद्रस्यानुमरहनवु्लो भजनीय सौमनस्य च वयं विषयभूता भवेम ।
सुषु चाता धनवान् स इद्रोऽ स्मत दूरदेशे बषटुन॑तधोनं योजयविति ॥
| ॥ इत्य्टमस्य सप्रम एकोनविंशो वर्मः ॥
४८० ॥ ऋग्वेट्ः॥ . [अ०४, ऋ०9, ब्० २०.
िद्वादश्एकव |
सत्ताः । त्तथा चानुक्रांतं । ईजानं शकपूतो नाधो मेचावरूणं
लंगोक्कदेवतात्या महासतोवृहत्युपायोपात्ये प्रस्वारपक्ती शेषा विराडपां इति
गतौ विनियोगः ॥ क ` क +
| ॥ तच प्रथमा॥
ईजानभिद्यौगूतो व॑सुरीजानं भूभिरमि प्रभूषरिं
ईजानं देवावश्विना वभि सुननेर वधेतां ॥१॥ न
ईजानं । इत्। चः । गृतेऽ व॑सुः । ईजानं । भूमिः । अभि । प्रऽभूषणिं
ईजानं । देवौ ¦ अश्विनो । सभि । सुकन: । अवधेतां ॥१॥
। शिष्टास्िखो विरडपा एकादटशिनस्लयोऽ टकश्चेति ठक्षणल-
$
गृत॑वसुः । गूतेमुद्यतं स्तोतृभ्यो दानाय हस्ते धृतं वसु धनं यस्याः सा तथोक्ता
गुरी उद्यमने । निष्ठा । श्वीदितो निष्ठायामितीर्प्रतिषेधः । नसच्ननिषचतेत्याटिना
निपातनानरिष्ानत्वानावः। अन्येषामपीति सांहितिको दीधः । बहवीहौ पूवष
टप्रकृत्तिस्वरवं । इहशी दचोदयत्टोकाभिमानिनी देवतेजानमिदयसेरिष्ट वंतमेव पुर-
षमभिवधेयति । यजेलिटः कानच् । वचिस्वपीति संप्रसारणे हिर्वचनं । तथा
भूमिश्च प्रभूषणि प्रभवने । यद्वा प्रकृष्टभूषणेऽ ठं कारे निभित्तभृते सतीजानमभि-
वधेयति । अपि च । देवो दानादिगुणयुक्तावश्चिनावीजानसिषटवंतं पुरषं सुमनध-
नेरभ्यवधेत्तां । अभिवधेयतः । वृधेरतभावितएयथोच्छांटसौ लङः ॥
“ ॥ खथ इडित्तीया॥
ता वां भिचावरुणा धारयत्छिती सुपुम्नेषिंतत्तां यजामसि ।
युवोः ्राणायं सख्थेरमि णांम रष्स॑ः ॥२॥
# 1
ता। वां। मिचावरुणा। धारयष्छि
ती इतिं धारयत्ऽ चिती । सुऽसुखना। इषिता
॥ वकः / उन ` वपे
म० १०.०११. सू०१३२.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥ ४४१
जनः । यज्वा नावप्रत्ययातात्मुनरपि भावप्रत्ययो विकरणएङ्यवत् । इषित्तव्यत्वेन
प्राप्रव्यतेन । हेतो तृतीया । यत्तौ युवां देवेषु मध्ये प्राप्रव्यौ ततो हेतोयैजामसि ।
हविभियेजामः । इतो मसीति मस इकारागमः । एवं च युवोयवयोः सस्थे
सखिषिः । सख्युयेः । ्राणाय कुवते यजमानाय । करोतेः शनचि छांदसो वि-
करणस्य त्टुर्। तादथ्ये चतुर्थी । यजमानाय रश्षसो यज्ञस्य बवाधकानाससानभि
ष्याम । अभिभवेम । उपसर्गप्राटुभ्यौमित्यस्तेः सकारस्य षत्वं ॥
॥ थ तुततीया ॥
अथां चिन्खु यहिर्धिषामहे वामभि प्रियं रेक्णः पत्य॑मानाः
ददा वा यतसु॑ति रेक्णः सरम्वारनरविरस्य मघानि ॥३॥
अधं । चित्। नु । यत् । दिधिंषामहे । वां । अभि । प्रियं । रेक्णः । पत्य॑मानाः
टलान्। वा। यत्। पुष्यति । रेक्णः । सं । ॐ इतिं । आरन्। नकिः। अस्य! मधानिं ॥३॥
हे मिचावरुणौ वां युवाभ्यां युवयोरथे यद्यदा दिधिषामहे हवीषि धारयामः।
यद्वा धिषं शब्द । वां युवां स्तुमहे अधा चिटनंतरमेव नु सिप्र परियमभीष्ं रेकंणः
धननामेतत्। धनमभि पत्यमाना अभिपतंतोऽभिप्राघ्रवंतो भवामः। दद्वान् ददि-
वान् । ददातेलििटः कसुः । इंदस्युभयथेति वसोः सावेधातुक्त्वाच्छाभ्यस्तमोरात
इत्यकारत्टोपः। खत ठटवेडभावश्च । संहितायां नकारस्य दीधादरि समानपाद इति
रुत्वं । अातोऽटि नित्यमिति सानुनासिक स्कारः वाशब्दश्चार्थे । हवींषि टच
वांश्च यद्यो यजमानो रेक्णो धनं पुष्यति वधेयत्यस्य टत्तवतो यजमानस्य मघानि
धनानि निः समारन्। नैवापगख्छंति । वितु तमेव स्वेदा भजंते । समित्येत्तट-
पेव्येतस्यार्थे। उ इति पूरणः, अर्तेण्छांदसे त्टुडिः सर्तिशास्त्य्तिभ्यश्ेति चेरङगदेशः
ऋहश्गेरङिः गुणः ॥
^ ॥ सथ चतुधीं ॥
असावन्यो ऋंसुर सूयत द्यौस्वं विश्वैषां वरुणासि राजां ।
&४२ ॥ ऋग्वेट्ः ॥ प० ४, ० 9. व० २०.
प्रयच्छतीत्यसुरः । ईह हे भि द्योचुलोको देवनशीलादितिवेन्यः। सुपां सुलु-
गिति हित्तीयायाः स्वदिशः। वरुणापेश्यान्यमसावसुं नभसि हश्यमान चलां सूयत ।
सूत । ष्र् प्राणिप्रसवे । खांटसोऽडभावः। हे वरूण तवं च विश्वेषां सर्वेषां प्रा-
णिनां राजासि । ईश्वरो भवसि । तादृशयोयुंवयो रथस्य मूधा शिरखाकन् । अखस्म-
यज्ञं कामयते । यज्ञा रथस्य रेहणणीलस्य यज्ञस्य मूधा न मूर्धव प्रधानः सोम-
चाकन् । युवां कामयते । कन दीधिकांतिगतिषु । अस्माद्यङ्न्टुगताच्छां दसो लङ् ।
यत एवमतः कारणादंतकघरुगंतकस्य हननशीलस्य रारसादेयेमस्येव वा दोग्धा ।
दुह जिधांसायां । सत्सूहिषेत्यादिना क्रिप्। वा दुहमुहसुहलिहामिति घत्व । भष्ना-
वः । इशः स यज्ञ एतावतिनसेयत्परिमाणेनापि पापल्ेशेनापि न युज्यते ॥
॥ अथ पंचमी ॥
अस्मिनस्वे $ तच्छकपूत एनो हिते मिते निग॑तान्हंति वीरान् ।
अवोवा यद्धाचनूषव॑ः प्रियामुं यक्षियास्ववे। ॥५॥
अस्मिन् सु। एतत्। शक॑ऽपूते। एनः । हिते। मिचे। निऽ गतान् । हंति । वीरान्।
अवोः। वा। यत् । धात्। तनूषु । अवः प्रियासु । यक्ियासु । अवे ॥५॥
योऽय शकपूताख्य ऋ षिरस्सिञ्खकपूते स्थितमेतदेनः पापं शच्रणां पापकर-
मायुधं वा मिरे देवे हिते हिताचरणपरेऽनुक्त्रे सति निगतानिगंततव्यान्हननाथे
नियमेन प्राप्रवयान्वीराञ्श्चोः पुचादीन् सु सुष्ठु हंति हिनसत्यस्मिनषो सम-
वेत्तं यत्पापं तन्मिचस्य प्रसादेन तदीयेषु शचुषु स्वकाय दुःखं जनयतीत्यथेः
नगतान् । निपूवाद्रमेः कमेणि निष्ठा । गतिरनंतर इति गतेः प्रकृतिस्वरत्व ।
वेत्यत आह ! अवोहैविभिस्पेयितुः। अकतेरोणादिक उप्रत्ययः । तस्य यजमा-
नस्य यलियासु यज्ञाहासु क्रियासु तनूषु शरीरेष् वाभिगंता मिनो वरुणो वा यद्य-
दावो रक्षणं धादधाति निदधाति स्थापयति । यद्वा यदावाभिगंता स ऋषिरवितू्
रक्षितुमिचस्य वरूणस्य वा यागाहासु प्रियासु तनूषु शरीरिष्रवो हवित्वैक्षणमनं
मि तते सति तदेनो वीरान्हंतीत्यथैः ॥
वरूण चानुकरू
धाङ्ारयति तदानीं
नो
म०१०,अ० ११. सू*१३२. ॥ अषटमोऽ्टकः ॥ ४४३
युवोः। हि । माता । अर्दितिः। विऽचेतसा। चोः! न । भूमिः। पय॑ता । पूतन !
अवं । प्रिया । दिदिष्टन । सुरः निनिक्त । रश्मिऽभिः ॥६॥
स
=
# ॥ # >
हे विचेतसा विशिष्टज्ञानौ मिचावरुणौ युवो युवयोः सत्त माता जनन्य-
दितिरदीनाखंडनीया वा भवति । सेव भूमिः। इयं वा अरितिरिति श्रुतेः । दोन
यथा द्युलोकः पयसा वृष्युदकेन समै जगत्पुनात्येवमेषा सा भूमिः पयसात्मीयेन
` रसेन हविरात्मना परिणतेन पुपूतनि परिपवने यजमानानां पापस्य भोधने
हेतुभवतीत्यथेः। पूतश्ब्धादा चारे क्वं तादोणादिकः कनिग्रत्ययः। छां दसं दि्वचनं।
तौ ुवामतिदिश्य यूयं प्रिया प्रियाणि धनान्यव दिदिष्टन । अवाङ्पुखमस्मद्-
भिमुखं दिशत । दत्त । दिश अतिसर्जने । अस्माल्लोटि ांदसः शपः शुः । तप्तनपघ्र-
नथनाश्चेति तशब्दस्य तनदेषशः। अपि च सूरः सूर्यस्य र्रिमभिः किररेनिनिक्त ¦
अस्माञ्शोधयत पोषयत वा । णिजिर् शौचपोषणयोः । जौहोत्यादिकः । संज्ञा-
पूवको विधिरनित्य इति निजां चयाणामित्यभ्यासस्य गुणो न क्रियते ॥
॥ अथ सप्रमी ॥
युवं द्यप्रराजावसीदतं तिषठद्रयं न धू्दं वन्दं ।
ता न॑ः कणूकयंती नूमेध॑स्तते अंहसः सुमे्ध॑स्तन्े अंहसः ॥9॥
^ ७४ कै
युवं । हि। अघ्रऽराजो । खसींदतं । तित् । रथ॑ । न। धू;ऽसद॑। वनऽसदं ।
ताः । नः। कयुकऽ यतीः । नृऽमे्धः। तत्रे । अंह॑सः । सुऽमेधः। तते । अंह॑सः ॥9॥
हे मि्रावरुणो युवं हि युवां सस्वप्रराजावप्रसा कमणा प्रवषणप्रकाशनादिना
राजमानो दीपमानौ संतावसीदतं । स्वकीये स्थाने निषीदथः । आसाये । अप्र
` इति कमेनाम । कमीाख्यायां हृस्वो नुद् वेत्या्रोतरसुन् तस्य नुडागमो धातोहस्वश्च।
` तस्मिन्ुपपदे राजतेः ससूहिषेत्यादिना क्रप् । पीवोपवसनादीनां दसि तल्लोपो य
वक्तव्य इत्यश्रसः सकारत्छोपः। तौ भिचावरुणौ कणूकयंतीः। कणतिः शब्दा्थेः। `
कणनमाक्रोशरूपं शब्टनमिच्छतीस्ताः प्रसिदाः शचवीः प्रजा अभिभवितुं । न
संप्रय्थे । संप्रति रथं तिष्ठत् । अभितिष्ठतां । ति्ेर्दैव्यडागमः । इतश्च लोप `
` इतीकारलोपः । प्र्येकाभिप्रायेशेक ीह । धुयेश्वयो वहने
= ४४४ = ` ॥ ऋग्वेद्ः॥ [अ०४.स०9. ०२१.
7
॥
वनसट्मित्यच दसः सांहितिको रेफोपजनः। हे मिचावरुणो युवाभ्यां नृमेधो
मम पिततांहसः पापाह्त्रे ! ररे । रसित्तौ बभूव । चैङ् पालन इत्यस्मा्कमेणि
चछ्िट् । यद्वा । उपचाराज्नन्ये जनकशब्दः । नृमेधस्य पुचः शक्पूतोऽहं पापाद्यु- |
| वाभ्यां ततरे । रछितोऽस्मि। सुमेधोऽन्योऽपि सुयज्ञो यजमानोऽहसः पापात ।
युवाभ्यामेवारद्यत । भीचाथोानाभित्यंहसो ऽ पादानसंजञा ॥
। | ॥ इत्यष्टमस्य सप्रमे विशौ वगैः॥
प्रौ धिति सप्रचं पंचमं सूक्तं पिजवनपुचस्य सुदास साधमट् । आद्यस्तु च
शाक्करः। षट्पंचाश्दक्षरी शक्षरी । डितीयस्तृ चौ महापांक्तः। षठ्छरटका महापंक्तिः।
सघ्मी बिष्टप् । तथा चानुक्रातं । प्रो षु सुदाः पैजवनः शाक्ररमहापांक्तावाद्यो
ध तृचावंत्या चिष्टनिति ॥ षोक्छशिशसर आद्यस्तृ चः शंसनीयः। सूचितं च । चिक्दुकेषु `
महिषो यवाशिरं प्रो ष्रस्मे पुरोर्यमिति तृचावाततिच्छदसो । सआ०६,२.। इति ॥
महावते. माध्यंदिनसवने बह्श्सते ऽ नुरूपतृचस्य प्रो ष्स्मा इत्येका । तथेव पच-
मारण्यके सूचितं च । प्रौ प्रस्मे पुरोरथमित्यनुरूपः । एे° आ०५,१.। इति ॥
॥ सेषा प्रथमा ॥
प्रो ष्रस्मे पुरोरयसिंदराय भूषम॑चेत। = (ता क
अभीर चिदु लोककृत्संगे समत्सु वृबहास्माकं बोधि चोदिता नभ॑तामन्यकेवां `
ज्याका अधि धन्व॑सु ॥१॥
प्रो इतिं । सु} अस्मे । पुरःऽरघं । इद्राय । गूषं । अचत । |
‡ ॥ के ॥ #
¦ । ऊ इतिं । त्रोकःऽकृत्। संऽगे । समत्ऽसु । वृचऽहा । अस्माक । 4
` बोधि चोटिता। नभ॑तां । अन्यकेषा । ज्याकाः। अधि । धन्वं ऽसु ॥१॥
9,
+
; । 0
इदाय । षष्ट्यर्थे चतुथी । अस्यद्य पुरोरयं रथस्य पु
ति गत्तितवादरतिसमासः । रथस्यापरतो वतमानं भूषं बलं सुप्रो
स्तोतारः सुषु प्रपूजयत । प्र उ इति निपातसमुदायः प्रो इति ।
म०१०. ० ११. सू०१३३.] ॥ अष्टमोऽ टकः ॥ ट्प
वृच्रहा वृचाणमावरकाणां तेवं विधः स ईटीऽस्माकं स्तोततणां चोदिता धनानां
प्रेरिता सन्बोधि । अस्माभिः कृतानि परिचरणानि बुध्यतां \ वुधेष्डा दते त्टुडिः
दीपजनुधेत्यादिना कतेरि च्रश्चिणादेशः । वहुलं इंदस्यमाड्योगेऽ पीत्यडभावः
अपि च। अन्यकेषां कुत्ितानामन्येषां शचणामधि धन्वसु धनुःष्ठधिरोपिता ज्याका
कुत्सिता ज्या नमतां । हिंस्यत । नणष्यंतु । ज्याश्ब्टात्कृत्सायां प्रागिवात्कः ! पा०५
७०.। नन तुभ हिंसायां । यादिकः । व्यत्ययेन शप् ॥
॥ अथय हितीया ॥
त्वं सिंधूरवासृजोऽधराचो अहन्नहिं ।
अशवुरिटर जकिषे विशं पुष्यसि वायं तं त्वा परि प्रजामहे नभ॑तामन्यकेषा
अधि धर्न्वसु ॥२॥ । ।
तवं । सिंधन्। अवं । असृजः अथधराच॑ः। अर्हन् । सहि ।
अशुः । इट् । जक्षि । विश्वं । पुष्यसि। वाये । तं । लवा । परि! स्वजामहे । नभ॑तां।
अन्यके्षा । ज्याकाः । अधि । धन्व॑ ऽसु ॥२॥
५ ॥ ॥ कि ।
हे इट् सिन् स्यंदनशीाज्ञलपूरानधराचोऽधगमधोमुखमंचतो गंतुनवा-
सृजः । मेघान्निणमयः । यतसत्वमहिसंतरिष्षे गतं मेधमहन् हतवानसि । यद्ा-
हिमागल्य हतार सवस्य जगत सआआवरकं वृचमसुरमहन् हतवानसि । अतो हे इट्
त्वमशचुः शत्रुरहितो जलिषे । जायसे । न संति शवो ऽस्येति बहुव्रीहौ नञ्सु-
भ्यामित्यु्तरपदां तोदात्तत्रं । जनेत्मिटि गमहनेत्याटिनोपधाल्ोपः। डिवचनेऽचीति
स्थानि वज्ञावाहिवेचनं । तथा विश्वं सव वाये वरणीयं संभजनीयं धनं पुष्यसि ।
वधेयसि । वृङ् संभक्तौ । ऋहत्ोणयेत् । ईडवंदवृशंसदुहां ण्यत्त इत्याद्युदात्त्वं ।
तादृशं त्वां परि ष्रजामहे । हविभिः स्तुततिभि्वालिंगनं कुमः । वशीकुमे इत्यरथः
ध्न परिघ्गे । दंशसंजघ्चजां शीत्यनुनासिकत्तोपः ॥
॥ ।
५ ॥ अथय तृतीया ॥
विश्वा अरातयोऽर्यो नशत नो धियः
याते
द ॥ ऋम्वेद्ः ॥ `
० ४. ०७, व०२१,
। सु । विश्ाः। अरातयः । सेः । नशत नः। धिय॑ः।
चे 1 सि ॥
अस्ता । असि। शचवे। वधं । यः। नः। ईट् । जिघांसति । या। ते। राततिः ददिः। वसु ।
नर्भ॑तां । अन्यकेषां । ज्याकाः। अधि । धन्व॑ऽसु ॥३॥
विष्ठाः सवै खरातयोऽदाच्योऽर्योऽभिगंच्यौ नोऽस्माकं शचुभूताः प्रजाः
सुष्टु वि नशत । विनश्यतु । हे इद् त्वदथे धियः कमाणि स्तुतयो वा प्रवततां । हे
यो नोऽस्माज्जिघांसति हतुमिच्छति । हतेः सन्यज्मनगमां सनीति दीं
अन्यासाच्वेति कुत्वं । तस्मे शवे वधं हननसाधनमायुधमस्तासि । सछेप्रा भवसि
अमु सेपणे । ताद्धीलिकस्तृन्। ते तव या रातिधेनप्रदानहेतुः हस्तः । रा दाने
करणे किन् । मंचे वृषेषपचमनविटभूवीरा उदात्त इति क्रिन उदाचचत्वं । सा रा-
तिवेसु धनं ददिः । अस्सभ्यं दाता भवतु । आहगमहन इति ददातेः किप्रत्ययः
नं त्ठोसाव्ययेति वसुशब्टात्वषट्यभावः । सिदधमन्यत् ॥
॥ अथ चतुर्थी ॥ `
यो नं इदराभितो जनों वृकायुरादिदेरूति । |
अधस्यदं ती कृधि विवाधो सि सासहिनेभतामन्यकेषं ज्याका अधि धन्व॑सु ॥४।
यः। नः । इट् । अभितः । जन॑ः । वुकंऽयुः । आऽदिदिश्ति। ` |
अधःऽपद्। त। ३ । कृधि । विऽबाधः। असि, ससहिः। नभतां। अन्यकेषा । ज्याका:
अधि । धन्वंऽमु ॥४॥ ` व
हे इद्र यो जनो वृकायुः । वृको हिंसकोऽरण्यश्वा स्तेनो वा । स इवाचरन्नो
ऽस्माननभितः सवेत आदिदिशत्यभिलष्यायुधान्यतिसृजति । दिश्तेर्लवयडागमः
खादसः शपः शुः । नाभ्यस्तस्याचि पिततीत्यच बहुलं हंदसीति वक्तव्यमिति वच-
नात्मतिषेधाभावे त्षूपधगुणः । अभ्यस्तानामादिरित्याद्युदा्ततवं । तमी तमिमं
जनमधस्पदं पादस्याधस्ताइतेमानं कृधि । कु । करोतिष्डांदसो विकरणस्य त्टुर् ।
चुभृणुपृकृवृभ्य इति हेधिः। यतस्त्वं विबाधो विशेषेण वाधिता शत्रूणां सासहि-
रमिभविता चासि । सिः शेषः ॥ 1.
कि
म०१०. स० ११. सू०१३३.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥
यः। नः । इटू। सभिऽदासंति । सऽनांभिः। यः। च । निष्ट्य॑ः । प
न अवं । तस्य॑ । बलं । तिर । महीऽडईव । चः । अरं । तनां । नर्भतां। अन्यकेषां । `
ज्याकाः। अधिं । धन्व॑ऽमु॥१५॥ 8 |
1 हे इद्र यः सनाभिः समानजन्मा शचरनो ऽ स्मानभिदासत्युपक्षयति यश्च निष्यो
निकृष्टजन्मास्मानुपश्षयति । जातार्थे निकृष्टवाचिनो निः शब्दाट्व्ययाच्यप् । पा
४.२.१०४. । हृस्वात्तादो तद्धित इति षत्वं । अथानंतरमेव महीव चौमहती च्ोरिव
विस्तृतं तस्य शचोवेले त्मनात्मना । मंचेष्ाड्यदिरात्मन इत्या कारलोपः । स्वय-
| मेवाव तिर । जहि । अवतिरत्ि्वधकमी । गत्तमन्यत् ॥ ध
| +. ॥ अथ षष्टी ॥ `
वयमिंद् त्वायवः सखित्मा र॑भामहे !
ऋतस्य नः पथा नयाति विन्डानि दुरिता नभ॑तामन्यकेषा ज्याका अधि धन्व॑सु ॥६॥
वयं । इद् त्वायव॑ः। सखिऽतं । आ। रभामहे। `
तस्यं । नः । पथा । नय । अति । विग्वांनि । दुःऽइता । नभ॑तां । अन्यकेषा ।
। ज्याकाः । अधि। धन्व॑ऽसू ॥६॥ = ` =.
हे इद त्वायवस्वामात्मन इच्छतो वयं ससितं ससिकमं यज्ञात्मकमा रभामहे ।
। उपक्रमामहे। ऋतस्य सत्यस्य यज्ञस्य पथा मार्गेण । भस्य देत्ोपः। उदात्तनिव्-
स्वरेण तृतीयाया उदात्तं । विश्वानि सवरि दुरिता दुरितानि दु्म॑मनानि
८ पापानि तत्फलानि च नोऽस्मानति नय । अतिपारय । गतमन्यत् ॥
1 ॥ अथय सप्रमी ॥ क 1
, अमय सुलिटूतांषिियादोहे प्रति वरजरित।
6 पीपयद्यणां ्ः | सहसंधारा परयसा मही गोः ॥ 9 ॥ 0 1 । ¦ । | 4 । । |
५ स्पन्यै
य॑ । मु । तवं । इट् । तां । भि । या । दोहे प्रतिं । वर॑ । जसिति!
| उती । पीपय॑त्। यथां । नः । सहसंऽधारा । पय॑सा । मही । गौः ॥9॥
४४४ ` ॥ ऋूण्वेद्ः॥ [ऋ०४,ऋ०9. व०२२.
(त ंटसीति शपो त्गभावः। अटुपदेशद्छसावेधातुकानुदाचवे शपः पिचादनुदाच्ततं।
` धातुस्वरः शिष्यते । वर । वृञ् वरण इत्यस्माद्रहवृहनिशिगमश्चेति कमंण्यण । सा .^
। प्रत्ता गौरच्छिदौभ्री निविहोधस्का अत एव सहखधारा बहुभिः सछषीरधारानिस्पेता
` मही महती सती यथा नोऽस्मान्पयसा छरीरेण पीपयत्मरवधेयेत्तथा तां कुर्विति
¦ । श्ओोणायी वृद्धौ । रयंताच्छांदसो तुङ् । व्यत्ययेन धातोः पीभावः । अड-
भावश्छादसः ॥ १ (न >
॥ इत्यष्टमस्य सप्रम एकविंशो वेः ॥
उभे यदिति सप्रचै षष्ठं सूक्तं । युवनाश्वपुचस्य मांधातुराषे । पूर्वेणेत्यधेचेसहि-
तायाः सप्नम्याल्तु गोधा नाम बह्यवादिन्युषिः । सप्रमी पंक्तिः । शिष्टाः षक्छ्टका
महापंक्षयः। इटो देवता । तथा चानुक्रांतं । उभे यन्मांधात्ता योवनाश्चो महापा क्तं
पंक्तिरत्या तासध्यधा गोधापष्यदिति । गततः सूक्तविनियोगः ॥ चातुविशिकेऽहनि
| माध्यंदिनेऽच्छावाकस्याद्यस्तृचो बवेकस्यिकः स्तोचियः । सूचितं च । उभे यदि
रोदसी स्व यच्च शतक्रतो । आ०७.8४.। इति ॥ ` | |
| ॥ तच प्रथमा ॥
उभे यिट् रोदसी आपप्राथोषा इव । `
महांतं त्वा महीनां सम्राजं चषेणीनां देवी जनिश्यजीजनद्गद्रा जनि्यजी जनत् ॥१।
ची । कर रत तज व
` महांतं । त्वा । महीना । संऽराजं । चषेणीनां । देवी । जनि । अजीजनत् । भदा!
॥ चवे पवक) शरोर `
जनिं) अजीजनत्॥१॥ ` "अ
\ (५
हं डद् उभे रोदसी द्यावापृथिव्यो यद्यस्वमापम्राय तेजसाप्रथयसि । आ्ापूर-
यसि। म्रा पूरणे । आदादिकः। छांदो लिट् । उषा इव । यथोषाः स्वनासा सवै
जगदापूरयति तडत्
। तं महीनां महतां देवानामपि महांतमधिकं चषेणीनां मनु-
मिदर लला त्वां देवी देवनशीत्दा जनिच्यदित्तिरजीजनत्। ` `
ताच्ुडिः चडिः रूपमेतत् । यस्मदेषा जनिचीहशं पुचमजीज-
# ५ ` 3 4 ८ ( ॥ 1 # ५ : ॥
म० १०, ० ११. सू*१३४.] ॥ अष्टमोऽ टकः ॥
॥ थय तीया ॥
दुहेणायतो मतस्य तनुहि स्थिरं ।
आदिदेशति देवौ जनिंच्यजोजनन्नदरा जनिंच्य-
अवं । स्म । दुःऽहनायतः। मतस्य । तनुहि । स्थिरं ।
अधःऽपद्। तं। ६। कृधि। यः। ञ्चस्मान्। आऽ दिदैशति। देवी । जनिंची। अजीजनत् ।
भदा । जनिं । अजोजनत् ॥२॥
दुहेणायतो दुःखप्रदं हननमाचरतो मतस्य मनुस्य शोः स्थिरं हदं बल मव
तनुहि । अवततं नीचीनं कुर । स्मेति पूरकः। तं शवुमीमेनमधस्पटं पादयोरध-
इतेमानं कृधि । कुर । यः शचरुरस्मानादिदिशति जिधां सति । समानमन्यत्
॥ खथ तृतीया ॥
अव त्या बुंहतीरिषों विश्वश्चंदरा अमिचहन् ।
शचीभिः शक्र धूनुहीद्र विष्वांभिरूतिभिरदेवी जनिंव्यजीजनन्खदरा जनिंच्यजीज-
नत् ॥३॥ `
अवं । त्याः । वृहतीः । इषः । विश्व ऽच॑द्राः। अमिचऽहन्।
भद्रा । जनिंची । अजौजनत् ॥३॥
५
हे अभिचहन् अमिचाणां शत्रूणां हंतहं शक्रेद शचीभिरात्मी याभिः शक्तिभि-
रात्मीयेः कमेभिवै त्यास्ताः प्रसिद्धा शन : । वृहन्महतोरूपसंख्यानमिति
ङीप उदात्तं । विश्वशवद्राः । विश्वानि सवौणि चंदाणि हिरण्यानि यासां ता-
शीः । दस्वाच्चदोचरपदे मच इति सुडागमः । बहवीहौ विश्वं संायामि
॥।
सः
सॐ
ह
श
8
~
र
4
अव यं शतक्रतविंटू विश्वानि धूनुषे ।
रथिं न सुन्वते सचां सहसिणीभिरूतििंटेवी जनिंव्यजीजननदरा जनिच्यजीज-
: न् ॥४। व सः
अवं । यत् । तं । शतक्रतो इतिं शतऽऋतो । इटं । विश्वानि । धूनुषे ।
` रयिं। न। सुन्वते । सचां । सहि णींभिः। ऊति ऽभिः। देवी । जनिंची । अजीजनत् ।
भद्रा । जनिंची । अजीजनत् ॥४॥
हे शतक्रतो बहुकमेन् बहुपरज्ञ वेद् सुन्वते सोमाभिषवं कुवते । सुनोतलटः
शतृ । हुष्ुवोः सावधातुक इति यण् । शतुरनुम इति विभक्तेरुदात्तत्ं । $हश्षाय
| यजमानाय यद्यदा वं विश्वानि व्याप्रान्यननानि वाव धूनुषेऽभिगमयसि । ददा-
:। तदा रथिं न रयिं च पुरूपं धनं च सहस्िणीभिः सहस्रसं स्यायुक्ता-
। भिरूिभी रकषानिः सचा सह मेहि । गत्तमन्यत्॥
1
रौयाःऽद।तंत॑वः। ि। असमत्। एतु दःऽ मतिः रेवी। जनी । अजीजनत्
भेद्रा। जनिंची। अजीजनत्॥५॥ `
दानतः सति बोतमानापान
1
मरानामुखा अव परह । निप ।दूवाया इव तंतवः
१ ति । दनेतिहै्ाभिसंधिः
गानिल |
+ ^
म०१०., स०११. सू०१३५.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ ।
ध धे । हि । अंकुशं । यथा । शक्ति । विभि । मतुऽमः। |
वि विंण। मघऽवन्। पदा। अजः। वयां । यथां । यमः। देवी । जा
भदा । जनिंची । अजीजनत् ॥६।
ननी । अजीजनत् ।
को | _ क षि |
मायत्तमंकुशं सृणिं यथा निभर्थवमायतां शक्ति हे मंतुमः। मंतुजलानं । तन् ।
मतुवसौ रुरिति संबुद्लो नकारस्य रुवं । शे विभर्षि । धारयसि । इम् धार-
रपोषणयोः । जोहोत्यादिकः । श्रौ भूजामिदित्यभ्यासस्येतवं । हे मघवन् धनवन्
इद्र यथा पूर्वेण देहस्य पू वभागे वततेमानेन पदा पादेनाजण्छागो वयां शसखा-
माङूषेति तथा पूर्वोक्तया शक्माकृथ यमः। शचरूजियद्छसि । यमेर्दव्यडागमः।
बहुत्कं डदसीति शपो तुर् । गत मन्यत् ॥ |
५ ॥ अथ सप्रमी ॥
` नकिदेवा मिनीमसि नकिरा योपयामसि मंचश्ुत्यं चरामसि ।
पक्षेभिरपिकसेभिरचामि सं रभामहे ॥७॥ | भो
नकिः । देवाः । मिनीमसि । नकिः। आ । योपयामसि । मंचऽ चयं ।-चरामसि
पक्ेमिः। अपि ऽ कोभं । अचं । अभि । सं । रभामहे ॥७॥
न किमपि हिस्मः। मीङ् हि.
हे देवा इद्रादयो युष्मदिषये नकि्मिनीमसि। न
सायां । करयादिकः। मीनातेनिगम इति हस्वः! इदंतो मसिः। आकारः समुच्चये ।
नकिनं किंच योपयामसि । योपयामः। अननुष्ठानेन विमोहयामः। युप विमो- `
हने । किंतहि मचश्रुत्यं मंचेण स्माये श्चुतो विधिवाक्ये प्रतिपाद्य युष्पदिषयं कमं
` तच्वरामसि। आचगमः। अनुतिष्ठामः । अपि च । पल्ेभिः पक्षैः पक्षस्यानीयेः
स्तुतश्लेरपिकछेभिः। अपिकसछो नाम बाह्लोमेध्यभागः । यज्ञस्यापिक्छनूतिहे-
। ` विभिरवास्मिन्यजञेऽभितः सरवेतो युष्मान्सं रभामहे । सम्यगवलेबामाहे ॥ `
छि. ` ` ॥ इत्यष्टमस्य सप्तमे चाविंशो वगैः ॥ 4
यस्मिन्निति सप्रचे सप्रमं सूक्तं यमगोचस्य कुमारस्याषे। आनुष्टभं यमदेवत्यं! `
सकन्कमार) यामायनो याममानुषभ विति ॥ ५ 1 1
4 <. ¢ (1 ॥
4 प्रथमा ॥
यस्मिन् । वृषे । सुऽपलाशे । देवेः। संऽपि्वते। यमः। [
अचं । नः! विश्पतिः । पिता । पुराणान् । अनुं । वेनति ॥१॥
छे! लुप्तोपममेतत् वृशवत्सुपत्ाशे शेभनपलाशेपेते शेभनोद्यानसहिते ।
यङा श्णोभनपर्णोपेते वृषे ! ताहशस्य वृक्षस्य मूलं यथोष्णयजनितच्मापनोदनेन
सुखकरं भवति तदत्स॒खकरे यस्मिन्स्थाने देवे: परिजनभूतेयेमो नियंता वैवस्वत
संपिवते सह भक्ते पिवतीत्यथेः । विश्पत्तिविंश्णं प्रजानासधिपतिः पित्ता नः। |
व्यत्ययेन बहू वचनं । मम नचिकेतसो जनकी वाजश्रवसौऽचासिन्यमस्य स्थाने
राणन्पुणतनानच चिरकात्ते निवसतः पितुननु तेषां पथ्चाच्चत्समोपे निवसत
यमिति वेनति । मां कामयते नचिकेता नाम कुमारो वाजश्वसेन पिचा यम-
ल्लोकं प्रस्थापितः सन् यमं हृष्टा प्रसाद्य पुनरपीमं ल्लोकमाजगाम । अयमं
इटमाटिकेमेचैः प्रतिपाद्यते । यदा कुभारो नाम नचिकेतसोऽन्यः कश्चिहषिः । `
यच्छतीति यम ्ादित्यः। तमनेन सक्तेन तुष्टाव । सुपलाशे वृक्ष इव यस्िञ्शेभने ^
स्थाने यम आ्चादित्यौ देवेः । दीव्यतीति देवा रष्मयः । तैः संपिवते संगच्छते । ।
उपसगेवश्शत्मपिवतिरब गत्यथेः। व्यत्ययेनात्मनेपद् । अचास्मिन्स्याने स्थितो वि- ।
श्पतिविश्ं प्रजानां प्रकाशनप्रवषेणाटिना पात्यिता प्राणात्मना सर्वेषां जनकः ५
स आदित्यः पुराणंश्चिरंतनान्स्तोतृ न्नोऽस्मानपि वेनति । अनुमाद्यवेन कामयते! `
यदा । अचर स्थाने स्थितानोऽस्माकं पुराणान्पू वेपुरूषाननु वेनति । अनुक्रमेण
कामयते ॥ [ ६ [1
॥ खथ इडित्तीया ॥
पुराणा अनुवेनतं चरतं पापयामुया । व
अमूयदभ्यचाकशं तस्मां अस्यृहयं पुन॑ः ॥२॥ =
पुणणान्। अतुऽवेन॑तं । चरतं । पापयां । असुया।
असूयन् । अभि। अचाकशं । तस्म । ्स्पृहयं । पुनरिति ॥२॥ |
५
॥ किति वको ॥ 1 र [^ मि
पुराणान्पुरातनान्पितननुवेनतं मामनुगतं कामयमानममुयानया पापयानि-
कृ्टया बुद्धा सह चरतं वतमानं पितरं वाज्रवसमसूयन् सुखेन जीव॑तं मां मृत्युः = `
समीं परहीदकतवानिति मानदेनोयतायेन अ 6
॥
म०१०. ऋ० ११. सू०१३५.] ॥ अष्टमोऽषटकः ॥ ४९३
इति संप्रदानसंज्ञायां तच्छन्टाचतुथीं । यद्वा पुराणां्चिरतनान्स्तोतृनपू वेपुरुषान्पि-
तृन्वानुवेन॑तमनुक्रमेण कामयमानं चरंतसुदयास्तमयाभ्यां दिवि परिवतमानम-
नया पापया निकृष्टया स्तोतुमसमथेया वुद्यासूयन्। गुणेषु दोषाविष्करणमसूया ¦
यगुशेषु दूषणान्याविष्कुर्वन्नभ्यचाकशं। अयमपि कश्चिदिति सामान्यरूपेणा-
भ्यपश्यं । इदानीं तु पुनस्तस्यादित्यस्य माहात्यं जानंस्तस्मा खस्यृहयं । तमेवादित्यं
स्तुतिभिः परिचरणात्केः कर्मभिश्च प्राप्ुमेच्छं ॥
॥ थ तृतीया ॥
यं कुमार नवं रथमचक्रं मनसार्कुणोः ।
केषं विश्वतः प्रांचमपं॑श्यन्नधिं तिष्ठसि ॥३॥
यं । कुमार । नवं । रथं । सचक्रं । मन॑सा । सर्कशोः।
` एकऽ इषं । विश्वतः । परं च॑ । अपश्यन् । अधिं । तिष्ठसि ॥३॥
नचिकेतःसंज्ञं कुमारं यमोऽनयो्तरया च प्रलोभयति । हे कुमार नवमभि-
न वमितः पूवेमहष्टं । अभिनवत्वमेव व्यनक्ति । अचक्त चक्ररहितं । तमेकेषमेकेषा
यस्य ताहशं । तथापि विच्तः सवतः प्रां चं प्रकर्वेणां च॑तं गद्ध॑तं यं रथं मनसा-
कृणौमेत्समीपं प्रतिगमनायाध्यवसायात्मकमीदशं यं रयमकरोः कृत्वा चापश्यन्
कतेव्याकतेव्यविभागमजानन्रधि तिष्ठसि । रथमारोहसि ॥ यद्वा स्तोतारं कुमारा-
ख्यमृषिमादित्यः प्रतयः सन् देहात्मनोविवेकं बोधयति । हे कुमारषे चक्ररहि-
तमेकेषं । एकः प्राण ईषास्थानीयो यस्य । ईहशमभिनवं सर्वतो गतं शरीरात्म
यं रथं मनसातःकरणेनाकृणोरकरोः । सं कस्यात्मकेन मनसा हि कामो जायते ।
सत्यां हि कामनायां पुण्यापुणयात्मवं कमे क्रियते । तेन च भोगप्रदानायेदं शरी
` रमारभ्यत इति परंपरया मनसः भरीरनिष्पादकलं । तं शरीरात्मकं रथमपश्य-
जानन् । लक्षणहेत्वौरिति हेतौ शतृप्रत्ययः । मल्स्वरूपापरिक्लानाद्धेतोरधितिः
सि । भोगायतनववेन स्वीकरोषि ॥ `
॥ स्ृग्वेट्ःः ॥
॥ | यं, कुमार, प्र। खर्वतेयः। रथं। विप्रेभ्यः परि।
तं । साम॑। अनु । प्र। अवतत । सं । इतः। नावि । आऽहितं ॥४॥
1
कुमार नचिकेतो यं पूर्वोक्तमधिष्ठितं रथं प्रावतेयो मत्समीपं प्रत्यगमयो
विप्रेभ्यो मेधाविभ्यः पयृपरि । भूलोके वतेमानानां मेधाविनां बांधवानामसुपरि-
टात् । संतरिछ इत्यथः । पंचम्याः परावध्यथं इति विस्जेनीयस्य सतं । तं रथं
साम पिचा कृतं सांचनं यमसमीपं गविवमेव त्या वक्तव्यमिति प्रत्यागमनका-
रणसुपायोपदेश्नमनु प्रावतेत । इतोऽस्मास्लोकाटन्वगच्छत् । कथंभूतं । नावि
नो वत्तरणसाधनायां बुद्धो समाहितं सम्यग्धुतं ॥ यद्वा हे कुमार यं शरीरात्मकं
व धमधिष्टितं प्रावतेयः संसारे प्रवतितवानसि मेधाविनां मध्ये तं रथमनु साम ¦
उपटष्णमेतत्। ऋ क्सामादिसाध्यं स्तोचं नावि नोवच्चारयिव्यां वाचि वेदाल्मि-
कायां समाहितं सम्यक् प्रतिपाद्यवेन हितं कमे चेत्तोऽस्माल्लोकलत्मावतेत । प्रवु-
| चमभूत्। इत्यमात्मस्वरूपापरिज्ञानेन शरीर्बधनं तेन कतेव्यं व्यवहारजातं चोक्क ।
अथ तु सा्यज्ञानारिस्वरूपमक्तार परमात्मानं यटि स्वात्मतया साकात्करोति
|: तदोक्तं न संभवतीत्यभिप्रायः ॥ =
मि 3 , ॥ अथय पंचमी ॥
॥ ~, कः कुमारम॑जनयदरथं को निरं वतेयत् । ।
8 पः स्वित्तदद्यनोतर 1द्ुदेयी यथाभ॑वत् ॥५॥
@ ५ ध; कीः | कुमार । अजनयत् । रय । कः। निः। अवत्तेयत् ।
| 1 ९ ट ^ ॥ ॥ ५
८ ॥॥ ^ ^ ५ ध ५ “
ऋ पः स्तित्। तत्। खद्य। नः, न्ूयात्। अनुऽदेयीं। यथां । अमवत् ॥५॥
। ८. ४ १ भ ।
५ ॥ कः पुरुष इमं कुमारमजनयत्। अधिपे किंशब्दः । इहशं बाते यमसमीपं
® @
अहिखन् कथं पिता समीचीनः स्यात् । तक्ता वदास्तां । को वा पुरुषोऽस्य बालस्य
म०१०. ०११. सू०१३५.] ॥ अष्टमोऽ टकः ॥ ४९५
नित्यः शश्वत इति श्ु्ुक्तरूपोऽ हं भवामि। कश्च शरीरात्मकं रथं निरवर्तयत् ।
निवेततेयति। मद्यतिरिक्तस्य निव्तेयितुरभावात् तथा निवैत्यस्यान्यस्यासंभवाच् ।
अद्यास्मिन्काते सवैत्स्यानुभवदशायां तं तं प्रकारं कः स्वित्को नाम नोऽस्माकं
चूयाद्यणा येन प्रकारेणानुदेय्यनुदातव्था मद्यतिरिक्ान्यपदाथंसच्ताभवद्लवति । स
प्रकारोऽपि दुवेचन इत्यथः ॥
॥ खथ षष्टी ॥
यथान॑वदनुदेयी ततो अय॑मजायत ।
पुरस्तु आत॑तः पथ्चाचनिरय॑णं कृतं ॥६॥ `
यथां । अभ॑वत् । अनुऽदेयीं । तत॑; । अं । अजायत ।
पुरस्तात् । वुभः। आाऽत॑तः। पश्चात्। निःऽअर्य॑नं। वृतं ॥ 8
अनुदेग्यनुदातव्यो यथा येन प्रकरेण पितरमनुलष्यायं कुमारो यमेन दत्तो
ऽभवन्नवति तथा ततस्त स्साद्वाजश्रवसात्ितुरमं यमसमीपं गच्छेति वचनस्यायतो
वतमानं नचिकेतसा यमेन सह वदितवयं तं वै म्रवसंतं गतासीति हौवाचेत्याटिकं
` । ते जा०३.११.४.। बाह्मणंतरोक्तमजायत । प्रादुभवत्। पितोपदिष्टवानित्यथैः।
परस्तात्ततः पूर्वै वुप्न उक्तस्यायस्य मूलभूतं यमस्य गृहं प्रतिगद्धेति वचनमाततः।
अतिविसृतमासीत् । अतस्तदश्क्यपरिहारमिति पथ्चात्कोधं परित्यज्य निरयणं
तस्माद्यमानिगेमनोपायं कृतं । पिचाचरितं ॥ यद्वा । अनुदेय्यात्मानमनु दात-
व्यात्मस्वरूपव्यतिरिक्तान्यपदा्थंसत्ता यथाभवद्नवति तटनुगुणं तत्तस्तस्मान्माया-
श््टादात्मनोऽयं सष्टव्यस्य विकारजातस्यादचं मनस्तच्चं सिसृ्ाकारणमजायत!
` उदपद्यत । पुरस्तातसृष्टेः प्रागवस्थायां बुधो मूलमव्याकृतं मायात्मकं कारणमे-
वात्ततः। आ समंता्ततं विस्तृतमासीत् । पथ्चाच्मस उत्मचयनंतरं निरयणं तद्र-
तानां कायाणां तस्मात्कारणाननिगमनं घटपटादिभेदेन स्वरूपालंभनं कृतं । बरह्मणा `
` निमितं । तथा मृदिकारो घटादिमैदोऽन्यो न भवति । सआदि्यानुयहाइह्मभावं
विकारः पचो मदन्यो न भवतीति व्यतिरिक्घस्य पिषदिरा
|
४९४ ॥ ऋण्वेट्ः॥. [अ०४.अ०$,
, इदं । यमस्यं । सर्दनं । देव ऽ मानं । यत्। उच्यते ।
इयं । अस्य ! धम्यते । नाक्छीः। अयं । गीःऽभिः। पर्रिऽकृत्तः॥७॥
इट् यमस्य नियंतुरादित्यस्य वैवस्वतस्य.वा सदनं स्थानं । छांद्सः सांहितिको
दीधैः । यत्सटनं देवमानं देवेनिभितसित्य॒च्यते । सवैचाभिधीयते । यडा देवानां
र्मीनां निमाणसाधनसिति गीयते । अस्य यमस्य प्रीणएनायेयं नाटी वाद्य
विश्षो वेणुधेम्यते । वाद्यते । यद्वा नाक्छीति वाङ्म । इयं स्तुतिरूपा वागस्य
शनाय धम्यते । उच्चार्यते । एवं सत्ययं यमो गीभिः स्तुतिभिः परिष्कृतः
अतटंकृतो ऽभूत् । संपयैपेन्य इति सुडागमः। परिनिविभ्य इति षत्वं । गतिरनेतर
इति गतेः प्रकृतिस्व रष्वं ॥
॥ इत्य्टमस्य सघ्रमे चयोविंशे वगे; ॥
केशीति सप्रचंमष्टमं सूक्तमग्रिसु येवायुदेवत्ताकं। वात्तरश्नपुचा जूति वातज्ति-
प्रभृतयः प्रत्युचं ऋमेणषेयः। तथा चानुक्रातं । केशी मुनयो वातरशना जूतिवोा-
तज॒तिविंप्रजूतिवेषाणकः करिरतं एतश कष्यम््गश्चेकचोः केशिनिसिति । गतो
विनियोगः ॥
९६८ ॥ तच प्रयमा ॥
केश्य रिं केशी विषं केशी विभति रोदसी ।
केशी विश्वं स्व॑हेशे केशीदं ज्योतिरुच्यते ॥१।
केशी अग्मि! केशी , विषं। केशी । विभति । रोद॑सी इति ।
ए | 9 ॥ 1
केशी । विश्वं । स्वः। हे । केशी । इट् । ज्योतिः। उच्यते ॥ १॥
` केशः केशस्थानीया रमयः । तद्वतः केशिनोऽग्रि वयुः सूरयश्च । एते चय
स्तूयते । केशी रश्मिभियक्तः प्रकाशमानो वा सूयोंऽग्निं विभति । हविभिः पोष-
धारयति वा । कालविशेषे ह्यग्ने: पोषणाय होमः । स च कात्विशेष
च्यते । तथा विषं । मे
५.
9 ए ॥। ५
मं०१०. ०११. सू०१३६.] ॥ अष्टमोऽष्टक
। ॥ अथ हितीया ॥
मुनयो वात॑रशनाः पिश्गां वसते मला ।
वातस्यानु भाजिं यंति यदहेवासो अवित ॥२॥
सुन॑यः। वातंऽरशनाः । पिंगा । वसते। मला ।
वात॑स्य । अनुं । धािं । यंति । यत्। देवासः । अविक्षत ॥२॥
वातरशना वातरश्नस्य पुचा सुनयोऽत्तीद्वियाथेदशिनो जूतिवातजृतिप्रभृतयः
पिशंगा पिशंगानि कपिलवणोनि मला मलिनानि वल्कल्रूपाणि वासांसि
वसते । आच्छादयति । वस आच्छादने । आदादिकः । ईशस्ते यद्यदा देवासो
देवास्तपसो महिना दीयमानाः सतोऽ विक्षत देवतास्वरूपं ्राविशन्। विशे
श्छ इगुपधादनिटः क्सः। व्यत्ययेनात्मनेपदं। तदा ते वातस्य वायोभराजिं गतिमनु
यंति । अनुगच्छति । प्राणोपासनया प्राणरूपिणो वायुभावं प्रपन्ना इत्यथैः ॥
॥ अथ तृतीया ॥
उन्मदिता मोनेयेन् वार्ता आ तस्थिमा वयं ।
शरीरिद्स्माक यूयं म्तैसो अभि प॑श्यथ ॥३।
उत्ऽसम॑दिताः। मोनेयेन । वातान् । आ । तस्थिम। वयं ।
शरीर । इत्। अस्मा । यूयं । मतेसः। अभि । पश्यथ ॥३॥
चैके
मोनेयेन सुनिभावेन ल्लौकिकसर्वव्यवहारविसजेनेनोन्मदिता उन्मत्ता उन्मत्त
वदाचरतः। य्वा । उत्कृष्टं मदं हषै प्राघ्रा वयं वात्ता्ायूनस्माभिरूपास्यमानाना `
तस्थिम। आस्थितवंतः । हे मतसो मनुया अस्माकं शरीरेच्छरीराण्येव यूयं केव- `
तमभि पश्य । नास्मान् । यतो वयं नीरूपेण वायुना सायुज्यं प्राप्नाः॥ `
४९४ . ॥ ऋग्वेदः ॥ [अ०४.अ०७. व° रध.
सुनिरस्य्चो दृष्टा वृषाणक ऋषिवोततरूपतां सूयात्मतां वा तत्तदुपासनया
प्राप्तः सन्न॑तरिल्षेणकाशेन पतति । गच्छति । किं कुर्वन् । विश्वा विश्वानि सवशि
पाणि रूपमाणानि पदाथेजातान्यवचाकशत्। अभिपश्यन्। स्वतेजसा टणगेयन्।
था देवस्यदेवस्य । नित्यवीप्सयोरिति डिवेचनं । अनुदात्तं चेति परस्यामेडित-
नुदात्तं । सर्वस्यापि देवस्य सखा सखिभूतोऽत एव सीवृत्याय । सुषु देवा-
नुद्िभ्य क्रियमाणं यागात्मकं कमै सुकृतं । तस्य भावाय सम्यगनुष्टापनाय हितः।
निहितः स्थापितो भवति ॥
क क
॥ अथ पंचमी ॥
वातस्ाशौ वायोः सलाथो देवेषितो सुनिः। `
उभो संमुदरावा क्षति यश्च पूवे उताप॑रः ॥५॥
भेषमति
वातस्य अश्वः। वायोः सखा । अथो इतिं । देव ऽइषितः। सुनि: ¦
॥
उभौ । समुद्रो । आ। सेति । यः । च । पूवैः । उत । अप॑रः ॥५॥
वातस्य वायोगेतिरिवाश्छो व्याघ्रः। यदा वायोरशिता भोक्ता । वायुरेव तस्या-
र इत्यथः । अत एव वायोः सखा मिचभूतः । अथो अपि च देवेषितो देवेन
चोतमानेन वायुना सूर्येण वेषित्तः प्राप्नः। तृतीया कमेणीति पूर्व॑पटप्रकृतिस्वर तं ।
शो मुनिः करिक्रताख्य ऋषिरक्तप्रकारेणए वायुरूपः सूयेरूपो वा सन् उभी
समुद्रावुदधी आ सेति । अनिगद्छति । छि निवासगत्योः । खांटसौ विकरणस्य
क्। को तो समुद्रो । यश्च पूर्वैः समुद्रः । उततशब्टश्ार्थे । यश्चापरः समुद्रः ॥
॥ आय
म०१०, स० ११, सु०१३७.] ॥ ष्टमो ऽ टकः ॥
अविशेषात्सवे जानन् स्वादुः स्वादयिता रसयिता सर्वस्य रसः
मर्दितमौ मादयितृतमौ भवति । नास्येति नुडागमः ॥
॥ अथ सप्रमी ॥
वाय्ुरस्मा उपामंयत्िन्टि स्मा कुन॑नमा ।
केशी विषस्य पाण यटुदरेणा पि वत्सह ॥७॥
वायुः । अस्मे । उप॑ । अमंथत्। पिनि \ स । कुनंनमा ।
केशी । विषस्यं । पाण । यत्। रुद्रेण । अपिं बत्। सह ॥७॥
। रध्रिमभियुक्तः सूर्यो रुद्रेण रदरपुतेणए मस्द्रणेन । यह्वा रूदो वा एष यट्-
रिति श्रवणादटरो वेदयुताभनिः । तेन सह वर्तमानो विषस्य । उदकनामितत् । `
क्रियामहणं कर्ैव्यमिति कमेणः संप्रदानवाचचतुथ्यर्थे षष्टी ! विषमुदकं पारेण
पानसाधनेन रश्मिजालेन यद्यदापिबत् पिवति तदस्मे केशिने वायुरूपामंथत्
भूगतं सवे रसमुपमथुाति। यदा यदापिवत् पीतवान्भवति तदा सूयेमंडठे घनी-
भूतमस्य तदुदकं वायुरूपमधाति । मथनेन वेच्युताग्रिनालोडयति । तथा कुनंनमा
कुत्ितिमपि भृशं नमयिची स्वयं नमयितुमशक्या स्वतंचा माध्यमिका वाक् पिनष्टि
स्म । यथाधस्तात्स वति तथा चूणीकिरोति । स्मेति प्रसिद्धो । कुपूवीन्रमयतेः पचा-
द्यवि यङेऽचि चेति यड त्टुर् । थाधादिनो्तरपदां तोटाचत्वं ॥
॥ इत्यष्टमस्य सप्तमे चतुविंश वेः ॥
उत्त देवा इति सप्चै नवमं सूक्तमानुषटभं वैश्वदेवं भरह्ाजक्श्यपगोतमाचि-
श्ामिचजमदप्निवसिष्ठा इति रमेण म्त्यृचमृषयः। तथा चानुककांतं । उत देवाः
2 ` ॥ तच प्रथमा ॥
उत देवा अवहितं देवा उन्नयथा
सपतकषय कचो वौ वैश्वदेवमिति । गतो विनियोगः ।
॥१॥ ।
युरिति ।
वय॑
५००. ॥ि ` ॥ ऋष्वेदः ॥ सअ०४, ०७, व०२५.
कृतवंतं मां तस्मादागसो रछषत । हे देवा रचित्वा च पुनः पश्चा
| जीविनं कुरत ॥ ४११५ ॑ ५, +
५१. ॥ खथ डित्तीया ॥
| हाविमो वातो वात चा सिंधोरा प॑रावः। `
| दश॑ते ञ्जन्य्चार्वातु परान्यो वातु यदरः॥२॥
। डो। इमो। वातं । वातः। आ सिंधोः। आ। पराऽवतः
दघं । ते । अन्यः। ्ा। वातु । परां । अन्यः वातु । यत् । रप॑ः ॥२
इमो हश्यमानौ जो वातौ पुरो वातः पश्चा्रातश्चा सिंघोः। आ समुद्रात्
^ मयोादायामाकारः । यदा । खा परावतः समुद्रादपि यो द्रदेशस्तं टेशमवधी
वातः । गच्छतः । वा गतिगंधनयोः। सखादादिकः । तयोवातयोरन्य एको हे रो-
तस्ते तव दक्षं बलमा वातु । आगमयतु । अन्यश्च तदीयं यदपः पापं तत्परा
( वातु । परागमयतु॥
क ` ध ॥ अथ तृतीया ॥
(॥ स्रावांत वाहि भेषजं वि वातत वाहि यद्रपः ।
हि तं रि विश्वभेषजो देवानां दूत ईयसे ॥३॥
| आ। वात्त। वाहि। मेषजं। वि। वात। वाहि। यत्। रप॑ः!
| “ तं। हि। विश्वऽभेषजः। देवानौँ। दूतः य॑से॥३॥
| ` हे वातत भेषजं सुखं व्याध्युपश्मनमोषधं वा वाहि । आगमय । हे वात यदू-
" पोऽस्रदीयं पापं त्वि वाहि। विगमय । अस्मत्तो विक्चेषय। तवं हि खल
भेषजः । विश्वानि भेषजानि यस्मिन् । बहवीहौ विश्वं संज्ञायामिति
ईयसे । सततं गच्छसि । ईङ् गतौ । देवा
म० १०. अ०११. सू०१३७.] ॥ अष्टमोऽष्टकः
र आ । त्वा। अगमं । शतातिऽभिः। अथो इतिं । सरिष्टतातिऽभिः
दष्टं । ते। भदरं । आ । अभा । पर । यच्छं । सुवामि, ते ॥४॥
9 हे स्तोतः वा तवां शंतातिभिः सुखकतररणो अपि चारिष्टतातिभिरहिस
| रक्षणरागस । आआगतवानस्मि । शिवशमरिष्टस्य कर इत्यभयच तातिरमत्यय
५ कितीति प्रत्ययातपूवेस्योदात्तत्ं । अपि च भट कल्याणं ते तव दकं बलमाभाषै
श्राहाषे । वायुसकाशदानैषं । तथा ते तव यच्छं रोगं च परा सुवामि । विना-
यामि ॥ | (सि
` ॥ खथ पंचमी ॥
चार्यतामिह देवास््राय॑तां मर्ताँ गणः ।
चार्यतां विश्वां भूतानि यथायम॑रपा असत् ॥५॥
| चार्यतां । इह । देवाः। चायता । मस्ता । गणः ।
चार्यतां । विश्वां । भृतानि । यथां । अयं । अरपाः। अस॑त् ॥५॥ ,
इहास्मिन्देशे सर्वे देवास््रायंतां । अस्मान्पालयंतां । तथा मरतां गणः संघः
स चायततां । विश्वानि सवीख्यन्यानि च भूतानि भूतजातानि चायंतां । अस्मा-
चक्षतु । यथायमस्मदीयः शरीरादिरिरपा असत् पापरहितो भवति तयेत्य्थं
रप इति पापनाम । नजा बहुीहौ नञ्सुभ्यामित्युत्तरपदांतोदात्ततवं । अनले्य्य- क
डागमः ! यावद्यथाभ्यामिति निघाताभावः ॥ १,
॥ सथषष्टी॥ नि ए
स्राप इद्वा ॐ भेषजीरापो अमीवचात॑नीः । क
` आपः सवैस्य भेषजीस्तास्ते कृतु मेषजं ॥६॥ ` (1 3
।
: ` आप॑ः। सरवैस्य । मेषजीः। ताः। ते। भेषजं ॥दै॥ | 1
जीर्भषजभूता
५
०९ ` ॥कम्वेटः॥ [आअ०६.अ०9, व०२९,
यिच्यो भवंति । चातयतति्वैधकम । किंच । आपः सर्वस्य प्राणिजातस्य भेषजीभेष- ~^
जूता भवंति न कतिपयस्य । तास्तथाविधा आपस्ते तव भेषजं कृखतु । कुवेतु॥
| ॥ अय सप्नमी॥ =
| | हस्ताभ्यां दश्शखाभ्यां जिद्धा वाचः पुरोगवी
नामयित्नुभ्यां त्वा ताभ्यां त्वोप॑ स्पृशामसि ॥७॥
1 |, ।
हस्ताभ्यां । दऽ शखाभ्यां । जिह्ा । वाचः। पुरःऽगवी ।
नामयित्तुऽभ्यां । त्वा । तार्या । त्वा । उप॑ । स्पृशामसि ॥७॥
॥ 1 चाकः |. ॥ ॥ यिः ॥
दशशाखाभ्यां । दशंगुतयः शाखाभूता ययोस्तादशभ्यां प्रजापतेेस्ताभ्यां सुज्य- िः
। माना जिद्धा रसना वाचः शब्दस्य पुरोगवी पुरतो गची जाता। यच यच शब्टस्तच ¦
सवे तस्य शब्टस्योच्चारणाय पुरतो व्याप्रियत इत्यथेः। अनामयित्नुभ्यां सम्यगा-
रोग्यहेतुभ्यां ताभ्यां हस्ताभ्यां हे स्तोतसत्वा वासुप स्पृशमसि । उपस्यश्मः ।
| इदतो मसिः । त्वेति पुनरुक्तिः पाटपूरणाथो ॥ |
न ॥ इत्य्टमस्य सघ्रमे पंचविंशो वर्गः ॥ क
# तव त्य इति षडुचं दशमं सूक्तमुरनान्नः पुचस्यांगाख्यस्याषे जागतमेद्ं। तथा ि
# चानुक्रातं। तव त्ये षठ्छग स्रवो जागतमिति। गतो विनियोगः ॥ ५
[वि ॥ तच प्रथमा ॥
[क तत्य रट् सस्येषु वहुय ऋतं मन्वाना व्यद्दिरुवैलं |
हि यचा दशस्यन्ुषसो रिणन्नपः कुसांय मन्म॑नरद्य॑श्च दंसयः ॥१॥ 0 ।
¢ तव॑ ्ये। इट् सस्येषु । वहंयः। ऋतं। मन्वानाः। वि! अद््दिरः वलं। `
कणि. `
स्यन्। उषसंः। रिणन्। अपः। कुत्साय । मन्म॑न् । अह्य॑ः। च । दंसरयः॥१॥
डा बयो वोढारो हविषां `
| 1 ५ इ इद् तव सस्येषु सखिषु सपसु त्ये ते
म०१०.अ० ११. सू०१३४.| ॥ अषटमोऽषटकः ॥ ५०३
्मायास्तदपनोदनेन दशस्यन्म्रयच्छन् तथापो वृचेणावृतान्युदकानि च रिणन्
तस्माननिगेमयन्वतेसे । री गतिरेषणयोः । कयादिकः । प्वादीनां हृस्वं ! तद्ा-
योऽ हेवृंचस्य च ट्सयः कमणि विततथान्यासन्नित्य्थेः ॥
॥ सथ हितीया ॥
अवासृजः प्रस्वः शरंचयों गिरीनुर्दाज उखा अपिबो मधुं पियं ।
वधयो वनिनो अस्य दंस॑सा भुणोच सूये ऋतजातया गिरा ॥२॥
व॑।असृजः। प्रऽस्व॑ः।छंचय॑ः। गिरीन्। उत्। आजः। उखाः। अपिं बः। मधु । प्रिय
भनि ॥ ॥, ¬ #
वधेयः। वनिन॑ः। अस्य । दंससा । मुणोचं । सूरयैः। तऽजतया। गिरा ॥२॥
हे इट् प्रस्वः। प्रसूतिजन्म । तदेतुभूता अपोऽवासुजः । आवरकान्मेधादधः
पातितवानसि । तथा गिरीन्पवेतावलेन गोमतो विलस्य पिधानाय निहि- `
ताञ्श्ंचयः। खभेत्सी सित्यथेः । चि गतो । स्मास्यंताह्लङिः बहुत्ठं इदस्यमा-
ब्योगेऽपीत्यडभावः। समानवाक्ये निधात्तयुष्मदस्मददेशा वक्तव्या इति वचना-
वेपदस्याससानवास्यगत्तेनास्य तिङ्तिङ इति निघाताभावः तथा वत्ठासुरेण
विले निहिता उसा गाः पवेतभेदनानंतरमुदाजः। उदगमयः। ततः पयोटध्या-
ज्यादिकं प्रियमनुकूलं मधरु मधुरं हविरपिवः। पीतवानसि । यदाश्रपणसाधनासु
तासु गोघ्रागतासु यजमानः प्रियमभीष्टं मधु सोमात्मकमपिवः । पिबसि । तथा
वनिनौ वनसं बद्धान्वृक्षान्। यदा वनमित्युटकनाम । तदयुक्तान्समुद्रानवधंयः। वृष्टि
प्रदानेन वथेयसि । ऋतजातया । ऋतं यज्ञं । तदथं जातं जन्म यस्यास्तया गि
वेदात्मिकया वाचा स्तूयमानस्यास्येद्रस्य दंससा कमैणावृण्दतो वृचदिरपि नोद-
नात्मकेन सूयः शुशोच । नभसि प्रदिदीपे । यज्ञा । ऋतजातया गिरेति सूयेस्येव
विशेषणं । चयीरूपया वाचा प्रदीयत इत्यथैः । छग्मिः पूवैद्धिः दिवि देव कषयत
इत्यादिकं तेत्तिरीयकमचानुसंधेयं । ३.१२.९.। णुशोचेत्यस्य पदात्रत्वेऽपि पादा-
दित्वादपादादाविति पयदासस्यानुवृततेनिंधाताभावः ॥
५०४ ॥ऋण्वेट्ः॥ [अ०४. ख०3. व° २४.
वि । सूरथैः। मध्य । अमुचत् । रथं । रिवः। विदत् । दासाय॑ । प्रतिऽ मानं । आः
[|
, किनि ।
इण्ट्दानि।पिप्रः। असुरस्य। मायिनं: इदः! वि। आस्यत्। चकृऽवान्। च्छु जिश्वना॥२॥
४ ^
1 ^ ् न ५ ह #
दिवी द्युलोकस्य मध्ये सूये आरित्यो रथं प्रस्थानाय व्यसुचत्। विसुक्तवान् ।
सुचेटैडिः छदिखाद्खैरङगदेशः। कदेति चेदुच्यते । यदा्यो ऽभिज्ञ इदो दासायोपसछ्-
पयित वृचाटये प्रतिमानं प्रतिकृतिं प्रतीकारं विदत् । वेत्ति जानाति । अत्नत
वा। अपि च मायिनो मायाविनः। मायाशब्दस्य बीद्यादिषु पाटादीद्यारिभ्यश्े-
तीनिप्रत्ययः। पिप्रोरेतन्नाम्नो ऽसुरस्य हट्ट्दानि हढानि स्थिराणि पुराणि बलानि
वजिश्चना राजषिणा चकृवान् सख्यं कुवेन्निंदौ व्यास्यत् । व्यक्िपत्। विविधमा-
धिप्रवान् । व्यनीनशदित्यथैः । असु छेपणे ॥ ` ह
॥ खथ चतुर्थी ॥
अनाधृष्टानि धृषितो व्यास्यन्निधीरदैवाँं अमृणट्यास्य॑ः ।
मासेव सूर्यो वसु पुयैमा द॑दे गृणानः श्रृणादिरुकांता ॥४।
नाभुष्टानि। धृषितः। वि । आस्यत्। निऽधीन्। अर्दैवान्। खमृणत् ! अयास्यः
# 0
मासाऽडईव। सूयैः। वसुं। पु॑। आ। द्दे। गुणानः। शचरून्। अ्पृणात्। विरूक॑ता ॥९॥
धृषित्तः शचरृणां धषेयिता प्रगरभ इटौऽनाधृष्टानीतः पूवे शवुभिरप्रधृष्टान्यवा-
'धितान्यसुर्वत्ानि व्यास्यत् । व्यारिघ्रवान् । तथायास्योऽयासनीयश्चाल्यितुम-
शक्यः । यद्वायास्योऽगियः । स्तोतृवाचिना शब्धेन स्तुत्यो लष्यते । अयास्ये-
नषिणा स्तुत्य इटो निधीनसुरेनिहितान्धनसमूहान् यद्वा निधातन्नितरां बत्ानां
धारयितृनदेवान्देवविरोधिनोऽसुरानमृणत्। अहिंसीत्। मृण हिंसायां । तोदादिकः,
अपि च सूर्या मासेव मासेनेव । पदन्नित्यादिना मासशब्दस्य मास
भावः। स यथा
| ति यत्।
शं । पा०४.२.७९.। इति प्रतिषेधः । यत्तोऽनाव इत्या-
( ४ + त ९ १
डो दौऽनास्यविहरण इत्यात्मने-
१. सु०१३४.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥
॥ अथं पचमी ॥
विभ्वां विभिंटता दाशडुचहा तुज्यानि तेजते ।
1
इद्रस्य वजाद्विभेदमिम्रथः परा्रंमद्ध्यूरन॑हादुषा अन॑ः ॥५॥ `
अथुंद्ऽसेनः। विऽभ्वां । विऽभिंद्ता । दात् । वृचऽहा । तुज्यानि । तेजते ।
इद्रस्य । व्जात्। अविभेत्। अभिऽश्रयः। प्र। अक्रामत्। णुध्यूः। अज॑हात्। उषाः।
पनः ॥५॥
विभ्वा विभुना व्याप्रेन विभिंद्ता विदारयतैवं विधेनापि परकीयवत्तेनायुद्ध-
सेनोऽप्रहतसेनः । यज्ञा विभ्वा । विभुव्यौप्रः। विभिंदता श्चुवल्टानि विदारयता
वजेण वृचहा वृत्रं हतवान् एवंविध इदो दाश्त्। दाशति। स्तोतृभ्यो धनं प्रयच्छति ।
दाण् दाने। लेव्यडागमः। तथा तुज्यानि प्रेयीि शचरुवत्तानि तेजते। तनूकरोति!
अस्यीकरोति । तिज निशाने । यद्वा शचन्प्रति प्रेयोरयायुधानि तेजते । निश्यति ।
तीद्णीकरोति । इहशस्यदस्याभिश्नथोऽभितो हिंसकाइजात्सव शवुजातमविभेत् ।
भीतिं प्रा्नोत्। एवमसुरेषरिद्रेण निरस्तेषु शुध्यूः शोधयितादित्यः प्राक्रामत्। जगा
काशनाय गंतुं प्रक्रं्तवान् । उषा उषोदेवता चानः स्वकीयं शकटं रथमजहात् ।
गंतुं पयेत्यजत् । ओहार् त्यागे ॥
॥ अथ षष्टी ॥ `
एता त्या ते श्युत्यानि केव॑त्रा यदेक एकमर्कुणोरयज्ञं ।
मासां विधान॑मदधा अधि द्यवि ल्या विभिन भरति प्रधि पितता ॥६॥
एता । त्या । ते । शरुत्यानि । केव॑तरा । यत्। एकः । ए । र्वुणोः । अयज्ञ ।
मासां । विऽधानं। अट्धाः। अधि चवि । लयां। विऽभि॑नं। भरति। प्रऽधिं। पिता॥ ६
हेड्टरत्यातानिते तव् वदीयानि वीयेकमोण्येतैतान्येव केवला केवत्ाि
शछुत्यानि श्रोतव्यानि स्तु्यहोणि। नान्यदीयानि । कानि पुनस्तानि । एकोऽसहा-
नभूतमयज्ञं यज्ञरहितमसुरमकृणोरहिंसीरिति यदेतेदेकं कमे । कृवि
पथयुसामावः ।
५०६ ॥ ऋग्वेदः ॥ [अ ४, ०9, व०२७.
मासानां विधानं विधातार कतारं सूयेमधि द्यवि चुतोक उपयेटधाः । अधारयः
विपूवौदधातेः कृत्यस्युटो बहुत्मिति कतेरि स्युर् । इदमपरं कमे । तथा पित्ता
पालको द्युलोको विभिन्नं विदारितं वृचाहिभक्तं प्रधिं रथचक्रस्य पाश्वे । पाश्वै-
फत्के प्रधी इत्यच्यते । ईहशं सूर्येरथसं बंधिनं प्रधिमन्येधारयितुमशक्यं त्वयेव
` भरति । धारयति । इदमपरं कमै रतत्मभृतीनि चया कृतानि कमणि परेषा-
मसाधारणानि सवेदान्नातव्यानीत्यथेः ॥ ह |
॥ इत्यष्टमस्य सप्रमे षड्शो व्मैः॥
सूयेरशिमरिति षडुचमेकादशं सूक्तं चैष्भं । विश्ठावसुनाम गंधव ऋषिः। स च
पूर्वेण तृचेन सवितारं स्तुतवान् उत्तरेण स्वात्मानं । अतः प्रथमतृचस्य सविता
५ देवता हितीयस्य गधवेः । तथा चानुक्रातं । सूयेरष्िमर्दवगंधर्वो विश्वावसुरात
द नमस्तोत्मृ वोधे सवितारमिति । गतौ विनियोगः ॥
॥ तच प्रथमा ॥
म यरश्मिहेरि केशः पुरस्तात्सविता ज्योतिर्यो अज॑खं ।
तस्यं पूषा प्रसवे यांति विदान्संपश्यन्विश्वा भुव॑नानि गोपाः ॥१॥
सूय॑ऽरश्मिः। हरऽकेशः। पुरस्तात्। सविता । ज्योतिः । उत्। अयान्। अज॑सं ।
तस्य पूषा । प्रऽसवे। याति। विद्ठान्। सं ऽपथ्यन्। विष्वा । भुव॑नानि । गोपाः ॥१॥
सूरयेरध्मिः। उषसः प्रादुनावानंतरं सूयेस्योदयात्पूवै यः कालस्तस्य काल्धस्या-
` भिमानी देवः सवित्तेतयुच्यते । सू्यरश्मिः सूयेस्य सर्वस्य प्रेरकस्यादित्यस्य रश्मिरेव
रधिमयेस्य स तथोक्तः । हरिकेशः । हरयो हर्णशीत्का हरितवणा वा केशः
केशस्यानीयाः प्रकाशमाना वा दीप्रयो यस्येहशः सविता सर्वस्य प्रेरको देवः पुर-
स्तात्पू वस्या दिश्यजखमनवरतं ज्योतिसतेज उदयान् । उद्याति। उद्रमयति । याति
रतभावितण्यथोच्छांदसो लङ । व्यत्ययेन बहुवचनं । संप
~
म० १०. ०११. सू०१३९.] ॥ अष्टमो ऽकः ॥ (
॥ अथ इडितीया ॥
नचा एष दिवो मध्य॑ आस्त आपपिवानोदसी अंतरिं ।
स विश्वाचीरभि चे घृताचींरन्तरा पूर्वेमप॑रं च केतुं ॥२॥
भर
#
नृऽचष्ाः। एषः। दिवः। मध्य । आस्ते । आपपरिऽवान्। रोदसी इतिं । अं तरि ।
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सः । विश्ाचीः। अभि । चष्टे । घृताचीः । अंतरा । पूर्वै । अप॑रं। च । केतुं ॥२॥
नृचक्षा नृन्मनुयान्पश्यन् यद्वा नृभिनेतृभी रश्मिभिः प्रकाशमान एष सविता
दिवो द्ुत्ोकस्य मध्य आस्ते । निषीदति । किं कुर्वन् । रोदसी द्यावापृथिव्या वंत-
रिक्षं चापप्रिवान् स्वेजसापूरयन् । प्रा पूरणे । अस्माच्छांदसो किट् । कमुष्येति
तस्य कसुरादेशः । वस्वेकाजाह्ृसामितीडागमः । स देवो विश्वाचीविश्वमंचंतीः
सवेव्यापिनीः प्रा्यादिमहादिशोऽभि चरे! प्रकाशयति । तथा धुताची्तं दीप
रूपमचंतीराम्रे्यादिविदिशश्च प्रकाशयति। अरंचति; किनंतादंचतेश्योपसं ख्यानमिति
डीम् । तत्तो भसंज्ञायामच इत्यारारतरोपे चाविति दीधैतवं । उदा्तनिवृतधिस्वरेण
डीप उदात्ते प्राप्रे चाविति पू वैस्याच उदात्तत्वं । तथा पूव पू वैभागं केतु प्रला-
पनीयमपरं पृष्टभागं चांतरांतरालं चाभि चरे । प्रकाशयति ॥
॥ सथ तूतीया ॥ ५
` रायो बुवः संगमनो वसूनां विश्वां रूपाभि च॑ शचीभिः ।
देव इव सविता सत्यधमदरौ न त॑स्थौ समरे धनानां ॥३॥
रायः। बुः संऽगम॑नः। वसूनां । विश्वां । रूपा । अभि । चष्टे! श्चीभिः। ध
देवःऽइव । सविता । सत्यऽधमोा । इद्रः! न। तस्यो । संऽअरे । धनानां ॥३॥ ` ध क
. णयो धनस्य वुभौ वंधको मूलभूतो वा । ऊडिदमित्यादिना रेशब्दादविभक्ते- `
दात्तत्वं। तथा वसूनां धनानां संगमनः संगमयिता प्रापयितेहणः सविता शची- 1
निदी्निभिविश्वा रूपा सवीणि रूपाणि निरूपणीयानि पदाथजातान्यमि चरे । `
त । ्रकाश्यति । अपि च देव इवायं सविता सावको देवः सत्यधमा
| धमे धार तुभूतं कमे वा यस्य ताहशो भवति। तथेदरो न इद `
५
0४ ॥ ऋरम्वेदः॥ [० ४, ०७. व्० २७.
॥ अथ चतुर्थी ॥ , + ~
विश्वावसुं सोम गंधवेमापों दहशुषीस्तहतेना व्यायन् ।
तट्न्ववेदिद्रौ रारहाण आसां परि सूर्यस्य परिधीरंपश्यत् ॥४॥
विश्व ऽव॑सुं। सोम । गंधव । ्राप॑ः। दहशुषींः। तत्। ऋतेन । वि । आयन्
तत्। अनुऽ्वेत्। इद ररहाणः। आसां । परि ।सूयैस्य। परिऽधीन्। अपयत्॥४॥
हे सोम त्वया सहितं गंधव गीतरूपां गां शब्दं धारयंतं विश्वावसुमेतत्सजञं मां!
उत्तरच तच्छब्द्श्रुतेयखन्दाध्याहारः । यदापो वसतीवयख्या टहभ्मषीर्टवत्यः
हशेष्दिटः कसुः । उगितश्वेति डीप् । वसोः संप्रसारणमिति संप्रसारणं । जसि वा
छटसीति पूवंसवणेदीधेः। तच्दानीमृतेन यज्ञेन हेतुना व्यायन् । विविधमग्छ- |
न्यषजनाः । तच्रमनमासामपां ररहाणो गसयितेदौऽन्ववेत् । अन्ववध्यत । बुद्धा
च कु यज्ञः प्रवृत्त इति सूयेस्य परिधीन्परितो धीयमानान्प्राच्यादिदिभ्विभा-
गान्पयेपश्यत् । परितो दष्टवान् ॥ ` | प
॥ अथय पचमी ॥
विष्वा व॑सुरमि तन गृणातु दिव्यो गंधर्वो रज॑सो विमानः , |
यां धा सत्यमुत यन्न विद्च धियो हिन्वानो धिय इनोः अव्याः ॥५॥
विश्वऽ्वसुः। अभि। तत्। नः । गृणातु! दिष्यः। गंधर्वैः । रज॑सः। विऽमान॑ः।
।वा। घ्। सत्यं । उत । यत्। न। विद्च। धिरयः। हिन्वा नः। धिय॑ः। इत्। नः। अव्याः॥५॥
#)
केयादिकः। प्वादिवाडस्वः । कीहशः। दिव्यः। दिवि भवः। तथा रजस उदकस्य `
विमानो निमाता । किं पुनस्तत् । यद्वा घ यञ्च सल्टु सत्यमवितथं यथाथेफलं
तं । उतशब्दश्चर्थे । यच्च न विद्म न जानीमस्तटुभयं बवीवित्यथः । ऋचि
त्यक्षकृतः। हे विश्ा-
नुधे्यादिना घभबदस्य साहिति
को ४ धेः। शिष्टः पादः प्र
म० १०. अ० ११. सू०१४०.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥
॥ थ षष्ठी ॥
सलिंमविदच्रंणे नदीनामपांवृणोडुरो अश्मवरजानां ।
प्रासां गंधर्वो अमृतानि वोचदिदरो दक्षं परि जानाद्हीनां ॥६॥
सलि । अविंद्त्। चरणे । नदीनां । अपं । अवृणोत् दुरः । अश्म॑ऽव्रजानां ।
म। ्ासा। गथवः। अमृतानि । वोचत्। इद्रः । दघं । परि! जानात्। अहीनां ॥६॥
सलि । अद्चिः संजातं प्रकर्षेण सर्वस्य जगतः सापयितारं मेधं । ला शोचे।
प्राहगमहन इति किन्प्रययः। लिना वाहिव॑चनं । नदीनां शब्टकारिणीनामपां
चरणे सं चरणस्यानेऽ तरिषषेऽविंदत्। इटो ऽल्भत । लब्धा चाश्मव्रजानां। सश्मा
व्याप्तो मेघः । तच बजंतीनां । यद्वा मेधो जो मोषं निवासस्थानं यासां ताह-
शीनामपां दुरो हारि मेघान्निगंमनप्रदेणनपावृणोत् । अपावृतवान् । यद्वा ।
अश्मसु शित्रामु व्जंतीनां गतीनां व्याघ्रगमनानां वा नदीनां गगायसुनादीनां
चरणे संचरणे प्रवहणनिमित्तभूते सति तदथेमिद्ः सलि मेधमविंटत्। खत्ठभत ।
लब्धा चांत्तगतानामपां निर्ममसाधनानि मेधस्य दुरो हाराण्यपावृणोत्। अपा-
वृत्तवान् । तथासां नदीनाममृतान्यमरणसाधकान्युदकानि गंधर्वो गो्वजस्य धता
विश्वावसुरूपेण वतेमान इरः प्रावोचत् । प्रनवीति । प्रनोदुमनुजानाति । तथा
द । दसषत्युदकं प्रयच्छतीति दो वषेणसमर्थो मेघः। तादशं मेषमहीनां मेधानां
मध्ये परि जानात्। परितः सवतो जानाति । ज्ञा अवबोधने । लेडागमः ।
ज्ञाजनोर्जेति जादेशः ॥ ०
॥ इत्य्टमस्य सप्रमे सप्रविंशौ वर्मः ॥
छपर तवेति षडुचं डां सूक्त। पावक्गुणविशिष्टोऽम्रिकौषिः। गुखाभिर्देवता।
आद्या वि्टारपक्तिरष्टकविद्वादशाष्टकवती । अथ तिखः सतोवृहत्योऽयुजौ जाग-
ताविति लक्षणोपेताः। पंचम्युपरिष्टाज्ज्योतिः। षष्ठी चिष्टुप् । तथा चानु्रोतं ।
अग्रे तवाभ्रिः पावक आग्रेयं विष्टारपंक्तिस्तिसः सतोवृहत्य उपरिष्टाञ्ज्योति
आग्रिमारतशस्त इदं सूक्तं स्तोचियानुरूपाथे । तथेव पंचमार
॥
॥
॥
॥
----=------------
५१९ ॥ ग्वेट्ः॥ ` . [आअ०४. ०७, व० र,
1
प्रे । तव॑ । च्रव॑ः। वर्यः मरि । भजंते । अचैयः। विभावसो इति विभाऽवसो।
| मानो दि वहमानो चस । वार क् दंस। सागु।कवे११।
| हेञग्रे तव वयोऽन्नं चरवः श्रवणीयं प्रशस्यं । हविरात्मकस्य तस्य मंचसंस्कृ ४
॥॥ 0 ` तत्वेन प्रशस्तत्वात् । अन्नेषु मध्ये तवेवानरं चे्ठमित्यथेः । हे विभावसो विशा त
१
0 दी्निर्विभा । सेव वसुधनं यस्य ताह शम्नेऽ चेयो दीप्रयो महि महद्हुत्ठे चाज ।
॥ 0 दीषते। भजु दीपनो । अनुदातेत् । भो वादिकः । हे वृहद्धानो प्रीठदी्रे कवे ऋांत-
॥ टन । णवं महानुभावस््वं श्वसा बठेनोपेतमुक्थ्यं प्रशस्यं । यद्लोक्यो यज्ञः ।
तदयोग्यं वाजमन्रं दाभुषे हवींषि दच्वते यजमानाय दधासि ददासि, प्रयख्छसि ॥
| . | ॥ अथ हितीया ॥ = | . |
पावकव॑चोः भुक्रवचा अनूलवचा उर्दियषि भानुनां ॑
पुचो मातरं विचरन्रुपांवसि पृणक्षि रोद॑सी उभे ॥२॥
पावकऽवचोाः। गुक्रऽ वचाः । अनून ऽवचाः। उत्। इयषि । भानुना । =.
पचः। मातरा। विऽचर॑न्। उप॑ । अवसि पुण । रोदसी इतिं । उभे इतिं ॥२।
4 भ
] प
|| पावकवचोः शोधकटीभिः शुक्रवचौ निमलतेजस्कोऽनूनवचीः संपूेतेजस्वः। ४
के हप्र इहशस्वं भानुना तेजसोदियषि । उन््छसि। क सृ गती ¦ जोोत्यादिकः, श
¢ सतिपिपत्येशवित्यभ्यासस्येलवं। स त्वं पुचः सन् मात्रा मातृभूते अरर्यौ विचरन् 9
यागावसाने विश्षेण प्राशरुवन् उपावसि । उपगतान्यजमानाबक्षसि । तथो
2 रोदसी द्यावापृथिव्यो. पृणक्ि। संयोजयसि । हविषा द्युलोकं वृच्येमं लोकं च ` ५
छि पूरयतीत्यथेः। पृची संपर्के। रोधादिकः॥ (= ध
म० १०. अ= ११ सू०१६०.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ ५११
रस्माभिः क्रियमणेरप्रिहोचादिभिः कमेभिहितः सुहितसृप्रो भव! पि च भूरिः
वपेसः। वपं इतति रूपनाम। बहूविधरूपाश्िचोतयः। चिचा विचिच्ोतिस्तृधियोसां
तास्तथोक्ताः। वामजाताः । वामं वननीयं जातं जन्म यासां ताहशीरिषोऽब्रानि
ल कषणानि ने व्येव सं दधुः । संदधति। सम्यग्जुहति यजमानाः। यदा भूरि-
पंस इत्यादिकं कतृ विशेषणं । तदानीं चिचोतय इत्यस्य विचिचरश्षा इति योज्यं ॥
॥ खथ चतुर्थी ॥
इरज्यन्नग्ने प्रथयस्व जंतुभिरस्मे रायो अमत्य ।
स दशेतस्य वपुषो वि राजसि पृणधिं सानसिं ऋं ॥४॥
इरज्यन् । अग्रे । प्रथयस्व । जतुऽभिः। अस्मे इतिं । रायः । अमत्यै ।
| ति १ व तषि ॥ 1, 1 1
सः । दशेतस्यं । वपुषः । पि। राजसि पणिं । सानसिं । ऋतुं ॥ ४॥
हे अग्रे ज॑तुभिजोतिः शत्रुभिः सहेरज्यन् ई््न्। स्यधा कुवैन् । इरज् थायां ।
व़ादिः । यज्ञा । इरज्यतरिष्वयेकमे । जंतुभिजोयमानरात्मीयिस्तेजोभिरिरज्यन्
ईश्वरो भवन् हे अमत्यै मरणरहिताप्रेऽस्मे अस्माकं । सुपां सुत्ुगिति षष्ठ्याः
शेञ्यादेशः। रायो धनानि प्रथयस्व । विस्तारय । रयिशब्टाच्छसः स्थाने व्यत्ययेन
जस् । शसो वा व्यत्ययेनोडिदमिति विभच्छुदा्तत्वं न क्रियते । स लं दतस्य
शनीयस्य वपुषस्तेजोमयस्य शरीरस्य वि राजसि । तृतीयार्थे षष्टी वा । ईशेन
शरीरेण विशेषेण दीप्यसे । यद्वा राजषिरेश्वयैकमे वपुरिति च रूपनाम । दभेनीयेन
रूपेण वि राजसि । विशेषेणेशिषे। अत एव सानसिं संभजनीयं ऋतुं कमं पृणसि ।
अस्माभिः संपचेयसि । फलेन वा संयोजयसि ॥
॥ अथ पंचमी
इष्कतारंमध्वरस्य प्रचेतसं श्यत राध॑सो महः ।
तिं वामस्य॑ सुभगा महीमिषं दधासि सानसिं रमं ॥५।
र। अध्वरस्य । परऽचेतसं। द्यत । राध॑सः । महः । `
मि
। महीं । इषं । दधासि । सानसिं । रयिं ॥५॥
५१२ ॥ ऋग्वेदः ॥ [अ०४, अ० 3. व० २९.
वामस्य वननीयस्य धनस्य तिं दातारं । रातेः कतैरि क्तिच् । ईहशं त्वां स्तुम
इति शेषः । स लं सुभगां सोभाग्योपेतां महीं महती मिषमन्नं सानसिं संभक्तव्य
रयिं धनं च दधासि । स्लौतृभ्यो ददासि ॥ =.
4 ॥ अथयषष्टौ॥ ` |
ऋतावानं महिषं विष्वदशेतमम्निं सुन्ायं दधिरे पुरो जनाः
श्रुत्वणे सप्रथस्तमं ता गिरा देव्यं मानुषा युगा ॥६॥
ऋत ऽ वानं । महिषं । विश्वऽ द॑ंछेतं । अग्निं । सुराय ट्धिरे। पुरः । जनाः
श्ुत्ऽव॑री। सप्रथ॑ःऽतमं। ला । गिरा । देव्ये । मानुषा । युगा ॥६॥
छतावानं सत्यवंतं यज्ञवतं वा । दसीवनिपाविति मत्वर्थीयो वनिप्। महिषं
महांतं पूज्यं वा विश्वदशेतं विश्वैः सरवेदेशेनीयं । य्वा विश्वं दशेनं यस्य । बहुनी
विश्वं संज्ञायामिति पूर्वपदांतोदाच्तं । ईहशमपिं सुम्नाय सुखाथे जना कविग्य-
जमानरूपाः पुरो ट्धिरे । पुरो टधे । सवेकमेभ्यः पुरस्ताद्ारयंति । यदा पुरः
पुरस्वात्पूरवेस्यां दिश्याहवनीयरूपेण धारयंति । परोऽधेचेः प्रत्यष्ठकृतः। अपि च
हे अग्रे शत्वं शुत् स्तुतीः सम्यर् णृणखन्कणेः च्रोचैद्रियं यस्य ताहशं सप्रथस्तम-
मतिश्येन प्रख्यातं । यद्वा सवेतो विस्तयेमाणं देव्य देवानां हविवोंदृतेन संबं-
धिनमीहशं वा त्वां मानुषा मानुषाणि मनोरपत्यानि युगा युगानि युगत्ानि
पत्नीयजमानरूपाणि गिर स्तुत्या स्तुवंतीति शेषः ॥
॥ इत्यष्टमस्य सघ्रमेऽष्टाविंशे वगेः॥
अग्र इति षडुचं योदश सूक्तं । तापस्गुणविशिषटस्याग्रेराषे वेश्वदेवमानुष्टुभं !
तथा चानुक्रातं । छग्रऽप्रिस्तापसो तेश्वदेवमानुषटुभं हीति । गतो विनियोगः ॥
। ॥ तच प्रथमा ॥ 1
; प्रत्यङ्: सुमना भव । .
धनदा असि नस्वं ॥१॥
९
म० १०. अ०११, सू०१४१.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ५१३
अस्मान्प्रत्य चन् सुमनाः शोभनमनस्की भव । हे विशस्यते यजमानलषषणायाः
प्रजायाः पालयितरनोऽ सभ्यं प्र यच्छ धनानि प्रदेहि यतस्त्वं नो ऽस्मावं
ऋसि धनानां दाता भवसि ॥ |
॥ अथ हितीया ॥
प्र नों यद्छत्वयेमा प्र भगः प्र बृहस्यतिंः।
प्र देवाः प्रोत सूनृतां रायो देवी ददातु नः ॥२॥
प्र। नः। यच्छतु । अयेमा । प्र। भगः । प्र। वृहस्पतिः
प्र । देवाः । प्र। उत । सूनृतां । रायः देवी । ददातु । नः ॥२॥
अयैमारीणां नियंतायाणां निमाता वैतत्संलो देवो नोऽस्मभ्यं प्र यच्छतु धनं।
तथा भग एतत्संलको देवश्च प्रयच्छतु । बृहस्यत्ति्च प्रयद्छतु । सवे देवाश्च प्रयच्छतु ।
उत्तापि च सूनृता प्रिय्षत्यवाग्रूपा देवी देवनशीला सरस्वती रायो धनानि नौ
ऽस्मभ्यं प्र ट्दातु । ऊडिटमित्यादिना रायो विभक्तिरुदात्ता ॥
॥ अथ तृत्तीया ॥
मोमं राज्ञानमव॑सेऽग्रिं गीभिहे वामहे ।
आरित्यान्विष्णं सूय बद्याणं च वृहस्यतिं ॥३॥
सीमं । राजानं । अव॑से । अब्निं । गीःऽभिः। हवामहे ।
आरित्यान्। विष्णु । सूये । बह्याणं । च । वृहस्पति ॥३॥
राजानं राजमानमीश्वरं वा सोममभि च गीभिः स्तुतिभिरवसे रसणाथे हवा-
महे । आआद्यामहे। तथाटित्यानदितेः पुचान् मिचादीन् विष्णं सूये बद्याणं प्रजापतिं
जृहस्यतिं च रछ्षणाथमाह यामहे ॥
1 ॥ अथ चतुर्थी ॥
इंटूवायू बृहस्पतिं सुहवेह ह॑वामहे ।
यथां नः सर्वं इज्जनः संगत्यां सुमना असत् ॥४॥
शष, ,
॥।
ऽह वां । इह । हवामहे ।
[1 ॥ भ
५१४ ` ॥ ऋ्वेद्ः॥ । [अ०४,स्०9.वः
इटश्च वायुश्चेद्वायू । उभयचर वायोः प्रतिषेधो वक्तव्य इत्यानङः प्रतिषे
नोचरपदेऽनुदाच्चादाविति देवताडे चेति प्राप्रस्योभयपटप्रकृतिस्वरस्य निषेध
समासस्येत्य॑तो दा्तत्वं । वृहस्यतिं बृहतां देवानां पालकं । तद्मुहतोः करपत्योरिति
सुट्तलोपो । बनस्पत्यादित्वाटुभयपटप्रकृतिस्वर्वं । सुहवा सुहवो सुद्ानाविंद्रवाय्
बृहस्पतिं चेहास्मिन्कमंणि हवामहे । अ्राह्यामहे । यथा नोऽस्माकं सवे इत् सवे
एव जनः संगत्यां संगमने धनस्य प्राप्नो सुमना असत् । शोभनमनस्को भवेत्
तथाह यामह इत्यथैः । अस्ेर्तव्युडागमः ॥ ग
॥ अथ पचमी ॥
अयेमणं बृहस्यतिमिदरं दानाय चोदय ।
वातं विष्णुं सर॑स्वतीं सवितारं च वाजिनं ॥५॥
अयेमणं । बृहस्पतिं । इद! दानाय । चोदय ।
वातं । विष्णुं । सरस्वतीं । सवितारं । च । वाजिनं ॥५॥
प्न
हे स्तोतः अयेमादीन्देवान्दानाय धनप्रदानाय चौटय । स्तुत्या प्रेरय । तथा वातं
वायुं विष्णुं सरस्वतीं वाजिनमन्रवंतं बत्छवंतं वा सवितारं च दानाय प्रेर्य ॥
॥ अथ षष्ठी ॥
तवं नो अग्रे अम्रिभिन्रेहं यज्ञं च वधेय ।
त्वं नो देवतातये रायो दानाय चोद्य ॥६॥ _
त्वं । नः। अग्रे । अम्रिऽभिंः । ब्रह । यज्ञं । च । वधय ।
त्वं । नः । देवऽ तातये। रायः । दानाय । चोद्य ॥६॥
हे अग्र त्वमभ्रिभिस्वद्धिभूतिभूतेर्येरभरिभिः साधं नोऽस्माकं ब्रह्म स्तोचं यज्ञं च
तथा ध त नोऽस्माकं देवतातये । यज्ञनामेतत्। यागा रायो धनस्य दानाय
ऽष्टकः ॥ ५१५
१, सू १६२, ॥ पटम्
अथ चतख स्विषभः। ततौ हे अनुष्टुभो । तथा चानुकरंतं । अयमष्टौ इुचाः शङ्ख क
जरिता द्रोणः सारिमूक्कः स्तंवभिचश्वाग्रेयमाचे जगत्यौ चततसरस्वि्टभः ॥
॥ तच प्रथमा ॥
अयमंम्रे जरिता त्वे खंभूदपि सर्हसः सूनो नह्य न्यदस्त्याणं । |
भदरं हि णमे चिवरूथमस्तिं त आरे हिंसानामपं दिद्युमा कधि ॥१॥ `
अयं । अपे । जरिता । ते इतिं । अभूत्। अपिं । सह॑सः । सूनो इति । नहि। अन्यत् ।
| असिं । आं!
भ। हि) शम। चि ऽवरूधं । अलति । ते । सरे । हिसानां। खपं। दिद्यु । छा । कृधि ॥१॥
हे अग्ने वे त्वयि । सुपां सुत्ुगिति सप्नम्याः शेखादेशः। अयमृषिजैरिता स्तोता-
दपि । अपिशब्ट्ः संभावनायां । इदानीं स्तोतृत्ेन संभाव्यते । तत कारणमाह ।
हे सहसः सूनो बलस्य पचर लवत्तोऽन्यदाणमाप्नव्यं न ह्यस्ति । न खत्टर विद्यते ।
अतः प्राप्रवयं चामेव स्तुत्या प्राप्नोमि । नदं कस्याणं चिवरूयं टुःखचयस्य निवारकं
शमे सुखं हि यस्मात्ते तवास्ति विद्यते । अथवा शोभनं चिवरूयं चिभूमिकं गुहं
तवास्ति हि । अतौ हिंसानां हिस्यमानानामस्माकमारे दूरे दिं दीप्यमानामा-
त्मीयां ज्वाल्ामपा कृधि । अपाकुरः । निवारय । करोष्ांदसो विकरणस्य त्टुक् ।
श्ुपपणुपुकृवृभ्य इति हेधिभावः ॥ न
॥ अथ हित्तीया॥ *
प्रवतत छम्रे जनिमा पितूयतः साचीव विश्वा भुव॑ना न्युजक्े। ` ध
प्र स्यः प्र संनिषंत नो धियः पर्चति पशुपा ईव त्मना ॥२॥ 1
मरऽवत्।ति। अगर। जनिंम। पितुऽयतः। साची ऽईव। विष्वं । भुव॑ना नि। ऋछंजसे। `
म्र। सप्तयः । प्र सनिषंत। नः। धिय॑ः, पुरः। चरंति । पभुपाःऽईव । त्मनां॥२॥ ५
पितूयतः पितु ७
नवति । उपसनीच्छंदसि धालथं इति वतिः । स तं साचीव स
मनं भ्यमिच्छतस्ते तव जनिम जन्म प्रादुभोवं प्रवत्म- `
५१६ , ॥ ऋ्ग्वेट्ः॥ [अ०४.स०ऽ. व०३५.
ऋण्छा यथानिं प्रकर्षेण संभजंते तचास्मदीया धिय इत्यथेः। अनंतरं पुरस्तव पुर-
स्वात् त्मनात्मना स्वयमेव चरति । व्याय वतते । पश्मुपा इव । यथा पशूनां
पाठका गोपालाः पाल्यित्तव्यानां पुरस्तात्स चरति तदत् ॥
॥ अथ तृतीया ॥
उत वा उ परिं वृणि बष्संडहोररग्र उत्छपस्य स्वधावः
उतत सिस्या उर्वराणां भवंति मा तें हेतिं तविषीं चुक्रुधाम ॥३॥
उत्त चे! ऊ इतिं। चरि! वणस । बप्सत् । बहीः । अग्रे । उत्छपस्य । स्वधाऽवः
उत्त। खिल्याः। उर्वराणां । भवंति । मा । ते । हेतिं । तविषीं । चुक्तुधाम ॥३॥
जः षी मते = भैषि [1
हे स्वधावो दीष्रिमन्नग्रे बप्सदहन्। भस भत्सेनदीघ्ौः । जोहोत्यादिकः। शतरि
घसिभसोहैलि चे्युपधालोपः। नाभ्यस्ताच्छतुरिति तुमः प्रतिषेधः । वहोवेहुल-
स्योत्ुपस्य तृणजात्तस्य । कमणि षष्ठी । सवै वनसुत वा अपि खलु परि वृणसि ।
परिवजैयसि। विनाश्यसि। उ इति पूरकः। उत्तापि चोवेराणं । सस्याद्या भूमय _
उवैराः। तासां संबधिनः प्रदेशः सिस्याः विल्ाः प्राणिभिगैततुं योग्या भवंति ।
त्वया टग्धा इति शेषः । तविषं महतीं ते तव हेतिं हननहेतुभूतां ज्वालां मा
चक्राम । मा क्रोधयाम। पि तु स्तुतिभिः प्रसाधयाम । ऊतियूतीत्यादिना हते
क्तिनि हेतिरिन्यंतोरा्तो निपात्यते । चक्तुधामेति क्रुधेरयतास्ुङिः चङिः रूपं ॥
॥ अथ चतुर्थी ॥
यदुत निवतो यासि बप्सत्पू्थगेषि प्रगधिनीव सेना। `
यदा ते वातो अनुवाति शोचिवेप्ैव श्मशं वपसि प्र भूम॑ ॥४॥
#
। उह्ऽवततः। निऽवकतः। यासि । वप्स्॑। पृथ॑क् एषि । मगधि
- एषि। परगर्भिनी ऽइव । सेना ।
ऽवा । गोचिः। वप ऽइव। मच । वपसि । प्र । भूम॑ ॥४॥
म° १०. अ० ११, सू०१४२.] ॥ अष्टमो ऽटकः ॥ ५१७
५ धितं स्थितं केरोमादिवं वेव यथा वप्रा नापिततो वपति मुंडयति तथा भूम
¢ भूमिं प्र वपसि । प्रकर्षेण मुडयसि । सवै वनं निःरेषेण ट्हसीत्यथेः ॥
1
॥ अथ पंचमी ॥ `
र्यस्य श्रेणयो दहश्च एकं नियानं वहवो रथासः ! |
बाहू यदग्रे अनुममजानो न्य्तानामन्वेषि भूमिं ॥५॥ ` |
प्रतिं, अस्य! जेणयः। दशे । एङ । निऽयानं । बह व॑ः । र्थसः।
बाहू इति । यत् । अप्र । अनुऽमभजानः। न्य॑ङः। उत्तानां । अनुऽएपिं । भूमिं ॥५॥ ` ध
` ` सअस्यग्रेद्हतः श्रेणयो ज्वालापंक्तयः प्रति दहचे ! प्रतिहर्यते । - ~ - । तडत् । `
। 9 अच सामयथ्यीदुपमानप्रतीतिः। हे अपरे बाहू । तृतीयार्थे प्रथमा । बाहुभ्यां बाह-
| स्थानीयेज्वालासमूहेरनुममजानः सवै वनं मृजञ्शोधयन् । दहन्ित्यथैः । न्यङः
न्यचन् प्रीभवन् उत्तानामृध्वभिमुखां भूमिं यद्यदान्वे्नुगच्छसि तदानीमस्य
श्रेणयो ट्दश्च इत्यन्वयः ॥ |
॥ पथ षष्ठी ॥ ष
उत शुष्मा जिहतामुत्ते अचिरं अग्रे शशमानस्य वाजां: । भ
उद्चस्व नि न॑म वधमान आ चाद्य विश्वे वस॑वः सदतु ॥६।
उत्।.ते। णुष्माः । जिहतां । उत्। ते। अ्चिः। उत्। ते । अमरे । शशमानस्य । वाजाः
उत् । चस्व । नि। नम । वधमानः। आ । त्वा । अद्य । विश्व । वस॑वः। स्तु ॥ ६
प [भि 4
[1
च्छः
;
` ` हे अग्रे ते तव भुष्माः शोषका जात्ठा उज्निहतां। उद्रद्धेतु । तथा ति तवा
चिदीभिश्वो्रच्छतु । शशमानस्य सूयमानस्य । यदना शश स्ुतगतो । खअस्मात्तद्डी-
लिकश्चानश्। तस्य सावधातुके सति ल्सा्वैधातुकतानावाच्चित इत्यं तोदाचत्व- ध
मेव शिष्यते । शशमानस्य सवे वनमभिक्रम्य शीप्रं गच्छतस्तव वाजा वेगाहेि `
। स तवं वधेमानः सनु्ुचस्व । वन उन्रच्छस्व । चि गतौ। `
चुम्। तथा नि नम । प्रहीभव । उन्नतं वृक्षादिकं प्रायोच्छत `
देलाचुम्। प्रह
ल्मादिकं मा्ावनतो भवेत । ईशं ला त
॥ ऋग्वेदः ॥ ` |अ०४, अ०9. व० ३०.
1 ॥आअयसप्रमी॥ ~
अपामिदट् न्यर्यनं समुद्रस्य निवेशनं ।
| अन्यं दशुश्वैतः पंथां तेन॑ याहि वशँ अनुं ॥9॥
अपां । इट् । निऽञ्यनं। समुद्रस्य । निऽ वेश॑नं ।
अन्यं । कृणुष॒ । इतः। पंथा । तेनं । याहि । वशान् । अनुं ॥७॥
इत्यं सांडववनस्य दाहे प्रवृच्तमम्मिं जरितृप्रभृतयः स्वात्मनो रसणकामास्तुष्टबुः।
इदानीं च स्वबमिचः स्वनिवासभूमेदेहनाभावायाप्रेर्यवं गमनं प्राथेयते । इद्-
मस्मदीयं निवासस्थानमपामुट्कानां न्ययनं । नियति नितरां गद्त्यस्मिन्िति
न्ययनं हदः । तथा समुद्रस्योटधेश्च निवेशनं गृहं । यथा हृदः समुद्रस्य स्थानं च
` | यथा दग्धुं न शक्यते तथा दाहयोग्यं न भववि्यथेः । इतोऽस्माटस्मदीयाष्स्या- `
नाटन्यं पंथां पंथानं मागं हे खमे कृणुष्र । कुरुष । तेन पथा वश्णननु यथाकामं
याहि । गच्छ ॥ 1
पथाष्टमो ॥
आयने ते परायणे दूवे। रोहतु पुष्पिणीः ।
दाश्च पुंडरीकाणि समुद्स्यं गुहा इमे ॥४॥ - <
` आऽञ्र्यने । ते। पराऽञ्चर्यने । टूवाः । रोहतु! पुष्पिणीः। . त
हदाः। च पुंडरींकाणि । समुदरस्यं । गुहाः । इमे ॥४॥
॥ ( . अनयापि स्वनिवासषस्य दाहानरहैता प्रतिपद्यते । हे अपरे ते तवायन आगमने `
पराये परागमने वा सत्यस्यां निवासभूमो पुष्पिणीः पुष्यवत्यों टवी रोहतु ५५
गोहतु । तथा हृदा अशोष्योदका जलाश्याश्च भवंतु पुंडरीकाणि पद्यानि चतेषु `
जायतां । किं बहुना । समुद्रस्य जल्धेरिमेऽस्मिन्निवासप्रदेशे गृहा आश्रय- ~^
। यथा समुद्रावासमूमिः कदाचिदपि न दद्यत णवं कदाचिदणस्मत्स्यानं `
वोकांडप्ररोहणप्राथनेन स्वाश्च
प्
म०१०. अ० ११. सू०१४३.] ॥ अष्टमो ऽकः ॥
वेदाथस्य प्रकाशन तमो हाट निवारयन् ।
पुमधाश्चतुरो टेयाहिद्याती महेश्वरः ॥
इति च्रोमदराजाधिराजपरमेश्वरवेदिकमागप्र वतैकथ्ीवीर बुक्वभूपाठसामाज्यधु-
रधरेण सायणाचार्येण चिर चिते माधवीये वेदाथैप्रकाश ऋक्संहि- `
ताभाषयेऽटमाष्टके सप्रमो ऽध्यायः ॥
यस्य निःखसितं वेदा यो वेदेभ्यो ऽ खित्टं जगत् ¦
निममे तमहं वंदे विद्यातीथ॑मरेश्रं ॥
मे मंडल एकादशेऽनुवाके चतुदेश सूक्तानि व्याकृतानि । त्यं चिदिति षड्चं
पंचदश सूक्तं संख्यपुचस्यात्ेराषेमानुष्टभमश्विदेवताकं । तथा चानुक्रातं । त्यं षट्
सांख्यो ऽचिराश्विनमिति ॥ प्रातरनुवाकाश्िनशस्तयोगनुषट हंदसीद् सृक्तं । मुच्यते
हि । आ नो विश्वाभिस्त्यं चिदट्चिमित्यानुष्टभं । आ०४.१५.। इति
॥ तच प्रथमा ॥
त्यं चिदच्निमृतजुरमथेमभ्यं न यात॑वे ।
क्षीवेतं यदी पुना रथं न कणुणो नवं ॥१॥
तयं । चित्। अरिं । कतऽजुर। अथे । अश्वं । न । यातवे |
की वतं । यदि । पुनरिति । रथ॑ । न । कृणुथः । नवं ॥१॥
हे अश्विनो शतद्वारे पीडायंचगृहेऽसुरेः प्रकषिपरो बद्वांगो योऽचिरस्ति त्यं चि-
तमणयचिमृतजुरं । ऋतं स्तोचं यज्लो वा । तेन जीयेतं । सवदा युवयोः परिचरण-
शोत मित्यथः । जी येते: किंपि बहुलं डदसीत्युचं । यज्ञा । ऋतेन प्राप्ेनासुरकृतो-
पद्वेण ज्वरितं रूग्णं। ज्वर रोगे । जरत्वरेत्यादिना वङारस्योपधायाश्च स्थान ऊट् ।
सित्यस्माद्ा किप् । अनयोः पक्षयोष्डांट्सो हस्वः । ईहशं तम-
५२० । ` ॥ऋण्वेट्ः॥. [अ०४. ख०४, व०१,
तवेन्प्रत्ययः । यदि. । अपि चेत्यथेः । की वत्तं । कष्या रज्जुरश्चस्य । त्तं । =
ससंदीवदटष्टीवदित्यादौ निपातनात्संप्रसारणं । दीधेतमसः पुचसुशिकप्रसूतमृषिं
मेटबुद्धिं संतं युवां पुननेवं पुनरभिनवप्रज्ञं कृणुथः । अकृणुत । अकुत । रथं न ।
यथा कथिच्छिल्पी जीणे रथं पुनरभिनवं करोति तत् । कृवि हिंसाकरणयोश्च ।
इदिच्लाचुम् । लङर्थे व्यत्ययेन लट् । धिन्विकृण्व्योर चे्युप्रत्ययः। तत्संनियोगेना-
कारंतदेशश्च । तस्यातो लोपे सति स्थानिवद्खावाल्लधूपधगुणाभा वः। सति शो
ऽपि विकरणस्वरो ठसा वेधातुकस्वरं न बाधत इति वचनाचिडः एव स्वरः श्ष्यते।
निपति्यद्यटिरहतति निघातप्रतिषेधः ॥ |
| 1 खथ डितीया॥
त्यं चिदश्वं न वाजिन॑मरेणवो यमत्नत ।
हल्टहं मंधिं न वि ॑त्तमचिं यविष्ठमा रजः ॥२॥
तयं । चित्। अश्वं । न । वाजिनं । अरेणवंः। यं । ऋत्ल॑त ।
हृष्टं । यधि । न । वि । स्यतं । अनि । यवि । ञ्चा । रज॑ः ॥२
अरेणवो ऽदहिस्यमानाः प्रबला सुरा वाजिनं वेगवतमश्वं नाश्वमिव यम-
चिमत्नतातन्वत बङह्मकृषत । तनोतेलैडिः तनिपत्योष्डंदसीत्युपधाल्टोपः । त्यं
चित्तं चाति यविष्ं युवत्तमं स्तुतेमिंश्चयितृतमं वा रजः । रजंत्यस्सिञ्जना इति
रजो भूलोकः । रज इमं त्ोकमाभि हे अश्विनो वि ष्यतं । व्यमु चतं । ठं स्थिरतरं
संधिं न प्रथिमिव। यथा कश्चित्राहशं ग्रथिसयत्नेन विमुंचति त्तथा युवां तम-
षिमसुरकृतादधनान्मोचितवंत्तावियथेः। स्यत्तमिति षौऽतकमेणीव्यस्माल्लङिः श्य-
न्योतः श्यनीत्योकारलोपे रूपं । डांदसोऽडभावः । यहा ! अचि मां बंधाडि घतं
विसुचत्तमित्युषिरसुरेवेदः सन्नश्चिनो प्रार्थयते ॥ छ
म० १०. अ० ११. सू° १४३. ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ ५२१
॥ हे नरा नरो नेतारो हे दंसिष्ठौ दशेनीयतमौ शुभा शोभमानो । $हश्टौ हे
अश्विनो अत्रय षये मद्यं धियः कमाणि वुद्धीवौ सिषासतं । दातमिच्छतं ।
षणु दाने । यद्चा । अचय इति षष्चर्थे चतुर्थी । उतरेम॑म धियः स्तुतीः कमणि
| वा सिषासतं । संभक्तुमिच्छतं । सेवेथामित्यथैः। वन षण संभक्घो । खस्मात्सनतेः `
` सनौतेवेा सनि सनीवंतर्धेति विकल्यनादिडभावे जनसनसनामित्याल्व । भुभेत्य-
| स्यामचितस्यामचितं पूवैमविद्यमानवदित्यविद्यमानवच्चेन पराटपरतेन पाटा-
| दित्वा्चिङ्तिङ इति निधात्ताभावः। अटुपदेष्णल्लसा वेधातुकानुदत्तत्वे सनो निचा-
दाद्युदाचततवं । अथा द्यनंतरमेव दिवः । दीव्यतीति स्तौतीति चोः स्तोता । तस्य
मम स्तोमो न । नशब्दश्ार्थे । स्तोचं च हे नरा नेतारावश्विनीं वां युवां पुनर्वि-
से । पुनरे वाद्यापि विशेषेण शंसितुं प्रभवतीति शेषः ॥
॥ अय चतुथी ॥ ~
चिते तहां सुराधसा रातिः सुमतिरश्विना ।
आ यन्नः सद॑ने पृथौ सम॑ने पणौ नरा ॥४॥
चिते। तत्। वां । मुऽराधसा । रातिः । सुऽमतिः। अशिना ।
आ । यत्। नः। स्दने । पुथो। सम॑ने । पषेयः। नरा ॥४॥
# ५ चेमे क #
हे सुगधसा शोभनदानावभ्विना हे अश्विनौ सुमतिः शोभना स्तुतिरस्मदीया
1 रातिहेविदानं च तत्तस्मात्कारणाहां युवयोश्िते । ज्ञानाय भवति। चिती संज्ञाने । -
` अस्मात्संपदादिलक्षणो भावे किप् । सावेकाच इति विभक्तेरदाच्तत्व । यद्यस्मा- 0
क्कारणान्सदने यज्गृहे पृथो वित्ते समने यज्ञे नोऽस्मान् हे नरा नेतारावा `
पषेय आपूरयथोऽभितो रद्षथो वा तसरादयुवामस्दीयं परिचरणं ज्ञातवंतावि- `
त्यनुमीमहे। पु पात्नपूरणयोरित्यस्मास्लेटि सिक्रहूलमिति िप्। ततः श् ॥
† ॥
1
॥ अथ पंचमी॥
समुद्र आ रज॑सः पार इखितं ।
ह, ॥ ऋण्वेद्ः॥ ` [अ०६.अर४, वरर.
॥
ति $
५५, ध र
हे अशिनो युवं युवां समुद् उदधो निमस्नं रजस उदकस्य पारे प्रति तरगसम्
` ईखितं डोत्ायितमेवंभूतं भुज्युं तुपपुचरसच्छाभि पततनिभिः पश्षोपेतेर्नो विशेषैः सहा
यात्तं । ख्ागतवंतो स्थः । आगत्य च हे नासत्या सत्यस्य नेतारो सत्यस्वभावो वां
हे अश्विनो सातये युवयोः संभजनाय समथ कृतं । पुनयुवानं कुरुतं । क्ोतेलेडि `
छां दसो विकर्णस्य लुक् । अडभा वश्च । ९
च
॥ अथ षष्ठी ॥
आवा सूक्तैः शू ईव महिंहा वि्ववेदसा।
समस्मे भूषतं नरोत्सं न पिषुषीरिषः ॥६॥ ` |
आ । वां । सुन्नेः। शंयू इवेति शंयूऽइव । मंहिष्ठा । विश्व॑ ऽवेदसा।
सं। अस्मे इतिं । भूषतं । नरा । उत्सं । न । पिषुषींः। इषः ॥६॥
च
हे विश्ववेदसा सवेज्ञो सवेधनौ वा हे नरा नेतारो वां युवां शंय इव सुख-
युक्ती राजानाविव मंहिष्ठा दातृतमा बतिश्येन पूज्यो वा संततौ सुनरस्मभ्यं दातय
मुखेः साधेमा। उपसर्ग्ुतेयेग्यक्रियाध्याहारः । आ गच्छतं । यज्लोपसर्गैस्य भूषत-
मित्यनेन सं बधः । महिष्टत्यपि संबोधनं । हे महिष्ठा दातृतमावुक्तगुणावश्चिनो
† युवां सुननेः साधे शंय इवास्मे अस्मान् सम्यगा भूषतं । खभिप्राघ्ुतं । भू प्राप्नो ।
। आअस्माल्लोटि व्यत्ययेन सिप्शपो । भूष अलंकरे । सा समंत्तात्सम्यग्भूषतं । अलय-
कर्तं । पिणुषीः प्रवृद्वानीष इ्यमाणानि पयास्युत्सं न। गोरूध इव । यथा बहूभिः
पयोनिरूधोऽलकृतं सदृश्यतेऽस्मानपेवं बहुमिधेनेरलेकुरुतमित्यथेः । पिषुषी- `
` रिति णायेलिटः मुः । लिङ्ङोश्ेति पीभावः) जसि वा दंदसीति पूवैस- .)
बंशेदी प्रवाहो यथा पिपयुषीवंद्धानीषोऽनरान्यठंकरोति तडत् ॥ `
॥ इत्य्टमस्याष्टमे प्रथमो वर्मः ॥
धेः। यद्वा । उ
म०१०. ख०११.सू०१४४.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥
॥ तच प्रथमा ॥
अयं हि ते अमत्यै इटुरत्यो न प्यति ।
सो विश्वायुर्वेधसे ॥१॥
अयं । हि । ते अम॑त्यैः । इटः । यः । न । पत्य ।
छः । विश्व ऽआयुः । वेधे ॥१॥
हे इट् वेधसे विधा ते तुभ्यं चदथैममर््यो मरणरहितोऽमृतत्वप्रापकोऽयं ह्ययं
खस्विटुः सोमोऽत्यो न सततगाम्यश्च इव पत्यते । गद्छति । यदा पत्यनिरिश्वयै-
कमा । तव स्वभूतोऽयं सोमो वेधसे विधानाय मदस्य कर णायेष्े । कीश इटः ।
छः प्रवृद्धो बलहेतुवौ विश्वायुविशवेः सर्वेरेतव्यः प्राप्त्यः। यद्वा विष्वेषामायुर्जी-
वनहेतुः । अथवायुरित्यन्ननाम । सर्वे्चस्पुरोडाशादिभिरतरहे विरभिर्पेतः ॥
॥ थं डितीया ॥
अयमस्मासु काव्यं चभुवेजो दास्वते ।
अयं विभवू्ैकुणनं मर्दमूभुन कृत्व्यं मद ॥२॥
अयं । अस्मासु । काव्यः। ऋभुः । वज॑ः। ट्स्व॑ते।
यं । विभति । ऊध्व कुशनं । मदं । ऋभुः । न । कृ । मदं ॥ २॥
॥
एकी ॥ 1
अस्मासु स्तोतृषुं काव्यः स्तु्योऽयमिंदर कमुदीपरः सन्दास्वते .दानयुक्ताय यज- `
मानाय वजः शचरूणां वजेको भवति । यद्वा दास्वत इति षष्ठयर्थे चतुथी । अस्मासु
दास्वते दानवत्त इदस्य वजः कुल्विश ऋभुरुरु भासमानो भवति । पि चाय-
ृध्वैकशनसुद्रततिषटणयमेतत्संजं वा यामायनमृषिं मदं स्तोतारं विभर्ति । पोषयति । `
पने सोधन्वनः । पुचाणामाद्च ऋभुः । सं इव कृत्व्यं कर्मणां कतीरमत एव `
र मोटयितारं यजमानं विनतं ॥ ` ५
॥ अथ तृतीया ॥ `
कृत॑न आमु स्वामु वंस॑गः ।
॥ ऋग्वेदः ॥ ` उप्र ८. ०४, ०२.
पेषेयित्ता दीप्र वा स्वासु स्वकीयासु यजमानलक्षणसु प्रजासु वस्तगं
वननीयगरिरे वभूत इदः कृत्वने कर्मणां कर्वे । करोतेरन्येभ्योऽपि हश्यत इति कनिप्।
शयेनाय सुपणाय ताष्येपुचाय मद्यमृषयेऽ ही गुवोऽ हीनव्यापनानही नवृद्ञीन्त
दीयान्पुचादीनव दीधेत्। दीपयतु । दीधीङ दीष्रिदेवनयोः। अस्म च्छांदसे लिडः
` व्यत्ययेन परस्मेपदं । यद्वा हे इद् त्वदीयः सौमो धृध्यादिगुणयुक्तः सन् दीयत
इति योज्यं॥ क र क
^ ॥ थ चतुर्थी ॥
यं सुंपणेः प॑रावतंः श्येनस्य पुर आभ॑रत् ।
शतचक्रं योऽ द्यो वतेनिः ॥४।
यं । सुऽपणेः । परऽ वत॑ः । श्येनस्य । पुचः। आ । अभ॑रत्।
4
तऽ च॑क्र । यः । श्द्य॑: । वर्तनिः ॥४॥ -
श्येनस्य ताष्येस्य पुचस्वनयः सुपणों यं सोमं परावतः परागताहृरद्युलौका- `
दाभरदाहरत् कीदशं । शतचक्रं । शतमिति बहूनाम । बहुधनस्य कतारं । मूत्वि-
मुजादित्वात्कम्रत्ययः । यद्वा शतकरणएसाधनं बहूुयागनिष्पादनमित्यथेः । घञर्थे ^
कविधानमिति कप्रत्ययः । कृनादीनां कं इति हिवेचनं । यः सोमोऽद्योऽ्हेवृ्ष्य
बतेनिवेतेयिता प्रेरयिता । यद्वा । अह गततौ । खद्यो गंतव्यो वतेनिमोर्मभूतः ४
एना वय इति वष्यमाणेनेकवाक्यता ॥
व ॥ अथ पंचमी ॥
य॑ ते श्येनचार्मवृकं पदाभ॑रदरुणं मानमंध॑सः । ==
बयो वि तताये्युजीवसं एना जागार वंधुततां ॥५॥
. यं।ते। श्येनः । चार। अवृकं । पदा । सा । अभ॑रत्
म०१०. ० ११, सू० १६५.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ ५२५
॥ सोमेन तुभ्यं दीयमानेन वयोऽन्नं जीवसे जीवनायायुजीवितं च वि तारि । प्रा-
दायि । तथेनेतेनेव सोमेन वंभुता वंधुसमूहो जागार । जायात्मवुद्धः सन्वर्तते।
जागर्तिलिदि इंदसि वेति वक्तव्यं । पा० ६.१.४.५.। इति बिव॑चनाभावः ॥
॥ अथ ष्टी ॥
एवा तदिद इटुना देवेषु चिद्धारयति महि त्यजः ।
त्वा वयो वि तायेोयुः सुक्रतो ऋवायमस्मदा सुतः ॥६॥
एव । तत् । इर । इदुना । देवेषु । चित्। धारयाति । महि । त्यज; ।
।। वयः। चि । तारि । आयुः । सुक्रतो इतिं सुऽक्रतो । कतां । अय । अस्मत्।
आ । सुतः ॥६॥
एवेवमुक्तेन प्रकारेण तत्तेनेट्ना सोमेन तृणनिदरो देवेषु चिदेवेष्रस्मासु च
ˆ महि महचजस्तेजो दुःखस्य वजेयितु रक्षणं वा धारयते । धारयति । शिष्टः ` |
| प्रत्यश्कृतः। हे सुक्रतो शोभनकमेचिंदर ऋवा ्रतुनास्माभिरनुषठितेन कणा प्रीतिन॒= ` र
त्वया वयोऽन्नमायुजीवनं च वि तारि । असभ्यं प्रादायि । योऽयमिंदुः क्त्वा
कमणा प्रज्ञानेन वास्रदस्माभिरा सुतोऽभिषुतः । यदहास्मदस्रत्सत्वदाभिमुख्येन
सुतः प्रेरितस्तेनेटुनेत्यन्वयः ॥ ` [त स भ
` ॥ इत्यष्टमस्याष्टमे हितीयो वगः ॥ `
_ इमामिति षडृचं सप्रदशं सूक्तमिंदराणएया आपै । षषी पंक्तिः शि अनुषटभः। `
` अनेन सूक्तेन सपल्या बाधनं प्रतिपाद्यते । अतत एव सूक्तजपादिना सपल्या
1 विनाशो भवति । अततस्तदेवताकमिद् । तथा चानुकरातं । इमामिदराण्युपनिषत्स. ` छ
पत्लीवाधनमानुहुभं त पं्च॑तमिति॥ अस्य सूरस्य विनियोगो भगवतापस्तंवेन = `
` कस्मिधित्सपत्नीप्नपरयोगविेषे दितः । चिः सयेवेः पाठां परिकिरति यदि ` न
वार्ण्यसि वरूणाच्ला निष्करीणामि यदि सोम्यसि सोमाच्च निष्कीणामीति। `
्ोभूत उत्तरयोत्याणो्रानिस्विसृमिरमिमंच्ोत्तरया म्रतिच्छनां हस्तयोराकध्य॒ = `
नकाले वाहुभ्यां भोर परिगहीयात् उपथानिगया वध्वो भवति सपालो
। अयम पा पाठा नामोषधिः खातव्या । ततरि
परयै ॥ऋष्वेद्ः॥
र च प्रथमा ॥
डमां सनाम्योष॑धिं वीरुधं वर्त वत्तमां ।
यया सपत्नीं बाधति ययां संविदे पतिं ॥१॥
इमां । खनामि । ओषधिं । वीरुधं । बत वत्ऽ तमां ।
#
ययां। सऽपत्नी। बाध॑ते । ययां । संऽ विंदते । पतिं ॥१॥
इमामोषधिं पाठाख्यां वीरं ठतारूपां बलवच्तमां स्वका्यकररेऽति
बत्छवतीं खनामि । उन्मूत्यामि । ययौषध्या सपत्नीं । समान एकः पतियेस्याः
सा सपत्नी । तमेषा वधूबोधते हिनस्ति । यया च पतिं भीरं संविंदते सम्य-
गसाधारण्येन लभते ॥
(9 ॥ अथ हित्तीया ॥
# उत्तानपर्णे सुभ॑गे देवजूते सह॑स्वति ।
८ सपत्नी मे परां धम परति मे केव॑त्टं कुर् ॥२॥ [9 |
उत्तान ऽपे । मुऽभ॑गे । देव॑ऽ जते । सह॑स्वति ।
4 सऽपल्नी । मे। परां । धम । पतिं । मे । केव॑त्ं । कुर ॥२॥
हे उत्तानपर्णे । उत्तानान्यध्वेसुसानि पणानि पाणि यस्यासताहभि हे सुभगे --
सोभाग्यहेतुभूते हे देवजूते देवेन सष्टा प्रेणिे हे सहस्वत्भिभवनवति। इशेहेपाटे ` `
मे मम सपत्नीं स्ियं परा धम । परागमय । धमतिर्मतिकमीा । पतिं च मे ममिव
केवलमसाधारणं कुर् ॥
ष
1 -॥ कष तृतीया ।
उत्तराहमुत्तर उ्ञदुलराभ्यः
०१०. ऋ०११. सू० १४५] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥
५ ॥ अथ चतुर्थी ॥ च
नद्यस्या नामं गृन्णामि नो अस्मिचमते जने ।
परामेव प॑रावतं सपत्नीं गमयामसि ॥४॥
नहि । अस्याः । नामं । गृभ्णामि । नो इति । अस्मिन्। रमते। जने ।
अस्याः सपल्या नाम संज्ञामपि न हि गृभ्णामि । नैव गृह्यरामि। उच्चारयामि।
नो सत्ु काचिदस्मिज्ञने सपल्याख्ये रमते । ऋीडति। अपि च तां सपत्नीं परां
परावततमेवातिश्येन दृूरदेशमेव गमयामसि । प्रापयामः। अतिशयेन भचा वि-
योजयाम इत्यथः ॥
॥ अथ पंचमी ॥ = `
अहमस्मि सहमानाय त्वम॑सि सासहिः ।
उभे सह॑स्वती भूवी सपत्नीं मे सहावंहे ॥५॥ ।
अहं । अस्मि) सह॑माना । अथ॑ । तं । असि । ससहिः।
| उभे इतिं । सह॑स्वती इतिं । भूत्वी । सऽ यत्नीं । मे । सहावंहे ॥५॥ ।
हे आओषधि अहं व््रसादात्सहमानास्मि । सपत्न्या अभिभविकी भवामि ।
अथापि च तमपि सासहिरसि । तस्या अमिभविच्री भवसि । खावासुने ऋषि
सहस्वती अभिभविच्यो भूती भूवा मे मम सपत्नीं सहावर । अभिनवाम् ॥
11 ॥ अथय षष्ठी ॥
उप॑ तेऽधां सहमानामभि लांधांसहीयसा। ` त
# ` मामनु म्र ते मनो वहं गोरिव धावतु पथा वारिव धावतु ॥६॥
उप॑।ते। अधां । सहमानां । अभि। वा। अधां सहीयसा।
` मां।अनु। पर ते। मन॑ः । वसं । गोःऽदव । धावतु । पथा । वाऽव ।धावतु॥६॥
५२४ ॥ ऋग्वेदः ॥ [अ० ४, अ० ४. व०४ु.
निदशेनइयसुच्ये । गोरिव । यथा मीर्व्सं शीघं गच्छति पथा निन्नेन मार्गेण
वारिव वार्दकं यथा स्वभावतो गच्छति तदत् । अनेन निदेनइयेनोत्सुक्या-
न तिशयः स्वाभाविकत्वं च प्रतिपाद्यते ॥ .
॥ इत्य्टमस्याष्टमे तृतीयो वर्गः ॥
अरण्यानीति षडुचमष्टादशं सूक्तभिरंमदपुचस्य देवमुनेराधे । महदरए्यमर-
स्थानी । तदेवताकं । आनुष्टभं । तथा चानुक्रातं । अरण्यायेरंमदौ देवमुनिर-
ग्ण्यानीं तुष्टावेति । गतो विनियोगः ॥
॥ तच प्रथमा ॥
अरण्यान्यरण्यान्यसो या प्रेव नश्य॑सि ।
कथा यामं न पुंसि न ता भीरिव विंदतीई ॥१॥
अरण्यानि । अरण्यानि । असो । या । प्रऽईव । नश्य॑सि ।
५. कथा । मामं । न । पृच्छसि । न। तवा । भीःऽईव । विंद्ती ई ॥१।
हे अश्ण्यानि। अरण्यस्य पाल यिची काचिद्धिटेवतारण्यानीति नैरक्ताः। तया.
करणास्तु हिमारणययोमेहच इत्यरण्यस्य महे इषं स्मरंति । अरणयाधिरेवति
| ऽरण्यानि कातराणि प्रति यासौ च प्रेव नश्यसि । डवः संप्रत्यये । नशतिः पाश्च
कमो । अच व्यत्ययेन श्यन् । संप्रति रणाय प्राप्नोषि । यडा निर्जने देशे वतमा-
1
नलानषटेव प्रतीयसे। सा लवं कथा कथं रामं न पृच्छसि । निजैनेऽरण्ये कथं रमसे।
नूनं चा लां भीभैयं न विंदति । न तभते विं । वितर शरुतः । इवः संप्रत्य
परियार्थं वा। अच निक्त । अरण्यान्यरण्यस्य पल्यरण्यमपारी भवति मामा-
दरमणं भवतीति वा । अरण्यानीत्येनामामंचयते । यासावरण्यानि वनानि मरा-
चीव नश्यसि कथं मामं न पृच्छसि न त्वा भीरविद्तीवेतीवः परिभयार्थे वा । नि°
, ३0.) इति 1... ४ | ४ ५ | ८ 4
। ए |
॥
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]
म०१०. अ० ११. सू०१४६.] ॥ अष्टमोऽटकः ॥
वृषारवाय । वृषा सेचनसमर्थो रवः शब्टौ यस्य सूष्छजतुविशेषस्य गिल्याख्यस्य
स तथोक्तः । कटुकश््दवानित्यथैः । तस्मे वृषारवाख्याय वदते ची ची शब्दं कुर्वते
चिक्श्ची चीशब्द् कुवन्नन्यो जंतुरयद्यरोपावति वृषारवाय स्वशब्दस्य प्रत्युचर-
रूपेण चीचीशब्दकरिण उपगच्छति । उपेत्य पालयति वा। तच ह्टातः। आआधा-
टिभिखिि । आ्ाघाटयो घाटलिकाः कांडवीणाः । ताभिधोवयन् निषादादिसप्रस्व-
राशि शोधयन्गायक इव । तदारण्यानिः सारण्यानी महीयते । पूज्यते । इटवरूणे-
त्यादिना ङीष् । तत्सनियोगेनानुगागमः। इादसो हस्वः । अत एव हर्ड्यादि-
सुत्गोपाभावः ॥
। अथ तृतीया ॥
उत्त गावं इवार्दूयुत वेश्मैव हश्यते ।
उत्तो अरण्यानिः सायं शकटीरिव सजति ॥३॥
उत । गाव॑ःऽइव । अदंति । उत । वेश्म॑ऽइव । ह्यते ।
उतो इतिं । अरण्यानिः । सायं । शकटीःऽ६व । सजति ॥ ३॥
उत्तापि च गाव इव गवयाद्या मृगा अस्यामरए्यान्यामरदति । तृणादिकं भक्ष-
यंति । उतापि च तलतागुर्मादिकं वेश्मेव गृहमिव दश्यते । उतो अपि चारण्या-
निरियमरण्यानी सायं सायंकाले । इवः संप्तय्थ । संप्रति शएकटीः शकटान् दावा-
द्याहरणायागतान्सजंति । विसजेयति । यद्वा शक्टीः सजेतीव इश्यते । अहनि
महदरण्यं शकटीभिः प्राय सर्वे जना अरण्ये छतं काष्ठाटिकं शकटीश्ध्यारोप
सार्यकाटे तस्माननिगैखंति । तदभिप्रायेणेदं वचनं ॥
4 ॥ अथ चतुथी ॥
गामगेष आ इयति दावैगेषो अपावधीत्!
वसन्नरण्यान्यां सायम््षदितिं मन्यते ॥४॥
गां । अंग । एषः । आ । इयति । दाई। ्ंग । एषः। अपं । वधीत्
प१३० .॥ ऋण्वेदः॥ . [अ०ए.अ०४, व०५,
महार
|
स्करादिरक्रोश्तीति भीतः सन्मन्यते । बुध्यते ॥ =
ये निवसन्मनुधो नानाविधं पक्िमृगारिकं शब्द् भृखन् अक्तुक्षत्कश्ि्त-
` ` ` ॥आयपचमी॥ +
न वा अरण्यानिहैत्यन्य्चेन्नाभिगच्छति ¦
+ श = ६ १ ५ ट | ~ = प) न ४
स्वादोः फलस्य जग्ध्वाय यथाकामं नि प॑द्यते ॥५॥
न । वे । अरण्यानिः। हंति । अन्यः। च । इत्। न । अभिऽग्छति !
स्वादोः । फलस्य । जग्ध्वाय । यथाऽ काम । नि । पद्यते ॥५॥
न वे न सल्वरण्यानिरर्ण्यानी हंति । तच निवसंतं हिनस्ति । यद्यन्यो व्याघ-
चोरादिनाभिगद्छति। तहि स्वादौ स्सवत खआामरादेः फलस्य ! हितीया्थं षष्ठी । फलं
जग्ध्वाय भक्षयित्वा तच निवसन्पुरुषो यथाकामं यथेच्छं नि पद्यते । निगच्छति ।
वतेते । क्ाप्रत्ययेऽदौ जग्धिस्यत्धि किति । पा०२.४.३६.। इति जग्ध्यादेशः । क्ली
गितियक्॥ ॥
पि ॥ पथ षष्टी ॥
1 पाजनगंधिं । सुरभिं बहन्तामरकुषीवल्कां | 4 ~
प्राहं मृगाणां मातरंमरण्यानिम॑श्सिषं ॥६॥
आंज॑नऽगंधिं । सुरभिं । बहऽखननां । अर्कैषिऽवल्ां।
॥।
प्र। खहं। मृगाणां । मातरं । अरण्यानि । अशंसिषं ॥ £
आजनगंधि । ्ंजनस्येदमां जनं कल्तूयादि । तस्य गंध इव गंधो यस्यास्ताहशी।
उपमानाचचेति ग॑धस्येदतदेशः। अत एव सुरभिं सोरभ्योपेतां बद्धां बहुभिरननेर-
दनीयेः फलमूलादिभिस्पेतां । खकृषी वला । कृषिरेषामस्तीति कृषी
कृषीत्यादिना वलच् । वत्ते इति दीधः । पा०५,२,११२. । तिरवियुक्तां ताहशीं
यिच्रीमर
मृगाणां मातर जनयिच्रीमरण्यानिमरण्यानीमहं प्राशसिषं । उक्तेन प्रकारेण
क
१. सू०१४७.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥
तमिति ॥ तृतीये राचिपयेोये प्रशास्तुः शस्व इटं सूक्तं । सूचितं च । रत्े टधा |
त्यत्पाचमिंदरपानमिति याज्या । खआ०६.४.। इति ॥ „ "५
॥ तच प्रथमा ॥ क
रत दधामि मरथमाय॑ सन्यवेऽहन्यदृं नथ विवेरपः! =
उभे यचा भवतौ रोदसी अनु रेजते मुष्मात्पृथिवी चिदद्रिवः ॥१॥ ।
श्नत्। ते। दधामि । प्रथमाय । मन्यवे । अर्हन् । यत्। वृचं । नथ । विवः । अपः! |
उभे इतिं । यत्। त्वा भव॑तः। रोद॑सी इतिं । अनुं । रेज॑ते । गुष्मात्। पुथिवी। चित्।
अदरिऽवः॥१॥ ` कि | ॐ
हे इद्र ते तव मन्यवे कोपाय तेजसे वा प्रथमाय सुख्याय चरहधामि । चदा
नामादरातिशयः। तदिषयं करोमि । यद्येन मन्युना लं वृबमावरकमसुरं मेधं वा
नये नेतव्यमहन्नवधीः । हत्वा च तेनावृत्ता खप उदकानि च विवेः । इमं लोकं
परत्यागमयः । तस्मे मन्यव इत्यन्वयः । यद्यदोभे रोदसी चयावापृथिव्यौ त्वा त्ाम-
नुसृत्य भवतो वर्तेते । वदधीने छभूतामित्यथेः । तदानी! पृथिवी चित्। पृथिवी.
त्यंतरिछनाम । प्रथितं विस््ीणेमंतरिश्षमपि हे अद्रिवो वजवननिद् नुष्माच्दी-
याह्त्ठादजते । कंपते ॥
| ॥ सथ इडितीया ॥ ५
तवं मायाभिरनवद्य मायिनं अवस्यता मन॑सा वृचम॑दैयः
त्ामिन्नगो वृणते गविष्टिषु तां विरस हव्यास्विषटिषु ॥२॥ ५५६५५ ५
त्वं । मायाभिः । अनवद्य । मायिनं । रवस्यता। मन॑सा । वचं । अदेयः
कके भते , भवानकि
॥ 9 0
लां! इत् । नरः । वृणते । गोऽइषटिषु। लां । विश्वासु । हव्यांसु। इषिघु ॥२॥ ५
हे अनवद्यावद्यरहित प्रश्सयेद् तं मायिनं मायाविनं
४
वृचं मायाभि्वैचना-
भवुिविशेषेव श्रवस्यता थवः घवणीयं यशोऽननं वेच्छता मनसादैयः। अरहि- `
च नरो नेतारोऽगिरसस््वामिल्लामेव गविष्टिषु गवां पणिभिरपहता-
वृण । समभ ! तथा
` ॥ ऋमग्वेट्ः॥ [अ०५,ख०४, व०५,
` . ॥ अथतृतीया॥
रेषु चाकंधि पुरुहूत सूरिषुं वृधासो ये म॑घवन्नानभुमेधं । |
अचेति तोरे तन॑ये परिष्टिषु मेधसाता वाजिनमदहरये धने ॥३॥
.
्
` ओआ। एषु। चारक॑धि। पुऽहूत। सूरिषु । वुधास॑ः। ये। मयऽवन्। ्नभुः। मघं!
अचति । तोके। तन॑ये । परिष्टिषु । मेधऽसाता। वाजिनं । अहये । धने ॥ ३
#
।।
हे पुरत एषु सूरिघ्ना चावंधि। छत्य्थममिदीणयस्व । अभिकामयस्व । कनी
दीप्िकांतिगतिषु। अस्माच्चकैरी तमेतत् । हे मघवन्धनवननिद् ये सूरयो वुधासस्व- `
त्मसादाच्वधमानाः संतो मघं धनमानभुः प्रा्ुवंति । अपि च मेधसाता मेधसातौ
यज्ञे वाजिनं बलवंतमन्नवंतं वेजनवंतं वा तवां येऽचैति पूजयति तोके पुरे तनये
4 तत्पुत्रै परिष्टिषु परित इष्यमाशेषरन्येष्तपि फलेष्रहयेऽलज्जाकरे धने च । एतेषु
` निमित्तेषु सत्सु त्वामेव स्ुत्यादिभिः पूजयंतीत्यथैः ॥ `
#
` ..
| | ४ ॥ अथ चतुर्थीं ॥
स इनु रायः सुभुतस्य चाकनन्मदं यो रस्य रंद्यं चिरेति ।
लावृभो मघवन्दा्ध्वरो मू स वाजँ भते धना नृभिः ॥४॥
सः। इत्। नु । रायः । सुऽभतस्य । चाकनत्। मरद। यः। अस्य । रंय । चिदेतति। ०
लाऽवुंधः। मघऽवन्। दाभुऽखध्वरः! मखु। सः। वाजे भरते। धना नृऽभिः॥६॥ =
॥
॥ ॥
शिः कके कि
स इत् स एव स्तोता सुभृतस्य सुषु संपादितस्य रायो धनस्य दितीयार्थे षष्ठी ।
` ` इहं धनं नु शिरं चाकनत् । कामयते । त्वभत इत्यथैः । रहय । रहो वेगः। तद्है-
` मस्थदस्य मदं सोमपानजन्यं हष यः स्तोता चिकेतति स्तुतिपदेजनाति। हे मध~ ` ५
कन् बावृधस्वया वधितो दाश्वध्वरो दत्तयज्ञो यजमानो नृभिर्नतृभिचछर्वि भै- =
त्येव धना धनानि वाजमन्नं च मषु शीघं भरे । संपादयति ॥
कय रपचमी॥
गान उर वुंधि मघवञ्छग्धि रायः ।
1
म०१०.,ख०११. सूु०१४४.] ॥ अष्टमोऽ टकः ॥ ५३३
हे इद्र लं महिना महता स्तोबेण गृणानः स्तूयमानः सन् शधाय शप बल-
मुरु कृधि । विस्तीणे कुर। हे मघवन् रायो धनानि च शग्धि। अस्मभ्यं प्रय ।
दशेनीयेदर विभक्ता विशेषेण धनानां भाजयिता त्वं भिचो वरुणो न
मिच्रवदरुणवच्च मायी म्र्ञायुक्तः सन् नोऽस्मभ्यं । नः संप्रत्यये । संप्रति पितो
ट्यसे ! प्रयच्छसि ॥
॥ इत्य्टमस्याष्टमे पंचमो वेः ॥
मुध्राणास इति पंचच विंशं सूक्तं वेनपुचस्य पृथोराप चेष्टभमेद्रं । अनुक्रातं
ुष्वाणासः पृथुर्वेन्य इति । गतौ विनियोगः ॥
॥ तच प्रथमा ॥
श्नाणासं इद्र स्तुमसि ला ससवांसं तुविनृम्ण वाजं ।
आ नो भर सुवितं यस्य॑ चाकन्मना तनां सनुयाम त्वोताः ॥१।
सुस्वानासः। इद्र । सुमसिं। त्वा । ससऽवांस॑ः। च । तुविऽनृम्ण। वाजँ ।
# 1
आ । नः। भर् । सुवितं । यस्यं । चाकन् । त्मना। तनां । सनुयाम । त्वा ऽऊताः ॥१॥
५ ५
॥ [कन्व
हे इद् सुध्ाणासः सोममभिषुतवंतो वयं चां स्तुमसि । स्तुमः । हे तुविनृम्ण
बहुलधन वाजं चरूपुरोडाशादिलषणमन्नं ससवांसः संभक्तवंतश्च वयं त्वां स्तुमः।
यत्त एवमतो हेतोर्नो ऽस्मभ्यं सुवितं सुषु प्राप्नव्यं शोभनं धनमा भर । आहर
प्रयच्छ । यद्वा यस्य यज्चनमतिप्रियलेन चाकन् त्वं कामयसे तडनमा भरेत्यथः ।
वयं च त्वौताख्वया रिताः संतस्तना । धननामेतत्। विन्तृतानि धनानि त्मना-
त्मना स्वयमेवान्यनेरपेष्येशेव सनुयाम । तव प्रसादाल्लभेमहि ॥
॥ आथ हितीया॥
ए ष्स्त्वमिंद्र भूर जातो दासीविंशः सूर्यं सद्य
` गुहां हितं गुदं गूल््दमप्सु विभूमसिं ग्रखव॑रे न सोमं ॥२॥
वः । तवं । इट् । शूर । जातः। दासीः । विशः सूर्येण । सद्याः। `
हेतं । गुं । गूढटहं । अप्ऽसु । विभूमसिं। प्रऽसव॑णे। न
॥ ८
ी
` ` नहि. - 2. ५६. कनि, ` ।
५३९ ॥ ऋग्वेदः ॥ | ख० ४, ०४, व°
भ्यभवेः । तथा गुहा गुहायां हितं निहितमत एव गुद्यमहश्यं वलाख्यममुर-
गढं निगदं कुयवाख्यं च चमभिभूतनानसि। वयमपि प्रस्रवणे प्रवणे
ति) नः संप्रत्य्थे । संप्रति सोमं विभृमसि । टये विभूमः। धारयामः
॥ सथ तृतीया ॥
अर्यो वा गिरौ अभ्य॑चे विद्वानृषीं णां विप्रः सुमतिं चकानः
ते स्याम ये रणयैत सोभिरेनोत तुभ्यं रोऽ्ठ्ह भैः ॥३॥
येः) वा। गिर॑ः। भि । सचे । विदान् । षीणां । विप्रः। सुऽ मति । चकानः
॥ 1 1. क | [ । 1 # ॥
ते स्याम । ये। रण्य॑त । सोमेः। एना । उत । तुभ्यं । रथ ऽसखोठ््ह् । भैः ॥३॥ -4
विप्रौ मेधाव्युषीणां सचदशिनां सुमति सुष्टुति चकानः कामयमानो विह्ाज्ञा-
नन् अर्यो वा स्वामी च भवन् हे ईद ईहशस्वं गिरः स्तोतुन् स्ठुती वभ्यचे । सम्यङ्
तमित्यभिपूजय । अपि च ते वयं स्याम भवेम ये सोमेस्त्वां रणयतत रमयति ।
उतापि च हे रथोट्ट्ह स्थेरण्युद्यमान । आ ऊढ स्रोः । रथेन आदी रथोठः
स्रोमाडोश्वेति पररूपं । इहशेद् भदेेक्षणीयेश्वरूपुरोडाशदिभिः साधमेनेमानि `
स्तोचाणि तुभ्यं चटथे क्रियते ॥
~
५
व
॥ अथ चतुर्थीं ॥
इमा बर् तुभ्यं शंसि दा नृभ्यो नृणां भुर शवं;
तमिव सज्र्षुं चाकल चांयस्व गृणत उत स्तीन् ॥४॥
इमा । रह । इट् । तुभ्यं । शंसि । दाः । नुऽ्भ्यः। नृणां । भूर । शव॑ः ।
मिः। भव । सऽक्रतुः। येषु । चाङन् । उत । चायस्व । गुणतः। उत ।
4 ८," १ ॥ ॥ ति ८ [वि
न
०१४९. ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥ ¦
लय । उतापि च स्तीन् । स्त्यायतेरेतूपं । संघीभूय
जमानानपि चायस्व ॥
॥ प्रथ पंचमी ॥
शरुधी हवमिंद्र भूर पृ्यां उत स्तवसे वेन्यस्याकः
॥ मे
ख यस्ते योनिं घृत व॑तमसखवांरूमिनं निशनेदरवयंत वङ्गा; ॥५॥
शुधि । हवं । इट् । मूर । पुष्या; । उत । स्तवसे । वेन्यस्य । अर्कैः!
भेणन्ने # मौ ज ॥ 1
आ। यः। ते। योनिं । घृत ऽवतं। अस्व: । ऊ्मिः। न। निननेः। दूवयं । वक्ता ॥५॥
नके कनके दे शषयेदो भनि
हे गर पृथ्याः पृथोकषेभैम हवमाड्धानं श्रुधि । प्ृणु । उतापि च वेन्यस्य
| भ | [म [ ५
वेनपुचस्य ममकिरमेचैः स्तवसे । स्तूयसे ! यकि प्रापे व्यत्ययेन शप् । यः स्तोता
पृ वतसुटकव॑तं ते तव योनिं निवासभूमिमास्वारभ्यस्वाषीदिभ्यषटत् स्वृ शब्टो-
पतापयोः। खस्माल्लुडिः तिपि बहुलं छंदसीतीडभावे हर्ड्यादित्ठोपे च रात्सस्येति
सलोपः । यदा घुतवं्तमाज्यादिना ` हविषोपेतं योनिं । गृहनामेतत् । यज्ञगृहं
प्राणते लां योऽभिष्टौति तस्य वेन्यस्याकेरित्यन्वयः। अपि च वक्ता वक्तानः ,
क कि
वचरन्यभ्योऽपि हभ्यंत इति वनिप् । ऋंत्यविकारण्छादसः। जसि पृषोद्रादि्रा-
णेत्टोपः। अन्येऽपि सर्वे स्तोतारो निननैः प्रवसेम॑ मोगेरूमि्नो दकसंघ इव टव यंत ।
स्ुतिभिस्वामेवाभिटरवंति । अभिगच्छंति ॥
॥ इत्य्टमस्याष्टमे षष्टो वैः ॥
1,
सविता यंचैरिति पंचर्चमेकविंं सूक्तं हिरण्यस्तूपपुचस्याचत आध बेषभं सवि-
देवत्य । अनुकरांतं च । सविताचनेरण्यसतूपः साविचमिति। गतो विनियोगः ॥
॥ । ॥
॥ तच प्रथमा ॥
ऋत्
~¢.
वदं । सविता ।
५३६ 1 च्ग्वेट्ः॥ ०४, उप० ४, व° 3.
सुखेनावस्थापयति। तथा स एव सवित्तारूभने । पतन प्रति बंधकमालं बनं स्वंभनं। ५
त्दरहिते स्ये द्या दयुतोकम्यहंहत् । हटीकृतवान् । यथाधो न पतति तथात्मी-
दरेवोपयिरवस्थापितवानित्यथेः। अश्वमिव धुनिं कपयितव्यं कंपयितारं वांतरि-
` क्षमता सातं मध्यमस्थानगत्तमतूतते केनायहिंसितिऽत्वरमाणे वा नभसि वायवीयेः
पारेवेदधं समुद्रं मेधमयमेव सवितताधु्त् । उदकानि दोग्धि । यदांतरिक्षमिति
` सप्तस्य प्रथमा । अतू्तेऽतरिघे बं समुदितारं धुनिं कंपनीयं मेघमश्वमिवाधु-
| षत् सवित्ता केश्यति। धुक्ष संदीपनक्ेश्नजी वनेषु । यथा शिष्को ऽश्वं केशयत्येवं
वषेणाय मेधं क्ेश्यतीत्यथेः । अथ निरुक्तं । सविता यतरः पृथिवीमरमयदनार-
भणेऽतरिक्ते सविता द्यामहहदश्वमि वाधुषद्ुनिमंतरिे मेघं बद्चमतूतं बद्वमतृणं
८ इति वात्वरमाण इति वा सविता समुदितारं । नि०१०.३२.। इति ॥ ।
॥ अथ हित्तीया ॥
छ यां समुद्रः स्कभितो व्यौनदपां नपात्सविता तस्यं वेद ।
अतो भूरतं आ उत्थितं रजोऽततो द्यावापृथिवी अंप्रथेतां ॥२।
यच । समुदः । स्कभितः। वि । च्न॑त्। अपा । नयात्। सविता । तस्यं । वेद् । ॥
अतः भूः । अतः। आः। उत्थितं । रज॑ः । अतः। द्यावापृथिवी इतिं । प्रेतां ॥२॥ |
यच यस्मिन॑तरिघे समुदः समुटनशीलौ मेघः स्कभितः स्तंभितो वायुपैवैद्धः `
सन् व्योन्विशेषेण भूमिमुनच्युटकेः केदयति । उदी कदने । अस्माखांटसे कडि
` रूपमेतत् हे अपां नपान्मध्यमस्थान वेन्युताम्रे तव सं वधी सविता प्ररकोदेवस्त- `
स्य ततस्थानं वेद । वेति ! जानाति । अतोऽस्मदेव सवितुभूभूभिरासीत् । अत॒ `
` एवोत्यितमृध्वमेव स्थितं रजोऽतरिषमाः। आसीत् अजायत । अस्दत्टुडि बहुलं
इंदसीतीडभावः। हर््याग्भ्य इति लोपः। अतोऽस्दिव सवितुद्यावापृथिवीद्या-
वापृथिव्यावप्थेतां । विली अणनूतां ॥ = ^
॥ अथय तृतीया ॥ (2
` भपर्णो अंग
म १०. ० ११, सू० १४९.] ॥ अष्टमो ऽ चकं ५३७
अन्यत्सवितृव्यतिरिक्तमिदं देवतांतरं पश्चा पश्चात् । पश्च पश्चा च खदसीति `
निपात्यते । सवितृपेरणानंतरमेव यजतं यष्टव्यमभवत्। केन साधनेन । अमत्यैस्य
मरणरहितस्य भुवनस्य लोकस्य स्वमाख्यस्य संबंधिना भूना भूतेन स्वर्गं उत्पन्नेन
सोमेनेत्यथैः । य्वामत्यैस्य भुवनस्य सं बधीदं देवतांतरं भूना भूम्ना बहुत्वेन युक्तं
वटच्यनभवत् । कुत इत्यत आह । हे अंग स्तोतः सुपणैः शोभनपतनो गरत्मा-
न्सोमस्यापहतो ता्यैः सवितुः म्ररकादस्माहेवात्पूवैः प्रथमभावी सज्ञातः। अतो
हेतुभूतः सुपर्णो गरुू्मानस्य सवितुधंमे धारणमनुसृत्य वतेते । सवितुमेरणाधी-
वगतीनां सोमाहरणमपि तदधीनमिति सवितूपररणानंतरमेव सर्वे सोम-
यगाः प्रव पैः। उ इति पूरकं
॥ अथ चतुर्थी ॥
गावं इव् यामं यूयधिरिवाश्वन्वाघेवं वत्सं सुमना दुहाना ।
तिंरिव जायाममि नो न्यैतु धत दिवः सविता विश्ववारः ॥४॥
गावःऽइव । पाम् मयुंधिःऽइव। मवान् । वाधा ऽव) वत्स । मुऽमनांः। दुहाना ।
पतिःऽइव। जायां। अभि। नः। नि। एतु। धतो । द्वः । सविता। विश्वऽ वा॑रः॥४॥
गाच इव यथारण्ये संचरतो गावो यामं शीघ्रमभिगच्छंति । युयुधिरिव यथा
च युद्धाथेमश्वानभिगच्छति । युध संप्रहारे । आहगमहनजनेत्यबोत्सर्गण्छदसीति
वचनाक्िन्म्रत्ययः । छांद्सं सांहितिकमभ्यासदी्धत्ं । सुमनाः शोभनमनस्का
हाना दोग्धी बहुषयस्का वाथरेव हंभारवात्मकं शब्दे कुर्वती गोययात्मीयं वत्स-
मनिगच्छति । पतिरिव यथा भता जायां स्वभाभा श्ीध्रमभिगच्छति एवमेव `
वित्ता नोऽ स्माच्यभ्येतु। नितरामनिगच्छतु । कीदशः । दिवो दयुतमोकस्य धता
थारयित्तावस्थापयिता वा । अत एव विश्ववारः सर्वेवैरणीयः ॥
1 ॥ अथ पचमी ॥
पः सवित्तयेथां लांगिरसौ जहे
॥ ऋग्वेट्ः ॥ [अ०४,अ०४, व० ७,
हे सवितः प्रेरक त्वा ल्ामांगिरसोऽगिरसः पुचो हिरण्यस्तूपो मम पिता- ~
स्िन्वाजेऽने निमिचभते सति यथा जुद्ध आहूतवान् एवेवमचेन्नेतत्सं सो ऽहं
त्वा त्वामवसेऽवनाय रक्षणा वंटमानः स्तुवन् आद्धयामीति शेषः । आहूय च
सोमस्येव यथा सोमत्छतां प्रति यजमाना जायति यागपयेतं तदरछणे प्रबुद्धा
वतिते तथाहं त्वत्मरिचयी प्रति जागर । जगि । जागर्तेणेस्यत्तमेकवचने रूपं ॥
च निरुक्त । हिरण्यस्तूपो हिरण्यमयस्तृपो हिस्णयमयः स्तृपोऽस्येति वा । सूपः
सख्यायतेः संघातः! सवितयेणा तांगिरसो जुद्धे वाजेऽन्नेऽस्सिचेवं त्वाचेन्नवनाय
वंदमानः सोमस्येवांशुं प्रतिजागम्येहं । नि०१०.,३३.। इति ॥
॥ इत्य्टमस्या्टमे सप्रमो वगः ॥ ।
समिड इति पचचें ाविंशं सूक्तं वसिष्ठपुचस्य मृद्छी रुस्याषेमाग्रेयं । चतुरी
पचम्यावुपरिषशाज्ज्योतिषी चिडाटशष्टकवत्यो । अ्रव्यहेन चतुर्थी जगती वा ।
शटा वृहत्यः । तणा चानुक्रातं । समिज्ञो मृद्धीको वासिष्ठ खाग्रेयं बाहैत मत्ये
उपरिष्टाञ्ज्योतिषी जग्युपात्या वेति । गतौ विनियोगः ॥
त ४ ॥ तच प्रथमा ॥
समिंशित्समिध्यसे देवेभ्यो हव्यवाहन ।
आदि रदवेसुभिनं आ ग॑हि मृन्छीकायं न आ ग॑हि ॥१॥ न
संऽइईद्धः। चित्। सं । इध्यसे । देवेभ्यः । हष्यऽ वाहन ।
। ^ | ॥
आदिः । र्दः । वसुंऽभिः। नः। आ। गहि । मृव्छीकाय॑। नः। आ । गहि ॥१॥
हव्यवाहन हव्यानां हविषां वोढरग्रे समिङधित् संदीप्रोऽपि देवेभ्यो यागार्थं
समिध्यसे । पुनरणुविगिः समिद्धः संदीप्यसे । स त्रमादित्येरारित्यादिभिखि
भगेशेः साध नोऽस्माना गहि । आगच्छ । तथा नोऽस्माकं मृच्छीकाय सुलाय `
५ ( दम्या गहि । यद्वा मृक्छीकायेतत्संज्ञाय नो मद्यमृषये यांसि क्मागच्छ ।
त ॥ अथ हितीया ॥
ण उपागहि ।
1
म० १०. ०११. सु०१५०.] ॥ अष्टमो ऽकः ॥ ५३
हे अग्रे इममस्माभिः क्रियमाणं पुरोवर्तिनं यज्ञमिदं वचः स्तोचं च जुजुषाण:
सेवमान उपागहि । उपागच्छ । हे समिधान समिध्यमान मतसो मतो मनु-
पयास्वा त्वा हवामहे । आहयामहे । मृ्छीकाय सुखयेतत्संज्ञाय वषये लामेवा-
इयामहे ॥ |
॥ थ तृतीया ॥
त्वासु जातवेदसं विश्ववारं गृणे धिया ।
अग्रं दरवो आ व॑ह नः भियत॑तान्मृद्छी काय॑ प्रियन॑तान् ॥३॥
त्वां । ऊ इति । जातऽवेदसं । विष्वऽवारं। गृशे। धिया।
अम्र । देवान् । आ। वह् । नः । प्रियऽव॑तान्। मृव्ठीकाय॑ । पियऽवर॑तान् ॥३॥
५
. हे खम्रे विश्ववारं विश्वैः सर्वैवैरणीयं जातवेदसं जातानां वेदितारं जातप्रज्ं
जात्तधनं वा लासु त्वामेव धिया स्तुत्या गृणे । स्तौमि । गु शब्दे । यादिकः ।
प्वादिवाङ्स्वः। प्रियान् प्रियाणि बतानि कमणि येषां तादशन्देवान्नोऽस्म-
दथेमा वह । आनय । अस्र्यज् प्रापय । मृढ्छीकाय सुखाथेमेतत्संज्ञाय वा मदय
प्रियत्रत्तांस्तानेवावह् ॥
॥ अथ चतुर्थीं ॥
अम्नदेवो देवानामनवत्पुरोहितोऽग्रिं म॑नुथाई ऋष॑यः समीधिरे ।
चे
अभ्रिं महो धन॑सातावहं हुवे मृढ्छीकं धन॑सातये ॥४॥
सम्रिः। देवः। देवाना । अभवत्। पुरःऽरहितः। अम्नि। मनुयाः। ऋष॑यः। सं। ईेधिरे।
मे कवः = शि शे त
भनि । महः। धनंऽसातो । अहं । हुवे । मृच्छीकं । धनंऽसातये ॥४
पुरोहितवदितकायेभवत्। यतत एवमतः कारणाक्मेवाभ्निमृषयोऽतीद्वियाथद्िनो
मनुष्या मानवा यजमानाः समीधिरे, संदीपयंति। अपि च तमग्निं मही
नादिगुणयुक्तोऽग्निर्देवानामन्येषां पुरोहितः पुरस्ताङतोऽभवत्। यडा `
महतं
¢ ॥ ऋग्वेदः ॥ `[अ०४. अ०४, व्०९.
॥ अथ पंचमी ॥ ध 7
अभिरचिं भरदांजं गविष्ठिरं प्राव॑न्नः कण्वं चसरदस्युमाहवे
अम्र वसिं्ठो हवते पुरोहितौ मृढ्छीकायं पुरोर्हितः ॥५॥ ।
अग्निः! अ्चिं। भरत्ऽवाजं। गवििरं। प्र। खआावत्। नः। करं । चसर्दस्यु। आऽ हवे
अभ्रिं । वसिः ! हवते । पुरःऽहितः । मृब्छी काय॑ । पुरःऽहितः ॥५॥
छविं भरदाजं गविष्ठिरं कणं चसटस्यं च नोऽस्मानाहवे संयामेऽ यमग्र
प्रावत् । प्ररषतु । पुरोहितः पुरोहितवदितकारी मम पिता वसिष्ठ ऋषिरभिं
हवते । स्तुतिभिराह्यति। स चाहूतो मृब्छीकाय सुखाथेमेतत्ंज्ञाय वा मद्य पुरो क
हितः पुरोधा देवानां पुरःस्थापयिता भवतु ॥ |
॥ इत्यष्टमस्या्टमेऽषटमो वगैः [माः
प्रयेति पंच चयोविंशं सूक्तमानुष्टभं चरद्ादेवत्यं । कामगोचजा डा ना-
मर्षिका । तथा चानुक्रम्यते । र्या डा कामायनी च्ादमानुष्ुभं लिति ।
लेगिकौ विनियोगः ॥
॥ तच प्रथमा ॥
. श्रडयाभ्निः समिध्यते द्यां हूयते हविः
[ ॥
चिषे
डां भर्गस्य स॒भेनि वचसा वट्यामसि ॥१॥
द्या! अग्निः । सं । इध्यते । श्रहययां हूयते । हविः। `
४ 4 नि | | वच॑सा । दषा । वेदयामसि ॥ ५॥ ॥
ाग्रिगोचर आदरातिश्यो जायते
इविः पुरोडाश्णदिहविश्व
। पड्येव डय
#
यज्च॑ऽसु । इद । मे । उटितं । कृधि ॥२
्णदीनि प्रयच्छतो यजमानस्य प्रियमभीष्टफलं कर ।
तो दातुमिच्छतश्च हे अचे पियं कुरु । मे मम संवंधिषु भोजेषु भोक्कृषु भो-
यशु यज्वसु कृतयज्ेषु जनेषु चेदमुदितसुक्तं प्रियं कृधि । कुर् ॥ `
अथ तृतीया
यथा देवा असुरेषु श्रह्ामुयेषु चा
क ॥ हंतव्या इत्याट-
षु गजसु यषटस्माकम-
तर्व॑त एवं घावत्सु भोजेषु भोकुषु भोगा
स्मतं वधिषु तेषूदितं तेर्कं प्राथितं फलजातं कृधि । कुर् ॥ ` ४
, ष ह ५
। वसुं ॥४।
॥ चछग्वेद्ः ॥ छ०४. ०४, व०१०.
॥ अथ पचमी ॥
श्रां प्रातहैवामहे चचां मध्यंदिनं परिं। ` |
द्वं सूयेस्य निमुचि र्ध चड्धापयेह न॑ः ॥५॥
डां । प्रातः। हवामहे । श्रद्वा । मध्यंदिनं । परि । `
श्रां । सूयेस्य । निऽमुचिं । चदं । श्रत् । धायय । इह । नः ५५॥
` धां देवीं प्रातः पूवद्धिः हवामहे । तथा मध्यंदिनं परि । लक्षणे परेः
प्रवचनीयवं । मध्यंदिनं परिलष्य । मध्यंदिन इत्यथेः। मध्याहेऽपि तां चद्ामा-
इहयामहे । सू्ेस्य सर्वस्य प्रेरकस्यादित्यस्य निमुच्यस्तमयवेत्रायां सायंसमयेऽपि
तामेव च्रह्धामाद् यामहे । इटयूपे हे चवे नोऽस्मानिह लोके कर्मणि वा डा
पय । ्रद्धावतः कुर् ॥
१
#।
॥ इत्य्टमस्याष्टमे नवमो वर्मः ॥ |
॥ इति सायणाचायैविरचिते माधवीये वेदा्प्रकाशे दाश्तय्या दशमे मडल
` ` एकादशोऽनुवाकः ॥
ादशेऽनुवाके चत्वारिशत्सूक्तानि । तच शास इत्येति पंचचं प्रथमं सूक्तं श-
सनान्न आषेमानुषटभमेदं । अनुक्तं च । शसः शासो भारद्वाज इति ॥ यु्ाय
संनखं राजानमनेनेोत । तथा च सूनितं । उथेनमन्वीसेताप्रतिरथशससौपेः
। आ° ग° ३.१२.। इति ॥
॥ तच प्रथमा ॥
शस इत्था महां सस्यमिवरसादो अह्ुतः
न यस्यं हन्यते सला न जीर्यते कट् चन ॥१॥ 1
शसः । इत्था । महान्। ससि । अमिचऽखादः । खहतः। `
+
। सां । न । जीर्यते । कद्।। चन ॥१॥
1 ८१ ५१॥१
५,
“1
म० १०. अ० १२, सू० १५२, ॥ अष्टमो ऽकः ॥ ^” |
तो ॥ अथ हितीया ॥ `
स्विदा विशस्पतिंवचहा विमृधो वशी ।
वृषेद्रः पुर एतु नः सोमपा अभयंकरः ॥२॥
वास्तऽदाः। विशः। पतिः वृचऽहा। विऽमृधः। वशी ।
वृषा । इदः । पुरः। एतु । नः। सोमऽपाः । अभयं ऽकरः ॥२॥
स्वस्तिदा स्वस्तेरविनाशस्य दाता विशस्यतिः सर्वस्याः प्रजायाः पालयिता
वृचहा वृचाणां शत्रूणां हंता विमृधः संमामकारी वशी वशीकता वृषा वर्षिता
कामानां सोमपाः सोमस्य पातिवंविध इदरोऽभयंकरोऽभयस्य भयराहित्यस्य
सन् नोऽस्माकं पुर एतु । पुरतो गच्छतु ॥
॥ अथ तृतीया ॥
रश्छो वि मृधो जहि वि वृचस्य हनुं रूज । व
वि मन्युरभिंट वृचहन्रभिन॑स्याभिदास॑तः ॥३॥
रः । वि। मूधः । जहि। वि । वचस्य । हनू इतिं । सुज ¦
वि। मन्युं । ईट् । वृचऽहन्। सअमि्च॑स्य । अभिऽदासंतः ॥३॥ '
हे इद्र रो राक्षसजातं वि जहि । विनाश्य । मृधः संमामकारिणः शच्च वि
हि । वृतरस्यावरकस्यामुरस्य हनू कपोलप्रातो वि रुज । विशेषेण भ्रौ कुर । हे
वृचहन्निद्र खभिदासतोऽस्मानुपश्षयतो मिचस्य श्चोमेनयुं ऋरोधमपि विनाशय ॥
वि न इदेति वैमृधस्य हविषोऽनुवाक्या । सूचितं च ।
` मृगो न भीमः कुचरो गिरिष्ठाः । आ०२,१०.। इति ॥ ` ति
1 सता. चषी 1
#
नं इट् मृधो जहि नीचा य्॑छ पृतन्यतः
। च । पृतयतः।
अमिदासव्य्रं गमया तम॑ः ॥४॥ =
५४४ ध [ख०४, ०४. ०११.
पृतनाः सेना आत्मन इच्छतो युयुत्समानानपि नीचा यच्छ । नीचीनमवाः
यच्छ । गमय। यः शचरुरस्मानभिदासत्यभित उपक्षपय।
कार मरणलसछणं गमय । प्रापय ॥ > ॥
| ॥ अथ पचमी॥
अरप दिषतो मनोऽप जिज्यासतो वधं । `
# ३)
वि मन्योः एमे यच्छ वरीयो यवया वधं ॥५॥
` ऋअपं॑। इट् । दिषतः। मन॑ः । अपं । जिज्यांसतः । वधं
। मन्योः । शमे । यच्छ् । वरींयः। यवय । वधं ॥५॥
ह इद् दिषतो ष्टुः श्चोमेनोऽप जहि। जिज्यासतोऽ स्माकं वयोहानिमिच्छतश्च
वध हननसाधनमायुधं चाप जहि। मन्योः शसं बंधिनः ऋोधाचास्मानक्ष् । वरीय
मुखं विशेषेण यद्छ । देहि । वधं शुकतं हननं च यवय । स्मतः
` ॥ इत्य्टमस्याष्टमे ट्शमो वः ॥
ईखयंती रिति पंच गायक्दं दितीयं
नामषिकाः। तथा चानुक्रातं । दसयंतीरदेवजामय इद्रमातरो गायचमिति॥ हितीये
9
हं दां पाता सुतं । सा०६.४।
2.4 जच व्च.
इर्यतीरपस्युव इद जातमुपासते = र
भेजानासः सवी ॥१
इसर्यतीः। अपस्यु
~=
1
० अ० १२. सू०१५३.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥ |
॥ अथ इडितीया ॥
५ बत्तरादधि सहसो जात समोज॑सः ॥ [न
तं वुषन्षेद॑सि ॥२॥ #‰' च
। इट् । वर्ात्। अधिं, सहसः । जातः । ओज॑सः । ` ष
चं । वृषन् । वृषा । इत् ! असि ॥२॥ ` |
हे इद्र त्वं सहसः परेषामभिभावुकाइलादधि जातोऽसि । अथि; पंचम्यथा-
दकः । वृ्रादिवधहेतुभूताइलाडेतोस्वं प्रख्यातो भवसीत्यथेः.। अपि च। ध
आजसः। जो नाम वलहेतु हृदयगतं धेथे । तस्मादपि लं जातो ऽसि । हे वृष-
॥ न्वषितस््ं वृषेदसि । कामानां वर्षितेव भवसि ॥ [श
॥ अथ तृतीया ॥ ^
त्मिंदरासि वृहा व्यवतरिछमतिरः। ४
। उद्याम॑स्तश्ना ओज॑सा ॥३॥ क
त्वं । इट् । असि । वृचऽहा । वि । अंतरिक्ष । अतिरः
. उत् । द्यां । अस्तभराः । ओज॑सा ॥३॥ ^ ~
हे इट् तं वृचहासि। शचूणां हंता भवसि। तरिं मध्यमस्थानं च व्यतिरः ५
॥.
त भावारकापनोदनेन म्रावधेयः । चां द्युलोकं चौजसा वलेनोदल्लम्नाः , उ्वैम- `. |
॥ भीः । यथाधो न पतति तथोपयैवस्थापितवानित्यथंः ॥
॥ अथय चतुर्थी ॥ 9
तर्द सजोष॑समके विभि बाहोः। ` 3
वज शिशन ्रोजंसा॥४॥ क
लं । इट् । सऽजोष॑सं । अर । विमि ।बाहोः। =
वज । शिनः । ञोज॑सा ॥४॥ == `
॥
४
त्रिंदराभिभूरंसि विश्वं जातान्योज॑सा ।
स विश्वा गुव स्ाभ॑वः ॥५॥ ।
क 1
तवं । इद् । अभिऽभः । असि । विशा । जातानि । स
सः । विः । सुवः । घा । अभवः ॥५॥
हे इद् त्वं विश्वा सवाणि जातानि जनिमंति भूतान्योजसा बलेनाभिभूरभि-
भविता भवसि । तथा स तादशं विश्वा भ्रुवः सवो भूमीः प्राप्रव्यानि सवाणयपि
स्यानान्यानवः। अभितः प्राप्रोः । भू प्राप्नो ॥
॥ इत्य्टमस्यारम एकादशे वगैः ॥
सोम इति पंच तृत्तीयं सूक्तमानुष्टभं । विवस्वतो दुहिता यम्युषिः ॥ बिय-
माणानां यजमानादीनां वतेनमच प्रतिपाद्यते । खतस्तहेवताकमिदं। तथा चानु-
ऋतं । सोमो यमी भाववृत्तमानुष्ुभं लिति ॥ प्रेतोपस्थान एतत्सूक्तं । सुचित्तं च
सोम एकेभ्य उरूणसावसुतृपा उदुबत्रो । आ०६.१०.। इति ॥
॥ तच प्रथमा ॥
सोम एकेभ्यः पवते धृतमेक उपासते ।
येभ्यो मधुं प्रधावंति तांश्चिदेवापि गच्छतात् ॥१।
सोम॑ः । एकेभ्यः । पवते । चतं । रके । उप॑ । आसते ।
येभ्यः । मधु । प्रऽधाव॑ति । तान्। चित्। एव । अपिं । गच्छतात् ॥
केन्यधिप्पितृभ्यः सोमः पवते । उपभोगाय कुस्यारूपेण प्रवहति
म
य
“ ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥
॥ अथ हितीया ॥ | ति त
तपसा ये अनाधृथास्तप॑सा ये स्व॑येयुः । | 4
पो ये च॑र महस्ता्िदेवापिं गच्छतात् ॥२॥ ` श.
। तपसा। ये। रनाधृथाः। तप॑सा । ये। स्वैः ययुः। द
तपः। ये । चत्रिरे। महः। तान् । चित्। एव । अपिं । गच्छतात् ॥२।॥ "४
ये जनास्दपसा कृच्छचादरायणादिना यताः संतौऽनाधृषयाः पपेरपधुथा भवं- ५
। ` च तपसा, यागादिषूपेण साधनेन स्वयेयुः स्वं यांति प्रा्ुवंति ।ये च
, न्न, © (. स् › क च्छि ६ ।
+~ हो महत्तपौऽ रजसूयाश्चमेधादिकं हिर्ण्यगभीद्युपासनं वा चच्रिरे कुवे-
| प्रव तांश्ित्तानेव तपसिनो हे परेतापि ग्ध ॥
44
4
~>
=
4
वां सहसरदक्षिणास्ांध्िदेवापिं गच्छतात् ॥३॥ 1
युध्यते । प्रऽधनेषु । ूरांसः। ये। तनूऽत्यजंः । = ॥
१। वा । सहस्ंऽदक्षिणाः। तान् । चित्। एव । अपिं । गच्छतात् ॥३॥ (०
_ धनेषु । प्रकीणौन्यसिन्धनानि भवतीति प्रधना: संयामाः । तिषु भरासः
शोयेवंतौ ये युध्यते शचन्सप्रहरति। ये च तनूत्यजः शरीराणां तच त्यक्ताते भवंति, ^.
ये वा ये च सहसरदछिणाः सहसद्िणान्कतूननुषटितवंतलान्तवानेय वमपि
गच्छ । येषू्मेषु लोकेषु ते निवसंति तं लोकं परा्हीत्यथेः ॥ 2
अववतषी॥ = ` ::
ये चित्पूर्व ऋतसाप छतावांन ऋतावुर्धः ४.
ये युध्यते प्रधनेषु शरांसो ये तनूत्यजः + क
ये
ये
| न॑सतो यम ताचदेवापि गतात् ॥४॥ ==
५ छत् ऽसापः । ऋतऽवानः । ऋत् ४
५४४४
नियत तमपि ग्ड ॥
नियोगः॥
भिरिविं
८
ठस्य 1 स
सह॑स्ंऽ नीथाः । कवयं
ऋषीन् । तप॑स्वततः। यम । तपःऽजा
सहसनीथाः सहखनयनाः कवयः ऋंतटशिनो ये सूयेमसुमारित्यं गोपायति
रक्षंति तपस्वतस्तपसा युक्तांस्त पोजांस्तपसः सकाशदेवोत्मनांस्तानृषीन् हे यम
॥ चुग्वेटः ॥
५
॥ तच प्रथमा ॥
अरायि काणे विकटे गिरि ग॑छ सदान्वे
वदस्य सत्वमिस्तेभिंा चातयामसि ॥१॥
सदाने।
चः `, ` शमे ` ` सधे
अरांयि। काणे । विऽक॑टे । गिरि । गच्ड् ।
ऽभिः। तेभिः । ला । चातयामसि ॥१॥
मनये
वान कतेन युक्ता कतवृध ऋतस्य वधेकाश्च भवंति तपस्वतस्तपसा युक्ता
पितृन् हे यम नियत त्वमपि गच्छ ॥
॥ अथ पंचमी ॥
सहस्त॑णीयाः कवयो ये गोपायति सूये ।
ऋषीना्प॑स्वतो यम तपोजाँ अपिं गद्छतात् ॥५॥
: । ये । गोपायंति । सूये ।
८ ॥ इत्यष्टमस्याष्टमे चाटशे वैः ॥ `
#
प° ४. ०४, ० १३.
(नेव
न् । सपि । गच्छतात् ॥५॥
अरायीति पंचचें चतुथे सूक्त भरद्वाजपुचस्य शिरिविटस्याषैमानुष्टभं । जपहो-
मादिभिरिदं सूक्तमश्रीनाश्करं । तचाद्योपात्ययोस्तादश्णेऽथं एव देवता । हिती-
यातृतीये जराद्यणस्पत्ये । पंचमी वेश्वदेवी । अनुक्रम्यते हि । अरायि शिरिबिटो
भारत्राजोऽतष्सीघ्रं डितीयातृतीये बाद्मशस्पत्ये ऋंत्या वेश्वदेवीति । गतो वि-
1
"वामः । इतस्वमेव शीघ्रं गिरिं गद ॥
| ॥ अथ हितीया ॥ ४
चत्तो इत्ासुतः सवौ भूणान्यारषी। = ` व
अराय ब्रह्मणस्पते ती्मुगोहषन्निहि ॥२॥ =`
चत्तो इतिं । इतः। चत्ता। अमसुत॑ः। सवं । भूणानिं। आरुषी! ` ए
अगाय्यं । बरह्मणः । पते । तीद्णंऽभुंग । उत्ऽ छ षन्। इहि ॥२॥ |
ऽस्माल्लोकाच्चस चततैवासाभिनौशितैवामुतोऽमुष्मादपि ल्ो- 4
काच्त्ता हिंसिता भवतु । यालच्मीः सवी सवाणि भणानि गभजातानि सवो- ध
सामोषधीनामंकुराणि या दुभिक्षाधिदेवतारयाहवी भवत्यराय्यं दानविरोधिनीं {5
तां हे ब्र्मणस्यते मंचपालयितर्देव ह तीष्णमुंग तीष्एतेजस्कोहषन् असमरातस्या- `
नाटु्रमयन्िहि । गद् ॥
॥ अथ तृतीया ॥ `
अदो यारु सवते संधः परे अर॑पूरषं। [व
तदा रभस दुहेणो तेन॑ गच्छ परस्तरं ॥३॥
अदः। यत्। दाई। वते । सिंधोः। पारे। अपुरुषं ।
तत्। स्ा। रभस्व। दुहेनो इतिं टुःऽ हनो। ल्ल । गच्छ । परःऽ तर ॥३॥ `
अदो विप्रकृषटदेशे वतेमानमपूरूषं निमाचा पुरूषेश रहितं यदारु
पुरुषो्मास्यं देवताशरीरं सिंधोः परे समुद्रतीरे सवते जल्गस्योपरि च 1
दुेणो दुःखेन हननीय केनापि हंतुमशक्य हे स्वोतरा रभस्व । आलेख!
ˆ उपास्स््ेत्यथं 1 वेत्यथंः । तेन दारूमयेन देवेनोपास्यमानेन परल्तरमतिशयेन तरणीय- `
मुष्टं वैष्णवं तोकं पर आह । हे टुहेणो दुःखेन हननीये १५५३ दु्टह
वाहे अलस्ि समद्रतीरप्रतिऽपूरषं पुर्षेजनरवियुक्तमटोऽ
दास्मबं
तेतेतदाह
५० ` ॥ च्छन्वेद्ः॥ ` [० ४, ०४, ०१३.
ष्ेऽहनि तृतीयसवने बाह्यणद्छसिश्से यड प्राचीरिव्येषा । सूचितं च ।
कपृन्रो यड प्राचीरजगतेति चेते! सा०६.३. । इति ॥ `
क
॥ सेषा चतुर्थी ॥
यन्न प्राचीरजंगंतोरे मंदूरधाणिकीः। `
प
हता इदरस्य शच॑वः सवै वुडुदयां शवः. ॥४॥
। ह । प्राचीः । अजगं । उरः । मंदरऽधारणिकीः।
+
! । इदस्य । शच॑वः । संव । बुद्ुट्ऽ यां शवः ॥४॥
1 ^ ४ धको = श्नि ६ १ ॥ ष ४
मंडरधारिकीमेडरवक्कुत्सितिशब्टकारिण्यो मदनस्य धनस्य धारयिच्यो वा-
लष्स्य उरः । उर्वीं हिंसाथेः । अस्माक्किपि राल्रोप इति वत्रोपः। ततो जसि
रूपमेतत् । हिंसिव्यो यूयं प्राचीः प्रक्षणाचत्यः प्रकृष्टगमनाः स्यो यद यदा
सस्वजगंत्तागच्छत । गमेत्ैडि मध्यमवबहुवचने हांद्सः शपः शुः । तप्तनप्रनथ-
शेति तस्य तनबादेशः। अत एव डङलाभावादनुनासिकलोपो न भवति ।
तदानीमेव सवे इदस्य शवो वुङ्ुटयाश्वः । यांति गच्छतीति याः । अश्नुवतत
इत्याशवः । याश्च त आशवश्च याश्वः । बुद्टवद्यातारो व्यापनशीलाश्च संतो
हता नटा आसन् ॥
॥ अथ पंचमी ॥
परीमे गाम॑नेषत पयेम्निम॑हषत।
देवेष॑क्रत श्रवः क इमां आ दैधषेति॥५॥ .
परिं। इमे। गां । अनेषत । परि । प्रं । अहृषत ।
किते ,':, तेः ववे ` किनि 9 चः चिरे वधे ` पोषे
1 अक्रत । व॑ः कः । इमान्। सा । टधषैति ॥५॥
॥ 1; ४ ४ | ॥ ५ मु \
इमे विश्वे देवा गां । जात्यभिप्रायमेकवचनं । पणिभिरपहताः सवौ देवगवी
घत । पयेनयत । यषटनंगिरसः परिप्रापयन् । ततोऽग्निं च पयेहषत । परितो
यागाथे तच तच गाहेपत्यारिरूपेण स्थापित्तवंत
। ,
+
{ भिं हिन्वतु नो धियः स्तिमाभ्ुभिंवाजिषु क
धनंधनं ॥१॥ |
#
अम्र । हिन्व॑तु। नः। धियः। सरि आणुऽइव । आजिषु ।
न । जेष्म । धनं ऽधनं ॥१॥
नोऽस्मावं धियः कमणि सुतयो वाग्निं हिन्वंतु । प्रेरयतु यागाथेसुद्योजयंतु `
वधेयंतु वा । हि गतौ वृद्धौ च । तच इशांत; । आजिषु संमामेश्वापुमिव यथाणु
श्ाव्रगामिनं सनिं सपेणशीलमश्वं योडारः प्रेरयति तडत् । तेनाग्निना धनंधनं
सवे धनं जेष्म । वयं जयेम ॥
॥ अथ हित्तीया ॥ #
यया गा ्ञाकरं महे सेनयाग्ने तवोत्या
हिन्व मधघर््तये ॥२॥ ऋ"
ययां । गाः। आऽकरांमहे । सेन॑या । अप्र । त् । ऊत्या ।
तां । नः । हिन्व । मघर्तये॥२॥
५^ ४
हे अग्रे सेनयेनेन सह वतमानया सेनारूपया वा यया तवोत्या रक्षया गा `
रामह आभिमुख्येन कुमेहे । लभामह इत्यरथः । तामूतिं नोऽस्माग्हिन्व ।
४4
कमथ । मघत्तये । धनस्य दाना । असराकं धनत्काभायेत्यथेः ॥ ` ५
आभिमविचष्वयेषठ मणासतुः यस आम सयूरमिति तृचो वेकस्यिकोऽनुरूपः। = `
त च । आ ते वत्सो मनो यमान स्पूरं रथिं भर । ०७.४८. इति ॥ =`
॥ ऋण्वेदः ॥ [अ०४.अ०४, व०१४.
आ ! अपे । स्थूरं । रयिं । भर । पृथुं । गोऽम॑तं । अश्विनं । `
अग्धि। खं । वतेय॑ । पणिं ॥३॥
हे अमरे स्थरं स्थूत्ठं वृधं पृथुं विस्तीणे गोमंतं गोभियुक्तमश्चिनमश्योपेत्तं र
धनमा भर । अस्न्यमाहर । प्रयच्छ । समंतरि्मग्धि । वृषटयुदकेः सिं च । यदा-
त्मीयेस्तेजोभिष्येजय । प्रकाश्य । पणिं बशिजमदातारमसुरं वा वतेय। इतो निगे-
मय यद्वा दाने प्रवतेय ॥
॥ अथ चतुर्थी
अग्रे नष्टजमजरमा सूये रोहयो दिवि
दधज्ज्योतिजेनेभ्यः ॥४॥
ग्रे । न्च । अजरं । आया । सूये । रोहयः । दिवि
| क | |
दधत् । ज्योतिः । जनेभ्यः ॥४॥ ( ।
हे अगे नर्च । नस्ति सततं गच्छतीति नक्षबः। नकि गतौ । अभिनक्ी-
त्यादिनाचन्प्रत्ययः। सततं गंतारमजरं जगरहितं सूये सवस्य प्रेरकमारित्यं दिव्यं
तरिष्ष आ रोहयः। उपयेवस्थितवानसि । यद्वा नष्चं कृत्तिकादिकं सूये च टिव्या-
(५ रोहयः । किं कुवन् । जनेभ्यः सर्वेभ्यः प्राणिभ्यो व्यवहारार्थं ज्योतिः प्रकाशं
दधदिदधत् कुवेन्। यथा सर्वेषां प्रकाशो भवति तथोक्ते देशे सूयेमगमय इत्यथे
0 ॥ अथ पंचमी ॥
आम्रं केतर्विंशम॑सि प्रष्ठः शेषं उपस्थसत् । व
नोभा नोते कथो दभा ॥१॥
५
। केतुः । विशं । असि । प्रः । चेष्टः । उपस्यऽसत् । 1
घ॑ । स्तो । वर्यः दत् ॥५॥
ऋ क
क्षि
म०१०, ०१२. सू०१५५.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥
दमा नु कमिति पंचच षं सूक्तमधयु
स्य वा वैश्वदेवं । सवौ िपदास्ष्टुभः। तथा चानुक्रातं । इमा नु भुवन आशः
साधनो वा भोवनो वैश्वदेवं हपट बेष्टभमिति ॥ टशराचस्य दितीये इटोमे चेश्व
वशस्ते वेश्वदेवान्िविदानातयूवैमिदं शंसनोयं। सूचितं च । आ याहि वनसेम
कं बभुरेक इति हिपदासूक्तानि । ०.७, इति ॥ षष्ठेऽहनि तृतीये सवने -.
नालणाच्छसिन उक्थ्यशसख आद्यस्तृचः सोचियः। ततो च अनुरूपार्थे । सूचितं
च । ब्राह्मणच्छसिन इमा नु वं भुवना सीषधामेति पंच । स्ा०४.३.। इति ॥
॥ तच प्रथमा ॥ र
स्मा नु कं भुवना सीषधामेदु् विश्वै च देवाः ॥१॥
इमा । नु । कं । भुव॑ना । सीसधाम । इदः । च । विश्च च।देवाः॥१॥
५५३
चस्य भुवनस्याधे सुवनपुचस्य साधनसं-
इमेमानि प्रहष्यमानानि भुवना भुवनानि नु धिपरं सीषधाम । साधयामः ।
शीकुमेः । कमिति पूरकः । यद्चेमानि सवि भूतजातान्यस्मभ्यं वं सुखं सीष-
धाम । साधयतु । पुरूषव्यत्ययः। इटश्च विश्च सर्वेऽग्ये देवाश्च स्तुत्या प्रीता इममे
त । १ 1 <
॥ अथ हितीया ॥ १
यज्ञं च नन्व च प्रजां चांदिेरिदरः सह चीकुपाति ॥२॥ `
य॒ज्ञं। च । नः । तनव॑ । च । प्रऽजां । च । आदिः । इद! सह । चीकृपाति ॥२॥
त्ये
नोऽस्माकं यज्ञ ज्योतिष्टोमादिकं यागं तन्वं शरीरं च प्रजां पुचादिकां चादि.
पुरवः सह वतमान इट््ीकृपाति । कल्पयतु । यज्ञादिकं स्वष्या-
कवत
भूत्वविता ॥
मरुननिरस्मार
#,
| | ॥ ऋग्वेदः ॥ ० ह, पऽ ८, व् १६,
४ | ॥खयचतूर्थी॥ ~~
हत्वाय देवा असुंरान्यदायन्देवा देवत्व्मभिरक्षमाणः ॥४॥ = `
हत्वाय॑। देवाः । सुरान् । यत्। आय॑न् । देवाः । देव ऽलं । अनिऽरषमाणः ॥६॥
. देवा इद्रादयोऽसुगन्धेभरन्वृादीन्हत्वाय इता विनाश्य यद्यदायन् आगच्छन्
स्वकीयं स्यानं प्राप्नुवन् तदानीं ते देवा देवत्वमात्मीयममृतत्मभिरक्षमाणा सभितः
सवैतो रक्तो ऽभूवन् । बाधकाभावात्सर्वच प्र्यापित्तवंत इत्यधेः ॥
॥ अथ पचमी ॥ ^
प्रतयंच॑मकेमनयञ्छ चींभिरादित्स्विधामिंषिगं पये पश्यन् ॥५।
निके
प्रत्यंचं । अङै। अनयन्। श्वींभिः। खआत्। इत्। स्वधां । इषिरां। परि । पश्यन् ॥५॥
१६
1. ॥ 1 त्वये ति 1 क्रम, क करके
शचीभिः कमेभिः परिचरणात्ममकेः साधेमकंमचेनसाधनं स्तोचं प्रत्य चमिदरादी
प्रत्यंचदनयन्। स्तौतारः प्रापयन् । यदेवमादिटदिनंतरमेवेषिरां गमनशील स्वधां
वृष्युटकं पयेपश्यन्। सर्वे जनाः परितः पश्यंति । यद्वा । इषिरामेषणीयां स्वधां ।
अन्ननामेतत् । हवितेछषणमन्नं सर्वे देवाः परि पश्यंति ॥
` ॥ इ्य्टमस्याष्टमे पंचदशे वगः
सूयेमिति प॑चचं सघ्रमं सूक्त सूयेपुचस्य च्ुःसंलस्याधे स॒येदेवलत्यं गायचं । तथा
चानुक्रातं । सूर्यो नश्वक्षुः सोयेः सौये गायचमिति ॥ अश्विनशसते मूर्योदयाट्बर- 4
काले सोयेकांड इट् सूक्तं । सूचितं च । सूर्यो नो दिव उदु त्यं जातवेदसमिति नव॒ `
।आ०६.५.। इति ॥ दशेपूणेमासयोः सुगादापनात्पू वेभाविनि जपे सूर्यो न इत्येषा ।
सूचितं च । सूर्या नो दिवस्पातु नमो महद्यो नमो अभकेभ्य इति ॥
। | ` ॥ जषेषादयासूक्तेम्रथमा॥
म०१०. ०१२. सू०१५४.] ॥ अष्टमो ऽकः ॥
नोऽस्मान्पातु । रतु । वातो वायुश्च
तु । तया पृथिवीस्यानोऽगिश्च पा
५५५
तिरिकान्मध्यमस्यानगता्ञाधकादस्मान-
थिवेभ्यः पृथिव्यां वतेमानेभ्यः शचुभ्यो नौ
॥ अथ हितीया ॥
जोषां सवितयस्यं ते हर॑; शतं सवां अरति ।
ड
पाहि नो रिबुतः पत॑त्याः॥२॥ ` =
जोषं । सवितः। यस्य॑ । ते । हर॑ । शतं । सवान्। अरति ।
पाहि। नः। दिदयुत॑ः। पतत्याः ॥२॥
हे सवितः सवस्य पररक सूय जोष । अस्मन्सुत्यादिकं सेवस्व । यस्य ते तव हरो
` स्सहरणशीलं तेजः शतं सवान्वहून्यज्ान्मत्यहेति योग्य भवति । यद्वा प्रकाश-
नादिद्वारा पूजयति । स तरं नोऽस्मान्यतत्या निपतत्याः
शचुभिरस्मासु क्षिप्मा-
नाया दिद्युतः । वजनामेतत्। चोतमानायाः शक्तेरा युधात्माहि । रष ॥
॥ अथ तृतीया ॥
चुनो देवः स॑वितता चरने उत प्तः ।
चक्षुधाता द॑धातु नः ॥३॥
चुः । नः । देवः । सविता । चुः । नः । उत । पवतः ।
पके
चष्ुः । धाता । दधातु । नः ॥३॥ `
सविता प्रको देवो नोऽस्माकं चुः मरकाशकमिद्रिमिद्वियानुयाहवं तेजो १
वा दधातु । उतापि च पवेत इदरसहचरः पर्वताख्योऽपि देवो नोऽ स्माकं च्षुदेः `
धातु । धाता
। सवस्य विधाततादितयानामन्यतमश्च नोऽस्माकं चक्षुविद्धातु॥ ` `
ी
}
५५६ ` ॥ऋ्वेद्ः॥ ` [स०८. स०४, व०१७.
नोऽस्माकं चक्षुषे रूपोपलव्थिकारणायेदियाय चुः प्रकाशकं तदानुगाहवं ~
जो हे सूये धेहि । विधेहि । कुर् । यद्वा न इति व्यत्ययेन बहवचनं । चक्षे
;संज्ञाय नो मद्यं चष्षुरिद्वियं वा तेजो वा हे सूये पेहि । प्रयच्छ । तनृभ्यो
स्माकं शरीरेभ्यस्तनयेभ्यो वा विस्य विख्यानाय प्रकाशनाय चक्षुूवदीयं प्रकाशं
वधेहि ! यत एवं त्स्माक्कारणाच्चदीयेन तेजसा वयं चेदं से जगत्स पश्येम ।
म्यग्टूहारो भवेम वि पश्येम च । विविधं च सविशेषं टष्टारो भवेम ॥
ध व 4 छथ पंचमी ॥ क
मुसंहशं त्वा वयं प्रति प्येमसूये। `
वि प॑श्येम नृचक्षसः ॥५॥
मु ऽसंहशं । त्वा । वयं । प्रतिं । पश्येम । सूय ।
| वि। पश्येम । नृऽचरसः ॥५॥ |
हे सूये सुसंहशं सुषु संदर्टारं त्वा त्वां वयं प्रति पश्येम । प्रयेकं द्ष्टारो भूयास्म । 0
या नृचक्षसो नृभिमेनुथेरस्माभिदेषटव्यान्पदाचानि पश्येम । विदृ्टारे भवेम । ५
दया नृचक्षसो नृणां शचुमनुषयाणां हिंसकाः संतो वयं विशिष्टज्ञाना भवेम ॥
॥ इत्य्टमस्याष्टमे षोडश्णे वैः ॥
उदूसाविति षडुचमष्टमं सूक्तमानुषटनं । पुल्रोमतनया शची स्वात्मानमनेना-
स्तौत् अतः सेव्धिः सेवं देवता । तथा चानुक्रोतं । उदसौ षट् पौलोमी शच्या-
त्मानं तुष्टावानुषटभमिति । विनियोगो लिंगादवगंतव्यः। आपर्तंबस्तु सपत्नी-
नाशने सूर्यो पस्थान इदं सूक्तं विनियुक्तवान्। सूयते हि। एतेनैव कामेनोहेरेणा- `
नुवाकेन सदादित्यमुपति्ठत इति। अचैतेनेति प्रकृतं सपत्नीवाधनं परामृश्यते ॥ 4
अगादुदयं मांमको भगः ।
सा 7
0 सः; 5
त्। यज्ञा मामको भगौ मदीयमिदं सौभाग्यसुदगात्।
सूयेस्य तेजो विता ज्ञातवती । यद्वा पतिं भतार विता लब्धवत्यहं
विषासहिविशेषेणाभिभविची सत्यभ्यसासि् । अन्यभूवं । सपत्नीरिति शेषः। सह-
तिरभिभवार्थस्य ल्ुदधेतदूषं । यदवा विषासहिः सपत्नीनामभिभविनी सती यति
भ्यसाकटि। भतारमणभ्यभूवं । यथा मय्येव वशीकृतश्िरं वतेते तथाकाषेमित्यथेः॥
॥ थ हितीया ॥
अहं केतुरहं मूधाहमुपा विवाच॑नी।
ममेदनु ऋतुं प्तिः सेहानायां उपाचरेत् ॥२॥
अहं । केतुः । अहं । मूष । अहं । उमा । विऽवाच॑नी ।
मम॑। इत्। अनं । ऋतुं । पतिः । सेहानायाः। उपऽञ्चाचरेत् ॥२॥ `
1 अहं केतुः केतयि्ी सवस्य ज्ञाची भवामि । अहं मूधा सर्वैश्च वयवेषुं शिर इव
म्रधाननूता च भवामि। अहमुमोहूणो सती पिवाचनी विशेषेण पतिं वाचयिची
भवामि । करोधाविष्टमपि पतिं मयि सवैदा प्रियवचनयुक्तं करोमीत्यथ। सेहा-
नायाः सपत्नीनामभिभवि्या ममेन्ममेव ऋतुं कम वुद्धिं वानुल्य पतिः पा-
लयितता भर्तोपाचरेत्। उपगच्छेत् । नान्यासां पत्नीनां ॥
कक 1 ॥ सथ तृतीया ॥
ममं पुचाः श्चुहणोऽथों मे दुहिता विराट्, `
उताहमस्मि संजया पत्यो मे चोकं उत्तमः ॥३॥
५
` मम पुषा: । शुऽहरनः । अथो इतिं । मे । दुहिता । विऽराट्। `
शचुहणः शत्रणां सपत्ना
देता पुज विरादेषेण राजमाना भवति।
नामस्मि। ता अभिभवामि । अतो हेतो
पल्नानां हंतारो
॥ ऋग्वेदः ॥ [अ०४. अ०४, व०१७.
॥ थय चतुर्थी ॥
* येनेदरौ हविषा कृत्व्यभं वद्युस्युं्तमः
द् तदैक्रि देवा असपत्ना रिल्मुवं ॥४॥ ` | |
येनं । इद्रः । हविषां । कृत्वी । अभ॑वत् दुखी । उत्ऽतमः।
इटं । तत् । अक्रि । देवाः । असपत्ना । कित । अनुवं ॥४॥
॥ व ॥ ि । # 1
येन हविषदरौ मम भता कुली कमणां कतोभवद्नवति । तथा द्युम्नी । दयुम्नं
द्योतमानं यशोऽननं वा । तद्वानु्तम उत्कृ्टतमश्च येन हविषा भवति । हे देवाः
स्तोतार ऋविजः तदिदं हविरक्रि अकारि । जयाथिभिभेवद्धिः क्रियतां । यडा
हे यष्टव्या देवाः तदिदं हविर च्हमपि । करोतेुडीरि मंचे धसेति चटक् । अत
एव कारणादहमसपत्ना ित्े शचुरहिता सस्वभुवं । अभूवं । इांट्सो हस्वः ॥
॥ सथ पंचमी ॥
असपत्ना सपत्नघ्नी जयंत्यभिभूवरी ।
सी „वि, |
आवश्षमन्यासां वर्चो राधो अस्थैयसामिव ॥५॥
असपत्ना । सपत्नऽश्नी । जर्यती । सभिऽभवरी ।
धिति दिकण सेके ~ कषे भरेते
आ । अवृ्षं । अन्यासां । वचैः । राधः। अस्थैयसां ऽइव ॥५॥
असपत्नाशचुका भवामि । कुत इत्यत आह । सपत्नघ्री शचरूणां हंची । अत एवं
जयंती जयं प्राप्ुवत्यभिभूवयेभिभविच्री । भवतेरन्येभ्योऽपि हश्यंत इति कनिप् ।
वनो र चेति डीेफो । ईहश्यहमन्यासां सपत्नीनां वचेस्तेजो राधो धनं चावृष् ।
आ समतादवुष् । अवृश्चिषं । अच्छिदं । चश्वेठड्यूदिचादिडिभावे संयोगादि
खादसं संप्रसारण । तच ह्टांतः। खस्थेयसामिवास्थिरतराणां शरणां
1 यचा
म०१०, अ०१२. सु०१६०.] ॥ अष्टमो ऽटङः ॥
अभिभूवयेभिभविष्यहमिमाः
५५९
सपत्नीः समजेषं । सम्यगन्यभूवं । यथा येन
प्रकारेणाहमस्य वीरस्यदूस्य तदीयपरिजनस्य च विराजानि । विशेषेण राजमान्ना
भवानि । तथा समजैषमित्यथः ॥ क. त
तीवस्येति पंचचं नवमं सूक्तं वेष्ठामिचस्य पूरणस्याषे चेष्टुभमेदरं । तथा चानु-
॥ इत्य्टमस्याष्टमे सप्रटशो वमः ॥
कतं । तीवस्य पंच पूरणो वेष्वामिच इति ॥ तीनसोमाख्य एकाह इटं निष्केव-
स्यनिविड्धानं। सूचितं च। कस्य वीरस्तीवस्याभिवयस इति म्ध्यदिनः। ० ९.७. 1
इति ॥
चितं
तीवस्यानिवयसो अस्य पांहि सर्वरथा वि हरी इह मुंच। `
इट् मा ता यजमानासो अन्ये नि रीरमन्ुभ्यमिमे सुतासः ॥१॥
तीवस्यं । अभिऽ व॑यसः। अस्य । पाहि। स्वैऽरथा । वि। हरी इतिं । इह । मुंच ।
इद । मा । ला! यज॑मानासः । न्ये । नि । रीरमन् । तुर्यं । इमे सुतासः ॥१॥
तीव्स्य तीद्णस्य सिप्रं मद्करस्याभिवयसः। वय इत्यन्ननाम । अभिगतं चर-
पुरोडाणाद्यनरं यस्य ताहशस्यास्य सोमस्य । क्रियायहणं कतेव्यमिति कमश : संप्र
दानत्वाच्चतु्येथे षष्ठी । इहशं सोमं हे इद्र पाहि । पिब । पिवतष्छाटसः शधो
` तुक्। तद्धे सरव॑रा सरणशीलरथो हरी अश्वाविहास्मिन्यज्गृहे वि मुच । रथा-
सृज । हे इद् अस्मततोऽन्ये यजमानासो यजमानास्वा तां मा नि रीरमन् ।
नित्यां मा रमयतु । वयमेव रमयाम इत्यथे । ततस्तुभ्यं दमेव सुतासः सुता
अभिषुता
। इमे प्रत्यकषेणोपलभ्यमानाः सोमा वतैते ॥ ^
महात्रतेऽपि माध्यंदिने सवने बरह्मशसेऽयेतक्तं । तथेव पंचमाररयके
। तीव्रस्याभिवयसो खस्य पाहीति माध्यटिनिइति॥ =
॥ तच प्रथमा॥
म् सोना गिए वाचा धा ककि!
[अ०४. अ० ८, व° १४.
हे इट् तुभ्यं चदयेमेव सुता अभिषुताः सर्वे सोमाः सोत्ास इतः परमभिषो-
श्च तुभ्यमु वदथेमेव । सुनोतेः कृत्यार्थे तवेकेनिति वन्प्रत्ययः । ्वाव्याः खा `
शीघ्रमतंत्यः प्रवतेमाना गिरः स्तुतिरूपा वाचश्च .तलामेवाड्धयंति । आक्रोशयंति ।
हे इट् अद्यास्मिन्काल इदं सवनं प्रातःसवनादिकं जुषाणः सेवमानो विश्वस्य
स्वैस्य विदाञ्ज्ञाता त्मिहासिन्यक्ञे सोमं पाहि पिव ॥
॥ अथ तृत्तीया ॥
य उश्ता मन॑सा सोम॑मस्मे सर्वेहदा देवकामः सुनोति ।
१ . ॥ क्रग्वेटः॥.
॥
ए, ४
नगा इटूस्तस्य परां ददाति प्रशस्तमिचचारमस्मे कृणोति ॥३॥
यः । उशता । मन॑सा । सोमं । अस्मे। सवेऽहदा । देवऽ कामः! सुनोतिं। `
क । गाः । इरः । तस्यं । परां । द्दाति। प्रऽशस्तं । इत्। चार । अस्मे । कृणोति ॥३॥
य उशता कामयमानेन सवेहद् । सवेमविकल्े हृदयं यस्य! यडा सर्वेषामलिजां
हृदयेन । सामथ्यान्मत्र्थो त्वष्यते । हदयवता मनसास्मा इद्राय देवकामो देवमिदं
। कामयमानो यजमानः सोमं सुनोत्यभिषुणोति । इदस्तस्य यजमानस्य गा न परा
, ददाति, परादानं विनाशः। न विनाशयति । अस्मे यजमानाय चारू शोभनमत
एव प्रशस्तं । इदित्यवधारणे | प्रशंसनीयमेव धनं कृणोति । करोति ॥ `
| ॥अथचतुर्थी॥
. दप
च
नुस्य्टो भवत्येषो अस्य यो असमे रेवान सुनोति सोम॑ । `
५ निए प तं दधाति बह्यदिषों ह्॑यनांनुदिषटः ॥४ ८ 0
:। अग्नो । मघऽवा । तं । दधाति । बह्मऽदिषः। हंति ।
अनंनुऽ
०१०. ०१२. सू० १६१.] ॥ खष्टमोऽष्टकः ॥ ५६१
, षा याज्या । इद्वो देवा न इति चैकस्यकस्यापि हविष इयमेव याज्या । सूचितं `
| - च। अश्वायंतो गव्यंतो वाजयंतः भुनं हुवेम मधवानमिंदं । ्ा०२,२०.। इति ॥ ` ४
। ॥ सेषा पंचमी॥. | 4
अशायत गवयतों वाजर्यतो हवामहे चोपंगंतवा । =. ५
आभूष॑त्ते सुमतौ नवायां वयभिंद् ला शुनं हुवेम ॥५॥ (1
॥ अश्ऽ यतः । गव्यंतंः। वाज्यतः। हवामहे, वा। उप॑ंऽगंतवे। ऊइतिं। च
आऽभूर्वतः। ते। सुऽमतौ । नवायां । वयं । इट् । वा। भुनं। हवेम ॥५॥ ।
अश्वा य॑तोऽश्वानिन्छतः। क्यव्यश्वाधस्यादित्यालं । गव्य॑तो गा आत्मन द्छतः। `
न वातो यि प्रत्यय इत्यवादेशः। वाजयंतः । अमरीन्वाजनेन मूपादिना मरज्लयंनः
वा गतिगंधनयोः। णिचि वो विधूनने । पा०७,३.२४.। इति जुगागमः । अस्मा-
चछतयेदुपदेशाल्लसार्वेधातुकस्वरि णानुदाचत्वे शयश्च पिच्लादनुदाचत्वे ततो शिच
एव स्वरः शयते । छपर आह । वाजमन्रमातसन इच्छत इति । तदानीमवयहा-
भावस्वरो दांदसौ द्रव्यो । एवंभूता वयं ह इद् लामुपगंतवा उपगंतु प्राघ्रं हवामहे
आद्धयामहे । गमेस्तुमर्थ सेसेनिति तवेप्रत्ययः। गतिस्तमासे तचे चात्च युगपदिति
गतेः प्रकृतिस्वरत्वसुक्तरपदस्यां नोदात्त! उ इति पूरकः । हे इद् ते तव नवाया-
मभिनवायां प्रशस्तायां सुमतौ शोभनवुद्धा वाभूषंत आ सम॑ताद्ववं्तो वतमानाः ।
६ यद्वा । आ सम॑ताङ्ूषयतोऽ लेकुर्वैतस्तवानुपहवुद्धो वतमाना वयं भ्युनं सुखकरं
1 त्वां हूवेम । आड्टयेम ॥ ध ५
५ ॥ इयष्टमस्या्टमेऽाटशो वर्मः ॥
मुचामीति पंचचै दशमं सूक्त प्रजापतिपुचस्य यश्छनाशनाख्यस्याष । अत्या- `
` चष्ट शिष्टास्वष्टभः। अनादेशे विदो देवता। तथा चानुक्रातं। मुंचामि प्राजापत्यो `
यष्छनाशनो राजयद्ननम्॑यानुष्टविति । हदयरोगगरसुलस्य वयाधिजातस्योपश्म- `
सू हि । व्यप्धित्तस्यातुरस्य य्छगृहीततस्य वा षव्छा- `
मत्वा हविषा जीवनाय कमिवयेतेन । आरगृ०३.६.। इति ॥
प्रथमा ॥ ८
४ थ यंमनेन सूक्तेन होतव्यं । सूच्यते हि।
| प्रे ॥ ऋऋग्वेट्ः ॥ ` प०७, ० ए, व०१९.
मुचामिं । चा । हविषा । जीव॑नाय । वं । अज्ञात ऽयद्सात्। उत्त। राज ऽ यष्मात् ।
यार्हिः। जग्राह । यदि। वा। एतत्। एनं। तस्याः । इदराग्री इति । प्र, म॒मुक्त। एनं ॥१॥ `
हे यष्साभिभूतं हविषानेन चरूणा साधनेन होमेन त्वा ल्ामज्ञातयष्ात् ।
| अयमेतत्सज्ञ इत्यप्रज्लातः शरीरगतो रोगो ऽज्ञात्तयष्ः । ताहश्णद्रौगान्मुचामि ।
| विष्षेषयामि। किमथे । जीवनाय कं । जीवनाथै। इह लीके चिरकात्ावस्या-
| नाथेभि्यथैः। कमिति पूरकः! उतापि च राजयष्सात् । यष्माणं राजा यदस
1 ` रोगौ रजयषः। राजदतादिादुपसजनस्य परनिपातः तस्ादपि वां सुंचामि।
| . यदि वा यदि चेतदेतस्मिन्समय एनं व्याधितं पुरूषं ग्राहिगेहणणीला यहरूपा वि,
देवता जग्राह गृहीतवती तस्या देवत्तायाः सकाशे इद्राम्नौ एनं प्र सुमुक्तं ।
प्रमोचयतं ॥
॥ अथ दितीया ॥
यदि धितायुयेदिं वा परेतो यदि मृत्योरेतिकं नीत एव ¦ |
तमा हरामि निच्छतेरूपस्थादस्यांषमेनं शत्तशंरदाय ॥२॥
यदि। सतिऽ युः । यदि। वा। परांऽइतः। यदि । मृत्योः। ंतिकं। निऽईतः। एव । ५
तं। आ । हरामि । नि;ऽ ऋतिः । उपऽस्यांत्। अस्यापि । एनं । शत ऽ शारदाय ॥२॥
४ यदि स रोगग्रस्तः धितायुः सषीणायुभैवति यटि वा परेतोऽस्मास्लोकात्मरागतो
भैवति। यदिच मृत्योविवस्वतस्यांतिवं निकटं नीतो नितरां प्राप्न एव भवति एवं- छ
ब् भूतमपि तं पुरुषं निछतेः पापदेवताया आयुषः कछषयकारिण्या उपस्यादुपस्यानादा `
हरामि । आनाययामि । आवतेयामि । आहत्य चेनं शतश्णरदाय शतसं वत्सरजी- ए
ममस्याषै । प्रबलं करोमि । स्यु प्रीतिबलनयोः ॥ स
1 1 1 ॥ अथ तृतीया ॥ 1 ५
षेण शतशारदेन शतायुषा हविषाहांषेमेनं। =
1
म" १०.अ०१२. सू० ११] ॥ अषटमोऽष्टकः॥ = क
तत्सहसा । बहुव्रीहो सक््यद्णोरिति षच् समासात । शरद्; संधी शार दः
त् त्तरः । त शारदा यस्य तत्तथोक्तं । बहुतीही पूवैपदप्रकृत्तिस्वरत्वं । अत एव `
“ एताग्रुवा शतसंवत्सरपरिमितमायुजीवनं फल्छभूत यस्य तादृशेन हविषा । यजा
सह साक्ष इद्रः । तेन शतशारदेन शरदां संवत्सराणां शतस्य दातृषेन संबंधिना ` ६
कचा शतायुषा हविषा करणभूतेनेनं य्गृहीतमाहाषे । रोगादनेषं । यथायेन ४
मकारेणेमं पुरुषं शतं शरटः संवत्सरान् । अत्यंतसंयोगे हितीया । एतावतं का- ` |
किदो विश्वस्य सर्वस्य दुरितस्य दुःखस्य पारमवसानं दुःखराह्यं नयाति नयेत् |
तथाहाषेमित्य्थैः ॥ | |
` ॥ अथ चतुर्थी ॥
शतं जीव शरदो वध॑मानः शतं हैमंताञ्छतमु वसंतान्।
शतमिद्रामरी सविता वृहस्यतिः शतायुषा हविषेमं पुन॑दैः ॥४॥
शतं । जीव । शरदः । वधेमानः। शतं । हेम॑तान्। शतं । ऊ इतिं । वसंतान्। `
शतं । इद परी इतिं । सविता। वृहस्यतिः। शतऽ आयुषा, हविषां । इम। पुनः । दुः ॥४॥
हे यद्मादिसृक्त व्मानोऽहरहरमिवृचिं मराघ्रुवश्वं शतं शरदः शतसंख्या-
काञ्शरहतूज्ञीव । प्राणान्धारय । पू वैवदत्यंतसंयोगे डितीया। शतं हेमंतान् हेमं
नि तश्च जीव शतं वसतां । उशब्द्ः समुच्चये । अपि चेदा्ी इट्शयाभरि्च सविता
भरको देवश्च बृहस्यतिवृहतां देवानां पालयिता देवश्च शतायुषा शतसं वत्छरप-
| रिमितस्यायुषो हेतुभूतेन हविषा तणमाणाः संत इमं जनं पुनः । पुनरस्मभ्यं
मादुः ॥
| ॥ अथ पंचमी ॥
` आहाष वाविंदं ल्वा पुनरागाः पुननैव । ष
|-५ स्मीगसपैते चक्षुः सवेमायुंश्च तेऽविदं ॥५॥ ध
आ।अहापै। त्वा। अवि॑ट्। ला पुन॑ः। आ। ऋगाः। पुनःऽनव , `
५ , ऋग । सवे । ते । चकुः ॥ सवे। आयुः । च। ते । अविदट् ॥ ५॥
५६४ | | “६ ॥ ऋग्वेदः ॥ । ॥ इष् ¢, प् ८, -# रट © ¢ |
हे सवग सर्वेरविकलेरेरूपेत ते तव सवै चक्षुः । उपलक्षणमेतत् । इद्वियवभं |
सकल्मविदट् । लब्ध वानस्मि । ते तवायुर्जीवनं च सव संपूणेमविद्ं ॥ ।
॥ इत्य्टमस्या्टम एकोनविंशे वगः ॥ ५
ब्रहमणाभ्रिरिति षडुचमेकादशं सूक्तमानुष्टभं । बद्पुचो रोदा नामिः
` अपप्रसवसमाधानरूपस्य गभेरक्षणस्य प्रतिपाद्यताच्तदेवताकसिद्ं । अनुक्रंतं च
बरह्मणा षड बास्यो रछोहा गभेसंसावे प्रायित्तमानुष्टेमं दीति ॥ विनियोगो लिं-
व ॥ तच प्रथमा ॥
ब्रह्मणाग्निः संविदानो र॑सोहा बाधतामितः
अमीवा यस्ते गभे दुणामा योनिमाशये ॥१॥ |
बरह्मणा । अभ्रिः । संऽविदानः। रस्ःऽहा। बाधतां । इतः
अमीवा। यः । ते। गभे । दुःऽनामा । योनिं । आऽ शये ॥१॥
ब्रह्मणा मेण सह संविदान णेकमत्यं प्राप्नो रणोहा रतां हंताभरिरितोऽस्ा- `
- त्स्यानाद्राक्षसादिकं बाधत । हिनस्तु 1 यो राक्षसोऽमीवा रोगरूपः सन् ते तव॒ `
५
| गभेमाश्य आशेते । लोपस्त आात्मनेपदेष्विति तलोपः। हंतुं प्राप्नोति । दुनीमा- ्
आख्यो रोगः। तदूपः सन् यश्च ते तव योनिं रेतस आधानं ग्भस्यानमारेते तं
बाधतामित्यन्वेयः ॥ | न
॥ अथ हितीया ॥ 4
यस्ते गनैममीवा दुणौमा योनिमाशये । 1
अग्निं ब्रह्म॑णा सह निष्कव्याद॑मनीनश्त् ॥२॥ `
यः ते। गभ। अमीवा दुःऽनामां। योनिं।आऽश्ये।
अभमिः। तं। जहंणा। सह। निः। ऋव्यऽअं। अनीनशत् ॥
लम
०१०. ०१२, सू १६२.] ॥ अष्टमो ऽष्टक
यः। ते । हंति । पतय॑तं। निऽसत्लुं । यः। सरीसृपं ।
जातं । यः। ते । जिर्घासति। तं । इतः। नाशयामसि ॥३॥
योषित् ते तव गभाशये पतय॑ तंतं रेतोरूपेण गच्छ॑तं तदनंतरं तच
निषल्लुं निषीदतं च गभै यो राछसारिरैति हिनस्ति तततो मासचयाट्शवे प्राप्र-
सावयवं सरीसृपं सपेणशीले च गम यो हंति जातं दश्सु मासेपूत्पन्नं ते तव शिम
यो राक्सादिजिांसति हंतुमिच्छति तमितः स्थानान्राश्यामसि। नाश्यामः॥ 7
॥ अथ चतुर्थीं ॥ श 4
यस्तं ऊरू विहर॑त्य॑तरा दंप॑ती शये । [र [र |
योनिं यो अंतरारेष्ट्ि तमितो नाशयामसि ॥४॥ क, ~ 4
यः। ते। ऊरू इति । विऽहरंति। अंतरा दंप॑ती इति दंऽप॑ती । ण्यै ।
1. | योनिं । यः। संतः । सा ररेष््हि। तं । इतः! नाशयामसि ॥४॥ |
1 ^ ह ५ द ह्च त व
| ५ त । ए योषित् ते तवोरू पादमूत्ौ यो ररसादिर्विंहरति ग्मघाताय विशिष्टौ
करोति दंपती स्तरा जायापत्योमैष्ये गभेहननाथ यश्च श्ये शेते यश्च योनिमंतः
` भ्रविश्यरिष््हि निषिक्तं रतो जिद्यास्वादयति। भशयतीव्यथेः। लिह आस्वाटने।
आदादिकः। क्पिलृकादिाल्लवविकस्यः । तं सवैमितो नाश्यामः ॥ `
क ॥ छथ पंचमी ॥
` यस्वा भाता पर्तिभूत्वा जारो भूता निपद्यते
प्रजां यस्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि ॥५॥
। त्वा । भाता । प्तिः । भूता । जारः । भूत्वा । निऽपद्ति।
¢ + | #
| ` `मऽजां। यः। ते। जिर्घासति। तं। इतः। नाशयामसि॥५॥
भूला पतिभतृखूपौ वा भूला ला
राक्षसो भाता भातृरु
| हि र ॥ ऋ्वेट्ः॥ | . । ० ८, ० ४, व् २१,
| ` ॥आखयषष्ठी॥ ` `
| [ यस्वा स्वत्रैन तम॑सा मोहयित्वा निपद्ते।
, म्रजां यज्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि ॥६॥
८4 यः । त्वा । स्वभैन । तम॑सा । मोहयित्वा । निऽ पद्यते ।
प्रजां । यः । ते । जिर्घाौसति । तं । इतः । नाशयामसि ॥६॥
“+ ॥. [ _ ति ष शि
हे योषिद्यो राक्षसादिः स्वघ्रेन स्वघ्रावस्यया तमसा निद्या चा त्वां मोहयित्वा
† प्रापय्य निपद्यते गभेधाताय गद्डति । खन्यद्रतं ॥
॥ इत्य्टमस्या्टमे विंशे वगः ॥
©
छीभ्यामिति षडचं हाटशं सृक्तमानुष्भं। कण्यपगोचोत्मन्रो विवृहा नामिः
यश्मनाशनप्रतिपाद्यत्वाचदेव तावकं कृत्छं सूक्त । अनुक्रांतं च । अक्षीभ्यां विवृह
काश्यपो यष्छघ्चमिति ॥ लेगिङो विनियोगः ॥
॥ तच प्रथमा ॥
असीभ्यां ते नासिकाभ्यां कणीभ्यां डुवुंकादधिं ।
यष शीषण्यं मस्तिष्कान्नि्धाया वि वृहामि ते ॥१।
| अक्षीभ्यां ते। नासिकाभ्यां! कणीभ्यां । डु वुकात्। अधिं ।
यष । शीषेणयं । मस्तिष्कात्। जिद्धायाः । वि । वृहामि । ते ॥१॥
हे यश्छगृहीत ते तवा्ीन्यं चश्ुभ्यो यद्रोगं वि वृहामि । उद्खरयामि ।
छेषयामीत्यथेः । ई च दिव चन इत्यसिशब्टस्येकारांतारेशः । स चोदात्तः ।
कणेभ्यां ्रौताभ्यां च इुबुकाचुबुकादोषटस्याधः
। शिरसि भवो रोगः शीषैण्यः । भवे ट्
॥ अथ इडितीया ॥
मीवाभ्यस्त उष्णिहाभ्यः कीक॑साभ्यो अनूक्यात् । `
दोषणय 4 मंसाभ्यां बाहुभ्यां वि वुंहामि ते ॥२॥
प्ीवाभ्यंः। ते । उष्णिहाभ्यः । कीवव॑साभ्यः । अनूक्यात् । `
यच्छं । दोषण्यं । अंसाभ्यां । बाहुऽभ्यां । वि! वृहामि । ते ॥२॥
हे व्याधिगृहीत उण्णिहाभ्य ऊध
मीवाभ्यो गत्छगताभ्यो धमत्तीभ्यस्ते
वृहामि । उच समवाये। अनूच्यते समवेयत
। ऋहत्टोण्यंत्। चजोः कु धिख्यतोरिति कुत्वं । तिस्वरितः।
अपि च रोष्णोभेवं दोषणयं । पूवेवद्यति दन्नित्यादिना दोः शब्दस्य दोषनादेशः।
पूवेवत्मरकृतिभावः। तमपि यशसं रोगं ते तवांसाभ्यां बाहुभ्यां च वि वृहामि ।
हस्तयोरूष्वेभागावंसावधोभागौ बाहू ॥
॥ अथय तृतीया ॥
आचभ्यस्ते गुट्भ्यो वनिषटोहैद॑याद्िं ।
यष्सं मत॑लाभ्यां यक्त खारि्यो वि वृहामि ते ॥३॥
आभ्यः । ते । गुदांभ्यः। वनिष्ठोः। हृद॑यात्। अधिं!
|) ॥
यष । मत॑लभ्यां। यक्रः । साशिऽभ्य॑ः। वि । वृहामि । ते ॥ ३॥
पुरीतदन्नपानयोराधानभूतं । तत्संबंधिभ्यः
[| णग्वेटः ॥ `
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ऊरूभ्यां ते अष्टीवद्यां पाष्णिभ्यां प्रपदाभ्यां ।
` य्न ओओणिभ्यां भासंदाद्गसंसो वि वहामि ते ॥४॥
ऊरऽभ्यां। ते । अष्ठीवत्ऽभ्या । पाण्िंऽभ्यां । प्रऽप॑दाभ्यां ।
कषमि # # +
॥ खथ चतुर्थी ॥
` यद्र । चोणिंऽभ्यां । ासंदात्। भ॑स॑सः। वि । वृहामि । ते ॥४॥
हे रूगण ते तवोरुभ्यामष्ठीवद्यां जानुभ्यां च यच वि वृहामि । तथार्पा
पादस्यापरभागाभ्यां प्रपदाभ्यां पादाभ्यां च यदं वि वृहामि । खपि
रिभ्यां जंघनाभ्यां च यष्सं वि वृहामि । तथा भासदात्। भसत्करिप्रदेशः
धाद्गससो भासमानात्पायोस्ते तव यदं वि वृहामि ॥
॥ अथं पचमी ॥
मेह नाइनंररणाल्लोमभ्यस्ते नखेभ्यः
यष्सं स्ेस्ादात्मनस्तमिदं वि वुँहामि ते ॥५।
मेह नात्। वनंऽकरंणात्। लोस॑ऽभ्यः। ते । नसेभ्य॑ः।
यच्छं । सवैस्मात्। आत्मनः । तं । इट् । वि । वृहामि। ते ॥५॥
वनंकरणात्। वनसुटकं शारीरं । तत्कियते विसृज्यते येन तनं करणं । तस्मा-
नमेहनान्मेदातते तव लोमभ्यो नरेभ्यश्च यष्सं वि वृहामि किं बहुना । इदमिदानीं
तं यष सवेस्मादात्मनः कृत्स्ञादेव ते तव शरीरादि वृहामि ॥
1. ४. सय षषी ॥ ॥
अंगादंगालोन्नो लोम्नो जातं पवैणिपवंणि ।
गं त्मनि ि न १९१
लोन्नः। जातं । पवेणिऽपर्वसि। `
अग।त्ऽ अगात्
४
म° १०. अ० १२. सू*१६४.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः
पचमी पंक्तिः । दुःस्वप्ननाशनं देवता । तथा चानुक्रातं । अपेहि पंच प्रचेता
स्वप्न पत्यत चिषटुम्मध्यमिति ॥ दैगिङो विनियोगः ॥
॥ तच प्रथमा ॥
अपंहि मनसस्यतेऽपं काम परश्चर ।
परो नि्छत्या आ च॑ष्व वहुधा जीव॑तो सनं; ॥१॥
अपं । इहि ! मनसः पते । अपं । राम । परः। चर ।
परः । निःऽकये। स्रा चघ्छ । बहूधा । जीव॑तः । मन॑ः ॥१॥
मनसस्यते स्वभावस्यस्य मनसः स्वामिन् दुःस्वभ्राधिदेव अपेहि । अपग ।
स्वभावस्थावतो मत्तो निग । निर्गत्य चाप क्राम । देशंतरं ग॑तं पादौ वि ४ सिप।
दूरदेशं गच्छेत्यथैः । अपक्रम्य च परः परस्तादिप्रकृषटे देशे चर । यथेच्छं वर्तस्व ।
अपि च नित्ये पापदेवताये परः परस्ताइतेमानाया आ चस । वयं न वाध.
नीया इति प्रबूहि ! जीवतो मम मनो बहूधा बहुप्रकारं भवति। भोक्तव्येषु बहुषु
विषयेषृत्सुवं सइतेते । अतस्तडिनाशव टुःस्व्रदभेनं नश्यवित्यथं; ॥
॥
॥ अथ इडितीया ॥ |
भदरं वे वरं वृणते भद यजंति दिंणं ।
भदरं वैवस्वते चशुंबेहुना जी व॑तो मन॑: ॥२
भदरं । चै । वर । वृणते । भदरं । युजंति। दधिंणं
भदरं वैवस्वते । चरः । बहुऽचा। जीव॑तः । मन॑ः ॥२॥
अपेहीति पंचचै चयोदट्शं सूक्तं ! आंगिरसस्य प्रचेत आष । तृत्तीया चिष्टुप्
|
(
1
५
|
५८५ ॥ अथ तृतीया ॥
यदाशसां निःशसाभिश्सो पारिम जाय॑तो यत्सपंतः
अम्मिरविश्वान्यपं दुष्कृतान्यजुं्टान्यारे अस्मर्दधातु ॥३॥
यत्। आ्ाऽश्सां। निःऽशसां। अभिऽ शसा । उपऽस्ारिम। जास॑तः। यत्। स्वपतः
अभ्रिः । विश्वानि । खपं॑ । दुःऽकृतानिं । अज्टानि। आरे। अस्मत्। दधातु ॥३।
शनि
;कृतमाशसाशसनेनाभित्राषेण जामतो जागरणावस्यायां वत्तेमाना वय-
सुपारिमोपगतवंतः स्म यच्च स्वपतः स्वावस्थां प्राप्रा उपगत वतः स्म । तथ
निःशसा निःशंसनेन नि्मताभित्ताषेणाभिशसाभिगताभिलषेण च कारणेना-
वस्थाये यहुःकृतमुपागद्धेम तानि विश्वानि सवाणयजु्टान्यसेव्यान्यप्रियाणि वा
कृतानि दुःकमाण्यभ्निरस्मदारेऽस्मत्तौ ट्रदेशेऽप टधातु । अपकृ स्थापयतु ।
वा; ` ॥ अथ चतुर्थीं ॥
दद् बरह्मणएस्पतेऽभिदरोहं चरांमसि। `
प्रचैता न आंगिरसो हिषतां पात्वंहसः ॥४। |
यत्। इट् । बरह्मणः ¦ पते । अभि ऽदरोह् । चरामसि ।
प्रऽचताः। नः। आंगिरसः । दिषतां । पातु । खंह॑सः ॥४॥
हे इद हे बद्मणस्पते युवयोविंषये यदनिदरोहमभितो दोहं पापं दुःस्वभ्रकारणं
चरामस्याचरामः कुमंस्तस्मादभिदीहादस्माचशतमिति शेषः। पि च । आंगि-
गसोऽगिरोभिः स्तोतृभिः स्वांधवः प्रचेताः प्रकृषटज्ञानो वरुणश्च हिषतां बष्टुणा-
मंहस्स्तत्कतुकादस्रहिषयात्पापानोऽस्मान्पातु । रस्तु । यद्ला विभक्तिव्यत्ययः
अगिरसमेगिरोगो । वचनं । मां हिषतामंहसः पातु ।
9: क
५७० ॥ ऋण्वेद्ः॥ ` [अ०४.अ०४.व०२र.
9)
त
स० १०. ०१२. सु०१६५.] ॥ अष्टमो ऽषटकः ॥ ५७१
अन्म । अदय । असनाम । च । अधूम । अनांगसः। वयं । |
नायत्ऽस्वपनः। संऽक्त्पः। पापः। यं । िष्मः। तं । सः। ऋच्छतु । यः! नः। इष्टि ।
तं । ऋच्छतु ॥५॥
अद्यास्मिन्कालेऽजेष्म । जेतव्यानि सवाणि जितवं्ोऽभूम दुःस्वघरस्य न्-
त्वात् । तदनतरमसनाम च संभक्तव्यानि च समभजाम । तथा वयमनागसी
ऽनपराधाच्चाभूम । जायत्स्वप्रावस्ययोः संबंधी पापः पापफलरूपः स संकत्यो
दुःस्वननाध्यवस्तायो यं शत्रुं वयं दिष्मस्तमृच्छतु प्राप्रोतु । यश्च नोऽस्मन्वे्टि तम्-
छतु । प्राघ्रोतु ॥ |
॥ इत्यष्टमस्याष्टमे बाविभो वर्मः ॥ =
देवा इति पंचचं चतुदेशं सूक्तं निच्छेतिपुचस्य कयोताख्यस्यापै चेष्टभं वेश्वदेवं।
तया चानुक्रात । देवा नेतः कपोतः कपोतोपहतो प्रायधित्तमिटं वैश्वदेवमिति॥
कपातो यदि गृहं प्रविशेत्तदानेन सूक्तेन होतव्यं । सृ्यते हि । कपोतश्वेदगारसुप-
हन्यादनुपतेद्वा देवाः कपोत इति प्रत्यृचं जुहयाज्जपेडा । छआ० गृ° ३.9.। इति ॥
॥ तच प्रथमा ॥
देवाः कपोतं इषितो यदिच्छन्दूतो निच्छैत्या इदमाजगाम ।
तस्मा खचोम कृणवाम निष्कृतिं शं नो सस्तु दविपदे शं चतुष्पदे ॥१॥
देवाः। कपोतः । इषितः । यत् । इच्छन् । दूतः। निःऽचछत्याः । इदं । आऽ जगाम !
॥
तस्म। अचाम। कृणवाम । निःऽ्तिं। शं। नः। अस्तु! दिऽपदे। शं । चतुःऽ पदे ॥१।
हे देवा इषितः प्राघ्रो नित्याः पापदेवताया दूतोऽनुचरः कपोतो यदाध-
नमिन अभिलषनिदमस्मदीयं गृहमाजगाम प्राप्नोत् तस्मे वाधनाय तदाध-
ननिवृयथंमचम । युष्मान्हविषा पूजयाम । ततो निष्कृतिं कपीतप्रवेशजन्यस्य
गवाश्वम्रभूतय च र सुखमस्तु ॥
॥अथदितीया॥
नो अस्वनागा द॑वाः शकुनो गृहेषु ।
"9९ | , ॥ग्वेद्ः॥ `
शिवः । कपोतः । इषितः। नः । अस्तु । अनागाः
#
अभ्रिः, हि \ विप्रः जुषतां । हविः नः। परि । हेतिः। पक्षिणीं । नः। वृणक्तु ॥२॥
हे देवा नोऽस्माकं गुहेष्रिषित्तः कपोताख्यः शकुनः प्ली शिवः सुखकरोऽनागा
अपापहेतुश्वास्तु । हि यस्मा्िग्रो मेधाव्यभरिर्नो ऽस्माकं हवियुंष्मभ्यं परिकस्यितं
जुषतां जुषते ऽतो युष्मत्मरसादात्पधिणी पषोपेता हेतिहैेननहेतुः कपोतो नोऽस्मा-
न्परि वृणक्तु । अस्मान्परित्यजतु । मा बाधतामित्यर्धः ॥
देवाः । शुनः । गृहेषु ।
॥ खथ तृतीया ॥
हेतिः पक्षिणी न द॑भाव्यस्मानाष्यां पद् कृणुते अग्रिधाने !
शं नो गोभ्यश्च पुरूषेभ्यश्चास्तु मा नो हिंसीदिह दैवाः कपोतं; ॥३॥
हेतिः। परिणी । न । दभाति । अस्मान्। आष्टा । पदं । कृणुते । अग्मि ऽधार्ने।
शं। नः। गोभ्यंः। च। युस्षेभ्यः। च। अस्तु । मा। नः हिंसीत्। इह। देवाः। कपोतं; ॥३॥
परिणी पक्षोपेता हेतिरेननहेतुः कपोत्तोऽस्मान्न ट्भाति। न हिनस्तु । आघ्यं
व्याप्रायामरण्यान्यामभ्रिधाने। अभ्रिनिंधीयतेऽ सिनित्यभ्रिसहिते प्रदेशे पदं स्थानं
कृणुते। कंरोति। तत्रैव प्रदेशे निवसवित्यथेः। यद्वाप्रत्यसिन्नित्याष्टी पचनशत्वा ¦
तस्यां । अभ्रिधाने यच पचनाम्निनिधीयते तस्मिन्प्रदेशे पटं पादनिधानं कृणुते ।
करोति। तद्धेतुको बाधो नोऽस्माकं न भववित्यथैः। अपि च नोऽस्माकं गोभ्यश्च
पुरुषेभ्यश्च शं सुखं शंसनीयानां दोषाणां शंतिवीस्तु। भवतु । हे देवा इहास्मिन्गृहे
कपोतो नोऽस्मान्मा हिंसीत् । युष्पदनुयहान्मा बाधतां ॥
॥ सथ चतुर्थी
भेत्यक्तपोतंः पदमम्न कृणोति
म० १०. छ० १२. सू०१६६.] ॥ अषटमोऽष्टकः ॥ ५७३
निवीयिमस्तु । प्रहितः प्रेषित एष कपोतो यस्य स्वामिनो टूलोऽनुचरो भवति
नाम मृत्यवे मारयित्रे यमायेतन्नमः प्रणामोऽस्तु । भवतु ॥
॥ अथ पंचमी ॥
ऋचा कपोतं नुदत प्रणोदमिषं मर्दतः परि गां नयध्वं ।
संयोप्यतो दुरितानि विश्वां हित्वा न ऊर प्र प॑तात्मतिंहः ॥५॥
[म
ऋचा । कपोतं । नुदत । प्रऽनोदं । इषं । मदैतः। पर । गां । नयध्वं ।
सं ऽ योपय॑तः। दुःऽइतानिं । विर्वा । हित्वा । नः! ऊँ । प्र । पतात्। पतिः ॥५॥
देवा ऋचा मंत्रेण स्तूयमानाः संतो यूयं प्रणोदं प्रकर्षेण नोट्नीयं बहिः-
कतेव्यं कपोतं पध्िणं नुदत । अस्मातरहात्मेरयत । निगेमयत । तथा मर्दतोऽस्मा-
भिदेचेहेविभिमाचंत इषमन्नं गां च परिणयध्वं ! परितोऽस्मभ्यं प्रापयत । ्
कुवेतः । विश्वा सवाणि दुरितानि कपोतोपहतिजन्यानि दोषजातानि संयोपयं-
तोऽहश्यानि कुवैतः। अपि च पतिष्ठोऽतिश्येन पतिता शीघ्रोत्पातकः कपोतो
नोऽस्माकमूजेमनं हित्वा परित्यज्य प्र पतात्। प्रकर्षेण पततु । पक्षाभ्यासुत्पततु
॥ इत्य्टमस्याष्टमे चयोविं्लो वैः ॥
ऋृषभमिति पंचचै पंचदशं सूक्तं वैराजस्य शाक्घरस्य वषेभाख्यस्यापै
षडष्टका महापंक्तिः । सपल्ननाश्नरूपौऽ्थो देवता । तथा चानुऋतं ।
मृषभो वेराजः शक्रो वा सपत्नप्नमानुष्टभं महापंच्यंतमिति ॥
नं ॥ तच प्रथमा ॥
ऋषभं मां समानानां सपलनानां विषासहिं ।
हतार शचरूणां कृधि विराजं गोप॑तिं गवाँ ॥ १॥
षम । मा । समानानां । सऽ पानां । विऽससर्हि । .
कनै,
हतार । शत्रूणां । कृधि । विऽराजं । गोऽप॑तिं । गवाँ ॥१।
मा मां समानानां सदशन
कुर । तथा सपत्नानां शचणां
५७४ ॥ऋण्वेदः॥ [अ०४, अ०४, वरर,
कृधि । कुर् ! तथा विराजं विशेषेण राजमानं गोपतिं गोस्वामिनं च मां कुर ।
न केवल्मेकस्या एव गोः पतिं अपि तु सवोासामित्याह गवामिति ॥
॥ अथ हिततीया ॥
अहमस्मि सपत्न इवारि ो अंतः
१
सपत्नां मे पदोरिमे सवै अभिरताः ॥२॥
अहं । अस्मि! सपत्न ऽहा। इंदरःऽइव । अरिष्टः । असतः
: । सऽपत्नाः। मे। पदोः। इमे। सरव । सभिऽस्थिताः ॥२॥ `
अहं सपत्नहा सपत्नानां शचणां हतास्मि । भवामि । इद्र इवेंटौ यथा केना-
परहिंसितो भवति तथाहमण्यरिष्टोऽरहिंसितोऽसतोऽत्रणश्च भवामि । इमे हश्य-
मानाः सवे सपल्ना मे मम पदोः पादयोरधोऽधस्तादभिष्ठिता आक्रांता भवंतु ॥
॥ अथ तृतीया ॥
अच्ैव वोऽपिं न्याम्युभे आल्नी' इव उ्ययां ।
वाच॑स्पते नि पेधेमान्यणा मदध॑रं वद॑न् ॥३॥
अच । एव । वः। दपि । नल्यामि । उभे इतिं । आर्त्नी इवेत्यात्नीःऽइव । ज्ययां ।
वाचः। पते। नि । सेध। इमान्। यथां । मत्। अध॑रं । वदान् ॥३॥
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सपत्ना यच देशे यूयं निवसणाचैवास्मिन्नेव देशे वो युष्मानपि नद्यामि ।
अपिनदधान्पाशेवेडान्क्णेमि ज्यया मोव्यार्नी इव । यथा डे धनुषः कोटी हदं |
ध्येते स्पते वाचः शब्दस्य पाल यितर्देव इमान्सपत्नान्नि षेध । `
मरतिषेध । यथा येन प्रकरेण मन्मच्ोऽधरं निकृष्टतरं वदान् वदंति तथानिरु- `
1
वा पु
म० १०.०१२, सू०१६७.] ॥ अष्टमो ऽषट कः ॥ ५७१
` हे सपत्ना अभिभूरभिभविताहं विश्वकर्मेण सवकमशमेण धाना धारके तेजसा
बलेन वा साधमागमं । गतवानसि । अतो वो युष्माकं चित्तं मन आ टटे।
9 येथें कि € । ४ $ कम॑ «9 < |
गृहामि । मनोगतं धेये हरामीत्यथैः। वो युष्माकं बतं कम चाहमा द्दे। वो
युष्मदो यः समितिः संमामस्तं चाहमा ददे । अपहरामि 4, अ
॥ अथ पंचमी ॥ ध भ १ १४
पोगक्षेमं वं आदायाहं भूयासमुत्तम आ वों मूधान॑मक्रमी ।
अधस्यदान्म् उद्त मंदूकां इवोट्कान्मंहूकां उदकादिव ॥५॥ `
॥ 1
योगऽसेमं। वः। आ ऽदाय। अहं । भूयासं । उत्ऽतमः। आ। वः। मुधानं। अक्रमीं,
अथःऽपदात्। म।उत्। वद्त। मंहूकाःऽइव। उद्कात्। मंडूकाः। उट्कात्ऽइईव॥५॥
चितेति चैदम$ मके
ह सपत्ना वौ युष्माकं योगक्षेमं । अप्राप्रस्य धनस्य प्रातनिर्ोगः । प्रा्रस्य `
रणं सषेमः । तटुभयमादाय युष्मत्तो गृहीतवाहमुक्तमः चेष्टो भूयासं । ततौ वो
युष्माकं मूधानं शिर आक्रमीं। आक्रमिषं। पदेनाधितिष्टामि । ऋमेटख्यमो मम्
। पा०७.१.४०.। इट ईटीति सिचो लोपः । अनंतरं मे ममाधस्यदात्यादस्या-
धस्ताइतेमाना यूयमुद्वदत । उचचेरा करोत । उद्कादृटिजलराटधः प्रदेशे वत्ेमानां
मंहूका इव । यथा ते भृश्माक्रो शंति तथोददतेत्यथेः । मंडका उदकादिवेति पुन-
रुक्तिराद्राथी
॥ इत्यष्टमस्याष्टमे चतुर्विंशो वगैः ॥ `
= तुभ्येदमिति चतुच्छ चं षोडशं सूक्तं विश्वामिचजमदग््योराप जागतं । सोमस्य
राज्ञ इत्येषा तृतीया वरूणएविधाचनुमतिधातृसोमवृहस्यतीतिलिगोक्षदेवताका ।
तथा चानुकरतं। तुभ्येद् चतुष्कं विश्वामि्रजमद्री जागतं तृत्तीया लिंगोक्तदेवता
वेति। पक्ष इद् एव देवतान्ये तु निपात्तभाज इति वाश्ब्टस्याथेः। गतो विनियोगः॥ `
त ॥ तच प्रथमा ॥ ४
च्यते मधु चं मृतस्य कलशस्य राजसि! ` 0
५७६ = ॥ ऋष्वेद्ः॥ ¦ [अ०्४. अर, वरप.
1
9 हे इट् इटं मधु सोमतश्णं तुभ्यं वटथे धरि षिच्यते । आहवनीये प्रियते ।
: . त्वमेव सुत्तस्याभिषुतस्य कलशस्य टौणएरत्शवस्थितस्य सोमस्य राजसि । ईशिषे ।
राजतिरेश्वयेकमोा । स तं नोऽस्माकं पुरुवीरं बहुपुत्रं रयि धनं कृधि । कुर् ।
उशष्टः पूरकः । यद्वावधारणे। बहुपुचोपेतमेव धनं कुर् नः केवत्मित्यथेः । तथा
त्वं तपः शतसंख्याश्वमेधल शणं परितपयानुष्टाय स्वः स्वगेमजयः ! जितवानसि
` | ॥ खथ हितीया।
स्वजिं महिं मंदानमधसो हवामहे परि शक्तं सुरत उप॑ ।
इमं नो यज्ञमिह बोध्या ग॑हि स्पृधो जय॑तं मधवांनमी महे ॥२॥
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स्वःऽजितं । म्हि । मंदानं । सध॑सः। हवा महे । परि । शक्र । सुतान् । उप॑
इमं । नः। यज्ञं । इह । बोधि । सा । गहि । स्पृधः । जयतं । मधऽ वानं । ईमहे ॥२।
उक्तप्रकारेण स्वगस्य जेतारं महि महांतमंधसोऽनस्य सोमस्य पानेन मंदानं
मोटमानं हषयतं शक्रं सवे कार्येषु शक्तमिद्ं सुतानुपाभिषुतान्सोमान्प्रति परि हवा-
महे । परित आ्हयामहे ! हे इद् इत्यमाहयमानस्वं नोऽस्साकमिमं यजलमिहा-
स्मिन्यज्ञे बोधि | बध्यस्वं। बुद्धा चा गहि । आगच्छ । स्पुधः स्यधेमानाः शचुसेना
जयत्तमनिभवंतं मघवानं धनवंतं त्वामीमहे । खपेकितानि धनानि याचामहे ॥
1 | ॥आखथतृतीया॥
सोम॑स्य राज्ञो वरुणस्य धमेणि वृहस्यतेरनुंमव्या उ शमेणि। `
तवाहमद्य म॑घवनबुप॑स्तुतो धातविधांतिः कलरर्शौ
` सोमस्य । गाज्ञः। वरूणस्य धमेणि । वृहस्पते: । अनुंऽ मत्याः। ऊ इतिं । शमि
तव । अहं । अद्य । मघऽवन्। उप॑ऽस्तुतौ । धातः । विधांत
कतर्शान्। ख भक्षयं ॥ ३
१०. अ० १२. सू° पदै] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥
॥ अथ चतुथी ॥
मसूतो भक्षमकरं चरावपि सोम॑ चेमं पर॑यमः सूरिन्म॑जे।
सतिन यद्याग॑मं वां प्रतं विश्वामिवजमदम्री दमे ह,
५४ मऽसूतः। भकष । अकरं। चरो। अपिं । सतो । च। इम । प्रथमः। सूरिः। उत्। मूजे।
सूते । सातनं । यद । आ। अग॑मं। वं । मरति ।विष्यमिनजमद्मी इति । दम ॥२॥
हे इद्र प्रसूतस्वया प्रेरितोऽहं चरौ चरणीये चरुणा वां युक्ते यज्ञे भसुमपि |
` भक्षणीयं चवादि हविश्वाकरं । तदथेमकाषै । प्रथमो मुख्यः सूरिः स्तोताहमिमं `
लोम स्तौ च तदथेमुन्मृजे । उन्माज्मिं ! संस्वरोमि । उच्चारयामीत्य्थं ¦ । इटा-
-नीमिंद्रोऽतरातमरूपः सन् सूक्तस्य दृ्टारावृषी संबोध्य ब्रते हे विश्वाभिचजमदप्ी
वां युवां ग्रति दमे यज्ञगृहे सुतेऽभिषुते सोमे सति सातेन संभक्तवयेन धनेन साध॑ `
यदि यदा यसिन्कालेऽहमागममागच्छामि तदा युवां स्तोचं कृर्तमित्यथंः ॥ ` १
| ` ॥ इत्यष्टमस्याष्टमे पंचविंशे वैः ॥
वातस्येति चतु चं सप्रदशं सूक्तं वातमोचस्यानिलास्यस्याै चेष्टभं वायुदेव-
॥ ताकं। तथा चानुकरातं । वाततस्यानित्को वाततायनो वायव्यमिति। गतो विनियोगः।
= ~ 5. :. भतन भर्वना.॥.....
` वातस्य नु महिमानं रथ॑स्य रज्ेति स्तनयन्नस्य घोष॑ः ।
दिविणृग्यात्ुणानिं कृणुतो संति पृथिव्या रेशुमस्य॑न् ॥१॥ . 4
वातस्य । नु । महिमानं । रथ॑स्य । सुजन्। एति । स्वनर्यन्। अस्य । घोषः 0
५ ५ ५
भै
` बाततस्य वायौ रथस्य रंहणशीलस्य महिमानं माहात्यं नु
अस्य वार रिगहृणदिषु विविधं व
थोषः शब्दः तलनयन् गि
ध
#
॥ सय हितीयाः॥
सं परते अनु वातस्य विष्ठा रेन गच्छेति सम॑नं न योषाः! = `
न ५
ताभिः सयुर्सरथं देव ईयतेऽस्य विश्व॑स्य भुव॑नस्य राजां ॥२॥ `
सं। प्र! ईरते। अनुं । वात॑स्य । विऽस्थाः। आ। एनं । गद्धेति। सम॑नं । न । योषां
| , वि |
ताभिः। सऽयुक्। सऽरथं । देवः । ह्यते । अस्य । विश्व॑स्य भुव॑नस्य । राजा
सिति ति
विष्ठा विश्षेणावस्थित्ताः पवेताद्या वातस्य वायोरनुगणं सं प्रेते । संप्रग-
च्छति । यट्भिमुलो वायुवेतेते तदनिसुखाः प्रकपंत इत्यथः । समनं न संयाम-
भिवेनं वायुं योषा अश्वयोषित्नो वडवा आ गति । ताभिवैडवाभिः सयुक्
स्वयमेव युज्यमानं सरयं समानमेकं रथमार्द्य देवो दीयमानो वायुर
गच्छति । इङः गतौ । छस्य विश्वस्य सवस्य भुवनस्य डितीयविकारभाजो भूतजातस्य
राजा स्वामी भवति । यद्वा समनं धृष्टं पुरुषं योषाः काभिन्य इव । णवं वायुं तर- `
गुस्मादिषूपाः स्ियोऽभिग्छंति । ताभिः सरथं सरथं देव ईयत इति ॥
॥ अथतृतीया ॥ =. 1:
अंतरिषषे पथिभिरीयमानो न नि विंश्ते कतमचनाह॑ः।
अपां सखा प्रथमजा ऋतावा क स्विज्जातः कुत आ ब॑भूव ॥३॥
अंतरिसषे। पथिऽभिः। हर्यमानः। न । नि । विशते । कतमत्। चन । अहरिति ।
सला । प्रयमऽजाः। ऋतऽवा,
प ... चोभे पने
५ क ५५९ ॥
स्वित्। जातः। कुत॑ः। आ । बभूव ॥३॥
: पथिभिमेर्गेरीयमानो ग्छन्वायुः कतमच्नाहर-
;॥. ५७. प ५२, |
| ॥ अथ चतुर्थी ॥
आत्मा देवानां भुव॑नस्य गर्भौ यथावशं च॑रति देव णवः । .
धौषा इदस्य भृखिषिरे न रूपं तस्मे वाताय हविषां विधेम ॥४॥ `
सात्मा । देवानां । भुव॑नस्य । गैः । य॒था ऽवं । चरति । देवः ! एषः।
घोषाः। इत् । अस्य । भुखिरे। न । रूपं । तस्मे । वाताय हविषां । विधेम ॥४॥
अयं वायुरदवानामिंदूदीनामप्यात्मा जी वरूपेए नेश्ववस्थानाङ्वनस्यापि भूत-
जातस्य गभो गभैकत्माणरूपेणांतवैत्तमान एष इहो देवौ यथं
देवौ यथावशं यथाकामं
यथेच्छं चरति । वतेते । अनिवारितगतिः सन् कचिच्छीभरं गद्छति कचिच्छनरगतिः
राचिष्कामत्यन्यन्च शरीरं प्रविशतीत्येवं यथेच्छं वतेत इत्यथः । अस्य
वायोरागच्छतो धोषा इच्छन्टा एव भ्र । शूर्यते । रूपं स्वरूपं तुन हश्यते
नीरूपत्वात् । अहग्विषयतेनं शब्देन वानुमीयत इत्यथैः । तस्मे वाताय वायवे
हविषा चर्पुरोडाशदिलक्षणेन विधेम । परिचरेम ॥ `
॥ इत्य्टमस्या्टमे षडंशो वर्गः ॥ `
मयोभूरिति चतु्चमष्टादशं सूक्तं कष्ीवद्नोचस्य एवरस्यापै बेष्टभं गोदिवत्य ।
अनुक्रातं च । मयोभूः शवरः काक्षीवतो गव्यमिति ॥ घासाय वनं प्रति्ठमाना `
गा आदितो. इाभ्यामभिमंच्रणीयाः । सूत्रितं च । गाः प्रति्ठमाना अनुमंचयेत
मयोभूवातो अभि वातूखा इति हाभ्यां । आर गु०२.१०.। इति ॥
|
५५ ॥ तचाद्या॥ `
योभूवातो अभि वातूखा उजेस्वतीरोष॑धीरा रितं ।
पीवस्वतीर्जविरधन्याः पिवंत्रवसायं प
।:। अमि । वातु । उस्राः । उजँस्वतीः । ओष॑धीः । स्च । रिश्ता ।
[ ति |
५
जीवऽधन्याः। पिवतु । अवसाय । पत्ऽव तै 1 रुट् । मृच्छ ॥१॥
7
योमूः सुखस्य भावयिता सन् उखा गा अभि वातु
स्लवतीरोषषीवलरत नृान्य रितं । अ
ट्;ः॥ : .[अ०४८.अ०४, व० २७. |
॥ अप दहितीया॥ ~ ~
याः सरूपा विदूपा एकरूपा यासामप्निरिच्या नामानि वेदं ।
या अंगिंरसस्तपंसेह चक्रु्ताभ्य॑ः पजन्य महि शम य्छ ॥२॥
` याः।सऽद्ूपाः। विऽरूपाः। रकऽरूपाः। यासां । अमिः। इच्यां । नामानि । वेद॑ ।
१
: । अं्गिरसः। तप॑सा । इह । चक्रुः । ताभ्यः । पजन्य । मरि । शम । यच्छ ॥२॥
श्नि चव्य |
ध
या गावः सरूपाः समानरूपा याश्च विरूपा विभिन्बहूपा याचे एकेनैव
वर्शेनोपेता यासां च गवां नामानीडे रतेऽदित इत्यादीनीषच्या यागेन हेतुना-
परिर्वेद जानाति याश्च गा अंगिरस ऋषयस्तपसा पुप्रा्िसाधनेन चिच्ायागा-
दिलक्षणेनेहास्मिसके चक्रुः कृत वं्स्वाभ्यः सवेभ्यो गोभ्यो हे पजन्य महि
महच्छमे भुसं यच्छ । प्रदेहि ॥
ई ॥ 9 ॥
ध बाभ्यां सायं गृहमागद्छतीगा अनुमंचयेत । सूच्यते हि । या देवेषु तन्वमेर-
| यतेति च सूक्तरेषं । आगावीयमेके ! आ० गु ० २,१०.। इति ॥ +
¢ „१५
नि ५९
¢ स. र... 4 तयोराधयातृतीया॥- - - ‰ < |
या देवेषु तन्वं 4मेरयंत यासां सोमो विश्वां रूपाणि वेदं ¦
का अरसयं पला पव॑मानाः मना्॑तीरद मोड रिरीहि ॥२॥ ==
न्वं । रेरयंतत। यासा । सोम॑ः । विश्वा । रूपाणि वेद्। `
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` याः। देवेषु! तनव॑
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| ताः) अस्मभ्यं । पयसा । पिन्वमानाः, प्रजाऽ तीः । इट् । गोऽस्थे । रिरीहि ।
॥ प्क ` ` कनि सापे
या गावो देवेषु यश््येषु तन्वमात्मीयं शरीरमेरयंत हवीरूपेण प्रेरयंति यासां च॒ ॥
विश्वास्वणि रूपाणि रूप सोमो: ४
इद् गो्ठेऽस्मदीये रिरीहि गमय।
५
॥ अष्टमो ऽकः ॥ ` च ,
। एताः । रराणः । चिरे; । देवैः । पितृ
:। उप॑ । नः। गोऽस्थं । आ। अकरित्यंकः। तासां । वय । प्रऽजयां |
देम ॥४॥
५.५।
म्रजापतिविधाता मद्यं स्तोच एता गा रराणः प्रयच्छन् । रातिवये्ययेन श्गनच्। `
छ्यट्सः शप अभ्यस्तानामारिरित्याच्युदाच्तत्वं । विश्वैः सर्वदेवैः पितृभि =
संविदान : सन् श्वाः सतीः क्स्याणीभैवंतीगा नोऽस्माकं गोष्ठं |
,
वरजसुप गोष्टस :। करोतु । तासां गवां प्रजया संतानेन वयं सं सदेम।
संग द्धेमहि । सदेराशिषि लिङि लि्याशिष्यङ् ॥
॥ इत्य्टमस्या्टमे सप्रविंशे वर्मः ॥ ध
आदो ; । इय्टकदिद्ाद्शकवत्यास्तारपंक्ति्चतुथी । तथा चानुक्रांतं ।
विभाङ्धििाद् सौयेः सौय जागतमास्तारपंच्यतमिति ॥ विषुवति निष्केवस्य आद्य-
स्तृचः स्तोचियः। सूचितं च। विभाइवृहत्पिबतु सोम्यं मधु नमो भिचस्य वरुणस्य
स इति स्तोचियानुरूपौ । आ०४.६.। इति ॥ वाजपेयेऽ तिरिक्तोक्यस्य विभा-
हित्येषा शस्ते याज्या । सूच्यते हि । विचाइवृहत्पिवतु सोम्यं मध्विति याज्या तस्य `
गवां शतानां । सा०९.९.! इति ॥
॥ सेषादच्ा ॥ ५
विभाइवृहत्पिंवतु सोम्यं मधवयुदेध्य॑तावविहं। = `
वातजूतो यो अंभिर्॑ति त्मनां परजाः पुपोष पुरुधा पि राजति ॥५॥
` विऽभाट् ।वृहत्। पिवतु । सोम्यं । मष । आः । दत् । यजञऽप॑तौ । अरि ऽहृतं।
` वातं ऽजूतः। यः।अभिऽरक्ति। त्मन।। प्रऽजाः पुपोष। पुरुधा वि। राजति ॥
भजमानो विशेषेण दीणमानः सूर्यो वृहन्महत्यरिवृढं सोम्यं सोम~ `
पिवतु । किं कुवेन्। यज्ञपततौ यजमानेऽ विहूतमकुटिलमायुदेधत् १ कुवन्
वातेन महावायुना मरयैमाणः सन् त्मनात्मना स्वयमे
॥ऋछण्वेदः॥ [अ०्४. अ०४, वर.
„ल : ॥आअथहिततीया॥
विभाडवृहत्सुभुतं वाजसातमं धमेन्दिवो धरुणे सत्य
च श । +
अमिचहा वंचहा दस्युहंतमं ज्योतिजेज्े खमुरहा सपत्नहा ॥२॥
विऽभराट् ! वृहत्। सुऽभूतं । वाज्ऽसात॑मं । धमेन्। दिवः। धरणे । सत्यं । अपिं ।
पि | # `
५
अमिचऽहा। वु्रऽहा । दस्युहन्ऽ तमं । ज्योतिः जज्ञे। अमुर ऽहा। सपत्न ऽ हा ॥२॥
|. वि
वे थाय ॥
विभाड्राजमानं वृहत्मौढं सुभृतं सुपुष्टं वाजसातमं वाजस्याननस्य वत्टस्य वा
रतृततमं धमेन्धमेणि वायुना धारयितये दिवो चुलोकस्य धरणे धारके सूयेमंडले
पितं निसि्र सत्यमविनश्वरममिचहामिबाणमप्रियाणं हंत वृचहा वृचाणामा-
णतां हतृ दस्युहंतमं दस्यूनामुपक्षयितुणं हंतृतममसुरहासुराणं सेप्रणां घातकं
पत्नहा सपत्नानां सहजशचणामपि घातकमीहग्भूतं ज्योतिः सौरं तेजौ जज्ञे ।
त. : ॥ अथय तृत्तीया ॥ 97
८ शेषं ज्योतिषां ज्यो्तिंरूचमं विंश्वजिनजिरुच्यते बृहत् । `
विच्ाङाजो महि सू हण उर प॑प्रथे सह ओजो अतं ॥३,
इटं र ज्योतिषा । जयोिः। उत्ऽ तम। विष्ठऽजित्। धन ऽजित्। उच्यते। वृहत् ।
विश्वऽभाट् । भाजः। म्हि । सूयः । हशे। उर् । पग्रथे। सह॑ः । जः । अच्युतं ॥ ३।
इदं सोरं तेजः चेषं प्रशस्यतमं ज्योतिषामन्येषां यहनस्चादीनामपि ज्योतिः
काशकं अत रए वोच्तमसुत्कृ टं विश्वजित् । विश्वस्य सर्वस्य जेतृ धनजिङनस्य च
तमुच्यते । एवं गुणविश्ि्टिमिति सर्वेरभिधीयते । अपि च विश्वभा-
. ०५ प्रकाशयिता भाजो भाजमानो महि महान्सू्यो हशे दशेनायोर
१
४"
नमगच्छः । प्रा्नोः। विश्वकर्मणा सरवेव्यापारहेतुना `
देवानां हितो यागादिर्विश्वदेव्यः । तडता येन
नानि विश्वा सवोणि ुवनान्युदकानि भौमान्याभृता घममकाल आभतानि भवंति
यद्वा सवेणि भ्रूतजातान्यामृतासमंताहूतानि पोषितानि भवंति । तेन
षेत्यन्वयः
॥ इत्य्टमस्या्टमेऽष्टाविंशो वर्मः ॥ `
त्यमिति चतुच्छेचं विंशं सूक्तं भृगुपुचस्येटस्याषै गायचमेदं । अनुक्रातं च
मिटो भागेवौ गायच्मिति ॥ गतो विनियोगः ! ताद्या ॥
लं त्यमिरतौ रथयमिंद् प्राव॑ः सुतावतः ।
अभुंणोः सोमिनो हवं ॥१॥
त्वं । त्य । इटतः । रथं । इहु । प्र । आवः । मुतऽव॑तः
अणोः । सोमिनः । हवं ॥१॥
हे इट् सुतावतः सुतेनाभिषुतेन सोमेन युक्तस्येटत इटस्य
उसस्तस्। एतत्सज्ञस्यषसत्यं ते प्रसि रथं प्रावः । प्रारक्षः । सोमि
मम हवमाद्दानममृणोः । म्वृणु ॥ `
॥ अथ हितीया ॥
तवं मखस्य दोर्धतः शिरोऽवं त्वचो भरः
अगच्छः सोमिनो गृहं ॥२॥
त्व । मखस्य । दोधतः । शिरः । अवं । त्वचः। भरः
सोमिन॑ः । गृहं ॥२॥
पष्े | ॥ ऋग्वेदट्ः ॥ [अ०४८, अ०४. व०३०.
धनुज्यामच्छिनटटस्य लेव धनुरात्निः शिर उत्पिपेष ! स प्रवर्ग्यो ऽभवदिति
त्वं सोमिनः सोमवतो मम गृहमगच्छः । आगच्छ ॥
॥ अथ तृतीया ॥
चं त्यि म्मालवुपरायं वेनयं ।
श्रा मनस्यवे ॥३॥ `
त्वं । त्यं । इट् । मत्ये । आस्व ऽबुधायं । वेन्यं ।
: । अथाः । मनस्यवे ॥३॥ "4
हे इद्र तव त्यं तं मत्ये मनुं वेन्यं वेनस्य पुचं पृथुमास्ववुघ्ाय । खस्ववुौ नाम
कुशित्। तस्य पुराय मनस्यवे मननीयं स्तोचमिच्छते सुहुः श्वच्छुथाः। सरहिं
वशमनय इत्यथेः ॥
॥ खथ चतुर्थीं ॥
चं त्यर्िंदर् सूय पंथा संतं पुरसतधि ।
देवानां चित्ति वं ॥४॥
लवं । त्यं । इट् । सूये । पश्चा । संतं । पुरः ! कृधि ।
#
देवाना । चित् । तिरः । वरं ॥४॥
हे इट् लं त्यं सूयेमस्तसमये पश्चा पश्चात्तं भवंतं पुरः परेद्यरदयकाले पुरस्ता-
कृधि । करोषि । ठ कारएव्यत्ययः। कीहशं । देवानां चिहेवानामपि तिरस्तिरोहितं ।
तिपि क गत इति ट्विज्ञातं । वशं कांतं ॥ |
॥ इत्य्टमस्याष्टम रकोनजिंशो वर्मः ॥
वि 1
म० १०, अ= १२. सू०१७२.] ॥ अष्टमो ऽष्टकः ॥ ¦
॥त्चप्रयमा॥ ` ० 9
आ याहि वन॑सा सह गाव॑ः सच॑त वतेनिं यटूरधभिः ॥१॥ |
सा । याहि । वन॑सा । सह । गाव॑ः । सचंत । वतेनिं। यत्। ऊध॑ऽभिः॥१॥
हे उषो वनसा वननीयेन तेजसा धनेन साधमा याहि । आगच्छ । गाव उषसौ
वाहनभूता बतनिं रथं सच॑त । सेवंते । अतस्तेन रथेनायाहीत्यथः । यद्या गाव
ऊधमिरुपलचिताः प्रभूताः । पीना इत्यथैः । ता गाव इति संबंधः ॥ `
॥आअथयदिततीया॥
आ याहि वस््यां धिया मं्हि्टो जारयन्मखः सुदानुभिः॥२॥ ` `
आ । याहि । वस्या । धिया । मंहिष्ठ । जारयत्ऽ म॑सः। सुदानुंऽभिः ॥२॥
हे उघो वस्व्या प्रशस्ता धियानुयहवृद्धा कमेणा स्तुत्या वा साधेमा याहि।
आगच्छ । स चोषःकालः सुदानुभिः शेननदानेदातृभिः पुरूषैमेहिष्ठो धनानां टातृ-
तमोऽ एव जारयन्मखः समापयद्यज्ञश्च भवति ॥
व ॥ अथ तुतीया ॥
पितुभृतो न तंतुमित्सुदान॑वः प्रतिं दध्मो यजामसि ॥३॥
पितुऽभूत्तः। न। तंतु! इत्। पुऽदान॑वः। म्रतिं। टध्मः। यजामसि ॥३॥
पतुभृतो नाननस्य भोर इव सुदानवः ोभनदाना वयं तंतुमितंतुं विस्ती णमेव
प्रति दध्मः। उषसं प्र्युपायनरूपेण धारयामः। तेन च यज्ञेन तामुषसं यजामसि ॥
॥। [1
दशमेऽहनि प्रातरनुवाक उषस्ये ऋतावुषो भदरेभिरित्यस्याः स्थान उषा अप
४
ऽजाततां ॥४॥ `
1
9
रा
#।
संवंधि तमोऽथकारमप
, ॥ ऋण्वेद्ः ॥ [अ०४, अ०४. व० ३१.
छ त्वेति षडुचं हाविंशं सूक्तमांगिरसस्य भरुवस्याषमानुष्भं । अभिषिक्तस्य ^
जः स्दुतिरूपोऽर्थो देवता । तथा चानुक्रातं । आ त्वा षड् भुवो राज्ञः स्तुति-
| स्वानुषटुभं षिति॥ राज्ञो युद्धाय संनहनेऽनेन सूक्तेनाभिमंचणं पुरोधसा कर्तव्यं ।
सूचितं च । आ वाहाषेमंतरेधीति पश्चादूथस्यावस्थाय । आ गृ° ३.१२. इति ॥
क. < ॥ तच प्रथमा ॥
आ वाहाषेमंतरेधि धुवस्तिष्ठाविंचाचलिः । `
विशख्वा सवो वांछंतु मा बद्राष्टमधिं भशत् ॥१॥
आ । ल्वा । अहा । अंतः । एधि । धुवः। तिष्ठ! अविंऽचाचल्विः ।
विरशः। ला । सर्वः । वातु । मा । लत्। राष्ट । अधिं । शत् ॥१॥
हे राजन् त्वा चामाहाषे । असमदष्स्य स्वामिषेनानषं। स त्वम॑तरस्मासु मध्य
एधि । स्वामी भव । शरुवो नित्यः सन् अविचाचत्िरतिशयेन चलनरहित रव
सन् तिष्ठ । राष्मधितिष्ट । सवा विशः प्रजास्वां वांख्तु । अयमेवास्माकं रा-
स्विति कामयंतु । वालि इच्छायां । चत् वत्तः सकाशाद्ाष्टं राज्यं माधि भशत्।
मा मरष्यतु । मा वियुक्तं भवतु । भन्णरु अधःपतने ॥
५
॥ खथ डित्तीया ॥ ५६
~ इहेवेधि माप॑ च्योष्ठाः पवेत इवाविंचाचलिः। ` व
` इं इवेह भुवसिेह रा्टमुं धारय ॥२॥
इह । एव । एधि । मा। अप॑ । व्यो्ाः। पवैतःऽइव । अवि ऽ चाचलि
भ पतः तए। १ दं $ इत्य्
# नि
8 शति |
० १०. ० १९. सू०१७३.] ॥ अष्टमो ऽकः ॥
॥ अथ तृतीया ॥
इममिदरौ अदीधरडवं श्रुवेण हविषां । ॥
तस्म सौमो अरिं बवत्तस्मां उ ब्रह्मणस्पतिः ॥ 3॥
इम । इद्रः । अदीधरत् । भुवं । धरवेणं । हविषा
# कवते कि येके
तस्मे । सोम॑ः । अधिं । नवत् तस्मे । ऊ इतिं । ब्रह्मणः । प्तिः ॥३॥
इममभिषिक्तं भुवेण स्थिरेण हविषा त्थ॑माण इटो भवं स्थिरमदीधरत्। धा-
रयतु। सोमश्च तस्मे रा्ञेऽधि वत् अधिब्रवीतु। मदीयोऽ यमिति पस्षपातवचनं
तस्मा उ तस्मा एव बह्मणस्यतिमेचस्य पालको देवश्वाधित्रवीतु ॥
॥ अथ चतुर्थी ॥
ध्रुवा चधरैवा पंथिवी भुवासः पवैता इमे ।
# पथे
धरुवं विश्वमिदं जग॑ङवो राजां विशामयं ॥४॥
॥
द्योः । धरुवा । पृथिवी । धरुवासः । पथैताः। इमे। . `
| ~ प्रक चे ॥ प
धुवं । विश्वं । इटं । जगत् । भवः । राजां । विशं । अयं ॥४॥
द्योधरवा स्थिरा भवति । पृथिवी च भ्रुवा स्थिरा भवति। इमे हश्यमानाः पवता
महीधराश्च धरुवासः सथिरः । इदं विश्वं सवै जगदवं स्थिरं भवति । एवमेवायं
विशं प्रजानां राजा स्वामी सन् भ्रुवः स्थिरो भवतु ॥
इद॑श्वाम्िश्च राष्ट धारयतां धरुवं ॥५॥
ते । राजा । वरुणः । भुवं । देकौ ४
। ते । इद्रः । च । सप्रिः। च । राष्ट । धारयतां । भुवं ॥५॥
` ॥ ऋग्वेदः ॥ ` [अ०४. ०४, व०३२,
॥ खथ षष्टी ॥ ` ` +|
भ्रुवं भ्रवेणं हविषाभि सोम मृशमसि । [ष ४
अथो त इटूः केव॑त्टीविटं बल्विहत॑स्कएत् ॥६॥
भुवं
# ^)
वं । भुवेणं । हविषां । अभि । सोम॑ । मृशमतसि। `
` अथो इतिं! ते। इदः । केव॑त्टीः । विशः । बल्विऽहतंः । करन् ॥६॥
५ ^ # न ् + । [पीं | ॥ नि, = + त १०. भः
श्रुवेण स्थिरेण हविषा पुरोडाशदिना युक्तं धुवं स्थिरं सोममनि मृशमसि ।
अभिमृशामः। देवत्तामभिलृष्य यागाथ वयमृषिजः संस्युशणमः। अथो अथानं-
तरमेवेदो विशः प्रजास्ते तवेव केवत्मीरसाधार्णाः सतीबेल्ठिहतः करस्य प्रदाचीः `
करत् । करोतु ॥ | षः तं `
॥ इत्य्टमस्याष्टम एक्चिंश्णे वगः ॥
अभीवर्तिनेति पंचचै चयोविंशं सूक्तमांगिरसस्याभीवताख्यस्याषमानुषटभं। पूवै-
दाजस्तुतिर्देवता । तथा चानुक्रातं । अभी वत्तेन पंचाभी वते इति ॥ पुरोहित इद्
सूक्तं राजानं युद्धाय कृतसंनाहं वाचयीत । सूच्यते हि । अथेनं सारयमाणसुपा-
सद्याभीवते वाचयति । आ गु° ३.१२.। इति ॥
` ॥ तच प्रथमा ॥ ष
, -अनीवर्तिनं हविषा येनेदरौ खभिवावृते। .
ष # भके. कन्थे
तेनास्मान्बर॑दहमणस्यतेऽमि राष्टायं वतेय ॥१॥
अभिऽवर्तिनं। हविषां । येनं । इद्रः । अभिऽववृते। ` र
॥ ह 1
तेनं । खस्मान् । बद्यणः। पते । खमि । राष्टायं । वतयं ॥१॥
अभीवर्तेन । सभिगच्छत्यनेनेत्यमनी वतेः। करणे घञ् । चाथादिस्वरेणोचग्पदा- `
तोदा्ततं । उपसगस्य घञ्यमनुथे बहुत्मिति दीधः! इहशेन येन हविषा साध-
नेनेदरौऽभिववृते सवैमभिजगाम तेन हविषे्टवतोऽ सान् हे बह्मण वर
राज्यं प्राघ्रमभि वतेय । अभिगमय ॥
म०१०. अ०१२. सू०१३४.] ॥ अष्टमो ऽषटकः
अनिऽवृत्य । सऽपत्नान्। अभि। याः। नः। अरातयः!
पृतन्यतं। तिष्ठ । अभि। यः। नः । इरस्य
।त
॥ अथ तृतीया ॥ `
अभि तवां देवः सविताभि सोमो अवीवृतत्! `
अमि त्वा विश्वां भूता्यभीवर्तो यथास॑सि ॥३॥
अनि । ला । देवः । सविता । अभि । सोम॑ः । अवीवृतत् ।
अभि। त्वा । विन्वां। भूतानि । अभिऽवतैः । यथा| । असंसि ॥ ३॥
# चि
हे राजन् देवो दानादिगुणयुक्तः सविता त्वा वामभ्यवीवृतत् । अभिवतेयत ।
अनभिगमयतु राष्ट । सोमश्वाभिवतैयतु । विष्ठा विश्वानि सवोण्यपि भूतानि
पृथिव्यादीनि त्वामभि वतेयतु । यथा येन प्रकरेण त्मभीवर्तोऽसि । अभितः
सवे वतमानो भवसि । अलतेष्छाटसः शपो त्ुगभावः ॥
॥ अथ चतुथी ॥
येनेदरो हविर्षा वृत्यभंवद्युम्यं्तमः ।
इदं तदक्रि देवा असपत्नः किलनुवं ॥४॥ =
येनं । इरः । हविषां । कृती । अभ॑वत् । दयुश्नी । उत्ऽतमः
इट्। तत्। अक्रि । देवाः। असपत्नः । कितं । भुवं ॥४॥
येन हविषास्माभिदेचेन माच्न्निदः कृत्वी वृचवधदेः कमणः कताभवत्। दुख ।
दयु दयोत्ततेयेशे वानरं वा । तद्वान् । अत्त एवोचम उत्कृष्टतमश्चाभवच्दिटं हविर
देवा अक्रि। अकारि । यद्वा । अहमकाषै। अत एवाहमसपत्नः कित्करभुवं। एचरु-
रहितोऽयभवं सलु । ध
।
॥ अथ पंचमी ॥
असपत्नः संपतनहाभिराष्टो विषासहिः ।
भूतानां विराजानि जन॑स्य च ॥५॥
सपत्न ऽहा । अभिऽरा्ः । विऽससहिः।
कः कनि भनवे
९9 ॥ कम्बः ॥ [अ०४, ०४. व० ३३,
सपत्नहा सपल्ननां शत्रणां हतातत एवासपत्नः शचुरहितोऽहमभुवं । अभिराष्रौ
ऽभिगतरष्टःप्राघ्रराज्यः सन् विषासहिः शचरूणां विशेषेणाभिभविता चाश्रुवं । यथा
येन प्रकारेणाहमेषां हष्यमानानां सर्वेषां भूतानां प्राणिनां जनस्य च सेवकस्या-
मात्यादेश्च विराजानि यथेश्वरो भवानि तथा सपत्नहा विषासदिश्वाभुवसित्यथैः।
॥ इत्यष्टमस्या्टमे दाचिंशे वगः ॥
पर व इति चतुच्छेचं चतुविंशं सूक्तं गायनं । अवरस्य सपेरषैः पुच उरध्वैग्रावा
नामषिः। सोमाभिषवाथा यावाणो देवता । तथा चानुक्रातं । प्र वश्चतु
यावाबुदिमैव्णोऽस्तोत्रायचरमिति ॥ यावस्तोच एतत्सूक्तं । सूचितं च । आ व
ऋजसे प्रवो मावाण इति सूक्तयोः। आ० ५.१२.। इति ॥ यद्धेदमेकमेव सूक
यावल्लोचं। सूष्यते हि प्र वो यावाण इत्येक उक्तं सपंणं । आ०५.१२.
। ॥ तच प्रथमा ॥ न
प्रवो मावाणः सविता देवः सुवतु धमेणा ।
धृषु युज्यध्वं सुनुत ॥१॥
म्र। वः ग्रावाणः । सविता । देवः । सुवतु । धमैणा ।
धूःऽसु । युज्यध्वं । सुनुत ॥१
हे मावाणः सोमाभिषवाथोः पाषाणा वो युष्मान्सविता परेरकी देवी धमै
२ णत्मीयेन धारणेन कमेणा प्र सुवतु । अभिषवाथै प्रेग्यतु । ष् प्रेरणे । तोदादिकः
यूयं च धूष्वभिषवस्यानेषु प्राच्यादिमहादिष्ु युज्यध्वं । युक्ता भवत। अनंतरं सुनुत ।
अभिषुगुत सोमं ॥ व
क: + अय दितीया॥
यार्वाणो अप॑ दुद्धूनामपं सेधत दुमेतिं। ` 8
उख्लाः कतेन भेषजं ॥२॥
वाणः । अप॑ दुद्ून । अप॑ । सेधत । ऽमतिं
४ म०१०. ० १२. सु०१७६.] ॥ अष्टमोऽषटकः ॥ ५९१
भवति तथोखा गाः कर्तन |
, ° नयनाश्ेति तनबादेशः ॥
हत । करोतेष्छां दसो विकरः
॥ अथ तृत्तीया ॥
मावाण उषरष्रा म॑हीययतं सजोष॑सः
वृष्णे ट््धतो वृष्ण्यं ॥ ३।
मावाणः । उपरेषु । आ । महीयत । सऽजोष॑सः |
वृष्णे । दध॑तः । वृष्ण्यं ॥३॥ ४८ ४ । | ।
मावाणौ दिष्ववस्थिताः पाषाणः सजोषसः सह प्रीयमाणाः संगताः संतो ^
रि नामाभिषवाय चतुश याग्णां मध्ये स्थापितो विस्तृतः पाषाणः।
दशापश् बहुवचनं । उपरस्य प्रतिषु महीयते । प्रकाशे । चाकारः पूरणः। किं `
कुवेतः । वृष्णे वित्रे सोमाय वृष्ण्यं वीये दधतः प्रयद्धतः ॥
॥ अथ चतुर्थीं ॥
यावांणः सविता नु वीं देवः सुवतु धमैणा ।
~. यज॑मानाय सुन्वते ॥४॥
ठ मावाणः। सविता । नु । वः। देवः । सुवतु । धमेणा । „
यज॑मानाय । सुन्वते ॥४॥ । सः |
१
देवौ दानादिगुणयुक्तः सविता हे मावाणो वो युष्मान्धमैणात्मीयेन धारणेन
निप्र म्रसुवतु। अभिषवे प्रेरयतु । किमथे सुन्वते सोमाभिषवं कुवैते यज-
` मानाय यजमानाधै । तस्य यागनिष्यह्य इत्यथः ॥
॥ इत्य्टमस्या्टमे चयस्तिशणे वमः ॥
मरसूनव इति चहु्छेचं पंचविशं सूक्तं । ऋभुषुवः सूतुनोमधिः । दितीयागा- `
यरी शिष्टास्िसोऽनुष्टुभः । आद्यमुदेवत्या शिष्टा आपनेग्यः। तथा चानुक्रातं । प्र `
सूनवः सूनुरानैव आप्रेयमानुष्टुभं डितीयं गाय ॥ विनियोगः॥
7 | ॥ तच प्रयमा॥
. म्र सूनव ऋभूणां बृहन॑वंत वृजना । `
॥ ऋग्वेदः । ` [अ०, ०४, व०३४.
म्र। सूनवः । छभूणां। वृहत्। नवत । वृजना! , ‡
कः दोन ब्द 4
साम॑ । ये। विश्ठऽधायसः। अश्नन् धेनुं । न । मातरं ॥१॥
सूनव रतत्सं्ञा ऋभूणां । ऋभुविभ्वा वाज इतति चयाणामपि प्रथमेन व्यप-
देशः । तेषां पुचा वृहत्मभूतं वृजना । संमामनामेततत् । वृजनं संमामं प्र नवत
नलवतिगेतिकमेो । प्रगति । प्रकर्षेण गच्छंति । प्रकृ्टगमनेनं जयो लच्यते ।
पूजाथे बहुवचनं । य ऋभवो विश्वधायसतो विश्वस्य धारकाः साम
व्याघरवन् । अम् व्याप्ती । व्यत्ययेन श्रा । धेनुं न । धेनुः प्रीणयिचरी गोः। तामिव
तिषामृभूणामित्यन्वयः। यद्वा । सू्येरद्मयो ऽपुभव उच्यते । य उर भासमानाः
सू्ैरश्मयो विश्वधायसौ विश्वं सवं रसं धयत; पितः । यद्वा वृ्यादिप्रदानेन
सर्वस्य धारकाः। णवभूताः संतः क्षाम भूमिमश्चन् खभ जत । तदीयं सवे रसं
पिवन्। तच द्ांतः। मातरं जननीं धेनुं पयस्विनीं गां यथा वत्सः पिवति तथा
य सृभवोऽच्रति तेषामृभूणासित्यन्वयः ॥
ऋग्िप्रणयने प्र देवमिति तृचोऽनुवक्तव्यः । सूचितं च । प्रेषितोऽप्निप्रणय-
नीयाः प्रतिपद्यते प्र देवं देव्या धियेति तिखः । खआ० २,१७.। इति ॥ तृच आद्या
सूक्ते दितीया ॥ ए
मप्रदेवंदेव्या धिया भर॑ता जातवेदसं ।
ह्या नो वक्षदानुषक् ॥२॥ |
प्र । देवं। देव्या । धिया । भर्त । जातऽवेदं ।
हव्या नः, वृत् । आनुषक् ॥२॥
4
जातवेदसं जातानां वेदितारं जातप्रजञ
हरत । यद्वा । प्रां चं नयत । केन साधनेनेति
वा । यदेषा सहयोगे तृतीया ।
अष्टमो ऽषटकः ॥
। अथय तृतीया ॥
यमु षय प्र देवयुर्होता यज्ञाय॑ नीयते ।
रथौ न योरभीवृतौ घृणींवाञ्वेतति त्मन। ॥३॥
1
यं । ॐ इतिं । स्यः । प्र। देव ऽयुः। होता । यज्ञाय॑ । नीयते ।
रथः! न । योः । अभिऽवृंतः । घृणिं ऽवान्। चेतति । त्मना ॥ ३॥
अयमु अयमेव स्यः सोऽग्रि्दवयुरदेवान्यष्टुमिच्छन्भवति । देवशब्टात्क्यचि न
छटस्यपुचेतीत्दीधेयोः प्रतिषेधः। खयमेव होता टेवानामाद्धाता । अयमेव यज्लाय
गाये प्रणीयते । स्राहवनीयदेशं प्रति प्रक्वेण नीयते । अपि च रथौ रंहण-
शीलः सूर्यो रथवान्वौ । खोंदसो मल्र्थीयस्य लौपः। स यचा घृणीवान्दीप्निमान्
तद्वदीघ्ः । योमिश्चयिता हविषां देवेः संगमयित्ता । योतिरन्येभ्योऽपि हश्यंत इति
विच्। अभीवृत छतिग्यजमनिरावेशटितः। वृणोतेः क्मणयन्येषामपीति पू वपद्स्य
दधेः । गतिरनंतर इति गतेः प्रकृतिस्वरत्वं । ए वभूतोऽभ्रिस्मनात्सना स्वयमेव
। सम्यग्टेवान्यष्ं जानाति । मचेष्राड्यादेरात्मन इत्याकारलोपः ॥
॥ अथ चतुर्थी ॥
अयमग्निरुरुष्यत्यमृतादिव जन्मनः
सह॑सधित्सहींयान्देवो जी वातवे कृतः ॥४॥
अयं । खप्निः। उरव्यति। अमृतां त्ऽइव । जन्मन
सह॑सः । चित्। सहीयान् । देवः। जीवातं वे । कृतः ॥४॥
ऋअयमभ्रिरमृतादमरणदेवनिमिचाद्नयादिव जन्मनो जायमानान्मनुष्यनिमि-
ताद्धयाटप्य॒रुष्यति । तस्माद्र्ति । उरुयती रस्ाकर्मेति यास्कः भाववाचिनोऽम्-
तशब्दस्य नजा बहुत्रीहौ नजो जरमरमिचमृतता इत्युत्तरपदाच्युदात्तत्व।
भित्यपादानसंज्ा । अपि चायं देवः सहसश्चित् । सह इति बत्नाम । तस्मादु
चिन्मतोरिति विनो
वे यागाय कृतः । ब्रह्मणा
तगं । पत्ति व्याप्नोतीति
॥ चग्वेद्ः ॥
तंगमित्ति तृचं षडिशं सूक्तं प्रजा पतिपुचस्य पत्तगस्याषे। आद्या जगती तत-
ख्िष्टभो । मायाभेदस्य प्रतिपाद्यत्राचचहे्वत्यभिट् सूक्तं । अनुक्रातं च । पत्तगं तुचं
तंगः प्राजापत्यो मायामेद् जगत्यादीति ॥ प्रवग्यऽभिष्टव स्माद ऋचो सूचित
च । पतंगमक्तमसुरस्य मायया यो नः सनुत्यः । खआ० ४.७.) इति ॥
| ०८, ०४, वं० ३५.
॥ तच प्रथमा ॥
पतंगमक्तमसुरस्य मायया हदा प॑श्यति मन॑सा विपश्चितः ।
समुद्रे अंतः कवयो वि च॑रते मरी चीनां पदमिति वेधसः ॥१॥
तग । अक्तं । असुरस्य । मायया । इदा । पश्यंति । मन॑सा । विपःऽचितः
समरे । अंतरितिं । कवय॑ः। वि । चक्षते । मरीचीनां । पदं । इच्छंति । वेधसः ॥१।
असुरस्यासनकुश्त्स्य स्वो पाधिविहीनस्य परबद्यणः सं बंधिन्या मायया चि-
गुणत्मिकयाक्त व्यक्तमभिव्यक्तं । यहा मायेति प्रज्ञानाम । प्रजया संबज्खं स्वज्ं
तगं । पतति गद्छतीति पतंगः सूयः । तं विपश्चितो विहांसो इदा इष्स्थेन ।
तास्स्थ्यात्ता्छब्धं । इदि निरूढेन मनसा पश्यंति । जानंति । कवयः ऋरांतदशिनस्े
समुद्रे । ससुदवत्यस्माद्श्मय इति समुदं सुयेमडलं । तस्मिनरत मेध्ये चि चकते ।
विपश्यति । मंडला तवेतिनं हिरण्मयं पुरुषमपि जानंतीत्यथेः । य एवं वेधसो
विधातार उक्तप्रकारेण सूर्योपासनस्य कतैरस्ते मरीचीनां रश्मीनां पटं स्थानं
मूयेमडत्छमिच्छति । अभिलषति । तदुपासनया प्राशरुवं तीत्यथेः । यद्वा । माययाक्तं
जीवरूपेणभिव्यक्तमात्मानं विपश्चितो वेदांताभिज्ञा हष्स्थेनां तमुखेन मनसा प-
पतंगः परमात्मा । तं पश्यंति । उपाधिपसरित्यागेन
जीवात्मनः परमात्मना तादात्यं साशाक्तुवैतीत्यथेः। अपि च ते कवयः ऋ्रातद-
शिनौ वेदांताभिज्ञाः समुद्रे । समुद्ूवत्यस्माइूतानीति समुदः परमात्मा । तस्ि-
हानभूते ऽ तमेध्ये सवे दश्यजातमध्यस्तत्वेन वि चक्षते । वि पण्यंतीति । अतो
विधातारस्ते मरीचीनां वृतिज्ञानानां पट्-
|
॥
114
पतंगो वाचं मन॑सा विभति तां गंधरवोऽवदद्रभं अंतः ।
कणे
तां द्योतमानां स्वथ मनीषामृतस्य॑ पदे कवयो नि पाति ॥२॥ `
।॥
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यतगः। वाच॑ । मन॑सा । विभर्ति । तां । गंधर्वैः । अवद्त्। ग। उंतरितिं ।
तां । द्योतमानां । स्वथं । मनीषां । तस्यं । पद । कवयः । नि । पांति ॥२॥
तंगः सूयो वाचं चयीरूपां मनसा प्रजया विभर्ति । धारयति । शूयते हि ।
ऋग्भिः पूवाहतं दिवि देव ईयते यजुर्वेदे तिष्ठति मध्ये अहः । सामवेदेनास्तमये |
महीयते वेदेरभून्यस्िभिरेति सूयः । ते बा०३.१२.९.। इतिं । तामेव वाचं गर्भे
शरीरस्य मध्ये वतमानो गंधर्वैः । गाः शब्दान्धारयततीति गंधव: प्राणवायुः। `
ऋंतमध्येऽवट्त् । वदति । म्यति । मारतलूरसि चरन्मंदं जनयति स्वरं । पा
०२.९.। इति स्मरणात्। चोतमानां स्वय स्वर्ममयिची स्वमाय हितांवामनीषां
मनस इेशिचीं तां चयीरूपां वाचमृतस्य यज्ञस्य सत्यभूतस्य सूयेस्य वा पदे स्थाने
कवयो मेधाविन षयो नि पांति । अध्यापनेन नित्रा रंति । यद्वा पतंगः
सर्वोपाधिभून्यो व्याप्नः परमात्मा । स सृ्यादौ वाचं मनसा विभति । कानि
कानि सषटव्यानीति पयीलोचनेन मनसा सकल्ाथेप्रतिपादकं वेदं परामृष्टवा-
नित्यथेः । स्मयते हि । वेदशब्देभ्य एवादौ निमे स महेश्वर इति । गभ हिरण्मये
ब्रह्मडिऽतवेतेमानो गंधर्वो हिरण्यगर्भस्तं वाचमवदत् । प्रथमसुच्चारितवान् ।
दचो्तमानत्वादिगुणविशिष्टां तां वाचं कवयः क्रां तटर्भिनो देवा ऋतस्य सत्यस्य
बह्मणः पदे स्थाने नि पांति । निभृतं रसंति ॥
_ मवग्येऽभिष्टवेऽपश्यं गोपामिचेषा । सूचितं च । अपथ्यं गोपामनिपद्यमानं `
| सके दूष्त्यस्य । आ० ४.६. । इति ॥ 1 ( 1
५ ॥ भ ,; ^
॥ सेषा तृतीया ॥ ` श 1
मनिंपद्यम पद्यमानमा च परां च् पथिमिश्वरतं ॥ न | ध 1
वैसान ञ्जा व॑रीवतिं भुव॑नेध्॑तः ॥३।
च् । परां । च। प
॥ ऋग्वेदः ॥ [अ०४, अ०४, व० ३६,
धा ५
॥ि व्याख्यातियमस्यवामीयसूक्ते। १,१६४.३१.। गोपां गोपायिततारमाद्ल्यिमपश्य ।
अज्लासिषं। एष हि सवरि भतजातान्यटयास्तमयादिकमणा गोपायति । कीश ।
अनिपद्यमानं । उच्ेगै्छतं। न यसो कटाचिनरीचेः पद्यते। पथिभिराकाश्मर्गेः
पूवः आ चरतं । अस्मानभिलष्य गच्छतं । सायंसमये परा चरतं । पराड्नुखं
| गच्छतं, प्रकारइयसमुच्चयार्यो चश्ब्टो। स सूयेः सभीचीः सहां चती; विषूचीर्विंविधं
पृथक् पृथगं चंतीः स्वस्वव्यापाराय गद्छ॑तीः। प्राच्याद्या महादिशः सप्रीच्यो विषृच्यः
। कोणदिशः। वसानः स्वभासाच्छाद्यन् प्रकाश्यन्धुवनेषु लोकेष्व त मेध्य आ वरी वतिं
. पुनःपुनसुद्यनस्तं गच्छन्रावतेते। यज्वा गोपां शरीरस्य गोपायितारमनिपद्यमान-
मविनाश्िनिमविपन्रमा च परा चाभिसुखेन च पराङ्ुखेन च पथिभिनादील-
(0 सशेमर्गेश्चरतं शरीरे वतेमानं प्राणमपश्यं । अहमदशे॥
॥ इत्यष्टमस्या्टमे पंचचिंशे वगः ॥
त्यमू शिति तृचं सघ्रविंशं सूक्तं ताघ्येपुचस्यारिष्टनेमेराषे चेष्टभं ताघ्येदेवताकं
तथा चानुक्रांत। त्यमू ष्ररिष्टनेमिस्ताच्येस्ताष्यंमिति ॥ अहं णेषु हितीयादिष्रहःसु
निष्केवस्यसूक्तानां पुरस्तादिद् सूक्तं शंसनीयं । सूचितं च त्यमू षु वाजिनं देवज्-
तमिति ताष्येमये निष्केवस्यसूक्तानां । खआ०9.१.। इति ॥ विषुवति तु निष्केवस्य-
सृक्तानामत एव ततसूक्तं । सूत्यते हि । त्यमू श्ितीहं ताध्यें मत्तः । सा०४.६, ।
इति ॥ महात्रतेऽपि निष्कैवल्य एतत् । तथेव पंचमारणयके सूच्यते ॥
५ ॥ तच प्रथमा ॥
^ गौ ¢ ॥
व्यमूषु वाजिनं देवजूतं सहावानं तरतारं र्थानां। ध
` अरिष्टनेमिं पृतनाज॑मागुं सवस्तये ताष्यैमिहा हुवेम ॥१॥
व्यं । ऊं इतिं। सु) वाजिनं!
अरिष्ऽनेमिं। पृतनाजं ।
पा
॥ अष्टमो ऽटकः ॥ ५९७
माणं तप्येमाणं । यदाह यास्कः । जूति्मेतिः प्रीतिवौ देवजूतं देवप्रीतं वा । नि"
१०.२४. । इति । सहावानं सरस्वंतं बत्छवतसभिभवनवंतं वा । अत एव सया-
नामन्यदीयानां त्रूतार संमामे जेतारं । यडा रहणशीत्ठा इमे लोका रथाः
तरतेस्तृचि मरसितस्कभितेत्यादावडागमो निपात्यते । अरिष्टनेमिमरहिंसितरयं ।
यद्वा नेमिनेमनशीलमायुधं। अरहिंसितायुधं । अथवा । उपचाराज्जनंके जन्यशब्टः।
अरिष्टनेमेमेम जनकं पृतनाजं पृतनानां शचुसेनानां प्राजितारं प्रगमयितारं
जेतारं वा । खज गतिक्षेपणयोः । अस्माक्किप्। वत्कादावाधेधातुरे विकलस्य इष्यत
इति वचनाद्लीभावाभावः । जयतेवो इप्रत्ययः । सामं शीघ्रगामिनं ॥
॥ खथ दितीया ॥
स्येव रातिमाजोह॑ वानाः स्वस्तये नावमिवा रहेम ।
उर्वी न पृथी बहुले गभीरि मा वामे मा परतो रिषाम ॥२॥
दरस्यऽइव । रातिं । आऽजोहुवानाः । स्वस्तये । नावंऽइव । आ ! रुहेम ।
उवीं इतिं । न । पृथी इतिं । बहुले इतिं । गभीर इतिं । मा । वां । आऽईतौ ।
मा । परांऽइतो । रिषाम् ॥२॥
द्रस्येव ता्येस्य रातिं दानमाजोहुवाना पुनः पुनराद्धयंतो वयं स्वस्तयेऽवि-
नाशाय नावमिव । नौयेया टुरवगाहं ससद तारयति तथा दुःखस्य तारयिचीं
तामा सहेम! आरूढा भूयास्म । रहेरभशीलिंङि लिड्याश्षयङ्। हे उर्वी उव्यों वि-
स्तीर हे पृथी पृथिवी प्रथिते विख्याते हे बहुते अनते गभीरे गाभनीयोपेते ईहश्यो
हे द्यावापृथिव्यो । नशब्दः संप्रत्य । संप्रति वां युवयोः संबधिन्येतो तष्यंस्यागमे `
परेतौ परागमने च वयं मा रिषाम । हिंसिता मा भूस 1 खङ्पराभ्यासुचसस्येणो `
भावे क्तिन् । तादौ च नितीति गतेः प्रकृतिस्वरत्वं ॥ [1
१ ॥ अण तृतीया ॥ ५ 1
दयः एवंसा पंचं कृष्टीः सूय इव ज्योपिंषापस्ततानं । :
` ॥ ऋग्वेदः |
यश्चद्योऽपि तायः सच्च: शीभ्रं शवसात्मीयेन वलेनाप उदकान्यमृतल्-
णानि ततान विस्वारितवान् सूये इव ! यथा सूये: स्ेस्य प्रेरक ्नादित्यो ज्यो
७७०१
1त्मीयेन
«ॐ
ष निष्रीभवंतीमिव। सा यथा दुर्निवारा त
शरमयीमिषुं । नि०१०.२९.। इति ॥
1 ॥ सेषाद्या ॥
तिष्तावं पथ्यतेद॑स्य भागमृषियं ।
॥ इत्यष्टमस्या्टमे षट्चिंशो वर्मः ॥
उच्वि्ठतेति तृचमष्टाविंथं सृक्तमेदं । आद्यानुष्टप् शिष्टे चिष्टुभो । उशीनरपुचः
शिविनाम राजा प्रथमाया ऋषिः। काशीनामयिपति; प्रतदेनो नाम हितीया-
याः। रोहिदश्वपुचौ वसुमना नाम तृतीयायाः । तया चानुक्रांतं । उचिष्ठतैकचीः
` ` शिविशेशीनरः काशिराजः प्रतदेनो रौहिदश्वो वसुमना आाद्यानुष्टविति ॥ टधि-
` अम्य आद्या वक्तव्या । सूचितं च । होत वदसते्यक्त उतति्टताव पश्यतेत्याह । सा
[० ४, ० ७, व° 39
जसा वधेतावपो विस्तारयति तद्वत् । कृष्टयो मनुघाः । पंच कृष्टीः
् पचविधान्कृषटीन्मनुघान्प्रति निषादपंचमांशतुरो वणोानि्यर्थः । अस्य
। रंहिगतिः सहससाः सहस्रसंख्यस्य धनस्य दाची संभक्तौ वा भवति । तथा शतसा
(. शतस्य च दाची संभक्ती वा भवति । सनतेः सनोतेवौ जनसन्वनेति विर
नोरएनुनासिकस्यारित्यालं। न स्म न सत्वीदशीं ताष्येस्य ते गतिं वरंमे। के चनं
। वारयति । तच हष्टांतः। शभा शरकांडमयीमिषं धनुषो मुक्तां युवतिं न टष्येण
(क थेषा केश्चिट्पि वारयितुमशक्येत्यथेः ।
अच निक्त । सद्योऽपि यः शवसा वलेन तनोत्यपः सूये इव ज्योतिषा पंच मनु-
जातानि सहस्रसानिनी शएतसानिन्यस्य सा गतिनं स्मेनां वारयति प्रयुवत्तीमिव्
:। ममनतनं ॥१॥
रि
=
४
ता्येस्य
|,
।
् । विड-
न
1 च्रातः यक्कत्तहि जुहोतन । इद्राधेमसनौ जुहुत । तपत
तनवादेशः । भीहीत्यादिना पिति मरत्ययात्ू व॑स्योदाच्चतवं ।
कस्त हि ममत्तन । माद्यत । यज्ञा स्तुतिभिमोादयत । अच तेनैवं सुचेण
तस्येव ट्धिधर्मस्य श्रातं हविरि्ेषानुवाक्या। सूचितं च । च्रातं हविरित्युक्तः
शातं हविस्त्यन्वाह । आ०५,१३.। इति ॥
सेषा हितीया ॥ 1
| श्रातं हविरो धरिद् प्रयाहि जगाम सूरो अध्वनो वि्म॑ध्यं। १:
परि वासते निधिभिः सखायः कुलपा न बाजप॑तिं चरतं ॥२ (
श्रातं । हविः। ओ इतिं । सु इट् ।प्र। याहि। जगामं । सूर॑ः । छर््वनः। विऽमध्यं।
परि। त्वा। आआासते। निधिऽभिः। ससायः। कुल ऽपाः। न। बाजऽपं
॥ वि, कि ।
विं। चरतं ॥२॥
हे इद्र हविदेधिधमोख्यं चदीयं रातं । पक्घ ¦ भ्रीञ् पाक इत्यस्मानिष्ठायाम-
` पस्पुधेथामित्यादौ च्राभावौो निपात्यते । ओ्ाउमु सुषुप्र याहि, प्रकर्वेण
, शीघ्रमागच्छ । सूरः सूर्योऽध्वनो गंत्यस्य मास्य विमध्यं विकल्मध्यमीषटूनं
` मध्यभागं जगाम। गतवान् । तव यागाधे मध्याहो जात इत्यथः! सायः समा-
नस्याना तिजश्च निधिभिनिहितैरभिन्यासादिनः सोमिः सा चा ला पयोसते ।
पयुपासते । तच हष्टांतः। कुलपा न कृतस्य वंशस्य रकाः पुचा यथा व्राजपतिं ।
नाजा गतव्या गृहाः । तेषां पतिं चरतं गद्धंतसुपासति तथेत्यथ; । बज गतौ । ॥
| अस्मात्तमंणि घञ् । अजिवज्यो श्वेति कुतनिषेधः । कषात्वत इत्यंतोदा्रषरे पत्या- ` ८
| वेष्व्यं इति पूवेपदप्रकृतिस्वरत्वं ॥ 180 > [1
न
| ` तस्यैव दधिषमेस्य शरातं मन्य इत्येषा याज्या । सूच्यते हि। रातं मत्यज्धनि
| शरात्तमग्राविति यजति । आ०५,१३ इति ॥ `
9 ॥ ऋग्वेदः ॥
हि चप ८, र ©, त° ३४
शातं । मन्ये । ऊध॑नि । यातं । अग्रो । सुऽ श्रातं । सन्ये । तत् । ऋतं । नवीयः।
माध्यंदिनस्य । सव॑नस्य । दभः । पिव॑। ईदू । विन् । पुरुऽकृत् । जुषाणः ॥३॥
"4
ऊधनि गोशूधस्येतहधिघममाख्यं हविः पयोरूपेण चरातं पक्षमिति मन्ये ।
जाने । पुनश्च दुग्धं पयोऽप्रावपि धातं पक्त । इदानीं दध्यवस्यम्यम्नो पच्यते । खतः
सुश्रातं सुपक्रमिति मन्ये । जाने । अत एतद्वविक्छेतं सत्यभूतं नवीयो नवतरं प्र्य-
ग्रतरं भवति । हे वजिन् वजवन् हे पुरूकृच्हुकमेकृटिद् जुषाणः प्री यमा णस
माध्यंदिनस्य माध्यंदिने भवस्य सवनस्य सोमस्य संबंधिनो टघः। कमेणि षष्ठी ।
टधिधमाख्यं हविः पिवं ॥
॥ इत्य्टमस्याष्टमे सप्रचिंशो वगः ॥
प्र ससाहिष इति तृचमेकोनविंशं सूक्तमिंद्रपुचस्य जयस्यापे चैेषटभमेदरं । तथ
चानुक्रा तं । प्र ससाहिषे जय रेद् इति । गततः सूक्तविनियोगः ॥ दशे इदस्य हविषः
प्र ससाहिष इत्येषा याज्या । सूचितं च । प्र ससाहिषे पुरहूत शचून् महा इदो य
स्ओोजसा । आ १.६.। इति ॥ एकाद्शिन रेद्रपश्णे पुरोडाशस्येयमेव याज्या । सूचितं
च । प्र ससाहिषे पुरुहूतं शच॒न्स्वस्तये वाजिभिश्च प्रणेतः । आ०३.७.। इति ॥ देव-
भुवां हविषींद॒स्येयमेवानुवाक्या । सूचितं च प्र ससाहिषे पुरुहूत शचृन्भुवस््वरमिंद्
बद्यणा मंहान् । आ०४.११.। इति ॥
॥ सेवा प्रथमा ॥
प्र स॑साहिषे पुरुहूत शचरञज्ये्ठस्ते भ्ुष्मं इह रातिरस्तु ¦
#
दिणेना वसूनि पतिः सिंधूनामसि रेवतीनां ॥१॥
। पुरुऽदूत् । शन् । जयः । ते । शुष्मः । इह । रातिः । असत
` इद! आ। भर। द्िंणेन । वसूनि । पतिः । सिंधूनां । असि । रेवतीनां ॥१॥
#
-बहुभिराहूतं
प्र ससाहिषे । प्रकर्षणाभिनवसि। ते तव
सू०१४०.। ॥ अष्टमो ऽकः ॥
वेमृधस्य हविषो मृगो नेव्येषा याज्या । सूचितं च। वि न इट् मृधो जहि मृगो
न भीमः कुचरो गिरिष्ठाः । आ०२,१०.। इति ॥
॥ सेषा हितीया ॥
मृगौ न भीमः कुचरो गिरिष्ठाः प॑णवत आ जंगंया पर॑स्याः।
सृकं संणायं पविभिंद् तिग्मं वि शचरन्ताठ्व्हि वि मृधो नुदस्व ॥२।
मृगः। न। भीमः । कुचरः । गिरिऽस्थाः। पराऽवतः । आ । जगं । पर॑स्याः ।
कं । संऽ शाय । पविं। इटू। तिग्मं । वि। शचूंन्। ताच्। वि । मूधः नुदस्व ॥२॥
कुचरः कुत्सित चरणो गिरिष्ठाः पवैतनिवासी मृगो न सिंह इव हे इद् त्वं भीमो
भयंकरोऽसि। स त्वं परस्याः परावतोऽतिश्येन दूराद्युलोकादा जगं । गच्छ ।
गमेष्छांदसे लिटि क्रादिनियमप्रापतष्येट उपदेशेऽत्वत इति प्रतिषेधः । आगत्य च
सृकं सरणशीत्टं तिग्मं तीद्णं पविं वजं संशय सम्यङ् तीद्णीवृत्य शचरनस्मदी-
यान्वेरिणो हे इद् तेन वजेण वि ताचिह । विशेषेण ताडय । विनाशयेत्यथैः । तड
आघाते । अस्माल्लोदि र्यतादूपमेतत् । तथा मृधः संमामोचयुकतान्युयुत्ूनन्यानपि
वि नुदस्व । विशेषेण तिरस्कर ॥ [ष |
॥ खथ तृतीया ॥
इद छचममि वाममोजोऽजायथा वृषभ चर्षणीनां ।
अपानुदो जन॑ममभिचयंत॑मुरे देवेभ्यो अकृणोरु लोकं ॥३॥
इ । शचं । अभि। वामं । ओज॑ः । अजायथाः । वृषम् । चैणीनां। `
` ऋष॑। अनुटः। जन॑ । अमिच ऽ यंतं । उर । देवेभ्यः । अकृणोः । ऊ इतिं । लोकं ॥३॥ `
जक , कठो = क
हे इद्र छं छ्तान्नायकं वामं वननीयमोजो बलमभिलष्याजाययाः। उत्म-
न्नोऽसि। हे वृषभ कामानां वषितः चषेणीनां मनुष्याणामस्माकं । नामन्यतर-
स्यामिति नाम उदात्तं । अमिचयंतं । अमिचः शचुः। स इवाचरतं जनमपानुदः
अपागमयः। देवेभ्यश्चोर विस्तीरी त्रोकं स 7ख्यमकृणोः । सअकार्षीः |
॥
६०२ ॥ च्ृग्वेट्ः [० ४, ०४, वं० ३९,
प्रथ इति तृचं चिंशं सूक्तं वैश्वदेवं बेषटभं। वासिष्ठः प्रथसंज्ञ ऋषिः प्रथमायाः
भारडाजः सप्रथाख्य ऋ षिदिंत्तीयायाः । सूयेपुबो घमं ऋषिस्तृतीयायाः । तथां
चानुक्रातं । प्रथध्चेकचाः प्रो वासिष्ठः सप्रथो भारहाजो घमः सौर्यो वेश्वदेव-
सिति ॥ प्रवर्ग्येऽभिष्टव एतत्सूक्तं । सूचितं च । गणानां ता प्रथश्च यस्य । आ
.६.। इति ॥
॥ तच प्रथमा ॥
प्रथश्च यस्यं सप्रथश्च नामानुष्भस्य हविषो हवियेत् ।
धातुद्युतानात्सवितुश्च विष्णो रथंतरमा जभारा वसिं्ठः ॥१॥
प्रथः । च । यस्यं । सऽप्रथः। च । नाम॑ । आनुऽस्तुभस्य । हविषः । हविः । यत्।
कै । १ ॥ ॥ ।
धातुः । दयुतानात्। सवितुः । च । विष्णोः । रथंऽत्तरं । आ । जभार । वसिंहः ॥१॥
।,
यस्य वसिष्टस्य प्रथो नाम पुचो यस्य भरद्वाजस्य सप्रथो नाम पुरस्तयोमेध्य
वसिष्ठ आनुष्टभस्यानुष्टष्डदसा युक्तस्य हविषो घमीख्यस्य यद्चविहेविष्रुापादकं
रथतर । रथरहःसाधन साम तद्रयतर । धातुधातुसंजादेवाद्यु तानाद्योतमानात्स-
क वितुश्च विष्णोश्चा जभार । स्ाजहार । हतवान् । इयहोभै इति भवं । रथश्ब्टोप-
0 पदात्तलेः संज्ञायां भूतृवृजीति सच् । अरहिषदजंतस्येति सुमागमः ॥
॥ अथ दितीया ॥
अविंटनते अतिहितं यदासींज्ञस्य धाम॑ परमं गुहा यत् ।
धातुद्युतानत्सवितुश्च विष्णोंभेराजो वृहदा च॑क्रे प्रः ॥२॥
अरविदन्। ते। अतिंऽहितं । यत्। आसीत् । यज्स्यं । धाम॑ । परमं । गुहां । यत् ।
:। दयुतानात्। सवितुः। च । विष्णोः भरत्ऽ वाजः। बृहत् आ। चक्र म्रः ॥२॥
म० १०.०१२, सु०१४२.] ॥ अष्टमो ऽ टकः ॥
॥ अथ तूतीया ॥
ऽ विद्न्मनसा दीध्याना यज्ञः ष्कनं प्रथमं दंवयानं ।
धातु नात्सवितुश्च विष्णोरा सूयं दभरन्धरममेते ॥३॥
अविंट्न् । सन॑सा । दीध्यानाः । यज्ञः । स्कनं । प्रथमं । देवऽयानं ।
धातुः। दयुतानात्। सवितुः। च । विष्णोः । आ । सूयात्। अभरन् । घर्म । एते ॥३॥
कतल भको भनक
ते धाचाद्यो दीध्याना दीणमानाः संतो मनसा बुद्याविंदन् । अलभत । किं
तत्। यज्ञुयागसाधनं स्कनं स्कंदनीयमासेचनीयं प्रवुंजनसाधनं प्रथमं मुख्यं देव-
यानं देवानां प्राप्निसाधनं घम । रवं धाचादिभिः प्रणमसुपत्रब्धं तं घमे धातुर्चोत-
मानात्सवितुविष्णोः सू याचेत ऋत्विज समाभरन् । आहरन् । आआनीतवंत इत्यर्थः ॥
॥ इत्य्टमस्या्टम रकोनचवारिशो वगः ॥
हस्यतिरिति तृचमेकचिंशं सूक्तं वृहस्यतिदेवत्यं चैष्भं । बृहस्यतिपुचस्तपुमुधा
षि
नासषिः। तथा चानुक्रातिं । वृहस्पतिस्तपुमूधे बाहेस्यत्यमिति॥ गतो विनियोगः
॥ तच प्रथमा ॥
बृहस्मतिनेयतु दु्गहां तिरः पुनंरनेषदधशंसाय मन्म॑ ।
सिपदशस्वि मयं दुमेतिं हन्यां करहयज॑मानाय शं योः ॥१॥
तिः। नयतु । दुःऽगहा । तिरः । पुन॑ः । नेषत्। अथऽभ॑साय । मन्मं ।
मतिं। हन्। अथं । करत्। य्जमानाय। शं । योः ॥१॥
गमस्तलोपश्च ! उमे वनस्यत्यादिष्विति पूर्वोह्तरपदयोयुगपत्म- `
दुगेहा टुगेमनानां हंता स देवस्तिरो नयतु । तिरस्कतैव्यानि र ा-
र्यतु । अघशंसायास्माकमनयेमाश्समानाय पुरुषाय मन्म । मः
पुनर्नेषत्। नयतु । नयतेर्गव्य॒डागमः। सिक्रहुत्रि
। सस्मचः प्रेरयतु
०४ ॥ऋण्वेटः॥ [अ०४.,ऋ०४, व०६१.
॥ अथ हितीया ॥
रासं नोऽवतु प्रयाजे शं नो अस्वनुयाजो हवेषु । ` |
क्षिपदशस्तिमप दुमेतिं हन्रथां करद्यजमानाय श योः ॥२॥
नराशंसः । नः। अवतु । प्रऽयाजे। शं! नः । अस्तु । अनुऽयाजः। हवेषु)
सिपत्। अशंसत । अपं । टुःऽमतिं। हन्। अथं । करत्। यज॑मानाय । शं । योः ॥२
पंचसु प्रयाजेषु हितीयः प्रयाजो नराशंसदेवताकः । तस्मिन्प्रयाजे देवताभूतो
नशंसो नैः शंसनीयोऽग्रिनों ऽस्मानवतु । रक्षतु । हवेष्राह्धानेषु सास्वनुयाजः
चयो ऽनुयाजाः। डितीयोऽनुयाजो नराशंसः । तस्यानुयाजस्य देवताभूतो नराश-
सोऽग्रिश्च नोऽस्माकं शं सुखकरोऽस्तु! वृहस्पतिश्वाशस्तिं शिपदित्यादि पूवैवत्॥
॥ अथ तृतीया ॥ ( |
तुमूधा तपतु रक्षसो ये न॑द्षः शवे हतवा उ। `
सिपदश॑स्विमपं दुमेतिं हत्थं करद्यजमानाय शं योः ॥३॥
तपुःऽमूधा । तपतु । रस॑ः । ये । बह्यऽ दिष॑ः। शर॑वे । हंतवे । ऊ इतिं
शिपत्। अश॑सं। प॑ । दुःऽमतिं । हन् । सथं । करत्। यजमानाय। शं। योः ॥३।
` त्तपुमेधा तापक्शिरस्को वृहस्यती रक्षसो ये बह्यहिषो बाद्यणदे्टारो रार्सा- ।
स्वानाक्षसां स्तपतु । तापयतु । दहत्वित्यथेः । किमथे । शरवे शरू हिस्तकं रकषसा-
मधिपतिं हंतवे हतुं । खनुचशन्पूवं नाशयतु पश्वादेनसपि नाशयवित्यथेः ।
हिसायामित्यस्मा्स्वुखिहीत्यादिनोप्र्ययः । निदित्यनुवृततेरादुदाच्ततं । क्रिया-
महणं कतेव्यभिति कमेणः संप्रदानलाच्तुर्थी । हतेस्तुमर्थे सेसेनिति तवेप्रत्ययः ।
युगपदित्याद्यतयोयेगपदुदाच्ततवं । उश्ब्दः पूरकः॥
॥ इत्यष्टमस्यामे चत्वारिंशो वर्मः॥ = `
सूक्तं चेष्टुभं । प्रजापतिपुचः प्रजावान्रामषिः!
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० १०,अअप० १२. सु० १४६३. ॥ अष्टमीऽष्टकः
॥ त्च प्रथमा ॥
आप्यं वा मन॑सा चेकितानं तप॑सो जातं तप॑सो विरू
इह प्रजामिह रयि र्णः प्र जायस्व प्रजयां पुचकाम ॥१॥
अपश्य । त्वा । मनसा । चेकितानं । तप॑स; । जातं । तपसः । विऽभरतं ।
इह । प्रऽजां । इह । रयिं । रराणः । प्र। जायस्व ! प्रऽजयां । पुचऽकाम् ॥१।
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श
ह यजमानं त्वा तवां मनसा बुद्यापश्यं। अदशे । कीश । चेकितानं! कमाणि
भृशं जानत । तपसौ दीशारूपाडताज्जातं पुनरूत्मनं । यद्वा जन्मां तरानुषितात्सु-
कृतादुत्मनं । तपसोऽनुष्ठीयमानाद्यजलाडेतो्विूतं व्याघ्रं सर्वैच प्रख्यातं । हे पुच-
म पुचान्कामयमान स त्वमिहासिज्लोक प्रजां पुचपौचादिषरूपां ररः
रयिं धनमिहासिल्लोके रमयन् प्रजया प्रजनेन प्र जायस्व । पुचादिरूपेणोत्म-
। प्रजा उत्पाटयेत्यथेः
अप॑श्यं त्वा मनसा दीध्याना स्वायां तनू ऋत्वये ना्धमानां
उप मासुचचा युंवतिर्वेभूयाः प्र जायस्व प्रजया पुचकामे ॥२॥
पश्यं । त्वा ! मन॑सा । दीध्यानां । स्वाय । तनू इतिं । ऋत्यं । नाध॑मानां ।
उप॑ं। मां। उच्चा । युवतिः। बभूयाः । प्र । जायस्व
तुः वं गभेधारणरूपं कमेतियं। तस्मिनिमित्तभूते नाधमाना भतुंरुपगमनं
याचमानां ला चां मनसापश्यं । अद्राक्षं । हे पुबकामे पुचान्कामयमाने मासुप
मत्समीपं प्रापय सा त्मुचचोचेभृशं युवतिस्तरणी बनूयाः । भूयाः । खटस्युनयथेत्या-
॥ ध ५ 1
५
६०६ ॥ ऋग्वेदः ॥ , [अ०४,ऋ० ४, वरर;
अहं । गभे । अदां । ज्ोष॑धीषु । अहं । विशवषु । भुव॑नेषु । संतरिति।
अहं । प्रऽजाः । अजनयं । पृथिव्यां । अहं । जनिंऽभ्यः।
वि रिः कतके ब्ध्य
अपरीषु | पुरान् ॥ ३।
~ अहं होतोषधीषु शास्यादिषु फलां गभेमदधां । धारयामि । विश्येषु सर्वेष
नयेष्रपि भुवनेषु भूतजातेष्र॑तमष्ये ऽहमेव ग धारयामि । तथा पृथिव्यां भूम्यां प्रजाः `
सवेन्मनुष्यानहमजनयं । जनयामि ¦ जनिभ्यो जायाभ्यो ऽपरी्न्यास्वपि सतीषु |
4 पुत्रानहमजनयं । जनयामि । मत्स्येन यागेन स्स्योत्मत्तेरहं सर्वजनहेतुभैवा-
॥ | मीत्यथेः॥ » ~ |
थः
५ १) | ॥ इत्व्टमस्या्टम एक्चत्ारिणो वर्गैः ॥ `
विष्णुरिति तृचं चयस्िंशं सूक्तमानुष्टभं । गभाणां त्रा नामभिः प्रजापति पुचो
विष्णुवे । ल्िंगोक्ता विष्णुतवटुप्रजापतिसिनी वात्कीसरस्वत्यश्विन इति देवताः ।
( तथा चानुक्रातं । विष्णुस्वष्टा गभेकती विष्णव प्राजापत्यो गभाधाशीलिगोक्क-
(८. देवतमानुष्टनमिति ॥ कगिको विनियोगः ॥
| ` -॥ तच प्रथमा॥. व
विष्णुर्योनिं कल्पयतु ष्टां रूपाणि पिंशतु ।
` आ सिंचतु प्रजाप॑तिधोता ग्म दधातु ते ॥१॥ ` क
` विष्णुः । योनिं । कल्ययतु । वश । रारि । पिंशतु। _
~ | 4. यापक देवो | योनिं गभोधानस्थानं कल्पयतु । करोतु । तश तनुक्तेत- |
संज्ञको देवश्च रूपाणि निरूपकाणि सतीत्वपुस्वामिव्यंजकानि बिहानि पिंशतु ।
` आ। सिंचतु। प्रजाऽ पंतिः । धाता । गमे । ट्धातु। ते ॥१।
८ छ तु । पिश अवयवे, सुचादिल्वान्ुम् । एवं प्रङप्रायां योन्यां प्रजापती
रत आ सिंचतु । निषिंचतु । सृजवित्यथं यथः । धाता धारक देवो हे जायेते तव ५.
रूपेण परितं तद्रेतो दधातु । तेवं धारयतु । गभेषातापपरसवा मा `
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०१४५.] ॥ अष्टमो ऽकः ॥ ६०७
। सिनीवालि । गभे । हि । सरस्वति स
+
। ते । अश्विनो । देवौ । आ । धनां । युष्करऽखजा॥२॥ = - `
4
गभ धेहि । निषि
चके चन
र.
त्त गन धारय) ह सर
गभं धारय । हे जाये पुष्करसखरजा पुष्करमालिनौ स्व
नो देवौ ते तव गमेमा धततं । प्र्षिपतां कुरताभिल्य्थः ॥
9१५
॥ अथय तृतीया ॥ . =. `
हिरण्ययी अरणी यं निर्मरथतो उध्िनां। . . `
तं ते गभे हवामहे दशमे मासि सूर्ते ॥३॥ ` 9
हिरण्ययी इतिं । अरणी इतिं । यं । निःऽमंण॑तः। अश्विना।
तं । ते। गभे । हवामहे । दशमे । मासि । सूतवे॥३॥ `
1
हिरण्ययी हिरण्मग्यावरणी यं गभैसुदिश्याश्चिनाश्विनो देवौ निमयतो निम-
थिततवंततौ हे जाये ते तुभ्यं त्वदथे तं गभ हवामहे। आद्भयामहे। दशमे मासि सूतवे
प्रसोतु। पदन्नित्यादिना मासशब्टस्य मास्भावः। सूतेस्तुमर्थे सेसेनिति तवेन्प्रत्ययः॥
॥ इत्यष्टमस्या्टमे डिचल्वारिंशो वर्मः ॥
महीति तृचं चतुखिंशं सूक्तं वरुणपुचस्य सत्यधुतेराधे गायचमादित्यदेवताकं ।
तथा चानुक्रांतं । महि सत्यधृति वारुणिरारित्यं स्वस्त्ययनं गायचं वा इतिः ॥
धनलिप्सया प्रवसंतं शिषमाचार्योऽनेन सूक्तेनाभिमंचयते । सुष्यते हि । महि
॥ तचप्रयमा॥
महिं चीणामवोऽस्तु चुं मिचस्यायेम्णः। `
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बाधितुमशक्यं महि महदवो रष्णएमस्माकमः
॥ ुग्वेटः
वचनात्। पा०७,१.५३.१.। चयादेशभावः
नहि तेषाममा चन नाध्वसु वारणेषु ।
॥ अथ हितीया ॥
ईशं रिपुरघभंसः ॥२॥
नहि । तेषा ! अमा । चन । न । छरध्वऽमु । वारणेषु
श । रिपुः
ऋध ऽ शसः ॥२॥
शचुनिंवारयितुं नेष्टे ॥
चानुक्रति
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॥ खथ तुत्तीया ॥
यस्मे पुच्रासो अतिः प्र जीवसे मर््योय ।
ज्यो तियेच्छत्यजसरं ॥३॥
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ज्योतिः । यच्छति । अज॑सं ॥३॥
दितिर
ऽजसखमविद्छिनं ज्योतिल्तेजो जीवसे जीवितुं मयच्छति
क. 0
नाया देवमातुः पु्रासः पुचा मिच्राटयो यस्मे मत्यौय मनुष्याय:
यच्छति तस्य शचर्नेश्वर इत्यथैः
चारिष्णे वैः ॥
वात इति तृचं पंचिंशं सूक्तं वात्तगोचस्योलस्याधै गायत्रं वा
॥ इत्य्टम
यस्मे । प्रासः । अदितिः । प्र। जीवसे । मन्योय ।
अमेति गृहनाम । अमा चन गृहेष्वपि तेषां वरूणमिवायेम्णां तटनुगहीतानां
स्तौतुणं वाघश्सोऽघमनथेमाशर्समानो रिपुः शबुने हीशे । न खलु हिसितु-
मीषटे । त्कोपस्त आत्मनेपदेषिति तलोपः । खनुदाचेलाछ्चसा वंधातुकानुदा चत्व
धातुस्वरः शिष्यते । तथाध्वसु मार्गेषु वारणेषु यच पुरूषा निवायेते तेषु च स्थानेषु
० ७, ० ७, ०४४.
त । चीणामित्यपि छंदसि इश्यत इति
नामन्यतरः
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०१०. अ० १२.सू०१४७.] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ € ~ |.
वातः आ । वातु । भेषजं । णंऽभु । मयःऽ्भु। नः हृदे!
म्र। नः। आयूंषि । तारिषत् ॥१॥ १
वातो वायुर्नोऽ स्माकं हृदे हृद्याय भेषजमोषधमुदनं वा वातु । आगमयतु । 6
दग्भूत । शभु रोगश्मनस्य भावयितृ मयोभु सुखस्य च भावयितृ । अपि च कि |
ऽस्माकमायूषि प्र तारित् । प्रवधयतु ॥ _ =. . . ` + ०"
॥ अथय हित्तीया॥ . # ५
उत वातत पितासि न उत भातोत नः स्लां। _ 1
सनो जीवातवे कृधि॥२॥
उत । वात । पितता। श्रसि। नः! उतत। धाता । उत । नः। सल। [व
सः। नः । जीवातवे कृधि॥२॥ = |. `
उतापि च हे वात्त त्वं नोऽस्मावं पितासि । उत्मादको भवसि । उतापि च
भराता भवसि । उतापि च नोऽस्माकं सला समानख्यानो भिचभूतश्च भवसि । स
त्वं नोऽ स्माज्ञीवातवे जीवनहेतवे यागाय कृधि । कुर । करोतिष्ां दसो विकरणस्य
कुर्। श्ुमृणुपकृवृभ्य इतिहिधिः॥ ` `
५५
1 ॥ खथतृतीया॥ = ` -ः
यद्रो वातत गृहेईमूरतस्य निषिहितः। =.
{1 <: ~ तो नी देहि जीवसे ३1... । व 1 ्
1 यत् अदः । वात । ते । गृहे । अमूर्तस्य ¦ निऽधिः हिः. 4
[1 तत॑ः। नः देहि! जीवसे ॥३॥ = .
हे वातत वायो ते तव गृहे स्याने यददो योऽसावमृतस्यामरणस्य निधिनिछेषो `
हेतः स्थापितो वतेते ततस्तस्मान्निधेराहत्यामृतत्वं जीवसे नोऽस्माकं जीवनाय
४ र त ५, फ ४ र * ^ , 0 9 1) ॥
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&१० ` ` ॥ ऋग्वेदः ॥
डदसीदमादिके इ सूक्ते । सूच्यते हि । प्राग्रये वाचमिति सूक्ते इमां मे खगे समिधं
। आ०४.१३.। इति ॥ ट्श्राचस्य नवमेऽहन्याप्रिमारुत इटं जातवेदसं निविडधानं ।
सूचितं च । मरुतो यस्य हि प्राग्रये वाचमित्याभ्रिमारतं । खआ०४,११.। इति॥
। . ॥ तच प्रथमा। ि।
प्राग्रये वाच॑मीरय वृषभाय धितीनां ।
स न॑ः पषेदति दिषंः ॥१॥ [र
मर। ग्रथ । वाचं । ईरय । वृषभाय । छितीनां ।
सः। नः। पषेत्। सतिं । डिषंः ॥१॥
हे स्तोतरम्रये स्तुतिरूपां वाचं प्रेरय । उच्चारय । कथंभूताय । सितीनां मनुयाणां
यजमानाना वृषभाय कामानां वधिचे। किं प्रयोजनमिति चेत् सोऽग्रिर्नोऽस्ा-
न्बिषौ इेषटुनति पषेत्। अतिपारयेत् ॥
॥ अथ इडित्तीया ॥ | |
यः परस्याः परावतस्तिरो धन्वातिरोचते ।
स न॑ः पकषेद्ति हषः ॥२॥
: । परस्याः । पराऽवतः । तिरः । धन्वं । अतिऽ रोच॑ते ।
: । नः। पषेत्। अति । हिर्षः ॥२॥ ,,
, योऽम्निः परस्याः परावतोऽतिश्यितादूरदेशाततिरः । प्ाप्रनामेतत् । पराप्रसं-
वध धन्व मर्भूमिं जल्टवजितं देशमतिरोचतेऽतिक्रम्य प्रज्वलति । यडा धन्वां-
तरिं । धन्वारिकषं तिरस्तियेगतिरोचते भृणं प्रकाश्यते । गतमन्यत्
यो रक्षसि निचूवेति वृषां गुक्रेणं शोचिषां। 2 4
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म०१०.अ०१२. सूर १४४.] ॥ अष्टमोऽषटकः ॥ ६११ ` ॥
॥ अथ चतुर्थी ॥ = ` |
ध विश्वानि विपश्य॑ति भव॑ना सं च पश्य॑ति । ध
सनः पषेदतिद्िषैः॥४॥ क
: विश्वां । अभि । विऽपश्य॑ति । भुव॑ना । सं । च । पश्य॑ति। "1
: । नः । पषेत्। अति । दिष॑ः ॥४॥ |
योऽगनिः सूयेरूपेण विश्वा विश्वानि सवीणि भूतजातान्यभिमुरं विपश्यति `
विशेषेण तेजसा प्रते । प्रकाश्यतीत्यथैः। भुवना भुवनानि भूतजातानि संपश्यति 4
च सम्यग्जानाति च । खन्यत्सिं ॥ ॥
॥ अय पचमी ॥
यो अस्य पारे रज॑सः शक्रो अग्निरजायत ।
सं नैः पषेदति हिष॑ः ॥५॥ | ह क
यः । अस्य । परे । रज॑सः । मुक्तः । अभ्रिः । अजायत ।
सः नः। पषेत्। तिं । हिष॑ः ॥५॥
अस्य रजसो लोकस्यांतरिक्षस्य पार उपरिदिशे शुक्रः प्ुभवर्णो योऽम्रिवि-
यदात्मना सूयोत्मना वाजायत प्रादुभैवति स नोऽस्मान्डिषो देषटुनति पषेत् ।
सतिपारयतु ॥
॥ इत्यष्टमस्याष्टमे पंचचत्वारि्णो वैः ॥
प्र नूनमिति तृचं सप्रविंशं सूक्तं । अप्निपुचस्य १ गायत्रं जात्तवेदो-
ोऽम्नर्दवता। तथा चानुक्रातं। पर नूनं तृचमाप्रेयः श्येनो जातवेदस्यमिति॥
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ी (6 ॥ । । । ई ॥ 1
र म्र । नूनं | जाततवेंदसमण्वं हि
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६१२ श ॥ ऋग्वेदः॥ [अ०४.अ०४, व०४9.
जातवेदसं जातानां वेदितारं जात्तथनादिकं वाश्वं कम भिव्योघरुवंतं वाजिन-
मन्नव॑तं हे वविग्यजमाना नूनमवश्यं प्र हिनोत । प्रवधेयत । यदवा । अश्वमिव
स्तुतिभिः प्रेर्यत । हि गतौ वुद्ौ च । अस्भाल्लोटि तशब्दस्य तप्ननप्रनयनाेति
तवादेशः। किम । नोऽस्माकमिद्ं बरहिरास्तीरमासदे । आसत प्रष्ठ । बहिरा-
दतिित्यथेः। सदेः कृत्यार्थे तवेरेनिति केन्परत्ययः ॥ 8 ^4
"९
॥ अथ दितीया॥ `
` अस्य प्र जातवेदसो विप्रवीरस्य मीव्डहूषः। `
५५ = महीमिंयभिं सुष्टुतिं ॥२॥ = 9 8
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अस्य । प्र। जातऽवेदः । विप्रऽवीरस्य । मीष्टहुषः। `
मही । इयम । सुऽस्तुतिं ॥२। ।
जातवेदसो जातानां वेदितुरविप्रवीरस्य । । विप्रा मेधाविनो यजमाना वीराः
३ यस्य । ताहशस्य मीव्टहुषः सेत्ुरस्य्रेमेही' महतीं सृष्टतिं शोभनां सतति
परेयमिं । प्रेरयामि । छ गतौ । जोहोत्यादिकः । अर्तिपिपत्योश्चत्यभ्यासस्येत्वं ॥
॥अथतृतीया॥
या स्चों जातवेदसो देवचा हव्यवा्हनीः ।
॥ मे
तानिर्नों यज्ञमिन्वतु ॥३॥ व 9
याः। रुच॑ः । जातऽ वेदसः । देवऽचा । हव्यऽ वार्हनीः ।
, ताभिः। नः। यज्ञ । इन्वतु ॥३।
म० १०, ० १२. सू० १४९. ॥ खष्टमों ऽ टकः ॥ &१३ ;
वाक्येऽहनि मानसगह एतत्सूक्तं शंसनीयं । सूचितं च । आयं गौः पृथिरकमी- ५
दवयुपांशु तिखः पराचीः शर्वा । आ०४.१३.। इति ॥ = `` ~ "~
॥ तच प्रथमा ॥ | [र
आयं गोः पृश्रिरक्रमीदसंटन्मातरं पुरः । "१
पतरं च प्रयनस्व॑ः ॥१॥ ् |
आ । अयं । गोः । पृश्निः । अक्रमीत् । असदत् । मातरं । पुरः ।
पितर । च। प्रऽयन्। स्वषरितिं स्व॑ः॥१॥ क
गोगमनशीलः पृश्निः प्राटवणैः पराप्रतेजा अयं सूय आक्रमीत्। आरं तवान्।
उदयाचल्कं प्राघ्रवानित्यथैः । आक्रम्य च पुरः पुरस्तात्ूवैस्यां दिशि मातरं सर्व- ॥
भूतजातस्य निमोचीं पृथिवीमसदत् । आसीदति । प्राभोति । सदेष्डांदसो लुङ ।
टटृदिलाङ्खुरडगदेशः। ततः पितरं पालकं चयुतोकं । चशब्दाद॑तरिक्षं च प्रयन् प्र- `
कर्षेण शीघ्रं गच्छन् स्वः स्वरणः शोभनगमनो भवति । यदा पितरं स्वर्गलोकं
प्रयन्वतेते ॥
॥ अथ हितीया ॥
=, ` अंतश्चरति रोचनास्य प्राणादपानती ! (9 ।
ख्यन्महिषौ दिवं ॥२॥
संतरितिं । चरति । रोचना । अस्य । प्राणात्। अपऽअनती !
वि। अख्यत्। महिषः । दिवं ॥२॥
अस्य सूयेस्य रोचना रोचमाना दीष्रिरतः शरीरमध्ये सुख्यप्राणात्मना चरति। `
कि
वतेते । किं कुवती । प्राणादपानती । मुख्यप्राणस्य प्राणाद्याः पंच वृत्तयः । तच `
प्राणनं नाडीभिरूध्वे वायोनिगमनं । तथाविधात्माणात्माणनादनंतरमपानती। `
अपाननं नाडीभिरवाद्नुखं वायोनेयनं । तत्कुवेती । अपपूवादनितेलेटः शतृ । `
अदादिवाच्छपो तुक् । उगित्तश्चेति डीप्। शतुरनुम इति नद्या उदात्तं ॥ या ।
1
ला रोचमाना दीभिच्रति। ग
व
ऋति । ऋतं माभू दसोऽघमषेणो भाववृत्तमानुष्टुभं बिति । ल्िंगावि
६१४ ॥ऋग्वेदः॥ ` [अ०्४, अण्४, वण
दिवमंतरिषसुटयास्तमययोमध्ये वयस्यत्। विचरे । प्रकाशयति ॥ महेरविमल्योि- `
षजित्योणारिक्टिषच् प्रत्यः व्याञ् । छाटसे लु ड्यस्यत्तिवक्लीत्यादिना
चेरडदेशः ॥ | ४ | |
काद ॥ अथ तृतीया ॥
चिंश्ाम वि राजति वाक्प्॑तगा्यं धीयते। |
प्रति वस्तोरह दयुभिः ॥३। 4
चिंश्त् । धाम । वि । राजति । वाङ् । पत्तंगायं । धीयते । `
प्रतिं । वस्तोः । खद । दयुऽभिंः॥३॥ = `
विशाम धामानि स्थानानि । वचनव्यत्ययः । वस्लोवासरस्याहोराच
वभूतानि । अहश्ब्टोऽ वधारणे । द्युभिः सूर्यस्य दीधिभिरेव वि राजति । वि-
राजते । विशेषेण दीप्यते । व्यत्ययेनेकवचनं । सुहूतैन्यच धामान्य्
राचरैः पचदशहूः । पततगाय । पतति गच्छतीति पत्तंगः सूरयः । तसं
श्रुतिरूपा
वाक् प्रति धीयते । प्रतिमुखं स्तोतृभ्यः क्रियते ॥ यज्ञा वस्तोरहनि चिंश्डामानि
घटिकाभिप्रायमेतत्। चिंशब्गटिकाः। अत्यंतसंयोगे डितीया। एतावतं कालं द्युभि-
दी्िनिरसौ सूयो वि राजति । विशेषेण दीप्यते । तस्मिंश्च समये वाक् चयीरूपा
तस्मे सूयेरूपाय पतंगाय प्रति धीयते । प्रतिमुखं धायते । स्तयते सयेः खर्व॑त इत्यथः
ूयते हि । ऋग्भिः पूवः दिवि देव ईयते यजुर्वेदे तिष्ठति मध्ये अह इत्यादि ।
यदा विद् सूक्तं सापंरास्या आत्मस्तुतिस्लदा सयात्मना सव यत ' इत्य वगंततव्य
॥
॥ इत्य्टमस्याष्टमे सप्नचत्वारिशो वैः ॥
ऋतमिति तृचमेकीन चवारिशं सूक्तं मधुद्छंदसः पुचस्याघमषणस्याषमानुषटभं।
राच्यादीनां भावानां सृ्यादिप्रतिपादकतवात्ताहयूप एवार्थो देवता ॥ तथा चानु-
वमृत्तबय
। ५. म०१०.अ० १२. सू०१९०.] ॥ अष्टमोऽष्टकः ॥ ५1
नाम । अतं मानसं यथा्थ॑संङ # |
धर्मजातं समुच्चीयते । तत्स ८
| [च्य कृताच्चपसोऽधि । खषध्यपयेर्थे । उपयेजायत । उदपद्यत । १
प्रद सवेमसृजतेति चुतेः। तपश्चाचर खषटव्यपयैतो चनलृष्णं । यस्य ज्ञानमयं ६
इति शरुत्यतरात् । अभिपूवोर्दिधेः कमणि निष्ठा । शीरितो निष्टायामितीट्- [व
तिषेधः । गतिरत्र इति गतेः प्रकृतिस्वरत्वं । स्वरितो वानुदात्ते पदादावि- 7
णः स्वयते । यद्वा । अभीद्वादभितः प्रकाशमानात्परमात्मनो मायाधिष्ठा- क
भरूताहतं सत्य कतः प्रकृतिरिति प्रकृतेग्पादानसंज्ञा। 4.
स्मादेवेश्वगादराची । उपत्क्षणमेतदहो ऽपि । अहश्च राचिश्वाजायतत । राचे- न
जसाविति डीप् । ततस्त सदेवेष्छगदणेवीऽ णेसोदकेन युक्तः समुद्श्वाजायत ४
समुटशब्दो ऽतरिछोदध्योः साधारण इत्यथिमता्थैस्य प्रकाश्नायाणेवश्ब्धेन वि-
। अणेसः सतोपश्चेति मत्वर्थीयो वप्रत्ययः सल्लोपश्च ॥ `
| ॥ अथ हित्तीया ॥
न समुदराद॑णेवादधिं संवत्सगे अजायत!
॥ अहीराचाणि विदधदिश्वस्य भिषततो वशी ॥२॥
| 1. समुद्राद॑णेवादधि संवत्सरो छजायत।
(< महोराचराणिं विदधदिश्व॑स्य मिषतो वशी ॥२॥
। अणैवात्समुदरतसृ्ाटध्यश्ै संवत्सरः संवत्सरोपल शितः सवैः कालोऽजायत |
| श्रूयते हि। सर्वे निमेषा जिरि विच्युतः पुरुषादधि कला सुहूताः काहा्च । त°
| आ०१०.१.। इति । स चेश्वरः । अरोराचाण्येतदुपल्कितानि सवाणि भूतानि
विदधत् कुर्वन् सृजन् । अभ्यस्तानामादिसित्याद्युदात्ततं । ततः समासे कृदुच्रपद्-
॥ ऋग्वेदः ॥ [०७, अ०७, व०४९.
सूयोचंदरमसेो धाता यथापूवैम॑कल्ययत् ।
दिवं च पृथिवीं चांतरिंक्षमथो स्व॑ः ॥३।
सूयेचंद्रमसो कालस्य ्वजभूतौ दिवं च पृथिवीं चांतरिक्षं च । इत्थं चिभुवनं
स्वः। स्वःश्ब्टः सुखवाची । दिवो विशेषणं । सुखरूपां दिवं । तदेतत्सव धाता
विधाता यथा पूवे पू्वेसिन्कालेऽकल्पयत् सृष्टवान् तथेवागाभिन्यपि कल्ये
कल्य यिष्यतीत्यथेः ॥ |
॥ इत्यष्टमस्या्टमेऽटाचत्वारिष्णे वगैः ॥
संसमिति चतुचछैचं चत्वारिंशं सूक्तं संवननस्याषे । समानौ मंच इति तृतीया
चिष्टुप् श्ष्टास्तिसोऽनुष्टुभः। प्रथमाया अग्रिर्दवत्ता । शिदानां संज्ञानं । अनु-
क्रम्यते च । संसं चतुष्कं संवननः संज्ञानमाद्याम्नेयी तृतीया चिष्टप् तृतीया चिष्-
विति। ्ानुष्टुभं विति पूवमुक्तवाद वशिष्टानामनुटु्र। सूक्तविनियोगो लै गिकः॥
॥ तच प्रथमा ॥
संसमिद्युवसे वृषननग्रे विश्वान्यये आ ।
इक्छस्यदे सर्भिध्यसे स नो वसून्या भ॑र ॥१॥
संऽसं। इत्। युवसे । वृषन् । अम्र । विश्वानि। अयैः। आ ।
इल्छः। पदे । सं । इध्यसे। सः। नः। वसूनि । आ । भर ॥१॥
हे वृषन् कामानां वषितरप्रे ऽये ईश्वरस्त्वं । अयैः स्वामिवेश्ययोरिति यत्मत्य-
यातो निपातितः खयेः। स्वाम्याख्यायामित्यंतोदाचतवं। स त्वं विश्वानि सवखि
भूतजातानि संसं । प्रसमुपोदः पादपूरण इति समो डिवंचनं । इच्छन्दोऽ वधारणे!
आ समत्ात्संयुवसे । मिश्चयसि । देवेषु मध्ये तमेव स्वीणि भूतजातानि वैशा-
नरा ना व्याप्नोषि । नान्य इत्यथः । कविंचेक्छ इडायाः पृथिव्याः पदे स्थान उक्चर-
वेदिलक्षणे। एतदा इक्छायास्पदं यटु्ञरवेदिनाभिः। ए बा०१,२४.। इति बराह्मणं ।
#
या नाातिामिसतुत.०0
। ॥ ₹२॥ |
गच्छव्वं । संगताः संभूता भवत । समो गम्युचीत्यादिना
नेपद्ं । तथा सं वदध्वं । सह वदत । परस्यरं विरोधं परित्यज्येकविधमेव
ति यावन् । व्यक्तवाचां समुच्चारणे । पा०१,३.४४.। इति वदेरात्मनेपदं ।
कं मनांसि सं जानतां । समानमेररूपमेवा्थमवगच्छतु । संप्रतिभ्या-
ध्याने । पा०१,३.४६.। इति जानातेरात्मनेपद्ं । यथा पूर्वे पुरातना देवाः
संजानाना रेकमत्यं प्राप्ता हविभागमुपासते यथा स्वं स्वीकुवेति तथा यूयमपि
वैमत्यं परित्यज्य धनं स्वीकुरूतेति शेषः ॥
॥ अथ तृतीया ॥
समानो मचः समितिः समानी समानं मनैः सह चित्तमेषां ।
नं मंचममि म॑चये वः समानेनं वो हविषां जुहोमि ॥३॥
समानः। मचः । संऽईतिः। समानी । समानं । मन॑ः! सह । चित्तं । एषां ।
4
नं । मंच । अभि । मंचये। वः। समानेनं । वः। हविषां । जुहोमि ॥३॥
पवो ऽचः परो्कृतः उचवरः प्रत्यघकृतः। एषामेकस्मिन्कमेणि सह प्रवृत्ता
नामृषिजां स्तोतृणं वा मचः स्तुति; शस्राचयात्मका गुप्रभाषणं वा समान एक
धोऽस्तु । तथा समितिः प्राभ्िरपि समान्येकरूपास्तु । केवत्मामकेत्यादिन
समानश्ब्टाीप् । उदा्तनिवृक्तिस्वरेण डीप उदात्तत्वं । तथा मनो मननसाध-
नमंतःकरणं चेषां समानमेकविधमणस्तु । चित्तं विचारजं सानं तथा सह सहितं |
परस्परस्थेकार्थनेकीभूतमस्तु । अहं च वो युष्माकं समानमेकविधं मंचमभि म॑चये। `
ेकविध्याय संस्करोमि। तथा वो युष्माकं स्वभूतेन समानेन साधारणेन हविषा 4
भ; ४
वषटूरिण हविः प्रछेपयामीत्यथेः ॥
ख(ि ट् नाह जुहोमि तृतीया तचत् होष्छटसीति कमणि कारके तृतीया । |
॥ ऋग्वेदः ॥ ` [अ०८,अ०्४.व००४९.
समानी । वः। आऽकूतिः। समाना । हर्दयानि । वः
समानं । स्तु! वः । मन॑ः । यथां । वः। सुऽसंह । अस॑ति ॥४।
हे कष्विग्यजमाना वी युष्माकमाक्तिः संकल्पोऽध्यवसायः समान्येकविधोऽ
तथा वो युष्माकं दद्यानि समानान्येकविधानि संतु । तथा ४
करणं । प्रत्येकापेक्षयेकव चनं । तदपि समानमस्तु । यथा
साहित्यमसति भवति तथा समानमस्वित्यन्वयः। अस्तेतैटि बहुः
त्टुगभावः॥ | |
| ॥ इत्य्टमस्याष्टम रकोनपचाश्णे वगः ॥
वेदाथस्य प्रकाशेन तमो हार निवारयन्। `
पुमयोाश्चतुरो देयाबिद्यातीथेमहेश्वरः । +
इति, च्रीमद्राजाधिराजपरमेश्वरवैदिकमारगप्रवतैकथी वीर बुद्धभूपाल साषाज्यध-
रेधरेण सायणाचार्य विरचिते माधवीये वेदाथेप्रकाश हि~ |
4 ताभायेऽटमाषटकेऽष्टमोऽध्यायः संपूरैः ॥ द
शमेख्यदेशजातेन श्रीगोततीथेनिवासिना। ` १
मोश्म्त्छरभटेन भाष्यमिदं विशोधितं ॥
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236.
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12. 9; 1. 97, "3; २.
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6 7; 19--22 ;
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28-30.
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179; 3.
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26. |
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00110.
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174६र]), शिशव), 9४
124€९९0, प 8).
प वाश्रा ध्रा), ५९८ (098०४.
४ 48180118], 5९८ 1000908
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11290, 1811810, 180 पौ]
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2.4- 26.
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57-62; 1. 67, 14-15; क,
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8118911
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57-60.
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90; 14.09
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1
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21 18 11418. [. 63, 9.
सथा गध [४, 6, 17.
शर्वा एव $. 64, 3.
21120026 20700 ¬९. 45, 4.
श].1दर 1112818 ४, 62, 6,
सवै इक्णपकाय) 2. 97, 40.
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28120210 >, 53; 4.
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21811017 1. 5, 9,
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2011६ 101६ एप ०३० प्र. 1, 2.
20118 [त 2209, 6811800 ४. 16, 4.
2470.8 $ 2606 ]सार्0ा 1४. 10, 2.
: 2472 [ङ 206 एश09 ९.6,
भ्व कुष 1. 85,
भ्व वरश्णः 1. 823.
् ४001 08.17107/98080 ४11. 82, 0
{निए 078 ८2185.
६018 8४01882 ----
वा) 728 †98्ाध्प क. 105, 5.
| ध्वा 58 एप्रा० पा. 25.
2त091 अङकषा [, 02, 10.
वा $€ ४1. 63, 5.
20111 द्र [. 89, 6.
ध्वी पर धौ ९. 93, 5.
1152. ४४१ ए, 4, 14.
20115888 {. 140, 9.
व्वप्र [07 [. 2, 3.
वता परथ [90० ४, 72, 16.
धता 08818 [. 114, 20,
वतका थण) [था {80४ 1. 14, 9
वतरा व्) {09280 1. 14, 10.
ध्वा द०26 (वाप ए, 42, 3.
४ प ५. 32, 24.
दवााएशक.१० 70६ क. 30, 3.
व्वा १01011278€0° [, 14, 1
ध्वाएककृष्ए० $ पार [. 14, 4
तवाक क० एद) इदा 5011109
19899 11, 14, 6
ध्वा0एभाकुणए० एथ, इद ४ 1.
190.
ध्वापथकवए0 एषु) इण्ठडाता)
149 9. |
20 पाक 2१० पृथ 7819 [1, 14. 8.
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ध्वाष्वकुण्० ० पाष्ण०्ऽर2 [.
14, -1.
20 एथपुषण
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14; 3:
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प्रथ [दण80020/0 ह.
32
200 प) 1९ 111. 7, +.
2त0एवापृ प्रा ए8 ९, 41; 3.
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2व्[रथाकृ० प दण्ण्क४ #1. 4; 77.
व ए्क0 019. ४1. 44; 13
| 21180616 {. 164; 30.
| शाव). ग08प् 1. 16, 3
1... | भार -पथु88 ४ उ. 35; | | ८
| धाथपप82. 118 111. 59, 3 (4
695
धप (एक्क ०,
| काद्वप पर 1. 700, 7.
` शादाए00 फु +. 18, 2.
21215912 ४1. 99, 4
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| वथः 6 प्र. 31, 4.
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1. 152; ` 5
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1४. 36; 1.
2114558048. ४, 24, 7.
2198280 ४, 82, 6.
212.01111510{8701 ¬. 138, 4.
211810प्त0 ए811800 ] ण्ण 1.
23; 1 7.
2118040 प31120110 १०१70
2, 4
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1४. 24, 5.
21181210012106€ [. 7 16, 5.
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21182028 {€ 1. 16559
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18.
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णप [01271988 [क . 23; 2.
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धप ‰०त ¶ प्र, 29, 2.
ध प्रष्णववि$8. 1, 57, 9.
शप्र पन्च) ए. 62, 5.
21 प्]08811{© -‰, 760, 4.
क्षप 85९4180 1. 33, 71.
ध्प्र 11 ४४६. [2९, 7119,
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| 97 0€ 12९. 107, 9.
धान {800814 ¬. 85, 23.
81610 ए० 0/0 +. 66, $.
2116112.82.1 ४० #[[[. 50, 4.
21611850 01218908 * 11.
49, 4.
2160 ४180 [. 185, ‰.
21610 12. # 1, 67, 72.
शाला10 ऋवणा ए, 18,
2.
99111816 8 >, 136, 4.
वप््छतारडा6 [000 2. 768, 3.
कथा1८८91 {वण ए. 72, 4.
व्ाकातारथुत0 2. 95, 14.
21181218 (91218 ४. 62, 10.
2112" ०८0 111. 3, 2.
~ ` रपद 26608 र, 102, 3
. . भ्िः [त 219, 1. 6, 4.
। भ86 8 09९8. #* 111. 48, 2.
का व्वा उ. 189,
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| अण्णाण ए, 74
` धात् ध्व ए. 24, 5.
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` वण2दै एथ आ. 55,
धा 0121128] 2520 ---
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0. 1
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धर 28१8 ४11, 1, 234.
षा 2118 11888 +. 89, 13.
धष €ुर0 {[. 13, 3.
04112, 80141 ४ [[{. 48, 3.
20970 1वश् क. 142, 7.
20470 1४6 [> . 95, 3.
2102 0४0 व0ये एवै +. 63,
2
208 एवै 90. ऽतथा ए.
18, 10.
08181140 1 . 13, 9.
202९1118 6871 {र , 96, 23.
श]08& 11190 [02806 1. 67, 2.5.
20811118 [04१7886 {९ , 63; 24. | अकै प्णीरवा0 इद/9 र, 100, 8.
गू प098116€ ४. 8, 4.
कष पषण ४1. 14, 10.
धुक्ष [लप्र क. 36, 8.
20211180 80108 [2 . 63, 29.
202 ]$ 0४812 र. 68, 5.
208 प्रिश्ाा पधक ४, 51, 14.
धू {कथ्या [ध्यत 1. 42, 3.
202. {9 9 ४11. 48, 74.
202. {6 वष {. 50, 2,
202 ४६1४ [ 2. 10, 6.
20811 [0160602 9 [[[. 74, 73.
20870 1124116 + 11. 89, 4.
वकर 282 [[. 19, 1.
20410 ४० ४, 87, 6.
901 {00६01 #, 57, 16.
2101086 ]९07प० + 111. 45; 26.
शू 180४ +. 40, 6.
201 87{प9) ४. 38, 3.
ध0पपएणै ४, 32, 7.
20668 ए109 ई. 14, 9.
21060412. १४० + , 152, 5.
2061 080० ¬. 164 7.
20 29 §0§° 1. 94, 2.
202, [01408. +. 137, 7.
208. ० 100८४ ९. 105; 3.
2088 © [1. 37, 16.
शू098¶20 £] शाप1]02तफ 0४
08101 [, 264, 31 ; ` >. 177, 2.
शुध शक्षावणा क, 27, 19.
200 {ए ह, 182, 4. 2.
202 2110 289. ९, 79, 1,
902 इष्वा ४1]. 77, 1.
2108 11218. ~९. 46, 4.
20810 [0९890 ¬, 96, 13.
200 त१९९१' 1. 23; 18.
2100 22" ¬, 104, 9.
900 ईत [४. 76, 8.
200 ४०8४0 [2 , 704, 26,
2080 8010270 [{[. 53; 6. 200 प्यप्रश0 1४. 716, 4.
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2100 अ 08 *111. 64, 75.
2100 € एङ क्र8108 [, 28, 6.
200 [फ़ €8 71 [४ . 33; 9.
भप्धफ€ 111. 51,9. `
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]0191811118100 [. 55, 8.
0121110 [४. 50,
9]07द्फु पठनाद् [ 143,
भण ए. 67, 4
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शक [0797 [. 164, 38.
208 2029810 [. 2, ¢.
2080 11410 ¶ 11. 69, 717.
श]०त् प 60 ४111. 92,
200. € [012८0 1. 152, 2.
2०६१ 0109 11. 30,
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2[ऽप् त्र्य >, 104, 2
शु)ऽप् € 8070 भण्रधस॑त् 1. 2;
20 ; ~. 9, 6.
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228४ 2119: [. 23; 19.
20101116 1. 24; #
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200त#1 18 # त. 9, 1.
2{00त्ा 1010 ४. 1, 2.
2000 20110 ऽध ए, , 7.
210 प्टण 102 [. 1507, 1.
2101471 * 11. 24, 16
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21011 4.0८ ४1. 6, 34.
21001 [वकरलता ४. 21, 6.
20111 {-18.0तवृ्) 18 [९्. 86
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20111 [8110080 [२.14 +.
2010115४ ¬+. 7112, 10.
ध एवात्र # 1. 77, 5.
21011 दध्पदक्ष २. 62
20102 @&० व< [र् . 24, 2.
21111 @450 भापऽ॥० [2 . 22, 5.
0111 01 3. 105; त.
21010) ] भरी 111. 57, 4.
111 128106४9 11. 38, 7.
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धा (थ) प्ण $. 506.
धा प्रः दवैष्व) [र. 84 5.
ध प्रिद दवीपः र. 6, 2.
क्ण प्रिद) [एतय [श 6, 3.
धा {थप 0068 धा 1. इव, 1.
ग प्श्य 1, 90, 2.
॥
धा {४8 ध०ष्डवै दातय 18४६९60
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। ` व01 ए हदव दवैपी3128 |
1४.32, 9
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17209 07 2^१¶11६॥8.
शि {षय पपकत 30078
१. 3,7.
20 (४8 एषिमूीप्थट अतण
१.१09;
201 {ए णमा 1. 56, 3.
201 (एवै प्व ए. 45, 22.
व) {रद 808 ए. 52, 22
2011 (ए शत00 र. 05 4.
2001 पुव र. 110, 8.
2011 तपाः 1, 108, 9.
20111 पपा [. 4९, त.
धप ताएक र. 33, 2
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०1 वण]भपा) व ध 1. 149,
20111 19 1] प. 47, 19.
६0111091; 3182110 [व , 24, 6.
201 110 वृलए्ी [. 22, 2.
2011 70 एकक प्र, 52, 2.
20) 00 »ब]2384० [र . 98, 7,
2011 1018 ९०५ पा. 69, 4
2011 [18 तध्व ४. 19, 5.
2071 [002 0194 (1. 89, 4
21011 [कु वव81 ४411838 [1,11.4
दण) [वदा ऽपतूपवै प्र, 15,
7
2011 [018 ए) ऽप ए. 49, 1.
धा [ए7वरवा2 ४. 58, 8.
गा [72 ऽध॑ प्न. 34 5.
2011 कव [दप्9 र. 57; 2
20111 [कवर [04९४816 ९४0० [द .
753 1.
ध [ककष व्या6 एप्प र्.
94; 12.
20111018 वार [08तश्षा [ 7९, 10,9.
2011 [01758 ५128 0208. [९ , 12, 8.
2001 [वै 0भ्0 ए. 20, 6.
2011 [ष्टण क. 83; 4.
20101 भो णी 1. 23; 5.
। ` धप्एाप्ण्ट 1. 21, 2.
| श्ण भथा. क. 166, 4
> | भरष्ु
20101 क 0९ पुता $. 34 1
69
21818.
भोगप कप तलक प्त्ः+र प्रा. 38, 4.
201) $€ ४९४ ४, 9, 4.
2011 $€ 1110 ए. 38, 5.
2071 ० 119० [[. 59, +.
20111 ए28{४ [ ह, 947, 50.
६01 ए पश्छ9 ४. 12, 15.
21011 ९121017 3. 9,6
4071 एवै) तिधा ४1. 647, 2.
20101 एवैफुपा) 17. 90, 49.
201 ए1018 व1080848 28१0 [र
1 #। (2 [|
20171 एा018 900811848 10770
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20111 एाइश्थाणा 1. 42; 5.
200 प्यु48. कर. 1404, 2
20111 ऽ८08 13९. 64, 27.
2011 %० ६1८6 ४. 41, 8.
2001 ४० तप्त $. 24; 9.
20111 ० ए भ. 46, 14.
40171 एथ०६$ [11. 52; 19
2011 एधा 08 $. 6, 25.
2011191श्द्४ 1. 133, 2.
901 इङुधषश्या क. 68, 71.
2011151{8106 [. 80, 14.
20119116 *[1. 68, 5.
2011 5101070 1. 32; 13.
20111 81488 [९ . 14; 2.
20101 8िषतप्रधऽ 0 [. 42; 8.
21011} 8011088, , , , | 2101111 062111
1. 22; 4.
ध 80882. , , , | इथ्णप्ता- =
8१011 12 , 70475 74
णाप ऽरशुपणापः प, 56, $` | १
थण इषथाथ्प ए. 13; 28;
ध011 ण्डी 1. 52, 5,
20111 11 ऽन ४111. 98, 5
2011114 8881711 [[1. 56, 4. 09
† व्रण लभ ऋ. 48, ;
| 698
८, 21114119.
धणति 9ा1 शद$8 [र 7, 9.
20001 शरदश [. 51, 2.
वण पन्धञ9 01208, 1. 144, 2.
2011111. 11858 ५181{० [९ , 4, 5
2001१ 2116108 2. 1474, 1.
धतत [चू5० 1, 35, 4.
2010१ 8179188 ए]. 32, 24.
॥ 10111 अरप 9) ४. 7, $.
१ वणा आप ४98 ए, 93, 21.
॑ 20107 आर धक्) र. 59, 4.
धा 01 पथाक० इ. 8, 3.
धणप्{इष प ४1. 9, 16.
20104 1व@् [. 182
६0त् घ [क्री 1. 46, 11,
20110 प 118 प 1. 46, 19,
2010 प ४० 1४. 24, 4.
20 पत पञ तावा ४ [[.79,3.
21110 प 10524 ४, 7; 9.
20104 0९४) ऽ४९० [ ४, 54; 1.
2010" प ए. 45; 73.
20187 60 ४. $, 7,
वणि ए पारा उ, छ, 7, ,
1 - वण श 0 1. 170, 5
५ ष , शण 2८2 ए. 4, 4
८ वक 8198 [४. 58, 10,
ध. 200 9181018, 7108 [क . 20, 4
५ ` गणप धल प्ाथदक्चणा 1, व, 4
| ¦ भण गाथ पठशुर्शभा2 [. 57
| | भण् शम, इथदअगधा 1, 62;
दपु वा808 इष्वैकृपत्09 17. 40
200 21808712080 प [क . 4, 8
धता ग्ड) ४, 19, 7.
५ ॥ 1 4 2005 01110 # 1. 29
27शुभप810 क. 04;
1 ©
801110६
21112110 128 1. 165; 17.
2128110411 8107141 {. 126, 7.
21121110211त # [[. 7, 14.
धथ] ८85 त् ¬>. 39, 3.
धथ तिः 158 11. 17, 4.
2714 6811870 ४. 59, 2.
22082 $ $. 29, 6.
21111818, 1९. 77, ¢.
ध1116185प०० 11. 29; 15.
2111112 , 124, 2.
717 ए (18118 1, 24; 19.
220 $€ 0८४} 1. 105; 5.
21201 $€ [0160° [. 105; 70.
2101 € 89०४४ 1. 705; 9.
221४2118 ४11. 55; 7.
21118 लंत्रक्षाा ९, 103; 12.
धाति" $8 [. 23; 14.
धप) कः प, 090;
20018 ए18%४ 911. 67, 5;
2100010 018 प्र, 6, 2,
ध्णृ111602. [2 . 69, 5.
व7{871 1६९० ४1. 74; 5.
21116४8. 18 [[. 36, &.
व.1080 पृथ [. 24) 16.
2110141116 [[. 47, 16.
21059] 88 1. 769, 3
2211 81 81111} [४.15 4.
वफ द]10 1. 140; 4.
वफ 2118 ४11. 7062, 8.
धव) 01018 [४. 3, 2.
णवा एण णथुप्थ्) इ, 2, 21.
210 0 1018 क. 52; 3.
धकप ८0८९ ए, 39, 4.
धधा 810. [द181100 ४11. 85; 3
पोप प्रवी छभ0० प्रा, 9,
व एवा) 200 $. 22, 8.
णया पक्षा एषण शल [४
१1411148.
धुक्ष 1४ 11018.
22102
9 8110
8111
ध 811
ध 211
प 2110
ध 211
2. 2.13
2 810
44;
2 8.12
16.
22
8 2.11
र 2.)
28.110
2 210
2210
धप
९2.10
धधा
2 2120
2. 2110
9:01
धफ90
9
फक
1080 ` ९15 ४. 447, 5.
एवष, ९. 25 11.
16४६ 2011 ४, 97, 9.
15980) 1. 54; 3.
ए 1४. 17, 9.
ए€ा28 >. 123; ए.
४० 918 1४. 34; 3.
81111४6 [ ४. 14; 10.
धक 910 82108118, [, 720; 71.
88. 488. +. 6, 1.
धक 82128182 ४11. 2,
88. 109 [. 149, 5.
दफा इ0ि8 10० [र . 54;
80118. 11078 {परभा
8१1४€ धप 12. 88, 7.
80718) [६थ]0° 1. 647; 71.
8011188 081० 9, 51,
8110 ¬. 61, 16.
80 पाः $. 47, 2.
0४ 2५ ४11. 68, 4
18 ९08 ४ [[. 65; |
111 6 कणाथ2 2. 144; 1.
पि 168 णा. 4०, 4.
008 ए. 9, 4.
प्रधा | ॥ 008 42 4:
[पत्यः +. 79;
९०९ 8. +. 25; 10,
धवा 88, $0 01585 1९. 39, 4.
9 _ „^
वफ 89. प0 एएवा11041080) ४.
वफ. 82. 81116 [. 164, 29.
810 &€प (प्रकृ) # [. 86, 8.
#।
~ 9
धफव0 80 वि" वपा2 ४1. त,
कि20 80 20011 281011६
ध 21 80108. 1148 00 क्प
870४2. ४ ४, 29, 7.
पफ) ॥8 ल01 ४1]. 100, 1. वफ ध 32 [078 +. 106, 3.
वषत {€ 954४ 1. 44, 1. प्फ घए आक इष] श].
वफ़ा 16 डपा प्रु द. 82, 6. १;
श्ष्धा ६6 प्क्ाप्ञ€ $. 64, 10. | कुशा) ला2 (0४ ए. 2.5; 16.
धधा € इणः 1. 29, 10. धशः € र. 86, 19.
दफा {6 इवा वेपवरवती ए, 64; | कश [97 ष. 18, 1,
1; वा [0778218 [>. 86, 21.
धक {€ 81070 1. 16, ¢. ध) [0518 [3 . 101, 4.
यकु वराद [. 105, 3. धप ध) 01101$8 [९ , 106, 2.
धथ पारछावषव) र. 86, 14.
वपु 211 10844801 >. 60, %7.
धा 11108858 [. 94, 12.
पपुश) त288852ो1 2. 99, 70.
धव १५४ [> . 68, 9.
धश तीटावैव, ४. 13, 3९.
दुध 06९20 58 $. 44, 22. वफ़ा 1117848. [. 136, 4.
ददा तृटपव्रक्षण [. 160, 4. वथ 10110 [[1. 59, 4
धधा 706 [012 पत ए. 47; 3.
धधा 116 18810 +. 60, 12.
व्0ा १८५९४. [. 209, 7.
ध) वटषल्ञप 3. 44, 5
दथ वरु कष्वुप्रतार ४, 44, 24. | पफवैपडथ 9606 व. 35; 15.
शरदा) १९०६९५११ ४. 39, 3. ध 000 [*. 65; 72.
धद 0 8118 ~. 62, 4. 2 {€ 8906 ए1व11€0° [. 6, 2.
धरा पात +. 108, त.
धधा) 110 प्तक 1. 747, 4 वफ 0118 * 111. 93; 147.
दफा ववृ11०त +. 44, 24 फ 11}षद1077 12. 52; 2.
द्रथा व@ा010 इधाद्ा10 #
75; 4. 14.
धपः वदप) पषा 1. | श 09४25४2 त]47 [र, 63, 4.
१.2; धव [0 थै 12. 97, 52.
वफ) धद पपन +. 106, 4. | भै09 01520 ४. 92, 1.
गकि 0100808. ४11. 23, 2.
धफव011 {€ 111, 74; 2.
|
वफ़ा) प्प १९1188४० ९, 69,
1 2*
वध) 2016 9108 >, 142, 1. ध 0९८४ [९ . 117, 7.
शुध श 1१८ ए. 44, 28. | भदै षदा ए, 10, 15.
धयै ए [3. 6, 1.
ध 80719]) 1 इ. 407, 1.
धै 18 {811 ४. 22, 6.
णतु कडवा ४81० [[. 53, 20.
` भश वडव वपवैएर2 क. 144; 2.
शफ9ा0 2870071 ४. 100, 4.
यङ) 108 पयत8}° इ. 86, 18.
यक 11470 109९ # [1.76 2.
कक) 1118 [भ ४. 4,
। पकाय प € इथ भवञ 1. 5०, 4
१. 95;
20.9
धृ प्ा8 39018 [भन # 11.60, 3
वपा 8019 >. 62; 8.
99) {€ 82198४९ कप्] 2521710 # 11. 62, 2.
धपु) 2 1. 169, 2.
|. भ पतत्2 20 +]. 45, 3.
शफ ०११11ब8ल0 ऋ. 138, 5
170 07 ए7^+111८^8
&72 6 व्टा€ 8011018 1 ४, 4, 15.
ध [02९९8४8 पटपय्फुपाः [९ , 7106,
क पा 39068. इप्रणताङु प्रर) 1.
वाठ) 6 ए. 4,
699
22) {8 ला --- 21111110.
धपु प88070 1. 34, 6.
वफ ००2.11810{70 ह . 84,
४०१०1९५8 [. 32, 6.
21811 11 # [[. ५2, 26
28110 [६ वरव ९. 96, ¢.
21811 [र0904प [. 100, 4.
वाथ 80दवैक2, ए. 15, 13.
धावु वैक 97० र. 146, 1.
21011501" 1011 [[1. 29, 2.
2121 12. 11018. ४]. 92, 24.
21811 १४80 ए. 86, 2
28 ४]. 47, 12.
वाव18.1114100 [, 72, 3.
धा21182¶ 8६1 [[. 72; 12.
धाथ 28 ए. 92, 25.
वाथा 02 पडदा) 1 प, 32, 24.
धच 116 ददा) ए, 64; 2.
21450120 [र , 94, 20,
214, 15;60 $, 58, 5. |
धात्ा11 1001४ 11181200 2. 52; 2.
2181 [६8106 र. 155; 1.
धवत् [3.74 5.
धा111.8101 ए970 [. 46, 8.
21181118} 88 > , 64, 73.
धाप्9ृ08प्ाः ४11. 73; 76.
धा प10 208. 1, 705, 18.
धाप8128१8. ४. 49, 3.
2108110 ]911° [> . 25; 5.
धचप८९१ 13. 83, 3.
21017801 [. 77, 10.
20212. [011९० # 1. 69, 8.
21084 18118 1. 145, 2.
४०१९ लुर€ # 1. 20, 10.
अा0210188 ए9 छ, 131,
८१ 1. 92, 3. 0
४08. 01४6 1. 74; 3.
2124101 १8 ऽ४210411
700
21002111 {10 ----
६1011) पी प, 18, 16.
४1011810 78 #[[1. 69, 15.
धा वा 9 दा). रद्रा) ४, 2, 4.
धप धावद एना 280 1001 र.
14713
धक ध018 00 111. 54, 185.
धादधा0कुक एवथा० ४, 85; 4.
वि¶० ४४ ९, 148; 3.
धा7० एई -र. 20, 4.
21800172 206 [. 73, 9.
४1४2010 ४], 96, 7; #[1. 97, +.
धावै [एद इ. 97, 25.
वा कप एाईष्वरवैकदाा शु.
247; 1.
धाव व्रा 01 ४11. 35; 22.
धर्षा लु [. 104; 9.
धाव {९वु 0 1. 154, 3,
2४811 1218 #[{. 82, 8.
गाकववीणाा प 1. 54, 2.
धारवैटी0 ४४३० [ ४. 2, 14.
धावी ऽपर 1४, 57, 6.
++, 1.111.901
6, 45 3 - ४1. 52, 39.
ध्ाएवप८छा ४8 ऽपर € [1 41, 9.
धाएवै16800 तरकु) 1. 45; 10,
भका ०त$६ 11. 57, 5.
धाष्वैपदथा) क्ण इ. 128, 10.
ध1"४168 1. 47, 8.
वाव160 ०4४2. [1, 29, 6.
वपकए0 28 दध 11. 46, 8.
शापदैश0 8.8 29४ 111. 37, 74.
28118 108} 12. 61, 15
21812. 80118. [5 . 65; 19
2189110 $€ #. 52; 5
21187. 0100० [. 33, 19
12100 [[. 30, 20. `
धथ [-. 6, 30.
2४90086 तरवै) 11. 155 2. ( 1
9९] षाद [था2 ], 164; 1,
17 07 एव.
9४8. {811}. 47४० [. ०, 5.
2‰202810{8 #{[[. 62, 6.
2१४. 16 60० †. 24, 14.
2४2 {18718 1. 104; 2.
ध. प्ा8. 1040 [क . 57, 3.
2४४ प्य णार र. 134; 3.
2४2. ४९ 1018 ४1. 44, 14.
9४86970 198. [ ४. 18, 5.
ध2 तकप{19 1. 75; 3.
2४४. 07050 # 111. 96, 13.
2. वूपटुतक्वण $. 86,
2४४ 0४०६6 ¬> . 59, 9.
2४४ 110 पपम्] ¬. 105; 8.
एथ, 21 ४ 1, 43; 7.
2ए20६प 1091 [. 106; 3.
वषश 071 ४. 52; 4.
धए2 [081801" र. 94, 77.
2४४ 96 01600 ४. 24, 3.
28 कृ {एव 3. 124; 4.
2४४ एध, ऽ१€ # 111. 79, 9.
र्था ४. 18, 13.
धयत 1. 7, 4.
2४ 1112108 1, 133; 6.
व४218114 ४. 82, 70.
29910011 {, 182, 6.
2४४. ₹€व170 # [1]. 60, 9.
2४. 8100400 ४ 1, 87, 6,
22814] 07 [. 1.42; 11.
2९९. 8] 2 [पथाः +. 16, 5.
2.8.811} ६० {. 139; 11.
0.0.111 ४1. 75; 16.
2 शुभतां ए, 3, 9.
2४2. 81108. 0112० -ह, 134; 2.
2 818 ए95प2 ४, ¶, &.
धश ४6 [. 116, 22.
धथ, 88 इय त0्0 प्र, 16, 2.
क, अषप 1. 61, 4.
2४४. इष्ण 1. 168, 4
परथ ष्व ए. 60, 9
2518607) 111.
ध एप् ]२80 . 50,
प्र 10 8218 [. 79, ¢.
दए 110 गदश्फपणः $. 86, 6.
व४व४8521{2 [९ , 19, 4.
2४१8870 1118611० 1, 132; 3.
2४६81] 10192 >. 138, 2.
धए4811]8018. ]प्वफ0 [४ . 19, 2.
21६४ 110 [९ . 67, 10. |
25118 8} ४1. 36, 7.
2148 ४. 44, 4.
2४101858 ¬. 85, 48. `
21484 त1%0 [. 730, 2. `
2100810 {€ ¬+. 187, 2.
४707९ धत *. 45; 2.
धप्ा}010 ४४ ४1. 67, 9.
धश180{शा 410870४० # 1. 64, 6.
व४1810{0 2810871 #[[. 34, 12.
वफ) 20 ४11. 34, 14.
श्रव 1४8 क. 86, 9.
2१14194 ४ [[. 80, 10.
वपत 1४, 32, 12.
दष्वव [, 124, 74.
4४०८4108. रथष्छक€ ए, 7, 12.
&४00व02. 12710 [. 7714, ए.
20८1018 प1एव८वाव्ण र 1. 180, 8.
2४०९719, 11211846 ४ [[. 54; 5.
2700६108. 1810820४ 1. 78, 5.
४० तरवै) >. 60, 4.
धप 111४ ४. 64; 71.
दपण एका) ए, 67, 4.
ए€ [ए प80970 [+ . 86, 25
धएफल€ १०0) 12. 69, 3
धएफ0 एदा 00 [तवा [र , 503.
वकफ0 एवै€ [वप [तक० 2. 7,
वकण पवष) क. 10, 16.
280९ श्ण) ए. 67; 2.
28118]01100} 02 -‰. 6६, 8.
कावारी पीकर क, 538.
57148911. [1. 24, 4 ॥
+
25118 ह, 85, 40.
2591116 »० 2. 94, 5.
व्वा 118 हौ ए, 103, 0.
धडण्वााः 12 एप [. 1वक, 4.
28४2100 118. {एद 1. 24, 7,
45540 1त #[. 74, 19.
5४६8१418 11. 35, 6.
25९8 1१९त् ४. 59, 5.
25१३ 1० क. 74, 10.
25९8 118. ४.1. 67, 4
25 2100 ~. 160, &.
यकर [0121८ [. 83, 1.
2€एवएव 8010० +, 94, #.
ध5ष्वैरणिः @0ा214 02 प81480
` ४.41; "11.553;
दपवीषवत्ीः छाथ एण 1.
123, 12.
वईपवीएथीः @0ापवीः ए1६9४४8प्८१०
{. 48, 2.
धप्वषधाप्थयाा कर. 47, 5.
2४880 18 +. 78, 5.
286१४80 $€ ए. 474, 4.
4557118 [धन 11. 58, 8.
2508 [100 [. 15, 71,
26४1218 प्ण . 3, 2.
रष्ा18 पावत्रपार्दफितः [, 49,
ध
25१7708 गता प्ापर्थि00 1.
58, 9.
धपय कथुषथतीः [. 3, व.
25118 ईत् त ए. 74, 10.
वडषा719 एवै) ए. 73; 6.
95108 एवाः [, 92, 16.
गपा पकणी प्र, 8, 2.
गश रवप 11. 58, 7.
कडषापदक €08... | पा ए, 457
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2६१९१० ल्४ (प, 52, 2.
45९० 09 [800 1 ङ, 97, 28.
28४० १8. [तवात्9 1. 26, 3.
250 718. (थते [र् , 64, 2.
४5९0 ष्णु08 [ह , 112, 4.
25१ ए98ु2 (प. 47, 20.
४5प्फ० ४10 1. $2, 12.
2390 एप्प 1. उव, 2,
237] पट प, 70, 4
25118110 206 [11. 15, 4.
257 ह, 85, 59.
281{8 11210 [, 127, 8.
28 [880 इ, 0723 8,
950 वप एकप {. 35, 8.
2880 2. ९, 5, ¢.
2३ 2{8घ् 106 ~. 24, 1.
232 7.8 $. 31, 18.
धऽथ711. 1: ४1, 8, 5.
28908081 890० र. 144; 5.
28019 820० 2, 1509, 5.
धडवापश्म 18112118 [. 54, $.
28211871 र, 60, 2.
ध्ञाापू180{0 ४. 17, 4.
{>९., 106, 12.
धऽधा]1 120४0 12. 36, 7.
281 पथरफएै [. 91, 4,
2887] पका) 8118० [, 181, ¢.
2821.]1 1 [ह . 109, 19.
2891] शरथा0010 12९. 86, 46.
28280818] 5६० [2 . 86, 24.
28850818 1027० ए. 64, 9.
28880817 #[, 6, 2,
28207 # 11. 7, 5
2821028. $2108 1, 773, 9.
28201 1 1. 29, 9
280 00 1. $9, 10
28 20० ~. 132, 4.
98वैषा € ४, 43; 5
| ॐच तरण ४. 327, 1,
98 80718 1702 1. 84, 1.
88 80110. 13. 82. 7
प्क 07 ८841148.
2872100 एषु
| ` 0डणावृ्पा इध प्य
ॐञैष् इण) [पपर क्, 104 7. |
28712121 ए 21 §प् 0875,
वैष वाणः [द् 62, 4.
वडाफृषण (ए. 10, 1.
287 7810 1. 163; &.
281 1 [. 81, 2.
2106 [धाद क, 59, 6,
धऽप्ा06 1187010 द, 59, ‰
281ए080{870. {, 776, 4.
धपा 7018 ए. 74, 15.
2804 [00 [1. 38, 5,
25018. [0६7 1. 168, 9,
23181278 [इ . 64, 4.
281८291 तलपकतभा€ भ्रः [र
446, 1
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288 01 8षपु 25051018) ४.82, 2.
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धा) 11410 1४. 28, 2.
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12. 109, 9.
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17100 08 [7.55 2.
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1000 एप कपा [क 67, 5. `
700 इक्परपकतयान [द 35 2.
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11102. 11 80702109 ४. 2,
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11072 08 ध्वा 111. 34, 16.
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प्रताप रकषताधप प. 13.76.
11.911. 98701180 ९. 63; ‰°
पता) शदः प. 31, 12.
11618200 ए18४2 1. 77, 1,
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11018) इता ०8४. ४1. 12, 9
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10तरवरप88 ४. 319.
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1707दह् भरत् ४1. 59, 6.
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3.
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तवा परक 106 एत्. 60, ४.
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1072000 इधवतृदएणद ए, 27, 6.
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1007) वडा क, 86, 17.
1778 छप कडार छ. त, 1.
171018}0215218 1. 52, 1.
पताव 09808्र 1४. 49, 5.
11101952. ९६५४० ए. 69, 6.
11101252. 170 ¬>, 89, 4.
170तादकु2 प्पपथ्णा [, 84, 5.
ताक [08रध6 [९ , 707; 14.
तावक 1209916 $. 92, 19
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82112 ४1. 98, 1.
10078 इप्धत् ४. 7, 19.
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1040वै$ 2 80718 [0] [3 . 78, 2,
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22; 6.
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85; 1.
4: ता ऽपः 1 26595:
| पताक प कथाः 1. 147, व.
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11
10148010. 9111710.
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1४. 47, 4. |
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०4
7प्तावकठफतपः 17. 62, 29.
10014$€14० [ह . 64, 22.
7पतवैरथापा2 ऋ पप्र. 14, 8.
1तावीष्थनप्रधफणाः [. 17, 4.
17तावैरद्यप2 एक [. 14, 4.
10तादरवा प 120० "ए, 68,
७६
पतादषथाप0वै एष्व् 70क्रणा प.
82, 5.
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90.09.
77तावएवाप08 पर्छ 81० छ,
82, 7.
110एवए97 008 १६५11201410111 ४11.
83, 4.
तावर दणि # 1. 84; 5.
पताव उपाध08 $. 68,
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प. (6 ० 021 ४. 33, 9.
पा एए) इभुपोकट द. 71, 5.
पठ (एथ 3010 प्र. 5, 9.
पा (षण्) [099१ इ, 71
` प्ट, [भ ०३६१० 1. 45; 6.
पठ तरव्टणल ए 45; 17
1778 07
पव, (एव भथ क, 45, 3.
प2. {ए ध छ. 64, 6.
पपि तवद) थप प्र, 20, 14.
प्र १६७8४. ४. 0, 15.
18. १४७३४ 1० + . 62
प्ा8 तलफै 0ष्थ० क. 137, 7.
प वदैव ए, 50 3.
प्2, तङकपाण 1. 74 9.
प वव प६० ए. 14, 2.
पै 18. तप {१281184 एष ४८९74
1. 786, 6.
प्र 18. #0 1121850 [, 186, 4.
प्रव 18 701 श््0 [. 186, 8.
2 118 €19 [> . 97, 532.
प॑ 718 68 # 1. 34 18.
प 180 (था) 26० ए. 78, 3.
प्र 180 [पाण ४1. 32, 8.
प, 121 [0718 $, 61, 10,
प 112) 870वू0पा' 911. 25; 14.
प्र 08 8018110 ४. 68, 0.
प्र 12. इप्तुक0्8 [. 147, 72,
पध 118 ऽप्रा011208)0 4.4, 0:
पाद, एप [४, 20, 24.
पव 10 2०८1888 ४. 32, 9.
पव 310 दण्दः 18102 ४ ए8109. ४,
79; $.
प+8 110 &0्ा" 1318 प. ४.
5 9.
प्र 110 207184४ 2816 २. 62
244.
प 70 ९0 णप् [९ . 55; 3.
पर†& 70 08102101 ए. 529 10.
०९ 70 ताप$ पा. 5, 21.
18 10 06४४, १९०४१ प्रा. 75, 2.
ए18 0 वटपवैप ०६१० +, 92, 6.
प्च 20 तलक प्ता शा, 25,
10
1 12. 110 त10 1. 90,
प्र{8 0 पदभ ९. 92 न
पर. 10 01900200 111. 13; 6.
10 पत तप ह. 93; 0.
110 ` 2128९ 1.14; 4
411 ^.
ए्& ९४ ० 00 1. 23; ¢.
715
प्र।2 8108. 820४. | | भा
प्र 70 एश प्ाः छ, 46, 4.
पव 0 "छाः एपताफु2) ए, 50,
14. |
प 0 प एप्तुर० 1. 186, 5.
ध [012त070 ऋ. 102, 4. छ
प [018 [09 1. 93; 2.
प [01911800 ठर द, 42, 9.
पध 0शा190$ द ए. 6, 35.
18 0वदापक्ष0 181 ए, 29, 3,
पध एषषा भपध्थकद , 04, ८४
ए एप्पपथणप ०० 010 1. 4, 5.
{8 112 76 ४. 63, 9.
प 11976 [. 7509, 2.
प 408 ुवध्वतारदै क. 64, 10.
प पपात पाथ ष, 16, व.
2. 06 [वकाः भ. 19, 37.
ए8 106 "7भू००त् $. 67, 9.
प्8 1116 १०८९६18 ४. 67, 18.
प्र एवि ४. 81, 4.
प ‡० पका प्8[€ड॥0ए [, 2.5; 15.
प ०७06 ४]. 2, 6. ९ ०५ | ¦
पध एष इद्08 00 [. 1, 6.
पा. एवै ध ब. 142, 2.
प ए) प्रप 1, 153; 4.
प एदा [४. 38, 2.
118 एवै॥2, [1० र , 186, 2.
प8 एवै $थ) 81० 1. 144, 5.
18. ४8 ए28$2. 1. 86, 3.
प्र पवथ ¬. 25; 3.
६2. 50810109848 ४. 30, 13
प. 8भत088$ 1४. 52, 3.
प श्तू्र0 [४. 30, 72.
प्2. श (6 #11. 2, 42.
प. ऽप्(480 81० $, 5, 6.
8118. 16 0 श्प ४, 52 9 ्
11६
1112
{16
४9. 1860 ] ४, 38, 6.
8 12488. (वा1प20४ 1४. 38; 8.
ः: ` प्रा शण्ड त/दर०2३ 1 ४. 49, 2.
18. 11882 [0811980० ४. 38,9.
ए्†2, 8108 111 ४. 371, 4.
४४9 अपाधफका) [9, 38, 5.
०8 इए2 तल्ण) इथ४० ४, 50, 13.
०
४8 8१8, 08 1410 71. 37, 2.
प9 इफ 09 पथु] ९, 92, 12.
प्2 थ शै] [ञाएणप्णो 1४.
42; 4.
पदे इफ, एद उशपावा' ४. 38, 0.
18 82 पष वाप8028 ४. 56, 0.
18 8पवै ए 8278898 @1101
1.01.
प्रा 5पु8 1181) 80728 2 ] प९19109
५11. 95
{४ उफ 00 0४8 ए. 18, 4.
४2. इए, पव प° [. 2874, 8.
प्र8 88 एवै 102त00< . 1710, 9.
प अदैः इष्ठ $ 11. 26, 18.
4 = पाद इण्थ्पु9 +. 86, 2.
0 प्9 8१219}6 + 111. ३2, 14.
४ प्2 श्थदर]0 ०० +#[. 66, 6.
8 ण्४्३१8 [र 79, 3.
118 १810480 ४, 2, 10.
| | प्प्रतश्) एष्प्पञाल १. 6, 3
ध , प्रष्ु९ कपा 1. 39, 5.
पै क्षिः, प्र. 16, 3
` प्न्चीश्छवोन्ा 3. 87, 7.
| पजणै 1. 24; 13
प्रावि पाथपरद्िरथाः # 1. 33; 11
४902110 12. 107; 29.
प्पल्तक्पा0 ४. 41 6
661811८ ४. 87, 5
1
4
॥॥
प्र 9 तल्० पषड228प9, 11.
1१7१ 07 1२41145.
2 81005 --- १ घ 8012 ५6४९).
प्0 पर 288 ए ४11. 72,
प [09 * 1. १.9;
प॥0 [णाक 11. 7
४० 88 1020 1. 22; 15.
10 88112818 101181108.838111 2081)
1. 64, 26.
प६0 1 एषा ० $. 53, 3.
0 11 एव) तव्य 1४. 38, 7.
0 [1 शव) पपै १
011121811810 प ९, 745
प्र्वशुधा€ +. 145; 2.
प्रवाति दकाथ) [1 10, 3.
पवपव 92 09 (1. 29, ८.
प 80102852. ९. 21079, उ.
प्र प्रथा पाक्ष ४. 56, 5.
प्प्शप्राभा 0}288 # 1]. 76, 10.
4 81119 07९ . 40, 1.
प्र (81112381 8४11० +. 118, 2,
पौ 1€ [70190110 * 1. 44, 4.
प € एकप 5 दत ए8३2६€' 209
1, 224, 72; ४1, 64, 6.
घौ; ४€ 5240 [, 102, 7.
प्र {€ 8प8111119 >, 142, 6.
0 {€ इपड10488 11216 [९ . 61,1.
प्४ ६6 इप्शपा880 अशी 1.
52; 2.
पा 16 8180 वैणा) ९. 28, 73.
0६ {ए ाथातृश्ध्प # 1. 64, 7,
प [पा०७६६६ 1. 197, 8.
प [पिडा ए, 5, 6.
पौ श्िक० प्र. 62, 1.
पा द १४० क, 102, 2.
प्रत् ०९४ 1. 50, 13. |
पत १६०९ 189. ४४ + [1 43, 10.
11 2006 #81{02. प्र. 4, 4.
पत व्टाल एदा ४. 16, 4
४१ 3हण< अपतव्मा88 ॥111. 44, 17
४. 28211010 [{1. 5, 16.
पत 988 080 ४11. 45; 2.
प्त 28१2. इप्श8त भा. 34; 7.
पत 289. 801 23{08व् कपर
12४88 ४11. 16, 3. |
पत् 2852, &0८ोए 232 तीता ण७॥०
9. 23; 4.
पव वधा 1. 5 5.
4 80 111. 6, 48.
प्तवष8 धष्णर811288 ४1. 18, 9.
५४ 11 ४२. प0९० भ. 20, 17.
पताव $० +* 111. 103; 77.
पत 11 प्र ४82 9, 32; 12.
प्रत् 18800 अपन 1, 722;
व पव) वपथ क. 15; 1.
पत् 1द$8 [ध४ ४. 42, 2.
एत् पवक पथा भ, 55; 5.
पत् ¶वफ2ा+४ $ 11. 4; 3.
पत् २ [918 +. 11; 6.
पत् प्व ए ए. 73; 1.
प्रत भत्रश्चा) 1, 714, 16.
प्रत् 118४9. +. 18, 8.
पत् 7809} 10० -९. 85, 21.
प्रत 11811४80 15० +, 85; 22.
प्रत् प ]ण्ध भ. 76; 1.
प्रप प त्श स्थ्णन्भ)ः भ.
1
॥\) ॥।
22; 5.
पतै प्रधा श्चन [, 24; 25. | १
प प्रप्ााभ पाणपद्र 1. 25 21.
प्रत् पर. व्८ (थुरशपाः ए, 57, 1.
पत् प पश्चा 1448० [. 50, 1.
१ प (2 प° ए, 66, 14.
प्रत् प प्र प $. 0; 4.,
प्रत् प ल [8्व्पााः ४. 3, 15
४१ प पा€ 80080 1. 37; 10
1707 07 2411 48. । 117
प्ते प शक2 उ९१४} == प० शप्र इए,
पत प अक वलपण उवप कथ | पातवै क, 136, 3. | प०९ पापैः र. 104, 6.
ए व08, ४1. 38, 1. 2 तभठडणवे एथ 1.871,7. | पषण 108 ए. 53, 1.
प्रत् प ४ तरसा इवा ऽवरक्2 | प08. (शध) . 49, 8. 02 124 06ू0९ र, 124, 7
[[. 38, 2. प्02 (8 भिधाप् [. 125, 4. पप पतै पादा र, 719, 4.
प्त प अफ वट इथप् [72 | पभार्लष्व28 [1, 1, 16. प 009 इफृदणै) 1. 126, 3.
एवेद ४1. 4771, 1. प्प नवक 1४8 भ. 16, 38. 0४ 709 812 ए. 68, 14.
प्रत् प 59 $) ४. 24, 12. प्र09. € व 198 1. 124, 8.
प्त प शकु ऽवाणाा€ $. 25; 19. | ण४ € "वधाय २. 145; 6.
प $श्प € ए, 7, 6.
प 0 78710 ४. 27, 5.
१९३४६५४ 1. 45, 2 प्09 एवै पाथण ४. 102, 15,
प१ &1€व +. 93; 7. प ४१ ]प7० रा. 44 5.
त् तदः ४11. 53; 5. प. ८१2 एथुथ्डथाातर ए. 16, 27.
प्रत् व वशण् २. 103; २0. प0९ ध अ9ण6 ४. 15; 9.
त एप्त्कण्त्र्णयः +. 107, 1. प्र[08 भ) थण [. 187, 4.
10 रृथपाकुवपपध् {. 95, 7. प्र ८} 35829 1. 4; 2.
धद इ ऽध ४. 37, 2. पर९ पशुः इन्ध ४ दभ्या प,न7, 2.
प्त $२त् [ता० ४. 32, #. प्र आ ऽप॑ ४ दिग इतथ
पत् ९ एववा ४्9४ ए 11. 609,9. {11. 42, 7.
प्तप ४9 1. 50, 11. प्र08 709) इप्क्षि 9 या 1891-
ए" 1. 16, 4. |
प]09. 2) अपथ ए, 52, 9.
प ० 6४४ 1. 047, 2.
प09 110 रकन # 1. 26, ¢.
प}09 110 एद]2 19. 37, 1.
प] 10 प] एव. 22, ‡.
धक 20 एषण प्रा. 9, 34.
प्र 8902 ९, 18, 10.
पएष्ड््रण 09० [. 100, 2.
प09ऽवाः धप्रट [. 158, 4.
प02 इण ४, 42, 7.
प02 धारण + 11. 73; 3.
पण्ड भा (सध 1. 145; 4.
प0०199 104 1. 48, 3.
प्र अवण्ठडप +. 72, 15
0०049) >. 15; 5
-धत् ०६१४९ € # 11. 3, 3.
पप ४ पण्णा) 111. 33, 15.
प्तर{्डिए काव [. 167, 71.
एत् रश्व {. 118, 6.
प्त णद्ध {8102888 1. 50, 10.
प्रत् रक्षा ठथुप्शपणः ४. 61, 1.
14 *800 11115817880 200 ्ा021118,
पद कश्ु6 इपकपथा उ. 36, 9.
प्रएभीर्धा€ @17 # 111. 6, 28.
प्एवारभट्प इक्त 1, 84; 2,
पश 111. 35, 2.
पक 2800 ४ 1, 77, 2.
प्0र्थओ्]8 ९, 170, 10,
प088पाथा 1, 773 1.
। 31. प्प [2 पष्प 1. श्रव, 1. प्लवका पक0व८द02) प्र, 28,8
| प्रत् रकष [ुातड480 पाडत प्यथ | प्एभूएाथ्फु ०६० 1 74 7 पन्त भाण 1. 33» 2.
णा. 6०, 4 प्र 018६९ 1 1. 263, | पफल धथ्ाद्श 11. 35;
| पत् एप्त वथकभ [3० 7
प्त लप् [ण्ड्व ५11. 63;
¦ पत् र छा इप्श््० भ. 52 प्र
प्र0० ववा 1, 124; 4.
प0० पक [[. 35, 8
प्एगु0६ 06 1. 126, 7.
प]00 पथ [6
12. . |
| प])2, वह£ [कदय 1, 1659
| प्र]8 [01888 श्रा 29 106 1.16, †
पु& एष्य 1. 67, 29
प्रत् प 5100280 # 1, 72, 3. प्र09 ६6 80790 [. 114, 9. पु08 ४2 68116 10210888 [. 186, 4.
प्प पञ) $. 87, 2. । पु) 0 वप्द४ै [. 188, 19. प ४४ 68106 थवष्ल्णा प्र.
पत प इश्वैल $. 07, 140. प 8 पणणं ४1, 73, 4. 11
प्रत् प भ्त ए. 75 5. 09 परतध्ड2 [र , 102, 2. प09 7819 [र. 19, 6,
त # प 0 शा. 70, 9. 9० एद काण ए. 27, 2, | ण 5१४४592 एर. 47, 29.
प्रत् © &)प्व् +». 14, 8. | प (षवैष्ठल 1. 7, त. प022वए 2 ए. 15; 1.
प्02 6 पतप व) 1. 16426.
718 1707 07 14148.
प ॥९ ष्व स त एवै01, 80111. | न |
प00 ४8 १8५ ४. 93, 3.
1 पण कर्पके ए. 24 14.
| प्र वफुकणा 770० प. 67, 7.
` प्श) ४५९ [. 86, 6
प008रथः), {€ 11. 9, 5
पाश 280 1४2 1. 2, 12.
0६ प एति क, 106, 4.
पणे णपा # 1. 69, 8.
पण वरल कप्य. 22; 2.
पणा ९ 1८० [ङ 5 4.
०11४ [70 धथाा 1. 46, 15.
10181074 १९८०६ 1, 647, 25.
10118 शका 111८ ४1, 60, 14.
008 88788 [. 185, 9.
018 1; १९8४ ४1. 86, 7.
0176 9702 ९. 86, 7.
९16 891 [[. 2073 15.
प्016 लवत् वा ४, 20, 4.
प्णा€ वरुवरकषुप्कपत शईरद्ा0
4. ०1...
006 तापाय क, 707, 71.
10116 पवः 1. 133; 7,
०८ 1108416 1. 95, 6.
प0116 $ € ४. 96, 2.
प्र?1८.‡8 10व28 क. 134; 7.
पा)6 8प&९0 79 प्र, 0.9
प्ण1€ ऽ0पाक०८० 1 $. 32, 4.
। पणणान्फरभुकष क. 89, 3.
` पणा थुक 11. 90,
पप ए ५४8 1. 24; 8.
, ` पाप्म द. 90, 4
1 प्ण दभ वा. 46, 4
ण्ण ए प्रा]. 68.19.
पाप +€ भश) 9५,0.:....
पापः प्प्रणकुम प्रन. 68, 14
` प्प 0 [भथा ए, 478.
६
पा81 ४ 00 20115281) 1, 91.715.
पप्शारवै 00 08 भ*{[. 47,4.
पा01148ए +. 14, 12.
प्08 {8 ४. 38, 7.
प्रादय वटप्यै ४, 42, 147; ४. 45; 16.
प्छ 11218 11]. 7, 77.
प्ाधप एवै $6€ 1. 6, 8.
पाए [पास 1. 185, 4.
प्राणं 8240204 [. 185, 6,
8100 शद्ध 1 [. 48, 17.
18100 २४1€08 [. 67, 1.
प811{476४४ ¬, 106, 2.
81४ १९४. [९ . 58, 2.
011 व९पवैकचण 1. 136; 4.
01 8261९28 ९, 104, 4.
पष्प 90 ४6 3. 165 4.
01]2100 &8० ~. 700, 10.
पिधा 10 तकध्णई 08 ए, 70, 6.
01} वल ४11. 36, 3.
01}0 7908} [क्रथ >. 140, 4.
0110 पशुवत) 88 11101 ए,
48, 2,
पापदक्क कपा) ए. 104, 22.
19८2 106 ४. 847, 4.
प४४8081४ 1. 48, 3.
प्रएठल12, 11 $. 37, 3.
58.18 {दष्०8 ४, 24, 74.
5209, कध [09दर2 ५1. 7, 26.
5218 क्थः 8211955 ए, 29, 9.
51188 {वै ह, 16, 12.
1821118 तत +. 97,
5211 14 € =. 10, 4.
प्रव प प ४. 20, 4,
पार [09एथर0 सथ्य) इ. 45, 0.
प्रर [वैएवुर0 ए४डणाः 1, 60, 4.
प्812. ४ 0181 [. 48, 9.
प्519. 08110 7 ९, 8, 4.
0818] 07 111. 61, 3.
प्8098) [एपिए8 [[1, 55; 1,
81128810 18 ९. ¢8, 4.
0110 ॥9ु0वचा0 §प009९200 प्र.
104.
प0 शुद्धा 24५० [1 [. 24,12
110 पथुक्ल्) 8 ४. 44; 13.
010 भुवत इवथ्वाा क. 115; 8.
पिधा ४, 5
पत 0 शप 2 1. 36, 13.
पिप्0पद प शप 0 भ्वुरथावड ४
4400 .
पितरा लप्र ४, 14, 2.
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[वदै प्पतल [. 58, 5.
[9 ईप 3. 102, 1,
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एप 4552 ए, 14,
(तधि) 70 ए. 19, >.
[तपाः ऋपवुता० द. 20 7,
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४ 1४ पसु $. 63, 1.
[४४ ध 1. 34, 9.
[एए ऋपिाश्रो उप्तृक्४०
"क ..0-28;
[तप प्रणयाः प्त +० 1. 28, 2.
४४ ४६ ऽप [. 38, 3.
फ ४0 ष ४.6, 2.
४९ 8 1९ पपत [. 35, 4.
क इष्ण पवाक ए. 30, 1.
ण 8 प39ण० ए. 64,
| ९ इष्यै ९0 पपार [. 165,
` ६ ष्प् व्व र. 40, 14
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वरकः ऽत् वैष (ष. उव, 6
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्शद00 गवै पथ ]. 09,
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9, =. 11119 1886 84, 9.
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शालतथ2 ृकनिपयै [ए 57, 1,
(शला [96 प्र. 57, 2.
(ञटवैत् भुवा ए, 2, 4.
ला ०89 ०8. ए. 37, 5.
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ध्ठछीाथा १४६० ए. 85, 6.
एवया (एद 1. 25, 1
भावै 10 ४. 847, 9.
०६४8 [आ 1. 147, 2.
धथ वैण ४. 24, 4.
दाता एद, 18 [. 83, 4.
९०३त् पथश एक. 52, 17.
दथवा धा16 -ह. 44; 5.
इभा ण्वी^ पत 1. 45; 5
दभाप्रणिपालद 08. ए, 24, 9.
€ भ्फद8]011400 1. 971, 12.
दसषवः, तल +र. 184, 2.
0116 एप पध इ. 70, 5.
९811016 पध इवा क्र ए, 24
28016 पाक्ष) ४. 16, 35,
दण ण€ कण्डवः र, 52; 71.
दभा कषु ४. 12, 11.
2010 ० शश्च [. 79
2०070 य गदैणान ऋ, 67, 14.
दथवा) 158 ४. 59, 2.
9१891 [1]. 32, 2.
दवद १०६8 70व्था 1४. 10, 716
दश्णक० अप्प 00 # 11. 46, 76,
| हव0गुध्त्य) 1. 42; 4.
| एत्व) ४. 2.48
दवै) 2098118 -९ . 146, 4
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& 0010181 {81611189
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९4१० 8. $. 46, 39.
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1460802, पुता क. 89, 7
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12] 8070 8808. [ह , 102, 4
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| 1908852 20] #. 71, 1.
| 18४9 लात् #. 73, 2,
०480 शठो 26, 2.
1911850 पता पएक ए. 5, 14.
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10111811. $ 0४79 >. 49, 9
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1781780 वपव क, 20, ह.
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1087६व् ए2त् ¶ 1. 164, 5.
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1680612 808 ४111. 2, 23
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162 १८९8 1. 106; 2.
27
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थ पपा ४. 15, 10.
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19, 4.
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0 परल [प्क ४, 44+ 1. ` |
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1210 80) 1, 98, 12.
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{दा 3974 धत [क. 26, 5.
181) 81110718४70 -‰ . 30, 9.
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६8. धप [धथ 1. 142, 3.
12 6 004वा्छणः 1. 94; 24.
{धा ४6 $] 70 ४111. 89, 6.
{६ {€ 821128४. ४11. 43; 23.
व ए कुक्षा 0012109 1. 24512.
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ॐ 9.
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{८
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{द्ा11 80110 [2. 62, 18.
{ध 8ष्7पाः 14116 ४, 82, 1.
{2६ इ 1221} 82112 ४11, 18. 12.
पथा 8077 क्क्ष [. 102, 3. {व ऽप 8) 8४ | 7.0
1870 11115804 12. 52; 4. 19. 55; 16.
धा [7 इथकष्दा2 प्र, 14, 3. {ध इप् 112]) 8वए० | था
18110. [11 ऽए212]271 ४11. 67, क 144;
ध पप्रा, ए, 22, 26. {ध ऽप 10 0 वष्फ्य) ४1, 64, 78.
{971 10141801 ए. 16, 12. {&{ ऽप 10 १९ | [एप
९ 1818112 8 ६2 [, 57, 70. ४. 45; 33.
1418118 ०1 [द , 94; 22. 12६ ए 10 रई१९ | प
। | 19) 11888 [, 20, 3. १1. 94 3.
वि8ीथ कवा) 1, 171, ब.
धा 2419४ 1. 99, 4.
१ | †श1 &वैए० 12, 26, 2. |
| प्प हण द. 35.
थण हकः 64
ण हचैष्वोश्यै प्रा. 19, 1.
| | क्ण णण 1१. 6, 6
1210 161 {09 पशड्रा0४, , , '
शा ४11. 69, 10
। | | | प्प हल्य क्त दण्डा, , ,
। ४ १. : : [नाराः 36 7 (44 4
| ५८ व्थुप्छाणणः ए, 66, 16. ८
{2 अ रवै) 711 ४, 62, 2.
४ ऽपिवा) 10 11. 25; 2.
{वा ऽति क28$8 [. 115; 4.
12119, 184 छप [. 30, 12.
18 206 (थुध्शप]) ¬, 84, 12.
{44 206 वङपा790 #[1.79,.5
140 242 १८8] +. 52; 4.
12 204 ९६ $. 156.
120 ३००४8 ४ [1]. 47, 16
{44 ऽप ४. 47; |
144 9570871 [. 74, 1.
8/1
12 1 इवापदएक्च) {, 25; 6,
18त 1त 982 ई. 120, |
४९५ 14 वक 964४ +. 06, 3.
12 14 ॥पत19842 ४11. 13; 20.
६५ 1 एष्व” >, 94; 12.
६2 1078 1062 {, 103; ¶.
12त् 1101898. +. 24; 25.
{8 1. प्रप्त [. 24, 12.
४९ 10 प्र {6 ४. 1, 4.
दत 70 0 ४8१ [0818९40
07.12;
६2त 11 , पए 282, प्ए310801198प ष
[. 38,
६४त। 1० परए 988 उवत्पः [न्
38, 8.
126 1 106 -₹. 32, 3.
180 प [01भभरश धाश्च [. 62, 6.
180 प 816इ क्षा क. 76, 2.
12त ८प्७१€ [. 7103, 4.
120 7 शप एवैः ए. 02; 4.
1४त् एध) ४. 66, 5.
६४त १९.0४ ४1. 64, 10,
६४त त९र्थऽक2 1४. 53, ए.
12 तलपवैप् 9 1. 24; द.
180 १1 [प 1. 74, 6.
1६ ता पणक2 ¬. 126,
1200800) +. 61, 15.
१४१ 01124190 11. 9, $¢.
126 18010 1. 159, 5.
12052. पा{9558 ए. 44; 6. ।
1४4 शध) इपक्षवै 1. 166, 12, |
1२ एवा) 870 788४ [.182, 8
६8त् एवै 798 इका 14-
वाका) [, 176, 77.
६६त् एवया पदावर इवु0ऽक8ाा [शुत
ए९0४ [. 717, 6.
६वते पक्षा 1919 82196 [. 116, 12.
पत णवै पृष्व ह, 79 4.
12 एषा 90 ए. 251
४
180 कश) २0 6
त्वत् पवष ९० ए, 5, 5.
६६व ‰0 ४त‰०४ +. 66, 12.
{20 ‰0 © 516 ए, 4.5, 22
ध्थत् ० वका 1. 166, 14,
18त ० ५0 ४. 57, व.
थत् ९0 एधा ४. 54; 1.
वत् 40 पय ४. 36, 3.
{वाक्ये
ध्वा पापु) वत ह, 110, 2.
प्वाद्ासुव( [ववो >. 5 2.
धपा 2}१६व् पटप्व€ [1.2 1
वाप) दत् तप्पा . 188
{22051 {८ ~. 6, 2.
{9711 (दा) {त + (1. ६. +
ॐ.
शर +
पदप वपाक वदुर >. 53, 6,
प्प पवा ९. 22, 6,
छाय ४6 पऋदतताः १. 15, 4,
छः ॥€ प कपदप्ा १. 2, 2
धथ {6 8०६६10 [+ . 100, 11.
धथ (वए811{1९ 1. 63, 1
धपा (पद छापा पपतसोव० स
१1.00;
पवा यै दोः एत्र) 0वपे
1. |
{धा {५ 0ा(दडााध् ४, 26, 2
11 90;
प्व (दुदोरपाद च. 162, व
पथा पतै वृद्पा पव, 16, 4.
प्ण (ष्व वटप्टा० [2.86 4.
प्प पतै त्वतो [द 6, व,
पथा {\४ 795 [, ¢2, 4.
प्व पदै पधपप्रतीणा [>. 48, 1.
प्व पपव चदु [. 189, 7.
` ध्वा पदप शल 1, 4.2; 20.
व एवै, 0वतक2 [3.2 8
पथि कव पसप ए. उव, 8.
पद 158 गथा [. 96.
पथ दए $ुशुग्€ए # 1. 68, 16.
` पवा (कै एषु) एो§४० ०, 10
पथि (एवै पशुष इपतक०
0 10 एवै] ४. 507, 8.
| {90 10 ए६0 1. 89, 4.
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ध्वा 310 शट शप प्र. 9, 7.
धथ) 0 2116 11201 ए. 5, 9.
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प्व) 0 १8६ [. 34, 7.
धथ 70 वलै क. 35, 12.
पथा 70 तुकष्वीण र, 30; 6.
ध्वा) 10 10590 ४11. 34; 2:
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धथ) 10 01: ए. 49, 24
729
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पथा) 206 [088 ४, 15 71.
{71 व्6 [तभादशभुद्चाा प.
9.2.
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थ 24४ ए. 64, 12.
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{211 20881118. [. 100, 8.
प्व वण [04८९० ए, 92, 5.
प्व कापावचञ[081118 द, 26, 7.
प्धप धलऽ ४. 76, 9.
प्व वाद्वा पथ, 8व0वडा
111 +. 102, 12.
प्छ भावा) 28 8011281101 धन
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0 9871618 [1. 35; 4.
प्व 882 तकु वएवनूणुतपीर र. 115, 1
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था 288 099० [. 99, 5.
{2.71 889. ५28 1. 756, 4.
पवा 288 एाडिप्राः द, 7113, 2.
व वपफद्ा क, 26, 4. _
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पष्टिः, वपत +, 96, 9.
पटपावता 610 $. 29, 5.
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पभ 81018 (नू. 21, 3.
{पद्ध 17810 1. 26, 7.
पको &0< ८6 ४. 43, 29.
{पाथ {8 ४111. 43, 18,
{प 00 ध १९812 [[1. 14, 4.
{पधि 216 3. 85, 38.
पपन) प88६]1 1. 124,
८09) [08० 1, 121, 5.
प्रणापा) 01907080 11. 51;
{पक 20 शथ्छत प्र, 7, 10.
पणीकदा) 8070280 [. 135, 2.
पणा) भ्व) पण.
` 82; 5.
्00कृलवृद्चःा शद्ा6 ४. 71, 5,
{पणफल्वभन आता र, 164, 1.
{प0कल्व् ता थाप ए.
70, 8.
प्रक ©व 0472 8१४ [11 42, 8
प्पणाफुल्त् 708 ४1. 22, 4.
पणफएत्व् ल८ एभापाद 1. 54, 9.
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पपक्ष प लेत् व्ठप्ह्टपल पू, | चष पथु] उण उपाचार स 2.5;
| 9. कक्षा ०98 01718 $. 48, 9
एय पव लात् पवष क, 22, 5, | कथा पा९21र8108 98 र्, 86 38. क. ५
| पष्प पुव १. 1. 65; 8. ५/1. 1, 1.11 | -
| एषधा पिलणप्ाः [. 39, 22. (1 |
| प्फ) षढा) भथ क. 96, 5. षक क ४. 19, 4. |
| पणवा व4 ४, 90, 2. नवाण 10 गट18 कपर प, 39.16. |
| पथा तार० वथा [, 56, 6. | (एथ 16 2९119. ©8[0 ध प्र, ० |
| एल वाए० पपाथ [. 54, 4. 200 00 ९०6 207001० इ 147, 6. .
| प्र) पप्य) [दन क. 122, 5, | एथ) 10 216 211971० ए, 70, ¢. |
| पथ) तचिदड (थ) प 11, 9 ^ ए), 0 वट्7€ धवा ४, 70, 2. 7 ष 1
। {रफ 0६६० वाक ४1, 16, 6, | ष्या) 10 200९ 9तथवत् र, 84, 20. क) 1
| एद कलषा ४. 67, 6. पए 00 816 {2 [, 7, 12.
| पकप पुकि ९2 ह. 100, 9. पक्षा 70 शटा€ [010 [, 37, 9.
| पपठ वभ क, 100, 3. पथा 10 216 0०00} ण,
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|
|
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| |
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|
|
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{*810
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911. 75, 15
६४11
श. 20, 12.
पकप, पद पकारौ एत्, | (एष्या 2०३ पाणछ08 1. 31.14. 1
98, 19 था 2008. ए100ए [. 7, 10
पा) 18 1007881 ४ [1 70,12. | कथा) शद्०€ ध्वा [1 7, 711
, 46,
तापः ता 1. 1404; 9; 01.
एवाप 1710 शटल एक्प8 [४.7 4.
थाप 10 पपू क, 25 9.
एधा 2908. 11020 [. उ, 3.
एमा 2 10 >. 15; 12.
12. 77018 8012 ¬, 22, 9
20 [0986९84 ४ [. 67, 716.
थ 2६०6 ह्र भुर8 ए. 16, 5.
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736
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1, .64; 2.
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{था 1040 व0थषदतथै० ९,
1473 2.
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विप पजय एत. 15, 9. प्वैण भ्ठ इष्कताप० ए, 16, 7, | काठ कासयपात8 इ, 21, 5. |
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{षदा अया25$६ [[. 42, 9. एदा धु परद्शीपणश्ा0 प्र, 9, 7. | च [० 1. 187, 6. |
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26, | = 92, 3. 71, 8, छ
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पथि वपथ 1, 45, 6 प्ये 1त कषपः ए. 78, 9. | एरल्डामप हभभ) ए, 58, 2.
एथ) 1228 3. 42, 4.
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पद) पाव) ४1. 15, 8.
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{९8188 € ४, 2, 6.
{४९871880 2&0€ [. 36, 20.
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तलधऽ त € कडप्ाक8 1. 29, 2,
वलै त६१८ च्डपतुक्ैक४.प्ा.21,4
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| त€ी585 पै 1. 36, 4
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तपय रद्वा) ए, 100,
प्राः 12. 728, 5
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0111104
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0८ $९्7 1, 56, 4.
तटएी वरवा० प. 5, 5.
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0९१6णाकृथु) थ क. 12, 4.
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1181111; 61.६१९ 1, 4>; 4.
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प्प{70 षटु 9१८ [. 5, 4.
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170प्1८व711 18 2. 161, 1.
प्ाप्रार0 पक्षा ऋ. 136, 2.
0 पापप्रार80ए0 108098९ [. 140, 4.
11010008. & 070 ९. 8, 2.
1081102 अक) [, 145, 4.
10018 21008. ¬९, 4, 4.
7107]. 01९० 1. 59, 2.
तत्वा तार # 1. 7, 1.
0170119. 01४० +. 88, 6.
1108110 118. +. 33; 3.
1111180 29. +. 180, 2.
0111] (ए १282. 1९, 8, 4.
7111} 80६ {४ 8810 1. . 66, 9.
पत्} 400 एवा [2 . 107, 22.
ए) क 20411810 इपर 2, 104; 22.
प्पूत्ण्) [ष्व ङ, 18, 2.
1011] 10 ४. 55, 9.
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2 ४९810 8६1. १1. 339.
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2 ए 18४ 11. 8, 3.
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2 51४ 12. 108, 6.
8 {1155180 १11. 24, 24.
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एथ] ४5४२. "8. [1 26, 2.
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एथ 110 1. 75; 5.
ए] 4102 770. 19002 [[[. 32, 4.
पृषु 118 [पताका ऋ, 23, 7.
कषु वा20€ एक) 1. 153; 7.
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ए 10217 181} >. 847, 4.
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ए 212 | 12. 11357
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एधा [र 713; 9.
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79160904 क. 87, 6.
प0८ 0401111€011र8 1४, 29, 4.
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प ध0पा दवा) 2. 94; 6.
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ए 80108, ४ ऽप४€ $. 94 16.
प 2६ 80108 श्भा [2९ . 19, 7.
2 800 11472 ए, 12, 16.
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१६४ 800 ४111. 106, 7.
प 2118 [शा] 280० ६८282088 ०
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60, ¢,
209 01 0807236 प्र, 56, 2,
ए 28 १९९४-९, 151, 3.
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पए 8 70 11700 वा +.
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ए ४810 ४11. 24, 28.
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¦ ण्त् क्रु 00०त्० [, 116, 18.
१ च ५ . १०१ भु पा& 1. 94; 10,
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१६५ 802. 1४8. [098४1 -----
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758 | 1 प्र 07 7741६45.
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थत् वण" १०१ + 111. 47, 13.
४२०१ एी2६१०. ४.11. 42, 4.
एय पपू) # 11. 712, 26,
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ए 208 82111919) 1 ४. 24; 8°
१६५ ४8 1118110 ९. 95; 9.
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१2५ 1110418 02 ४, 39,
१2 10018 {6 ९212810 ४. 359 2.
१2॥ 10018 तए ४1. 40, 5.
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२४१ 101 9९20088० [. 108, 9.
२२१ तापी पत 1. 108, 12.
2१ 100४1 1218 ४1. 4९, 7.
२५ पपतम तए , 7108, 77.
| ४४ 11418004 [0 धाक्ष)० 1.7168, 109.
ए 2५ 11014607 1020211० 1. 108, ¢
2९ 11144601 एष्व 1. 168, 8
१३१ 1101090 = 12
9१ प€ए४ 2421) -‰ . 72,
६१ 8122.
२४१ 11 दू. 97, 11,
58; 116 ववाध09}) ए, 32, 6.
एववा 116 इभृपकृ्) 91. 723; 21.
एत्] एववा) # 11. 704; 14.
01 810४2842. ४ [1 56, 15.
एता 80 $, उ, 15.
एत् 1 उपैव ४ [11 50, 3.
2 01 8012 ४, 30, 77.
०० शापुध€0ो7 ४. 19, 23.
20 1111 24102849. ४. 7, 2.
पत 21181 -. 27, 2.
पत 18011790 1. 29, 6.
8 दैत्यः 1. 5
२५ 10 1102 ४, 38, 2.
एत् ॥0 {1252 1. 79, 2.
२९१ 71 © ए. 7103; 3.
०१ 10 कषा011० ९, 32, 8.
एत् पाटणा # 1. 42, 3.
४2१ पध ४, 60, 6.
फत् ८५१९०८० >, 86, 22.
पत ८५९12 1. 87, 3.
१६५१ पव९४2० 1, 742, 4.
४१६५ प [0168० {. 187, 7.
०५ 101९0 ~, 165, 4
१2१ ७10 # 111. 9, 18.
2५ ‰१४९त्1 एक) 1. 162, 10.
१९५ €081 ¬ . 88, 77.
४५ €101 {0188100० ४11. 89, 2.
११ €81 00 204० ४11, 7102, <.
१६१ ९8001 [972 # 111. 4, 28
१२१ 2252116 1. 164; 223.
24 £०४१९त ४. 60, 8
९8१ ०९५1118116 [01241४1 ४1.98, 2
१2१. ५841118716 19028729) ¶# 11
45) 37. =
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त 002 पथ पप्र [, 159, 2
एतै पा पत्रणठ ० एना
49, †.
एप् त9 पप्र कथाशरकयं परव.
59 7. | |
2५ 72 [वती र, 755, 4.
त 19 ककण 1. 30, 13.
फत् त्दप्रकृध्य [. 762, 4.
१80 ता ४ ४8 1. 178, 1.
एत एभपपशपिशा) ए, 62, 9.
%
त कपय) € [. 34, 8. ध
फत् रपा] ६€ [. 1 507, 2,
१९१ एषि) [, 38, 4.
१९१ ०00०४ छा. 98, 4.
ए 10098 ४. 62,
एत १20 69018 पवा, 64, 6.
8 एद प एई०° ए, 23, 1.
8 णवै ४९० श्, 160, 20.
थत् एवाप [र्षक प्.9,70.
एव एव/7०0 [. 162, 8.
8१ एध् 010 1. 65, 46.
९ ४8 ध्नाच्शभष्य छ, 46, 8.
१९१ ए६ वारं एषक€ णा, 22, 2.
२०५ ए६ [ण व्णतता२ ए. 93, 5.
त् एवै [04819९96 ए. 65, 2.
4 पदप ए, 207, 20.
५ एव पाथार) 1. 107, 8.
१8५ ए था एव, 10, 2.
१०१ ए४ पा0€ ए, 4, 2.
एत् एवण्डा8 पा, 56, 5.
एत् एवैपव2 क, 04, 6,
२०१ ए इथता2 ए. 22, 14.
त ए81 10086 #. 94, 5.
२४१ एवै ऽपाारए० प्र, 1218.
२० एकिञीया प, 25, 4.
गरत् शुकश्च पा. 50 2.
रष्व एपिविदवणदा क. 95; 16
, १४१ शीषर ए 45 4
78 पप 1. 80, 73
एत ए० 0९१४8 2, 37, 72. =
723 07 21411148.
फा ४6 इकला8६ (वैप्प्ा) इ, 144, 5.
कथा दक ध्तीर%8 प्र, 59, ठ,
फ धष दद्य) [. 126, 1, .
कथ पिथ एवु02 $, त, 5.
का किक) च्16 ह, 16, 15.
एष्या (ए एणृ0वर210 ए. 74, 1.
ए #ए8 888 18त}090€ ए.
4239 247.
पत ए 20488 196 ए,
74.
कृवा ६8 [27480 शा इ, 4, 2.
क {एद तलक ववत इ, 46, 10.
फा (एवै त९ण्णुण) र. 98, 8.
रथ एए ९१३७० 1. 6, 10.
फण धव तवरकषुणकन ऋ. 2, 7.
फ) (ए परथ इ, 69, 4
फा (एवै पदचतप्ण [क 86, 2.
का १९४३828 दण" शा [1]. 4, 2,
क्ष 06४६580 = गुभागुक्ाि्ठपण
>. 88, 9
पथ तलदै80 एवा2 पदधा
था 8प128468 श, 63, 14.
एक १6१३80० "एत उएव2डवष्धप
एथ ॥वैक8वण्ट ३. 35; 14.
एवा 1128. 1100 ४, 22, उ,
थ वऽ [वार€ ए. 9,75.
एथ पडता षादरथी , , , ४्वापे
1. 47; ‡. |
फ विड्वै कृथाैपवप , , , धतो
भ", 8, 14.
एवा 12828 0पाव 5800 ए
9, 6.
एथ ङु र्. 19, 4.
फ प] 1. 162, 2.
फक पीथः) 1. 162, 12.
फ) आप पशत) 1. 49, 2.
कथ एपडपा तणाः ए [1.92
फ पदा 25) ए, 64, 3.
फ) 18705886 ४, 20, 2.
( | उण प्फप्) प्र, 54; 10 | ऊ
| उ शण फलवा], 36, 41, |>
५ । कथ 816 [तप 1. उन, १.
759
28 19, 11028 7189104.
पृष) 8416 0890286 क, 21, 4.
एषा 2276 ४६] 28ववा708 फ, 20, 7.
एय) क 1४8 र, 6, &.
ए) 2€ष्108 1. 116, 6.
एवा) वई पर्क ए. 7, 12.
एथाा28प थ, 104 ९, 10, %,
ए918 दत 111. 59, 3.
एत् 81197 -९ , 60, 10,
एवा 20118४80 ४11. 219, 34,
श्या 8100 2त09० # 1, 48, 5.
ए9104क8 &11{168४9 ~र. 745 14.
एकाद 8 पठत पणा्धपक्षप ऋ,
1.1
फ भदै, 80079770 ९, 74; 74.
एव ४88 इ. 20, $°
210 10012 ४ [11. 97; 2,
फा 1271 3, 86, 4.
एथ ¶ छश्च [>, 102, 6.
ए2ा0 70 त४४ 1. 144; 4. |
एष्य प्र [पतभ [. 37, 2.
एश ए(1० *111. 56, 5.
एव्ा16 1४2 -‰, 743 2.
2111602, 12118201 1. 163, 2.
ए80 €77€ -[, 142, 4.
थण वाठलयवै08 -2. 53, 1.
ए2010 9 ~, 14; 2.
ए801 04110062 . 47, 2.
एका था) ४, 7, 6.
पथ 16 तपाः ४1, 3, दा.
एषम 28 ९. 156, 2.
षा 20111200 11. 24; 15
षण्णा 20 ४111. 10,
पणय पृ्फथा 0 [-ह. 55
एषणा) 11६608४० 1, 1710; 21
88 शााल8 ४. 6501. ५ |
४६ नप् 80० 2, 247, 8,
४६ ५ 011 ४8. 104
ष (
१५
60
3 4 प9 र. 162, 4.
98 वडव70018 [ प्र, 50; 1.
98 18 0918 ए, 21, 4.
8 ्पथथ1१९० ए, 19, 1,
०७ पफ द. 27, 6.
| ०४६६१ 1४. 2, 9.
| | गण्ड धपु) शद्टा6 गपु
10978] +. 91, 71.
8 {€ 216 71810888 ४, 12, 6
` १४8 ६८ श्6 इपर र, 17, 7.
| ४8 {€ 242. >. 45, 9.
28 € पप्र 8१201471 1. 571, 11.
8 € 21097) -९. 162, 2.
28 16 न11267द7857910 # 11.
92, 17.
‡28 € 0810881 89000 2, 17, 14.
98 {€ 0180894} 81800 2 ,7{572.
४8 ४6 0790 # 1. 92, 76.
8 {6 1४120 [#, 2, 4. |
8 ६6 1224820 [07४ +, 19, †
१8 {6 1020 एप] 7४8 ए, 22, 2.
१98 {6 70840 ४21९025 [९ , 61719.
98 € २११० 016० ४ [[1.46.8.
48 16 7000 क, 84; 1,
98 16 पृथुपला2. $, 53 ‰.
` | १४5८ 0 द. 112, 2.
न पध. 6 १1, 4515
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१४8 € : 824118114{10 >४886 €
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ए 28 0 व्ा' -९. 24; 3.
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28118 98212 # 111. 447;
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ए 28104 10414 11. 16, 2.
88112 11€ 208 1. 28, ¢.
फ881६त् +€]. # 111. 103; 2.
ए थ811वै71 18. {€ 1, 12, 9.
षडा 6४8 पथा क, 12, 8.
एद १९०४ १९४१6 ~, 12; ¢.
ए 28711070 25१४58४ र. 97, 14.
कथ्ाापा) पातक्णे ए, 16, 2.
पु 4811110 प्रथेक2ा) ९, 42; 6.
एद 15४9 80111 111. 92, 26.
पथ एष्व वैण ४.
41.68;
एड एर्व एपरपवपा $,
101, 4.
ए वडा011 ए15१६6 0018110108क8 ४111.
2; 34.
पृथा) 11816 01200588 -.
164; 22.
एथ1701. ए11्8116 इप0० + 135; 1.
फु 2817181 (9710 ९280 41258. 0811-
1236 ए]. 52, 6.
48110181 {ए 2.00 ४२३० 02084 8 81-
(81981 # [1]. 5, 6
एथडावा {एदा इपादुप४€ ४, 4, 19,
पृ 957181 षश) इपत8४० [. 94; 15
ए 2811181 (एव) 8286 1, 94; 2.
ए कडााधा {एढा1 8200० ४111. 528
फ981181 त0वफपाः [1, 30, 7
ए 481 ]प0.880 र, 185; 2.
०8१8. 16 [1158 [९ . 108, 2.
98४ 16 0080810 1. 138, 3.
ए28प द © 70दतक्0 1.65) 15.
पृथ्व, {6 7220108 * [1 [. 68, 3
पए08ए 2 6 पाणा) 0 ध) # 1
49; 42"
ए98ए2 16 915४8 ९. 37; 9.
एथ8ए8 {6 दैत # 111. 68, 71,
ए28$8 72९ नभा 0क्षकाा ४.
447.
282 {कौ 16 +. 112, 4.
288 (व शारध ९, 26, 2"
28. {1101186४ ४ [1[1. 102, 14.
ए 982 {1 0008 1. 1 54; 4.
288. {9801 206 [ ४, 2, 10.
पदप (षक) 11618 ४111. 52, 4.
पए्थऽफ2 दष्टा पतत ४111.
10.16;
ए ४8१8 १६४८० 1. 74; 4.
088. तवैव] [. 107, 2.
प 288 0९101280 ४111, 15; 2,
ए 288. 18 11101811 [2९ . 108, 14.
082 [01042081 ४, 81, 3.
288 [01485६4280 ९, 323; 6.
ए 889, 01200210 ४1, 4.3; 4.
282, 1018, [09181181 ४, 247; 5.
ए982 118 18110 ¬. 323; 5.
82 ए8108701 12, 65, 8.
एथ ४४, $ 09 ४111. 20, 16.
एवऽ एवैकः 1. 45, 22.
ए 488 918४8111 12818. 0) 1.176; 2
थप 15071 12808९07 $
45
प धथ 91997 [026० $. 96, 0
28 १1916 000९ ४, 82, 5. `
एथ 9 इवाथ) प. 6, 6. `
982, 545ए8४' ह. 112; 5.
{287 वै] 3878111 ---
ए धडधधडाा 1, 100, 14.
एक पञधा) $. 75; 14.
$28१8 46४४ #[1. 94, 2
48 वै0218118 ~, 24, 11,
ए 28 01191018] 1, 100, 2.
ए ०8१ 97019 ४111. 16, 4.
फ 28 धावा ए, 24, 21,
पवष ए5ए४४ ए. 5, 9
प 28 वै 1520110 [. 48, 13.
2350१241 ४, 34, 4.
ए 285 व6ए488 [. 12, 7.
ए व8वरइरक्पाः र. 60, 4.
ए४8 र €06€ ९. 127, 4.
ए98 फ वा8114त10110 २, 947, 12.
ए8 2100 ४. 49, 2.
४8 11014 [0128४88 $]. 6, 20.
ए४ 11078 प्प] ए, 94, 7.
8 ०७ध्वाण0 [पीपर ४68 क. 941.
ए 08119401} 801081.द]00" एव
क. 94; 18.
एवै 0818त्101 ० थाव] ए" ए811-
111४1 ¬. 97; 19.
ए [07०१० ४11. 50, 4.
ए8 101 शाप क. 97, 15.
ए811 था]08 +, 169, 2.
21 30150 ऽ, 47, 4.
ए8 हिप एथ 11. 32, 8.
ए 0 1. 1713; 78.
एव थया" इ. 65, 6.
ए ]वद$० [11. 57, 3.
एव 12 पप्नप वप्2ा छ, 4514.
एवै 12, पा 909 ४, 25, 1
एव्म) दकता भ. 9, 71.
एष्धं वल्कम्) 1. 35 5. |
४ {€ 2876 11. 50, 6
ए8 {€ 2811118 ए. 52; ०.
| ए € प्रक इपदूधत्चै *[, 47, 2
: 9 € र [1 50; 5.
| ८ ए 16 वातपपत् #11. 46, 3
४.6 तुरक वापा 1.97, 4
| ॐ 6 तुपापकण एष्थपावपा इ. |: |
५ ४ 2110710. 1. 172. 78
[नि 07 27411748,
ए ४6 तवपाके 88048 1. 91.19.
ए 16 एक्क 1, 61, 20.
ए वथा09 ए, 37, 5.
४ 18518, [. 46, 2. `
एवत्र 6६ एर. 44, 6.
एव तकरल्डप इ. 169, 3.
एवतावैवापकथण एव० [. 38, 8.
एवै ताथैव ए, 69, 4.
ए ववण 918 ए. 66, 2.
$) व्थुं० 1. 55, 9,
ए 12] [° [. 46, 6.
एकप दाका एत्, 70, 3.
ए वपता 1, 108, 5.
एवै पप इर्टद्िर $, 45 8.
ए (एवै कर शा. 74, 6.
81 वष 1. 73; 8.
ए ए० 1810 [1. 8, 6.
2, [थप४ऽप ४, 86, 2.
एणणपी) [सार्था भण प्णाा0
1. 47, 5.
20111) 1990 11601041111110
91. 8, 29
फ वणि) पाडा 1, 112, 24,
रवण [कैप [. 772, 21.
रए] [शपभ्य प्ा, 22, 10.
पठण [एम [. 7112, 10.
एण) [ष्पः [. 172, 19.
एण [भ्] प४ 1. 1712, 4.
ए20110 82017" ण3090४# 1.
112; 8.
ए 801] 8210115 (20489
60, 2. ` :.: क
वैण) इथ [. 112, 20.
फणा) इप्लभाप्रपा 1. 112, त.
20011 अवप 8208. प,
40.11:
प वणा अआप्व्पत) 1पकतपताशार
1. 112. 9 |
रवैएाप]) इपतक्षपपै 1, 112, 71.
वणप) इवि 1. 712; 13
ए 00110 80110 ॐ. 39, &
9. प
761
१४. ऽप्ा11६16.
फण धपदद्था [, 112, 6.
कथम पाक 00श्रपर 1 72, 2.2.
कवयः पयव {28288 पाप प्र,
8, 21. |
एविप पथय इकर [. 11 29 16.
कणा 10 1. 1712, 14.
एवै एवाप्ाधाप 1. 1125 15.
पवणन एदु भाक्षा [. 172, 10.
पवा 14800 [. 112, 12.
एणा प्लभ्प [, 110, 5.
कव्व 68711811 $. 56, 6.
एक) 2111818 [. 80, 16.
$ 16 प्रप्थफथ प्रा. 5, 38.
गव [पथा ए, 53; 8.
एवि 7116 तू्राङ्थ उ, 64, 12.
ए 1160 ¬. 188, 3.
एवै पथ्) इभ8 , 85, 12.
पवैएा 8128 ए, 97, 4.
४९२१ 149 [. 108, 2.
एवैणापाक्षधण इ, 88, 10.
एवैषु क्ववरव्डा0थ्डवा0 [प्, 52, 4.
फ वैएण्व१त९४९६१४ 1. 113, 12.
वपथ पकभर क, 124, 6.
एवै पा) 8212 ए, 97, 6.
वै प्वाप इथां, , . | 96 [प्र
47; 4.
एवै एवैणा इकति, , . | पतह्पी
४, 60. 8.
द क्षा) 18४ {. 22, ए. `
४ १8 16 8४ ५. 3, 8.
वैष ४08 1. 92, 14.
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९
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2 एष्व ४1, 69, 2.
2 प्क) इ. 114; 0
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1112198 # 1. 45, 25
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८
पवैऽवैण 118 ए. 40, 3.
१० एण्ड 1. 33075. =
वै ४० पवय व. 27, 16. | ॥ 1
एवै इवाताक प्, 48, 74; ` ।
{1८ 8.
{6४ {0 08 ८८
१810 ¶ 111. 26, 2.
पप्य) एडक) 1. 152) 7°
एृप्रएथपा प्णधड2 +. 39, 8.
प पएथाण इथ ह. 24; 4
२४ अपप) [. 32, 0.
पृ उप्ा2ा18 1, 229 2 &
पऽ 18] +* 11, 49, 4.4
पृ 48 {€ 01818 {> . 62; 7.
48 16 [00302 १1. 58, 3
४8 € धू 1. 43; 9.
प्४8 1९ ६16 [, 32, 5.
परपरा 28 ४6 वरप 1. 82; 5.
पृ ्ार#9 12918 1. 164; 9.
पृ प्ार0 19 ९१ 1. 158, 3.
रपा ए४ 11 ल्द {. 10, 3.
स पत्ओारदै 0 पषा) ४1. 26526.
पपाथ 11 वला 11.75)
ष्णा 1 वपर 1. 92; 1८.
प पात्व 7 8० पा. 3.
पृप्ाशादै फ शाप {. 14, 12.
ए1९€ ०९९ ४1. 8; 5.
एवाथ क भ्र, 56, 6.
प्रपुध्ा 11 ४. 30, 8.
स एप थपपद इ, 55, 8.
प्प) इकदपवैफय 1. 177
पपरथ इध 1४, 44; 2.
पपरा इतण ४1. 63,
पृप्द्षाप इलया) [060९९ [. 11859.
फणा) इरलछा 6१०२९ २ .29,70.
प्फ इप्द्धा) [5 . 751; 4.
पृथाया [2 वृथा +. 40; 8.
पृप्ररधाा 18 कथय 1" 157; 5.
कृण्वप 18 दधाथ ], 180, 4"
पप्रयः 18 पकप =. 40, 7.
पृथया) 118. 760, +, 39, 9.
पप्रयः) 18 51110 1. 157, 6.
प्रथय 11 80108 ए. 86, 3.
पप्य [ष इ) {-&, 19, 2.
पप्रथ क शुणाशाुदप 5, 132; 7.
पप्य ङ वि 1, 120; 7.
दपण [प्रवेक 9. 5 23.
पप्रथ) वणी 2. 409; 6.
कृ एणा तप्रया त्तर प्र 11.742.
फृपणदपा (धिका इथधक्ा) =>,
39;
कपरव्या) एुभगक्षादय 21980 9,
77 9.
एण्या एदपवैपद्याा 28ष्ा08
10.33;
पपक्ष तथ 100० 1. 132;
प्प] क्ष10 25१9 -, 22; 4.
पप 10 धाद ४1. 47; 19.
एप] ध्मा ४1. 234; 3.
फप6 णका एथा8 कू, 13; 1.
पृपापु्€ एाा8 ४, 87; व.
1 पृप्पाध्णत 0दत थण 1. 6; उ.
= पृपणथणत थप एता. 98, 9.
| पणपु्पत 92 1. 6; 0.
रष्पपुक्षतकपा २४8० प. 85; 7.
कण्वा पप्य [. 53; 4.
` गप्कलपताण पमण 1. 34,
॥ ध ५ एप्ताप्छक्षाः इथ ए, 92, 8
1 एप्वाप्णड, 16 [त 46, 1. _
। "| _ कृप्वाप्ा० धाभ पर. 2, 3
एप्ाशद९ 8019 2, 101;
एप) विष्वा [. 112; 3. =
रपरा प्ट 1. 11, 14.
एपएश्च तशृद्ोा) 1. 15;
सपा १९०६४ ए. 56, 7.
सपा तलाणण 1. 718, 8.
पृपपक्या पथादचै अपक [शपा
| एषृ ।
78 अप्प) = पु प्ष० 98097.
पका लढा) (भाद [, 182, ठ.
पृ प्श) लक्षणा 1. 93; 5.
पपरष) (092, [. 180; 3.
पृ प्रए9 €व8ए€ 1. 7793 716,
पपा [9788४ 111. 38, 9.
एप्प एण कप्प इधपपतुा 2,
143; 5"
प पथ एपिपुकपप कण्ड्वः
(11. 69, 97.
पृछ) पकप {02111811 87
{. 179, 4.
पपरा पप्रथ ४, 659 6.
प्रथा यूत्भण #४ 11. 5, 36.
पपरा पृषु) [. 1571, 8.
फपपवय अ०णलः 1. 139; 3,
पपक्ष 18. 1085118 ९. 429 5.
प दषा 012. $, 83; 6.
पृ पणकषदप् 111 1. 17, 4.
प प्रका दकव) 1, 183; 5.
प प्ण तत् ताण 1. 186, 8.
पृ प४१९४३१ 2 ४111. 26, 12.
पणर एद र 11. 44; 26.
प प्व08 [01088 1. 20, 4.
प पएवै0 पपत 1. 64: 3.
रपद 0८०४8 ४11. 56, 2.
प पपविणा 08 ४11, 84; 1.
रपरवपक्ष) प्थर ए. ठ, 3.
एपरवणापकै) तरणी 1. 109, 4.
एप्प 11105 ४, 64, 4,
पपरक 1त वाठ 1४. 47; 7
पपर), 70 एप्यडप्र +]. 82, 4
पपवर {000 1. 109; 5
पपत) िशलपदैरए९ 1. 1871, 9. ॥
पृप्फक्) पटिल० 2, 40, 44 |
पृ प्रद 8 7091 ४. 61; 13.
प प्रण ऽपरवै89]) 117. 8, 4
एध्र0]) इ 200 ४11. 69;
पप्र एण दुकषा181 1. 180, ए.
पृप्णः भई १. 73, 6
॥
||
॥
|
|
0
+
धि,
एपिक्ा) ०8 पहा [. 166, 6
प्फ धञदफफथ) प्र, 36, 8
` एप ्पुकपण द, 143; 5
५ षिभः थाथ) ए, 67 15
ऊट भश 1. 707, 4.
. क ष्टण पा, 66, 2
ध ` $< धछफतश्छता र् 15; 14
॥ $€ णद] [091 +, 62, 6
$प्र्णं प508 8 ---
, पपठ प शाप. 46; 14.
र पठप प अ पथा ए, 26, 1
सृ पणम प्रत्य त्. 54; ८.4
पर्णा वक्व 1. 212, 2
क पण्यः कथ्वा =. 61, 25.
फ पणः पा पातै क, 132, 6.
क पञपनिया पा ए, 52, 5.
कपप ततप प्र, 59, 2
पपवर) एप्त क, क, 4
फ पञपपदत्कवडा पाथार प, 4.13.
एप प ए, 4,
फ पऽ 6 त९४ ए, 47,
प 181111168110 1, 9, 8.
एपऽ०0 ए, 58, 4.
प 0 शप ए, 20, 29.
क पवार पा 1, 162, 6,
एषित वथा ए, 54, 14.
ठप ददद्) ए, 10, 45.
फ पिक वदवादय क प, 58,
फ पफिथप एंईष्थाप एवष क, 126, 4.
कपि, 18 गपा ए, 37, 2
एथ ए तलपः ए, 51; 5
फ पिफथा पा शपथ उपतुवण्ढ , , |
4० * 1. 83, 9.
फ प्फ का आद ऽपतक०१, , , |
919 प, 5, 15.
फ पफ क अद इपतक्ाद० पतै
४11. +, 12,
ए पफथा) 4० ७, 28, 6
कपफद ल्द) ए. 74, 2.
एप्प ६६६ [. 86, 9
फश्च) तल) 11. 239, 2.
पपिथ तापशप उ. 77, 5.
फ पकथ्या वडाक्षा) ए, ६5) 10,
{प 07 7२^ग¶ए^8 | 68
6 26 08108 प, 10, 4.
ए6 भपप ४, 53, 4.
क€ धाक८88 1. 764, 19.
7९ 95४०४ (प्र. 34, 9.
ए€ ॥€ ०8 पाव ए. 52, 15.
ॐ€ &ष्णफ2ै ४, 46, 210.
6 णावा ४, 34, 10,
€ ८8 [प"ए९ ए. 22, 9.
९ (वथर्वाद्8 ४, 31, 14,
6 080 ए, 26, 18,
€ ल॑ [2 +. 154, 4.
€ त तपि एण्य 1. 48, 14.
ए लत वाप "ए 1, 179, 2,
< 0९112 [० ९. 5; 12.
€ वनशय इ, 15, 9.
€ € प्रता [ ए, &4, 6.
८ € [शाप्त 1. 35, 77.
€ 16 [व्यद क, 67, 5.
९ € 08 ‰. 5०, +.
€ {6 8080 [. 744, 2.
6 (6 इपा189] प्र, 6, 4.
< € पञ [[, 52, 5.
6 {€ 80४ ४], 7, 9.
< ४6 828१2. ४, 96, 5.
९ प्न188 ४, 28, 2.
९ ४४४ १६०० [. 190, 5.
ए€ (एक 1101६ ए, 6, 72.
१८ ¢< 1. 44, 4.
€ वलप्यैणक्र) $. 355 15.
7९ ०८१४8212. $. 30, 4.
€ ०८१०६७28 (1 [1. 4, 2.
१€ १९१४६३० व0187४४8 (प्र, 35, 8
४९ १९१४७० वष्फ़ 1. 139, एव.
ए€ 07भु08६ 1९६ पा. 7, 16.
` फ€ ०8] [पिक ङ. 15; 8.
ण्ट एथ इनु ३. 728, 9.
एला2. 6281{6 +. 19, 16
फलाद ककणतापञफ [1.15 5.
` | कला० णव2 ४.53; 13
| 68 तादा) 1. 166, 14
फ€ 2६76 लाका $, 20, 2.
€ धव वाप पणर ए्.718, 22.
४
ए6811800 शूं ए68प्र,
एला तकया द, 121, 5
फलाय प0व128828 1. व, ५
क €ा2 एका3व718, $, 60, 72.
९०६. ण्प्रत्ता00 ४. 44; 3.
ए८8 अपत्रप ए, 72, 3
612. 5078. र. 37, 4.
$€ ०४28४ वैता 7. 19, 6.
62. 048व्श्धा ए, 12, 2,
फला 0१8६० 1. 208, 4.
टव वैष्णः2 [. ‰©, 6.
१९189४2, {पा"० ए, 1:70,
फलाद ऽकणपताधयः ए. 3, 26.
एलालाता0 ककण कर, 159, 4;
९. 1574; 4.
कलप य 15४४ [. 12, 4.
१८ 0419587188700 ए. 104, 9.
6 एवया ४. 46, 15.
९ एवक0 प्पकक्नर्ध्प . 147,
3; 1४. 4, 73.
[प्श 1. 37, 2.
कला इथ प्, 10, 5.
रठणणऽ प) ए. 5; 8
रटणिपण 0४64 क . 63, 5.
फलण० [णवा इ. 64, त.
€ 7210 +4}° [. 219, 3.
€ पप्पितोशपण् छा. 60, 13.
€ 106 एव6व82ा0 ए, 18, 5.
6 16 19 11. 28, 70.
$€ एश] {. 14, 8.
€ 2106009 -₹, 62, 7. ।
ए€ पतप भापव द, 154; 3. °
एत स्वतश्च ए, 16, 70, `
ए णता ऋ. 85; ॐ.
$€ पश्षप्छा. 1. 162, 12.
€ ए ०००६० ऽ. 9, 3
9 4१. ५.
` प पणता प्र, 520;
$€ प्या 880 11. 8
ए इप्रणाणै [. 7
कल णक 9ए2 112 08888. १.1
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प68118170 ६१0 # 111. 26, 14.
१687470 ४040102 १ 111. 223, 3.
एल्श70 12 ४11. 16, 8.
फ€ उक ४80 2, 15, 10,
ए€ उवप) +. 36, 73
ए6 8014821} , . , | $€ 1 . 65, 22.
93; ©.
$€ अ0पएष० [1 1, 26; 1
2;*12.
6 810६ 80 ९. 36, 19,
फ€ 18 {€ ४. 65 710,
क€ वधी ४. 328 10. ।
0 90) 2४० $ 11. 19, 14.
1 | 16, 77,
0 09111 दष्क +. 16, 10.
0 9111) 8000 प5}1811 ४111.
39, 8.
न ए० वधा {६०९० # 111, 44; 15.
| 0 वद्वा तकपीप्थ€ 1. 12, 9.
० 20018110718 1. 92; &.
0 0८ २..1४8 12, 42; 7.
ण: " क0 ४१81. र. 54
| ए0 20710711 # 1. 75; 1.
0 20 थलञप [. १7, 2.
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ष्ण शधैतीा6 भ. 6, 4.
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१० गुप 9 1. 35; 8, |
कण ष्नो01.816... ४
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० धडा 1801818 ¶ 1. 4;
ए68118110 -2109 ----
त € 80ााकचडव]} , , , | उधारद8 प.
ए0 शाप [तपदृणरदैीा9) -.
० धशा 0 दपकश्पव्रण पा
170 07 ए7.^71148.
छाश ए, 102, 2.
० 9110800 #1. 45; 10.
१०९6 १०९6 1, 39, 7.
0 190) + . 60, 4.
० 1482 ४ . 44; 14.
० 148 {1. 12; 7.
प0 1 1. 55
ए० 0810111९" ¬. 38, 4.
० तप1{४0 १ 111. 46, 9.
० १६८९० १९४० {४. 22, 3.
० १९० ४11. 6, 5.
१०८व४81 # 111. 8६, 4.
० तधध्धै ४1. 47, 5.
० त0वै9४ 12, 10, 2.
० वापू130:/0 #111. 33; 6.
० 1 0 ४. 3, 4.
० 8 190. +. 271, 9.
० 119 [तप #* 1. 485, 12.
प्र० 119 11040100 -‰, 154;
प0 18 1704821 +. 133; 5.
० 09) {98€त # 11. 18, 14.
० 18 01४8 >. 82, 4.
0 1810 {05119011 1. 4.29 2.
ए० 1810 5868४ # 11, 80, 2.
ए0 181 इपर 2 ४९ 1. 50, 9.
० 12] ऽधापद्र्क० 20108884 शध०€
91.99
० 8 8१० ४]. 75 19.
0 धावै [[. 24 2.
ए0 एकव) 11, 13, 8.
पणा 69 पा. 29, 2.
पणणं ४ उता 80त€ .
104 1. |
पण {8 11त72 5क्वक्षा6 ४
0 |
एण 70 96 शाथातर्ी 1, 147, 4.
० 00 2९06 तपा€ए२ ४, 16, 37
70.10 शटा 7 गिरतदहथि 1. 79; 77,
0 ए भ.
० ४० परर) ए. 12, 6
पण 70 पथाप्ौ0 भप ४11. 59, ४
0 70 प्प0 सपण त्र.
34; 9.
0 10 1488100 श्र [[. 704, 10,
0 01811112106 $, 60, 71.
० कप ९, 6, 2.
7० (चदशदश ४. 74,
० एमश्च 02 1. 13, 6.
ष्0 102. 1 9. 24,
0 718, 10080 # [1 46; 27.
0 पातश [ष्, 2, 1.
70 718 [वप्ला १. 104; 8.
0 18 कुकन्परण) ४1, 104 16.
0 पत्ैक9 1. 136; 5.
० प्णुान्कक् ४, 87; ¢.
० 716 त्रलापिकक्रा, प, 61, 10.
० 016 कवी 1. 28; 16.
० 116 &&{ ४. 27; 2.
9 716 [पथथातए80 ४1
5; 38.
१० प ४11. 7, 7.
० एषथ]128ए2. ९. 57, 2.
0 2110 प8प० +, 750, 1,
0 एवार81410081 ~ . 7840; 3.
० 12] 7181 ४1. 49, 12.
० 12017198 11. 12, 6.
ए0 ४2150 ४1. 44; 7.
0 18141918 [. 27; 12.
ए0 288 081870० # 11. 70, 7.
१० प्वै०.. . [ धथ छा. 32, 14
0 प०. . , | धध8 [. 4, 70
ए 16911 1. 18 ०
० पणपाथप प, 26, 6. `
प० एव इए्धाक्0 >, 9, 2.
० ए] प्न प्र. 256. `
१० एथ) इदा उ, 34; 12. | |
0 7१816 [. 24; 771
५
ए0 एवै एषुदषाइक 1
0 का 1भ 08 ए, 73; 13.
ए0 थै) 1210 ४1. 077, 4.
० ‰९1241€ [. 40, 4.
0 एथ) @2118701 +, 64, 4.
ए0 १४68 +. 24; 5.
ए0 एव 1148 दाकर $. 8, 15.
ए0 एवैष 855४109 1, 7714, 2,
0 पवा पार्क $. 26, 4.
0 एकै) एयुष्€ प. 70, 4.
फ0 पक्षा [धन्] ह. 39, 1.
0 ४159219) 1. 94. ¢.
० ाईणव2 9 1. 101, 5.
० ४15४8 १९४6 + [[1. 103, 6
ए0 015980४ # 11. 32, 28.
0 पाइष्व ए... | 89 एष्)
108978112त र. 1840, 4.
० एईषवण पा... | 88 09]
[00818 111. 62, 9.
0 एणा एवै # 11, 32; 28.
0 (द्वै, [. 30, 2.
१0 %€41811{10 ४, 2, 24.
0 ० 0६४४ ४. 52; 8.
0 ४० 219६ [{. 24, 76,
0 0 (तष्दिणाङग० -+. 39, +.
$१0 पऽ) [. 701, 2,
ए0 एधाः +. 69, 23.
0 धारण [. 12, 3. =
फण 18 रक ए. 5, 19.
0 व४र वैष 111. 19, 24.
४0 18 88. ४1. 69, 5.
२० 10185 २. 88, 4.
एप € ईइषृकणछय क. 14, 7.
णुद ० 9006 ए, 3; 14.
1418118 §प् "0 1, 29; 5
1द81101910970 +. 84; 1.
12131101. ए16ए४९ [> . 7, 2
1811981) 8810115 ९. 64; 11
1210 एवैन +. 40, 7.
| ५ एका एषा] 206 ४, 63; 5
12112) ९ (थुदपा उप्पू
10 07 74117148.
दता $© (थात = आादप्प्छप
8१८९० 9. 56, 2. |
1411971 पवा भाप 11. 5 24.
ता [वकृ दरथात्पा्या) [प-
1808० + 111. 5; 28.
दथा [कदु वशथात््प्राशा0 10-
419० [ ४, 46, 4.
101 पप ०081 ४, 56, 8.
110 ४, 75) 8.
12.1118411910 118. +. 78, 4.
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^
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ण प्रवतोप ए. 104, 28. .| ए
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ण एवै ववि [. 147, 2.
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ष ० गथुवणाइ्क ४. 7, त.
ष 0 धा.2]069 ४, 20, €.
षा ० पीपा 1. 647, 5.
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ए15४8 01191101 1.९. 86, 5.
षाइ भकण० ४. 65, 9.
पए्15एव118188$8 ४111. 68,
ए16ए81 ५6९०. ४. 82, 5.
ष18एवै0) १९०१ 1. 92, 9.
प्राईपक0ा 10 तपाव्यदै +. 4, 9
ए159व111 01249 1, 166, 9
पई एाईग्था्ा280 भ, 247
पराइषक्ााा 890 1४. 16, 6.
एए वलपवेी 8 २०११२ 1. 48, 12.
एं तलै [वेक [. 225 10.
एष्व 200 11. 49, 5
ए15एव0 0" वात # 111. 35; 2.
पए 111. 53; 13
४1898 10801 [07275 #. 87, 2.
ए15ए8 1010010 8018580. 1, 25
प्रा5९8 10ताीत्ाश 1४, 22, 4
४
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69
४18४६. 50108 --- ए्यू13118 8 ए्ु18,
. 18४, 80108. [ 2, 40, 4
एए व 72० ४. 92, 15.
ए15१ [1 १० 2. 6, 2.
शडण्व्रलात10 1. 100, 19 ; 1.
102, 77. |
शऽण्ठ ्तु2, इ. 35; 13.
एा5ए< 28 ए. 45, 8.
एा5ए€ ८थ१6त् 8014 [ ए, 3०, 5.
शई {2 17078 प्र. 62, 4.
ऽः ६४ ४९ ए. 100, 6.
एषठ 1 एथपरणा ए. 07,16.
शा5१४6् धप [. 15, 10.
ए15१6 €(€ [[. 54, 8.
एा5ऽर< ०१ शपतः र, 24, 5.
शाइष्ट तलप धादपाण्डवा ए. 9, 4.
एा15ए6 तलक प्रप्ता ए. 52, 20.
8१४९ १९१1 84818 क, 52, 7
डण् 06पवु) इतापदपा9 एक,
99 13.
शंऽए९ वरव) 88] र, 65, 24.
४15४6 परणव) इष्वा) र.
1
5१८ ८0४ 00 प्र. 57, 14.
ए्ा8ए८ तलै थाय ए, 52, 14.
ए1ए€ वलद5द ४ 2212 11. 41, 134
४, 52, 7.
ए१७ प८०४७० ०11 कर, 113, 8.
ए5४€ १७१४४७० गुरणा) 1. 9.8.
श5ष् १९६६० 8७ त्]2 1. 3, 9
एष्ट) उजगपङश [, 14, 10.
रो$ष्लणमाः 206 [. 26, 70
४18१6000 1 1. 23, ए
पाण्ट थु र, 63; व,
णाऽर्€ ष्व् ण ए, 64, 5.
४
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। एडष्ल्शाक [फ़ भ्व इ, 2,
` ंईरल्ञक्रा) एततः [प्र., 1, 20
¢ भकषल्यष्चण पशुप भव
46, 16
-एाऽष८8दपा पदुकका० 2. 93; 35 .
कषा 108 ए]. 102, 10. र 70४ ष. 48, 1,
एइण्ल्डप छा 1. 137, 2.
ए8ए€ 11 {ए 88] 0811980 8119850
४, 25, $.
15४6 11 {ए 8808280 १८९६४७०
#ा. 24, 18.
ए्ा5ए6 पं 5१००० ए. 67, 3.
एाईरएठ [7 9 "न. 27, 4.
ए६४८ [7 वडथं [. 16, 4.
एाडणथः वर्ह प्र. 35; 3.
एए० वल्य प्र, 50, 7.
एा80 एए 1. 35; 6.
ए15१४० एक 1. 128, 6.
ए15ए0 [फ वा$0 ऋ, 28, 7.
एश हिणणवैण इ, 84, 15.
ए 318 70178 र. 64, 15.
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ए शप करल्या० पा. 64, 21.
1 अप एंडणदै वणणङुप० ए.
445; 8
ए आप एष्व वाण क. 133, 4.
णं आपै व्यार उव्वाच एन्, 3219.
ए181060 अणव इ, 79, 7.
य श पपत पर, 3, ¢.
एअ पूतति त० कर, 42 ध
ए13लाा2, एथण्टुपक० कर. 87, 24.
ए1811{2101070 [र . 89, 6
एश इथ [. 170, 4
एाञरपपा इतण 54; 14.
एाथप्रपा 1108 2. 1, 3.
ए्शाप्रप्राः दृश 1. 55; 79.
एाञ्पाः एनपा क, 284, 7
पशम] [थक [. 22, 19.
एता छप (ध 1. 154; 1
४131 8त11880 1. 142; 10.
एय 32470 9. 78, 1
प) ४, 42, 9.
ए ऽप्रश्च)0 1. 35) 7
` ए इक्क अपाश््रा) ए. 4, 2.
पं उण फष्ताफट इ, 138 23
| श्प नवप पताक द, 12 त.
ए 11 80{0 +. 86, 1 |
॥ ॥
97
1 फ़ शुपपथ 1, 109, 7.
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37: 9. ८
णी [धाव [क, 0, 2
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एता एद इ, 32, 2.
एाध४ छप [[, 55, 18.
पलप व्र्पाः इ. 104, 10.
पालाः एथ (1. 25, 2.
एणृप् लव ्पुभप्णकम 1, 6, 5.
ए्णुण लत व्रा 1. 771, 2.
ए्पृपएभ्णथ्पि) [. 726, 2.
शणणष्पणणः पा, 20, 2.
एप2प इवः [. उ, 5.
षन सत् शा. 66, 8.
प्प्ाकक9, लू] ण. 68, $.
प््ा1४6 ल ए. 4, 271.
पाप्मा प्य806€ इ. 27, 22.
पृ क०१४ ६८ पए. 45, 70.
पणुलाड कृप $. वव, 5.
पुद्टएद कथप्म ए. 4, 2.
षपप्भतैत० आ. 45, 2.
ष 2 # $. 96, 0.
प्यव 90४8) फ. 83, 9.
पुता वत् क. 1714; 3.
पधा [तता [. 21, 2.
ष्पद) {४8 [1. 20, 15.
पश्वा) तक्ति [द. 83; 2.
ए131181085ण्ला12 $. 26, 79.
प्ए्यशा28 € ए. 33 17.
ष्प8रद्यणा) 1742 [. 139, 6
पभ) ९8.81० (1, 62, 6
ए11811210110 118. ¬. 86, 15 |
प्रभुणा +. 86, 14
| प्पुनशाद हदषव, , , | पदप प
40, 2
| पीप०्दै तताव्तरण्डयि 0808
#॥
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18118 (ए एधाः) पातत
604.
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प8108 0ध१88१४ ९, 65; 10.
ए1808 [एप19718. [ङ . 9, 3.
{18108 प्राता र. 86, 79.
ए113108 11248. 10012. ४, 24, 7.
{1318 रष 10 -९. 66, 6.
एव ध१€ 29116 [1, 7, 9.
एश वक्1900 1, 22, 4.
एवा 10418 ४1, 13; 37.
पु1318 प 01176४2 1. 7, 8.
प80वादरवैफ2 ~र, 146, 2.
प ए ]भु16 ९. 108, 12.
एु18108 पवत ४, 22, 2.
पयु818 ए्8100€ तप्तप्ा€ 2. व, 1.
प्प ण8110€ मचर्छत् [.
973 3.
प्प808 ए० 906पाः ९. 94, 10.
ष््5108 8010 1, 94, 74.
प्दञं काण प्र. 44, 21.
पञ 5०18 ए 111. 33, 12,
ए18118 80112, 12९. 64, 7.
818 #र 2016 * 1. 48, 3
प्प3118 क ध81 01018 2९.65;
ए18118 क 281 1460286 ए, 35;
प18106५2 क 08 1. 76, 5
(1810 90070 [11.20 14
प180 तार एथ श ४९8 12
(0
पपुश तारम) इध४त0 ध) 1
9
117 07 २८.411 45.
१1811106 51011458. 1, 64, 1.
11812100 25108 ए, 47; 19.
९118 11 1112 + 11. 24, 24.
८118 111 ४९4१० ४1. 16, 3.
णलटाकत णाप ४. 44; 0.
एल भवरकङ्प 911. ला, 16,
४९08. 11480 1, 2.5; 8.
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एला 2त1ए81489. 1४, ¢; 8.
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81181118) 1181100 ए, 66 15
ऽप68]षा {16 [. 50, 12
शपा] [कए2ऽ१३. 1 उरू, 1006, 5.
ऽपात्) इ्पातकक्षह 1. 69, 1.
पाता ६८ प्, 58, 1.
ऽपारा937 वत्72 1, 41, 3.
इपा्ल्णाः णहु 1. 1, 5.
पलु) एवैणणोः2 पक क. 24, क
ऽपरा] [0४1२8 १य7व्5० 11. ¢, 4.
इप्ला) कषएथ्र० १तछापा० 1. 142, ८५ क
ऽप्ला]) [पकिप8 क, 70, 8. क र 1.
ईप] 11112, प्र. 7; 8. १ 0 70 | |
ऽप्लाप 78 एवैषा 11, 2, 14. ४ | |
प्रलोप पप्र अनाक्ा प. 94; 1. क
$प्ला भता [. 62, 5.
ऽप्लः भृश [. 27, धः
ऽपण" 28 ए. 2, 9.
ऽपलाए १९१८७ [, 1.42, 9.
ऽपरा (6 (वतल इ. 85, 12.
ऽप्०ा ए० प्रद ए. 56, 12.
ऽप्य एवैव] ए. 57, 4.
इपपप वपल फषुहवीाभिप = |
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1 37; [पा उक ग
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1. 38, 1०; प्रा 30.911.
{11 49. 8; . एर 488
1. 49, 5; 71, 5०.54 1
89, 18 ; 2. 104, 77.
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इपर 70 [४.5
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ऽवा {6 1881 1. 24, 9.
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ऽथ १886 ए. 46, 32.
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58४8171. 118. {048 र 2, 5.
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8६40[1प]10173 1. 166, 8
ववा वडापवाााकृ0न ए, 50, 20.
81 91811 {1० ए], ८ 46
` ऽवि) 170 प्प 1. 89, 9.
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50, 3
$व{धा) 1168100 एयपारकु6 ठथुर्डा2-
तवा [. 776, 16
ऽध 70630 प्ूतदक€ पाक्08-
पकप [. 777, 17.
इ्वविपरयै [ल॑व० ए. 50, 2.
521411116४8. प्र. 49, 2.
8816118 110 [ ए, 46, 2.
इध शुत पनु. 20, 4.
ऽ्7 81110 ह. ९0; 14:
इवऽ लव ए. 45, व.
90 19 11वावह्टणा ए, 35
880 118 77त्10 ए 9.0.
उवा 190 (रथध [. 4 8.0
अधा पी इ ध82 ए, 35, 72
971 118}2 5078 ४1. 35;
88170 710 18. ©व]र8]1० 8726
वा 10 0पवण्थप ए, 58, 7
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ऽव व्ण ४, 16, 9,
थाप 0 आप ए, 74, 9.
$थ्प0 [22 [1]. 55; 6.
81282. दत् ]. 11 6, 22.
581488}) [६०० | 197, 4
दाता) ई21त01270 88. प्र 53; 14
8870110 व ए, 52,
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5827888 क $. 24, 2.
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88] डपा क, 28, 9
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ऽवप धाद) 96 श, 70, 3.
895 [पा०8॥६ . 114, १६
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825४8 07 ११) $ 67, 16
[4
रण्वा 0 ए, 60, 70
¢
2898110 11 ए, 18, 18
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४९० पा. 17, 12,
288 11114 -र, 152, 1,
४8त् रवाः [, 31, व,
०8 प. 92, 9.
शर8118 ण]०त० ए]. 9.1
लपक धडापं ए 14,
गला 10 7120926 ए
32» -9 |
आत प्र. 29, 2. |
शव) (रथ008 र. 165, 2. ४
| अणव) शणः 1. 187,
| शपथ (ष्वणि ए, 5,
दै पथु [१.10 8
६ 51570 शश90० प्रा 49 13. -
4
8
+ २५,
| अध परथ इना ए. 35, 4
^ "इभ 70 प्प ४1. 35, ‹ १
&4 70 ध णा. 35; 15.
५. थाप 70 कताः ४. 35,9
इ 0 वक्थ) ए 35; 70,
इप्र0&६ © कौन) ४, 2 ¢.
पण प. 507, 5.
ईप पप ६ [. व, 4.
इप्रणा्ाः 20त्]10 1, 62, 5.
इप0111*0 शश्च ४1, 56; 8
इप्प0भाव2 प्यवतृप्या [> , 36, 4
ईप्रा101198028 1९, 64, 5.
इपडा्रक्ष88 ©त् ए, 40, 5.
इपर 01191 [07 1, 102, 8.
8181110880 6 ६९ भ. 38, 3.
इ्8111010190द01 19 [11. 30; 8.
ईप्रञपपपथ० %; 1. 175, 5.
पशप इधत्ा10 [द, 88, 7.
50181918} [+ . 90, 3.
ऽप.488८१४ 111. 55; 8.
5४19 15९१ {. 85, 8.
010 119, 0112118 [3 . 76, 2.
00 ४ 50790 ४, 25; 4.
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1156 पतः प. 44; 2.
1118111 प02. 81186 1, 68, 1.
81110811 ०१80 ¬, 45; 5.
शप) ४१० ४1, 93; 16.
प्रादा 24427871 1, 120, 6.
इपर 116 111185922 {. 122; 6.
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9 24; 5. | - | | अधाता भवदव इ. 190, 2.
(| ॑ ४ ह 88 गश] 18 उप्ततष्क9 1. | ऽथणपततो0वह्पाम ४, 37; 2. | इध्पाप्रताैत् पैपप्पणा ऋ, 124, 2. | ॑
१ ^. ४9 ऽध तता0€ शष्टण्धप ए्, 40, 2 = | इलपपताैव प्प १, 58, 7. ६, „६.
1 वि इदा 800 ए, 42, 18; ४. 43; | ऽतत्र 200 1, 108, 4. ऽकापतात 908० ९. 78, 3.
(त ~ ~ ~ ऋ; ४.6; 5; *. 7; 5. इध्णापत्]१० 9008 ४ ९2102. [, 142; 7. | इथाप्ताह धथ) +. 100 9. क
|... ध | ॥ 88112 2871710 ~. 9.5; #. | शभ९त० धद वपा ए, 28, इ. | ऽथप्पतालप2 511101० [11. 36, 7. ५.
(1 “ ए इ 2898 पादपक४९७ ए. 6, 4. | उभापदत्]10 शपः कषा ए, 28, 7, | इदपापताा८ एवै 5, 45; 3. 1
।#/| इध 82 [ता [क, 96, 24 | उथातत्ा10 वटपत्र ्िव्थ) [्. 3; 1. | उधपपता0 शप 1. 2) 5 | | |
| 1... ` क 8४. 19118 $, उ2, 2. | 89््तत्}0 क्क फडपप0 क, | का प षञ9 ४. 54; 2. 0 |
| 1 | 89 708६484 18 [९, 40) | 170, उ, | 880 प 102, ए 20 +, 25; 4. |
11 | 89 162व प<थाद्) र, 68, 4, | ऽधत्त] पवक पवध्ञ [, 288, 7. | शध प [एवै 12, 701, 8.
॥॥ । | ॥ ; ८ , 88 पादाय ऽपर ४1. 3202. ` ` 82170;0710 ष16१९४४8 { र, ४ इ प [077० {2 . 947
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1 व इ््ादा एड [. 146) 2. | ऽधणतै०8 प एवा. 44; 9. 88. 711] ए € 1९. 99, ¢. | ४ ॥
| 0 इथा्षथाप इ ए, 73, 12, | इथातोक्ाश) उणाद, ए, 26, 6. = | 52 पणय धापकष0 [ह 4 |
अ ५ ` शफक्रपथ फ्रृद्षा 2. 52. | | ऽवप] कऽ 18 ए, 2, 5. ऽवा, लाथ शप्प् 1. 34; ५५
| || ८ ५ त इवथा वपु प, 20, व्रा, | ऽथवा ए० पर पा. 19, 24. | 58. प एकृपड ए, 49, 5. |
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(| | | | शप एप्प ह, 725 3. | शदपातपषवा0 धपु ए, 28, 2. | इथ एश उतार 1. 42, ए
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ऽव 17072. 794 1, 52, 5 | इथ. क्षाणं प्र, 34, 1.
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8१2१७] {° # 1. 47; 1.
80३१ {€ 25 ४ 11, 17; 6,
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8४10 20181871 * 111, 48, 7.
ऽ४६001 1112 1. 84; 19.
8९01150 4४९ 1. 72, 8.
841199 ए1 तपा० # 1. 2, 5.
इषएवकुपत2 8९2० ~. 44; 2.
ऽएव पत ६0 [ष्एथय् 1९. 87, 2.
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8४ १०11४88, 1811० # [[, 56, 11.
ऽए वरए1@ १६१४० ९, 12, 3.
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35; 24.
82112174 ४ £211 [. 742; 12.
82119696 ४, 5; 17.
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81011108 2१ 1. 127, 4.
19.28} 5९० 1४. 40, 5.
11211188 1२ वदुवप{2 11. 55210.
1217089 1४2. 51610150 111. 8, 9.
04718 98 [9800 ए. 35, 8.
1181108880 $€ {४. 4.5; 4.
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11202. एत्र 1. 23; 9.
11210 शयुतप््ङ् ४1. 60, 6.
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1808 पप्र) त४]३० सा,
2; 2.
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| एक्० ततणथरलल्ण ए,
78
0096890
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प््भापणप्रो) इध्म इप्पु ९8
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35.
1777 07 ९९41148.
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्भाकथावष) 88 11. 35, 10.
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भाप 951020 1, 163, 9.
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24.
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एप णश्) इपरत०० 1. 4; 1.
प्रर्ट णण) अप्रा भ. 5; 1.
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तप 01६80 + 111. 2, 12.
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ए्ताशु0ए1598 2, 25; 2.
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एनत) एणत्णपै इ, 165, 3.
ज्व भा810{2 1, 5; 7.
1018 १९४० 7. 27, ¶.
00ध्वता0र्थपपाः 1, 162, 5.
11018 018124६0 1. 68, 4.
1018 रथ]र5124 1. 159; 10. |
1011871 ए16९2० 1. 44; 4.
गक्ष 8210४21. 58; 7.
0 गदषद् ल्मी) ~. 1, 5.
जदा) एवै ४, 20, 2.
11019 शाढ0 +, 57; 4
1118090 2 1. 52; 7.
11208 1४४ 11. 36, &.
एवदु 401881 (ष्लाता 1, 41; 5.
प्ररफृद्ापे वरर पा. 34, 8.
षभ कम विणा) 1, 25; 1.
क
` 276, 4 भीमः-- 784 22. पावक -- 850, 17. द्वितौ -- 836, 7" ताणि -- 842, ०8. पिजा
(07, 10 14.
01. 1.
१०९९० 4" 10९ 3, 168 चेत् न -- 4 4* शरीरवत् । -- 5, ‰- तुपल-- 7, 7. चखाश्नायते-- 8, 11. गरैभ -
71,.6. मातसविति-- 77, 29. प्रवृ -- 72, 8. शुन्याय वसथाय -- 12, 29. प्रमायुको -- 74: 29. सूतयति --
7५, 16. शब्दाः -- 2०, 2. छित -- 27, 28. मा नयति -- 22 7. रेन ब्राण० -- 26, 428. अथावबोध
--28, 78. १५ 37, 5. वचनाय-- 37, 28. अन्नाद्ः--34, 25 बोधाय०--35, 9. योगं तु--38, 7. मागै--
39, 13. पेक्षतया -- 47; 6. तदू ह-- 44 48. पुथिवौ -- 47, 24 तिङत-- 49, 13. वनेव -- 49, 19. संधिकायं
-- 50, 12. द्विमैवि -- 52» 77. वुद्या -- 552 24. पुटे -- 58, 7 सहःऽ विदः -- 60, 2. विंशति -- 65» 20,
सामथ्यैत्-- 64, 3. बीखिति -- 66, 6. बुद्या-- 67, 24 ामंतित-- 68, 25. दल्िणेऽ सन् -- 09, 71. दी-
72, 1, रेकप०--72, 715. ! नितं --/76, 25. रथं । खा० १.१४. ।-- 87, 16. संज्ञा-82, 16 इंता--86, 4.शे न
--86, 15. सह -- 86, 42. फे--88, 75. सुक्रतो --979 77. 22. 74. 24. वध--97, 18. लिङर्थे -- 92 8. सवै
700, 24. त्रा गहि--707, 14. भनि --701, 75. ¢. रजसः--705, 2" सूलितं-- 124, 25 नि । स्वैता--
120, 3. पीतये -- 722, 26. १७--123, 28. लडस्थास् --128, 77. यदनेन -- 736, 8. ए-- 737, 77. र्या
--269, 76. धुडागमः--798, 26. कर्ष॑ज्य--200, ¢. नरा-- 201, 6. चयं -- 204 24. वैतान् -- 205; 19. €6.
पुमधीश्च -- 208, 2. पूव -- 220, 7. याज्या । प्र-- 224 13. ०४९. उक्थ्ये -- 228, 24. श्रीञ्-- 233 75. ३. ३२
-- 286, 2. €{९, कोषी -- 242, पुत्रामा -- 244, 24. साण -- 245 ¢. प्रमि -- 266; 7. प्रियाः -- 282, 78.
कुटि -- 294, 24. संगि चू चित्--14. नितुंदत । ०४.१३. ।-- 298, 74. 2०. 25. सि-- 298, 24. ग्रं --
3०8, 4. चकृमा -- 3०9, ¢ वा यानि वीया -- 3०9, 27. इतीण् -- 377, 24 विऽखं -- 3712, 24- दमानलु-
314; 29. यथा -- 375 "7. पदन्नि--378, 23. हे ईद्ग सृके -- 316, 19. प्रासहा-- 379; 3. इद्रश्च-- 320; 7
तमगच्छ -- 1/9). पटन्नि -- 324; 22. व्योय -- 335: 21. ड्युदेशः -- 336; 7. विदुः -- 338, 23. शम --
34०, 75. इमं -- 342, 22. रपास्य-- 353, 20. प्रागाथं -- 353, 20. 24 76 योप्यो -- 352; 10. अम्नेरद--
459, 5. प्र ऽश॒स्त -- 360, 13 $थ -- 367, 24; न-- 362, 714 करष्पनी -- 364, 18. जंभ्यते -- 65; 2. अग्निवे
-- 365; 23. नववास्तुनामकं -- 369, 23. मुख -- 377; 75* 66. चिकल्य इष्यते --
-- 565; 18. वं ह्न.
345; "1. दभि-- 376, 25. मतीसः -- 379, 1. प्रतुतखन ! -- 379; 28. तां वि -- 382; 74. प्रागाय --
दलो - 426; 19. वा -- 449; 77. विश्वान्े -- 454; 2.5. सेते -- 450, 1. शयश्च -- 466; 1.5. € गपनयो
-- 43, 4- ०९. कयादि-- 485 76. 3--487, ०. संभृत -- 487, 4. संभृतक्र --492, 12. अश्विमचलं 5०7,
जदरेषु--529, 10. 24. वाध-- 53०, 25- यच्छ--539, 7. म° १--550, 7 स्ुभद् 58, 2०. ४१, 1 ध
--56, 10. स्मेऽतरि--575, 9. सत्वानो--588, 28. जानमिः--645: 4* २३. ९-- 073, 26. 28. असयन्नो-- `
674, 21. ऽसंयत्तः--692, 6. 8. वां -- 72, 24- पशवः पर प्रेव -- 736, 24- चण -- 739,
भ, कड: भक, '
(0716. ^.
। | | | १01. न, क
ए28€ †; 106 15. श॒धैःऽतरः--70,) 17. सद्यः--70) 25" सूरः 122 1 अ०१--123, 24. जरस --16, 26.
५ | माचरती--41, 28. सम्यगान--22, 4. शुध्युवः--25, 15. समास्वा- 40) 7 सर्तु--49; 4" नग्ने 57, 44"
0 | शूरः-- 59, 25 त्रद्॑--65. 26. त्वा--89, 15. अपऽ-- 89, 23. स मृण-- 91: 3. बृणः-- 179, 4. 2.5.
(५ --118, 715. च्राव०--178, 23. कुवेत---720; 26. णिकहः--126, 8. सप्तदश--128, 16 ष्यटो-- 128, 18
स्यद्ः-- 729, ‰. स्यंद०-- 147, 13. 15* 17. हुरीपं - 198, 20. 2५. ध्यै: -- 200, 24. णते 1 -- 275; 19
| | भसत -- 226, 21. षष्ठ -- 243; 19. 20" चतौ -- 2/9; 72 भोक्त°--- 298, 18. 61८. खषा -- 307; 22. नयाः
8 ९ -30; 23. रथियंती-- 506, 77. शुञ्च--312 8. शूशुः--317; 22 पृश्छिये-- 33, 13 सच --326, 12
(= ; तष्टो--338, 22. वस्तोवैस्तं -- 344, 2. सहावान्द्०-- 348, 22. 24. युक्ता--353; 13. षडईच - 393 16. चाये
| 9 --460, 24 बिद्धि- 362, 12. विद्याम--:92, 23. पिता-- 405) 4" न पेया-- 498; 7. स्त्यते- 427, 71
न ` वायुः-- 453; 7. सू०१०-- 454> 26. श्रुयाः -- 456; 23. त्वात् । इंद्रो -- 469, 25. नेंषो -- 47०, "5. या--
१ ष | 474; 2. 4. 8. श्मानं -- 480, 12. जात् -- 484; 2. तस्म -- 522; 20. पथयः-- 522, 22. समुच्ड्तिः
। र ५ --542, 23. व्र्णः-- 574, 15. गृ° सू०8.९--581, 7. सू ३8--<84, 5 कति -- 590, 5. जोषिषत् (€)--
| | 594, 10. च॑रेम -- 597; 12. वदेम -- 602, 24. द्राषि ०; 10. 603; 2. 5.-- 032 74. आरा । हि--- 608, 77.
॥ ग्नाः पहिः--611, 10. पादा-- 6217, 22. खादित्या ।-- 624; 5* व्र्मपुतः-- 027, 19. सऽयोनीः-- 629, 22. हि
-- 649, 12. 14. ठुरेप-- 705 16. 78. चृक्वाण-- 713; 8. उत्ऽईते-- 742; 3. भानुनागा-- 747, 18. सा०४.
-- 745, 15. 74. वेदाः-- 754 72. देवता हितीयस्य मरूतः -- 754 23. आ० ४. ४-- 7552 29. कश्यय --
158, 12. दप्रय०-- 767, 10. माण -- 770) 2. क्यवृ- 787, 4 तनू ३5 नपात्-- 782, 76. अजीजनन
7193; 4. 74. 15. तृद्यते-- 794 79. सूयः-- 795; 14 सगतो--878, 24. इद --947; 5. स्यीणा--967, 2
प्र--967, 23. 25. मनीषां -- 985, 24. ४.
ए» 01. 1. | | ।
296 2, १०८6. शतस्रो--17, 73. रल्लोपानावः--34 7. आत्मने पदं-- 44, 12. ति मजभ- 45; 22. सङूपिते--
66, 4. सुऽमनाः -- 78, 71, होता -- 88, 10. षोडशी -- 716, 16. सधऽमात् -- 727, 2. स्तोम -- 130, 22.
| अमुखेः--139, 19. सवीत्मकं--145, 23. दुरवने --155, 29. 20. निच ०165, 16. सूघ ०--24> 5. रकविंशो
“0 292 25. ६. %--240, 20. तृत्तीया--240, 26. नामिकां-- 267, 77. वसुश्रुत द्या विट् तुत्तौया मारुतो
द्ावेष्एवी्---2) 7, 3. करदा--285, 25 अगिन 296, 10. पुरू--329, 4" प्र गाम-- 399 21. लमत वेश्दे वीति
--339, 23. जाः पय --382, 19. सनभि०-- 436, 22. अश्चिना-- 463, 25. 45. प्र यञ्चः --577, 19. देव--
517, 13. 14. 15. दुद्धा-- 520) 5. 7* 9 सदतां-- 622, 2. वृधो--627, 7, जनिम-- 652, 8. दमायो--7००,
^. गु ° सू° २. १०---741; 7. ईद्रस्य-- 705) 2.5 ऽगव्य् --768,; 24. वस्यः--817, 21. सुक्नेषु-841, 9. 11. टूत्यां
857; 78. चतुर्यीौ-- 847) 2 चतुरैशो -- 843, 72. वाजेंभिः-- 84; 72. पयुरू--848, 5. पुरू--849, 21, `
रजोभिः--855, 2. व्याप्रो्ति-860, 22. प्--860, 24. चित्-805, 13 द्यानि--868, 2. खप्रः--876, 27. नँ
---877, 7; कमैणा--88०, 22. धमेणा--882, 4. अभी--884, 18. नव्यसे-895; 71. किणति--916, 22. न.
-- "6, 0. 1. 1, 20. 10९16986, 1. 21, १९५५९०३९; ` ९45 18068 ग 6९01005. 24. 11088.
व
स
(0 604. 785
711. °ध्े-- 38, 9. इतिं सुऽक्रत्--143, 27. सवीता--146, 10. गोपा--147;, 5. वा-- 155, 14. उत्ऽचरत्
---171, 9. रखकोन०-- 174, 77. ग्यैन--175; 6. 8. 71. अवुध्रत्--7170; गर. प्रति-- 778; 74. प्रागाच--
199, 25. मायिनो -- 2०2, 4. शृणतं -- 202, 6. शुरं -- 2०4, 10. तेमेद्रावरूणं -- 217, उ. श्रुरिति श्रु
--222, 18. रकोन०--229, 5. पीवो अन्न ०--230, 6. इदरेवा०-- 257, 7. नवमं -- 2.52, 15. शाशदा०--
2.52, 22. केव॑लः -- 2.52, 23. च दशमं -- 257, 71. चैमेकादशं -- 2.59; 18. °मस्य -- 267, 76. अपामु
2473, 23. भद्यो -- 281, 11. स्तो अर्णः प्रति -- 285; 18. क्वेदं ° -- 290, 15. श्णं -- 327» 26. सहस्रेणेव
-- 246, 23. नो-- 383, 23. विपन्यू - 390, 8 जगत्ऽपो-- 391 21. रदिवै०-- 295, 2. इवे --407, 18
स्तोम--409, 25. वोऽव॑स-- 453, 16. सोभरिराग्नेयं --467, 15. भुवद -- 467, 20. सोभरे; ; 2150 478, 14;
486, 24--477, 17. वोचत्--48, 77. वे- 486, 25. प् । रकादज्ञौ द्वादशी च ककुम्ध्येञ्योतिषी । का--487
2. मध्येज्यो -- 510; 5. विंदाभि-- 532, 16. 18. € वेयश्च०--542; ५. यञ्ञेभियावृतो-536, 12. कृतः पतै--
528, 71. प्रागाधं-- 538, 27. पु्तो-- 578, 8. सहचर °-- 595; 8 पृथक्क-- 6434; 4 भृषैके ०--- 702, 24. राधः
ते-- 724, 14. दातव्यावियेवसभिनयन--729; 2. दुट-- 744; 24 इति तुवि ०--;737, 24. षड्-- 738, 7
मे०-- 739, 23. इदिहे--747, 18. तयोदश्युष्िक् चहुैर्यनुष्टुप् पंचदशी पुरउष्णिग --- 750, 23. 25- €
गधेमु--770, 4. पंचमं 10०8६62 ग चहु, शत 80 00 0 फा 71 --- 784; 1. कुह ०--864> 12. खथ
दृष्प--877, ¢. द्य-- 884, 1/7. चेत्युरडष्णिगि°- 890, ¢. भ्रूवति--972; 17. 19. सहघ्रसां-- 913,
9. 71. धीमहि. ।
01. ४.
9९ 91, 1०९ 10. असमभ्यं--92; 26. ध्तिैरि--777, 17. वनामहे 727, 19 गिदरः--138, 1०. सुऽस्तुति--
140, 25. दुशं --792, 13; 286, 18. चस्वोः-- 2/9, 22. टत्ति-- 3०9, 24. गृणानो -- 310०, 2. अभि--
337, 12. काङ्यष्यो--357, 21. पिप्ये--386, 9. द्नाः--390, 22. पुंणाति--423, 14. चितलिषटुवं --429; 77.
छाव--- 436, 8. सीदां०--436, 70. सौदं--453; 15. 15* €९. क्रव्य०-- 465; 23.
४01. ४}.
एा०९, 198 ऋं, 106 15. परच्छि०.- 2० 207, 06 ग 7. दच्याया०.-- २०९6 047, प्य 34.
ए9प्0लञ० 74001288) -- 65475 57000 3०. $ापतप] -- 6659 पका 86. 3; 73 73: 23. |
पा एल 40 +€ वल ज प्ल पु पा, पथा धडपतत्ा०ड, [ृष्दपाक्पर 9056 0801860 7 116 160६ 9 9८८८8;
अना] ४८ प्ते ००९०६ ष त पलक लताप्न० ज च€ प०8 0.76 सि्-४८त2, रिक धयत त धटः गनुग्ण१९त्
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शुव॑नेन ४111. 35, 2.
भुव॑नेभ्यः 11. 23, 20; भा. 96, 16.
भुव॑नेषु {. 7140, 5; 764; 37; 7. 2 10; 1४.
56, 3; णा. 35, 7; णा. छा, 14; 12.
86, 14; 38; 39; 45; ॐ. 220, 7; 183; 3.
र्वं स, 48, ग; 49; 7; 86, 5; 779 8.
भुवा 111. 55, 75.
भुवानि ४11. 86, 2.
भू; ए]. 75; 14; +. 72) 4; 149; 2.
बूः 1. 233 3; 52 235; 9792; 178; 5; 159 7;
ए. 1, 5; 53; 20) ग्ण; 35; 4; 645;
पा. 19, 10; 06; द. 77, 9; 46 5.
भूत् 1. 77, 4; 178; 3; [. 4 7; 5; 9 4;
111. 32, 12; 36, 1; णा. 4, 2; 78, 8; 64,
8; प्रा, 2 57; 47, ग्य; &. 3 2; 99
3; 77; 105, 9.
भर् 1. 58 5 ; 63: 6 ; 7ॐ 2; 77 3; 10; 4;
776, 6; 7143; 8; 1408, 4; 1. 18; ए; 29,
4; 1. 32, 71; 55 3; 1१. 7 4; 79
9; 25 7; 43; 4; भ, 47, 16; ५1. 18,
123; 19, 71; 29 4; 32; 34: 2; 64, 10;
2; प. 20, 2; 62; 7; 68, 6; 100, 6;
104; 7; शा. 79 2; + 47; 99 2;
29, 3; 48, 9 ; 160 6; 105; 10.
भूतं 1. 106; 2; ४. 30; 4; पा. 45, 4; >.
309, 2; 67, 24.
भूत 1. 165, 13; 1४. 35 7; ४1. 50 प्ण; 5;
ए. 56, 22; #111. 20; 24; 272 2"
भरूतऽसशः ऋ. 106, 71.
भूतः ४111. 2, 46.
भूतः 7. 27, ¢.
| भूतन् ष. 99: 10 > 2. 36 17.
भूं 1. 92; 7; 185: 77; ¶ा. 32; 7; ४. 4
५; ए. 68, 2; ए. 57 9; 95 2; 99
3; पा. 9 77; >. 42 5; 5ॐ 2; 58
12; 90, 2. |
भं 1. 39, 6; 1. + 3; पा. 69 5; 0६ ||
4; 747; णा. 8, 9; 2 16; > 4० ||
9; 93 ॑ 1.
1, \ भूतस्य +. 85; 147; 7272 १ ।
श्रूतानौ 111. 27; 9; >. 74 र
भूतानि +. 82; 4; 90, 3; 137, 5; 174: 3'
भर्ति 1. 167, उ.
भूतिं ४11. 59; 7.
चरतु 1. 94 72
भरतु [. 137; 2; 736, 4; 1.25; 7, 88।
, 23; प्र, 5०73 ४, 42 16 ५. 45;
30; ४11. 104; 6; प्रा. 1, 3; 5 18; 26,
16; 44; 28; 45 36 ; 75; ए; >" 7 4;
1973 3.
भूत्वा . 162; छ
भरत्वी ४11. 104 28; र, 85; 29; 145; 5.
भयः ४. 67, 5.
भूना >+. 82; 4; 149; 3.
भूम 1. 61, 14; 62 8; 65; 2; 76 3; 85 5;
88, 2; 159, 2; 7735 6 ; 1. 4 2; ¢; 8॥
17; 4; 5; 293; 42 4; + 75; 4
3; 85 3; 9. 20 7; 36, 5; 5० 5; 6%
8; एवा. 34 7; 19; 45" 7; 69, 2; 86;
12. 97; 23; क. 5359; 742; 4
भूम 1. 105 3; एवा. 97; 46, 4; 57 4;
62, 4 ; 9. ए, 13 ; >. 37, 6.
भम॑ ऽइव पा. 39, 7.
भूम॑नः ए. 72; 2; द. 15 5; 74 7; गा, 7.
भूम॑ना ‡. 37, 6.
भूमनां 1. 7110, 2.
भूमयः ४111. 6, 15.
भूमानं 2. 98; 12.
भूभिः 1. 87, 3; 11.11.720 2 ४. 59,
2; र, 44, 20; 48, 22; प्र 4 5 प 1
209 5; 8. 67, 10; >+. 857; 7; 90 14; ध 4 ॑
132; 2; 6
भूमि { 52; 12 64; 9; 164; 31 2 १1 ३५9 9 2)
प्र. 26, 2; 5; 8 9, 50 4; 84; 7; 85; | |
4; प्र. 60, 6; णा. 45; उ. 78 6; त
24; 13 58 3; 59: 3; 87, 2; 902; 5; 1
न । 4 2 | 5 |
बनी; 1. 1028; 7. 8; प्रा. 8,5; पा |
41; 9; 702 ॐ .
५
भ्रमे ह. 18, 71.
भूम्यस्यं प्र. 47, 70.
भरम्यां 1. 167, 74; +. 75; 3.
भूम्याः 1. 62 5; 80, 4; 164; 4; 4.11.
पा. 85; 3; इ. 10; 8; 68, 4; 75 2;
111.:18;
भरल्या 1. 39; 4; 162; 77.
भूयः 1. 14, 20; ए. 79, 10; प्. 3० ए; पा.
21.19 041 1110-9.
भूथःऽभूयः ए. 28, 2.
भूय॑सः 1. 37, 6; 702 7; [. 2 12; ४. 3'
॥ ^ 012..42.0. 11010
भूर्या {17. १6, 6; 7४. 24; 9
भूय॑सीः 1. 77, 8; 188, 5; [. 28, 9.
नयाः 1. 164; 4०; भा. 47, 26; +. 43; 9;
। 900;
भूयाः 1. 185: 8; 750, 11. 21. 8.
मरूयामं 1. 77, 4; आ. 29, 3; णा. ॐ 2.
भरयामो इतिं 1४. 32, 6.
भूयासं ¬. 166,
भूरिषः 1. 167, 9.
भूवि ४. 77, 4; ए. 96.
भूथिष्टाः 1. 163, 9. |
भूयिष्ठां 1. 189, 7.
भूरयः 1. 55; 8.
भूरि 1. 10, 2; 33; 3; 48 2; 9; 5 5; 73;
4; 81, 2; 6; 103; 5; 120, 70; 124; 19;
154 6; 165; 7; 785; 9; [. 99 5; (न.
18, 45: 31;.9; 39.58; 44, 3; 54 5; 57
५. ५8, 9; 1४. 49; 175 2; 26) 10; 32
:426 ¶, 9; 70429; 14; प्रा. 152; 1
9; 0.9; 44; प्रा, पः + 9;.8
५; 20 606; 22; वा, 57996;
23) 21; 32; 8; 45 2; 38; 46; 25; 55
1; 62; 16.25: 0.4; 90; 15; | 100, 2;
12.91, 6; 8.9; 42 84465. 3.4 48
7; 79 ग; 85 ¢; 1०6, 7;
भूरिऽश्नोजाः २. 120, 2.
भूरिऽक्मैशे 1. 103; 6.
भूरिगो इति भूिऽगो धा. 62, 16.
भूरिऽचकछषतं 13. 26; 5.
भूरिऽजन्मा 3. 5 1.
भूरिऽ्दाः 1४. 32; 26.
भूरिऽदाः 19.32 19; 21
शूरिऽदाह्ः 111. 34; 1.
भूरिऽ्दभ्यिः 1. 00.10
भूरिदारव॑त्ऽतरः ४111. 5 39
भूषिदाव॑त्ऽत्ता 1. 109, 2.
भूदिऽदाव॑सं ४1. 2, 9.
भूटिऽदावां {. 84, 4.
भूरिऽ्दावुंः 1. 27, 17; 28.11.20
भूरिऽधायत्तं 12. 26, 3.
भूरिधारे इति भूरिऽधरे पा. 70, ५.
भूरिऽपाशौ ए. 65; 3.
भूरिऽपोषिणंः 11.40;
भूरिभारः 1. 764; 13.
भूरिभिः प्रा. 70, 14; इ. 1, 5; 35, 4
भूरि 1. 185, 2; प्र. 16, 8; 20, 8.
भूरिऽ्देतसा ा. 3, ए; +. 79 7; +. 92; 77.
भूरिऽवपैसः 2. 149
भूरिऽवपेसा 111. 3, 4.
भूरिऽवारं ५111. 58; 3; ॐ. 47, 2.
भूरिऽवाणः 111. 57; 4.
भूरिऽश्ंगाः 1. 154 6.
भूरिषु ए. 45, 34
भूररिऽस्यालां ^. 125; 3. त
भूरीणि 1. 165, 7; 166; 10; वा. 9, 4; ०2
3; प्र. 70, 19; #*1. 9, 4.
भरः 1.6, 15:96; 74 184; :3; 1. .28; 4;
3०, 5; 5ॐ 9; 19; व. 36, 16; 39:
प्र. 14; 21. 50 416 4.4.642;
॥0॥8।
॥ भररये ए. 86, 0; द. 57, 4.
भशिः 1. 66, 7; णा. 87; 2.
भशिं 1. 35; पणा. 7; 29; प, 15.
भूवन् 1. 139, 8; ४, 66, 2; >. 22, 72.
शष 1. 15 4; एवा. 92 7; 1. 96; 12.
भूषत 1. 182, 7; पना. 66, ¶; [>. 204; 1.
शूषः ४1. 62, 4.
भूपं १11. 74; 3; २. 145; 6.
भूषति ए. 22, 5.
भूषति 1. 46, 22; ना. ॐ 2; ए. 75 ग; पा.
00. 6-11-10...
गरषतु ४111. 90, 7.
भूषयः 111. 12, 9; 38, 6; प. 45; 8.
भूष॑न् 1. 14०, 6; 7. 25 2; 34 2; र.
042 3.
भूषन् 1. 157, 3.
भर ष॑न्ऽइव 3. 42, 7.
भूषति 1. 95 3; 162 75; भाव. 99 2; >,
† 104; ४
भूष॑ति ए. 9०, 26.
भूषसि 1. 37, 2.
चर्पात् [प्र 76; 77.
भूषेम 111. 3, 9.
11.01; 10202
722, 5.
भूगेवाणः 1. 17, 4.
भूर्गवाणं 1४. ¢, 4.
भृगवाशे 1. 720, 5
भृगवे 1. 60, 7; णना. 59.
भृगुऽभिः ए. 35, 3.
भृगुऽभ्यः [1.5 10.
भृगुऽ्वत् ए. 43, 73.
4 मृगणा 71. 24.
4 मृच््ातिं 1१. 24 7
. भूरिं णा. 6, ण द. 105 7.
भृग॑वः 1. 58, 6; 27, 7; 745 4; 7.4 2;
9-2-11. 10
6; (0. 3; 16; 6, 18; 18. 107, 14;
श. 14, 6; 39) 14; 46; 2; 9; 92 16;
भये >. 29; 4.
भुथे [. 74; 4.
भूमं ए. 67, 12.
भूमयः [ा. 62, 7.
भुमात् १11. 2, 22.
भु्भिः 1. 37, 76; 1५. 32; 2. न
भृमिं 11. 4; ए; प. 56, 20.
भृष्टिः 1 56, 3.
भृष्टिऽमतां 1. 52 15.
भेजाते इतिं 77. 39; 1.
भेजानासः 1४. 29,
भेजिरे ए. 7, 9.
भेजिरे प. 57, 5; 2. 94 8.
भेजे ४1. 18, 16.
भेत् 2. 68; 6.
भेत् 1. 59; 6 ; 104 8; 9५11. 18, 20.
=, 192; 1
भेचा ए. 14, 74.
मेदंति ए. {© 10; तय.
भेदति ए. 86; 7,
भेदं प्रा. 18, 19; 35 3; 83: 4.
भेदस्य ष्वा. 18, 78.
भेदो 3. 1712, 4.
भेम 1. 77; 2; १. 4.
मेषजः 11. 33; †.
मेषं 1, 22, 19; 271; 89 4; ४. 55 "4;
प. 9, 15; 20, 25; 72 14; +. 95;
100, 70; 2, 3; 6; 775 2; 186, 7. `
भेषजस्य भ. 42, 71; भ. 26, 23
भेषजा 1. 23; 20; 34 6; 114: 5; 1 229; 12:
13; षा. 46, 3; -. 59, 9.
भेषजानि भ. 74; 3.
भेषजीः >. 157; 6.
मेषजेभिः 1. 150, 6; [. 35
भोगं 1. 163; ¶; 1. 34 9;
भोगान् प. 29. 6. `
भोगैः प्रा. 75, 24.
०8
भोजः ४11. 70, 15; क. 07 णठ; 70 3.
भोजते 1. 72, 8.
भोजनं 1. 44; 5.
भोज॑नं 1. 82, 4; 7. 75 2; 4; 6; 26; "४;
पा. 44; 3; प्र, 34; 7; 82, 7; श्वा. 68; 5;
१4 2; भा, 7, 34; ॐ. 249 6; 48, ए,
भोजना 7४. 36, 8; णा. 18, 75; 7; [र
80; 6 ; -९. 44: †.
भोजनानि 1. 7०4, 8; प्र. 4, 5; भा. 53; 19,
0. 1419.2.
भोजनाय 111. 30, 14; प, 83, 70.
भोजं 1. 14, 10; 77, 8; ष. 45 7; शा.
3; 24; इ, 42, 3; 1009 71.
भोजं 11. 28, 9.
भोज॑से 1. ;5; 3; "1. 5, 3; 65, 3.
भोजस्य ए. 18, 27; उ, 107, 10.
भोजाः [11. 53, 7; 2. 1, 8; 9५.
मोजान् 1. 57; 3; ए. 55 16.
भोजाय >. 107; 70४.
भोजेषु ए. 25; 21; द, 52; 3.
भोज्यं प111. 271, 8.
भोज्यां 1. 126, 6 ; 748, 5
श्रमः ४1. 6, 4.
भ्रमा; 1, 22 2.
मासं; 1१. 4» 2.
श्रशात् 2. 7 75, व.
[
। भाजः =. 110. 9;
४ भ्राजजत्ऽ ऋष्टयः 1.9 1.64 1; 4.5; 168,
4; प 599 ए 18.15 |
धाजत्ऽृषटयः 1. 24; 5 | स
ति |
भ्राजत् ऽचि ४1. 66, 71.
नि 8
` आनतिः 1 56.51 १.6.
(कि त ।
-राजंत्ऽजन्मानः ए]. 66, 20. |
घ्राजते 1. 44, 12; ए, 55; 2; णा. 20 7;
# 1.0.
भ्राजमानः ए. 63; 4; इ. 88, 16.
भ्राजमानं 1. 5, 70.
भ्राजसा र. 78, 2.
भ्राजसे 12. 7, 5.
भ्राजा 12. 98, 3.
श्राद् >. 122, 2.
चातः 1. 762; 7; 3; 72 3; 11.235;
3917) 5
चारः 7. 740, 2; प्र. 60, 5; >. 534 4;
51, 6.
प्रात्र 1४.7, 2; प, 34; 4; 85, 7; ९. 7; 3
भ्राततस प्रा, 59, 2.
ध्रातरितिं प्रा, 45; "6.
श्रातं 1. 164; 79; 197, 6; ए. 55; 5; >, 729,
व 10111 2 1007. ..140,. 0;
भराता ऽइव 1. 65, 4.
पराहुः [प्र 3, 15; णा. 1, 6; इ. 55 7;
00; 2.
भ्रातु ऽये ४111. 20, 22 ; 83; 8; श, 108, 10.
भ्रात [४.25 6; 25; 2.
प्राता [४, 10, 8.
भ्रात्ाय 1.10
भ्राशयन् >. 176, 5.
भ्रार्यानि 2. 116, 5.
धिय॑ते 1. 14; 4; णा. 27, 2.
भियाते १01;
प्रीणंति 1. 28, 0.
194 ५
भूतिं अ. 154
प्रेषते ४11. 20, 6.
75 28; ए.46, 4; पा.
क
: 84;
स
य
. भंरींयान् 1. 66, गौ
मघः 1१४. 45; 4; णा. 32,
मंसि -- मघवत्ऽभिः. ४०४
मसि १. 88, 2.
मंसीमहि 1. 136, 7; ४. 19, 0; ॐ. 26, 4.
मंसीरत 1.5.
मंसीष्ट ४1. 38, 6.
मंसीष्ठा: 1. 175, 5.
मंसे 2. 115, 10.
महते ए. 45, 32; भा. 50, ए; उ. 62, 8.
मंहते 1. गव, ५.411.101 026
गना 11.20; 1; 11. १.7.26,
4; 16... 2; 62.16; "2. 645; 67.
४11. 81, 4; ग्वा. 26, 24; 12. 3), 6;
70, 2.
मंहनांऽङव 1. 7, 6.
मंहने ऽस्याः इ. 67, 1.
हि ति
मंहमानं ए]. 24, 22.
संय ४. 58, 7.
महयत्ऽरयिः 12. 52, 5; 67, 7.
मंहय +, 48, 9.
मंहयुः 17. 20, 7.
संदसे ए. 52, 6
महे 1. 37, 8; णा. 61, 8; [र. 82, 4.
। शि त)
मदिष्टः 1४. 57, 2; एना. 4, 18; 75 709; 79,
20; 40.24; 44.6.90). 2.14.
०090 | |
मंहिष्ठं 1. 40, ए; ता, ए; 67, 3; 139, 7; प्र.
39, 4; "1, 44; 4; णा. 2, 2; 26, 7;
929 1; [2..2102 6; >. 32, 4.
मंहिष्टऽरातिं 1. 52, 3
मंहिष्ठस्य 1. 144; 2.
मंहिष्ठा 1४. 47, 7; (णा. 68, 2; प्रा. 5, 5;
229 72; >. 142, 6. |
मंहिशः 1. 121, 75.
मंहिष्ठाभिः पा. 24, 25.
` मंरिंशं इ. 104 5.
संहिष्ठाय 1. 57; 7; णा. 103, 8.
महि्टासः ४111. 1, 39.
नघा ॐ. 49, 6.
मद्धिका 1. 7179, 9; 162, 9.
मशु {. 2; 6; 39; 7; 58; 9; 60, 5; 67, 76;
6०, 13; 62, 9; 64 5; वा. 15}; [प्.
10, 10:21... 11.00 +
90.14 "112. 22.79 22 6 3
92.3-01.4..41,9 52. 4,
90.41 01.01 11011141
मघुंऽगमाभिः पा]. 22, 16.
मलुजंवःऽतमा भा. 45, 14.
मलुऽतनस्य +. 19, 12.
मघुऽतमेभिः 12. 55, 3.
नसुऽभिः ए. 26, 6.
मदुऽम॑सु 111. 37, 26.
मलुयुऽभिः +11. 74 4.
भः 1.6, 8; 128, 12; फ, 74, 7; [इ 29,
0 10 0;
मखं 1. 101, 13.
मखस्य 1.731.124. 4; 1.42
न 172;
भसस्यते 17. 107, 5.
भखस्यन् 111. 37, 4.
मखस्यसे 17. 62, ०.
मखस्युं ० 1..0.
मखस्युवः 13. 5०, 2.
मलस्युवै 12, 64, 26.
मला 04.71; 1109.
मखाय ४11. 46, 25.
भसेभ्यः *#1. 66, 9
मघत्तये 1*. 37, 8; ४. 79; 5; सा, 24; 79 ;
ह
45 75; 7० 9; -&. 156, २,
मवऽदेयं ४1. 67, 9.
मघऽ्देयांय 2. 42, 2.
मधं 1. 12.4..14,.94. 14; 3; 14 32. ॑
मधवत्ऽतम् ४111. 4; 5.
मघवत्भचस्ं ए. 7, 3 =
मधव॑त्ऽनिः [भ 16 | 9
श
४०६
मचघव॑त्ऽभ्यः 1. 58; 9; 124 10; [. 35 4;
35 15; (1. 10 5; 46, 9; श. 7 20;
2; ॐ9; 7: 7; 16, 9; 246; 5> 3;
64; 9; 74; 9; 95; 3; (111 ॐ 72; 1.
20, 4; 32 6; 97, 55.
मघव॑त्ऽसु 1. 64, 74; 95, 72; 129, 15 ; 142,
70; भा. 37, 2; णा. 59 2; क. 39
9 02.70
मघ॑ंऽवन् 1. 82, 7; 3; {भ४. 3०9; पा. 24 71;
32; 8 ; 67, 13 ; 62 10 ; 66, 13 ; 89, 5.
मध॒ऽवत् 1. 33; 22; 15; 52 ण्ण; 54 7; ॐ
58, 9; 84; 19; 702 37; 4; 7; 10;
104) 5; 8; का, 75; 727; ग; 742; 7;
134; 3; 165 9; 778; 5; 1.2508.-1.
2० 5; 16, 21; 313 14; 19; 32 7; 36,
10; 43; 5; 473 4; 55 2; 4; 33 14;
27; 6०, 5; श्र, 16, 9; 19; 7#; 7; 18,
9; 22, 10; 295; १. 29, 5; 13; 3० 7;
31, 6; 33 2; 36; 3; 4; 42४6; १. 15
, 75; 98 1; 27, 3; 44; 10; 7; 18; 46)
01014101 $. 18, 2; 79, 8 9;
20, 9; 22, 3; 6; 27 2; 29; 4; 3; 4;
22.47; 14; 19; 27; 2325; 3573;
ना, 4; 1०4, 19; पव. 2 4; 3 14; 7;
१५.12.06; 21.16.33. 44 77 2
9,04.6; 10.400; 7517 0;
7; 52 8; 55; 542 7; 67; 4; 07; 14;
70 6; 9; ‰789 10; 88, 6; 9०, 4; 98
10; 97, 7; 8; 1006; 28; 3; 5; 35.
3 42; 3 44; 9 442 ¢ 2 54; 1; 4; 5 |
` 55 1; 100) 7; 102 3; 16310; गत्य (4
1124 16101 13 .5154.6
147; 3-5; 107; क च य |
मचऽ्वां [. 32, 3; 18; 55 4; 205 2; 4;
146 ` 157, 3; 1177; 3; 1735 58; 74:71;
7; 11. 6, 4; 1. ० 3; 53; 8; प्र. 7,
8; 9; एव; 13; 19; 2; 209; 2 7;
24; 2; 24, 5; 42, 5; | 209; 6; 8 30
6.5 20; 70, 15; 96; 20; 103, 9; 1. -4
87, 3; 96, गव; 97, 55; < 28 2; 3;
35 8; 42 6 ; 8; 43 3; 5; 6; 8; 49; |
17; 81; 6; ‡712; 2; 160, 4.
मधऽ्वान् 1. 16, 7.
मघऽ्वांनः 1. 73, 5; 8; 47, 4; 98, 5; 156;
7; 147, 73; प्र. 42; 8; 196; भा. 16,
7; 29, 10; 60, 77; 78, 5; ~+. 20: 4
मघवानः ४11. 48, 7; ¬. 32, 9.
मघऽ्वानं 111. 20, 22; 57, 7; ४. 31, 7; ४.
` 96, 2; 2; 28, १ 1070. ; 4;
1; 74; 5; 104 7; 167, 2.
मधऽ्वाना पा. 26, ;.
मधऽ्वानां 1. 2184, 5; (1. 24; 72; [1. 58, 5;
19. 28, 5.
मघस्य [प्र 20, 7; श्रा. ए 3०; 88, 6.
मघा ४. 32; 72; ४1. 37, 4; 9. 16, 16;
९. 7, 19,
मधाव 1. 104; 5
मधान ४1. 26, 4.
नधानिं 111, 19, 2; 525 7; 19, 14, 8; ४.10,
॥ 4.4.22. 1.2.24 + 19,.16 3 2
7; 299 7; 3०, 4; 57; 6; 67, 9; -&. 32,
9; 75 4; 732: 3.
मधायं ए. 27, 5. ६
धेः ए. 79, 4; णा. 24, 2; >. 24; 2. | ४८
मघोनः 1. 379 12; 549 17; 246; 13) 1. 27
॥ १0.48.110. 1. 116; "0
3; 24 15. 52,:9 ; 65; 6; ४ 23.106; 44
12; भ. 12, 2; 32; 153 81; 6 ;
2, 12: 28; 24; 2; 1. 8,.7; 329, 1;
22, 15 । 8
सधोना 1 48 2; ४, 78, 3; 59; 39५ 4; 64> । ५
4: 5; 91.37; 4.58 2; प. 32 04. ५
58, 6 ;.96;-.2 5 : 111, 116; 49; 444.
10, 24; 551 04 18.70; 3
80, 2; -‰. 93, 9
; 1; ि ¢ +
न् धोनी €~ मत्सरं ० % 99
मघोनी 1.49. 13.44 17 -1;
5 70; 16, 9; 179; 18, 9; 199; 22
0:.11.61.4. 1 61". 745;
78, 4; 79, 3.
मघोनी इति ४1. 2, 6.
मघोनीः 1४. 57, 3; णा. 65, 3.
मघोनोः ए, 86, 3.
मन्ति 1. 64, 21.
मज्जानं >. 68, 9.
भञ्मनां 1. 57, 70; 55; 5; 64 3; 84 6; 712,
3; 4; 10; 128, 5; 150 4; 1476; 745;
2... 1)... 12:40;
3; १1. 18, 7; णा. 82, 5; 1. 85, 4;
102; 2; 1. 770, 9; 2. 29, 6.
भणिऽग्रीवं 1. 122, 14.
मणिना 1. 33, 8
मंडकः ए. 102; 4; 12. 12 4.
| मडका पा. 103; इ; 10; ॐ. 166, 5.
नंडकाः ४1. 103; 7.
मडका: ऽड्व 2. 266, 5.
मंड्कानां ए11. 104, 2.
भंडक्यां 2. 16, 714.
मंडुरऽ्धाणिकीः ¬. 155; 4
मत् 11, 238, 5; 6; 29, 1; #. 2 8; #*1. 67,
५; ह, 10, 8; 10; 22; 86, 67; 95 8;
166, 2
सतयः 1. 62, 77; 765; 4; 2186; ¢; (1. 4
९; 44) 2; ४.87, 7; #1.7162 १. 16
3; 1. 72, 6; 85; 7; 771; 86, 3"; 46
95, 4; 9; 34; 106, वव; "7 2; 45 7;
01.124; 177+ २,
मतवचसा 1. 46, 5.
मत ऽवांन् 12. 86, 13
भतस्नाभ्यां ^. 162; 3
मतिः 1. 147; 1; 742; 4; 11. 59, 7; 55 ०;
"फ. 4495 675 पा. 8 गा.
66.४46; रा 4 87; 74. ||
11 0 2; र. 224; 41.65;
|| मत्सरं 12. 26, 6; 3० 6
| 6315110; ॐ 9.
भतिऽभिः 1. 60, 5; 11. 18, 7; 256; 19;
20.45.13 1 1 ४
9.020.228 34.0.12;
37; 2; 9, 6; 69, 6; 77 6; 78,
प. 9, 65.23; 228; ->. 66, 5; 45; 4;
5; 86, 24; 96, 75; 9» 32; 35;
1039 उ; 105 2; 1, 24; +. 6, 5;
9.04 74; 67 44.428...
मतिं 1. 6,6; 34; 13; 50; 7; 105; 25; 136
८. 115; 11.41.111...
4, 1; 88, 7; 100) 2; भा. 6, 37; 32;
9, 716; 59, 6; [-8. 27 7; 32 3; 107
18; 2. 20; 12; 918; 14; 7195.
7 1.440.109 ४1 24074...
6, 39; 25 24; 5, 3; [7 65; 40 3;
44; 2; 63; ध; 64 10; 77, 3; 72 7;
100 |
मतीः 1. 714; 7; षा. 29 3; १...
0.3.
महीनां 1. 46, 5; ¢; 67, 3: 86, 2; 1€4 2;
ा. 5 3; 46, 4; 49, 3; 1४. 5 "5;
ए, 42; 9; पा. 4, 2; 44 2; 69, 24;
पा. 13, 7; द. 10, 6; 76. 4; 86, 79;
96, 5; 97, 37; 105 4; -- 26, 4 |
मतुयांः 13. 77, 5.
भते ¶111. 68, 2.
मत्ऽ कृतानि --. 28, 9.
म्या ४. 58; 5.
मत्ऽसंखा >. 86, 7.
मत्स॑त् ४1. 44" 16.
मत्सत् 1. 37, 2; ४. 46; 4.
मत्सत 1. 85; 1
मत्सति 111. 94, 6.
मत्य 1. 7686, 1.
मत्सरः 1. 2105; 7; 2; 1. 47, 14; 1.42;
५
ॐ
४
43
10, 5; 2, 5; 34, 4; 65; 24; 65 ८6 ; ॑ ध ५
66, ¢; 72; ¶; 86, 10; 07; 96; 8; 25 {4
97; 717; 107, 23
३०४ माहसरऽ्वात् -- बहदेस्य.
मत्सरऽवात् 12. 97; 32.
मत्सरस्य 1. 125; 3.
मत्सणः 1. 74; 4; 157; १. [1 00, 29,
मत्सरि प्र. 73, 4.
सत्सणसः 1.0 11119 120
6 11.14
मत्सरिन् ऽतमः 15. 63; 2; 07,
मीस 1, 9.1; 705; 2; 146, 7
6; 97, 4४
ऋ, 68, 8.
मयांसः ए. 18, 6.
मखं 1. 9, 3; 11. 47, 8; एवा. 7, 23; ॐ
71; 6; 39; 29; 14; 92 36; 99, 2.
न्ड 11. 41, 10; 111. 6०, 5; 6; ४. 32, 4;
9१. 54 2; ~. 7122; 5
मयायत् [-९, 1४; 2.
मथायति 1. 147, 3.
मायन् 54.01.000
मथितः (1. 48, 5.
मधितं {11. 9, 5; 111. 48; 6.
मयी; {. 720; 12.
मथीत् १.04.
मचीनां ए. 53, 8.
मयुः १.11
मया 1. 187, 5.
मथ्यमानः ४. 717, 6.
मयाः *111. 46, 24
मद >. 69; 3.
मदः 1. 4 2; 80, 2; 86, 4; 727, 9; 175 7;
2.5; 49, 49.40 2; 441; ४
79; 7; 241; 33.7; 44 7; भा. 229 2;
पा. 2 1; 46; 8; 92; 6; न; 6.
् ; 95 ॥ । 27, 5; 67, 19; 62 14; 5
16.4.22; 643 2; 72.68 2; 69.3.19;
5; 80, 2; 85 2; 86; 35; 42; 46; 9,
09;.5; -706+ 4; 00; 105 108 ८;
ङ 25; 10; 29, 3; 93 8.
76, 5; 99, &.
004 |
मद् ऽच्युत: 41.720, 4... 22.1.19 9
ऽच्युत 1. 5, 2; 85, 7; पा. 7 क; 7, 13;
06, 5‡ {ह . 53; 4; 108, गा; +. 3० 9.
मद् ऽच्युतां 1. 87, 3; १111. 33, 18; 349.
मद् ऽच्युता भा. 22, 16; 35, 19.
मद् ऽ्युतिं ४111. 74; 13.
मते {. 182, 7.
मदत 1. 57, ए.
मद्तां 1. 1247, 71.
मद॑ति ए. 29, 2; 38; 3. |
मदति +111. 15; 9.
मद॑य ४9. 24; 17; ए. 54; 19; भा. 7, 26.
मदथः 1. 108, ¢; भा. 26, 7.
नर्दन् ए. 18, 14.
मद॑न्ऽङ्व 111. 14; 79.
मर्दः 1. 185, 9; 1. 55 710; 54» 265 59;
3; 1१. 35; 10; 5०, 2; ४1. 44 20; 680
५9, %; ~ 08.21; 265 <.
मतं 111. 26, 9; ४. 32, 4.
मदना 1. 184, 2; 5; 1. 52, 7; +. 49.
मदति 1. 84; 20; 85, ए; 154; 4; 5; 73
184, 4; [1.6 8; ४. 52 7; 67; 4;
11. 49, 4; 97, 7; भावा. 29, 7; 46, 32;
क, 14, 10 ; 720, 7.
नंति 1. 2109, 3; 7629 ‡#; 1. 4 7; 7 7;
क ॥
34; 8 ; 1४. 1
2; 8; 82, 2.
मदती प्र. 56, 4: र. 4, 8. |
मदेती इतिं 11. 54 6. | क
मर्दीः ४11. 6, 4; 47, 3; +. 124; 8. |
मतु पा. 75, 18.
मदपती इतिं मद्ऽपत्ी #1. 69; 3.
मदं 1. 84, 4; 7. 42, 2; ४. 26, 6; 35, 77;
91. 43; 2; श. 7 2; 5 4; 45 22;
1.6, 2; 3; 9; 25; 4; 46; 6; 48, 2;
78, 4; 7104 106; ‰ 3104; 4; ` +. 96
1.14; ॥
5; भा. 57 7; >. 143;
स
य
मदाः -- मदने.
मदाः 1. 53; 6; 1४. ०12. 11.
ए. 23; 5; #*11. 14; 10; 16; 4; 49; 3;
13. 45 5; 86, 7; गत, 4. |
मदानां षर. ॐ, 2; णा. 9०, 6; र. 23, 7.
मदानां ४1. 69, 3; भवा. 95; 57; ९. 104; 5.
मदामः >. 7107; 2.
# |
मदामसि 1. 110, 2.
मदाय 1. 16, 8; 3० 9; 57, 15; 87, 7; 164
9; 109 4; ग 7; 136, 2; 135 7; 5)
1 18, 6; 19; 41; 34 5; ~. 32; 2; 16;
15; 35; 7; 4; 7; 1४. 27; 7; 20 5;
34 4; 35, 4; 6; 37, 4; 49 2; १. 45
3; 5; 6; णा. 4० 7; 2; 4429; शा.
24; 3; 32) 4; 90, 7; 97, 7; ४. 7, 26 ;
9 10; 33 15; 36, 7; 46; 7; 64; 12;
66, 6; 82, 5; 95; 3; {8.2 4; 8; 66;
856 19.4.11 101; 24.318.
45, 1; 3; 57 4; 69) 4; 20; 66, 29;
88, 7; 90, 5; 96, 9; 97» 5; 16; ग्ण
1६; 79; 701, 8; 7205; 7; 266) ५..11.0,
109, 77; 213; 20; @. 44 7; (72, 5.
मदांसः 1. 20, 5; प्र. 77 6; 35; 7; +. 36,
र; 12. 69, 7; 86, 2.
मदिन्ऽतम् 1. 97, 7; [~ 9 6; 5० 5;
74; 9.
अदिन्ऽत॑मः प. 64, 77; 12. 80, 3; 85;
86 103 06 13; 99; > 7108, 9; 19 9 १.९
36, 6
अदिन्ऽतमं ए. 7, 19; 135, 23; 1. 75; 8.
मदिन्ऽतंमस्य 1. 62, 2.
भदिन्ऽतमाः 1. 607, 18. _ 4
मदिन्ऽत॑मासः 12. 86, 1. गि
मदिन्तरं 11. 24 26
मदिर र. 96, 27; 97, 15; 707 4.
अदिर 1. 149; १५.67; ग्य; प. 7, बा; 20
6; पा. 38, 3. ध
अदिर्स्य 1. 166, 7; ऋ, 772, 6. |
` मदिरणिं प. 69, ; | व |
` मदिरासः ए. 53, 4; 2. 85; 7; 86, 2.
मदिरेष्रााा. 425.
मदिरिणं +. 94; 4.
मदिष्ठ 1. 6, 9.
मदिष्ठ; ¶1. 4४7, 2.
मदिष्ठया 1, 7, 1.
मदिष्ठाः [्. 10, 6.
मद् 1. 46, 12; 5ॐ 5 ; 10; 74; 56; 3; 5;
6; 80; 7; 85; 70; 179, 9; 147; 4; 773;
५; 11, 15; 1-98 1#, 7; त्रा. 43, 4; 1४.
26, 7; ए, 2, 10; 58; 3; ए. 2, 2; 45
; 3; 44; 14; 69, 5; #ा. 50; 7; 829 3;
इव, 96; 724 74 1229;
32; 1; 28; 33; 4; 48, 6 ; 66; 2; 9५> 16;
03, 8; ॐ. 27, 2; 44; 85 59 9; 96, 6.
मदेन ४1. 7, 27; 1. 7, 7; 98, 7.
मदेभि; 1४. 35; 9. ५ |
मदेम 1. 30, 23; ए. 4 8; 7 15; भा. 7,
741.
मेमं 1. 97, 27; [. 58, 04..11...16. 10;
42; 10; प्र. 56, 2; 49; 5; १. 19; 13;
49, 73; 52, 14; "१. 9, 8; 64 3; र.
07;
महेऽमदे' 1. 87, ¢; 0111. 15; 7; +. 120, 4.
मदऽरथुः ए. 703.
मदेरिति मदेः *111. 92, 16.
मदेरू डति इ. 106, 6.
मेष 1. 7157, 5; 134; 5; ४. 20 4; यः ए
पा, 46, 14; 12. 7, 1; 18, ए; 67 १
ॐ, 112; 4; 7120, 2
मद्य; प. 22, 8; 1. 38, 5; 86, 35
मदय 11. 14; 7; 01. 68, 20; णा. 92 7
2. 6.2; 25; 4; 65; 75; 74; 14
मद्यानि ए. 68, 2.
मद्याय ए. 2, 25. ¦
मद्यासु 1. 155; 4.
मद्रिक् 1. 77 7; 3; ४1.55
मद्यक् 111. 47; 7; भ. 38). 2...
म्यच ४11. 24; 3. ८ ५1
मद्यद्िक् प. 22 गा.
महने पा. 92, 19
(ङ
¢ ` ।
|| | ४९ 4 मद्वा -- मधुला.
| ॥.. महां 13. 86, 35. सधुऽपेयं 1. 34; 77; द, 42, 3. ॑
॥. `. बधु 1 14.14 16 14.19.04; 24 2009 मधुऽपेयाय 1. 14, 4. | |
| ५.
0 64; 72; 12, 77; 21; 7716, 12; 714, 22;
0 | 166, 2; 197, 10-73; 1. 36; 4; 6; 5,
: 00 1171-0. 4410
| | | | ¦ मधुं ऽग्सरसः 1४. {
११.19.144; 6. 1. इसत 33 3
॥॥| ` वि 0 मधुऽमत् 1. 28, 8; 78, 5; 90, पर; 779, 9;
॥..... 8. :02.1.. 04.4.11 29;
| । 4. | {. 15 6; रा. ‰ 2; -3> 4; १.5, 9;
॥॥ 8 7; 3: 4; 209; 4; 77 5; 24, 13; 26, ४ =
ड ८ । 5479 3 3 58, 10; 6 0; 60, 2 ॥ 6881
५ | | ४ 20; 233; 14; 38, 3; 48, 1; 6.5; 8 3 69, 8 «1; 06: 16: श 62
| _ ` 04.12.71 7 14.24 . त 1.
| - | 53 16, 2; 395; 67 26; 60, 77; 52; ॥ 1.
ह 9 4 7 8 4 28; 54; 05 || कनः ~ 29 0:
4; 80.19; 26; 48; 14; 2.22, मधुमती 1. 22, 3; 1. 57, 5.
| ¦ | ५ । 32 &; 40) 6; 49, 20; 68, 8; ;2, 9; मधुंऽमतीः 1४. 57, 3; 13. 9, ५1...
मधु ऽपो 1. 7180, 2. |
मधरु ऽप्रतीकः +. 7115, 4
ह|| 00044: 2-010-11 मधुमत्ऽतमः १५.07 .12.-69,16 64, 22
च 120, 3; 138, 2; 154 1; 7647, ठ; 709 २. 67; 26; 100, 6; 105, 3 ; 106, 6; 1०8,
॥ 0; मधुऽश्वद्ः [. 164, 22. ठ; ग. | ॑ |
| ॥ ¢ 4: मधुऽसणेसः 1. 62, 6. मधुंमत्ऽतमं 1. 47, 3; ए. गय, 5; एला. 4, 2;
| |. भधुऽजिरः 1. 44, 6. | 1029 3; भवा. 97; वद. 3० 5; 6; 5,
6 | ध; मधुं ऽनिद्ं 1. 13, 3; 6० 3. 2; 62; 21; 63, 19; 80 4; ॐ. 14, 715
| | मधरंऽजिद्धाः 17. 73, 4; 85 10. | मभुमत्ऽ तमस्य ४1. 68, 77.
| 08 मधुूषे इतिं मधुऽदुधे ए. 70, ए; 5. नधुमत्ऽतमाः ए. 3, 5; [क. 12, व; ग्ज, 4.
0 गुट इति मभु
न. मधुऽदोषं ४. 101, 7. मधुमत्ऽतमानि 2. 712, }.
॥ ~र. ` अधुषा 1. 61, 5. ह मधुमत्ऽभिः 1४, 3 14.
४ | मधु ऽधारं 11. 24, 4. सधुऽनतया 1. 157, 4.
( ४ ऽमतः [ र 9 ।
+ ८ ¦ ध मधुनः [. 1; 8 9 ४. 35; 4; 44; 4; 4.5; 8, ४: क [४ 45; | 6. 5 ४१७
(1 ए. ० 3; प्रा. 5 19; 24 20; 1० १ न म © ५ % 7; 96, 5; 1
| ॥. | 1 + | 2; [द 83, 4; ् 174; > 9 +^ 2.13 2; ° 09५)
# 4 । ५ ध मधुं | + फ | । ;
मधुना ०.23: 163. -34 3; 199, 4; 154; 4; ५ । ध 3 #॥ 2; 7280, 4;
| ॥ १39.5;. 44, 2;
| न" 49:55. 83 1४9.:26 छ
ध | 48578 0 2:96 45; उ 5 ष पा" 4 4; णा. 4, ए; 69, 3;
८ र 54 64.08; 4.0 5; 720, 9. | प. 5 0; 5, 4; 80, 2; ड्. 8 2.
अधि 1 | ५5 ०; 97, 4; द. 44; 3०3; 7; 8;
हि मधुऽ्पं +. 32, 8 छ +
¢ | मधरंऽपाणिं 2. 47,
हि. | मधरुऽमान् 1. 9०, 89; आ. 4, 14; वण, 5, 5;
[षि 1. 58 "प्न. 4 णा 7, 6
॥ 4 ध ऽपात्तमा ४] 4 |>. + ¢ 4; ग
॥। नी ष ध | 17 | 69.68.358, 8694 7
५ 1 (ध ॥ ९ मधु पच पः 7 ५ रः (1 ॥ 1; 85) 6 84, 4: 2 96 13 ‡ 947; 48 द 106 1
मधुऽपेभिः 1. 34; 76; [षर
ऽपेय॑ः ए. 44, 21.
र
|| 1. # मधुञ्पृष्टं >. 89, 4. ^ ५ ५ (1 [| ध 10, 72; इ. 98, 3. 0 110
मधुडवचाः -- मध्वा.
मधुं ऽवचाः ४.6, 5; ए. 43; 2; णा. ;, 4
मधुऽवरौः ४. 77, 3.
मधरु ऽवरीं 1. 80, 2.
मधुं ऽव ४111. 26, 6.
मधुऽवाहनः 1. 157, 3.
मधुऽवाहनं >, 42, 2.
मधुऽवाहने 1. 34, 2.
मधुऽवृधं >+. 75; 8.
मभते इति मधुंऽ्रते 1. 7०, ‰.
मधुऽश्तः $. 49, 3; 12. 62, 7.
मधुऽयते ४. 57, 2; 12. 10 6; 23, 4; 36
2; ‰ 3; 65 85 66, 72; 647, 93 709
3; 700; 72.
सधरुऽशयुतां ए. 70, 5.
मधुऽसुत् 1१.33; ^. 04
सधुमुत्ऽ तमः 111. 58, 9
मश्रुंऽहस्यः ४. 5, 2.
मधूनां 1. 777, 6; 284, 4; 7. ए 0; 43; 3;
1401 1
मधूनि 1. 177; 3; 1. 57 5; 58, 4; ए. 43,
3; "1. 24; 2;.67 4; = 29, 6; 59 23;
54; ©
मधो इतिं 1. 187, 2.
मधो इतिं 1. 187, ‡. द
मधोः 1. 14, 8; 71. 34 5; 71. 4० 6; प्र.
43 6; प्रावा. 6, 43; 1९8, 6; 1. 5 3;
0.228.147; 2224194 24
14; -९. 49, 10,
मधो #11. 32, 2; 59 6; ४111. 271, 5; र
19
मध्यतः 111. 21, 5; ४. 29; >. 42, 77.
मध्यंदिनं र. 157, 5.
मध्येदिनात् 1४. 28, 3. |
मध्यंदिने ए. 69, 3; 76, 3; प्या. 1, 29; 7;
13; 20, 719; 21.
मध्यं ना, 5० ग; पा. 49 2; ए. 88, 5;
पा. 423: 5553; 211 5.
अध्यमः 1. 164; 7; णा. 47, 2,
~ मध्यमं 1. 24, 15; 25; 27; प्रा, 32 76; एना.
61, 715 ; 1९. 108, 9
मध्यम ऽवाट् 11. 29, 4.
मध्यमशी; ऽइव >. 97, 12.
मध्यमस्यां 1. 108, 9; 20,
ध्यमा षन. 62. 87, 5.
मध्यमाः ~. 75; 1.
मध्यमाभिः ४1. 62, 77.
मध्यमास; 1४. 25; 8; ४. 27, 5.
मध्यमासु [>, 70, 4.
मध्यमे ४, 60, 6.
मध्यमेभिः [11. 32, 73.
मध्यमेषु 1. 27, 5.
मध्यऽ्युवः 1. 173, 10.
मध्या 1. 89, 9; 715; 4; 1. 38, 4; -<. 621,6.
मध्यात् ४11. 33; 23; 49; 7. |
मध्यं 1. 32, 10; 33; 17; 69, 2; 1050 10; एय;
108, 12; 158, 3; 764, 38 2829, 2; 1.
14, 2; [१. 58, 5; प्र. 6; 443; 47
3 1114. 1. + 41403.
13. 89, 4; णा. 2; 29; 34 28; ‰79,
10 00-41-40 7.2
१4; 1229 8:9;.48;-3; 7139;.2;
मध्वः 1. 14 4; 7; 34 0; 4, 9; 84 1०;
852 6; 70, 7; 155; 4; 8; 43; 154
5; 769, 4; 180; 7; 4; 87, 6; 282, 2;
1.16, 4; 292; 1, 32, 26; 36, 47; 49,
च 4473 7; ४, 20, 4; 2073 5; 34 65; 45)
3; 4; 47 1; 503; १.35 7; 34० 2; 45;
353 4; 54 8; 629 7; 75 8; ४1. 59 ए;
47 2; 697; ४11. 58, 8; 57 7; 739 2;
742 3; 975; 6; 9292; ग्व, 4; श्व. व,
25 ; 5 14; 24> 16; 49; 4; 59, 4; 539 3४.
59; 3; 69 7; 829 ए; 85 7; 87; 7; [+
29; 1995849; 94.769 ठ ग
77; 2; 86, 4०; 89 3; 6; 97, 44; 7०9,
20; ~ ॐ 9; 29, 7; 3० 8 82, 7; 96. ४ ।
12; 779, 63 116, 7; 4; 7253 त
मथ्वां 1 47; 4; 142 3; 188, 2; 1 54) 27; (
58, 6. 69 16:1१, 38.15; 495; ४...
; 12.33. 4.9 1 43; 1; ४. 4 8; 799; ८. ४
ध | 49107110 224
५ १10 19.02;
| मन॑ः 1. 25; 3; 32०8; 48, 4; 54 3; 9; 55
। | 7; 77; 9; ६4, 3; 94 72; 702; 5; 779;
04.124 2; 248... 150, 2; 74; १6
9 102, 3: 180, 6; र, 26; 2; 1. 34, 2;
(1 | ४, 30 4; 35 4; 36, 3; 39 3; 67 7;
8 ग; १1.9८; 8; 26, 7; ॐढ 3; 45
6: ध11. 22. 65 24 ५; 44; 1; 20, 4:
1 $ ५ 1. 0.12: 1 1420 1215; 10
1 20; 24० 6; ॐ, 14; 339 19; 45, 32 ; 36;
01 | 67५ 2; 62 5; 92 28; 99, 4; 10०0 5;
1 | 1.111.112... 11 2.
(1 वि ४1; 24 5026; 49; 9.8;
ध 09 .4 ^ 19; 014; 09.14; 111. 2; 779
| 1; 45 6; 7529 5; 764 ए; 2; 797;
3; 4 ।
मन॑; ऽच्छ॑गा ई. 106, 8.
मनःऽचित् 1. 77, 8.
मर्नःऽजवसा 1. 117, 15; पा. 22, 16.
. मन॑ःऽजवाः 1. 164, 9; 1. 26, 5; ए. 70, 3;
४1. 63, 7; ण्न. 68, 3; भा. 109, 8.
त मर्न॑ःऽजपेभिः; ४1. 62, 3.
भनःऽजवेषुं द. 71, ;.
मन्ःऽशुव॑ः 1. 85, 4; 787; 2; 286, &.
मनः ऽुवै 1. 139, 1; ~. 81, 9. |
मनःऽ्जुवां 1. 25; 3; ४. 22, 6.
मनःऽधृतं; 111. 38, 2. |
मन्ःऽयुजञ; 1. 14; 6; 57, 10; ४, 48, 4; ए.
मतःध्युने पा. 526; द. 1०0, 4;
वनुत (न
मरनःऽवाताः 111. 48, 2. | ।
गनि 11. 0.1...
कतो 091 1
1 अना ह 64.
[त १ | 4 । ६
। मन्ना | =. | 106, 8. | 4 ४ | ८ ५
मन्वते २, 12, 6.
सने 1.9.430... 12 16; 228 4
7140, 5; 8; 140, 4; 168; 8; 366, 73
289; 7; 7. 19, 4; 09 7 त. 54
97114 404 21.2.12
१.47. 11.49 11; "11.41.
710, 2; 15; 5; 22; 6; 24 7; 27; 4; 14;
90.1.00. 10114
46, 9; 49; 9; 73 7; 76 3
मनवे +, 52, २.
मन॑सः 1. 46, उ; 77, 2; 7178, 7; 757 8;
781; 3; 783; 7; 1४. 36, 2; #, 33; 17;
1.714.207 0.22 24.2.39;
ए; 37, 12; 39 12; 77 8; 87, 15; 96,
713; 12, 2; 246, 4; 120; 4
भसः <. 164; 7.
[ "य कि
मन॒सस्यं ४. 44; 10.
मन॑सा 1. 20, 2; ए7; 123; 32) 17; 54 >; 6,
2; 64; 7; 76, 7; 77 2; 97, 23; 94,
102, 3; 3०9, ग; 272, 8; 739, 2.; 45
91:01... 7.90
19; 164, 5; 8; 9; 56; 5; 66, 3;
202, 2; 1043 75 282, 5; . 3, 9:.3;
105 2229; .32. 24424; 1
13; 4 5; 8) 4; 745; 93; 26, 7;
17 504. 007 -11
19 2.9.70, 14 24.0.2;.4 223;
33 9; 58, 6; ४. 42 4; 44 7; णा. 28,
5; 42 3; 4; 46, 103 49, 5; भा. 4,
64 4; 67; 7; 7; 69 2; 9० 5; 98,
2; 100, 2; 104; 8; "व. 2 30; 26
25; 37; 22; 48, #; 84; 5 ; 102, 22; 1
089 55 74 8; 77 2; 4; 2.25; 53;
चकः ॥ 8
7
# ॥
©
745 12; 30, 6; 3; 35.24 क, 2;
7; 5, 7; 77; 64, 2; 65; 5; 67, 8; †०
4; 772; 14; 2; 807, 4; 82, ८; 85, 9;
88, 16; 95, 7; वव 4; 376, 2; 197, 6
130, 6 ; 135; 33 गव, 2; 160, 3;
777
मनस्मयं -- मनुषाऽड्व. | ४१३
मनस्मयं 3. 85, 12.
मनस्यवे 2. 177; 3.
मनस्यसि 08/91
मनस्ये 2. 27, 5.
नन॑खान् 11. 72, 7.
मना षव, 2.02. |
मनासि ए. 1, 4; ए. 44, 8; ए. 56, 8; णा,
9.7; 10.16; 01,
मनानक् र. 62, 6.
मनानाः पा. 67, 10. [
मनां 1. 173, 2. |
मनामहे 1. 24, 2.
भनामह् „24, 1; 26, 8 - 159; 5; ४, 79, 2 ;
9.481.504 003: 2. 04
24.02.26; "2.4; 1,2.53;
67, 77; 68; 73; [. 47, 2; २. 64 7.
मनायतः [. 26, 2.
मनायति अ.1234.
मनायुः 1४. 25 2; 5.
मनि 17. 35; 5; 1. 33, ०.
मनायोः 1. 92, 9; 1४. 24;
मनावसू इतिं ४. 74; 7.
मनिष्ये ५. 9, 6.
मनीषयां 104. 1.2 “11. 724;
मनीषा 1. 54; 8; 67 2; 70 7; 76; ठ; 9८
१,741.7. 7201 10 1.180.711
20 7; [1 8.5; 5ॐ5; 57 4; ४. 7
5; 47 7; ४1. 49, 4; 67, 2; भा. 24
2; 34 7; 7० 7; 996; ॐ. 46; 29)
3;- 114; 6; 724; 9; 129; 4.
नीपाः. , 62; 72; 1४. 11, 3; 47859; ए
2,100.21 1.08, ;
3;.96, 7; >. 26; 7; 29; 4
मनीषाणां 3. 45 5. 4
मनीषां [. 110, 6; 7712, 24; 11. 38, 7; 5,
`. 582 1४.43; 67 4.2; 9 89;
16 ; पा. {13:01 22, 4; 857: भा
69 6. 96 व य9 5 91341
94; 1.45: 2115-4
6 5; 28
४
86, 17; 95
मनुषः 2. 63: 0.
` मनुषाः, 101.
मनुषाऽइव 1. 130, 9
मनीषिणः 11. 10, उ; र. 87, 4; 717, व.
मनीषिणं; 1. 164, 45; [1. ठा, 5; 71. 10, 2;
४. 50; 2; णवा. 5 6; 45 19; 44 29;
{-९. 68, 6 ; 72, 2; 6; 73 7; 79; 4; 85
3; 995; 7 4; ९. 640 ग.
मनीषिणः 1. 13; 5; 282; ग.
मनीषिशं 1. 78, 3.
मनीषिे ९117. 24, 4.
म॒नीषिऽभिः 1. 44; 7; 52, 3 ; --&. 54, 24 ; 46,
2..80..20.. 205. 101 7;
मनीषी 91. 22, 6; [द 97 7; 96, 8; 97 |
66; ~ 82, 10
मनुः 1. 36; 19; 80, 16; 774 2; 139;
1. 35, 13; 1४१. 26; 7; ४. 45 6; भा.
63; 7; क. 57, 5; 53 6; 699 8; ग2; 65.
0.00 3; 100, 5.
मतुःऽहितः 1. 15; 4; 74; 7२; ४1, 16, 9; भा.
79, 24; 34: 8; >. 26, 5.
मनुःऽदहितं 1. 106, 5; [1.2 15; ए. 70 2;
+ 11, 9, 27.
मनुंऽजातं 1. 45 7.
मनुतां ४1. 47; 29.
मनुना ए. 2, 3.
मनुंऽम्रीतासः >. 63; 7.
मनुं 1. 212, 18; प. का, 71; [2.92 5.
मनुऽवत् 1. 10; 6.
मनुषः 1. 26, 4; 36, 7; 76, 5; 128; 7; 1647;
1143. 19011...
90.14.04 3;:0.5: 64.
26; 2; 60५6 ; भ्र, 1,9; 27; 6, 7; 57
1; भ. 5 7; 29;
14, 2; 75; 4; गा. 8, ०; 4; 4; 4.4;
| ।
5.9; ४1.. 25, 713; 498; 0 9447.
3; 19, 72, 4; ९. 11,.54 21, 4: 24;
49; 7; 809 6 ; 704; 4; 170, 7; ¢
मनुषस्य [. 37; 77.
5 न्ष
7; प्. 4 ०५६
+
________-_~ ~~~
मनुषाय 1. 7710; 27; २. 65 4.
मनुषे 1. 52, 8; 1. 2 6; १. 29, 3; 011
99, 3; 2०9 4; 1. 74 5; = 99 4;
104, 8.
।
मनुष्यः 1. 59; 4; 11. 18, 1; र. 98, 8.
सनुष्यऽजाः क. 85; 49.
मनुय 1, 92, 2; 724; 2; [1.29 9.
सतुष्या; 1. 164, 4८; प्र. 2, 23; पा. 89. 5;
इ. 35, 8; 85, 37; 1०9 6; 15० 5; 6;
150, 4.
मनुष्यान् ए. 47, 16.
मनुष्यासः २. 70, 3.
मतुर्यासु 1. 148, 1,
मनुेभिः 111. 4, 8; 29, 2.
मुदि 171. 2, 20.
मनुष्वत् 1 37, 10; 440 ए; 40, 713; 105; 73;
14; 1. ५2; [11.140 2; 325; 1१. 34;
इ... 7 04, १.
3; 73; "वा. 2, 7; 45; 13; 44; 27;
01 1400109.
मनूनां 1. 96, 2.
07 1
मनोः 1. 68, 4; 111. 6० 3; णा. 35, 25;
(1. 32; 40, 4; 98.6; ~. 36; 20.
| मनोतयं 1. 46; ५; *1. 8, 712.
मनोता प. 94 पव, 1; 9351.
मनौ ए. 57 7; 50, 1.
मनो ए. 79 2; [द्. 65, 8; 65, 26
संतवः 1 152, 1; 1. 13; 6; श. 62; 8.
नवि 1 2
संतयै षर. 48. ` ५
मतुः 2. 22, 4
षमः 1. 42, 5; पा. 56, 4; ड. 254 6
मतः 1. 147; 4; 152; 2; द 50) 4; 6: 10, 2
म॑ ऽकुतां 12. 114: 2. |
मते {. 31, 13; 40 5;
४१४ | . मनुषाय - भंदसानं.
मंतये >. 7191, 3. ऋ प
मंत ऽशुतयं 2. 234 7.
मवा; ए, 50, 14; र. 14; 4; ०5; 7:
मंतान् 1. 67, 2.
मंवेभिः 1. 67, 3.
भतः 111. 53, 8; ए. 88, 14.
मयः 2. 86, 5.
मंय॑त 111. 29, 5. [र |
मंय॑ति 111. 29, 6.
मंयंति ४1. 15, ग.
भंयां 1. 28, 4.
मया 111. 29, 1. ०
मथनं 111. 32, 2.
मंयिनां १९.०४1
मंद ४1. 18, 9.
म॑द॑तु ए. 10, 3; णा. 22, 7,
मंदत्ऽवीराय ४111. 69, 7.
मंदध्ये ११.70;
मंदनाः 1. 107, 26.
मदद 1. 134; 2; 1. 77, 77; भप्त. 7 5; 4
43 45: 14
मद॑तु 1. 139 6 ; एना. 45 24; 64; 1.
मंद॑मानः 13. 65 5; ‡. 73; 5; 712,
मंदमानाः ए. 67, 5
मंद॑मानाय 2. 50, 7,
मद्य 1. ॐ, 2०. ` ध
महयत्ऽसंखं 1. 451
मद्यध्ये 1४. 29, 5
मंदय॑न् 12. 67, 16.
द्युः 09 0
मंद्सानः 1. 10 17; 100 14; 137, 4; 11. 77
3:15. 0; 39-53-4१. 35 26.35;
29 7; 32 10; ४.60, 8; णा. 1 26
7 5;
मंदसाना -- मन्मनि
५
मदसाना 1१. 5०, 70; पा. 87, 2.
मद्सानाः [. 77, 74; 1४. 34 10; 35
, 9090. 1.1 1.00
मंद॑से [. 5, 72; पा. 12, 16; 74; 54, 2.
मंदसे ४111. 95; 19; उ, 5०, 2.
मदख 1. 26, 5; [. 3), ए; णा, 6.39; 6
4; >+. 140, 3 |
मद्स् [. 36, 3; [11. 47, 6; शा. 33, 8
9१[, 82, 3.
मंदानः 1. 80, 6; 82, 5; 7. 192; 7. 5०
८ 1.71
152 4; 55; 26, 25; 3295; 357; 4
41.1.40;
मंदानं ४11. 88, 7; 2. 67, 2.
मदाना ४11. 94; 77.
भंदामहे 1. 122, 13.
मदिनः 1. 134; 2; [. प 7; 26; ४. 4
45 1. 27, 4; ~. 28, 3; 45; 4
भंदिनं 1. 101, 8; 12; इ. 96, 6.
मंदिनां 1. 54 4; उ. 94 4.
मंदिनें 1. 9, 2; 707; 7.
मंदिऽभिः 1. 93.
मदि 1. 9; 2.
मंदिष्ट 1. 57; 7.
मदिष्ठः ४11. 29.
मंदी प्रा. 2 33; 13. 56 ए; 17, 9.
नट इतिं 1.0 010
मंदे ४.4; 7.
संदू 1. 144; 4; १. 747.
भदरऽसजनी >. 09, 2.
सदः 1. 26, 7; 36, 5; ग्य 2; [1 28, 7;
(1.171.211. 029;
9; 5.9.173 गा. ; १. 2.4;
0.2.01. 3; ~ 00.3.94
6:13. .643 13 100, 8: 20.44.122;
61.204 047
संदरऽजिद्दः ४1. 77, 4. 1 4
मन्मनां 1. ठय,
मंद्ऽनिदं 1. 100) 7; 1. 7, 5; 5०3 प ॑ 0
मद्रऽजिद्धा [. 142, 5.
मंद्ऽत॑मः ४. 22, 1; प्र. 11, 2; पा. 7
द्ऽतम ४1. 4; 7.
मद्रऽतमाः >. 97; 26.
मंदऽतर 111. 7, 9.
मद्रा. 25; 1. 7; 266; ए. य, 2;
ए. 10, 71; 48, 14; श. 10, 5; भ.
49; 37; 44; 6 ; 12. 65 29; +. 46, 8.
मंदूयां 1.091.160 11170
0.4; 16).
मंदरऽयुवंः 1, 86, 17
मद्स्य 11. 24; 67; +. 39; 2; 1. 68, 6
मंदा [. 700, 16; शाव. 100, 706; गगः क.
107, 2.
म॑दराः 1. 166, 77; णा. 18, 3; 2. 95; 4
मद्राः 1. 122; प.
मंदराभिः शा. 16, 2.
मदं ५11. 95; 5.
मंदरेभिः प्रा. 45; 37.
मंदरः 111. 45, 7.
मधाता >. 2, 2
मंधातारं 1. 112, 13.
मंधाहुः पा. 39, 8.
मंधातृऽवत् ४11. 4०, 12.
मन्नं, 70, 4; 220; 3: 129; 64; 733, 8;
18...2; 11.400; 14919;
9 1114184 9; 0.0
9-162-72. 4 3 9.0
38, 4; 492 3 ; 52 14; 56, 4 ; 629 4; 68,
9; वा. 0 2; 15 ठ; 57, 2; 87 3;
9१1, 2, 9; 7. 94 1; >. 4 1; 3655;
54; 6; 66, 2; 96; 7; 782; 1.
ॐ ४
मन्मन् #1. 63; 7; -९. 138, 1
मन्मनः 1. 149; 77; "1, 94.71; +. 35; 9.
मन्मना 1. 742, 1; 157, 8; 11. 74, 5; ४
6, 77; 44 ५.12; 16.6.42. 9 -
४१ " मस्मऽभिः - ममत्तन. [र |
मन्नञ्भिः 1. 26, 2; 124; 24; [. 7, 8; ४,
3 15; श्वा. 7, 15; 9; 4752; 44 26
60, 3; 74 7; >. 57; 5; 78, 7; 87; 24.
मन्नऽ्शः ४111. 15 12.
मन्मसाधनः 1. 96, 6 ; 7573 7.
मन्महे 1. 62, 2; प्र. 52, 3; ‰. 92, 3.
मन्मानि 1. 165, 13; शा. 67, 2; 6; श्वा.
34.85 -2..710 2.
मन्यत 1१४. 70, 1; 4.
मन्यति ४1. 52, 2,
मन्यते "1.42; 2.45, 4,902.2;
146, 4
मन्यथाः 1. 126, 7.
मन्य॑मानः 17. 24; 12; प्र. 20, 5; 29, 2; फ.
4 20; 32; 3; ४1. 255; +. 47, 2;
+. 34; 13.
मन्यमानं 11. 77, 2; ण्य. 9, 712; इ. 8, 9.
म््यमानस्य 111. 32, 4; "वा. 22, 5,
मन्य॑माना (प्र. 18, 5.
मन्यमाना! 1. 190, 5; 1. 53; 23; 62, 7;
1 1109.
मन्य॑मानान् 1. 178; 5; ४11. 98,
मन्यमानः 1. 33, 9.
मन्यवः 1४. 37, 6.
मन्यवे 1. 25; 2; 37, 7; 80, 7; 74; ण. 16,
` 43; पा. 6, 4; 8५ 3; 84, 4; 99,
= 24.9.:.1195.6; 1402.
मन्य॑से 1. 120; 54... यव, 4; 0,14.59, 2;
0. 2.4 954; 274
मनयते 1. 200, = `
मन्याते 2. 47; 17.
मन्युः 1. 24; 74; भा. 86, 6; भा. 6, 13;
48, 84423. 34; 14; 83; 2"; 84;
2; -50,.0:-.
मन्युनां 1. 101, 2; ¦
464. ~ १ ॥
समतौ ए. २०, २.
36; 4; 60, एय; 67, 7; णा. 4 5; 19
15; 78 6; क. 978; 2, 35 4; 85;
3 128, 6; 1452; 3.
मन्युऽमत् + 11. 704 3.
मन्युमत्ऽ तमः 1४. 3०, ¢.
मन्युऽमीः 1. 100, 6; 1. 24; 4.
मन्युऽम्यः ए. 18, 26. ॑
मन्युऽसाविनै ए. 32, 2.
मन्य ए. 97; 0. 18, 4; णा. 247; णा.
48, 6 ; 96, 4“
भन्ये {. 104, 7; 72) 7; 159 2; ए. 9 3
४.6, 7; भा. 39 2; 52 1; इ. 7 3; 13;
10; 99, 5; 10» 5; 180, 6; 729, 3
मन्येयां 11149411. 20.4
मन्यो इतिं क. 83, 1-6 ; 84, 7-6.
मन्योः 1४.17, 2; ४. 10, 9; ॐ. 75; 10; 8,
13; 152; 5. [र
मन्वत 1४. 1, 16; प्न, 29,.10.
मन्वते +. 2 5
मन्वानः ४. 52 15.
मन्वानाः +. 138, 7.
मम [. 70, 9; 25; 8; 3; 5० तव; 77० 2;
` 142, 4; 748, 2; 182, 4; 7. 18, 7; 41
4; 16; 1. 243; 423; 62, 8; 1४.
10 0; 24.19 20.2.27 9. 01
1. 5० 5; 52 4; 555; 7519; प्या.
1;
21, $; भा. 7, 15; 18; 208; क
30; 0, 12; 18; 8, 6; 9, 8;.714.7;` 20,
49; 3ॐ 16; 38, 6; 45 ¢; 44, 5; 22;
00; 6; 78, 9; 97, 6; ङ. 69, 8; श 2.5;
4; 275; 28; ग; 35 8; 49 3; 4, 5;
48, 3; 55 4; 5; 66, गव; 124, 5; 125
7; 128; 7; 2; 4; 1459 3; 1450, 3; 1
गमन्ः 41
मम॑त् ४. 28, 88; 9. क
मम॑काय 1. 34 6.. `
1
|
|
।
।
|
|
।
|
ममत्तु 1. 122; 32; 2. 116, 3
ममद्ु 1. 721, 6; [1 5, 7; भा. 22, 2;
४1. 95; 7; 12. 96, 21; इ. 509, 2,
ममत्सि 1४. 27, 9.
ममदः ४1. 24; 7
ममदः 1४. 20, 4.
ममद॑न् 10. 42, 6.
जमद्धि >. 96, 75.
ममद्धि ए. 95, 8,
ममंद 11. 33, 6.
जत भैक भि
ममदत् ४111. 67, 9.
ममंदुषीं ४. 61, 9.
ममधि २. 27; 20.
ममन्यात् ९. 37; 2.
मम ऽसेषुं 2. 42, 4.
ममः 11. 77; 7.
ममहत ४11. 52, 2.
ममतां 1. 94 16 ; 95 77; 96, 9; 98; 3;
700, 19 ; 101; ग्व; 1629 713 103; 8; 105
१0; 120; 7. 101, 9 16812 1209;
09 -1 6 : 172 2८ 1840.1
17; 125, 6.
ममरस 11. 52, 6; +. 142 3.
ममहानं {. 210; 16.
ममहे पा. 7, 32; 12, 6.
| ममहे 1,.7606. 4 1,20.711.
62, 70.
| भमाति इति {77, 32, 7.
ममाद ४. 4, 2.
५ माद् 11, 22, 7; #ा. 26, 1; 2.
ममार ९. 55 5.
मभिरे 111. 38, 3.
ममिरे 1. 159, 4; 163; 8; 1. 38, 12; प्र,
` 9; एता. ५7; उ. 88, 3; ड. 787
` भभु; {. 1105
८ भमृजीत ४11. 95; 3
ममृनुः >. 65, 7; 06, 9
ममृजे {-. 14; 5.
ममृजे पा. 26, 3 ; 1, 29 5; 104, 73.
ममृख्युः ४. 18, 8.
मनृऽवांसं र. 39, 9.
ममृऽवान् 1. 116, 3.
ममे 1. 760, 4; प्र. 85 5; णा. 25; 18;
(ङ. 68, 3. |
ममे 1. 57, 5; 58, 7; एता. 4, 16; 76, 12.
मम्नाते इतिं ४1. 37, 7.
मुः >. 100; 8.
मसुषीः 1. 740, 8.
मय॑ः 1, 237, 7; 89, 3; 95 7; 774 2; ग्6,
4.780.411... 46.4.10
32; 8; 8, 3; *1. 78, 9; 20, 24; 39,
4; 60 6; +, 30; 8; 4०, "6; 64
9.5; 1.
मय॑ः ऽइव 1. 175 6; 7176; 6.
मयःऽभु 1. 89, 4; 1. 27; 5; 35; "3; ४. 42,
2; +, 786, 7.
मयःऽभुः 1. 1847, 3; ४. 715 43 9१.427; $,
529 6.
मयः ऽभरुनां 111. 16, 6.
मयःऽधुव॑ः 1. 75; 9; 89, 4; 9, 9; 95: 4;
166, 3; ४. 44; 71; 58, 2; #[. 40, 65;
10; 53 >. 9, ४,
मयःऽभुवः ४11. 20; 24.
मयःऽभुवें 1. 158, ए; 2; (द. 65 28; 78, 4;
` +. 39; २9.
मयः ऽभुवां 1. 92, 18 ; प. 42 28; 43; 8; 435;
9; ४111. 8, 9; 29; 86, 7; >. 39, 5
मयःऽभूः 1 210, 19; ¬ 64; . 49; . 5. -209;
169, 7.
मयःऽभून् 1. 84, 16.
भ्यते २. 49, 70,
0 ति
भयां पा. 100, 2; उ. 85; 36; 125;
मिं 1, 23; 22; णा, 5०, 10; द. 66, 27;
>. 48, 3; 128, 3
। मयूखाः -. 130, 2. १
नयुतैः.ष1. 99. 5..
5 0
मयूररोमऽभिः 1. 4८, ए.
मयुरऽशेष्या ए. 7, 2.
मयुः 1. 797, 14. ॥ ह
मरते 3. 86, 77,
मरति 1. 107, 712
[ षि षि |
मराति 1. 797, 10; पठ,
। मरम 1. 7197, 70-72
मरामहे 1. 97
भणी 2. 60, 4.
मणय >. 106, 6; 7,
मरीचीः र. 58, 6.
मरीचीनां ई. 140, 1.
मरतः 1, 15; 2; 30, 2; 38, 3; 77; 86; 71
| 9.1 10.74 ".92.4 1 ..49-11
0८.84 11, 0-7..0-184 11 .-.
71.00.241 21-01-00 40.401
६ क, 64; 29.
मर्तः 1, 24; 70; 12; 37, 7; 37; 73; 40)
` प; 44 4; 52 9; प; 64 6; 2; 8,
1; 10; 89, 7; 96, 4; 77) 2; ग्य, 4
22, 7; 134; 4; 161, 24; 162; 1; 16&.7
५100; 34.11 1012-4 103...
7169; 3; 5; 772 2; 777; 3; 775; गव
186; 8; 1. 234; 8; 717; 17, 14 4
26, 4; 5; 32 3; 4; 35 9; 4; 3; 54
73; 204 ष. 4; १. 3 3; 26, 9; 29;
4 य4..2; 0.3.39; 6; 31, 10 ५4, 104; 4
१०; 45 4; 46, 3 ; 52०6 ; 55; 12 ; 54 3;
` 8. 55 5, +; 58.83; 5; 59,
21.649 9 6.4 4 0.1; 27, 9.5
| 5943664 24:10; "11.95;
0 16; ॐ4 24; 35 9; 356, 7; 39, 5;
3; 56, 16; 10; 19; 26; 5 2 3; 9;
6; 58.3.45; 6595585; शप. 33:31;
19: 4; 20. 44.218; 20 24) 10; 14; 20)
1; . 40. 4; 44 3504-5; 4; .:9:; प
५2 9
ॐ ॐ
# 21 %ॐ ९ चछ 9 3 ठ
भत 9
90, 8; 1, .41,-3: 64
10; 108, .14 -
महतः -. 59; 7; 5;
8-70; 49 2; 64> 9;
` ग्3-ण्छ; 85, 4-6; 2; 86, 6; 87, 2;
09... 5; | 6; 739 8; 2653 6--8
10-15 ; 166, 7; 6; 8; 9; 712-715; 167;
0.49; 0.4.11... 26431720, 1-1;
1. 35 13; 34 2; 3; 57; 9; 10; 15;
1110210 012. - 2.4
9०20-2; -30;0 404 42 10.40
55 5; ०; 14; 75; 54; 2; 47; 16-12;
13; 14; 15; 55 4-76; 56, 3; 7; 5
2; 6; 7; 58, 3; 4; 6; 59 4; ० 3;
6; ¢; 85; 6; 87, 2; 8; . 48; 20
4.9.924. 400 14.25.36;
9; 40 3; 56, 70; 1215; 78; 21-24;
57» 4; 7; 58, 2; 4; 599 3; 5; 6; 8
10.194. "1-933-31,
धा ,--20.- 94; 03.84 १5 4192; 25;
26 ; 27; 6; 949 10 ; +. 63» 14; 75 ; 64
13; 77 6; 78, 8.
मरता 21... 1..49.10 01.24.41
1999100 0 10.94.100 1.2.
8.4 1120014. 94
55 6; ४. 52; 3; 53) 7; 56 7; 5; 60,
14.3.84 1.7 24 3. 72.
१1. 34, 25; .56, 25; #[ा, 18, 20 ; 20,
3; 40 77; 94 7; 96; 9; >. 36, 4; 64
11; 139 9; 137; 5
महतां 1. 174; 9; 1. 33, 7.
मरुतोऽड्व 1. 143, 5; 7. 29, 15; श. 79, 6.
मरत्ऽगण ए. 89, -2.
मरत्ऽग॑णः ए. 52, 77; इ. 66, 26.
महत्ऽगणाः 1. 23; 8; [1. 42, ग्ड.
मरूत्ऽगणे >. 66, 2.
मरूत्ऽतमा 1. 182 2. = त
मरुत् ऽभि ॥। 10; 1-9; 7107, 9; 10 र 130,
7; 169; 8; 170 5; 715; 6; (1. 47
; 4; 57 8 522 7; 62; 23 {४ 34 ;;
१.
महत्ऽभ्यः -- मताय.
मरत्ऽभ्यः 1. 64, 1; 85, 8; प, & 77; 3०, 8;
52; 5; 54; 9; 60, 5; भा. 47, 7; [इह
9१4, ..4-3 82 60.72 0.4;
77; 7
महत्व 1. 107, 8; [11. 5, 2; र, 84, उ,
मरत्वतः ४. 42, 6 ; णा. 6; 10.
महत्व॑ता 1. 20, 5; ए. 76, 4.
मरत्वती 11. 3०, 8; भा. 37, 8
मरर्वतीः 1. 8०, 4; ण्या. 15, 28.
रत्वे 1. 142, 12; रा. 46.0.01;
911. 16, 8; 1. 64; 22; 65 20; 04,
11.16
मरत्देतः 1९. 104, 25.
महवैतं 1. 23; ¢; 701, 7-7; [1]. 4; 5;
पा. 16, 2; 5; 6.
मरत्वता ए. 35 13.
महत्वान् 1. 80, 77; 100, 75; गव 71;
83..6.11.40.41 4.9.07
५५. १1.4.20. 12002
५8, 1.
मर्त्ऽ्वुधः 111. 15, 6.
महत्ऽवृधे ¬. 75: 5
भरत्ऽसखा षा, 96, 2; *11. 76; 2; 3; 9;
103; 14; >. 86, 9
भरत्ऽसुं 1. 142, 9; 1४. 7, 3; 9, 52, 4; 56;
8; 9; प्र. 42 5; प. 0, 6; 3.
मरत्ऽस्तोलस्य १, 01.71.
मरे ४111. 93: 5.
भकः स. 20, 20. | |
` मचेय॑ति 1. 147; 4; 5; १.57.
चैत् {1. 25; 7
भजेयश्वं #11. 2, 4.
| ति 2 । [1
मजयन् ~. 122; 5
ड सनक शे
अनयत 1. 61, 2; ५.33; ४11. 35; 39, 3;
नि, श
"0. 84, 8; 1. 65, 6; 92, ए.
` .. भजैयतः 1. 60, 5; 1. 87; 1.
भेयं 12. 89,
पमी, `, भो भे
मनेयैती; 1९. 147 |
म्यते \. 16, 7 |
क `: प किति सन्धि , ` ,
मजेयस्ि 1. 7111, 2.
मजेयामसि 15, 99, 3.
मजेयेम 1*. 4, 8.
) कि
मन्यः 1. 34; 4; 707; 13.
मन्यं 1. 75, 7; 46, 6; 63; 2.
मिता 1. 84, 19; (४. 4, 14; णावा. 66, 25;
= 0.1 -2. |
मडितारं 1४. 78, 13; भा{. 89, 7; श. ८.
117. 7..2. |
मतै भ. 66, 7
मतेः 1. 30; 20; 64 73; 72; 4; 747; 5; 49
५-162-13...
4.9; 1 40.112..0.0. 31.14
26 ; 32; 32; 46; 59, 5; 72 3; ४. 7,
09. 149. 14 +11.19, 9549. 24 22;
29, 2; 44, 25; 1०3, 4; 1. 707, 33;
71, 7.1.20 04.12 4.9. 149;
मतेऽभोज॑नं 1. 87, 6; 114; 6; (१. 38, 2;
3; 57;
मतेऽभोजंना ४11. 16, 4.
मति 1. 37, 7; 84 8; 146) 5; 4 6; 4
5; प्र. 4 3; 6 5; ४. ॐ 7; 2;
"1. 72, 4
मस्य 1. 92, 10; 1. 18, 6; 1. उ, 95 2
12; 9 6; 22; 5; +. 8, 4; ५]. 28 4;
णा. 89, 4; भा. 7, 4; ~. 58, 2; 79;
2; >, 134;
मतैः 1. 5, 10; 60, 25 1209 15; 790, ए;
1.19 11196; १. 19:12; |
1 (1.1.
एना. 7, 9; 28, ठ; ॐ, 9; प्रा. 17, 5; ५
९. 4 5.
मताः 2. 178, 6
मतेत् 1४. 70, 7; 55
तेन् 1. 70; 3; 13; 8;. 11. 0; 1४. 2 1
3: व; प, 3; 5; 6; 15.26; 235; ॥ |
12 3; 84 97.
| मतीनां 1. 65, 5; 1. 2 18 ॑ प प्रा]
| मतय 1.45 8; 77, 2; 847
४20
6, 4; णा. 1, 22; 22; उ4; 60, 8; 47,
6; 7; {-. 94 3; 9४ 4.
मतेसः 1. 238, 4; 710, 4; 244; 5; [1 1, 14;
4 1014 1.2.09
ए; 16, व; 22 2; ए. 15 8; 26; 7; णा.
4; 3; 25; 2; भा, 7, 6; 6०153 87,
3; क. 736, 3; 750, 2.
मसः 1. 105; 76.
मो {. 720, 2.
मषु . 607, 7; ४. 1 70; १. 78 7; 05 4;
ष्, 5; 23 66, ए; णा. 4 43 66 2;
45; 2.
मैः ४. 3, 8; ‰. 275; ¢.
मयिंऽङ्धितः 1. 39, 8.
मेः 1. 193 2; 36; 42 76; 40, 2; 47 6
84, 7; 86, ¢; 97, 74; 138, 2; 150 3;
55; 5; 179 5; न. 34 9; 4 8;
41.1.44 11.071.
7, 4; 43 ग; 53; 5; ४. 2 5; ग
ए; 39, 4; 60, 72; भ्व, 32 वव; 14; तव;
पा. 3 23; 6 44; 7 5; 4 4; 18,
ए; 13; 79 14; 25; 28; 24 75; 9;
28, 4; 46, 4; 689 8 ; 79; 70, 7; 742 5;
96, 2 0, 1; 16; 102, 22; >. 22 5;
719, 4; 91; 77; 95; 2.
मवे ऽकृतं ४7. 19, 6.
मंऽता +, 142; .3; 169, 2 ;. ४.1. 44; 10 ; 62,
8; णा. 52; 7,
मदैऽतना ए1117. 92, 13.
पिं 1 18, 4; 5; 24757; 35 2; 4 2; 84;
19; 199;:22;. 281, 4; 7; 164; 29 ;. 769,
7.1. 76; ४, 355; 5 4; 573;
86, 7; ए. 4९ 3; 82; 7; 94 12; शा,
4 16; 18, 14; 75; 19, 34; 27 75; +
22, 6; 120;:13 -2; 113;
मयस्य 7. 18, 3; 39 £; 118, 7; 1. 4 2;
1. 39; 8; 1४. 22, 9; १1. 48, 26; 62,
मरत् 1. 27, 3.
म््यीन् 1. 58, 3; णा. 2 4; 48, 12.
मवानां 1. 26, 9; 31, 16; 1. 7, 78; ४. 12,
5; प, 47; 9 6; 44 7; ४. 75 73;
पा. 39 6; णा. 28, 6; 7० 6; 12.
97, 24; 2. 4 2; 35 8; 88, 15.
मदीय 1, 175; 18; 124; 72; 155 2; [. 9,
5; 20, 9; 1. 3० 7; १. ॐ 2; 77, 3;
12, 3; 242 2; 26, 2; 3० 6; 34 4; 39
5; प्र, ॐ ग; 49 7; शा. 16, 25; 65 3;
"1.50 114.04 20.22
7; 185 3.
मवीसः 1, 7173; 77; 1. 29, 73; 3० 5;
४१1. 48, 7; 9, 9; >. 2 5.
म्योसु उ. 79, उ.
भ्य 111. 2, 9.
मन 1. 164; 39; 38.
म्विभिः 12. 97, 2.
मर््भ्यः 1. 90, 3; 145; 5; गा. 9, =6; इ.
14; 2.
नषु 110 0.111.214
१-0-24. 1.0 0; 000
8; +. 42; 5539 4; 2033; पा, 2;
164 १1.51.00 1-0-44 1.
11.1.40. 94 411. 2.
0.5; 16 ; 218; 1.
मोः ४1. 48, 29.
मर्धतः ए. 60, 4.
मधति पा. 59, 4.
मधति 1. 766, 4 {11. 54; 74
मर्धिंषत् ४1. 32४5; प्व. 814. |
मर्िषठं ए. 13, 4. | |
मर्धीः प्र. 20, 10; "णा. 25, 4.
मम 1. 61, 6; [11. 32; 4; ४. 32, 5.
शि भा. 100, 7
।
रि
ममेजत -- महत्. ४२१
ममजत 1४. 7, 14.
ममजतः 1४. 2, 79.
ममृत 1. 735; 5.
ममूजानः 1. 50; 3; 66, 223; 794: 869 ८7;
07, 2.
अमेनानं 17. 95, 4
ममृनानासः 17. 64, 77.
ममजेन्यः 1. 189, 7; 11. 719, 1.
भर्नैज्म 171. 28, 4.
जमैज्यते 17. 47, 4.
मर्ज्यते 1. 95;
ममेज्यतिं 19. 15; 6; भा. 103; 7; 12. 2 0;
33 5; 38
मृज्यमानः 1. 62, 723; 85; 5
मरमैज्यमानाः 11. 35, 4.
ममेंशत् 1. 242, 5; [ा. 38, ए; शा. 4 7;
2. 14; 8
मयैः 1. 747; 4; ग 2; 763 8; 203; 2; 7.
37; ¢; [, 20, 5; 1. 92; 2; 906 26; |
403 28 ; ` ‰, 39 <,
मयेःऽरव 1. 97, 13; 1. 86, 76.
अथैके ए. 2; 5.
भयैः इ. 20, 72.
पे पा. 43; 25; इ. 4० 2; 42; 7.
मयेऽश्रीः 11, 710, 5. |
मधी; 7. 64, 2; 17. 54: 23; 9. 54; 3; 59, 6
, ए, 56, 2; 16;. इ. 717,.3.; 78; 7; 4
नाः 1. 6, 3; ए. 45 ॐ.
मयैःज्ड्व प्र. 593; 5
ध मयेद 1४. 5 2
मयीरदाः र. $ 6.
मयोयऽड्व 11. 33, 10.
मयेसः श्र 619 4; 4 7409 2
मय >. 39, 74.
विष्ठाः 1. 41, 710.
[1 ॥ [शि |
मलं +. 156;2
4
^ अतीष .4
। 1 महत् 1. 80, 8 ; 10; क
मस्तिष्कात् ‰. 165, 7.
मः 1. 175; 1; 71. 6, 2; ४.52, 3; एप.
43; 45 भा. 65; 4; 5. 5, 3; >. 45
7; 7154; 2.
महः 1. 3; 72; 6 20; 70 2; 3; 22 771;
` $, 3; 56,3; 55, 3; 67, 7; 1०0 ए; 7०2
1; 104; 6; 10; ग्ग; 8; 196 7; पढ, 8;
7; 124; 6; 1240, एए; 728; 7; 15 9;
155; 6; 146; 3; 5; 749; 7; 156 3;
155; 7; 155; 7; 156, 3; 168, 6; 169, 1
6; 173; 72; 182, 5; 180, 2; 2196, 8;
1. 1, 6; 25; 2; 4; 24 7; 39; 1; 35
8; 34; 71; 72; 3; 04.110; ©)
16, 7; 37, 3; 34» 6; 38, 9; 46, 3; 48,
2; 54; 8; 9; 572 3; [१४. ग; 2 26;
4, 72; 12; 2; 5; 22; 3; 28, 2; 37, ग्ट;
44; 5; 39 2; 4; 43: 4; 509 4; 52; 4;
55; 8; 58 3; ४. गः 5; 42 7; 45) 1;
52, †; 68. 3; 84, 7; 8; #7. 1, 2; 6, 6;
76.25.17; 7 20.526; 4; 20; 1; ४;
29; 12; 32, 4; 44: 8; 46; 2; 48, 4; 49;
75; 50, 3; 6; 70; 5 3; 4: 9; जः
2; 66, 3; 73, 3; एव. 7, 24; $ 2; 76,
0०; 77 4; 29, 7; 2 7; 28, 5; 36; 3;
37, 3 ; 66, 6; ण. 6; 3; 23: 16; 26;
29 ; 2.59 9; 243 26, 24 ; 36, 6; 46; 77;
47; 8; 50 6; 67; 14; 68, 3; 79, 2; 8;
9० 2; 98, 7; ग व; [क 46, 5; 47
7; 48, 7; 67, 26; ¢> ¢; 735; 3; 5 3;
86, 8; 88, 2; 89, 0; 9 4; 97 आ;
10, 84. क,.8, 5 19, 2; 2; 22, 3;
25 5.24 20; 36:22; 31 -9; 564; 56;
2; 61 22; 9; 635; 6496; 9; 769; --
0; 6; 8; 93, 3; 99) २2; 108; 2; 120; ५.
8; 140, 5; 150, 4 `
नहः ए. 64 2. `
| महःऽभि 1.99; 2; 165; 5; 1. 1०.34; 4»: ५४ ५ ५
~ 6: षर. 74; 7; ए..58, 5; 60 5;:१1 6 ध
2) श्ना 3 7; 58 2) 88) 43 णा | 71 १.
1; [9.९ 96 217. 1 ह
5?
`
0; [० 7; 58 4; 54, 7; 55 ग;
1.20; 92... “76.743
4 7; 19, 28; 68, 9; 7% 6; 835; ए; 9
9.1.00). 7.301.141
7; 55 2; 4; 66, 4; 95 6. ।
महतः 1. 756, 2; 778, 5; [. 15; 111. 6,
10. 1102-4. 324;
11441 99.4.9.24; 34
72; 67; 22; 79, 1.
सहता 1. 32; 5; 1४. 28, 7; ४.32; 8; ४1. 4,
5; "11. 2०4 16; *11. 1.14; =. 44;
महतां ४. 59, 4; भ. 42; 7; ‰&. 36, 77
। 65; 2.
महति ४]. 18, 6;
महती ४11. 75; 7.
महतीः ए, 7, 2.
महते 4,.71, 14; 14.66; 75 164, 27; 768,
9; 7.8, 2; ग्य; ए. 28, 3; 32, 7; एन्.
3.4; भा. 9, 5; 2. 97, 4; 5;
+, 716, 1.
महत्ऽभिः 19. 1. 80... 1.2, 4
4.4 4.41. 2. 10.
महत्ऽभ्यः 1. 27, 14.
महत्ऽभ्यां 111. 7, 6.
मह्याः ¬. 55; 4. | |
महत्ऽसु ब, इव 162, 20,
महऽ्भिः ४, 37, ग.
महय 1. 52; 7; 1. 24; 4; णा. 23, 96, 7.
हश्यते 911. 32; 9.
` ` महन् 1.54 4; 7. 3, य.
महयन् + 11. 42, 8. `
महत 1. 33 |
ह्यतः 1४. 17; 18; ए. 57,4; प्रा 2, 6
>. 049 4:
गदवेतं 1 1
34 5 ; 9© 4"
महयं ए. 61, 6. ४
॥ कि हि ।
महतः -- मातः.
महयाय्याय 2. 122, 7. 5, करि ।
महयामसि 111. 37, 4.
मंहय +. 65, 3.
महसा 1. 162; 14; प. 59, 6; उ. 94, 10.
महस्य 1190-2.
महस्वान् ~+. 130,
महा 1. 165; 2; [. 242 व; 4.4.24; ~:
भ; पा. 22, 7; पा. 46, 14; र.
88, 4.
महासि ४. 28, 3; 60, 4; णा, 56, 14.
महाऽ्करुकः 1, 167, 1.
महाऽगयं 12. 66, 20.
महाऽग्रामः +. 78, 6.
महा ऽधनं [2९. 86, 12.
महाऽधनेस्यं >, 84, 6.
महाऽथने 1.3 1-120-५1.
ध.91-9 1.7.
महान् 1५५19. 4./59. 4.20. 10-30-09
12; 50) 3; 05 7; 87, 4; 945; 95;
५, 2.1 11.7.70 0 3
36, 4; 5; 46, 2; 5, 9; 55 9; 59, ॥
11.0.04 01. 22138 .
9.042.118. 1.7. ४
1; 25 7; 38, 3; 45; 13; 47; 5; 48; 3; ति
11.11 -417:-00.26- २
01; 22.91; 203. 10.4. |
42; 2५.5.80, 6; 29; 62, . 2; 64; 2;
65; 5; 92 3; 95 4; 98, 2; गता, 719;
2; "2, 649, 3.59 44 5626.
9; 97, 2; 9 4; 8. 42; 46 ए; 5
4:19 91.120. 91521
महाना 1. 180, 6; ग्वा. 63, 7; 92, 3 | 04 1 0
गानि 1. 45 प. 65 प
5; 34 6; 46 ग; 48, 8; ए. ०५5 प
1. 101
महान्ऽइव १117. 2, 19
हि
५5 ॐ
2 ॐ
५9 9
ड
"` ५,
महतिं -- महिना, ४२
महांतं 1. 5,6; 7740; प. 329 1; 83, 8; णा.
21, 6; ४1. 12.24; [2.2 4; द. 324; 1.
महाता 1. 21, 5; ए. 60, 4; एणा. 25, 4.
महांति 111. 1, 20; ४. 59, 4; द. 7, 2.
मरहातीं ए. 82, 2.
महाऽपदेनं >. 3, 2
महां {. 6, 6; 50, 6; 112, 24; 117. 77, 6.
22; 7; 24; 714; 1. 2, 3; 49; य; 1४. 5;
9; 17; 8; 797; 2; ए 7 2; 4;
5; 13; 20) ८; 389 5; णा. 5 26; 65
3 ; ९. 49, 3; 65 7; 9० 5; 10०9 7;
=. 46, <; 80, 7; 712, 9.
महा ऽमनसां र. 123, 9.
महाऽमह *111. 24, 10; 33, 15; 46, 70.
महाऽमहः +. 779; 12
महा ऽन॑रिव्र्तं 1. 48, 2.
महाच्य ए. 7०, 8.
महाऽवहूरिणा 1. 235, 2.
महा ऽवंधः ४. 34; 2.
महाऽव॑धात् ४. 85: 2.
महावसू इतिं महाऽव॑सू ४11. 82, 2.
सहाऽवीरं 1. 32, 6.
महाऽ्वेलस्ये 1. .135; 3.
महाऽत्रातः 111. 3०, 3.
महाऽसनासः ४11. 34, 19.
महाऽहस्ती 171. 87, 1.
महिं 1. 41, ¢; 43; 7; 54> 8; 77; 62, 2; 79,
4.04. 9 10.01.47,
15 7; 35 9; 139, 9; 4० 5; ग्य, 4;
155 3; 156; 2; 159, 2; 160 5; 163: 7
` "96.10; ध 12.70; 2253; 23; 4;. 24
14; 27; 8 34: 14; [[11. 1, 22 1.4
| 3०) 743. 14; 37, 3; 4; 6; 12; 14 ‡.
वड ५44 49.34 535 9.6. 4;
34 4; 56; 5; 1 70.64. 18, 5;
ॐ 8; 35; 54 ग; 6०3; 68, 3; 85.
35; णा. " 76; $ 4; 47; 77
4 12;.19;.40 24 -ा44.34 5:. 4 8:
^ 6 क 4.7 3 7 ८
1. 4.94; 43.24 879; 82, ग
10913." 1.72.31.11.2216.
32 14; ` 46; 25; 47) 7; 54 8; 55
5; 80, 5; 1. 2 2; 47; 9 9; 652,
10; 74; 3; 80, 2; 84; 5; 85; 8; 86,
15.34; 07.54.179 8; 48, 13. 4:
7; 7, 8; 50, 7; 65; 2; 89, 15; 93 7
704, 7"; गत 7; 140, उ; 744; 6; 1647, 2;
109; 2; 2765 3; 185. 0.
महि १५.49.14; 14.11.341 1.0;
10; 1-401-70
महिंऽकेरवः 1. 45; 4
महिंऽ सतो ए. 68, 1.
मि ऽत्वनं 1. 166; 12; 1. 28; 43 1४. 26, 3:
9. 54; 5; 55 4
महिऽवना 1. 85, 7; 86, 9; प. 55 5; प्र.
9.4 11.10. 24.22.08. |
1. 100, 9
मटिऽत्व 1. 8, 5; 59, 5; 6; 67, 9; 87, 3;
175) 4; 138, 7; 766, 7; [. 20; 8; ब.
42.01.71 १.02. 1.4.200
8; 72, 7; +. 4० 5; 99, 7; इ. 48,
५; 4.4; 26.44 19
महिऽत्वा [. 52; 73; 60, 5; 68, 7; 97, 2;
709, 6; 764; 25 0 4. 04.
54 75; 1४. 16, 5; 42; 3; ४.29; 58,
2; १]. 29, 4; 024: 1०; 68, 4; प्र.
73, 2; 20, 4; 2९, 3; 58, 2; 67, 4; 9,
8; 700, 3; भ. 25; 78; श 4, ९.
55 5; 56, {; 75, 7; 88, 9; :89, 7;. 96.
8
महिऽत्वेभिः ¬. 113, ¢.
महिन् +. 26, 8.
महिनंः ए. 52, 15.
महिनस्य पा. 33, 5; 68, 8.
महिना ए. 61, 25
महिना 1. 22 8; 35 9; 722 17; 149, गय; | (५
४ 14; 68, 9; णा. 37, 4; 9; 69 70; 86,
(9 7; 95; 2; 96, 2; "1, 22, 25; 68, 3;
क 70, 6; 92, 23; ऋ. 28, 7; 7० 5; 87,
2; 88; ¢; 779, 8; 727, 8; 145, 8; 12239,
; ह 3; 140; 5
। ५ महिनि ष. 84.
| महिनी इतिं 1. 760, 2.
महिनी इतिं 1. 160, ‰.
महिने पा. ॐ, 7.
महिन्ऽत॑माय +. 715, 6.
म्हिऽमधस्य 1. 722, 8.
महिमनः ए. 47, 3; >. 54 3.
| महिमा 1. 129, 20; 760, ¢; ४. 6, 5; ४.
` 87, 6; प्रा. 28, 12; 59 2; 452; पा,
28, 2; 32 8; 4; 2; #*1. 3, 4; 20;
0.71. 00,41 74272 5.
महिमानः 1. 164 50; 3. 9०, 16; ग्य4, 4; 8;
209; 5
महिमानं 1, 61, 8; 85, 2; . 10, 2; 35; 9;
11 11062011. 110
0, 1.2.200 9-14-1:
॥ 5; णा. ॐ 8; 3; 46, 3; 59 2; 5;
; । , 65 4; >, 65; 2४; 69, 9; 75; ए; 772
4; 774; 7-3; 268, 7."
महिम्नः ४11. 99, 2; >. 56, 4.
महिन्ना 1. 59; ¢; प्रा. 67, 13; इ. 88, 14.
महिम्ने {. 62, 24
हिऽरत्न 1. 747, 19.
भहिऽ्वृधे ४1. 3, 10.
हिश्व्रत 1. 45 5; 12. 100, 9
म्हिंऽन्रतः ए. 68, 9; 2. 9, 4.
मर्हिऽव्रतं र. 715; 3. |
भरिष 111. 46. 2. ॑
महिषः 1. 121, 2; [. 22, 7; 2. 69, 3; 86
॥ | ः ५ ॥ 4 =. 8, 7; 28, 10; 728, 8; 7189, 2.
1 महिषं 1४.28, 7; पा. 69, 15; द. १5, 4;
219; 3; ब. 240; 6
4०; 87, 7; 92, 6; 96, 6; 28; 19; 9
| | हरेः महिनि -- भरीना.
महिषस्थं 1. 95 9; 747, 3; [द 89 3; ४.९३
54; 4; 66, 70; 123; 4
महिषा ४. 29, 7.
महिषाऽईव 111. 35; 7; 3. 106; 2.
महिषाः ४1. 84; ५. 44 5; 12. 723; 2; 86,
25; 97 5; =. 5 2; 45 9.
महिषाःऽङव 1. 33, 7. |
महिषाणां ४. 29, 5.
महिषान् ए. 77, 77; षा, 72, 8; ¶4; 7०.
महिषान् ऽईव >. 60; 3.
महिषाय॑ र, 65, 8.
महिषासंः 1, 64
महिषी ४. 2, 2.
महिषी ऽङ्व ४. 25, +.
महिषी ४. 37, 3.
मरहिष्वतं ए. 68, 5.
भटह्िऽसखनीनां णा. 46, 18.
ध 4.8.72. 22 14.10.01
29; ग्थर, ए; 74, 7; 742, 9; ग्ड,
164, 33; 1. 33; 74; [. 3, 3; 23;
67, ¢; कष. 14 3; 4195; १, 4 25; 45;
8.42 0." 45 4,00.311.
ठः 14; 56, 4; पा. 25, 3; 4०, 4; 46,
33; >. < 8 ; 86, 44; >. 69, 9; 74, 4:
85, 2; 9% 4; 96, 70.
मही इतिं 7. 80, गव; ग्य, 5; 759 ८; 3; ना.
7, ¶; 38, 3; 55; 20; 6 7; 1४. 56; 7;
7; पा. 26; 537; 87, 2; 98,5; णपा.
6 22; क 5.6; 9.33.265;
47 5; 68, 3:74 2; 35; 5; 64
4. 602; 12 4 ए
महीऽडव 7. 24, 4; पा. 9०.८6; क. 133, 5.
महीः 1. 153; ए; 142, 6; 7. ग, 2; गा.
ध ध, 50, 18; 569 2; ४. 7, 5; ४. 45;
3; 504; "7. 594; 81; णा. 3,
104. 60.163; 2.2; 5०, 24.66.20; -
4; ५. 2, 4; 8; 72; ग 7; 67, 42;
99, ¢; . >. 74; 7; 64; 8 ०; 104 9 |
महीना [. 7, 12; 45, 3; 1. 1©9 2;
>. 1341 7, |
मरीनां-- मा, | | ४२५
र शा
महीनां ४1. 79, 3८.
महीभिः (19. 2
16, #
महीं {. 102; 7; वव, 4; 149, 5; 1. 15, 5;
9.9.24, 4 111. 4.0. 76
04 149८446 546,
38, 1; #1. 24, 6; 56, 8; शा. 6. 24;
41.4.01 38 1 6.5;
74 4; 92; 5; 717; 5; 7129, 8; 149, 5;
६४४, 2.
महीथते 1. 782, $; 9. 56, 9; 1. 279; 6.
महीयते र. 12, 4; इ. 86, 10; 146, 2.
महीयते +. 175, 2.
महीयमानां 1. 3०, 9.
महीयुवः 1. 65, 2; 99, 7.
महीये 1. 113, 6.
महं 1. 52, 7 56, 7;
901. 1.110.14. 7) 129, 10;
139, 6; 157, 3; 254; 25 168, 2; 189,
1.3 1.114.1८0
6; 1, 8; 24, 2-~-3; 1४५. 34; 251; प.
33 1; व गए; 42, प; 73; 48, ठ; 59
900 1 10.1.74 11-17-20;
व; 2559; 327; 342; 46, 3; 44 23;
45, 5०; 68, 1; ४. 24, 5; 28, 3; 3,
200 0.0.024
2, 24; # 5; 75 13; 22; 4; 24; 70; 26;
2; + 24; 46; 25; 59, 7; 64 12; 67
९4. 0.2 10021 0.6 72
0-616-41. 59.240
0, 13; 15; 77, 3; 86 34; 87, 5; 96
3; 92.20; 1०8; 14; 1०9, .33. 23; ग 9)
2; #; ~, 9; 7; - 4६, 9 91; १ 9.9; 2;
प. 242:
(9.४)
(७४)
। ५
~
५,
महे ४71. 9
महेत 1. 777, 3
मरेऽनदि ४1. 74 15.
मदेम 1. 94, 7; ए. 25
मरेऽमते १11. 14 7; 34, 7; 49, 7; 5०
1 महा {55 3 72 9; 164; 25; 766, 71;
0.2.11 64 76,
| |
174, 4; ॐ 2; 2, 1; 28, 73 35, 2;
49.721. 34, 16:
23; 3; 849 2; 87, 2; 9, 2, 2; 24; 3;
069 5; #{. 72, 2; 188; णना. 3, 6
०14. 2-14-0;
9.0 0-36-40) 3 4.97; 12; 89; 1;
113; 7. |
मदय 1. 24; 15 ; 24> 12; 5०, 73 ; 100, उ ; 222,
8; 726; 6; 265, घए; [[. 28, 26; 29, 4;
१9.23.22 10 7 11.12
प्रा. 20, 8; 46, 9; 4, 1०; णपा. 2, 323
33; 26; 22; 56, 2; 1009 ए; ह. 32,
>. 34; 7
36; 47;
मदा ४. 7, 9.
2; 39, 6; 48, 3; 49, 7; 85;
7128; 7; 2; 4; 169, 4.
मह्याः +. 3०, ¢.
मदे 1, 341; 3; प. 5, 6; पणा, 79, 9.
नी 494 1.1.210 4.3 20 0
911; 40.220 41-33-9 :-26 6;
58 5; 39, 2; 4; 8; 43, 8; 53, 3; 54
7; 779 10; 89 7; 84 202; 89, 9; 9,
23; 94 1-74; 104 5; ¶; 89; 195, 3;
1004-0 24.41.24.
125; 72; 126, 0; 249, 5; 158542; 762.
1.7.212 224 1.7 183,
4.71. 1.2
१1.91.004 १0.09;
20, 9; 24 8; 26; 12; 216; 24, 24;
00.101 24.542
12937 4 54221
3
5; 4७ 8; 45 7; 53, 2;
0941८ 1.5. 2
20, 10; 52, 20; 22; 55 7; 445; पर.
४; 0; 45: 49, 4;: 47.16; {2 265;
18;
173 19; 2;
75 7.79, 9; -+1. 28, 7; 35; 5; 44:75
15.70; 40 9; 480 इ, 6; 95
34; 59; 4: 65140561. 42
10...
1; 215 5; 22;
9८
16, 6; 338; 233.:35;
719, 5; . 18. व:
53, 8; 9; 55 9; 56, 2; 65 6; 7० 48;
ध < 42 0 4; 9 9; 19; |
25; 1; 37; 5; 32; 9;
स
2/2; 34, ग; 36, 7; 42, 6; 45 3; 46;
3; 49; 5० 1४; 52, 9५; 5609; त; 57
4; 59 10; 14; 6०, 8; 69, 4"; 69.
73; 4; 75, 8 ; 88, 6; 89, 5; 95 8; ०4
३५; 8; 100 6; 704; ¶; 23; 44; 086
7, 74; 13; 26; 25; 19; ॐ 2; 47;
8, 13; 20, ए; 27, 75; 169; 229 14; 3०
3; 33, 199; 45, 23"; 37; 34; 36; 48,
8; 149; 60, 8४; 207; 65, 10; 66, 75;
643 8; 9; 20; 77; 3 74 15; 75
9; 12; १9 83; 8०8; 86; 86, 7; 9
31; 96, 12; 97; 2; 7; गता, 75; 10
14; 4. 22; 8; 87, 3; 85 7; 2134; 4;
क, 156; 16, 2; 8; 18, 44.71.00
1; 22; 72; 15; 25 9; 27; 24; 34 13;
14; 36, 2; 37; 6; 54 5; 57 "; 62
77; 69, 5; 85, 32; 42; 87, 9; 19; 95)
1.59; 91; 29 ¦ 102, 8; 106, 2; -128, 9;
120, 4; 121, 9; 128, 4; 5 87; 142,
4 1001100, 2.17 4.
मा 1. 24; 24; 24; 48, 2; 1050; 8; 28
120, 71; 122; 716; 126, 3; 158; 5; 164,
४1 -91109 11. 12; 194. 1.2
6;.29, 5.29, 12; 33 6; ‰; 1 1;
52.14 424"; 24. 4 ४2; 152; 26,
1.211.420... 4941
332 8"; 42 7; 42 75; 1. 47 10; 48,
104. 4.4. 8; गा,-24, 22; 22; 7
20; 829 53 -88,-2; 101,.6; 7०4 8;
15.16.411. 16, 5.1. 46,.38 ¦ 48 5;
6.5.16 ; 68; 14; 94; 16 ; 100, 44: 4“; 5;
1 16 ; 1. 6 90.191; 103 14;
28; 6; 29, 3;. 330 7; 5; 34 7; 2; 55
९443454; 5; 0; 11:49 5; 4;
5.21.4:585-4;1.82.5; 8; 807, 10; 95;
53.13; 97.76; 19, 2; 4; 1245.45.1255
3; 727; ¶; 128, 9; 166, 4.
मांश्चवे 1. 97, 54 `
। मांश्रत्वे 1. 97, 52.
मसिऽभिक्षां 1. 762, 12
मांसं 1. 767, 10.
मस्मचन्याः 1, 162, 13.
माः प्र. 33; 4; ४. 29, 8.
माकिः, 149, 5; 11. 36, 9; 1प्र. 43; भ
547; 71, 3; प्राता. 5 39; 67 गय; 79
1. 85; 8; क, 71, 9; 23: 7; 166; 7.
माकी इत्ति ए. 2, 42.
माकीनया ए. 24, 8.
माकीं ए. 54; 72; 11. 45; 23.
माधोनं ए. 43, 4; पा. 54, 5; >. 707 1.
माघोने २. 66, 2.
मातं; 1..185; 77; ४. 57; 5.
मातरः 1. 92; 7; 11. 9.0.41... 4
6; शा. 45, 25; णा. 89 4; 95; 7; 96;
ए; 102; 714; 1. 12 2; 19, 4; 33 5;
86, 36 ; 10०, ए; पर; 102 4; >. 92; 17
710; 64; 9; 75; 4; 91; 6; 12; 3.
मातः <. 97, 4.
मातर् 1, 24, 7; 2; 71710, 8; पए, 7; 174, 7;
19.0.10 11145 "८ 19
3; 12; प्र. 34 4; 52; 16; #1. 72 2;
1. 14, 3; "1.4; 45.17; 1; 753; 2;
$, 18, 10; 54; 3; 62 5; 88, 15; 94; 74;
114; 4; 146, 6; 7146, उ; 789, 7.
मातरं 1. 122; 4; 14०, 3; 742 7; 156:
159, 3; [1 7; 57; 7 7; 35
16202. 11.732
क 9-91-11.
8. 68, व; 7०, 6;; 15, 4; 85 74; -702,
7; +. 10; 35 3; 598; 64 "4; 19.
4; 120, #; 1469 2,
मातणाऽड्व 1. 18, 5.
मातरापित्तयं 1१४.6,7.
| मातरि 11. 29, 17; पर, 8, 9.
मातस््विरीः र. 14, 9.
मातरिश्वः +. 88, 19.
मातरिश्वना 1. 60, 3,
मातसिश्िनि ए. 52, 2.
| मातरिश्वने || १८.3.54; 4 श ५8 0
८9 ॐ
ॐ ऊ चक ॐ
| 5४ ।
ॐ #
मातरिश्वानं -- माध्यंदिनस्य. 8२9
क 59; 710; 95; ०9 गा; ए. 8, 4; ङ. 46, मातां इ. 47, गा.
95 85, 47; 105 6; 109, 7; 714, 7. मावे ए. 69, 25.
मातरि्रानं 1. 164, 46; 7. 26; 2. मावे इति ¬. 29, 6. 9
मातरो 2. 175, 1, मातोः 11.22; ए.711,5; भा. 39; णा,
मातली ‡‰. 74; 3. | 60, 19.
मातवे {. 164; 28. ॥ मादनं ए. 5, 7
मातां "111. 41, 4. | माद्य्ये [. 167, 7; ए. 79, 6; 22, 3; 69, 23
माता 1. 38, 8; ¢2, 9; 89, 4; 10; 112; 28. माट्यश्च 1. 85; 6; ४. 38, 8; 45, 7
160; 2; 364 8; 9; 33 ; 185; 10; 107; | मादयश्वं [11. 54; 12; 7४. 54; 2; 8; ण. 52,
6; 1. 385; रा. 465; 48, 2; 554; | ठ; य,
10-16-10 5.4. माद्यन् र. 80, 5; 84, 5.
क 6
432; 459; 6; 4 ग ए. 5; 66, || ~" 9; 93; 59.
3; 706; शो. 55, 5; 77, ०; 98, 3; || माहुवंति २. 34 ग
101, 3; पा. ०6; 255; 49; 94 | माद्यत षा. 22, 5
ग; 989 71; 101 ग्ड; 2, 43; 0; 7; 18, | मादे 7. 44.92. 1. 24.
1; 20; 14; 26; 32, 4; 5344; 25; 36, मादयते 1. 59, १.1.71, 4 2. 68.
9.04. 0-190-01 73; मादयसे ए. 4,
४ 07; 9; 774; 4; 152, 6. | मादयसे प्रा, 52, 1.
माताऽड्व ॥, ग 4; भ. 75, 4. | माद्य॑ख 1. 87, 8; 0, 0; वा. 3, ४४; गा.
माहुः 1. 237, 9; 57, 7; 149 9; 159; 2; 164; | - 6.0; 11.4.51 .00 0122.
3; "90 49 401 || जव 1. १, 9.7 87 आए 393: ।
1 प्रा. 2535; 299; 92, 5; द. 44; 5;
7; 4, 5; 1. 6, 35; 20 8; 9 9; 1.9. 104 2112.3-7116.2; |
41.4.29. 1.4.41. 1... क.
1) श्ल ५ 2 ५ >, ~ 9 | माद्यात 1 40; >
435; 9; ०; 1; ~+, 26; 2; 32 9.2. र १ ९
मातृभ १ ; माद्याश्च ४11. 59, 6.
ऽतमाः 1. 758, 5; ४1. 50, +. ~~ > ।
स्मे 1. 34, 14; 167, 8.
मातृ ऽतमां 111. 33, 3. व
मातुऽभिः 1. 11, 8; एवा. 72; 14; ९. 93, | मादयासे ५ 101; 8 ; +. 55; 2.
१९.044. 1.2; | मादयासे +. 95, 18.
मातुञ्न्य॑ः 1. 95, 7; द. 7, 2. | माद् यिल्नवे 2.19 प
मादृनृ्टाऽ६व ५1451: मादयिष्णवः 1. 74: 4; +. 82, 3.
मातृषु 1. ग्व, 9; ा. ०3, 3; 7ए. 7, 6; 1. || माद्येते इतिं ५. 4०, "4.
9, 4 | मादयेथां 1४. 49, 6. ५
मातः 1. 95; 4; 147, 5; 764; 10; उ. 9, 2 मादयेथां 1..109;, 5; 784; 2; 1१. 74, 4; भा. |
मातृन् 2. 52 | | -. 68, 77
मात्ऽभिः 11. 24, 5 ` । | मादयेये इतिं †. 08, 12. 0 (
मातया प्रा 99. 5. | गहि बनि
माता. 28, 5. ` क ॥ माध्यदिनं 1. 32, 2; ५.24. | |
| ५ मात्राभिः 111. 38, 3; 46, 3 ५ | ॥॥ माध्यदिनस्य [11. 525; ए. 37, 7; +. 79; 3 |
५ | माध्यंदिने -- भां.
माध्यदिने 11. 28, 4; 32; 3; प्र. 46, 4; *.
44, 6,
माध्वी इतिं ४. 75 7, +
माश्वी इतिं 1. 184, 4; 1१. 43) 4; 5; ४1. 65
ठः पा. 6, 4; 7 79.
माश्वीः 1. 90, 6; 8.
मानः "1. 33; 13.
मानें 1. 49, 7; 100, 14; प्रा, 88, 5; +.
8; 2;
मानं ५. 144; ‰.
माचवं . 62, 7. | ।
मानवस्यते 1. 140, 4
मानवात् १.90 :3:
मानवी 2. 86, 23. `
मानवी इतिं {>. 98, 9.
मानवेभ्यः प. 54 य.
मान॑स्य 1. 189, 8; ४11. 63; 7.
मानात् [2. 73;
मानास; 1. 147, 5; 782, 8.
मानुष {. 84; 20; 1. 9 0.
मानुषः 1. 37; 7; 44 70; 153; 3; 1. 77, 16;
१1.243 11.02.010 2 9;
8; 95; $. |
मानुषप्रधना; 1. 52; 9.
मातुष ४. 66, 2.
मानुषस्य [. 70, 7; गथा, 4; ¬, 20,
मानुषा 1. 57,.7; 7109 4; 57० 7; 144, 4;
[2.203.४04 11. 12.226
24: ~ (41; 1. 24 20.16...
62; 9: 1. 1254; क 146, 6.
। मानुषाः । 38, 10; 39, 6; 162, 4; 2. 15 2;
122; -7° |
मानुषाणां [. 84; 2; 1278; 128, 7; [ष्. य,
4 5. 8,.8;.9 5; 9.02; "4. 5; 18;
0.100.110 4.02. 7 041. 0
5. 1. 23 24 41; 1.0.10
मानुषात् 11. 3 3.
मानुषान् 1: 48, 7; 50;4 :::2 723, 9; ण्न. 9,
2; 199 35; >. 17, 7
सानुषाय 1. 123; 7.
मानुषासः 7. 60, 3; ४. 7, 4; 77; 2; र,
48, 10. |
मानुषि ५11. 75 2.
मानुषी 1. 72, 8.
वानी; 11. 2, 10; 63; ४. 8, 35; 45; ए;
षा, 65, 1; पा. 5 2; 29, ए; 75. 65, 9;
699; 80, 6; 83; 3.
मानुषीः ५४1. 50, 7.
मानुषीणां 1. 59, 5; [ा. ग, 5; 34 2; ४.८५;
५9.92 1:40. 24.45.
मानुषीषु 1. 4, 3; 111. 5 3; 7४. 67; 9;
0, 4; पा. 67, 7; 1. 38, 4; +. 7; 4.
मानुषि [. 48, 77; 748; 7; {1.23 4; प, 14,
2; 2, 2; ए. 76, 7; णा. 28, 9; ग.
04.764. 71180;
मातुषेभिः ए. 38, 7; +. 125; 5.
मानषेभ्यः 1४. 54; 2.
मानुषेषु . 25, 75; 58, 6 ; 59 3; 60, 4; ४.
24; 3; ४. 73, 3; ४. 2 7; 22: 6; ~
साने र. 24; 23.
मानेन -1111;
मानेनऽइव प्र. 85, 5.
भानेभिः 1. 184, 5.
मानेभ्यः 1. 169, 8.
मनेः 11. 15, 3.
मांदायेस्यं 1, 160; 144. 166, 14; 10 7;
168, 109. |
मान्यमानं #11{. 78, 20,
वान्यस्य. 1.164.144 15; 166; 15; 1640; 1;
168, 10; 77, 5; 184, 4. |
मां 1. 158, 4; 166, 6; 185, 02; [प्र. 27, 2;
१9;.7: : 46; 14 425; ४. 2.3.36; 8;
49; 47; भ. 524; १ 49; | 40, 2;
85; 3; वा. 6, 32; 474; 14; 1. 67;
271; 254 214 44. 9.3.485.
18.40; 5.28. 352; 48.75
3; 49, 2; 52 4:83; 6:86, 9; ५8, 24
145, 4; 145; 6; 183, |
मामकः-- मासि. ` | ४२९
1
मामकः >. 759, 1. मायुः ए. 105, 2
मामक ~+. 17, 14. मायुं 1. 164. 28 ; 29; ॐ. 95; 3.
मामकानो 2. 105, 10. मारत ए. 46, 2. |
मामतेयः 1. 1.58, 6. भारूतऽच्॑श्चस्य ए. 5, 9.
मामतेयं 1, 144, 33. 752; मारतः ४ (१
नारं 1. 4 3; 37; 1; 5; 58, 15; 64 12;
माययां 1. 80, ¢; 144, 7; 160 3; 7. 17.95.
00 700.011. 0-11-3
11. 14.0.70 ५4229; 46.94.52;
111. 24, 2; 1. 89.412. ~41.- 04 2
2.1 11. .
9.74. 4-44-10 6.848.100.
48, 5; 66, 5; 171; ग. 50; ठ; श्वा.
15; 41, 3; 1. 23 5; 9; 83; 3; >.
१6१.9; -04.72; -1 68, 7: 94.50.
20.1.21
मायवः ~. 92, 15.
बाया 40 1094. 542 ४ । व ६ ^ ष {
मायाः ९ 32, र 1, 2 ; [1]. 17, 10; 24, १ * 7 < 3 19 | 1 ॐ % ९ 22. | ५ | ||
6; [ा. 2०, 3; 5338; प्र. 9,9; 51, 7; भास्ताय ४. 54. 1; #1. 48, 12; 66, 9; +. |
29, 9.
ध. 1140-2 4.-42.0.
+ 22; 45; 9; 58, ए; षक. 7, 10; 98,
5; 99 4; भा. 44, 8; =. 539; 75
5; 99; 2; 317, 6.
नायानिः 1. 31, 7; 38; 20; 5.5; गढ, 9;
111. 34.6.09. ४.326.442: 14,
0.८... 4. 232 111.
2, 140, 2
मायां ४. 85; 5; 6; इ. 88, 6.
मायाऽवान् 0.6
मायाऽविनंः >. 83; 3.
मायाऽविने [. 77, 9,
मायाऽविनां >. 24, 4
मायिनः 1. 39, 2; 55; 54 4; 64 7; 159,
4; 1. 11, 10; 1. 38, 7; 9; 56, 7; भ,
=
मारतीः ए. 12, 29.
भारतेन 11. 3, 3; 1. 32, 2.
माजा््यः ४.7, 8
माम्निं 1. 35, 72.
माडीकं 1. 79 9; ¶४11. 82 8; 97, 2.
माकि 1. 18, 12,
माडकिभिः पना. 7, 30.
माडः 11. 38, 8.
मागां इ. 72, 8; 9.
माऽवंतः [. 707; 2; 129, 774; 242, 2.
माऽवते 1. 8, 9; 1४. 16, 16; ४1. 65;4; रा.
32, 27; 111, 88, 3; >. 509 2.
मासः >. 85, 5.
नतः 1. 26.84.11. 194; 4941;
~
` 44 ग; पा, 6, 3; णा. 82, 3; गा १. 97, 2. ५
ॐ "9; 29 "4; >. 138. 3. मासं पा. 66, 77. ५
मायिन 1. 7, ¢; 53, 7; 56, 3; 8०, 7; 7. || मासा ए. 34 | 0
पा; श्र, 3 6; 58, 2; शा. 48; 14; मासाऽडव र. 748 | त. |
पा. 06, 2; ङ. 4, 2. मासाः 11. 52, 9; ए. 24, त; 38, 4; पा |
मायिना ४1. 62; 5.
67, 4; +. 89, 74 0 1
मायिना 1. 32, 4; 1. 20, 3; 34: 3 | 1 | | |
मासान् [. 37, 9; ४. 78, 9.
मायिनं प. 48, 3 न
मायिनी ४.48. य. मासि 2. 184; 3. (1
भविनी, इति = $ मासि 1. 92, 7; 4०; 7. 22; फा. 7'
८ मायी ५१1. 28, 4 रः >+. 99, 10; 147; 5
9; 1.6: 35-.12 0 4
। ०
५
४३० मासिऽमासि -- भिव.
मासिऽमासि 2. 52, 3.
भास र. 72, 9; 93; 5.
माहि 1४. 22; 10; एला. 26; 5; 2. 289 72.
माहिनः 1. 56; 6 ; 165; 3; 1. 19, 3; &. 26;
१.9;
माहिनं 1. 157, 9; [1. 36, 9; 1४. ¢, 26;
४[11. 62; 7; 13. 82, 2.
माहिनऽवान् 111. 39, 4; 56, 3.
माहिनस्य पा. 71,9.
माहिना 1. 180, 5; 1. 5, 5.
माहिनाय 1. 67,71.
भाहिनायाः ४. 45,
मार्हिने इतिं [11. 6, 4.
भाहीनानां र. 6०, 1.
मितः र. 18, 12.
मितऽह्वः ४18 50, 3; ४11. 82, 4
भतस ऽनिः प्रा, 32, 3; णा. 95 4
मितऽदवः ए. 38, ¢; इ. 64 6.
नितश्दुः [.6,5; प्रा. 7.
मिश्रौ 12. 94 4.
मितऽमेधाभिः ४111. 53, 5.
मितय॑ः पा. 35;
मिता 1. 1/3; 3.
मिताऽइव र. 97, 2.
मिताः ऽइव 1, 57, 2.
तनित. 9564 14014; 20, 1; - 1४ 1
19; 9. 46, ४; 60) 55. 672; 2:79, 1;
77, 1-3; पा, 59, ४; 66, 3; भा. 79,
35; 44
गमित 1. 122; 4; 1. 27, 6; 8; [1. 509, 2;
(र. 550; १,625.8 ;.-64; &; 60, :5;; 69;
1;: 2; 64; 5; 66.99; "11.18. 2;
“01.614; 64 40...
नमित ऽसतियेः ¬>. 33; 7
भितः 1. 245; 26, 4; 36, 45:40, ५: 47;
; 42; 3; 44 73; 60 2; 75 45; 77; 3;
79; 3; 90, 2; 9; 973; 94 13; 26
95; 71; 96, 9; 98, 3; 100, 29; 01, 7
` 70 ग; 109, 8; 70» 19; 1०6, 9; ग,
4; 208, 13; 709) 8; 76, 9; गक 5;
112... 1159; १36;
9.7 111 10.700 86, ‰;
१0.01.14. 2-39-0; 88९
4 2; 6; 5 3; 4; 9; 4 4; 54 26;
50.14.20 0.1.00. 4.0
5; ४. 371; 10, 2; 269; 4०7; 46; 5;
49, 3; 65; 7; 4; 68, 2; 7०9 3; 87, 4;
श्र. 27; 8, 3; 75 2; 24; 5; 44; 9;
यत 1-01-16 921 644. 119
3; 72, 3; 4० 25; 36; 2; 39; 7; 4० 2;
4; 57 2; 56; 25; 60, 465 8; 6% 5;
0:04. 00.4.11 1409;
8.103.१11. .0;.2 14 207
47, 10; 37, 24; 46; 4; 67; 2; 94: 5;
१०...०..0...64.21. 47.41 0.4 2.
5; 8; 22 7; 2; 29, 4; 57, 9; 56, ए;
65, 7; 9; 68, 2; 79, ¢; 92 4; 6; 98
4; 98, 7; 100, 2; 726, 7; 147; 5.
निः ऽइव 11. 4; ए.
मित ऽत्रुवंः >. 89, 74.
मितं ऽधितये 1. 126, 9.
मित ऽधितानि ड. 100, 4.
मिवऽपते 11;
भिवंऽमरः 1. 44; 22; 5० 71; 58, 8; 1. ए,
5 ; ग 4 15; 91. 2, 77; 5 4; ४1. 5;
6 ; भा. 19, 25; 44; 74; 60, 9; =. 30;
१; 70, 7.
मिवऽमहाः प. 3, 6.
मितं ऽइव 1.84; 2; 3. 4, 5.
मित ऽनः 1. 286, 8.
मिवऽ्युव॑ः 1. 773, 10.
मितं 1. 2 ¢; 25, 4; 38, 13; 58, 6; 89, 3;
06.:.1; ` 106; . 34 .:.720, 764. 44; 7; ` 215
१; 104 1012... 1.5.71. 1.
1४. 24; 33 10; 39 4; ४.32; 16
7; 42514 5074:.64 7१. 7६, 2; 22
9; 48; 150 फ 33 (11. 28, 12; `
1
।
॥
॥
+
भियोः -- मिथुना. | ४३१
2; {-&, 90, 4; 97, 2०; क. 8, 4; 29)
2; 24, 22; 24; 14; 62; 9; 8, 7; 89,
8; 9; 208, 3.
मिवयोः पा. व, 1; ए. 66, 7.
भिल्ल राजाना ४. 62, 3
भितस्यं 1, 4 70; शा; 3; 4, 7; 94 2;
145) 7; 5; 146, 2; 152, 4; -. 2; 0;
4 900. 030; 04. .4;
55; 7; 569 7; ४.96; 64 3; 65 4;
८ १1.20. 11104 62.4.23.
191 2.7 04 21:41.
924. ८.14..40 111 14 2.19.
3० ए; 36, 3; 13; 37 ए; 89, 8; 78; य,
भिदां ४. 66, 6. |
निवा 0.4, 233.36..77; "1.24.
मिता प्र. 65, 6.
भिलाऽइव >. 106, 5.
भिताः 12. 707, 10.
भिताणौ 1. 179, 5.
भिल्लायं 1. 129, 3; 136, 46; 137; 2; 1.
२4 4; 1. 59 4; 8; 1१.34; ४.
68..7;. 41.00.402, 2; "161;
1.10 9 44; 0; 10.64 442)
१९.10.100 1 04... 902
5.
मिवावरशणयोः 2. 130, 5.
भित्तावरूणऽ्वंतो १1.4.10;
मिदावूणा 1 15, 6; भ. 63, 9.
निवावरूणा 1 2, 9; 25: 5; 779; 75 5;
17, 4; 11. 20, 5; ४. 46, 5 ; 04.84
9 11.40. 0. 14419
4 7; 42, 5; भा. 23; 50; 25 4;
+ 8; 9, 42; 49; 108, 74; >. 67, 7;
| 64; : 4; 225; ए.
नितावङूणा 1. 142; 6; 15; 157; 7; 3; 152,
3; 7; 158; --3; [. 2 5; 29, 3;
२८, 1; 47, 4; ना. 62, 16; +. 39, 2;
० 47.044; 69.60 4
5; 7; 644; 3; 9; 6935; 4; प
1 ; 36, 2; ॐ ग १९..1;:00. 28; 6४, 3; |
6; 62 5; 635; 64: 2; 4; 65 2-4;
00, 0; 1.0.17 14.
2; 132, 2.
भितावरूणाभ्यां प्र. 57, 9.
मितावरूणो 1. 35, 2; 767,
9. 167, 1; >. 93, 5.
भिवावरूणो 7. 2, 8 ; 122; 9; 139, 2; प. 4,
[रि 2 ।
१८. 00.1:.04:0 ~ 0121-1
00.72.02, ;:
भितासः 1. 157, 2; [11. 58, 4; ४11. 38, 4;
९. 3715, ‰. (
भिविण॑ः 1. 148, 4; भा. 35, 12.
भिवि्यः भा. 10, 8.
मितिर्यात् 1४. 55, 5.
मिवे 1. 52 5; ए. 44 ५; 49, 5; 79
18. 671, 9; >. 36, 12; 132: 5.
नितं 1४. 39, 3; ४. 3, 1.
भिवेरून् 1. 174 6
मिच्यं;ः 11. 6, 7.
मिव्यं ४. 85, 7.
मित्वा ५02;
मिषः 1. 26, 9; 68, 4; 119, 3 ; 744: 3; प.
24 3; 4; 56, 6; ग्वा. 58, 5; 56, 2;
ठ. 169; 4.0; 2.14 33
2; 68, 10.
मियःऽसंवद्यपेभिः 2. 67, 8
निथःऽदुरः ४1. 26, 4; 2. 76; 6.
मिघःऽतुरं ए. 49, 3.
भियती इति ४. 93, 5.
भियतीः प्रा. 25; 2; 9.
मियत्या ४1. 48; 3. |
मिचस्युध्यां ऽइव {. 166, 9. र, 2
मिथुं {. 162, 20; ण. 18, &. 1
भियुऽकृत ~. 702, 7. | 4
मियुऽ्टशां 1. 29, 3; 1. 35. 9 (
मिषुना 1. 85, 3; "44: 4; 259; 4; 75: 2;
1. 39, 3; णा. 104 23; एव. 33" र
क, 0 94.104 40 2734. ~
8; प्रा. ॐ5, 4;
ष क्र ४३२ | भिषुनाः -- मिम्यक्ष. ।
४ मिथुनाः 1. 757, 3; 1४. 45 1, भिमाथां प. 4, 4.
मिथुनानि ([. 54 7. भिमानः 1. 50 4; 11. 10, 2; क. 84; 2.
॥ | | भिषुनासः 1. 164 7; ४. 43, 15; द. 97, 37. निमानं ए. 2, 3.
. भिषुनो 1. 79, 3; उ. 88, प. मिमाना ४1.62, 2; णा. 18, 75; ॐ, 17०,
+ ` भिपुया ए. 704, 3. मिमानाः र. 56, 5.
1 . ` भिनत् ष.27. ` | भिमने इतिं 1. 146, 3. |
1 | मिनत् 1४.3० 23; णा. 32, 5; णा. 28, 4. मिमाय 1. 164 47; [. 15 3; बा. 55, 5; ।
1.1 भिनतीः ९. 108, प. >ढ 13; भ. 78, 76. ` ॑
| मिनन् 11. 15 3. भिमिष् 12. 107, 6. |
भिनन् 12. 61, %. मिमिस्ः ए. 54, 4. .
भिनंता 1. 77, 3. मिमिष॒ं 1. 22, 3; 34 3; 47, 4; 157, 4 |
[ सि |
भिनति 1. 38, 9; प. 5, 4; ए.80, 2; ए. | मिनिसृतां 1. 22 13; ए. 7०5 | क 4
67, 9; भव. 93, प्व; २. 898; 9. मिमिक्षति 1. 142; 3. 1
भिनति 1. 09, 4; 1. 24, 12; 58, 7; 7. ०8, | निमिः ए, 61, 18. (."
32 8 2 56, 1; | 59» 5; 69, 4; (1 सिभिन् ५1]. 20; 4 | |
। „6 9५. 1130 114; 3; 10.51; भिभिषिरि 1. 84 | 6 ; 3. 96, 3
(शः ; इ. 10, 5; 94, 23. ~~ -- न 0 |
(५ + 9 ^. मिमिषुः ए. 29, 2; इ. 104, 2. |
भिनेवाम ४. 45; 5. ण ष ~ श्न |
ति छु; +. 9 +> (> 4; " 5०५ 59; \+^. नः
निनाषि 1. 9 य; ए. 7 4; णा. 364; | शद 9 7 4 |
84, 4. | ।
मिनाति 1.73; 10;. 235, 9; 724 3; 7. 12; = भसे | |
5; [अ 30, 22; ए. 39, 2; प्रा. 88, मिनि 11. ॐ 11 „१ |
3; >, 86, 26; 9, 3०, | | मिभिष्व 1. 48, 16. | | |
निनानः ४. 42; 74. भिमीतः प. 76, ४. | 1
| भिनामि >. 24, 8; 48; 27, ` मिमीतं 1. 120, 9.
मिनीमसि 1. 45 7. | | मिमीतं 1. 120, 9.
मिनीमसि 2. 134 7. | | मिमीतां ए. 5, गय.
मिनोहु +. 18, 0 | मिमीति ए. 12, 70-12 ; 13, 3० ; 1-3. 102, 4.
भिन्वन् र. 25 ० | | | | | मिमीते १164 24; 5; 2717.
मिनन् 1. 2 | मिमीयाः 7, 56, 2
मिमते 1. 164 24; 7. 97, 9; उ. 114, 5. : | मिमीयात् +. 09. श
को क ` इवत
निनी 12.24 4८. | ४. भिमीरि 1. 38, "4. 4
मिमय 1. 29, <. ~ ॥ ॥ मिमीहि 1. 1, 25; 4 22; ए. 4 2; प.
[क ।
0 0 मिमाति 1. 64 28; 29; क. 64 9. | 93; पा 10 ^
६. | १ मिमाति 1. 38, 8; 12. 69, 4. 1 [निषु 04 4 + 0 ¦
मिमाते इतिं १11. 8२ 6. निनय
भियेधः - मुदीमहि ४३३
भियेध॑ः 1, 777, 4; 1. 32, 12; द. 70 2.
मियेधे [1. 19, 7; 5; णा. 7, 7.
भियेधैः ए. 51, 212.
भियेध्य 1. 26, 7; 36, 9; 44 5.
भिरा २. 95; 1.
भिपतः 2, 190, 2,
मिषति 111. 29, 14
भिषतत 1. 164; 28.
भिता ए. 25, 9.
भिति {. 72; 4; =. 10, 8.
मिहः 1. 79, 2; [1. 31, 20; ॐ. १३5.
भिहः 1. 37; 17; ४. 32, 4
भिरं 1. 32, 13; 38, 7; 141; 13; 71. 3० 3;
"१111. 4, 4; +. 3739.
मिहे 1. 64 6.
मीदू; 11. 33, 14; 1. 26, 3; #ाा. 799.
मीदुः 1. 4 3; भा. 76, ¢; 1. 67, 23;
85; 4; 1735) 2; >. 85 25; 45.
मीदासः ए. 25, "4.
मीढ़न् 1. 27, 2; 7. 24 7; (द. 747; 9;
29; 107; †.
मीमयत् +. 24; 22.
मीमुषः 1. 31, 16.
मीय॑ते 11. 8, 5.
मीयमानः (7. 8, 3.
मील्ठहःऽतमाय 1. 42: 7.
मीट्टहुर्यः 1. 155 4; 169, 6; 175: 2; 1. 8:
1. 11.11.410; 4.1.21
40,.4; 58; 5; 9, 29, 78; 102, 72;
र. 188, 2.
मीढ्टहुषां ४171. 20, $. `
मीव्ठ्हूषी ४. 56, 9. |
मीव्ठहुयं 1. 2291; 1536. 6; 4१४. 25:5४;
1.2.174 1.40 1 ० 1.9
। 2; ग ए; श. 46; 7.
मीट्टहष्मतीऽङ्व ४. 56
मीव्ठहुष्मतः ४1. 5०, 72.
जनन
मीट्टर 1. 100; 77; भ, 46, 4; 7३. 106, 12;
104, 71. ।
मुत 2. 87, 19.
मु्ीजंयाऽडइ्व 1. 125, 2.
मु्ीय ए, 59, 12.
मुखतः [, 162, 2. |
मुखं ए. 75 15; इ. 9०) 17; 12. | |
मुखां 1. 9, 6. | |
मुखात् 2. 9०, 15. वि 4
मुखं ४111. 45, 29.
मुग्धः ४. 4०, 5.
मुच 1. 77; 4; 7. 35, 3; 45 ण; ए. 4०, ग.
मुचः 1४. 22, 7.
मुचत् #111. 24, 24.
मुच्वं 1. ग्व, 1.
मुचाति 11. 38, 3. |
मुचाते >. 20, 71. (न
मुचीष्ट ४11. 59, 8. |
मुच्यते कर. 27; 24.
सुच्य॑से 1. 37, 4.
मुचं >, 94; 74 ; 160, 7,
मुचत् 111, 33: 24; 55 ग्य; ४. 12 6.
मंच ¶1, 74; 3.
मुंचतं ए. 78; 5; ए. 74 4.
मंचे ४१.५2.210;
संचयं 1. 34; ग<.
मुचयः 1. 117; 3; 9. 14; 5.
सचति 1. 28; 4.
मुच॑तु 2. 97; 26.
मुतु +. 97, 25.
मुचसख ~. 38, ‰.
मुंचामिं -‰. 85, 25; 61, 7.
मुचामि +. 85; 24.
सुंजऽनेजनं 1. 767, 8.
ब्दा १1.07. 1
मुदीमहि पा 1
59
मुद्रलः 2. 102, 5; 9. + | मुष्टिः प्र. 47, 3०. + +
५ मुदलानी इ. 2०2, # | बुटिहययौ 1. 8, ५. [र
| ( | मुदकानी 700 0 | बुशटिऽहा ष. 58, 4; ४. 26, 2.
=. मुनयः ¬. 730, 2" | | मुषिहाऽडव ४111. 20; 20.
. . 1. 45 4; प्र 555 , | मुष्कयोः +. 38, 5. =
1 बनि. 26645 ^ ९ षन् 11. ००, 6. | |
१; १.५, | ( भुनिःऽ इव 1098 56, 8.. & | | । | | मुहं ॥ 8 20; 9.
1 मुनीनां प. 17 4 । | | मुहुः 1.45; ए. 5453; पा. 24, 5; ४11 20,
मुमुकतं भ. 971, 5; 5. 161, 7. | पा. ब, 1; 27, 6; इ. 1009; 27; 2
मुमुदमाणाः द. 112, 9. ` ः 1
ममुः 1. 140; 4" . ` | मुहःऽगीः 1. 148, $.
त बमुग्धि 2. 75 ए. नि | मुहुके 1४. 16, "7.
व मुमुग्धि 1. 24 9; 25; 27; 11.260; 1.0; मुहुकेः 19. 10, 12.
(1 1 4; ४.४}. | || सुहा. 33, 5; 53, 8,
मुमुचः [11. 47, 8. | | मुहे ४1. 18, 8.
८ नरे नि | गुहु उ. 8,6. ` |
0 1, _ | मूर द. 95, 23 ५५“ * |
0 मुमुरत् १111. 97; 3. ` | मूर॑ऽदेवाः ए. 104 24.
मुमोु 1. 24; 12; 72. | 3 ५ | मूरऽ्देवान् +. 87, 2; 14.
मुमोचत् पा, 88, ¢. [र ` | बूरः 1. 43, 6; प्र. 26, 7; ण, 45 23;
मुमोचत ए111. 67, 74. = | >. 4; 4; 46, 5.
मोचं ४111. 86, 1, | मूरास पान. 41, 75
मुमोचति 17. 28, 14. . | मूर्ेन् 77. 32; प्रा. 45 ऽग; 1. 76; 7
मुमोद इ. 8, 2. | ३ 7 | 4: ॐ. 88; 5; 1254.
मुरः प्11. 66, 2. मूषैनिं 1. 3०, 19; 54 5; प्रा. 7, 6; ४" 7९
मुरीय ४१11. 704 <. = _ | ` 3; 469 3; (52 |
षाथ 1. 44 मूषी 1. 45, 9; 59, 2; पा. 44 6; 75 4; " च 0
मुषायः 1४. 3०, 4; ४1. 32, 3. क. 207; 3; >, 88; 6; 552 4; 159; 2. ध = 1
मुषायत् 1.67, ` 0 मधनः ए. 67, 73; 1. 698. | 0 |
| मुषायत् ४71. 18, 19 मूधोनं 1. 24; 5; 764» 28 1; > 14;
मुषायति 1. 252, 9; पर, 44 4; ए. ०8, १. । १6; न. 7 ठ (र. 983; १9.810 4
वयत् 67, 0; 266 5. क 0 1.
| णयत् 9 | बी णा 9 | ध
[1 शुषि 2. 606,10. 4 भूख र 8 ५ 1
न
मृक्तऽ्वादसे 9.78, 4.
नुस: -- भृश्रऽवाचः, | | | ६२५
भृः 1४, 30, 13.
भुत ४111. 67, 9.
मृतं 1. 34 71; 157,
मृषा ४111. 74; 74
मृिणीषु क. 98, 6.
मृक्षीष्ट 1. 147, 4. |
भगः 1. 38, <; "45, 5; ग54 2; 175; 2; 190,
4.1.711 4.24 1;
911. 82, 6; "22, 8; 12.22 4; 9
6; =. 86, 3; 22. |
मृगस्य; >. 4०, 4.
पूणं 1. 8०, ¶; 205; 7; 7. 33; 77; #, 29, 4;
न 120 2.04.4.-30:.09. 9.
मृगयते प्रा. 2, 6.
मृग॑यं प्र. 16, 13; क. 49; 5.
मृगयसः 7. 38, 7,
मुगयस्य #11. 3; 79.
मृगस्य 1. 182, 7; #. 32, 3; शा. 93, 14;
इ. 724; 4
भृगाऽइव ०444
मृगाः 11. 34» 1.
मृगाःऽईव 1. 64, 7; 1४. 58, 6,
मृगाणौ 1. 190, 4; द. 96, 6; >. 156, 6;
1446; 6.
मृगाय ४. 34, 2.
मृगासंः 1. 197; 4.
मृचा ४11. 67, 9. |
मृतिं 2. 6,5; 8.4; 158; 77; 67, 7;
| 66, 9; 72, 2; 86; 4; 92,
मूरति 1. 46, 5; ४. 1, 7; 43° 4; 2. षः
7; 29, 2; 46) 6; 63 7; 26; 64 23;
68, 7; ‰2 7; 84; †; 86, 24; 96..2 ; 147;
' 04, 29; 10» 24; 106, 14; 27; १.
१०0; ध... |
` मृजानः 1. 96,"10; 20 ; 700, 22; 709, प
मृनेप्. 5५ ग स. 160, 4. ॥
„< ्रन्े 43 ० 1645 8696...
मृज्यते ४. 1, 8;. 1. 3 .3; 68, 9; 9, 5;
99 ¢
मृज्यमानः 13. 20, 6; 3०, 2; 36, 4; 64, 13;
65; 6; 70 4; 74: 9; 207; 24; 2. 69 7.
मृन्यमांनाः 1. 64, 5
मृज्यसे 13९. 56, $.
भजत 12. 24; 2; 05; ०6
मृण 1. 20; 5; 133; 5; 7४. 16; 12; #ा. 44
7; \11, 104; 22.
मृणन् >. 84, 3.
मृणसि 2. 87, 19.
मृणीहि 1४. 4 5
मृतं 1. 113; 8.
मृतस्य 1. 164; 30 ; >. 18, 9
मृतैः +. 78, 3
मृत्ऽमय ४11. 89, 1.
मृत्यवः 1.4.
मृगयवे 7. 48, 5; 59, 4; 60, 8 ; 72, 9; 165: 4
मृद्युः -. 7121, 2; 129; .2. ि
मृदयुऽबधवः #111. 18, 22.
मृदु ऽ बभुः +. 95, 18.
मृदुं >. 75 4; 28, 4.
मृत्यो इतिं द. 18, 7.
मृत्योः ४1. 59, 12; +. 18, ^
भृयाः ~. 95; 75.
मृधः 1, 131, 6; 158, 22; 182, 4; [- 18 4;
22, 3; 23; 18; 28, 4; 1. 47, 2; 2
3 0; 1 53; 42 60, <) 2 ॥(॥। 43; 3 3
11. 45, 4०; 675 13; {5.4 3; 49 7
61, 45; ०6; 63, ०4; 85, ०; 86, 6; 97, `
45; क. 60, 77; 84; 2; 98, 12; 152 3 ;
थ 4806, 9;
मृधाति \1. 25; 9.
मृधि 1. 174, 7.
मध्याः 111. 54; 21.
मृधऽ्वाचः 1. 274; 2; प्र. 29:70; श. 6 3; ॥
क, 22; =®
व ४३६ | | भृध्ऽ्वाचं --मे,
+ मृथ्रऽ्वाचं ए. 32 8; भा. 78, 14.
मृभाणिं 177. 43, 26.
५ | मधेन्यः ए. 44, 30.
| मृक् 1. 94, 12; 114; 2; 10; 7. 33; 72; प,
। 97; ए. 47 0; भा. 89, 1; +. 25; 3.
। मृच्छ 1. 26, 12; 714; 6; 1, 2/7, 14; 33; 74;
4 णा, 09.1.41, 49,.0...00,-20;
५ वि +, 769, 7. -
5 ` मृक्छतं 1. 71, 4; ४. 559; 57 8; ए. 50
419; 1109 1. 18..19;
| । >, 34 14
1 मृक्छतं 11. 29, 4; णा. 6;, 19.
मृडतं एन्. 74; 4
शृक्छतां >. 95; 7.
५ गृछतु 1. 779, 5. |
1. बृरठतु +. 50, 12; भा. 56,
1 छ ृक्छयं ४1. 89 7; णा. 45; 3; 48, 8; स.
59 6. | | |
मृत्य 1. 72, 0; | 25; 79; णा. 45, 147; णा,
1 । 80, 1; .08,.27; ` 14 6, 5 -02;. 4 1,
५८ | 33, 3; 125; 8.
| मृक्छय॑त 11. 29, ५.
भृठ्छयत्ऽ तमः 1. 94: 14.
मृक्छयत्ऽत॑मा 1. 114, 9; ४. 73, 9.
मृक्छयत्ऽभ्यां 1. 16, 2". |
मक्छयंतः 1, 107, 7. |
4 मृठ्छयती ४. ५1. 18.
न | मृक्छयतु 1. 2512; 169, 5; 773; ष. 57, 2.
1. = मृक्छयक्रुः 1. 33, 9; णा. 29;
५. 1 मृक्छयाति 11. 47, 17; पा. 87,7.
1. | मृष्छयाति 2. 6, 3. `
| 1 मृ्छयांसि 111. 6, 25; 95 $°,
1: 4: ` भृच्छात् >. 108, 6.
मृक्छातः 1. 17 7, 1
मृच्छति 1४. 43; 2; 57, 7; इ. 64
मृव्छीकायं 1. 25, 3; 5; प. 5० ग; ॐ, 150 स
1-3; 5,
मृच्छीके ४1. 48, 12; भा. 48, 12.
मृश 72604. .2116; 41.09.
मृशते 1.14. 4
मृशति 2. 34, 4
मृशसे 17. 20, $,
भृशखं ४171. 70, 9.
मृशामसि ¬. 13; 6.
मृषेत ४11. 18; द.
मृषा 1. 79, 3.
भृष्ट 1, 140; 2; 104
मृष्टः 15. 82 2
मृष्टाः 1. 22 4.
मृष्टाः 111. 33; 8.
मृष्यत ए. 64, 7.
मूषे ए. 22 र.
मे 1. 20, 9; 28; 20; 24; 25; 4; 26-79;
॥ 50, 12; 93, 7; 105; 7-18 ; 210, 7; 7147,
28; 7202-4; 6; 144 23; 246, 1; 9
110: 11.
2609, 1; 765, 43 164. 0; 34 ~. 264;
4"; 10-123 ; 187, 47; 183; 5; 184; 2; 1.
५... .:.0 710. 2.4.-7;6.7
15; 27; 2; 28, 5; 10; 3० 7; 32 7;
391; 300; 40 54.4.14.
26, 7; 35 5; 38; 8; 45; 5; उ 2; 53
3; 26; <4 43.106; 073 55 3; 5;
62, 2.4 1४: .55.6.:8; 8; 2; 42; 4.45
24) 10; 32; 24; 478; 9; 9.25; 8;
129 33 45; 18 5; क 7; 2; 4; 29,
3; 30 2;. 32 71; ॐ 9; 36, 3; 41; 25;
17; 42 2; 46; 6; 52 12; 165; 74;
54 3; 54 75; 56) 2; 67 9; 10; ५
ग 78: 045.7; 74 ; 78 >; # ० 6" |
ध ग्व; 26, ठ; 47, 3; 49) 5; 5
ॐ ॐ
` मेघः-- मेषं, ४३
13 29; 3; 44; 1) 62, 5; 63; 3; 64; 5;
109 09.2.20 225 1-3-46
2--4; 80; 4; 99, 7"; भा. उ, 62; 3; 22;
2; 42; 5 3; 38; 6, 32; ¢ 9
; 23, 27; 4; उ; 79, 26; 35; 3;
29.1.22,14; 2.242.477
32; 6; 23; ॐ» 4; 43; 76; 2; 44: 2; 46;
207; 5०, 3; 54 4; 55 3; 56 3; 67
10.4.09 1८2; 06. 224 73.-75;-89;
4 82.6.98, 2.9; 0.8.229;
93 715; 1009 2; 5; ए 1; 7062; 19;
^ 071; 11; 2. -12,4; 24620 2;
3...) 1; 6.4 202; 4; 6
3०, 9; 32 3; 34: 73; 39, 6; 4 5; 43;
; 2; 48; 5; 9; 5 2; 4; 8; 5ॐ
१04 0.2.014 ° 16.0
62 7; 64. 2; 64 2; 22; 65; 133 66,
710; गढ; 70, 20; 75 5; 83 7; 86, 5;
0101070. 0.7.11
0, 4 44.11 7004-7 79
१.3. 00 11.747. 2.
मेधऽसातये 1. 729, 7; पा. 66, 8; णा. $
18; 40, 2; 69, 7, त
मेधऽसांता 1४. 37, 5; णा. 94, 6; 3.24; 3.
धऽसांतो 11. 72, 5 |
मेधसांतोऽडव ए]. 103, 3; उ. 64, 6,
सर्धस्य ४111. 79, 2.
मेधा १..६3;.3; 104; "4
मेधाः 111. 58, 2
मेधाः ए. 52, 9
मेधाऽकारं 2. 97, 8.
मेधाभिः 12. 65, 16.
मेधां 1. 28, 6; 71. 34 7; प्र, उ, 4; 42, 13;
णा. 0.7 0 0.22 01012
मेधिर 1. 25, 20; 1. 2, 4. ` |
मेधिरः 1. 37, 2; 102) 14; वद; 42; 142, 77;
11.43; "43: 1294; 1.
68, 4 ; ॐ. 700, 6.
मेधिराः 1. 17, ¢; णा. 38, ५.
मेधिंणशणं >. 89, 70.
मेधिराय 1. 61, 4; णा. 84, 4.
[*४।
[न
॥ 9
745 2; ५; 150; 2; 759, 22; 266, मेधियसः प. 43, 79.
2; ऊ. मधं ४111. 6, 44; 50, 1
ए मेधः ४.10 धष 1. 1#; 3.
मेतांऽस्व 1. 6, 2.
मेथामसि 1. 42, 710.
मेथेते इति 1. 113, 3.
मेदः {11. 27, 5.
मेदी ¬+. 93; गए.
मेदनं ‰. 69, 9.
| मेद्यय् ४1. 28, 6.
व 7 भ. 11.2.14.
मेद॑सा इ. 16, ¢.
मेदिन॑ः +. 38, 2.
मेदी र. 84; 6.
मेचेतु 11. 37, 3
मेधंऽसतियिं ४11. 8, 20.
मेधपतिं १1; 4.
५ अभ 14 0; 102 0 ।
0 मेधया [प्र 23; 10; ५11. 104; 6; 15. 269 ३. |
- भेषभ्यु 1४.58, 3 | |
मेध्यं ऽसअतियिः 7. 56, 10; 77.
मेध्यं ऽसति 1. 36, 27; #*11. 2, 4५; 49, 9.
मेध्यऽखतिे ४11. 7, 39; 33; 4
मेथ्यऽखियेः 1. 43; 3.
मेध्य॑ऽसतिघो ए 11, 57, 7.
मेथ्यांय ए. 7, 12.
मेध्ये ४111. 52, 2.
मेनां 1. 57; 13.
मेनां [. 47; 2; द. णा, 3.
मेनिं ह. 24; 71.
मेने इतिं 1. 62, 7; 9, 6.
मेने इवेति मेनेऽड्व 11. 39, 2.
मेम्यत् 1. 162, %.
मि 111. 26, 9; 9. 73 पा.
नष प 2, 49,
= (111.
0 (1 ध #
४३४ मेषाऽइव -- यः.
मेषाऽङइ्व र, 706, 5. `
मेषाः उ. 92, 14. ।
मेषान् 1. 176, 16; 77५, 7४4; 28.
मेषाय 1. 43, 6.
मेष्यः 12. 8, 5; 86, 47; 2; ण्य
मेष्ये 1. 42, 6.
|
1
१1. 4 21; 63; 72.
मेहनात् ~. 763, 5.
मेहनाऽवतः 11. 24; 10.
मेटनांऽवान् 711. 49, 3.
मेहति 1. 74, 4. `
[कि स,
मेतावषहणः ४11. 32, 71 |
# 7 ।
मो इतिं 1. 38, 6; 5०, 3; 15 3; 159, 8
175; 12; [. 28, 3; 1. 5 2; ४.37,
13; 65.6; पा. 32, 7; 59, 5; 89, 7;
ए. 2, 20; 5 14; 92, 3०; 203; 13;
वद, 114 4; इ. 28, 13; 2; 29; 59, 4; 8.
मोकी 11. 38, ॐ.
मोधं ४11, 104, 14; १५... 5, 6.3. £247;.6.
मोधं 2. 265, 4.
मोदते >. 5०, 5.
मोदते 77. 5, 6; प. 83, 9; 12. 77, 3.
मोदं 2.97, ६.
मोदमानाः ४. 4, 6.
मोदमानो र. 85, 42.
मोदसे 2. 118, ४ 4,
मोदा; [2. 119; 11
मोष ४. 54, 6,
मोषीः 1. 24, 7 7; 104; 8.
मोदित्वा २. 169, 6.
मोजऽवतस्यं र. 34; 7.
माजाः 1. 107, 3
मोनेयेन 2. 156 3
य
यसत् 1. 96, 83 20 2; ग्ग 5; 2189, 6;
790, 3; 4; ४. 25 4; 5; 546; ४.
14; 1.10 1 -~.107.4. 11.42,
2; >. 97; 38; द. 42 8; 728, 8.
यंसतः ४1. 44, 5; ₹. 66, +.
यंसते 1. 80, 3; 743, ¢.
यंसन् 1. 9०, 3; 756, ¢; णव. 75 र्यः द,
` 66 &.
यंसि 1. 65; 8; ४. 36, 4. ;
यंसि 7. 42, 9; 67, 2; ा. >, 22.
च 44.1.10; 9324
11.44.227
5; 6; 7; 125; 15; 3 2; 35 6; 36 4;
16; 39 8; 4० 2; 4; 42 2; 43
5; 48) 77; 54 2; 2; 56; 4; 64 ए;
67, 4; 5; 68, 3; 70, 2; 3; 7» 6; 9;
75 7-3; 742 2; 77 7; 2; 78 4; 79
1410459 1.940.101 .0..5.
97, 14; 205 94: 2; 3; 8; 29; 94 2;
004 0-441-40
10.11 10 10 1-722-11;
१०29-0 -1214.-29. 110, 0
10.14.51 9.20;
100 130... 11.11.
11; 142; 4; 9; 744; 2; 47; 4; 5;
149, 4.5. 3; 5 गुः 7; 154, प 3; 4;
55 4; 756, 2; 5; ग, 6; 16९, 4४;
761, 2; -4.;. 72; 1622०. 2639. 9: २६4,
“05.04 16 1.18; 22; 22 39; 494; 164,
7; 175; 5; 106, 2-4; 187, 3; 289 3;
763, 7; 3; 0 2.35. 1, 4;-9; 4:
1. 3-082-41, 1:24 द; 4 6
(ध: 9“; 10... 1... १३ 14
15. 2-6;.1-1..8; 42.31.59 5;
7 प्व; 77; 2; 4; 194; 29, 2; ॐ 24;
4; 6; 7; 4; 246; 2; ग्य; 14; 25; 3;
4; 27, 12; 5; 28, 1;
५५
5; 083; 32 8; 15; 34 8; 36, 7; ॐ,
42: 7; 49, 2; 57, ग्व; 53; 22; 27;
59, 2; 7; 62 9; 10; वष्र. 2, 7; 6; ‡#‡
५.04... 9.94;
7, 4; 91; 7997; 2; 754; 16, 5; 16
17; 4; 45; 8; 9; 7; 122; 20, 90
21, 4; 5; 0; 22 व; 3; 24; 6; ¢; 25;
4; 29; 2; 4; 3० 22; 55 6 ; 38, 4; 39,
3; 4 1; 2; 4; 44 7; 45; 7; 5 7;
7; 9; 58 6; 54 7; 56, 3; 58, तठ;
४ 7; 2; ॥ 9; 4 10;.9 7; 2 ¢; 9;
9० 4; 726; 213: 3; 7 3; 18, 7; 22
22; 7; 25; 6; 24, 2-4; 20.1.15. 32.
3; 35 2; 34 2; 3"; ¢; 35, 2; 35, 7;
06: 401; 34-5८-47 77.73;
14; 44 8; 14"; 46, 8; 5, 12; 54, 13;
59; 3; 67, 10; 65; 7; 773 4; 87, 3; 82,
01.091. 62
५0401 14.44
0, 2; ५7; 9 3; 109 3; 4; 12 5; 2
4; 24 द; 15; 5; ग्य; 23; 26, 283; 32;
34; 39; 48; 125 45 2; 18, 8:75; 9,
0.2.240 1.2
5; 34; 1 34; 2; 36 9; 41, 3; 44
2; गद; 4ढः 7; 7 140; 46, 3; 4४, 2;
4; 48, 5; 6; 49 5; 75; 5 8; 57,
2; 59 2; 8; 54 7 2; 4; 55 4; 56
४६. 59, 4: 66, २; 20.3६; 57, 4; 62;
9; 62, 2; 4; 68 1 5; 53 9; {°
ध 1 ०.19. 4 1.1
3; 15; 23; ॐ; 9; 4 3; % 1;
6, 4; 5; 79 4; 8 ४ ¢; 3 4; 129 1;
१,22.100. 4 1467
220, 5; 6.8 3.22; 2; -23; 1. 20. 25:25.
5; 32 5: 8; 2; 74; 36, 4; 38; उ;
"449; 55) 6; 56, 28; 24:48; 2;
"दु 9:89; 603; 60 (कयः. 5
64" 4; 602 ब; 68, इ; 7; 69, ड; 7० 2;
644 9; 80 84 4; 854; 86.
87, 7; 88, प 6; 9०2; 966; 97, 94
"अ 7; 7, 28; 102, 24: 304 4; 9
८ ` ५1; 1916 णा २8; 2431 ; |
~ 2; 44.438
४३९
32; 2 24; 34; 37; 39; 46; 5; 29; 34;
38; 6, ग; 26; 74; 8, 15; 16; 19; 72
0.7.91. 18
79544 5; 14; 22; 24; 200 154 27, 2;
0.24; 2210; 42149;
19; 272; 253 25 18; 26, 13; 24; ॐ
8; 75; 397; 2; 265; 32) 2; गा; 18;
1.9.
10; 399 8.; 4०, 6; 43२; 2; 4; 5 ¢;
2; 44.14 4..5..6; 32; 6.
84; 9; 12; 21; 26-28; 48, 702; 22;
1 1.1.
9.111.004 9 2-00 2.8.
09.1.00 10 -3
13; 7 प्व; 13; 75 13; 74; 3; 802;
87, 8; 82, ¢; 8; 84, 95.01.25 02.76;
77; 18; 23; 959५; 32; 95, 4; 5; 96,
00:03 70-10-41
1029 723 102, व 6; 7; 2; 1.0), 0;
12 4; 5; 45; 18, 4-6; 27, 5; 24
4; 38, 5; 39 4; 45 ए; 52 3; 4; 53;
3; 55 4; 67; 71; 4; 9; 22; 69; 11;
76 3 64, 17; 22; 66, 14; 64, 22; 27;
३4 00.4.49. 104 1,
4; 28, 5; 79; 4; 84 2; 5; 86, 25; 88,
3-5; 8; 97, 2; 96, 28; 97; 46; 48;
98, 3; 7; 99, 3; प, 2; 9; ६; ग्न,
1.198.644; 41114... 3
00.2.44... 9:40 12.
11.712 0; 44:10. 9-0-12
0.41. 0 111 104
2 1-3; 243; 5; 24; 3; 26, £ ; 7; 2479
॥..31-0 144.11.;.24;.29..2;..20. 29
5० 4; 7 8; 9; 54 4; 354; ॐ |
12; 380 3; 4; 59, ग; 42० 47; 9; 43
5; 44 7; 459; 46, 7; 476; 4935; |
दग 3; 2 34.54) 6. 556; 502:
59, 10.; 60, 3; :62;. 3; 68:65:65 64. - ~
10; 68; 72; 775 6; 79 7; 745; 79;
8.४: 80, 4; 85; 7; 82) १; :823;1 85; ` ५
34;:39 ; -86, 27382; 8 2:36; ` 88...
4; ५9 5 3; 4; 932;
४० यके -- यज.
96, 7; 3; 4; 4; 8"; 97, 45; 999; 16;
100, 2; 1059 53 7; ग, 7; 716; 9;
171, 4; 112, 2; गकम 7; 2; 635 776, 3;
ग्व; 94; 0, 9; 5 5; 8 97; 122
3; 725; 48; 148, ¶; 129 7; 150 7; 135;
3; 4; 59; 756, 5; 744; 4; 147, 4; 748)
5; 752, 4; 160 3; 4; 162 3; 4.6;
164, 5 -ग¶०, 25 214 2; 18, 3; 284
यकर ४1. 27, 18.
यक्तः >. 162, 3.
यक्षत् भ. 10, 2; पा. 10, 4; णा. 39 9;
2.10 1
यकछषत् 1. 739, 16; 114; 3.
3; ए, 9 16; 49, 9; 62, 4; [९ . 74; 2.
य्षृतः (2.0 ४
यकृता ग. 129; 8; 24258; 788, 4.
यक्ते ए. "94. `
यक्षऽदूशः पा. 56, 16.
यदत 1. 132; 5. |
यक्ष॒ऽभृत् 1. 190, 4.
यच् 1१.23; 75; १. 704; +~ 63, 5
यकछषवः ए. 18, 29. | ।
यशस्य +. 88, 13.
यिं 1. 23, य; 4 ८; 7 7; 36, 6; 75
9.11. 6. 8; 26; 4; ४. 20 1 - 0 36
9:24; 45; 4; ४५1. 95; 6; 6, 5;
175. 3.
यकि 1. 105; 714; 742, 77; [. 3 3; 1. 4;
1; 14; 5; 77 2; 3; 532; ४, 28 5;
४411684. १ 3:39; 4;
0444 5294724; 9; 716)
3; 9.
यिन् एा-.88, 6.“ ।
यक्षः ए. 18, 6. ध
ग्म 9 14
यच्छ 1. 222, 9; इ, 97, 12; 237, 4; 163, 75
यष्छस्य 5. 97, 77.
1.1.74;
यच्छ 1. 58; 8
. .-.------------------------~------___~~_~~_~~~~~~~_~~_~
य्यः + 111. 60, 5. | १
यश्यमांणं 1. 125; 4. ` |
यद््यमांखान् †. 173, 9.
यच्च॑ 1. 45 10; ए, 42 र.
यच्च 1४. 7, 5
क 21.141... ~
16, 8; 30, 4.
‡-3
११. .
7102) 5 ;. 214. 1; 4.11;
77; प. 83; 5; ए, 253; 26, 33; 49
ध... +. 98, ८1; 102; 3;
152; 4; 5; 769, 2
यच्छत [. 24, 6.
यत 1. 8५, 12; प्र, 57, 20; 9.46; 9; *
59, 7; "1. 18; 12; 20 9; 36, 4; 4 `
2; >. 153 4; 35) 12; 37; 17; 63; 7; 712.
यच्छतं ४1. 8, 26.
यच्छतं 7. 14, 8; 21, 6; 46) 15; 92, 76; 95;
। 8; प्र,.47, 4; 50, 2०; +. 59 9; श.
74:82, 2.8; 849; 9; 38;
55 27; 22.
यच्छतात् 1. 48, 75.
यच्छतां {1. 47, 20.
यच्छति 1४. 52; ए,
यच्छति ¶, 80, 2.12, 86, 15 |
यच्छतु 11. 5 4; 1४. 32 ग्ड; 556; ॐ
7; प्रा. 7512; ग; भा. 34 2; 47 9;
10.21 00.3.14.11; 4.
यच्छथ्वं # 11. 44; 2.
यच्छेति ए. 60, 8; इ. 100, 4; 185, 3.
यच्छति ४. 75; 6: ण, 9.2: पााा.- + 2,
यच्छतीः ४11. 78, 3. < । |
यच्छतु 1. 54, 20; पा. 39 # | र
यच्छतु 1. 150, 2; ४1, 82 10; भवा. 78, 3; |
32; 23; =. 126, 4... त
यच्छमानाः प. 56, 73. 1 ध | 1
यवसे 1816; 04 {4
141; 1;
यजत -- यजमानाय, ४8१
17 5; 24; 2; $. 76, 2; 47; 207; ८2
५.42 4...
यजत [४. 7, 1.
यनतः 7. 35 3; 4; 59, प; गवा, 7; गय, 3;
०1.14.10 1114 59 0; 44; 72;
४. 508; 77, 4; णा. 10, 15; 2. 59.
3; 86, 74; उ. 92, 7; 99, 7२.
यजतं {. 128, 8; 7571, 7; 1. 33, 2०; ४.8,
1; 46, 5; 67 ग; ए. 8; 49, 9; 58,
+ 01 01.4.08
यजतस्य ए. 44; 20; ए; ए. 2 2.
यजता 1. 34; 7; 7४. 75 8; प्र. 43, 71; 64,
क 4.011.510 4
यनतः 1. 5, 2.
यनां 2. 701, 9.
यजतां ४1. 15, 3.
यज॒ताय 11. 76, 4; 27, ग.
यजंति 1. 26, 3; 129, 5; १8... 140
0:
यजति 1. 139, 1०.
यजतु ५.9.041.
यजेते 1. 37, 15; 180, 3; 1४. 6, 77; ए. 25,
3. 11.13.212.
यजेते ४. 77,
यजनते इति 1४. 56, 2; 4; इ. 7706.
यज॒तेभिः ए. 1, 71.
यज॒तेभ्य॑ः 11. 5, 8.
यजतं 1. 76, 4; 189, 3; ४; [11 14 2; 22;
35 20; १1. 12 2; 25 8; जा. 4
9... 8.
यनतः 1. ग2, 7; 103; 2; णा. 52, 3; र.
3452.
यज॑त 1. 129 ¢; भा. 88, उ; इ. 46, 9; 70;
149, 3.
यजता 1. 108, प; 180, 5; श. 57; 1; 4.
रे ।
# 81
यज॑त्राः 1. 24; 8; 65, 7; 7. 6.8; 57, 4;
भ, 52 73; "वा. 35 "5; 45 4; =.
न |
` यवाः 1. 898; 186, प; गा. 9, 6; 30 6
31, 7; 1४. 12, 6; 9. 5520०; 58, 4; भा.
50, 15; 57, 6; 9; 52, ¢; भ, १; 7;
44.421.
यजवान् 1. 14 4; 1. 5), 5.
यज॑ते इतिं 111. 37, 27; ए. 55; >,
यजतेः 1४. 56, 2; प, 21, 77; पा. 45, ५.
यजथः ~. 106, 3
| रिति)
यजथाय 41.29.7८ 11..4.7.-4.4 0 0
10.91.147...
४171;
य्जध्ये 1. 7, 7; 4, 3; प्र. 9, 5; 24, 5;
(4.
१.2 9.011.119,
यज्थये ए. 39, 7.
यर्जथ्व ए. 2, 30.
वन 4. 3.3 0.2.00
ए; 992;
यजतां >. 128, 3.
यजति 1. 91, 19; ४. 45; 4.
यजतु ~. 128, 4. |
यज्ते ४11. 36, 5.
यजंते 1४. 24 5.
यजौ 11. 5, ¢.
यन्मान् *11. 37, 26.
यजमानः 1. 24; 77; 1. 7, 15; 6,41.1
१; ५४.102; 191,12 1.1.41.
यजमानं 1. 130, 8; 756; 5; ४. 45; 2,
128, +,
यजमानस्य 1. 57; 8; 108, 4; 1. 2, 7; 3०,
9 9,3.41 12.
60; 15; (4. 54, 2; भा. 19 18; 58,
1; +, 40, 14; 49, 7; 716, 8.
यजमानाः 1. 124; 2; र. 45; 717८; 57; 4
यजमानात् 1४. 70, 7
यज॑मानाय 1. 81, ०; 855; 9०, 3; 95.४7; गा. |
1 3; १. 2656० वः. धा. 1526
१1.16.61. 35 2 1 59,
4; - 27, ग; 100, 3; 199 6; पठ
2; 1475; 4; 182
ञण
र च | यजमानाषः -- यज्ञ. |
१.0 11.1.40. 72 4
+ 12, 2. 52 2; 42; 9; 2193; 9.
` यजुः ४111. 42, 8; क, 12; ४.0.919 5.
१०१, 4.
यजुषा ४. 62, 5.
यजे 71. 9, 3.
यजेत ए. 6, 9.
यनेथां 2. 709 7.
यज्ञः 1.16, 10.34. 1041214
1173-1; 100 4; 2833; 7; 1६8, 2
। 1 यज॑मानासः 11. 18, 3; ॐ. 160, ए.
यजमाने 171. 29, 8; 11. 97, 2.
८५ यजमानेषु ४111. 59, 4; +. #, 9.
जसा (11. 40. 4
यज्नसि ए. 48, 4; इ. 91, 71.
4..." यजति द. ६ | |
यजसे ¶111. 25; 1.
५ , कछ शभे
अर्नस्व 11..9; 4; 26, 2; भा, 17, 2;.2; 4;
४. 423; "0. 23; र `
यजख 1. 16, 5: 11. 16, 4; 1. 7, 22; णा.
त, १.9.000. 1.10 0.0:
यजात् 2.
यज्ञानि ए. 31, 1. |
यजाति 1.10. 11. 4.11 407
2 5: 95, 78.
यजति प्रा. 100, 7; पा. 37, ए.
यजाते 111. 55, 77; पा. 47, 75.
यजाते 1. 84, 18.
यजाम 1. 207; 13; ए. 6०, 6,
यजाम +. 124; 6.
यजामः 111. 32, ¢. ` |
यजामसि र. 142, 3.
यजामसि 2. 732, 2.
यजामहे 1. 75, 10; 26, 6; 7155; 7; श. 23, 7.
यजामहे 1. 4० 4; 83; 5; 9, 2; णा. 59,
^ 12; प्रा. (०, 2, ५4
यजामहे ए. 52, 2.
यज्ञासि 111. 19. 4; ४1. 41.
यजासि 11. 29, 8; +], 15, 74
यिं 11. 6, 6.
, यजिष्ठः 1. 4, 71; 148, 1; 149, 4; 11. 710, ¢;
9.211.191 0,0.75 .3;
४1. 56; णा. 6९3; द-2 2. 6,.4
यजिं 1. 36, 10; 44; 5; 58, 7; 120, 2; प्र.
7 29;.47,539..2; 9 429. 3.1;
षव. - 29, 3: | 21; 60 7; +. 46, 8
715, 9
1)
[7
712; 2; 32, 122; 9. ॐ 5; 34; 5; 55,
0.1.22. 2, 11.54.491
० 4..04:1~4.1.7.410. 2.41
ध. 011 0.242.401... 74
5; 18, 19; 68, 77; 89, 6; 1.4. 10, 3; 88, भ
04.1..14.12- 4.6 56.56.04
6; 77; 4; 88; 8; 93 8; 106, 5; 6; 105,
8; 104; 6 ; 105 8; 2739; 3.
यज्ञऽकांमः 2. 57, 5.
यज्ञऽ्केहुः 10. 57, 1.
यञ्ञऽधीणः ए. 87, 3.
यज्ञनिःऽकृतः 2, 66; 8.
च ङ
#
यज्ञऽन्यै ॐ, 204#, 6,
यज्ञ ऽन्योः र. 88, 17
यज्ञऽर्प॑तो र. 1/0, 7
यज्ञऽप्मिये ० .120..0; |
यज्ञऽ वभुः 1४. ८ 9.
गह 1. 14; 320; 1. 4; 2936185;
2; 84:14; 154. 34. 6;.20 99 3;
13; 20.16; -345.3; 9; 40, 45:47;
47; 4; 849 2; 97, 16; 19; 105, 4; 7122,
7; 139; 77; 142, 2; 3; 8; 262 4; 164,
9५०. 1194; 148; 0. 1. 1,4.13
5 7; 8; 34 12; 36, 6; 4» 20; वा. 1,
25.092; 3.4.49 :93:9 8 2
; यध ४ 44; 24 26;6 4.
24; 8 ;: 32, 12;: 35;
1४ 9 7; 714,
-- ऋ
यजिषटेन 111. 14, <. ८ ५ ह ५
# 2
यज्ञऽमन्मा -- यक्षियानां. ४७३
नद
[1
५.12. 13; 4; 47; 7; 42; 70; गव;
9.4; $) 19; 29 8; 10; 3 08, 3; 80;
9 ८ £ \ ४ &
568, 7 ; 58; 10 ; भ, 4 9; 5235; ¶; 7
॥।
>
9; ४1. 10, 6; 5; 76; 28; 76, 22; 49,
5 › 41; 1; < 4 19 9 62, 2 69 10
9५.1.19: 5; 27; 2
क
34१ 5; 6; 42 3; 442; 5771; 59, 77;
01; 6; 66, 11; 45; 4: 04.8.29 2; 8;
०६.11.12. 13.11.10
14, 12; 20; 2; 26; 15; 86; ब. 344.
442 8; 40, 18; 49, 7; 57; 2; 58, ग; 59
0 66; ५) 2 7.5; 5 ) 87, 3; 107; 9; 1 5
914 72.006 १8.
5 6; 15; 27 9; 3 71; 36, 6; 4;
46, 4; 52, 4; 67, 4; 62 5; 65, 25
66, 2; 12 ; 70, 8; 73, 4; 74 3; 87, 9;
68, 17; 19; 96; 7; 15; 16; 96; 72
0.201.011 1.2; ५ ;
17; अप्त 6; गढ; 8; 222, 6; 144
128, 7; 150, 6; म्व, 6; ग, 9; 67,
88, 5.
यज्ञऽमन्मा १11. 67; 4.
यज्ञंऽयज्ञं 111. 6, 10.
यङऽयते ४. 41, 1.
यज्ञऽ्वनसः -९. 0, &.
यन्नऽचनस्ं 1४. 1, 2.
यज्ञऽर्व॑तः 111. 27, 6.
यज्ञऽवाहसः 1. 86, 2
यज्ञऽव। हं ४. 12, 20.
यज्ञऽ्वाहसा 1. 75; 71; [४.47 4.
यज्ऽवांरसे {71. 8, 3; 24; 1.
यहु ए. 21, 9.
यक्ञऽध्रिये 1. 4; 7. |
यस्तऽ सह -९. 20, †.
यत्तऽसाधनः 1. 145; 3; 1. 72
यज्ञऽसाधं 1. 96; 3; उ14 4; 128, 2 |
"अहस्य 1.1 7 १7; 4412; 966; 339:
20; 120; 85.264: 1.3.141. 0.
10
3; 27 2; 5; 8; 29, 5; 7४. 56. 2; प.
17, 2; गड 2; #. 2 3; 7 2; 15; 7;
49, 2; 66 2; +. 15, 5; ण्या. 6, 3;
10, 4; 32, ग; 32; 73, 29; 79 3; 23;
9; 38, 1; 729 12; 84, 5; द. 2 70; 6,
9५.70.000 01022...
6; 542 7; 3; 50, 2; 67; ४; 79 11 925
4.109.910; 2.
यज्ञस्य ऽ यज्ञस्य ५. 1, &.
यज्ञश्टोतः णा. 9, "7.
यज्ञाः 1४. 37, 2; ¶11. 35; 7; णा. 10, 4;
[५ 6/9 |
यज्ञात् >. 57; 2; 9, 8.
यज्ञान् 11. 96.
यत्ताना 1. 44 3; 76, 3; 7. 235; 53; 4;
19, 11..0.9-76.2 1.4 72;
91 24.40 :2;
यज्ञायं 1. 93, 6; ०4 9; 777, 2; 1. 39, 15;
39 8; ४1. 42, 7; ४1. 99, 4; णा. 12,
00 21.1.17.
यज्ञाऽयज्ञा 1. 168, 7; ४. 48, 7.
यज्ञासंः ४.92; ४1. 23;,.8; #ा1. 23; 76;
1, 10.
यजिः 1. 142; 3; 11. 32; 72; ष. 15, य;
, ०,५; शा. 2. 28; 392; 45, 3; 9,
१०. 1111-1 100. 00 4.
1.7; 49.4.86, 9:
यरि 1. 6, 4; 20, 8; 179; 7; 767, 6; प्न.
क ५.211.414 002 010...
48, 21; # 1. 80, 9; 96,.4; -..२24 3.
यक्तियस्य 111. 7, 27;.32; +. |
यक्षियां पा. 25; 7; ॐ. 66, 9.
यज्ञियाः .-142, 9; 1, 4, ध प. ठ. १
92 24; (01 359 15; द 79; 4; 236 10 ४
66, 6 ; 85» 37; 935.3.
यक्तियाः ४. 8४, 9.
यान् 1. 188, 3; 2. पय; 589 1
यल्ियानां [11. 33; 72; 1. 1, 20; 45; प्प
4; ॥ (1 412.1; 63; 3; (9 35; 13;
शे यक्कियानि -- यत्.
शृ; 8; 159, 2; 174; 16; 1. 35; 12; 36
2; [1. 3, 3; 52; 5; 62, 12; 1१५. 50
6; एर. 70, ए; 74; 7; ४1. 72, 4; "3: 4;
18, 15; 20; 10; 23; 6; 24 6; 34 2;
4; प. 22; 20, 6; 97, 7; पा. 793;
द. 4; 9; 04; 7; 165; ग; 04, 4
49, 3; .50;.4- ~
यज्यवः 111. 79, 4; ४111. 63, 5.
यज्यवः {[. 14, 8.
यज्य॑वे 1, 21, 713; 55 6; 9. 475 3; 1. 67;
12; 86, 26.
यज्यू इतिं ¬. 62, 15.
यज्य॑न् ४. 37, 13. .
यज्योः {ए. 23; 2.
यज्व॑नः 1. 13; 72; प्रा. 28, 4; #[1. 32 18.
॥ 59, 6; शा. 96, 4; इ. 4 6; 88, 6
५ | 125; 2.
यक्तियानि 1. 12, 3; 87, 5; ॐ 04; 2.
यङा प. 42, 3; क. 4456; गला, 9
यक्ियाय 1. 2, 70; भ. 12, 7.
यक्तिर्यासः 7. 72, 4; 6; 43; 7; 48; 3; 167
2; 1. 3, 4; 1.6, 3; 5413; 18 ८1
> 2; वा. 35; 14; 39 4; ग. 96, 8
क, 88, 77; 14.
यक्षियासः 1; †2, 6; ४, 67, 16; ४. 49; 77;
पा. 30, 2; ॐ. 78 2; 53: 4
यक्षियांसु ए. 95; 3; ए. 39, 7; >. 132, 5
यज्ञिये इतिं ४11. % 6; 2. 04 74.
यक्तियन ए. 67, 7.
यक्तियिभिः श. 99 रे |
ध १.4 । 14; 5 ॥ 3 3 यज्व॑ने ए. 28, 2. ।
यजियन्यः ५५ 39; 7; 1४. 249 2; र 52; 5 यञ्चुऽभिः 1, 98,.६. र. 06; 5
यक्षियेषु ४. -329 14. यज्च॑सीः 1. 3 1; 2. 47, 2. ।
यक्ते 1. 25; 3; 4; 71०7, 9; 109, 5; 142 7;
3; 142; 5; 185; 9; 111. 29, 16; 35
11.71.423 1 94.100.
10 0.81". 11.90;
95: 4; 97; 7; ४. 44: 13; 49: 7; 767;
क. 145; 205; 799; 10707; 13०6.
यज्ञेन 1. 162, 5; 7164; 50; [, 2, 7; 973 5;
1. 32 4; 13; ए. 55; +. 55;
१.21 4.02 41.31.06
येभिः 1. 24914; 166, 14; १.6, 70; ५1. 2
2:31. 2141; ~" न2, 20; 24;
24, 18; 26; 23; 46; 74; 65; 10; ~.
यच्चंऽसु र. 157; 2; 3.
यञ्च 11, 26, 1; [1.74 1; ४. 25, 14. |
यत् 1. 756; 10; 2; 14 4; 752 10; 42 2
22; 17; 22; 25; 71; 26; 6; 28, 5; 29
1; 5०, 35 15; 375 4; 17; 74; 28; 32 ॥
4; ग-74; 33 5; 9; 56) 23; 37 3; |
5; 6;9; 72; 24; 38, 4; 8; 9; 397;
3; 44 12; 463; 47 7; 48, 10; 15;
50 ठ; 5 4; 10; ग्ण; 5 2; 5; 6;
0--17; 15; 539 6; 7;. 54 4; 5; 55 4;
26, 5; 57, 2; 58 ए; 4; 67५ 71; 15; 75; ¦
~ 62 6; 63; 094. 64; ‡; 659 4;
१4४ ` । 66; :3 1.04; 94. 68.11; ४; 60:54:44
य्ेऽय॑जञे [. 150, 7; प्र. 5 9; पना. 59 ग ९; 8; 723; 6:10; 7497; 70, 2; 79 ४
0041 54.89 94.27; 3 14;--82..3;. 835;
यकेषु 1. 14; 71; 75; 7; 2, 2; 44; 10; 128,
1; 1.2. 61.-10 2. 2444-9. 20; 3;
27, 3; १ 4.2.26; 34; "प्न. 9
7; 37; 2; 39, 4; 4ॐ ए; 57 7; 60, 72;
+#ा, 3; 4.1, 1; 2522; 398; 60
2; 702; 10; ५. 77; 4; 49, 3; 98, 9;
84, 6; 74; 85, 3-5; 7; 9; 8610; 87
4; 3; 5; 88, 5; 898; 954; 94 5;
10; ग्य; 14; 958; 97, 55; ८० ग्य; |
70, 8; 102 1; 105 4; 7; 1०4, 5; 1०6, 55
168, 6-72;. 110.-3; -3; 7119 23; 215; ष 1
15; 24; 1742; 16. 54.13.22; 9 ।
गव, 8; 10; 76; 22; ग9,
26, 3; .4; 2
5; 7; 442 2 ६ 3
3; 4; 55 2; 56, 7; 57; 5; 58; ग; ४.
13.4.92. 1.4. 53-4..4.04
६४५
+ 3/1
130, 9; 5 3; 4; 5" 6; 752, 4-6;
134 2; 136, 4; 158, 2; 159 7; 2; त;
8; 1405; गा; प्व, 7; उणु 43; 57;
9; 144 2; डः 2; 4"; 146; 5; 240, 7;
148; 7; गडा, 2; 32; 152; 1-3; 7157, 2;
1580 1 क-4; इगु 160, 2; 767, 2; 3;
5; 17; 12; 262 7-4; 83 9५ 10; तर;
1. 10109... 4.1
4; 23"; 165; 3; 6; र; ग्ण; 14; 766,
3; 13; 714; 160, 2; 4; 168, 0.4
109, 6; 770, 7; ग7587; 2;:-6; 8; 744
2; 4; 9; 178, 7; 7, 5; 186, 7;
300 14 2. 184;
2; 184; 4; 285; 7; 8; 186, 9; 184,
79; 1, 15; 45; ॐ 3: 201; 7,
18;-4.-91741.. 8 16
3; 1, 1; 3; 9 2; 2०8; 22 4; 25,
4; 5 18; 249; 15; ग6; 20, 5;
742 29 5; 3०, 3; 5५2; 2; 5; 24; 2;
9.19. 34, = 34.11.40 8; 49.94
{1.2 7; 54; 67; 8, 79; न.
7; 1403; 4; 155; 9, 4; 5; 22, 22;
14 04. 6.514.145;
313 17; 32 व; 6; का; 4; 6; 35
7; 9; प्ण; 364; 6"; 8; 9; 389; 39,
1.44 49.448; 429; 488;
9; ९4 30; 555 ए; व; 19; 7, 2; त,
9104 22414493 2
90.0.01 १.111.010 4;
। ` त 3; £, & छ + ८
12, 2; 323 ¢ ; 16, 3 4; 3 14; 14;
77; 17, 19; 26; 78, 12; 20916; 47, 79;
8; 22 ग; 5; 7; 15 4; ०4 3; 4; 8;
५.1.914 14.
23; 22.642 8; 35; 4 1; 3552;
9; 36. ए; 3; ॐ
; 45; 5; 554. 54
+.4;:-4; 44 44..4; 94 ५;
20; 2; 5; 6; .8
5 25: ‰;
09. 470 36
1/1.
; 41 11; 42.65.43; 28; 34; १.6;
4 9; ४ =, 63. 12, भ;
:.18.; 254 224 - 22; 54 6: 2440404
9444. 5.9; 5.122.124
त 109 15; 245; 26 4; 254
29; 33. 24.303 96 14
9; 3० वृ 20४; | |
4 8; 32; ५; ॐ; 1 £. .
710; 5 3; 4; 34 2; 8; 35 2; 38,
2; 39; 1-3; 469; 5; 6; 42; 22; 4; 44;
12; 45 8-10; 4, 5; 48, 7; 49, 4;
55 ए; 7; 25; 544; 5; 6; 8; 1९;
„ 14; 55; 6; 84;
57; 3; . 6, 6; 59, 4;
00.3.0८ 02.90.546. 6
002; 18). ; 4; 4.4; १44;
82, &; 82; 9-4; 9; 84; 3; 8556; ‡;
90300145
0.09: 1.31 19 1 0 1.1
10; 8; 9; 16, 15; 75;
1.
4... 2. 224 2
33; 4; 34 3; 4; 55 2; 5; 356; ठ; 4;
४.4.030 140 0 11
13; 47, 10; 5; 5०, 4; 5; 5.7; 56,
4; 52; 4; 62; 3; 8; 62, 2; 65; 4; 66,
४.4: 02.44 00: ~
„00.4.00. 14.0.11... 1
9.4..0..0-4..4-44..:-3 10,
19..1119.2.624 1 -2;21.26,
ग 26; 1; 2; 271; 3; 28, 22; 94;
3० 3; ॐ, 7; 18; दा; 33; 4; ०; 34
9.40 0-10-4 0. -52 .4
5, 2; 53 3; 54; ए; 55 2} 56, 4; 16;
00.79 ~
04.2.94 00, 2.4; 004;
0५,4-01..094 49 4. 4074:-.1
9.400.440 0.3:
४; 892; 4; 92.24; 3; 94; 94.09:
१6 000 04 010
2; 3; 4"; 5;
7; 28; 3; 26; 5 77; 74; 47; 23.
ॐ ब; 24; 6, ४; 3;.5; 8;.3; 94-26.;
39; - 7;.४;:2;: 4; 5; इव; 143. 2६;.-236;
99 ...11 19; 1.14 य
379 † 6; 1 |
॥.91.2
923,.10.;..31;
96530; 2459;
5 |
0.101.414." 1.4.
॥ 9 । ३, 5 ३, 9 ५ ‰. ॑ ।
10; 9253 5 6 3.99.
| 34, 16 ; - 4०, 7; 429 8; 43:
। 6; 28; 53; 44: 23; 45, 6; ¶; 14; 78
० + 19; 3; 39; 47; 46; 37; 4 16 ; 13;
0.28.
+
142; 48, 9; 49, †; 5०2; 3; 548;
८ त 9, ए; 6; 60 4; 67, 9.;.17;-625.35.5;
५ 8; 63, 7; 65, 2१; 66, 5; 67 6*; 69, ५
५ ॥ि ४ 7 ` ¶ः; 71; 74; 0 5; 714; 12 0; 73935;
ध ध | . | 7.5; 6; 71; 709 6 9 9 83; ४) 9 88
3; 6; 89; 5; 6; 97,6; 954; 5; 4;
10; 96, 5; 12; 97 5१; ग्य; 99, 6; 10
ह 6; 10; गा, 8; 109 26; ` 214 ;" 12.
9
29 ` 4; 4; 5 ; 19; 71; 244 4 ;) 43;
>; 47, 3; 50 2; 56) 2; 67, 27; 64
19; 20; 65; 6; 66, 9; 3; 67, 0
25; 24; 68, 6; 7०, 1; 6; 7५5; 72
2; 44 7; 0; 87, 7; 2; 86, 5; 4;
4; 02; 5; 94: 7; 3; 95 5; 97; 237; 41;
99, 7; 1029 2; 4; 5; 7; 76, 8;.9;
111, 1; 3; 174; 4; ९. 7; 3; 2 2-9; 3;
2; 8, 5; 10, 2; 4; गणु 7, 35; 8;
12, 7; 3; 4; 15, 2; 16, 6; 794; ग;
2; 79 49; 20, 4; 22 7; उण; 74; 28
6; 24; 4; 259; 9, 4; 5; 9; 6;
12; 28, 3; 29; 4; 5० 5; 6; 13; 5
5; 8; ०9 ॐ ण; 3; 4; 358; 545;
35 8; 36, 10; 372; 3; 5; 12; 4)
` प्र; 47, 3; 429; 455; 7; 45 2; 6;
8; 4; 8; 48, 4; 8; 9; 49, 47; 76;
7; 7; 52; 1; 33 54 (: 2; 3; 529; 2;
4.6.58 1 9; 3-689-०४;
59, 8;. 67153; 47; व. 13; 103. 26;
23; 68, ¢; 69, 7; 3^; 4; 79, 9;
7८ 1.6; 8; 796; 7; 75 ण 3; 9;
९; 40 6१ 75 2 3; 45:16, 4; 7:
6; 87; 4.92 5; 800 .3;:3;. 25. 9.
74-716; 3०; 86, 2०; ०4; 872 6; 185;
88, 4-6; 5; 89, 6; 242; 9०, ५; 6;
व; 12; 5; 975; 7; 9; 955; -94
व; 6; 95, 7-9;: 22; 13;:.6; 96, 9;
` 97, 5; भ्ण; 98, ग 7; 99, 356; ग
10 2.5. 12; 1058 3;
५ 17, 7
४४६ | यत् -- यतये.
118, 2; 120, 3; 2979 0; 122 6; 8; 2124
2; 126; 7; 129; 7; 3; 4; 136; 3; 137:
5; 139, 3; 5; 154; ए; 4; 135: 7; 136,
2; ¢; 757; 2; 3; 758; 6; 42; 4; 5;
143; 4; 246; 2; 42 7; 155; 3; 4;
157; 4; 164; 3; 4; 165; 7; 4; 17237;
7187, 7; 2; 186, 3.
यत; [, 22; 16; 19; 25 10; 128; 4; 4
7; 1. 24; 6; 1. 49; 10) 64-14-41;
29, 10; ` 7४. 18, 7; #. 48, 5; +. 4
0.4; 103; (6, 29;. 63, 12;
र, 3, 0; 45 9; 75; 10; 87 2; 85:
37; 120, ग; 129; 0.4.00; | |
यतः 1. 169, 7; भ. 55; 26; 91. 46, 14; 088
` 61, 3; 72 ०4 3; 98, 4; 64: 5; 9;
68, 4; #; 86, 20; 22; 958 7; 99: 8
108, 15 ; >, 777, #
यते ऽकरः ४. 34; |
यतेत ए. 35, 22.
यतति प. 36, 2.
यतते {. 186; 77; [. 16, 4,
यतते 1. 95, 7 ; 98, 7; प्र, 3, 7; 1. 93;
111; 3; >. 75; 4.
यायः प्र, 65, 6. |
यतयः प्र, 74; 2; ४1, 67; 3; 10
यान् ४. 48, 5,
यततां प्र. 59; 8,
यतते 0111. 45, 4
यत्ते 1. 163; 10 ष, १6,.5;.49,:2.; 3. 29;
8; 977.
यतं 12. 34, 3.
यतमः 2. 87, 8; ग.
यत॑मानः प्र. 4, 4.
यत॑माना क, 62; 17,
यतमानाः 1. 122; 12; 711, 58, 8; ‰. 18, 6.
यत॑माने इतिं >. 15; 2, 3“
: अमानो ह, 19 4. : 0 1
मयः ए, 6, 28;. 2. 77,
यतये $, 131. `
० ~ ~
यतरत्-- यथा. 889
ˆ-~--~--------------------------------------------------------- -----------------~-------------------------~-
यतरत् 9. 704, 212.
यत ऽरश्मयः ४. 62, 4.
यतऽ 1४. 2, 9; 72, व.
यतऽख्ुवः 1. 1425; 1. 34 7; 11. 25; 8, 9;
2118 , "11232416. 24.-4,6
यतऽस्रुचा 1. 83, 3; 108, 4.
यत ऽसे [. 142; 7.
यतस 0700
यत्ता 1४.63.
यत्ानः 1. 9, 30.
यर्तानाः 111. 8, 9; प्र. 33, 710.
यति ए. 45, 4; 2. 15, 13; 18, 6; 63, 6.
यतिः र. 07, 4४.
यतिंऽभ्यः 1. 5, 9.
यत्ऽङव 1. 164, 30.
यती ४. 45 7; 59 2; ग. 95 2; >. 4०, 5.
यती ऽईव + 11. 76, 3.
यतीः 19. 2434..0:014- 24 2.
यत्तीःऽईव ध्र. 53, 5.
यत्तीनां 1. 158, 6,
यत्तीपुं 1४. 38, 7.
यवनस्य ४. 44, 8.
ये {. 41,4; 188, 2; प्र. 20, 4; पा. 2, 26;
ए. 653; 243; 2705; ड 7६, ५.
यतेते इतिं ‰. 13; 5.
यतेम ४1. 1, 10.
यतेमहि $. 66, 6.
कौत इतिं पया. 93, 5
यत्ऽय॑त् \111. 61, 6
यत्रं 1. 12 5; 2० 4; 25: 18; 28, 1-4; 83
6; -50, -ध; : 12; 165 15 2; =37,.9;
2395 7; 135 7; 1576; 1545; 8; 169
4; 164; 2; 3; 2; 34; 50; 166; 6;
288, 4.41. 24; 8; 71. 1, 8; 7 5;.37
५; 32 14; 395; 535; 549; 55 12;
क 81 4 9; 309 4-6 58 9; श्र ॐ 10
५ 44; 9; 50, 45. 55 9; 61 4.4; 62; 1; ॥(।
26, प; 78. 14; 3५ 4; 45; 46; 2;
41.111. 44 034;
65; 2; 83; 2; 6; 8; 9), 72; पा. 4,
12; 13; 20; 20, 6; 29 4; 48; "2; 52;
4; 695; 752 15; क. 15 2; 25; 4; 29,
5; 39 ए; 7758; 9205; ग्ण 2; 775 6;
0.0.010. 4.9 7 7;
149 2; 14; 42; ८. 37; 9; 37; 2; 238,
ए; 44; 7; 647 13; 75; 77 2; 74: 2; 76,
6; 82, 2; 55 86, 7; 87, 6; 88, 77; 9,
10, 000; 60414 4.221.033,
1; 149, 2.
यलं ऽयतं ध. 75,
यचा 1.0. 6;.10, 5; 22; 25; 29.12; 29 7;
ध, 11.10 1-4-20
0; 94 21241135. 41) 2214.
129, 5; 142, 2; 148, 2; 145; 5; 156, 3;
1.4.12... 1100100
1--3; 11. 4; 9; 5; 8; 24; 79; 232; 7; 24 1
6,44.404 2131411. 1.09:
10.2.22 14.00 2403 4.49;
1.7.10 1010. -120.1029;
3०9 1; 277; 3; 42; 23 54 1; 4; 553;
906: + .22.4-49..9 945; 2;
55: 2; 56; 2; 59 7; 67, 4; 16; 78, 7;
९ 0 0.4.740.
9; 10; 234:5; 36; 5; 44 16; 45 5; 485;
15; . 19; 5० 3; 63, 2; शा, 3 7; 24,
१.26. 1-.24.32 24; 09.0 0;
57; 3; 642 3; 97, 2; 720, 2; 64; 3;
27; $, 23; ॐ 12; 43; 53; 25;
9 | । 8 । |
90.47; 2.34;.20; 4 207;
6; 24> 9; 26; . 28, 45 39.713; 32; 233
36, 7; 38 9; 42 5; 45 8; 5; 76;
24; 46; 20; ग4; 27; 472; (7; 497;
43. 9; १0१ 69.94 ब; 5 13 424
2.942.047. 64.00.40
68, 7; 20; 69,.4; 155.16.;..82:2. 162;
8; ९. 32, 3; 5: 55 2; 769 5; 8255; १
806;-2; 14; 92:88, 4;.-97:4; 96.22;
3. 625 40048122.
63.111: 16.4.24; {403
373 10; 38, 2; 39, 4;
3 1; 44: 4;
5197; 52, 7; 5; 068; 9; 64 73; 75
| 0; 70, 7; 3; 8595; 26; 36; 9 0;
9.5: 18 ; 96, 2$ 12; 160, 3; 1035 13;
134, ग; 2; ८89, 0; 124 6; 246;64.6;
13079 5; 1419 4; 149; 5; 15753; 159
१01. 2; 1005. 1114..49.44
यथा {. 45; ग; 26, 4; 30, 7; 5०, 2; 3; 25,
. । 6; 1.43, 3; 1. 453; १.9,3; 5; 2:
2. 8; 55 7: 54 4; 8, 7; शा. 75, 5
| ष्वा. 12; का, 5; 5; 29, 5; 4, 5
५ | ११. 00 14;74..4; 22; 6 4; 76420
1९. 36, 1; 64, 29; 100, ध 74,
22; 9; 72; 7; 97, 77; 154; 6.
यथांऽङव इ. 86, ¢. .
यथाऽकामे 2, 146, 5.
यथाऽकृतं ४11. 18, 10.
(8 यथापूव +. 200, 2.
यथांऽ्यया ४, 19, 10; 54; 5; णा. 39, 4;
९, 2600, 45.701; 3. | ।
५ यथाऽ्वशं 71. 24, 14 ; 111. 48, 4; #. 34. 6;
1 शा. एला, 3; उ. 15, 14; 268, 4
| यद॑वे ए. 37, 8.
यदा 1. 89 7; 105 8; 75; 4; 767, 4; 165;
7; 164; 57; क. 54.41 11. 1
24 8; १०; 32, 2; 38, 8; ए. 85, 4; 8४,
4; प. 3 4; 42 4; 98, 5; णा. 12,
26-30; 27, 14; 57, 8; 8०, 9; 100, 7;
५ १ र, 16, प; 2; -23;- 3: - 24; 3 ;.617,. 76; 69,
68 38... ठ. 57174 7०;
` 142, 4.
( | यदि 1 7, 3; 27, 23; 3० 8; 56 4; ‰9, 2;
5: 10124 6; 768, 81 15.8.; 776, 4 5
1..." "96 6 8496 3-3-29 .6;- 2:
2.6; 14;.14..5.71; आ 58; 268;
7 3; 4 3; १.2 77; 3 70; 48, 4;
| | | 74 5; ४1. 22 4; 25; 6 34 33 42 3;
1 (४ 46, 74; भ. 50, 75; 82 8;
१ क 16.111 1. 12
23; 32 6; 33» 9; 67 19
| 749 2; 3; 15 3; 4
80, 6; 46; 97, 22;
8) ऋक #ॐ
2 ॐ चछ क क्के ०
क
15; 24; 19;
1049 14;
1
यति 1.5; 5; 23, 76
1093. 4122102 00
० 9. 9 1:
0.207.191
यदु; +. 62, 10.
यहु 1. 36, 18; 54 6; 74 9; एवा. 45, 1;
10.4.71, 12 40. 0
यदुषु 1. 108, 8.
(द
यदा *111. 9, 74; 10, 5; 45; 24.
यन् 1. 173;-3; 1783, 2; 1*. 2459; #. 51, 4
ष. $, 7; णा 2, 49.48; 7 12. 992
द. व 2; 88, 12; 9.3; 77, 7; 124 2.
यन् 11. 4 5.
यन्ऽइव {3\्. 3, 4. |
यंतं ४111. 2, 4.
यंत 1. 85;
18, 21.
ञे ह क
ए
4.1.100" 0.94
च 11024117.
67, 4; 98, 2; >. 123; 4.
यतन ए. 55, 9; प्रा. 47, 3; 25.
4168181...
यंतं ४. 67, 2.
यतं 1४. 55 4; ४. 64;
यंतवे "1. 75, 3.
यंता 1. 27, 7; 741; 3; 183; 5.
यंता 1. 23, 19 ; 24. 6; 1. 3; 3; षा.
>
यंतारः ए. 16, 7.
यंतारं 11. 3, 8.
यंत्तारं 1. 162, 19. 1
यंति { 97, 5; 1०० 3; 12 13; 12, 12
190, 4; 97; 35; 3; 1.93; 746
19 --40 249, 61; ४.2.18 546
29; 5; 0. 953; द. 18.56, ४.85,
24 ; 37. ` . |
45; 11;
1.12. 12;
॥.) क ॐ
न्क
्
४4
25 16 ; 37, 10; 32,
95८4025; 0152; -83,.2 927; ण्ड्यः `
पवकः. 5; 719, 2;
कः
यु न यमते *.. ४९
0; 37 4; 46 4; 5; 2; ४. १.29
76 3; कव, 2; 4; 13; 44; 74; 5; 4
90.0.09. 47498:
13 1; 28, 4; 34; 7; पा. 7, 3; 29, 3;
39; व, 2; 47 3; 49; पा. 39,
16; 46, 8; 46, 3०; 93, 22; 200) ग;
102; 6; 1. 33; 7; 50; ए; 62; 28 ; 69,
4; 9; 726; 81, व; 86, 5; 6; 4; 96.
24; 97, 34; "3; 5; उ. 22, 4.52, 3;
04 01. 202
यतुं *11. 104, >.
यतु 1. 40, 7; 89, 7; 97, 78; 125; ¢; 139, 7
१014111. 20 14941150:
४, 437; 58, 3; 69, 4; 8, ४; षा, 34;
1 11120 1401
१०.10 1. 61.3.49:
00.10 9111711. 1.1.28 1
11. -720..0. | |
यंतुर 111. 27; 77; पा. 19 2.
यंतं 1. 139, 4.
यंतं 1. 34; 7.
यवैः 49, 1.
यंधि \ 1. 85, 6
यंधि 4,141.14 ~ 11. 40.076...
4.40; 2.04... 14.94.41.
6४, 12.
यं 1. 1, 4; 28, 4; 24 72; 25; 14; 24; ग;
00020 14.7. 11.10 4
1; 2; 5; 4592; 52 4; 58, 7; 59 6
60, 3; 64 33; 70, 4; 77 6; 94 15;
95; 64 -161;.6.;. 102, 45716, 6 ` 142. 124
141 21.2.10 4
743; 4; 144; 4; 748; ए; 3; ठ; ग्ड 7;
166, 8; 2492; 26, 2; 282, 4; : 7186, 5;
१0 (12.11.44 114...
(0 8; 9; १५... ;: 223; ८; 242 4; 273 212 30
।
6९.44, 111 57 23. 1542-8.
1; 29 7; 454; 46; 5; 49 7; 2; 55.
21; 19 94.35 6,8 3 .1.1;.1..6 74;
र 3; 179; 78, 4; 34 3; 35 4; 36, 5;
6; 6; 583; 392; 4352; प.6ण
, ` चे कणन क
4.0.20 -00:224.1. 2902
४.124.400 10.1.43. 4.0;
15; 54 7; 629 6; 63; 7; 86; ८; श. 3;
1; 00-10-17: 1213 4
17; 16, 46; 7; 7; ए; 24 7; 34 3;
383 4; 44; 5; 48, 5; 58, 4; 66, 7; 8";
08,.6; ४11.1,.5..6 22 7624
3; 7; 5; 22 ४; 3 7; 38, 3; 4० 3;
47, 2; 4, 7; 56, 25; 59; 3 48, 4;
9५, 3; ४. 2, 5; 35; 5 10; 77; 4
16; 12, 13; 24; 72; 22; 32; 19; 21;
४.1.113
20; 40 990; 0.4.404; 46...
3 म; 5 5; 583 1; . 67, 72; 53;
000 040 .0..-74.2.-0..3 72;
77; 7; 82, 9; 84: 2; 9; 88, 4; 95; 6;
97; 2; 7029 4; 15.60, 5; 14 6; 77; 2;
78; 4; 80, ‰; 88, 7; 97, 37; 98, 6 ; 99
0.01 4.2.114.
4; 16, 13; 20, 3; धा, 4; 28, 3; ०98, 5;
29, 8; 30, 4; 32 9; 35; 4; 59; 17;
14, 42440921.
713; 69, 4; 85, 3; 23; 86, 4; 15; 88,
ध 4; 0. 000 08310.
104; 2 112, 04 14; 101, 6; 12; 5;
१20, 7; 335; 3; 4; 49; 2; 244; 4; 5;
164, 5; 284; 32.
यम +र. 714, &.
यम -. 10, 73; 4 4; ग; 154" 4; ठ.
यमः भर. 61, 2.
यमः 1. 66, 4; 163, 3; इ. 13; 4; 42; 3;
` 9; ग 8; 18, 15; 5 3; 9 प; प,
10; 135; 7. ५
यमः ~. 134; 65
यमत् ५. 34> 2. `; ह
यमत् भ 46; 5; $, ता 1 8 02, -3; ॥ (0
1. 44; 5; ९. 44
यमति [. 147, 11.
यमति 1. 200, 9.
यमुः ४1. 67, 7.
यमते 1. 747, 3; ए. 4, 23; प्र. 9, 4; 37, ध
3; -* 111... 2; 26 | (1
५
| यमन् 111. 45; 7; ष. 44, 5; ण्या. 09 6;
| "00 0:
यनै 1. 03, 20; 1. 52; 1. 2, 3; ण्या.
400. 104, 146 ~ ~ =+
यमं 1. 164; 46; 2. 74 7; 7; 3; 58, 7;
0.
0 | यमय ४11. 32. ` ग
> यमयति 1. 162, 16
| ५ यमयोः षू, 8, 4; त, 9. , |
यमश्यंञः द. 6,9. . `
६.५८ यमसानः प. $4 ॥
यमऽसूः 11.44... ~. ।
यमसे ए. 33, $.
यमस्य 1. 35, 6; 58, 5; 85; 5; 1 16, 2; 2.
1 19.7.09; 12.921... 2.5
0, | ॐ 3; 97 6; 15 6; 135: 7.
यमा {. 39 2; 7. 39 3; 1. 68, 5.
यमाः 1. 164, 15. | |
- यमाःऽइव ४. 57, 4.
ध ५. यमात्. ¬. 60, 10. |
३ यमाय र, 14; 132; 714; 15; 765; 4. `
छ शमि श; 20.14. `
यमितवेऽदैव 1, 28, 4. - :
यमिष्ट ४. 32, †. | |
यनि ४1. 64, 1. | |
५; ह ^
\ च ^
1... युः 9.61, 3.
1 ् | । यमुना षा. 18, 19.
(4 यमुनायां प, 5० 14.
0 010
| यने इवेति यमेऽडव द. 252. `
यमेनं 1. 164, ४; * 1; 3ॐ 9; -&. 24, 6
५ ३५० ` यमन् -- यस्य॑.
यमिष्ठासः 1. 55; 7. 0
। यमी; >. 709. , . : |
(८ | ` यमीमहि 2. 36;8 व । (4
यम्याः 1४. 22; 8; +. 22; 8.
यय ४11, 34 7.
यय ४. 67, 2.
यययुः 1, 117; 16.
कि
ययय 1, 59, 7.
| कि मि)
ययस्तु ४11. 104, 2.
य्था 1. 63, 8; 149, 5; पवृ8, 1; 1. 34 15;
1, 60, 2; 7४. 20, 9; 575 6; ४. 45
6-112-12 -21.1.41 2.1.
5 8; *ा1. 42, 3; 3. 35; 7; 45 6;
49 9; 65 7; इ, 98, 3; 105 10; 45;
1 0.
ययातिऽवत् 1. 37, 7#.
ययिः >. 63, 1.
ययाच [11. 33, 70; द. 77, $.
ययाय +. 29, 9; ४.4, 4.
ययाम प. 38, 7.
ययिः ए. 73, 7; 87, <
ययिनां 2. 92, 5.
ययिं श 17; 8; 2.
यथिय; >. 78, ¢.
ययिऽवान् 1९. 15; 6,
ययुः 1. 55; ४.8, 3; ण. 746; गा.
29; : ~<; 86, 46 ; -ह ; 14; 4; 2542
ययुः 1. 768, 4; 1१. 9, 5; ४. 53,
१, 094. ष्वा ९4. 2 . . + 12..7; 2
2. 69, 9.
ययोः 17. 32, 7; गा. 44, 3; 5०, 2; 54; 2
४, 60, 4; ४11, 65, 7; णा. 16, 4.4५
4०, 4; ` 59, 25. 28, 4; द 225
65 5
हे
क
कीः ॐ
कै क
` छ ॐ क क
- च्छे क
यवडखदः -- यशसां. ४५१
यवंऽसद्ः ~. 24, 9. ।
मवऽत्राशिरः 1. 187, 9; ए. 92, 4
यव॑ऽअशिरं 11. 22, 7; [71. 42, 7.
यवः 1. 66, 2; 255, 8; 11. 5, 6.
यवत ४* 2, 5. |
यवं [. 23, 15; पव; 2; ग46, 2; ए. 85, 3;
१.4.411 9.221.000:
21.242; 2-14
यवंऽमत् ४11. 93, 3; 12. 69, 8; क. 42, 4.
यवं ऽतः इ. 741, 2.
यवऽङ्व ‰\. 68, 3.
यवं ऽयवं 1, 55, 1.
यवय ४1. 46, 9; 72; भा. 77, 4; ड. 147, 62.
यवय 67412. 1.24
यवेयत्ऽदेषसं 1 प्र. 52, 4.
यवयत्श्दवेषाः ॥..715.0;
यवयत्ऽपसषखः ~. 26, 5.
यवयंतु ४1144, 3: 1 48; द
यवयसि ४1. 37, 4.
यव्यख +, 42, 9.
यव् ऽयुः +111. 78, 9.
यवसऽखरद्ः 1. 94; 71; ३. 2, 9.
यसं 111. 45; 3; ४. 78, 2; +. 102, 7;
४111. 4, 78.
यवसस्य 11. 16, 8; ४11. 93, 2.
यवसाऽ्डव 1४. 47, 5; +. 17; 5
य्वसात् ४11. 18, 19
यर्वसे 1. 38, 5; प. 9 4; 53, 6; प्व. 29;
५.2; 8८, ४; द. 24; 5; 99, 8; ` 209,
10; 175; 2.
यवसेन 1४. 42, 10.
यव॑सेष 1. 9, 23; एवा. 92, 72.
यव॑स्य 1. 54; 2; *{11.. 78, 16.
| यविऽयुत् +. 67
यविश्युधां ए. 4 6.
` यविष्ठ {1.66 | |
५ यविष्ट 1. 22, 20; 26, 2; वरव, 10; 147, 2;
289. 4; 7.0, य पा. 3; 94; प.
न 1111 क
10. 13; 40-12-11:
3 ग्य; ४. 14.74; 48, 8; भा. 1, 3; ध [
9.111.282 41.212.
4 2; 45 9; 69, 10; 80, 7; 87, 8.
यविष्ठः 1. 747, 4; 767; 7; 1. 712, 2.0;
9: 9, 4 2.
यचि 1. 44; 4; पा. 5; 2; पा. 3 5;."० 5;
12; 4.2. 28 23. -114
यवि 1. 36, 15. |
यवि 1. 36, 6; 44: 6; [. 9, 6; 28, 2;
फ.8,6; शा. 16, 77; 48, 7; एवा. 16, 10;
11.64.804 4 72.326.
यविंपं ए. 26, ¢.
यवेन [1. 14, 77; 1९. 68, 4; 8 <42> 10.
यव्यं 1. 140, 13.
यव्या 1. 167, 4; 273; 72.
यव्याभिः णा. 98, 8.
यव्वाऽव॑त्यां ४1. 2४,
च 116 7 270; 4111 40002.
1४. 32, 12; प. 4 16; 79, 6; 7; ए. 2,
१. 11.74.12; -14.5; 1741 11
10.06. 28.0.18. 41.204. 42
6; 61;.26 ; 94, 4; 7०6,..74 ; ` 755, 9;
~+, 36; 10; 106; 1४.
1
यशःऽत्रमः +. 233; 10. |
यशःऽत॑मं ए. 26, 4; पवा. 102 70.
यंशःऽत॑मस्य 11. 8, ए.
यश॒ःऽतंरः 1९. 97; 3.
यशःऽतर ४111. 2, 22 क
यजञसंः 11. 7, 77; भ. 52 ए; ४11 97 व 1
36, 6; 911. 48; 5; 1. 6; 28; >. 46; ध <
14.01. 11... 0 |
वशश. 1..4,-35 32 8:09. -92) 5; 113.
5; [1 19; ४. 3 व; +. 8.5; 49
0:91. 425; 175; 2; 99.44: 91 0 |
5; =. 39 2; 973 75 | |
यशां 1. 142, 4; 7. ग, 26; ए.8, 4; पा.
69, 3; 1.82 1. 2, 20 1005 2: ।
शसा ४1. 3 2; 12. 9, 9;
क
॥
६१२ ` यशसे -- यद्हीः.
यशसे ४. 0: | |
यशसं ४. 42, 2.
यशंखतः 1. 9, 6 ; १111. 25; 2; 102 8.
यशञखता 111. 16, 6. ` । |
यशसख्ति >. 38, 7.
यख र. 71, 2. त
यजञसतीः 1. 79, 1.
यशंखान् र. 20, 9.
यज्ञाः प्रा. 23, 39; 9०, 5 ।
यष्टवे 1, 12; 6; 7४. 3; #7. |
यष्टा 1. 96; उ. 67, 10. ॥
यष्टा ४1. 52, 1. .
यस्मात् 1. 18, 7; 11. 9, 3; 72 9; 26, 2;
१11. 47.28; 10; 3,
यस्मिन् 1.5, 9; 55 14; 4० 5; 152 3 ; "64
22; 39; 168, 6; 744 5; [. 2 77; 5
.10..1.20.4.-11..33 40.444
1८.41.14 401 11.49. 4108
37, 4; 449; 56: 8; 9; #1. 5 2; 129
1920294 ^ 111..41-2.4 2 10
4; प्रा. 2, 33; 26, 28 41, 6; {9 4;
92; 20; 704; 7; द. 419 4; 713; 9; ॐ.
6; 3; .6.; 22, 7 8; "42; 6; 67.25; 62,
1; 82, 6; 88, 9; 97, 14; 95; 4; 229,
23 735 छ | । |
यस्त {. 94 4; 15; 166, 3; 1; ना. 3०, 7;
ए. 9.4.11 1.0 11004 00;
4; १1.328; 47; 4; 7; 54; 6; 5
3.8.334; 86, 3:97 206; ` 22;
185 2.
यस्यं 1.5 4; 71, 8; 30, 5; 3ॐ3; 57
99, 14; 54 3; 57 5.3; 144 4; ०6,
13304104 2514; 53-11-54
122, 22; 120, 5; 8; 158, 3; गक, 2; 4;
173; 12; 176; 3 | 9 3 71847, 1; 1003 13 1.
74; 83; 2 7; 74; 14; ग, 9; 35
7; 35, 9; 1.6.70; 13. 24.32, 4:48;
4 501; 5414; [21068259
17; 19; 207; 97, 7; 2; 346; #*.,
यद्धाःऽडव ४. 1, 7, | ८ क ५
83; 59; ए]. 3 3; 7; 43; 79 3; 14;
4451911. 012 225 49
47; 3; 45; 14; 442 6; 45) 8; 32;
47; 2; 48; 21; 49, अ... ५०७
0.0.42). -24-25..5 8.14 201
9 41 0 0.70. 4440
7. 22.1.00 0411-2,
१5 2; 169 4; 19; 10; 77; 3; 33; 2
716; 24 21; 41, 9; 45 42; 46, 3; 57
52, 4; 58, 3; 65 2; 68; 3; 8; ग्ण
69; 29 ; 70, 2; ¶4 4; 29; 75 २4; 84,
7; 86, 4; 95: 1; 102, 14; 20» 17; [~
35 6; 65 8; 15; 66, 36 ; 56, 9; 9४;
किं ॐ
39 15914 2.99
9.3.200 20 21 01 22
5; 6; 344; 37, 9; 39, 12; 45० 6; 5०,
१.00, 0. 74; 9
7; 6; 93 8; 94» 10; 96; 9; 97, 12;
011... 692 169... 11.114
116 1.2 (11.4.11.
१98;.2; 09.421...
यस्थाः 1. 45, 13; प्र. 222; ५.35; ण.
01.89, 2424-1 01.240, 23
107. 4
यस्या +. 85, 3;
यः ४111. 60, 13.
यहो इतिं 1. 26, 70; 74 5; ‰9, 4; भवा. 15,
11; 1111.4.5; 0; 84..4.
यद्ध ६. 710, 3.
यदः 11.15.12; 5 .54..9.4 1४. 4.47 22;
0.442.114. 1.1.
यद्धकतीः 1. 105, 77; [ह ग, $.
यद 1. 3602; 1. 38; 7४. 5 6; 9.6,
4; १1. 13520424; 2. 92, 2.
यद्धस्मं 17. 2, 9; 28, 4.
यद्दाः 1४. 58, ¢.
# 6
ॐ ॐ
ॐ $
| यद्भि -- याते . ४५३
माता ताम
{1.1 4; 5; ष, 283; ए. 29; 2; 1.
33: 9; 92, 4
यद्भि 111. 7, 9,
यद्धीपु ४1. 56, 22; 79, 3.
यद्धयः ~. 99, 4.
या 1. 222; 3; 25 7; 46, 2; 6; 48, 6
99) 3 839 3 > 85; 12; 97; 4 ; 10; 92;
१, 7.1.769, 4 1004226, 6; 129,
१142. 1.4 1.10 701
0.100.470; 0.19 10410; 04
10.10.011 1.21;
32, 6; 7; 8* 33 18; 34 15; 47 78;
81 23; 3779; 39; 2; 54; 5 547; 7;
९; 8; 1४, 38, २; 5० 3; 9; #. 239, 12:;
14; 5; 303; 4; 37 6; 473 5; 45;
4; 9; 456; 6 5; त; 68, 2; 659, 4;
733 10; १9 2; 10; 84, 7-3; 86, 2२;
91524; 74; 22. 41.240;
12; 535 9;. 67; ४; 23; 6292; द; 64
3; 65, 14.01. 4“; 69, 2; 74; 2; 75
19 ^ 0.0.21 .10.24 00.22.31
813 3; 4; 86, 5; 94 प; 98 5; ०4
0.041.412; 4; 21.42,
ध ; 7; 249 > 31 9 9 33 14; 40 95 2
45, 25; ॐ, 4; 67; 18; 90, 3; 97 6;
1000 ` 10114 1.1.03, 395 90,
204; 79; 3; 24 2; 54; 9; 59 7;
63, 8; 644; 0: 42.65 8, 5; 84
2 67; 14; 9.5; 6 > 104) 9; 13; 7;
133 3; 7; 145 5; 746; ग,
याः 1. 23; 4; 32, 8; 45 9; 84 20; 07.
¢; 1.1. 9,114.14 109;
4; 388, &;.8; पअ. 55; ग 2; 98; 9;
27, 16; 52, 5; [--. 20, 3; 22; 3; 57,
3; 1४. 32 70; 4, 4; प. 332; 442 2;
46; ए. 221; 28; 5; 5855 9.
98; 366; 40 4; 49, 25; 9.5;.59
ध... 6.094.011...
2; 29; 20; 3 3; 89. 29. 9; 21; 49;
59 4; 80, 10; 97; 7; [९ 9; 4; 195;
१ ॥ 52; 1; 62, 7: 9.4 16 43 ६१०) 2; 235; 5; |
86 88497 यत
2.8 5:27;
10; 1049 77; 704, 9; 108, 5; गा; एवा
6.9 1142; 2092 4; 24 2.
188, 32.
याचत ~. 48, ‰.
याचतात् <. 86, 47.
याचन् (1. 7, 20.
याचे 1. 78, 3.
याचते 1. 2, 10.
याचामहे 2. 22 ¢.
याचानि >. 9; 5.
याचिषत् ४111. 7, 20.
याचिषामहे 71. 64, 7.
याट् ~. 67, 21,
यात् 1. 80, 75; ४1. 275 6; एवा. 88, 42;
+. 68, 10,
यात् 1९. 52, 2
यात 1. 38, 77; [. 33; 72; [४. 37; 1.
चाति 1.47, 4.10. 2391 71.21१.
34 5; 357 प. 4१, 20; 53, 8; ए.
&8;.8.-50:.4 41.22.640.
907, 20.
यातः 1. 32 15; 147; 8.
यातः <. 85; 18.
यातनं ए. 59, 5.
यातनं 1. 765; 13; 1४. 34 6
यातं {. 46, †; 708, 6-72 ; ग, 70; 184; 5;
ष. 13, 7; 4, 1; शा. 6०, 3; णा. 5;
१.0.11. 200 2015; 12.83;
143; 5
यत 2.1.039 1010 34.4.11
47.29; 06. 2 10479.
11.94.14
63: १९4५, 6; 11.39: 3: 5; 54.45.34; `
ता. 25 4; 582; [ष 149 7; 444; 5; ~
47; 3; | ४.0 43; 8 3 75; 7; 76 1; 33 42 ॥ | -
प, 62.7.14; 11.604; 60.41
53 ‰; 64 2; 66, ग7-9 ; 67, 3:.7; ०8
ए; 695 3; 5. -20.5; 19.44 12 ;
५; 743; 4; 9469343 ~
ॐ 24; 32; 8, 2-4;. 6;
| ८
7. 2.0.04 0
४५४
(नः #
70, 7; 22; 8; 12; 26, 7; 14; 35:57;
13; 207, 4; 732; 85; 8; 87, 3; 707)
१; ‰. 39;12; 13; 206; 17,
यात्य 2. 127, †.
1 इ ऋ)
यात्तयति 111. 59, 7.
यात्तयत्ऽज॑नः 1. 136; 3; [1
यात्यत्ऽजनं ४11. 102, 12.
यातयत्ऽजना ४. 72, 2.
यातयन् 12. 39, 2; 86, 44
यात्यंतं ए. 32, 72.
यातर्यमानः ए. 6, 4.
यातयासे प. 3; 9.
यातवः प्रा. 27, 5.
यातवे 1. $, 20; 44 4; 7739 716; 57) 7;
ए, 20, 20; पा. 7, 8; 72 3; 2०6
1.62, 10; 28; 63; 8; 9; 55, 16 ; ¢8;
2; 99; 2; 2. 75 2; 6; 106, 7; "45; 1.
याता ए. 10; 7; र. 99, 3.
४ यातांऽड्व 1. 79, 6; प. 34, 5.
( : याताः ४. 35, 5. |
(1 यातां 1४. 28; 3; ४. 55;
५ 9
^ (न क, यातारं 1. 22.74.
याति [. 35; 4. 1४. 15; 2; 29; 2; प. 75
7; णा. 49, 3; 15 6; 1, 457.
याति 1. 352; 3; 485; 7; 509; 77 5;
| 12; 14; 122, 10; 2223; 4; 740, 9; 167,
142; 1. ॐ, 72 | 14.20.11. 1.2.1.
8.8; 61, 4:1१. 18; 5; 9.6, 5; 3;
1; 89, 2; प. 2, 2.5.195. 56, 4; 68
= -. 10 ला .38-6 5-782-95 14-086; ६;
; ... .: ` : ष्वा. 49; 9.18; 2, 1; 94875
५2 नि | ध 1; 29; 4; 43 3; 44: 3; 71 8 78 1;
| 86, ¢; 15; 3; 33; 9५3; 962; 9
५ ५ 47; 56 ; 107 8; ग, 3) = 8.3; 322
9 5; 80 5; 139, 7; 168, 7.
0 यातु 1. 55.10;.718., 4 150, १६.19.16. 1
4 ॥ ५ 1 20; ` 2;. 27; 75. 45; 5; ष 459 9; 74:
59» %
क 11.48, 2
८0
याक्तय -- यादूिमन्.
~ == -------------~---------_-_--~~~~~~
याठुः ४111. 60, 26.
यातुऽ्नूनौ ४. 4, 5.
याहुंऽधान ४11. 104; 15; 716.
यातुधानः ए, 104, 15
151.
यातु ऽधानं ए. 104, 24 ; +. 87;
यातुऽधान॑स्य ¬. 87; 5; 10; 25.
यातुऽधानां श. 8, 24.
यातुऽधाना; 3. 87, 9; 28
यातुऽधानात् >. 87, 7.
यातुऽधानान् 4, 34. 9). 24 1
74; 79.
यातुऽधान्य॑ः 1. 197, 8; 2. 128, 8,
$
।
12
9
यातुं ४. 12; 2.
यातुऽमतीनां 1. 133, 2; 3.
यातरुमत्ऽभ्यः ४11. 104; 20; 25.
यातुऽमावतः 1. 56, 20.
यातुऽमाव॑तां प्रा. 7०4 23; भवा.
यातुऽमावनि् ४11. 7, 5.
यातूनां ४1. 104, 21.
यायाः >, 85;
यात्ऽयध्ये 7. 38, 8.
यात्ऽग्रे्ठाभिः 11. 53; 21.
याय १1. 50, 5.
याय 1. 39, 7; 11. 34; 3; 11. 6०, 4
यायः 1. 34 2; 183; 3; 1४. 45 ¢; पा
9;.12.
60, 29.
{1
पायः 1-125-02; ` 80, 9; 182, 2; {1.3
2; 9. 74 3; 15) 5; १. 69
111. 26, 2.
यायनं 1. 24; 7,
यायन् 1. 39 3; ४. 55 7; 57, 2.
याद॑मानः 11. 36, 2; ए. 69, $
याद॑मानाः 11. 36, ¢; ए. 9, 5; ए. 76, 5.
पादी 26 6
५
; 605, 2;
याहः -- यावी. | | ४५५
छः +. 7, 31.
दं ४11. 19, 8; णा. 6, 48
पाठानां ४111. 6, 46.
यान् 1. 72; 8; 127, 12; आ. 34; 14; 38, 3;
11. 86; 359; 4, 3; 1४.357; णव
96, : . ४111. 8; 2348; 9 14
यानं {४. 43, 6.
यानान् 3. ;3 7; 110, 2.
यानि. 15; 8; 52; 1; 36; 5; 52, ¢; 108, 5;
100 12.12 1
५.1 1. 2211; 49313621
60.14.40. 3-14.34. 11.540
0.01... 44. 4.25;
60.4.18 1294
यातः 1४. 25, 8; णा. 83, 6.
याति [1 32, 14; इ, 40, 7.
याता {. 114, 12.
यांति 1. 23, 73; 11. 7, 4; 28.
याति 1. 88; 2; 01.74
याहु 1. 167, 2 $
याभिः 1. 25, 17; 3913; 452 55 40, 5; 719
1-3; 42-व72 129; 73०; 14; 15; 64;
73 28; 19; 20; 21--23; 344; 2;
१.2. 20.411 > 4
28, 2; ¶11. 3 8; 37; 5; 93; ५1.
१,६8.8, 20 21; 224; 22; 16; 12
2. 9; 38; 3; ¬, 5० 4; 5; 55 19;
ॐ 6; 164; 8.
धाभ्यः ४1. 47; 3; १. 47 4.
याभ्यां ए. 38, 19. |
यां 1. प, 92; 39 23; 80 26; 1. 58, 8;
3, 6; ए. 55 8; पा. 2, 3; 77, 6;
9; 4; 104; 6; 2. 17, 9; 64 प
यामं 11. 34 1०.
यामः 1. 34; 2; 106 2; 766, 4; 172; ए; 1.
म, 4; पा. 66, 7; >. 20 9 |
र | यामऽकोशाः 111. 3० 15
यामन् 1. 33, ९; 37; 3. 85 7; प ग; 76,
41.2.20 0-497-24:
४. 44 4; 52 2; 587; 75 9; शा. ग्ट,
5; 38, 1; 4; "1. 58; 2; 65; 1; 66, 5;
85.111. 4.44 40.14
77; 8; 78, 6; 94 73; 127; 4.
यामनः ४. 57, ॐ
याम॑नि 1. 25, 20; 138, 2; 168, 5; 1. 54
14; [प्ि. 20, 4; ४. 5316; ४. 52, 26;
क. 45 4; द. 64 ए; 77 4; 8 5;
92, 13.
यामनिऽयामनिं 1. 67; 19.
यामऽनिः 1. 340; 17; ४. 66, <; 87, 5.
यामं ४1. ;6, 6; 69, 2; *11., 752; 4; "4;
96, ¬.
याम॑ऽश्युतेनिः ए. 52, 15.
यानऽ्हूतमा ४. 73; 9; प्रा. 73; 6.
याम॑ऽदट्तिषु ४. 67, 15; भना. 8, 18.
यामऽह्तो 2. 117, 3.
यानात् 111. 53; 19.
यामाय 7. 30; †; 39 6; प्न, 7 5.
यामांसः ए. 3; 12; ॐ. 3, 4
यानि 7. 58, 4; 111. 54. 3; ¶ा. 2 21; 53;
84.07.041 9.
यामि 1. 240 77; 1. 6, 7; 9,64.15; 23,
2; ए, 5, 4; पा. 339; श; ग; 736;
२. 49, 7; 84, 7; 119, 73.
यमे ए. ‰4 5.
यमेन ४. 54; 12.
यमिनिः प्रा. 7, 0; 12. 67, 0.
यमिषु 1. 37, 8; 48, 4; 87; 3; 1. 32 23;
24. 9, 56; 4: 737; स {. 20, 5. द
यायां ४. 64; 3 |
याव॑त् {. 33; 72; 108; 2; 2...
१04 0.4; 4. ५
यावतः प्र. 32; 28.
यावत्ऽमालं >. 88, 19.
यावां पा. 7, 5.
यावीः 0110 79, 4.
५1
४५६ | याशूनां -- युगानि.
ना
याशूनां 1. 726, 6.
यासंत् १.716.104. 9.
यासत् ४. 20, 7; ४, 40, 4; ५1. 66, 5
न्क - कि
यासौ 1. 158; 4; प्रला. 49, 3; =+. 229 13;
108, 23 4.
यासि 1. 22, 4; 44 12; 44; 4; 1४. 16; 72;
प. 25; ग; पा. 92, 3; णा. 9, 18; =.
1, 10; 12, 2744. 4
यासि 1. 765, 3; [. 2, 6; ता. 7 17; १.
12, 45 ५.81, 4; 0, 19 6; 58, 3; >.
82, 2; 82; 5; 8; 9; 200, 8; >. 4 3;
32; 2; 34; 3; 74 4; 75; 2.
यासिषत् 1. 74 <.
यासिष्टं 1. 119, 4; #*11., 46, 5; 60; 19.
यासिष्टं ए. 22; 74.
यासिसीष्टाः 1४. 7, 4.
यासीष्ट 1. 165; 75; 166, 15; 167, 77; 168, 70.
यासु 1. 147, 5; 1, 4-14.2.
१,44.5 4041 1.6 2.
07; 12.
याहि. 1. 729, 9: 1.7, 9; 1. 35; 4; 46;
1; व. 7..20.7.48 1 1.
37,5; पा. 95; 24 3; 23; 4; भा.
2; 6 ; 26, 23 ; 46, 25; 93; 37; 107, 9.
याहि 1.०7; 5 4-6; "4 ग; 5 7; 82, 3
5; 6; 101, 8; 129, 9; 730.2; - 224;
1359 1311 0 11 1--4
त. 18; 4~-17; [1.4 114.6,:9 29.76
3० ५; 57 19; 4, 7; 8; 4; -3; 53,
53 6; 60 1 १-60-4 ४. 4.
9 >.35; 53 49 1:51; 5:83. णा. 6,.29
कनक 9
# 1
ॐ ॐ
५ $
५9 ४
44.21.111. 32, 4:40 3::4;.
4.1 4; 4.4 2-111-24;
3; 4; 28, 7; 2004; 4; ॐ 7; 32 4;
9०,.2; शवा. 7, 28; 9.79; 289; .6, 36
130 77; 17; 7; 4; 07 3; 33; 73; 3447;
10; 1.3; 60, 2; 62 4; 6.5) 13:92; 16:
104; 14; 2. 74 8; 64 155 18; 66, ¢;
` पुगाभ्डव 1. 394
| युगानि 1.02. 74125 4;
16; 98, 9; 104 7; 6; 710, 3; 7125 2;
4; 142; 7; 7172; 7; 2; 179; 2
युः ४11. 18, 13.
ऽखं भ, 41, 5.
युक्तः 1. 69, 4; 82, 5; 158 3; +. 62
। 69, 2; भ. 58, 2; ‰ 27 9; 5 7;
102, 6.
युक्तग्रावा 111. 4 9; ४. 37; 2.
युक्तऽ््राच्णः 11. 12, 6.
युक्तं 111. 25; 22; >. 10, 14
युक्तस्य ¬. 102; 6.
कता 1. 84; 3; 1216, 718
1041 43.12;
युक्ताः 1. 764; 74; 79; [. ॐ 2; 55 4;
4.2. 11; 44.10:
111... 01.23.010.
युक्तान् 1. 29: 25 ; 226, 5; प्र, 31, 19.
युक्तानौ 71४. 32, 7#.
युक्तभ्या ४.1. 22; 1.
युक्तासः 1. 118, 4; 1४. 48, 4; भा. 37, 1;
ष, 9९ 5; > 174 20.
(9 ७।
|
क|
ॐ ४
$>
#
764; 9; ४. 24;
|
चक क
युधा 1. 162; 7; 17, 7; 3; $. 40, 4.
युक्ताय र. 95, 14.
यश्व 1, 20, 3; 745 12; 82, 3; 92 ग; *.
६ 16, 423." ॥..3, 14; 26 22; 75, 142
4; 0:14...
युग 11.94.10. 0..4; 120:
युगस्य ४111. 97, ¢.
भगा 1. 144 1849 2.9. 52.4
7 3; 9624; णा 1622 1.69 9;
1. 12.03. 2.20 19 1 24;
140, 6. 1 |
युगाय -- युद्धानि. 8५७
1
युगाय णा. 87, 4.
युगे 1. 158, 6; 266, 15; उ. ‰%, 7-3,.
युगेऽयुगे 04 11.21 2 4.11
8; 36, 5; 2. 94, 24.
युगेषु ए. 9, 4.
युक्ते 4.1.74
युक्ते 1. 84, 16 ; 154 3.
युश्ठ ए. 42, 2.
युग्ध्वे ४. 56, 6.
युच्छतः 1. 25 6.
युच्छति ४. 54; 13.
युच्छु ५111. 39, 2
यच्छसि + 111. 52, †
यनः 1.2.64 “1.93;
युजः 1. 10 9; 12. 7, 3.
युजत ४. 52, 8.
युन ए. 66, 6; ए]. 20, 4.
युजे 1. 7, 5; 33; 20; 129, 42; 7. 25, 1-5;
१.470.424 1.446.346“.
4८.10, 11.024. 1409 2);
9 14.90.402
युना 1. 8. 4; 23; 9; 39; 4; 102 4; ~.
23; 70 ; 1४. 28, 2; 2; ४1, 44 22; 56; 2;
ष. 1, 13; 316; 32 2०; 455; 482;
00.4.03; 43
9; 92, 5; 32; 96.15: 13. 13, 9; 744;
>. 33; 9; 55: 8 ; 62 7; 83 3; 84
4; 102; 22.
युजां ऽइव 11. 24, 2:
भनानः 11. 1854; 1. 50, 4; १.2 3;
34, 2; 39, 2; 4, 19; १1. 695; 7०9;
एए. 13, शम; 5 7; [-. 64 19; 86
347; 97 28; -९. 22, 4. |
युजानं 1. 65 7.
युजाना 9.80, 3; ४1. 75; 4. |
`. यानाः 1.165; 5; 111. 43, 6; १1. 29, 2; 44: 19
युने ४11. 25; 3; १1.46; 2 9.1.
कृष
, युज्यः [. 22, 19; 1. 48, 10; ग. 22;
युज्यते 1४. 45, 7.
युज्यते ५1...
युज्यश्वं >. 1/5; 1.
युज्यंते 1. 146, 4. `
युज्य 1. 52, 7; 156, 2; ए. 25 2; भ. 52,
9; 11.30.414 10.109;
युज्यमानं [7. 4०, 3; पा. 78, 4. |
युज्यमाना [11. 35 1.
युज्यसे 1. 28, 5.
युज्यं 171. 9०, ५.
युज्याता ए. 42, 7,
युज्याभिः ४1. 37, 5.
युज्याय 11. 28, 3; ४11. 19, 9; "1. 4.45;
17. 66, 18 ; 88, 7.
युज्याव ए. 62, 17.
युज्यासः >. 99, 4
युज्यनं ४1. 27; 7 | |
युज्येभिः 1. 145; 4; 7659 7; ४1. 3.8; णा. 39, 6. | | |
युजत ध 485, 4; 84; 33 139; 4; 01 342 8
४, 81, 7
युजे ०.9.00 2.4 02. ०10
क. 94; 72. |
युजि 1. 6, ए; 2; प्या. 98, 9; द. 102 16
यजंति 1. 164; 2; [3.62 77; 89. 4; +. पाः,
॥ 4; 164; 2.
युजं 2. 702, 9.
यना 1. 762, 27.
नाया 1. 46, 7; ¶111. 22 9; 13; ८; 854.
यंनायां 1.85; 7; {1, 37; 5; 1४. 45; 3:
युनाचे इतिं 1. 57; क
युंजाये इतिं 1. 7८7, 4; १.04
य॑े 111. 1, . | | 1 |
युतऽदवैषसः 1. 53, 4. ^ ~ ए
युत्ऽकारेणं उ, 102; 2. ५ 1 411
युत्ऽमु 1.9.442 404.
4:14. 89.23; 1584
यद्धानि 54 1
= 6.8
४५६ १
युधः 2. 104: 2; 3
युधः पा. 47, 7.
युधं 1. 52; 7.
युधये ए. 30, 4; 9; श, 20, 2; 38, 3; 48, 6
84, 4 ; 113; 3.
युधा 1. 53; 7; 59, 5; 114 4; 1" 49 2;
रा. 34, १; {४.17 1९ प, 25; 6; 52
ए. 18, 0; 27; 6; 92, 4: 98 3; ॥ 0 89।
6, 10; 27, 23; 4 3; >+ 49 9; 5
8; 60, 3; 105 4:
यधा ऽइव 1. 166; 7.
यधि 1.8, 3; 11. 24, 9; 9४1. 46; 7; भा
45; 27.
ये 1. 67, 13.
©
यथेन्यांनि इ. 120, 5.
युध्म ४11. 1, 7.
युध्मः . 9.954.123; 91, 18, 2;
11.004
गुनं ए. 92 8.
युश्नस्यं 111. 46; 1.
{©
५.4
युना; 1१४. 24; 4
युध्य 1. 97, 23; ४1. 37, 3.
युध्यत प्रा. 96, 14.
षतः 1, 5०, 5; 24; 7. 55 8; प्रात.
५. 1
युध्यत ध्र. 30;
युध्यन् 1. 63, 7; प्र. 33 4; ए1. 26, 2; 12.
(>
ध्यैतः ए. 33, 4.
युध्यतः ऽइव ४111. 47, 9.
युध्य 1. 33; 74; *1. 26; 4
युध्यते ~. 154 3.
युध्यते ४111. 2, 12.
युध्यमानाः 11. 12, 9; 1४. 25; 8; +. 25
यथ्यामर्धि 11. 18, 24.
1 ५
©
युधः -- युयोत.
युनक्त ‡. 107 10.
युनधि +, 60, 6.
युनज॑त् प. 36, 4.
युनन॒त् ‰. 27: 9.
युनजते प्रा. ०7; 7.
युनज॑न् ४1. 67, 77; 1.4
युनञ्मि 1. 8५, 6.
युनि 111. 35: 2; 4; 5 2; ए. ५.6
युयव॑ह् ए. 44, 16.
य॒यवन् *11. 38; 7
~ कि ।
युयुजानः प्र. 2, 2; 45; 6; #. 4० ध
75 ५ > 92 7.
(६९.91
युयुत्छन् >. 48; 70.
युयुतं #. 32, 5
युयुंधयः 1. 85; 8 ; =. (15: 4.
युयुधाते इतिं 1. 32, 15.
युयु धिःऽइ्व ~+. 149
युयुधुः 1४0. 26; 3; 9.59, &; 9, 85; 7.
युयुयातो $. 18, 8.
युयुंविः ४. 50, 3.
युयूषतः 1. 144 3; ४1. 62; 1.
युयषन् 1४. 16, ग. ध
युयोज॑ते ४111. 10, 12.
युयोत {11 54 18
भ. 18, 7.
युयोत 1. 39, 8; 71. 49, 2; षा. 586; भा
729.8.; द. 706; 0०. 9. :-
युयोतन प्रा. 28, 0 =
योतन ४. 87, 8; >. 63, 19.
युयोतं पा. 68, 5;
ए. 34; 13; 50, 9५;
युयोति -- युवाकुः. ३५९
युयोति 1. 92, 1
युयोतु ४.5०, 3; ४1. 47, 213.
युयोचाः 11. 33, २.
युयोध ४1. 25; 5.
युयोधि १.294.049
युयोधि ५10 3-3-42; 1.4 0;
{3. 104, 6.
युयोप 1. 104, 4.
युमोपिम 7. 89, 5
युवं 1-5. 708, 9.
युव ऽजानिः ए. 3 19.
युवत् 1. 771, 1; र. 39, 5
युवत् 1. 109, 1.
युवत्यः 1. 95; 2; 11. 35; 4; 11; 1. 6;
54 14; 55; 16; ४. 2 4; भ. 67, 9;
+. 30, 6.
युवतिं 2. 42, 5.
युतिः 1, 123; ¶; 138, 5; 222, 2; 70; 104
01 -110.4. 14
1.071.090 1.010.756
2010104 4 21849;
युवतिऽभिः 1९. 86, 16; ॐ. 3०, 5.
युवं 1. 167, 6; >. 4 4; 178, 3.
युवती इतिं 1. 62, 8 ; 185, 5; 1. 54: 7.
युवतीः {४.97
युवते 9.1.142. 17
| युवते 18.34. 1.01.
युवत्याः >= 40, 11.
युवद्यां >. 61, 6.
युवोः ४1. 49, 2; २. ॐ 7.
युवऽनभ्या 1. 108, 2; 109, 2; ग, 25 ; +.
॥ 00.12. 06..4. 79:0; | ॥
युवं 1. 15, 0; 34; 3-5; 47; 5; 89, 4; 92,
0 0411 105; 2104.
०119 144 2.14
0.119.401 2.4
122, 3; 22.02 0.८4 10.46;
1529 7; 757; 4; 5; 6; 180 2-4; 182,
5; [. 36; ना. 389; 54 26; 58,
7; 1४. 752 16; 28, 5; 4; 4; 4 16;
43: 7; 44० 2; ४. 630 7; 646; 656
00,.4; 7:24: 98) 44 १ 50 16;
59; 2; 2; 60, 3; 65; 6; 67, 8; 556, 6;
0 -23 02.7
0423 32. 1. 69.944. 2-00-19.
7104; 5; ४111. 5, 74; 23; 36; 8 ग; 210;
165 19; 97; 26; 3; 5; 4 ८; 57: 1; |
18.0;92.0 01. 4 102 ।
>, 24, 4; 6; 393; 4; 7; 82; 9; |
१९.44.04 9 0.9.134
1323 7; 143; 5.
युवमांनः 1. 58, 2*
युवऽ्युः ४1. 62; 3.
युव् ऽय् ४. 47, 8. |
युव ऽयूनिं 911. 70, ¢. |
युवशा 1. 167; 3; ¢.
युवशाऽइव ४111. 35; <.
युवसे ४1. 47, 14; 60, 2; 2. 1975 ए
युवेख 1४. 48, 5; ४11. 26, 20.
युवख ४1. 6, 47; 39, 7; ¶. 59; 93.
युवां 0 43 12 ध 8; 4; . 244; 4; 155;
6; र. 44; 20 3; (1, 8; 45: 24;
युवं दिक् न् | 1४. 12) 12; ४. १. 6 ; 44 3; 4:92 92 00, ह ग ।
ग 5; 07, 3; 740 5; णा. 45 ए; 75 = | |
युवऽधिता ४1. 67, 9. ४1. 0 2. भ. 2 2; 207; 497. ` छि |
युवन् 1. 1415 10.
दृक्षया. 7८५
युवन्यूत् ४. 42; ग.
१ युव॑ऽ्भिः 1. 3, 7.
` | युर्वभ््यः 1. 2, 1
64> 7; [-&. 74; 5; 2. 40, ग; 46, $
युवाकवः 1. 3; 3. |
| युवाज्ु 1 14; 4; 120; 9 छ
यवकः 1.1.349 69
64; 4; 68 ४ +. ५ ८ | (^ ५4. ^ ‡ |
४६9
युवाकोः 1. 68, 7.
| युवा ऽद॑चस्य ४1. 26, 12.
युवानः 1. 64 3; 152; 5; 165, 2; . 164;
. 1. 54; 70; ४. 50; 8; "1. 20 14; 38
युवानः 1. 186, द; ४. 58, 3; ४1. 49, 77.
युवानं 1.07 8; 710, 23; 178, 6; 1. 16,
1; 32; 77; 35; 4; 1. 32 ¢; १, 59 7;
10; 2; *. 44.26; 9 4; 60, 29;
क. 32 8; 39 4; 555; 92 4
+ भबाना 1 20, 4; "०8; 1१.333; 355;
260, 4; "1.08 4
युवाना (१. 14; 111. 58, >; णा. 62, 5;
67; 10.
युवाऽनीतस्य ४11. 26, 18
| युवाभ्यां 1. 709; 4 ; 11. 4, 5; ४. 64; 4; णा
० 5.5.42 20671.
युवां 1. 47; 4; 7०9, 5; 777, 19; 779, 5;
1499; ८. 1591 8 1860, 8 187, ५ 784;
91.41.79; ~ 1114102.
| | 04.91.000 11.152 4.8
1.0. 1147122 .392. 9
4; 5 |
यृुवामहे प. 57, 6. ।
युवाऽयव॑ः {. 155, 6.
युवाऽयुजं 1. 219, 5.
य॒वाऽव्ते 111. 62, 7.
युवासे ष. 35> 3. |
युवे णा. 9, 58 . `
युबेथे इतिं 1. 180, 6.
युबोः नू. 34) 7; 70; 46) 14; 770, 2; 110;
„` 1 99 3; 4.8 1399530; १52 2;
ह ` ^" 386, 1, 24.12; 19-83-54; 3;
58, 24; 6.४, 44439. 23; 6; प, 9,
9; 67, 7; 68, 10; १०३; णा. 69, 4;
72 2; 82; 8;. 84; 2; 93, 8; णा, 22
८ | 4; 20, 7; क. 40 6; †; 67, 25; 1329
षम् ए. 58, 4; ए. 6०, ०; 9 &. = `
1 054
युवाकोः -- युपऽवाहाः.
युप्सऽ्यंतीः {7. 39, 7.
41
यष्मा ऽडपितः 1. 39, 8.
य॒ष्माऽऊतः ए. 58, 4४. |
16
युष्माकं 11. 59, 9; 70.
युष्माकं [. 39, 2; 4; 1" ¢;
24; 73; 1.
20; 5; ४. 54; 5; णा. 28, 14; २. 70;
4; 82, †; 126; 4
युप्लाकांभिः 1. 39, 8.
युष्मकैन 1. 166, 14.
युष्मादत्तस्य ४. 54 13; णा. 47; 6.
युष्मान् 1.101.7/..11.2 9141 6.
युष्माऽनीतः [1 27, 77. |
युष्माभिः ४11. 63, 70.
युष्मावत्ऽसु [1. 29, 4.
युष्म इतिं १.140.412 111
18, 219; 407; 8; 68, 9
युधं 1४. 38, 5; ४. 2 4; प्रा. 46, 5०.
यूथस्य ४. 47, 29; >. 32, 4.
यूथा 1. 87, ¢; भा. 67, 8; 7.
5; 96, 20.
यूथाऽ्डव 1 728; 1४. 2, 8; ४.3, 7; श्न.
19, 3; 29, 5; 49; 22; एना. 6०, 3; भा.
25;
युधानिं *11. 4, 20.
0.00.
य्य ए. 56, 4.
यून॑ः 1. 172, 27;
४1. 26, 19.
18 46, ; 1 3 ४. 53; रु ‡
यूनां र. 68, ¢. व
यूते 1.53; 19; 69 3; 99; 425. श,
1.1
गरष 1414. 07 5 4 - <
युपऽ्रस्काः -- येन. ४६३
4; 10, 5; 10; 44; 2 उ; गा; 712; 2,
यूपं ऽव्रस्काः 1. 162, 6.
यूाऽइ्व 1४. 33, 3. 3; 7; 9, ग; 36, ग; 46, 10; 14; 48, 8;
यूपात् ४, 2, ¢. | 5० %; 5 9; गग; ग्5; 63, 8; 66, 2->;
यूयं 1. 75, 2; 38, 4; 86, 9; 266, 6; प्य, 9; 07,9; ष्वा. 19; 16; 9 2; 7, 6;
2; 1.98, 8; 29, ४; 3; 4; प्र 26, 8; ` 76 7; 7; 78, 12; श 9 9; 26, 1;
3 6; ॐ, 5; ४, 54 144; 55, 5; 10; 2, 9"; 25, 2; 39, 4; 32, 15; य; 34
58 4; 59, 4; 6 ग्ड; 87, 9; ण. ०8, 6; 24; 35 14; 5; 38, 5; 42, ५; 56, "6;
5०, 7; 56; प; पा. 1, 2०; 25; 57, 57; ए; 7; 58 2; 6 4; 66, 5; 6; 0;
2; 66, 12; णा. 19, 35; 2 76; 28; ष्य; 13; 67, 8; 9; 24 4; 6; 87, 3;
47; 8"; 07; 0. 82, ८ र. 69, 8; 98, 90; 6; ०13 71; 02; 4; 96, 5; 104 9
2; द. 64 1; 77, 5; 6; 9, 2; 9; 8; णा. 79; 239; 6, ग्ण प},
126, 2; 4; 136, 5. 16; 9, 3; 75, 28; 18, 22; 79, 210; 28;
यूयाः ए. २०4 ग 20, 18; % ; 28, 7; 5०, 2; 4; 34; 14;
वृ 7; 46; 18; 49, 3; 8; 52; 3; 6;
004 0.4 01.01.01 06
4901 1413 1411072;
यूयोत् उ. 95, 12.
यूष्णः 1. 162, 13.
ये 1.77; 86; "46; 89 9, 3-8; 20, 65, 24; 23; 75 5; 75; 55. 7, 3; 86;
2; 24, 6; 10; 25, 9; 33, ९०; 34 9; 4; 9, 4; 5; 9, 20; 28; 4, 3; ङ्,
35 ग्य; 37; 2; 48, 3; 4; पा; प; इ || ग; 70, 8; 73, 7; 14, 3; 10; 75 ए;
5; 8; 55 7; 54 8; 55, 7; 5 4; 6०, 4; 4; 8~20; 33१ 149 19, 06 8;
* 2; 60; 4; 68, 4; 22 9; 74, 4; 85 4; 27; 6; 28, गए; 712; 29, 57; 32, 2; 36;
9-4-04 9 04; 14959; 10; 73; 46, 710; 44; 65 ¢; 48, 6; 5०,
12011; 7 1131. 1. 4.452.845; 0 10:74 21
1202. 14429 10.10 141 5; 144; 62, 1-3 ; 6; 6, 1.21. 4 64, 6 ;
५.0 5 102 0.4.10 65 3; 92; 15; 66, 7; 2; 09, 8; 23; 3;
23; 39; 45; 166, 4; एग; 168, 2; 3; 74; "~; 3; 4; 26, 8; 7, 3; 2; 48, 2
00 0.1.210. 5; 89 4; 85 7; 3; 3४; 89, 8; 9;
१29.210.6 0.0 1 16; 15; 90 7; 8; 16; 92 7; 93, 14; 96,
9.4 11. 10.0.21 2; 107, 2; 4; 9; 108; 4; 106 4; गगम;
164; ५4, 55.21, 12528; 7; 4» 2; 1. १..10,9 :.0,9.10.1.-0 21
0.101.074 4.5. 4 १41८-3; 149 9. 44 3 4;
2.4 4; 249; 294; 45; 6; 423; 176, 7; 182, 3. |
44; 6, 2; एष. 5 4; 6 ०; 8, 5; 6; ये इतिं 1. 159, 7; 185, 6; भ; 7. 66, 2.
॥ 94.19; र ० 5 न १ ४ व | येने ए. 35 १
८. 10; 44; 9; 9 9 2 त
24. 4455. 452; प, 2 य3.6..; 8; येतिरे 1. 64, 4; 85, 8; १. 59, 2; पा. 20, ` <
` 9414 918 5; 94 6; 29.24 14; ९. 77, 2. (
99 99; 39 2 38 33. 2 || चेन 8, 2; 945 40 9464.
43 95.149. 9.9 49, 5 63566; 63944 4.24.8;. 84. ।
1 2 5201; 4; 53 4; 18; 6; 553; 4. ८ ¦ . 2; 92: 44 120. 2; 160;-44 264; 20
न 94; 58 9 59 1 -46.2 - [-. 49; 66. 4 51895; 89; 2
1 19409 9१.61. 84 186. 5. 4 6
6 ए
र 4 । । येभिः बमत योजनं |
येष 111. 53, 22. त ` ।
येषं 11. 27, 76. |
येषां 1. 3, 8; {1.7 5; 93; ४. 2 5; 193
7; 24; 70; ` ॐ 5; [1 22 2; 295.9;
315 9; 60, 2; 62; 7; प्र. 9, 8; 36 9;
43; 04:45. 1; 514; 38; "45. 0;
` 53 234 <4 15; 77; 3; 87, 5; ४1. 76, 45
11
35" 55 भ भ ५;-18..3:.67 24; 4.2; 1 "1484;
10; 10; 19; 7; 24, 4; 44; 3; 46; 3; ४. 16, 8; 20, 4:43. 7: ४11. 16, 9:
। 48; 14; 116; "1, 24; 22256 20, 13; 23; 3; 45; 7; 54 2; उ. 44 7;
24:69, 2; 104 4; प. 3 9; 0; $ 93; 25
` ॐ; 6 ग्य; 7, 18 94; प 9; 3; येष ४ 1
4; 19, 21; 75, ; | 14; ग ; 19, 162; 20 ; @ ^" 51; 12 9 22; 12 ॐ 73 2 । # ॥ 2
| 15 8 ए. 18, 4. 37; 14 ‡ 6.4, 6 3 ४. 103
`, 24 24; 20; 224 49, 7; 60, 22; 26, 4;
, 89; 7; ९. 74; 5; 97, 39; उञ; पा, 9;
¦ 208, 4; 14; 160, 74; -. 374; 47; 2;
५9.411 2.1.234... °
| मढ; 2; 4; 85; 44; 80, 12; 102, 9; 174;
74.116, 3; 10, 26, 2; 169, 4;
170; 4; 7174; 7, ।
0 येनिः 1. 1९9, 7; गव, 6; 4 3; 7. ॐ, 3;
५.४ {1 3 20; 32 4; 36; 2; प्रा. 0, 5;
1 | पा. 0; णा. 58; 22, 7; 38, 5; 49,
8; 50 8"; 62 4; [क 79 5; 79, 9; स.
2; 4; 54; 4; 55; 7; 85; 23; 92; 5; 9;
1४ :-112; 2.18;
येभ्यः . 63, 3; 7; 154) व.
यभ ४111. 24, 20.
येमुः 1. 179, 5; प, 61, 9
12; 50, 5; 56, 5; "11. 85; 2; 1. 75;
1; ~. 22,.5; 4.3; 1454
यष्ट; ५. 74, 8. |
येष्ठा ४. 47, 2.
यें; ए. 56, 6.
यो इतिं ए. 79 $.
योः 1. 74 7; 95 7; 106; 5; गग 2; 189.
2; 7. 33; 13; 7. 24, 3; 28, 4; 1४.
125 9 > \८ 47 ८ 549 14 3 69, 3 2 91. 569
0. 352 2; 69, 3; १. 39; 4; 4713
15; +. 9 4; 75 4; 37 77; 165
0.4. 1421
योद्ठौ प्र. ॐ, 2.
योक्कानि 111. 32, 73. | (
योग॑ः 1. 34 9.
योगऽद्मं 2. 166, 5.
योम 1, 18, ¢; र. 114, 9.
योगन् 77. 8, 7.
योगे 1.5, 3; 7. ४11. । 144. 4
5; 43 5; १1. 54 3; 67; 8; 86; 8
पा 58; 34. ~. 30, 11; 3593 39, 2;
89, 70,
योगे ऽयोगे 1. 3०, ¢.
योग्याः ४11. 70, 4; 9.९ ५3; 31
योग्ाभिः 11. 6, 6. 1
योजं 1. 82, 1-5 1
गाने 4
` कको | - क क ॥ ए र 9 4 श
ॐ
जद
ङ
भक ण ५५५१
येमथुः ४111. 25 6.
येमथुः 1. 3० 19; प्र, 73 3
येमाते ईति 1४. 48, 3.
येमानः 1. 23572; 443; {र
16 ; 109, 8 ; 28.
` येमानं 1. 2, 15.
येमिम ए]. 7, 4.
येभिरे 1..135; 7; पा. +, 4.
येभिरे 1. 10, ग; गा. 59, 8; 6० 6; ए. 3,
65 45; 7» 34; 19 28; 43 8; 89 2;
98, 3; >. 86, 30; +. 56, 5
येमुः 177. 38, 3; ए. 66, 1
येमुः 1४. 2 74; ४. 27, 6 । ( |
केेष्र. 59 उ. 55 4०५, . `
75; 3; 10;
` योन॑नं 1.88, 5; 791, 20-ग3; प 54 ८ ५
।
योजना 1. 35, 8; 11. 16 3; भा. 96 3;
1. 102, 3; ई. 86. 20.
योज॑नानि 1. 125, 8; ङ. 78, ;
योजनेन 1. 92, 3.
योजनेभिः प. 62, 6.
योज॑नेष 1. 164, 9.
योजं 11. 78, 5.
योजि {[. 18. 1
योतवे ए. 18, 5.
योतवे ए. 71, 5.
योतोः 1. 18, 77.
योत्सि 1. 132, 4 |
योधः 1. 143; 5; पा. 25, 5.
योधत् ५7. 59, 2.
योधं प. 26
योधयं (11. 46, 2.
योधया 71. 98, 4
योधाः 111. 39, 4; 2. 78
योधानः 1. 121, 8
योधि ४. 3, 9.
योधिषत् ४11. 45; 5.
योषिष्टं प्रा. 60, 2
योधीः इ. 120, 5.
योधीयान् 1. 173, 5.
योध्या {2.9 १.
योना 1. 65, 2; 144; 4; 164, 352; 1. 54;
040१, .9.11. 1.62.
१०.;.2..01 0, 1.860.254; 1 69..4
योना ऽइव श. 101, 11.
योनिः 1, 104. 7; 164, 33; 11. 3; 71; 1.
00.10.50, .41.2.21 4 405;
१६५. 4;
योनिं 1. 113; 7; 324; 8; 149, ग: - 11.38; 8;
` पा. 52; 33.93; 4; 6. 13; वप्र. 5, 2;
9.4.444; 64 -43. 43.25 36
(0 १९६; बा. 4.5; 797; 9; 4; १
"86; 94.24.424. 3.19, 5;
` 952; 5; 3० 4; 37; >; 38, 6; 42 9;
(८. 63, 2 | 029 4 9 64 21; 47; ५2 = ॥
योनना -- योषाऽइव. ४६३
----------___-----~-------(-(--(-------~------__~
|
6.5 19 ; 66, 72; 4०, १; 47; 6; 80, ॐ;
82, 7; 97; 45; छप, 4; 1-11-4:
५" 7 ग; 78, 0; 34 प; 65 0; 68, 4;
91, 4; 96, 2; ५9, 2; 700, 9; 123; 2;
146.64:162.1; 4741-4.
योनिषु 1. 75, 4; 7. 36, 4; उ. 49, 7; 63,
39; 1224; ४
योनेः 11. 9, 3; 35, 30. | ।
योनो 1. 633 4; 656, 3; . 9, 3 :. 104; 7; 144;
2; 149, 2; 174; 4;--778, 2; बा. 7, 7;
71; 29, 8; 62, 28; [ष व, उव; 76, 7८;
10. 4 0.10, 41 "4.4 1,
9; 25 3; 28; 3; 39 6; 92 2; 2. 8
10.7.31 10.010 190
85; 24; 77, 3; 122; 6
योन्यं णा. 45, 39.
योप्यतः 2, 18, 2.
योपयामसि >. 254, 7.
योयुवतीनां ए. 659, 2.
योयुवे ‡. 92, 9. '
योषणः 1. 141, 2; [प्र 5; 5; 1. 1, 0; | 03
3 2; 238, 2; 6; 3; 58, 4,
योष॑णा 111. 8, 70; 46, 33; इ. 77, 2; 42, 6.
योषणां ४. 2, 4.
योषणाः 1. 56, 5.
योषणां 11. 52, 3; 62; 8; ४. 32, 16; [३
107; 74; ~+. 39, ४; 4
योषणासु ४11. 95, 3.
योष॑णे इतिं ४1. 2, 6; ह. 710, 6
योषत् 77. 28, 8; 33, 9; 7.2, 9; प्रा. 7
27; 34; 17
योषति १11. 37, 7; 33; 9. |
योषां 1. 92, ग; 7०, 2; 19, ५; 9.9;
1; 167, 3; 71. 33; 70; 38; 8; 482;
ष. 78, 4; प. 75, 4; पा. 694; 755;
1.1; 9. 325 16 4:20.
वण 9
योषांऽड्व 1. 48, 5; ए. 8०, 6; णा. 75 3;
1. 46:23 9644. ~
४६४ | योषाः-- रसः. - . `
योषाः 1प्. 58, 8 ; ॐ. 168, 2. । रसः ऽहने 1१.129; 1. 23,4; ~. 7.
योषौ 1. 56, 7; गढ, 2; 710, 20; ४. 26, 5; रलःऽहनां ४11. 73; 4
क. 952; उ. 3 9; 553 य. रलःष्दा 1. 129, 6; ए. 8, 6; 12. ए 9;
योषिते 2. 38, 4. | । 5, 9.012.070 194;
योषे इतिं {. 704: 3. | 1629 7.
: यौ. 28, 5; ०2, प; 776, पञ प्रा. 5, 3; रसणेभिः 19. 3, 14.
1, 68, 8 ; 84, 2; २, 149 71; 66, ¢. | र्त {. 24; 9. |
योः 71. 32, 2 ` | रत 1. 166; 8
योषु: 2. 23; 7. | रसतः 1. 160, 2.
यों ए, 86, 7; उ. 85, 42. रतं 1. 285, ०8.
` ` र्द 1. 94; 8; ४1. 50, 1.
[श 3.1
रतात् 1 प्र. 5०, 2.
रसतां 1. 185, 10; +. 36; 4.
| रेते {3. 9, 9. || र्सति 1. 26, 4; #111. 47, 1,
# रहमाणः 1. 110, 3. || र्छति 1. 756, 5; 11. 56; 5353 1४; 1४. 53;
रेहमाणा 1 र, 100, 4. ` 5; द. 73, 3; 83, 4.
4. रद॑यः 12. 86, 47. रतु ए. 54, 5; ए. 15 3.
(क रंहयतः 1. 85, 5. | रते [5 . 68, 4. |
रदय॑ते ए. 29, 6. ` | गदते 1४. 53, 4; पा. 83, 9.
रहिः +. 95 3; 778, 3. | । रक्षय ४1. 44, 7.
५ क रेखः 11. 18, 1. ॥ि || रतं प्र. 44, ¢.
| रदं ह. 140, 4. रसति 1, 47, 1; 2. 108, ४. | ह
श्यां यभ. 1, 5; क. 27; 6 8; 756, 13; | रंति. 5, 5. ॥॥
२ 96, 4 रंह ए. 48, 5.
ग्वं 1. 28, 3; 35 वव; 54 ण; 9.8; 74 || सवते पा. 67, 5.
7; ता. 7 पठ; [क $ 4; १.80; 6, र्ते 1. 62, 10; 72, 6; 9०, 2; रा. 7, 7.
36573; 3; 41. 153; ४1. 843. || ~ - ; ह. 8
1. 29; 5 १ 671, 39 4 अ. 1 1 ६ ग 31; {2 ५ ^ | ध ॥
रक्ष् 1, ऽ, 2; द. 43; 4; उ. 53; 0 =
०5 रषमाणाः 1. 729 5; 146; 4; [. 97, 4; ॐ.
| | ५ 68, 7.
रः 1, 21; 4; 86; 9;.752; 5; [1 30, 26 रवनाणासः 1. 96, 6.
14; १.3, 4; १. 28, 10; भा-क ह; | ~ रकमायौ ए. ।
। | रक्षमाणो ए. 69, 1.
45: 22;..22; 24; (11. 60, 20; ॐ. 529 1 । | |
{5 07 10 4 87, 10; 14; 89; 14; 118 द. 35 36 19 76 3.3 :: 79) 6;
7; 152 $ ५ । 129; 1; 11 23.14; 25; 1; 1४.
0. वं ऽन शा 18. 7 | व | ए; 155 ४. 42 16. 83.23 ४ 20
८: ५ र न |. णा 8; 2 9; क
(८ रश ऽभ्यः 104; 25 ५ ॥ ५1 | | | ॥ |. 224;.14. 60. 10 ;. 29; [6.4 63, 29; य,
1
पा
॥,
9८0 9
शशि > 6
ग्से ४.2,9; 10; प्न. 442 4.9;
रचसे धा. 1, ५.
रशखिनः 1. 12, 5; 56, 2५; ए. 60, 20
रदखिनं \11. 94, 12.
र्टास्िना +. 22, 18.
र्ाखिने भा. 4, 12; 60. 8
रासि 1. 79, 12; ए. 26, 29; 48; 64, 10 ;
411. 15, 26; 38, 7; पाः 24. 14;..46;
16; 48; 26; 1. 2, 3; ॐ, 7; 49, 5;
6010324, 714. 12. 30. 4.4.
9: 19; 98, 12; ग&, $.
राः + 11. 104, 76.
रदतिः ~. 85, 4.
बिता 1 89, 5; 1.4. 1; ॐ. 86, 6.
रसित्तारः 1. 89, 1.
रधितार ~. 6;, 6
रित्य 11. 39 6.
रितसे द. 14, 71.
रिषः; + 111. 61,
रधिपत् पा. ८2, 2; पा. 6, 15.
सधय इति 1. 34, 8; पा. 54 16; ए. 63, >.
रो इतिं 1. 1;4, 3.
र्थवः 1४. 5 13.
रधुः ४. 3०, 14; 45: 9.
| रघुजाः ऽइव 15.86, 3.
गरथञ्द् +. 61, 16
रधुऽदूवं 1. 240; 4; ४.
` रधुपत्मऽजहाः *1. 3, 5.
४ रथऽपावां ‡\. 6, 4
ध रषुऽपत्वानः 1. 85; 6.
` रषु ४111. 33: 7 ॥
दथुऽमन्यवः 1. 122, 7. ४ । ५ ५
*व, 1.9
, कै ॥)
रसं -- रनसी इनि,
1 1
रासं 6 104, 6
रसंसा [+. 8;
सि 1}.
रन॑सि 11. 2 4; इ. 14, 6; ए. 15
४९५
रधुऽयत् 1४. 5, 9.
र्घञ्या 11. 28, 4
रधुऽ्यानां 1. 39, 4.
रघुऽवतेनिः 1. 81, 2.
रथुऽव॑तेनिं ए. 9,8.
दधुऽस्यत् 1४. 5, 9.
रधुऽस्यदः 1. 64; 7; 85; 6; 74०9, 4; णा.
34 17. |
रषुऽस्यदं 1. 26, 2; ए. 25, 6; 23, =.
रघू रतिं >९. 49, 2.
र्ध्व इतिं ४1. 63, 9.
एध्वीःऽईव 1. 52, 5; 1. 47, 9.
पनः 1. 52, 7; 56, 5; 58 प; 5; 62, 5; 58,
5; 852; 84 7; 9०7; 770 6; 139,
1170141, 1.7 4४.
30, 7; 45 2; ४. 48, 2; 53, 7; 59;
४1. 67, 72; णा. 66. 5; 8.2; प्रा
88; 5; 1. 22, 4; 5; 63, 6; 68, 9; 7
6; 77; 2; >. 37, 3; 56, 5; 66, 77; 1०5;
7; 729 उ; 143; 2; 149, 2.
र्जःऽङषितं ए111. 46, 28.
रनःऽतुर 1. 64; 12; [द. 48, 4; 108, 0,
रन॒ःऽतूः ४1. 2, 2; 66, ‡.
प्जःऽभिः 1. 116, 20; ए. 62, 2; 6.
रजःऽसु ए. 34, 6; णा. 77, 5; श, 42; 5
रनतं ए. 25,
वश 10.19 19.442, 526 70
74; 79; 7; 92; 1; 124; 5; 160, 7; 764,
०.1.108... 23.44.31 26
040 4 1.411.011...
3; 48, 7; 59 3; 69, 4; ४. 62 9; 7,
1१. 25.541 2.04;
` पा 27; 3; 59, 2; 1९. 62, 14; 86, ० 0
। 53; 0 95.74: कय, न
९. ध 6; 27; 7 \ 49; ; । |
9.9 1399 149
रसा 1. 352 4; 9; 64 4; द. ॐ 2
| 5 2; 45, ।
3; 82 4; 125; 8 (| (1 |
6 ¢ | |
८ 15; 9; 91. 80, 7; 99, 7;
0.8;
रजासि 1. 32, 14; 35 4; 49; 4; 54
10 6-763-42 2
184, 4; आ. 39, 7; 1. 4 4; 3०, 2; 58,
64.0.16... 249.
4.4; 65; 5; 69, 15.75 3; 81, 5; ++.
7, 7; 3०, 3; 5०2; 49, 13; 09 5; +.
1,0.06 4.4.44. 22 74.09
9; >. 37; 8; =. 757; 77752; 4
रजिं ५1. 26, 6. ।
रजिं 1. 971, 1.
रज्ञिष्टया ¬. 100, 12. |
रजिः ४11. 57, 2; 1. 97 28.
रजिष्ठा {. 89, 2.
रजिः 1. 79, 3; भा. 107, 10.
रजी इतिं ‰. 105, 2.
स्नुः 1. 169, 8.
र्यां +. 100, 12. |
| र्णं 1.7, 4.
रण ४. 2, 8; 41117217.
ग्णऽकृत् ऽ. 172, 10.
[1
# 3
# ॥
रणत् ॥ 11. 93, 20.
त्ण॑न् 1४. 33: 7; प. 53, 16; =. 25; 1.
रणत +. 57; 5.
रणति पा. 92, 20; [द्. 711, 2.
॥ रणति 11. 7, 5.
च. 96,.16 3 +. 129 .79
रणाय ४111. 24; 17.
[ निषि श)
रणयन् {. 100, 7.
रण्येत 1. 47,
| 148, $.
(क
रण्येतु ए. 28, 7. ` ५.
रणयामसि ए. 9०, 12. `
प्णस्य +. 2, 42. ०
णाः 1 4. ४, |
रणाय 1.62. 6;: 95: 116; 27; 168
11439 4
01.01.11.
४६६ एनांसि -- रत्लधाऽतमं.
कामासो क
८ 9 11.24; 33. 1... 0
53; + 9 1; ५5, 7.
रणिता ४111. 96, 19.
रशिंटन 11. 36, 3.
गणे 1. 229, 5; 9. 35;
66, 12.
रणेंऽरणे 1. 74
रणेषु >. 120, ‰.
रणः 13. 96, 9.
रण्यऽजित् 1. 59; 7.
र्र्यति ४. 28, 1; भा. 33, 16
रति 1. 83; 6 ; 1९. 104, 18
दण्ययः ४. 74 3.
र्ण्यति #111. 16, 2.
रस्यति 1. 38; 2. |
रस्यऽवाचैः 11.440
ररयसि "9117. 12, 18.
रणया ए. 70, बा; क. 112, 5.
रण्यानि 1. 85, 10; 1. 55, >.
र्यवः 1.00. 2-00-4 41.144...
1,11.7 1.21 3
6.01:
भन्न
अ ॐ
(>
च
ऊने
स्वयं
ध 3
&
(शी;
9
४. 16, 15.
ए
क्क $
र्णं ऽभिः ४. 44, 10.
रं 1. 128, 8:;
ररवयां १4.64. 4:
रणऽसंदूक् 1 51 1
रवऽसदूशं ४1. 16, 37.
गवा 1. 653: 11. 4, 4; 1४. 16, 15.
रणाः ४. 7; 2; १. 597
रणाः 1४. 37, 1.
ररवासः ¬+. 17 4
ररिवते इतिं 11. 5 6.
ल्ल ऽधाः-1. 5; 3; 204; 49; 1...
81.0.10... | 2; 10
त्धाऽततमः 1 | |
त
दयऽश्नठठर
रहे ऽधानिः -- स्थं. ४६५
रल्नऽधाभिः 1४. 34 7
रनष्धेभिः 1४. 4; 8; 35, 07.
रल्लऽ्थेय 1१. 15, 1; 54 4; 9.9.
४. 42, 5, |
रत्लऽ्धेयां 1४. 24, 1.
रत्न ऽ्थेयांनि "१. 53, 3; 2. 28, 8.
र्न ऽधेयाय ५ "94.41.10
रत्र ऽभाजः + 11. 81, 4.
स्त 1. 41, 6;
१3. 149. 13
0.01 10
55; 1; 58 7; 975 7; 94, 14;
१.
042 3 3 56,
1117-4. 410. 1
3; 3०9; 4, 3; 444 4; ४. 48, 4; 49,
24 "१ 4-101-01 31
# 1004-9 2.41. 43.56;
1.1
०090...
#
52 3; 75 6; £
1. 47, 4; 59 7
र्त्ऽ्वततं 111. 28, 5.
गल्ला 1. 35, 8; 7. 2, 7; 3, ए; एष्र. ५ म
6-10-11. 1
4. + 1.10 3 :11,5
रल्नानि 1. 20, 9; 4; 2; प. 62 4; ४. 15
ध 10.514 1 01101
५5 9; 1. 3 6; 35, 22
रत्निनः + 11. 49, 7.
रत्निनीं 1. 182, 4.
रसि ४. 10, 7,
रण ४५], 47, 28.
९, 148, :3.
54; 3; 58, 3;
गणः. 39 18; 46, -3:;
~^ 00; 44. 44..4; 209 1641; 7 ०
318; 1.1: 10, 3; 120, 71; 122, 153 224;
414...
1040 180, 7; 187, 1821 143
4.6.356; 18; ब; 20,
1 55 494 598 1.9.84:
44 3:48 |
४. 14.58; 34 313: 448; 76:94 1
। १72; #१8। १4; 2: 49; ‰; 041. 68 10; {६
27 34 ; 26 13 43; 5 }। 4.72
१.1.140 41. 68, 3; 69, 7;
5; 77 4; भ्व. 9, 28; 15, इ; 29,
8; 22 5; 26; 4; 3153; 15; 33; 4; 12;
18.12 1497 86 2-1-01. 1
94 3; 77; 3; >. 2992; 39 ग; 44 2;
0.411.411 ५ 10,
रयःऽख्व #1., 67, 14.
पिः ४. 50, 5 ; इ. 64, 10 ; 92, त,
र्यऽसछयाणि ए. 35; 7.
रयऽ्चपेणे ए. 5, 9.
ग्यऽजित् 1. 78, 4.
रवऽतुर 1.9.29;
रयऽतूः 9.
रयत्ःऽभिः 1. 86, 2.
रयश्प्रां ४1. 49, 4; ए. 74, 70.
रथ॑ऽप्रोषटेषु >. 60, 5. | ।
स्थं 1. 20, 3; 25 78; 34, 5; 1; 35 4;
5; 46 7; 492; 5 12; 52 ग; 546
56; 7; 67, 4; 70, 4; 82, 4; 84, 3; 92,
10.120 16 1423-5 2 0, 1-6 ;
१11. 122 2111111 13;
11095. 210. 1... 1 20. 7424
10 14001411 20107
"2.1 200. 1911.
114.9.-140 0-140-00
8; 20, 7; 23; 3; 3 {-4; 575; 4०
3; [1 29 ४; 15; 35 4; 44 ८; १.४
14; 16, 20; 53; 8; 43 2; 45 3;
10.41.101...
पव; 33 3; 354; 8; 56०8; 649. ठ; 5;
7; 73 5; 74 3; 75 ८; ए. 18, 9; 26
4; 375; 37; 7; 44: 24; 45 4; 47
2; 53 7; 65; 5; 758; शवा. 253;
22.70.40. 02.1.23...
५; ना. 235; 5.28 24491544;
8 ;. 10,:6 $ 72; 24; 22. 2422; 26 | “४
1; 33, 18; 35:22; 45 9:46, 24; 46 | 4
5. - 58, 31: .68.- 2; 89, 35; 10.; ~ 74;:1; :
8९ 46 ; 84 1; [ष 775; 75 7; 96
23. 104, 1431112; 4; >, 4
11.84:
23; 3; 26 9; 29; 8; 56; 39, 4; 72;
14; 40 ए; 6; 47 7; 2; 537; 6०2;
65, 24; 7०, 5; 75, 9; गणा, 7; ०2 य;
105; 5; 774; 6; 79, 3; 152; 7; 155
39 ८229. ~ 7131 771; 7
प्यऽइव 1. 94; 7; [. 23; णा. 4, 6
रथंऽतरं उ. 181, 1. |
स्थंऽते 1. 764, ०.
रयञ्या प्रता. 46, "0. |
र्यऽ्यावाना एना. 38, 2.
ग्यभ्युः 1. 5, 4; पा. ०५; ३, 7० 5.
रयथ्युजः 1. 159, 4; पा. 35, 74.
रवभ्युज ४, 41, 6.
रययैतः भा. 710, 2,
[ कष श क ।
रययैति 1. 5, 5.
रययेसिं २. 37, 3.
र्यऽ्वत् ए. 57, 7; प्रा. 7, 5; 70; 5.
र्थऽवते [. 7122, ए.
र्यऽवाह॑नं प. 75, 8.
स्यंऽवीतिः ४. 67, 19.
र्यंऽ्कीतो प. 67, 18.
रयञ्सगे 12. 53, 2.
रथऽसहा 111. 26, 20.
यऽस्मृरः +. 95, 8.
रथस्य 1. 3०, 9; 34 9; 5०9; 74 7; 88,
2.4.290, 9; 11.18, 7; 1. 35 2; 45
2; 535; प्र. 19 3; पा, 62, ०; पा.
29; 4; 126; 91, 7; इ. 26, 8; 59, 1;
714; 10; 22; 4; 168, 1
श्यां ४71. 18, 22. | |
| याः 1. 38, 14; 786, 8; [प्र 4.4; 45; 2;
४. 35 9; 3 य.
रर्थाःऽखव 1४.19.५5; पा. 74; 6; ४1. 3, 15;
1...10, 1; 2; 22, व 0; 14; 69,.9.
र्यात् ए. 405. "=. ५
ग्यान् 1. 112, 22; [1.8 ठ; ए. 535; ए
१ क =
रानां 1. 48, 3; 7. 58, 6; ए.5१, 9; 5,
च्छः ¢
91.22, 2; 664.-4; 04.23; 2०, 9
१९. 06; 2; ९. 26; 4; 48, 4; 1029
१0.200.
गयान् ऽइव 1. 14.41 12324. "7.28
1१2.
म 1111. 1.1.174 1
68, 13.
प्यास; 1. 126, 3; 1. 124; व+ 7; र. 142,
यिऽत्रमः ५1. 45; 15; 56, 2; 3; गणा. 4;
4.011.004
रथिऽ्तमं 1. 71; 7; ए. 55 2; एना. 99, 7.
रथिऽतमा 1. 22, 2; 180, 2.
रथिऽत॑रः {. 84, 6.
र्थतः 1. 122, 8; भा. 24; 8; 4; 37; क.
† 97, 5०.
रथिनं ५4.
दिनो 1. 77, 2; पा, 4 ¢.
रथिनः 1. 9, 8.
रथिने 2. 4०, 5.
रथिय तीऽइव 1. 165, 5.
ग्थिरः [. 1, 10; 37, 20; 1. 76, 2; 9,
46 ; 48.
रथिरः [71. 26, ४; पा. ;, 4.
रथिय ४1. 69, 5.
रथिययता 12. 93, 4
रथियसः *111. 50, 8; 12. 97, 37; ‡.76, 7.
री ४11. 4, 9.
री ऽव ४. 83, 3; उ. 57, 6.
र्यीः 1. 25; 3; 442; 7, 3; पा |
0; 3०-7; 1४.10 2; ण, ल; 2; 48, (1
55 ८; +". 12,.2; क. 102;
रवीःऽङव [४.15 2; प. 67, 0; एना, 45,
१४.00; ^ 04 76.
1..0, 2;-13;-4;14 72: 26. 2 34;
42; 3; 6; 5० 8; 94 10; 778, 4;
3; 1393; 4; -18,3; 347; त
472 9; 1४. 442; ४. 70, 4; 43
54 ग; 05 4; ण
1
छे
ॐ
क्कः
95: |
०.21 4 3; 97, 286; 20, 8; 22,
9; 26, 23; 65, 4; 85, 7; 98, 9; ड.
27; 4; 602, 70; ०9, 4; 98 2; ¬. 33, 5;
0412-0 614
र्थन 1. 22, 4; 34 2; 35 9; 47, 2; 0; 9;
49, 10; 113; 14; 1716, 1; 26;
11९2; 3; 70; 7235; 7; 296;
11. 20, 22; 16; आ, 33; 9; 16; 54
14; 7; 3; 44; 4; 5; 46;
01404. -44424.2 1.4.24;
02, 20; #[1, 60, 3; 71; 2; 42, ठ; 2;
3
१4.11. 15.4.14 6:21.
> 10; 22; 14; ठ, 7; 733 2; 85; 8;
~+ 395 7; 7० 3 ; 85 46; 105; 4.
रथभिः 1. 48, 7; 88, 7; 106, 70; 11. 5, 4;
2
१.5 3; 586; णे
{~
रपेभ्यः 1. 94, 17.
रथेऽषाभ 1. 37,
१५...
ण. 56,
स्थयु 1. 39, 8; 64, 9; 85; 4; 5; 84, 2;
6; 2; 47, 6; 6०2; 4; 6 12; शु
ग्पेऽ्स्या; 1. 203; 4; 5; ४१. 29, 2.
रयस्य $| ; 225; णा. 33, 14;
1५, 44, 44
दये ऽस्याय + 111. 4 13.
र्थेऽस्थनं 1
भ्रः 1. 116, 4; 0. 9, 1.
स्थेःऽङ्व ४, 6०, 1.
1.1.41 1.3
द्यः 1, 121, 14; 148, 3; 1. 2415; पा.
। 6, 8; ४.16, 271; भ्र. 4.2; 84; 8:; ग.
६.0.441... 11.702
47, 5; द. 78 5; 9०7; 150
णा. 6, 21; 66, 2; णावा. 83, 5.
षा 1029 | 7; 1. 16,.2
92; ह । + ० | ।
1494 णा.
9.28; 2 |
र्यस्य 1४. 41, 10; पर. 41, 3.
रथ्यां 1. 52, 9.
रथ्यां 1. 154,
6; 782, 2;
छ. 2 7024;
रण्या 1 34 7; ४. 76, ए; +. 62, 7.
ग्थ्यांऽ्इव 1. 180, 4; 11. 46; प. ग, 3
९0,.2 4 129,
र्यां ऽइव 11.494; 34.1.22...)
1. 160
9.11.-38.1;
रथ्याः 1. 86,
रण्यांसः ४1. 37;
रथ्ये [. 97, 7.
5.
95
2*
क
रथ्ये पा. 44. 2.
रथ्यभिखिति रथ्यभिः 1. 157, 6.
क
एदं 1. 169, 8;
रद् 40.70
र्दत् ४. 8,
रटति 1. 266, 6.
ऋ 010,
084.
रदता 1, 774, 7.
रदति पा. 69, 4.
रदेती ४. 80, $.
रदतीः 11. 3०;
४. [।
रद॑हु ए. 62, 3.
रद्वसो इतिं एदऽवसौ भा.
रदं 2. 113; 8.
रथं 1. 5० 23.
रधाम +. 128,
‰*
रथञ्चोदः 11. 27, 4.
रथऽचोदनः ४111..80, 3.
रऽचोदनं ५1. 44 10; >+ 38, 5.
रथञ्वुर ए. 18, 4.
रं [. 347 15; णवा. 56, 26.
रथस्य 12.02:
रन् 1. 72209, 7.
रत [. 61; 77
| रतयः ४11. 18
भ. 39, 3.
10; [. 102, 5
रतां 12. 92, 3.
6
प. 5 5; पा.
३2, २8.
४
४99
रते ४. 36, 3.
र्यः +. 29, 3.
रभेय 1. 57, 8; 152, 4; [ा. 55 14; भ.
19;.72;. 53; 5; +", 30, .2; 2. 80, 8.
रधयः $. 43, 1.
४ रेथयत् प. 19, 6; ५ | |
रेधयेन् 1. 5०, 13;.57, 9.
रथय 5. 49, 4; 5 ४
रथय 1. 3०, 16.
रधयानि २. 28, 9
रथि 1४. 22; 9
रेधि णा. 18, 18.
रथीः 1. 104; 2; ४. 76, 13; एना. 31, 5.
रथ ए. 7, 26.
र्प॑ः एना. 34, 13; पा. 18, 8 76 ;. 57, 9
+. 59 87; 60, 77; 97, 10; 747; 2; 3.
रपत् 1. 774 7; द. 7, 2.
रपति ई. 67, 18.
रप॑सः [1. 33; 3; 9.
र्पसा *1{. 56, 7.
रपासि 1. 34 7; 69, 4; 150, 4; ए. 31, 3.
रपामि क. 10, उत,
४: रषदा ष्वा. 429 12.
। रपितायं +. 71, ४.
1 रभसं 7. 10, 4; गा. 21, 1
| रभसस्य 12. 73, 6. |
सा 186 9
रते -- रयिंऽतमः
रभसायं 1. 166, ".
रभसासंः 1, 766, 70; ‡. 95, 14.
रख +. 84, 2; 8; 155 3.
रभसतः 1. 9; 6.
रभ॑सत्ऽभिः 2. 3, 7.
रभ॑खान् ¬. 3. `
रामरे ४1. 57, 5; ९. 135;
रभिः +. 5, 29.
रभिष्ठाः ४. 58, 5.
रभे 111. 53, 2. |
रभमहि 1. 53; 4; 5; 11. 32, 9.
रभ्य॑सः 1. 120, 4.
रमते पा. 107, 4.
रमते 1. 38, 2; ॐ. 145; 4.
रम॑ध्वं 111. 33; 5.
रमते [. 30, 7; इ. 771, 9.
रमयं ४. 52, 13.
रमय ~. 42; 7.
। 8 कि ।
रमयः 1. 72, 74. *
| 8. कि ।
रमय॑त् 1. 56, 3.
रमयति ४71. 56, 19
रमख >. 34» 13.
रवति 7. 86, 26.
रभ ए. 45 29.
रभिनी ऽइव 1. 168, 3.
री गा. 159. | [ि
ऽसु 1. 4, 5. 6 (क
रऽसुंजिदः 1४. 7, 8. |
रयिः 1. 66,. 1; १2.320
प्र, 00.3.11... 4.4; ग1;.4; 34;
४. 457; 5०5; णा. 75 ग; 45; 5,
12; 20) 1; 27, 7; 68, 7; णा. 15, 5;
32० क; 84 3; ष्वा. उव; 59; 7
1. 53.101; श, 79; 3; ग;
यिःऽईव 1. 748, 7, `
6; 134; 7.
9...
॥।
त
लक #
५
॥)
!
। व द ~-71----------- 1. 60, 4; 72,
९, 9), 24.
रथि जपते
रयिऽभिः 1. 64, 16.
रयिं]. 7, 3; 87; 22, 17; 30०; 22; 34; 5
14; 47, 6; 48, 14; 58, 6; 64> 15 ; 68,
3; 7998; 9; 85, 22; ५2, 8; 97; 1; 7176,
5 29 ; 117; 24; 129; ¢; 133; 75. 7141;
11; 159, 5; 162, 22 ; 169, 4; [. 2 6 ;
8; 22; अ, ण; ग 5; 19, ९; 25
2; 30, 77; 4०, 6; 4159; 1. 7, 19;
4; 6; 24, 5; 45, 4; 57 5; ॐ4 25;
1४. 12, 2: 234 10; 34, 6;
1...
4;
; . 33; 8;
3० €; 9; ॐ, 5; 8; 44 0; 49, 4;
41; 9; 42 28; 54, 14; 80 4; 40.08.
१ 7; 3; 9.0; 6, 2; .8
‡ 49 ; 28, 4; 47, 6; 49, |
9; 64, 4; 653 6; 68, 53.6 ; 8; ०, 6; णा
5; 24; 59; 76, 9; 20, 7; 36, ¢;
37, 6; 39, 6; 2; 76; 7; 74
०3 4; 97, 20; णा,
ॐ > 5, 6; 15; 36; 6,9; 4 12; 78
3; 14; 24, 74; 24 3; 28; 40; 2; 44;
15; 46, 19; 60, 17; 77 3; 6; 45 ! 8
14; 904; 95 9; 34; 95, 8; 9; 97,
3; -. 47; 8; 0; 79; ग्य, 9; 12
9; 195; 796; 2०, 4; 29, 6; 329 7;
ॐ ग; 40, 3; 5; 6; 43 4; 48, 3; 67,
6; 62 12 ; 603; 7; 77; 12; 24 ; 65; 3०;
66, 21; 67, 6; 68, 10 ; 229 8; 86, 47;
87, 6; 98, 4; 5; 90, 9; 44;.. 98, 2;
4; 100; ५; 101; 9; 102; 3; 7106; 9; 1009 |
णयः ए. 57 प्ण 9 उ, 4; 38, 2;
435 42; 064 84, 41; 75;
344; 495; 156. 3; 767, 7; 285.
` रथिऽमह् इ. 36, 20,
19; 59,
ईव 1. 6० :
1
रयिभ्वृः ए. 97, 3.
रयिषाद् 1. 58, 3; 1. 68, 8. शि १ |
रयि ऽसाचं॑ः 1. 780, 9. ` ¦ छ
रथिर्स्वानः णा. 47, 6.
रयीणां 1. 46, 2; 6० 4; 5; 68, 4;
70; 3 ; |
22; 7; 73, 4; 96, ¢; 7181, 7; 9 4;
27, 6; 38,
10; 40 7; न. 7, 3; 54, 16;
1४. 50, 6; ण, ॐ 8; 36; 2; ण. 1, 8 ।
73.23;
37» 7; 45 9; , 60.13; श्या. 5
353 10,5; शवा. 8, 12; 19, 8; 46; 2; |
75; 4; 1. 47 5; 97, 24; गा, 6; 102,
4; 5 7; 45 9; 4; 2; 106, (1
रय्या >. 19, ^. ए ।
ररक्ष 1. 147, 3. | ॥
रराणः 1४. 3; 7 4. ॥
ररण 15. 107, 29; इ. 86, 20. 9
रर्णः ४. 32, 6.
ररणत् 1. 105; 91; 14 | |
रपे ४. 77, 4; णा, 32 `
ररधुः ४1. 18, 18.
रणत् [. 122, 73.
ररत ४. 54 73. ॥ + | |
रतु 111. 42, 8. | & ° क |
दष 1. 9, 95. का. 44; ए. ष्ठः9; म न
99 5. 9 9
ररपीहि ए. 3, 6. (1 4
रस्ये 1. 20, 5, 1
एष ०:
रभे 1. 168, 5.
ररम ए. 45, 20.
रराणः २. 39, 4. = |
॥ रराणाः | {. 124, | 3 ध | 148, द ।
रणः 17. 2, 22; ष. :
1
क (1
४७२ र्णणः -- रटसूः ऽइव .
स्यणः [11. 4,9. | 1
स्यणततां 1. 1077; ए.
र्णा 1. 74, 24; 1. 32, 5; द. 61, प्ट.
स्याः 1४. 36, 9; *. 33; 8. हि
र्यथा 1. 1147, 23
रपे इतिं ए. 72, 5.
1. |
र्णाधं >. 7100, 6.
र्वा ह. 4०१ `
प्प॑व्णां ए. 39, 2.
रदिमि [. 50; 1. 4: 5; 32
ष, 43;.3; "111. 292. १४
ररिऽवान् 1. 138, 4.
रसि 71. 1, 5.
र्रीयाः प्रा. 44, 71
ररीध्वं ४. 83, 6.
ररे ए. 39, 6; 59, 5; ५०6; ‰. 49, 3.
र॑¦ 1. 94; 79.
रवथः 1. 100, 13.
गवयेन 1. 80, 7.
रव॑ [ा. 31, 6; ए. 63; 3; द. 72, 3.
रवेण 1. 62, 4; 77; 2; 1४. ०, 1.
ए, 33; 4; 79, 4; 4. 97, 56; -&. 67,
6; 94; 12; 774, 2 ॑
रशनयां 1४. + 9; =. 18, 14; 7०, 10.
रशना 1. 162, 8. | |
रशनाः {~ 169; 5; ९ 53 17. | ध । 0
` रशनाभिः 17. 87, 2; इ. 4, 6; 79, 7.
रशनां 1. 163, 2; १.23 छ 1
` रशनांऽईव 71, 28, 5
रश्मयः 1. 50, 3; 59, 3; 15 9; 7109, 7;
मेषि
135 9; आ. 5 2; [7 9; 1४ 13; 4;
22, 54 ष. 54 34 गा. 9 2:25 6. 1
64; ¢; 69, 6 86, 6 ९. 97, 4 |
इमाऽडईव ४1. 67, 7,
6; 92; 12; 123 72; 124; 8; २232, 3;
136, 2४; 74, 2; [प्र 74 2; 3; 527;
प्र. 4, 4; 19, 8; 87, 4; 9, 2, 7; 26
7; 47, 4; 17 3; पवा. 1599; 43, 32;
72, 16 ; 707, 2; [-द. 4, 5; 61, 8; 66,
27; 86; 32; 97» 23 ; 166, 9; 11.31
ह. 35, 5; 77, 5; 132, 6.
रस्मि 1. 122; 13; 1. 22, 8; ४.75; 35
3; पा. 7, 8; 3, ०5; ऋ. 97 33;
>. 93 9.
रस्मि 1. 124, 42.
इमीन् 1. 28, 4; 100, 3; 1443; अ. 730,
ररमीन्ऽइव 1. 141, 77; ण्या. 35; 21.
रमं ४. 9, 5.
रसंऽद्ाशिरः [11. 48, 7.
गसः प्रा, 44, 27; भा. 3 26; 1.38; 5;
47; 3; 67, 77; 78; 679; 15; 749;
06, 7; #¶; 5; 84; 5; 86; 16; 96) 27;
+. 9, 2. |
रसं 1. 41, 5; 105; 2; ४. 42; 4; ४1. 104 76;
पा. 523, 3; 1.66; 16, 7; 2455; 656;
63, 13; 64» 24; 65; 75; 67 37; 52; 79, 5;
94; 7; 109; 77; 713; 3; ०10
रसयां 1४. 43, 6; 2. 75 6;
रसंऽवत् ४. 44 23.
रस॑ऽवान् ४1. 4, 1.
रस॑स्य 1. 3/7, 5; 12. 85; 1.
रसा ४. 47, 15; 55 9; ए. 72, 13.
रसाऽ्डव 1. 41;6. छ
रसाः 1. 87, 4; ए. 63, 8; पवा. 49;
द. 1713; 5. 1
सानां 1. 184, 5. | ध
क त न
रसायाः 2. 108, 7; 2. । | | । ॥
रसाय्यः द, 97, 4. र ६4 ध
12.71, 4.
2;
न
रहूगणः 1. 78, 5,
रक्रा {1 32, 8; ए. 42, 12.
राकां 11. 52, 4.
राके [. 32; 5.
सराजकाः #11. 91, 18.
राजतः >. 13, 5.
राजति 1. 143, 4.
रानि 1. 5 72; ग. 43 7; 1४. 53, 4; प्र.
45 4; 57, 2; प्न. 4, 19; ९. 5 1; 3;
07, 18; ए, ¢; 79; $; 96, 18; ङ. 79,
7189; 3;
राजते ए. 19, 22,
राजय ४. 55; 2; एना. 9.1;
॥ सिति |
राजयः ४. 71, 2; ए. 83, 5.
राजथः [11. 62, 77; 1. 56, 6; ४. 38, 3;
सि 1
63; 2; 7.
राजन् 1. 24, 24; 97, 4; ४. 46, 6; एना, |
70; 9.
सचन् -. 24> 9; 63, 7; 79, 6; 9,8; 7. 2,
17; 28, 9-717; 49, 7; 3४ 9; ४. 79, 20
४4 ण 2; ण. 5; 7, 5; 8, 5
५ 4; 29 10; ॐ, 5; श्वा. 86. 5
9 7 पा. 48, 7; 8; 79, 8; 90, 1
1. 1, 3; 67 ॐ; 73; 4; 714; 4
भ. 6; 51; 47; 4 4; व; 25; 7;
44 2; 0० 6; 80, 3; 0; 9, 22; 724
ॐ; 128, 5.
राजनि 1. 108, 7; 1४, 5०, 8; ए. ‡०, 14 ;
४1. 1, 13.
राजनि +. 49, 4. |
रातं [. 1, 8; 45 4; [1.2 4; प्. 1, 8.
रानंति (11. 56, 8. |
रनती इतिं ४1. 70, 2.
राजतो ए. 8, 28.
र सानन्यः २. 90, 7 १
रान ऽयष्लात् र. 167, 7.
राजसि 1. 144, 6.
राजसि 1. 25, 20; 36, 22; 188, 7; [. 7९,
73. 9.8, 5; 28, 2; 8, 5; पा. 32, 76 ;
षा. 3 4; य, 35 5; 9 31; 579;
6०, 15; 12. 66, 2; 80, 5; 28 ; ई. 140,
¢ 200, 0,
राजञ्मु ए. 101, +.
गनसे ए. 97, 20; [2 86, 36.
राजां 1. 24, ¢; 8; 12; 13; 32, 15; 54 9;
39, 3; 5; 65 4; 75 5;. 9 5; 98, 7;
126, 7; 756, 4; 174 7; 74; 1; 748, 2
1. 2, 4; 9, 8 ; 14; 77; 24; 10; 17. 7,
16 3 46, 2; 47, 7; 53; 11; 55 १. 14;
29, 4; ध. 77, 5; 20; 42, 2; 5० 0; 9;
४. 37 4; 4०, 4; 7; 85, 3; प. 9, 1;
9 3; ०23; 2 9; ०4०; 35; 36
4; 30; 4; 4473; 4, 76; 45 728; णा.
5 7; 78, गा; छ, 3; 34, 7; 471; 2; 49,
3; 4; 64 ग; 87, 5; 6; 9, 3; णा.
719, 8; 2, 18 ; 64 3; 65, 10; 4०, 7 >
95 3; 1. 66, 6; 76, 4; 28, ग; 84, 5;
85 9; 86; 8; 33; 4०; 45; 89, 9; 92,
6; 96, 10; 90 10; 25; 24; 3; 4९;
56 ; 7, 15; 6; 108, 8 0
19 5; 342 8; 12; 45, 5; 61, 16; 953
53 100, 4; 109, 2; 127, 3; 768, 2;
173). 4; 5. |
राजांऽड्व 1. 67, 7; 15०, ए; 1. 4 7; ए. 4,
4; +. 18, 2; 7. 0, ॐ: . 20.45; 57; 3;
5 7; 90, 6; 2. 452; 754 9
रजानः 1. 47, 3; पा. 42, 4; 66, 6;
83; 7; [, 19, 9.7. 4. 93; 4; 9
6; 109, 6 ; 126, 6. ॥ | (1
राजानः 1. 722, 7; ए. 19, 35. `
राजानः ऽइव 1. 85, च
राजानं 1. 25; 4; 1. 1, 8; 11. 45
९ 7, 2; ॐ 2; 429; ४.2
५ | -4; 44; | 58, 4 ध प, ध.
णा. 43 24; [द 48,
५००; २.
,. .: -3९8 - शजाना-- शधःऽदेयाय.
7
४ ५ यज्ञाना 1. 477, 9; [. 36, 6; प, 62, 6; 65 | ` ‰. 66, 70; 95 74; 745 3; 143; 4;
८ 2; प. 16, 24; णा. ला, 2; 2. 14:07; || 180, 1. | न
त (4 04 9 2 ति || यतिनी प्र. 6, 3.
५ 9 रजाना 1. 236, 4; 57, ग; गा. ॐ, 5; 6; || रातिना. य, ५
५ ब 04.95 4; 2 67, 0. 4 रातिऽ्निः 1, 71, 6; 1. 19, 2; प. 19 29
| ` र्नानो 7. 4 5; पा. 6०9 राक्गि 1. 6०. 7; 262, 2; 269, 4; 11. 7, 16;
8 (1 राजानो ५11. 84) 7; द. 39, ए. 9, 15; प्रा. ०4; 60 ग्ण; ष. 52; प,
(1 ध. ५ = राजानि ए. 42, 1. + >; 34; 10; णा. 38, 7; 65, 8 \11. 34
({... | ` राज्ञः. 97, 3; 722, 15; 126; 2; 9. 54; | 5; 56, 8; प्रा. 9. 6; 24 28 ; 77, 9
व ` णा. 4 9; 5 38; उ. 4० 5; "$ 9; 79, 5; ना, 8; द. 140, 5; 178, ‰.
१५. 1: ५ | 164; 3. | | || शिष॑ ए. 4, 19; 19, 12; 342 28
4... सकष + 9, ०. | वना 09 107
। ५५५ ध ५ रां 1. 52, 10; 71, 4; 3 14 1. | 22; 23; 35; प; 38 5; 42 6 १९
(|: ` ` `. शज्यं रा. 6५. | | 65 14: |
२ सद् ४.46. 8; पा. 45. पतिऽसाचं ए. 36, 8.
१,
| ॥ । ५ पतः ए. 67, 7. ४ | रतो प, 33; 9; प्रा. 59 9; ण." 2; 25;
41 1. णतऽ्त॑मा 1. 67, ए. 2.) 4; 37, 8. , । | |
। | श 1162. शा 324; क 11697. णलि ‰. 127, 8.
| ¦... ध (५ रातयैः 1.4 .0.90.1 122. प, ॥ गती 1. 114; 7; ॑ 15; 4; पर. 39, 74; =. 12
10 1.1. | | 1; 196, 7, |
६... ^ रातये भ. 10, 6. (० वीः 1. 116, 24; >. 95, 6,
| | | त पा. ५ + न सलौभिः ¬. 19 9.
1. राततऽ्दविषे 17. 34, 8. || ती 1. 35, ग; १.8१ 4.
111. रातऽदव्यः 1. 37, 13; 54 7; 118, 7 153, 3; || रव्या 1 94 7; + 149, 2.
211... 26 1 वण 9 9; 449 3; षा, स्यौ र. 68, 72. | |
"व ५ 1 । ` :+09; 13. 8 | | | ८ 1 | ॥ धं { 9; 5; 10 7; 449 7; 48, 2; 597; 4;
सतर्यं प. 663 |, णः पवकः पष्ठ 93 गा, $ 199 8 |
` ` सतऽ्हेव्याप्ा. 35, २. . | 6 9 4. 24 34
# 8 पतर्ह्या ए. 690. (1 प 48; प व 2,
ति गादऽव्याः प. 42, 14; ए 11, 4. 1 ३9; 3 18; ॥. 196; 59 ग; 5
हि 4 रातथ्डव्यां ए्.45,6. = 1 | 7; 53 13; 57 7; 05 | 3.19 91
विक त ५ 402; 14:22 24; "1, 56; 16.2.29;
[व = पर्याय १.0 0 | 8 2 3 214; 994
[ि ; गत 1 ८ 93 ०6, >; णा. 4 19; 24; 27; 29;
५ ८ च, ॥ ८ रातानि 1 7137, 7. । ए) ५ 54; 5; 8; 44.71; 50; 2; 64 7; 8०,
` रतिः 1. 44 2; 89, 2; 7, णा ~ 1 96 65.911. ४.8.60,
५ 3; 2168 7; 184, 4; 1801
#
याधःऽपते णा. 67, 14. ¢ ५, ४
सधःऽभिः प. 6०, 3.
राभृत् 1. 129; 7.
साधति >. 63, 6.
स्स [. 15; 5; 22, 7; 81, 6; प्र. 20 क;
४. 38, 1; 86, 4; प्रा. 44 5; 47, 22; 55;
2;..60..213; भाव. 28,.5;. 46.47; शा.
14.41 21024..6 1.40 7-49-0.
61, 14; 72. 46, 5; 81, 3; ॐ. 149, 5.
ध॑सःऽराथसः ४1. 20, 3. |
ससा 1. 48, 14; 54" 7; 94, 15; 135, 4;
1.22 20.411 94-9; .48.4
1; 5; 111241;.3 24.
१49 00.024.
रासां (111. 99, 2. |
राधसि 1४. 32, 27.
राधसे [. 140, 7; 81, 8; १50..0 1 11.41.0;
19. 12; [४.20 2; 24 7; 29, 3; श.
35; 43 ५1. 238,.5; +. 79, 5: १. 2;
6; २ 29; 24; 10; 29; 45, ०4; 49 3;
04; 22; -68, 7; 7० 9; 05; 16; 1. 8.3:
॥ 6०, 4; 97; 42; 2. 17, 13.
सधासि 1. 22, 8 ; 84, 20 ; प. 79, 6; 9; णा.
44.14; 499; +. 74.11.16. 18;.-30
"4.1.111. 0.110..0 2:
राधानां 1. 3० 5; आ. 57 10.
यधाम 10.01. 14.11;
सभ्यः 1. 156; 1.
पष्य 1. 116, 17; णी. 92, 28.
श्यस्य 2. 77, 6.
स्या [र 24 16.
ति राध्यानि ४. 77, 3
राभ्यां ४1. 65; 7.
राय 911. 55, 3.
सायः 1, 37, 10; 69 12; 68, 5; 98, 3; 1243
रायःऽकामः 1. 78, 2; शा, 32 3; 42; 6.
रायतः 1 8; 441 4.1
शयति ¶ा. 4
याया 1. 48, ग; 76; 53 5; 7.6;
राधःऽपते -- दाया. ३५ ४&५
13; 169;.1; 189;-4; 1. 16.2.1१. 8.
41949. 42 44.
1, 5; 14; 3; 79 5; 56 7; 5; 4 9;
ए]. 78, 20; 34 22; 23; 35 2; 3, 8;
52 7.1 4744
रायः 1. 4 10; 17, 3; 24; 5; 35 7; 56, 14;
5 14; 72 8; 73; 9;:.10;. 81, 4; 97,
22; 96, 6; 14; 4; 22 2; उ; 2;
128, 3; 149, -1; 166, 3; 11 76; 2,
19. 0.44. -,.12 24.141. 7 ५9
129... 11.200 12 2.
9, 3; 39; 28; 36, 20.;. 54; 21; .56;- 64;
11.4.00. 4.0 12.4.41 20 0
9 22.41.19, 20.54 31 10 :. 26:64
4, 20; ष, 12, 5; 5 3.5; 25; 35; 35
10; 36; 4; 45; 8; 4295; 49, 4; 54
12; 658, 3;.. ४1. 4>8;. 1756; 14.66; 5
3; 22, 3; 28, 70; 36, 4; 44 2; 48; 9;
2० 7; 54 8; 552; 3; ण्व. 46; 5;
9.3.418. . 02.0.24. 3.32;
19; 34; 24; 37; 5; 40, 3; 56; 75; 527;
6; 60, 17; 75; 5; 93 2; 95: 2; 97, 4;
१.2: १1.12.224; 42.20.
29 ; 26, 22.; 46; 6 ; 47; 4; 48; 7; 5" 6;
53; 7; 56; 2; 59 7; 77» 4; 92, .9; 95
4; ९. 33; 6; 35 2; 6 26; 89; 7;
943; 3.7, 9; 220 पठ; 3 12; 85, 7;
30, 7; 45 3; 473 2; 6; 1473 4; 5- |
105. 16;-54.25 2; 49..2. 0.42
| 8, 6 ; .247; 12; 425 103 । ४. 3; 6 , . 1
5 7; 5० 9; पा. 55; 5 3;
49.
स
2
४७६ ध ` | शयां-- रिपवः, ।
1111 ।1। ा ाथावकाकककणकाकककतयरकयशराककणय
यां {2. 108, 73
श. ..9-3:4-0 10.041... 1234
84. - 247; 700, 16; . 224, - 5;. 126, 9; 120
9 ;: 142; 10; 189, ग; 11. 2, 4; (1. 25 3;
१0.4.52. 7. 1.2.11 37.84
33: ग्ड, 5; 204; वा, ता; 42, 15; 16
432 7; 46, 4; 50) 7; ऊ; 64 6; ५9 3;
79; 7; ष 2; ग 4; 45 3०; 49
34; + 1.9; 65 718, 24 6; 90:65 20, 5;
42; 9; 34 18 99; 7; 906) ८ (1 4)
1९. 73 18; . 24; 26;. 24; 12; 48, 2: 71;
14; 97, 73; 1040 4; वद्धि, 20, ग; 45, 3;
68, 10 ; 04 3; 86; 45; 97, 6; >. 59
2.01. .03,- 1-10-4 7, 10
71160, 7.
रारज् 1. 5, 2.
राविषं +, 86, 5.
रिः ४1. 55, 3. `
सशि 1४. 20, 8; [द. 87, 9.
राष्टि 1. 104, 4.
रषं 1*. 427; पा. 84, 2; इ. 109, 3; 124
4; 173; 1; 2; 5.
राषटस्य 2. 724, 5.
छाणा ४1. 34; 71.
राष्राय >. 714; 7. र
राष्री ४. 4; 5; णा. 1५० 10; ष. 3 9.2;
सत् ४. 25 1; प्रा, 5०, 6
रासत् +. 49, 8.
रासतां 2. 36, 24. `
रासते 1. 96, 8; 19.55 8; णा. 453; णा
7224. 122,
रासन् ४11. 4०, 6. = - `
रासन् #11. 34; 22
रासतां ए. 5, 15; इ 65, $.
रिपिः 1. 32; ए. 52, 19; 60,
रासि [[. 71, 143. |
पसि 1. 740, 14; 1. 7 73; 33; 12; 1.
र र 1.41... ; #[1. 95, 6; 7.9, 9. | -
सीय ४. 2, 18; "वा. 9, 26. ।
गस्मिनस्यं 1. 122, 4.
रास्पिणसंः ४. 43; 14.
राखं 1. 714; 6; 9; 111. 5, 6; 62, 4; ४. 2,
17; +. 48, 4; 11. 16, 4; गा. 4, 16
60, 6; 77; 12 .43..6; 62. 26 ; ह. 7; 4:
रख 11. 2/7; 10; [1. 73 7; 1४. 77, 2; ५.
` 13,5; एवा. 79, 4; 85; प्रा. 28, 12;
08, 12,
रिक्तं ४11. 58, 3.
रिक्थं [11. 37, 2. | |
रिक्थाः [1.6 2.
ख #1. 53, 7.
रिच्यते ४१11. 32, 12; णा, 92, 14.
रिष्यसे (1.1
रिणक््ं 1. 15, 8.
रिणक् 1. 19, 5.
रिणक्ति ४1. 77, 1.
रिणचवि पा. 100, 12.
रिणते ए. 58, 6. | “
रिणन् 7. ०, 4; णा. 7, 98; ॐ, ४;
109; 22 ; ~. 138; उ.
रिणंति 1. 77, 6. ` ।
रिणः 7४. 79, 5. ` 2 प
रिणाति 1. 266, 6. ` स
रिणाति 1 147, 4 148, 4; 179, 4: ४. 31, ५ ध
व; 47 0; क. 140, 7. | 4
रिकीति 1.44 7; १.86 1 4
णीयः 1. 777, 4; | 2: । क ८ & ,
|
67, 4; ४1. 65, 3; णा. 32; 14; 60, 8
रिपुः 1. 36; 26; गा, 34 9; 48; ण.
5 2; णा, 104, 1०; ण्या. 25, 15;
+. 185, 2. |
रिपुणा 1४. 58, 5. |
रिपुं ४. 79, 9; ५1, 5, 23; चा. 28, 24;
12. 83, 4. ।
रिपूणां णा. 6), 9. | |
रिषोः ४.5, 25; ए, २4.
रि 1. 162, 9. |
रिप्रं 091. 0
रिप्रऽवाहः 2. 26, 9.
रिभ्यते ए. 76, 7.
रिरिक्वांसः 1. 72, 5; 1४. 24 3.
रिरिलतः ए. 56, 4.
| रिरिक्षति ए. 18, 13.
7 रिरि 1. 129; 10.
रिरिले णा. 88, 5
रिरिषेः 1. 189, 6.
दिचधुः [४. 28, 5
रिरिचाये इतिं 1. 109, 6.
रिचानः (१
रिच ४. 2,
रिचे 1. 59, 5; 67, 9; 2०2, ¢; 164 25;
1 46, 3; #1. 24; 3; 301; #. 42;
3; >. 329 5; 89, 7.
रिरिषः ॥। 1042 6; 114, 001 469 39
89, 5; द. 18, 7; 148, 8,
रिरीहि ष. ॐ9, 5;
97, 6; >. 98, 19
रिरेच 11.10.60.
रिरिभ॑ {. 7120, 6.
रिक्ता +. 169, 1.
रिशतीः ४1. 28, 7.
रिशादसः 1. 79, 5; 26, 4; 64 5; 186, 8;
46; 8; 6.5 9
169, 3.
।
४99
[3.77
४. 54 भा, 7.4; 0.5; 5.
रिशादसः 1. 39, 4; ४. 6०, #; 67, 26: भा,
599 9; भा. 2, 10 ; 3०, 2; 83, ॐ.
रिषः 1.9
0.4 1.
24; 10;
रिषण्यः 11. 7, 7; णा. 95; र. 22, ग.
रिषश्यत् + 11111... 1;
रिषस्यतिं 11. 22; 10.
रिषण्यवः 1. 748, 5.
रिषत् ए. 54; 7; पणा. 65 10;
शासं 1. 2, 7; ए. 64 7; एवा. 66, 7.
रिशादसा ४. 66, 1.
रिशादसा ४. 67; 2; 77, 7; णा. 8 प.
रिशादाः 1. 77; 4; [2. 69, 70.
2; 98, 2; 1. 26; 4; 34; 9; 35;
312
20
63; 2 ; -. 36, 2.
629 77 ; 97, 26.
44; 71.
मै कथक ` भम
रिषतः 1. 12, 5; 36; 15; णा.
रिते 1. 189, 5; ४. 3; 12.
रिषन् भा. 105, "3.
रिषं 11. 3०, 9.
रिषं 2. 18, 13.
रिषयध्ये 1. 7129 8
रिषाथ एना. 33, 4
रिषायनं >. 48, 5; 94; 19
रिषाम 1. 94, 1-14; ए. 12, 5;
१.५4 003... 11
64; 717; र.
15 13; भा.
----------3
=
य
४ | । ४
न रियति द. 100, 8. ` , , |
("` - रिचि 1 269 1; शा. उम, 26.
रिष्याः द. 5, 0.
. सिति उ.प,
क (1 स्यत् *11 48, 19.
पिथ 1 ५, 8 ५ श
रिषम ए. 54 9, |
रिहती 111, 55; 14.
हते + 111. 20, 21.
रिहन् 1. 142, 9
हंति 1. 146, 2; 1. 47, 5; ॐ. 1223, 3.
(44 दिति, 4; ०86 0; 1. 58;
| | 46 ; 97, 57 ; ` 100;
रिष्यथ. 44 : . ह
। 85; 77; 86, 3; 43
| 14. 4; दु, ए.
। ५ ध । 4 ॥ | रिहाणे इति 1. 33; 1; ४1. 25.
(1. सीतिभ्णापः 1. 69. -
| |. 1 सौिर्चापा ए. 68, 5.
111 सनि. ०44; 395; णा. जग
| | ॥ रीतिं ए. 48, 4; 17. 108, 79.
॥ || सि. 859 प. 0.8.
॥ ी । |
।
॥
॥ \ ॥
||
॥..: | । (1 । | |
|. 4 व
4... 11|| 1. , रीर 94
|| ; 1 म ध ५ । म ।
ध,
रौरधत् 1.35, 5.
रे भ , (की, "
सा 1. 4
8 1,
रीरभत ४11. 94; 3; ण्या 8, 1 3
नि
रिष्पय 1 सजेम [| ।
रकाऽ्व॑छसः 11, 34; 8; ४.55; 7; 579 5;
19 0 ~ +
दक्यऽवछषसः 11. 24; 2; #*[1[1.. 20, 22.
१ केः वक
हकः व. 166, 70; ४. 54; 72; +, 56; 13.
दक्षान् 1. 64; 4.
हवना भा, 20, 71
हक्छिऽ्भिः 1. 55.
ह्क्मी 1. 66, 3
ह्कोभिः ४. 56, 7.
हकमेषुं ४. 53, 4
स्कोः ए. 52, 6;. ए. 57, 3.
र्कः १1. 37. |
षण्शं 111. 3, 6.
चः १.0.91 49.4.64 188, 3.
सचयत 111. 0, ¢
हवा 1४. 56, 7; >. 64 23; 28; 65: >; |
117, 7; ९. 106, 4.
हचानः 1. 75 6; ४1. 39 4; 11.09 2:
>. 45; 8.
हचानाः 1४. 57, 9; ग. 56, 73. । [
रचाऽरूचा >. 05; 2.
ह्चे 12, 25 2; 105;
हज १.922.014
हन् 1. 102, 4: [. 30, 6; 34... 3..14;
४1, 22; 18; 2. 108; 6; -&4. 80, 25;
152; 2.
हजः +. 22; 6. | ।
ठनत् प्रा. 32, 2; 39, 2; णा. 75, 7; [द
243. |
रजन् 1१. 26, 8; प्रा. 6, 5; उ. 845; ज
दनः 6 4 4
वनति 1.8.50
१
८
हणद्धि >+. 34; 3; 4> 9.
हणधांमहे 1. 8, 2.
हणभ्मि २. 242 12.
॥
हदति >+. 42, 10. ` 4
रुद्र ४.3 3.
षद 1.14 4.3; 7; 8;-1. 35 -4; ४;
10-72; 15; भ. 46, 2;-4; र. 1697.
हद्रः 1 43 3; 4 प्ण; वा. 7, 6; 34 2;
९,0१.104 471; 04.11.
0122 "1-490-49 5.0;
66, 3; 93; 4.
| ददं 1 44 4; 114 4; 7. 355; पा. > 5;
1४. 2 7; ४.42 52 76; ४. 49,
१0 १1 39.441. 1 2.4;
क. 64, 8; 126, 5.
रद्रवतेनी इतिं हद्रऽव॑तेनी ४11. 22, 14.
हटवतेनी इतिं सदरष्वतैनी 1.3; 3; णा. 22 7;
+ 20; 23.
हद्स्यं 1. 64 2; 22; 85; 7; 7. 33 6; 8
“~ ध 1.1 470 40 14
¢ ज ॥ि 96.44.00, 1 11, 50.7.48.
श $. 15, 205 2 ग.
सुद्र ४. 75 8; 45
॥ 1.148.494... ।
गद. 7925-3; प 26.5.
0 रद्राः 1 39, 7; ४1. 7; 12; =. 66, 22
| हदा; 1. 64 3; 766, 2; व. 34, 73; [. 8
8; #. 60, 2; ए. 3 #; 54; 5; 63 12;
इ, 92 6; ८48, 9 |
रुद्रासः 1. 39, 4
हद्रासः 1. 85, 2; प. 87, 7; णा. 3, 28
>. 737.
ह्रासः ४. 57, 7; +. 20, 2.
ह 1. 42; श. 46, 5; क. 64, 8.
हद्धियां 1. 72, 4.
हद्वियाः 11. 26, 5.
रूद्रिपाः 11. 34 70.
हद्िषांणां णा. 20, 3; इ. 48, 7.
हद्वियाय प्र. 470 गा. $
रद्वियासः 1.48... १.9.
दद्यामः ४, 5, 45 ४. 62..8; णा,
हद्धियेषु 71. 77, 3.
ह्द्रेणं र. 95;
56, 22
136; ¢.
९. 32; 5; 66, 3; 99, 5; 125; 7.
हद्रेषु र. 64, 8.
(अ 4.31...
+. 150; 7, ` |
| ह्रो ४111. 22, 74.
तथत् >. 00) 9 ~ +: | |
हधतः [, 179, 4.
रूधिभ्क्रां 1. 14 5.
रध्यसे ४111. 43, 9.
कपः 1४. 5 7; 8; >+. 3, 3.
+*1. 4 2.
ररक्षान् 1. 149, 3.
हहकणि 1. 48, 2. = ५८;
हहवानं 2.5. | (व ध
इषवः 1४. 16, 4; *1. 62,
श. 122, 5
हदवे भ. 15; 5.
इलव 111. 61, 5; #11. 77,
हद्रेभिः 1. 58, 3; 1०0, 5; 707, 7; आ. 32, 3;
४1. 5 9; 10, 4; 352 6; गा. 103; 14;
1.40. 111...
रह्च॑त प्र. 55; 9. ११ | (4 ॥
2
ध य 1
दाप
थीः
ररहुः ए. 7, 5; पा. 7; 6; ०4 3; 1. 79 4
स्यच प.5.
¢ ^ | ४ ह्रोजं ए. 18, 10; र. 89, 7
हसेन 1१. 6 124
दयो ४1. 16, 39
५. हरोनिय ण्या. 64 5 |
१ ध हयेभिय 1. 102; 10. |
1 ह्व 1. 19, 4.
4 इवणयः ए. 96, 39.
= हवत् 1. 743; 3; #* 56; 1.
हदति 1२. 70, #.
ध | हवेत ४. 42, 14 ।
॥ ् रशत् 1. 6 9; 92; 5; 175 5; {[. 29, 3;
09 16; 0; क. 1. 14.11
004" 002. ष. 93, 23; ~
( 97; 3; -. 27 77; 49 16.
| स्श॑तः {. 187, 8; 1४. 7; 9. |
सशता 1४. 3, 9; ४1. 05; 7; 1. ,89, | 5;
+, व, 1. | > ।
सशी 1. 113; 2; क. 75; 0; 85, 39.
(1 रशतीं 1. 1147; 8; >. 3; 1.
| 2 सरत्ऽऊरमे 1. 58, 4
रंत्ऽगवि ४. 64, 7
र्शत्ऽपशुः ४. 75, 9. व
रुशंत्ऽभिः 1.62; 5; 1१.48; 2. 3.3; 6,
रूशंत्ऽवत्सा 1. 113, 2.
}
शमं पा. 3, 2
शमा; प. 30, 12
हशमांनां ए. 3०, 214.
हशमांसः ४. 39, 12
रूहत् ४. 36, 2.
हहत् 1. 34: < ; 12. 49, 2.
हदं ए. 22, 9.
हदं ए. 1, 37.
सहांणाः 1. 32, 8.
हटावं ५11. 88, 3.
श्रेय 117. 8, 711; भा. 42, (20
14 ; 1078, 2.
रूपं 1. 77, 10; 9% 8; गव 5; गणः <;
` 163, 7; 764; 44; 7. 38, 7; ए. 4
18; पा. 9, 6; गा. 47, 5; 1. 65
18; 68, 6; 79 8; 74 7; 97» 52; +
122; 4; 124; 7; 268, 4*
सपेऽसूपं 11. 53; 8; प. 47, 18.
रूपऽ्शः 10125;
शूपा 17. 13, 3; प. 42, 13; भा. पला, 13;
प, 64; 8; 85, 12; ग्या, 7; >. 96, 3;
159; 3. |
रूपाऽईव प111. 102, 8.
रूपाणि 1. 108, ठ; 288, 9; ४. ४ 9. 1
` 9; प्रा. ग प्रा. 75 23; द. 25
4; द. 21, 3; 85 35; 169, 3; 184 7.
हूपे 1, 7164, 6; 1४, 77, 7; {> 16, 6
रूपेभिः ए. 43; 19
सूपः 1, 160, 2; 1, 24 4. 4, 10. 9.
112, 3.
रेकु 1४. 5, 24; 2. 108, 0
वसाः. 1144147 ५4158, 1; 9.4
गष, 4.1; 40. 2; १ 4.15; 46;
14242, 4 ८
गव्यता 1.16
रदेक्शंखती 3. 64, 16. ` ध
[
वक्ष
पसो
ता भत १५५११९९५
रेतः र. 61 24 न नि
रेभति 12. 9४, 57
रेभं 1. 712, 5; 76, 04; गा, 4; 718. 5
10,.0; +. 39,.9. क |
रेभाः 1.104.121... 1.4
रेभासः एय. 97, ग. | | व 4
रेभिरे 1. 149, 8. का
रेभे ड. 87, 22. ८4 2
रेभः णा. 62, 3. # + |
रेरिंहत् 1. 140 9; ४, 38, 6; क. 45; 4
रेरिहाणा 1. 55, 14; पा. शव.
ररित क. 44 ` ` 1
चदि 2. 774; 42. 7.
रेवत् 1. 79 5; 92 14; 95, 77; 96, 9; 716
॥९-124..0.70.161..4^..2.0.
96; 35; 4; [. 7 76; 78, 4; 5; 25
2; 4; ष. इ, 4; १४. 23; 4; #*1. 48, 7;
४. 354 903 07
रेवतः 1. 42; 120, 12; ए. 44 गय; पा. 48,
4; भा. 2 13; 479; ९.22; 15; 36, 3
रेवतां 1४. 25, 7. |
रेव॑ति ९. 86, 14. ` गक |
देवति भ 57; 714 | 0 ५ ।
रेवती 1. 67, 6; इ. 35 4 , `
रेनत ४111. 10, 3.
रेजते 9. 21,3.. . - :
नतं 1. 145; 3 ; 164, क
रेज॑मानः 1. 72, 4; ता. ॐ, 5 -
जमाने ~. 6, 5. | ` (क.
जमाना: प्रा. 60, 10, | , ` . ४
जंमानान् >. 44, 8.
जमाने इतिं र. 121, 6,
रेनयत् यत् [४. 22; 3; ४. 87, 5; क. 61, 216
रेनयति ए. 66, 5. ॥ |
[ कि ति"
रेजयति ए, 57, 1.
रेजेते इतिं ए] 97; 14. | =
ति त. ।
रेणुः 1. 33, 74; ॐ. 72, 6.
रेणु ऽककाटः प्रा. 48, 4.
रेणुं 1.56 4; प. 73; 38, 6; 7; 42, 5;
>. 168, 7,
रेत॑ः 1. 68, 4; 77, 8; 128, 32; 164, 4-36
रा. 55 4; 1प्र.3, 9; ए. 83, 2; ए. 70 2;
ध. 35; 2.143.606; 1. 69: 4; 996
61; 4411-4 125 4
रेतःऽधाः 111. 56, 3; प्र. 69, 2; प्या, 1०7, 6;
1९. 86, 59; ह. 129, 5.
रेत॑सः 1. 100, 3; 717. 31, 10; ए. 6 30;
12. 86, 28. |
रेतसा ए. ग, ध... 4 11.2;
रेतसि प्रा. 28, 8; द. 19, 4.
रेवतीः 1. 39, 13; 158, 2; द. 72, 9; >. 30 24
वत्ती: 1४. 5 4; र. 19, 2; 3० 8; 72
रेवतीनां 4 14.
रेतसे 1. 155, 5. 1 (न
रेतसि ए. 44; 16; क. 64, 14. रेवत >+. 6, 4. | त
रेतिन॑ः इ. 4०, 12. रेषत्ऽभिः ए. य, गय. ५ ५
देषः 1.6, 6 रेवत पा; दा. | क |
1. 12; 17; 12; 76. +, 3; १४,
1. 4,6.66, .9; 47; 2; 86.47.
रेवान् 1. 28, 2; [. 2, 22; एवा 23 ञ
एवा. 2, 13; 45; 75; 96, 79; इ. 69, 4;
7086, 4; - | 0
देवान्ऽडव 1. 2, 12; पा. 48, 6.
रेषणाः 1. 748, 5
रेषत् भ. 20, 6
1 7
०)
न
गोच ए. 55, 2.
रेवतासः +. 60, 4
रेवत्याऽईव र. 94, 10.
रोकः ए. 66, 6.
रोकाः 111. 6, ¢.
रोच॑त 1४. 1, गभ
रोचत 1. 10, 6.
रोचतां २. 42: 9. |
रोच॑ते 7. 43; 5: 140 (2; 1, 2511 प.
4. 8:44 द 65 | |
सेचते 1. 58, 2; 148, 4; 188, 77; वा. 2५,
४ 6; 1 10.04 79.11.44. 8;
10. 401 1 20111180
2; 118, 3. |
रोचनं 4404; 041 444
98, 3. |
रोचनऽस्याः प्रा. 6, 2.
॥ रि
गोचनऽस्थां 111. 2, 14
॥ शि क,
रोचनस्य ए. 69, 4; इई. 46, 3. 4
रचना 1.6, 7; 8, 5; 1०2, 8; 146, 7; गा.
20, 9; 1. ८29; 6,5.1४ ..53; 5; भ.
29, 7; 09; ग; 87, 4; ए. 7, ;7; णा. 5
6; 14 7; 9; 9, 26; 94 9; द. "7
53 373; 42 71; 859 9; +. 32, 2 49;
6; 65 4; 89, 7; 2189, 2. |
योचनात् 1. 6, 9; 24; 9; 49, 7; प्रा. 1, 18
8 7
रेचनाना णा ॐ 10 1
रेचनानिं 1. 92, 5; 149, 4; 1. 56, 8.
रोचने ७ 19, 6; 105 ६ 155; 3; 1.6, 8
92.23; + 11. 101; 09, 3; 82, 4; 9
5; द, 75 2; 86, 20 |
रोचनेन 7. 55 9; ए. 1, 7; इ. 4 9;
|
रोचनेपुं प. 44 9. - 0 द
रोते 1.61
ष्र् | 9 1 9 रैवतासः -- रोदसी इति.
रोचमानस्य श. 3, 5.
रोच॑माना ४7. 64. 2.
रोच॑माना
| 1.265,12 ; 1. 9.५; 9.74, 9;
भ. 64, 7.
रोच॑मानां 1. 115, 2.
रोचय 1.9, 8; 36, 3
शे = भ ` क
सोचयत् [1. % 2; ए. 39, 4; 7. 86; श.
रोचयन् 1. 49, 5.
रोच॑से ४1, 2, 6; पा. 5, 6.
योचसे 1. 94 7; 11. 7, 4; प्रा. 9 28.
रोचि 7. 747, 6.
रोचिषा ए. 26, 7.
रोदसिशग्राः 2. 88, 5.
रोद्सिऽभप्रा +. 88, 10.
रोदसी 1. 76¢, 5; ४. 56, 8; भ. 5 5;
` 66, 6.
रोद॑सी इतिं 1. 20, 8; 5, 3; 35 9; 36, 8
5; 10; 54 2; 59; 4; 62 7; 64, 9; 72)
45.99 8; 76; 9;. 85; 7; 7०024; 35;
1;. 134 3; गडा 1; 260, 2; 4; 203, 3;
0.1.41 140..4,..1 4 14.1.90
11; 9; 712; 7; 7503 2; 14; 4; 22; 2; 32;
4; ति. 252; 7; 5 2;. 4; 20; 6, 32;
9; 70; ‰ 4; 9; 14 2; 75 5; 3०9, ॐ;
31, 10; 42, 7; 34 7; 38, 3; 8; 39, 8;
49, 3; 52 72; 54 15; 56, 7; 7; 57; 4;
6156; 7; 1४. 4.8.26, 2; 18:5४,
34 9; 42, 3; ४.2, 7; 16, 4; 29, 4;
3०, 8; 3 6; 42, 74; 46, 8; 5ॐ 6;
6791248, 2-91-3; 40; 6
5) 3; 7 4; 197; 75 15; 16, 24; ग,
7; 29; 5; ०, 7; 44 5; 46; 5; 48, 6
52; 14; 66, 6; #; 67, 5; 7० 6;
739 13 091 2 3 9 5 ि + 12 १ 13) 23
718, 24; 20, 4; 24 3; .28, 3; 37, क; 34
24--24; 435; 3; 39, 4; 49 2; ‰6 17.
97;
थद
|
3; 73; 13; 93; 22; 94, 77
155; 6; 41, 5; 7० 5; 04, 2; 75
70, 3; 85, 12; 86, 73; 9, 20; 38
कष वः
96; 71
159; 2; 149, 2; 44, 7.
सेदसौ इत्ति 1. 26४, 4; ए. 02, 77.
111. 26, 9; 54, 3; 4; 19; 1 55
79 9; 98, 9; 2. 12 4; 60; 11; 79, 4.
रोदसीभ्यां 1. 136, 6.
रोरसोः 1. 22, 5.
409...
रोः 1४. 5, 7; ई. 48, 2,
रोधंऽचक्राः 1. 190, ‡.
योध॑त् 1. 67, 5.
रोधति 111. 45; 6.
रोधना 1. 127, न.
योधनाः 44, 12, 76,
रोधस्वतीः 1. 38, 77. `
रोधांसि 11. 15, 8; 1. 22, 4.
रोपणाकासु 1. 50, 12
रोपुषीणां 1. 197, 13
| येम 1. 65, 4; 1. 9, 7.
रोम॑ण्ऽवंतो 1. 112, 4.
रोमशं ए. 57, 9; ॐ. 86, 16
142 1.
473 10; 64, 4; 70,
98, 5; 2
169 0; 15; 7109; क. 5 4; 79
45; 4; 59, 7 54 7; 55; 3; 59, 8 65
5; 76, ग; 8० 7; 2; 88, 3; 89, 13; 9,
1712 4; 79 7; 71447; 136,
सेषसी इतिं 1. 52, 20; 1059 1-78 ; 185, 3;
56, 4; पा. 59, 3; 6० 8; {० 2; 3; 1.
रोद॑स्योः 1. 3ॐ 5; 59, 2; 96, 4; 77, 16;
122; 1; 149, 2; 757, 3; 168, 7; 17.
3 13; 1४. ॐ 7; ए. 2 717; 26, 46;
24; 3; शवा. 6, 2; 6; णा. 72, 15;
पैठ क
हि,
रोहित्ऽख॑श्चः पप्र. 1, 8; 2. 7, 4.
छ
रोषति धा. 4, 8; 99, 4.
ह 1. 56, 2; 7. 8, 71; 1. 69, 22; द.
85, 20, |
गोहतं +, 18, 6.
गोदति 1. 144, 4; ए. 4२, 8.
रोहतु ऋ. 16, 13; 62, 8.
रोहते 11. 5, 4; पा. 23, 6.
रोदथः ५. 62, 8.
४ अ ,
गोह॑न् 1. 10, 5.
रोदनं 1. 52, 9.
रोहति ए. 44, 6.
हंतु इ. 28, 7; 142, 8.
योदय एग. 97, 5.
रोहयः "7. 89, ¢; द. 207, 7; श. 156, 4.
रोदयत् 1.
0 कि ह, १
द्यतः ह. 65, 71.
रोहसि ९. 36, 6; 80, 2,
गोडसे 1. 57, 12.
रोहसि ४. ८71, 5.
रोहिणीषु {. 62, 9; शा. 9३, 13.
रोहिण्या ४117. 101, 23.
सोहित् 1. 700, 16. „५
तेरहितः 1. 39, 6; पा, 0, 28.
रोहितिः 1. 14, 12; भ. 6, 6; णा. 42, 2,
रोहितं ए. 3, ०९. ` (ज
रोर्हित्ऽसश्च ४111. 44, 16 |
रोहित्ऽखश्च 1. 45 2; 2. 98, 9
रोहितस्य ए. 344
रोर्हिता 1. 94 70; 754 3; (7. 102
ाणसनमात्कतकतणकपकलकर
स=
य
स
शेद्रै र. 67, 7.
रदौ 101
रौहिणं 1. 102; 2; [. 19, 132.
घं 71. 22, 4. `
लष्सयस्य ए. 33, ०, = = , `
लस्सीः 044... ५
ल्यतां ‰. 84 7. , | ध +
ललामः 1. 10०, २6, | 8
लागलं 1१. 57, 4. न 2
ठा र. 42, 2. न
ल्िवंनाऽइव ह. 10, 13. ॥
लोकः [1. 37, प. त
लोकऽ्वृत् 1. 86, 97; >. 133, 1.
, लोकश्कृत्नं ए. 75; 4; र. 28. | .
लोक 1. 92; 6; 1. 366; आ. 259; प्र.
77 ग; प. 4; प्रा, 253; 7; 47 8
73; 2; ४11. 20, 2; 33; 5; 60, 9; 84
99, 4; भा. 100 12; [-. 92, 5; >.
14.4.14. .9; 10, 4; 39 7; 85; ` 20;
104; 76; 182, -3. | 1
(^. ~ लोकाः 1118...
2 ५ लोकान् 2. 90 14.
लकि 11. 29, 8; प्र. 1, 6; द. 13, तथ श
85; 24 0
(1 १ लोधं 1 52.94. 6 . |
कपा
नषा 4
ल्ोम॑ऽ्भ्यः इ. 162, 5.
लोघ्रःऽकोश्नः ¬. 163, 6,
भक
५ ॐ
वंसते ४111. 792, 9.
36, 7; ए. 16, 39; प. 35: 2; ९
1442 3 `: - क 9 ५५
वंसंगं 2. 1029 7. : |
व॑संगाऽड्व इ. 106, 5.
व त् + 26, 2. `
[ऋ
वंसाम पए. 19, 8; भा. 50, 19.
वंसिं ए. 70, 7. |
वंसीमहि +. 19, 10.
वंसु 1. 57, 3; 86, 35.
वंस्व 1. 48, 77; ४1. 14; 5; प.223;. 27;
60, 14. ` |
स ४.1. 48, 4
1. 7, 19; 14 4; 2०5; 3० ण; 56 7
37, 1; 4; 6; 7; 19; 14; 5; 38, 2;
2-5; 212; 39 2; 4; 6; 7; 4 2; 6 ;
41, 4; 5; 8५; 62 2; 5; 635०5; 64: 9;
13; 665; 85 6"; 12; 87, 2; 88, 3-6
05 4; 1059 7; 5; 6; 07, 7; 76 3;
122, 7; 4; 5; 126, 5; 297; 10; 129
4; 8; 159, 8"; 145 7; 55; 7; 165
29; 3; 129; 165, 6; 75-15; 166, 49;
इ; 6; 9; 12; 715; ग्ड; 7676; 9;
11; 168,.19; 5; 10; पयः 3 2; 2,
1; 2; 186, 5; 4; ग; 188, 8; 797, 6
7; आ. 47; 149; ठ; 76, 1; 54
24; 5; 6; 8; 14; 16; 29, 2; 56; 3०,
11; 31 6; 7; 33 723; 34; 2; 10; 73
15; 47, 14; [1 86; 15 7; 3; 2 ग;
39594. पव; 13; 4; 5724: 66) 1;
44.65; 3.1; 8.136.265. 33;
5; ग्ण; 34 9; 3 4 5; गणः 5
; 6;.9; 36, 7-4; 7; 37 2; 3; 4;
51; 4; 10; 77; 5% =. 1 7 18 ४
41, 4.25 1.39; 4.475.648 9. ~
4; 12; 454; ॥
॥ )
87; 7; 2; 5; 6 क 75; 1;
4; 0"; 76, दक; 19, 4; 22, त; 2, 9;
28, 6; 7“; 29; ए; 38, 3; 44 4; 6; 45,
22; 48, 7; 14; 5 7; 53; 0; 9४;
52, 8; 14"; 65, 4; 66, 7; 60, ; णा,
2 2; 4 2; 47; 4 72 ८ 9; 4; 16, 1;
1; 31, 1; 32, 20; 33 3; 4; 8; 24;
34; 9"; 36, 8 9; 237, 7; 42; 3: 44; 2;
4; 442 1; 47; 7; 2; 48; 7; 2; 52, 2;
36, 7-20; 44; 20; 189 का 25;
4 90, 1. 59. 5; ण; 60, 12; 14;
1 1-2. .70 10-21; 31; 12, 19;
718, 19; 19, ¢; 35; 205; 6; 9; 12;
15; 16; 22"; 21, 9; 255 तु 24, 7; 18;
०10. 21.41.76 0 143;
20; 3०, 7; 52, 4; भ; 45) 28; 46, 24;
1; 403; 6; 49; प 5० 4; 6 य;
66, 7; "5; 607, 6; 26; 68, 4; 69,
9.019.800, 21. 80, 10;
83 6; 9; 84, 7; 88, ए; 89, 3; 92;
7; 93, 26; 94. .8; 76; 96, 74; 94, २23
99, 7; 100, #; 1702, ¢; (2. 86, ग; ५8,
१ .:41.0. 4; 105 24.9.21:
310. 10.19 12; 0-100-21
1; 3०, 3; 9; 8; 39 5.9; 34 19
14.71.21 7 1 -241
१ 69, उ; 4; 68, 49; 69.17; 14; 66,
१४; 199; 420; 79; 14. 4.9;
77; 4; 78 8; 88, 18; 02; 2; 0; 94
12 2.1; 5-91
100; 7; 107 १.8; 9; 103; 157; 106,
43.758; 2; 6; वदत, 8
4; 9; 1753 1; 4; 10752; 3;4
वक्तरि इ. 61, 12.
वत्तवे ४11. 21, 5 ४1 “
वक्ता ए. 1०4, 8; णा. 32, 15; 2. 75, 2.
कै
1715; 3; 166, 3;
वक्घरौ 1. 244, 6; ए. 95: `
वा 14001191 7 ४ ~ छ
वक्वाः प्र. 9, 4; कर. 148, 5 --
वः 1. 92, 4; 7240 4; प्र. 35 2; ए. 64,
2; >. 48, 2. | ~
वक्षःऽ्सु [. 64, 4; 166, 10; ४. 54, 77;
षा. 56; 13. ५
वक्षणा 4 4." ५
वल्णाः 1. 32, 7; 162, 5; [1.33 12.
वदणानि ४1. 23, 6. = |
वक्णाभ्यः 1 134; 4; भ". ठ, पथ ह 1
वहछशासु 1. 39 4; १. 42.73; "72, 4;
(20 20 289 .49.76..
वक्षणिः प्या. 65, 4 = : `:
वक्षणीः -‡. 64; 9. `
वछषणेऽस्याः ४. 29, 5.
वत् 2, 67, 23. ~ |
व्यत् 1. 735, 4; 75/; 3; 77. 5 9; णा. 22
0 + 34.80 19 16.
स॒तः 1. 16; 2; ४11. 2 2; 4 14; 6, 45;
14; 72; 34; 9. ` ध
वहि 1. 7, 2; 14; 9; 129; 82.
वषयः ए. 33, 8; इ, 5 य.
वकर्थाय -\. 99, 12.
व्यत 1१. 5 7. | |
वसन् ए. 74, 74. _ ॥ |
वन् 1. 104, 2. |
वषयं 2. 49, 8. =,
व्छषासि 1. 123; 10. | द
बिं (11.
॥
ब॑न्ि 1. 788; 2; 11. ॐ. 55. 4 4 ;
पः
79; 142; 155; प. पव; 44;
1; -26;. 1; 40 ४4.15.15
40.111 18; .48, 7; 98, 2; पा
54 6; 2. ॐ 7; 70 3; 10;
व्यः ४. 19, 5. --
वगनुनां 1, 84 3; क, 3, 3.
वग्तुं [2.14 6; 30, 2.
वण्नून् 2. 3, 4.
वग्वनान् 7. 32, 2.
वण्वतुं 1. 35.
वंकुः प्र. 42, 6.
वंकुऽत्तगं 1. 57, 77.
तः वृत्र 1. 114; 4. |
कक् इत्ति 1. 5, 77;
त यंत्र 1. 162, 18.
( गुदस्य 1. 53, $.
थः, 26 242 9 4; 54.35.57 4;
75, ८; 08, 5; 83, 3; 84 9; 97, 10
93; 2; 94 8; 107, 7; 774; 6; 44; 7;
145; 2; 11. इ, 5; [. 1०9 5; 33 8
10.335. प; च, 6 924; 39;
` 5; 54 5; पा. 48 वा; भावा. 86; 96,
| 1; : 107; 5; 1. 8 7290; 22; 24
५१ ` 00; 25 20; 39, 2; 43; 9; 46, 24; 61
1 | 7:93 66, 54 14; 35:-ग07;.&; र, 20,
४ 13281, 1014 30, 6; 56;
0 | "64.10 ; 97; 4;:.168, 8 122, 2. ए
118
ल वभ वनिः 1, 562; 180, 12; प्र, 4 72; 26
6; प्र, 25; 45 4; ण्व. 56; 39, 4;
44.84; भा. 7648; >. 67; 264 ग;
24.145; 5 ॥
| वचःऽयुजा 1.42 30.25 १1.459; वा
45; 39 ; 98, 9
वृचःऽपिदं 1. 01.145. 64 29.
वचःऽविदेण्ाा 0, 26. 0;
८ वचनस्य षा. 39, 1; | 49, 1 1 /
वचनाऽ्वैतः 1, 68, 1.
४४६ ` | वचम्तुना- वज.
मामा ना
वन्र॑ऽदध्िशं 1. 701, 7; 2. 23, 4.
वच॑सा 1. ‰6, 4; 71. 18, 3; 32 3; 1. 14;
6; प्र. 15; ऊ» ग; 25 2; ए. 29, 6;
क, 02 9 2 10.9.
वच॑सी इतिं ए]. 104 212.
वच॑से {71. 33, 5; ए. 6०, 9; 12. 9० 6
वचस्यते 1. 55; 4; {-2. 99, 6.
वचस्या 1४. 56, 6; र. 115, 8.
वचस्यवे 1. 57, 15; 182, 3; 2. 4०, 13.
वचस्या 1. 19, 6; ४. 27, 7; 49, 8.
वचस्यां {1, 35, 1.
वेचस्युऽभिंः ४. 14; 6.
वचस्य 17. 16, ¢.
वचांसि 1. 745, 3; 711. 33, 10; 1४. 3 16
38, 10; ण. 32, 7; 52 74; +. 25;
ए, 167, 4; क. 65, 24; 66, ८2; 92
1; 108, 6,
वच्यते 1, 142, 4.
व्यता 111. 6, ५.
वच्यति 1. 46, 3; 184, 3. |
वच्यमाना [ा. 39, 7 १
वव्यमानाः 111. 6, 7; उ. 47 7.
वच्यख 1.0 21.91.44 1060
वृज् 2. 82; 72; 84 6.
1. 57, 7; 42; 16; 2; 86, 3; 19;
7100, 23; 1. 71, 10; 26, 6; र. 29,
१1.41, 9.40; 28.59 4;-00, 2
95: 9; 96, 3; 1००, 9; 1. 47, 3; 72
7; 77; 7; गा, 3; 2. 2; 41; 44; 2; 96
332. 4; 144: 2
वन्नं ऽबाहुः 1. 32; "5; 765; 8; 774 5; 7.
12 72; 19 .;.[. 52;6 क. 20 ४; 39;
4; #*11. 18, 12; क. 67, 22.
बज्नंऽवाहं 1४. 39, 4; णा. 23; 6; [ह.9, _
49; 4.44 33.104
वज्नवाह इतिं वज्नऽ्वाह् 1. 729, ¢ = ` 1
+ 2; 29, 4; 61, 18 ; 68 3; 76
9; 100 ¢; [&. 106, 3; ड.
; 6; 49, 2; ई, 5; 745;
702 3; 705 7; 773, 5;
1.5
वज्नेऽवाहः ४. 44, 19.
वज्रस्य ४ 2.4. 20, 5; 24, 4; क. 22, ८
वज्रं ऽस्त \ 11]. 24, 24.
वृन्रऽ्दस्त {[1. 32, 3; प. 333; पा. ष, 1;
469 2; 5; श. 95; 32 4; णा.
9५; 4
वज्र ऽहस्तः 1. 175; 20; व. 12, 13; 29, 2;
१1 29, 7; पा, ठा, 4; णा. 2 3२.
वच्र॑ऽहस्तं ४1. 22, 5; ए. 32 3.
वत्रऽहस्ता 1. 1०9, $.
वन्नऽहस्तेः \ 111. ¢, 32.
वश्वत् [11. 11, 9; ४. 1, 9; उ. 158, 5.
वश्य ४111. 100, 12.
वन्रसिः 1. 80, 8
1.0, 2; 46, 8: 11. 46, २. |
वच्िण 1. ;, 5; णा. 6, 15; 12, ५4; 66, 2;
#,
15. 86, 2; ई. 96, 6.
1.8, 6; 71.53.23; ए. 32; प्रा
। 2.8; 91, 9; 9. 16-24-25 60,
| 6; 100, 8 ; {-&, 3०» 5; >+ 2; 64 15
न् ` 40; 233 (181 2; 27; 452 8 70;
१०५ 22; 12; 57; 6 69; 4; 9 4;
82, 6 ; 703, 3; 737. 6: ॥
जिऽ्वः 1. 7471, 14; ए. 59, 4; 45; 18
प्रा. 1, 5; 6, 35; 3, ए; 66, 6 क.
68; 9; 92, 77; द. 22, 4; 10-13.
वृज्नी 1. 7; 2; 77, 4; 32, 7; 52 5; 195, 4;
130, 3; ४. 29, 2; ४. 30, ए; 32, 4; 49
4; "1. 78, 6; 29, 3; णा. 34, 4; 49, 7;
षा. 8; 6, 4०; 35, 4; 66, 4; 9,
13; -&. 22, 2; 55, 4.
वन्रेण 1. 22, 5; 33, 12; 23; 57, 6; 61, 10
77; 80, 5; 6; 15; 103; 2; वर; 2, गा
150, 7; गइ, ¢; 132; 6; 7. 75, 3; 6
17, 6; [. 33, 7; तप्र. 3; 7; 9, 3
0 9.
96, 17;
22; 5; ४. 29, 6; 32 4; णा
3; शावा. 6, 6; ‰6, 2; 89
+, 28, 4; 172, 6.
वटूरिणा 1. 133, ९.
वणिक् ४. 45; 6.
वणिजि 1. 119, 11.
वतः 911. 60, 6.
वतेम प्रा. 3, 10.
8, ।
‡ 1. 95, 4; 164 9; 717. 55, 6; 0.4;
; 211; 19; 79; 9 17; 7; 72 5;
1. 69, 7; ३. 8, 2; 28, 9.
वत्सःऽइव 12. 105, 2.
वत्सऽप्र चेतसा 111. 8, 0
वत्सं 1, 38, 8; ¢2, 2; 95; 7; 146, 3; ०64
॥ 10; 20; 28. -. 2, 2;.26,.8;; त, 45;
5.44 23:1४, 18.10. प. 42.253
शवा, 86, ठ; 70, ज धा 69; 4
12;.88,.2; 9591; 2 24:13. 14-6; ५
74; . 86, 23 70; 1; 7; 124; 2 इ)
11; 14.5; 149;
वत्स ऽवं 111..33, 3.
वत्सस्य 111. 6, 2;
1295.
बत् 11. 28, 6.
वत्सानां ४1. 24: 4 |
वाताय, 7; ए. 9 15 -
वत्सासंः ५11. 56, 16; 1. 72, 14.
वन्सिनीनां पा, 103, 2. ` ध
वत्से 1. 164; 5 | |
त्सेनं 1 110, 8 ४ ~
वत्सैः प्र. 30, 10.
वद् 1. 28, 5; 38; 13; 11, 42, 2; 453. 9;
3; पर. 852; णा. 0, ए; णा. 57; 3;
4 |
वदत् 1. 729, 9; ए. 4, 5.
वदत 1. 64, 9; 01 1006
वद॑तः ए, 59, 4.
वद॑ति 1. 85, 6; 135; 7; णा. 105, 5; =. 77
11; 165; 4.
वदति 1.44. 12 3431 65,
+. 62, 4. ० -
वदते ४111. 73, 8; ९. 146; 2.
वदेत्ऽभिः पा. 28, 5. |
वद॑त्ऽभ्यः 2. 94 1, भ 0
वदयत प. 108, 5. ` 4. 9
वद्श्वं . 197, 2 ध.
वद॑न् ४५. 37, 12; णा. 34; 2; ह. ठ 4;
6; . 28, 12; 36, 4; 48; 6; 774; +.
वदतः 1. 167, 9; 11. 45, 7; णा, 105 6; 7;
..10,. 4-675-70,
वदं ए. 105; 3; 1०4 73 त
वैत ध. 306.
वरदहि ५,५4.195 70.
वदति 1. 264, 45; 46 1४.58; 14; पा,
1
7 (100, क
व्दति. द. 90. 24... 14
|) निभि
वदाथः २. 85, 7.
वदन् [. 20, 3; 2. 766;,3. `
् ^
वान 941, +^
[ + आदि 4
वदामः ९. 88, 74 | |
वदामसि 111. 27, 6. | |
वदामसि 1. 87, 5.
वदामि 1. 105; ¶5 भा. 4, 70. `
वदामि अ, 24; 12; 88; 18; 195 4; 5
वदासि -. 85; 26; 95 77.
वदे पा. 86, 2.
वदेते इ. 37, 2.
वदेते इतिं ॐ. 88, 1.
वेदम 1.111.211. 7.282.114
12114 2; 14. 74.121419
.. 16 9:.149; 28; 9; 29 9; 2099; 2,
719 ; 24; 16; 20, 77; 28, ग; 29, 7; 33
15; 35, 15; 39; 8; 49 6; 42 3; 43;
| 3; 1. 55; 3; "11. 45, 24
वदा ४1. 4; 4; 13; 6.
वध॑ः 1. 32; 9; 4; 8; 7. 29, ‰; षर. 22;
9; ए. 32, 3; 4; णा. 25; 3: . "111. 24;
27; ‰. 22 8; 49, 3.
वधः 1. 07, 4; [. 2, 4; 24, 12; शा. 56,
14; +, 62, 72; 2, 114, 6.
वधःऽयंतीं 1. 161, 9.
वधते इतिं [६ , 97, 54. । |
वध॑ः 1४. 28, 4; ए. 96, 17.
वधनाभिः 11. 85, 4. ॥
वृधं 1.5 10; 555; 754; 7. 3०3; प्र
24.25 -प, 704, 45.42; 25; 2
1029 3; 717 7; 135; 3; प 5 १
0
क,
वध्वं २. 107, 9. | | ॥
वध्वा रा. 69, 3. `
वनः +. 45; 24. ` ॥
वधिष्ट पा. ज, ग.
वभिषटन ४. 55, 9.
|, सि
वधिष्ट ४. 47, 4 वन्ऽक्रष्षं 1. 108, 7. [ि
वधीः 1. 35; 4; ४. 3०8; प. 33, 3; पा. | वनता. 7, 9. ` | |
34. न
वन॑तं 1. 3, 2; णा. 94, 2.
वनतं 1. 98" 9.
वनतां 1. 162, 22.
वनते . 41, 10; क ४ 1
वनते 111. 19, ग; प. 3 10; 4 3; 47 प;
65, 4; व, 16, 28; 29, 9; 25; 4; 38,
१.१11.707 53.71.
वनथः 1. 45, 74; ए. 44 2; ए, 2, 7.
वनदः [1.4 <.
वनऽधितिः 1. 72, 7.
वनन: 12. 86, 45. । ,
वनेति ४. 6, 3.
वन॑न्ऽवतः. ४111. 1, 31.
वन॑न्ऽवति प]. 102, 19 ; 2. 9, 75.
वनन्ऽवति ४11. 87; 3.
वन॑न्ऽवती ४१111. 6, 34.
प, 8, 8; छा. 18, 76; ण. 104, 21;
प्रा. 72 4; 1. 64; 2; 24.
37 |
वनं ऽकरणात् >. 165; 5.
वनः 1.45 5:
वन्ऽइतिं 2. 4 6.
वनव॑त् ए. 33, 2. | ॥
वनवत् 11. 25 7; 2; 26, 1“; ४.35; . 37 2;
44; 751, 11, 1 18. 1
वनवत. प1..16..28.; |
बधीः 1. 55: 8; 104, 8; 14 7; 8; ०2
पा. 46, 4; एवा. 79, 8.
वधीत् 1४. 7, 3; ४. 20; 5; णा. 32, 2.
वधीत् | 1. 38, 6; (र. 42, 2; ¶. 44२2; पा
07, 20 ; 759 9.
वधीं 1. 165, 8; इ. 28, 4.
वधूः ४. 37, 3; 2. 27, 12; 85, 33.
वधूःऽदइव 111. 26, 13.
वधूनां \111. 9, 36.
वधूऽमतः ४11. 68, "7.
वधूमतः 1. 126, 3; ए. 27, 8.
व॒धूऽनता ए. 18, 22.
वधूऽयुः 12. 69, 3; &. 85 9.
ऽइव 111. 52, 3; 62, 8; प्र. 32, 16.
111. 32, 6; 7४. 18,
४5 $;.४. 4 64 29; 1;..3> 8; . "मु
104; 26 ; 1. 91,
वधैः 1. 04.4.19...
28, 7; ४. 20, 4; #. 1, 28; 5, 8
वधिञ्खश्वस्यं +. 69, 1; 2; 11; 12.
1
व्
कधिन्चपायं षा. 6,
णा इ. 102, 12. † वन्सरै अ. 152; 7.
वनसा र. 112, 1.
४९० | वनस्प्तिंऽभिः-- वने.
वनस्पतिं ऽभिः ए. 34 23. .-“ ॥ ` 48; -पा. 3८; 3. .45,.8; 99.96;
: बनस्यतिऽभ्यः ए. 47, श. र 158, 2. |
| वनस्पतिं प, 48, 14; 1. 5 10; इ. 107; 7 7, | वनिनं [. 64; 12; 779 7; ४.8; 5. |
वनस्पती इति 1. 28, 8; ` ~ ` - वनिनांनि 2. 66, 9.
वनस्पतीन् 1. 59, 5; 157, 5; 17. 34 70; || वनिषीष्ट 1. 147; 7.
॥| 4; 45 41 8 425 716 84 33. 110 वनिष्ठः 1888 70; 2; 18, 7.
27; 2 +, 60, 9; 64 8 6.5; 17, + विष्टो श 164 2.
वनस्मतीनां पा. 28; 2. = वनीयान् ए. 77, 2; 2. प्ण.
वन॑स्पते 7. 4, 10; 8; 7; 6; 72; भ"; वनीवानः 2. 47; 7.
26 ; >. 79; 10. | | | वनुते >, . 24; 12 ;. 100; 4.
ध
वनेस्ते [. 14, 17; 28, 6; 7429 17; 188, 76; वनः 1. 5०, 6; इ. 61, 3.
7. 3,3.83; १.5०; 785 || बतु. 74.
४. वनस्यतो ४. 15 2; षा. 95. वनुयाम 1. 132, 2; ए. 4० 7.
वनस्य 1. 24; 0 ; भ. 34: 18 2 1. 99: 1. वनुयाम 1. 7.23; 9 9 ५, 2; 6 1 श, 38, 2.
वनां 1. 54, 7; 5; 042 7; 65; 4; 66; 7; 58, 3; न 0. 5
0111101
143; 5; .^. 4 ©; › 13; 55 4> \**9 प. 6, 6; 24, 3; १, 25; 3; 28 १
| 4; 4, 0; ग्व; 579 3; 604; + 1.9 9; | |
| | । 1 1 पा. 25; 15; 75. 64, 99; 2. 96, 1.
1 1," "3543 8. 90, 2; 28, 8; गा, 2. वृनुष॑त् +. 146; 3
५. । : ` | वतुषां 73. 91, 5.
(1) त 1 1 1 4
॥ 010. १ | 83 5 `
बन् 29 6; वनुषे 1४. 44 3.
| वनाति ४7, 15; 4. वनुष्यतः 1140; 1..24.2.2 20. "4.
वनानां 1, 0, ५; 1. 96, 6 >, 22; णा, 7, 15; -56, २9; भद्र. 49;
वनानि 1. 65; 4; 704, 5; 741; 3; आ. 38, ¢; (4 ध
1 11101... वनुषा 1264, ग. 9
षा 7.9 णाः 3; 4, 9: वपुषा १09
+=. 68; 10; । 79; 2; 89, 5; ` वनुष्यति ५. 82, 1.
च क
कि १ ।
वनामहे 1. 158; भा,
॥
वनामहे 1. 107, 9
वनेऽ्नाः ए. 3 3; उ. 79, 9.
वनेभ्यः 11. 7, 7.
व॒नेमं 1. 70, ग; 129, 2; वा. 5 ¢; णा.
79, 20. |
वनेम +, 2:१9 47; ग; प्रा, 92, 31;
+. 105; 8. | |
व॒नेमहि ४1. 94, 9.
वने ऽयाद् ४२, 22, ९.
9, 21, 5; 97, 2.
वनेषाद् >. 61, 20.
वनेषु {. 67; 1; 70० 5; 128, 3; त्रा. 6, 4;
22, 1; 29, 6; ८१... 0.3. 1 3;
85, 2; शवा. 43; 8; 60 15; 7. 7,
27; 5; 62 8; 86, 37; 926; 96, 23;
104; 30; 78.
वनोति 1. 133, ¢; इ. 105, 5.
वनोति ते 1४. 23, 10 |
वनोषि 1. 32, 13; 14 |
वृत्त 1. 139, 10.
वंतारः 111. 3० 18; पा. 8, 3.
व॑दति 1. 173, 12; प्र. 5० 7; प्रा. 23, 2.
वंटृते ¬. 115; 8.
वंदध्य 1. 27, 4; 6, 5; 7. + 3.
वंन 1. 119, 6. ५
वंदनं 1. 112, 5; 118, 6; 119, 7; णा. 5,
2; 8... 39; 8. ॑ |
वंदन्ऽयुत् 1.
वप ५11. 96, 9
वपः 1. 16, 13
वपत +. 7071, 3
1
वंदारः 1. 147, 2. |
व॑हि इ. 67, 26. क
वंदिता >. 33, 7.
वंदितारं [. 34; 75. » त
वंदितुः 13. 93, 5. अ
वंदिषीमहिं 1. 82, 3.
वद् ४. 28, 4; एवा. 6, 1, ` - ४
वेदे 7. 247, 25 1. 35, 1४. ~ 9
वंच 1. 5, 2; 79. 7.
वंद्य 11. 7, 4; प्र. 54 7; कद. 7, 2; द. 4
;. 20, $.
व॑द्यां र. 64, 2.
वंद्यांसः 1. 90, 4; 168, 2,
द्यभिः ए. 47, 7.
वृभरुरः 1. 34 9.
वंधुरं >. 119, 5.
वधरुरश्युः 1४, 441.
वंधुरा ऽइव [1.74 3.
वंभुरे 1. 739, 4; ए. 4४, 9. +
व॑धुरेषु 1. 64, 9.
वंभुरे ऽस्याः [11. 43; 7.
वन्यं र. 9, 45.
वन्वे [1. 21, 2.
वन्वन् 1. 121, 9; #1. 12; 4; 16, 20; 26 ; 18,
13 ` +. 31,.3; 1, 89, 7; 96, 8; 77;
+, 67, 2.
वन्वन् ए. 48, 3.
वन्वत्तः 1. 4, 9; #1. 76, 27; 1. 67, 24
वन्व॑तां ए. 83, 4. 0
वतु पा. 9.
तु 20. धस स 1 | ५ (
वन्वानः 777. 8, 2; ए. 29, 9.
वन्वे ९. 96, ए. |
१
भी
प, १, 1
वपंत -- बयः ऽवृधं .
___-~- ~ -_--~----~--~---~~------
वमस्य 2. 99, 5. | 2
वम्रीभिः 1४. 19, 9. कष
वयं ए. 140, 7".
वय॑ः 1. 24 6; 25; 4; 37; 9; 48, 6; 49, 3;
66, 2; 7, 6; 2; 83; 4; 85; ¢; 88, 1;
102; प; 1049 1; 7; वः 7; 2; 7178; 5;
124; 12; 125; 2; 127, 8; 156, 2; 146,
95. 7471, 8; ग, 9; 155, 5; 166, 19;
148, 2; 1. 7, 72; 49; 14 7; 2;
20, 7; 29 10; 28, 4; 307; 5; 45 1;
1. 18, 4; 29, 8; 5 6; [पर. 707; 1४
36, 8; 43 6; ४.46 8, 5; 15 3; 16
वर्पत् ४11. 56, 3
यैः भके भ
‡ | वपतः ९. 94, 13 | ॥
वपता 1. 11, 21.
पति ए. 6, 4; पा. 7, 4; 3. 85, 5.
0 क ~. 7. 33, 77.
वपसि 2. 42, 4
वपाऽडदरः ए. 7, 8.
वपाऽर्वतं ५. 42; ¢; प्रा. 1, 3.
वपुः 1. 102, 2; 741, 2; 144 3; 785 2; 1४.
थ 24 6.; 44 2; #. 47; 5; 73 5; ४. 44
84.40, 4; 66. 1; "1.6, 4; 88, 2;
।
| ॥ | | भ 19; 11; 09 13. 1; 41; 13; 43; 15; 599 1; 59; 7; 73 9.
वपुःऽतरः 12. 77, 7. 75, 6; ए. 13, 5; 22 4; 28, 6; 40 1;
वुःऽतर ^. 32० 3. 4; 44 9; 45 2; 46, 14; 65 6; 7;
#
पा. 36, 5; 9; 45 4; 58, 3; 69; 4;
97, 7; 104> 18; +. 3 25; 5 33; 7:
35; 20, 19; 9, 5; 33 0; 39; 4; 47;
2; 3; 69 ग; 74 14; 87; 9; 102 ब;
क. 19, 7; 68, 10; 9 6; 94 4; पवयः
4० द. 9, 22; 30, 14; 39; 8; 43, 3;
4; 46, 10; 68, 7; 12; 759; प्ल; 27; 7;
8०, 5; 95 4; 96» 10; 200, 3; 7५4 4
120, 4; 7140, 7; 744 5; 156, 5 |
वय॑;ऽइव 1. 8, 2.
वयः ऽवृत् 1.5.10.
वयःऽकृतः 1. 27, 2; 69, 8.
वयःऽजुवः 1. 65; 26.
वयःऽधंः 1. 87, 3
वयःऽ्धाः 1. 75; 1; 1. 3 9; 1. 37; 18
49351420. 17; ४, 43; 23
प्रा, 05, 9; पा. 48, 75; 79 4; 7
96;.14; 772; व 3 4. ए
वथःऽधां ४1, 6, ¢; 49, 9; 1. 90
वयः ऽधेयांय र. 25; 8 |
वपुःऽतंण 11. 3; 7.
वपुःऽभिः 1. 62; 8.
वपुषः [71041110 ~. 42..3:;
:. 240 4: |
वपुषां 1.१५; पर. 62, ए.
वपषाय 11. 2, 15.
वपुषि 9111. 46, 28
व्पुषीऽङ्व २. 75; 7.
वपुषे 1. 64, 4; 119, 5; 4 ठ; 145; 7; ४.
28, 9; प्र. 33, 9; 75 3; +#1. 63, 6.
वपुष्यः [प्र. 18; 22; प. 9
वपुष्यतः ष्या, 62, 9. ध
वेपृष्यन् [2.4 ५ ध | ५ ५ ५ ४
` वपुष्पा 1. 285; 9. ८
वपुषेति ८4
` कपूषि 1. ५8; 185; 59, 3; 559; ग;
| 14:15. 24.0. 1.
1. 4 वाऽव द. 142, 4 ८ |
(1 वस 198
वं र. 26, व
वम॑न् २; 108, 8
ऋ क
च्छ ब -
व्न्ननप 5५ य ------------ ४.5
कयत् ¬. 28, 9.
वेयत् ¬. 53;
वर्यतः 7]. 28,
वयति धा. 21, 19.
वयतः ए, 33, 9.
येति 9. 9, 2.
वयति #. 4; 6; 1. ५9, ग; क. 13०, 1,
स
येही 11. 38, 4.
ष .074 4 3; 4; ग), 6; 22; 4;
24 2; 5; गद; 26, 7; 36, 10; ॐ 41,
4; 37; 15; 50 10; 57, 4; 60, 5; 66;
5; 73 8 ) 82, 3; 86, 0 89, 25: 4;. 4;
915 17; 935 4; 94; 1-24; 97; 4; 704;
ब; 702, 4; 105 10; 4; 4; 9; 139
ग; 1329 1; 136, 7; 47, 1; 73; 2147
2; 149, 5; ग6क 4 ; 165, 5; 767, 163
128, &; 180, 0; 10; व. 189,
8; 791, 10-72; 1. 2, 10; 5; 8; 4
3; 8, 6; 72 ग्5; ग, 8; 10, ए; 23, 9;
५; 27, 4; [न 7, 21; 5 0; 8, 77;
49 5; 21, 5; 26, 5; 27, 3; 15; 29 4;
33, 4; 6 39,.3; 42. 1.4, ०9, 3;
62० 71; १. 2, 14; $ॐ2; 4 14; ¢; 18
40, 3; 10; 29; 5; ० 4; 73; 28
9; 429 10; 49, 5; 5० 6; 57 41;
7; 58, 2; ४. 3 68; 4 7; 8;
9; 3०, 3; 33 5; 35 8; 39,
5; 56, 8; 65 5; 66, 6; ‰५,
74> 2:६2, ब: 9.
16, 38; 19, 13; 24; 5; 26, 8; 44, 10;
452 5; 4, 3; 48, 1; 53 7; 54, 8; 9;
5, ; 5; 595; 7, 9; 25; 8; प्रा. 1
24; 436; 14 1; 24; गडु 8; 29 85 25
5; 309 4; 32, 27; 37; 4; 44 3 45 3;
43 5; 447; 7; 55 7; 60, उ; 65;
9; 8, 4; 82, 2; 86 (4
11 11 11 1111.
44० 27; 452 77; 46; 1; 25;.47, 28; 48
9; 14; 47, 5; 6; 55 ‰; 54 8; . 64, 74;
62, 14 ; 64, 69; 65, 6; 66 8; #; 41;
5 716; 7.5; 716 83, 1; 6 92 2 9 247 ;
32; -[-. 5, 9; 37,6 45; 3; 67, 4; 23;
29 ; 65, 9; 66, 74; 79, 2; 86, &8 9
43; 58; 98, 74; 2. 2, 2; 4; 4; 4; 12,
8; 746; 18, 9; 26, 4; %, 9; 37, 1
30 9; 37, 8; 38, 2; 3; 39, 7; 41, 7;
42, 0; 70; 539 8; 5 7; 6; ५2 7; 84,
4; 87, 22; 89, 14; 94» 1; 7107, ‰; 120,
5; 146; 2; 124, 4; 128 1; 7136, 3; 160
5; 169, 4.
वेयं ऽवयं +, 22, 12.
वयसः ४111. 48, 1.
वय॑सा [. 70, 4; ॐ, 6; ए. 36, 5; णा
4 9; --. 9, 47; ३. 106 9
वेयसतः 1. 24, 75; ए, 54, 13 |
वयसि 117. 5, +; इ 9, 7; इ. 46, 71; 120 5
व॒याः 1. 59, 7; 7. 35 8; ए 7133 1; 24; 3;
भा. 4०, 5; उ, 92, 3. |
वयाःऽइव 11. 5, 4; पा. ;), 6; प्न. 7 धः
17; 19; 3
वयाकिनं ए. 44, 5.
वयां {. 165, 75 ; 266, 15; 164, 77; 368. 1 ध
27; इ..7340:6..:
वयाऽड्व ४1. 5, 5.
वयाया; श. 124, 5.
वयाऽ्व॑तं ए, 0
वपियोः पा. 29, 3).
वयिष्यन् ए. 33, 22.
वयुनं 1. 182, 7; 1.34; प्र 48, 2,
वयुन ऽवत् 1१. 57, 7; प्रा. 27, $.
वयुनऽ वित् ४८ 87, 1.
वयुनऽशः ४1. 52, 12 (
वरान् +. 32; 7.
114:3 ; 122; 2. वशय 1. 76, 7; 742; 5; ४. 2, 4; 442 27;
| -कयुने 17 20.95 ^. =. 7. ^) | प्रा. 59, 2; पा. 80 3; 84 4; >
वयुनेषु 1. 344 4; पा. 7, 5; पा. ०6, 9. ~+ 29, 6 ; 5०, 6. ॥ त
वयै. 54, 6; 112 6; क. 68, 8. = ` वराहः 18. 9, ‡. 4 । 4.4.
` "वृयाश्ड्वः 1. 36. . क । | वराह 1. 67, 7; 774 5; प्रा. 77 16; ङ
` वय्याय. 75, 72; 1४, 9, 0. ५ व | 28, 4; 99, 6 ^"
+. 101 4 त = 1 वराह °युः >. 86; 4. ` वि 1
वरःऽभिः इ. 80, 1. ` 0 वराहं 1. 747; 71. |
वरत् 1१. 9 9; 0 वरान् 1. 88, 5. ६
ता । 1 || वस्वै 2.6,7. [र
वरते 1४. 42, 6. | वरति वः 1. 14, 3; 9; 2.
बत्य 608 ` | ` . || करितिकः 1. 4
¦ वरताः 71४. 5#, 4; +. 107, 5 | | वरिमता 1. 108, 2. | |
| वरत्रायां इ. 102, 8. ११ वरिमन् 111. 59, 3; ४. 54 4; #1. 65; एण;
वरध... | | क. 28, 2; 297.
त रिमा 1. 55 ए.
9 वरत 1. 1471 , 15; 140, 9; 7. 24.24; || वरिमाणं ४1. 47; 4; १1. 42, 1. ॑
शि) 9; 16; ४, 52; 4 छ 1. वरिवः 1 59; 5; 63; ¢; 702, 4; ११ 34; 7;
वर्ते ४. 52, 9; पा. 66, 2; 88. 3. ` वप्र. 21, 106; 24; 2; 6; 59 9; 55 7;
0 वरति ए. 32, 8; `. 9 10; 73, 5; प्प प्र, 99, 10; पा. 8, 4; 44 18; 5० 3;
४; 28; 3 . क पा. 9, 5; 47; 4; 48, 4; 02 6; 96 3;
, .62४3; 64 14; 68, 95 84; 7; 97, 16;
ह. 42; 17; 92 छ) 3. व 16, 3
वरिवःऽ्कृत् पा. 26, 6. नि
1) ॥ लि । | ठ
. ५
वरिवःऽपार्तमः 12. 7, 3.
वरिवःऽधां 1. 119; 7.
वरिवःऽवित् द. 30, 5; 67 72; 6% 9; 96
2; 1141. .28 4
वरिवःऽविदः ए. 0, 14; द. 212.
1.4, 4:48..2; 779. 3; 140, 13;
5 53 773 21; 15 10; 16,. 0; 1#, 9;
| 18, 9; 19,9; 2९, 9; 39 2; १. 0.6.
णा. 7, 4; 66; 54 3; ५5 4; 70 5;
1. 45; 2; 68, 2; 9; 22; ए. 25; ए;
` 775; 6; 116, 2; 133; 9; 164; 2.
वरऽशिंवस्य पा. 2754; 5 ` धि
वरऽसत् {४- 40; < ^: ४ 1 ५ 4 ।
तव (14:
#ै
षः „^
| वरस्या ४1. 49 7. ` `
५ ८ व॑ष् 44; 12. 4 ॥
वरा +. 85; 8; 9
वसि 1. 190, 2;
मि 2 । ल
वरिवस्य 12. 96,
ऋ वि
वरिवस्या 1. 181, ५.
ति , क |
वा | ॐ | ५ ॥ ८ | । । ४ 3 य > 4 नः 4 क 9 ०, | 4 4; । 156; 4.
वरिवांसि द. 9, 26. _ > ` ध 1. म 4; + ग; 2; 38,8; 9; 7. +; 2;
वरिवषित्र्तस्य एना. 48, ठ. = `` | 6; ॐ 4; 74 4.64 29; 1 28, 4;
वरिवोविद्ऽ्तया 1. 20, 7. ` ` `. | : 4 4; 3; 5 4; ४.5 ए; 26 9:46 0;
वरिष्ठः भ 30, =. 46 45; 5; 49, ध 64; 5; 1; 67,
| प्र 5; 2 2; 3; 9 3 3 4;
वं प. 489; पा. ०७, २3; आ, ० वक . ॥ (1 व
वर्या. 2 9 ६१ ४.12, 3; 28; 4; 34 10; 24; 25; 35;
वरिष्ठा प, 4५. 6; 38, 4; ५9, 7; 4०, 2; 4; 49, 3; 4;
वरिष ४1. 47, 9. | 57, 2; ९6, 25; 60, 4-6; 8; 62, 3:. 6;
वरिष इत्ति [प. 56, 1. . .. | 64 1; 66, 77; 15; 82, 710; 86 3; 87,
वरीमन् ए. 63, 5. क 3 | 404, 1.4. 0 0
वरीमऽभिः }. 55> 2; 731, 1; 159, 2 >. 2; 3; १6, ग्व; 4006; छ; उ 13; 6,
(4 3 1, | ` 3; 94, 5. 64 24 73:3; -7, 5:
वरीयः 1. २45; गा. ० प. 455; 49 || „45 9 9 8 5; र; 329;
5 षण 99 5 168 ग. 75 8 || 9
र... 111
वरीयसी [. 136, 2. १1440 2
7 ॥ ध ५ । 13; 5°`
{{{. 46. 6. वह ऽप्रतः ए. 69, ५.
करीव 1. 164, 42 व
वरीवृनत् ए, 24 छ | ध कि 1 . वरूणडप्रकिः 00.09 नि |
वरूण 1. 157, 6; 1. 20, 14; 29, 7; ए. 46, वरूण 1. २ 7; 28 ५ ; 25; 5; ९9, 3; 106,
| 9; 6, प 2; 7 3; प्या. 59 ग; 66 9 9 394
3 शा, 9,85.0 | _ 4.9; 4 0 9;
वरूण 1. 24 व; 4; 5; 9 7; 3; 9; क छ 9 स त द व र 4
€ । ॐ , 9 , (| | , 9 र,
1४ पया, 2.40 9. 95964;
28, 2; 3; क्ण; 29; 7; [षर ए 78 0
न+ ४. य 2.52 53.85 49 25 4. ||. स ॥
79, 1; 85 79; 8; पा, 64, 5; 66, 9; || ` वरूणंऽइ्व १1. 48, 14. .
7; 18; 86, 3; 4; 6; 8; 87, 2; 88.5;. वरूणयोः 1. <, 7; णा 66 य
6; 89, 2; 5; णा. 18, 0; 2, 7; 15; | बरूणऽशेषसः ४. 65, 5. १०९
42> 3; 69, 22; 83) 4; > 5 4; 6;
न ८ गः
वरणः 1. 17; 5; 236; 24; 4; 8; 72; 3; || 136, 2
10; 15; 26; 4; 36, 43 42, ॐ;
॥,
4; 33 9; 42 7; 55 7
47, 28; 70, 7; 74
4;
88
1 त
६ 8
>. 20, 6.; 30) 7; 36 ३; 13; 27, 1; 85; र वरेख्य | 259 | | ।
र 41 89 8 2033 9; . 729 ~) 7167 3; | वरेस्यः 1. 26, 2 3; 4; 60, 4.3 . 275 2; 1
7185; 7. । 4 | ८ १6; 11.20; 9; "4,4.81 2 "9. ए
चरणा 1४. 41, 2; 3; 6. = 4 ५ 20, 12; 46, 8; 64, 15; 1, 67, 29; >. |
वरणा प्र. 4, 1; 4; ए. 62, 3; 6; 54 5; 97; 2; 113 2; 122: 5.
~ 1.4.410 | | वरेण्यक्रतो इति वरेर्यऽक्रतो 11. 43, 12.
1 वि ८ | 4 वहशानी 9, 46, 8 1 ॥ बरें 1 9, 5; 58, 6; 79; 8; २59, 5; 4, |
| । | 2 4; 212; 1; 2; 76; 44; 8 3; 40, 5; 62,
वरूणाय 1. 129, 5; 156, 4-6; 157, 2; [ष 6; 10; ४.8, 7; 35, 3; 592; ४1. 16
333 "१. 2, 19; 754; 0; ४3 202; 28
। ॐ 5; 42 7; श्र 99 113 66 13 6.8 13 85
11.00, 0.111.600 ~. 02.2.21; 1 12. 05, 29; ¬. 35" ¢. | ध
88, 7; प्या, 47 1; 2. 33 3; 34 2; वरेण्यस्य ए. 22, $ | ए
` 68 74; 66 20; 79 8; 84 ठ; 85, 6; 1 वरेथे इतिं ४111. 73, 8.
` 10५9 8; 704; 3; 108, 16 3 ~. 12) 8 9 659 वरेभिः >. 429 1.
। मृरूणनौ 1. २०, 2; 1. 3०, 8
5; 6; 8; 85, 7; 55 | वरेऽ्यं इ. 85; 25; 2.2.
(4 ` ` र्णे. 152, 5; 1४. 3; १. 422; 495; | वरेऽयवं ए. 08, 4, |
त. ष. 86, 2; 87, 0; णाव. 27 3; | वरेऽयात् उ. 27, 71.
| ६. ९ 5; [९ 69; >, 36, 4. | | वयो इति ४91. 23; 28; 24, 28; 26, 2, ॥
„ ` बहणेन १, 347; 39 3; पा. 357. | 1 |
८ वहण्यात् 2.97, 76. “ ` | वक ए, 26, 3; णा. 75, 72.
ष्ण । ॑ | वरूता ¡1 169, 1. 20, 2: [भ्र 55 3; ॥ 1 बक् ¶ 183 4; ष 29, ¢ |
0 8 १ वरमिति वक 2. 8, 9.
ध . वतौ ५ 45.19 प 39 45.4४. | वचैः 1,8.34 49 4; ०42; 1. ८6,
0 11 #
1 ॥ ध वरूतीभिः प. 34; 24. (१ ॥ वचक्षा 1. 23; 23; 24; >. 85, 39; 12, 2 | र |
॥ ५ # 1 ल 1 ~ ` ॥ वचसे ९. 65, 28; इ. 15, 9
22324; 5 ,.116; 1131482;
2 १289, 6 1. 34 ५ ए. 55 4; प 49. 9 994
11 ॥ वचन ए. 4, 21.
11 ष. 36 4; 394. 35 25.58. 8; 1 | १
५ (9. 18, 20} 24, 9; 67; 3; 6; 79 3; | वनेति षा. 1, 1
श. 20, 13 (1 | 1 वशैः 1. 77, 8. 4 ५.
| | वश 12 7 9२० 965 0०५
2; 353 4 5; 55; 22 4; 3413;
न. 34० 5; 9; 1९. 65; ७३ तव, 2; 9,
ग्5; 104 4; 105, 4; 2. यथव व
पर
०५०
ना
; 9
वतेतां 1.8 ५ 2 ` ने | | | |
ततता ^. ५9, 2; ४1.41, 2; द. 19,5; 89 72. वते 1. 40, 8 ; ए. 20, 7; प्र. 29, 14; . ४117.
1044 - 74 4. | ।
0 183, 2; (प्र 36, 7; ४. 62, 4; 5४; ~ वतिं ४१. 6, 58. |
~+ 27; 3; 04, ३1. ` , - विः 1. 34 4; 92, 16; 2176, 28; 170, 2;
वध्वं २. 29, 1.
क ॥ 9. 4; 1853; 184, 5; आ. का, 0; प
वत्तेनयः +. ;, 4. | १ 75 ¢; ४1. 6% 3; 10; 63, 2;. णा. 4०,
वतैनिः 1.4. 1444. ` 9; 67; 0; 69, 5; "व. 9.77; 28; 22
वतैनिऽ्भ्या ए. 69, 5. ११.२१ 4; 5; 35 2; 87, 3; २. ॐ9,
वतनिं | 5 | 133 122; ©, छ, ४
तनि 1 6 । ध 09.11. 49.23: वरिका 1 10, 26 |
४1. 18, 16; एना, 6६. 8: व ति
6 1 583 2 | बिना. {2 8; 6 245 18.
2 1; 4. | (07. प
कोनी 8 | क
वततैनीः [४. 29,
> > वेते इतिं 1. 185.7; पा. 9.
क्ता ^. 19, 3; 94.14.
[० क |
~ | बत्मानि 1. 85, 3
व 64 114 | षा. ॐ, 4. पः 98. 6; "५५. ॥ |
श 9 ह 1. 29, 3; 67, 15 +,
कि ४. 62, 17. | वधे ४. 56, 2; ए. 28, 7; प्रा. 6९, 12; [ङ्
वतमानः ] 25; 2. वं 61, 23
वतमानं ४. 28, 2; ४. 9०;.4. ४. दशर, 29. ; ` वधेः [. ध 13; 6. क
वतमानाः प. 40, 6. | वधत् ४. 62,.4; 646. `
वतयं +. 156, 3. | | वर्त् ए. 38, 3; प्रा. 58, 9. |
वेय 11. 23, 7; ए. 32, 25; एवा. 1०4, 9; वधेत र, 22, 14, ` ` 4
"10.2.69. ^ वधत 1, 9 1 द 470. ^.
वृत्य 1. पय, 9. वथेतः 1. 57, 9.+ | 9 |
वरेयत् >. 95, 14. | | वा (४, 50 77. `` ८
वतैपत 11. 4; 9. | | . वधेतां [11. 7, 2. । ॑ ।
वयं पा. 1044 | वधां 1. 64 9; शा. 47; 37, 5 `
शयति 2.4 | | ` | वेति णा. 75, 8. ध
स 9 ०: | अ 4.
त ` वैतु प. 36. 5
| ¦ वते 1. 12.41... 75, 1. व
" | वधेत 1.95,5; 1. 6, 2; 35, वणः पा. प्ल
वतेयन् ४.48, 3. ५ ॥ 3 12. +, 4 ; 04; 9: क
वति १1.799 40; षत
का 1. कः ता 3 प
39; 5. 92, 12- |
व
1,
कनं 1. ०2, 5; 8०, 2.
12, 14; ` 14
92 ॐ |
वरतैतां -- वनं . ` 8९9
वधे्येतीः 1. 77, 3; पा. 34, 3.
वभत 11, 11, 711
ति)
वर्धमानः 1. 125, 1.
व्धयख >. 59, 5.
वधै्यामः 1. 97, (1.
वधेयामसि 1. 36, 72; ४1. 16, ग.
वैसे ए. 44, 7. | १
वर्धसे 11. 7, 17; 1. 44, 2.
वैनां 1. 52, ¢; ए. 473; 10; भा. 22 ‰;
$. 62, 4.
वभेना ४111. 8, 5
वधेनानि 11. 39, 8; ४५1. 23; 6.
ष वधेनी 2. 47.
५... वधनेभिः 111. 36, 1.
वपत प. 19, 5.
ध त 9. 9
वधेतां पर. 47, 14. वैस 111. 36, 3; प. 44; 5; धव. 13, 25;
वभेता ४. 47, 74 44, 2. त
वैति 1. 65, 2; 7. 5 8; प्रा. 2 29; 98
8; ह. 31, 3; 2. 43 7.
धति 1. 55, 3; प्र. ग; ०4; 39, 5;
91 1.4. 111,12,.3; (7, 6, 37; 26,
9; 62, 1; ९. 46, 3; ९. 43 3.
' | वु. 5५ 8; एना. 9, 7.
| तु 1.5 8; [1.10 6; णा. 5 3; 8, 22;
"29; 16; 18; 44; 19; 22; 1-5. 67, 74
वपते 1. 140, #.
की भन
वधेस पा. 8, 5; "11. 1 18; 6, 22;
8; इ. ५8, 10; 104 >.
वोः र. 50, 5. |
वधेत् ४ 41.09 1194
वधान् 1. 7०, 4; प. 17, ण; 38, 4; *ाा1
7, 19.
वर्धोम 3. 44; 2.
वर्भोय २९. 12, 4.
वधे 91. 16, 16
वधित्ता 1. 9, 29
धते इतिं ४. 08, 4
कि किनि) शिण
न
वधयां 111. 52; 1.
वपः {. 142) 5; #; 1. 58, 9; 1४. 16, 4;
ए. 3, 4; पा. 68, 6; ८९, 6.
चपेऽनीतिः 111. 54 3. न
वपैसः 1. 141, 3; प्र. 48; 4; 911. 46, 16;
९. 100, 4
वपेसा 1. 39; 7; +. 5 ४; 99.53; १1, ५
व्षीसि 1. 09; पा. 4414; द. 94 ` |
चम 1.14; 5; णा. 75, 8;.9; प 36; 3
1. 60, 24; | 98, 2; क. 26, 7;--101,.8 ; 01
$डवं 1.. 27; 715; 740, 7९ 4 । ध
वशः ए], 75, | ५
` वशा ए. 75, 78.
वेय 1. 7०, 4; 15 3; थ 3; 90 ण
ध 1, 29, 10; प्र. $; णा. 6.32; 9,
1; 4.5; 4.6.
। = क्षन् गा, 6०; +
258 30; 7; 377; 1. 57 1 1
27; 12; ४.
202 428; 6.4
वयति ४11. 100, 4 |
व्मीऽइव -- ववै, *
वृर्मीऽडइ्व 1. 108, 6.
चवेति 1. 164, 1.
वपूंतति 1. 46, 1 4.
ववृतानाः ह. 34, ए.
वषेथः ४7]. > 21.
| ष
>
व्षेयन् 1. ५6; 4.
वपिः 1. 37, 6.
वपिषटऽघतो \ 111. 101, 2.
वषिष्ठ 1.8, 1; 1. 15, 7; 26, 8; 56, 2; (प्र.
3 5; ४.60, 2; प्रा, 46, 24.
व्पिंष्टया 1. 88, 7.
वधिष्ठस्य 171. 16, 3.
वषिं्ठा 1९. 22, 9.
वधिष्टानि *ााा. 70, 9.
वथि्टां ५1. 47, 9.
वथिष्ठाय ४.7, 1.
वधििभिः +. 2, 5.
वधिः 1. 67, 26.
व्षीच्यः $]. 44, 9.
[ 2145; 0
[1 9; 8.3; 1४. 544; 28, |
2:49; 4
"11.32, 5; >. 68 4.
बवर्तेत् 1४. 24 ध 44 3.
5; शावा. 74, 7; 8; कू. 62, 9
४६८.
वल ऽरूजः 111. 45, २.
वलस्य “.14...42.4 1.22 3
2; -९, 68, 5;.6;. 9.
वद्णु +. 73; 8; ३. 62, 4.
वस्गुऽय्तिं 7४. 5०, 5.
वर्ग् इति प. 62, 5; 63, 7; एणा. 68, 4. `
ववं {1. 7, 6; ४. ¢, गय; ४.4 1.
ववश्तुः ४111. 12, 25.
वविं ए. 45, 6.
ववध्िय 11. 24, 77; शव. 12, 4-6. ७
ववक्षिथ 1. 87, 5; 102, 8; 1. 22, ८४ गा.
11 0
ववधिरे 11. 34, 4.
ववुः 1. 64> 3; पना. 12, 7. ५
ववदे 7. 26, 5; 23, 7; प्रा, 200, 6; ण्या. `
08, 0; |
ववे 1. 61, 9; 146, 2; 7. 5, 8; णा. 8, 2.
वृवन॑ः ए. 17, 2. |
ववयं ४111. 13, 33; 66, 5
ववद ४1. 57; 12; 63, 3.
ववंदिम ४. 25; 9.
। वि, सि ति,
ववंदिरे 71. 54 4.
ववंदे उ. 65, 15.
|)
ववन्म ४1. 3, 5.
॑ ववन्वांसा 2. 61, 4. |
ववेन्वान् 2. 27 9.
वृवजुषीणां 1. 234, 6.
ववति ए. 63, 7; उ. 93; 13.
| ववे 1. 7 65, 2; 9. 62, 2. | ॥
वेक. मलो; शः
ववत् ए. 97; 5. `
1
भ
वव 1. 7, 72; 2. 8, ए.
वधात 1४. 4; 8; प. 4 14.
ववादः प्रा. 7, 8; 6.
` क्य 1. 182, 5; 186, › प्रा. 956. `
: ` वुषूतु 1, 105, 76; {१ * 3 111. 46, 23
4 ववृते 1 164; 14; 166, 9; 197; 15; पा
08, 9; =" 35° 9) 1
1)
वुदुः 1. 135; 5; +. 26, 8; 2४, 6.
ववृत्ख 11. 16. 8; 71. 32 5; 07 > 35 1५... 1
9 ; 3; ॐ 4; भ. 93; 84.94
02. |
ववृधूतुः ४. 97, 8.
ववृधे > 64; 4
ववृध्य {. 61, 3; 122; 2; प्र, 67; 1; 5. 99; 1.
ववर्ध ४. 52: 7 प, 66, 2; 68, 4
ववरध॑त ‰ 93, 10.
ववर्धत॑ः 19४. 2 7.
ववुधस्तं प्र. 0; 3.
ववृधस्ल 1. 31, 8: ए. 19 77; 2. 1166.
ववृधाति 1. 33; 1.
ववृधति इति ४11. 7, 5; प्रा. 10, 28
ववृधाते इति ङ. 5 4.
ववृधानः 1, 757, वर; [1 172; 4; 20; 19, 1;
1. 34 1;. 45; 9; प्र. 21, 1; ५. 2 12
3; 70; 1; ०) 0; 24, 2; १1. >
{1{. 6, 4; 53 2; 76, 3; +. 14 3
4 2; 79; 7; 87, 6; 16; 6 ; 126; £.
ववृधानं 1. 275; ए; 11. 472 5; 9"; `; {४.5
14; प्र. 32, 6 प, 22, 6; 38; 5; ५1]
1, 12; 1044; 3. 85, 19. |
क ॐ -
एते
ववुधानस्यं प्रा. 146
ववृधाना 1, 93; 6; 174; द; पए. 69, 6; भावा
च 7
ववृधानः प्रा. 96, 8; ए. 78, 8.
ववृधानान् ४. 42० 9. |
ववृधानायं 12. 42 3
ववृधानो ४. 69, 7 प्ता. 8, 4
ववृधीथा; 1. 135 10, | ध
च
ववृ ~ --~--~--- 267, 8; ए. 7 8 32 73; $. 19, | वशत् ४. 66, 4.
2; 4413; श्ना ॐ ग; +, 22, 5; 39 4 वंशऽ्नीः ९, 16, 2.
| ववृधे 1. 37; 5; | 7; 87, 2; 4; 149, वशति पा. 20, 77; 28, 4.
४; 141, 5; प्र. 222: वा 5 2; 36, ग; || वर [. 712, 10; 116, 27; प्न, 8, 20; 46,
०; 40 7; ॥1. 97; कग; प्रा. 9 || 39; 5० 9; ~. 4०, 7; 66, 9; 84, 5;
3; भ्ल. 3,8; 6.72 12; 8; 9; ग; 44 177; 4.
12; 622; [. 89, 3 97, 4० ; 2. 29, || वज्ञस्य ए. 24, 5.
(1 ५ || वशां 7. 24 14.
वृधेन्यं 111. 24, 18 | वेशाऽअन्नाय ४11. 43, 77.
क्ुभ्य 9४, 26, 18... | | वशाः ४1. 26, 47; इ. 971, 24
ववृध्वांसं १1. 95, 0; 98, 8. वशान् 428 17. ~ 4; 10; | ९.
हे 1. 40; एप्त. अआ, 2 | 07, 7; 742; ‡. 9 4
ववृमहे 1. 187, 2; 7.9, ग; प्रा. 935. वशानां 111. 60, 4.
ववृषसत ४111. 67, ¢. | वसाभिः 1. ;, 5.
वुवृषाणाः ए. 26, ग. || वशम 1. 765, 7.
ववृपे 1. 88, 1. ॥ वृशासः ४1. 63, 9.
ववे 1. 61, 15. वंशिनी 2. 85, 26.
वृत्रे 1. 36, 17; प. 24 वशी 1. 70, 4; [1 23, 3; ए 53 6 । #१.
ट 73; 9; 60; 8; ++. 84; 3; 103; 3; 152;
व्रः 1. 52, $, 1
१ वशे ए. 95, 4; 1१. 86 ०8.
वत्रयांमहे ४111. 49, ऋ |
वरान 171. 7, 6.
| क 4 वश्मि [. 37, 0; 53, 13; 7. 37, 74; प्र
वरात् एवा. 104, ग क 110: 96, 4
वव्रास॑ः 1. 168, 2.
वषट् #11. 99, ¢; ॐ. 1715
वधि; ४. 14, 2; ‡. 44.
वषट्ऽ्कृतं 1. 7629 15; 1. 36, 7; ङ. 74, 12.
वष॑ट्ऽकृतस्य 1. 120, 4. ४
' 1. 46, 9; पय6, 0; 64, 7; 29; प्र.4 || वष॑द्ऽकृताः प्रा. 48, 2.
` ॐ: 1 699; 792; 2.5 01 ॥ : वर्षद्ऽकृति 1. 24, 8 त
वच्रिऽ्वांसं 11. 14; 2; 1. 32, 6 18४. 6.2; || बयद्ष्कृतिं 1. 3, 5; एवा, ५.3; ग्ड 6.
9. 20, 2; [67 22. ^ चयः प. 0
वष्टि 1. 33: 3; 1. 24; 8; 1४. 227; ए
4;. 9.3; "11. 45; 6; 95;
वसत् ४. 2 9 ; 632 6 ; 85: 4
| क १
वसतः पा. 38, 2; ए. 49, 8.
५ [ कि १,
< वसति 1. 10, 3
वसतिः ४1. 3 3; 2. 9, 5.
4८ ` वसतिं 1. 35 2;. ए. 2 6; 2. 12;
वक्त्तीः 1. 25; 4.
वसते >. 88, 10.
वसते ए. 63, 4; 136, 2.
वसतेः 1. 144 12.
वसतो 1. 31, 16.
वसतोऽरव 1. 62, 15.
वसत्या 1. 66; 5.
वसन् +. 146, 4.
वसना 1. 95, ¢.
(1 धि वसंतः >. 9०, 6.
५५ | वसंतान् ‡‰. 161, 4.
वसह 1. 242, 3.
वि कि |
वसवान् ~+. 22, 15.
4 बसवान (20454.
: कहवान्ः १. 3.6
दसवात ए. 998.
वसवानः 1. 90,
11
८ व्तव्य 1] 9,5; 14123 74.
ल
वस॑वः [11. 8,8; ए. 41, 9; ए]. 50, 4; 25;
ष... 565, 4. 38 3.59, 3;
५1 48, 4 ; -56, 209; : ए. . 54; 3 ; 1. 6;
| | 9; क. 66, 12; 148, 9; 142, 6. |
॥ ` वसवः 1.166.676; 2; ५1.23.44
प; 29, 3; 349; ना. 39 8; 503;
९.2 6. 4573 9, 42, 285: 558; ४.
54.07 628... 21. 3; 46
10.50, 8; राा.78, 15; 1:94,
20 द. 37212; 7736; 100 4
वसंवे ए. 4, 72; 2. 8, 3; 91 | 12
वसाये इतिं 1. 752, 7.
वसानः 1. 135; 2; 164; 37; आ. 10, 7; 3०
3; 359; 7. 5; 38, 4; 19.55
18, 5; ४. 44 3; 48 5; ४. 29, 3;
१.0.442 2; 09, 9६.29 34 42 2;
88, 5; 86, 14; 49; 9० 2; 96, 13; 97,
4-141-14 14:76
9; 53 3. | | |
वसानं 1. 152, 4; 12. 16, 2; 109; 21.
वसाना 1. 122; 9; 1240 3; 1. 39, ४.
वसानाः 1. 164, ¢; 4; 7. 8, 9; 358, |
पा. 97; 6; 1९. 94; 4; <. 5 2. `
वसां ४. 2, 6.
वसायतते 12. 14, 3.
वसव्या ‡₹. 13, 4.
वसिष्ट 11. 36, 7; 1. 2, 3. | र
वसिष्ट ४11, 7, 8.
वसिष्ट ४1. 24; 1; 33; 10; 77; 88, ए; 96, 1.
वसिष्ठः {1. 9, 7; णा.9,6; 28, 4; 0; 22, | ५
3; 26;5; 3ॐ6; 7४; 74; 426; 59
3; 73 3; 95 6; + 65 75; 95; 17;
150, 5; 284, . 7. | [व
वसिष्ठं 1. 112, 9; #1. 323; 73; 706; 86, | ज
5; 88. 4.
वसिष्ठऽ्वत् ४11. 96, 3.
वसिष्टस्य 11. 33, 5.
वसिष्ठाः णा. 7; 4; 28; 34; 1; 7; 95.59; च
+; 6.6; 47 55.8०7 923 द. 15
8. ;..422;:-5. ¢ 4
वधिः 1 944
विशत् 3: |
वसिष्ठासः ए, 23; 6; द. 66, 4. = ` ;
बधि 91 161
. वसिष्व 1.26; | व (1
विष्व 1 41.
4; 7; 44 4; 62 3; ए. 8 3; . 3४; 2
०; ४. 74; 347; 5, 3; षा. 1
0, 33; 28, 3; 47, 22; 48, 152; रय, 16
33, 2; 54 4; 59, 9; ए. 19, 3; 78,
15; 203 2; 32 15; 16; 27; 25; 59,
949; पावा. 235; 4 6; 6.47; 0,
163 27; 17; 255; 32, 8; 46 5 0;
43; 33; 44 15; 44, 46; 46 15; 50, 7
539 4; 66, 4; 6; 88, 3; 100, 6; 17
6. 104, 6; 72; (दकि. 19; 2; 22. ¶; 36,
' 57; 4; 64 6; 81, 3; 90 7; 98, 4;
1८; 2; >. 23; 2; 30; गय; 45, 77; 48,
5; 49; 1; 55, 6; 62 2; 66, 14; 44;
9, 29; 86, 3; 95, 4; 253, 3; 158, 4;
पठा, 4
वसुः {. 43, 5; 60, 4; 79, 5; 94 25; 7,
7; 128, 6; 143, 6; 7४. 49, ५; 1.0.11
2; 2432; 25 7; ऊय; 13; ५. 24; 2; 44
15; 45" 23; गा. 9 57; 243; 44
24; 1039 12; >. 22, 5; 32 8; 45; ६;
छर, 3; 175, 7.
वसु ऽनु १1. 99, 8.
सुतां 9.1;
वसु ऽत्ति; {. 122, 12.
वसुऽतातिं 1. 122, 5.
वसुक्षये ४111. 61, 7; 12. 44, 6.
वसुऽत्वनं ४11. 816; पा. 15 12.
वसु ऽत्वना ४111. 50 6
वसु ऽत्वनायं धा. 1, 6
वसुऽत्वा ‰. 61, 12
वसुऽ्दां ४111. 99,
वसुना 1. 83, 1; 125, 2; 7. 55 20; 1. 20,
6; ४1. 37; णा. ॐ, 3; उ. 4४ 2.
वमुऽपतिः 1४. 0, 6; पा. 52, 5; पा. 45
४1. 44, 24
वमुंऽप्तिं 1. 9, 9; 71. 36, 9; १.44; पा],
52, 6 ; 67, 109, 3
वमुंऽ्पते [. 6, 4. | |
वृसुऽपते 1. 10, 5; आ. प; वा. 3० 19;
०.001.719. 76
वसुऽपल्नी 1. 164, 2 ह
वसुऽभिः 1. 58, 3; 770, #; 143, 7; 6; 1.
3 ग; [1 9, 2; 49, 4; ४.3, 8; 5
10; शा. ॐ 9; 70 4; ॐ 6; 44 4;
47, 2; 76, ५; 5; 9० 6; शा. 357;
1. 95, 3; क. 3 2; 66, 3; 79, 7; 98,
1; 208, ¢;. वर0, 3; 725; य; 159, 2.
वसुंऽभ्यः ए, 49: 5; ई. 87, 9. ध
वमु +. 4433. 124, 1; षा. 7: 13; क.
122,
वसुंऽमत् 17. 69, 8; 86, 38.
वसुऽमता 1. 178, 710; 725; 3; ४. 4, 70;
+. 6, 3.
वसुमती इति वसुंऽमती [11. 39, 77.
वसुऽमतं 1. 159, 5; 7. 24; 2; 1४. 34 10;
४.68, 6; प. त, 5-844-27; 8.
वमुंऽमान् "17. 77, 4
वस्ऽ्यतः 1. 139; 6; 1४. 16, 15
वसृऽ्यव॑ः 1 49, 4; 62, .11; 228, 8; 11. 11
1; 26, 7, ५..2..625..9; 4.22
2; ए. 52, 6; 67 10; 1. 712, 3;
= 2-40-7; 975.92.
वस॒भ्या 1. 94; ::.2165;1.
वसुऽयात् *111. 8, 16
वमुऽवनिं ४11. 7, 23.
वभुंऽवसु इ. 76, 8.
वमुऽवाहनं ४. 75, 7
वसुऽवित् 1. 18; 2; 97, 22; 164 49; र.
86, 59; 96, 0. _
वसुवि्ऽतमं 1, 45, १; पा. 16, 41,
स॒ऽचिदः #111. 60, 12; [. 107; व,
सऽविदं ४11. 41, 6; णा. 23, 16; 67, 5;
र. 124, 4; क. 42.3..
वसुऽबिद्। {. 46, 2.
वसुंऽश्रवाः ४. 24, 2.
वस् इतिं 1. 158, 7; 2.
वस् इतिं 1. 120, ¢
वसन् 1. 45; 7; [. 20, 5; >. 66; 4
वसूनां 1. 7, 9; <8, 7; 76, 4; 94 13; 9
6; 124; 4; व, १; 128, 5; 264; म;
191 1.0. 30709...
14.17.01. 26; 1.3. ५1. 44; 6;
5 5 प्रा, 416, 93.44, 5; 965.2;
32 5; 45 4; 75 5; ष, 3, 4; 39;
46.16 ;. 21; -5;: 68, 65. 97, 8; `©
19; {-. 58; 2 ; 93; 4; 108, 13; 9.0 1;
48, 17; 50 ¢; 742 7; 97, 3; 725; 3.
वसूनि 1. 16, 8; 42, 10; 59, 3; 67, 4; 84,
20; 722; 6; 254 45. 1, 3० 1०; 3 5;
1. 573 5; 55 १०; 56, 6; 1४. 24; 2;
44.115. प. 4235 62.16; ण. 13;
क. 93; 34.10, 48; 39. "41 4;
45, 8; 20; 739 3; भा. 6, 7; 7 3;
14.20.344; 22444317; 4;
| 78 । ५५.19
18, 4; 29, 4; 67 77; 65, 3०; 64 २8
65» 45 69, 26; 89; 2; 97, स~ 58; २९०
780, 7;-297, 1
वसो इति 77. 7, 2; 1. 16, 3
१:84. 44.102; 26; रा. 14 21;
84, 20; 129, 771:; [. 13; 13; 4; २2
११,.९4. 11.49 2.274.415
1-42-1 1.2.16 1.22
8:46, 6 "3.3; 4 "11 1.6;
ध; 2.1.411. 24.29.214:
23; 28; 24; 7; 26, 20; 44: 36; 46, 9;
50, 3; 4: 9; 5256; 52 8; 6 4; 9;
06 ~ “0.971.014. 49.-7
108, 4; 13; ~+. 5; 4; 0 2.93, 12
० |
॥
१55 3-24-4 0.0. १4 1
+, 61, 12.
वसों 1. 87, 3;
वस्त {. 25; 13.
वस्तवे 1. 48, 2.
वस्ता 11. 49, 4.
वव 1004 42011101...
1४. 109 33; णा. 13; 22.
वस्तुः ४111. 77, 15.
` वस्तुषु ४11. 19, 37.
वत्तं ए. 25, 2; ए. 49, 5; रा. 69, 5;
प्रा, 46, 26.
वस्ते 111, 55; 14; ५1. 3.6; 43; 7
=, 75; 8; 714; 3.
वस्तौ; 1. 9, 6; 104, ग; प्16, द; पत, 5
19; 25. 393; 1१. 6445555 ४.
32.72; ॥1. 42; 2; 39.53; णा. 2
6 4:10, 24. "1.224.413 4.2; 4;
119,44..199.4 4
वस्वौःऽवतोः इ. 4.1 3
व्रश्दाः ए.42; 8... 1
च्छ ऋ _
ग्य. +9 ` ------------------ 1४. 24.46.
वस्रऽ्यंता ए. 40, 21,
वख्य॑स्य ¬. 34, 5. `
वस्मं 1४. 14,
वस्मनः 7. 57, 7.
वस्यः 1. 37, 18 109; 7; 747; 12; 1. 7
16; 2, 13; 9,2 59 5; 1४. 97, 4; प.
312 2; 53 10; 1 44 7; 44; 7; 67 14 ;
+". 32, 9; एका. 16 70; 27, 9; 2,
22; 48 9; 77, 6; इ. 45, 9; 92, 23.
वस्यःऽष्टये 1. 25, 4; 176, 2; एना. 86 ॥ 3
वस्यसः 11. 17, 8; [१.2 50: श्रा 48, 6
97; 4; 1. 4 7.
वस्यसा 11. 29, 28.
वस्यसाऽवस्यसा ‡. 37, 9.
वस्यसी ४. 67, 6.
वस्यान् ४ 4; 1.76
7; 193; 43 5; ष. 7, पा;
21; 10; 47, 9; 52, 3; प्र. 7, 7;
१. 19, 0; 56, 4; णा, 6, 4;
; 200 9; 39, 2; 82, 4; 83, 5;
10; 98, 6; शा. 14, 20,.10;
9; 719; 81, 4; [. 97, 44; 98, 5;
५. वः 7; 3०, 12; 45, 8; 77, 6.
वसी ए. 16, 25; 64, ए; प्या, 29, 79.
वस्वीः 1. 84, 10-12; ए. 41, 6; 74, 0; श्र
22.14
वस्छीभिः 111. 13; 5.
वस्व्या ९. 1/2, 2.
वहं 1. 135, 2; 274, 5; ग, 4; णा. ५०२
{65 1; ब, 2; 5: 70, 1
वह् 1.12, 2; 1८534: ४4; 14; 12; ठः
4; 22 9; 10; 37 77; 447; 7; 9; 45 |
2; 48, 7; 12; 76, 3; 92, 5 94 3;
काकयवा त
2: 7 3; 39. 5; पना. 25, 3०; 44, 9;
473 14; 16; 60, 4 ; 93३; 25; 102, 2: श
0; 77, 9; 16, 43 12; 4०, 77 150, $
वहत् ४1. 7, 77
वहत 1. 25: 22; एवा. 20, 23; श्र 53, ¢.
वहतः
वहतः
वहतः ` 1
॥
7; ४. 20, 9; शा १५2
प, 27; 23; 96, 6
वहतं ४117. 5, 20.
वहत् 1. 34 4-6; 12; 4,
` 4; 7. 53 ण ए.-42, २8
भा. 5 15.
वहतात् -\. 24> 5.
वहतां [[1. 47, 9५; एना. 1 0.2
वहतां 0. 1, 25; इ. 85, 26.
वहति [ष. 44, 2; णा. 65, 2; 66, 24; शा,
3 28,
वहति 1. 39, 6; 164; 2 ।. 1 52.11; 3. 52;
3; 42; 8; 2102 2; 70.
वहु श्वा 37, 1; >. 76, ०.
[ ह. 1
वहठुः ~. 32, 3; 85; 143.
वहतुनां 2. 85.38.
वहतुं 1. 1849 3; ५. 589; २. 0, ए > 3 4;
` 8, 4; 22; 37. |
वहत् इतिं शा. 7, ८.
वहते 1. 167, ¢; ए. 3०, ए; 44 8; ण्न
46, 26
,
वहंत्भ्यः >. 94 7.
वहं *1. 65, 4.
॥ क सि ।
वहथः [. 1192 3.
वहथः ९. 40, 4.
1" कि
वहध्ये र. 22, >.
| ५४
छ वतं 1. 65, 1. ~ 0
वरता 1, 116, 19; ए. 06, 4; पा. 52, 4; +".
70 3; 77, 2.
वर्ति 1. 14; 6; 50, 8; 7, 28; 75; 4;
186, 5; प्र, 27; 8; 4452; ५ 16, 43;
64 3; वा. 66, 3; 66, 15; 67, 8 ; 78,
4; णा. 3, 2; 58, ८; इ. 31, 8; 3
2; 335.
वहंति 1. 5० 7; १64, 3; 14; 9; पा. 7, 4;
† 55 78 ; 58, 2; 1, 73, 3; णा. 15, 23;
| 9०, 5; 9, 6; णा. 7 35; +. 28 4;
100; 11.
। वरतः 1. 92, 3; 1. 35 9; 74; 117.
| 9. 65; 2; +" 11. 1, 3.
| | वहतु. 4 8; 49 7 254 7; 0. 46, 3;
1 48, 4; प्र. 33; 8; णा. 24, 3; भा. ए,
(म 24; 35, २4.
वदतु 1. 16, 7
| ` ` 778 4; 5; 187, 2; 11. 4356; 553 4;
67, 2; प्र. 4 4; 9 32,9.; 52, 4.75;
| 6; भ 27; 7; 4० 3; 44 19; 55 6;
॥ ४ | 63;:4 ; ` 69;:4.; शा. 47, 6; 6, 4; णा.
| 5 33; © 42; 46 7;.65 4; ९. 4 4;
44 3; 96, 12.
वहते ४. 58, 7; 67, 77; ४111. 209, 7
वहमानः षा. 45, 7; र. 71, ए; 49, 7.
। . बंहमानं र. 2, 19 4 ~ |
वहमाना ४. 37, 9. 1
वहमानाः 1. 723; 12; 174; 6.
बहति (1.64 5; पा 8.
अ वहसि 1, 124; 72; ४111. 66, 75 0
४ [कः प
वहसे ए. 36, 5. = ` र प ५ ॥
। ति
क
85 6; 92, 18; गता, 16;
भि क
। वहस ४111. 26, 23 1
० वहाः 111. 43; 4. र ५ | ५
वहातः 77, 35, 9. 1
बहांते फ 34; 3 + 9.4 2,
वहाय । 64; 12.
वहतं --- वा.
वहामि १ 0 0
वासि 1. ¢4, 6.
वहासि 2. 51; 7.
वहिष्ठयोः प. 47, 9.
वर्हि्ठा 1.34 3; ४* 566.
वहिष्ठाः प. 14, 4; पा. ता, 12; 49, 3; 657.
वहिष्ठान् 1. 127, 12.
वरषटिभिः 1४. 15; 4. |
वर्हिष्टैः ‡. 7०, 3.
वहींयसः 1. 104 1. `
वहेयां ए. 77, 3.
वेये इतिं 1, 180, 9; 11. 26, 9.
वहेथे इति 1. 135, 8; 182 2; 1४. 45: 3;
। षि श
१111, 5 31.
वहेयुः ४1. 37, 3. | |
वयः 1. 3 9; 7149 6; 209, 8; 48, 17; 1.
24.73; 37, 3; 11. 6, 4; ९. 79, 4; ४.
20, 3; पा. 83, 4; गात. 3 23; 0 2;
9,14.144 248. 2 |
वये 11. 21, 2.
वर्हः 1. 76, 4; ग5 प; 128, 4; 129, 5“;
160, 3; 184, 7; 1. 7, 4; 38, ग; बा
9.7; 203; 5 1; 19. 21, 63 ४.5९,
प्रु. व, 2; 26, 9;. ष. १, 5; 6, 9
पा. 23; 3; 94 ए; [. 96; 2०6
36, 2; 64, 19; 89, 7; 97, 34; 208, 19
क, 11,.6;.67;9; ग्ला; 47,
वहिऽतमः 1४. 1; 4
बहिऽनिः 1. 6, 5; 44 15; पा. 323; णा
बः 9. +. 93, 9. . ५ 4
वहि 1.60, 7; 11. 7, 7; 11, 4; 392; भा
16; 12; (ाा. 43; 20; 12. 65; 28; 91
; 06... व. 701, 19; ए, 3
वही इतिं ए. 73 4; पा. 8, ५.
च्छ
कै क च्छक ॐ च्छ क
ड ऊः
7; ०8, 3; 7, 6; 83, 6°; 86, 49; $; 8 न~~
०4 9 ; 700, 77; एला, 8; 108 7; 109, 7
2; 112 19; 176, 2; 120, ¢; 1742, 10:
140, 5; 767, 8; 162, 8 9; 210; 163;
1; 164, 23; 266 5; 167; 2; 380, 9;
185 83; 189, 6; गा 2 10; 5, 3; 70, 2;
13, 16 ; 23, 07; 28, 10 3०, 9; 34; 4;
10; [1.4 4; 6; 6 6: 88 9; 8, 7
10; 28; 2; 35 1७; प्र, 2 6; 8; 21, 2;
; 44 3; 48, 5;
18 4; 343; 59; 35;
40; 5
2, 2; 13; णा, 3 8"; ¶, 6; 16, 173;
39 2; 32 12; 42, 2 49; 2; 55 3;
82, 8; 98, 4; 104 98; 142; 7; 16; 18;
४11. 1, 28;.4
र; ४ 18; 21;
6; 7; 18१ 13 5; 9; 12; 1४;
209 15; 16; दा, 1073; 22, १४... 16;
27; 20, 14; "2, 19; 20; 37, 15; 32, 6;
43, 28; 44, 23; 47, 159; 48; 15; 49, ४;
61, 9; 64, 22; 66, 3; ¶75 14; 78, 102
93, 9; 97; 1 10; 7; 52 5; 65, 22
23; 79, 2; 97, 22; 54; 108, 14; ङ.
1034-2, 55.15 2; ण, 4.1
72; प ४ 0, 4; 6; प; 99, 7; उ,
4; 32) 5; 33, 8; 37, 12; 38 33 493 3 ॥
74; 41, 3"; 48, 8; 50 2; 67, 18; 64,
3; 5; 69 ग2; 70 5 74 ग्ण 86, 3
10; 0 6; 91; 17; 98, 1 ॥॥ 2 ॐ;
105 व; ग9 9; 16; पथा, 9; 4 7
132, 3; 5; 748, 3; 154; 3; 1671 7; ४
वा. 4 6; एए. 9, 4
98, 8; 1. 112, 4; श
7175; 8; 189, 3.
वाकं [. 164, 242
वाक्स्यं ४111. 63, 4.
वाकेनं 1. 164, 24.
वाघत् 1. 102, 5. |
वाघतः 1, 3, 5; 58, 7; 88, 6; "70, 4; 7.
2; 1; ॐ 2; भ. 76, 24; शा. 32, 1;
ए. 28, 4; ह. 62, 4.
वाघतः 11. 60, 4.
वाधर्ता 1. 3, 4; 8; ॐ. 33, 4
वाघते {. 37, 14; 40, 4; 1. 2 14
वाधत्ऽभिः 1. 36, 23; 71. 38, 20; फा 1
9,14.148. |
वाच॑ः 1. 9, 10; 700, 2; प्र 76, 7; पा.
ता, य; 1. 33; 4; 5 2; 62 26; 85;
7; 97; 34; -. 97; 12; 166, 3.
वाचः 1. 79; 77; 43; 1; 164, 54; 35; 37;
45; 1. 2, 6; भा. 59; 6; 1. १...)
26, 4; 6% 25; 67, 15; 86, 12; 96, ¢;
1679 5; 106; 10; ऋ. 53 4; 47, 7; 3;
91,.9; 8, 15; 15, 9:
वाच्च 1. 42; 6; 55; 7; 92, 9; 110, 24; 249,
1; 15० 8; 9; 164; 10; 168, 8 ; [1. 42;
1; [1 8.5; 54 2; ए. 27, 5; 35
57 5; ४. 36, 4; 43, ग; 54 ए; 63; 6
४. का, 17; 4, 5; 60, 16; शा. 923;
34 9; 15, 7; 4; 5; 6; 8; णा. 5
3; 76) 12; 96, 12; 100, गद; 101, 76 ;
{2.12 6; 30, ए; 64 9; 25; 26; 68
5; 72 1; 73, 3; 7; 78, 7; 84, 4; 8ह |
33; 99, 5; 97, 3; 32; 36; 1०6, 74;
107, का; 113, 8; >. 18, 14; 34 5; 42.
1; 06, 4; 719 2; 4; 5; 9; 94 7
4; 98, 2; 3; 7; 74, 9; 130 4;
2.;.1873 1. |
वाचंऽङ्खयः 1. 107, ८
वाचऽङ्खयं 1. 35, 5 `
वाचऽवाचं 1, 182.
क. 10, 2; 152 5; 42 ए; 76, 6; 7 ए;
87; 4; 95; 2; 774 7.
वाचाभ्सतैनं 7. 87, ल `
(9 ` वाचि 2.77, 2; 6; पष्ठ,
क) वाचि ४11. 58, 6
वाचो 11. 43; 7. |
५ वाज॑ः . 20, 8; वा, 5; 161,. 6; [. ८ 12
व प. 35, 3; 9; 54 ग; 366; प्र. 5 5;
1 ` 4 5; प्र. "5 ग; 59 4; भा 37 4;
५ ए 7 1/1. +. 120 5; 24
1 4; 35 14; 64 1०; 957.
0 वाज ऽकृत्येवु -. 50, 2.
| | वाजऽगेध्यं 12. 98, 12.
( ध ` वाजंऽजठरः ४. 29, 4.
वाज्दा 1. 225; 5. |
वानऽ्दाः 111. 56, 5 ` ^
वानुष्दावां ए. 2, 34.
वाभ्ऽ्दाघ्रां {. ¢, 4. ।
वाजऽदूविणसः ५1177. 84, 6.
वाजं ऽपतिः [पर. 15, 3
वाजंऽपत्नी ४71. 76, 6.
वाजंऽपस्यः ए. 58, 2. 4
बाजंऽपस्यं 1. 98, 12.
वाजऽपेशस 1. 34:
वाज ऽप्रमहः 1. 127; 15
वाजं ऽप्रसूता 1. 92, 8 । ४
वानैश्प्रसताः 1. 70, 4. =
वाज ऽवधवः 111. 08, 19. ¢
वाजेभमेऽभिः ए. 19, 3. | ` ॥
बन 04.9.49
( ८ ।. . 65 9; 64 73; 73, 5; 77 5; 1९0, 19;
1
व; 129 2 129. 9; 413; 239, 2;
^ 7890,6;. 4:24
12, 15; 24 9; 26, 3
वाजेऽभरः 1४. 77, 4.
48;.-114:.74-.53; 1;
पण । वाचाऽस्तेनं -- वाजयामः.
4; 54-5; 6० 9; 65; 3; 2०, $; 63.१4.
9 93 19) 6; 2.5; 5 > 27 4; 32; 17; 14;
20; 26, 8; 42, 6 ; 56; 23; 93, ए; भा
4.2 2 11400440)
2.0.164. 1-24-34
209 2; 24; 6; 33: 2; 34: 4; 38; 1; {4
; 525 5; 592; 7; 56, 2.; 5; 2; 61, 20 ;
63, 72; 14; 18; 64 29 ; 67, 4; 65, 7;
7० 10; 82; 2; 5; 83 5; 86, 3; 49
87, ए; 6; ०09 7; 969 85$ 16; 208; 2;
110 (14.41.401. 001
67, 10; 69, 3; 75 9; 96, 16; 99, 3;
706; 72; 740; 1; ` कृ; 4; 148, ए,
वाज ऽइ्व 12. 37, 5 ; 62, 16.
| वाजं ऽभरं 1. 00, 5 ; >. 80, 1.
वाजय ‡. 68,
वान् ऽयतः 1. 130; <.
वानऽयतां ४. 45; 29.
वानयत्ऽभिः ४. 60, 1.
वाजयथ्ये 1४. 29, 5.
वाज्यन् 1. 7106, 4; [[. 60, 7; *{1. 24 5;
32, 17; 1. 68, 4; ‰. 97, 71
वाजयन्ऽरव 11. 8, 7
वाजयतः [1. 19, 7; 38, 10; 9. 14; 16; 42,
$. 51; 92.24.94 6; 455 7. 260, &
वाजऽ्यंतंः 1. 3० 7; 132, 7; 1. 62, 17; 1१
25.85. प. 47; ४1-20-44 १1.96, 2;
11. 514; 17.953. 0
वानञ्वंत ध. 31, 1; 352 पा, 98.2४.
वाजयत्ता 1. 717, 7 0 |
वाजश्यंतां प्र. 60, 7. . ।
वानञ्यंतीष्.2, 5
+
प ~~ भा. 43 च; 98.
वाजभ्यु ४. 80, 5.
वानुरुः 1. य 35 य प. ० 9, 3;
१.33; प्रा. 55 8; 1.44 4; 89;
3; 96. 14; 103, 6; 706, 22 ..191:7.
वन॒भ्यु [. 3, 2; प्रा. 1, 29; 80 6: र्
63; 79
वान्ऽर्ा 1. 43, ?.
वाज॑ऽ्त्नाः प. 49, 4; प्. 35, 1.
वान्ऽगत्नाः 1४. 34, 2; 35, >
वाजंऽग्लां ‰. 42, ४.
वाजंऽवत् 1. 97; [द 47, 4 42, 6; 86, 18
पाजऽवतः ४1. 50, 17
वाजंऽवतीः 1. 34, 3; ए, (0, 72.
वार्जवत्ऽभिः 111. 6०, 5.
वाजंऽवत्या 1. 37, 18.
वाऽव 1, 120, 9.
वाजऽवतं [{1. 52, 6; (प्र. 34, 10,
वानंऽ्व्॑ता 11. 35, 15.
वाज ऽवान् 111. 60, 6.
वाजंऽश्रवसः ए. 35, 4,
वाजं ऽ्रवसं 111. 2, 5.
वाजं ऽश्रुतासः 1. 36, 5.
वान ऽसनिः श. 110, एक,
वान् ऽसनि 11. 5, 2; 2. 97, ग.
वाभेऽसाः [3.2 16; 35 4
वान् ऽसाहम् ¶. 20, 2.
वाज ऽसातंमः 1. 66, 27; 100, 6.
वाजऽसातमं 1. 78, 3; प्र. 15, 5; 12. 98, उ;
2. 1702... र |
वाजऽसातमा 1. 28, ¢; 11. 12, 4; गा. 5, 5.
वानंऽसातये 1. 150, ४; त. 5, 3; गा. ‰
7; 37 5; । 35 6 46 2; 64 6 ५
४. 52; ४; 4; 57 ४ ए. 945; ४
4; 28; 6, ॐ; 8, 97; 9, 28; 25 3; ॐ
वाज॑ऽसातो 1. 54; 12; 770, 9; 172; 24; 7
ॐ) 24; 1४. 76, 18; 20, 2; 47, वा; प्र
33 7; 7; #1. 715; 715; 66, 8: श्रा 35
1; 48 2; 1.97; 9; द. 35 14.
वाजऽसां ४1. 53, 29.
वाज ऽसुत् [९., 45; < | |
वाजस्य 1. 77, 3; 36; 12; 75; 79 4; 97, 26
145 7; 11. ठ 16; वत. 16, 5: प्र. 12
3; ॐ 7; ४.97; 28 2; 45 9; ए.
10 0; 26; ग; 9; 37 5; 45 28; 46, 7;
6०, 13; ए. 21, 7; 6० गग; 932; एना.
25; 20; 4ॐ 28 ; 75; 4; 96, 2; द. 7, 9;
86, 242; क, 93; 3; 93; 710,
वाजां ४1. 48, 4.
वाजांऽइव ई, 106, 5.
वाजाः 1. 91, 18; 76४, ग; 77. 14; 6; 26, 4;
20.41 20; 0; ष, 25; ¢; - शप. 2.3;
भा. 81, 9; 72, 69, 7; अ. 57, 53. 05;
3; 142; 6.
वाजाः 1४, 34 3-5; 55 3; 356 4-4; 7;
37; 7; 3; 7; 8; प. 37 7; 48, 7.
वारान् 1. 92, 7; ए, 4; गक 4; 74, 4;
4111
15; 4० 4; 2 10; प. 47, 7; 65, 8;
ण्, १; 249; 45.12; 5०6;
9, प; 25; 4; 26, 5; 87; 6; 95 8;
95; 6; भ. 29 37; 26, 25; 1. 54 4;
67, 5;. 76, 3; 9० 4; 9 4; 99, 2;
710) 2; >, 25) 77; 28, २2; 53; 8; 67;
20; 75; 2*
वाजानां 1. 77, 7; पा. 36, 7; णा. 24, 218 |
92 3; >. 375 2; +. 267; 9
3) 3 9 602; 18 74
५
| ` क | वाजिन् -- वाजेऽवाजे.
वाक्ञिन् ह. 66, 20. = . वालिनीवसू इतिं वाजिनीवसू 1. 2, 5; 11. 37; 5;
वाजिन् 1. 163, 5; प्व. 52, 4; [&. 80 2; प्र, 04, 6; 7; 75 3; 78, 3; भा 5 3;
१९ 56 2* । | 1 | 2; 26; 8; 10; 0; 4; 10; 9; 22 7; 14;
वालिनः ग. 714; 29, 9; 54 9; 86, 3; 718; 26, 3; 85; 3; 105 8; ~. 40; 12.
1१, 6; ग; 8; 28; [2 प्ण क वाजिनीवसो इतिं वाजिनी ऽवसो 111..42, 5.
4०; 7. 9, 3; 55 5; ए. 5; 39, || वालिनीऽवान् 1. 122, 8 ; ए. 36, 6; ए11. 69, 1.
6; 0.6, 7; 4; णा. 13; 63 47; 22; 75 (~
6; कण 99 0 960; 58 2; 4 6; वाजिनेन >. 56, 3.
56, 25; 95 3; णा, 3 2; 4 26; १० वानिनेयः ए. 26,
16 ; द. 6, 2; 74; ¶; 27; 7; 22; 1; 62 वाजिनेषु 3. 77; <.
2; 64 4; 65? 9; , 64 6; 66, 10. || वाजिनं ए. 36, 6; णा. 25, 24
वाजिनः 1४. 37, 4; ४1. 38, 5. | वाजिन्ऽतमं 1४. 37, 5
वाजिनं 1 4 2; 9 1.4 7 9 | वालिन्ऽनमाय $, 174; 6. |
0 ॑ 7 ध व ४६५ पाः || कालिभिः 1] 3० 8; 69 7; श. 6 4:
2 14; 1. 38, 2; ४.7, 7; 6 3; +. ~ 049. | |
54; णा. 7; 95 3; ए. ० 58 वाजी 1. 66, 2; 69, 3; 742 8; 116, 6; 15;
। 2; 162, 01; 22; 65; 4; उठ ग;
। 16, 3; 24; 22; 429 203 29; 46 55 -62+. | |
६ (1 12; 848; 92; 24; 72. 6, 5; 0; 4; ` 0 ग; 24 73; 43 2; न. 27; 8; 29, 6
(00401 4 1 4. 3
1 " ` 80.73 895. 4; 126; "1. 39; 105 8; 6; 38, 7; 10; 4 4; 58 7; ४" 4;
1 ` उ 194, 45 8; 4०5; 145 2; 47, 3; 4
| | | 26; 2; १. उ, 14; 4 8; 32 24; 34 2;
178, 7; 188, उ. क
वाजिना 111. 29, 2.
वानिनां 1. 162 3; 1. 24; 12; 1. 53, 23;
ए. 16, 48; 67 4; णा. 2०4 6; ~
37, 6; 44 4; 7० ए; 90 2; भवा. 32
18; 92) 34; [2 7 4; 75 5; 28; 7;
36, 7; 57 3; 45 4; 64 29; 74+ :; 8;
9५8.. ` [7 86, ग; 87, 4; 95 ए; 96, 9; 15; 97,
वानिना पा, 25, 9. त ५ ध ०: 710; 45; 70, 5; 1०9, 6; 16; 20; 26;
चल्निना | 3 34 41.50 3; 9, 5.
। ` | बानौऽ्डव 1. 100, 4 (
। । | । ि 1 1 1 † ् 4 । ॥ | द र ( + । । वाज । 306 9 4233 8 85 5 8॥ 27; 3; ष 4
५ ४ सित क _ | 6; णा.675; णा. वग 8; 54; 54
५ वीनि 0 श ( ५ < [6 6529 2. 6.5 81; 7; 149, 5
वाजिनिंऽइ्वं {. 9477, .
वाजिनीं 111. 6; 7
वानेन 111. 67, 7. | 4 { (८ । ५
वभिः 1. 3, 10; 5, 3; ॐ, 8; ०2; 55, 5;
7; प्र, 2 3; 99 7 ‡
12, 9; 24; 8 47, 6 42; 6 ; ए, ८.
४1. 14 5; 48, 2; 67
6; शा. 5, 26; एव 9; 22; 2; 3, 6
38, ८; 46 9; 128; 155 20; ८0, 10: 68
0; 709, 8; [द 47; 4; ८5, 117; 12,
वाजः 1. 48, 76
ॐ ¢; 187
6 7.
116, 19; 770, 7; 169, 4;
04.111. 3; 20; 7;
9 भा, 93, 6; ए
वाणः ४111. 20, 8.
याणं 1. 85, 70; 1. 24, 9; 7. 90,
वाणस्य र, 5० 7; 2. 524.
वाणी 1. 58, 6; ए. 63, 6; पा 31, 8
वाणी इति 1. 119, 5. ` `
वाणीः 1. 7, 2; 164, 24; 771. 1 6: 7, 75
ॐ 16; 9, 34, 3; ए. 32, 22; श्ना
9 19; 12 24; 59, 3; द. 9०, 2; 1029
3; 104, 4; र. 723; 3. ॥ि
:ऽद्व #. 86, 1. ४ +
ब्राणीकी प्र. 0140 1 ५
काशीभिः पा. 9,9. `: `
1. ८.8.
18. 82, 4. ५
वातै +. 157, 5; 186, 2; $,
1
वातंऽ्चपधूतः द. 97, 7, ४
बात्रः {. 28, 6; 29, 6; 34, 7; 89, 4; 216, 2;
122, 3; 148, 4; 764, 4; 780, 6; 286
10; आ. 38, 2; 10. 203 24, 2; 19,
4; ए्- 44; 45 4; 78. 0 8; णा. 35,
4; 4 6 87; 2 ४. 18 9; 549 4;
1. 90 52; इ. 24; 4; 37, 9; ९0)
न्मा कषप
वातापनैनया द, 66, 79. = ` . `: `
चापि 1.18, 8-10.....
वात्तापपांय ‡, 105, ए,
५५६ सचता
वातऽजूतः 1. 58, 4; 65; 4; श, 10, 7. 0
वातं ऽजूता 1. 94, 210. व क त |
वातऽजूताः 1. 742, 4; प. 35 ए. पा. 4.4 | ` |
वात ऽजूतासः +. 6; 4 |
वात॑ऽत्िषः ए 54 3; 57, 4. ` | |
वाति 0.
वाते []. 14, ४४. 4 16, 3; ` 64,..3; -92,: 1 8;
744, 5. |
वातेऽ्डव 1४. 58, 3 =.
वातय 0. 44 ~ ५
व्रातयामसि {. 128, 2. व. ५.
वातऽरहसः 1. 181, 2; पा; 34; 74
वात्ऽरहाः 1. 118, , 10 41
वातं रशनाः ह. 136; 2: ` ` ^
वातस्य 1. 24; 6; 25 9; 7, 10; कठा, १2;
774 5; 275 4; वा. गवः 3; 20 का;
वप्र, 0; 77; 76, या; ए, 5, 9; 3,704.4
3; पा, 563; भा. 7, ग 9 85.
० 4; 5; 89, 71; 90, 13; 156, 2; 5;
१68, 2; 28: , \ + ४5 श १ 9.
वातस्य धव ४. 3
तातञ्खतं ¶111. 1029 5. . | ;
वातऽखनसः ए. 56, 3. ` | | |
वाताऽ्डवं 1. 39, 5 ¢. क
वाताः 1 90; 6; 1४. 22; 4: भ्. 839 4; ऋ. 1
91.04.11... ८
वाताःऽडइव 1. 184, 4; पना 49, -8.; 1; 22.
2. 20, 9 ~ . | 0
1
वातान् 1. 645; एए, ०; प. 58. 7; 3 |
भैष ती, ना
वात्ताण 1. 121, 8; 75. 93 5 4 श 26.
५ ५१२ ४ बातु-- वामानि,
#।
वातु 1. 89, 4; *1. 35; 4; भवा, 18, 9; ~. 0944-0 1030-3 ~ |
| 127; 22; 169, 7; 786, 7. | | ए. 2 7; 36, 2; 532; 3; 59, 4; 61, २; |
बि ए. 40, 7, | | 2; <; 63; 62, 4; 655; 64 ठ; 4; 6.5;
| वतिः [1.2,6. ०4; 67, 19; 3; 48; 6; 7; 8; 68, 2-4;
वातो द. 7130; 2. | | 5; 6; 09, ग; 4 04. 09 3. -:
` | . बाध्यं र. 85, 34. +. 64.42 8; 4 09 1; 4; 25, 2; 3;
742 7; 4; 82) 2; 9; 83; 9; 84 72; 85
1; 4; 9० ग 5; 92; 5; 6; 922;
93; 7; 6; 94 7; 6; 9; 97, 9; 99, 6;
| वाधिंऽखश्चस्य र, 69, 5.
८ + वांतिं ४.85; 4. त | # 1. 104, 3; 67; ग. 5 26; 28; 49; 222;
(८: 1 -षाषुव् =. 16, 3 वि 24; भ; 29; 33; 34; 8, 4; 6; 8-14; |
४ | वापुषः ४. 75 4. | ग; 16; 184. 16; 22; 9, 3; 4; 5; 8
वां 1. 55, 7. | ४५) 9 12... 8
0 वा 1. 2, 44 10.33; 79; 22 3; 4; 30; 28; 18; 25; 7; 6; 26, 3; 4; 9; 23; 24;
५ 249 7; 5; 14; 46 7; 3; 5; 8; 4; 2; 16; 78; 35 22; 38, 3; 9; 4०, 2; 42,
| 2; 4; 8; 95; 24; "0; 108 7; 5; 6; ||. 4; 5; 6; 573; 4; 58, 3; 59, ; 3४; ।
। 309, 2; 2; 112 24; 16, 6; ग्य; 193; 4; 75 7; 71-13; 85 3; 86. ठ; 2; 87,
13; 710; 183. 25; गणक ब; 2; 4; 6; 8; ग; ग्ला, 3; 8; >. 98, 9; इ. 72 4; ४
| 10:15 16; 291 92. 42. 263 218; य; 733 .व; 2; 22, 63 29, 2; 39; २८; 4; 52; ५५
31.4.54. 1 939 41.53. |. 6. वव ग} म 245; अ; 58०; ॥
0; 9 कणि 1 34.54 63.94; 2; 9; 67 4; 7० 6; ‰#9 4; 85, 74; 25; |
15; 144, 4-; 5; 6 1307; उ; 2; ध | 134 2; 3; 743 3; 4; 6; 162; 4; ।
159; 4; 5; ग्ड 2; 3; 6-9; "52 3; 778, 2, |
न ह त 7; 153 7; 2; 3; 4; 54 6; 155; 2; || वामऽजतिाः ९, 140, 3.
॥ | ` 2579 6; 56 ग; 3.4; ॥ 1; म | ४ वामश्देवस्य 1४. 76, 78, ए . ५.
इ 1 इ क ५६ ५ । ॥ | बानञ्नतिः ए. 47, 7 [ "4
| र, 24, 2; $, 5; 32, 1; वामञ्भजंः 11. 55, 22; ए. 776. |
47; 4; 21; 881 4 4; 12; वाभे 1 33 3; 124; 712 ४. गक, 12; 290; 8 ;
[61 6; [प्र 5 15; 3० 243; प, 6९,
(4/1 19; ५ 52 2; 171; 4; 69; प |
24; 4; 77, 2; 78; 7; भा 29; 21; 83; १
ए. 7 4; 4२ 7; 428; 56, 4; 68, `
6४ पथ 1; 144) 64.350, 3,
मंऽ्वामं 1ए. 3०, 44; द. 6, 8
वामया 11 9, |
70.12; 2 73;
1-23; 6:
गध. ७१ ` न----------- २. 125, 8. |
वामौ ए. 48, 20; ठ्. 69,
वामीः 1. 53,
वामे इ. 29, 8.
वामेनं 1. 48, 7.
वायतः ४111. 57,
वायतस्य पा, 21 3 ,,
वायति ४111. 43, 7; 4, 6.
वायति ए]. 67, 8.
वायवः [. 11, 14; द. 46, 5.
वायवे 1. 142, 12; 1. 71, 3; ४. 43; 3; 5४
4; 7; पा. 45; 9 ग 3; 9९2; 4;
19" 25 2; 27, 2; 33, 3; 349; 445;
64, 9 ;..63, 3; © 05, 20 ; ‰©0, 8 84,
1; 85, 6; 208, 16 ; इ, 166
वायव्यान् >. 9०, 8.
वायसं 1. 164; 52.
वापः 1. 134; & 411 3459 49; 4; = 4;
5; 5०, 12; ग. 57; 254; 359; 39,
2; 4०2; द. 5 11; 81, 4; 88 ध.
6.55 1; . 66, 9; 85; 55 99 13; 92 133
"क
वायुऽकेशान् 711. 38, 6.
वायुऽगोपाः ‰. 51, 4.
वायुनां 1. 14, 0; रा. 56, 7; एष. 27, 4; प्र,
195; 51८; श्वा. 912; ह. 61.8
“ कापुभ्भिः ४1.75; 4; 4; 2.84 4. |
१ वायु ४. 41,6; 57; 12; षा. 4, ;; 49, 4; णा.
9०१; ४1. 26.02; 10; 75.82 ‡
~ 4 2; 462; 64 22;-60; 285. 96,.16
(॥ ॥ 97; 42; 49; 4 0.59 30; 1047, 4.
वाकाय 1. 88, 4.
20 ; 97; 25; ‰. 76; 5; 146, 5
वायोः ऽइव 1. 113, 28; एत्, 45, 32.
वाय्ये ४. 79, 1. |
वारः [. 34 12. ` ; -. ~ ` न
वारणः 1. 74०, 2; ए. 33, 8; 66, 8
वारणं +. 4, 5; 2.1, 8
वारणा 2. 4०, 4.
वारणेषु 2. 185, 2. |
वारं 1. 128, 6; 742, 3; 15151. 102;
1. 14, 6; 16, 8; 28, 7; 20.84.30...
60, 2 ; 67, ¢; 6, 2; 69, 2; 4; 74
॥।
` 9; 82 7; 855; 86, 26; 3; 9, 4;
56 ; 100, 4; 706, 10; 109; 16; 710, 6
वारयते 1४. 7, 29; णा. 87, 5
वारयते 2. 20, 5. | १
(कि क †
वारऽवत्त 1. 24, 2, . £
वापंणि 1. 6, 4; 88, 6; 96,. 21; 104, 2.
101.
वारन् 1. 4; 4; 1३. 60 3; 913
वारििभ्वाः 1. 116, 22; इ. 12 3; ५9, 4;
10, 2. | | |
वारे [र 004 123 26 4; 5 3; 52 2;
64» 5; 66, 71; 86, 25; 48; ५५, 5; 102;
23; 704, 6; 22; 719, 10
वारेण [द. 1, 6; 98, ‰.
वारेभिः 12. 40, ग; 38, 7; 68, 7; ग, 16 ;
108, 5 ; ९. 44; 2.
वारेषु 1. 6, 7; 04 70; 79. =
चरिः ४111. 2 2.
वतऽहवाय 171. 37, 7.
वाथ 1. 26, 8; 81, 9;
पने
वाये 1. 58, 3; 7. "9; ४. 559; भ.
23; 3; ए. 16, 5; पा. 1, 22; 29 >;
60, 14; {5 2; 1. 3 4; 78 4; 23 4;
42, 5; 69, 3०; 66, 4. |
बि 1. 5.2; 243; 0, 5 3. भा, 77
| ग्म 3; 3.95; 243.
| वार्योणि 35) 8; 1129; 15; 7149 ८; 7149 5;
| गकर ग; 163, 3; 264 49; गा. 56,6
1 1 इ 4; 3; 49; 3; 80, 6 प. 508; भा
५८ 2; 0... 14; 5. 01. 9, 24; 1. 90, 2;
१ क. 45; य. |
५." चोद ' इ. 27, 12.
वाषोगिसः 1. 100, 17.
वाषक्रे ए. 27, 3.
1 लि ।
क | वाव॑द्् ए. 59, 6.
| ५ मावंदतः ई. 68, 1.
वाव॑दत्ऽभिः 2. 67, 3.
क ५ वावश॑त 1. 62, 3; पा. 75, 7.
वावशानः 11. 711; 8; 1. 22, 7; 359;
0
;; 36, 6; 56, 20; 1
च न वायौ -- वास्तोः.
वासय॑यः ४1. 72, 2.
वाशी ऽतः 1, 847, 6; प. 57, 2.
वाशी ऽमंतं >. 29, 6.
वाशीषु ४. 53; 4.
वाश्रः 12. 34, 6.
वाघ्रं 2. 99, 7,
वाघ्रा &. 719: 4.
वाघ्राऽईव 1. 38, 8; 1. 34, 15; +. 149,
वाघ्रा; 1. 37, 10; 95, 6; "11. 7, 7; 1
739 7; 47; 1; 2. 75; 4.
वा्राःऽइव 1. 32, 9.
वाघ्रायं पा. 45; 7.
प्रासः ४1. 7, 3; 44; 25
वासं; 1. 115, 4; 162, 76; प्रा. 77 2; णा
3, 24; 12. 89; 2; २. 85, 6; 97; 4;
102, 2.
वासःऽद्ाः ॐ. 1040, 2.
वासःऽवायः >. 26, 6.
वासते +. 3/;
[ कि
वास्य 1. 124 ८४ 140; 1; 13. 75; 5.
कौ भि शेक
वासय; ४1. 35; 1.
वासयत् +. 59, 4. क ह | ।
वासरः षा. 2, 7. ` ` |
वासयसिऽड्व + 11. 37, 6. ५५ 0
वासयामसि 72. 8,5; 35०5; 45, ४; 1०4 4
वासयिव्यसे 1६. 2; 4; 66, 15
॥मि भ
वास्तोः ४11. 5,
काह; 1{{1. 30, 20 53 3; इ. 29, 3.
वाहसा 11. 7; णा. 6 2
वाहाः [४ 50, 4
वाहि द 12073 3
वारहिष्ठः ॥ 01 4.5, 39 |
38; 26, 4; 16.
वार्हिष्ठ ४. 2;, ¢.
वाहिष्ठा णा. 26, 18. ।
वारं ए]. 24; -&- ष
वाहैः [ध्र. 7, 8.
1
श 3; 73; 12 4; 73; 6
229 ब; 1; 18; 24, 22; 213;
3; £; 28, 6; 32, 10
ष्णा. ॐ, ग; पना, 5,
15; 25;
13; 32; 4; 12;
73; 355; 7; 8; 36, 3; 9; 26; 59,
$ˆ; ;-8. 43; {2 1
4.1.00.
ऊ 6; 549; 55 7; 56, 5; 6; 58
4. 0.4 7
46, 7; 10
८६ (3
(1
चवै मैः
098 :.5:-09..3 01,
73; 7; 5"; 6; 9; 80, 8; 212; 81, 6
15; ; ‡;
9
62, 5; †; 63, 4:
64; 4; 6; 65, 4; 67, 4; 5; 68, ए;
72, 7-0 ;
& #१/ ।
5 4; 5; 10; 12; 86, 10; 87, 7; 89,
5; 9०, 4; 97, 22; 92 4; 5; 9; ण्ण;
12; 14; 935; 94; 77; 95; 3; 4; 96,
&; 9; 9851; 36, 204; {+ 6;
3;.8; 105 4;.8; प; 1०9,
9.191.111,
116; 240. 714; : 16
1225. ; 74; 23.124, 2; 5; 1; 128
6; 51, 3; 152, 7
7; 1409; पव, 5; 7; 1426
2; स 146 3 ॐ 1509 2; 1.52; 2) 1.57;
158 3;. 4; 160 43 167 13; 164 18
1643. ; 6; 24; | 16 ; 37; 42; 44;
166, 9; 10; 14; 168, 6; 7
103, 2;
176) 9 >
क.
14 9 5 १ । 19 9
120; 43 727; 715;
10; 145;
५. 1.9 ::-2८;. 25;
3; 4; 26, 7; 2, प; 28, 4; 32 2;
35 2"; 34 2; 35 7; 38, 7; 55; 7;
8; 40.4; [1.1 8; 94; 18; 9 7; 4,
4; 9; 79 4; 8, गव; 10, 7; 4 62; 75,
7; 3; 1894; 232; 2996; 3०, 1; 16
3 10; 12 19; 33, 7; 34, 7; 35, 3;
30, 8;. 39, 2; 47, 8; 48; 7; ॐ, 10
77; 247; 54 8; 55, 2; 3; 9; 24; 58,
2;. 67, 2; 7; 1४. 7 14; 5; 18; 2, 0;
11; 3 व; 74; 4.2; 3; 5 12; 6,
11; 2, 10; 8, 6 वव 2 -23; 44.65;
14» 2; 76, 5; 6; 10; 33; 14; 10; 4;
18, 6: 9; 27; १0.3.64; 04.40.54. 27
5; 24 3; 5; 8; 9; 25 7; 6, 3; ॐ,
3; 30, 20; 35 36, 4; 37, 9; 39; 5;
42 4; 45० 7; 50 7; 4; 5, 2; 6; 5
6; 54" 7; 2; 55 4 43 508; प्र, 25;
7; 9; 5 4; 5; 8, 5; 7; 77 व; 4; 15
4; 75) 3; 262; 28, 3; 79; 7; 2; 28;
८; 29, 4; 3० 4; ‡#; 37; 7-3; 3 19;
34 7; 56; 4; ॐ 7; 44, 12; 45; -3;
47 3; 0; 48, 3; 55 6; 7; 54, 4०; 8
12; 55 9:00. 0..00 1.64;
2; 9; 62 7; 659 2; 5; ¢; 69 2; 75
7; 77, 2; 78, 94.04 799 2“; 3; 9; 80,
3; 8५1; 2०; 5; 83, 2; 8; 85, 7-3;
1१, 1 145; 0.55
0 3;:. 4.4.41. 8.2; 3:93; ऊ;
64. 10, 44 19; 6;.19;:1; 43.25; 24; 26;
45; 74; 7; 6; 07; 18, 3; 5; 2 त; 2;
7; 420 4.65.9; 24 3; 6; 25 4; 28,
4; 29; 9 3 30 १ 3 5 3 31 षु. 339 2 ध 34;
1; 35 9; 37, 3; 4; 39; 2-4; 49, 7;
44; 6; 8; 10; 16“; 24; 45 9; 4, 2;
48 ग; 57 1; 5; 53 3; 4; 6; 62 9;
गव; 64; 2; 65 2; .5 ; 66, ‡; 64, 7;
10; 09, 8; 29 2; 73 2; 742
38, 7; 2; 48; 3; 56, 15; 58, 3; 59, 2;
62 3; 66, 77; 69, 3; 72 4; 75 ए; 3;
77; 5: 00; 7; 179, १ 2--4. ; 86; 7; | 88,
7; 99, 4; 993; 5; 953; 6; 993;
100; 3; 4; 104 75; 28; 25; षा. 7,
ए; 4; 43; ॐ 9; 06; 8; 7 ग
8; 23; 9, 16; ग ग~) 75 4; 26;
44 0.10 पय प 5;
4; व; 2, 6; 25 4; 24; 22; 2; 16;
20, 9; 18; 20; 29; 7; 37 8; 52 <;
719; 34; 3; 59 6; 4, 6; 47 10; 42;
| | 2; 454; 8; 16; 22; 27; 3०; 46, 33;
(4 4 4; 3; ०; 54 6; 55 ण; 58, 2;
| 5 "08.26.60 14.04 5.0; 7:
76 2; 3; 4; ठ; 29, 8; 82, 6; 86, 7;
5; 89, 4; 975; 95० 4; 267; 94 प;
97, 74; 103, 2; 1. 3.6-8; 5 7; 3;
# 2; 10,5; 14 ० 14; 4; 15; 3; 16;
84.21, 3; 23; 24 3; 3; 28 य;
34 ग; 56 3; 37, 3; 59 4; 45; 3; 49,
4; : 5 32.61, 20.185; 643; 66, 5;
ध 60, 54421468; 9. 5 7.४;
5; 7५7; 74 4; 9; 753; 4; 79; ए;
५ 80, 7; 859; 8555; 9; 12; 86; 8; 27;
` 34; 57; 38; 4; 44; ००2; 97, 3;
`. ` 4; 965; 9 18; 32; 38; 56; 58;
997; 8; 10० 4; गा; गय वु; 1029
~ 1 19.69 96, 19; 101, 8; 1 08,.-9;
109, 26 ;:910 6; 9: 7 9.2; द. 2
#
५१ | | बिऽचंसः-- विऽउच्छंती.
5; 20; 87, 5; ०5; 88, पथः 89, 1; 3;
9०, 4; ग; 923; 5; 16"; 94, 742; 95;
3; 12; 97, 12; 98, 4; गा, 3; 4;
१०७2; 2; 1600, 1; 7८6, 8; 2129; 34. 214;
१1.0.22 1.21. 2; -4104,
2;. 4; 10; ग्ग 4; 126, 6; 2298;
48; 3; 122, &; 124; 3; 1253; 7; ग,
1; 128, 6; 7159 2; 151, 5; 1323; 2; :
5; 757, 3; 158, ग; 3; 4; 139, 4; 149,
42: 2492; 44 क; 149, 2; 59, 34;
4; 5; 1455; 3; 758, 4; ऊ; 166, 7; 163,
7; 70 7; ग) 7; 189 2४ 189, 24 ६
विऽ्खंसः 1४. 18, 9,
विऽक्सं 1. 32, 5; 70, 2;
5; [. 34 3.
विऽसक्तः 1९. 477, 0.
विऽखक्तं ह. 14, 9; 120; ४ |
विऽखक्ता ४11. 7; 3; ण. 564; ॐ. 86, 5.
पिऽखंक्ाः ४11. 56, 7.
विऽख॑क्तं इ. 8, 21.
विर्चंन॑नं पा. 78, 2.
विऽखंध्ननः 1. 147, ¶.
विऽञनत् ९. 140, 2.
विऽ्खर्यनं ‡. 79, 5.
विऽचख॑स्कशा 2. 16, 15.
विंऽ्संश्चः प. 9.10; 29; 16...
| विऽश्ंचं 1. 112 1 ९ ५. ५
| ` विऽसंश्चान् ए111. 24, 29. ४
104. 1.31
(द
थ कतवः
विऽउच्छान् -- विऽचकसे रः |
विऽडच्छन् 1. 775, 0; णा 3०, ॐ. विक्त 1. 162, 75. ध 4 4 |
विऽतं 1, 122, 2. ` ५ न विऽत्रमं श. 15, 3 न ॥ श
विऽऊते [11. 54, 0 =» | विऽत्रमणेष 1 244 2; प्रा. 9४ (व |
विऽउदंतिं 1. 38, 9. वि 1. 45; 6; 58, 3; 60, 9 4; 66, 2:44. . ^; | |
विऽ्डधि ष. 3, 8 452 8; ४1. 62, 7; ए. 87 ¦
1609 16; 748, 7; 153, 4; 1. 4
27, 3; 31, 2; 17. 5 3; एर. 6,. 2; 4;
(2/1 |
190; 27; 53; 2, 4; ० ॥॥ ८
34 14; 45 5; 56, 44; 67 3; 6, 7; द
7० 3; . 104 78; भा. 6, 24; 22; 19 ;.. ~, `
3० 2; 719 15; [९ 38, 4; ड. 1, 4; 5 | |
5; 15, 2; 49, 74; 48, 8; 67 6.19; ६ | |
1; 2; 87, 10.
2; शा 46, 21 ।
विऽ्खश्टिषु 1. 44; ५... 2;
2; ति, 26, 7: एत 45; 2; (. 29,
15; 2. 08, 71; श, 35) ग; 5; - 6, 7;
7793; गक 7 ` - ,
विशो ]. 48, 6 ; 7178, 771;
; 23; 4757; 99, 71, विऽ्खदेि र. 58, 4. न | 4 त |
विऽ्कगुते ए]. 5०, 8 विशस्य र् 58, ५. 4 | | | र ५ |
विऽऊरेती 1. 92, 77; ए, 80, 6, विऽगदेषु क, 126, 5. | ५ 1 क |
वि ऽऊर्ैन् 1 042 2. | विगामऽनिः 1. 1६5; 4. | | । ` -.. ॥ प क र ५ |
विऽऊपुः 1. 713, 209; 1. >; 2; विऽ्मारं |॥8 9, ~ + . ५ ह 1 | + |
विऽ्खनसा 77. 33, 73. विदं 1 0 ५ १
विऽरनी ४. 89, 4.
विश्खोदने ४111. 63, 9.
विऽ्श्यौम [. 164, 34; 35; ॐ. 2129, 1.
रोमन् 47; 7. ॐ
10; ४. 50 4; ए. 152; प्या ॐ; क,
ॐ 7; 74" 8; 109 4; 143, 5; 129, 7.
विऽ्खोमनः 1. 52, 72. |
विऽस्ोमनि 1. 145; 2; ४. 63, ए; 87, 9; 9.
84५ 2; ध्व. 152; 2. 70 1; 86, 34
विंशतिः 7. 80, 9; 164 11. |
विंशतिं ४ 20; 24. ए. 20 8; ष्वा. 18, ग;
"णा. 46, 22; 5; उ. 86, 4; 2
विंश्या 11. 28, ;
4 183, 1; 1.26, त: 5.1.48, 4;
6.2; 24; 2 14 न
विग्रं ४. 67, ¢.
विऽग्रीवासः णा, 104, 24.
विऽघनिनां शा. 6०, &. | १ ४
धकृ िविषक 7.56 =
विशप्नन् 12, 1;, 3; 37, 7; 562. 1; 97, 26. |
विशतः 2.62, 4 त
विऽचकर 1४. 552; च. | क
विभ्वक्रमाणः 1. 54 7. य
विऽ्चन्रमे 1. 2५, 6; णा. 12, 20; 5 3 0
धिऽ्चधस 1. 5 8; [ा. 3 16; ४. 32, 22; ५ 1
छ, 5; 86, 23; 77, 24; द. 37, 8. _ |
विऽ्चष्षणः 1. 707, ¢; 112, 4; 1. 2356; प्र.
45, 5; 52, 2; 1. 12, 4; ॐ, 2;
23; 7099 7; 75 7; 85 9; 86, प्व
35 ; 97
ऋ. 92.75
विऽक्षणं 1. 164, :
विऽ्चक्षांणः द. 393 `
विऽ्चक्षँ 1. 775; 5; 76, "4; 16
11:20; 70; 1१. 16, 4.
॥
177; 34;
विऽचघ्यं +. 13, 30.
विऽच॑यिष्टः 1४. 20, 9.
विऽचरन् 12. 68, 4; +, 140, 2.
. `. विऽ्नतः णा, 55 4
विऽचरतं ‡\. 5 9
विऽचरता 3. 92, 12.
विऽचरति 1. 57, 7.
विचरैती इतिं विऽचरती ४1. 49, 3.
विऽच॑पेशिः 1. 55, 9; 79, 12; [-. 22, 3; 47, 10;
19. 1.2 8; 72 75 1". 36.4; ^
45, 16 ;: 46, 5; भा. 13:.6; 8. 2, 7;
28, 5; 40 7; 44; 3; 48, 5; 62, 10; 6;
22, ; 84; 7. ।
| विऽचेर्षशिं 1. 64 12; 13. 60 ग.
विचंषैणी इति पिऽच्॑षेणी ४. 63, 3.
-विऽ्च॑षैणे 1. 78, 2; प्रा. 16, 29; 36; गा
43; 2.
विश्चधैरे 1. 5, 6; ए. 2, ए; पा. , ¢;
$ 3; 98, 10; द. 42, 5; 6० 4 `
विऽ्चाकशत् 1. 24; 10; प्र. 75; 7; 92;
९. 86, 19 | ता
विश्चारिणिण्.84;2.
विचिनोति ई. 42, 9. ` (५
विऽचिन्वन् 1. 9, 17; 2. 86, "9
विऽचतं {र. 84, 2.
. दिभ्चुत्ताः 1. 2, 6 |
५ विऽचेतसः 1 42; 2; 83 7; >
4 4 90.
विऽचेतसः प. 54" 25
विऽ्चेसं 1४. 7; 3; "11. 46; "4
विऽचेतसा ४. 74; 9; 2. 132; 6
विजेःऽइव 1. 12, <.
विऽजयते 1. 12 9.
विनयाय >. 84 4
वि ऽजभतः 1. 28; 7.
विऽजानन् 1. 69, 2; 1. 39; 7; १. 49 2;
2.4.912; 10.
विऽज्ञानात् 1. 104, 1 6.
विऽ्जानुषः 00.
विऽजाम॑न् ४11. 5०, 2. =
विऽजामातुः 1. 109, 2.
विऽजांमीन् 7. 69, 12.
विऽ्जायते 111. 29; 77.
"विजाऽवां 111. 7, 23.
वि ऽन॑ 30.10.
विऽनेन्य 710.
विनेषऽकृत् ^. 84 5
विऽजेह॑मानः प. 3, 4.
विऽजोषसं १111. 22, 70.
विंचंति 1. 39; 5. ।
विद् 1. ¢ 8; ४1. 56; 5; 1. 88, 7.
विद्ऽभिः 2. 28, 8.
विऽतक्ष॑त् 1. 158; 5.
विऽत॑तः 12. 75, 9; र. 129, 5.
विऽ्ततं 1. 85; 2; 775; 4; आ. 38, 4; क
12; .19. 60.22; . 83; 2; 2.
विऽत॑ता 1. 152; 4; पा. 75, 3.
विऽ्तताः ४. 54; 17.
विततानि 1. 9४, 55.
विऽति 17. 5 7. 4
विभ्वनोति ए. 48, 7. | |
वितितसाय्यः ४1. 18, 6; 4 75; भ्या, 6, 22;
क 8, ।
68, 17.
5. ध |
विऽ्तस्थानां [9४. 3०, 12 क १४८
विऽतिरे र. 104, 5.
विऽतिषन् >. 3, 3.
विऽतिष्ठसे 911]. 69, 14; ङ. 9,
|
१ऽतूय +. 3 3
विज्ञ 1. 105, 7-18; प्र. 42, 9.
वितं ४11. 72, ९.
वित्तऽनानिं 1. 112, 15
वितात् ४. 60, 6.
विते 2. 34, 13.
विऽत्वछ्णः ४. 34, 6.
वित्से षा. ५9, प; 2. 4 4; 54 4
वि धुर 1. 186, 2.
विधुरा ४1. 25, 3; 46, 6.
युराऽइव 1. 87, 3; 168, 6.
४1. 96, 2.
विधुयेति * # 43 |
विद् 1. 86, 8; 156, 3; ए. 4, 73 559 2;
9111. 44, 5,
$ विहः ४. 3०, 4 |
५ - विदः 1. 4 7-9; 119 23; 9.3;
0 20, 23; 59; 4; 177; 2
0 निद 16. 69 34.29.489 4;
(न 11. 19, 3; 7. 316; प. 2, 8; ष.
6; 32, 5; १111. 69 6; 79 6; 93; 4;
1. 96, 10; 2, 41; 5; 42, 4; 67 23;
6841; 16; 2; 99, 8.; 124, 4; 238, 3.
{. 84; 14; 1029, 8; 289, 4; 1. 42, 7;
#
विदध्यां ४11. 4०, 7, | | ¢
1111.
विदयां 1. 164 2; गा. ए 2; ष, 38, 4;
0.1.230.
विदयानि 1. 1, 18; 74, 7; क, 0; प्र, 16
3; ४1. 57, 2; णा, 66, 10.
विद््यानिऽ्ड्व 1, 139, ए | ध
बिदयांय र. 77, 3. |
विदथुः 1. 182, 4.
विद्ये 1. 5, 6; वहा, 7; 153; 3; 162,
786. 7; 1. ब; 4; 26; 2, 754. 4.8; 7२,
27; 13, 13; 14 12; 16; 20; 16, 9:74,
9; 28, 9; 79, 9; 20, 9; 25 19; ०4
16; 27; 8; 17; 238, गा; 29, 0; 33, 25;
35 5; 9 7; 8; 4० 6; 42, 3; 45; .3;
न, 1.8.35; -38, 6;.39. द: 2; 4;
व; 565; ४.९9, 2; 63, 2; प्रा. 24 2;
52 10; प्या. 18, 28; 2, 2; 93, 5; द ४ व
89.22.12, 0; 00 71006. |
विदये इतिं ए. 39, 7.
विदथेषु 1. 4० 6; 64 7; 6;; 85, ग; 89, $;
9५, 5; 143: 7; 153, 9; 259, ग; 266, 2; `
73.261; 6; 1. 24.22; 1. 4, 5:26, 6 | (प
28, 4; 4 2; 55, 7; 5605; 1प्र.6, 2; क, क
4; 365; ४. 56; 29; 23; णा. 5, 2; ।
"75.22; 84 3; 9965: चा, 2; 1.
9, 56; इ. 9 9; 12 7; १2, 8.
विद्थ्यंः 1४. 27, 2.
विव्यं 1, 91, 25; ए. 8, 5; पा, 368; क
41, 1, ् नी १;
विंदथ्याऽरव 1. 76, 2 ४
विद्यां 11. 45, 3. 7
विदथ्याय [11.54 7. $
विद्दसो इतिं पिदह्ऽवसो ए. ॐ9, 7. ४
विऽ्द्थ॑त् ए. 62, 9; क. 85 18; 7 |
विऽदधुः 1. 57, 6.
विदन् पा. 28, 2
+ विदं 11. 24, 74; 28, ८7; 29, 7; >. 49, 9.
विंऽ्दयते 1, 84, †
विदां 1. 37, 28
दाः 1. 36, 14; 71, 7; ए. 45 7; णा. 48, 9;
१". 61, 4; 1. 19 6; 49 4; 45 4;
63» 71.
विदात् 1. 22, 4.
विदाथ ॐ. 8, ‡. |
मि ` ष्णः भने
विदाथ; >. 706; 9
(1 विदानः 1. 165, 9; 10; 71 0,.1; 1.2. 2;
712; पा. 45; 20; =, गाव, व.
विदानः 2. 35; 4
विदाना ४.8० ‰.
विदानाः 111. 36, 2.
विदानाः 1. 0.2;.8; : |
विदानासेः 1. 269, 4; 1. 34; 4; 2. 77, 6,
विदनि इतिं 1. 122, 2; 2. 29, न
विदाय्य॑ः इ. 22, 5. भ
बिदासिं 2. 35, ग.
| विऽदिद्युतानः ४1. 16, 35. 80
वि 6; 4. 93; 10.19. 5 4;
। 164, 23; 39; 766, 4; [-, 55, 18; 8
` ` 427; १. 44 ग. 59 7; ४911. 18, 2;
342; 0. 18, 5; 63; 6; 67; 2; 1
70, 94. 85.24 1743 य.
34 2; 139, 9; 164> 45; ॥॥। 23: 16
15; पा. 357; 2. 5०, 5; 85
विदुषी इवेति विदुषीऽइ्व प. 47, 7.
विदुषे 1. 710 10; [. 3०, 2; 9. 5 16; "फ
© ५4.42. ६
दे 1..200, 104-224;. 4 $ 132, 2; $. 66, 8
१1.409 111... 7:24...
62, 9; 69, 4; 93, 32; 1. 74, 6; 86,
32; 99, ¶; 166, 2; > 259 2.
विदे 1. 120; 12; 132, 3; ४1. 45, 36.
विदो स्ति द. 774; 10.
[दधि १.222.201. ए. 31,
4; -९. 67; 22.
विदि १1. 48, 8; >. 2/7, 24; 85 271.
चिद्च 1. 20, 10; 81, 8; 170, 3; 1. 56, 9;
49.60.468; 10. 2.2.35.
112 21-44-01... 4.4.14
46) 22; 575; 6 3; 75 16; 81» 2;
92, 18; ~. 75 13; 29 6; 7; 45
2; 472 1. ।
विच्च ४. 48, 5; ४11. 99, 72; भा. 2, 22 ;
12.81.40 11. न
विद्रनां 1. 770, 6; १4722. + 1;
9१. 4, 7.
विद्रनाऽच्पसः 1. 57, 7; प्ण य.
विद्मने 1. 164 6; ष, 88, 18.
विद्यते ए. 44 9.
विद्यते ¬. 64, 2.
विद्यात् 2. 85" 34.
विद्यात् 1.24, 24
विद्यातं भा. 5 57
विद्यां 11. 27, 5.
विद्याम 1. 4; 3; 165, 15;
169, 8; ग 6; 5 8; 4०; 205;
6; 16; 6; 789 5; . 289, 10;
क
4
39, 9; 0.0 168 &
प. 0, 5; 52, 6; 54 ग
23. 4; 84, 5; शा 33 10; 56, 23 ; ह
4193; ह, 97 |
विद्युतः 1, 105;
विश्चुत 11. 359; प्रा. 606, 8.: + ‹
विश्दयुतां [. 86, 9; प्र. 42, 14;
५4 3; ९. 99, 2.
वद्युत्ऽ महसः प 54, 2.
वियुत्ऽरयः रा. 14, 1.
विदयुत्ऽर्याः 1. 54, 13.
विदयुत्ऽहस्ताः ए. ज, 25
विद्युन्सत्ऽभिः 1. 88, 7
विदधे 1४. 32, 23.
विद्धे 1. 87, 6.
विद्रे ए. 56, ५.
विला +. 150, 7.
विह्ासः 11. 24; 6; 1४. 36, 8; द, 55; 10,
विदधासि 1. 164, 4. |
विद्ासां 1. 116, 7; 120, $; ए, 86, 4.
विद्धासे 1. 120, 2.
विद्वान् 1. 24, 13; 7० 9
6; 160; 103, 3; 12 5; ग्ड, 5; 152,
6; 164, 6; 189, 7; 7; 196 7; 7. ऊ, 4;
8:60; 4; 8;..25 4; 99, 1; गा, 17;
18; 56; 142; 7, 3; 252; 29, 216
3794; 35.85; 442 47; 2; 52 7; 55;
14.1४, 4; 9 48; 8. 4:26
6 ; 2०, 42, 4 १ 91;
दै ॐ र ङ
चकः शः
730; 21, 2
४1, य,
44 14; 4/3
1
ग. 92, 9; 8. 70 29; 158; 004;
41:00... 32,
०4.0.12,
72» 7; 90, 7; 94
| 9.9... 29;
405; 29, 13; 53; 46, ५ 49, 2; प.
; 743 14;
24; 7 1; 104; 94; 25;
28, 1; 87, 4; 1०0, 5; णा, 55; 3; 49
विऽ्धातारः 1४. 55, 2. 1
विधात [. 120, 7.
विऽ्धानां प्र. 5 6.
3; 4;.5 विऽधावतः 1. 88, 5.
व
य
विशेषस्तं ए. 22, 2. क
विऽधष्यत् ह. 16, ¢... :.
वधत् ४1. 5, 22.
विधतः. 03 1; ` 264,.5; 1. क, 6; ४. 2,
10; ४. 65; 4; ण. 3, 57; पा. 67, 14;
75 7; 99, 4; र. 93; 8.
विधते 4.70, 0:11: 9 .24/1^ .2;
13; 12 3; 34 4; 44 4; $, 7,.13;.5;
3; 6.5: 3; 4; 6 ष्वा 16 123 753
९, 46, 7, । ।
विधन् 1. 749, 1. ५
वर्धत 77. 3, य, ` ५
विधतः 11. 4, 2. क
विधत [1.4 2; पना, 2, 264. 40,. 8...
विभ्धैरि णा. 70, 2; र्. 40, 1
विधेरिति पिऽथतैः 11. 1, 5. क
विऽ्धता 1. 28, 4; पा. 7, 5; 41, 2; 6, 24
विऽथनेणा द. 46, 6. त
विऽ्धमेणि 1. 264, 36; 7. 2, 3: ण्व | 01; 1
{2.4 9; 64> 9; 86, 29; 3०; 16 9
विऽधमेणे ए. +, 5 ॥
विऽ्धमेन् [द. 97, 4०;
विऽ्धमेन् ४, २7, 4.
विधवांऽडइ्व 2. 42, 2.
विऽ्धवा प. 18, 12; ङ. 4०, 8. |
विधातिरिति विऽ्थांतः र. 167, 3. |
विऽ्धाता ४1, 50 712; द्ध. शा, 5; उ. 82,
2 -3
09, 6 ; 123; 8,
विश्थान क. 128,
विऽधारे ९. 110, 3. |
„ 55, 5.
#
परर । | -विषेमहि--षिपां.
22, 23; 43; 17; 48, 12; 13; 54; 8; 96 | विप॑ः 11. 3 ग; 79. 48, ठ; ४. 44 5; 49.
8; 3. वा, ठ; 168, 4. “ 2.1.429 28.01.23
विधेमहि 171. 19, 16 1 || विपः ए. 65, 7.
विध्य [४.4 7. | | ध विपःऽचित् 1, 12, 3; 96; 22.
ध्य 11. 3०, 43 9; [१.4 5; +. 87, 4; 6; | विपःऽचिर्तः [. 18, ¢; 164, 36; [प्र 36, 7;
। श्र, 81, -; पि. 14; 5.3; 43 29;
त | 65, 9; >. 22, 3; 352 7; ग@2 12; द,
गृण, 1.
4 विपःऽचित 1. 4, 4; 111. 26, 9; 20, 2; $
॑ 12, 10; र. 16, 8; 64 25; 86, 38
विपःऽचिता ४. 63, 7.
| विपःऽचिता [ा. 3, 4
विपःऽचिते पा, 98, ए; >. 85, 44
विपःऽधां +. 46; 5.
विऽपष्षसा 1. 6,
विऽपत्मनः 1. 180, 2.
विऽपययः ए. 52, 10.
विपन्यया 1. 179, 7; 1. 28, 5; ४1. 26; 34;
13; "7; 89, 12.
विध्य॑त् 1. 01.10 .
विध्यत 1. 86; 9.
विध्यतं ए. 104 3; 5.
विध्यतां ए. 5;
विध्यति 1४. 8, 8; {3. 73;, 8.
विनंऽगुषः 12. 22, 3.
विऽ्नृयः 1. 24 9.
विऽनाशय॑न् 1. 55 6.
विऽ्निक्षे ४.29. | ।
विऽ्तुर्दैः [1 "3, 3.
विद ए. 13; 3; 18, 18
‡. 104; 8.
विद्र प. 44; 22. 7. | व |
-~ | | | | विपन्यवः 1. 22, 27; 102; 5; 138; 3; [. 22
विदि 1.67, 0 न प; 7. 209; ए. 43 14; ए. 946
विंदति +. 32 7 | प्रा. 22, 77; 87, 6,
विंदती३ ~र. 146, 1. (अ 1 प॒न्यवः भ्र. 67, 15.
विंदते प. ~, 16 रक क विपन्या 1४. 1, 12.
विते पा. 544; ए. ॐ, 9; ए. ०३, 3; || विपन्यामहे 1. 28०, 9.
7 5; 2. 343; ग्य, र; ०; || विपनुर्मिः ए. 9, ०; 72. 3, 3.
6; ( 4.4 । ध. विपब्ुषः 1. 86, +. श
विदन् 1. 1 विपृन्य् इतिं पा. 8, 19. |
वदति 1 105, 7, = ` 0 ` त विषयेति पा. अः ५
दमनः 90 ॥ विभ्पवं 1. 80, ग ` ८
पि 1 176; 7 +. 86 | | ४ | । | ॥ । ॥ ८... विऽ पश्यति 11. 62, 9; 4 125 । ( ५
विंदस [. 75 गय. | | ८ ध || विपा. 68, 7; दि. 3, 2; > 3; 65, 2;
विंद्से \117. 27, 14 | 1 04
+
विऽ्पाका | {. 168, +.
विंदामि णा. 24, 72
षिन्व ए. 3, 1411ा(------- 41, 33; 3.
विऽपांसि ए. 3०, गा,
विऽ्यिपानः 1४. 6, 3.
विऽ्पिपानं 1. 712, 15.
विऽपिपानस्यं ४1. 22, 4.
विभ्पिपाना 2. 131, 4.
विऽपुंक्तः {. 163, &.
विपृक्तत् ४. 2, 3.
वि ऽपृचं 1४.13, 5.
वि ऽपृच्छते 1. 7०, 9.
विपृच्छे ४11. 86, 5
विऽ्पृततुः 2. 96, 9
विप्र 1. 42; ग 2; 50, 6; 503; ता.
36, 4; 1१. 910; प्र. 3, 7; 5, 3; 58,
2; ४1. 355; 38, 5; एणा. 29, 32 14;
779 5; 102 12; 2. 50, 0; 87, 24.
विप्रः 1. 149; 11. 2413; 7. 5, उ; 3; 8,
5; 153; 45; 20, 8; 290; 33, 4;
12; 1४. 5 26; 8.8; 26, "प्र. 2, 77;
435 2; 147; ४. 7 3; 103; 7; 3;
13, 3; 5192; 68, 3; ॥. 58, 4; 67, 2;
6४, 4; 72, 3; 87, 4; 88, 4; 65; 93, 4;
प्र. 2 36; 3 14; 6, 28;4, 4; 8, 9;
72 31; 399; 4०5; 43, 4; 44 2;
29; . 46, 32; 52, 9; 9, 7; 1818, 2;
84 5; 87, 3; 97, ॐ; 176; 7; २. 26,
2; 61, 16; 23; 24; 64 16; 976; 148,
33.164; 2,
विप्रं ऽनूतः 1. 3; 5.
विप्र॑तमः 711. 3, 7.
इतं ह, 112, 9
विप्र 1 9१, .1; -854:: 9128; 239 4; 10,
1; 165; 74; [11.23 13; 26; 2; 1१*. 29;
4; प्र. एव; 46; ए. 54; 7; णा
7, 3०; 7, 6; 44 70; ऋ. 32; मगः
विमरस्वाहसा प. 74" 7.
विप्रऽ्वीरः 7. 44, 5.
विप्रऽ्वीरं 2. 47, 4; 5.
विप्र॑ऽबीरस्य र. 188, 2.
विप्रऽवीरः इ. 104, 7.
विप्रस्म 1. 7, 2; 765; 85 एय; 86, 2; 129,
व्व; 142, 2; 7575; 6; ४. 87, 7; ण. 6
6; ४1. 22, 4; 56 ग5; भा. 19, 72; 4;
1; ऋक. 19 8; 48, 3; 6; 442; त. 71, 5;
25; 10; 26, 5; 39 40, 74; 47, 3.
विप्रा णा. 2 7; 45; ग; 44 2; 56, 8; पा,
2.5; 24. |
विप्रा ए. 5०, 19,
विप्राः [. 22, 14; 24; 3; 45; 7; 8; 82, 2
162 ¢; 164 46 ; [. ग, 12; 18, 3
111. 7 7; 26, 9; 237, 17; 30 26; 92; .5
347; 41; 4; 62, 4; 1१345; 70
716; 29, 5; 909 1; १ 749 5; 3० 15;
43 7; 87, 7; ४1. 70, 4; णा, 229; 31;
1; 95, 3;. १, 6.2; -33; .22; ग;
13, 77; 23; 25; 42, 4; 66, 13; 97; 22;
व..0..4. 2 4; 73 .645:203 21;
64 23 ; 86, 39 ; 92 2; 9, 35; ॐ. 45
7; 108, 77; 114; 5; 120, 4; 1243 2;.4.
विप्राः [11.53, 70; णा. 38, 8; इ. 42, 7.
विप्राणां ए. 6, 7; (र. 85, 7; 96, 6; द
` . 26, 4.
विप्रान् ए. 10, 24.
विप्राय 1, 14, 11; 182, 3; 7. 2 3; भ.
67, 9; ४1. 65; 4; +. 43, 15; 98, 7;
3. 4, 4; ~. 25) 7.
विप्रासः 1. 86; 22 9; 118, 3; त. 5 3;
77, 8; ४80, 2; ४1, 22,:2; 9. 25
भ्यः -- विनत ऽसति.
५२४
5, 4; णा. 35; 2; णा. 60, 3; 81, 8; विभाऽवरि 1. 3० 20; 48, 7; 10; 92 74; ४९
| 1४. 529 6; *. 79, 4; 16; ४1, 44, 34.
[>. 200, 77. | | |
विपरेन्यः ए. 32, 2; द. 1554 ` विभाऽ्व॑मुः 111. 22; णा. 45; 32; 44, 24;
ॐ. 7185, 4 | |
८ पपिः 1. 62, 4; 729, 2; [द. ॐ 6. | |
८ विप्रं ए, 26, 9. | विनाऽ्व॑सु १,96.04; ४11. 41, 74
92; 1.
अ विऽ्वृध्ते 1. 28, 4. २ | |
(4 | ¢ | विभावसो इतिं विभाऽवसो 7. 44 10; ४. 25, 7
# 1
विभ्वबाभे >. 89, ग.
विऽवभाजं षा. 18, 24. 11.99; 24.112
विऽ्बाधः १.6 १९१ 4. | विभाऽ्वां 59; 7; 06, 1; 69; 5; 148 4;
विऽवाध्य 0 । - (4:91. 20.10.42.
| विश्वास कः ॥ | | १.१2 101. 0 4-42-0 =
ध ध) 0 ( | न 2; 8 4; 67; 20; 88, 7; 973 1.
। 1 गा (1) | | विऽभासि 1. 92, 8; ४1. 48, 3.
' 4 त ^ 4.4: $ छा 409 % । । ४४
9 . त - । विऽभिः १ < 3 174; 1 3 8, ५ ; फ. 1 3 ५
4 ० विऽभक्ता १. 1.117.406. |~ 3; 4 ६ 75 । प ४.१ ॥ क ` (11.
^ , 343; णा. 18, 4; 264; उ, 14, | 9751.
| | विऽभक्घार 1. 2.2; 7. 4 | # - ^: । [1 . विऽभिद्यं # 647; ५0 | „भ
1 विन् 1..7025-6,. 4 4 पि ऽभिनसिं ना द न | ( | ४
व | ना
विऽ्नजतं ४. 49,; 2... : ˆ . :. विऽभिदन् 1. 10, 5.
` ` विऽ्भजासि 1. 125; 3; > छ, ० || विऽभिटना 1. 116, 20: ध |
1 क ‡ [ ५ । भ) - ५, भिदो ~~ 7 | 6 । । | ।
् 4. ४ | ५ | विभिंदो इतिं विऽ्भिदो एता, ०, 4. | का
८... र 7 ४ विऽभित्रं 2. 138, 6. ५
0 “ ८ ८ | | विर्भीदकः ए]. 86, 6; इ. 24 1.
विऽ्भागे 1. 100, 5; ४, 07, 4; १1 ॐ, 3; चिश्मीरषणः ए, 24 |
44; 260, 24... ~ (न | “ ॥ |
विभ्नाति 1. 726; 7.84; 29 5; 358; | विश्व ध 9 5; 65, 6; [ 446; णा
00 णा 94 [व ८ ॥
|| विश्वः 1.34; 34 ग 655; "49 आ. = |
ध न ` -विश्नातती. 102; 6124 04246. 4 --9 => |
. .. विञमातीः 1 113, 19; 129, 6; 1. 6 | भ । ॥ 0 9 4
"कण ४19; 5 5; 11 0-35-०; 3 6 क
46.55 श. 88... ५ विघुऽभिः ए. 48,2. ४
विऽभातीनां 1. 113, 25; 1४. ऊ प. विश्च ४१. 758. | ५
विभ्माती ना. 6, 5; 6; ए. 8०. ना. || विमुम्ऽ्भ्यः ए. 96 6. |
9 07 विध्ुऽव॑सुः [इ 72 ¢; 86, 70, `
विऽ्भानां इ. 55, 4. | 2 षा, 2; 6
क त
यण नण
प्रप्र. 11 पू---- ०909 2, 1.
विभ्यति. ;,4; पा 49, 6 ; 59 6
विभ्भरूपति 1. 712, 4
५५
विश्भूयन् ४1. 15, 9.
¡ #
{ भ
विऽभ्राजेते ,{1. 43, 22
विऽश्नाजन् ४[]. ५8, 3.
विञभ्रा्जते \. 61,
विभ्चरानमानः \11. 63, 3.
विऽश्रानमानान् 1४. 33, 6.
विऽ्श्राद् ‰. 170, 1; 9.
विश्च्रािं [. 127, 1,
विभ्भ्वः 1४. 34, 9; ४. 48, 1; 2
विऽभ्बः 1, 166, 14; 1, 3. 6; णा, 3 ए.
किर्भ्वः [४. 36, 3.
विभ्बञ्तष्टः [\. 36, ;
#5
[क
विभ्व ऽषट 11. 49,.4; #¶..8,.4;
॥॥
किभ्वऽतष्टाः +. 42, 12
$भ्वनां ~. ;6, 5
इन 111. 21, 123; 19.74; 12, 4; 4०1.
॥ भी
म्बञसहं प. 10, 7; 12. 98, 1.
पिऽन्यने +. 6
; 9; 342; 366; ए.46., 4; पा. 48,
115 1; 61, 6; 190, 2; [प्. ॐ, |
विऽमृधः ~. 152, 2..
विमृष्टं 7. 88, 16. `
४ विऽमोचन षा, 4.15;
विमोचनं 7. 3, 5; 7
1 1. 46, +. 1 1 १
विऽमदः इ. 20, 70,
विमदस्य इ. 25, 7.
विऽमदाः +. 25, 6. १, ५
विभ्मदायं 1. 5, 3; ए, 29; ग6, य; प्य,
००; श्रना. 9. 5; उ. 39, 7; 65, 19.
विऽमदेनं २. 24; 4. | |
विऽमध्यं 2, 709, 2. ४
विऽम॑ध्ये 1४. 51, 5. ^ (द |
विंऽम॑नाः णा. 86, 2; इ. 82, 2
विऽमन्यवः 1. 25, 4.
विऽममे 1. 7154; 7; 3; 88 12, 2; #; 87, 4;
४. 49, 13. |
विऽमंहसः ४. 8;, 4.
विऽमहसः 1. 86, 7.
विऽमहीनां णा. 6, 44,
विऽमानंः 11. 26, 0; णा. 8, 6; ड. 62, 14;
56; 45; 2. गछ, 5; 159, 5.
विऽमानें [. 4०, 3; 7. 3, 4.
विऽ्मानीं 2. 95, "४. | । |
विऽमनं 2. 143, 1. | 4 1
विऽमाय ३. 114; 6. 19 ५4
विऽमायं र. 73, ¢. | क
विऽमिंतानि प्रा. ¢, 6. | |
विऽमिन्वन् 1४. 56, 7. | न
विऽभिमांनः 1. 155, 6; 186, 4. |
विंऽईव 11. 29, £. | | 9
विऽमुचः 1. 429 7; . ४1. 55 प. ।
विऽ्मुचंति ४.62, 7. र 1
विऽमुच्यं 1, 104 7; ला. 32, ग
विस्मृतः 2.65;7 = `
शि , भा ` केक ध
व
=
, विरकंता 1. 74, 3; इ. 22, 4; 138, 4
परध | . विऽयतं -- विवसतं.
वियतः 1४. 38, 9; 2. 5 3; 6, 24.
विऽयंतां 1. 164, 38 ; इ. 67, 6. |
विऽ्यंतिं ए. 43, र.
विऽ्याति धा. 73, 14
विश्युता 1४. 7, 7; द. 67, 19. ५६
(
विश्युताः प्र, 59, 10. ` १
विद्युते इति विथ्युते 111. 54, 7. `
विश्यूरय 7. 141, 2. ५ |
विष्येमिरे ए. 545. = `
विऽ्योतारः 1. 55, 2. ४
विऽयोषत् 1४, 16, 20.
विऽ्रष्ड 1४. ॐ 3; #ाा, 107, 4.
विंऽरण्डिन् $. 22 6; 40, 2.
विऽरस्डिनः. 1, <4 70; 8); श.
113; 6, स भ $
विऽरष्िन्ः 1. 166, 8. ४ |
विश्यष्डिन ए, 76, 5; उ. 5, 5.
विऽरश्डिने ४1. 32, 7,
विशऽ्श्प्ली 1, 8, 8; 1. 36, 4; ४. 17, 29;
20, 2.
विऽरवेणं 2. 68, 8.
विश्नः 2. 90
वि ऽयाज॑तः 1, 188, 6
विञ्यजय 1. 188, 4. = .
विश्गज्ञे 1. 96, 18; ह. 66, 7.
विऽरर्जानि हर 159, ©. ६ | ~ ५ :
विऽयणट् 1. 188, 5; 3. 00,5; 13९ 5 ; 159, 3
४
विगषाद् 1. 35 6. ` ` ` :.
केक #
५
॥ [ि)
[1
विऽहद्रस्य 1. 160, 8 ` . ,.. 1 ४
विरक्पान् ए. 49, 5. ` ए | ध |
#
विऽरूपा 111. 38, 9; ‡. 95, 76.
विऽङूपाः 1. 7०, 4; 17. 53, 7; एवा. 1, 6;
+, 769, 2.
विऽरूपसः उ. 62, 5; 6.
विरूपे इति विऽपे 1. 62, 8; 73, 7; 95, 7;
11941 1.1.2 11.41 “9.4.
विश्योकिण॑ः ए. 55 3; इ. 78 $. |
विऽ्रोके [1.5 ५.
विऽरोच॑मानः ४. 44 2.
विऽ्येचमानं 1. 95; 2; ५.
विऽरोचर्यन् 1.
विवक्तन 1. 156, 5
विव॑क्ति प्रा. 68, 4; 2. 717, 6.
विवक्ति ए. 72, 3; 12. 96, 19; 97; 7; ‰.
120, 8.
विवक्छि 1. 267, 0; 17. 57,
१.1. 0.1..42;.4..60
विवक्षान् 9१1. 6, 2.
विवक्षणं ४117. 49, 4.
विवर्णस्य ए. 7, 25; 35, 25.
विवर्घ॑णाः पना. 45, 12.
विवणे रा. 1, &.
विव॑क्षसे ‡. 21, 1-8; 24, -3; 25 1-71.
विश्वे 1. 712, 28.
विऽवतैनं 1. 162, 14.
विऽ्वतैय॑ततीं ४11. 80, 1. क
विऽववृधे [3. 108, 5.
विव॑त्री इति बिष्व॑त्री उ. 99, `
विवष्टि ४11. 16, 7. 8
विवसं -{. 787, ` ‰
विवंसखत् 1. 44 7. ०.
पिव॑खतः ए. 6, 39; उ. 1४, य.
विवख॑हः 1. 53, ८; 58, 7; [ा. 34; 7;
14.47; 4; ४, 73; 1.8, 4; णा
34.00; 20.72.442, 20.24;
1४. 20: 4;
१
भ
॥ #ै
ग कवन 1. 96, 2.
विवखति एना]. तः
विवखंति 1. 46, 15
विवंसखते र. १7; |
विवि {. 32, (५
विवखत्याः {11. 3०, 7
विवखं ऽभिः पा, 102, 22
विविसखन् ए]. 9, 3
39; 1; 1. 3; 6.
विऽवाच॑नी र. 159, 2,
विऽ्वाचि्. 1 78, 4; प्र. 49;
ॐ०, 2.
विवाय 1. 7156, 5; र. 6, 2.
विवाय 1.77, 4; णा. 6, 3.
विवास ४. 83, 7; णा 96, 12; ई. 63,
विवासत ए. 25, 6; ए. 1
29; ४1. 22, 2;
5.
विवासतः ए. 57, ¢.
॥ 2 ।
विवासति 1. 58, 7; ए. 44
चै
97; 4; 12. 44 4; 86, 14.
विवासते ४177. 10, 24.
विवासते 1. 714,
विवासयः 1. 119, 9.
6 वि ।
विवासति 11 57, 7; एर. 17 „5; पा, 6, &.-
एना. 69, 1 ॥
विवाससि 1 74; 9; ण्या. 16, 72 ; 1. 98, 4;
+. 64; 5. |
विवसिन् [. 173, 2. ॑ |
विवासे 1 48; पा. 5, 82; 52; 17; 62, 5;
` 66, 77; णा. 6, 32 58, 5; णा. 16 3
विवासेत् प्रा. 16, 46; इ. 5, 2.
विवासेम "1. 38, 5; 67, 2.
| क शित १
विवासेयं 11. 33, 6.
[ति वि)
विविक्तः ४7. 14, 24. `
त 11
डि. 2, 0; प्रा. 96, 12.
विवित्से 1. 32, 4; ठ. 4 ९. अ
विषिद्त् 11. 27, 6. | (4 ह
विविदुः ए. 2, 7. | [ि | |
विविदुः 1. 77, 2; पणा, 9०, 4; 1, 68, 6, #
विविटुषः ए. 19, 12. १ ५ ४
विविदे 1. ॐ 4 | |
विविदे [. 259; ए. 18 13; 26, 5; ण्न,
7, ग; क. 85, 402; 137, 3. + 4 ।
विविद्रिरे 1. 27, 5. ज '
विविद ४. 20, 7. | | |
विविद्वान् 117. 37, 15; 1. 2. ताः
विविप्रे 17. 32, 4 ` | व | ॥
विविशुः 1. 7, 7; ए. 1 0.2; 0, ~ ~ + क |
विविश्याः ड. 10, 3. व |
विविश्रे षव. 17, 14; | ध ४
विविषुः ए. 32, 5.
विविष्टः 2. 174, 9. | |
विविष्मः ण. 23, 5; 6 । व १
विभ्वुक्णा 1. 32, 5
विश्वः 7. 27, 21. । व १
विष्वृषचत् 11. 33, 7; ए. 29, 6. = 1
विऽवृश्ठन् 41.0८ | क
1
विः 1. 09, 4; ङ, 76, 3; 147, 1. व |
॥
॥
विवेद 1. 32, 4. ` ^ ॥ 4
विवेद [य 9; 39, 5; 6; 1.5, 9;
27, 3; 8; 2 44 679 1
विवेदिय णा. 15, 5 1
विश्वेषिद्त् 1. 68, 3; 869...
विषेश 1. 98, 2; 764 2; 32; वा 24:
4.4; 319. 5; 34 53 67 73 8 58 3.3
४.40;35; णा.०३; प्रा, ला. व
विवेशिथ 1. 20, 5
विवेणुः [प्र 28;
विवेष [. 35, 13; णा. 27, 4.
पिवेषः ए. 3, 5 `
विवेष्टि २. 67, 12. | ८ ५
विव्यक् ए. 41, 6. ज
विव्यक्यं ए. 92, 23.
विव्यचत् 2. 96, 4.
विव्यच॑त ए. 6, 15.
शि
विव्यचः {्. 80, 1,
विव्यथुः ४. 72, 5.
विव्याच [1 36, 4; 8; प्र. 88, 5; ९.
717, 2.
विव्ये ४. 22, 2.
विऽन्रतयोः 2. 105, 4.
विव्रता 1. 63; 2; णा. 12, 15; &. 49 2;
105, 2.
विऽत्रनानां उ. 23, 2.
विऽव्रतेन 3. 55 3.
विह 1, 97, 77; 216, ग; प्रा. 48, 15; 1.
४ ५, 1; 8, 07; 25; 2; 63 23; 64 27; 65
०; 33; 36; 108; 16 ; 2 85 43.
विशः 1. 25; 1; ऽब 5; 55 5; 44 7; 50
5; 693; 77, 3; 963; "43; गय7, 2;
141; 1; 227. 72; 9-44-9; 1. 1;
8; वव, 4; .24; 19; 6, 2:3.:49....2,.3;
24; 4 ; 28, 4; ‰ 8; ४.8, 2; >6, 7
ण. 17; 8, 4; 4 2; 6, 9; 259;
. 26; ग ; 4 16 49; 15; षा 9 ५;.3;
6, 5; 7 |
29; 12; 16;
900 15; 1. 73404. 3.71, 4
426 4, 69; 1; 84; 2;
` “9, 2; 2124, 8; 1024, य
1१४. 4 3; ४.5
ॐ; 143. 66, 15 ; : 2० 9; 70, 3; 90; अ;
> 7० 5; $+ 10; 35 6; 69,
¢ 79, 2; +. 6 4; 27; 71 8 > 1.23.
28. , 39.18 ;. 69, 8; ` 45.
परे | | विवेष -- विइ्पतिः.
विशत् 1९. 103, 4; 707, 10.
विशतां 2. 34 24.
पिङ्ते इ. 30; 2; 85, 29 ; 268, 3
[० ।
विशंति 1. 46, 4; +. 36, 3; 13. 85; 7;
95; 3.
विशतु 1. 5 7; 15; 1; प. 59 10; क. 78, 7;
4 96, 7; 98, 4.
विशते +. 37, 9.
विर पा. 5;
विशंऽबिशं ए. 14; 7; द. 45; 6; 84, 4; 9, 2.
विऽश॒संनं >. 85, 35.
विऽशसे >. 142: 3.
वि ऽश॒स्ता 1. 162, 19.
विशस्व ¬. 56, 7.
विशा. 39, 5; ग्व, 2; 1. 26, 3; *. 269;
पा. 28, 3; 63, 7; 75 18.
विशां 1. 36, 7; 5; 44 9; 65, 5; #०, 2; ५4
5; 96, 4; 712; 3; 10, 3; 127; 8; 154
0.112.914 11122 0.19.
35; 342; 9.9; 43; 93;
29 30; 24.71; 36, 42; 48; 8; - १1. +, 4;
9, 2; 39, 2; णा. 23; 20; 42; 24; 95;
3; .4-., 108, 20; >. 20, 4; 22, 29; 46
4; 6; 92 2; 74; 256; 5; 775 4
विशि ४, 22; 7; भा. 234; 713; तद, 7.
विऽशिष्षुः [1. 2, 10.
विशिखाऽ्दंव ४1. 75; 14.
विशिऽशिप्रं प. 45; 6.
विशे 1 93;.8; 9.6, 3; 48, 4. रा
4; 82 ग; पा. 6० 6; द. 86, 15;
97; 3०
विशेम 11. 96, 6.
"कि ३. ।
विशेऽविशे 1. 2; 16; 14.7.45. ४8, 53
=: 49... ~
विज ए. 7०, 4 _ ,
नान्यन्न ताह
, क
विपति -- विश्वजिन्वा. -~---------- ।
विर्पकतिं [. 12, 2 3५ 1; 164, 7; वा. ए, 8
1.2, 0; $ 8; 13: 5; ४.4 3; ए,
45, 8; एना. 44, 26 ; >. 92, 7.
विश्पतीं सवेतिं विष्पतौऽ इव ए. 309, 2.
विश्पते ४. 6, ;
विश्पते 11. 49, 3; ४. 2 19; पा, 1 ¢ ?;
श्ना 43; 14; 103, $¢.
विश्पत्नी 117, 29,
विर्पल्यं 11. 2, ¢.
विश्पलां 1. 172, 10; ग), प; 39, 8,
विश्पलांयाः 1. 118, 8.
विर्पल्यि 1. 116, 15.
विश्पलावसू इतिं 1. 182, 1,
विऽशयः श 97, 2.
विश््या;ऽडइव 1. 126, &.
विऽश्रयमाणः ए. 45, 3.
विऽश्रयति >. 85, 5.
विऽश्राविं २. 93, 24. `
विऽच्िता 1. 774, ए,
विऽध्िताः 1. 55; 2,
विश्रुतं [. 52, 1.
विऽश्रताय [, 62, 7,
विश्वत् +. 76, 6.
विष्चऽखद् ४11. 44, 26.
विश्चञ्च॑ं 4. ` १48, 7.
विश्वऽरसायवे र. 22, 14. |
विश्चऽायु 1. 79 1; 1४. 28, 2; प्र, 53, 15
1.9.113. 1;
विश्चऽखायुः 1. 97; 27; 3; 6793; 5; 68, 3:
1 230 4; 1. 5, 18; ४1. 42; 24; 9
33; 4; 24; 5; #ा. 2 4; 7. 86, 41;
63; 7 पः 4; 9; 44.
विश्वञ्खांयुं 1. 148, 8; 129, 4; [द. 4, 10
श्चऽअयोः 1. 42, 1. ५
वि्कः ए. 86, 1, न |
विश्चऽनंमेणा श. 1 70, 4.
विश्॑ऽकमेन् र. 87, 6, 4
विश्वऽकर्मन् इ. 81, >,
विश्वऽ्कना एवा. 98, 2; ड. 87, 2; 82, 2.
विश्वऽकमशं 7. 87, 4.
विश्चऽ कर्मेण र. 166 4 क ध
विश्च॑काय 1. 176, 2; 770, 7; 65; १9; ` ५
विश्वऽकुश्यः 111. 26 5; र. 9 , 6. 9 | |
विश्चऽकुिः 1. 59, ¢. 1
विश्चऽ्कृष्िं 1४. 58, 2.
विश्व ऽ कृष्टीः 1. 169, 2.
श ऽगूतैः 1. 67, 9; प्रा, 7, 22.
विश्वऽगूते धा. 70, 3.
विश्वगूतीं इतिं विश्व ऽगृर्ती 1. 180, 2.
पिशुष्वषषः [86
विश्चऽ्च॑चषसे 1, 50, 2 ` ४
विश्च ऽच॑ंधाः ए. 65, 7; र. 87, 2. |
विश्च ऽदं र. 93, 5. ¦ | "०,
विश्वऽचद्राः 1. 165,8; 111. 5, 16; 1.6
9; 2. 234, 3. ॥
विश्चऽच॑षेणि भ. 93, 10. क च
विश्चऽच॑धैशिः 1. 2, 9; [1.3 3; ४.6, 3;
23; 4; १. 22; [श. 1, 2; श 83; 4
विश्च ऽच॑पेशिं 1. 64, 14; 77. 2 15; ४.14, 6
४1. 44, 4; णा. 53, 6. | 1
विश्वऽच्षेशे [. 9, 3; ४.38, ८; भा 235 2.4... ८ ५
1. 66, 1; इ 5 4. 6
विश्चऽ्जन्यः 2.67, 7 क
विश्चऽज॑न्यं ४. 4४; 25; णा, 76, 4, ` ` | ५ +
विश्चऽजन्या 1. 169, 8. | |
विश्वऽजन्याः ए. 36, ए; ड. 2, 6.
श्च ऽजन्यां 111. ;0,6; णा. 10 4.
विश्नन्ये इतिं विष्ठऽ्नन्ये ा. 25,
{
॥
|
|
॥
चक कै
# कि ।
क ४५ ३०
विश्वदेवाः एवा. 35, ग
विश्चऽ्देवाय 1. 142, 12; प्र
विश्च ऽनुवं 19. 35, 8.
विश्वतः 1. 7, 4; 7, 10; 70, 72; 3 ग; ॐ
9; 89, 7; 97, 8; 16; 947; 95; 6;
1009 74 ; 176, 20 ; 122; 6 ; 125; 4; 132;
62. 144; 4; 264; 26; 11. 79 72; 30, 5;
459 2; [1 55; 2; 46; 3; 4 2; 5५
2; 1४. 8, 8; ४. 44; 7; 4; 2; *1. 79
0. 22,.8-70 1 "12.312.
4; 7; 42, 5; 84; 8; 104 6; णना. 48,
1 01 1000-1...
405 ...411.0 060 2.003.011
25; 74१ 2; 84 7; 86, 58; 89, 5; 706,
14; +. 29, 7; 25 7; 37; 2; 795; 8
25; 90) 1; 1409, 7; 1435, 3.
विश्चतःऽचकुः इ, 87, 5.
विश्वतःऽधीः ए. 34,
विश्चत॑ःऽपात् 2. 87, $.
विश्व॑ःऽघाहुः >. 81, 3.
विश्चतःऽमुखं 1. 97 6; 7 ४
विश्वतंःऽमुखः इ. 81, 3. (1 ५
विश्वऽहुणं 1. 48, 16.
विश्वुऽतू! १11. 99, 5. | |
वि्छऽतिः 17. 3, 8.
विश्वत >. 67, 24.
विश्वऽ्यां [. 247, 9; 1. 24 77; ४. 44 7.
विश्चऽदंरोतः 1. 44; 70 ; 50, 4; 746, 5; णा
96, 6 ; 1. 65; 13; 66, 22; 106, 5
विश्च ऽदं 1, 25, 18; ४.8, 3; ह. 149, 6
विश्चऽ्दानी 1. 164; 49; 1 प्र. 5 8 षा 52, 5.
विश्छऽदुष्टः 1. 197, 8; 9 2
वि्चऽ्दुशः 1. 1971, 5; 6. 4 र
विश्वऽ्देवः ४1. 67, 6; णा. 98, 2; 1. 9,
3; 165;
विश्वऽ्दैवं ४. 82, }.
विश्चऽ्देवाः ए. 5, 7
| ् ५ ऽ्भोजसा | ए. 16, 2.
पिश्चऽजुवं -- विश्च.
विश्च ऽ्देव्यः 1. 110, 2; 162, 4६ क. 02; 12:
विश्व ऽदेव्यं 1. 148, 1; [1. 2, 5.
विश्वदेव्य ऽवता >. 1/0, 4
विश्वश्दौरसः 1. 130, 5
विश्वऽदोहसं ४1. 48, 13
विश्वं 1. 63; 8; 1745 10; 7४. 19, 6.
विश्वधा 1. 141,6; 1४. 716; 78; *¶.8;, 4; भ
22. १; १. 5, 1; 1. 79...
विश्व ऽधायः ई. 83, 6.
विश्च ऽधायसः 3. 122, 7; 176, 1.
विश्चऽधायसं 11. 10, 5; ४.82; {4
9454123... 1494.
विश्चऽ्धायाः 1. 75, 3; 7. 55, 2.
विश्वऽ्धनाः 19. 29, 2.
विश्चञधंनां 1४. 19, 6.
विश्ऽपिशः ४11. 57; $
विश्वऽ्पिशां ४1. 75, 6.
विश्च ऽपुं 1. 162, 22.
विश्चऽपुषां ए. 26, 7.
विश्वभ्येशसं 1, 67, 16.
विश्वऽ्पेशसा 1. 48, 16; 1४. 48, 3.
विश्वऽष्सु ४1. 35, 3.
विश्वञ्ुः >. 77, 4.
विश्वस्त पा. 22, 12.
विश्चऽ्ल्यः ४11. 71, 4.
विश्चञ्प्ल्यस्य ए. 42; 6; प्या. 97,
विश्चञप्ल्यंय 11. 133 2. त ष
विश्वभ्भसतं ४.7, 79. त. र
विश्वऽ्भांतुषु ए. 1, 3; एवा. ५, 3.
विश्वञ्भुवै इ. 50, 7 |
विश्च ऽभेधजः 2. 60, 72; 1307, 3
विश्वऽभेषजी; 1. 25 20. =
विश्चऽ्भोजसं ए. 48, 3 = `
[र
(व
ऋ कः
र
ण
शा नप्प 1; 38, 10; 42, 6; 48, 8; 49; 4;
ॐ 4; 5; 5 3; 4; 5, 2; 6; 29;
5; 8; 81,5; 9; 8, 3; 86, 70; 92, 9;
95 3; 98, ग; 104, 8} 108, 2; 714 ४४;
(49, 4; 140, 8; 164 42; 44; 285, 1;
०6 2.9. 25; 59; 758 4; 22
4; 23" 9; ०4० 2; 6; 33, 10; 5
5; 305; 4०5; 1. 45; 29, 14;
ॐ 0; 4; 444; 548; 55, 8; 1प्र
79 7; 5 ग; 6, 71; 147, 10; 54 4; 589
11; ए. 6, 6; 269 2; 32, 10; 47, 7; 48,
2; 993; 057; 87, 5; 83, 2; 9; ए.
89 3; 13; 4; 16, 27; 28; 20, 2; 13;
25, 8; 37; 2; 52, 75; 60, 4; णा. 7, 2;
0 90, 9; 26, 3; 56, 20 59; †; 66, 75;
76, 7; 77, ग-3; 9०, 6; 98, 6; 9
16 ; 20, 26; 24 27; 26, 6 ; 37, 8; 39;
27; 42 4; 4, 3; 47, 3; 49, 8; 58, 2;
78, 5; 79, 2; 89, 6; [द्. 6, 18; 63,
5; 68, 9; 86, 28; इ. 2, 4; 17, 7; 7,
> 10; 20, 10; 22, 77; 27, 22 ; 35; 13;
36, 4; ॐ 2; 4; 56, 5; 58, 10; 67,
12; 64 15; 84, 7; 85; 42; 88, 15; 02,
3; 96; 5; 70, ग 8; 4, 4; 0, 0;
126, 4 ; 155; 2; 156, ग; 773, 4.
विश्वऽमनः "ााा. 23, 2.
विश्चऽमनसः (1. 234, %:
विश्चऽमनाः 2. 55, &.
विश्चऽमनुषां णा]. 46, 7.
विश्ऽम॑हसः प. 93, 3. |
विश्व ऽमानुषः ए. 4, 42.
विश्चऽइन्व 1. 20, 3; ४1. 28, 7.
विश्च ऽइन्वः 11. 4०, 6. 8 र
विश्च ऽइन्वं 1.02. 4: व
वमः , कौ ,
विश्च ऽइ्न्वा ए. 80, 2.
विवंऽ्न्वाः 2. 110, 5 ४
विश्वमिन्वे इतिं विशं ऽइग्ये 1. 76, 2 ; [, 38, 8
पमि , डं ; क
` 8, 5; 2. 67, गय.
१
नननकरमम मीः
| वि्ठऽवित्
विश्य् ए. 5०, ग | त अ
विश्व॑या ए. 7, 19; 68, 2. 1 १
विश्चऽरूपः 1. 162, 2; 1111. 9१.461 0.10, | |
3; ४1. 4 3; क. 10४. | ।
विश्वऽरूपं 1. 22, 10; 35, 4; 1. प, 79; 32, + =
10; [1. 62; 6; स 67, 10; 85 2.9,
विश्वऽरूपस्य ‡. 8, 9. क का
विश्वऽरूपाः [11. , 7; ए. 8, 5; पा. 100 |
1; द. 78, 5; 88, 10. | |
विश्वऽरूपां 1. 167, 6; 1. 55, 8, ` &
विश्चऽरूपेभिः इ. 7०, 2. | | |
विश्वरूपं 1. 64, 9. १ |
विश्वऽवमुः 2. 139, 5, ४ ष । | ह ्
विश्चऽवमुं >. 85, 21; 739, 4. ॑ [
विश्ववसो इतिं पिश्चऽ्वसो 2. 8, 22. =
विश्चऽवार ५.01. 1 8 ‡ 76, 5; 92, ॑ |
11102. 0 ˆ
विश्चभऽ्वारः 1. ग, 7; णना, 97; 4; क. 88, 1
। 3 {4 149, 4. :, | ५
विश्ववार 1. 48, 23; ए.4, 0; ए. 30; 7; 49, =
4; भा. 75; 20 4; 84 4; ना. 08 ५
3; -+. 150, ॐ. | | | क
| विश्वऽ्वारस्य 11. 36; 10; ए, 44, 77 ^ = „
223; 10. | | | - 8
विश्चञ्वांया 1. 4 3; ए. 28, 7; 8०, 2 4
विश्व ऽ्वाण शा. 70, ग. | ^
विश्चऽ्वाणः 1 725 2; व, 9, 6; [द |
` 97, 26. । 1
विश्वऽ्वांरशि शा. 5 व, 0 1 ५;
विश्व्वारानिः एय. 2, गा. 1
विश्व ऽवारे 1 715; 9; ना. 6, 7; पा. 77, 5 ध
विश्ववरि इतिं विश्चऽ्वारे ए. 7, 3. ध
विश्वऽ्वविः पा. 9 प. | |
विश्चऽवाये ए. 22, 19. |
विशरऽ्वित् 1. %7, 3; 28, ; 5;
. [र 64;
सतस
५३२
विश्चऽबिद् प. 70, 6.
विश्चऽवेदसः 1. 64, 8 ; 10; [ा. 26, 4; प. 67,
11 1112.
विश्चऽवेदुसः ४. 60, ¢; पा. 18, 7
4; प्य; गण; 4.3; उ. 93,
विश्व ऽवेदसं 1. 2.1; 26.23; 442; 3258, 8
143; 4; ४.8, 7.
विश्च॑ऽ्वेदसा र. 145, 6.
विश्चऽ्वेदसा ए. 25, 3.
विश्चऽ्वेदसा 1. 4४, 4; 139, 3.
विश्च्वेदाः 1. 89, 6; 97, 2; 147, 3; बा. 29
4; 25; 7; 9. 44; 2; *1. 42, 7.
विश्च ऽव्य॑चसं 111. 46, 4. | |
विश्वऽशपुव 1. 24, 26,
विश्चऽ शोभुवा 1. 160, ठ; 4; ण.
विश्च ऽरभूः 2. 87, 7.
विश्चऽश्यैसो ए. 24, 8.
ऽशुये श्व. 13, 7.
विश्चऽरु्टिः 1. 128, 7,
विश्चऽसह [11. 47, 5; ए. 44, 4; णा. 92, 1.
विश्ऽसामन् श. 22, 1.
विश्वऽसुषिदः 1. 48, 2. |
विश्च ऽसोभग 1. 42, 6.
(मि) कि ।
273 2;
०0.0;
चिश्चऽसोभगः 1. 157, 3.
विश्वस्मात् 1.
106, 1-6 ; 122; 134. गा.
17, 6; 1४. 26; 28, 4; शा, 6८, 16;
94
पिश्चमे 1. 5, 2; 55, 3; 66, 3; 9, 4; 128
0.9.82, 4; ए ४; -पाा.66,- 4;
1. 48, 4; र. 88, 12, ` | ध
विश्वस्य 1. 7, 4; 25, 00; 44 5; 48, 10;
92 9; 100, 7; 16719 5; ग73 4; 138; 7;
104» 21; 165, 6; त. 12, 9; 12;.6.4- 20;
विच्छ ऽविदा -- विश्च.
65; 7; ग©0, 2; 704, 16; वा. 10, 9
4,741.42. 12.3.06.
76, 4; 86, 5; 28; 56; 86, 4; 97, 5
1011. 2 5.20 204;
6; 63: 8; 87, 15; 97 7; 102, 12;
2 102, 3;.768, 2: 768. 2;
विश्व॑स्या; ४11. 77, 1; इ. 6, 5.
विश्व॑स्यै पा. 39, 4.
विश्वं 11.12 5; 91. 2, 9; णा, 48, 14
विश्वां १,111.3. 1094 11.41.10
3; 35 14;.1*. 1 12; "1.2 3; 40);
78; 8;
15; शा. 42; 26; 44; 22; =.
88, 74; 97, 6; 100, 4.
विश्वा 1. 35; 3 2 5 ) १९ ; 40; 6 ‡ 513 ¢; 8
13; 52) ग; 64 7; 64 3; 72 ठ; 9
73; 2; 84; 20; 85; 8; 97, 19; 92, 3;
96, 7; 99, 7; 101,
15; 94; 6; 95; 10
6; 108, 13; 109; 6; 13; 4-5
124. 1;.9 14
1; 149 4; 5; 152; 7;
2; 13; 14; 49; 166, 4;
128 4
15 16; ग्व; 77 7; 4; 18, 4; 24 21
34, 4; 47, ‡; वा. 3, 1८
31, 8; 54, 8; 22; 55, 10
^ ~
¶
16, 5; ४ 4; 6; 27, 7; 5० 2; 36,
42 3;
14; 3; 3; 57, 0; 759; 4; 77; 3; 8359
82०: 6;.9; भा. 9.44; 9 5; र;
190 1; 75 16; 14; 16, 26; 77; 1; 123;
19, 6; 25 5; 37, 2; 46, 6; 60, 10:
64; 7; 69, 4; 2, 7; 74, 3; 75, 14;
४. 3; 10; 129.4; 76; 4; 24, &4 38, प्र;
13 4; 17; 4 35.4; 32; 4; धु, 4;
322 15; 44 3; 55 7; 67, 7; उ; 69, 1;
6; 9; 2; | |
06 ^
1
च्च ॐ क
छ क
166,
क
क्यः
क क
च्रे
7; 134; 4; 146,
154; 2; 4; 264;
77; 3; 17
8; 778, 1; 189; 2; [. 20 4; 19, 4;
16; 4; 29,
19; 62,
62, 9; ४. 7, 4; 8; 3 16; 4, ¶; 6,
;. 7;.509 7; #,.य5; 2; उदे,
» 2; 4 106; 77; ¢; 86,
०, 91० 24; 98, 2; 117, 3; 134 6;
39 3; 79, 3; 7.7, 3; 8, 5; 71, 29;
5 3; 22 5; 23; ॐ, 3; 4०5; प्रा.
72, 6; 15 4; 57, 28; 27; 442; 49. 7;
४. 7.4; 10 8; ^; 29; 7९; 22, 70;
ॐ 7; 42 ए; प. 4 5; 19, 6; 29, 7;
4 9; 3०, 5; 55 6; 62, 2; 75, 2; ण.
15, 5; 22, 9; 2, 2; 4, 4; 5, 16;
58, 7; 60, 6; 0.9.111. ४.10
19.34. 29; 4; 67, 4; 72, 3; 95) 7; 1०4
1. 53; 0, 4; 71, 8; ८
14; 13; 16; 77; 24, 19 ; 26; 36, 7; 39,
2; 45; 8; 29; 45, 8; 4०; 46, 7; 69,
4; 84 6; 99, 20; 96, 7; 9, 10; 99,
ॐ; 6:22, 9; {..8, 7;. 13;: 8; .16; 0.
४
20 ए; 40, ग; 45 2; 67, 28; 62, 79;
०4; 69 26; ०8; 86, ग; 4 896; द
>8; 9:31, 4.145..8, 45 1; 5, 7; 2.
तवव; 97, 70; प, 1; 133, 9; 153, 5. `
विश्वाचीं ए. 43. 3.
विनतः 177. 5, 9
| विश्ठानितनमद्गनी इति
॥ विष्ामित्स्य 17]
"40 3; 288, 9; 7. ॐ, 6; वा, 6, 6;
90; 54 42; 57, 5; 59, 8; प, 59 5;
45> 0; #. 7, -8; 432 70; ४. 51,9; णा.
95; 48, 3; ण्व. 1०2 ; 23, 26 ; 65; 9;
66, 10 ; 7 श. 59: 4; 80, 4; 86, 48 \ 090;
र. 60, 6; 66, 13; 89, 16; 140, 5; 181; 1.
विश्वानरः 1. 186, ठ; एना, 76, 1.
विश्ान॑र्स्य पा. 6 8, 4.
विश्वानराय ह. 50, 7.
विश्वानि 1. 5, 9; 92; 29, 20; 25; 77; 58,
3; 5 7; 672; 69 3; 70 7; 4; 92,
9; 108; 7; 1429, 5; ग4ल; 3; 148, 2;
766, 9; 106, 3; 189, 7; 101. 417
ॐ 1; 42; 53; 76, 2; 28, 7; 35,
99
42 5; -[. 7, 16-18; 5, 6; 11.44
38; 6; 1४. 4; 6; 26, 6; 30, 22; 39,
; ४. १9; 3 पा; 4, 0; 9; 28, 2; 42
18; 45; 7; 82, 5; ए, १9; 24.22; 1;
42, 7; 44: 8; 20; 46, 9; 57, 10; प्रा.
4 1; 18, 15; 25; 7; 60, 12; 66, 16;
167; 4; भा. 7, 52; 5» 8; . 8, 10;. 214:
10, 9; 78, 17; 24 ¢; 32, 28 1.0;
47; 3; 05; 6; 95 29; 97, 24; 1. $,
4; 74 8; 18, 4; 20, 3; 91, 4; 25; 7;
42 5; 54 3; 59;-3; 67, 11, 02.1.20
23; 25; ॐ; 66, 1; 4; 84, 4; 86, 26;
94; 5; 100, 2;.8; 100, 24; 109, 8 ; 9;
14; ९. 0, 5; 54 4; 59, 2; 63; 13;
87; ¢; 82, 6; 85: 18 ; 89, 5; 122; 2;
7120; 6 ; -24, 4; 104. 11,.0. ४
विश्वाभिः 1. 12. 72.;. 24; 6; 100, 10 ८ 1. 10.
4; 1. 37, 3; वप्र. य, 2; ए. प 64;
59, 6; णा. 93; १4, 4; ए. 8, 2;
५८2 >
99 5; 32019; 35, 9; 37.16
5; गा, 16; 7. 86, 24; रइ 92, 4; |
104, 3; 134; 4 न ५ क भ 1
4222; 69 1.1
शः ` नत, ` ल, न
।
(
॥
\
|
विश्छामिवाः (53.13; 40.
विश्वामिवाय (ना. 53, 7..
विश्चामितेभिः 7. 7, 01.
विश्चामिवेषु 117. 18, 4.
विश्वाय 1. 5०, 7.
विश्छायुंऽपोषसं 1. 79 9; +. 59, 9.
विश्वायुंऽवेषसं प्रा. 43, 25.
विश्वासां 1. 1.27, 9; १74, ; ` १.44. 7. +.
५३४ | | विश्चामिताः-
2.2; 20,-4; 48, 8:69, 2; *1. 75, 2.
विश्वासु 1. 79, १; 8; 122, 10; ग47, 10; वप्र.
1.18; 1.4 44. 4.
24.20 04 90 42:18
04.0.04 1402.
विश्वाहा 1. 25, 12; 90, 2; 100, 19; 1099 71;
100.4 4.11 2,021.4 12".
01.6.11 20.1.12
37; 2; 7; 5932 71
विश्य 1. 2, 7-9;. 19; 3; 25 8; 34: 2; 44,
3;..52; 15; 59;:7; 65 2; 66, 2; 3; 69
91044, 41: 89146; 19; 076.
१1.121... 12 14. 11.09.141;
१,110.4 10409076. 2; 1.
1, 744. 3, 4; 720: 30, 4 -24+ 4; 269
9.41 19.4.15; व. 24 4; 39.23; 32
8; 38, 4; 9; 578; 54; 17; 5, 23; 58,
91941200 ..19,.4.6;
18; व; 19.41; 9.3; 34 2; 425. 1;
9 23; 15.35 29, 5; 8; 37;
10; 360, 2. 4293 104 458; रा, 13; 52
4; 59, 3; 67, 3; १174; 95; 7; 6,
$. 11; 8.14; 45 33; 514;
पव 458; "0 15; 4;
58 2; 60; 5; 68,4; ण. 6, 6; 28, 1;
35 71; 34 24; 38 3; 39 4; 445;
48; 4; 49; 4; 5०3; 57, 34; 52, 3; 50,
7; 29 3; 78, 4; 82 2; भा 4; 6; 6;
31; 24 8; 24.24; अः
62, 7; 09, ग 1 98.
604;
विपुदुहा ऽइव.
0011. 12; ध... 150 12
240 5; 27 4; 33 ग; 35, 234; 36 13;
29 7; 2; 62
१९... 00..71
14; 47; 88; 7;
6; 113; 3; 8;
4; 59; 130 3;
विश्वे इतिं 1४. 56, 4.
विश्चैन 1. ०, 13.
विश्वेभिः 1.9, 1; 74; 1; 10; 26, 19
0,09.180, 34 - 22..6 ; 1.
व 3.1.14. 1.4; "04 44
१९; 410; 1.72. -1.-201.1;
भा. 8, 5; 71, ठ; 38, 3; 5,5; णा,
2 4; 71, 3; 92 29; >. 67, 28; >
3, 2; 08, 8 ; 215; 1.
विश्वेभ्यः 1. 5, 8; 23, 74.
विश्चेषां 1. 58, 7; 68, 1; 1. 23; 2; 27; 10; 38,
6; १. 1, 20ˆ; 73; 592; 91. 26, 7; 6
11-1,9.1.1 11.492... 4
48.10 ; 533 3 : 169, 109 ; >. 9 6; 933 3,
पिश्चेषु 1. 130, 8; दा, 2; 17, इ; ष, 22,
$; +. 3० 3; ग, 39, 8; 12. 99,
$; . 25; 2; 28, 2; 5० 4; 182, 3. |
विश्वः 1.91, 4; 171. 54 25; ४.5, 3; भा)
353 3; . 2९. ‡69, 4.
विश्व्यां {1. 42, 1.
विषः ४. 19, 771; क. 109, 5. ४
विषं 1. 197, 70; 7; 24-62; ए. 61, 3;
ए, 50, 5: 80, 28 ११०.
विंषऽवत् 2. 85, 34. |
विषस्य 1, 191, 12; 13; क. 136, 4.
विषारिनिः ५. 18, 7.
विषुणः ४. 34 6; णा. 29, ए.
विषुणक् 1. 23, 4
विषुणं 171. 54, ह
विषुणस्य 1४. 6.6; प्रा. का, 5.
ॐ
¢ कि ।
विषऽरूपः -- विऽस्गै. क ५३५
विषुऽरूपः ए. 15, 4.
वषु
षष
षु
ऽरूपं ४11. 24, ८
ऽरूपा भा. 84, 7; र. 10, 2.
ऽरूपाणि ४1. 70, 3.
विपुंऽरूपे [. 286, ५.
विषुरूपे इतिं विषरंऽरूपे [. 124; ¢; प. ९.0;
विषु
विपु
विषु
पिष्
ऽसूयेषु इ. 64, 5.
ऽवत: 1. 84, 70,
ऽ्वतां 1. 164, 44.
~यै र वृत् प. 43; 3.
विपुष्वृत 1. 4०, 3.
विषूचः ४1. 59, 5; पा. 85, 2; इ. 79, 7.
विपूची 11. 55, ८5.
विषूचीः {. 164 57; [. 33, 2; ए. 25,
^
६१५ 3.
पिपूचीनां 1. 764, 38.
विषृची ४1. 142; शा. 14, 15.
विषूचोः $. 18, 6.
विषेणं {, 1214; 16} क. 80; 23.
विषश्ऽसता २. 95; 13.
विष्टः 1. 248, ग.
विटपः ए. 34 73.
विप एना. 32 3; 69 7; [द 34 5; 4
0... 1121-1
विष्टपा ४11. 97, 5.
विष्टपि 1. 46, 3; ना. 9, 5; स. 2, 6;
101, 4; 123; 2.
विष्टं 111. 3०, 6.
विष्टः 14, 5: 86, 35; 80, 2 ध । 89, 6;
108, 76. | |
विष्टिऽभिः 1. 92, 3.
विष्टपे 1. 209 4
1.10, 4: 11.66, 3; = 9452.
विच्छावि *111. 3, 8; 12, 16
विष्णवे
1.144.234 1459 66; 214.
100; 7; भ. 25; 12;
56, 4;
विष्वद्चक् ष 25 4.
१
॥
॥
विष्णाषे 1. 116; 23; 777, ¶; र. 65; 12.
विष्णाघें ए. 86. 3 । | 4 |
विष्णुः 1. 22; 76-18; 67, 7; 85; ¢; 9५० 9;
164. 2; 10094; 990 16 135;
16612; १404, 42-4;
17; 49, 15; 5० 12; $. 35 9; 95; 8; +
+ 603... 12, 91.10.911 ४
52, 3; 4 4; 70; 25; ~. 153; 65; ए; | |
665 5 5. 9277. 7135-2 4128, 2; 284 4.
विष्णुना {. 22; 7; #. 575 9; भ. 26, 2; 4
१11. 35; र. ४ | वि |
विष्णुं 11. 54, 14; ए. 46, 3; णा. 27, 9; 48, |
14; पवा. 36, 9; 39, 5; 44 7; 15. 9, |
5; द. 43; 5 0 |
विष्णुऽवंता 131; ` ॥ 9 1
विष्णो इतिं [ 9०, 5; भ. 99 2; पा. 27,
8 ;. 84; 7. | | | | |
विष्णो इतिं †. 156, 7; 3; पप्र. 18, ग; ए. 46, ४
2; ए. 69. 8; णा. 99, 2; 5; 6; 9; ध
200, 2: 6. | | ¦ ‡
विष्णोः {. 22, 19-27; 154; 1; 5; 164, 36; |
11, 21"...
1.9 72.20.23 2101041. 004;
क. 15; 53. 787; 3. क.
विष्यद् 1. 289, |
विष्पितस्य ४. 60, ¶ ॥ ॥
विष्पिता ४111. 85; 3. | ५ ए
विष्पुलिगकाः 1. 797, 72. व
विष्व॑क् १.0, 10.14.14 2124
णा. 6, 3; णा. 34 15; 45; ए; भवा. 45
8; .61,..91;. 1. 97; 163 > -26;.95 38,
व; 89, 4; 754 <. ५.
विष्वङ् र. 90, 4
विष्वचः 3. 27; 18 ५
विष्वं (` ;
विष्वाचः 1. पव 075. 16... र ०
विऽसक्तां 1. 177, 2
विऽसंदृशा 1. 175,
विज्खसः 7, 59, 4; ए. 48,
५३
विऽसर्गे -- वीतये.
विष्सरगे 7.5, 6.
विऽसजेने ४. 59; 3; ` भा, 72, गर.
विऽसनजेनेन 2. 2429, 6.
विऽसमेणं ४. 42, 9.
विऽससहिः र. 159, 7; 174; 5.
विऽ्खस्हिं इ. 166, 7, ॑
विऽसद्य ए. 27, 7
विऽसानं ए. 44; गय.
विऽसरे 1. 79, 1.
विऽसितः ए. 12, 5; इ. 29, 14.
विऽसितं प. 8, >.
दिसिंतऽस्तुका 1. 267, &.
विऽसिंताः ४. 85, 8.
विऽसितासः 91. 6, 4.
पिसिते इति विऽसिते 1. 33, 7.
विऽसूजतः उ. 65 71. |
विऽसुतः ष. 29, 5 |
विसुष्टऽधेना ए17. 24, 2.
विसृष्टऽरातिः 1. 122; 20.
विऽसुष्टाः ४. 100, 72.
विऽसुष्टिः र. 129, 6; 7.
विखंभिते इति विऽस्कवभिते ए. 70, 1.
विऽस्कभे ए. 100, 12.
विऽस्वभतंः [11. 31, 12.
विऽसारः ४, 52, 19.
विऽ्सिरः 1. 140, 7; आ. 15, 0 `
विऽ्स्याः 2. 168, 2.
विऽस्थितः 77. 38, 6.
विऽस्थितं ए. 47; 29; उ. 25, 6; 14, 8,
विऽस्थिता 1. 1654; 77
विऽस्थिताः 1. 184, 4; +. 9, 19
विऽस्पयेसः 1. 703; 10; ए. 84, 4; णा, 23,
विस्मुरती इिं विशस्फुरतौ प्रा. 75, 4.
विऽस्यत् ४. 45; 1. |
विऽहंता 40.09
विऽहरंति र. 162, 4
विऽहसन् 1४. 13, 4.
विहरे १.204.9.
विऽहवैत पा, 28, 1.
विऽहवे प्र. 8, 20; ॐ. 1238, 2.
विऽहवेषु क, 128, 1.
विऽहव्यः 70.0.28.
विहायसः 2. 75; 5.
विऽहायतं ४11. 24, 19.
विऽहायसे ४1. 23, 24.
त ॥
८9
५४
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एय, 4; 90, 29, 6: ण. 48; 11; &. 82,
2; 92, 1.5.
विहि ४. 48, 7.
विहि 11. 26, 2; [[1. 27, 5.
विऽहितानि 1. 164, 15.
विहुत्मतीनां 1. 734"
विऽहुतं ए. 1, 12; 20, 26.
विऽद्हयते ४111. 5; 76; 42
वि ऽद्धयामहे 1. 36, 15.
विद्यते इति वि ऽद्भयते 11. 12, 8.
वीः 1. 144, 6.
वीच्यां >. 10, 6.
वीतऽत॑मानि ४7. 1, 18.
वीत ऽपुंष्ठः 1. 162; ¢.
वीतऽ्पुष्टा 11. 35; 5.
वीतस्पृष्ठाः 1. 181, 2; प्र. 4९, 10; एका. 6.42.
वीत 1. 92; भ 1529: 4:.160, गद्, 593.
1४.10, .6.;. ४1.60.15; - ४ 68, £;
67, 4 |
वीतय 9 9; 23; 2; 74; 4; 6; 1355;
1 11112... 0
064 1 4; 598 शा. 6.19;
चकः ऋ.
सर्ग पप 5 ----------- ण्न. 46, 45. - `
वीतञ्डव्यं एना 19, ‰. ॥
वीतऽह॑व्याय ए 75,
बीतऽहव्ये ए. 15,
वीता [ष्र. 2, 771; 1. 97, 7५.
वीतात् र. 71, 8.
वीति [द. य, 4; 9. 25.
बौतिऽराधतं 1. 69, 29.
तिष्टत; 1 84 18 ; [. 24,
वीतिश्टोतं 1. 38, 1; प्र, 26 3
वीतिऽ्टोता ए. 57, ५. |
बीती ए. 6. प; 6 46; पा. 546; 1.
2; 672; 97, 2; 9, 49.
बीते 1. 82, .
वीयः 1. 15, ¢; एना, 82, ¢.
वीयः 4.41.
वीनां 1. 2, 4.
वीर 1... 39, 6.47... | 13; 7171; 26; 2;
८.11 13... 1; 10
603; 20; भा. 29, 2; ना 23, 14; 1
110, 7; ~. 95; 5. -
वीरः 1. 28, 4; 7. 39; 14 य; 35, ए; 42,
2; [. 49; 55, 2०; णर. 76, 5; 25;
25 24 7; 26; ४.30, ठ; ण्न. 24, 2;
47; 16; श. व, 2; 26, 2; 32; 6; . 55,
24; 111. 23, 19; 24; 16; 35, 16; 1.
0 ग; क. 28, 12; 106; 7; वय, 1;
113; 4. |
वीरकः एग. ७1,
बीरऽनमे 2. 67, 5.
वीरऽ्कुष्ठिं >. 89, 7.
ॐ 4; [आ 5 4; शा. 144; 20, 4; ५
5० 6; 53 2; णना. 34 6; 36, 8; 92, ` |
3; भवा. 46, 74 49; 6 ; 59, 6 ; 86, 4; |
98, 70; ` 202; 4; 12. 9), 4; 5 7; , |
80, 7. | "र ` :
वीरयध्व +. 103, 6; 128; &, | ५
वीरभ्या षा. 90, 7; द. 64, 4. | | ॥ ०
वीरन्युः पा. 92, 28; [क 36, 6. ` 2
वीरभ्वः 2. 355 वि ५ ५.
बीरञ्वषणं ४. 48, 2. = |
वीरऽव॑त् 1. 190, 8; षर. 32, 12; 36, 9; प.
79, 6; ४1. 65, 3; ण्न. 15, 22; 50
४. 23, 24; 102; 9; ९. 9,9; 42, 6;
67, 26; 65, 18 ; 64, 28; 106, 13; - ‰.
36, 10; 72.
वीरऽवतः ए. 15, 5. | ४
वीरऽव॑तीः ए. 47, +. | 1
वीरऽवतीं 1. 12, 11; 96, 8 ; भ. 43, २6; |
“= 01.-6; | |
वीरव॑त्ऽतमं 1. 7, 3. | म त
वीरऽ्वतः ४. 50, 6. _ 1
वीरऽवत 1. 64, 75; (1. गय 13 $. [0 24, 54. [0 |
४.4, 71; [क 3, 3 00.01.104 4 ^ ` +
वीरऽ्वाहः पा. 42, 2. `
वीरऽवाहं ए. 9०, 5.
वीरऽशु्मया 1. 53; 5. |
वीरसूः 2. 85, 44. त
वीरस्यं 1. 86, 4; 266, #; 1. 55; 18 न 001 |
- 45; 8 ; $. 18, 16; . 2, 4; ४. > 2.
40, :9 5: , . 159, 6. ए
वीरा 1. 39, 4" | ‹ ह न | न ५ 4 ।
वीणः 1. 25.35; 85, 7; 64 43; 7, 550. |
॥॥
।
॥
6
बीरऽ्तमाय 7. 52, 8. ^
शरकरः पा धक
24. 1025.27. ्
वीरान् 1. 75; 9; 214; 8
५३४ वीराय -- वृकः.
वीणयं ४. 67, 8; +. 228; 4; 32 7; 44: -4;
49, 712; 65, 4; प्रा, 2 25; 25; 32
24; 4¢, 12.
वीणसंः ४1. 7, 5; णा. 18, 14; इ. 27, 15.
वीरास; ४. 67, 4.
म =, ७५५७, प्छ
वीरिणी +. 86, 9; 10.
वीरूत्ऽसुं [. 67, 5.
वीरधः 1. 147, 4; 1. 35; 8; इ. 4०, 9; 45
4; 79; 3; 971, 6; 97, 3.
वीषहधः +. 97, 21.
भ क "= क
वीरू ९. 145, 1.
वीरुधां [1. 7, 14; द्र. 774, 2.
वीरेणं [. 35, 5.
वीरेण्यः ‡. 104, 10,
वीरेभिः 11. 25, 2; 1. 96, 7; उ. 68, 14.
वीरेषु [1. 24, 15; द. 93, 10.
बीरि; 1. 73, 9; 122, 7; ४. 29 2; प्र, 20,
4; ण. 3ॐ 2; #. 90, 6; 104; 75.
वीय 1. 57, 5; 8० 7; 8; 93, 4; 25 7;
। १0०5 ५. 2.111.113. 1 2.9;
33, 7; 1४. 30 8; ४. 42, 6; 54; 5; ण.
16;.3 # 22, 8. णा. 54; 7; ` 55
00:14. 41141 43 5; 87
25; 97; 19.
वीयेस्य 1. 97, 24; 137, 4; ॐ.
वीया 1. 89, 15; 1. 26, 2 ; 2८, :2 ; 0, 10
1. 32, 10; ए. 209, 13; पा. 59, 7; पा,
28.14; पा. 246 4; 6356; इ. 39, 5;
12.18; | ५ | व
वीयीणि बः 32-1;.108 5; 110; 26; 154; 1;
10214... 2552; 26, 3546, 2; -66
4; "त 69 :5..7100; 3; क. 7124;.;
"24.40: | 1
वीयाय 1. 67, 14; 103, 5; 1 32, 5; -36
5; णा. 79, व; 3० 2; 36, 2; णा. 26, 7;
भ. 67, 18; द. 7710, 7; |
वधिः 1. 22, 3; गा. 54 ग.
वीठ्छ्यस 888 2, 0 -11..41.230 46
वीक्छयस 1..30..2.
वीच्छयांसि "11. 45, 6.
वीव्छवैः ए. 88, 3.
वीव्छवे ए. 24, 8; पा. 44, 27.
बीच्छित 11. 55; 19.
वीव्छितः 11. 27, 4.
वीच्छिता र. 24, 3; णा. 29, 6,
वीक 1. 6.5; 39, 2; 7+ 2; 720, 3; 5;
1४. 3; 74; #[11. 46, उ; 44; 5
+. 89, 6.
वीक्ुऽ्गः ४1. 47 26. ध
वीट्ऽखगं 1. 718, 9.
वीक्ुऽकगे णा. 85, 7.
वीकः 11. 53; "7.
वीक्ऽजभं 111. 29; 15.
वी इद्धेषाः 11. 24, 14.
वीकरुपत्मऽभिः 1. 116; 2.
वीक्पविऽभिः ए. 58, 6; एना. 2०, >
वीक्ऽपाणिः ए. 1, 14.
वीकुपाणिऽभिः 1. 38, 77.
वीक्ुपांणी इति वीक्ूऽपांणी एग. 73, +.
वीक ¬. 45, 6.
वीद्रुऽहरः 2. 109, 1.
वीठूऽहषिणः {1. 24, 11.
बीव्छो इतिं 171. 53, 79.
वीक्छोः 1. 7107, 4.
बीक्छो 1. ॐ, 5; ए. 45, 41 8
ववि 1100
बीटि 11. 28, 3; 42: प्र. २, 55 पा 2
1147 ५
बीहि 11. 36, 4; ४. 52, 2
च्छ
क्क
शि
भ
ए
१
द्वै क
न
वृकऽ्ताति 11. 34, 9.
वृकतिः 1४. 42, 4.
वृ ऽद्वरसः 77. 3०, 4.
१ 1..105, 77; पा. 58, 7; उ. 22,
वृकेऽयुः १९ 133; 4.
वृकस्य 1. 776, 14; ए, 6; 7. 29, 6; स.
39; 13.
वृकाः 2. ५, 14.
वृकाणां ५1. 67, 74.
कात् 1. 120, ¢.
वृकाय $]. 13; 5; 5, 6; ण. 58, 8.
वकासः >. 95; 15.
वृकी {. 117, 28; 183; 4.
वृक्ण 1. 117, 27; ए. 22, 6.
वृ्घः 9..147.19
वृक्शं ¬. 87, <.
वुक्णासंः {11. 8, ¢.
कऽ बरिषः १,५.५1...
। ठ, 2. 24.35 35; 6; षरा, 68, 2;. शा.
ठ 7; 6, 37; ०7, 7; 35 7; 36, 7; 6९
17; 69, 18; 87; 3; 97; 7; द. 110, 07;
>. 97; 9.
वक्तऽवहिषः 1. 389८; पा. 4 20; 21.
क्रऽ-ब॑रिषं 1, 40, #.
वृक्तऽ्बहिषे 1. 12, 3; 11. 59, 9; र. 61, ऊ.
वृद्धौ र, 87; 28 `. `
वक श, 124; 6.
चुक्छ 1. 116 16; तद, 74; भ. 51, 6
वषुः 1. 182, 7; 1१४, 9०, 5; > 31, 7
वृ्ऽकशाः 9.41; 11
[1
11. 46, 4; पए. 546; 7896; प. 955;
पा. 73, च; एद. 97, 53; इ. 10 3;
=. |
वृकं 1. 130, 4; 764 20; (आ. 14 2; 39, 7;
( वृजिन ऽव॑तैनिं 1. 37; 6
वृति 1. 27, 23. | क
वृषे 1. 164 225 >. गथ, 4; 155 1. |
वृक्ेष्वृे द. 209 22. 0
वत्तं 1. 209, $ = ` वि ०५
वक्ति >. ग), 7.
वृक्क 91. 75, 74; >. 87; 7. ५ क 4
वृचयां 1. 57० 73. | ॥ि ४
वृचीर्वतः ४1. 27, 5; †.
वृचोर्वेतः पा. 27, 6.
वृध 111. 340
वृजनं 1. 48, 5.
वृजनं 1. 165 15; 166; ग; 767, ग; 168,
` 0.69 8; पाप, 6 6; 184
70; 74, 6:26, 53 44.55; 108, 64. १
180, 10; 287, 9; 182 8; 283, 6; 784 6; (९
7855 171; 186, 17; 789, 8; 19, 8; ४4
१9001611. 14/1 2 ^.
वृजनस्य 1. 97; दव; 1079 पए; 195 97, 70.
वृजनं प, 54, 12; 1. 96, 7; >. 176; 7. 1
वृजरनाः पा. 3० 2. | नि
वृजनानि 1. 73, 2. .: त
जनीषु 1. 164 9. &
वृजने 1. 57, 15; 60 3; 63; 33 107; 8; 105: ५
19; 128, 7; 166, 4; 11. 24 77; 11, 6.
36, 4; ए. 52, ¢; 3. 82 4; > 27; 5;
62; 25; 66, 2.
वृजनेन 111. 34, 6 क, 42; 10.
वृजनेषु 11. 2 7; 9; 34: 7; भा. 68, 3; प्रा
99, 6; 7. 77; 5; >. 27; 4; 28, 2. ध . ५
व्न्य 7. 97.98.
वृजिनं ४1. 57; 13; पा. 1०4 23; 1३ 97; ध
18; -. 87, 15.
वृनिनञ्यंतै इ. 27, 7.
वृनिनस्यं {-5. 97, 45
वृजिना 1. 27; 3; 1१.
१६० _ वृजिनान् -- वृत ऽतर.
वृलिनान् 11. 34; 6.
वृजिनानां पा. 67, 9.
वृजिनानि 4 08-2; श्र. 12, षा, 522.
वृजिने ए. 46, 23.
वृज्यते 1. 85, 6.
वृज्यते +. 170, 4
वृज्याः 11. 22; 14; 1. 28, 47; *11. 84; 2.
वृज्या {1. 27; 5. | |
ृज्यामं पा. 45 71९
वृते ४11. 2, 4.
| वंति 04.12.
वृंनसे ४111. 76, 7.
षने १142 9. 11.01.70
वने 1. 2260; 7,
वृणक् प्. 18, 5.
शक् ४11. 18, 12; ४11. 97, 7.
वृणक्ि 1४.7.29; भ, =, 16.
वृणक्ति 1.46; 49.63 भ. मतः ५.
वृण ४11. 46; 3; 60,9; ४111.67, 8; 33.165, 2.
वृणि 1. 54 <.
वृणक्षि इ. 142 ‰.
वृणनन् ४111. 47; 5.
वृणते 1. 58, 7; 2. 17, 4.
वृणते ग 14.64 11.19.17; १ 1, 4; १
17: 8; +. 98; 9; 140; 2; 164 2.
वृणानः -. 108, 6 1. 94.72; +. 124; 4
वृणाना ४.48. 7. ` |
वृणानाः 1. 4 5; #. य, 4; णा. 18, 72;
+. 18, 6; 88, 4; 2124; 8.
वृणीतं 1. 39, †; ४.5० 7; भा. 5 44
वृणीते 1. 67, 7; 19. 2 $.
वृणीध्वं ४. 28, 6 | .
वृणीमहे [7ा. 2, 4; 7४.41, ४; 53, ठ; एणा
9,10.5. [66 180 2.
ए. 000. 4.1.114:
2.5; 13; 26, 21; 20; 22; 44; 20; 60, 3
83; +; 90.25; 12. 67; 4; 65 9; 28
12.211 .-94.30.21 1221
वृणीष्व >. 127; 8.
णीष्व 1४. 375 पव; एना. 99.
वो 1.710.721; 1.22, 5; 0," 22, 11
34, 9; ४1. 50, 12; * 1. 35) २0; 94; 8
वृणोति ए. 82, 6.
वृरवोतं 1. 5, 4.
वृते ४111. 45, 7.
वृशवते ४11. 32, 16.
शे ४. 21, 8,
वृत ९, 102, 22.
तः 1. 144; 3; (प्र, 14, 9; णा. 98,.4.
वृत्तः १1.4.6६. 421; 98, +.
वृतं [. 102, 4; भा. 4, 3.
वृतं 31.17.49
0
वृतं ऽयः 44...21-2;
वृत्यां ए. 48, 9.
वृता 1४, 37, 7,
वृताऽ्डुव ए. ए, 3.
वृताः [४, 42, 5.
वृतान् +#. 79, 5; 42 ¢.
वृतभ्यः +. 3०, 7.
वृतासं ४11. 33; 5
वृत्तो १ 345. 5; 4 65; ‰.
वृत्तं 1. 155; 6; 1४. 31, 4; ४. 36, 3.
वृत्नः 1. 32, ¢; 8; 80, 1५. ह
वृवऽखादः 111. 4; 2; 57; 9.
त्लादं +. 65) 10,
वथः 111. 66, 0; 78, 7.
वऽन्ना 1; 175, छ ५ व न
॥। चैः के
#
के ऋ
पवया ५ ०४
याकि
ष्पता ------- 1४. 42, 5; ए. 20 1; ~. 48, 8
99» 1.
वृत्त ऽतुरा ४7. 68, 2.
तमञ्तूय 1. 26, 2; प्र 15 2; 28, 6; 34,
5; ५5; णा. ;, 24; 29, 2 74: 9;
12; . 66. 8 104, 9.
वृत ऽवूयषु 1. 106, 2; 9. 38, 5; एना 37,
तऽपुला 1. 32, 9.
वृतं 1 23, 9; 3, 5; प; 33, 15; 56, 8
4.1 १...421; 0; 719; ५2; 52, ब; 19;
ध; ४. 38, 4; एवा. 45 5; प्रा. ॐ, 6 |
3>ॐ 6; भा. 7, 74; 13, 5; त, 9; 24 ।
8; 33, ग 4; ॐ, प 54 5 6 ण्म
66, 77; 82 7; 92; 24; 93, 4; 33; ह, ४
103; 70; 152 $ | |
वृत्त ऽहनं 1. 59, 6; 706, 0; 142, 12; . [श्र ५ ५
। 42 9; ४. 16, 74; 74, 77; 20, ५. ॥ १ ॑
वृ ऽहनां 111. 12 4; "7. 38, 2. ध
5, 4; 52 25 8; 56, 5; 67, 210 + 054; वृतऽहना #1. 60, 3; णा 93 1; 4 ५ |
80, 2-4; 10; 17; 13; 85; 9; 108.8; वृत्र ऽहनो 1. 108, $ | | ¦ |
पदा वव; 165 8; 74 2; 187, 7; 7.
21, 9; 28; 24; 2; 19, 4; 1. 39, 8
3ॐॐ 0; ॐ 6; 34, 5; 36, 8; 49, 3;
53 ग; 1४. 6; ¢; प, ग; 3; 8; 18, 7
वृतन् ऽम् ४ 35, 6; 4०, 7; ना. 3, प; # य
37; ०4 7; 97, 5; [द 2406; उ. 259.
वृतह् ऽतमः #१1. 46, 8; 92, 10; 95, 32; ए
9. ५१५ न | ५
वृतरहन््तमं 7. 78, 4; ए. 16, 48; प्रा. 74 = |
4; 89, ग; 93; 76. | हि
वृहन्ऽतमा ४7. 8, 9. | 9
वृठहन् ऽ तमा $. ५4; 7. | ४
वृह ऽभिः ४1. 60, 3.
वृत्व॑ञ्शा 1. 216, 8; 474; 3:. 87, 2; 97, 5; 100, ०
9100 11148120. = ५. ५
5 5; ऊय 7 0; 47; 2; 52 7; 54 ।
14; ४, 40, 4; १1.16, 79; 4, 6: "1, 4.
2 26 ; 4 77; 6; 46; 24, 2;. 24; 8; 32 ५.
45 4; ०5; 46, 18; 67, 15; 66. 5
1; 19 8; 41, 60; प्र. 30, 4; प्रा. 73, 2
09 1; 20, 2; 37; 5; 60 7; 68, 3; 72;
3; वा. 19, 5; 202; 27, 6; 48, 2; 58,
4; ४. 2 32; 36; 3, 9; 628; 7
23; 9 4; 72 26; 27, 22; 32; 26; 62;
8; 76, 3; 89, 3; 4; 99, 6; २०0, 12;
12. 6, 26; द. 28, 0; 42; 5; 89, व;
104, 10; वव, 6; 119, 2; 6; 8; 124,6
747, उ; 2 |
वृतस्य 1. 32, 10; 52 6; 10; 15; 54 29;
56, 6; 61, 6; 8० 5; ०; 7. ॐ, 4;
४, 42, 5; णा. 6, 6; 16.23; 96, 9;
चकै हे
--------- ~ ----- स~
(व , ` 406 क न 5.8: 9; 7० ग; 27, 3; 80 3; 9०, ग; 93, 2;
वृत्तऽहययाय ४. 29, 7; ए1. 18, 9; णा. 89, 5; 55.18. 20.96.19; 1 953; 98,.3;
क. 55, 9. ५.१. 35; 897; ग प; उ, 32; 49, 6;
वृत्रेऽरय 1. 52, 4; 169, 9. 11.101. 114 09 12;.14..0.4,.3;.111.0 133; 1;
7138, 5; 152 25. 1533 3; 140 2 1 व
वृता 1. 8, 2; [1 5० 4; ष. 77; 19; २,
94.41... 0.20 165 29.652; 1
४. 19; 4; 25555 85 2; ष्य
[, 109, 14 ८ 0
वृ्राऽ्डव >. 49, 6.
वृ्ाणा 1. 4, 8; 1. 49
9.29, 24. 5; 46. 4:42;
पा 9 10; प्प. 6, ४; क. 22) 19;
थ
णा. 7 ; 39
19, 3; 32,
च क
प | . वृतात् -- वृ.
५ ५4 = 22 ; ¶४. 24 20; 42, +; प्रा, 76, 34; 19, | ला, 1; "4.4;
13; ॐ 3; 44" 14; 56, 2; 57 5; 6 | वृद्धासु >. 97, 12.
6; 13, 9; ` प. ०92; 25. 3; 3० 2; ४
83; 9; 85; 3; ०2 4; (101 15; 3 ; 11
17, 8; 9; 29, 4; 49, 2; 9०, 5; 95, 9; 5: । ४; ५, ल ,
* | @.8 * ५ न ७ 12; 1 % 14; 2 9 32 । 1. 19. ~ त
100, 2; ५.1.010 1.42 4- 1
९. 69, 6 ; 80, 2; 84, 4. | 6, 4; 26; 9; 69, 77; 89, 77
वृतात् >. 124 8 | वृधतः ४1. 49, 77; एवा. 2, 29
व्यं 1. 67, 14; 1. 5०, ५; 3; पा. ॐ, 5; || वृते का. 06, गः पा. ०7
वृधः 1. 81;.2; ४. 34; 6; ४. 14 3; 20, 24;
34 5; 48, 2; ए. 3०4; 52, 25; पा,
चकै च
6 ; 9१11], 12, 22 0 01 1, 67, 22 । वृतां 1, 158, उ.
>. 716,.7. वृतो ए. 86, <.
पृते वा. 25; 6; उ, 5०, 9. ृध॑ [. 267, 4; 1. 26, 2.
वेण >. 114, $ | | वृधसानः 19. 3, 6; ४1. 12, 2.
वृषु. 75; पा. 26, 2; 467; पा, 34: 2. वृधसानासुं {1. 2 5.
वृत्वा 2. 90, 7. वृधसे ए. 64, ‰.
वृत्वी 1. 52, 6. | । वृध् इति वुधञ्सू प्र. 2, 3.
वक् पा. 43, 4; <. 8 वृधस्यं ए. 18, य.
वृषा 1. 58, 4; 69, 7; 88, 6; 9०, 2; 7130, 5; | वृधा. 75; 14.
140, 5; 168, 4; 7. 15, 3; 24, 9; प. वृधान ए]. 99, 1.
56, 4; प्रा. 12, 5; प्रा. 20, 10; र. | |
1 ० 0; 1 | वृधानः 1. 5, 6; 95, २; 96, 9; गा. 8, 6
| 5.710.020. 5; 22, 23:20, 7; 61 17; 46 1
| 1; 88, 5; ४ 9, 9; न 21 क 26 ; | र. 55 8; 87, 5; 99, 6.
६ 67, 24 | | वृधां >. 89, 76.
| वृथा ऽइव >. 92, 14. वृधाय पा. 85, 6.
| पृषाषाद् 1. 64: 4 | | वृधासः १, 1.2; 246, 2; 1५. 4 ~11
वृदधऽ यु 1. 10;..12; | † 91, 1;. १1183; 2; 99; 22; ग. 144, 2,
डः 1. 5 6; | 22, 3; ४, 60, :-3:; ` ण]. वृधि 1; 1 8; 10.4.20; षप 31 13;
44; 3. | 1. ` ४. 2, 2; भा. 23, 29; {. 4;, 3;
वृद्ध [1 1.14; -32;: 4; 8 19, 1: ए , 64; 3
| 0. 100. वृधीकः ४11. 78, 4. 0
1 वृऽमहाः प 02419 षि 24 41985; 99. 5
| ८ वृद्धयः 1. 20 22. ` ५ 97, 10; ग; 2, 24; पा, 8; 178, 5;
वृभ्व॑याः 11. 27, 24 | [1 3 8; 6 2०; 1४. 2 28; 232; प्र
| वृडञ्शंववः 111. 25 20. | 92 "35 4; 43; ग्ण ना. ०4१;
16१0... 1
` वृहञशवसः ए. 87, 6. 10; 63, 10; 77, 5; 97, गय; [द 44, 6
| ^), कि | छ
1
| वृडऽ्रवाः 1. 89, 6.
वृश्चः -- वुषऽनाभिना.
॥ [क 9. -------- ~ 1४. 7, 0.
वृष् {. 67, 10; 1, 29, 2.
वृश्चति [, 52; 22.
वृ्त्ऽवनं ए. 6, 7,
वृश्चत; +. 28, 8
वृष्रंति ए 2, 9
वृश्चसि 1. 740, 42 `
वृषणश्ेन॑ ४111. 39, 70.
वृषणा 1. 10, 3; 244; 7; 11. 26, 5; 6; 1.
४. 4 77; 14; 5, 23; 31; 32; 17;
67, 18; ह. 49, 2; 66, 6 7; 762; 12;
114, 3.
वृत् > 1173; 4; 8; 72; 5; 18; 25; 78, 7;
म " 95 9. 6; 719, 4; 141... 3; 787, 8; 189, 1;
वृश्वक {. 1971, 16. 184 2; [1.4 3; 1. 4, 4; ए. 62, 7;
वृश्चिकस्य 1. 191, 16.
वृष्यतां र. 87, 28,
वृषऽकमेन् 1. 63, 4; 159, 76.
वृषऽक्रतुः ए. 45, 16.
वृषक्रतो इति वृष॑ऽक्रतो ए. 36, &
षऽखादयः 7, 64, 10.
वृषऽगणाः | ®.९ 97, ५,
वृषऽ्च्युताः ड. 60, ¢. -
षऽनूतिः ४. 35; 3; ए. 33; 10.
वृषणः 1. 109, 3; 165, ग; ग, 2; 9, ग;
181, 2; 186, 5; 7. 26, 8; 171. 24, 75 :
| 54 20; 1४.१2, 2; 6,9; 47, 6 8.1
5; 47 6; ४1. 29, 2; 44 70; 20; णा.
27, 2; 75; प्या. 7, 9; 20 12; 22;
ग; 35 पः =. 5 2; 66, 6५; ¢; 92, 9;
9.4, 6.
पृषणः 1. 85 72; 7. 33, 15; एप. 35 6;
ष्णा 56, 18; 209; 27; 58, 6; 60, 10 ;
षा. 96, 4.
ता चू षणं 1, ९ 1 64 72; 82, 4; 85; 2; 107,
7; 218, 9; 127, 2; 129, 3; 137, 3;
757, 2; 177, 3; 9, 4; 7.26, 5; वा
५ ` „` 20.25; 29; 249; ४. व 26 24, 4:
व 8; ए 36, 5; 49 3; 75, ग. 9.79; 8
` 6; $. 205; 24 6; 4; 887:
ष्णा 164; 641; ५4,
1. 94; 6.5 62: 27; 9०, 2;. 97, 49:
68, 77; ए, 40, 4; 743; 3; 74; 3; 82, 2;
83, 9; 704, उ; णा. 22, 9 1210
20, 7; 2; 12; 35 75; इ. 39, 9.
वृषणो -र. 66, ¢. |
वृषणो 1. 108, 7-72; 776, 2; 1 10, 19; 155; 2;
157, 5; 158, 7; 180, 7; णा. 6०, 9; 61, 5.
वृषण्यति 1. 5, 6. |
वृषरय॑तीभ्यः 17, 19, 5.
[ष॑ए्ऽवती ए. 68, 18,
वृषण्ऽबेतं [. 100, 76,
वृषरवसु इति वृषण्ऽवसू 1. 777, 1.
वृषरवसू डं वृषश्ऽवसू 1. 47, 8; (ष. 5०, 10 ;
४, 74 1; 75, 4; 9; शा. 5, 24; 4;
36; 2 8; 9; 26, ग; 4; 5; 5; 95,
10; 85; 7; उ. 93, 5. |
वृषण्ऽवान् 1. 222, 3; 775; 5; 282, ग,
वृषत्ऽ अनयः पा. 20, 9.
वृषऽत्वनां ४. 15, २. (९
वृषऽवा 1. 54; 2. | | का
वृषऽ्वेभिः 1 प्र, 2...
वष॑ऽभूतस्य ("10111
वृषन् 1. 259, 6; ए. 4०, ग; प्रा. ॐ,
15. 4०, 6; 54; इ. 89 9.
वृषन् 1. ¢
39 3; 5; 45 4; 5, 2; शा. 9, 6;
बच
व
वृषऽपानेषु 1. 57, 19
पे वृषनाम-- वृषञ्युधः.
वृषनामं 12. 97, 54.
वृषन्ऽत्तमः 1. 7100, 2; पा. 5, 4.
वृष॑न्ऽतमं 1. 10, 10.
षन्ऽतमस्य 1. 10, 10; प्र, 35; 3.
पधि 1४. 22, %
षड्पल्नीः प. 15, 6.
षऽ्पवै 111. 56, 3.
षऽपाणयः ४1. 25; ^.
वृषऽपानांसः 1. 139, 6,
न
वृषंऽप्रभमै प, 32,
वृष॑श्प्रया्र पि, 29 9.
वृषऽष्सवः ४711, 20, ;.
षऽ्ष्छना प्रा. 20, 10.
वृषभे 1. 764, 7; 771, 5; 77; 3; 1. 3.11;
१9; 0.6.13 01.00
15, 3; 6; 3० 3; कण; 35 3; 465; णा.
3०» 4; 445 42; १ 2, 4; 17;
45 22; &8 ; 60, 24; 96, 18 ; [. 86,
38 ; -. 38, 5; 112, १ ..160..3: |
वृषनऽ्त्राय 11. 6. 5.
षमः 1. 31, 5; 33; 10; 54 2; 3; ‰#9 2;
16 8 ;. 128... 4 ; 140; 20; 2447; 7; 182,
65.290, 8; 7, ++ 3; 12 12 97; 4;
23; 77; 33, 6; [ा. ग<; 4; 3० 9; 57, 78;
30, 5.38, 5; 409; 45, ए. 50, 1; 554;
5034. ४, 2397८; 54; 58.53; 9.2, 8
१, 12; 18, 4; 3० ग्ण; 32 6; 4०4; 45
13; 58 6; 83; 7; श. 17 2; 10, 9;
०२2; 43 44, 4,5.72;
वा. 54; 97; 6, 3; 49 ण; 55 7;
95 3; 707) 7; 6; धव. 5, 3; 6० 28;
64 2; 93 7; 26 96 4; {र 70; 7;
72 7; 76, 5; 85, 9; 96, 7; 108, 2;
170, 9; 4.41; - 82428. 3
75; 3; 86; 15; 92, 716; 102, 0.4.103; 7:
द
2-222-03. ८.
9.91 49.4८1; ~ 222 4.0;
44, 3; 48, 70; 102
वृष्ऽभरान् 2. 63, 3.
वृषभस्य [. 59, 6 ; 47, 2; 166, +; [. 16, 6;
1.20,..42;0 40.4.44.
9110... 104. 4.4
3; 102 9.
वृषभस्यऽड्व 1. 94; 10.
वृषभा +, 09.3.41. 4.85:9
वृषा 1.40. ।
वृषनाऽद्व 1४. 47, 5; 9. 46, 4
वृषभाः >. 94, 2. .
वृषभाणौँ ए. 5, ग. .
वृषभाणि 1. 16, 6.
षभान् >. 28, 3.
वृषभाय 1. 57, 15; 203; 6 ; 11. 16, 4; 5"; 33,
9{.1.20,.201 १.10 2 "1.
20; +. 98, 2; इ. 20, 20; 184, 4,
वृषभासः 1. 177, 2; 1. 16, 5; ४. 69, 2.
वृषऽभि; [. 100, 4; 743; 2; 9 2; रा.
422 2; ष, 40, ठ; प, 5, 4; 44 29;
४. 09, 7; [2 34 3; 97, 28; ॐ. 6,
८
वृषभेण 1. 34; 13; [. 76, 4; उ. ५५, 11.
वृषऽभ्यां [. 104, 5; ए. 36,
तेष१ऽमनः 1. 63; 4; 7४. 22; 6.
षञ्मनाः 1. 167, 7.
वृषंऽमन्यवः 1. 151,
वुषय ~र, 98, 7. व
वृषञयतें 12. 71, 3; 108, 2; इ. ५५, 9
वृष्य 1. 45-24-44; ८ ०
वृषऽ्यं [[1.;,9. ` 4 |
षऽयमांणः 1, ॐ, 3; 17. 52, 5
न पो
पंऽ्स्यः ४. 36, 5. | |
वृपऽस्वासः 1. 177, 2; ए. 44, 1 9
वृपऽद्वाय +. 146, 2
वृपऽरस्मयः ए. 44, 9.
वृषलः 2. 34; 71.
वृषं ऽद्रतः {., 00.11; 6
प॑ंऽव्रात्तासः 1. 85,
पऽशिप्रस्यं ५1. 99, 4.
वृपऽशुं 19४. 36, 8.
वृपऽ्ष्वासंः ‰. 42, 8. ॥ ॥
; 70; 54 2; 55, 4>;
50, 2; 87, 4; 97, 2; 109 ए; 4; 1०4
0; 28 0; 14 2; 149; 2; 713; 2;
74.24.94; 176, 2; 2; 140; 3; 2६ 8
9 १.५ 9 १8, 2; 342 2; ॐ 24;
4.4.81 0.11; 271 4.40 ४.
१.4.76 10. 4-2-20 2.9.
35; 4; 35, 4; 36, 54; 4० 2; 3; 44, 3;
5; भा. 37; "6, ठ; 24 7; 44, 213;
493; 6.916.450; 08, 4;
भ. 4.8; 6, 74; 49; 25; 373; 3
20. 10.41.12.
642 9; 93, 7; 20; 1. 2 7; 2; 6; 5,
; 7; 9; 0.71; 0, 3; 75 4; 19, 3; 25
3; 27, 3; 6; 28; 4; ॐ 7; 5; 38, 7;
40, 2; 67, 28; 62:72; 63, 29; 64
4.3; 65 4; 0; 7० 5; 9; 7 9;
74 3; 80, 2; 3; 87, 2; 82, 7; 86, 3;
" 04.124. 1-37-44; 40, 4; 015.
92. 4; 97.24.40 361, 16:04 22;
368, 224... 26.34.425. -8
40, 0-62-8 ;.. 86;-6“; 92, 3; 04 10
¦ 8; 76, 4; 52, 2;
202; 22; 752;
वृषाकपिः 2. 86, 7; 3; 28. |
वृषाकपिं र. 86, 4; 8. 4
वृषाकपे +. 86, 20-22. ।
५७७४ तौ = क
वृषाकपेः 9. 86, 2; 72. | वकि
वृषाणं ड. 44, 3 ; श. 89, 9. | । ६३. ९
वृषेथां 1. 1०8, 3; ए. 68, 7. 0
वृषो इतिं [7ा. 2, 14; प्या. 33, 70
वृष्टयः 11. 34, 2; प्र. 53; 2; 6; 20; 84, 5;
पा. 101.4 १1112... 10-2 . “४
22 2; 47; 7; 62, 28 ; -&, 75; 3: |
धृः 1. . 38, 8; 2152, 4; ४, 63; 7; 85, 3; ॥
` 73; 2; 2, 89, 1; ‡. 33; 4; 457. ५.
वृष्टिः ऽइव पा. 94, 7. | | ध ४, ।
वृ्टिऽद्यावः 1. 106, 9. | ५ त.
वृष्टिऽद्यवा ४. 68, 5. ५ (ड
वृशिडनिः 1. 264 52; ४१. 59, 5; पना. 56, 1 व
४1. 6, 16. व
त 1.30 0. 10-74-11... 0
1 26; 2; ४. &5 5; 58, 3; 62; 3; 64; 4 ५
2; 82; 6; *11. 42, 6: 64, 2; "वा. 72, न
6; 1. 88; 39; 2; 49 2; 3; 65 3;
24.; 69, 9 06; 14; 97; 107; 100, 3; 108, | ॥ नि |
70; >. 98, 3; 79. | ५
वृ्टिऽमंत 2. 98, 8. | ४
वृष्टिमान् ऽइव पा]. 6, 7; 12. 2, 9. न ॥
वृषस्व 2. 98, ५. 4
वृ्िऽहव्य॑स्य क. 112; .9. | | 4 ५
ृष्टीऽद्व १९.
वटः [द. 74, 3. ५ न
8
वृष्ट्या ४. 62: 4; पका. दव, 18 9
४
वृहत "111. 60, 21.
83, 6; ए. 6, 5.8, 2; 68, 77; प्रा, >,
3; 55; षा. 4 7; 7 33; 2 9; 20;
33; 18 2 63; 9; 0.4 10; 9 20; 1; 04.24
9.1 44; 6; 9५, 85 7102, 9.
वृष्णां 1. 84, 70; इ. 104, 2. |
वृष्णां "111. 46, 29; 84, 1.
वृषं ४. 55; 4; पना. 3, 10; ¢, 23.
वृष्णिः 1. 10, 2 |
वृ्िनां ए. 6, 6
वृष्णे 1. 64, 7; 100, वश; 702, 6; 154; 3;
10911111 1.1 11. 1
20; ‰ 9; ॐ 2; 35, 7; 5, 3; 1४. 7
12; 16, 20; 50, 6; श्र, 7, 12; 22; 1;
3 5; भा. 4, 3; 44 20-9; प्या. 19,
0; ४. 26, 9; 34, 5; 75; 6; 12, 84,
4; 97; 3; 109, 20; क. 77, ए; 98, य;
164; 3; 15; 3.
वृष्ण्यं [ 54, 8; 97, 16; 105, 2; ए. 8, 23:
46, 8; गवा. 3, 8; 6, 37; 41.16.12;
19, 7; 64; 2; >. 115; 32.
वृष्टयंऽवतः ए. 85, 2. |
वृष्णयऽवान् ए. 22, 7. इ
वृष्यां 1. ~, ¢; 53; -6 : 102, 4; णा. 19, 0:
ष्वा. 7०, 6; ङ, 55, 7.
वृष्ण्यानि 1. 97, 18; 108, 5; ष. 19, 210; 21,
4; ४1. 25; 3; 363; 2. 44; 2; 773; 8.
वृष्य्येन +. 44. 7.
वृष्प्येभिः 1. 100, 7; 7. 46, 2
वृह +. 45, 9.. ५
वृह [[. 3०, ए; ए]. 44, ग्य; णा. 45,
+. 70, 8
वृहः ४1. 48, 77.
वृहत् 1. 130, 9
भः
वृहतं ण. 74; 2.
न
वृष्णा -- वेदः.
1
वृहेव ह. 10, 7.
वेः 1. 63; 2; ¢, 2; 130, 3; 243, 7;
9.3. 8 5; 6; 54 65; {४.7 7
8; 4०, 3; ४1. 35;
98.2.96.
वेः [४. 3, 15.
वेःऽडईव 1. 116, 15.
वेणन् 111. 55, 5.
वेत् 2. 55 9.
वेतसः 1४. 58, 5.
वेतसवे 1. 26, 4.
वेतसुं ए. 20, 8.
वेतसून् २. 49, 4"
वेति 1. 35 9; 746; 9. 34 4; 447; ए.
1.1.11. 1 ^ -1.
+ 2, 2.00 2
वेति 1,.4१, © ; 1868, 8 `" 61.78; 4.4:
8; ¢; 23, 4; 45; 2.
वेतु ४. 14; 5.
वेतु 7. ¢, 4; ए. 77, 4; प्या. 1
6 104 1.
त्य ए. 5, 10; णा. 16, 3; णा.
वेत्थ ¬. 15; 14.
11
हं 1. 25, 7; 8 9 उ इ; 164, 2; 2.
39; ^ 24; 28; 1, 4.1०. 9. 8.2
१६104. 4381231.
ध, 415; 6,४2.10, 65; 25
62, 3 ; 1429, ‡; 769, 2; 3.
स
क
[क
न्वे
ड
चेः ऋ
0.21;
४।
214 } ~
वेद् 1. 20, 9; 139, 7; 145, ग; 164, 32;
170. 2851. 01, 3 84 64
5; 55 0; [8 3; 933; ४.5 णः
67 14; ए. 15 13; णा. 29, 6; 33;
7; ॐ9> 6; 46, 72; 1. 58, 2; 74 7;
0.6 शा, 2.5; 20, 5 96 3;
279 3; 75 10; 88, 8; 7; 79, 6; 108,
03 3.64. 0.49; 4 2093..6;. 4;
१909. 4
५
५५
न
वेदयामसि (४. 36, 2; 4; द
° 57; 7.
५५ { ५
वदसः 1. 77, 6.
बेदिऽसद् 1. 140, 7
वटीं ए. 7, 10.
बेदी इतिं 17. 3, 4.
वेदीयान् 77. 98, 7.
वेदेन ए. 19, 5.
0. वेद्यः ४1. 4, 2; पा. 29,
१ वेयं [7. 2, 5; ए. 84, 2.
वेद्या ४1. 13, 4.
वेद्याना इ. 22, 14. ।
वेद्याभिः 1. 71, ग; 1. 56, 2; एा.५7; णा
2४, 53 &. 77, 8.
वेद्याय ४. 15, 7. ।
वेधः 1. 73, 20; 169, 7; [प्र 3.335.766; 42
कः प, 26.38; 24.41 |
| वेधःऽतम 1. {5 ।
य
वेधसा 1. 787, ¢. | ४ 1
वेधसां 1. 129, 2. | ७ व
वेधसे 1. 64" 7; 156, 2; 11. 21, 2; 171, २८ | “
5; ४. 5; ग; प्रा. 76, 22; एना 46, 7 |
४. 45; 77; 7103; 7; ऋ. 97, 14; ५
144, 1. ध ५५६
वेधस्या 12. 82, 2, ` | | 5
वेधाः 1. 6०» 9; 65, 5; 69, 9; १९९,.4 16; श नि
5; [1 74 7; 594; प्र. 62; ण् क.
44 8; भवाव. 6० 3; कद. गा, ग्म; क. | |
70, 7; 61; 76 ; 86, 19. |
वेधां [र. 102, 4. न .
1. 82; 5: 739, 710; णा. 3, 18 62, ध
222. 1.2; 6;
वेनः 1. 435, 9; ४. ॐ, 2; 36, 4; ४1. 44; 10, 1
वेन॑तः 1. 86, 8; [ङ. 90, 22,
वेनं ४. 75; . 4
वेन॑ति ए. 60, 8 क छा |
वेनति 2. 135, 7. "भ 7
वेन॑न् २, 67, 28. | न
वेनतः >. 125, 6.
वेनेता 1. 25, 6.
वेनेति र. 64, 2. |
वेनं 13. 2, 5. क 1
वेनस्य 1. 67, 34. 1 |
वेनाः 1. 56, 2; णा. 1०0, $; 1, 64 24. 1
733 2; 65 70; क. 64, 2, ` ५
वेनात् १ 3.१ 58, १. ४ ६ । ॥ ५.१
वनानां र. 85, 7,
वेनां 1. 34: 2.
वेनीः ए. 41, 3.
>. 93; 74.
वेन्यः ४1. 44, 8
॥
छ
(व भट ` वेन्यस्य -- वैश्वानरः.
1.4... वेन्यस्य 11. 24, 10 ; र. 48, 5. वेषि | 8 1
1 षेष॑ः ह. 46, 8.
वेपि 2. 71, 3; १, 1, 6.
वेपते ए. 36, 5.
वेपय॑तं ए. 19, 2.
वेपयति 1. 39, 5; 1. 26, 4; पना. 9;
| वेप॑सा 1. 80, 24; ए. 77, 2.
[ वेपिं्ठः ए]. 77, 5.
५ 9 वेपी ए. 225. 5.
1 9 वेपेते इतति 1. 80, 71,
| | वेमि ए. 4, 102
न वेमि ए. 4, प. | | ।
वेरिति वेः 1. 2, 9; 96, 6; 764, 7; 11]. 0.
| 19.48; 20, 4; ए. 48, 0; श 9.0.
ध षेषिजानः 1४. 26, 5; [द 74, 2.
वेविजे इति 1. 140, 4‹
` वेविज्यते 1. 8०, 74.
वेविदानः ए. 19, <.
वेविदानाः 1. 72, 4; गा. 4; 4.
7 वेविदाम ए. 24, 6
५ . बेविषत् 1. 2, 10; एवा. 1 9.11; 01.40;
,१,५.०..100
वेविषतः ए. 27, 5.
| वेषिंषाणाः ए]. 18, 15.
| ` वेवीयते +. 33, 2.
॥ हि त» ।
वेवेति 177. 55, 9; 1४. 58, 6.
वेशं 9.85; श, 5
वेशय (व (
वेशस्य 1४. 3; 13
वेशीत् 604
वेश्म २. 104, ©. `
वेश्मं ऽङ्व र. 146, $ ध 1
वेश्यं 1१. 26, 5. | वश्वानर 1. 59, 7; 2; 5; 98, 5; 1. 5, 10;
वेश्या ४. | 61, 14; +. 1 8, 0 4 6 27; 7; 2; 00 8; ण्न 7; ॐ-5; 8, 6
। 1 7; शा 9.4.41: 8 0:12}:
1 वेश्वानरः 1. 59, ; 2; 98, 7;
वेषि ए. 71, 4.
वै 1. 105, 2; 1 02.44. 11.25..6; 40:
73; 409; 4 7; 739; प. 26
2; 4; 85; 2; 1०4 23; शा. 23, 13; '
58, 2; 62, 12;
10 12; 27, 5;
1100 72, वफ 7; 15726; 12 3; 140,
5; 164; 2.
वेकणैयोः ४. 18, 77.
वेतरणः ^ 61.80.
वेतसेनं 2. 95, 4; 5.
वेद॑त्ऽ सश्िः ४. 67, 70, | ।
वेद्धिनायं 1४. 26, 13; प्र, 29, 72.
वैन्यः ए]. 9, 70.
भ ऽवेसंः +. 46,
व्यश्च ४111. 24, 24
वेयश्च 11. 2 24
वेयश्वस्यं 111. 26, 77
वेरःऽ्देये ए. 61, 8.
वैरिणाः 1. 197, $.
वेरूपेः ९. 14; 5
वेत्टऽस्यानके 7. 153, 5.
वैल ऽस्यानं 1. 133, 1.
वेवखतः 12. 113, 8.
वेवखतं 2, 742.2; 58, 1. 9
वेवस्वेतात् 2. 60, 70.
वैवस्तते >. 164, 2.
वेशं ए. 39 2...
वेश्यः 00, 12.
॥
अ
५ ५
< , 4 $ व्यत्त
ष्पा वा त्----- 1. 35; 261; 2; षा.)
> 1; 2;
8 4; भ्रा. 5, 5; ९. 61, 16; -₹. 88,
12-14.
वेश्वानरस्य 1. 98, 7; 171]. 3 17; न्. १
वेश्चानणः ए]. 5०, ५.
वैश्वानरय 1. 59, 4; 7. 2, 2:
४.8, 7; एना 13;
वैश्वानरे 1 59; | ।
वोच 1. 132, 7; ण्, ६9, 1. |
वोचं; ए. 2, 71,
3; ४1. 33, 7; 73; 2; णा, 84, 5
ॐ 15 || वोम 1. 43, 2; 25, 9; शा. ०85
वोचेय 1. 242, 5; प्र. 2, 29. | |
वोचः [. 2, 4; 1. 5 12; णा. 18, 3; 22
4; ४. 1, 22; 62, 2; 86 4; ४7. 5
2; 28, 5
वोच॑त् 1. 5 3.
वोचत् 1. (17, 22; 164, 18; 7 54; 5; प्र
5 3; ४1. 15, 10; एना ५1.42. 28.
6; 14, 8; 88, 0; 714, 7; 139; 6.
वोचत [1]. 27. 2 27, 6; शा. 20, 26; 24,
96; ४. 74; 3; 56, 6; ण, 6८ 12.
%० 40 10; 30 3; 32, 7; 44, 25; 48,
14; 52 9; 07, 6; द. 4०, गा; 09.10
। 14; 9 > 128, 4.
वोचत ४1]. 8
भैण = न कन
वोचतात् १.6176,
वोचति 1. 105, 4; 125, 3; इ, 1 1, 2; 16, 11.
वोचतु 7171. 54, 9.
~ नै
वोचन् {¶..4,14; इ. 69, 9. |
वोचत ए. 52, 16. | “<
96, 15; 7112, 4.
वोढ्टटा प. 69, 7; त,
वोढ्ट्हां 111. 52, 29.
वोव्दहुः 1. 144; 3. ।
व्यचः 1, 5०, 3; 5० 14; उ. 92, ५.
व्यचंसतैः 11. 3, 5; र, 11 6.5;
व्यचस्तता ४1. 256; रई. 1 25; ‰.
व्यचिद्ठं 1]. 10, 4.
व्यचि ए. 66, 6.
व्यत 12. 69, 5; 7०, 2 ; 86, 32.
व्यतीन् 7. 255, 6; ए, 69. 13.
व्यतीनां 1४. 32, 1 4 1;
चयते ए. 37, 4; 4 7; ए. 54, 3.
व्ययते -. 104; 8.
कके `", ०५ क
व्ययमानां 11. 1 2. (0
वषय प थ
[ कि. 8.)
बोचं 1. 32 ब; 59, 6; 109, 3; 36, 6; 154
1; 164> 26; [. ग इ; 2, 2; . {171
20; ए 31, 6; 47, 14; 85; 5; #ा. 8, 7;
52 14; #1. 98, 5; पा. ©, 15; ङ
69, 5; 93, 14; 772, 8.
५४९
बोढ्टदां ए. 64, 3; पा 2, 35; [क. 87, 2;
व्यता 1. 7122, 4.
व्यति ५. 23; 3.
व्यति 1165,
4 व्यु 11. 17, 15; ४. 46, 8; ४. 9; 6,
५ यहु. 8,7; प्.46,8; ए. 128; 5;
` च्पयति ए. 87 7.
व्यय 111. 53, 19; -. 26, ¢.
व्पयेयं 11. 29, 6.
व्पश्चऽवत् ४५111. 23; 23; 24 22 26, 9; 1
65: 7
` व्योमऽ सत् 1१. 4० 5.
न्रजः 111. 30, 70.
व्रजनं प. ;, 2.
तर्नः 111. 56;
` ब्रज 1. 10, 7; 92 4; 130 3; 134; 156
| 4; 1. 38, 8; 1. 1, ग; 16, 6; 2 8
ए, 33; 70; 45 6; पा. 45, 24; .66, 8
| षा. 6, 25; 446; 3, 5; 7. 77; 4;
छि 04; ए; 102; 8; 108, 6; „4; 2: "25
>; 26,3; 98, ¢; 4०8; 97, 0; 99,
7; 107, 8. 1
त्रनस्यं 1. 151, 3; [१.5 2; ए. 10, 3; 62, 77.
' त्रना ए. 67.
व्रजा ऽइव ४. 64; 1.
ब्रनान् 1४. 37, 73; ४1. 73; 3.
व्रनिनीं ॥॥ 453 1. |
` ` : ज्जे 1. 86, 3; १.345; 11, 20; 1; 32; 16;
"प, 4, 6 469; 3; 126.
1 व्रतचारिणः ए. 104, 7.
ब्रततैःऽइव ए. 4० 6
व्रतऽ्नी ॐ. 65 6, |
त्रतऽ्पाः 1. 83, 5; [1.4 7; ४. 2 8 ; ण.
8.2; भ. व.
व्रतपां 1. 37; 10; >+. 617 ५
य 1 44 3,21.938; 16, 4; 148,
ध व 4 1 136, 5. 4 1 66.14; 8, 3;
परप | व्यता -- च्रातः
५; ऋ. 1205; 559; 57 55 २ 2;
166, 4.
व्रतस्य ध. 66, 6.
त्रता 1, 36, 5; 629 70; 65 2; 69, 4; 70,
उ ; 9०, 2; 11. 5; 4; 24; 8; 339; त.
6; 5; ¢ 7; 55 ए; 56, 7; 60, 0; 4.48;
7; 67, 3; ए. 159; णा. 25 17; 3
28 ; 47, 10; 67, 13; 94 2; 12. 35 4;
स, 65; 77; 66, 9; 17, 4.
व्रताऽईव ४. 66, 2.
तानिं 1. 22, 6; 19; 24; 10; 84 22; 97;
3; 92 12; 2144, 2; 182; 3; ल. ५8, 8
1. 39; 3; 8; 556; प्र. 53, 4; भ.
69, 4; १. 7; 5; 8.2; १.6, 2; 3,
ग; 47, 3; 75 3; 76, 5; 859; 87; 7;
ए. 25, 16; 42, 2; 486, 9; 102 7; 2.
54 3; 70, 43 712, ए; क. 2 4; 7०5;
2.0; 3
व्रताय 1. 22, 6; 111. 3० 4.
त्रे 1. 24, 15; ॐ 7; 12; 8353; गा, 3;
11, 28, 24 28.42; ..38,.6; ४. 46, 9;
83; 5°; भा. 54 9; 12. 95; 35; 6; 86
37; 102, 5; >, 36, 13; 57 6; 6० 4;
64; 5
व्रतेन 1. 163, 3; 11. 59 2; ए. 7५2; द,
13, 3.
ब्रतेभिः ए. 35, 9.
व्रतेषु 11. 54 5; 13.67, 24; 69, ठ; २. 1142.
तरतेः 9 52 5; 91, 24.23; ग्व. 2, 9.
बर्याः पा. 48, 8.
त्रन् 1४. 5; 8.
त्रन् 1४. 2, 16; 556; #. 29, 12.
्रदिन॑ः 1. 54 4; 5. त
त्रय॑ः 1, 23, 16.
त्राः 1. 124; 8; 226; 5; श. 7, 6; ग. 2,
0.23 128 0 ^.
व्राज्ऽप्तिं 7. 179, 2. 1 ४ (1 |
ॐ बाते 2. 57, 5.
| व्रात॑ऽब्रातं 11. 26, 6
त्रातऽसहाः ४1. 75,
व्रातस्य २. 34 72. `
व्राताः [ङ. 14, 2,
त्रातासः 1. 716, 8. |
व्राधतः 1. 100, 9; 122; 10 6 2.3; ..09;
10; 99; 9.
न्राधत ४.6,
॥ क 8. ।
व्राधतः {- 135, 9; ‡. 89, 15.
त्रातं [प्र 32, 3; क, 66, 11.
व्राधन्ऽतमः 1. 150, $.
त्रां 1. 127, 2.
त्रिः 1. 144) 5.
व
५ ।
~
न्न
५
शंसं 71. 49, 7; णा. 37, 2; 67, 4.
शंस 1. 37, 5; 1१. 5 3; ए. 52, 8.
जलः 1. 18,.3; 94:8; 778,-4; 7. 26, 7;
344 6; ४. 24; 2; ए. 35; ५; ङ. 37, 1;
6.4; 109,
शेसंत् ४1. 23, 5. `
शतत 1. 12; ४1. 2, 2 32.37 इ 30 य.
शंसति ~. 44 8. |
शंसते ४५. 42, †; 91. 62, 5.
शंसन् 1४. 51, ¢; 1. 97; 2; उ. 67, 7;
15, 19.
शंसतः 17. 4, 7; ए. 49, 4; इ. 67, 2.
{1.1 24; 20; 3
शेसेति ४. 67, 10. `
0 शंसति 1. 38; ४. 77; ग; प्ल. 199
ङंसंतीं र. 85, 9. |
कंसं 1. 27, 25; 33, 7; 142; 5; 47, 6; प्य;
166, 15; 182, 4; 71. 20, 7; 376; 1.
18, 2; ष. 6, व; प्र. 49; 463; णात.
शक ऽपूते 2. 232, <
शकऽमय 1. 164; 43 र
34 12; 56, 9; प्रा. 39, 9; उ
प५१ ५
शंससि 1. 44; 2. |
शंसां 1. 185, 9; [प्. 4, 74. - | ध
शंसाः णा 29... "11.59, 3; ह. 08, 3 ` =
शंसात् 1. 128, 5; 166, 8 १ श. |
शंसति १.6, 77; 16, 2, - | [
शंसामः 1.6०, 5. व | ॥
शंसामि प्र. 32 22; ङ. 124, 3.
शंसामि ४1. 1०0, 5; णा. 27, 15. ५.६ 1
हणवा. '
शंसि 1. 4 8; 2. 148, ध
शंसिषः 1. 84, 19. न र |
शंसिषं ४1, 48, 16; 2. 44; 5.
शंसिषं ४1. 48, ग; प्रा. 45, 28; उ. 967. ह ¢ +
शंस 171. 16, 4. क १)
शंसेन ए. 73, 2. |
शंसेः 1. 1/4; 04 10 ४ च 0.7; |
शंस्ता 1. 162, 5. | ॑ १
शंस्य 1. 20, 5; 116, प; 77, 63 1. 34 71 क
४. 39, 5; *1. 26, 3; "11. 198; णा. अ
18, 27; 00, 11; 83,4; =<. 49;.2 ; 48..9. ^ |
शंस्या 1. 8, 719; णा. 63, 2. |
शस्यानां 1. 17, 5.
शकः ४111. 80, 3.
जकः 11. 20, 9.
शकटीः ऽइव ~. 146, 3.
श्वैत् ए. 9,4 = |
शकत् 1. 1०, 6; प्या. 32, 12; 2. 43, 5.
शकुनः 1 ए. 26, 6 ; [द , 86, 73; 96, 19; 38;
+. 76, 6; 165; 2. छ
शकुनं 1. 85, 1; इ 243, 6. ` 1
शनं ५. 68,7. =
शकृ नस्य ऽइव +. 106, 3
श॒कुनाःऽङव [> . 707, 20.
श॒कुनानौ 15. 7729 2.
शकुनिका 1. 797, ग.
श कं 1. 42, 3 `
शकृत् 1. 167, 70. ` । |
शकेम 1. 73, 10; 94 3; 77. 5 ग; 7. 27, 3.
शक्तं ए. 68, 3; ए. 60, 5; 66, 8; ए. 40, 5.
शकिः 1. 82, 3; 1. ५2, 8; ए. 20, 70.
शक्तिऽभिः इ. 25, 5; 88; 10.
शक्किं इ. 134, 6.
शक्ति 71. 39, 7; 1. 5, 3; 1. 43, 3.
शक्िऽवः प. 31, 6.
शक्तिऽर्वतः ए. 75, 9.
शक्ती 1. 37, 18.
शक्ती ४11. 68, 8. `
शक्तीः {. 109, 5; [1.37 14.
शक्रवाम 1. 27, 23; ‡. 2 3.
शकं 11. 38, 4.
शक्मना 1. 24» 3; 629 16 ; 110, 3.
शक्यऽभिः 12. 7, 8.
शक्यां +. 29, 3.
शक्र 1. 62 4; 2०4; 8; 777, 4; 1. 35" 16;
ॐ, गण; ए. 35 5; प्रा. ०० 9; णा.
92, ग; 26; 97, 74; -. 38; 2; 423;
॥
134; ३.
शत्रः 1. 2०, 5; 6; 7. 76, 6; ए. 34, 3; 4
(1. 104, 26; 2; भा. 7, 19; 373 2;
32, 12; 66, 3; 59, 4; 78; 5; 93; 18
+. 43; 6; 1649 16.
श॒क्रं ४1. 4, 77; णना. 52, 7 ; +. 767; -2.
कका ष 115. |
शक्रा 11. 39, 3; क. 24; 4
क्राः 1. 166, 7.
शक्रायं 1. 54, 2; पणा. 2, 23; 97, 7
# कै ॐ
९७ ॥॥
9
| कद्रौष प्रा 394; ङ, व. ` ४ । ॥
शग्धि 1. 42, 9; 1. 26, 6; ४. 5 ; पा
1 244
श॒ग्मः ४1, 44; 2"
शग्मं ४1. 75: 8. ।
श॒ग्मयां पा. 54, 3.
श॒ग्मा ४11. ‰ 27.
श॒ग्मां ४. 43; 77.
शग्मासः 11. 60, 5; 97;
शग्मैः 0190144 ^.
शरम्येन 4.9021.
शं कव॑; 1. 164 48.
शचिष्ठ ५9१1. 66, 14.
सचिष्ठः 1४. 20, 9.
शचिष्ठया 1४. 37, 1.
शचा 1४. 43; 3.
शचीनां 1. 10, 4; ४. 43, 3; गवा. 32 15.
शचीनां +. 24; 2.
शची ऽपि; 1४. 3०, 77.
शची ४ ऽपतिं 1. 206, 6; भा. 75, 73.
श्ञचीपती इतिं शची ऽपती ४{1. 67, 5.
शचींऽपते १४111. 714; 2; द. 24, 2.
ङचीऽपते 19. 57, 7; पा. 45; 9; ष्वा. 3751
` 61, 5; 62 8.
शचीभिः 1. 3०, 15; 62 10; 21029 2; 100, 7
12... 210 42; 21 11/.2..
7178, 6; 139; 53 7164, 44; आ. 6५, 2
ए. 3० 6; 44 2; ¶1. 44 9; 4 24
47, 15; ४11. 6, 4; 67, 5; 68, 8; 69,
02, 2; भ. 2 75; 32; 16, 7; 53 65
57 ठ; 4; इ. 22; 14; 39, 13; 59
7371, 5; 134 3; 139, 3; "57, 5
21
॥/
>
क
कः ऊ
कः ऊ क ज
कैः
शचीऽवः 1. 29, 2; 53, 3; पा. 2, 28; 658,
2; >. 74; 5.
जञचीऽवः व 62, 12; 1. 2 4; 53 2; ४
314 4.4 ए 2.5; 1. 809; द 49;
111
शचीं ऽवान् 1. 22, 2; ए 2; 39
श्यां {17. 6०, 6 : एर 20, 9; 35; 5; 56, 3;
४. 7, 6; 96, 6; 52, 4; 44 24; णा
96 713; 70; २, 67, 3; 104; 3.
शया &. 67, 1.
शंडिकानां 11. 3०, 8. |
शतऽ्चनौकाः ए], -० ५.
श॒ऽसर्तिां 1. 116, 5.
शतऽअवेसं ४11. 100, 3 `: [न ॥
श॒तऽसंवयं ए. 67, 5,
शाऽख॑ध्रिं ए. 70, 10.
शतञ्च ४111. 4, 19; र. 62, 8.
श॒तऽखात्मा 1. 149, 3; उ. 35,
श॒तऽश्चत्मानं 1. 98, 4.
श॒तऽ्खयुषं प्रा. 2, 5.
श॒तऽ्युषा इ. 161, 3; 4.
शतत ऽकंतिः ए. 68, 3.
शतञ्छपिं ४1. 63, 5.
श॒तऽक्रतुः 1. 22, 4 ; 1४. 30, 16 ; भा. 1, 77;
329 17; 77, 7; 89, 3; 95 32.
शतक्रतुं 1. 30, 7; 5, 2; आ. 5, 2; पा
529 0; 5ॐ 2; 67, 10; 92, 7; 99, $.
शतक्रतू इति शतऽक्रत् 1. 112, 22 । |
शतक्रत इति शतंऽक्रतो ए. 41, 5; ए, 46, 5.
शतक्रतो इतिं शतऽक्रतो 1.4, 8; 9; ॐ 8; 10, 4
8 |
16, 9; 5०, 6; 15; 54 6; 829 5; 1९5;
ध. 48; वः 32.21 346; 9542, 5;
९1, 3 238, 1; 5; ४. 45, 25; ष्पा
॥ | | । 38.41.411. 1341; 44; 34; 36;
५ 52 4; 54 8 {6६ 9; 18; 76. ¢; 80:41
र. 10921; 413; 16; 95; 20--29; 98
क 1० -4;. 22 6; 124 4.
शत्ऽक्रत्वः +. 9
शतऽग्विनः +111. 4 77
श॒तऽ्तमा ए11. 19, 5.
श॒तत्ऽवसुं [. 119, 1.
शतऽ्दातु 17. 72, 9. १५, क
श॒तऽदायं 11. 52, 4. |
शत ऽदाच्रिं ४. 27, 6.
शतऽदुरस्य 2. 99, 3. ` [त ८
शतर्ुरेषु 1.9 0.4. | 1 न
श॒तऽधन्यं 1४. 18, 3. न. ५ |
श॒तऽधांरः 12. 85, 4; 86, 77; 96, 14. ८ 7.0
शतऽधारं [1. 26, 9; 2. 107, 4. ५ 1
कतऽधागः 17. 86, 20. [6 ध |
श॒तऽनीयः [, 7100, 72; ३, 69, ¢. (0 क |
श॒तऽनीचं 1. 179, 5. 4
शतप॑त्ऽभिः 1, 776, 4. क ध छ
शतऽप॑तः प्रा. 90, #.
श॒तऽपवेण %80,.0; "11.10.06 2; 204 ध ५१
शतञ्प॑विवाः ४11. 47, 3. 4 य
श॒तऽब्र॑ः ए. 77, 5.
शत ऽभुंजिः ४1. 16, 14. गि भ
श॒तथरुजिऽभिः 1. 166, 8. ४ ष कु ५ ् ५
शतं 1. 24 9; 3०, 2; 48, 7; 52 ण; 64 4; ` . |
59० 9; 776, 7; 76; ग्व, 6; 7; 18; |
126; 2; 128, 3; [. 159; 74 6; 7 |
2; 10; 32; 2; 1. 36, 10; 60, 7; [ष (1
27; 7; ॐ, 46; 57 3; 9; 16; ॐ 7;
48, 5; ४. 27; 5; 48; 3; 54; 15; 67, 10
४. 1409 11; 343 3 9 47, 24 9 48, 0 63;
9; भा. 3; 47; 16, 10; 25; 3; 66, 162;
91.65; 99..4; , प्र. व 44; 5375.
2 46. 47 10. 46.352; 552
56 3.3 70 53 74; 19 1 48 1 च
52; 5; 56; 2; 64, 24; 97, 29; >. 18, 4;
कैः क
71; 156, 2; .167;.4::44
शतंऽमधघ 171. 54 7.
शतञ्मघ ए. 2,5 |
शत्तऽमधः *111. 33; 5;
पपे | ॥ . शतंऽकतिं-- शतोः.
स्तं ऽति १111. 99, 8.
शत॑ऽऊते पा. 46, 3.
शतंते प्रा. 21, 8. |
शतं ऽऊतेः ए111. 2, 42.
शत ऽयातुः ४11. 18, 22.
ज॒तऽ्यांस्ना 1, 86, 16.
शत्र ¬. 106, 5.
शतऽव॑त् प्रा. 24, 29; २.94, 2; 102, 5; 6.
शात ऽवन् ४1. 47, 9. 2
शतभ्वैतं पा. 5, 15; 64, 5.
रात ऽरवर्शषः [1. 8, 77.
श॒तऽ्वानः 12. 96, 9; 770, 70,
शत ऽवानया ए. 92, 10,
शत ऽविंचघणाः ¬>. 97, 18.
शातऽव्र॑नाः 1४. 58, ‰.
शतञ्शार्दाय पा. 10, 6; इ. 61, 2. `
शतऽशारदेन 2. 167, 5.
शातऽ्साः 1४. 38, 10; ¶11.8;6; क. 82, 5;
87, 4; 2. 95: 3; 18, 3. |
शत ऽसेर्याय 171. 18, 3.
शतस्य 1. 43, 7.
शस्ी ए. 58, 4.
शत ऽदहिमा 11. 7, 71.
शत ऽरिमा; 1. 75, 9; ए. 4, 8,
शतहिमाय 1, 14 8. -
श॒ता { 52; 8; 80 9; 81 12: 722, 4; 126, 6
11. 7, 8; 1. 9,9; 1१. 30, 15; 32; 18
४, 21 9:20, 8.52 45.60, 1;
26, 5; 4» 18; 48, 75; ऽ, 20; ण्या
18:44; 32 55 218; 4६ 12;
46, 224; 37; 789 7; ‡. 93, 14
शतात् 1. 102, 7. = "` ६
शतानि ॥। 164; 11 > | ३ 29 । 4;
शतिनः 412 0 १177. ,9
75; 4
शतिनं ५ 64; 15; 124; 14; 14. 2 9; # 1, &,
6; प्रा. 88, 9; उ. 47, 5.
ज॒तिनीभिः 1. 59, 7; 135, 7; 3.
श॒ते इतिं ए. 18, 22.
शतेन 11. 18, 6; 711. 37; 4; 1१४. 46, 2
शकः ए, 36, 6; ५. 20, 4. `
शतैव: 1. 5 4; एवा, 4 4; प्रा. 28, 18; इ.
38, 3; 48, 7; 84; 7; 155; 4
शतवे ₹. 133, 3. `
शतिं ४. 34, 9.
शव॑ः 1. 39, 4; 129, 4; भ]. 18, 12; 1081
27, 6; एता. 59, ४; 96, 16; 5. 42 6
120, 2.
शरत॒ऽत्योय पा. 22, 20.
~ >
श॒तुऽत्व +. 45; 5.
तु 1. 32; 4; 35; 12; 129, 4; 1104.
22; 77; 30, 3-5; 1. 16, 2; *. 4
10; शा. 34; 19 ; द. 55 4; 78, 5; 4
42; 7; 549 2.
शतुऽ्यतां 1. 35; "5; 4.4
शतुऽयंतः >. 89, 15.
शतुभ्य॑तं ए. 26, 3.
तुषु {. 79, 0.
शतु ऽसह: *111. 60, 6.
शतुऽ्टन॑ः इ. 259, 3. ।
शतणां 1. 102, 4; ‡. 166, 7.
शवंन् 1. 33; 73; 615 23; 159 6; 145; 5;
178, 5; 1. 3० 8; 9; 4» 12; आ. ॐ
6; 547; 4 2; 54 2; 1४. 4 5;
28,.4 :- 4.2; ५1.11.23 ;24, 8; 44:30;
40, 29; 64 3; 13.42; 15 4; 4; 1811
35; 12; >. 85 2; 9०3; 945; 96
23; 770, 12; ¬. 42, 5
शतोःऽशवोः ए. 19, 15
श॒न्कःऽडव ४111. 971, 3 ।
शनेः ४1. 45, 11.
शर्नेःऽङइ्व ए111. 91, 5.
शंतातिऽ्भिः द. 150,
शंताती इति शंऽतांती 1. 112, 26.
शपथाः 2. 87, 15.
&. श॒प्यात् र. 947, 16.
शप्तं 1. 41, 5.
श्पातः २. 80, 1.
श॒फऽ्राहजंः 2. 44, 9.
श॒फऽसारूजं ¬. 87, 12.
श॒ फऽव्युतः 1. 35; 14.
सपं एवा. 44, 14.
शफऽ्व॑त् 111. 39, 6; प्र. 89, 5,
शफात् 1. 776, 7; 114; 6.
शफानां 1. 163, 5; प्र. 6, 7.
श॒फोऽडव 17. 39, 3.
शबलं द. 14, 10.
शं (. 5 7; 45 6; 9०, 9; 98, 7; 106, 5;
2249. ॐ; 2; 750, 3; 765 4; 743; 8;
189; 2; ~, 3315; 38. २; 1. 73,6
1.34 19444 .121.4 ~
49; 91. 27, 4; 34; 3; 45; 22; 59
1.2 1.044.141
9 ५.4 9.4. 712.
1235; 28, .0; 54 1; 69; 5; 86, 8>; प्रा,
9920 29 143. 10; 6; 28, 8; 95..59
^ प्र 34 7; 6 4; 6 45; 69, 7; 91, 6
10. 2 94.75 41:21... 50
8४; 86,.24; 04, 28; 165. 24; 8: 78231;
शंऽतमः 1. 16, 7; ‰, 2; 108, 7; 136, 4;
शं ऽत॑मानि ए. 23; 6; 52, ए,
9; 175; 4, 40; ६०95; 54, 14; 69,.3;
शंबरं 1. 57,6; 54
45 48; 4 4.15; 797; 82, 3; [द
शबरस्य 1. 105; 8; 11. 14. 6; 19, 6; 1. 6
शं्नषिरा 1. 39
सतुत ५
र
स
त
शं ऽतनवे र. 98, 7; 3; 7.
शंऽतम ४111. 53; 5.
४1. 13, 22; 12. 104, ३. छ
ज्ञं ऽतमं 1. 43, 7. |
शं ऽतमा 1. ;6, 7; 7. 33, 73; प्रा, 23, 4:
४. 42 1; 43; 8; 75, 10; णा. 333 ग<;
04.94, 53: 9. |
शं ऽतमाभिः ए. 53; 5. |
शं ऽतमेन ४. 76, 3; 78, 4; ए. 5, 7 ; =. 74; 4. १
शं ऽतमेभिः 11. 34, 2.
शं ऽताति ए. 18, 5.
शमि 1. 87, 5; 77. 5, 6; 77. 5, 3; एना
4५.20; ~ 419,
शमिता 7. 3, 10; [ा. 4» 10; इ, 1710, 16.
श॒भिताऽईव ४. 85, 1.
शमितारः 1. 162, 219.
ज॒मितायं ४. 43, 4.
शमितुः 1, 162, 9.
शमी 1. 110, 4; प्र. 22 8; [द 74, 4.
शमीनहुषी इतिं 2. 92, 14.
शमीभिः 1. 20, 2; [1. 60, 3; 1४. 0, 18; 3ॐ,
4; ४.70, 4; 91. 35.25.521; 3.28, 33.
शमी प्र, 42, 10; एवा. 25, 14. | | |
शंवः र. 42, 7.
॥
4; 599 6 ; 767, 2; 1439,
9; 1. 19 22; प, 39 44; "1.18, 8
46, &3 42, 1, 41-21; ण. 18, 25;
[९. 67, 2. 7
3; प्र 34; 47 2; णा. 99, 5.
शंबर 1. 712; 14
आके भ भको
शं बसाणि 11. 24, 2.
शं भविष्ठः 1. गता, 3;
{. 88, 3
1
^: श्म {. 65; 3; ए. 186, 7.
शंऽ्ुः ला. 0, 5; पा. 35; 6.
शंऽभुव॑ः 1. 105, 3; 106, 2.
८ 1. 49, 6 ; ॐ. 36, ‡7.
(८ ८ शे शरुवा [1. 47; 19; ए. 0, 4; ए. 8, 19.
1. , -शभ्भवा १.66, 4...
` श्भूडतिशंऽ्यू 1४.47
। शपू इति शंभर 1. 46. "3
। ५. शम्यां 82, 4; [. ५9
9 शम्याः 111. 38 2.
4." सम्या 2. 3, 79,
शप् इवेति शं यूऽईव 2. 143: ^
शम्ये 1४. 3 4
श्ंष्योः 1. 546; 45. 4
शयते 1. 32, 5; #ा. 106, 9.
शयां ह. 6४, 5. ५
शपथाय प्रा. 18, 8.
॥ शयथ ए. 107; 9. (1
| | ५ शयध्े व 6; प्1. 62, 2.
म ` शयश्वे 2. 108, 4.
५ शति ?. 89, 74. ` ।
शयवे 1. 112, 16; 776, 22; गव, 10; गव)
8; ए. 62, 4; प. 68, 8; +. 39 15
शयाते इतिं ४11. 104 13
शयनं 1. 52, 8; 71. 12 7; [1.32 6 |
2 (
शयाना 1१. 33, ॐ |
शयासु 11; 56 4.
1. यौत 2.9; 4 1
१. शयुः 1. 3.2; 5:
शयृऽ्वा 1. 777; 12; 2. 42,
32 2; 6; 8; 11. 105, ष्ा. 57, 2;
ष, 46, 9; 49,
शञर्णं 1. 158, 3; 11. ॐ 8;
70३, 2; ` ¶{५.
7; 5०, 3; ४. 95: 5;
44, 10.
शरणा ए. 47, 8; प्रा. 9०
शरणाः , 18, 12.
शरणिं 1. 37, 16.
शरणे 1. 150 7; णा. 9, 8 ;
शरणैः 111. 62, 3.
श्॒सत् 2. 9०, 6.
श॒पत्ऽभिः 7. 86, 6; 1.
श॒रत्ऽवान् १.१३...
जञष्द॑ः 1. 72, 3; 89, 9; 1720 3; 179, 1; 8
27, 20 ; 1{11..32, 9; 36, 29 ४. 16, 9;
18, 4; 198; प. 2 2; ४1.०40; 38,
4; 593; 47, 7; गा. 37 7; 62;
00.10; इ. 28, 4; 85; 59 ; 95
16; 7617, 3; 4
शरदे ४11. 660; 77.
शरदिं 1. 12 7.
शराय ४111. 100, 6.
शरवः उ. 80, 15.
शरे 1४. 37; शा. 6; >.
6; 182, 2.
शरव्यां 2. 87; 13.
शरव्ये प. 5; 16.
श॒र्स्यं 1. 116, 22; ए. 179,
शरः >. 86, 9 = ` |
शरासः 1. 291, 3. ` 1
जञलतोः 119
शरीरं 1, 32; 70; 163; 7; 3. 16; 1. (1
शयीय #. 156,5 = ` ।
शरेः ४1. 25, 4; ९. 16, 3 99, 8. (1
शरः 1. 202 2; 186, 9; पा. 67, 15; 20.
शर ए. 77, ८; पा. 18, ग; २. 997
6.
१9. 25; 9
1 4 | ॐ |
।
27; 6; 125
13.
शैःऽतरः -- शवः, ५५७
23 42 5; 46, 2; 5; 52, 8; 54
४1. 38; 8.4; 48, 15; 68, 8; ए्ा 44;
5; 59, 7; प्या. >, 9; द. 88, ¢; 9०
5; 97, 42; >. 103, 9.
शधैःऽतरः 1. 122, 10.
शत् ए. 21, 5.
शतः 1. 25, 12; ण, 29, 2; 42, 4; पा,
18, 18; 32 7; श्वा. 60, 12; इ. 69, 12.
शथेतां ए. 19, 20.
शेते 1. 12, 10; पा. 24; 8 ; ४11. 2, 15.
धन् ए. 42, 32 ; 1. 100, 8,
शधऽनीतिः 111. 34, 3.
शर्धतः ४1. 34, 18
धतं 11. 3०, 8; ए. 56, 7; पा. 28, 5; 16
शधं 1. 77, 8; 7122, 12; आ. 3० 77; ४, 52,
०/1
शपैऽशधे ए. 53, 71.
शस्य प. 56, 8.
स्धान् पा. ¢, 21,
शधोसि ध्र, 807, ¢; द. 97, 0.
शधासिऽदव 9111. 74; 13. |
अभय 1. 20; 4; 6407; 111, 2; भि. 5,
४. 54, 7; 87, 1; भा. 48, 12; 66; 77;
१9111. 20, 9; 12. 30, 5; 104; 3; 105
3; =. 67, 26; 49, 5.
शत 11. 31, 3.
श्ये 1. 119, 5. |
शमे 1. 17, 8; 21, 6; 22) 155 34; 6; 46,
75; 8, 8; 9; 85; 12; 90, 3; 93; 8
102 3; 7047, 2; 774 5; 10; 127; 5;
१६6; ¶;. 46, 12; 742; 5; 714; 2; . 1.
25, 5; 20, 6; 7; पा. ग, 5; 54 ०;
ष. 25, 4; 5; 556; 546; 554; प
7 10; 9 72; 272; 44 7; 465; ‰;
55 9; 62, 9; 855; १. 16, 33; 38;
20, 70; 469 12; 49 4; 57; 5; 75 प
12
‡ ..240:- ४1. 5 9. 16.8.4.-525.2: 59;
69, 8; 82; ४.10; 82, 9; 70; ध;
१1.18, 3; 12; 16; 27, 9; 3 4; 42
3 47; 2; 3; 9; 9;
19991
+. 36, 4; 37, ग; 56; 2; 65, 7; 22; क
66, 3; 5; 7; 87, ग; 104, 75; 126, 7;
128, 8; 142, 7; 752, 5; 269, 2.
शनणा 1. 22; 71; ४.48; णा. 5, 2; पा
18, 10; 49, 12, |
शमेणि 1. 4, 6; 11. 2 12; 7, 15; 2; प.
64, 5; ए. 44; 18; 62, 10; 2. 35, 9;
20; 72; -720..-4 . 1074;
शमेणे ४117. 9, 20.
मेन् 1. 57, 15; 94; 73; 1. 20, 16; 28,
इ ~ 1.4.01"... 38.9; 4
१. 33; 5; 49 18; शा. 6, 6; 28, 3;
34, 25; 56, 25; 95: 5; एवा. 60, 6; 18
401; 1291. 2:
शभेऽयं्यां 12. 41, 6. |
शमे ऽ सद॑ः 1. 73, 3.
शमाशि 111. 13, 4.
शयेणाऽव॑तः इ. 35, %.
शयेंणाऽवंति 1. 84.94.104. 2.20
64; 71; [९ , 65; 22; 7735-1.
श॒येऽहा ४1. 16, 39.
शयेदाऽइवं 12. 70, 5.
शयाणि 12. 14, 4; 68, 2.
श॒पं 1. 112, 2140.
श्योभिः 1. 170, 5; ॐ, 67, 3.
शप 1. 148, 4; ॐ. 178, 3. ८.
शयः 1. 119, 10 ॑ ५
शवे सीः ४. 52,
शवे 1. 100, 18; 1. 12, 10; प्र. 28, 3;. णा.
8.5; 2; +. 847; 6. ॥ १
श्॒स््लिं 2. 85, 20, र (1.11 1.1 ध
शस्मक्को 91.428. (1 1.
श॒स्यान् +. 847, 4. | = . ५ ४ त 1 ५
शषः 1.9, 4; 300८9915 51.021
6; 7; 56 3; 86, 3; 73; 874; 849; 1 ८
186, 2; 1. ग, 18; 71. 36,4; १.35, ८ न
1
1
|
॥1
॥
(
शवःऽभिः 1. 139, 4; ४1. 17 7.
हाव॑सः 1. 54; 7; 100, 8 ; 15; 145 7; 16450 ;
| 711. {1 5; प्र. 247; ४. ग 5; 26, 8 4
2; प्र. 144; 29, 5; 44 4; प. 272;
ए, 25; ५; 68, 4; 9०, 2; =. 22; 5; 99> 1.
शवसः 1. 77; 2; 137, 4; 101... 34;
6; 35; ग; 8; ॐ, 4; 47 39 ४.५9;
35, 5; पा. 6, 21; 45 26; 9० 5; 92?
"41 61.10; |
शव॑सा 1. 27; 2; 39, 8; 57 4; 52 16; 11;
4, 2; 56; 4; 61, 10; 62 9; 64 8; 9;
15; 94; 15; 109 3; 72; 74; 102 7;
110, 0; 127; 7; 4, 3; 167, 9; ग
५; 7. 22, 4; 23) 15; 24 17; 14; 11.
3 9; व १0, 1 3; 19; 4;
22 7; 5; 38, 10; ४.7 5; 77 5; $
4; 45, 6; भा. 4 7; 23: 3; 5; 5 गव;
,. 28, ¢; 92; 20 ग; 7; 39 3; 35;
„ -. 36 54. 44; 3; 66, 6; 58, 3; फ, 27, 6
24) 7; ॐ 7; 48, 2; 57 7; 74 6; 95
„५4; 0392; 7, 47; 32 26 ; 79, 76
24; 2; 14; {70 6; 88, 4; 97 9; +. 31
5; 45; 4; 49; 8; 752 9; 106 5; 105
140, 2; 6; 9; 242 7; 8 3.
शवसान 1. 62, "3; ण. 68; 8.
शवसानं पा. 37, 3; एना. 46, 6.
शवसाना 1. 95, 2.
शेवसानात् ए. 2, 22.
शवसानाय 1. 62, 2; %.
शवसानेभिः >. 9५, 9 ।
शवसा ऽवन् 1. 62 71.
भि क
शविष्ठ 1. 84" 19 ; 127,
714; 15; 35; 8; 58 2; ४1. 26, 7; 35
3; एवा. 27, 5; ४. 6, 3; 12 7;
12; 35, 23; 46, 9; 79; 62 4; 7०9, 6;
72; 9०, 4; 97, 14; >. 176; 1.
शविष्टः ४111. 67, 7.
शाविं ए. 44, 10; प्रा, 19, 6; 22; 2; 7;
9१11. 4, 2.
शविष्ठस्य ध. 44 74.
शविष्ठा ४1. 68, 2.
शविः 1. 77, 4.
शवि्ात् १111. 74 "5.
शवीरया 1. 3; 2; 3० 70.
शशः +. 28; 9.
श॒शम॑ते पा. 2, 4.
शशमानः 1. 242 4; 757; 7; ४. 2, 9; 23; 4;
37; 7; ९. 77; 5.
शशमानं 11. 24, 14; 22, 3
शशमानस्य 1. 86, 8; 142; 2; 1४. 22; 8; 23
2; प, 42, 10; ङ. 64, 109; 142 6.
शशमाना; ४. 29; 72.
शशमानाय 1. 85; 12; 775 90; 41, 16; 1४.
2, 13; 31, 8; ए. 66, 2.
शशमानासंः ए. 16, 15; 2. 92, 7.
शङमानेभ्यः 1. 47, 3.
शशमानेषु 111. 18, 4.
शशमे ए. 7, 9; 3४; पा, 161, २,
शशयः 1. 164; 49.
शशयं 111. 57, 2; णा. 54 8.
शशयः 17. 55 16.
शशयानः ए. 78, 9.
शशयाना +11. 105; 1.
शशाः 1. 80, 7.
शच्रये-- शांडः. पपर
श॒श्रे 12. 70, 2.
श॒श्रमाणः 1४. 72; 2; ह. 05, 3. ।
शश्रमाणा 1. 179, 7.
श॒चमुः 1. 22, 4.
शश्चचे 111. 33; 19. ।
शश्वत् 1. 3०, 26; 35 5; 4, 9; ०; डः
712; 116, 6; 125; 4; 1. 54; 7; ए. 30,
8; 4, 8; 32, 3; 4०, 4; 4 2; 62, 3;
षव. 5 23; 67, 76; 77 13; 8० 2;
12. 66, 16; 97, 58 ; ॐ. 69, गा; 772, 5,
शश्वतः 1. 72, 7; 135 #; 1. 1 10; 11.
2९ 5; 30; 20; #. 29; 4; 52 2; णा.
9.4.70 4.4.
शश्व॑ता 1. 26, 6; 1. 1, 6.
श्॑तां ४. 32, 13; पा. 20, 13; र. 100, वद्र.
श्छती ४111. 7, 34.
शश्च॑तीः 1. 27, ¢; 111. 9, 4; ए. 32, 2४.
शश्व॑तीनां . 714, 8; 75; 124, 2; गय 5;
11. 56, 3; १1. 2,8; गा. 101,6; प्रा.
1473 14; 39, 5; 95, 3.
शश्व॑तीषु 1४. ;, 6.
शश्वतीषु ४111. 60, 77. ।
शश्व॑ते 1. 36, 79 ; 111. 32, 5; भा. 23, 28 ;
1. 9५8, 4.
श्चत्ऽतमं 11. 38, 7; 1. 1, 23; 35; 6; 6%
9974-2. 06.2;
शश्वत्ऽ तमा 1. 724: 4.
श॒श्त्ऽतमायां; 1. 118, 72,
शश्वत्ऽतमासः +. 39, 7.
शण्वत्ऽभिः ४11. 95; 6.
शण्छत्ऽशश्वत् 111. 36, 2.
ञ्वधा 11. 33,
शश्चतः ४. 4; 3; पा. 3; 18, 28; 945.
शाश्रतं ४1. 67, 7; पा 60; 7४
शश्चता 1. 164; 38
शशान् 11. 58, 6
ज्ञसंनं 1. 163, 12.
नि
शस्यमांनानि >, 66, 19.
श॒स्यसे ए. 5, 6.
पा १००
शस्त 1. 162, 18 ; 1४. 37, 8. क
श॒स्तं [1. 53, 3; ए. 47; ¢; प्या. 45, 9
शसि; 1४. 3, 15. व
श॒स्तिऽभिः 1. 186, 3. 7 | क
शलं 1४. 3, 3.
शस्ते ४. 20, 70.
शस्म॑न् 1. 119, 2.
शस्यते ए. 55, 8. त.
शस्यते 1. 53, 7; 86, 4; 770, 7; 738, 7; 7.
62, 11.40 1.111.111
शस्यं ए. 56, 24. 1
शस्यमानः ४11. 8, 3. | ~
शस्यमानं 1४. 4 15; 58, 2; प्रा. ०14; श. ॑
००१ 9. ॥
शस्यमाना 111. 239, 7; 2; ए. 24; 7.
श॒स्यमांनाः ४1. 69, 2.
स
ज॒स्यमानासः ४1. 69, 3.
शस्यमाने प्रा. 23; 2; र, 45; 10.
ज॒स्यमानेषु र. 72 2.
शाकः >. 55; 0. | ॑
शाकाः ए. 24, 4.
शाकिनः ४. 52, 10; ए. 323; 6.
शाकिनं 7. 51, 2; पा. 46, 74
शाकिने 1. 54; 23 *1. 45; 22. 0,
शाकी [. 5, 8. 1 ; ^
शाके प्र. 15, 2. ` त 1
शकेः 1४. 707, 77; प्र, 39, 10; ए. 941 1 ॥ ५
शाक्तस्यऽडव ४11. 103, 5. 1 | | | 1
शाक्मना 2. 55, 6. छ
शाखां 1. 8, 8. 1
शलो ए 49
वाखा <. 04; 3.
शाचिगो इति शाचधिंऽ्गो ए
५६०
शातेपंता 2. 106, 5.
शह ऽवनेये 1, 59, 7.
शादेषु [र. 15, 6.
शाधि 11. 28, 9.
शपि णा. 18, 5; इ. 28, 4.
शामुरयं 2. 85, 29.
शंबरं पा. 4, 22.
शांबरे 1. 4४, 4.
शार्दीः 1, 121, 4; 174 2; प्र. 26, 10.
शारि 7. 28, 5; 1. 55 7; ४1. 54
शासै; 1, 112, 16.
शायीतस्यं 1. 57, 12.
शयति 7. 57, 7.
शाशदानः 1. 23, 12.
शाश॑दाना 1. 1716, 2; 723; 10
शाशदानान् ए. 98, 4.
शाश॑दाना ए. 104, 24.
शाशदुः 1. 20, 4
शाशद्रे 2. 120, 5.
शादे 1. 147, 9.
शाश्चसतः >. 48, 6
शाश्च॑सत्ऽभिः 1. 3०, 16
शासः {. 747, 4.
शासः ए. 152, 1.
124, 6,
शास॑त् 1.5, 8; 13०, 8; 7. ॐ, 1.
शस॑तः ए. 34, 1.
` शासता 1. 19,
ए. 995
नेः
शिक्ष 1. 27; 5; 69 12; 11.71) .10
16, 9; 70, 9; 18, 9; 19, 9; 2०9
प. 20, 2; 32 26; (11, 2, ११; 41
66, 14; 92; 9; गद. 8 3; 87, 9; ९
81, 5.
घ् 11. 19, 3; 5० 15; 1१४, 35 3; 088,
5; (द. 19 6; =. 42 2; 65; 5;
1335; 7.
शिषंत् >. 47, 22.
शिष्षतं 1. 1०9, ¢; 8.
सतं 1. 34; 4; #111. 26; 12; 59 4; 4
39; 6, | | | .
शिति 111. 59, 2; प्रा, 49, 7
शिति पा. 28, 2 ५
शिक्षतु 1. 87, 6,
शिते 1. 28; 3
शिष्यः *111. 59, 7. 0
शिन् 1. 2, 4; ४1. 20, 10; 24; 5; 9;
पृ. 763.2; 20, 47;
क. 48, 2; 102
घंति 1. 175: 10.
ऋ ङ
६
क
3 4; {> 729 8;
शचिभिन् १६.20.10...
. शि्रात्-- शिवासः. | ५६९
शित् 1. 68, 3.
शिघाभऽ्नरः 1. 55, 2; [प्र 2०, 8,
शिष्षानि 2. 95, ४.
शिषेम 111. 52, 6.
शिक्षेयं या 2,19.111...
शिषो इतिं ए. 52, 8.
शिक्षोः 1. 19; 2.
किग्रवः ए. 18, 19.
शिंक्ते 1. 164, 29; ए. 75, 5.
शिंजार ए. >,
शितः ए. 23, 23
शितां 1. 54, 4.
शितिऽ्पाद॑ः 1. 35; 5.
शितिभ्पृषटस्यं 11. ¢, 2.
शिति ऽपृष्ठा 91.9.20
शिविरा ४11. 45, 2.
शिचियऽ्डव प्र. 85, 8.
श्िथिगं ४. 58, 2.
शिषिरे ए. 71,
पिऽचिष्ट ४11. 99, 7; 100, 5.
शिपिविष्टः णा. 190, 6.
शिप्रंऽवान् पा. 17, 2.
शिप्राः ४. 4; 71; भा. 7; 25. |
शिप्राभ्यां ह. 105; 5.
शिप्रिणीनां 1. 30, गय.
शिभिरी ऽवान् 2. 105, 5.
भिरे णा. 44 14; णा. 3, 24.
शिन् 1. 29, 2; एला. 2, 28.
रज
>. 40, 7
3: ` ५117. +,
4; 67, 4
सिप्र 1.81, 4; णवा. 1, 20; 33, 7; 92,
इतिं 7. 707, 10; 111. 32; ए; ए. 56, 2;
पा. 76, 10; इ. 96, 9.
षायाः 1. 104, 3.
ति
न १ १.१
॥
शिमींवत्ऽभिः 1. 74२, 34. | | 1
शिमीऽवंतः +र. 78, 3. | । ८
शिमी ऽवान् [. 100, 13; [. 25, 3; ४.50; 4 ॥ |
स. 8, 2; 89, 5. | नि
किंवकं 71, 55 ०५, 8 = |
शिंवातां ॐ. 106, $. |
शिम्या 1. 57, 7; 3. ` ` . ४ ०
शिम्थु #11. 18, 5. | | |
िम्यृन् 1. 100, 28. = | [र _ | (+
शिरः 1. 52, 10; 84, 74; गव, 22; 119; 9;
158; 5; 1633 6; 1. 20, 6; [. 51, 1
प्र. 18, 9; ए, 3० 7; 8; पा. 20 6; 26,
3; 59; 6; #{1. 6, 6; 74; 73; 26, 2;
91 5; 6; --. 68, 4; र. 27, 13; 79,
86, 5; 4; 741, 2.
शिरिणायां 11. 10, 3.
शिररिषिंठस्य 2. 155; 1. |
शिव भ. 26, 23.
श्िवऽञ्नभिमशैनः 2. 60, 12.
शिवः 1. 37, 7; 2184, 3; 7. 20, 3; 1४.17, 6; ५ [
१491 4.111.104 .49.
प. 93; 19, 10; 34 15; णा, 4, 18;
39; 3; 05 4; 95० 3; >+. 25 9; 9०, 9;
165; 2.
शिवऽतमः 2. 9, 2.
शिवतमाः 1. 53; 77.
शिव ऽत॑मां इ, 85, 34. |
शिवऽत॑माय ए. 96, 10.
शिवं [11 58, 6; 2. 124, 2. ध =
शिवस्यं 2. 3, 4. १ 1
शिवा 1१. 10, 8; +. 34; 2; 85, 44. 1
शिवाः ¶11. 5० 4; ‰. 16, 4; 169, 4. 1: | ८ 1
पिवति 9. 4 1
शिवानि 1. 108, 5; 111. 58, 6; पा. 229.
शिवाभिः 1.49, 2; 784, 3; णा. 20, 24;
8,.6 ;: 64;.9* १ ८ ~ | ।
शिवा १.4 4.1:
शिवयिं
|
अयन
शिषे इतिं ४1. 75, 10.
शिषेनं ४11. )3, 4
शिवेभिः 1. 144; 8; 1. 1, 9; 19; ॥. 77
3; ४, 6५ 8.
1 शिशयं 2. 42, 3.
शिवः १1. 56, 16.
शिश्वे 1. 18, 8; +. 5 5.
५ शशाः प. 18, 13.
किज्ञाति णवा. 8 ग; षा. 19;
| शिशातु 1. 177, 5.
शिशाधि प. 15, 20; + 1०4, 79; "1.
42, 2; 2. 84; 4.
शि्ञानः पा. 6० 13; 76, 9; द. ॐ 2;
69, 3; 70 7; 87 7; >. 87 7; 3; 6;
104; 7; 144; 4.
शिशामि क, 28. 6; 46; 4; 87, 24; 120,
4. : शिक एः 55
शिशीत ४1. 16, 42; (18 1
54, 70.
शिशीते 1, 122, 3.
; | शिशीते 11. 39, 7; पा. 104; 1.
शिशीता +. 19, 4.
शिश्ति 1. 3, 16; ॐ 7; १.29; 9, 5;
४ पा. 104; 20 ; [~ 75; 4; ड. 53; 9.
शिशीमसि 1. 102, 10.
शिशीहि. 4०9; 8, 7; ना. ०45; उ.
1 49 ~ # 5
शिशा. 6.8; प्रा. 6.6; 18,9; 9.8
५ ` ` ` पा. 4 16; ५५४ >. 89, 9; 105;
` षिवु 1 43; 5; १.43; प
५ ॥ ( 2; 1028 72 7110, 10; ह 1.2.87 20.
शिशु 1 06 5; 142 3; 186 5; 7; 8१ 15
४ पा. 99 985 9
धद्व | शिवि इि- शीयेते .
श 1 म अ=
वि
शिषयू इतिं 2. 85, 29
शिशुः >. 78, 6.
शिशोः र. 115; 1.
शिश्रथः पा. 6, 16; 24; 25; 79 16; २.
22, 74.
शिश्यत् १४.20.29.
शिश्वयत् 11. 20 049
शिश्वयं >. 49, 3
शिश्चऽ्देवाः ४11. 2, 5.
शिश्चऽदैवान् +. 99 3.
शिश्ना 1. 105 8; >. 27; 19
शिश्रय ४. 85, 7.
शिच्रयः 1. 24; 14; 1. 28, 7
32; 22.
शिश्रयत् 1. 128, 6.
(त कि,
शिच्रयंतु ५11. 93: 7.
[ ति नि)
श्रयं ~ 45 4"
शिश्राय इ. 42, 6.
श्ियाणं 1. 32 2; ४. 17; 6.
शिध्िये पर. 44 13; >. 97, 2.
शिश्रीत 1. 149, 2. 0
शिशवः 1. 122, 15. |
जिश्वां 1. 65, 5.
शिश्वे 11. 34, 8. ५
शिषः प. 75, 16 इ
शिषः इ. 115; 4. | ९5
शिषामहि ए111. 24 1. ४
शिष्टं 1. 28, 9. ` १
शीताः ¬+. 34 9.
शीतिंऽकावति ह. 76, 14. (०५५
शीतिके र.26, 24. |
शीपालरंऽ्व द. 68, 5 ८ 11
शीभं 1. 37, 4; 1. 33, 22; इ. 44, 2 ५
५६३
षेणिं 5 16, 2 1.0. | $
शीषेख्यं 2. 163, 7.
शीपेणयां 1. 762, 8.
शीपेतः 2. 88, 26.
शीषेन् ए, +, 25; 96, 3.
शीषेऽमुं ए. 54 ग; 5, 6.
शीषो 1. 35 5; 133, 2; एवा. 6०, 20; प्रा.
74» 15; <. 8, 9.
जीषेणिं पा. 18, 19; इ. 8४, 16.
शीषे इतिं 1४. 58
शीष्णेः +. 1017 2.00 1
शीष्णैःऽशीष्णैः ए 11. 66, 15.
शीष्णा 1. 716, 12; इ, 20; 13.
शीष्णाऽशंष्णो 1. 132, 2.
शीरष्णेऽशाष्ण 11. 18, 24
शौर्टैषु ४111. 53, 4.
शुकेषु 1. 50, 72.
क्र ५1, 7, 8.
शुक्र 4.121.211. 21,4 244;
ए. 48, ५; पा, 6० 9.
शुक्रः १.00 1... 0.12 ॥ ११...
40:14. 4110-4
04.64 1.1.24 250 71.90
97, 32; 1०9 3; 5; 6; ड. 187; 5.
शुक्रःऽङव 1. 43, 5,
शुक्र्टुधस्य ४ (0.
शुक्रऽपिशे क. 120, -6,
क्पू ऽपाः शा. 46, 26
9, 11311 7093-1 ..2
{6 35; 3 2;. 34 5; 1४. 5 10; 6,
8; 205; 45.25 ४.43. ; 4; 46 २9;
$. 58, 7; 66, 7; शा. 66, 4; 66, 6
0.9; 910, 30; 65 द; +. 9.5;
54 1; 66, 24; 2. 7, 3; 27; 45 9.
शुक्रऽव॑चोः क. 140, 2.
| शुकरऽव॑री ४,
शुक्रऽव॑री 1. 143, 7.
्र्वासाः 1. 125, 7
ॐ 8
॑ शुचत्ऽर्याः 1१५. 24; 4.
शुचध्य षर. 2.7. क
शुचः 19. 2 15; 1. | 1
शुचं ५.9... 1
शुक्रऽशोविषं 17. 2, 3; पया. 45, 2.
शुक्रऽशोचिषे ४1. 14, 7; भा. 23, 23; 123, 8.
शुक्रऽशोचे ४111. 44. 9.
शुक्रऽस॑द्यनां 0.
शुत्रस्य 9.05
शक्रस्य 1. 84. 4; 1.9, 4; 47, 3; ॐ. 100, 6.
शुक्रा 1. 123, 9; 155 2; [, 7, 8; 8 9:
१४. 24.71; 3. 464
चक्राः 125 36.741. 11.14; प्र.
57, 9; भ. 2 70; 44 7; 95 2; 1.
21; 6; 35, 2; 635, 74; 64 28; 67, 18.
शुक्रान् 1४. 2, 2.
शुक्रां 12. 62, 28; 99; क,
शुक्राय पना. 47.
शुक्रासः 1. 234 5; एवा. 6, 4; ए. 44, 4;
52 10; 1. 65; 45; 64 4; 65; 26; 66)
9; 97; 2.0,
शुक्रे 1. 342 2; ४. 43 74
शुक्रेण 1. 712; 12; 45 4; 48, 74; ४. 52, 7;
भा. 48, 7; #ाा. 44; 14; 56, 5; 12. 85;
२; द. 21, 8; 45 73 287, 3.
१५
शुक्रेभिः [. 55 9; 35 4; [[. ग 5; >.
102, 8.
शुक्रः 10010114; "19...
| शुक्र +. 85; 10.
शुचतः ४. 3; 3.
शुचता 1. 34; 712.
शुचे 1", 24.
शुचर्ऽभिः 3, 64, 7.
शुचिं 1. 772, #.
शुचमानः 1४. 25; 8. ८ | ८ ध
1
५ क ४" > ट | शुचयत्ऽभिः -- शध्यवः
॑ 907; प्रा. 3 3; 44 17; 5 10; > चिंऽवशं ४.2: 3.
। 124; 7 च्विऽव्रत प. 423; 16.
शुचय॑त्ऽभिः 46.72.44. चिऽन्रत >. 718, 1,
(5 शुवर्यतः 1 47, 7. | ववित्रतऽतमः 111. 44, 21.
शुच्य ९. 46; 8. न्विऽत्रता 1. 182; 7; ४1. 16, 24
| शुच॑ये 17. 7, 0; प्रा. 46. विभ्वरता 1. 15: 7; 1. 69 7
(4 ` शुचस्य ‰. 260. । शुषित्रत इति शुचिंऽन्रते ए, 49, >.
2 शुचायाः ‰. 26, 6 | शुचिष्मः ४1. 6, 4.
चरुचाशयुता 1 4 ग. चिऽसत् 9४. 4,
शुचि 1. 77, 8; 27, 5; 740 77; 0.0 चीं ए. 56, 12.
॥ क ध 3 10, 6 3 ४५५ ध 2; 91; 1; ची सतिं ध. 56, | ¢ . 85; 12.
त ध | चीनां 1. 20, 2; एवा. 56, 12; 1. 52, 5
शुचिः 1. 66, 7; 97» 3; 17; 7; 47 4; 9;
8 चींनि 11. 33, 15.
112, -34..0; 109... 2; ० 9 त छ
चे. 31, 10; इ. 6, 3; 483; ४11. 89, 3;
१४.4.44 4.4; 1. 943. ~
1.7.00 1144. । षव. 45; 13.
५ 15 7; ४11. 5; 9; 70) 1; 15 76; 952; 2८44; +. 75, 5.
५7, 7; 104, 16; भा. 2, 9; 235 79; शुतुद्री 142.
०9, 5; 44 ध 12.9,3; ०46; 7; 7० || शुडः ए. 957; 8; 9; 1 7१.
8; 72, 4; 75; 4; 85, 12; 86 13; >+. शुद्धं 1. 164, 4०; प्रणा. 95, 7
प 0; 9 य 4.9 । || शुद्धाः प. १8, 7; 2. 38, 2.
षिन ए. 9, 5 ध ए. ८.४
| न चिंऽजन्मनः 1. 747, 7; ४1. 39, 3 |
श शुचि ऽजन्मानः $. 56, 12. | क ४.
शुचिंऽनिद्धः {1. 9, 1. (९४ || गृधः *11 95" 7: 1 |
निम्दत् ए. 0, 7; पा. 4 ५. ४1 शुनः 1. 182, 4; प्र. 78, 13; भा. 55. 3.
| शुचिऽ्पा ए. 97, 4 शुनःऽशेषं \* £, 7:
अविनय पोप दुत 7
५; शुचिभ्य द, 10०9 र १ (1 ५ शुन 1 1 18; {1. 3 8 १ \ 3) ० ; 57)
1 | 4४.84; ए. 26, 4; 2. 10 8; 126; 7;
. शिश्येरस् 1, 144 ॥ 4.५५ ५. |
क धु (वन 16. | ५ र | ४ , (005 34.
1 ^ 4 भुनज्वितु 1804 45.
|| शनभ ए11. 46, ०8
शुनासीरा 1. 57, 8.
शुनासीरो 1१. 57, 5 `
शुष्युः ४. 9, 7; प्रा. 24 24
धयु >. 45, 1.
शुशयुवः 1. 5०, 9; 124, 4.
शुधयुव णा. 88, .: श, 39, न+
ॐ
४. <, 55 22, 14; 26, 6; क. 4० 14;
94, 6.
शुभः 1. 34 6; 44, 5; 120, 6; प्र. १.५; .8 ;
षा. 5; गा; 22, 4; 59, 3; 5; 87;
5; म. 4०, 4; 22; 13; 85 ठ; 15 4
शुभ 1. 22, 7; ४.5, 6; प. ५5; 9; 50
४1. 62, 4; णा. 82, 5.
ुभऽ्यवः 2. 78, #.
शुभं ऽयावां ४८.
शुनऽया्वानः 1. 89, +.
शुभंये 1४. 5 6.
शुभव॑त्ऽभिः ४. 60, 8,
शुभयैत ४1, 56, 16.
शुभ्ते 1. 85, 3.
शुभा 4,404.2; +. 0, 6.
शुभाना (1/1.
शुभानेः 1. 165, 3.
शुभायते 1. 238, 3.
क,
शुभे 1. 64, 4; 80, 3; 88, 2; ग7, 5; ग्य,
१; 7246 6; 26), 6; 0. 26, 4; ए. 52,
¢ 57; 3; 63 5; 2 63; 6; श्वा 97 3
४
%
87, 5; 88, 3; प्व. 26, 13; 2. 105, 3. ।
शुध 9, 4; 4.
गृधः 11. 17, 4; भा. 56, 8; 12. 14 5;
96, 29
| शु्रऽखाद्यः 9111. 20, 4 9
शुध (1. 77, 4; 26 24. 1. 6; 4;
शुधशैःऽतमः 17. 66, 26.
शुध्रा 2. 143; 3.
शुभ्रा ४. 80, 5; ए. 75, 6.
शुधा पा. 68, ग.
शुभ्राः 199; 45.31 1001111.
५१.10 4 12-11-72. 1
39, 3; 56, 16; भ. 7 25; 28; [द
623, 26.
शुशराः +111. 7
शुभ्राभ्यां 1. 35, 3.
शुधासंः 11. 36, 2.
शुधिषुं 1. 29; -7; ४.54, 8.
शुभे 1. 57; 3; १. 95;
14. =. ^: छ क
96, 2°
शुभ्र इति 111. 33, 1.
शुध इति [11{. 33, 2, | |
शुभिः 1. 15; 5; 66, 26 | ^
शुबा 1४. 8, 6. ` |
शुभ ४111. 70, 2.
शुभ 1, 0, 2; क. 95; 9.
शुभतिं 1. 22, 8.
शुभ॑ि 1. 38, 5.
शुभते 1. 149, 6.
शुभ॑ः 1, 149, 6.
शुभेति ४. 70, 4; [९ 42 ए;
27; 2*
शति ४. 2० 4; 39, 5; 1. 45: 2. ध
शुभे 1. 85; ए. (त)
शुभरमानः 12. 36, 4. ¦ =
शँभमाना 1. 92 10; ऋ. 1
शुभाना प. 640 9 | | श
शुभमानाः 1. 33, 8 ; 165, 5; पा. 5.8; भु २
26; 71; 29; 4; > 0 5. ४ |
शुनि 164 1
शुममनि इनि. 392
शुभसे 1. %7 |
शुभानः ए11. 44 24
96, 17; -&.
10%; 20.
28, 8; प्रा. 33; 498; भा.
3; 12. 70, 5; द. 122, 1.
शुशु्नं 1. 132, 3.
शुशुक्तनिः ४1. 23, 5.
शुशुक्षोसः ए, 87, 6.
शुशुक्वान् 1. 69, 1; 169,
शुशण्धि 1. 97; 1.
शुशुचान 1४. 7; 3.
शुशुचानः 1. 149, 4; 2. 98,
शुशुचानं {४. ठ, 19.
शुशुानस्यं 1४. 22, 8.
शुशुचानाः 11, 34 7.
शुशुचानासः 1. 123; 6.
शुखकायं (1. 84, 6; पा. 7, 5.
शुशुबीत 11. 2, 20; उ. 43, 9.
शुशुटूकऽयातं ए 17. 104, 22.
शुशोच 1. 133, 6; 2. 138,
शुशोच षा. 4 3; 8, 4.
शुं 2. 38, <.
शच्रव् 1. 100, ४]
शुश्रवत् 1. 84; 8.
श्राव 1 1059 14; 1
गुश्रुणः 711. 45; 18.
शुष ऽवसा ए. 70, 5.
धुजुऽ्ान् ‰. 77, र.
शुवे 7111. 66, 9,
1
2.
शुभयाते ४. 74 10; षा. 73, 5
शु्ूपमारः 1. 58, 7; पा. 9, 9.
शुष्णस्य ॥
11.40. 4; ११.१९.12; प्र, 29, 9; 3:
4; ए. 18, 8; 263; 3,3; ¶1. 9
द, 8; +. 22
१11.
73; 5.
46.70
(0114;
शुष्ण ऽहवयषु 1. 51;
शुष्णाय 1. 175
शुष्ण ए. 6, 14.
शुष्मः [. 100, 2 ; ८65;
ए, 10,9; 68, 7; *1 1.36
6; 04. 1
र
शुष्म 16414160
1. 32, 3; 379 10; ष. 7, 12; 24 7;
४, 16, 3; 5०9; ४1. 9 8; 445; 72
५; प. 24; 4; 33 4; 1.6 0
4; 75 7; 20 3; 953 1४ 96, 8 ; ५५,
2, 4; 63, 29;
106, 4; >+. 75 3; 173; 1.
शु्माः 1. 52 4; 1.7 9.1.14 ~
१.८.070
64; 3; 76, 2
94, 8; 142, 6.
शुष्मात् 11. 14, ए; 13; 68
7; ~. 147; 1.
शुष्माय पा. 7, 5.
शुष्मासः
14; 99, ५)
> # १
१, 21; 44 5; 2270 19; ४. १0,
13; प्र. 3, 7; #1. 20 4; 9111. 1, 24
1; 96, 17; 228 11; 49, 4
4; 1४. ॐ,
9 ॐ; >. 180) 3.
4; 9५11. १4,
छः ऋ
कः ऋ
1
38, 3; 1. 5० ग; 531; +. 36
शुष्मिणं 1. 7455 1; १9, 4 ५, 10, 4; | १,
1६. 145; ॐ व; 433; >. 43, 3. = 1 |
शुष्मिणं ए. 23, 5; णा. 3, 3; ०००, ५. | | ५
शुष्मिणा 1४. 4, 3.
शुषि 1 ०, 3; 374
शुष्मिन् 1. 1१5 1 १.2; 91 -3५ २ ;
ए. 98, 12.
शुप्मन्ऽतेमः 1. 107, 9; 135 6; 755. ` ५
शुष्मिन्ऽकतम 11. 71 13; 7. ॐ; 8. 0
शुष्ण 1. 50, 0; 1, 1 (0
शुष्मेभिः ४, 10 4; भा, 61, 2,
षमः 1 05; 1. 22, 3; ए, 3 8; 32, 4 ;
6०, 3; णा, 4, 2,
शुष्यतु ४11. 104, 77.
शुर्कृ्स्य 1. 162, 1४.
शूधनासंः 1४. 58, ¢.
शूद्रः +. 90, 12.
शूनं 1. 40, 10; 28, 12; 29..0; या. 95; 15;
ए. 45; 36.
शुने 1. 105, 3; १1.476
शुर प. 38, 5.
शूर 1. 71, 6; 29, 4; 52, 12; 63, 4; 8; 87,
8; 1293 3; 5; 74, 7; 142; 6; 133; 0;
130; 049 च. या, 2.35 5;
11-1644,1; 10; 4811...
11; 47 3; 47 2; 57. 7; 12; 52, 4;
559 2; 1४.35; 16, 2; 2; ग; 22, 5;
32> 27; ४.33, 7; 35 2; 36, 2; प्रा. 15,
11; 19, 6; 3; 24 3; 26, 5; 5ॐ 3;
4; 44 7; 47, 6; ण्व. 9, पठ; 0, 3;
223 7; 23: 5; 249 4; 5; 30 7; 4; 3:
1 21.-2)..20.4; 1,2.14. 214
242 2; 8; 32, 5; 34 14; 45 34; 46,
11; 49; 3; 5० 9; 62, 5;: 623 11; 63;
11; 66, 5; 7०, 9; 78, 7; 4; 87, 3; 9,
४5; 98, 8; 3. 22, 9-712; 40; 1;. 502
१9, 4; 99.10; 12; 4; 141; 1; 148, 2;
4; 5
[. 79 6; 70239 63; 104; 4; 122, 719
1429 5; 58, 3; 175, 5; 775; 3; 08,
द; 11.107. 1.2 2. 5.30.
| 9. 63, 5; ४1. 25 4; 5; 35 5; 64 3;
4... 6. 1; 19 24 2.3; 240; 1; 5
1 नृ: - 0. 2 364 3१ 15; 45; 3; 62,.28;
9 9. 1 2 94152 16..6
॥ ८ 62, 19; †7©) 10 ; 6, 2; 89; 7; 89, 3;
(1 94; 3; 96. 7; इ. 42; 4; 55 6; 8; 105;
4; 6.
{. 163; 19. | १
शूरऽतरः 1. 66, 10. | | | ०
शूरऽपल्नि 2. 86, 8. ति "
शुरऽपलनीः 1. 144, 5.
शूरं 1. 772, 18; 1. 38, 2; 3; ए. 25, 4;
47 पठ; 1. 81, 1; ङ, 42, 2; 74, 9.
रऽसाता 1. 31, 6; 150, 2; णा. 93, 5; श,
63; 14.
शुरऽसातो 1. 10, 7; आ. 54; 4; णा 19, 10 ;
23; 2; 26, 7; 53 2; भा. 76, 4; इ.
64; 9.
शूरस्य ए. 2, 9.
शूरस्यऽइव 1. 748; (1. 558; शा. 6, 5.
शुरं 1४. 47; 4.
शुः 9. 1, 10; 3० 2} 34, ॐ; 56, 22; ड.
78, 4.
शणः 1. 64 9. ^
शुणःऽङ्व 1. 85; 8; ए. 59, 5
शुय॑णां ४1. 68, 2.
शु्खय + 755; ठ; भा. 2, 25,
शूरसः +. 10; 12; 1945;
शुभिः 1. 8, 4; 707, 6.
शुरैभ्यः 1. 66, 1.
शूरः 1. 129, 2; 1. 3०, 1०; शा. 19, 10;
+. 22, 9 |
शूतीः 1. 1/4 6.
शू 1. 7162, 14.
शूशवाम 1. 166, 14.
शुश्ुनानः +. 24; 6.
शूशुजानान् ठ. 27, 2.
शूशुयाम ४111. 21; 12. ८1.
शूशुवत् 1. 54 7; 11. 25 ए; १. 35 0
शुशुभ्वासः 1. 267, 9. | ॑ ; 4 ध
शुशु ऽवांसि 1. 64, 15; 19, 16, 13; ण.
7; 8 ;: 4; ॥ ४
शुशुऽ्वांसां ४1. 93४ ५
शूशुवानः 1१. 7, 2; ए. ०, 2;
शूशुवानस्य ~. 7771
|
| र
॥
|
|
शूशुवे ए. 32, 6. |
षः [2.2 2.
षणि 2. 93, 7.
धर, 0, 10; 62, 7; 154; 3; 11. 7,6; 54
1; ए. 702; पा. 255; =. 303; 54
6; 96, 2; 120, 8; 155, 7 `
शूषस्यं 1. 181, 2; शावा. 04; 1,
ह र इतिं 12. 97, 54
शूषः इ. 6, 4.
गुण, 49, 2; ष, 41 7; 16; (1. 12, 4;
08, 33 +, 6, 3.
शुषःण्रा. 66, 1.
गुणं 1. 545; ए. 86, 6
शृंगं ४. 59, 3 ; ४. 86, <. |
गृगभ्ृषः एना. य), 3. |
. | गा. 14० 6; प. 58, 3.
` शृंगाऽ्डव 77. 39, 3. |
शृगाणि 1. 163, 11; द. 75 4.
५ ` शंगाणिभ्इ्व 171. 8, 19. |
शृगिरः 1. 32, 75. |
. ` शृगिणं 1. 33, 19.
शुग 111. 8, 19.
शगे इतिं ए. 9; पा. 6० 3; व. 52;
194; 877. |
7 ८ वृषु 9
५ १ । | ` शणः प. 46, 4; पा, 2954; 3. 7
1 शृणव॑त् ४ 4.5; 30, 3; . "1 26, 1१11.
1 ^
वह् 1. 241, 12; 245, 3; गा. 404;
व पा. 4३.००; उ. ०69; 66
के
7 क
शृणीहि 11. 3०, "7; 91... न थ ५
शृणु प्रा. 1, 2; 36, 7; 45 6.
शगु 1, 86, 2; 1. वा, 13; + 52 13; 4
30; 8.
शृणुतं 1. 93: 7; ए. 60, 15; ४.
2; 911. 73, 79; ४, 4; क ६.
शृणुतं 1. 47, 2; 89, 4; 118, 3; 7:
62, 2; भरा. 69, 4; +1.. 07; 16) 6.3, 4;
ए. 35, 9; 388; 852; ऋ, 84, 1
शृणुते >. 715, 9.
शृणुधि प. 237; 84 2.
शृणुधि 11.90 12100
श्रुणुयाम {. 89, 8.
श्रृणुष्व 1
शृणुहि 1. 82, 2; ह. 82, 4; >. 75, 5
शृणुहि 1. 104, 9; 139, ;. 1४. 22 16;
28, 1.
शुणोत 1. 35 9.
शुणोतन् 2. 36, 10 ; 6० 4
शृणोति 1. 37, 23; १, 04, 5; 125, 4.
शुणोति 1४. 23, 3; णा, 78, 5; > 71,
4; 6.
शृणोतु 1. 714, ग; 1. 24; 1; 32५ 4; त, 4
19; 79; प्र. 42, 12; भ. 44 5; 46, 1;
णा. 54 4; 95 18; 0८, 14:
| शुणेतु 1. 24, 12; 1. 4 20; प, 42, ए;
` 45; ग्य; 468; प्रा. 5०4; 555; णा.
` 55 6; 38, 5; इ. 64; 4; 10; ५2, १४.
| शुणोमिं प. 32, 22; पा, 32; त
शुणोमि 71. 33, 4; प. 32 ` 42, 9:
शुरतः 11. 29; 7; ए. 64.33. : छ
। शृखतां 2, 64 1.
॥।
न
` ------------------------
शरखतिं + 11.
शृरखति 11. 24, 13.
शूरतु 1. 44 14; 1. 54, 20; प्र 41; 12;
ण 22 9; भ्न 35 14; 442 5; ॥6१॥।
54 3; 8 द; उ `
शृणंतु 11. ००, ग; एवा. 5०, 4; उ. 5,
6.4, 6. |
रिरे {~ 15 8; प्र. 8, 6; ए. 87, 5.
४1.45 4; 54, 6; 44 ठ; इ. 168, 4
शूरितिषे ष्व. 6, 14; 33, 10 ; ¢8, 3
शृरििषे 1. 42, 7; एवा. 8, 5.
शुर 1 74; 7; ` गा. 55; 20; भ्र. 1 9; ण.
732 7; १. 47, 6; प्रा. 2 34; 45; 32;
41.994; 4
ह ।
शुरषे १ ८.6 2; 169, ५ 3 [1 3०, 10; 1. 1 ॥
10; 20, 9; 4,2; ४. 8, 4; 26, 4; 1.
97; 13; र. 175 7.
शृतऽपाके 1. 162, 10.
शृतऽपान् >. 27, 6.
शृतऽ्पां ४71. 18, 76.
द. 114 4; क, 16, 2
शुतासः 1. 82, 7.
शध्यां [. 12, 10.
शेक प. 61, 2.
शेकुः >. 44, 6.
शेकुः 12. 753; 2. 88,
शेपः 1. 112, 4.
थं 2, 85, 37"
शेषा. 14 9 |
शेपे 1. 43; 22. |
शेव॑ 12. 82, 4.
शेवः 1. 69; 4; 75 ‡.
शेवधिपा १111. 51, 9.
शेवधिं ध 140 क
1. 58, 6; पा. 4.5; 9, 64 2; 5112;
53 1229 ग; २44, 3
11
शोचिषः
7 119 3
शेऽवृंधं 1. 54; 17. व
शेऽवृधं उ, 61, 20. | ।
शेऽवधासः 171. 16, 2.
शेव्यः 1, 256, 7. 1
शेष॑ः 1. 93, 4; प. 12, 6; ण्न. 20.4.41
4.0.05;
शेष॑न् 1. 744.
शेष॑सा ए. 70, 4; प्रा. 7, 12.
शेषै ए, 69, 15. ॥ि
शेषे 2. 18, 8. ९ ग
शोकः 11. 38, 5.
शोकै ह. 37, 9. | |
शोकाः 1. 725; 4; [श 6, 5 | |
शोकै; ह. 102, 12, |
शोच ४1. 16, 45; पा. > 7; णा. 6० 6.
शोच [11. 14; 6; णा. 16, ग; इ. 693.
शोचः 2. 16, 1. । व
शोचतः ४11. 153 5, (0 |
शोचतु ४1. 52, 2. | | |
शोच॑त्ऽभि; ४. 79, 8. |
शोचन् ४1. 5०, 2; र. 92, 2.
जोच॑तं ए111. 6, 8.
शोच॑तः 12. 3; 5; 83, 2. = ।
शोचंति प. 1#, 3. | | |
शोचय ए. 22, 8.
1 ति, ।
शोच॑सख 1. 56, 9.
-शोचसर [प्र. 2, 20. |
शोचिः 1. 39, 7; 143; 2; 748, 4; 1. 7, 5;
९.6.06 :.4.12; १.28; 1; 1 042;
णा, 35; 76, 3; णा.-6, 7; 3--16;4
शोचिःध्केशः आ. 4, ग; 77, 7; 27 4;
471; 70. । 1
शोचिःऽर्ेशं 1. 45; 6; 5०9 8; 74799 प्.8, ४.
गोनिषः 50.. 11.
| 9 6, [४ 6
1५5;-34. 1.9
| ५७० ` | | ॑ शोचिषे -- इयेतालषः*
श्रा. > 4; 5, 4; पा, 44 ५; 565; | श्वर्यं ए. 896.
क 69 76; 7०2, 76; द. 85, 12; उ. 28; || धितं 1. 170, 24
| 45 ष; 80, 23; 7753; 8, 7; 28725 || आयिता 1. 57, 2; 2. 49, 3.
| शोचिषे ४. 5, 7. | श्विता 2. 95, 4
शोचिष्ठ ए. ०4; 4; श्रा. 6० 6 | सधिष् 12. 701, य.
शोचिष्मत् 17. 4, ¢. | | पिष्टं ४71. 99, 5.
सोचींधिं 111. 4, 4; प. 45; 2 || शयिहि 1. 63, 5; 1, 25; 2.
५ | १ | शोणः प, 07; 14 ४: +. 29, 9. । | | श्मशा ४.4 105; 1,
` शोणा 1.6, 2; {1.35 3. | || इमश्रं द. 23, 7; 26, 7; 142, 4.
शोणाः 1. 726, 4; ४. 33; 8. | मधष [. गय, 0; पा. 336
भते 12, 25; 3; 69, 3. इमध्रूणि >+. 24:
शोभमानं ४. 2, 4. | इमसि 11. 37, 6.
शोभसे 1. 84, 10; =. 77; 1. | श्यत् 1. 10, 4४,
(५ । भसे 9, 44,.5. || श्याम ‰. 148, 5.
| शोभि. ॐ. ` | श्यावञ्च प. 52, 1.
शोभिष्ठाः ए. 56, 6. | | शएयावऽ्ख॑श्चः ए. 81, 5.
1. 129, 5. श्यावऽ्॑श्वस्य ए. 36, 7; 37, 7; 38, 8.
भते इतिं 1४. 32, 24. | शयावऽखश्व्यस्य ४1. 35, "9. हि
शोशुचत् 1, 90, 9; 28; प्र. 483. | | श्यावः +. 29, 37; क. 37, 1४. ।
1 शोशुचतः ‡, 87, 20. | श्यावके ए111. 3, 14. =
` शोशुचता 1. 123, 7. | ॥ इयावके ए, 4, 2. =
1 शोशुचत्याः +. 89, 12. | | | | शयावं {. 171, 24; ॐ. 65, २2.
1 | । शोशुचन् ४1. 66, ¢ | ॑ श्यावं >. 68, 771.
(1 शोशुच॑त पा. 2, 4. | श्यावा 1. 1०0, 26; [. 10, ४.
शेषुवानः 7. 75, 7; प, 4; 49; पा श्यावाः 7. 35, 5; 146, 3; ए. 48, 6; ण.
44. ॐ 3; 4; 0, 7; 15 £: ९. 87, 7; 14 || 46, 23. |
र कषवं 2.19: ~ |: कववं 1 08. | प
, शोचत्ऽरये प. 79, ५. | ववावां ¶..6.9. ५ ४
श्यावाश्व ऽसतुताय ए. 61, 5
श्यावीं [ 55 11.
इ्यावीं भा 55; 9
प्रा. 46, 2
| श्येन ऽ पाभुतः --- खवः
शयेनऽरसभूतः 7, 80, 4.
श्येनऽत्राभृतं 111. 95,
श्यनः 1. ॐ2, 14; 33, 2; 956; 7. 42, 2;
111. 43, 7; प्र. 18 13; 26, 4-7; 2#, 7;
3; 4; ४. 44 77; 4 9; पा. 20 6;
४. 63, 5; प्या 82, 9; 1३. 38, 4; 50,
3; 97 01; 62, 4; 65; 29; 67, 14; गल;
68, 6; ‰7, 6 70; -23.. 829. 2; 86, 35;
96; 6; 19; इ, त, 42 99; ०; 744; 5.
श्येन ऽनूंतः 1. 89, 2.
श्येन ऽप॑त्वा 1. 7118, 7,
श्येन ऽभूत 1६. 87, 6.
श्येनं 1४. 38, 2; 5; णा. 34 9.
श्येनस्य 1. 778, तव; 64; 7; ४. 78, 4; श.
144, 4.
श्येनस्य ऽइव 1४. 4०, 2.
श्येनाऽडव ए. 74, 9; ए. 73, 4.
श्येनाः धा. 56, 3.
्येनाःऽइव ४. 35, 8.
श्येनान् ऽइव 7, 165, 2; ४1. 45, 14.
श्येनाय ए. 75, 4; 3. 44, 3
येनासः; 1. 778, 4; वष्र. 6, 10; पा, 20, 70;
भ. 772 5; 926; 70, 5.
॥।
इये . 146, 9.
इ्येनेभिः ए. 5, 7.
श्यनेभ्यः 1४. 26, 4.
श्येनोऽईव 777. 35 9.
त् 1४.04.046 1०4 72.
पा. 7532; २, 595; 4) प 5५5
प्रत्ऽद्धानः 1. 103, 3.
प्रयय 1. 24 15; 11. 28; 5
श्रयय॑न् 12. 68 2.
प्रय ४. 54, 10; 85 4.
४५७१
द्धा ४11. 32, 14.
शद्धाभिः ४1. 26, 6. ४ =
श्रद्धां 1. 208, 6; 7. "3, 4; र, १81, 4. 9
. 4; ऽ
परद्धाऽमनस्या ९. 113, 9.
घड्वाऽम॑नाः 11, 26, 3. ` हि
दितं 1. 7104, 6.
श्रद्धिऽचं 2. 126; 4
श्रद्धे +. 157, 5
शरद्धे 1, 102, 2.
प्रद्धे 2. 151, 22.
मत् 11. 30, ¢,
अमऽयुवः 1. 72, 2.
चरमस्य इ, 114; 710. |
प्रमिष्म (1. 29, 4; 1. 47. ।
्रयथ्नं ४.८; 5; उ. 70, 5.
पर्येतां इ. 18, 72.
श्रयतां 1. 12; 6; 142; 6; ॥. 3; 5; "1,
2,110.6
प्रयते ४17. 78, 7.
च्रयमाणः 111, 8, 2. ` |
यस्व 4119-2;
श्रयेत ए. 2, 6.
खये इति २,२०6६, ० ।
रवः 1, 9, 7;.8; 40, 4; 44; ?; 4425. 57;
१०; 67, 70; {33 ‡; ©; 49; 43.023. 2;
9; 10, 01 620 र 2-4;766
म; -164; 22; 1415: 5; 1, 3175; 70; 55;
इ 5.16: 14.14.20 5 46,:5 5 37:23
38, 5; भ 0,04.704... 4,
5.1; 86.64. 7.21; 37.23; 46
48, 12; 58, 3; -65, 3; 6; 7. 5
06 ५
गर
(ष
9१11, 58; 18, 24; 24; 18; 81,6; ण
0.17; 13; 72; 75, 8; .3";7;.46
5; 65 12; 74: 9; 80, 9; ०५.
7; 69, 3; 92, 10; 93; 70; 102 4 2
35.140, 21; 155; 5. |
घ्वःऽण्पे ए. 66, 5 ५
श्रव॑ःऽकामं ४111. 2, 38.
श्रवःऽनितं ४111. 32, 74.
प्रवंःऽभिः 1. 149, 2; 156, 2; 1. 39, 5; 59,
4 प. 7, 771; (1. 5 32
श्रव॑ःऽसु 11. 37, 7.
श्रव॑त् 1. 30, 8; 1015 1; पा. 45 23; 5० 6;
पा. 32, 5; पा. 1, 15; 87, 5. |
` शरवत् 1४.43, 7; णा. 954; पा. 43; 24,
प्रवतः प्रा. 26, 79. |
प्रवयः ४. 74 1.
प्रवथत्ऽप॑ति ए, 24; ठ.
प्रवय 19. 29, 3; ए, 96. "3.
प्रवय ४1. 37, 5.
| श्रवयत्ऽसंखा ए]. 46, 24.
प्रवय॑त् 11. 75, 12.
च्रवय॑तः 1. 110, 3.
श्रव॑सः ए. 42, 9; पा. 16, 10; 90, 7; द.
61, 24.
प्रवसा 1. 92; 8; [1.7 6; 91. 53.55: 30
3; 53 णा. 6, 48; 707, 12; 4९. {70
८ ~ 9 23: |
| . ` श्रवसि भा. 74, 9.
4 पवसे 1. 37, 7; 57, 3; 735; 95" प्यः 96,
4. 9; 15 4; "$ 6; 727, 14; 734: 3;
¦ फा. 7, 4; शा. 18, 28; प, 709;
1
अ
द. 3 ग; 60 2; 80, 3; 97, 255 ग्र
च्रवस्ययां 1. 128, 6.
प्रवस्यवंः 1. 48, 3; 85: 8; 725 4; 137" 5;
7, ॐ; 2; ¢; २४ 165 ग्ड; 9.9, 2; ४
7, 4; 45; 10; पा. 24 18; 52 4; {.
10, 1; 66, 70; 87; 5. |
श्रवस्यस्य प111. 96, 25.
च्रवस्या 1. 61, 5; 149, 5; [. 97; ४.
। 27, 6; भा. 18, 17; 23; 2; ३.०.00, 10,
रवस्य 1, 710, 1०} 184; 4; भा. "= 3
16, 2.
वस्या 1, 13; 73; 14 12.
अरवस्यात् 1४. 49, 2"
परवस्यात् \ * 37 3.
श्रवस्यानि 1. 1०0, 5; 14 0,
श्रवस्युः 1. 55: 6 ; ५11. 94; 7.
प्रवस्यु प. 56, 8; १1. 75; 2.
श्रवसि 1, 11, १; 34; 5; 97 18; 1. 95;
24; 22; ४. 422; 18, 4; 67, 72; ४1. 9,
3; ४. 79; 3; 9. 14; 10; 99, 2;
ह, 62 ए; 67, 5; 87, 5; 108, 4; ‰.
&9, 25 276, 6.
श्रवाय्यः 1. 20, 8; 52, 5; ए. 46, 9
श्रवाय प्र, 20, 7; 38, 2; $. 16, 12;
63, 23; 107, 9; ‰. 38; 2.
श्रवाय्य॑स्य 1. 97, 55.
प्रवा्यां ४. 86, 4.
श्रवाय्यान् ए, 45 12.
श्रवाय स, 102, 1,
च्रश्राः >. 7 35.
प्रातः 5. 179; 1.
प्रातं 2. 179, 2; ध.
श्रातं 1. 179, 3. |
चरातस्यं 1. 32, 71. |
प्रातायं ए. 67; 6. +“
षै
3; भ. 43, 2; प. 17, 3; भ". 33, 6;
ॐ 6; [क 12, 3; 4, ण; 86, 8; म,
85; 1,
धततं 11. 9 4; प्र, 58, गा.
चिता 1. 764, 29; 1. वा, 4; प्र. 64, 4;
॥ (1.
श्रिताः 1. 187, 4.
श्रितानि 11. 28, 8.
धती द. 14, 6.
धियं; 1. 85, 2; 1902. 100; 10411.1.32;
85; 1. 7; 5; 38, 4; 44 2; पा. 15,
५; #. 20, 29; 28, 5; 92 20; 1०2,
9.40 0 09.4.40;
5227...
धियं 1. 45; ¢; 46, 14; 72; 10; 749, ए; 7.
10, 7; [प्र 442; प्र. 28, 4; 45, 2; "1.
00.44 १ 7345; 274
4०.01.4८, 976 6.
चयस 1. 87, 6; ए. 59, 32.
च्रिया 1. 116, 7; ग, 75; 122; 2; 188, 6
आद 9.4.234 444. .3 101
12; +. 46, 19; 66, 4; गा. 56, 6; 72
1.4:
श्रिये ०0.111.
88, 3; 92, 6 ; 784,
9100201... 10
४५; ०9 24 256; 41, 8; ४.33; 44
2; 5 3; 60 4; 74; 6; १. 293; 44
8 ; ६८04... "11.024; 1.0
2४5 26; 4; 1 ; 102, 4; 104
४. 458; 7, ; 6 ; 105, 10
शिपत् 1, 162, 77,
1 (म 4
परीरन् 1. 68, 7; [ड . 109, 22.
एतः 9111. 2, 5; 1. 0, ५.
श्रीरंति 12. 7, 9; 7 4
ति 1. 84; 17; भा. 59, 3;
कनौ, ण कैन
+ व.
प्रीणीत 1. 46, 4.
प्रीणीतन 7ह..71,6. ` ॥ि त ।
च्रीणीषे ४. 6, 9. | | 0
प्रीणीहि णा. 2 7. ` ५ = |
प्रीतः ए. 82, 5.
प्रीतस्य [2. 109, 15.
प्रीताः ४1. 2, 28. नि, ०
प्रीभिः ए. 63, 6. ४
शरुत 1. 23 8; [. 47 5; शा. 3, 5; ॐ. 6; ५
श्रुतः 1. 5 9; 55 8; 1. 20, 6; [प्र 52; 1
ॐव; ४. 565; पा. 3० फ; णा. श
22, 4; 24> 2; 26, 4; 32; 10; 62, 9; 64;
4221. 0;
शुत ऽचि र. 4; 3.
भरुतऽक्छः ए. 92, 25;
श्रुतं 1, 6, 6
107, ¶#; 216, 73; 220, 6; 2122; । ४. | (1 | क ि
0.194.242 1... 20.32; | य
10; 44; 78; 3; ४. 49; 3 ; 62; 0.15 | ध ५ ५ ५
+. 76, 4; 62 5; 682; षा. भ ~ ५
15, 10; 26, ग; 50, 7; 59 6; 77, 14; 4
0,702.3. 179: ॑ | ८ न 4
भुतं 1. 122, 6; 157, 2; 1. 4८, 4; प्र. 75 „|
1. 68, 8; भवा. 26, 77; क 92, 28. ` + 7+ 1
श्ुतऽम॑धं ४111. 94; 7, १
तऽर्याय प्र. 56, 6.
ृतऽस्ये 1. 129 प्र.
श्रुतये 1. 212 9. =
चुवेषि १04
श्ुतपैणे 2. 49, 5. 2 1
शुतवैं १.74, 4. > | ( 1 | 0
च्युत ऽवित् ४. 44 72. ९
५
9. 2; 13; 96, 71
च्युता ४. 74; 2.
च्युता भ्र. 62, 5
श्युताय 11. 74; 8;
ष
श्रुतासुं ४. 00, ५.
श्रुत ए. 66, ॥; 1९. 90; 53.
भरुत्ऽकणौ 1. 44 7.
पुत् ऽकरः प्रा. 32, 5.
श्रुत्ऽ को 1. 45, 7; (ाा. 45, 0; +. 140, 6.
शरु [. 710, 23; 165; 77; 1, 5०, 77; ४.
309, 5; पा. 725; १. 59; प. 46,
14; +. 80, ¬.
श्रुव॑स्य 1. 36, 19.
श्रुत्यं ए. 27, 6; 36, 5.
भ्रु्ांनि 2. 138, 6.
ध्रु 1. 2, ;; णा. 96, 3; ॐ. ग, 3.
भुत्वा ४. 52, 5.
धि 1. 2, 7; 10, 9; 44 73; 48, 10; 7139
6; 142 13; 7. 7, 7; ए, 24, 3; श्व
77; 35 27, 10; 26; ग; + 22 4; 38,
2; णा. 25 12; 66, 12; 8296; 95 4;
क. 11, 9; 67, 14; 0; 125 4; 1485, 5.
पि 1. 25; 19; 20; 265; 45; 3; 5; 799;
;141,6; 1. 62; 1, 21; 8; 365;
45 77; पा. 32, ग; शा. 6; 18; 24
14; 414; 71; 99, 1.
शुधिऽ्यतः ४1. 67, 3.
भरुवेत् 1. 127; $.
श्ुव॑तु प्रा. 49, 2; इ. 75; 5.
धरुष्टयै 17. 38, 2. क
भ्रुः 1. 1/8, 7; ए. 4 7; ह. 101, ॐ
शि्गो एना. 57, 7. भ
ॐ 3; 7. 5 9; पा. 18, 6; ५.
शु 04.09 4.10 3; 7. 49
५७४ ` वि भुतासु -- च्रोणिऽभ्यां.
मानानिति तो ११५०५ .५८१५७१०४
श्रुष्टीवानं ऽङ्व >. 106, 4.
शरु्टो 11. 213; 9.
त
श्रूयाः १
प्रेयः ९. 142, 5.
च्रेणिः इ. 62,:20 ; 95; 6
रिंऽदन् ‰. 20, 3
श्रेणि ऽभिः 1४. 38, 6
प्रणि 1. 126, 4.
प्रेशिऽशः 1. 163, 70; 11.
श्रेणी; ए. 59, 4.
चरेत् {~ 174" 7.
प्रेयसः ए. 60, 4.
प्रयासं ‰. 31, 2.
प्रेयान् 111. 8, 4; ४. 41. 4.
श्रेषाम् र, 42, 1.
श्रः 1. 44; 5; 26, ए; . 33, 3;
3; 91. २6, 26;. 26, 8 ; ‰. 156, 5.
छेष ऽतमा 1. 114, 12.
प्रष्ठऽतमाः ४. 61, 1.
शरध 1. 444; 13 1 1646; 1. > 1;
प्रा. 2, 2; 19. 36, 9; 4 ए; ¶. 82, 1;
01.41.014. 0, 9 20,.4.
7109
च्रेष्ठया प्र. 25, 4.
प्रेष्ठ वर्चसः ए 1. 51, 19.
पेष्ट॑ऽवचैसा ए. 65; 2.
पे्ठऽशोचिषं 111. 19, 4 (0
परेष्ठं 19. 1, 6; पा. 68, 2; ‰. 63, 16.
घ्रर्टनि 71. 216.
शद 0,12.36; 14
चषि; पा, 00; 5. ` 0 १ |
यैः
५५१५
प्रोतं 1 24 य; ए.87,8; 9; ए. 39.35. ऽया प्रा. 104; 22. „ ` ॐ न
घोर्ता 1. 08, 3; ए. 24 4; 24 3. खशुरः >. 28, 7. ^
घोरतरः ४, 61, प. ५ आशुराय र. 95; 4. ` ५६.९4 ‹ | 1 | ॥
प्रोत 11. 26, 2. | रुर ४, 8 46 | ।
प्रोह {. 722, 6. ध | +
श्वशुरेषु 2. 95, 12. १ क ८ 24
| श्वश्रूः ९. 34 3.
शवघां >+. 85, 46.
आसयत् प्रा. 96, ¢. ` ।
घ्रोतुंऽरातिः 1, 142; 6. =
प्रोतं द. 85, 77.
च्रो्ता् 2. 90, 14. | .
नोनी पा. नसय 1. :+ 5
श्रोमताय 1. 182, ¢. | सतः >. 94 6. |
च्रोमतेन ए. 66, ५. सेत 1. 179, 4; ए. 29, 4; पना. 01, ग्य. ह
श्रोमतेभिः ए. 19, 70. सिति 1. 65, <. | | | | |
प्रोष॑न् 1. 68, 5. | श्चसीवान् 1. 149, 10. | | |
च्रोष॑तु 1. 86, 5. | श्वा २. 86, 4. ४ 4
श्रोष॑माणाः ए. 8, 10; भा. 7, 6; 57 र. छातऽभाजां ए. 4 9.
च्योधि ए. 49. | श्रावं पा. 65, 5; ॐ. 88, 4
श्रोष॑त् 149. | श्यातासंः ~ 46, 7. |
प्रध्ये ऽङ्व ए. 48, 2. श्चावेणं 1. 37, 4. |
शोः 1. 7190, 4; 1४. 25; 8; शा. 24; 7; श्ाच्यं 2. 49, 10.
१00 2144100 1.2 श्चा््यां 2. 106, 2.
159, 3. श्ारत्याः 3. 160, 2.
शोके 7. 58, 14; 5५ 72; 83, 6; 92 7; श्वाने 1, 167, 123; 1. 701, 7; 13.
110,.-8... 120 41410... 4 श्वानाऽद्व 11. 39, 4 ॥
10: 5422; +. 54.23; "1.49 १3; 32. श्वानो इ, 14, 10; 11. | 1
9.110.490 | श्चं 1. 45; 4. | 7.
चोकश्यंवासः 1. 73, 6. | श्वातस्यं उ. 67, 21. क
चघोकी ४711. 93, 8. श्वापदः ङ. 76, 6.
स
स
द
शति
त श्लोकेन ४. 82, 9. | स्तयं ५1. 47; 29. |
श्रः 1, 129; 8; 16475 0; 00; ४1 94; | | श्चितानः 044 0
ऽः ए 67, | श्वितीची 1. 123, 9. क 4
अब्रौऽडव 1. ` 92; ५५} 1. 9 4; 1१. 423; | श्िलनिवु ए. 46, 5. 1
॥ ` | श्ित्येनिः 1. 00, 8. | (1 ॥ 0
#
गरेतनयिं 1. 122, 4. .
1. 1716, 6; 278, 9; 779 16; र. ५ 4;
1, 24, 5; भा. 17, 3; 9०3; 12. 44;
४ ..40.10. | | |
शवेतया 111, 26, 29.
शयेत्तऽयावणी 11. 26
श्येता ४111. 47, 9.
„ शेतान् पा. 4, 20. |
शेतास॑ः 1.55.
सेतो 11. 4०, 8.
शरेत्या 1. 7714; 2; 3. 75: 6. |
श्येत॑सी 1४. 32, 7.
ओओतेयः 1...
शओेतेयस्यं ए. 19, 3. |
18.
#
षट् 1. 24: 15; 164; 6; 15; प. 123; 29; 7.
56, 2; णा, 47, 5; प्या, 8, 4; पा
04; 1; 2.4.10:
षद् ९. 128, 5. |
षट् ऽअ २. 99, 6.
षट् ऽरे {. 164, 12. १
र षट्ंऽखंश्चेः 1. 116, 4.
षट् ऽतिंशान् 2. 714; 6.
॥ षट्ऽभिः 1. 78, 4. (4
षट्ऽ्विधानाः प. 80, 5 , |
1 बषठिः 1. 126; 3;. 164 48 पा. -8, 74; |
८ प 0 4
५७ | | प्रेतनाये -- सः
नन्ति
संयत्ऽवीरं 11. 4 8.
संरिहाणे इतिं संऽरिहाणे 111. 33, 3.
संवत्सरः र, 140, 2.
संवत्सर भ्य, 703 ३,
संवत्सरस्य ५11. 202; 7.
संवत्सरी 3. 87; 17.
संवत्सरे 1. 110, 4; 140, 2; 161, 13; 15
44; ए, 102, 9.
संव्यैती इति संऽ्वयती 11. 3, 6.
संविराने इति संऽविदाने 111. 54, 6; +.
संवृक्तऽधृष्णुं 1. 48, 2.
संशिश्॑सेःऽइव ए. 69, ग; 1. 61, 4.
संसन्ऽमुं ४171. 4८, ०८.
संमृष्टऽजित् >. 1०9, 3
संस्कृतः [1]. 33, 9.
संस्कृत् ऽतं ४1. 28; 4.
संस्कतं ४, 76, 2.
ध
पः 1. 2.2; 4; 9; 5 3 7, 5; 16, 5; 19
१०८ 11.41.13; 1.5 14.34;
26, 1; 29; 2; 3; .7; 9; 1; 32; 39,
0.1.100 0.214.951
16; 40, 45 4 उ; 5; 0; 44; 2; ऊ2,
54) 33 7; 11; 55 2; 4-~6 ;0
69; 4°; 643 23; 68, 4; 19 3; ‰
ॐ; 4; 5; १9८; 6; 13; 86, 2; 81
४
2;
3;
1;
82, 4; 84.16; 86; 2; 3; 7; 89; 4; 89,
10:98, 3: 045 9; 16 ; 95; 5. - 86,
1
2; 4.90, 83.98, 2:09 2; 15014
8:99. भ 12; २4; 9 10
1039 2; 3; 5; 04; 87 305; 4; +;
194.364.1०9; 1; 41022; 131; 24. 522
9; 10; 143 उ; 125; 5; 2; 33 6; ठ;
9;
9;
1283-4: 445; 1 9, 225: 6; 239
103. 132; 3; 749, 7; 147; 212; 249; 2;
$
कै
3; 43; 5; 7:64; 5; 8; 96; 1,
१,20.116, 6-75; 73, 2-5; 6>;
79; 15; 4; 4; 5 6.7; 3, 2; 5;
6; 18, ए; 2 19, 36; 29, 3-†; 22, 12;
2; 3:23 4; 242 72; 7; 9५ 4; 23;
4; 2557; 4; 5; 26; 34; 27, 72; 35 7;
43. 25 ४०भ 239. 907, 7; 2; व 10;
1.2.179 12 40 4 -2;
6, 70; .8, 4; 10, 3०; 4; 8; 77, 1-3;
1.441.731
ग; 55; 2०, 4; 229 7; 2; 25; 2; 26,3;
८.५...
45 5; 46, 2; ठ 8; एण; 53; 97; 55
14 56; 3; 59; 2; 8; 62, 9; 1४. 1; 2;
छ 02011104.
9 44..83-9..4-5;12.7 216
9, 19, . 21.2.20 40.4 2:
०.223.८42; 20-9;6; 31 0
39, 3; 41» 2“; 50) 7; 8; 57 4; 5
00410 4. 2.4
3; .6; 77; 0, 2; 3; 7 4; 4; 8, 4; 9;
0.111.200.
75 3; 16, 2; 18, 2; 25; 4; 24; 3; 25
7-3; 9; 28, 2; 33 2; 6; 36 ठ; 5;
37; 4; 4 12; 42 3; 44 3; 8; 16;
12; 13; 48; 5; 55 15; 54 7; 67, 8
13; 65; 1"; 77, 4; 81, 3; 82 5; 855;
80, १; 80; 4; "~ 6; 9; 2.4.58;
१८.9.00; 2;.4.9.9;009;.0
75.94; 4. २01 3.12 1; 4.6;
244 14.129; 24;
। १0. 0.42. 0 23712; 7;
8, 2; 64.40; 8; फ; 20 5: 859;
| 3; 4 8; 12; 22) 4; 717; 24 8
45 6; 20; 29, 4; 35; 39 9-;
33; 4; 35, 4; 36 43 5; 43 7; 447;
713; 45 7; 4; व्व; ठु; क; 24; कवः;
2; 40, 4; 13; 28; 29; 48, 2; 49,
क
५७9
9; 209 5; 6; 10; 01, र; 22 2; 52,.6;
10; 33; 72; 38 3; 4० 3"; 47, 5; 42
4; 45 2; 3; 46, 2; 56) 8; 59, 2; 8;
60, 9 ; 679 7; 2; 62 2; 66, 5; 69, 2;
85, 4; 86, 6 ; 93; ‡; 95; ८४ 97, 4; ४
८ 1.204.422 1 10.10.71;
१6.१1.11 22 11422434 0
4 22; 15; 17 3; 15 7; 2; 19;
इ. 70.102... .-19. 4.
+. ` 14 20 20.1001..2.76
712; का; 24; 263 26, 25; 27; 77;
3 3; 32 <: 12; 33 6; 59 3; 5
6; 4; 9; 49 2; 42 25.34.45; 55 84;
; 7०; 422; 439; ए5; ०4; र; 32;
44> 14; 46, 4; 9; 12; 13; 27; 48; 9;
57 4; 6; 9; 57 5; <6, 5; 6 14;
619 9; 75; 03; ग; 3; 4: 7; 66; 3; 8;
69.14; ` 77, 3;.5; 9; 140 ग; 19; {8
0 80, 71; 90, 4; 92, 15; 923; 9; 9 ॑ | 7
29; 96, 79; 2; 97; 3; 63 98, 12; ८ ५
09, 7; -4;. 71 1; 142; 2; 293; 4} .:52;
13. 77; 93; 4; 3; 78 7; 2 2;
3; 6; 36, 2; 3; 5; 37 7-6; 59 4;
4०, $ 4 4; 44 46; 45 2; 46.
5; 49, 4; 5० 5; 55 4; 73; 4; 58 =
1; 67, 6; 9;.712;--924 69.85: 10; 64...
12; 65 15; 27; 66, 28; 67; 22; 31;
68, 25. 45. 70 .2; 4644153; 53. 79.
8; 75 7; 8 14247; 95.765; 70
79 8८, 3;.86; 25; 32; 38:45. ६ ८ ४
42; 87, 3; 88, 2; 975 5; 93 4; 963; ५
8.1०; 9,9.95; 32; 38; 59; 98.
4; 9; 996; ¢; 07; 15; 1645 ; ८
5; गीः. 17; 108, 25 19; 13; 1603;
1...
3; 7; 0; 7; 4; 7 4; 8, 2; 8;
क, व. 1414; 16; 10;
प सका - स्खिंऽत्वनाप.
निषिततनिकापव
| सकीमरहि भ. 3996; 551;
सच्चं 1. 42; 7.
सखा 1. 4; 10 ; 22, 19;
639 4; 72, 5;
100, 4 ; 270, 3;
3; 24» 71; 28, 10; [1.4 1; 3156
65.61, 96:46; 48: 90.02)
त) 13; 07. 2; 68, 9; 12; 69; 3; 4; 12;
7०, 9; व्रः पण 79, 4; 8 ग; 7; 85; 47
34; 86, 764; 87, 8 ; 88, 4; 5; 8 -10;
16; 89, 2; 9०; 5; 9५2; 952; 9;
` 06, 3; ¢; 97, 6; प; 28; 98, ८ 5; 9
+ 020 01912 4; 4; 54 17; 1४, 4, 10; 6
` ` 8; 109; $; ग, 6; 108; 4; 159 3; 74; 18 31
7; ४1. 334; 4 1
8, 6; 19, 16; 26, 1
2; 29 ; 4; 9); 1.4,
४
45 7; 37; 70 14; 95 3;
| 70, 3; ग्व, 7; 3; 72 < गः ८.
175; 5; 71, 2 4; 6; 218, 3; 8; 127;
1; 122; 7; 5; 7124 5; 125; 4; 128, 8
र १29, 7; 139, 2; 140, 4; 4 4; 49;
3; 155 5; 264 5; 186, 2; ३87, 7; | 66, 7; 4; 86, 16 ; 46, 2; 1971, 8; १, छ,
197, य. | १.0.200; 2040211 |
षका 1. 197; 711 | 156; 4-6 ; 152 1; 1690, 3; 16868; 2.
सकृत् 1. 105, 18; 11. 16, 8; १. 48, 22; सखाभ्डव 711. 28, 2; 11. 48, 4; दि. ०4 |
66, ठ; रा. 1, 14; =. 33; 3; 95, 16 | &; 3065; &-
सकृत्ऽखं २. 74 4. | सखायः 1. 5, 1; 22 8; 3०,
सऽकेताः ४1. 9, 5. | 1; 0.29 24
सक्तऽ्व ¬. 77; 2. | | ४. 12; 5; 32 6
सक्थानि ए. 67, 3. | 37, 70; ३2» 12 ; 2
| सकय द. 86, 6; 7. | 8; 454; पा. "9, 8
| सक्थ्यां र. 86, 16 | 0 १.12, 38
स॑न् 1. 31, 6 | 29; 45 76; 7० 13; 92, 33; ५6, ;
सक्म्यं 1. 38, 7. 4 = 12. 45 4; 96, 4; 97 4; 43;
1 ^ ५ सक्तवः 11. 97, 1 | 101, 2; 1०५. र 134 1.0; 0)
स्तु; 2. 148, 4 1 1 29; |
स् कि सत् 195. सखायः 1. 41; 7; 165, 13; 11. 29, 9
ससणः प. 41, 4.
3०4; 5 85. 101.1; 24.155;
सखायं 1. 129, 4; 185, 8; प्र. 4, 3; 24; 6
भ. 245 12; 85; 2; प्न. 44; 7; 29; 459;
2; 759; 3; ष्व. 28, 6 34, 15; 86 4
प्र. 92; 4530; 61. 626;
0,.55.9, क; 1०.४.06; 4359
#:
सखिऽत्वं -- सचथ्यं. ५५९ |
सखिऽ्त्वं 1. 1, 5; 1४. 25, 2; पा. छ, 8; सख्यात् >, 124; 2. | , . 0
1. 3156; 67, 4; 659; 66, 4; र 133; 6 व | ० | |
| 9 9 ^~ ^> 42 ~) 93 0) ° 133, ©. सस्यानि 9 १1; 0; 29 10:14.
सखिऽतव 1. 20) 6 3 ष्ा. | 31. ् ॥ । ध 3 ९ त
सखि सख्याय 1. ता; 7; 79 5; 138, 2; 16,
साखऽनिः 1. 200, 2; 4; 28; वा. > 9; 39, 4; प्र, 70, 16; 29 2; 3, 77; 33; गय;
4; 3; 57) 8 3 ४. 16, 6 3 32; 3; ४, ५..2.-34 0.4 ॥१॥ 20; 77; ए, 29, [क
ॐ 3; >. 67, 3; 7; 75; 5; 6; 179, 3. १901. ८021; ता 10 1.८
सखिऽभ्यः 1. 4" 4; 53; 2; 75, 4; 8०, 6; 7. दव, 14; 89, 2; 98, 3; द. 66, 8; 86, ५५
3०) 35; 37, 255; 39 26; 62 7; वप्र. 25 20; 10020 29.430. 7 0124; |
5; 8; ४. 244; णा. 442; पा. 2, 2; 64. 7; ‰3, 4. 9 . १
4; 95: 4; 97, 7; ४. 96, का; 12. 4 सख्युः 1. 2, 5; गा. 43, 4; ए. 3-ग3;
2; 06, 7; 4; 96 ठ; =. 62; 342; 5; “ 216; 4; 56:69, 0; -1-. 86, 26; नि
429 77; 87, <. ` 96, 22; =. 9; 4; 86, 12. त ५
ससखि ऽयतः 1. 257, 5. सख्यै 1, 26, 5; 165, प्य; 7. 35, 22; रा, ` ८
ससिऽयतां 19. 27, 28. 18, 7; ए, 00 पर; पा. 5, 0; प्रा, 48, =
सखिभ्यते 1. 228, 7; ए. 4०, 3; इ. 9, 7. 4; द. 45; "०55; उ 74 | |
संखिऽयन् 111. 37, 7; ४. 49; 2; ४. 32, 3. सख्ये 1. 7, 2; 97 14; 94 4; 158, 3; |
सखिऽ्वान् 1. 156, 4. # 0 4-1.93); 16, १७...10..01
सखीन् 7. 165 73; 7. 4; ए; 37, 8; प्र. 35 98, 7; प" 6 3; 44 142 प व थ; |
7; प्र. 53, 16. | , 44 प्य; षा. 54; 2; गा. 4; 4; 27; 215; ` । ३
सखीनां 1, 4०, 77; 7४. 37, 3; ४.64; 5; णा. 1 9 | 01 |
2. # 2 2; 40, 5; 7" 5; ९४, %; . 124२ 9, ॑
सख 1. 39, 10-72; [. 57, 6; 1४. 1, 3; क 0
क > १०.11. 39..4; 111. 71.9.92 सख्येषु 1. 105; स. 138, 7.
| 112, 10. न ६ ५ | सख्यैः ए, 29, 24; <; 132; 2. |
9 सख्यं 1. 15, 5; 62, 9; 89, 2; 138, 4; 263, | सञ्गणः 1. 10, 9; 1. 39 3; 47 2; 4;
1; 8 5 11, 3.4.474 42.02 92, 7; 250; 3. | |
॥ र 60, 3; 1४. 239 57; 6; 25 7; 7; 35 2; || सगरस्य >. 89, 4"
४, 509 1; ४1. 18 5; 49; 26 ; 48, 28; । सत् | 5; 4. 4 कि, | त
णा. 7, 2; 78, 14; 21; 36, 5; 82 8; || सकाः भा. 75, 5. 9
णा. ०3; 3, पञ 19, 5०; 44 90; | सगच्ध॑माने इतिं संर्गचमानि 1. 855. :
ह... 48 688 9 90, 4 | सवत 9 (1
ह. ८ 6. 4:86, 8-955-10, 2; 46, 1
"10 ` अना अ 1
सख्या 1. 53, 7; ए]. छ, ; 56, 2; णा. 43; || भृ 1, 94; थ गः 1409; 1459; = |
14; 48, 10; ॐ, 5० 180, 5; 71. 184; ष. 4 ज
अर्या | 77, 10; {08 ध । १8, 2; 1, 22, प; श्र 2342. 5;. 44; 3; 9. 2 » 3
गा. 5, 6; प. 9 4 ण्य 8 6 ध
४५६०
सचर््यैः प. 52, 2.
सचध्ये 1. 167; ‰. `
सचनः {, 7116, 18.
सचन॑ःऽतमा ४111. 26, 8.
सचनस्य ४1. 39, 7. । ।
सचनस्यमाना >. 4 3.
सञऽ्च॑नाः 1. 127, 7,
सचनाऽवैं पा. 22, 2.
सचत 1. 73, 4; इ. एतय, 0.
सच॑त 1, 256, 4; 164, 5०; 7. 5 5; ता
, 14. ४, 10, 5; 43 5; भ्व. 5, 4;
0,204.70; 70,
सचतां 1. 22 11; 98, 5; प्र. 5, 14; 4,
70 ; ण, 104 74; २. 89, 15.
स्ते 1. ;9, 6; 144, 2; (रा, 74, 2; णा.
91; 6; ~. 53 4; 64; ¢.
सचते 1. 60; 4;. 47, ¶; 700, 23; 123, 8;
र 2190, 2-1-11... (1 ^
णा. 5 5; 33; ;; 01; 4. 122; 009
5; 1. 82; ठ; 89; 5; 9, 4; ॐ.
124; 8.
सच॑मानः 17. 74; 5; 96, 29; उ. 3, 5.
सच॑मानाः ४. 42, 8.
सचमानाय >. 170;
सचमानो ए. 36, 6. | ध
सच॑से ए. 11, 6; ‡. 8, 6. | |
सच॑ख 1. 7, 9; 129, 9; प्रा 24, 70.
सचसख 111. 53; 17; ४. 37, 2,
शीः ` भे कक
सर्च | 9) 2; 4; 2; 9 33 10, 4; 4०, ग;
97, 77; 639 3; अ, 4: 87, 8 82; 2:
95 श्ण; 112 8; 150, 7; 74 3; 139
4. 34० 7; 6:34 100; ग4 6
आ. 17, ¢; 1. 19 2; 5
02 4; ए. 1, 3; 59; 5
सचेमहि 1. 136; 6; 71. 8, 6
4; 593; ¶1{. 7, 27; 225 22; 4; 32,
2; 59; 3; 87 2; 95, 8; श. 7, 7;
42; 3; 0, 75; 45 24; 52 2; 33
4; 7; 46, 7; ऊव 7; 52 7; 67 77; 66,
6; 68; 74; 78, 2; 92 29; 93, 20; 97,
8 {14.29 8; 264; 3,4.40
62, 6; 9 5; 95: 8; 105 4; 9; 137,
4; 734
सचानः ए. 209, 2.
सचाऽ्भुव॑ः ४117. 37, 16.
सचाऽ्भुवं 1. 711, 7; 13, 3
सचाऽ्भुवां 1. 34; 77; 750; 4; र. 37, 7; णा
35; ‡--3; 2, 76; २.
सचाऽभुवे र. 777,
सचाभ्थूः ~ 9
सचावहे इतिं 11. 88, 5.
सचावहे ५. 55, 2.
सऽचितंः 2. 64, ¢.
सचिऽविदं 7. 72, 6.
सचेत ४. 52, 5; पा. 102, 22.
सऽ्चतसः ४111. 58, 7; इ. 7, 3; 4 5; 544.
सऽ्चतसं २. 44; 4.
सऽ्चतसां र. 114; 7.
सञ्चताः 1. 67, 10; षर. 76, 4.
सचेता 1. 185, 9.
सचते इतिं 7. 4२, 6.
सचेते इति 1. 136, 3; 111. 39, 3.
सेये इतिं ए. 5, 2.
सचेथे इतिं 7. 116, 17; 152; 3; 180, 7; 182,
25.11. 39 24 द, 206, 10,
सचैमहि ४. 50, 2; ॐ, #, ग.
५ क
सचेय ए. 19, 28; 48 10. प 1
कहे भ कयः
सभ्ना्ये 1. 1, 5; 71. 54 26; णा. 20,
४0 ;:. 4; 19.
सऽजाव्यस्य +. 64, 73.
सऽना्यानां ए. 83, 7.
सञऽ्जा् ४111. 18, 19
सऽजाद्यन ४{{{. 20, 21.
सनानि 1 2197, 10.
सञऽजित्वरीः २. 97, 3.
सऽजित्वानं 1. 8, 1.
सऽजिर््वाना 71. 12, 4.
सञ्जः 1. 25; 7; 44; 2; 14; ४. 5, 8 9;
` 69; ए. 47, 29; पा. 34, 8; पना. 9,
70; ॐ. 4; 6; 105; 9,
सञ्नोषः ४. 2, 3
सञ्जोषसः 1. 45 3; 751; 7; 136, 4; 75; 7;
१.71 91
11
1. 22; 18; 252 14; 27; 5; 7; 54
9 4.1119.4; 14.1038) +,
06.71.420; 1. 170 3
सऽजोषसः [1. 3, 2; ए. 546; 2. 55 ग्य.
सऽजोष॑सं ¬+. 253; 4.
सऽजोष॑सा 0. 58, 7; 7१. 46; 5; *ा. 29
2; ७11. 9.10; 26; 13; 1973 7.
सऽजोष॑सो ८4९.
संऽजोपा; 1. 65, 1; ¶2; 6; 90, ए; 778; ग्व;
` 752) 1; 186. 9; 3; 6; 7. 54; ता.
4, 8; 3०, 2; 359; 453; 47 2; 1.
5 1; 54 74; 39 3; 56, 4; १. 4 4;
212; 41;2; 4;- 8; 45 01.1.21
19; 3; 243 77; 495; 49, 7; 50; 12;
13; 55; 60; 5; 68, र +. 3; 8
59; 12 4; ०4 4; 34 23; 52, 4;
48, 4; 6० 4; णवा. 48, 15; 63, प;
18.64: 29-10-62; 84,
110, 3.
स ऽजोपों 111. 60, 2.
संचरती इतिं संऽचरती 1. 146, 3; 111. 33 3.
1
सोममन्य
#।
4.3. 1.44 44 21.24
104 20. (11.723. 1 .1..01-1 स
57 72; 109 7. |
धतः. 1. 36, 5; 96, 7; 1. 6, 6; -षा.. ३५
24 ; 84, 6 ; 104; 271; #111. 24; 26 ; 101,
11; 7. 19, 7; 0, 7; 576; 86; 5; 6;
274. 3 10; 129; 4.
सतःऽमहांतः ४111. 3०, 1.
सतःऽवीराः ४1. 75, 9. |
सतःऽसतः 111. 57, 8. (५
सत्ऽसंश्चः ४. 58, 4.
सता ४111. 423; 14.
सतां 1. 173,4; 11. 7, 3; 16, ए; #. 60, 7,
ती 1. 14, 4; प्र. 39; ४1. 47.24; शा
(
सक्तः 1. 264 "6; 77. 3, 5; प्.29, 5; पा,
6, 8 ; 14, 8; 1. 87, 8; +. 169, 4.
सती नऽकेकतः 1. 197, 1.
तीनऽमन्यः >. 112; 8
सतीनऽसत्वा 1. 100, 1.
सते 1. 294) 1४; पर. 74; भा. 44; ५०. =.
715, 6. |
सत्तः 7. 105, 13; 14; [. 56, 6 11.42
भा. 42 2; 56, 18
सत्तां 111. 14, 5; 1. 86, 6 ; 96, 23.
सत्ऽपतिः {. 542 7; 97, 5 ; 106 03141.
१0.141, 4141130 ४, 20, 1;
713.; पा. 13; 3; 26) 19; 56, -9
१1. 79 36; +. 8, 9; 45, 9. 9
सत्ऽप॑तिं 1. 17 7; 11. 33; 12; प. 25 ठ; 329.
ग; 82, 7; पा. 4 4; 260 2; 40
74,
पा. 2, 38; 27, 1८; 55 6; ०9 4;
1८. - 2.60; 2 0 1
स पती इति सत्ऽपती 9. 65.32; णा 60, 6; ¬>.
6.5; 2.
सत्ऽप॑तीत् ४1. 57, 4
सत्ऽपते ४1. 46, 3; (101
ई
५६२ | स्य-- स्ेभिः.
1 मनन
^ ^ „~~ - ~~~
तवच 1, 29, 1; ए. 45; 710; भा. ५० 18
98, 5.
सप्यऽखक्छिः 2, 37; 2.
सद्यः 1. 7, 5; 633; 752; 145;
मुं; 72 2; 164; 7; 144. 7; 1, 2; 7;;
22, 1-3; 23; 717; 24; 14; 1. 74, 7;
19. 16, 1; दा, 10; 37; 2; 46, 23 भ.
23; 2; 25 2; ए. 22 7; 67 8; भा.
2, 36; ॐ 4; 26, 8; 92; 4; 1.
3; 96; 2. 29, 4: |
सव्य ऽकमेन् 12. 213, 4.
स्य ऽगिवैदसं 1. 127, 8,
सव्यऽतर 104.
भ ह सत्य ऽतरः 117. 4, 10.
सत्य ऽताता क. 717, 4.
सत्यऽत्ताते १.4 1;
सयऽथमा ए. 34; 8; 727, 9,
सय॑ऽधमेाणः प. 5; 2. ` ०
सव्यऽधमोाणं 1. 22, 7.
सायं धमाणा ४. 63; 7.
1 सत्यऽध्वुत 10. 1;
4 चं 1, 6;. 38, 7; 52 .13.; 98४, 3;.-104;
1:70; :2 ` ८86; 1; [1 22, 7-2 ; . 24;
72; [ा. 146; 56; 3 9; 39
+ 2 164. 8; 2455; 16; 285.
2; 33; 0; 54 4; ४. 135.9; | 85 4
१०; १.26, 12.4.60... 104; 14;
पाः 39 4 45; 469;
॥ ८ 59; 3; 3; 62; 12 ; 74; 1.9; 92; 5; 166
१“; 1644092 5.-12244. 3:20;
10; 47, 4; 55 6; 87, 12; 1०9 6; 717
6 .170;:2 : 290; 1.
सत्यमद्वा !111. 2, 3
स्यऽमताः 1. 20, 4: ४11. 16, 4
सत्यमन्मा 1. 75, 2; 15. 97, 48.
सत्यं ऽराधः ४11. 47, 3.
सव्यऽराधः 1.101.093
सत्यऽराधसे 1.4.
सत्वराः ए. 242; 29, 1; प्र. 40 7; *
` 29, 7; 49 प्य,
सत्यऽवाचः 111. 54, 4
स्य ऽ्वाचं 100; " 3
सयऽ्वाचां ५.72; |
सत्य ऽजवसः 1. 86, 8 ; 9.
सत्यऽ शवस ४. 52, 8. |
सवऽ्शु = 1,-19;
सावऽशु्मः प्रा. 3०, 21; 1. 71, 4; [. 97, 4.
स्यञ्शुष्म ~. 44: 3
त्यऽ शुष्माय १.714.501 0.4 14;
सत्यश्रवसि + 0.9
सय॑ऽभ्ुतः ४. 57, 8; ४1. 49, 6.
सत्य ऽसत्वन् ष. 37, 5.
सत्यऽसंवं ४. 82, 7.
सत्यऽ सवस्य 2. 36; 73.
सयस्यं 11. 15; 7; ४1. 35;
094 104.
हत्या 1. 09, 4; 1. 251; 14.19; ए; 20;
09 0. 4141
4; 7; [. 94 4; 9 220 13; 56, 3
128, 4,
स्याः 1. 79; 7; 179; 6; 180, 7; +. 67, 4
१1.10. 1:
57; 2.2.716, 5.
सब्यानिं पा. 67, 20; [2
सयानुते इति 11. 49, 3.
सव्यानिः 1. 7209; 0. त | ॥
सत्यां 1. 108, 6; 1. 70, उ; >. 60, 71; 1०4 3
सत्यासंः >. 15, 10. ५
चै क
ष.
क्य
क
न ई
र
ज
३ >
= अ
ड
डं
ड
६.
[ए
॥
बे
५
सयेः-- स्दने. ३
संयि 1..074.2. ५.0.11.
सला 1. 57, 6; 77, 9; 429 2; [. 20, 40; 8;
10 910.
80; 2; #..60 4; 65, 5; "4. 202; 25
34; 4; 369 4 2; 45; 2; 9; णा
9; 41.712 3-52.-10;-08.9 4. 1.2
30.14.10. 1-110-11
१ 00.144 11. 6116. |
सलाऽकरः 1. 178, 4.
सताचः +. 77, 4
सवाचा ए. 100, 7; एना. > 37; 12. 40, 4.
सत्राचीं ४1. 56, 18.
सताच्यां ए. 67, 2.
सलाऽजित् "111. 98, 4; [र 2, 4.
सताऽजित॑ः ए. 3, "5.
सताऽलिते 11. 27, 1.
सर्वा ऽदावन् 1. ¢, 6.
सलापाट् *11. 20, 3.
सलाऽसहः 01.
सताऽसहं 1. 79, 8; 11. 34 8; 5.०3; णा
92; ¢.
साऽ सहे 11. 27, 2.
सल्राऽहनं 1४. 17, 8.
सताऽ्ं ४. 35, 4
सलाऽ्दा ४१1. 46, 2.
सवे 91. 233, 23.
स्वन ९. 215; 4.
सत्वनां "111. 96; 4; >. 103, 19.
सत्वने ४1. 45; 22; पा. 45, 21.
सत्वनेः ४. 37, 4:
साबऽभिः 1. 133; 6"; 149, 9; [. 45; 4; 52;
१0; 1. 539 5; 49 2; १. 34; 8; भ्या
4 3; द 3, 4; 76 ग दु. ष्ठक्
सावा 1. 1175; 5; 1४. 73; 2; 40 2; ष ८.0
६; प. 18, 2; 2 7; 26; 6; 37 5;
प. 202; णा. 16;.8; 1.87; 1
सत्स॑त् >. 53; 1. ॥
सप्सिं प. 17, 19. | ४१
ससि 1 72..4.-10.4 . 6, 8; [1. 14;
9. 16, 16; "1. 23; 26 ; २. 2; 0
44: .2.
सद 71. 36, 4; णा. 7, ८; णा. 9, 8; र.
70; 3
सदः 1. 85, 4; 6; 47; 128, 3; ४. 61, 2; ण.
10.174. 1111..20 0; -4.0 102;
02; 3; 14, 18; ~. 06.23 2302. |
सद्ः 1. ०4, 3; णा. 17, 7; 7524; 2.2
५; 55, 2; 106; 7; उ. 43, २.
सदःऽसदः +, 75 77; ‰6, 1.
सद॑ःऽ्सु पा. 85, $.
सदत् 1. 228, 7; [1.15 ग; पता. 15, 24;
>. ०9 3.
सदत ४11. 59, 6.
सदत ४11. 57, 2; >. 15 व.
संदतनं 11. 36, 3. | |
सदतं ए. 91, 4.
सदतं ४. 16, 10; ४. 72; 7; 2.
[8 ह ।
सदतां ४. 72 3; ४1. 4: 5; र. 70, 6,
सदन् 1४. 3; 11; "1. 69 2,
सदन 1.00. 7.4.110 15 114
{1 298; 1; 49 4; 1. 37, 9: "2; . 54
65: 27; °]. 4, 2; 12. 416; >. 735; 7.
सदन ऽसे 15. 98, 19.
[7 ति 1
सदन ऽस्पषाः 14. 2
सदना र. 28, 13. 0 1
सर्दृनात् 1. 64, 47; षर. 21, 3; ४1. 56, 1
सद॑नानि 1. 5, 6; 1159 2; 1815; क. 9, 1
सद॑नाय ए. 47; 7; >. 93, 5.
सदनी 1.16; 71:
॥
॥
पष्ट
स = ~ ~~~.
द, 5; 59, 4; 9, 5; द. 12 7; 3; 720
6; 77, 4; 92५2; क. 719; 12 7; 359
43; 7; 68, ¶; 415; 1; 100, 16; 744:
` सदने रति $. 55.
सदनेषु 1. 56, 6; 11. 34 13; 1. 21, 5; ४
५.9 3०, 77; प्रा. 9, 10; 12. 86; गय.
स्तः [प्र. 21, 6 ; र. 61, 13.
सदेता ५11. 70, 3.
सदतु 1. 186, 8; 1. 4.8; "१. 45, 3; ग.
व. ` 2, 6; इ. 710, 8; 142 6.
सद्न्यं 1. 91, 20,
सद॑ 1. 2/7, 3; 56, 20; 89 7; 106, 5; ग
| 8; 116, 6; 1225 10; 729; ए; 185 8;
क £. 4114 41. ९ (0.
५9.10.090; 04
` 854; ए. 1, 5; 12; 5०9; 64, 8 ; भ.
23; प, 2; 4; उ. 47; 7, 3; 95
1; . 04 10. + ध
सद॑सः 1. 18, 6 ; 182, 8; 1. 14५ 4; न. 36,
6; [पर. 10, 4; 57, 8; ४. 87; 4; ४, 14,
5,04.12; 211,.2.
सद॑सि 1. 4१, 10; 181, 8; [. 45; [५
14; ¶,2; 2512; भ, 47, ए; 12. 4० २.
सदस्पती इतिं 1. 27, 5. |
सदां 1.12, 2; 22; 209; ५45; 26, 2; पा,
` 28; 125; 5; 729; 9; 7459; 11. 3,
642, 8 ४ 4.9; 73.
90 -6 38; ला 22 25444
1 5; 34 9; 37, 8; 5, 25; 83, 9;
| ष, 22.54.94. 19.284; 20.22.525;
28; 25021; 44 20; 29; 4652; 5० 6
3: 8; 84; 2; . 103; 53 13. 710 4; >
> 0; एव 5; 64; 71; 93; 11
सर्दानः ए. 33 2 । 90
दाने 56...
कुम , | च ॥
| सदने इति-- सद्यः.
1
सदाभ्वुधं ए. 13, 18; 68, 5; 7 3.
सदा्वुषा ए, 28, 6.
सदाऽसहं 1. 8, 7.
सदाऽसाः 4.10.
सदाऽसातमं 1४. 37, $ ६
सदाऽसां प. 39, 6. | ध
सऽदिवः 11. 19, 6.
सथ्दृड् 1. 94, 7; ए.
#
सऽ्दुशीः 1. 125 8"; 1. 3 3; 5२१;
57, 6; $, 44, 21.
देम् १19. +. 169, 4.
स्रं 1. 58, 10; १; 7; 73 3; 4 55 4;
क ऋ
1.1. 02 017 ~
64, ¶: . पा. 28, 22; 1. 2.3; 93, ५
007, 1; इ. 20, 5; 6, 109; 96; 19.
सच्च ऽइव 1. 6/7, 5; [1. 15; 3; 13. 92, 8
सद्मन् 1. 157, 5; भ. 28, 71; 42 2; +
105; 9.
स्नः 1. 407, 27.
सर््यनी इतिं 1. 185, 6.
सद्चनोः 111. 55; 2.
ससऽबरिषः 1. 52; 4.
सस्न॑ऽमखसं 1. 18, 9.
सद्॑ऽसु [. 159, 2; ४. 25, 3.
सचनं 1. 142; 7; #ा. 5, 12.
बद्यानि 1. 239:-1.; #1, ६2; र... 1,
धशः 1. 56.8.94 20; 6:01;
9:06; ; 204 24.335 3;
122, 0; 14; 123; 8; 126, 2;
1009, 14. 14554; 11.17, 12
5 ०; 29, 3; 31; 47; 32 9;
55 5; 50
क ज
198. ४
४9 4;
10; 48, 1
58 8; 1४ 7; 9; 16; 152
9.100.199. 1199 .894;
459; 515; 7; ४.9; 4,
ककः
202 19; 37, 20; 59, 8; 45 4; 62. 8;
932 19 ; 1710 77; 116; 1; 7120, 7; ए ८
सद्यःऽखथं 1, 60, 7 | ।
सद्यः ऽकतयः 3९. 78, 2.
सद्यःऽकतयः ४. 54; 15.
सद्यःऽनुव॑ः णा. 57, 9. |
सद्यःभ्वृधं [71. 31, 25.
सथधनिऽत्वं ४. 7, 9.
सऽधरन्यः ७4.119 51 4:
सऽथन्यां र. 93, 5.
सधञऽ्माः ४11. 18, ¢.
सधऽमात् 01.22.
सधऽ्माद्ः 1. 12, 5; [ा. 456; प्र. 20, 42;
षा. 37 7; 69; 4; प्रा. 45; 5; 76, 4;
५41. 2.
सधमादं 1. 187, 172
१-0-11.
91. 2 28; ङ. 14, 10; 88, 14.
सथञऽमादे 1. 3० 23; 1. 35 4; 45 3; प्या.
22.33 +. 2, 3; 1. 62, 5; इ. 35;
10; 06, 72.
सधऽमर्देषु 1. 57, 8.
सधमाद्यः ए. 3, 1; 545; 977; 1. 29;
सधमाद्या ए. 13, 24.
सधमाद्यानि [प्. 3, 4. |
सथ ऽमाद्यांसः २. 104;
सथञ्वीर ४1. 26, 7.
सथञ्स्तुति ४. 18, 5.
सधऽस्तुतिं .14;9; 1*. 446: "7. 1, 16.
सधस्तुती इतिं सथरस्तुती ए. 38, 4.
सधऽस्तुत्याय ए. 26, 7. व
सधशऽस्य 1. 154; 7; 3; 163; 13; [[1. 62, 15;
7.39, 4:97 6; द ,2;--16, 4;
105.8 {914 ;: 656; 275; 32 4;
67, 19 1
सधश्स्थां 111. 20, 2; 56, 5; 1. 103, 2.
सनभ्जा 111. 39, 2.
तावम
4.
भ
सथस्स्थं 1. णा, 8; 149, 4; ना. 4०; 9, 5:
{11. 6, 4; ¢, 4; 23; 7; 57, 9; ४. : 0,
6; 45; 8 52 7; 64, 5; 87, 3; पा
52 15; भवाव. 4८, 20; 479, 9; इ. 71,
9; 16, 10; 4० 2; 64, 8 ; 6; 9.
सधस्थे इतिं सध्स्यै द. 17, 6.
सधरस्येषु 12. 48, 1.
स्थिः णा. 43, 9.
सभी 1. 13, 2.
सथधीचीः 4.104.311. 21,.210;. "1. 36, ६
4.1 11.71.
सधीचीनः र. 112, $.
सथीचीना {. 708, 3 ; 1. 55, 15; ॐ..166, 1.
सभ्रीचीनाः [. 105; 10; 134; 2.
सथधीचीरनेन 1. 33; 77; प्र. 24, 6.
सथः ४. 44, 10.
सश्क् 1. 5, 0; 108, 3; 732, 2; 1. य, ८.
पा. ॐ, 6; ए. 4, 2; प्या. ५० 93; `
12. 29, 4.
स्यच 1४. 4, 12; भ. 60, $.
सरश्यचा 4100, 4
सन् 1, 69, 2; 77, 4; 70; 46, 5: 049;
100, 4; 149, 17; 165; 3; 7०, 3; ऋ.
9१.2; 22 1; 399 4;.32; 125. ४. 14;
५7 11 2.2. 2.052.331;
92० 2): -32. 1: -98.8..440. 1
16, 8; 7, 5; 33, 9; 43 9; 4; द.
19.28; 69.165. 96, 17; . 6.4, 4; 225.715;:
429 6 ; 83, 5; गव; 2; 123; ऊ.
सन् ४. 29, &. | |
सनं 1. 4, 7; 9०; 3; 9, 9१,
सन्ःऽजाः 2. 26, 8.
सनकाः 1. 33, 4. |
सनकात् 111. 29; २44. 69
सनऽजां 1, 62, 7. 0
। ग् 2.
॥
प्ध ` ऽ ४" सनत् -- सऽनीक्छाः. |
सनत् 1. 100, 6. | सनिं्रििं ए. 46, 20.
। सनता 11. 3 6 1. 8; सनिता 1. 247, 9; 36; 12; प ध ¢; 10; 129
~ त सनत्ऽध्यिः 1. 52 1. 2; 1405 3; आ. 25, 35; 1४. 1 (
+ - । 2 | 6; प्र. 52 4; छा. 33, 2;
सनत्ऽवाजः 12. 62, 23.
र | 56, 23; भ. 2, 36; 19, 9;
सनत्ऽ्वां +. 47, 4. ` 19; [. 9०, 3; 2. 67, 9; ५५, ५
इ ४: ॥ 8 529 * | निता ] 0, 16
ध + भ 1 1 सनितारं 7४. 473 1
क ४ व सनितारं ४. 42, ?.
| 1 सनिहुः 1. 163, 5; (1. 3, 2; ४. 12.
सनयं ¬. 39, 4 क । |
| व | सनितो 1. 8, 6.
स सु ^. 4, ‰. | | ल 12.
| (1 सनये 1. 309, 16; 57; 8; 716; 72; 47; 144 = ४
8 ५; 1. व.4 14.29.41. 1120.2 श पा. 87, 5.
१ पा. 19, 5; 1. 9 ग; 96, 20; ॐ. सनित्व ऽभि; >. 30, 9.
५ 30, 11, | सनिऽभ्यः पा. 16, 3; 24) 28; 62, 11; >+
| ०. सनरस्य 1 96, 8. 35; 43 42 8.
दनव 2.07. ५; । ॥ भनि 1. 286; 27: 4; [7 34 7; २.३;
| (1 ए | न सन ऽविच्ठः 1], 42, 2. | । ॥॥ 24; 4; ४, 67,6 70 6: {-&. 22; 0.
। सन॑ऽवित्तं 3. 112, 6. | सनिषत् >. 75; 9.
५0 सन ऽश्रुत [11. 52, 4 ( # ं त न 79; 7, ४
001 नंश्णुतः >, 253. | सनिषत ४. 12; 4; >. 142; 2.
॥ । । ५ ध ` सनश्रुतं [1ा. 17, 4; १1. 92, 2. सनिषामहे 1. 7, 9
1 | स्ना. 1398; 748; 7. ०4 5; पा. 54, || सिषा पा. 9०, 25.
- 9 । 9; 1५ 34: 3 ; | 7.5; &; 18868 4.5; 2.5. सनिष्णत | १९); &
सर्नौः 111८.1.:0..~ 4 | सनिष्यति 1 1.1
| सनाऽनुरां 1.36.5... 1 | | सनिष्यन् 11. 2, 3; ए. 1060) 1; 1. 90, 1;
सनाऽजुवः 1. 47, 5. | | ध ॥ 4८ १ ९ 99, 3.
` सनात् 1. 51,6; 559; 628; 10; 14; 7102 सनिष्यतः 111. 2; 4; 13; 2.
1.11. 1४. 20, सनिषयतीनां र. 9, 8. 1
1. 6; 56; 6; प. ॐ 24; 56; 5; भन. 2 सनिष्यवः 1. 56, 2; 151, 2; पप. 55 6; ए
11.11 6
| "8.8; 81.10.111 0. 44: १. (7 1;
| सनि
सनानि 1, 95; 10; 1. 7, 2५.
| सभ्नानयः 1. 89, 4; 2. 28, 4. शिषः 6 +.
निष्यऽभिः *1. 27
नन्द
गिति वि
1201 11.61
1223, 3.
सऽनीव्छानिः 1. 72, 2.
सनीक्छे इति सऽनौक्छि 1. 62, #.
सऽनीक्छिभिः 1. 100, 5; र. 99, 2.
सनुतः {. 92, 7; [. 29, 2; प, 45; 5; श.
47 79; 51,2; गा. 93; 1. 98, 71
+. 77; 6; 100, 9; 102, 3.
सनुऽतरः 1४. 38, 4.
सनुतरिति ४. ५, 4; 84, 8.
सनुः [. 3०, 9; षा. 5, 4.
सनु्ेन ए. 62, 10.
सनुती 1. 123, 2.
सनुंवीः २. 7, 4.
सनुयां >. 119, 1.
सनुयाम >. 106; प्य.
सनुयाम 1. 700, 19; 76], 72; 7162, ग; शा.
25 5; >. 748, 7.
सनुहि ४17. 81, 8.
सनेत् ५.9;
सनन 11. 29, 3.
सनेम 1. 71, 19; णा. 52, 1.
सेमं + 10.074... 410;
पा. 61, 4; 12. 98, 22; इ 36, 9
नेम 1. 122, 8; 724 13; 789, .8; १. 147, 15.
सनेमि 1,92.0; 29 2.1. 107...
7; 56, 9; ९. 104 6 ; 195, 6.
सशऽ्नेमि 1. 164, 14.
सनेयं >. 97, 4 `
सनेयं ४117. 19, 29.
सनेरू इत्ति ‡. 106, 8
सनोणि 1.25. 251४..17,.9; - 2 80.4:
सनोति 111. 25 2; णा. 60, ग.
सनोतु प. 54 5 `
चतः. 1, 119, 4. 128. 3; 32:46; {४.5
= 31..0.. 111;
3; 16 19; 1 12; 5; ४1. 66 4; र 34.
710, 3; 129 7; 7;
प६9
1४. 1.5; 16; "8, 3; 490; ष. 14; | |
४.111.114 1.27 7; १5... 494; ` ¦
80, 4; 92, 8; >. 95; २. 27, 4; 55, ५
5; 952 77; 74 ठ; 724; 2; 6; ग, 4. 4
संतस्थाने उति संऽतस्याने 2. 31; 7. | ॥
सतां 1. 21, 4; 1४. 36, 3; 1. 68, ९ (५ [क |
सतिं 1. 8.9; 77; 8; 30, 14; 85 2; 97. ` |
9; 764 50; 286, 10; [. 23;.9:. 28, 7; . ध 1
रा. 6, 8; 16, 2; वप्र. 25; 8 38, 7; 47; +
4; ४:33, 45. 255 2; 42, 8; 52, 2; 13; |
व 78 10224 04 2.6: | 0
पा. 38; 39, 43 48, 3; 53 3; 58, 2:
60, 5‡ *711. 1, 9.; 8, 24:; 10, 4; 38, 2;
40.22.09. 2.410.744. =, ~ -
12. 01,30.-18.. 2.14 248 028
10.4.10, 12; 111; 1; 1; 4: |
सतिं 1. 145; १.4.10 24 5. > |
| 12, 4; #111. 19, 8; >. 734; -89, 0
9; 944 96.1 2, 5°
सतु {४. 16, 8.
संतु 1.5; 7; 27, 5; 269; 3 73; 58, 12;
39, 25; 549 8 ; 748; 106 ; 96) © ; 151; 1; | क
1492; 10441.841 04111. १ ध \
०0440440.
4.1.01 + 19.522 144; |
१.10 210 12.34: 207; 22 0:29
1; 35; 2- 4; 7; 84. 124..54, 2; 696; ` `
१०१... "1121-4. 0.2. :0 न
ष | 82, 2; 12, 0; 33. 445.6; 85, ग; 2, ध
718; 19; 22; 73; 38, 3; 44: 7; 599;
66,-6 ; , 859: 24 ; : 704» 73 ;. 748; .6 | 710
8; 7128, 2.
सतो 1, 164; 7; >. 110; 9. 11.
सद्य 1. 1512; 36 2; 455; 94. या |
3; ४.5, 3; $. 19, 26; 449; 4
संददी इति संऽ्द्दी 11. 39, 7.
स्यसे {17. 57, 19; णा. 24,
सन्वत् 1. 122, 12.
५६
स ऽपल्मन् -- सप्रत्या.
स ऽपत्नान् ९. 71474 2.
सऽ्पत्नानां उ. 166, 1.
स ऽपली 2. 145, 3.
सपल्ली इतिं सऽपत्ती 111. 1, 70; 6,
सऽपलीः -\. 159, 6.
सपत्नीः ऽइव 1. 105; 8.
सपंत ४. 3, 4.
ति द ।
स्पती द. 145; 2; 4; 5.
सर्पतः 1. 67; 4; 68, 2; 11. वा, 12.
सर्पता ४. 68, 4.
सर्प॑ति [. 97, 3).
सर्पते पा. 38, 5.
सपयं ~. 95, 4.
कि ति ।
सपयेत 11. 9,8; ए. 14; 5; 25; 4; ग्ना.
"क शि म ।
41, 6; 103 3; ड. 377; 7118, 6.
सपयेतः 1. 85, 3; 144 4; ३. 5०, ग.
तपयेतः ४111. 62, 5.
कि, ति ।
सपयेतः ए. 44, 5; णा. 93, 79.
त 3. ।
सपयेति 1. 12, 8; 93, 2; प्या. 44, 15; 95;
सपयेति #11. 7, 2 ; 64, ¢; +. 93; 2.
कि "१
सपयेन् 1. 153, 3; 1. 37, 2
2 ;..+..40; 8; 2. 69,.10
सपयेन् 1. 70, 5.
सपयेतः ४. 21, 3; पा. 37,
सपयेतां ए711. 26, 75.
सपयेति ~ 84 2; 2. 20; 2.
सपयैती ए111. 10, 10,
सपयं >. 7, 3.
गि, कि |
सपयेवः 11. 6, 3; 1. 54; 2; 0/1...
94 10.
सपय >. 106, 5
सपयोत् 1. 95; 8 ; श्र 693.
सपयेन् 1. 72;
सपयेमिं 1. 58, 7; गा. 54
10; 2
1059
सऽपित्वं 1. 109, †¢.
सपीतिऽभिः
त्र 1 1.4 0:42 1.15.
[च ह. ।
सप्र [. 22, 16
+. 7, 24.
329 12; 35 8; 5०8; 9;
58 7; 02 4; 64; 7; 723 7; 72, 04
१62... 0.104.224. -5-4;
ध 10; 112 9, 4.4
2; 2, 8.22; 2, 4; 6:45; 4;
१? 1. 1444-5 1 1.12 10
29 15; 75; 755; 1693; 193; 28
1; 4258; 58, 3; ४.29 5; 4 2; 5
0-11-0 24. 01.24)
+ 1944 ..4. 00 4:20. 1 “04
8, 4; "1. 24, 27; 38, 4"; 46; 2
54 4; 59, 3; 45; 60, 16; 69, 7; 13;
72, 7; 16; 92 20; 969 ग; 2; 1.8, 4
9 4; 6; 70, 3; 5 8; 54 2; 62, 7;
8.0 01. 0.212.201
94.10.41. 414 74 ~.
5 ऊ; 6; 8945 २35; 27; 77; 93 35;
35 10.; 439 3; 49० 9; 67; 7; 657; 64)
85; 477, 3; 90, 15"; 95 15; 97, 7; 14
8; 114; 7; 720, 6 2-8..4..140.0
चक $
#
ॐ
च्छ
च ङं
॥ 1
सप्रऽसंश्चः ए. 45; 9.
सप्रऽसखस्यः 1४. 5०, 4.
सप्नऽास्यं 7. 4०, 8.
सप्रऽखस्ये 1. 57, 4.
सप्नऽस्ास्येभिः 12. एवा, 1,
सप्तऽ्ूषय॑ः उ. 109, 4.
सप्तऽऋषीन् 4. 82, 2.
स्रष्टु >. 476.
सप्नऽच्र 1. 164, 3; 11. 49, 2.
सम्नऽचंक्रे 1. 164, 72.
सप्त ऽजामयः 28. 0.
सप्रऽजिंहाः 111. 6, 2.
1
सपं -- तभाऽवान् - 1
पमं 1 14. सनिऽवंतः र. 6, 6. | |
स मध्य 2 99, 9. | | सषि ऽव॑त्ता ए. 94, 10. ॐ ५ ॥ि | |
9 । ^ 38 6. सपी इतिं 111. 35 2; पा. 33, 18; र 0.0. |
| । ४ सप्र इवेति सप्ऽङ्व ए. 59, 5. ` ॑ ' |
इ द्र. 61, 12; श्ट. १६:१८ सनः ध 364. ह | | | | | ।
स | | सो इति गा. 28, 5. व ५.
ससण॑दौ गा. 72, 26. ` | वस्व॑ शा. ५. ६
प्रभुं य, 04; ए, | सस्प्रथैः 1, 22, प; 129, 59; 142, 5; शा ।
पप्रवु जाह्या. 5, 5. (7 15, 3; 6, 33; 68, 9; पना, उ, 6 82,
स्नऽन्तिः स्त 12, 8 ; 9, 0; 01.12.120, 13; 39 4; | त ।
पत्रभ्यः (1. 96, 16; स्ट ध्1 1 47275 1. 74, 7; 85, 8; इ. 126, 47; 187,1 | |
सप्नभङ्गां {ए 100, 4. सप्रयःऽतम 1. 16, 9; 45, 7; 75 7; इ. 142, 6 |
सप्नमाह ऽभ्निः 1. 24, 8. ¦ सप्रथःऽतमे 1. 94 13; ए. 65, 5. „5 |
सप्र भह तुप १411 49; 8. सञप्रयाः 8 356, १:11; 59; 2; ४. 73, 4; प्र. |
सप्र॑यः 1, 8; 8. ण; 6; ` 7८7 ; द. 17, 2 ; प. 6९, 5. र 4
ध 4 6, 6; द, 24 „1 सष्सरासः 1. 168, 9. क 8.
सप्रयः ग्राह्ला, 10, 24. | सवःऽदुषः ड. 14, 4. |
सप्रश्िः इ. 19 12; 78,1 अ; [४ 0 ~. पवः्टृषां 1. 34, 4 | | | | |
सप्रशसिं 1 1469 ए. 4.५ प. 8. सव्ःऽदुषाः 111. 55, 16. | १
सप्रथो 1, 18,6; द. 39. ५ सव्ःऽदुषा 1. 20, 3; णा. 48, 71; ए. 7, 710, ि ` 1
। प्र थत्चि 7 1. 39. सवःऽदूधायाः 1. 741, 5.
सप्र अभि धथ, - 48, ‰. सवःऽधुक् ए. 69, 8.
सप्र वषु] . 147, 2. सवःऽधुं 2, 61, 1४.
मप्तश्शी पेषं 1 1.55; एता -., , || सऽवधवः #, 595; प्व. 22 का; द. 14, 2. |
सप्श्-षौ ए 6), 1. सवधू इति सञ्वधू 111. ग, 10; ए. 4; 5; स, |
सप्र ज॑ 35 3; 75; ग. इ १ । ॥ |
क सप्र ऽसा ¶..61, 1०; ण्डा... ॥ \ सवरप ईति षवःऽदुधं 111. 55; 12. ५
सप्र ऽतैन। ` सभ्वाधंः 1.64, 8; गा. 20; 6; 52, 4; प 4 1. |
। # | 17, 28; 24 4; पव. 8 26, 2 551
सपानां 11, 285; 4, ॐ. ५0 0. > सा, 6624
सिः 14. 7; णा. 4.3: 22; {1 1० 10; 14. ~. त व "9 |
7; 9 द 0 ध ( 4 | वा 100 1
४8 (1 सनि इद्वः. . 06 16. ` ` : | | 1. | सृन्मरसः १, 54"
सम्भैणः इ. 1015. `
सभा ऽसहेनं कर, 41, 10.
सभासु ४1. 28, 6.
सऽभूतयः 1. 6, 7.
सभेय॑ः 11. 24 78.
सभेयं 1. 91, 26,
तं 1.6, 357;.9; 83; 9.5; 7; 2०8
। । 2 ड.
25.63. 20, 5: ` 22, 271; 23; 24: .24-; 25;
1. 25.49. 11011 6
32, 6; 33 3; 23; 364; 7; 9; 4;
9 20.10 11 11.
4; 54 7; 24 1; 0, 3; 6754; $; 62.
3:64, 1; 6; 66, 4; 150; 75; 76
1.9 826; -84;.4; 520 026
18 4.98, 0; 041; 1०.70; 1232; 106;
8;.408, 13; 770, 33 4; 8; 7,34.5;
75 4; 5; 710; 17; 777, 4; 77; 19;
110, 2; 3; 7; 127; 15; 124 2; 725; 7;
130, 47; 152, 5; 155 7; 5; 156, 2
140, 7; 8; 144, 3"; 145. 3; 60 4; 5;
102; 18 ; 69.20 3. 164; 4: 85 9; 165;
7; 3; 167; 3; 168, 3; 7 4; 5; 75
6; 179; 2; 787, 4; 188, 2; 7; 190,
1...
9; 73; 74) 72; 75 4; 6; 16; 8; ग
4; 37; 353; गय; 12; 38, 4; 39, 7;
१.1 उ 16; 9 1;.10; 3; 1. ५;
9.0 114. 0,271.0 12
16, 04 14, 2; 10; 2;.07..3; 24 2; 2,
55.26, 3; 27; 17; 15-75; 29, 13; 5;
ॐ 9"
3084124. 18; 215. 507; 9;
32, 15; 33 12; 34; 6; 35; 8; 36, 8
39.32. 50, 3544445; 8:97
24.; 949; 20; 00, 2; 3; 62 9; 1४ 3;
4880; व; 8, 2; 9;
199; 20, 4; 25 2; 24 4; 257; 29,
2; 3०9; 30; 34 ण; 2; ग्ण 3
7; 9; 379; ॐ 16; 42, 3; 44 5; 5०
37; 43; 90 4; 93:
34. 6.5
1; 49; 6 53;
५९० । सभाऽसहेन-- सं.
45; 18; 4406; ग्य; 45 8; 57 5; 54
12; 58, 5; 598; 605; 65: 6; 78
; 18, 5; 87, 4; 85 4; #~ 5४;
4701170 2 1:12;
19, 3; 5; 9; 20, 6; 23 9; 259; 26
८14; 49.44.414 43;
46, 2; 8; 4; 14; 37; 48; 15; <+ 1
4 {* 353 649 106; 01; 1; 4 69, 1;
3; 70 6
४3 ~ ४3
72, 5; 03; 3; 15; 22; #.
+ 716; 9 1;.35; 5; 53; 42; 8 7;
16; 3; 20, 4; 28, 3; 3799; 12; 339;
30, 2; 4०; 7; 47, 6; 429.3; 48. $; 55
ध 56; 22 ; 00; 3; 67, 6; 73; 4; (८ 9;
79, 2; 82, 2; 82, ५०; 83, 3; 86,2; 98;
2 2.124.244 24; 1"
1.46: 3: 16.0.42 2 1.
12, 16-18 ; 22-24; 13; 2; 29; 18, 14;
21.14; 42.76; 2034 224.
36, 1; 4० 3; 42 3; 43: 5: 47, 17; 48
9.0 41141 5.4.44 9
00.11 409; 14 12 14.140.
12; 70, 3; 79; 8; 87, 7; 92, 215; 95
01.11, 1 94-74-00
9.511.012.
५.0. 44.00.04. 014
9 004 ..01-509.09.4 4 11 4
9.7; 4.6.06; 78; 4; 142;
79; 3; 8% 3; 83: 7; 85, 5; 86, 15 ; 36
95) 3; 96; 2;
12; 14 ; 97; 1; 3; 35; 4 55; वत
9; 042; 05.24 2964514;
॥॥
110;.8;.. 1 9 3414598;
160; 17; 12; 93 14.89;
20 55.11 19.14; 10223; 16, 0
9; 10.47; 95; 4:20; 54:85:95; 15; 5
37 2; 42, 9; 44; 4; 46, 10; 48
10; 54 6; 55 2; 5;
202 19 ; 22; 98, 77; 710, 7; 5; 1023; 6;
"० 10; 1144 114; 238; 4; ८
०; 120, 2; 2; 95 दि; 7; 7; 225)
8; 199, 4; 5० 4; 159 3; 134, 9;
155, 4; 142; 3; 145, 6 ; 150, 7; 4; गडा,
ग; 158, 4; 159, 6; 168, 2; 169, 4; 172,
4; 91, 1; 25.
समः ४.61, 8; ण्न. 49.294 111. 64;
संऽसवुंर्वन् इ. 82, 4.
संऽसंक्तं 11. 3, 10.
सऽखक्ञाः र. 62, 7.
संऽखक्षं 2, 8, 11.
संऽखक्षुरन् उ. 42, 7.
संऽऋअग॑च्छेत र. 82, 6.
संऽखग्म॑त >. 90, 6.
सऽसंहे द. 87, 26.
सं ऽखजंग्रभीत् श. 6, 1.
सं ऽअजाति 4 011
संऽसरजांसि ए. 32, 7.
संऽखनज्यस 17. 86, 47.
संऽसंजन् र. 45, 4; 80, 7; 1710, 2; 16.
स ऽसंजंतिं ५, 02.
समत्ऽ्वां ४1. 1६, 2; शा. 20, 3.
समत्ऽसु 1. 5; 4; 66; 3; 70, 6; 15, 8; 143;
2; न 2 3; [ल 3०.92; 1. 26 7;
243 6 ; 38, 4; ४. 33, 4; भ. 18, 6; 2.5;
9; 35; ग; 46, 3; 75:73; णा. 3० 3;
34 6; ए, 22, 8; 9:16, 10; 19, 96;
०8, 12; 40, ग; 9 7; [द. 4, 8; 9५3;
221, 33.80, 2; 133; 1.
सऽ्मदः ए]. 75, 2.
सऽमद॑नस्य 1. 100, 6.
सज्मदँ 2. 126, 6.
८ संऽखदहः 10, 18. - स
समनं 1. 48, 6; 7. 69, 77; 86, 10; 168, 3. |
सऽमनसः 1. 186, 8 +. १1.91 42, 2; व
4; 92० 3; 973; णा. 2, 5; इ. जा, 7. | ।
सऽमनसा [. 92; 16 ; 713; 3; 176, 70; ४. 3; | ।
2; ४. 74, 2; पा. 3, 5; क. 9९, 12. | |
समना प्रा. 75, 5; [द. 96, 9. (न
समना . 124; 3; 168, 7; ]. ठ, 19 ध
अक क
7; 437; 5०8; 9; शा. 4 ठ; णा. ९९.
47, 2; 66; 7; >. 69; 8; 423, 4. ० छ (५
सन॑नाऽड्व 1. 58, 8; ए. 75, 4; प्रा. 62, 9.
समनाऽईवं 1. 104; 7. | ४ ग
संऽ्नीकेषुं द. 107, 11.
समने [1. 16, 7; ए. 75 3; ९. 55; 5; 43, 4. |
समनेषु ए. 2, 5; द. 07, 47. (वि | |
सऽं ए. 7, 77. . 1 04
संऽ्छता ह. 714, 1. | "
समेते इति सं ऽति 1. 185, 5; ए. 80, ए. 1
सऽ्मन्यवः ए. 25, 7; पा. 21.21... , न | ५ क
सऽमन्यरवः ४. 7, 7. ५ ` |
सऽ्मन्यवः [. 34, 3; 5; 6; प. 8, 8; प्रा. 6
| > प, कि ।
20, 15 27.
समन्यां 17. 97, 2.
संऽ्खप॑यंत इ, 82, 5.
समं ई. 124, 9२.
सम 1. 176, 4.
संऽअयेते ए. 85, 2.
समयां 1. 56, 6; 73, 6; 113, ०; 765, 3;
106, 9; ४1. 06, ष्ठ; 1. 75 4; 855; ॥
97, 56. न
संऽ्योधयः {. 80, 7.
संऽखर॑शं 1. 155, 2; >. 47; 3. ५
सऽसरणे 1. 170, 2; 1४. 42, 5; +. 207;.3
91
संऽखराणः 1. 165, 5.
कै
५९२ | । सऽमधे-- समितोऽइव,
त
20, 17; ` 45, 28; 74; 22; 99; 8; > 5
2; 10० ए; 970 6; 41; 893; 916;
8; 123; 2; 3; 797, 3; 4
समान्योजनः 1. 3०, 18.
समानऽवचसा 1. 6; 7.
समानस् ४. 87; 4.
समाना >. 197, 4.
समानाः 71. 58, 6.
समानात् 11. 27: 7
समानान् "1. 4 1.
समानानां >. 166, 7.
समानां ह. 85, 5.
समानी ~+. 91, 3; 4.
समानीः 1*. 57, 9.
समाने 1. 34 3; 744, 4; 186, 4; पा. ;9 <;
१,04.10: 14.
19.70 4.0
समानेनं 1. 92, 3; 1. 54 6; इ. 191, 3.
समानेभिः 1. 165; 7.
| समानेः 1,605.4.
समान्या 1,152.44. -704. 7 4.4
48, 2; *{1. 83, 8.
समा 1४. 50, ¢.
संऽसायन् +. 37, 5.
संऽसायमुः र. 94, 6.
सं ऽखारत 1. 14 4.
समाणे इतिं संऽाराणे 11. 35, 2.
संऽ््ार्व्त 1. 7712, 18. | ८ ध
संन्ाववतिं 11.886.
तियं 1
संऽासंते 7. 9,४; णा. 2, 4 0 |
संऽ्डुगय॑ति १.14. ८ ५
सऽमयं 1४. 24, 8.
समयं ऽराग्ये १ 118 0
न सऽमर्ये १.046.649
5; १.38, 7; ४.36; 91..19; 2; 22.
1; [2.7 4; 85, 2; 90, 20; र. 2, 24
~ ` संऽखव॑तेयत् ए. 6, <.
`: ` सेञ्चरषिव्यक् ए. 64 २.
| | सऽ ए. 3, 4.
1, ...: संर्चशीत 1. 57, ५.
४ ि संऽऋस्थियाः +. 123, 3.
सं ऽश्स्थिरन् 2. 118, 2.
समस्मात् 142;
समस्मिन् ए171. 47, 8.
1 समसे ए. 1.0
समस्य ए. 47, 3; 42, 4; 52: 8; प्रा. 75,
9; 2. 29, 5; 67, 30; >. 29, 4; 54 3.
संऽ्सख॑रन् 12. 73, 5; >. 96; 2.
अ समह 1. 120, ग्ण; १. 55: 15; #[1, 89, 3;
क 9111. 79 14.
समा ए. 1, 6; 2. 7, 9
समां ₹. 124; 4.
समाः 92;
५ संऽच्याकुणोषि 2. 25; 6.
` सभ्साकृतं २. 847.
^ ंस्जकते 11; 36,5.
र .. -कमानः 1.४ 15;3; 5 9; प्रा, 54; 0१.
4०92-0, 59, 21 १,26.3; 12 -2.
६८
| । व णा. 75 12; +. 91, 3.
संऽ्चानने 1. 288, 9.
01 समानः [ए ऊय, 8,
{4 समानश्दवाः ए. 6.9.
समानर्॑रू इति समानऽर्व॑भू 1. 115, २.
समानं 1. 25, 6; 9२, 10; गथ,
15५.4; 744 3; 746
1111
1
सं
क
समित्ऽभिः 111.1, 2; ए1.26 27: ना 4423; 12.
समित्ऽसमित् 861
सञ्डया र. 04
4
4
क
क
#।
1. 76; 5; ह. 25, 9,
सं ऽइयेषु 1 13 5; 19. 20, 8: 471; 2; भा,
83, 9; 2. 48, 9; 64, 6.
समिद्धञ्छग्निः प, 57, 2; श, 64; ¢
सं ऽङ्डः 1. 94; 14 ; 1429 7; 188,
११100
५.2 1; 4.
12; 1; 71,
{
सं ऽङडस्य 111. 8,
स 9 सदा ॥॥ र ^
2
35; 23
41.19.6१.
|
१.
1;
भवा 29 3; 44;
फ. 7, 2; 28,
114. ५41.
४. 25, 6; पा. 100, 6
71.53, 2;
21,
58, 3; ४1. 26, 34; णा.
78, 4; 95 7; श्ना. 58,
2; 2049; द. 57; क. 3; 2;
87, 7; 2; 88, ¢; 320, ३
स ऽइद्ध 11.9.57; ए. 15
709 4;
।,
संऽइद्धे 11. 93; 1. 55 3; 19. 25, य; 39,
0.40
सं ऽइद्धेषु {. 108, 4.
संऽडधः 1. 164, 25; 1. 2, 9 ; 1४. 58, 8
01200.
से ऽइ्धं 1. 64 33 1. 69 1;
१४. 2, 2;. इ. 69, 16.
9.0. 42.
सऽङ्धां 1. 95, 11; 96,9; 1. 5, 9; 10; ग,
4. 14 11 13 16.
;-7; 19; भा. 41;
2; 724; णा. 9.5; 44 441; क
159
129; 87; 8; 9 ग्व; 122, 3.
॥ |)
1 42 १ \।
6; 64, 2; . * न. 27; 9; ` 44; 9; 3. 2
संऽ्डधानं {. 27; १.86; "0.94; र.
35:
6; -6:; :#¢1. 18. 7;- "7. 9;
ऽइ्धान ४. 4१ 4; 6, ग्य; प्रा, 6०5; उ.
ऽरधानः 1..145; 4; 71. 26; गा. 4 स्व; ४.
थाति
स्र §
60, 4.
ए
१. ।
कै
¢
ण
नै
संऽइध्य
(5.
५९३
"न
सथाने 7. 724 7; 11. 76, ए; 7. 2० 2; प्र.
संऽइ्धे 1. 714, 9; पना. 77, ए.
स ऽइ्ध्यतिं 11.74.
संऽड्ध्यमानः 11. 70, 2; 20, 4; प्र. 28, 2.
91. 43, 74
संऽडनं संतः 13२. ;3, 9.
संप ए, 5०,
संऽईैके 11. 20, 77; ए. 24, 3; पा. 2, 9;
१25; 2. 42 4
समीची इति षं ऽईची 1. ८9; 7; 96;
20; 14; 7 4, 7
(ष
# 2 । ८०
५०
^ °
४. 6, 24; ऋ. 24 4; 88, 16.
संऽईचीः 111. 29, 74; 37, 14
+. 61, 25.
ण
[4
144
कै
* | $ 1
9.4
* 1
सऽ्ईचीनाः 12. 39, 6; 44, 4.
संऽङ्च्योः ~. 24, 5.
सं ऽई्नमानः ४1. 29, 5.
सं ऽभे [1.5 10; इ. 69, 3; 4; 98, 8.
संऽङईयतु; 2. 113; 7.
सऽ्डसिपि 111. 60, 5; पा. 4, 12.
क
इ
५
ऊण
९2
संऽड्चीनासः पा. 3, ¢; 72, 32; इ. 10, 7.
समीचीने इतिं सं ऽङ्चीने 12. 74
# ०
.0
~
संऽउलित्तानां प्र. 56, 5.
समुद्रऽखयेः भा. 49, २.
समुद्रः 1. 3०, 3; 710 7; ए. 44, 3; १8, 8
9४]. 50 14; 69, 6; "१. 35; 13; णाना
47, 8
49; 07; 6;
149; 2; 100; 1,
1. 2,9 0 2 04 8 >
80, 29 ; 97,
109, 4; - ९, 55.21; 66, ग;
समुदूःऽडव 1. 8, ¢; ४11. 3; 4; 12, 5
समद् ऽज्येष्ठः ४11. 49, 1.
समुदरतः ४. 55: 5.
0.14. 20 12 2.1.92. 61, 15
09.15.410: 10.02.12.
84, 4; 86, 8 ; 88, 6 ; 96. 19; 77, 9;
15; 28; द. 3० 3; 58, 5; 98, 5; 174;
4; 127; 4; 7245 8; 149; 7.
समुद्रऽइव ४111. 6, 35; 92, 49; 1. 108, 16
+ 9
समुदरऽखय 1. 35, 2.
समुद्रऽवाससं ४111. 102 4.
समुद्ऽव्यवसं 1. 71, 7.
समुद्रस्य 1. 116, 4; 167, 2; ४1. 34 23;
47.5.12 0114 ~ 9
142, 7; 8. ष
समुदरस्य॑ऽङव ए. 33, 8.
समृद्रा ४. 73, 8. | '
समुद्राः 1. 164 42.
तमुद्राणिं ४1. 72» 3.
समुद्रात् 1.40 6. 170 41119. 04-209.1
10.47, 3; 435; 569; 5; *4. 62, 6
ष. 6, 7; 55 7; 95; 2; 1. 97; 44;
+, 98, 12; 128; 2; 100, 2.
समुद्रान् +. | 70 2; >. 33, 6.
समुद्राय ऽडइ्व ४111. 6, 4; 44; 25.
समुद्रासः 1. 80, व. |
समु्ियः 1. 25 7; 5 2. द. ष, 6; ड.
65; 13.
समुद्धियां पा. 87, 1.
पमुद्धियाः १11. 76; 3; 12 02, 26; 78; 3
समुद्ियाणि 1४. 16, 7 |
44:16, 4114584 1४.58); + 19,
ठ; 58 3; ए्ण-68,0; 697 णाप. &
22; 70;.7; "12; 17; 13; 155: 16, ५; 65;
2; 200, 9; 1९. 64; 19; 85 10; 95 4;
107; 37; >. 4 3; 42 7; 98; 6; 125;
7; 1443 2; 7772 7. ् न
समुद्रे 1. 3० 28; 48, 3; 95, 3; 26, 5; ग,
सऽगत्यां +. 147; 4
समुद्रं ऽरव-- सं ऽगमनं.
सऽं ध. 2, 1.
शं ऽज्ट्टह 1. 22, 17.
संऽऊहसि 1. 137, 2.
संऽ्च्छतः 1४. 14; 5.
संता 1. 31, 6; 12. 71, 5.
संऽकरंतिः 1. 16, 10; एवा. 60, 19.
संऽ तिं 1. 32, 6.
समते इति संऽचछंते 11. 38, 3.
संऽचछतेः ए. 107, 4.
सं ऽतेषु र, 103; 17.
सञ्चरतो 1. 120, 3; प. 7 2; 34; 6.
संऽचधः ४1. 2 10.
समृधां ऽङ्व 911. 103: 5.
समे ए. 39, 7,
संऽएतं >. 85, 33.
संऽरतिं ए. 1, 14.
संऽणडारं ए. 48, 8; णा. 1, 15.
संऽरिरे ० (१
संऽसो कसः 1. 64, 10.
संऽसोकसा 1. 144; 4; 159; 4; भा. 9
९. 65; 23 8.
सेऽखोकाः 1. 700, 7; प्रा. 18, 7.
सं ऽर 1४. 17, 14.
संऽकोदे 1. 8, 6.
समो ५10. 0
संऽकल्पः >. 164; 5.
संरऽक्रंदनः >. 105; 1.
संऽग्रदनेन र, 103, 2,
संऽक्रोशंमानाः 1४. 18, 6.
संऽगता पा. 08, 8.
संऽगतानि 1. 56, 5
संऽरगतासः पा. 16, 5. ८
संऽरगतिं ष. 44 7. `
संऽ्गवयं इ, 9, 0.
12
संऽगमनी ३. 125, 3.
सं ऽगमा॑महे ४१९ ६१6 0.4.
सेऽगमे 1. 102, 8; ड. 38, 3; 107, 4; 123, 1.
संऽ्गमेषुं २. 57, $.
संऽगवे ४. 76, 3.
संऽगिरः >. 89, 9.
संऽगिरई 12. 86, 16.
पंऽगृभीता 1. 7109, 9.
सं ऽगृभीताः ए. 104, 8.
संश्गुभ्णाः 1711. 30, 5.
संऽगृभ्य 1. 55: 3; 7. 54 15; उ. 46, 6.
संगे ए. 20, ए; क, 133, 1.
संऽय॑ितं क. 67, 13.
संऽचकानः ४. 3०, ¢.
संऽचकषाणः ४1. 58, 2.
संऽचष्ि ४1. 14, 4.
सञ्च 1. 124, 77; प. 18, 26,
संऽचच्स १,104.22.
संऽचरणीः ४1. 24, 4.
सं ऽचर॑णे 1. 6, 2; 1४. 55, 6.
संऽचरतं 2. 27; 7.
सेऽचरेति पा. 48, 7; उ. 44; २ 8.
सं्वरती इति संऽचरती 111. 33, 3
संऽ्चरेखं 1, 170, 7.
संऽचिकित्वान् 1४. ¢, 8.
संऽचुतं 12. 84, 2 ।
संऽजग्मानः 1. 6, 7; 12. 64 3०; ॐ 6, 7.
संऽ्नम्मानासुं 1.
| संऽनुनयैति ए, 7, 2.
केऽ्नय॑न् 2. 29, 4
^ संऽनया इ. 59, 3.
भेभष््राणः ए. 445
संस्नानानाः 1. 7०, 5; 2. 97, `
संऽनिगीवान् 1. 5.4 =
संभनुधैसि ए. 6०, 7.
संऽज्ानं 9,19.54: |
संऽतनिः १,1.71 00-2
संऽतनिं 12. 94; 14
संऽतशं +111. 33, 19.
संऽत॑रतं 177. 1, 79.
तंऽतेयुः 11. 33, 11.
संऽतवीत्वत् 1४. 4०; 4 ॥ ४
संऽतस्यानाः 2. 4०, 4.
संऽद्दखान् 11. 2, 6.
11
संऽद्दिः 1. 99, 7. ४५
संभ्दधरुः 1. 101, 6; 1. 3 3; 29, 3; २. 100, 4.
सं्दहंतः 12. 73, 5.
संऽदानं 1. 162, 8; 16. | ध
संऽ्दािं 3. 139, 7.
* ई
संऽदितं 1. 25; 3.
संऽदिरहः 1. 5, 9. .
संऽदूक् 1;606.7..1/..1..0...0.0 292
संऽदशः [. 23; 20; 3ॐ ए; 1, 5 2; 2.
69, 7.
संऽदूशं (1, 15, 8; ४1. 88, 2.
संऽदुशिं 1.0.740 20
6; 59, ‰
संऽ्दुशें १.01. 1..24..4;
संऽदुष्टिः 11. 4 4; ४. 1०, 5; ए. 16; 25.
संऽदृौ 1. 144; 47; पा. 2, 4.
संऽ्थांता पा. 7, 12.
संऽधिं प 2. ५. = भ ८
सजनः 1. 64 37; एा. 47, 26. =
संऽनेडा ए. (5; 71. 1
संऽनम॑मानः र. 84754. 0
संऽनयः [1.24 9. क | | 1
संञ्नयानि 2. 27, 2 * १
संञ्नयांमसि पा. 47, 7.
संञनवाम्हे ए. 69, 5.
संऽनशे षा. < 70; 6
१९
सं ऽनस्तामहे 2. 64: 13.
१. संऽपति ४1. 75; पृ.
व संपश्यन् ¬. 25, 6; 777
१ संऽपर्य॑मानाः 1. 37, 9.
॥ । स | | संऽपारणं 111. 45; 4.
। . संऽपिणक् 19. 30 13.
| कंऽपिषतिं ‡. 85; 5.
संऽपिवते र. 135; 7.
॥, कषणे
च
सं ऽपिष्टात् 1४. 3०, 10.
| संऽ्पङ्क ४11. 103; 4.
२) न संपृचः [. 35 6.
संऽपृ्ै "111
सं ऽपृछं ० 09,.9
कै
संऽपुचानः 1. 95, 8.
संश्प्रशर ष, 82, 3.
तंऽवाधात् 1. 6, 8.
संऽभरः ४. 10, 17.
संऽ्भरणं ए. 25, 2.
1 संभरति 1. 162, 6.
1 सऽं 74
५. संभतऽसश्चः 11. 34, 12.
' ` संऽर्भुतः पना. 93.9.
ह ४ संऽ्भूतं [1.30 74; 35:
संभ्भूतस शा. 78, 10.
॥ संऽभूे +. 34 22,
4: सेऽनातयं , 71, 9.
स्नाय 1.07; क
` संऽमिमिक्षपुः ४. 20, 2.
| संऽमिश्वः 1.73; णा
67, 27; -९..6; 4
सऽमिश्ठाः 1. 166; 11; [. 36, 2;
| सं ऽनसामहे -- सं ऽवसं.
; 1239; 1.
(६ त | संऽ्पुक्ताः पा. 48; इ. 34 7. `
; 59, 6; प्रा. 4०,
6; 72. 67, ऽय; 3; उ. 9०8.
संऽभूता 11. 16, 2; ए. 50, 3; "१. 75, 4.
सम्यक् ष. 58, 6; प्र.9, 5; 66, 2; 70 2;
1९. 72; 2.
सं ऽये श, 71, 8.
सम्य॑च॑ः 1. 73, 2.
सर्म्यच॑ ४. +, 1.
रम्यां 1, 209, 5; प्रा. 3, 6.
संऽयत; 1.24; १. 24 9; ५. 28; 5
` 109, 0; 1. 72, 86, 15; वव
संऽयतः 13९. 69, 3.
संऽयतं ए. 23, 10; पा. 102, 3; 1. 62, 3;
॥ 65 3; 86, 18.
संयता 1. 157, 8; ए. 16, 91.
[॥
संऽ्यंति ४.9, 5.
सं ऽयुजे ४111. 41, 6.
संऽयोपरय॑तः म, 165, 5.
संऽरभ्यं र. 94, 4.
संऽरगाणः ए. 32 8; ¬+. 15; 8.
५५१११५५ ५
* ॥ * ४ * ई |
1
कै
संरणणे इतं सं ऽर्यणे ४7. 7०, 6.
रं ऽग! 111. 54; 10; $. 6, 1
63; 5.
संऽरनः शा. 47, 22.
सं ऽराजंतं 1. 27, 1.
सऽरजं 111. 10, 7; ण्य.
॥ 19, 52; +. 134; 7.
संऽणजां 1. 136, 7; 7. 476; ४. 68, 2; प्न.
22; 30; 2.5; 4; 7; 29, 9; >+. 65: 5.
संऽगजा ४.65, 5.
संऽराज ए. 85, 7; ए. 68, 9.
संऽराजोः 1. 4, 2.
सं ऽग ए. 65, 2; 5. [~
संऽराज्ञी +. 85, 46५
संऽर॑द् 17. 28, 6. 4
सरट् {. 100 7; 188, 5; [. 55 7; 56; 5;
1४.19; 2; 2.2;. 10; "1. 278; णा
58, 4; 82, 2; पा. 49 |
००, ~.
0.111.109
संऽवननं 2. 95, 12.
संऽवननाण्नाा. 2, 2.
संवरणस्य ए. 35, 10; इ. 00, 6
सं ऽवरणात् ए. 3, 2.
संऽवरणानि 1.९. 17, 9,
संऽवरणेषु 1४.21; 6.
स्वी एवा. 75, 2; क. 43, 5
संऽवतेर्य॑तः ४. 48, 5.
सऽ्वतते ए. 54, 2.
संऽववृत्त् 1 (9.
संऽवसंनेषु 1. 86, 1४.
सं ऽवसानं 1. 26, 4.
संऽवर्सानाः ए. 6, 8.
सथ्व॑सुः पा. 39, +.
संऽवादायं पा. ०, 4.
संऽवित् ४1171. 58, 1.
संऽविदं 2. 70, 14.
संऽविदानः 9४1. 44, 4; चा. 48,
4; 162, ग; 169, 4.
ऽविदानासः >. 3०, 24.
सं ऽविंदतें क. 145, २.
संऽविव्यानः 1. 13०, 4; ए. 29, 4.
संऽवृन् 11. 12; 3.
संऽ्वुतः ए. 0, ४.
संवेशने 2. 56, 7.
संऽ्वेर्षिषः ए. 5, 77.
संऽश्ञायं 2. 7180, 2.
संऽशिशानः 12. 9०, 1.
ऽशिज्ञानाः र. 84, 7.
संऽ्तत् 1.8.
संऽसदः पा. 92, 20.
सं ऽसदं ए. 24, ग5.
संऽ्सदाष्ा. 54 5
-संऽसरदि 1. 94 ठ; ए. 4,
3
ऽविदानाः 2. 3०, 23; 97, 4.
॥ 1
13; 2, ग
सयोनी इति सऽ्योनी 1. 159, 4.
स र्द्ऽभ्यः [. 7112, 27.
सरखान् 1: 42, 6. == `
(1
ष
॥
संऽमुदे 0111. 70, 6.
संऽसृजानिं ३. 20, 10.
संऽसुजिं >, 84, 6. | | | न
सऽसृष्टं 2. 84, ¢.
संऽस्िरः 1. 149, ¢. 4
संस्स्ये 1 5 4; ए. 58; णा, का ष्यः 24,
15; 32; 7.
संऽस््रय॑माना 1. 123; 10.
सऽस्रवाः 12. 713, 5.
संऽस॑शा ९. 102; 3. न का 1 ।
संऽहतैः 111. 1, 7. |
सऽहायं 11. 38, 4. | |
संऽहितं 1. 168, 6; पा. 67, 22,
सऽहिता पा. 96,2 `
संऽदोवं ह. 86, 10,
सयावभिः 1. 44; 2 ; =, 29; 7; 713; 2. |
सऽ्याव॑सी ए. 37, 8. ५ ६:
सऽ्याव॑सीः [. 84, 10.
सश्यावानं ४. 35, 7.
सञ्युक् ९. 168, 9.
सश्युग्वां 2. 130, 4. |
सऽयुज॑ः [[. 30, वव. | | ¢.
सऽयुजं ९. 124; 9, |
सऽ्युजां 1. 164; 20. |
सऽ्योनिः 1. 164, 3० ; 38. |
सभ्योनीः 1. 7.03... 4९,.16, (6 | 1 4. १ ॥
सर कद. 416. व
सरऽखपसः 11. 12, 12. क
सरः ए. 103: ¢; भ. 7, 23; 45 24; 49, 3
सर्जतं क. "5, 3. ^:
सरण्यन् 777. 7, 29.
५९४ शरप्--सपिःऽघतरः
तप॑सि पए. 29, ४; 8; शा. 10, वय; पा. 7,
10; 7, 45 1९. 54; 2.
सऽ्रातयः ए. 20, 14; 17.
ससितिः प्र. 58, 6; णा. 70, 2.
सरिषन् 41, 70; 1.35 2:
सस 1. 138, 3:
सरेमणि 111. 29, 77.
सरीसृपं 2. 162, 3.
सऽसपा [भ्र. 16, 10.
सश्रूपाः र. 169, 2.
वऽरूपेण इ. 55, 3.
सऽरूपेः ए. 34; 72.
सगः 1. 190, 2; 1. 3०, 7; 1. 29
84, 4; 1. 26,.2; 8), 47.
सगंऽतक्तः 111. 33, 4; 7.
सगे ऽप्रतक्तः 7. 65, $.
समै पा. 18, 7; +. 89, 2.
स्ंऽ्डव ४, 56, 5. |
सगः 1. 152, 7; - 1. 25; 6; 5.8; 52; 5
९. 22, ४; 64; 7566, 29 ; 907, 39.
स्गेन्ऽस्व ४11. 35, 20.
सगः 1. 69, 6; र. 25, 4.
समी ए. 46, 3. ।
सण ए. 32, 5.
सषु 1. 3, 12.
सैः 1. 169, #. |
सजेति द. 146, 3 ` ` | ध
सनिं 1. 69, 7; 92 7.
सतवे [. 22, 12; 776, 15; 130, 5; 11. 12, 12.
सवि 1..546; 506; व. 396; 9.99
सपं 3. 78, 79.
सपः 2. 16, 6. | ४1 ~
स्थ 199 99 प
तथी 409
सपति 12. 86, 44
॥ ऋ , ति ।
सरत् 1. 7107, 14; ३, 61, 8; 24.
(५ व सरत् 41.240 10
1 श्प्यंग. 71, 6; 108, 7; 71. 4, 77; 6, 9:
1... ` 6०4; प्र, 6 7; 4753; प्र. वा, 2; 29;
(1 0; 11. 499 41.11.701...
9 1; [-, 8, 9; 97, 6; 1055; =.
15; 10; 24; 8; 475 6; 84, 1; 168, 2.
सऽर्यां ५. 43; 8; इ. 106, 11.
सरन् प्र. 17, 3.
सर्मा 1. 62, 3; †2, 8; 7. ॐ, 6; 1. 26,
8 श्र. 4; 7; 8; इ. 108, 7.
सरमे 2. 108, 5; 5; 7; 9.
स्यते 1४. 17, 4.
सण्युः ए. 52, 9; उ. 64, 9.
9 | स्यो 1४. 30, 18.
| सशरः 1. 35 3. `
1 सरसः पा. 1, 33.
1. सरसि र. 97, 52.
२ सरसी इति ४11. 103, 2.
५ सरसः #11. 96, 5.
सखतः ए. 96, 6,
~. : .. सररखति 1. 164; 49 ; 188, 8; [. 30, 8; 47,
16; ४1. 67, 3; 14; ह. 1, 8.
सर्खति 11, 47, †; 18; ण, 67, 7; 5; 6
५ 0 षा 95, 5; 6; इ. 75 5; 184, 2.
सरखती 1 3; {6-72 9 14 9 1 89, 3 3 1429 9;
प ४ ग्णा ॐ8; 3५8; ता. 48; 54,
#
71; ण.
॥ 8 ।
#
13; प. 42 12; 43; 77; 46, 2; णा. 45,
1 उन 24-42-65. 64; १:20.
त. ॥ 133 षा 353 1; 236 6 399 5; 49 3;
991 4449609; धा ०८; 54
4168 65984 2.20.
30० 12; 04 9; 65; 7; 13; 710, 83 747, 5
सरसखती ४1. 61, 2; पा. 95; 96.7; प्रा
41 76; 3, 10. 4; 9; 141,
सर्खतीऽवतोः ४111. 38, 10.
सख्यां 111. 23, 4
५५.७१.५५१
सपिःऽखासुतिः 11. 7,6; ष. 69, 2.
सपिःऽऋमुतिं ए. 74,
सपिःऽस्ासुतते ए. 21, 2.
सपिःऽचासूते ए. 7, 9.
सपियंमुती इतिं सपः ऽसु ए. 29, ५.
सपि्षः 1. 40, ग; ए.6,9.
सर्पिषां 2. 18, ¢.
समीय 1. 80, 5.
सवेऽखंग २. 161, 5.
सवैः ५4.11.11 9.9.00
19; 747, 4.
सवेऽगणं 1. 116, 8; ए, 1, 12.
सवैतः 11. 43, 2; ए. 78, +.
सवे ऽरततातये 1, 106, 2; भा. 56, 62; [द्. 96, 4.
सवैऽर्ताता 1. 94 15; 1. 54, 9; 1. ०6, 3;
१600-3. १7428; 1. 74 719; 5;
7; +. 74; 3.
सवेता ऽस्वं ४1. 12, 2.
सवेऽत्ातिं 11. 54 7; इ. 36, 74; 100, 1.
स्वैऽधाः 1. 18, 7.
सवेऽधात॑मः पा. ॐ, 7.
सवे ऽधात॑मं ४. 82, ए.
सवे 1. 29, 7; 83, 4; 133, 5; 71. 20, 5; गा.
14 7; भा. 1०3, 5; णा. 4, 15; 1४
58, 2"; 93 4; 102, 21; [द. 60, 5; ङ.
9० 2; 97, 20; 107, 8; 129, 3; 764, ॐ
सवैया 1. 39, 5; ए. 26, 9; णा. 28; 3.
सवैऽरया ४... ;. इ, 7656, 1.
सवैऽवीरः 111. 62, 3; 1. 99, 4.41.
सवेऽवौर [11. 30, 77; 1४. 35; 6४: 50,-70 ; प.
2.4, 4, 15.13; .76;-4
स्ैऽवीरया 1. 717, 2.
सवेऽवीराः 1. 57, 15; 105 9; 112, 18
सवेऽशासेः ४. 44; 4.
सवऽसेनः 1. 35 3; *.3० 3
सवेऽसना #1. 68, 2.
सर्वस्मात् 2. 97, 26; 169, 5
सवस्य -. 137, |
काण
ता
सवे ऽहदा >. 160, 3. |
सवै 1. 162, 8; 9; 4; ५; प 85, 8; णना
97, 6; -इ. 74; 16; 755, 2.
सवै; 1. 188, 8 ; 191, 8; ४, 752; 5; णा
26, 3; 59 4; 55 8; ड. 1/3 5; 90, 7;
“= 401, 718.
सवत् 1. 197, 8; "ाा. 33, 7; प्रा 7; 3;
93; ©.
सवेन्यः 11. 47, 12.
सवेसां 1. 147, 8; 707, 13. क
व 1. 191, 3; 7; ए. 75, 9; पा. 555; | ५
>. 719 10; 128, 2; 155, 4; 166, 2.
सुते 11. 25, 7.
सति उति 17. 7, 1.
सश्ठष्सा ह, 10, 2.
पललूकं 111. 3०, 14. 4.1
सलिलः इ. 109, 1.
सलिल >. 129, 3.
सलिलस्य 9. 49. 7.
सलिलानि 1. 3; 27.
सल्ल 3. 72, 6.
सव॑नं ५10..5 4-9-21 1130-1; 4
43; 4; 1. 34; 4; 35 4; 6;7;9; प. "4.
44. 9; ४11. 423; 2057 2;64.8; द. | =
76, 2; 5; 96; 73; 160, ०
सव॑नस्य 1. 52, 5; ४. 36, 2; णा. 37,
>+. 179; 3. व
सवना 1. 49; 4, 8; 5, 2; 173; 8; 77. | 1
78 20; 3०, 2; 36; 8; ४. 29; 7; ४1. 23, | |
4; 40.14; ४11. 226; 45 .59,6; भु
2०" ००३. 38 394; 38.940 9
59; ग; 66, 4; ~. 423; 4८; 55; | |
6;. 89; 164; 771; 65.172. न
सव॑नानि 1. 57, 7; 11. 34; 6
कटे क
&0०
9-3-42 04.09 0 -102 1;
3 ग्ण; 35 7; ४. 4० 4; भव. 4
¶#1. 22; 5; 29, 9; 59 7; 92, 5; णा
8, 3; +. 44 9.
सर्वनेषु 1.9, 3; 51, 13; 67, 4; 152, 2; 7.
10.043 1.4.44 002
ष; 2 धा, 1.20; 2 39, 4; 44,
6; 50, 4.
सवं 1. 164; 26; णा. 38, 4; णा. 102, 6.
सऽ व॑यसः 1. 765, 7.
सऽ्व॑यसा 1. 144, 3; 4.
सञव॑री र. 10, 2.
सवान् 4. 420, 1; 1/0 4. 156, 2
सवायं 1. 115; 7; 1. 38, 7; वा. 56, 7; 7.
54 5.
सवासः 19. 54, 6.
सवितः 1. 24; 3; 11. 38, 77; 1. 56, 6; र.
` 542; 3; ए. 80, 5; ए. 77, 6; 1. 6,
26; ¬. 35 7; 149; 5; 158, 2. = `
सवितरिति 1. 35, 77; 1. 54, 77; 1४. 54
5.6; ४, 81, 4; 5; 829 43. णा. 77, 3;
४11 31, 8 ;.-38; -2; 13. 60, 24;
95; 9. |
सविता 1. 22, 8; 34; 10; 35; 2-4; 8; 9;
30973 ; 3; 2; . 1645 3; 170, 33 123 3;
124; 7; 7157 7; 164; 26; 186, 7; 7. 1,
7; 3156; 38 7; 4; 8; 1. 35, 6; 54
| 55" 19; 56 7; ४. 15, 2; 55, ०7;
54" 2; 55 6; 9, 42, 3; 5; 48, 5; 49,
4;.81,2; 3; 82, 3; 8; 9; प्रा. 49,
14; 50, 8; 18; 75; णा. 5 12; 35,
10; 38, 3; 40, 7; 45, ८; 3; 63, 3; 66
10 24.27; 22; 86; ५: 1.81
4; 99 48; 710, 6; क. 10, 5; 29 8;
107; 4; 20, 718; 31, 4; 24 8 123; 36
14; 859; 15; 24; 36; 8, 28; 92,
4; 100 7; 3; 8; 9; 750 4; 129, 1;
149, ग; 2; 4; 158, 3; 671, 4; 174; 3;
पश्ते 11. 16, 4.
सवनेषु -- सिरे.
नि ययि नि 1111 ााकावतयाततााातकाक
1
सवितारं {. 22, 57; 35 ग; 448; आ. 38,
9; [[. 20 5; 62; 72; ४. 46, 5; 49,
१.2 2720411
45; 4; ~. 66, 4; - ग्यः, 5
सनितुः 1. 35 5; 6; 110, 2; 113, 1; 259,
5 44.4.14. ६.
40.709... न
प्र. 8, 7; 82, 71; 2; 6; ण्न. 1.41.
38, 4; 6; 52, 35 82, 70; पभा. 1०2;
6; ~" 36, 14; 13; 64, 7; 49, 3; 18, १
सविता 1. 38, 5; 1४. 34; 8.
सविते 1. 3०, 1; णा. 25, 76. #
सवीमनि 1१. 55; 3; णा. 71, 2; प्या, 18, 1;
30, 1201 4.
सऽवृधः >. 30, 10.
सवे ४. 82, 6.
सऽ्वेद्सा 1. 93, 9.
सवेन 12. 67, 25.
सव्यः 1. 82, 5.
सव्यतः 11. 77, 18.
सव्यं ४111. 24, 5.
सव्या 1. 20, 71.
सव्या ४117. 4, 8.
सव्याय ‡\. 49, ९.
सव्येन 1. 100, 9; ए. 36, 4; ए. 87,
सऽव्रता 1. 70, 4.
सव्रते इति सश्र 2. 65, 8.
सश्चत् [1. 22, 7-&.
सश्त 1. 64 72; [1 ग 6, 2; -"ाा. 8, 24;
206, 4; 9०, 3 |
स्तः 1. 42; ¢; 1.9, 4; णा 97; 4.
सश्चति 1. 101, 3 |
सश्चसि ए. 57, ;.
सश्चिम ए. 25; 7; | [94 | 16. 9". त ८ ॥
कीः
गष ४. 36, 3.
स्र ४. 33, 8.
ससतः 1. 224, 4; 155, ¢
ससतांऽइव 1. 52,
ॐ
ससतीं ऽईव 1. 134, 4.
ससत्य {{1. 2०, 9
ससतः 1४. 33,
ससंते 1, 105, #; 1ष्र 57, 5; ए. 29, 6.
र
संहं 1. 29, 4; ए. ~,
ससतु +. 124, 10; ए. 5, 5.
ससं ए. 72, 3; इ. 79, 9.
ससने 1. १63;
वि स ।
सस~रीः 111. 53,
| रि कि ।
ससऽ्वांसः 1४. 8, 6; 42
15;
54 6; +. 148, 7.
सस ऽवांस 111. 34;
ससऽचान् 17. 2
९. 74 8; र, 71, 5; 29, 2,
ससस्य {14 64 1 97; 77; प्र. दा
; ४1. 44, 7; पना. 8,
ससह ४111. 19, 26.
ससर्हत् ४. 24,
ससदानः
ससहिः {. 100, 3; 102, 9; 107, 6; #, 22
3; 23, "7; [. 16, 4; 306; एना 12,
9; 1. 48; इ. 132; 4; 145, 5.
१. 731,
ससरि [, 102,
70; 4
ससहिषे र
ससहीषा
180, 7
ससहे इ. 104, 10.
सस्रे ए
भरति , किच तिवत
96; 15
सस्यात् #* 7, 10
ससद्यानं 1.84; ए. 4०, 7; द, 62, 29
` ससदयाम 1. 152; 7.
ससद्टांसः ४11. 92, 4.
ष. 35:
411. 15, 4; 07, 3; 12 ;
3 4
+ 09.14;
॥
कै
ह,
सादं 1. 6;, 4; णा. ध.
ससाद् 7. 25; 0; [ा. 7, 18; प, 1 ध
7,6; ४1.6.65; श्रा 29; 2; <. 99,
ससान 7. 57, 7; 34, 8; 9
ससान 1, 34, 98.
ससार 1४. ॐ०, 77,
ससार 1. 86, 13.
ससा ४. 25, 6.
ससाह ४1. 86, 5.
ससूव 1४. 18, 70; एना. ८०
ससुजानः ४11. 8, 2.
ससुजानासंः 1. 9, 20,
ससूने 117. 59, 4; ए. 18, 4; 36, 7; इ.8.8,
ससूञ्मह -.81, 8; ए. 6, 37; प्या 98, ¢
संमृज्यात् 1. 24; 73
ससृन्निरे 111. 69, 5.
ससृमार 1४. 20, 7
ससुऽवांसः ए. 1, 15;
समुवांसंऽडव 111. 9, 5.
ससेन 1. 5, $.
सस्तः ४1, 20, 74.
सस्ता 1. 29, 3.
सस्ति भा. 9, 3.
सस्तु ४1. 55; 55.
सऽस्यावाना पा. 3;
सनिं र. 20, 2.
सखिः 1. 28. ठ; 1. 155; 1 24; 4; 67, 20,
सद्िना 11. 23, 10 |
४.35, 7; 2. 38; 4; २59;
सती इति 71. 38, 7.
सस्मिन् 1. 2, 15; 152,
1४. 1.4; 19 8
6१, |
सञस्यदः 2. 115; 4.
सप्राः इ. 64; 8.
सस्राणः 1. 149, 2,
12,
॥।
174; 4; -786;. 4;
; क
५. 36, $
प. 86, 24.
सथुः ४1. 707, 4; द. पा, 8.
सच: 1. 529 5; 75 6; पर. 55 2; 7; णवा.
90, 4; ऽ. 95; 6,
सऽसुतः 1. 141, 7; [प्र. 28, 7; 12. 34 6.
ससुषीः 1. 86, 5. `
सचे ए, 36, 7; 95, ण; 2. 77, 4.
सखः 1. 88, 5; ए. 3०9, 2.
सखजाते इतिं 1. 264 20०. `
ससे ष. 47 3; द. 12, ९
` सखरिति ४1. 59, ;.
सखीं ए. 58, 5.
| ध सहै. 24, 10; 24; 38, 6; 48, 2; 52, 12;
क 1171412 0044:
छ व. 93; १.55 244; 697; 6; 16;
6 ; . 18, 8 ; ` ५1. .28, 3; "66, 23; %2, 2;
न | 75 73 60 231 8 239; 7; 64; 3 % 66
9; .83,6; भा. 232; ॐ 34; 26, 7;
29.8 ; 76, 10:; ` 1025.2; ` [2 . 37, 4: 85;
1; 98; 7; >, 10, 14; 39, प; 45; 9; 45;
ग; 65 15; 74; 846; 85; ५4; 382;
1; | 39; 97; 22; . 2102 0: 1075 2; 114; 3
|. 11. 141. 140 1-10-02.
४ 172, ग; 14, 3.
ऋः
भ क
# 8 ।
प ५.4 105; 3; 174; 8; आ. 16, 2; 34 7; 56
५ 1 5 963 9.11,6 49453 ॐ;
247 41.50 6.1.77
| 18, 4; 25; १३.40 20; 1.26, 5; 37
7; 56, 9; 97, 6; गा. 44; 5; 20;
0153144. 20, 3024-1 .8
1 | 8; 05, 18; 9; 10; ॐ. 49, 6; 5०9, 7;
1 56 6;..8 ग 846; 10० 68 प,
१ 176 .5.
सहःऽकृत 111, 43, 16. |
सहःऽकृत 1. 45, 9; 771. 27, 0
सह॑ः 1. 24; 6; 36, 18 ; 5, 10; 52, 77; 55
५ 8; 56, 2; . 50565 80, 109; 845; 12;
सहःऽजा; 7. 58; 7; 3. 103, 5.
सः ऽ तमा ४. 60, 1.
सटःऽ्दाः 1. 177, 5; 194; ठ; 19.
सहःष्दां 1, 34, 8; 4, 5; एा. 7, 15
हःऽभरिः ए. 44, 3.
सहःऽभिः 1. 62, 10; प्र. 6, 6 १0211
6, 5 ; --, 46, 9 ;. 6, ६4. 116, :.6.
सहःऽवृधं 1. 36, 2; 7. 10, 9.
सहऽगोपाः 2. 27, 8.
सहऽ दसः ९, 130, 4.
सह ऽजाः +. 84; 6.
सहऽजानुषाणि 1. 104, 8.
सहै ४. 29; भा. 47, 1; श. 43; 6.
सहऽ्दातुं [1. 3०, 8.
सह ऽदेव; 1. 100, 77.
सर्हध्ये पा. 7, 7; ए. 3, 12.
सरथ्व ~. 7102; 2.
सरन् "1. 73, 2.
सर्हतः प. 80, 5.
सहं प. 22, 7; ए. 46, 29.
सहन् ऽतमः 1. 127; 9.
सहता एणा. 40, 1.
सर्दती ए. 56, 5. -
है ४1. 66, 9; ए. 6०, 10.
सहते ॐ. 34; 9.
8 ।
सह 21; 94.1.13; भा. 7, 2.
सहश्प्रमाः 2. 140, ¢. धि | 0
सहमानः [1. 46, 4; 64, 15; द. 71०, 12;
, 2055:.4; |
सहमानं ४1. 18, 7.
सहमाना 2. 145, 5.
सहमाना; [ष. 6, 10,
सहमानां >. 145, 6.
सहमानाय 1. 21, 2; ए. 46, ब.
+
४।
4
चनया
सर ऽवा -- सहस्र ऽधाय.
सहञ्वः 11. 49, 3; प्य. 0.4 -18.-2.-* 11;
44: 2.
सहञ्वान् 1. 175, 2; $.
सहऽवानं >. 18, 1. |
सह ऽवाहः ४11. 97, 6. `
सहऽवीरं 9.4.14 46. 12.
सह ऽशेय्याय ह. 10, व.
सह॑सः 1. 127, 1; 44; 7; 143; 7; 71. 0,
11.4.14. 24: 3; 28, 43; ४. 4,
5; -32; 6;.31,3; प्व. 10 2.11
1; 49; 2; ण. 56, 1५; ण्न. 19, 2.5
0-145-12. 07; 4; ~.
192 0; 455 5; ग्ण्ठ 7; 42, द; 155;
110
सहसः 1. 26, 10; 4०, 2; 58, 8 ; 74 5; 49,
सह ऽस्तोमाः र. 1309, 7,
सहस्य 1. 747, 5; 11. 2, ग; ए. 22, 4; पा.
1; 4; 169 8; 2. 7, प; 87, 22.
सहस्यं ए. 42, 6. ष ।
सहस्येन ए. 55, 7. | | | ह
सस्यैः ४. 29, 9. ति ध
सरस्रऽअक्षः 1. 79, 12; इ. 90, 1.
1 क वि)
सरस ऽअक्षण 1. 164; 47.
सहस ऽसक्षा 1. 23, 3. ` ॥ि । ५ |
सरस्रऽखक्षेण ~. 161, 3. ¶ |
रि ति ।
सहस ऽऋअम्साः 1. 88, 4. | | |
सहस ऽऋथं +. 17, 9. ।
सहस्र ऽ कतिः 1.02, |
सहस ऽक्ते ए111. 34, ¢. 3
सरस्रंऽकेतु 1. 119, 7. | १ |
सरच्ंऽचघसं 13. 60, ए; 2. | +
सदस्र॑ऽचष्से 1. 65, ¢.
सहस्रञ्चसाः ण. 34; 10. | ४ 4 अ
सहस्र॑ऽचेताः 1. 100, 12. | "१०४४
सहस्र ऽजित् 12. 78, 4; 84;
| "कि ।
सहस्र ऽजित् 1. 188, 1; ४. 26, 6; [द
80, 4.
सहस्र॑ष्दधिणाः 3. 154; 3.
सहस्र ऽदधिणे >. 33, 5.
सरस्रऽ्दाः +. 62, 11. ।
सहस ऽद्ातमं ४1. 45; 34. | क
संह ऽदातु 1. 72, 9. 4 ध ८ क ५ |
सहस्र॑ऽ्दानः ए. 33, 12. 0
सहच्र॑ऽदाना 111. ॐ, 7. | 1
सहघभ्दान्नां 1. 27, 5.
सरच्र॑श्द्वारं ४11. 88, 5.
सरथा 2. 114, 82.
म
चि मेभ कमि
4; 74710; 1. 7, 8; 14,4; 6; 76, 5;
9
16, 4; 24 5; 28, &; प्र. 2, 2 (1.0
॑ 9910 90 0.4.42
3; 76; 15, 46; 75 3; 18, 17;
20; 7; 21, 77; ऊ, 9; पवा. 7, ठा; 22;
3-4; 7; 0 141; 6.4; "1, 9, / 8
12; 60, 2; 849 5; क. 5० 6.
सह॑सा 9.08. © 13; 57; 10; 89, 70;
90, 1; 08, 2; 221; 9 5 ०; 1. 14754; 7४,
18; 8; 28, 2; 5०, उ; र. उ, .8; 3; 710;
8, 4; 1.2; 9.5 65 44 22; 48, 5.;
60, 2; 66, 9; ४1. 18, 13; 69, 10; शा,
45; > 49, 8; 67,9; 83, ग; 106, 9;
; 168, 9.
: ५ ध सहमानः 11. 106; ४. 17, 5.
| ` सहसानं ४. 259; ए. 7, 7.
| सहसाने 1. 189, 8. 9.
`. अहश्ामिानं ‰..174, 1. क
| 15वन् ४. 20, 4; 2. 21, 4
सरसा ऽवन् 1. 97, 23; 7890, 5; 11. 1, 22 5
णा. 5, 9 पा. 1, 24; 4 6; 19 7;
|
5592 4;
सहस ५
सरत्रऽधारः >. 14,
7; 96; 9; 97, 5;
109, 16 ; 19;
र.
ध,
६०४
सहस्रं धायं उ, 74, 4.
सहस्रधारे 17. 73, 4; 7; 74
सहस्र ऽनिर्निनं 111. 8, 75.
सदस्र॑ऽनिनिजा 117. 8, 71.
सहमरऽनीतिः 1. 77, ४.
सहसरऽनीयः 1. 6०, 7; [-8, 85, 4; 96, 18.
सहस्रं नीथाः इ. 154, 5.
सरप्र॑ यरः ए111. 77, 7.
सहस्र ऽपाजसः 12... 23, 3442, 2.
सदच्र॑ऽपात् क, 90, 7.
सहस्र॑ऽपाथाः णा. 2, 2 4.
सह्॑ऽपादं ए177. 69, 16.
सहस्र ऽपोषं 1. 32, 5.
॥ ति, "शि |
सहस्रऽपोषिणं पा. 103, 4.
भ ।
सहस्रऽ्यो्यं ए. 35; 7.
सहस्र ऽप्रधनेषु १
सहस्र॑ऽबदे ४111. 45, 26.
सहस्र ऽभर ४1, 20, 7,
सहस्र ऽभणंस 1. 60, 2; 64» 25; 26 ; 98, 7
सहसरं ऽभृष्टिः 1. 80.70; 12.83, 5; 86, 46;
सदस ऽभृष्टि 1. 85,9; ४. 34 2; ण. र, 10.
सहस 4.-71.8 ; 24, 95 29; 80,. 4; 6
2; -296,.1; 3; 60.19; 180, 8; - 71. ०4
0;:.4;:1४. 18. 4; 26, 7. 3.10; 32
17; 58, 8; 46; 3; ए. 78, गव; 54 3;
69, 8; ष. 25 3; 46. 3; 623; अ
60:04:99, 5; पा. 24 = .3;:4. 64;
40; 129 83. 47; 78; 34; 16 90.3.00
5; 780 व; [द 525; 784; 9, 3; 9),
29; 106, 6; ~. 75, 10; 18, 12; 62, ८
5; 74 3; 795; 972; 98, 4; 102 2;
5; 9; 714; 8.
सहस्र ऽमघं ४1. 88, 7.
ह्रं ऽमीढटहे 1. 112, 10. `
॥ कि
५9 ®
सहस्॑ऽ यामा 1. 16, $.
सहस्न॑ऽरेताः 1४. 5, 2; 1. 96, 8; 1909; 17.
सहस्र ऽवत् 1. 13; 4; 1. 24, 29; +. ५4 2.
सहस्रं वचस 12. 12, 9; 43, 4.
सदस्रंऽवस्शं ४1. 35, 9; 1. 5, 10.
सदस्र॑ऽवर्शाः 111. 8, 11.
सहस्र ऽवजं 7. 104, 7.
सहस्रं ऽवाजया ए. 92; 10.
सहस्र ऽवीरं 1. 188, 4.
सहस्र ऽशः श, 24. 15.
सहच ऽ शीषे >. 90, 7.
सरसऽशगः ४.7, 8; पवा. 55, 7.
सहस्रं ऽशोकाः >. 96, 4.
सहस्र ऽसाः 1. 188, $; १४. 38, 10; 14. 44,
3; 99 5; 87, 4; 96, 24; 2. 64, 6;
7178; 3.
सरहच ऽसातमः . 1. 1, 1.1.12:
सहस ऽसातम 1. 9, 8; ४1. 45, 52.
क त ।
सरस ऽसातां 1. 710, 70.
[ हि , रि, ।
सहखभ्सां 1. 70, 77; 10, 9; 118, 9; ए. ६79
हि "शि ।
9.1.111; 1:
सहच ऽसे 11. 53, 7; भा. 102, 79.
सहचरं ऽस्तयीः >. 69, 7.
सहस्र ऽस्थुशं ४. 62, 6.
सहस्रं ऽस्थूगे 11. 41, 5.
सहघ्रस्य 1. 126, 4. |
सरघ्रां 1. 55; 9; 62, 10; 176, 21: 132; ¢;
14.10.213 5284; 39 दय ॐ 8:
४.०, 2; 24; 339; 0, 3; ए. 18 |
13; 26; 5; 6; 48, 25; 64; 2०; पा
18, 14; शा. 2 47; 4, 20; >, ९7; .6,
47; 42० 18; 35 5; 34 145. 45, 12; 46,
224; 20 ; 56 23. (2. 87, 3; 97, 25;
सहघ्रात् 1. 102, 7; प्र. 2 0.
सहाय 7. 116, 9; एना. 1,
सहस्िणः 1. 37, 70; 167, 7; 7. 9, 4.2
19. 48, 5; पा. 26, 5; या. 10
4; 1. 33; 6. |
सहस्रिण 1. 5 9; 64, 15; 124; १...
6; 22, 1; 10. 49, 4; प्र 4 13; ४, 8
6; ४1. 5 193 33: 3; 45 15; 64, 5;
०,2.09; 1 15 5; 20 2; 58, 1;
40, 3; ॐ7 7; 62, 12; 6 7; 12; 6.5;
धा; 076; 98, 4; द, 24 7; 4, =
सहध्िणी 1. 45, 32; एवा. 15, 9.
सहधिणीः 1. 788, 2; 1.5, 5; ९. 4०, 4;
67, 3.
सहचिणीभिः 1. 3०, 8; 155, 3; स. 134, 4.
सहच्ियं शा. 56, 14.
सरस्याः 1. 168, 2.
सहस्री 1 4. पा, 58, 4.
सरम्रे ४171. 65, 11.
सह्ेण 1. 135; °; णा. 65, 12.
सहघेणञ्ड्व ए. 4, 6; 49; ए; 5० ए,
सहय्रेभिः ए11. 73, 15.
सदप्रषु 1. 29, 7-7.
सद्यः 1. 180, 8; प्र. 38; 9; ४, 2#, 7; 3०,
23; णा. 1, 33; 25, "4; 96, ग.
सर्ह॑ख 111. 24 7; 3०, 26; क. 84 3.
सहस्व ९.84, 2.
शरह्लः 1.4 59, 4; [{1. 74; 2; 4; प्र 1
०8, १; प्रा. + 45 पा, 43 33.
2; सह॑स् 1..6...8. ॑ ।
सहस्रतः 1. 97, 5; 1. 25, गय.
सर्हस्ता >. 83, 7. | |
सहस्ति इ. 145; 2. |
सहस्वती इतिं र. 145 5.
सहानाँं 2. 6, 5.
सहावहे र 142; 5
सहावान् 72. 9०, 3; र. 85, 4. |
सरासः ४ 34; 24 नि | ।
सहिषीमदहिं 42, 7. छ |
सरिषट ४1. 18, 4. | 7 | | (न
सहीयसः 1. 171, 6; 1. 55; 7.
सहीयसा ४. 39, 5; श 145 6. „५
सहीयसि ४. ;9, 2. | ४ |
सहीयसे 1. 02, 4. | एः
सहीयान् 1. 67, 7; इ. 276, 4. ` | |
सहुरिः 1. 2, 3; 10. 38,0; एवा. 58, 4; द.
83, 4; 9 8. ` १
सहुरिं भा. 46, 20. | ५
सहरी इतिं ४1. 60, 7. व हा
सहुरे 1. 92, 9; इ. 83, 6; 84, 2; 5. ५,
सहुतिऽभिः 4.4.70. 1 ¦
स ऽहिं ० 010;; व १ ५
सञ्हती 1. 33, 4; पा. 27; 4 ` ६4 भ
सहूती इति सऽ दूती 1. 95: 9. 0६
सहो इति ए. ¢, 32; इ. 93, 9. २ (क |
सदसः 1. 120, 4 3 र. 04; 1. । # 4 , + 1 |
स्यसे ह. 115; 6. क भ ५
सद्या; 1. 152, ¢; 1. 77, 4. (1
सद्यामं र. 83, छ ५११ | | | क - |
सदुः ४.1. 90, 6. 9 %
सद्योः ५1. 18, 12. |
सद्दासंः 13. 47, 2. 1
पदान् 1.58, 5:11, 29; 6; प्रा. 726 ५.५१
91, 2; पा. 68, 7; #. 12, 2; ड्. 26,
1; 00, 33 - 105; &.
ता 1. 48, 10; 14-74; 95, 8;
727, 15; 142; 7; 229,
9; 29; 2; 3; ५१1. 17, 9; 6, 9; 64; 4; | साता [* 12; 22; 233; -3;: ४]. 10 4; 46,
5“ 66, 34; "1, 46, 24. 505; 50; 4; ॥ व; 12. 66, 18.
58, 6; 79, 9; 776; 86; 6; 96, 2; || स्वानि 1.24, 10; पा. 4, 26.
7104; 7; पा. 18, 7; 2; 18; 74; 8; सातिः 1. 168, ¢
9; 7100, ग; क, 0 4; 4, 1; 24; 37 सातिं 1. 6, 70; गग 5५; 5; पा. 25, 29;
5.375.452; 2;. 54 2; 6 18.; 69
6; 64 75 ; 65, 6;. 89, 24; 95 4; 124; व 1 97 20
4; 4९, 3 ध ` ||स. ४ ‰ 9
साकं ¡ 37; 2; 47; 7; 520 3; 64. 4; 8० 9; सातीः ण ॐ .9.
135 8; 747, 2; 155; 6; 2167, ४; 164; सातुः 1४. 6, 0
48; 166, 13; 799 4; "953; 7; 1 || सतिन. 167, 4. `: ` ष
ॐ 4; 39; 44 3; 444; व 19, 63... सातो 7. 56, 7#; 169, 2; 7180, 8 ;. 77. 9, 4;
373 15; 5, 9; ४. 19, 5; 26, 5; 7; . 30, 54 ` श, 24; -3:;. १1. 10: 6. 19, ¢;
956; 7 3535798 १46; || 25; 96 9; 449; पा. म, 7:5०
3०, 5; 66, 2; ष. 36, 6; 99, 5; ५ | 2; 36, 8;-60 1; क, 61, 24; 44; त.
10; 27; 14; 773 4; 7679 2; 4. ¢: 90 |
# 09, 6 {त ॥ न र. 28; 6 ; . 84 सादा्०यानि $ ध
3; 6), 5; 23, 6; 86, 4; 28; 94; || सादय 1. ण्ठः 4; (1, 49 8; 5" 35 "0
6.04; 7 7041. / सादय 1. 37, 7; 45 9; 7. 57, .5
साकं ऽउकषः 12. 9327. ~. 4 | सादयत उ. 30, 4.
साकंऽउषं ४11. 58, 1 | ० | सादयश्च ४. 44; 12.
साकंभ्जानां 1. 64 5. . ` | सादयंतः ए. 44 2.
सार्कऽ्युनां क. 106, 3. | । श | | ४ | | साद्यते 41.00;
साकंष्वृधां ए. 93, 2; 1.68, 4. । | सायात् 171. 44, 3.
साते ‰. 140, 6. . ,;; :`: , | | | सादि 2>..93:.5- :
साकम ए. 98, 4 ०5 ` र. | ॥ि सादि 1८.708; 783. १4.-2:
सासि र. 49; 1. 1 = | सादे 1. 162, 14
धाष्व - | -साषं 1४. 8.
सास्यस्यं 7. 7, 9. = ~. || सधा. २,%
सची ऽईव >. .142; 4 ष |. साधत् 11. 19, 3.
तात् ॥ 4544१, 48 4 | || साधति 1. क, 2; ए. > 3
शि क, ।
ना 100, 11. 1 | न साधत् ऽइ 1.4; ५
श 1 4 9; 102, १३ ;414,.4:; 2 6"; || साधते 1. 141, 7; [ङ. 0
138, 4; 144; 6; 319 19; 36, 1; 54 | ` ।
| . प्षाभते ४111. 1970
56; 6; ४. 54; 97; 395; ४. || 8 =
साधन् 1. 96, 7. अ
साधनः 1. 2, 8; ड 105; $. |
साधन 1. 44, 12; 3 3; 24,.2;: ४. 20, 3;
४. 6 3; 23; 9; >. 62, 29; र, 26
4; 92, 2. | |
साधः ए. 4०, 9; इ. 745. -
सार्धता 1. 2, ५. |
सातां ए. 55, 4.
साधय 1. 94; 3.
साधय 7. 94 4; शा. 56, 4; द.
साधयतं (11. 66, ;. |
साधयेत 11. 3, 8.
साधवः ए. 16, 43; पना. 29; 8.
साधसे 111. 47, 1
साधारणः 1४. 32, 23; ए.
साधारणं 17. 48, 4.
साधारस्याऽ इव 1. 167, 4.
साधिष्ठः ४. 35; 2; षा. 53, 0. ।
साधिेभिः 1. 58, 2; ए. 64
साधु णा. 32 |
साधु 1. 124, 3; 7 ॐ 6; 2; 3; ए 9 9;
14 16; ध. 43; 2; ॐ. २8, 5. अ <
सापधुऽखयेाः 3. 68, 5. |
साधुः 1. 671; 70, 6; #, 3; 71. 27, 6; गा.
११.) 1.2.60 ॐ 4; धा.
17.01; | .
साधुऽकमे 2. 81, ;. |
साधुनां 1. 155, 1; ङ. 14; 20. `
साधुऽनिः 1. 138, 4; णा. 84, ० | | |
साधुं ४.1, . (9
साधुञ्या 1. 46, गव; 170, 2; ए. 1, 4; ( 4.
5.3.66; 32 5.74 ५1 (0
साधू इति 11. 9,
क
साधोः 111. 48, 2; 7४.10. 9; एना, 8
96.
#
4;
3 |
सामगाःऽईव 1. 43, 1.
| ०१, 6.
1. 35; ॐ, 4; 5०, 2 65, 9; 7०8:
सानसि 1. 75: 2; 717 59; 6. ` िः ` ।
सानसिः 1. 175 2; द. 85, 5; 1०0, 4; 106, 2.
सानसि 1.85, 7; प्र 715; 6; भा. 272: श
106 32 र 63; 145 149 - त |
3
सातु 1. 54 4; 58, 4; 62, 5; गत, 6; 7.
35 72; [1.5 3; 1प्र 55; 7; ४. 60, 3;
४.6) 4; 67, 9; 75 3; पा. ५2; 7,
2; ए. 96, ५; 7. 16, 7; 86, 8; 9: -
१९ 27; 15; 62; 709 5, । ४
सानुकः 1, 22, ¢.
सातुनः ४. 59. 7
सानुना ४१1. 36, ठ; स. 7.5; ` 2. +
सानुनि 1. 155, 7. वि
सातु 1. 10, 2; 8०9, 5; ण, 39, 2; 64. 6.
सानुषक् 1. 2/6, 5 `
सानुषु 1. 128, 3; 1. 3, 7. नि
सान्नि ए. ¢, 6. . 1
सानोः 1. 10, 2. . र ४, `
सानो 1. 32, 7; 80, 6 146, 2; 1. 37, 2;
ष्वा. 45 5; वद. 26, 5; 86 3; 97, 1;
०% 4; 95: 4; 96, 23; 97, 3; 22; 16
79; 49; ९. 67, 6; 125, 0
सभर 11. 19, 7. |
साप्रस्यं "ााा. 55 5. |
साप्रानि 1. 20, "| न क
सनिः पा. 59, 5 1
साप्यः उ. 48, 9. | 4
सापं ४1. 20, 6. ५ द 1
सामं 1. 62, 2; 164, 24; 1059, 7; [. 42,
1४.53; णा. 29, ©; 87, 5; 08
९. 96, 22 ;. 711. ; -९. 94, 6 09, 2
13; 4. प
सामनो क. 85) गा. . 2 ~ | सावस्ेस्यं ६. 62, 9.
सामन्यः. 1. 96, 22. रि क साविषत् 1. 164, 26; पा. 45 3; उ. 99 7;
साम॑ऽभिः 1. 100, 2; णा. 16, 9; इ. 365; |. 10०५.5; 8. |
28, 5. व | || सावीः [. 28, 9; प्र. 82, 4; ४1. 72, 6.
सामभ्भृतेष्ा. 35 14 . | साशनानशने इतिं 2. 9०, 4.
| साम॑ऽविप्रं ४, 54> 14. 4 „ 4 | सार ऽदेव्यः प्र. 15; 7: 9
सामानि प. 44, 4; 15; र, १०, 9; 50, ५ || साह्डदेव्यं 1. 15, 10.
ध... १ 599. | | साहऽदेव्यात् 1४. 15; 8.
: क साघ्तः 11. 4104-4 साहि ९...
| ९. १ 1. 9 ८ | † श्च । >,
२ 1 | हः 1.74; 3; 1, 2 य; 1.26 क; 1.
* 95, ¢. ५7, 28 ; क. 28, 10. |
स्च ४१1. 4, 17; 6, 4.
1 सांऽणज्यस्यं (17. 25, 7४. सिंहं 1. 955; ४.15; 3; 12.89, 3; 3. 284
० सां ऽल्याय {.*25;:10;. 47, 13; पना. 25 9. - | ऽइव 111. 9, 4; ए. 74 4; >. 67,
| ५ सांऽग॑ज्येन ए. 46, 2 ` | सिंहस्य ए. 83, 5. |
। सांऽव॑रणौ ए, 57, 1. ॥ सिंहाः 77. ०6, 5.
सायक 2. 85, 2; 84, 6. | || सिंहाःऽईव 1. 64 8.
५५ , सायकं 1. 22:83; 84+ 7. | ५ सिं ष. 28. 14. ति |
सायकस्य 111. 53 28. . = सिक्तः र. 9, 75 |
सायकानि 11. 33; 210. । | सिक्त 1. 15, 2. |
2 | सायकेन २. 48, 4.. । सिकतय >, 100, 77.
८ सायं ४. 70, 2; भा. 2 29; इ. 146, 3; 4. सिक्का एठा, 9, 5.
५ | सारधाऽडव +. 7106, 10. | सिचः 1१. 81, 5.
सारथेणं प. 4, 8. र
सिच॑ [11. 55; 2.
अ | | सिचा. 287 , #
1 सारथये 11. 19, 6; प्रा. 205. सिवर 7. 6, | |
2, सारिः 1 144: 3.4 -158,.6; . "1. . 546; ~ व
व. ~. | न सिचो 1 99 2; १ 75; 4.
सार 111. 53, 19. सिच्यते ए.49. 2; प.54; पा. ५4; द.
(भ 5 न | 4 9944 4; 6 9;.94,
शरेय 2. 4 0. |... 33; 5 767, 7, ४
1 | सारख्तेभिः 111. 4 8 | ५ | सिच्यसे 1. 71, 8; 78, 2; 08, 70. | |
| साज्नेयः ४1. 4, 26. (2 सिंच षा. 24, 76 ; 32, 1
सा्कावृकणौ 2. 95, 5. || विव. 83,8; एना. १०; इ. 10, 0
साकावृकान् ~. 73, 3... < ध ६ ५ | (व
साल्वा "ाा. 56, 23
सिंचतु >. 10, 13; 184, 1.
सिचते ए. 49, 6
सिचध्वं ए. 16, 71.
सिंचन् 1. 121, 6; श, 102, 71.
सिंचति ए. 72, 10
सिचि 1६. 72, 4
सिचत "ााा. 53,
सिचं +. 24, 2.
सचसे >. 105, 19,
सिंचस् 111. 4,
सिचात् "777. 9, 7.
सिंचाम॑हे द. 10, 5.
सिचामि ए. 1, 5.
सिंचे 1. 3०, 7; इ. 10, 6.
सितं 1. 112, 5.
सितं ए. 5, 9.
सितां 1.22, 6.
सिष्मः 1. 33, 1.
सिध्यति 1. 18, 4.
सिध 7. 142, 8
१४७५
सिभ्रयां ४. 44, 6.
सिधाः ह. 4,"
सिनं 11. 3०, 2; 1. 62, उ.
सिनौवाच्छि 11. 32, 6
सिनीवाच्छि ए. 184, 2.
173; तव; त. 4,
20; 9, 24, 9.
न ययय
सिंचतः -- सिंधून्.
न ०
र
षव. 9, 5; 365; > 4; पा. 35;
ष्वा. 6, 4; 55; 7, 5; 4० 8 442 25 ;
54 4; 69, 74; 94 22; 96, ए; ह. 24 |
0.1.94. 62 24; 66 6 ; 72; 88. 6 | | ।
108, 16; क. 40, 9; 45, 3; 78, ¢; ५2, 5
724; ¢.
सिथिवः 1. 33, 9; 56 5; णवा. 44, 4; द, ५.
)
भ ॐ
५ ४
3० 5; 9. | [
सिश्रः 1. 65; 3; 66, 5; 92, 72; 94> 16 ; 95
7; 96, 9; 98, 3; 100, 16; वजा, १.
1049 77; 104; 8; 105; 195 106, 0.10
3; 108, 13; 109, 8; 116, 0.112..9;
112 26; 113; 20; 714; 77; 115; 6 ; 122,
6; 186, 5; 7. 25, 3; 71. 32, 76; 1प्.
५4 6; 44 6; 54, 6; ४. 5, ५; पा.
95 7; भवा. 25; 14; 26, 16 ; >. 96
2; 90» 45; 707, 14; -ह. 64 9; 65, 13;
00411 30 9
सिधुःऽइव २. 62, 9.
सिशरुपती इति सिंधरंऽपती ए. 64, 2. ।
सिधुऽ्भिः 1. 34, 8; प्र. 34; 8; . ४. 52,
13. 86, 71; 96, 24.
सिश्चुञ्भ्यः 1. 2, 28; 109, 6; एना.
>. 86, 21; इ. 89, ठ; गव. | 7
सिधु 1. 11,6; 85, 7; 99, 2; 1712, 9; 146, 4; ५ ५
104; 25; 1. 17, 9; 75 6 3 1. 33, 3;
3; 55 9; 1१४. 3० 12; 55, 3; ए. 4, 9;
37. 2; "11. 33,.5; 80, 6; णा, 22. ८.६
20, 24; [-. 70, 10; ङ. 45, ¢; 10 4
177, 10; 123; 4.
सिधुंऽमातरः ‡‰. 78, 6.
सिधुंऽमातरं 1. 67, 0. न
सिधुंऽमात्तय 1. 46, >. त ॥ 1 ॥ । |
सिधंऽमाता ए. 56, 6. 1 1
सिधुंऽङ्व 1. 97, 8; ४. 77, 5.
सिधुंऽवाहसा ए. 75, 2.
403 32 ध र |
22; 4; -86; 8
धृन् 1. 32, 12; 3
25.4४. 20, 1 28,
।
#,।
सिसधिं [11. 32, 5.
90; -18 ; 100, 72; 2. 9०, 2; +. 3, 2;
89, ¢; 777, 9; 1335 2.
सिभूनां 1. 46, 8; 9; 65, 4; 7. 5 4; णन.
44 27; +, 5; 2:18; 5; णा. 4, 4
1. 15; 5; 86, 74; 19; 33; 89,
+, 180, 7.
सिंभून्ऽ्इव ए. 46, 24. ` ।
सिंभो उत्तिं र. 75, 2.
सिंथो इतिं पा. 25; 10; क. 15 4; 6.
सिंधोः 1. 27,6; एवा. 79, 7; द. 10 5; 4
2 13 27; 3; 39, 4; 50 7; 73 2; 85; 10;
66, 43; ए. 157, 2; 755, 3.
सिधोःऽइ्व 1. 44; 12; 1४. 58, 4; 72. 69, ¢;
80, &*
सिंषौ 1. 126, 7; पा. 20, ॐ.
सिधे।ऽइव र. 116, 9.
समश्य. 47.
सिमः [. 102, 6 ; 145; 2; इ. 28, 711.
सिमस्मौत् 1. 95, +.
सिमसें 1. 115, 4
सिरसुं 1. 721, 71,
सिरी; 2. 77, 9
सिर्ठिकऽमध्यमासः 1. 163, 19
सिष्णो इति ४111. 79, 57,
सिसक्त 7. ८० 1
, मकै भनि । +
सिसक्ति 1. 56, 4; ४. 27, 4; प. 0358; ण
50 9 68, 5; ४. 70 2. 57; 27;
19; 99. |
ॐ क
५४ ©
सिस्क्रि 1. 38, 8; 66. 7; प्रा. 6, 3; 97,3;
1. 84. 2. | ५९८
ष. 4४ 5; 2०; पा. 75, 23
सिसक्त 1.28, 2; एना. 37, 8; 9, 3
सिसतिं 11. 58, 2
सिसासंतः 1. 146, 4; ४. 62, 9;
१9 ~ _ द सिधूना--सीद्.
सिसास्तति 1. 733; 7; ४. 32, 14; 20; $
62, 3; 7. 3, 4; ‰ 4.
सि्तासहुः 12. 47, 5.
सिसांसते ४11. 3, ग. `
सिसासन् 1. 130, 3; 9.3, 1; प्रा. 73, 3; 1.
35 4; 6, 2; 90, 4; 96, 78; ॐ. 7102, 4.
सिसासनिः >. 535, 71.
1. 64, 17.
सिसास्षतं 1. 112, 5.
सिसासंही 1. 122, 4.
सिसासंतीषु 1. 77, 8.
सिसासवः [. 102, 6.
सासि इई. 102, 12.
पसाससि ४111. 95; 9; 1. 22, 6.
सिचतुः ४11. 3;; 13 |
पसिचुः 11. 24, 4
सिष्रतुः ४111. 59, 2.
सिच्नते र. 35; 5. । 4
सिन्त [. 11, 3; 17,3; 1. 52, 2; प्र. 22,
6; ४.17; णा. 59, 7; [उ. 66, 6.
सिखरत् 1. 188, 10. (0
सिख॑प् ४1. 20, 14 1 "द
विलप 266
विखपः 1, ८
सिखिदानः 1. 46; ए. 42, 20.
सिखिदानाः ए. 103, 8.
सीष्षत #11. 60, 77.
10121... 39
59, 3; 87, 1; 96, 23; उ. 98, 4;
112, 9.
सीदः ४५. 5, 3.
सीदत् ४. 17, 2; ए. 76, 23; #-. 72, 2;
+. 22, 7; 62, 4; 009,.4; 723.
सीदत् णा. 3०3; रई ०.0 0 024
सीदत 1. 85 6.
सीदत 1. 5, 7; 22, 8; 7. 9,411.41
1150; 12 9; 39, 6; ०4, 7; श, 0.4
सीदतं "1-4-10 1 ; भाव. 87, 2
1
सीदतां 1. 142, ¢.
सीदतां 1. 188, 6.
सीदति 1९. 64, 26.
सीदति 7४. 9, 3; 4; 72. 7, 5; 6; 29 6
38, 4; 42, 2; 57, 3; 68, 9; 7० तर; 84
4; 96; 6; 9; 77; 99, 6.
सदतु 3. 36, 5.
सीर तु #1. 16, 41
सीदन् 1 ४. 16, 35; णा. 34, 16;
21; 62 8; 64; 17; 65
6; 95; 7; 96, 23;
65; ¢.
सीदतः एए. ४, 5; 12. 64, 29.
सीदतु 1. 26, 4; ए, 28, 7; इ. 70 व
सीदतु 1.13, 9; 44.13; 142; 9; 1. 47, 27;
9, 256,. 9; +. 72, 6.
सीदसि 1. 24, 12; णा. (0 व, 04.24.
86, 35 ; 47 ; 99, 8 ; 197,
सीरसख 1. 56, 9
सीदाि 13. 9;
सीं 1. 33, 9; 56,
2; .30,.8;..9; 6, 41 95;
126,.20.; २14; 26; 10; 322,
५५
3 10; गग; 38, 3; 8; 45; 5; 56, 7; पर.
32 9; 47 2; 85 7; ४. 75 7; 26, 8
44 23 ; 48; 4; 64, 3; णा. 78, 2; एना.
42 8 ; 69, 6; 70 7; 8०, 8 ; 10०० भ; द.
2.5; 9. *
सीमहि 1. 25, $.
सीरं र. 107, 3; 4.
सीराः 1. 1749; 1४.19, 8; स. 49,9; 9, 9.
सीलमाऽवतपै ¬. 75, 8.
सेव्यत 1. 32, 4.
सीव्यध्वं >. 101, 8
सीव्यत् 71. 17, 4.
सीषपत ४17. 42,
॥ ति क 8 ।
सीसधः 11. 24, 1.
सौसधः ४1. 56, 5
| , किति निप
सीसधाति ४1. 49; 8.
सीसधाम र. 157; 1.
मु 1. 9 6; 15, च; 1, 4; 26, 5; 204;
33; ८; 360, 23; 57 14; 58, 6; 45 5;
40 2; 5; 52 7; 53 7; 76; 2; 3; 82,
1; 84; 3; 95० 7; 94, 2; 15 3; 7,
2; 712 7-23; 178, 10; 129, 5; १५5;
4"; 135; 9; 136, 7; 138, 4०; 159, ए; 9;
8; 148, 3; 164> 26; 165; 74; 169; 5;
१३... 100, 6; 182, 1; 184, 2; 97.
04.01.11... द-76; 8 78, 3;
20, 7; 28, 6; ¢; 34; 75; 35 2; 47; 4;
1.1, 2 39, 6; 21; 37514; 33
9; 36, 7; 4; 37; 2; 559; 54.3;.55;
2; 5792; ४. 2 इ; 4; 6; 20 4; 22;
10; 26; 45. 51:53; 92.65; 4; 43; 6;
55 45; 10; ४. 3०, ¢; 35 2; 42 18;
54 15; 62, 2; 65, 6"; 67 5; 75; 4; 8;
74; 9; 10; 83; ¢; 10; 85; 5; भा. प्य
+ 12.24 1.170.140 '; 2
9; 95 ग; 37, 7; 33, 7;
0; 48; 3.3
22.24: 26;
2; 59, 5; 8
91. 1, ग;
8, 27; 13; 25; द, 4; 78, 72; 28; 22;
20, 19; 22 3; 94 7; व; 26, उ; 10;
5; 23; 27: 3; 32 19; 34 12; 4० 7;
41 7; 2; 452 8; 9; 46; 76; ग; 5 1;
53 6; 59» 5; 67, 5; 67; ठयं 27; 70,
9....03 17.141 09.4.74:
84, 6; 9० 24; 3०} 98, 2; 10 3;
105. 3; 1.9; 540. 67 15465,
९; 87, 3; 170, 1; क. 70, ब4; - 16, 7142;
18, 72; 07, ए; 20; 28, 4; ॐ ग 2;
33) 3; 40 गण; 42 7; 45 2; 449; 54
०0.44 4-9-01
75 1; 7; 4; 94 14; 100, 2; 70, गव;
132, 9; 112 10; 220, 3; 126; 6; 732;
$; 1337; 3; 4; 08, 2; 79; 2.
सुऽखग्नयः 1. 26, ¢; 82; एवा. 15, 8; णा. 19,
7; 60, 6,
मुऽखंग॑ः 2. 1, 1.
सुऽकंगां 1171. 43, 4.
सुऽखगुरिः [. 32, ¢; 1४. 54 4.
सुऽ्गुरे +. 86, 8.
सुऽखंचः 1.6, 9; णा. 56, 16; [द. ११;
सुऽ ण. 15; 10; 58, 4; शा. 719, 3.
सुऽश्चचां 9, 20.
सुऽखथ्वर 1. 44 8; ४. 28, 5; 9. 24, 5.
सुऽ्ध्वरः 1. 127; 7; 1.0.810. 4;
24; 1028; 12; 134. 1. 3.8; 86, 7; इ.
व 2
सुऽख्श्वर 1. 45 7; 1. 28; 9, 8; 1४. 46
4; १.9, 3; णा. 5 4; 76, 4; णा
सु ऽअशध्वरा | 6,6:` 29; 712; ए. 7,
173; 4" ५ न
६१२ | सुऽखग्नयः-- सुऽघश्चा. | ।
मुऽखपतयानि 1. 72, 9; 19.34 9; ४1.913;
पा. 75 79. | |
ऽअपत्यायं 1. 83, 6; 1४. 2 11,
ऽअपत्ये 111. 5 9.
ऽप्रपसः 1. 159, 3; 164; 6; (प्र, 2 9; 35;
8; +. 76; 8; 110, 8
सुऽखपस्यतं 2. गव, 6.
सुऽच्रपस्यमानः 1. 62, 9.
मुऽखपस्ययां 1. 52; 3; 770 8; 767, 77;
2; 17; 14. 25 2; 1283, 4
मुऽच्पस्या \* 35, 9.
सुऽसपाः १.84. 116;.21150.3; +.
11; 29; ग; 69, 5; "1, 88, 4;. 1.
66, 21.
मुऽ्पाक 1४. 3; 2.
सुऽऋपिवात ४11. 46, 5.
सुऽसघ्रसः >. 64; 3; 78; 7,
सुऽखमभिषटयः 7. 75, 9 `
सुऽखभिष्टि 9. छा, 2.
सु ऽअभिषटिः ४1. 33; 1.
सुऽखभिष्टि 1. 5; 2; भा. 9, 32. | ५)
सुऽ अभीशुः ४111, 68, 18.
सुऽचभीशुन् ४.11. 68, 16. भक
सुऽअरकृगेन 1. 162, 5. छ
ऽअरिः 1, 61, 9.
ऽअरितां >. 0, 10.
सुऽखकः ष. 35; ध; | 38, ४/३
ऽकः 1. 88, 7. |
ु
ु
मुऽखपये 1. 54" ग.
ु
सुऽस्चिंः 11. 3, 2.
ऽथ 11
ऽअर्वसः ए. 33, 8; ए. 57, य.
वयमव
मुऽखअश्चाः -- सुकृतः. | १ १ ` ।
ऽस्याः 1४. 4, 8; 42, 5; ए. 5, 2; पा.
56; 7.
ऽअश्चसिः ४. 65,
सुऽश््यं 1. 4०, 2; 93, 2; 162, 22; 180, 9;.
ति. 7, 5; [ा. 26, 3; 55; 78; प्या. 72,
33; 26; 23 ; 1-. 65; 74.
ऽस्यां 7, 114, 10.
ऽसत् ¬. 42, 5.
सुऽखाततः {3. 74; 2
सुऽखातितं ४177. 74, 6.
सुऽसाधीः 1. 67, 7; 70, 2; 1४. 3; 4; ४. 82,
8; >. 4; ४.
सुऽच्ाधीभिः ए. 14, 6; ए. 32, ५.
सुऽस्ाध्यः 1. 16; 9; 072, 8; 7571, 7; [ा. 28, 2
५44. 1.07 1129. +
१0.27.402 1.51 7.-0;-4:-40. 21
1८.16; 0.4.441
सुऽखआध्यं 1. 77, 8.
सुऽखपि ए. 53, 5.
सुऽसा्ुवः 1. 757, 2; ४. 5
4... 21
सुवं प्र. 6, 3; 7. 199.
सुऽद्ाभरुवां 2. 122, 3.
सुऽश्चायसं 2. 53; 9.
सुऽसायुन॑ः 1. 92, 2.
सुऽख्ायुध 041. 00.
सुऽसायुधः 18. 86; 14; 87,
1; 46.12.
मुऽघायुधं ४. 10, 13; 12. 15 8; ई. 4, 2.
सुऽस्ायुधस्य 1२. 2६:56
सुऽखायुधाः ४. 57, 2.
सुऽख्ायुधासः प्र. 80, 5; भा. 56; ग.
सुऽखावेश ष्वा. 54 ८; 9, 7.
सुऽद्वेशा ¬. 65; 76
#॥
10411.
96, 76 ; 108,
८
थ ।८अ , ८ "धथ
सुऽकीत्या ४11, 26, 9
सुऽ्राहुत ४77. 16, ¢. | | | न |
सुऽ्खाहुतः 44.411 11110; ` | |
+, 39, 5; >. २48, 7. श
सुऽसहृतं 1. 44; 4; ए. 12, 1. |
सुऽङ्ध्ना 1. 127; 7. : ++
सुथ्डषु १.4.01 ५ _ 0 |
सुष्ेन 1. 162, 5. १ (२
सुऽ्डत्तं ४11. 58, 6; क. 650 14. | 9
सुऽउक्तस्य 11. 23; 19; 24 76. ५१ क
सुऽचक्तानि 1. 95, 2; पा, 44, ५. ८
सुऽञक्ायं 1. 9, 8; 9०6; 97, 5. नि त
सुऽउक्तेनं 1. 71771, 1; 1.6.231 ५०
5% 17. "¢ - १
सुऽउक्तेभिः 1. 36, 2; ए. 45, 4. (त कि
सुऽङन्चेः 1.00, 74.44. 82; 7;
पा. 29, 3;. 65; 2; 66, 12; 68, 9; ~. ध
< 67. 26: | | क
सुऽउपवंचना ॐ. 18, 71. |
सुऽउपस्यानिः 1. 67, वव.
सुऽउपायनः +. 7 9.
सुऽउपायना +. 18, 77. | =
सुऽऊतयः 1 11.417.7;
सुऽसखोजः ४1. 22, 6.
सुऽओओजाः भा. 20, 3 ^^ 1
पुष्करा, 8०, 6 = |
सुकमैऽभिः {2 7०, 4; 8; 99, 7,
ऽकमे 1५. 35, 9. (ना
ऽकमैांशः प. 2 14 6.
ऽरकिंशुक +, 859 20. - | ध 3; | ५ ‡
5कीतेयः ५111. 45; 33 | ५
सकी; 1. 6०, 3; 286, 3; प्र. 0,4
ऽकीति 11. 28, 2,
|
|
॥
॥
1
॥
५
४3
स
[७
ने
9. 4. 8;
94; 2.
सुऽर्वुततं 1. 85,
100, 6.
122, 3.
>. 94: २.
सुऽ्कृतं [द . 75 7; 3. 65, 9.
सुऽकृतस्य॑ 711. 29, 8; 2. 6, 6; 76; 85
24; 95; 7. |
सुऽवृता 111. 3 23; 32 8; 34: 6 ४. 2
9; ए. 29, 15; ए. 4, 2; +. 75; 8.
सुऽ कृता 1. 162, 20.
सुऽवृता {. 35, 77; 134 2.
सुऽकृतानिं 11. 69, 4; *. 35; 4
सुऽकृता पा. 35 4; +. 16, 4.
` मुऽकृत 1. 31, 4; 4708; 92, 3; 28, 6 ;. 756
1. 5 16674; 482. 1. 1. 3 7; ४. 4
+ गा; 62, 6; ण. 0५,
। 0 | सुऽकृतोः 1. 371, 2.
8 सुकृत्ऽतमाः 12. 83, 4.
सुकृह्ऽत॑रः 1. 37, 4; 756, <.
सुकृत्ऽत्पय (11. 46, 26
५ सुऽकृचयां 1. 2०, 8; 83, 4; 711. 6०, 3; 1
85 2 पाया. इक ५; दकः
ऽ कृत्या 1५४. 35; 7.
:. 5कीत्वनि पा. 46, 27
ऽकृचिने ४111. 15; ;
सुकृत्ऽ्सुं ए71. 9, 1.
सुऽकेतवैः 111. 7, 10.
सुऽक्रतवः ४1. 2, 2.
सुऽक्रतुः 1. 25: 20; 24; 55, 6; 97,
4: 239, 0 41 11; न 3.5.
1 25, 9; 65; ग; १1.77;
2; 2; 01, + 99; 99
८ | 85 4; ४. 25; 2; 35; 5;
96,.19; क, 2, 3; 9, 4.70. 6; 239 8
1
-9
2 2; 1 17;
पा. 34 2 - 10.4; 0;
| | १25... 1.1
१ ` 4०» ¶; 14 3; 3. 153 13; 34 17; 44; 9;
2; ५, 79, 3; =.
48; 7;
46, 27;
128,
क्रतुऽ्ययां 1. 160, 4.
सुक्रतुऽ्यसे र. 122; 6.
क्रतुऽया 1. 3, 3.
सुक्रतू इति सुऽक्रतू ४. 66, 1; 911. 25, 5;
सुक्रतू इतिं सुऽक्रतू 111. 04» 16; 9100
सुक्रतो इति सुऽक्रतो 1. 744 7; प्र. 74 7.
सुक्रतो इतिं सुऽक्रतो 1. 5 6; 57, 73; 1. 1 4;
ए. 4 71; प. 20) 4; 44; 2; ४. 6, 3;
29 ; 3० 3; प्र. 16,6; भा. 1, 18; <4
6; 12. 48, 3; 68, 28 ; 65, 30 ; ‰72 9
श, 00, 1; 122, 2; 6; 144; 6.
सुऽघछत ए, 32, 5; 38, 7; *ा. 89; 1.
सुऽसतः 1. 59, 4; १1. 6431.
सुऽस्लं 1. 176, 19.
सुऽखलन् *1. 57, 4. |
सु
भु
ऽछवासंः 1. 19, 5; ४1. 49; 7; 57» 10.
इद्र्य +. 22; 4.
मुऽधितय॑ः ४111. 43; 18; 29.
सुऽधितयं ४11. 56, 24.
सुऽसितिं 1. 4०, 8; 97० 47; १.702.351;
ए, 2, 71; णा. 74 6; >. 2 26.
सुऽसितीः ४.6; 8; प. 64, 4; 1. 84, 6.
मुऽधितीनां 2. 108, 13.
मुऽषेतां 1. 122, 6; 1४. 33, ¢.
सुऽस्ेिया 1. 97, £.
सुऽखः 1. 120, 77.
खऽत॑मे . 13; 4; 76, 2.
सुऽखं 1. 203; 49, 2; [. 35, 4; १४.655;
(1. 28, 3; 124; - 59:
खऽर्थं 0 20. 7...
सुज्खादषः 1.87,6. = `
मुऽखादये ४. 87, 7.
मस्ते 7. 4, 9
19011 क
ऽगः 1. 47, 4; 1. 20; [95
सुमि ४17. 59, 12.
सुऽगनस्तयः [2. †2, 2.
सुऽगभस्तिः ४. 43, 4.
सुऽगभस्तिं ४1. 49, 9.
सुऽगं 40.4.04. 1112412;
1125. 7; *.44.64. "1. 4, 18:५2
24; 9. 1०4 7; 9. 40; 72; 93, 9
इ. 86,
मुऽगव॑ः {. 176, 2४.
सुऽगव्यं 1. 162; 22; प्रा. 12, 33.
सुऽगा 1. 42, 0; प्रा. 64, 4; ए. 62 6; [द
69. ,.08, ¢
मुऽगाः 1. 765; 8; भवा. 37, 3.
गातुऽया 1. 97, 2.
सुऽगाधा *11. 9, 8.
सुऽगात् 11. 30, 76; ४. 80, 2; +. 57, 5
सुऽगानिं ए. 64; 7; 13. 9; 76.
सुऽ गारेपत्याः ४.4, 2.
सु
४
४ बै #
चे
ति
ऽगुः 1. 125 2.
ऽमेभिः 1. 35; 17; 176, 20; 162, 97; 265;
6; ऋ, 24; 9; भा, 27; 207; 5, 85 32;
112, 10.
सुगेऽवृधैः भा. 18, 2.
सुऽगेषु 21.20;
सुगोपा {. 140, 7.
सुऽगोषाः 71. 23, 5; 11. 45, 3; ४. 38, ॐ;
44; 2; भा. 51, 17; क. 108, 7
सुऽगोपात्तमः 1. 86, 1.
सुग्म्यः 1. 1/5, 4
सुग्म्यं 1. 48, 23; पा. 22, 15;
सुग्म्याय य $ 2.29 15
सुश््र्॑िं 1. 77, 0 ` |
सुऽश्नायं प, 9 व:
4
नामनि
सुऽच॑द्र 1. 34 23; ४. 2, 19.
$चेतंसः 1४. 36, 2.
न्वतं ५1, 3; 10; 60, 6.
ऽचेहुनं 12. 65, 3०.
चेतुना 1.49, 9; 744; 77"; 159; 5; 166,
४, 7; 12; 64; 2; 65; 3.
सुच्छदिःऽतमे ४11. 66, 24
सुऽजर्निना ४1. 100, 4; >. 2 0;
सुऽजनिमानः ४11. 62, 4.
सुजन्मनी इति सुऽ जन्मनी 1. 160, 7.
सुऽज॑भः ४111. 60, 23.
सुऽजात ४.27, 2; भावा. 44 7.
मुञ्जात् 1.211.702.
09.04.64
८2 ५4 ५4
8; 6.
सुऽजातत्तां 7. 172, 4. ह
सुऽजातिं 1..06.:21 123...
सुऽजात ४1. 56; 27.
सुऽ्जाता प्र. 56, 9.
सुऽजाता 1. 118, 10; +.
सुऽजाताः 1. 72, 3.
सुऽजाताः 1. 2, 1; #*1. 7, 4.
सुऽजाताः 1. 88, 3; 166, 72.
सुऽजञाततान् 1. 57, 3
सुऽजाताय प्र. 53; 14.
सुऽजातासः ॥॥ 0 2; 57;
25; श. 20, 8.
सुऽजति ४. 79, 7.
01 9 | ४1 क
सुऽजाते 1. 223, ऽ; ए. 26, 6 ; 77, 6;
सुऽनिदध 1. 714; 7; 742; 4; +, 110, 2.
सुऽजिद्टः 11. 54 7.
सुऽजिद्धं ४11. 45: 4- | र
सुऽजिद्धाः 1. 166, गा. ५ १
ऽनिद्धो 1. 13, 8.
सुऽजुष्ट पृ. 67, 719.
सुऽ्नूषिः 1१. 6, 3; 2. 95.
0 89 /
6;
2
सुऽजातः पा. 647 7; +. 79, 7; 9510; 997
19
॥
स
तै
सुत 1.3.73 :5:;
तः 1.40, 1; 80 .4; 86, 4; २०५, 9; गडा
९.111.112 3
5; 4 4; [ता 357; 44 7; ४. 466
प्र 4०2; 57 4; प्र. 29, 4; 4० ए; 4
4; 423; 1; 44; 1; १11. 24 2; ४11. 2,
11.12.22. 8; 06, 7 ५2. 4;
094;.43 160, 24..1.-1..1; 2, .9416;.6
7; 8; 4: 5; 9, 3; 28; 2; 34 2; 36,
379 7; 5; 58, 6; 59 3; 5; 4० 2;
44; 422; 6448; 043. 5; 65
85 28; 69 5; 16; 19; 63, 3; 13; 66;
0.00 14.12; 08.4.72.
75 4; 80, 4; 84, 3; 86, 23; 54; 55;
97; 7; 35; 45; 99, 7; 8; 10 5; 6;
१८21108 0-16-44 70..2
0.104.129 .70 120 151 .123.2;
क. 112; 5; 1216, 4; 144; 6.
सुतञ्क्रे ४1. 57, ¢
सुतश्पाः {. 155; 2; ४. 257; ४. 24 7;
पा. 2, 43: >, 106; 4,
सुत्ऽपाः ए. 22, 6.
सुतऽपावन् ५1. 24; 9.
सुतऽपात्रः पा. 2 ¢.
सुतऽ्पष्र 1.55 |
सुतऽपेयांय 1४. 44; 3.
सुत्तऽपो पा. 68, 10.
70 ग्य; 76; 4; 5; 75 8;
21; 4.84; 4; 725; 4; 24, 7; 1
12 7; 2; 22; 1; 40, 2:53. 6; 42 2;
4; 44; 9; 47; 579 8-70 ;:- 60, 5; 1४.
35 7; 46; 7; १. 49, 7; 4०) ए 64 ¢;
718; "254; .44 54; 9; . 00, 0;
68, 104." 29 2; 265. 4, 43.6.36
8, 3; 32, 21; 3ॐ 2; 35 7; 38, 4; 45
22; 46 ; - 46, #; 73 7; 529 1; 65; 3;
66, 7; 76; 9; 70; 9, 9; 9, ॐ; 95;
3; [९ 6,6; 77, 5; 57 7; 63, 70; 68, 7;
107 1; 7110, 2; =. 24 7; 20; 2; 1051.
५.
सुतः -- सुताः.
च
सुऽ णा. 9, 8; उ. 127, 6.
सुऽतर; $. 60, 71.
सुऽतमाणं पा. 42, 3.
तऽव॑तः 1. 3, 5; 1.
17.42.10). 2.
25, 4; 58, 9; ण्या.
सुतऽव॑तां इ, 7100, 77.
सुतऽ्व॑तः ए. 17, 3; 26, 22; 33; 7; 56
67, 714; 65; 6; 93; 3९.
सुतऽवान् न् 1. 84; 9; *{. 97; 4.
सुऽतं्टः ए. 34, 1.
सुऽतष्टं 11. 35; 2.
सुतऽसोमः 1. 167, 6; 111. 52, 14; 1. 25, 1;
प्र 41.2.42. 2
तऽसोमं ए. 30, 7; 37, 12; रा. 98, ए.
सुतसौमवत्ऽभिः र. 69, 71.
सुतऽसोमस्य 11. 12, 6.
सुतऽसोमाः 1. 2, 2; 45, 8; 4; 4.
सुतऽसोमाय 1. 142, 7; [प्र. 2; 73.
सुतऽसोमासः 1. 4428; प्र. 29, 12; पा. 20,
सुतऽसोमि ए. 67, 18; 7. 66, 7.
सुतऽसोमिषु 1. 57, 12.
सुतस्य 1. 5 6; 32 3; 52 10; 56, 6; ०8,
1 4-123-10. 81.71.101
1; [. 35 10; 42 9; 435; 48, 7;
५1.13. 1179325, 2-462-46. 1
9,20.2; 32:66: 52, 7; ५4; "1, 48.11;
90, 7; प, + 26; ॐ 1; 8; 723, 14;
32, 44; 35, 24; 48, 7; 67, 3; 82 6
60, :1;- 9439; -945-6.; - ह, 2, 2:36, 4;
24) 7; 29; 1; 28, 4; -100. 4; 109, 3
1.111.704.
(04 10. 01..122.1. 113; 11102.
11/17
सुताः 1, 24; 53; 4; 55; 25 ए; 84, 5;
135; 139-6;. 168, 3; 111. 42 4; प
इ 4. भ. ०.2; 76, 85.92.22; 25 4
1 70, 4; 72 7; 523 7; 33 3; 46; 3
सुतात् -- सुऽदानवः. | ॑
| ` ६ न
। । + + |
सुतात् ४11. 33, 2. | सुतऽमुते ~ 9, 70; गा. 36, ए; ए. 45 28. - |
तान् ४.78, 7; रा. 6 42; उ. 160, 3. सुऽयनं ए. 6. 26. व | |
सृतानः ^ 2, 5; 234 6; ग 35, 5; रा, 40, 2; र | | ¢
¦ सुऽतावः ए. 68, 7. द |
४.5,6; ण्य. 44 74; 20; भवा. 32, 29; सुऽ्ताता 0 4
° 5; 6 2 र । क | | |
9. सुऽ्तालासः ए. 57, 717. ‹ | |
ताय [. 7, क
सुतासः 1. 16, 6; 82, 6; 145. | सुभा ४ 472 12; 13. | | |
6; 265, 4; [. 7, य; वा. 5 3; 46 (9 >. 65; 70. ^ 0 1 ।
4; १ 372; प. 5 ग; प्. तणा, | सुत्वा 99, ग = | (1 द
6, 7; 2; 90, 2; प्रा. 2 (2-0-91 सुदंससः 1. 85, ; 159, 3. | | |
152 16; 49, 3; ॐ 3; 82, 9; ५52; 1 सुऽदसंसं 17. 2, 3; 2. 66, 4.
67, 218; 88, 5; 70, 4; शर 29, 6; 160, 1 सुऽद॑संसा 1.02, 8; 7459, 1: भ. 70, 0.१.11. ~. |
सुतासः 15. 106, 9. ॥ | |
10, 3. |
ऽती्ं + 0 सुऽदंसाः 4. 62, 7;.9; 1. 32, ९.21.
सुऽतीयोा ५१.204;
सुऽद्ष्ष 1. 101, 9; द. 105, 4; 108, 70. #
ऽतुकः 1. 749, 5; उ. 397. सुऽदकषं १८004 10 ^ 4.7.
ऽतुका ४1. 22, 70. १1. 71 1; 2 80, 2; ॐ. 97, 3
$ तुकाः 1. 108, सुऽदक्ष 28; 2; १.6. 1; धा. 719, 8;
छ ४11. 8, 9; इ, 42, 5 षा. 16; 253; पना. 9.13; उ. 4;
र ऽतुकोभिः २. 3, ५.
सुऽद्ंस्य ४117. 92, 4. $ "८
सुते 1, 3 6 ; 5 2: 9; 2; 16, 4; 81, 8 ; 105)
सुऽद्षां ए. 66, 2. न
सुऽद्छा 111. 58, 7.
सुऽदकिंणः ४117. 33, 5.
सुऽद्धिंणं ए. 32 3.
सुष्द्व १1.83. । ि ध
सुष्दल॑ः [५ 164, 49; ४11. 34, 24, ् | । ५
सुदशेऽतरः 1. 147, 5. क
सुऽ्दशः । 23, 6; भ 39 4. 1 0 ध ६
सुश्दाः भात्, 28, 4 | ८५ 4 1 .- (0 8
| सुदाःऽत॑रय 1. 184; ट; 785, 9. 4
सुषदा शा 78, 8. हि ५ ८ ५
सुऽ्दानवः =. 66, 72.
सुऽदानवः 1. 49, 1
747; 9; 11. 342 8; [11. 26, 5;
729 13; 92 28; 98; 2} 9, 8; र
९. 28 4; 449; 50; 94 24;
१ | सुऽदानवे -- सुऽधन्वा,
।
90,.16:--00, 8; £. 0 20. 4
19.70.31. 2.24 21.71 02:64
83; 6; 8; 9.
सुष्दानवे 1. 4, 8; 92, 3; ४1.24; णा. 3,
2; ४1. 25 12; क. 22, 6.
सुऽदानुः [11. 29, 0; 7४.40; पर, 4 18; ४
38, 7; 66, ‰‡; ` 68, 5
सुदातुऽभिः 2. 1/9, 2.
सुऽ्दानुं [1 26, 7; #ा, 88, 2 |
सुदानू इतिं सुऽदानू 1. 1129 77; 77, 10; 24;
180, 6; 184; 4; -[. 58, ¢; ४. 47; 8;
१.02:0; (1002: 1.01
सु ऽदानून् ४. 47, 16. |
सुदामन् प, 40, 7. |
सुऽ्दामन् 1. 24; 4.
ऽ दाब 1. 76, 4.
ऽदासः 11. 53; 11; पा. 18, 22; 24; 25;
32.70,
ऽदासं 11. 53, 9; णा. 18, 3 45.3.44;
7; 4; 6; 57.
ऽदासें 1. 47, 0:;.08:7..112.10 4 2;
भ, 18;.5; 93. 4; 74; 19; 6: 20,.2;
25 3 ; 5ॐ 3; 60, 8; 9; 64: 3; 83; 8,
मुदिनऽत्वं 11. 27, 6.
सुदिनऽत्वे 111. 8, 5; 234; णा. 88; 4; ~र.
(१ ध | ।
सुऽदिनां १.4, 5; प. 60, 5; णा. 77, 2; 18,
21.294. (1 ।
सुदिनांऽइव र, 706, 7, ` |
दुभि 1-44-9; पा 904
बुवित 146.
सुऽदिने 1. 186, 9. |
दिनि इति सुऽदिने उ. 39, 19.
ऽदिनेषु 81 37 7
सुऽदिवः 2. 9, 5 |
मुश्दीतयः 1. 59, 4; ए.46,6; पा. 9, 72. ५
सुष्दीतिं 1. 2, 13; 17; 4; 247; 70.
सुऽदीती ४11. 7, 21.
सुऽदीदिंतिं ना. 9, 7; एना. 9, 4.
सुऽ 11. 35, 7; प्र.6०, 5; इह. 43; 9; 69, 8.
सुदूषांऽड्व 1. 186, 4; पा. 2, 6.
स्दूाः 1.7, 13; ए. ॐ, 3; 8; पा. 18
90.41. 1 69, 10; 1९. 74,
1; 96, 24; 97, 59.
सु्टूषां 1. 164; 26; भ्रा. 35; 4; भा. 1, 10
९. 122, 6.
दु्षाऽड्व 1. 4, 2; ए. 52, 4.
दषे इतिं सुऽ 11. $, 6.
सुऽदशंः 12. 73, 7.
सुऽदूशं 1. 1),.4; भा. 15, 16,
सुऽदुशीं 1. 142, 2.
सुदृशीऽ इव 1. 16, 15.
सुदृशः ४. 44, 2.
सु ऽदुशींकः ए, 4, 2; [. 86, 45.
सुऽदुशीकं 1४. 16, 4; पना. 77, 3.
सुदूशीकऽरूपः 1४. $ 15.
सुदृशौकऽसंदूक् प. 77, 2.
सुष्देवः 4. 84, 78; ४. 63; 25; ष्च 69, 12;
+. 95; 14.
सुऽदेवं 1. 74, 5.
मुऽदेवाः ए. 55, 4.
सुऽ्देवायं ४77. 5, 6. -
सुऽ्ेव्यं [. 112, 79; उ. 35, 4.
सुदोधे इतिं सुऽदोधं 111. 15, 6.
सुऽ 1..149; 5: षा. ५3; 4
सुऽद्युते 1. 740, 7.
सु ऽदुन्रां 11. 19, 2.
सुऽ््योत्मां 1. 147, 1.
गुणयो य
सुऽदूविणः 8 94; 15 ; 4 67, 41. | |
।,
६,
मि न्दता
सु न्नव 1 --------- ध्वानः ४. 5,
सुऽधातुं ए. 60, 77. |
मुञ्थारः 1. 109, 4.
सुऽ्थायः +. 36, 6; 7. 96, 24.
सुऽधित्तः 1. 23, 7; 29, 2; 1.6 8... 0
8; ए. 42 4. |
सुऽधितं [. 140, 717; प्र 2, 20; ४.६; 2; भ्र
15, 2; ए. 7, 3; 32, 15; प्रा. 29, 8
69, 17; ङ. 20, 16
सुऽधिता . 00 3; [1
10
सुधिताऽङव 1. 166, 6.
सुऽधिताः इ. 715, 7.
सुऽधितानि 1. 135, 4; 11, 9.1 1.9
9८ 42.-2
सुञधितेभिः ए. 33, 35.
सुऽधुरः 1. 73; 10; 7. 38, 7,
सुऽधुर +. 3, 22.
सुऽश्रुयं [1. 43, 4; ए, 20, 2; 43, 5.
सुऽधृश्मं 1. 18, 9.
सुधृष्टमे सतिं सुऽधृष्टमे 1. 160, 2.
सुऽध्यः 1. 57, 4; ष. 2 14; 21, 8; प 45;
" "9410
सुनव॑त् ४. 24; 7; णा. ८८. ।
सुनवाम गा. 53, 4; ए. 25, 4; प्र. ॐ, 1.
सुनवाम 1. 99, 1; 104, 6. |
सुनवै $ 11. 94, 25. |
सुनिःऽखनं 1.29, ‰.
निःऽमथां [1]. 29, 12.
सुऽनिधा 111. 29, 12
मुऽनिष्काः 1४ 37; 4; श्वा 56, ए.
सुऽनीतयः र. 78, 2.
सुऽनीतिः ४ 9, ०.
सुनीतिऽभिः 1. 24, 4; इ. 63, 13
भ
171, 8; भा. 60, 4;
सुऽनीयायं 1. 62, 23. ध
सुऽनीयासंः प्र. 67, 4. +, न द
सुऽनीये ४. 79, 2.
सुनोति 8 | |
सुनोतु णा. 33, 72. ध त
सुन्वत् +. 27, 22. | |
सुन्वतः [. 2, 6; 4, 10 ; 33, 7; 94 8; 7 41
सुन्वतां ४11. 32, 16. २५ |
सुन्वति ए. 97, 2.
सुन्वते 1. 20 7; 5, 13; 87, 2; 82, 3; 92
ध
4.4:
सुनु 1. 28, 6, | | ।
सुनुत +. 30, 15; 05, 7.
सुनुत र. 14, 74.
सुनुतः ४111. 3, 5. | {४
सुनुथ +. 76, 8. | -. | सि.
सुनु 11..85..4 | १ न
सुनोतं १1. 32 8; द. 3० 6; इय, 2. ५ |
सुनोत 7. ०, 7; उ. 3० ॐ ` 44“ (
नोतन ४. 34, 7.
सुनोतन 2. 76, 2; 4.
सुनोमि 1. २०९, 9; 1४. ०4, 6; 35 6; ४. $ ४
3; ॥ 686 32) 04 रर, 86, 15; 166, 9... | । । कि । ।
2; ४. 346; णा. 54 6; 60, 25; एना
4 4; ४ 9; 94; 35.76; 9 36. (
1; 2; 37; 7; 38, 8; 62 12; 98, 5 ` । "4
3; 1429 2; व, 16; [. 72, 15; 19, 5; (4
1.38; ए. 26, 5; 600; प्व. 16,5;
31, 4; णा. 1, 22; र 4.4 123 ९2; 34;
3; 45.20; 5 3; 59, 66; -2.; 6.64;
6; 10० 6; इ. 27, 1; 42, 8; 45, 1.7
8; 100, 3; 125 2; 154 4; १10 4“
{
५,
सुन्वान ४111. 37, 76.
सुन्वानः 1. 735; 7. `
सुन्वानस्यं ए. 80, 3; 7. 0, 3.
सुन्वानाय -. 753, 7.
न्विरे ए. 53, 3; 95; 6.
न्विरे पा. 32, 4.
सुन्वे ४11. 97, 1.
सुन्वे ४11. 29, 7; 1९. 108, 7
सुपल्ली इतिं सुऽपल्ली ४1. 3, 7.
सुऽपत्नीः ४. 44; 23; . 18; 7.
सुऽपथा 1. 25; 12; 42 7; 189, 1 ४9१, 64, त:
4; 9. 66, 6; गा. 90 73; 1. 94, 16;
९. 44, 2; 02; 0
सुऽपघानि 11. 62, 6; 12. 86, 26.
मुऽपदी {11. 5, 6.
सुऽपप्ननि 1. 182, 5.
मुऽपणैः 1. 35; 7; 105; 2; 764 46; 1. 42,
2: ष, 26; 4;. 9. 47; 3; १111. 200,.85:;
17. 48, 3; 719; 86, ०4; 97, 33; 2. 28,
10; 3०, 2; 55, 6; 774" 4; 744 4; 149, 3.
सुऽपशे 1. 164 52; णा. 75; गण; द, 85, गय;
उ. 6
सुपणेऽयांतुं ४17. 704, 22. |
सुऽपणे 1. 164 20; 1४. 44, 3; र. 774 3.
सुऽपणेः
47; 12" 86, ठ; ~, 75; 7; 945
मु ऽपश्यः 1. 86, 37; 2. 88, 19
सुऽपलां >. 43, 4.
मुष्पलाशे +. 1550 7. | | ।
सुऽपाणिः 111. 33, 6; 54, 12; ए. 34, 26.
सुऽपािं १. 49, 9; ए. 45, 4.
सुपाणी इति सुऽपाणी 1. 77, 9.
सुपाणी ड सुऽपाणी 1. 109, 4.
सुऽ्पारः 1. 4 0; ए. 470; पा
79» 2; 705; 77; 764; 21; 22;
मुऽगरकेतैः >. 5 4
सुन्वान -- सुऽप्रतिचक्ष.
मुऽपाणसः [1. 59, 8.
सुऽपिन्य +. 175, 6.
सुऽपिप्मलाः प. 70, र.
सुऽपिशः 1. 64 8.
सुऽपीवसंः 2. 94 77.
सुऽपता 1. 4; 7 1; इ. 85, 95.
सुऽयुतां +. 85: 4;
सुऽपुवे 2. 86, 13.
सुऽपृतं प्र. 50, 2; प्र, 79 1; पा. 1.
30; 3
सुऽपृशं ४१7. 2, 7.
सुऽरपगैस्य ए. 48, 218.
सुऽपृशौः १111. 2, 8.
सुऽपृक्षः ४1. 37; 7.
सुऽपेशसः 11. 32, 5; 35; 7; १.61.
68, 716 ; 1. 5; 8; 87, 1.
सुपेशसं 1. 48, 15; 49, 2; 63, 9; 7. 34 न
13; ४, 30; 13; णा. 33, 23; 1. 29, 5.
सुऽपेशंसा 1, 252 7; 47, 2; 142 7; 288, 6
ष्, 70. 7; क. 26, 1.
सुऽपेशाः 2. 27, 72; "14 3.
सुप्रऽ अयनतम +7. 63, $.
प्रऽखयनाः {1.53 5; ए, 5; क. 2105.
सुप्रऽखवीः 1. 83, 7; {1 26, ग; 1४. 25;
(1. 66, 5
सुप्रऽव्य॑ः 1. 15 9; 19४. 25; 6.
प्रशन 1. 6०, ग. ` ए का
सुप्रऽ्यं 1. 34 4; 2. 125; 2. ` ध ५
सुऽप्रीतः 12. 108, 2. 9. 1 4
वु 4
सुप्रकेतेभिः 1. 777, 6. | ध ५ 1
अ ४,
्
[8
डक
सुऽप्रचेतसः 1. 159, 4 =
सुऽ्रनाः 1. 5०, 6; 1. 714 7.
सुप्रजाःऽत्वं >. 62 3
व
सुऽप्रतीकः 1. 94, ¢. ।
सुऽप्रतीकं 11. 29, 5; ४. 255. 10; 28, 6;
1088 103 2 $ 61, 1.
सुऽप्रतीकस्य 1. 143, 3.
सुऽप्रतीका 1. 92, 6; ए. 71, 5.
सुप्रतीके इतिं सुऽप्रतीके 1. 185, 6; ए. ०.
सुऽप्रतूः "1. 23, 29.
सुऽप्रतूतिं 1. 4०, 4; 7. ५, 7.
सुप्रतूती इतिं सुऽप्रतूती 1. 785, #.
ऽप्रनीतयः भवा. 2, २2; उ. 75; 71; 126, 4.
ऽप्रनीतिः 1. 73, 7; 1४. 2, 13. -
इग्रनीतिं र. 63, 210.
ऽप्रनीती ४. 42, 18.
ऽप्रतीते [[. 7, 16; 15, 4.
ऽप्रपानं 9. 83, 8; इ. 49, 13.
ऽप्रपाने ४. 28, 6.
ऽप्रयसे [1. 21; 47; ए. 7, 4.
ऽप्रयसां 1धर. 47, 3.
ऽप्रयाः ४11. 39, 2.
सुप्रयावंऽभिः ए. 44, 12.
सु ऽप्रवाचनं 00 02 4
इ, 59, 12.
ऽप्रवाचताः {. 106, 3.
ऽप्रांडः 1. 162, 2.
ऽप्राकी 111. 22, 18.
ऽप्रीतः ४. 07, 2; 91. 5 9; पा. 42 4;
पा. 23, 13.
ऽग्रतुः 1. 190, 6.
सुष्रःऽतमं ४111. 26, 24
सुऽबहिंष १.44 ॑ +
सुऽवादुः 1. 3, 7; पना. 7, 8. | छ
सुबाहो इतिं सुऽवाहो र. 86, 8. ० 1
ऽव्र्श्यं ¬. 62, 4. |
सुऽब्रब्ां ४11. 16, 3. | ।
सुऽब्र्माणं २. 47, 3.
सुऽ्नग 1. 6,6; ४.83; ए. कग प्रा.
79; 9; 18; 19.
भग॑ः 1. 86, ¢; 781, 4; 7. 26, 5; 26, 2;
27; 715; ४. 47; ४. 37, 4; पवा. 63, 2;
ष्वा. 19, 14; 20; ग.
सुभगत्वं [1. 21, 6.
भगं 111. 1, 4; 9.7; पना. 9, 4.
ऽभगस्य [11. 18, 5; ष. 1, 6; पा. 4, 19. `
ऽभगां 1. 48, 7; 89, 3; 92, 72; 1. 32, 4;
[1.79 13; 67, 4; प्र. 57; 6; प. 56, 9;
पवा. 7, 3; 95; 4; प्राः 4117
752 8; 85 2.9°
ऽभगांः ४. 42, $.
ऽभगान् 1. 4, 6; , :
ऽभगा 111. 33, 5; णा. 64, 3; >. 85; 45; १
0 21 5 ।
ऽभर्गाय 0. 39, 3
ऽभगांसः [1. 28, 2. ६ |
भगाः #. 60, 6.
ऽभ॑गे 2. 145; 2.
ऽभे 1. 36, 6. | | ५२
भ्भे 1 9०,8; 37; 1. 5० 5; प्र. 576; ,
ए. 76, 6; 95, 6; णा. 24; 28; श.
10, 70; 12; 108, 5; 9 1
सुने इति सुऽभगे 1. 8.4; 7. 52, > | + ८
सुभगे इतिं सुऽभगे इ. 70, 6 ५
भद्रं *111. 7 34.
ऽभू श. 10, 14
ऽभरः 11. 39.
१9.11... 03.
५.५ ५ क ४
1 `
५2 ५ ५4 ८4
ष ८ < थं धनं '८ ८ ८ थ्
1
(0 सुभसत्ऽ्या -- सुऽमायाः.
सुभसत्ऽ तण >. 86, 6.
ऽभागाः 1. 167, ¢.
ऽभागान् +. 78, 8
ऽभासं पा. 23, 20.
$भ्रु 11. 35; ¢. |
` सुऽभूतः 1. 7, 22; णना. 29, 9.
सुष्मतं प. 5०, ¶; 1. 97, 24; इ. 109 9.
सुऽभुतस्यं ^. 147, 4.
सुऽभोजंसं ए. 92, 3. |
| सुऽभ्वः 62.14 11.17 241 12
55 3; 59 3; 87 3; पा. 52.
सुऽभ्वं (911. 64, 8; 1. 79; 5.
सुऽ्भ्वै ए. 66, 3. श
सुऽ्मस 11. 18, 4; 1४. 3, 14.
सुऽम॑खं >. 50, 7.
सुऽमखस्यं 1. 187, 4.
सुऽम॑खाः प्र, 84, 4.
सुऽमखाय 1. 64, 2; 10 10 ; #
41, 14.
सुऽम॑लासः 1. 85, 4. ८५.
सुऽमगलः 11. 42, 7-3; ९. 80, 3.
सुऽमंगल् ब. 102, 1.
| सुमंगलः 1. 713; 72; >+. 85, 33.
सुऽमत् 1. 142, 7; 762; 9 2, 4; ५7.
1 (1 847: 4; >. 32 3.
सुमत्ऽखशुः 1. 100, 16
सुष्मतय॑ः 11. 32 5; प्रा. 8, 2०. = `
सुमतये 158 249 201. |
सुमतिः 1. 24; 9; 89, 2; (07; 4 714 9;
` गथा, 5; [. 3415; आ. म 98; 5० 9;
५ 1४. 484; 5047; ४. 65, 4; णा. 50, 4;
ौ 504; 10.25 4; 0, 32; 4:86, 4;
10999; 1. 880; ९. 37, 6; 4० 12;
ग |
सुमतिऽभिः 11. 26, 8; 1ए. 24
ए. 22, 2; 6; 26,:9
4049 +... 21; 24:45; 4; 2:
70 7; ४1.20 ग; 59; ऊ, 12; 57 5;
027; * "11. 6, 6; ०8. 4; 246; 29१;
५0... 0.11 122 "11241 2,
7; 519 5; ~. 962; 97, 26; क. 17
148, 3.
सुऽमती [४.7 2; द. 44; 1.
सुऽमतीः >. 20, 20; 4, 7.
सुऽमतीनां 1. 3; 77; 4 3; 77, 4; ॐ. 89, 147.
सुऽमतो 1.98, 1. 1. 747; 59; 4; 9. 1.9;
४1. 18, 3; 208; 4, 4; णा. 3,
44; 24; 48, 12; +. 14; 6 ; 766; &.
सुमत्ऽगणः 11. 36, 3.
सुमत्$ जानये 1. 156, 2.
सुऽम्या 1. 31, 18; ४. 253; 42, 4; क. 29, 8.
सुमद्ऽस्यः 11. 3, 9; पा. 56, 5.
सुमत्ऽरया ४111. 45, 39.
सुऽमन॑सः 1४. 49; पा. 52, 5; प्न. 4, 4;
8, 5; -. 37, 7.
सुऽमनस्यमांनः ‰. 5", 5; 7.
सुऽमनस्यमाना ४1. 74» 4.
सुमनस्यमानाः प्रा. 75, 8; पा. 33, २4.
सुऽमनाः + 40.2८ 94.421. 122.
त. 4; 9 3; 161; 35, 6; 8; 54, 22;
1+..2.14..10..4.-14.7 44.1.12.
4 94.50 0. 52; 53;
7; 85; 44; 760, 4; व+ 1; 4; 145, +
मुऽमतु ~. 12, 6; 647.
सुमदुऽनामा +. 18; 8.
सुमतुऽभि; 1 729, 4
सुमन्म॑ऽभिः 177. 2, 12; ए. 101, 9
ऽमन्मां ए. 68, 9.
ऽय. ४111, 70.
ऽहः 1४. 17, 2; 91. 509 25 2.
गहय 1.8 1
कि,
इ र 11 -------- प. 70, 2; 2.
सुऽमिता ४. 45
सुऽमिंती 111. 8, 5
सुमिते इति सुऽमिते 29, 6.
सुऽभितः 1. 97, 22
सुऽमिताः >. 6५,
मुऽमितेभिंः र. 69, 8.
सुऽभितेषुं 7. 69, 9.
सुऽभिन्याः >. 65, 3. |
सुऽमीढट्दे ए. 63, 9.
मुऽमृच्छीकः 1. 35, 710; 97, 77: 118 7
19४. 7, 20; प्प. 44, 12
सु ऽमृव्छीकाः ४. 52,
सुऽमृक्छीकान् ए. 6४, 7 ।
सु ऽमुक्छीकां ए. 67, 10.
सु ऽमृव्छीकायं 1. 129, 3; 136; 6; 1४. ॐ 3.
सुऽसंकः 1४. 6, 5
सुऽमेकं ६. 92, 15.
> ९. 69, 3; 5; 1९5, गय.
3 139;
12. 69, 10,
सुमेके इतिं सु ऽमे "118 716 3; 1.6,
१001 014 40;
ए. 66, 6; भा 36; 17; 84, 3.
ऽमेधः र. 142, त.
ऽमधसः +. 62, 7.
ऽमेधसं >. 65, 10.
ऽमेधाः 1. 2185, 10; 1. 32; गा. 5, 5;
38, 7; 57, 5; ए. 60, 5; प्रा 97, 3;
पावा. 48, 1; [द 9०, 3; 93, 3; 9), 23 ;
९. 45; ‰.
सुऽमेधां णा. 56; इ. 40, 6; गुः 5.
सुम्न 1. 44 4; 7, ग; 11499; 10; 159, 2;
1. 1, 16; 19, 8; 207; 28, 8 92:21; 0
(1. 4 4; 46; 5 2; र. 3० 9;
50, 3;
८ ८ , ५,
ननमनय +.
परऽय; ए. ¢, 77, + २ 0 |
ुघ्नऽयंतां ए. 49, 7. ` | | |
कः
सुन्नऽयव॑ः ४.8, 7; ए. 1,;; एना 71
सुञ्नऽ्या >. 101, 4
सुन्नऽ्युः 1. 79, 70; 1. ॐ ग; गा 24, क
91.24 | ` | | |
सुघ्नऽवसौ 1, 114, 12. न त 1.
षस्य पा. 499; 1. 98,5; इ. 597 =
सुश्रा 1. 38, 3; 169, 2; ए. 20, 6; 90, 6 | ५
सुस्नानिं 1 13, 9; 1. 3, 3.
सुघ्नाय 1. 130, 6 ; 186, 70; वा. 2, 5; 32, 13; २५.
४, 24 4; णा, 68, 7; श्वा. 8, 16; 27; 10;
68, 7, ० (१
मुषे 1. 2, 5; ए. 63, गय; पा. 66, 5; श्ना |
15 3; -[-. 84, 3; 158, 4; र 22, 72 ।
परेऽश्चपिः र. 95, 6. 6 ५
सुरन ए. 73, 6.
सुपरेभिः ए. 75, 6; प, 68, 3;
+ 1.4;
बु ४. 53, ग; ए. 52, 4; ए, $, ५
3 |
पा. 6.
\ "
षे ह अ
सुभ 1 47 8; 1०6, 4; पनु. 15, 7; 48, 10 ; 4
५" 93 2; 132, 1; 244, 6. | ५१
ऽयज॑ ए. 8, 3.
ऽयज्ञः 1. 47, 4; [ा. 74, 1.
ऽयज्ञाः 11. 57, 7; ए. 45, 4.
ऽय॑तः ४. 22, 7.
सुयुऽभिः प. 44, 4.
सुश्यमः 2. 96, 75. ।
सुयम ए; 28, 3; 2. 85, 23.
सुऽयम॑स्य 1. 24, 15; पना. 25;
सुऽयमां 12. 87, 4; इ. 44> २. |
पुष्यन 4
सुऽ्यमात् 11. 27, 20; 28, गय; 29, ¢
सुऽयमांसः 1. 180, 7; 7. 67, 2. `
सुऽयमेनिः प. 55, 7.
मुयवस् ऽसत् 1. 164, 40
ग, कि |
ऽयव॑सः 1. 190,
२8
मुऽयव॑साः [1. ¢, 13
सुऽयव॑से 9१. 18, 4
मुऽ्यामाः 1.79.
सुयाशुतरा +. 86, 6
सुऽयुक् 111. 58, 2.
सुऽयुक्तान् 111. 69, 13.
सुयुक्ऽभिः 111. 58, 5.
ए, 44 79; ४. 78; 4
सुऽयुनं 1४. 25; 5. |
सुशरणः 111. 3, 9; 29, 14
मुऽर्णं 11. 53, 6.
सुऽरणाः क. 69, 7; 1०4; $.
सुऽरणानि ए. 56, 8.
मुऽण्तः ४1. 45 7; र.
सुऽग्लाः र. 18, 7.
मुऽत्रान् ऋ. 78, 8.
| मुऽग्नासः ४11. 67; 6; 84 $
| सुऽरथः 1४. 2 4.
4 कभ ४, 5 7८.
५1 सुऽप्य॑स्य 11. 14, 7
70;
मुऽरवाः 1४. 4 8; ४.57;
मुऽप्वान् (17. 68, 21४
` मुऽप्वासः पा. 74 4
मुऽप्थेभिः 11. 18, 5.
सुरभि 1ए. 39, 6; 2. 7० 4
सुरनिःऽ तमं 1. 186, 7
सुरभि ४1. 29; 3; >. 107, 9;
सुयवस्पू इतिं सुऽयवस्य् ४1. 27; 7
सुऽयुज॑ः 1. 127, 12; प. 37 16;
सुऽ्युजां 1. 773; 14; 0, वर; 7.
33; 10; भा. 70, 2; ई. 105, २.
सुयवसिनी इति सुऽयव सिनीं ५. 99; 3.
44; 4 3 6 2 4 3
14; 3;
५५
सुऽ्यां 1. 22; 23 ५. 26, 4; च. 5 8 -
सुरभिः 1. 162, 72; द. 97, 9} +. 53, 5.
सुऽरर्मिं +. 36, 8.
सु ए. 86, 6.
ऽतय॑ः ४. 79, 4; 12.
78, 3.
ऽराधसः 1. 23; 6; 1.
24 ; 65; 12, |
ऽ राधसं 971. 14, 12; 49; 7; 5० ८; 68, 6.
ऽगधसा ¬. 144: 4.
ऽरर्धा; 1, 100, 74; 1 22, ग; 1४. 2, 4;
5 4; 17; 8. | ध
ऽरा्म र. 127, 4; 5.
सुरयाः 1. 116, ¢; उ. 7, 9.
रायां ए. 2, 12.
ंऽवतः 1. 197, 70.
यश्वः ४111. 21, 14.
सुरूक्मे इहि सुऽह्क्मे 1. 188, 6 ; >. 110; 6. ।
सुऽरूच॑ः 1. 190, ए; 1. 7, 5}; ४.०० 7; ए.
23; 10; +. 35; 4 |
सुऽर्चं 1..12,.1; 1, > 4:
सुऽरचा {11. 15, 6.
मुऽरूपः ए. 4 9.
मुरुपऽ कृतु 1.4, |
$रेक्णाः पा. 16, 26.
हरेत: 1. 121, 4.
षु
सुऽरेतसं 1. 160, 5.
षु
ब
81, 4; >. 65, 4;
53; 13; ४11. 46,
८० ८2 ५4 ८ ५4
{11. 2, 5
रेत॑सा 1. 159, 2; 7. 1, 16.
रेताः र. 45; 8,
काभिके र. 86, ¢. क 4
मुव ना. 54, 11; 5069; प. 4.59 वद
66, 19 ; >. 35 7; 57 4 = ` |
सुऽवचस्यां ९. 7116, 9.
सुऽवज् ४1. 30०, 7. 1
मुऽवज्नः 1. 100, 78. = १
सु
सु
भव 4 प य
ववा षा 4.
प
न तित
4 ~.
५.
~ मुऽवीराः,
सुवह् ~~, 3, "4; 75. सुवितं 1. 747, 74; [प्, 55 4; शा. 97, 2; | „|
सुवते 1. 735; 8; 164; 22; र, 97 6. >, 148, 1. ॥ ` €
सुवते 111. 55, 5. विततस्य ए. 7, 24; 100, 2: 7 4, 2; श ।
सुवतु 1016 5०, ८1 । 31; 3; 100, 4 ५
सुविता 1. 38, 3; इर. 86, 27.
सुवितानि ए. 93, 29. ¶
सुविताय 7. 9०, 4; 704, 2; 778, 10 ; 168, 7; ४
732 13; 160, 10; गा, 3; 189, 3; 7,
6; [. 2 5; 54 3; 1४.243; ए. ` |
17० 1; 4, 18; 57) व; 59, 7; 4; 8० 3; व
षव. 32, 4; 423; 713; प्रा, ५6; 55, ` |
1; 06, 75; 75, 2; 79, 3; 85, 4; णा. क
7 33; 27; 70 9 [र 82, 5; ~ 35; 3; | | | |
40, 7; 66, 3; 74 2. |
ऽविदतंः {1. 9, 6. क |
ऽपिदतं 1. 7, 8. | । | ८
ऽविद्त्ाणि 17, 24, 10, 1. ४.
ऽविद्वान् ह. 14; 10; 15
ऽविदताभिः ए. 97, 6.
ऽविदुविर्येभ्यः इ. 7, 5, |
ऽविदृतेभिः २. 15, 9.
सुऽविद्वासं ४111. 24, 23.
सुऽर्विप्रः 1. 162, 5.
सुऽविवृतं 1. 10, ¢.
सुऽ्वीरः 1. 97, 19; 776, 26; 725; 1; [. 24,
13; 11. 29, 9; प्र 17, 4; प्र, 52, 15; | |
5० 4; ४1. 456; 4, 26; 5० 9; णरा. =
15 8; श. 29, 4; 84, 0.02) 6... |
86, 39 | + 0
मुऽ्वीर 1. 5 7०; 54 14; 86, 12; 92, १.
7. 5 4; 5; 1. 8, 2; 1४. 34 10; ए ४ 1
442 6; 57, ¢; ४. $; ¢; 16 29; 77, 18; ॥
05 0 55 7 376 प्प
5 20; [ग 68, 70; 97, 26; 44 3
77; 7; 97, 75. त
सुऽवीरां ४1. 15; 5; ए. 56 5
मुऽवरतरं र. 701, 6.
सुऽवर्चः 1. 95, 7; द
ऋ क
॥ 1
14; 8 ; 85, 44.
ऽवसनानिं 1. 97, 50.
वसि प्र. 4, 2.
सुवसि 1४. 54, 5.
ऽव्या ए. 22, +,
ऽवाचः [1]. ज, 70; ना 7102, 5; णा
96, 1
ऽवाचं [1. 7, 1५.
ऽवाचसा 1. 788, ¢.
ऽवाचा इ, 770, ¢. `
सुवाति 92, {41 49, 2; 66, 4.
सुवाति ४. 42, 3.
सुवाति इतिं प्र. 7, 4.
सुवानः ४11, 38, 2; 75. 6, 3: 9, 2; 28, 7;
34 7; 529 7; 66, 28; 86, 4; 8, 4;
97? 2; 92 7; 97, 46; 98, 2; 7, 3;
8; 10; 1०9, 76; ङ. 35, 2.
सुवानं 1. 130, 2.
सुवानस्यं 1. 771, 20; 29, 1.
सुचानाः 1. 14, $; 65, 24; 101, 70
| (4 सुवानासं वानासः ४111. 3, 6; 6 983. ड, 20; 1
५ 70» 4; 17 2; 79; 7,
सुवाने ए. 52, 2.
सुवानैः 911. ;, 14.
सुवामि -*. 13),
५4 ८4 ८ 4 ८ ८ 4 ८
५4 ८ < ८ धं ८
1; 39, 8 ; 4०, 6; .42, 3; 43:3; तआ,
59 7; ४, 42, 8; 41. 4 8; #ा. 2, 24;
18, 9... 128; 3... [ष
सुऽ्वीनिः णा. 19, 5०. |
सुऽवीणं 1. 4०, 4; 1४. 34; 2; प्या. 24 6.
सुऽवीर॑सः 1. 110; 25; 1. 4,9; 12, 5; णा
` ` उ 4; 911. 48, 14; 1. 67, 23.
सुऽवीरेण 2. 142, 3. 98
सुऽ पा. 26, 7. | भ
मुऽवीयें 1.36, 10; 49, 2; 44; 2; 48, 12;
74 9; 93 2; 3; ०42; 776, 19; 727;
1: 1201; 192 16; 1.19
3; 8 15 १,90.3; 1५ 30,.6; "69;
१0; 13.4.20... 1.8.016.
1५. 8.4; "1.10. 92 1.4.05
6, 23; 72 3; 19 24; 22, 18; 24:
12; 231, 18; 46, <; 98, 212; 1९, 8, 2
1412 0; 74 4; 5; 26 7; 4, 5; 43
48,.06 ; 62५. 2०; 64; 1; 64; .5.3: 24 ;. 66
271; 24; 64, 79; 69, 8; 85, 8; 86, 18
ह, 122 ट; 4; 152; 4. |
सुऽवीयेस्य 11. 16, 7; 3; प्र. 57 10; ए. 76,
43.41 40.12; "वा, 4 4 56 75;
97; 43 भवा. 25: 20; 95: 4; >. 89 7;
95; 5
सु ऽवीये 1. 36, 6; शा. 649.
मुऽवीयोय 1. 284, 4. य
मुऽर्वीरयं 1.10 6; 1.76; 4; णा. 4 6...
मुऽ्विभिः ए. 70, 5
सुऽ; ४.8, 6
मुऽवृक्तय॑ः ४111. 8,, 22. १
सुऽवृक्ति 1. 61, 4:16; 184, 5; 286, 9;
ए. 105:
सुऽवृक्किः 1. 155; 2; ष. 17, ठ; "वा. 24; 2;
9), 9. | ॥
सुवृक्किऽभिः 1. 52, 7; 61, 3; 62, 7; 168, 7;
न :.61, 2; *..83;.9
; 4
7. ॐ 9; ऊव; 60, पय; ए, 4, 3; ण.
सुऽवीरभिः -- सुऽशस्ि.
सुऽवृक्ति 1, 64 7; 77. 4; ठ; 35 15; 11. 67,
१. 41..4. 1.10 1.0.002
क 194 07.11 26.700
94, 4; भा. 96, 10; 2. 30, 7; 74 <
80, ¢; 704; ¢.
सुऽवृजरनासु +, 15 2.
सुऽवृत् 1. 183, 2; -. 39, 7; 7073 गय.
मुष्वृततं {. वव, 7; 185; 3; 1४. 35, 8; ड.
85; 20, | क |
सुऽवृत्ां 1. 47; 7; 118, 2; 3; ४. 445; 3,
70; 3. न्क
सुऽवुधः ए, 595. 4; >. 63; 2.
सुऽ्वृधं ४. 32, 4; 1. 68, 6. .
सुऽवृधां 11. 25, 9.
सुवे कर, 225; 4.
ऽवेद्नां 128.
ऽवेद 1४. 7,6; भा. 4, 76.
ऽवेद ४1. 48, 15; णा. 32, 25.
ऽवेनीः >. 56, 3.
ऽनब्रहः 1. 180; 6 ; 1. 20, 5; 50; 3.
सुऽत्रतं ४1. 49, 7.
सुऽब्रतासंः 1. 125; 7.
सुऽ्शंसंः 1, 44, 6; ए. 52, 6; ए. 16, 6
253 ©.
ऽरंसाः 11. 23; 10.
ऽश॒कां 2. 40, 15.
ऽ शाक्तिः ४1. 32; 21.
सुऽशमि ४. 87, 9. |
मुऽशमी ४11. 16, 2; 2. 28, 12.
प (1
भु
५2 2 4 १८4
ऽशरणः ए. 34, 22. ` |
ऽशरणायं ए. 42, 15. ४३४.
सुऽशमेणः [11. 15; 1.
बमेऽभिः 0111. 18, 4.
ऽशमयः प. 57, 71; इ. 78, 2
ऽशानैशं ४. 8, 2; इ. 65; 10.
श्ना 1. 9; 0.
9
बकन ----------- र. 104, 20.
सुशस्तिऽभिः ध, 214. 11. 0.6; ¶. 1
0888 5» 24; 23, 6; दश. 1409, 2.
ऽश्िप्र शप्र $. 167, 16; [. 32, 3; 59, 2;
त 22, 4; 36, 5; ४. 46, ; भवा. 24; 4;
सुऽच्रोतुः 1. 722, 6. 4 |
मुषिराभ्इव १111. 69, 4. द |
सषु ए. 2, 28. "५
हऽवाहः र. 107, 74. ७ +
सुऽसंख्धाः ३. 72, 6. ` [ . 1
मुऽ्संशिताः ए. 9, ‰. ` । | क"
सुऽसत् ए. 9, 5. | ०
सुऽसंखदं 1. 114 #; 1, 68, 8. ` १ |
ऽसंस्कृता ए. 74, 71. (५. . | |
ऽ संस्कृताः 1. 38, 12. | न
ला 01 = 2 9 (३.
भ्वशा षा. 7
ऽसखायंः 1. 2753 9:१5, 51, 1, + |
ऽसंकाशा 1. 123, 11. - ता १
ऽसदं ए. 58, 3. ५ | |
ऽसदुशः ४. ॐ, 4. $
ऽसननानिं एणा. 19, 3. ८ ५५
ऽसना 1. 42, 6. ` । 8) ध
सुऽसनितः ए. 46, 2.
मुऽसनितः [11. 28, 5.
सुऽखनितां ‡. 6.9. ।
सु
9:11.
आ. 19,5; 66, 4; 2. ५6, 3.
शिप्रा. 32; 4: 66, 2
सुऽशिप्राः +. 37, 1,
शिव्ये इतिं सुऽशिखे 1२. 56; द, 0 6
१ 19119.
5 ति ष, 153 1; 47; 3; णा. 4:
सुऽशेवं 111. 29,
# 1
ऽपदूक् ॥ 018 206 - - म ५६ त ४
मुसंदृक्ऽ्मिः एवा. 7997
मुऽसंदूशः 1,143.3; 78; 4 न
सुऽ्सदृशं 29 3... 3 क
मुऽसदृशां ए. 9, 4. ५.५. ष
सुऽसंमिद्धः 1. 13, 1. | क
मुर्संमि्ाग ध 4
` मुऽ्वमिधां १.8, 7; पा. प, य. |
| सुऽस॑मुग 1. 158...
न
२.
सुऽशेवो 1. 74, 4.
¦ सुश्रवः ऽतमः }. 91; 17; 1233, 4;
४. 15, 2; 45, 8.
` सुश्रवःऽतमान् ४1, 20, 26.
५
सुश्रवस्या 1. 278, 4.
ध सुरां ड. 179, 3. 0 मुऽसैपिषटं 1.9.11. ॑
` मुऽ्धिय॑ः ए. 79, 4; रा. 6 10; 1. 7, सुऽसंमृष्टासः 11. 446.
ुभ्ब्रणं एवा. ५, 28.
मुऽवहाः 2. 38, 3.
मुऽसहान् न् ४५1. 46, 6
मुऽसाः ४11. 78, 4. | ।
सुभ्सामेनि पा. 45, ०४.
सु ऽसामतिं ¶111. 60, 78
ऽसा प. 23, 28; 24, 28 ; 26, 2.
ऽसारथिः ४1. 25: 6.
सुखावं प. 45; 5; पा. 22; पा. 8 4;
13, 1047, 7.
सुऽसुतः 0.0
मुऽसुं 11. 36, 7; उ. 3०, 23.
सुऽसुतस्य 7. 5०, 2; 539 2; 1४. 20, 4; 35"
2; प, 29, 3; 335 7; पा. 19, 7,
सुऽसुता प. 6), 4.
सुऽ्मुताः ए. 3०, 2०.
मु ऽसति २. 39,
सुसुपानं 1४. 19, 3.
पः ५11. 78, 74. १ का ५
सुमुष्नांसः 1 161, 14
मुसुषवांसं 1. 170, 5 १
मुसुम 1. 137, 9; पवा. 0,
मुसुम 1. 707, 9; 1४, 76, ए.
मुसुऽमान् >. & 3
ऽमुघ्ं (1. 49, 10.
५सद्चसयं ¬, 204 5.
मुभ्सुख्ाण्र- 752.
: ऽसुन्ना 2, 12292. 9)
सुमुम्रे इतिं सुऽसुद्ने 1. 5०, 3 ८
सुसुऽ्वासं पा. 3१, 9. 1
सुमुऽबुषः +. 94, 14-
सुऽ्सूः १.78.
मुज १09.
सुसूदः 1. 73, 8 ५ | 1 6 ५
सुसूद्ः ४11. 7, 2; 25. `
4
ॐ ८2 ८4
सुसूदिमं ¶. 18४, पा.
इसूमां {7. 32, 7.
ऽसेकै इ, 7107, 5.
सुऽसेचनं १. 701, 6.
सुऽसोम॑या र. 75; 5.
षु
ऽसोमायां पए. 64 77. |
ऽ सोमे १17. +, 29.
ऽस्तुत् 1. 129, 77.
इसतुतः 1. 157, 3; ग77, 5; प. 249;
24; 2; प, 2; 2; भा. 6, 72; 74
क. 108, 72. |
ऽस्तुतं ४. 75; 5.
इस्ततयः 111. 19, 3; "१. 9947; >. 97; 12.
ऽस्तुता ५1. 63, 6 "१111. 13, 23; 109 एव
ऽस्तुताः 1. 166, 7; 1. 0 ह
इस्ततिः 7, 14,9; 11. 62, ¶; प्र. 24, 7; ४.
42, 14; ५1. 63, 8; *11. 58, 6; 97,
सुस्तुतिऽभिः ४1. 24 6 षा. 09, ग्र.
ऽस्ततिं 7. 7; 1; 747, 72; 718, 7; त. 26; ग;
3) 8; 37, 6; 1. 43 ग; 58, 76; ४.4
70; 66, 3; पा. 16, 6; 52, 16; 67 7;
प्रा, 22, 5; 58, 3; छा. 7, 26; 5, 3०
6, 32; 896; 4 ऽ; 34 7; 38 6; 43,
2; 52; 8; †5 6; 87; 4; 96, 12; 1९2
143 1, 629 3) 65; 3; 66, 22 ; 85; 1 =
क. 91, 13; 188, 32.
मुऽस्तुती 7. >» 4; 11. 38, 8
9, 14, 2; ९. 77, 8
ऽस्तुती ४1]. 74, 4; 35; 20
सुऽस्तुतीनां >. 46, 2; 3
सुऽस्तुत्या पा. 16, 3; 96, 20.
सुऽसतुन॑ः ४. 75; 4; -. 78, 4
सुऽस्तुभा 1. 62, 4.
मुऽ्सतोः 7. 2०45
सुस्थाने इतिं सुऽस्याने 7द. 97,
सुऽस्यामां 2. 44, %. | |
४. 43, 2;
इत्ति >. 770, 6.
सुखानः 1. 6, 8; 65 78 ; 64,
सुसखानं ++ १2; 2.
॥ ।
23.
सिंऽतराय 7]. 19, 1.
67 5; ण. 23, 2; 9.
1४. 25, 6.
ऽहनां ए. 2, ;
29 +°
49, 9; भा. 22, 2; ‰, ५०. 1.3
1; 63, 9
सुऽह्षस्म {1.
सुऽ्टवां 1. 123, 13; ए. 4०, 4; 44; 2; 89,
4; 93) 1; >" य, 4.
मुष्ट्बा +. 52, 16; प्रा. 22, 7; इ. 39 ग;
92, 13.
सुऽह्बाः 11. 56, 3; ४. 46, 7.
¦ सुऽहवानि 9. 3६;.4 (५
` भुऽ्हवां 11. 32, 4. ६ ४
त
सुऽहस्ताः 1४. 33, 8; ए. 42, 22; एका,
1. 90, 37; ॐ, 66, 70.
ऽहस्ताः 1४. 35 3; 9; इ. 3० 2.
ऽहस्य >. 107, 21.
ऽ हस्त्य; 1. 64, ए,
ऽहस्यः 1. 46, 4.
ऽ हसतयं 7. 47, 3.
सुष्दादे पा. ५5.
ऽहिरण्यः 1. 22552; 1४. 4; 10.
सुहुत ऽदः 1. 77, 4.
सुऽहतं 171. 60, 74.
सुश्टोता #ा. 67, 3.
सुऽहोतां ए. 104, 12.
सूः 1. 32, 9; 146, &
सूकरः ४1. 55, 4. `
सूकरस्य ए. 55, 4.
सूकतऽवाक >. 88, 8.
सृक्तऽवाकेनं र. 88, ¢.
क्तऽवांचः ४. 49, 5.
सूचीका; 1. 2197, त.
सूच्या 7. 32, 4.
सूतं र, 37, 10.
सूतं <. 61, 20. ॑
सूतवे २. 184, 3. |
सूत 1. 701, 3
सूते 1, 164, ग.
सूदऽदोदसः ४11. 69, 3.
दनं प्र. 39, 5.
सूदय 1+. 4, 24; 1. 69.
सूदय॑त् 1. 77, 8. | (0
सूद्यंतु ए. 59, ग; 4०
। मृद्यते णा. 23; 8. | ९ क
सूदयाति 77. 3, 79; 7. 4, 2०,
बूबानि 6 11
५4 '८अ लभ धथ
| सूनयां 1. 167, 10. |
` सूनर पा, ०9, ग; द. 5.
| सूनरं 1. 4०, 4; ४. 34 7.
=. सूनरि 1. 48, 29. ` ।
<“ भ सूनरी 1. 48, 5; 8; 1१४. 52; 7; #ाा. 87, 4.
सूनव॑ः 1. 375 10; 45) 5; 85 व; 759, 3; धा
0, 4; 2, 9; (11. 81, 4; +. 4>
+. 56, 6; 629 5; 176, 7,
सूनवः 11. 36, 2
0 सूनवि #11. 6६, 1.
सूनव 1. 1, 9; 26, 3; 34 6; 59, 4; 127; 5;
142; 7; 1. 38, 5; [11. 7, 22; #1. 48,
4; -. 25; 3. ॑
सूनाः 1. 162, 14. | ।
सूनां 2. 86, 78.
सूनुः 1. 20, 2; 62 9; 66, 7; 103, 4; 189,
1. 23; 25; 1; 28, 3; 33; 53. ४1. 2, 9;
12; 1; १. 67, ठ; 13. 9.3; 1०4; 23;
+. 45, 5; 04, 24; 63, 27; 95 12.
सूतुऽभिः 1. 100, ५.
सूनु 1. 64; 12; 224; 7; 166, 25. 185; 2; 11.
(91 ५ 11.4.1१. "2, 2. 9.0;
6, 7; 49; 2; 62, 6; 66, 77; "वा. 25;.25;
69, ¶1; 774. +. 20, 4; . 39; 74
सूनु ऽमतः 11. 24; 5
सून् इतिं ए. 25: 5.
सूनून् ५. 42, 75.
सूनृत भा. 46, 20.
॥ द ।
.
135; 7; षा. 48, 20; एवा. 37; 3; 57, 6;
ष... 8143; 45 12; 3. 14, 2.
सूनृताः 1. 48, 2; 113; 12; 123, 6; 1. 32, 271
61,.४; १. 029,.5;: क. 39,.2; 177, 79.
सूनृतानां 1. 3 17; 92, ¢; 774; 4; 28; 17.
34 18;. ४. 46, 7; णया, 32.15
% क .
८ सूनृतां 1.8, 8; 3०, 5; 4० 3 | ह, 2; 144. >
सूनृता ऽवता पा. 9, 6.
सूनृता ऽवति 1.. 92, 14.
सूनृता चती 1. 22, 3; *.
सूनृतां ऽवते पा. 74 २.
सूनृताऽवरि 1४. 5२, 4 |
| सूनृतां ऽवान् 1. 59, ¢.
सूनृते 1४. 55; 9.
सूनृते 1. 723, 5; 124 70;
सूनो इतति ४111. 4०, 9.
सूनो इतिं 1. 58, 8; 11. 1, 8; 44, 3; 95, 5;
29.64.90. 2.11.0 22440.
4.81. 1,.10 44.4.84.
13;. 46 ; 7223; 18.71; 20.71; 2; 11
569; 11.7.27; 22; 2.4; 7164;
१1.10.70 24 2.1.411;
50, 6; 7425 7,
सूनोः 1. 770; 77
~
84, 6.
भ, 9, स.
1९. 19, 4.
सभे इ. 102, 5.
सुभवः उ. 94, . ।
सूयत +. 132, 4.
ये १..68-0; 3. 726, 4.
सूयते ४111. 64; 70, ॑ ^“
%
सूः 1. 5०9; .66) 1; 77, 9; 244, 6; 9; 10
13; 129 25; 759, 9; 747, 13; 7495-5
: 774 5; 1४.513. 16, 22; 4; 42, 5;
4596; प्र, 3 ग; 799; पा 26; 33
48, 717; 49: 3; 5; 563; णा. 3, ।
| 45; 2.09; 4. "11 5;.6; 25; 0; 36
ऋः ॐ छ द
1
ऋक के
कः ,
५
8, 3; 27, 26; 29; 5; 92; 7; 8; 2, 6
132; 0; 7/9, 2 | र ५ . 1
सूःऽचक्षसः 1. 16, 7; 89, 7; 710, 4; शा. 66. 15.
१.।
सूर 1. 86, 5; 1. 68, 7; 67, 9.
सूर्यः 1. 44, 20; 48, 4; 73, 5; 9; 97, 3; 4
125; 7; 147; 3; 8 | [{. 7, 16 2; 1
56, 5; 92, 37; ९. 109; 653, 8; 9;
66, 78 ; 24; 86, 34; 979 3; ग्वा, व; द.
10, 4; 60, 6 ; 94; 9;
५. 6.5; 4; 66,
सूरयः 1४. 34, 6
12. 98, 72; 99, 3;
2; 11; 48, 6,
52 7.
सृण॑ः 1. 10, ‰.
५ | सूरत् । श 04 2.
सूरय 1. 5०, 2
122, 8; 154, 2; 106, 4; 180, 6
8, 4; 186, 5; प 6, 4; ए. 23; 10;
ओ
95; ॐ 5; पा.» 28; णा. 5, 59;
6 40, ५ % 70; 14 3 15 12. 67; ८. 3 . 61,
। । 18; 81, 6; 167, 4.
स्क्भिः 1. 51, 19; 186, 6 ; #, 47, 14; 42;
+ 4; 52 15; $¢ 26, 7; 63, 7; पा. 32
15; 66, 9; 92, 4; णा. 78, 4; 26, 19 ‡
>. 23 4; 775 ग |
५
सूरिऽभ्यः 1 180, 9; प्र. 49; भा 4 8; 68, ¢;
४. 1, 24; 28, 2; - 3०, 4; 81, 6; भा.
१३, 22. ।
रि 1.6, 3; "9.3; 73.27; ए. 45, 35.
सूप्पुं ४. 79, 6; 86, 6; भा. 47, 9; पा 19,
7; 94 3; गावा. 26, 1; उ. 988; श
५ सूरेः {;.122; जा; 12; प्रा, 41; 34; ४. 33;,8;
1 बः 7. क
मुक क 90 4
सूर्ये 1. 3, 7; ए. 2), 4. ।
व १. 60
^.
सूवः 1. 23, 17; 35 7; 44, 5; 46.20; 56; 4;
839 0.41. 90; 8; तव, 3; 1053 12;
19 7; 2; 5; 7249 7; 146, 4; 750, 7;
100; 7; गा, 8; 9; 11. 11, 20 223; 2;
24 9; 1. 74, 4; 39, 12; 54: 79; प्र
7; ग ठ; 74 2; 26, 7; 58, 4; प.
44; 7; 45; 2; 9; 10; 54 9; 59 3; 63, 4;
1. 43; 6; 19, 1; 3०, ४; 48, 27; 67,9;
षा. 8, 4; 358; 36, ण; 4, 4; 60 9;
4; 67; 1; 62, 7; 63; 71; 79, 7; 82, 2;
भा. 3, 20; 12; 7; 18, 9;: 25.10; 32,
23; 44 32; 48; 7; 56, 5; 58, 2; 70, 2;
{> ॐ 11; 47, 5; 54 3; 63 13; 64: 9;
ॐ; 64 2; 86, 29; ऋ. 35; 8; 37, 2;
60, 77 ; 27, 3; 88, 6 3 89, 2; 90, 73;
738, 2-4; 158, 7 159; 7; 100, 3. | | |
¡ऽइव 1४, 38, 10; ए. 6, 10; 102, 15;
1. 54 2; द. 69, 2; 108, 5.
सूयऽत्वन्ः ४11. 59, 77.
सूयेऽत्वचं ४17, 97, ¢. 1. 9
सूयेऽत्वचा 1. 47, 9; ए. 8, 2. ` | [र
सूयं 1.73; 24 0; 32 4; 55 9; 5० ग;
10;" ऊ» 4; 52४8; 100, 6; 218; 779 13;
7779 5; 150 2; गा, 5; 164, 25; 175; 4;
{1.4 7; 19 3; 5; ना. 3, 5; 528
34 9; 39 5; 44 2; प्र 132 2; 3; 25
4) 30 4; 6 श्र 209 6 4) 6 9 2 603; 7; न
85; 2; पा. 173; 5; 55; 5० 5; 42,
1; 2; ४. 443; 60, 3; 66, 75; ‰8 3.5
1
6, 49} 00-22-12, 36. 25; 01;..29; 16 ५
(९. 2 89, 7; 98, 2; 99, 3; 7.46 र
17, 5; 239; 218, 5; 37, 4; 42 7; 65 7;
86,..22.; 97,.6;. 90.31; 300; 0 ; 20;
` ९.9 इ.16, 3; 37;.8 5.45;
67, 5; 22० ¢; 88, 77
156; 4; 777, 4
सूयऽड्व ४, 24;
8०, 4; 843; 99, 4; ०44; प्रा. 36; =
1 ॥ 3
् १
. ` सयेस्य 1. 14; 9; 47; ¢; 48, ¢; 92 12; 108 |
| 12; 109; 7; 172, 9; 775 3; 4; 6; 116
14; वाकी; 73; 118, 5; 1220 2; 725; 12;
. - 124; 8; 730; 2; 164; 14; [ण 6; 19,
4; 357; 11. 5, 5:22 3; 5777; 49; 4; |
53; 15; [ष 77, 7; 243 4; 0 4; 08; +
40; 1; 433 ~ ४.4 4; 29; 53 106 2 347;
4०, 8; 59, 5; 62 7; 8; 69, 3; 70, 3;
79, 8; 87, 4; प्र. 20, 5; 37 3; 58 3;
69; 5; ण्या, 37; 6, 4; 5 4; 44
| 652; 755; 763; 89; 98,6; पा.
"~ २.72, 9; 12, 16 ; 7०; 24. 1.16; 618
म. 795. 3; 75 7 26, 4; ०6. 52; 95,
1 ` ~ ` ग 965; 97933; "753; 32; 73; |
। 209; ता; 35 5; 376; 4907; 595;
66, 2; 112, 3; 12357; 7459; 45 7573 र.
त सृथैस्यऽड्व 1. 100, 2; 1359 9; ४. 55 3; 4;
1 . भा. 33; 8; [3. 64 7; 69, 6; +. 48;
1 | 3; 9194 | |
सूये ४. 73 5; द. 8507; 79 | |
` सूथाऽ्डव 1. 267, 5. |
सयाः ४111. 70, 5.
4 सयीःऽङ्व 1, 64, 2; पा. 3, 16 ; 34 प
` सूयोचंदूमसां 1. 702, 2.
॥ ति
- भूयोचंदरूमसो >. 190, 5
कि क 1
सूपोचंदूनसें ईव ४, 5, 16.
सू्यीत् ४. 42, 9; ए. 59, 8; र. ग87, 3.
सूया 1#. 441; ह; 85.915; 234; 38
सूयौमासां ४117. 94; 2; 2. 64> 3; 68, 10;
1
सूयय 44,.8; 2249164. 1295-4; ४: 33, 4;
25, 1. 801; (08; >. 472;
१; 2; 90; 74; व7ा,2
90 मूयोयां 1 184 4; ब 496; ४
ध इ 856;.84 18414435.
सूये ए. 58, 4; पा. 2 य; इ. 85,
63
4; 10; प्. 77, 5; 44 23; 46, 4; भा.
20, 19; 68, 9; 73. 45; 18; 947;
07, 47; क. 12 7; 93; 12.
१. 4.101,4;
ठ; प्र. 85 5; ४. 21 3; 5252; 9.
44; 4; 63; 4; 97, 7; गवा. 9 8; 357;
1९.2.64 240, 4; 3 ,.6529 11; 857; 100
2; 77, 5; 7. क
स्यैयाःऽइव प. 08, 5. | |
सुकं 2. 180, 2. |
सुकरे 1. 32, 12.
सृक्वाणं 1. 164, 28
सुज्ञ 1. 36, 9; 80, 4; भ. 86, 5; {९ . 100, 3
सुज 1. 13; 77; 29 23; 24; 28, 9; | 31, 18
188, 10; [1. 4 16;. 26, 6; 1४.42; 3;
ए. 20, 8; 36, 4; +. 86, 5; 9१11. 32,
24 ; . 2. 6, 6; 16, 3; 57 7; +. 16, 5;
85, 22; 98, 12; 120; 3.
मः 11. 11, 2; 1४. 17, 7;
7717, 9.
सृजः 1. 189, 5.
सृजत् 1.77, 5; 174; 4; ४. 20; 3; [-. 64 76.
सृजत् 1. 55 6; पा. 104; 205 +. 113 4;
124; †. , ५
सृजतं 12. 62, 27; 704 2.
सुज 1. 9; 2; 39; 10,
जतः ४111. 12; 4.
जतं 1. 157, 6 | ^ 9
मुनतं ४. 62, 3; णा. 35 20. ॥ ५0
सृजति 7. 48,.6. , : ` ` `
मुनि +. 4४, 9. नि ॥
सुनते प. 34, 8; णा. 81, 2. ध
32, 2; +
॥,)
| सूनः 1, 180, 6; इ. 65, 32.
पाक्त 1
मूृनंति ४. 3०, 13; 53, 6
सूरजतु ४.25; 6; इ. 19, त. #॥
सृनखं 1. 107, 10; इ. 85, 9.
सृजात् . 108,
सृजानः ए. 38, 2; द. 64, 14; 76, 7; 86,
22; 952; 97, 18; 3. 22, 4; 89, 12.
मृजानं 1. 8, 5.
सृजाना +. 6, 5
मृनानाः 1. 32, 5 & 4
सृजामि 1. 9, 9.
सृजामि ४111. 44, 22
1. 84; 2.
सृज्यते 1९. 71, 1.
सेत॑वः 1. ;3, 4.
तु; पा. 60, 8.
तु >, 47, 2.
तू इतिं 1. 65, 3.
सेतृऽभिः प्रा, 84, 2. नि । | |
सेतो २. 64, 4. | ॥
सेद (0
सेद्तुः प. 25; 8; र. 14 3.
सेदपुः ए, 70, 1. र»
सेद्युः 19. 56, {7 . 1 ॥ि
सेदिम 1. 89, 2; प्.84; पा. 496.
शि कि |
पिरि, 9; 1.7 5 प्र. 8.4; ए. ड, =
8; 1. 102, 18; ~¬. 27, ¢ 45 £
सृज्यमानः प, 88, 5; 951. सेदु 1. 37, 9; 1१. 1, 34; 9 7; -< 3; | |
सुजयाय 8 27; 7 | 29; 3; 091 234; 9; १.९ 722 74; 7306; 2" | | ५
सनये 1४. 15, 4. सेदुषः ए. 15, ५, ^
ध. 44, 9; पा. 6५, 26; इ. 254. ` -
सेध ए. 47, 29; णा. 79, 9; 3. 98, 2;
166, 2. ४
सेध॑ र. 6, 4. | क |
सेधतं 111, 28, 10; अ, 45 2 4, 4 "|
४ ॥
सेधतं 1. 54, ग; 750, 4; भा. 35, 6. 9
देति 1. 7२, 8. | ०
सेधति 1, 19, 12; 9, 15, 6; १1. 23, 23 | ५1४ ५०
॥ कि ऋ)
सेधतु >. 36, 4.
सेन् 13. 110, 1, । ^ 0
सेधति , 107 1 ॑ | र । ।
सेधतु 2. 100, 8. | न त ४
सेधीः इ. 27, 20. | इ
तया ए, 050; क 4.
सेनां 1, ०6, ग द. १494 1
सुश्यः 1४. 20, <
सूर्य॑ः >, 107, 2.
सृख्पा 1. 58, 4.
सृख्यां ऽइव >. 106, 6.
सृत्वसीणां २. 75, 1.
सुत्वा {‡. 96, 20.
सृप्रऽकरखं 111. 32, 10.
सृप्रऽदातुं 1. 96, $.
सुप्रदानू इतिं सृप्रश्दानू् ऽ]. 2
सुप्रऽभोजसं ४. 48, 14.
{ ४, 2.
सेना ऽइव 1. 66, 4; 743: 5; ४11. ॐ 4.
सेनाः 1. 186, 9; 1. 33 ०9;
| 25) 7; २. 203; 7; 4
सेनाऽजुवां {. 116, 7.
.५३४ |
सेनां 1. 33, 6.
सेन्यः 1. 81, 2; ए. 39, 2.
सथुः ए. 29, 1.
वते ह. 174, 2.
सेहानः ४77. 36, 7; 37, 2.
सेहानार्याः इ. 159, 2.
सेयोः 1. 191, 3.
सो इतिं 1. 191, 17; ह. 7, 3; 25; 4; 63; 16.
सोत ए. 7, 4
सोत शा. 1, 19; इ. 108, त.
सोतः ए. 2, 24.
सोतन ए. 4, 1;
सोतरि 2. 76; 2; 1०0, 9.
सोतवे 1, 28, 7.
सोत 1. $ 3; पवा. 92, 2; एवा, 33, 19.
सोतार॑ः १.102.129
सोतारः ४11. 2, 25 ; 1. 62, 18.
सोतुं र. 76; 6. ..
सोहुः णा. 22, 1.
सोतुं भा. 29, 18.
सोतृऽभिः ४111. 49, 5.
सोतृऽभिः
12; 96, 16; 10, 8; 26.
सोतौः र. 86, 1. |
सोत्वासः 3, 160, 2.
सोभरयः ए. 19, 32.
सोभरि ए, 5, 26.
सोभरी ए. 22, 15.
सोभरीणां ए11. 20, 8.
सोभरोऽयवैः ए111. 4०, 2.
सोभरे प्रा. 192; 2०9 19; 22, 2. '
सोनयौः ए. 103, 14.
सोमं 1. 97, 9; 10; 77; 14; 15; ग; णा
48; 7; 8; [. 4, 7; 443; 33; 4
0; 44 6; 55 7; 67, 24; 629 2.5; 62;
3०; 67, 28; 68, 7; 49, 3; 86, 23; 100, 2.
97, 1-2; 3; 48
ध
28; 8; 1४. 29, 2; 1, 3०, 2; 86,
‰2, 3; ४1. 104; 25; भ. 48, 4; 6;
५; 13; 15; 78, 8; 793; 7; 8; ~.
1; 7; 2 7; 4 1-3; 6; 1; 8; ३; 8; 99
शृ; 11, 7-9; 14; 8; 16; 8; 775; "9
1; 2४; 7 203; 5; 4; 22 7; 24
24; 4; 29, 3; 4; 33; 3> 4; 35
36, 2; 6; 49 3; 4; 4796; 42, 6; 48
4; 46; 5; 57; 4; 55; 3; 56, 3; 59;
3; 60, 4; 67, 5; 6; 25; 28; 62.27;
623, 7; 77; 6; 28; 23; 24; 28; 29; 644;
1; 8; 9; 46; 39;..65; 73; 18; 19;
41.602... 15-10-40
00.14 16744044.
103 09; 1; 8; 70, 9; 74; 9; 75; 5; 769
3; 78, 2; 5; 80, 2; 4; 5; 87, 3; 82
2; 4; 86 4; 4; 5; ` 86; २8; 2
24; 3० ; 37-39 ; 47; 48 ; 87, 9; 88; 3;
900 00490 01 9
06, 3; ` 4; ग; 23; 6; 24; 97; 24;
75; 28; 255 27; 33; 36; 42; 48; 59;
58 ; 100, 35 5; 6; 106, 4; 7; 7, 4;
6; 10; 123 79; 20; 22-24; 108; 7
19; 109, 24 4; 7.70;
| ५ ५ षे 2. # , )
2; 4; 12; 174 25; 4; 774 7; 3; 4;
९. 25; 2-7; 57, 6; 59 4; 85; 4; गी,
2; 124; 6; 228, 53 139, 4.
सोमऽसदंः 2. 94 9.
सोम॑ऽञ्राहुतः 1. 94, 14.
सोमः 1. 78, 4; 5; 28, 20; 45 10; 47, 1;
65 5. :80,.2; ` 84; 2; -86, 4; 975. 2८२
7108, 24. 6; ` 735 22; 136, 4; 130, 3;
164; 35; 174, 43 191; ध. 2, 14;
18, 6; 49, 6; 4, 4; रा, 35 5;:.7; 36;
6; 44 1; 5० 2; 58, 9; 62, 75-15; 1,
24; 5; 49 .2; 58; 9; ४. 36) 2; 4, 2;
43; 5; 44 714; 46, 4; 57 4; ४. 29,
4; 34" 4; 38, 4; 473 3-5; 45 ८; 44
13 24; 47, 4; 75; 2; | 8; ४५. 44; 2;
46, 7; 2; 29 7; 35 7; 49 4; 645
[व
८ 9 9; 20, 3; 28 4; 6; 3०, 4; 34
; 30, 5; ॐ 7; ठ; 42 5; 43; 3; 44
2 3; 5; 47, 1; 3; 54 3; 56, 7; 9;
61, 25 ; 62, 16; $०; 63, 9; 13; 65; 26;
00, 29 ; 67, गय; 68, 9; 69, ग; 4; 7० 9;
11993 पथ ब; 4; 5; 7; 74; 18, 4;
$, 2; 82, 1; 84, 94; 86 9४. 9.
13; 165 19; व; 87 4; 7; 88, 5; 89,
1; 92 3; 6; 96, ग; 57; 9; 25; 320;
19; 23; 97, 20; 9; 35; 3; 39-47;
43; 46; 56; 99, 6; 1०, 6; १.10;
163 4; 1060, 2; 19; 107, 7; 7-9 ; 71;
9. 7123; 109, 19; 210, 79; श.
16, 6; 3०, 5; 32०9; 35, 2; 48, 10; 59;
65; 7; 2; 85 7; 2; 9; 40; 4; 89,
5; 6; 91 ग्ड; 100, 4; 103, 8; 1०4) 1;
108, 71; 109, 2 ; 112, 5; 716, 3; 124
43 136, 4; 154 ठ; 169, 3; 43, 3;
17; 3.
सोमःऽङ्व 1. 8, 7.
सोमकः 1. 15, 9. |
सोम॑ऽकामं 1, 1०4, 9; पा. 67, 2.
सोमऽगोपाः ‰. 45, 5; 12.
सोम॑ऽजानयः २. 92, 10.
सोमधानः ४1. 69, 6.
॑ 1. 7०, 9; 9, 33; 108, 26.
सोमऽधान्। ४. 69, 2. ॥
सोमऽधानाः 111. 36, 8. न
सोम॑ ऽ पतिं 1. 76, 3. ्
त 111. 321; प, 404; पाः 23. ५.
सोम ऽपरिवाष॑ः 1. 44, 8. |
सोमपवे ऽभि १,.५..2.-
म्या 1. 21, 3; 10. 49, 5.
{. 39, 7; 1. 32; 14; ४. 45, 10;
भवा. 32 7; 33; 75; 46, 26; 66, 6 ; 92;
18 ; 9, 6 1 98, 5
सोमऽपात॑मः 1. 8. 73 शा. 6, 4०; 7 2, 1.
सोम ऽपा्तमं ४1, 42 2; पा, 12, 209,
सोमऽपात॑मा 1, 27, 2.
सोमभ्यां 11. 5, 5; ए. १.31.4.
सोमऽपावन् (0.
सोमऽपावां ए. 45, 4.
सोमऽपात्रः ४11. 78, +.
सोमऽपा््रा 1. 3०, 77.
सोम ऽपाद्ध 14...
सोमऽपीतये . 2 5; 8, 10; 14, 7; 6; 76.
ए; 9; 2, 3; 199; 12; 254; 7; 10;
44; 9; 48, 74; 92०18; गा, 4; 57, 3;
+ 41. 21; 1.41 2 42, 1
46; 3; 7; 47 1:.3; 4935; ए. 57, 3;
00.1.31. .09.0 06, 24; भ.
7 24; 3 7; 835; 13) 20; 21, 4; 22,
8; 38, 4; 42५ 4.;.6.4; 0.4 ०3; 20;
94; 3; 9; 102 74; >. 86, 2; 101, 12.
सोम ऽपीयं ॐ, 15, 8.
सोमऽपीयायं 1. 51, #.
सोमऽ्पृष्टाय पा. 45, 77; श. 01.14.
सोमञ्पृष्टासः ए. 65. 2. |
सोषभ्पेर्यं 1. 120, 77; 1. 28, 4; 5; एणा. 42
ह, 4.20. 1.49; | ८
सीमञ्पेयांय 7. 45; 9; 7. 5 4; 52, 8;
शा. 1.3. 1111.0.14;1142
172, 2.
सोमँ 1. 15; 25.55.16 74. 0, 7: 28; 64947:
3 3; 14; 44 74; 473; 5; 10; 84.
77; 89, 3; 99० 7; 707, 9; 103; 6; 109, `
4, 740.2;120,.4 1192;
य 5 | १0; "09; 16, ~
क, ; 220 2; 3९, 7; 36, ब: >
7. 2, 7; 29, 16; 3०
9; 2०; 35, 9; 36,
|
॥
६३६
सोमऽमादः-- सोमासः
र; 60, 5; 62, 18 ; 1४. 18, 3; 22, ए;
24 ग; 24; 6; 7; 26; 6; 7; 49; ॐ
3; 4५8; 44 5; 49; 6; 5, 10; ४. 29,
7; 7; 24 8; 37, 4; 42 2. छ) ग
60, 8 ; 64 7; 85, 2; भ. व, 7; 29; 3;
4; 7; 44 74; 20; 47; 6; 57, 2; 68
10:09, 44-12-42 4; 4.1
61200104 09 २.00..2 00.41
92" .2; 98; -3;- +". 10; 19; 3 1;
285. 44; 1०.13; 23;-9; 9; +,
16; 70 7; का, 3; 5 2; 32, 24; 55;
10 30; 1; 38, 4; 45 3; 973
52 7-3 ; 57 2;. 4; 69, 3; 20; 76,
0.1 04.91.2 9.5; 3; 100
१५, 19.1.00. -4.4..1
100. 9.0; 34 3; 39 5; 57, 7;
62, 27; 63; 27; 68, 8; 72; 2; 48,
3; 84, 5; 85; 2; 86, "7; 56; 88,
95, 3 ; 97, 4; 34; 359; 107, 3; ग्यः
> © © ~क +
> ॐ > 5 - ` ॐ > # हि । ॐ क
14
च्छे कै
शक @
109, 77; 12; गग 1; 1142; ङ. 14, 13;
24 7; 28, 7; ० 3; 13; ग5; 36, 8;
39; 2; 48, 5 ; 49, 10; 65, 10; 6; ¢; 8;
चक
85; 3; 94, 13; 96, 13; 772, 6; 776, 7
83 124; 2; गवय; 3; 748; 2; 169, 2-4 ;
143; 6.
सोमऽमाद॑ः प. 2, 2.
सोम ऽइव 1. 116, 24.
सोम॑रभःऽतरेभ्यः उ, 76, 5.
सोमऽराजीः २. 90, 18
सोमऽवतीं ‰. 9४, ¢.
सोम॑ऽवत्या ‡. 112, 8.
सोमंऽशितं ४11. 104, 19
सोमंऽ शिताः ई, 7108, 8.
सोमऽवृडध 111. 39,4. |
सोमवृद्धः 1. 19, 5.
.. सोम सुत् ४11. 68, 4
सोमऽमुतः 1. 89, 4.
सोमऽमू्त्वा 1. 115, 18. |
सोम॑स्य 1. 4;
16, 3; 22, ग; 29; 2; 34, 2;
46, 5; 72; 23;-405 9; 5 2; 859 16;
80, 4 .104, 1; 23; .5~22; 100; 2; 1,
१.210.012 1001241
8 6 14; 4; 15; 24-9; 16, 6 ; 37;
111; 41.
व, 92, 4; 26, 0; 50; 352; ४.29,
3; 43; 4; 91 28, 5; 58; वा. 6955; 2;
प्रा. व, 20; 4, 12; 12, 12; 24 भः 1
15; 32 7; 28; 34 16; 37; 7; 48; 14;
433 45 -65; 3; 68; 14; 42; 70; 7.4;
९9.1.02. 23-07-12 2
80, 7; 87, 7; 87, 8; क. 55 8; 85 5;
१03 1111. 1.710.110;
१00, 8;
सोम॑स्यऽड्व र. 34, 7; 149, 5.
सोमाः 1, 2, 7 15.0.14). 1.1.230.
' "44. 1-144-49 3
92.44 16; 42.1.42
1..8, 1 2 2; 14, 2; 16. 4; 2 1;
27; 1; 22; ठ; 33 3; 42, 3; 46, 2; 62,
22; 63 4; 25; 64 6; 28 ; 69, 9; 87,
5; 88, 6; 9, 20; 26; 98, 77; जा, 4;
70; -‰, 42, 8; 46, 75 78, 2; 96, 6.
सोमाःऽइव ४. 2, 5.
सोमात् ए. 35, २.
सोमान् 71. 36, 3; णा. 98, 2; इ. 28, 3;
42; 5°
सोमानं 1. 18, 1. [र ।
सोर्मानां 1. 134 6; 1४. 52, 74; 4, 2; प्न.
त १ 9. (3 ~
सोमापूषणा 11. 4०, 2; $
सोमापूषणो 11. 4०, 5.
सोमापूषभ्यां 11. 40, 2.
सोमाय पा, 48, 12;
1
भ
सोमारुद्रा ४1. 74; -3
36; 3; 4; 46, 4; [प्र 426; प्र 30, 10;
1 7; #. 32, 4; पा 0 74; 476, 8
95०6; [१ 0, ग; 3; प, 2; 92; 3;
23; 4; 24; य; 37, 7; 32, 7 33; ८; 46, 3;
63; 15; 64, 4; 707, 8 22; 204; 2;
>. 44, 4; 7; 48, 4.
सोभिनं; 1. 22, 4; 49, 2; ग्ड 2; ए. 190,
8; ४1. 1, 5; 24 29; 45; 26 $ 62, 7;
; 1063 40 3;
४1. 94 209; .123, 2; प्या, 50 53 2.
97; 33; 15 3; 6; 2. 28, 12; 4 ए;
44; 2
सोमेन 1. 163; 3; ४.24 2; 5,9; 17 7174;
6.9. (900 20
7 3; 85 2
सोमेभिः 11. 14 10; गय; ए. 29, 28; 42, 2;
3; #4. 7, 223; ८2, 240; 46, 26.
सोमेषु \1. 24, 2; पा. 13, 7; 66, 6; 92,
26 ; 9; 6.
सोमैऽसोमे ४1171. 92, 74.
सोमैः 1. 1०8, 4; 71. 14; 3; गा. 35, 5; एए.
4 3; ४1. 26, 6; शा, 34 1; 3, 7;
४५11. 30; 6, ५; 2. 44; 6; 248 2.
सोम्यः ४111. ५3, 8; 95, 8; इ. 67, 8.
सोम्यं {. 14, 10; 19, 9; 1. 36, 4; 6 24; 2:
1.9 1711111;
74; 2; धा. 5 प 8, 7; 4; 9
33957560; 85. 7. 4.3;
तेम्यस्यं 1. 205, 3; 777. 48, 7; गप
44 4; ए. 2 3; ॐ, 2; णा
गि
सोमिनः -- सौवण्ये, | | ।
+... 4.
मयने स
सोम्यानां 1. 32, 26; प्र 173 74; $. 14, 24;
+. 16, 8 | | |
सोम्याय 7. 35, 5; 1. 2, 2.
सोम्यासः ए. 75, 10.
सीम्यासंः [11. 5०, 7; इ. 146; 75 1; 9.4.
सोम्यासः उ. 30, 14.
सोम्ये ए. 59, 6.
सोम्येनं 1ए. 26, 5. 4 + ११
म्येभ्यः णा. 32, 5. |
सोसवीति 111. 6, ;. |
सोकृत्याय उ, 156, 4. ८ ~
सोधन्वनाः 1. 767, 2; 7; 8; आ. 60, | ग; 4; |
1४. 235 7; 8. वि | क 4
सोधन्वनाः 1. 770, 4. ५ १ | त
सोर्धन्वनासः [. 110, 2; 8 + अ र हि ।
सोधन्वनेभिः 111. 60, 5. |
सोभगऽ्त्वं 1. 44; 5
सोभगऽत्वस्यं 7. 94, 16. + (1
[ षि कि ।
सोभगऽत्वायं >. 85, 36 1
#॥ 8
सोभ॑गं 1. 36, 70; 48, 9; प्र. 546; ष. 53
73; 82 4; ४. गा, 10; इ. 36, 73. 7 4
सो्भगस्य 111. 16, 7 ; ४. 555; गा, 32, 8. ^, हः ५
सोभगा 1. ०.4.115 11.4.14 । „५ .
अ 21 1,5.41 4.54
62.10.
सोभगानि 1. 92, ग5; ए. 42, 28; ए. १,
12, 7. | ।
सोभ॑गाय 1. 164, 24; 1.82; 77; ४. 28, 3;
60, 5; +. 75, 2; णा. 59, 5; ॐ. ८
सोभगेभिः 1. 712 25. = व 1
सोभाग्य ह. 8533 ध १.
सोमनसं ४17. 59, 7; 7३. 97, 28
76, 2 92» 6 ;
सोमनसाय॑
108
सोमनसे 111. 7, 21.
क ककय , सैथ
सौम्या; १11. 59,
३४
सोधवसं ए, 98, 4. _
ति, रि |
सोवा ए. 13, 5.
श,
सोघ्रवसानिं ४1. 1, 12; 742 2.
| वि कि ।
सोश्रवसायं 1. 162, 3; पा, 68, 8; ‡. 36, 7
षि त ।
सो्वसेषुं 2. 45 70.
को कियानिति
स्कर्द॑ति +. 14, 212.
सति १. ९१, 3
स्वधासि ऽइव 1. 32, 5.
स्कन्नः ९. 1/, 13.
खतं ए. 33; य; ङ. 187, 3.
स्कभायत् ५. 29, 4; ४1. 44; 24
सखभायतं 2. 6, 4 `
स्कभायतिं 2. 44 8.
सकभितः >. 149, 2.
खभितासंः 1, 34, 2.
सभित्वी >. 65 0.
स्कभीयान् इ. 711, 5.
स्कश्नाति >. 6, 5.
सनिः 1४. 14 5; 1. 74; 2; 86; 46 ; >. ॐ
सभिथुः ४1. 72, 2.
खंमिऽदैष्णाः 1. 166, †.
खंभनेन 111. 5, 14; ए. 4, 5; 72, 2; द.
पठ, 5.
स्वंभनेभिः 1, 260, 4
कभ ९. 44 4.
सनासः 1. 34; 2
सभुः ए. 65, 4.
सभन 17], 41, 0.
स्त इतिं स्तः [. 67, 8.
सतः ए. ॐ, ५.
स्तन् >. 92; 8.
स्तनः 1. 164, 49.
सनयः ए. 84, 5.
सनऽभुज॑ः 1. 140, 8.
नाना ममान
स्तनयत्ऽभिः 1४. 17, 72.
सनयन् 1, 58, 2; 242, 5; प्र. 8, 2; 9; श.
44; 712; 73.29, 3; 86, 9; ` 2. 1685
स्तनयन् ऽइव ¬. 45; 4; 67, 5.
स्तनयतं 1. 64; 6; ४. 42, 14; {3 . 72, 6; >. 49, 8
स्तनयति 1, 79, 2.
स्तनयति 1४. 20, 4; ‡. ¢<, 3.
स्लन्॑ती 12. 87, 8.
सनयित्तुनां ४. 85, 6.
लनिहि ए. 47, ० = `:
स्तने ऽइव {1. 39, 6. |
स्तभायः ४1, 107, ‡.
स्तभायत् 1४. 5 7; 6; 2.
स्तभायन् 1४. 27, 5; >. 3; 2.
स्तभितं 2. 127, 5.
स्तभुऽयन् 40, 9.
स्तभुऽयमानः ४1117. 6, 26.
स्तभु ऽयमांन॑ 7111. 0, 4.
स्तभ्नामि ‡. 18, 13.
स्तं ९. 85; 42.
स्तभीत् 1. 147, 2.
स्तरते 1, 1409, 4.
सणमहे ४11. 75, 4.
[ऋ , 8. |
सतणीः 1. 122, 2; शा. 0, 3; णा. 57, 0;
९, 31, 710,
स्तसैमणि ह, 35, 9.
स्यः 1१.19, ;; "7. 23, 4.
1. 176, 22; 717#; 26; #ाा. 68, 8
स्तवं 11. 77, 69.
स्तव 2, 89, 7.
स्तवः 12. 55 2.
स्तवत् ४1. 9, 4.
स्तवत् +1. 47; 15; ए]. 86, 2
स्तवते 11. 24; 7; पा. 24, 16. | ५
कने 1. 1084 |
1
1
क्यप. ५ ----[------------ भ्न. 30, 1; 8
स्त्वत ए. $०, 4.
स्त्वेत [४. 22, ¢.
स्तवते ए, 26, 7.
स्तवते ४1. 20, 10; श, 65; 4.
स्तीर {. 135, ठ; ग 4; [1.3 4; गा.
7; ४.18, 4; प्रा. 93, 25.
सीरः 7. 7, ;. |
स्तीरे [४. 6, 4. „च
स्तुकाऽइव 1. 07, 70. | ४ ५०
सतुकाऽविनां ए. 74, 15. | ध
स्तुतः 1. 769; 4; भ्न, 65, 8; शावा. 32, 29 ; ० | |
43: 77. 9 ॑ ५
सतुतः {. 84, 3; शा, 3; 77, 7; 1908; ग.
33 72; 1. 59; 18, 4; गप्र 16, 21;
179 19; 2, 7; 29 7; 32, 8; श. 109.7; | ।
3 2; ४. 24, 2; णा. 8 5; 58, 3; न
ण्ा. 4, 4; श. 029 15; ऋ. 5० 2; 67, |
16; 94, 4; 100, 7. | | क १
स्तुतं ४1. 35, 717. क
स्तुतयः 1. 34, 7. | कन ।
स्तुतस्य ४17. 56, 15. । | | न न ५
स्तुताः 1४. 37; 7; ८ 52; 14 ; 68 59) 14. | ~
सुतासः 1. 71, 3; ए. 5०, 15; एना. 57, 6; 7; च |
भा. 39, 2, | थ
स्तुतिं ९ 37» ©. [ ५ |
स्तुतीः 1. 84, 2. |
प् 12, 96, 218. | 7
सुभः 1. 1907; 1. ऽ, 3; 12. 68, 8; 86, 74. क
स्तुभा 1. 62, 4. ५ ५ 0. ह ।
सतुभ्वा 1. 66, 2. वि ।
सतुमसि ४1. 23, 5; इ, 148, 1. स 1
स्तुवतः 7. 33 ¢; ४. 53, 26; णा. 28, 18 1
35 5; भा. ॐ 4; 75, 26; 79, 14; ५.
35 ` [नी
॥ वि ए ।
स्तवमान 1. 147, 5.
स्वमानः 1. 739, 6; ए. 1 9 71; णा].
स्तवमनेभिः 1. 62, 7.
सत्से ४. 10, 4.
स्तवसे 1. 169, 8; श्. 148, 5
24> 4.
व सि, ।
स्तवान् 11. 19, 5; 90, 5; प्र, ०4 8
स्तवान 111. 4०, ॐ.
सतवानः 1 ग, एय; 3, 8; इ, ०; 173, 10;
1303 10; -. 33; गट; एप 77, 2; ४. 70,
7; ॥1. 8, 7; 56; एवा. 3, 5; णा,
23: <; र. 97, 5.
स्तवानः ४1. 46, 2.
स्तवाना 19. 55, 4.
स्तवानाः 1. 62, ८.५
स्तवानेभिः 1. 169, 8.
स्तवामि 1. 16, 9; णा. 24 19.
स्तवाम् 11. 7, 6; वष. 0, 4; 39, :; णा,
62, 12; 95, 6; 96, 6 ; 100, &,
स्त्वामहे ४111, 46, 1 9,
स्तविष्यसे 171. 70, 24.
` स्तविष्यामि 1. 44, 5.
स्तवे ४. 73, 4; इ, 22, 2.
ध स्तवे 1 92.059. 22, 4; भाः. 12, 2; श
^ (44 + |
२.
॥
¢
वेण प 9 24 4. 840... :
त १ ॥ रौ ॥। | क 4 ५ । । । १11 ॥
= भ. | स्तुवतां ४1. 54, 6. (५
स्तवे 111. 32, 24; 2. 522; श,
स्तामुः $. 29, 9.
। च्लिभ्ा या. @& ऽ
४. 74, 18 ` 21.40; 9; १.42 ६
3; 62, 5; णा. 88, 6; 95, 6
षा. य, ५2; 7, 35; 5०
वृ
८1| न्ध 1८41
209
वंति पा. ॐ 8; 75, 6.
वाना +. 96, 3
1
स्तवीत 1४. 55; 6. _
स्तवीमलि *111, 22, 6.
4,46.1 1424; 21.4.58, 2;
ण. 497; 53; 62; णा. 4 0; 54;
0.92; 29 09.8.45; 44
स्तुषे 1. 722.8; 159; 1;. [~ 230, 4; १. 323: 6
4. 48.14; ~ "ा.22,9; 23; 45.49;
+. 93; 9
सतुेय्य , 7120, 6.
स्तुहि 1. 33, 7; ४. 53; 16; 83, 7; णा.
1, 204; 3; 10; 94; 22; 96, 12; 103; 10.
स्तुहि 1. 12, 7; 22; 6; 54 2; 146, 6 173; 5;
4.8... [4 44; 513 ५442,
1८; 15; 59; 5; भा. 20, 14; 24; 23;
26, 10; 99, 4; 102, 10.
स्तूपे 1. 24, ¢,
स्तपः ४17. 2, 1.
सतूयमानाः {. 107, 2.
स्तूयसे 1. 22, 7,
स्तृणन् 12. 5, 4.
सुणंतिं ए. 45, 7.
स्तृणानासः 1. 142; 5; 11. 77, 76.
स्तृणीत 1 15, 5; प. 26; 8 ; ४11. 43; 2.
सतृणीतं ए71. 73, 3.
स्तृणीतां ५11. 7, 7.
स्तृणीते ४1. 67, 2.
स्तणीमटिं 111. 4, 4
स्तृणोषि 1. 729, 42.
स्त॒ऽभिः 1. 68, 5; 80, 7; 766, 17
34 4; 1४.73; "1, 49, 3; 12.
स्तगः >. 37, 9
५
८, 1 र
भ
{1. 28, 10; 4२, 3; शा. 1९4 10.
४ & ¢
1.2, $
स्तेनाः ४.3, व,
स्तेनेरभ्यः 71. 23, 16.
सलेयभ्कृत् ए, 164, 76.
स्तोकं >. 95; 76.
स्तोकाः [11. 27, 2; 3; 5
स्तोकानां 11. 21, 1.
स्ोकासंः 111. 97, 4.
स्तोत ४11. 7, 7; 76; 7.
स्तोत॑वे णा. 4: 17; 72; 5° |
सोता 1. 38, 4; 111. 52, 5; प.18, 2; 74
१5; 1; +, 2, 13; 13
79, 26; 44, 18.
स्तोतारः 77. 2, 12; पा. 34; 3; 54, 9; णा.
- 32; 7; 33; 7; ~. 204, 5.
स्तोतारः 1. 756, 3.
स्तोतार 1. 105, 8; 112, 77; 717. 41, 6; प्र.
य, 13; "1. 32, 28; 86, 4: 88, 4;
91.300 0001-1 41.
स्तोतुः 1. 50; 5; 1. 18, 5; "1. 32; 9; 52, 9.
स्तोतृऽभ्यः 1. 77, 3; 30, 24; 33; 2; 58, 8
12111 .11.1.101 24 11.41
70; 76, 9; 77 9; 189; 19, 9; 20,9;
34 ¢; 38, ८८; [ा. 10, 8; 7४. 32, 8;
१ 0-1...0;14.2. 009 0; 8.9;
षा, 3.29; 7 7; 29 4; णा. 2, 24:
2, 10; 64 5; 77, 8; 95; 29; 25-2;
2. 20, 4; 766, 13.
स्तोतृणं 1. 5 2; ४. 64, 4; शा. 45, 29;
"111. 14, 77
तन् ए. 55, 3; द. 56, 4; ए. 8, 8
तं . 30, 5; 238, 7; 7. 57, 24; ए
344 5; 599 77; भा 4, 97; ०;
+" 705, 7.
स्तोतस्यं ए. 55, 9; 1. 72, 9.
स्तते 1. 102, 7; 724, 70; ए 2553;
6०, 6; [3 . 20, 7; 47, 2; 40, 5; 45, 6
19; 22; गयः
व 44
1
य
स्तोभत ष ` ----------------- 8०, 9.
स्तोभति 1. 88, 6.
स्तोभतः ४111. 54, 7.
स्तोभति 1. 268, 8; प, 8,
स्तोभतु ४171. 92, 19.
स्तोमः 1. 8, 10 ; 16, ¢; 20, 1
2
5, 14; 124,
10; 156, 7; 165, 72; 15; 1669 15; 764,
11; 168, 10; पठ, 2; 172, 23; 183,
184, 5; 6; [ा. 58, ग; (४. 32, 15; 36, 9;
373; 41; 0. 425; 6; पा, 58, 5;
42" 3०; 051; एना. 2०9; 245; 39, 8
34 14; 64 5; 66, 7; 86, 8; एना 5 78
१4१ 10; 26; 26; 80, 7; इ. 29, ; 245, 4.
स्तोम ऽतष्टा [1. 39, 1.
स्तोम ऽतष्टाः 111. 45,
स्तोम ऽतष्टासः >. 1;
स्तोमं [. 10, 9; 12, 12
16; 5; 271, 7; 20, 26:
41 444; 14; 64; 7; 4; 94 7 ; 109, 2
1 7; 24; 2; 39 8; ता
15» 4; ऊ4> 10; 69 7; 6, 2; [9.4 15;
222 7; 446; #, 1, 1252 71; 02.14;
2; 358; 41, 2; 42, 2; ॐ 4; 60 ए;
01, 17; 8, 5; ए. 10, 2; 16. 22 ८10.
ष्वा. ठा 4; 0; 4 ठ; 4० य 0,
932 1; 952 5; 99, 6; एना. 7, 4; 7;
2; 2; 7,9.83 22;.4; 9 4; 22
4; 14; 19; 11; 33, 25; 352 5; 36; 6
43; 16; 44 2; 49; 5; 66, 8; 85 2;
100, 3; 3. 108, 7; क. 23, 6; 39, 14;
42, 1; 56, 3; 67, 25; 65 6; 75, 5; 92
9; 93: 12; 106, गय; 12, 8; 160;
ऽवधेनः ए. 14, 17. |
स्तोम॑ ऽवाहसः 1. 5, 2; प्र 32, २४; ४.4 2.
स्तोमं ऽवाहसां ए. 99, 7.
स्तोमऽवाहाः ४1. 23, 4.
स्तोम॑स्य ए. 8, 5; 29,
4.
1.58; 77; 11, 8; णा. 6०4; णा
| 19, 10; भा 5 3; 8, 22; 9, 8; 642;
स्य 1. 15; 2; 7591
स्तोमाय ए. 9.1;
स्तोमांसः 77 542 74; ४, 29, 17; 84, 2; ए | .
09, 2; 3; णा. 72, 3; धव. 7, 29; ॐ | |
95.44, 7 | | | |
स्तोमं 11. 54, 2; ए. 16, 3; णा. 22; 1.
स्तोभैन ए. 14, 1 140; पा. 9, 4; 3. 88, 16,
सतोमेभिः 1.9, 3; 151, 2; 138, 2; 4; 139, 5;
ल. 135; 555; 7. 5 2; 32,.74 ; - भ्र.
10 3; 46; ए. 24, 7; 59, 10; पा.
62; 2; 89, 7; ण्या 3.1.109 1.01
7-9; 14, 23; 23, 24; 54 8 ; ` इ. 99,
११.12. | | = ५
मेषु [. 11, 3; 1. 42, 4; एणा. 424 |
स्तोमिः 1. 156, 5; 180, 70; ता 0.1 |
42 4; 1१.10, 7; 52, 4; ए. 22 4; 56, 5; ५
06, 3; 79 4; ए. 67, 3; 73, 3; 76, 6 ५
96, १. 2;3:6,7 9.111.11८. ५ „` |
17; 450 77; 44 27; 5256; 67, 10; द्र. [र | 1
1 74; 2 3 +. 64 47.
स्तोम्यः 1. 22 8; प्या. 6.8. | व
स्तोम्यं ए. 24, 19; -९. 96, 6. । स |
स्तोम्या ए. 67, 70. | (4 ध, |
स्तोम्याः 1. 224, 74. । व
सतोषत् ए. 26, 5; ए. 81, >
स्तोषं 1. 1847, 1,
स्तोषाणि 2. 88, 3 | 9.
स्तोषाम 1. 53, ग"; ए. 55, 4; पा. ० 2. |
सतोपि र. 22, 4.
स्तोत् ४11 42, 6
स्तोनाः *1. 66,
स्तोलाभिः प्रा. 44, 9. १
यः 1. 164, 76; ४. 3०, 9; णा. 55 8.1 ५
स्रियं 1४. 3०, 8; प्रा. 104, 24; र. 34 पा. 11
स्त्रियाः ४11. 35, 7;
स्री ए. 61, 6; एणा. 33, 9
स्त्रीभिः -९. 24, 10.
स्ेणांनि उ. 95, 15
# ह ।
४ ` ॥ स्य--स्यृणा,
73; पा. 45; 4; णा, 309; >.9;
18, 6 ; 30, 12; 36, 10; 67 2; 64 2.
स्य 1. 29, 4; ४. 5; 2; 67, 7; (ा. 1037;
ष्या. 55, 4; 67, 5; २. 94 प; 979.
स्थः 1. 10, 2; 47, 7; 108, 877; [ा. 54 76;
ए. 72; 7; पा, 10, 7; 5; 38, 7; 3.
19; 2; -&. 106; 2,
स्थः 1. 108, 3 ; 157, 6; [, 3०, 6; ४. 72, 2;
1. 69, 6; भा. 74; 4; . >. 4, 6
स्यनं [. 105, 5; ४, 87, 6; "1. 3० 4; >.
69, 8; ड. 65, 6.
स्यन् 1 59, 3; पा. 18, 15; ॐ. 94 00
97; 9.
स्थविरः 1. 77, 5; र, 100; 5.
स्थविरं 1. 54; 8; 19. 18, 70; 2096; +. 5४.
स्वविरस्य 111. 46, 2; ए. 18, 12; 37; 5; 47, 8;
11.94, 4; 190 5
स्यविय 1. 187, 4.
स्यविराय ए, 32, 1.
स्यविरासः "11.64;
स्थविरेभिः ए. 71, 71; एवा. 24, 4.
स्थऽश॒; 11. 38, 8.
स्याः 1. 80, 74; 11. 24; 4; "1. 24 9; +.
35; 9; 88, 4.
स्थाः 1४. 30, 74. | |
स्याः ऽरप्मानः ए. 87, 5.
स्थाणुं +. 4०, 13.
स्यात् 1.68, 1; 1. 320; 15; न. 156;
26; 9; : ४..52:.9.; "11. -847, 6.
स्वात् ४५. 53; 8; ४1. 34; 5; *. 26, 7.
स्यातः 1. 33; 5; ए. 41, 3; 496; णा
24; 17; 43512; 46; य
स्यातं 2. 7106, 2.
स्यातां 1117. 45, 2. |
स्थातां 1. 70, 2. |
स्यातांरः ४. 84, 6.
स्वातारा -. ग87, 3.
स्थातााऽङ्व >. 59, 7.
स्थातुः 1. 58, 5; 68, 7; 7०, 4; 159, 3; 8
37, 5; 1१. 556; णा. 5०27; ४. 6०2
+. 62, 8,
स्थातृन् 1. 72 6.
स्थात 1. 164; 15.
स्थाथः 1४५. 46, 4; णा. 5 28.
स्यानं ४. 76, 4; भा. 40, 7.
स्थानानि ए. 7०, 3; णा. 59,
स्यापयंति ॐ. 1029 70,
1 शि,
स्थापयसे >. 120, ¢
स्यां [3. 85; ए,
स्यां 11. 27; 77; 28, ग7; 297.
स्याम॑ 1. 139, 4.
स्याविंसीः 12. 86, 4.
स्थिरः 1. 107, 4; 1. 41
५ 28.
स्विरऽध॑न्वने 91. 46; 7.
स्विरऽपीतं 2. 77, 5.
स्विर 1. 37, 9; 39 3; 64 15; 77, 3; 7.
95; 4; ४. 30, 4; "711. 32; 24; ~. 63;
20; 114; 2; 120, 4; 144; 2.
स्थिरस्य ए. 52, 2.
स्थि 1. 39, 2; 72, 4; 767, 7; . 33, 14;
१4, 51.0.72; 114 400; 1.10
1; 12.
स्थिणऽइव उ. 116, 6.
स्थिणः 1. 38, 12; भा. 66, 2.
स्थिराणि 1, 7124, 4; *(ा, 74; 9; =. 89, 6.
स्थिय [11. ॐ०, 2; भ 24 8; >. 96,
स्थिरे +. 45; 47,
0; १117. 35, 9;
#
स्थिविऽ्भ्यः र. 68, 3. `
स्थिवि ऽमे: 2. 20; 75.
स्युः 1. 24 7; 767, 9; प्र.
[१
खगन. -------[--------- 59, ८ प. 45, 2.
स्यणां 2. 18, 14. |
स्युरं ४1. 29, 20; णा. 1, 34; 4:
4 29; 54, 8; द. 156, 3.
स्थ्रयूपऽ्वत् "1. 23; 24.
19; 27, व;
५५. ५ पमः भ्र पकक
स्थूरयोः ४. 209, 2.
स्वूरस्य 1४. 21, 4.
स्वूरि ९. 131, 3
स्थेयाम ४1. 40,8; प्र, 95 5; $. 24, 36.
क ।
स्नातः 1. 104, 3
स्राती ४. 80, 5.
स्रात्वाः इ. 71, 7
स्रीहितीपषु 1. 74, 2.
सनां वश 28, 2 ; भा. 0:41. 90.170 19.
सुऽभिः ४.०7; 87, 4; ए. 88, 5; प्रा
45; 18 ; 1. 10, 8.
सेहय॑त् 1. 97, 54.
सेर्हितीः 111. 96, 15.
स्यो; 7प्र, 2४, 4. |
स्पट् ४. 59, 7; गा. 67, 15; श. 35, 8
स्यंदने 111. 55, 79.
स्परत् 1. 161, 5.
स्परमे \+1{11. 20, 8.
स्परिति स्यः 12. 70, 10.
8;
५1. 43; पा. 85, 2; (द. ५4, 1.
स्पधमानाः 1. 33, 5.
स्यधमाने इति ए. 93, 5.
स्मशेयसख 2. 112, 3.
कलौ सति भ
1 25, 13; 338; 1१.45; ए. 67, 5;
॥.)
` | =. 49 0; 55 6.
। स्माया. 7
स्ः
स्वृणाऽइव -- स्पुरयाय्याशि. । ४
ध स्याह 14; श. 81, 3; 9. 45, 49; |
, 14 (५५ | स्पृहयाय्यः ए. 1514.
स्पृहयाय्य॑स्य ए. 97, 75.
स्पृहयाय्यांणि ४१7. 7, 3. .
थु स
स्माहैष्वीर् ए. 54, 24. | | ,
स्याहं ऽवीरः ए. 9, >. |
स्पाहेस्यं ए. 24; 8. ` |
स्माहा 1. 145, 6; 735, 2; 1. 2, 9; गप्र |
१.00 | |
स्माहाः (1 102, 5; श. 2, 6; |
26, 7; 68, ‰.
स्मारैणिं ए. 59, 6.
स्पाहाभिः एना. 58, 5; 84, 5. ` = "न |
स्पा 11. 1, 2; प्रा. 56, 2 9
स्पाश॒यश्च 1. 176, 3. | |
स्ृधेन् ४. 67, 9. | | |
स्पूथेसे ए. 64, 4.
स्पृणवाम् ४. 44, 10, | ह ।
स्पृगुहि ~. 87, 4. | क
स्थः 1. 8, 3; 74 5; 9 3; आ. पय, 9; |
४" 447; 556; णा. 56; 66; 29; ` क
292 2; 9; 4९ 18; 49, 15; णा. 74, 13; | ४
92० 32; 99, 5; 6; 13. 7, 5; 209 ठ; स, क
186; 9; 700; 72; 712; 4; 164, 2. 3
स्पुधानं [1. 91.44 | ग ४ |
(०.2 ई
स्पृधां 1. 1710; 10 र 1/4; 9 | व |
धि *ाा. 82, 9. | ५
पि४.3ॐ9; एना. 66, 4.
स्पृश् 1४. 315; 42; णा. 2 7; प्रा. 96,
17; ~. 807, 2.
(०2 1 0
स्मृतं >. 70, 5. |
स्पृशंति 1. 62; 77. | | |
स्पृशंति 1 36, 3. 1
सून 2
स्पृशामि २. 125; 7.
स्यृहयत््वरोः [[. 20, 5 1...
स्पृहयति ए. 2, 28. = ` 1
४ > # स्पृहयेत् -- स्यंदय्ये.
।
५
॥
स्पृहयेत् 7. 4, 9
स्फतैः ४1. 67, 4
स्फातिं 1. 188, 9
स्फिग्यं पा. 4.8.
स्यिग्यां [ाा. 32, 7,
स्फिर +. 7, 22.
स्फुरन् ए. 67; 71.
स्फूनेयत् >, 87, 77.
स्म १ 12 9.916.120. 28. 6; 20;
द 42 2; 7 4; 192, 3; 5; 1०4 5;
27; 6; 9; 248, 5; 129, 2; 3; 732; #;
1600, 4/5; 12411 2; 186.1.;8: 11.
12, 5; 372; [1. 3० 4; 62, 7; प्र. ८)
10; 10 7; 76, 77; 29 2; 37 7-9; 38,
464 89.42, 3; 4853; ४.44; 5; 4;
9; 3-5; 223 4; 49; 4; 5208; 9; 55; 5;
54 6; 56, 7; ४1. 22; 12, 5; 5, 9;
0, 14; 25; 7; 44, 189; 46, 10; 22; 65
4; 666; ा. 3, 4; 5, 75; 9.9; ॐ
15; 56, 22; 89, 5; 88, 6; णा, 7, 21;
74; 210; 246; 25; 15; 97, 4; 14;
44 77; 6५, 10; 86, 3; 92, 26; द. 20, 2;
87, 6 9 2. . ~ 12 5 | 24 24 > 20; 8 333
1;. 86, 16; 80, 22; 95 5"; 8; 96, 20;
1029 2; 4; 6; 744 2; 136, 7; -‡8, 3
सः. ०,6.
01.
स्मत् 1. 57, 15; 100 13; 186,6; 8; व 4.0;
भ. 41, ठ; 19; 8, 8; एवा. 3, 5; पा,
78; 4; 20, 78; 26, 19; ङ. 67, 8
रूद् 2, 494. /
दशदश १11. 83.
सत्ऽ्भीः 1. 73, 6.
स्म्ऽदिष्टयः ए. 18, व
दिष्टि रा. 4.5 = ` `
न् ए. 63, 9.
स्मत्ऽपुरधिः ए. 34: 6.
सदभीश इतिं स्मत्ऽसंभीशू ए. 25, 24.
सदिष्टी इति स्मत्ऽदिष्टी 2. 62, 10.
स्दूतिऽसाचः णा, 28, 2,
सयते 1. 92, 6.
दि
स्मर्यत 1. 168, 8.
॥ १
स्यमानः 1. 4, 6.
स्यमानाभिः 1. 79, 2.
समर्यमानासः [प्. 58, $.
स्येते इति {1.4 6.
५५ ककण ननि
स्यंथः >. 106, 9.
स्मरेथां ए. 2104, 7.
स्मसि 1. 29, 1; 37; 25; प. 4, 6; प्रा. 18,
24; 46; 2; (क. 9, 2. |
ससि 1. 27; 5; 1. 47, 16; णा. 5459; एणा.
8, 9; उ 7; क, 8; 48, 8; 66. 13;
02; 3.
स्य॒ 1४. 16, 4; ४.85, 8; ण, 46, ठ; द.
9% 9 > 97, 78.
स्यः 1. 167, 4; 1. $, 3; 4; 35, 7; 36,
38, ए; [प 38, 7; 4० 4; 45 7; ४ 30 1
56, ‰; ४, 2, 5०, 13; ४1. 8, 2; 22;
3 4.2; 4-032-86 3
24, 19; 27; 72; 64» ¢; +. 3 10; 38; 2;
40; 602 13; 84; 4; 87, 4; 89, ए; 96,
15; 97, 46; 98, 2; 108, 5; ऋ. 86, 22;
024, 12, 110, 23:
स्यतं 11.74 ;2.71;9;
स्मतां 11. 4०, 4. |
स्यर्तिं >. 67, 20 |
स्यतु 1. 42 70; 7. ॐ9.
सश्च ¬+. 2०, ग, प | चि
४ 0
स्य॑ति 1. 85, 5.
स्यद्ते 12. 80, $
स्मद्तां *. 83, 8 0
ध
सवण ० ----------------- र. 6, 28.
स्यदः 1. 22, >
स्यदर ९. 42, (
स्यद्रा 1. 180, 9.
स्याः ४. ;2, 8.
स्यद्रासः ४. 52, 3; 80, 2.
स्यत्राः ४. 53, ;.
स्परखं 1. 101, 10.
स्यस्सेति स्स 1. 4, 9
स्या 1. 88, 6; 04 5; 1 19 9; 765; 6 ; -#8,
1; 181, 8; ष. 52, 1 ५ १... 61,
7; 65: 2; श्व. 7, 4; 80, 2; 95, 4;
४1. 8, 7; 26, 28; 46, 3३.
स्याः $111. 44, 23.
स्याः {. 174, 0; [ए४. 16, 78; ए. 33; 5; णा.
7, 85 9; =. 11, 9; 69, 6.
। स्यात् 1. 1;, 6; आ. 7, 23; भवा. 34, 21;
१11. 223; 19, 26.
स्यात् 1. 38; 4; 767, 10; 782. 8 ; 1. 39
¢; 02, 3; ४1. 68, 6; 5; णा, 14; 7;
~, 31, 4; 215, 0.
स्यातं ४. 8;, 9.
स्यातन 1. 28, 4.
स्थातं 1. 120, 7; 7. 38, 9.
स्यातां 1. 1०4 3; [ष 41, 6.
स्थां ५. 5०, 9; णा. 14 2; 19; 25; 44; 22.
स्या 1. 116, 25; 7. 15 7; ण्. 5० 9; 5,
४4; ४.2, 25; भा. +, 8, ४
स्याम॑ 1. 46; 11. 77, 1; 143... 22; 38,
१ । 5 53.74; 15; 5; 5; प. ५. 20,
(8449 66.15; 9, 4; प्या, 10; 9;
५ 35; 44 ०4; 65, ०; द, 6 ०4; 98,
| | 5; 2. 38, 2; 66, 12; 126; 4. ०
(1 ध स्याम 1. 24; 15; 51, 15; 73, 8; 94 ‡ॐ ; 5; |
(0 98, 73 105, 19; 227, 158 15०3; ग64,
46; 75 5; 180 9; 185: 4; (आ. > 7
9; 70 2; 85 8; ए, 7५, 73; 26, 8; 33;
9; 4; 12; 2 5; 71, 2; 6 ; भ. द
20; 45; 44; 7; 43; य, 4; 29, 0; व
49; 34 24; 25; ॐ, 4; 4, 3; 49;
5; 46, 2; 52, 7; 54, 2; 56, ०4; 25; 6०
1; 66, 9; 87; 7; 92; 4; भा 432 30; .
48; 21; 52: | 7; [6.4 35; 3; 86, 38 > 89, ` ४
7; 95, 5; द, 42, 14; 29, 2; 51, 7; 55 ।
14; 36, 12; 64, 17; 132 2; 148, 3. | 2
स्यालात् 1. 709, 2 | = ¦
॥॥
स्युः पा. 44, 25. ॥ ; , ^
स्युः ४1. 28, 7. | ~ ॐ = |
सुपितिस्ुः 7.49; ए, 795 |
स्युरिति स्युः 1, 24 7; 1 23; 13; *, 65, 70; क
क, 20, 8; 89, 15. | 9
स्मूतं 1. 31, 15, | 1
स्युम॑ऽडइव 117. 61, 4. ` क
स्मूनऽगभस्तिः 1. 142, 15. | (+ ॥
स्यूम ऽगभलिं ए. 71, 3. त
स्पूमञ्गृभे ए. 36, 2. | | क
स्यूमना 1. 113, 10. | 6
स्ूमन्यू इतिं 1 74 5. ` 4
स्पूमऽरडमये 1. 112, 16.
स्यूम॑ऽरकमो ए. 52, 2, |
स्योन॒ऽकृत् 1. 37, 15. ॥ ग
स्योनं 2. 70, 8; 85, 20; ८, क
स्मोन्शीः 1 1 494.
= स्योना 1. 22, 5; इ, 85, 44. 1
स्योनात् 1. 52, 10. 1
` स्योनान् 00.
योना,
| स्योने ४1. 16, 42. 1
` सक्लीः ए. 18, 10. |
५ , ' क्ष, ॥
9.
तषु ४. 5
घज: प. 56, 3. |
घनं 1१. 38, 6; पा. 47, 15.
घ्व 111. 97, 3; 1९. 88; 39, 2; 55
56; 43 67; 7; 12; 62,9; 23; 85; 7;
97, 19; 27; 48 ; 707; 2.
सवतः 1. 015; 7; 190, 7; 1. 46, 4; ण्या, 18,
24; 67, 8; ९. 49, 9; 108, 4
स्वयं 111. 7, ¢
सर्वेति ए. 49, 2.
खवंति 1४, 58, 6; ॐ. 1& 5.
सघर्वती; 1. 22, 14; 144; 9; इ. 104; 8.
खवंतु >. 9 4.
सवित्तवे [ष्. 3, 12; 19, 8.
छविंतवे प्रा. 47, $,
वेत् 1. 129, 6"
सेम ४1, 71, 6.
घाम 1. 17, 79.
स्ामात् प्रा. 48, 5.
चिध॑ः 1. 36, 7; 48, 8; 7. 9 4; ०9 7;
ए. 87, 6; णा. 78, 7-9; 799; 94
45. [९ 20; १; 64, 28; . 66, 22; र, 25
7; 1263 5
चिधः 1. 729; 1; {+९. 41, 8. ॑
धिधत् 9१11. 34 ग.
विषं ए, 28, 19.
दुक् ए. 71, 5; पा. 23, 22.
स॒च॑ः 1, 144; 7; भ्र. 2, 2; 41, 12; भा.
60, 2‡ =. 778, 2.
सचा 1. 842 18; ४.14 3; ॐ. 107, 18; 118 ॐ
सुचाऽईव . 110, 6; 162, 17.
सुचिऽदव 2. 97, गट.
सतयः ४1. 24 4; 12. 78, 2.
स्रुता ४11. 97, 7,
तिः 1. 46, 71, .
1. 23.14; 320;
तषु -- खःऽदूश.
सुवाऽड्व 2. 96, 9.
सुषेणं 1. 16, 243 122; 6,
प्रथत 1. 52 9
सरणि प. 54 7.
घर्तं ए. 32, 21.
सेवर्येतः +. 78, $.
स्रोतः 1. 95, 10.
घोत॑सा 1. 57, 71.
स्रो्याः >. 7104; 8.
स्रोद्याभिः 111. 33, 9.
ख ऽरदुरव्यैः 1. 121, 6; 13, 2.
स्व ऽशतवः ए. 41, 9.
सखः 1. 5 ¢; ४. 75, 9; ४11. 86, 6; णा.
१९.17; 2..14,.2.
स्व॑ः 1. 5०, 5; 52 9; 66, 5;
0०9, 72, &:
53; 77; 2; 105 3; 112, 5; 137; 3; 148;
ए; 168; 2; 11. 2; 4; 8;
10 4.42
4; 35 6; 11. 27; 54; 8; 67; 4; 1१.
3 11; 10 3; 716, 43 24;
422 2; 4
` 2; ४. 44; 2; 45; 7; 54; 15; 66, 2; 89,
1; १1. 29, 3; 50, 2;
74 7; 24 3;
ए. 10, 2; 34; 19; 81, 4; 88, 2; 96,
ॐ क
चै 9
90.4:.92..14;
971, 6; 98, 8; ग73; 9;
+ ~> 06 ०
~
१1124741. 1-404-49;
76; 4; 98, 3; 9.९ 4 2; 7 4; 4.8;
; 86; 14; 9०,
ह. 20, 2; 49
9; 67 14; 65 7; 14; 66; 4; 9;
88, 2; 124 6; 1369 7; 7543 2; 790, 3
खःऽगे ह. 95, 18.
ख॑ःऽचल्लाः 12. 97, 46.
ख॑¦ऽचनाः 1. 84, 5.
खःऽजित् 1९. 20, 2; 78, 4
खःऽजिते ९. 167, 2.
सखःऽनिते 11. 27, 7.
खःऽजेषे 1. 132, 2.
खःऽदक् ए]. 58, 2.
खः दशः 1. 44 9;
37, 2; 85 2; 2. 759;
55, 5; 7. 24 4; प्या
7.4 `
ण
सातो वु
खःऽदुशा--खदाऽवन्.
ख॑ःऽसाता 1. 1376; 1४. 16,9; ण, 14, 8; | |
35 45 1. 88, 2; इ. 99, 3. ` ५
सःऽसां 1. 67, 3; 07; फ; भ. 45; 17; स. $,
6; 42, 5. | | |
खऽ छतं 1. 54; 3; ए. 35, 4. (|
सखऽठंवया ४. 48, 7.
सखऽछंवेभिः 1. 165, 5.
सख॑:ऽनरं 1]. 1.1.61 + १,११.4.
ॐ 72; ६2, 2 > 10; £; 1९. 70, 6 त 96
6.5, 4. |
स्व॑ःऽनरात् 1४. 21, 3.
स्व॑ःऽनरे ४. 18, 4; पा, 0, 39; 65; 2;
102; 14.
सवःऽपतिः ए, 44 28. खभ्गुती 1, 29, 70. ` ध
स्वःऽपरतिं 9; ए सखऽगूतैः 1. 140, 13; ए. 68, 4; र. 95; 7. |
स्वःपती इति सखऽगोपा ह. 37, 10. | ५
सजश्वं 2, 7107, 10.
स्वजते २, 43; 7.
[की ह ।
स्व॑ः ऽमीट्टटस्य 1. 169, 2.
खः ऽमीव्ठहे 1. 56, 5; 63, 6; प्र. 16, 15.
नीर सऽजन्मना पा. 7, 72. |
स्व॑ःऽमीठ्टेषु 1. 150, 8; ए. 68, 5. खऽजाः 1. 168, 2. ५ न
स्ःऽयवंः [1]. 3०, 20. ति त + 9 ` |
खञ्जं [. 107, 2. ` [ | 1
सत ४ खजामहे र. 132, 2. | |
बःऽवति >. 63, 15. छ ध ५ , ।
युत्त 8 > सञऽ्जेन्य ४. 03 5° ` ह ध
सखःऽवती {. 68, 7; ए. 34 व; इ. 7, 3. | [वि + 1
1 ४ $ सख ऽ तवः 1. 159, 2. ॐ ९५. |
पऽवक्तीः 1. 10, 8; 279, 8; प्र. 2 27; प्रा. । ० 1
सखऽतवः ४1. 22; 6. ` | (त
40, 109; एद, - -- 7 ॥ । व
वी सखऽतवसः 1. ; 85, 7; 166, 2; 2;
:ऽवतीं 1. 136, 3. ४ वि 4 2; ०5 7; 1606, 2; 168, 2;
स्वऽ वसः *11. 59, 7.
कण के कि
सखऽत्रवसे ४1. 66, 9; [द्. 77, 4.
स ऽ तवान् 1४. 2, 6 ; 209, 6.
स्वद् {11. 74 ‡.
स्रदयः ४11. 5, 36. | ५
सखर्देति णा. 2, 2; प्रा. 5० 5; 2. 62, 5.
| स्वदैतु क. 719, 10. र १
3; 109, 8.
च्खःऽविद; [र. 21, 1; 9, 39; गला, 10; 16,
"4.9; 1914189 3. 46414.
ध विदं 1. >2, 7 31. 22;.-3 1.35; 26; ।
पात | वी म
+ #9. 84, 5; 106; 4; ह, 56; 6; 1007; 4. स्वदय ९, 103 2 ॑ ५ प । £ . ५ त | . |
सःऽविदां ए. 39, 4; ए. 67, 3
स्वःऽविदा १.8, 7 क
वि |
खद्य॑त 13. 105 7.
॥
| स्वर्दख दस्व पा. 54 22; 0 74,
स्वदितं {र. 67, 37.
खधयां 1. 64, 4; 108, 12; 154; 4; 164 38
वा. 38; 1. 47; 7, 5; 35 0; ष.
13; 5; 26; 4; 45 6; 58, 4; ४. 3 4;
पा. 4, 3; 78, 4; 1. 68 4; 78;
ह, 143; 0; 153; 74; 4; 97 9;
` 88, 7; 144 8; 129; 2
स्वधयोः 1. 86, 10, ` न
स्वऽधरमेन् 111. 27, 2.
स्वधा 1. 165, 6; 176; 9; ४. 347; 1. 2, 8
प्रा. 32, 6; 7. 173, 10; ड. 129, 5.
स्वधाः 1. 144 2; प्र. 32, 19; 1९. 103; 5;
ॐ. 307; 5.
स्वधाऽपते ५1, 44; 1.
| ` स्वधाभिः 1. 5; 5; 95०4; 15, 3; 164, 3०;
3 1809, 6; 11, 26, 8 ; ए. 6०, 4; णा. 4
18; 104; 9 ; णा. 10, 4; 6; 1. 92 4;
05.73 `. 1; 13: 16, 5; 707, 8.
सधां 1. 6, 4; 33, 77; 88, 6; 165 5; 768,
५; 1. 350; 1. 57, ग; 1४. 35; 6; 52;
6; पा. 8, 3; 56, 13; षा. 10; 88, 5.
खधांऽवः 1. 144; 7. ॥ |
खधाऽवः 1. 36, 12; 659 6; "47; 2; 1. ०0,
3; 35; 3; 48; 1४. 106; 20 4; छ,
3, 5; णा. 10; 4; 07, 3;.58, ग ए. 86
~“ 4.8; 58; 5; ब ,.8.;83,.5; 42;
सधाऽव॑तः ए. 44, 40.
खथधाऽवन् ४. 5, 2; ४111. 49; 5. १४.२
सखधाऽ्वतः १11. 37; 2" ॑
खधार्वरी इति सखधाभ्वरी ए. 57, 7.
खधाऽवन् 1. 95; 72; 4; 174; 6; 1. 20, 6;
४ 1४. 5;.2>.9 3; (ा. 20, ए; >. 31; 8;
५.9 0 |
` ` सखधाभ्वरं ए. 32.70; ए. 46
क खऽधिंतिः 1. 162 18; 20; 1. 86; प्य ष.
1 ॐ २०; पमा. 3 9; पा, 7० 9; 12
स्वदितं -- खऽयतासः.
खऽ्धितो 1. 162, 9.
सखऽ्थनवानां ए. 32, 20.
स्नः 1. 743, 5; ए, 84, 5; क. 4
1; 40 6; +. 75; 2.
स्वनत्ऽर्यः ४111. 7, 32.
खनयत् >“ ॐ 6.
सखनरयेन 1. 146; 3.
स्वनाः ¬. 3, 5.
सनात् 1. 38, 10; 5४ 10; 94 71;
4; 1. 29; 5; क. 20; 5.
सनिं ए. 46, 14; ॐ. 66, 9.
स्वने ४. 60, 2.
स्वप ४11. 55; 2.
सखप॑ःऽतमः 1४५. 1,
स्वपःऽ तमं 1. 61, 6.
खऽप॑तिः र. 207, 8; 37; 4; 44 1.
सखपन् ४. 44; 73.
स्वतः >. 164: 3.
स्व ऽपूभिंः ४11. 56, 3.
खष्रः ए. 86, 6.
सप्र ऽनंशनः ९. 86, 27.
खप्॑स्यं [. 120; 12.
स्वभ्नाय ए. 2 18.
समरे 11, 28, 10.
स्वभ्रैन 71. 15; 9; ‡. 162, 6.
खन्दीऽईव पा. 39, 9.
3; 5
4.
सख ऽभानवः 1. 37; 2; 82, 2; ४. 53, 4
खऽभानवः ४.11, 20, 4.
सख भानवे ४. 54; 7; ४1. 48, 1 2.
खभानो इतिं खऽभानो ए. 64 4.
स्वभिषिऽसुस्रः ४1. 40, 8.
खभूतिऽसोजाः 1. 52; 12.
खं 1. 46, 9; 58, 2; {5 5; 128; 7; 1.7,
91. 20; 124;
37, 710; ४. 58; 7; 59
28, 2; 4, ग; पा. 28, 2; 56
क. 3;
24 ; 82,
५
॥
५
ना
पवमान)
वा
४
६४९
स्दयशःऽतर ५.
स्लयशःऽभिः 1. 95; 9;
स्वयं 1. 87, 3; 122, 9; 729, 6; 8
158, 5;
111... 400 1
12, 5; 442 8; 46, 7; 55; 2; 872; फ.
"26, "1; 11.47;
00.19 1.441.440 40
[ "भु क
९) { र # 3
1
+. 8
१2.164;
12 3 9 5
90) 6; 81, 9; 6; 979 5;
खयंऽजाः ४५11. 49, 2,
स्वयं ऽभूः +. 83; 4.
स्भ्यशुः ५. 22,
खयश्ःऽतरः 111. 45; 5; ४, 74, 2,
&2+ 2; ४ {[{. 66, 71.
इ, 49, 17.
129, 8.
खऽयशसः 1. 136, 7; ४11. 85; 3
13; +
खे ऽ यशसं 1. 95, 2; 13. 98, 6; +. 92 24;
105; 9.
75; 9
; 73 5.
श्व ऽ यशसे 1, 2129, 3; ४. 48, 1.
सख ऽ यशाः 1. 95; 5; #¶11. 30, 4; ॐ. 92, 9.
स्वया ५. ;8, 5; गा. 3 9; 86, 2.
स्व ऽयावन् ४111. 25; 12
स्व ऽगुः 11. 4,
स ऽयुक्तः 1. 168, 4.
स्वयुंक्तिऽभिः 1. 5०, 9; 779, 4.
स्वयुक्ऽभिः >. 67, 8; 89: 7.
स्लयुग्वऽभिः
{~
1. 45 5.
त
स्व ऽयुजः ‡. 78, 2.
सर 1, 210, 4; धा. 13, 27; [8 97, 3.
स्वरया 1. 18, 1.
स्वरति
स्वरति
1 हि । क
%
ए. 6,
1. 15, 5; ए. 54 2; 14; प. 352.
1२. 85, 3
स्वरत 911. 13, 28
स्वरवः 117. 8, 6; 9; 2; प्र. 52. `
स्वऽराजः 1. 181, 2; 1. 28, ए; आ. 46; 7;
खऽरा्यं 1. 80, 1-16 ; 84, 10-72; (7. 8, 5;
ए, 822; ए. 95; प्य
खं ऽरान्य ४. 66, 6.
खश्गादट् 1.67, 9; 1. 455; पा. 82, 2;
५. 46, 28; 5. 15; 74.
सति ४11. 69, 9.
सखरित्तारः 1. 166, 77. |
स्वपतिं खः 1. 14; 4; 46, 3; 5० 25; 83,
4 120; 4139. 24, 3; 7. 3,
19; 1. 44 4; 66.49 "56, 8
72, 15; 89, 4; 13. 99; 76, 2; >
24; 36; 7; 68, 9; 107, 8; 797, 5; 76;
1; 789. |
खरीर्णा उ, 68, ¢. न „५
खरः [प्र. 6, 3; शा. 45, 2
स्वर 1. 92 5. | क
सखरूणां ए. 35; ¢. । न |
स्वरे १111. 724. ,
णं {. 62, 4.
स्वऽरोचिः 111. 38, 4.
सख ऽगोचिषः ए. 87, 5. ४
स्रौ 1. 762, -9. |
इतिं सुऽ 1. 95; 1,
स्वैः 1. 62, 4. न -
सथं 1, 32, 2; 67, 6
| 3० 8; #{. 104; 4 ; क, 117; 2.
सखऽवसुः ५. 442 7
सख ऽ्वात् 1. 35; 20; 778, ८; 1. 5412; |
न; 2; 13 585 99.
स्वऽविंद्युतः ए. 87, 3.
स्ववुकिऽभिः ¬, 27; 1.
स्व वुं >. 38, 5. |
खण्वृ्टिं 1. ८29 5; 4. त
खभ्शोचिः 1, 66, 6. =
सखश्चऽयुः १9111. 45.
स्वसंरं 1. 68; 79
121..4 14.10.454
स्वसरे 1 र. 94, 2.
ससरेष {1. 2, 2; 34; 8; पा. 88, 1.
खसा. 123, 5; 12498; 780 2; 297,6; त
| 56; 3246; णा. ग्ला, वड; 10 पा,
खसारः 1. 62, 10; 47) 1; 164, 3; 797, 74;
र. + 5; 7. 29, 13; ४. 6 8;. 229;
ए. 66, 165; भा, 59, 4; 1. क, 7; 6
ग; 75; 82 3; 86, 36; 89 4; 974;
६ ८ १ । 93; 7; 98, 6; +. 220, 9. | |
स्वसारः 111. 35, 9. |
० ससार 1. 92; 77; इ. 3; 3; 19 12; 708, 9;
५ 0 2. >
खसांय 1. 178, 2; 785, 5; 7. 54 ¢.
= चार 14.70;
स्वसुः 1४. 52, 7; पा. 55 4; 5; ष्वा. 7
> १.1
स्व ऽसृत् 1. 87, 4. ८५
स्व ऽसतं; 1. 64, 77.
स्वसु ऽत्वं +. 108, 70.
स्वसुंऽभिः 1. 72, 3; >. 94 4
ध. खसु १. 61,9; 2.55
खसृणां 1. 12499; (आ. 13; प्व.
स्व ऽसेतवः ए. 49, 10.
खऽसेतुः ए. 67; 716.
सस्तय 1. 1, 9; 22; 12; 32; 7; 895; 97, 8
1. 2, 6; 32; 8; 1. 10, 8; 3०, 18
पर. 31५ 7; 39, 4; ४. 05; 28, 2; 50.
भः द 9 19 646; - ए, 15 18
501; 6.१1 -392; "111. 18, 20
9 1. 64; 30; 1555; 96, 4; र.
4 36 14; 65 54; 05 1९; 06.114:
0 11. (८
खस्तिः 1. 89, 64; 116, 6; 8
9; 1. 96; "55; 355
ॐ ऊ
0 कि ।
1147; 159 ६ 174;
38, 9; [1
पु 5 व क
133.14 5
16 ् 429 4 2 19 31 11; 4
सखस्तिऽ्गां प्र. 57, 16; (1. 69, 16
सस्रे -- खादुऽ रातयः.
. .__ ~ --.-----~-~--------~---------------------------------------~- ` ~
स्ििऽदाः +. 17; 5; 116; 2; 152 2.
खस्ििऽभिः 1. 189, 2; प्र. 52, 14; १. 7, 20;
25; ए. 56, 7.
सस्ति 11. 29; 3; प्र, 55; 3; ४. 9, 17; 22,
10; 56, 6; कर. 99, 72. |
सखस्तिऽमत् ४1. 46, 9; 12.84; 2.
स्िऽमतः 1. 90, 5 |
स्वस्ति ऽ वार् ९. 107; ^.
सस्तो 11. 38, 7.
स्वस्सिन् 1. 732, 2“. | |
खस्य 1. 119, 8; [प्र 77, 2; प. 189; पा
107, 9; 44 22.
स्वस्यं ऽइव 11. 4, 4.
सस्या; 1. 79, 2. |
ख्सघ्र 1. 65, 4.
स्ते 1, 124, 8.
खस्नोः 1. 114, 3.
खा {{. 23, 6; ४1. 1,6; क. 22; 4; 53; 5.
खाः 1. 52, 4; 72 5; 1. 37० 2; 35: 8;
पा. 72; 9०35; > 742; 95: 9
स्वात् +. 87, 4; प. 70, 5; +. 2124; 2.
स्वादते [ह . 68, 2.
8 ~
स्वाद॑नं प. 7 6.
साद्व; ए. 2 28.
स्वादिष्ट 1. 187, <.
स्वादिष्ठ 1. 62, 9; 97; 48.
खादिहं 1. 136, 7; पा. 49, 4; 12. 78, 4.
खारिया 1. 53; 2; द. 97. ५ 9
सखादिष्ठा 1. 110, 7; प्र. 19, 5; ग्वा. 864 0
सखादौीयः 1. 114; 6 ; ४1. 24 2८; 124
सवाद् 1. 164 20 ; % $. 68, 17 | |
सादु; ४. 44; 27; 47 7; 2; (21, (1
18. 56, 4:.-85, 8; 97; 4; व्व; 910,
11 1,18.6.
वाद 1
१--००१८८८०५.८०८०५०९०६
ति
खाद् संसदः -- ह. | ----------- ड 5 , ६५ '
स्वादु ऽसेसदः ए. 5, 9.
सखादो इतिं 1. 18, 2 |
खादोः 1. 84 10; प, 6; प्रा. 48, 7; ङ.
7120, 3 ; 746; 5. | ६ ॐ
स्वान्र 1. 69, 2; 7. 3०, 24; 0.1
सान् इ. 29, 6.
खाद्यानः 1. 180, 5,
स्ाद्यानं 11. 21, 6.
स्वाद्वी ४1. 68, 11
खानः 1. 104 1; ए, 10, 5; 25, 8,
सवानासः ४, 2, 10; [101
` . सखानिनः [11 26, 5.
स्लानीत् [1. 4; 6.
सखानेभिः 111. 7, 14
स्वापय 1. 29; 3.
स्वापयामसि \ 11. 55; 7; $.
सापिऽभिः पा. 53, 5.
स्वापी इति मुऽख्ापी ए. 41, %.
स्वाभिः ए. 44, 3. ।
खित् {. 150; 7; 67, 16 ; 22; 2764; 4; 6;
172; 168, 6; 282, (0 (1.19 व
7; 5 4; ऊ, 6; शु, 9; 6; 18, 9. 9
27; 4; 55 2; भवा. 2, 77; 58, 7; 64, क |
8; 95 75 7; 1० ०0} क 0, 5; 5,
0; 34 10; 42, 2; 74; 67; ए; 87, 29;
०2, 5; 86, 20; 88, 28; 89, 14; 777, 8
4 9; 149, 5; 155, 5; 168, 3. 4
1 8; 76; 9, 73; 94, 4; ८8, 9
7; 143; 4; [. 2 4; 71, 89.0.11.
14; 10 2; 298; 42 8; 5, 9; ४.2 (५
8; 4; 7; 16,.76; 5 8; ४. 1.85. 34... | 4.
4; 48, 3; 4.5; पा. १6 4 49 5 ष
४ 2, 1; 365; पा. 27; 799; |
द. 11, 2; इ. 85, 42 7105; 10; 118, 7.
सेद् ४.7, 5; 58; ¢; इ, 1606, 10.
सदस्य 1. 86, 8, 1
खेदाःऽइव >. 754, 5. व १ 1
खेदांजिऽभिः र. 67, 6. 7
खेनं 1. 239, 24; 265, 8; [प्र 90 00111 4.
46; 36, 6; 74, 6; 9९ 5; द. क, `
22; 37; 2. |
सनंऽइव 1. 145, 9.
सेभिः {. 69, 8 ; 100, 2; 139, 2°; प्.3,
स्वापं 1, छ 9; फ. 52; 3.
५ स्वायाः >. 54, 3. क. 67, पा. |
सवायां 1. 7, 5; 2. 185 9, खेषु ४117. 84, 8; इ. 8, 2. |
खाय +. 4,6; ‰.8, 4
खारं 11. 11, ;.
। स्वावृंक् ‰. 12, 3.
| स्वासस्थे इतिं सुऽखासस्ये २. 15, ९.
मु द. 5235144. 5
(१ स्वाहां 1. 13, 22; 142, 12; 7 36, 7;
१.4 10 1 11 1 = 118
11.11.17
63; 54: 2; 4; 24; 3
¢ 1
सैः व. 08, 4; 281. 4; ना. 53, 8; ए, 5 4; .
67.7; #. 18, 15; 9, 3; 5. 04 ध
क
ध
[उ 1. 37 12; 13 3 38 12 | 39; 1; 3 52
05 7; 4-7; 65; 4; 66, 4; 8५,
87; 3; 88, 5; 103; 4; 776, 3;
2; 14; 58,.8; 7४. 2 24; 355; 5 3;
6, 10; ¢ 9; 12 6; 76; 4; 70; ग, ग;
प; 19; 926; 29, 3; 245; 9, 3; 29,
2; 4४ 5 व+ 2;:3;: 43, 6; 1; 56, 2
॥1॥ 6; 4; 29; 9; 37 82; 47, ¶; 59, 4;
64; 4; 74 3; 10; ४1.23; 9; 63;
773; 5; 78, 3; 20 15"; 26; 48, 22;
0, 3:62 3; 63; 2;..64 5; 000 18, ४.
35 73; 37, 2; 68; 4; 5; 095; 7445;
9 =^ 40, 4 ..88,.4; 93, 3.411.301 .12;
1 ॥ = । 0 19 1 71; 27; 9; 18 78, 71: 21; 77;
४ 45: 4; 49: 7; 57; 4; 6795; 75; 5;
| 70, 4; 701; 70111 1.06,.6 591
~ | (6 4 ०0 0, 4.421.112. 22; 71;
27 3; 375; 95; 16; 395; 9; 4;
2--8 ; 71; : 61; 14; 79 9; 80.23; 86. 28;
89, 8 ; 90, 70; 16 ;..104; 8 ; 2153 2. 727}
` 7; 129; 2; 2155; 4
हंसः 1. 65; 5; 1४. 40०, 5; द. 32 3.
हसं 2. 124, 9.
हंसाःऽइव 1. 163; 20; [[. 8, 9; 53; 10.
-हसासैः 11. 34, 5; 7४, 45, 4; णा, 9; 2;
। द. 9, 8. | |
| हंसि 1. 37; 6; 11. 33; 15; 1. 32 3; ४.
83, 9; प्रा. 22, 2; पा. 12, 7; 62, 8
1101. |
हसि 1. 53, 7; 7. 19, 4; प्या. 9०, 5.
हंसेःऽईव इ. 67, 5. |
हंसोऽडव प. 08, 7; पा. 35, 8.
हत 1. 25 9; 2. 701, 15.
हत 2. 76, 4. |
हतः ४. 60, 6
इतः +. 37, 9 1
9 हते 1. 182, 4; एना 63; 1; 85; 2; 104, ए; 1;
(11.111. 0. |
हतं 1. 142, 6*; 184, 2; एवा. 9, 5; 94: 72५;
भै
हतासः ए. 59, 1.
हते 2. 115; 7.
हते इतिं 1. 704: 3. |
हत्नवे 1. 25 2.
हत्वा 1. 100, 18
हत्वाय द. 84, 2; 157, 4.
हत्वी 1. 17; 6; 20, 8; 3० 10; [. 34, 9
हय 1. 39, 3 ।
हयः ४1. 72, 3; पा. 9०, 5.
हथात् 9117. 67, 5.
द्यैः प. 30, 27; ` प्रा. 7 10; इ. 49; 3; 0
हन् 9. 29, 2; ४1. 78; 5; 22; 16; 275;
40, 2; =... 22; 4,
हन् ए. 26, 5; एवा. 9,6; उ. 182, 7.
न॑ः 1, 80, 3; 81, 3; भा. 89, 4.
हनति ४1. 29, 6; "11. 89, 3.
इनत ए. 56, 22.
हन॑वः ए. 60, 13.
हनाम 1. 161, 5. |
हनाव प, 100, 12; ॐ. 83; 6 ; 724; 6.
इनिः पा. 57, 5.
हनिष्यन् 1४. 18, 77.
हनू इतिं 1४. 18, 9; प. 369 2; द. 79, 7; 1525.
हतं २. 52, 2; 129, 9.
हतन {1. 34; 9; ४. 59, $.
हषे 1; 147, 6; 1. 37; 5; 65. ४, 342;
पा. 22.93. 4; [द 61, 29;
172; 71; 776, 7.
इंतवै ए..2, 70; 37, 4; ए. 96, 5; उ, 9:
6 ;.-2623..2- - ~... | ।
हता प्र. 77, 8; 2 0; ४. 445; शा
20.23 - १1.2.32; 46. ` =
हेता 1. 129, 77; - [1.1.72 .24; 27; पा
५8, 6; 12. 88, 42; 97; 43 |
हतार इ. 80, 232;
12.2.28
हरसा 2. 16, ¢; 87, 5; 20; 14; 163 25
दरस 1-९. 10, 6
हरखती 11. 24, 6.
हयभि >. 16, 10; 167, 2.
इरिऽखश्च 11. 32, 5; 36, 9; 44; 2; गप्र 35; 7;
४. 19, 4; 27, 7; 22, 1: 9 24> 4; 229" = ^
1; 37 5; पवा. 48, 10; 9०५; इ.
104; 3; ॐ; 128, 5. 1 ग
हरिऽखश्चः 177. 44 4; पा, 66, 4.
हरिऽसरं 1. 36, 4; एना. 47, 10; 59, १.
इरिऽश्श्चस्य 117. 0 0 1
सिञ्खश्वाय 111. 52, 7; पा. 255; 5, 7; 10.
हरिऽस्श्रेन 11. 10, 3.
हरिः 1. 95 7; 7. 44 3; पा. 107; र.
०6; ॐ3;9; 54; 9; 76; 8.6; 193;
27, 6; 33; 4; 34 4; 37, 2; 38,6; 497;
57; 25 652 14; 25; 67, 4; 68, 2; 69 3;
; 70 8; 77; 1; 74 5; 06, 2; 86, 8;
ठक 7; 866; ग्ण उ; 33; 42; 44; 45;
92 7; 95; 7; 9537; 2; 96, 24; 97; 6
9; 28; छा; 75; 76; 7104; 2; 4; 166; १३;
7100, 20; 912; अ; : 2. 29, 6; 96.39.
हरिऽकेश॒ 2. 37, 9; 96, 5. ध
हरिऽकेश॒ः +. 96, 8; 159, 1. ` | 1
इर्ञकिञ्ं 111. 2, 14.
दरिऽचंद्रः 1९. 66, 26. ` (६
हरिऽजात् +. 66, 5.
हरिणस्य 1. 163, 7. 2:
हरिणी इति 1.12 1 069
इरिणीषु 02; 1* व त 4
हरिणोऽइव ४. 18, 2 क ध
हरिण्या 1. 171, 1.
१
हनोः 111. $, 10.
हत्वासः 111. 50, 15.
29, 4; 32; 1; इ, 99, 6.
हन्याम ¶ 111. 21, 12.
हम्बां ऽइव 1. 168, 5.
इन्बोँः 1. 52, 6.
इयः ४, 6, 1.
116. 1.
हयाः {5 , 107; 25
# ह|
#
हसथः 1. 16, 1; 101, 10; 164, 4४4; 1. 45;
5०, 2; 53 4; 1४.16, 7; 46; 3; +. 37;
५3 40; 3; 44; 19; -47; 38; भवा 24; 3;
28, 1; *{11.1, 24; 6; 42; 335; 14; 42; 4;
46; 7; 49, 8.; 62; 4; 69, 5; [~ 78, 2;
9,.:८; 96, 2; 106; अ; ` 6,54.7
06; 3; 4 |
रितिः 1.4, 2; 50.85.
व
॥
हशि 111. 44, 7; 4; 12. 5 10,
हरिता >. 22; 4; 96, 3. | |
हषं ए. 47, 79; 12, 107; 8.
हरितिन प्रा. 103; 4. |
इितिभिः र. 94; 2.
हस्तिः 111. 44, 3.
हरित्वता -९..1219; 3.
हस्ट्िवः >. 94; 12.
| इरिऽधायसं 111. 44, 3.
` हरिऽ्ाः. र. ५6, 8
| रिऽ प्रिय 111, 47, 8
हरिऽभिः 1. 76, 4; 52५ 8; 7071, 70; 11.18; 5;
1. 45 3; 44 5 47) प्र. 22;
29, 7; प्रा. 29, 2; १11, 34 ०9,
9, ॐ; उ, 96, 7; 2; 7; प 4.
हरिऽभ्यां 1. 35, 3; 54 3; 65; 9; 76; 3;
100, 3; 1. पा, ग्ण; 78; 4; व. 3०2; 6;
3544; 4 7; 42 7; 45 2; 1४. 75 7;
ए, 3० 7; 56, 5; 42 4; ४. 25 7; 4;
ए. 22, 3; 32, 4; शा. 6, 36; ~+. 104
(0 | ए; 6; 116, 4. क
हरि 1, 121, 8; 111. 44; 4; [-. 26, 5; 39
5; 32 2; 38, 2; 39, 6; 5 3; 55 4;
62, 78 ; 63; 17; 65 8; {29 1; 86, 25; 27;
89, 3; 96, 2; 98, 7; 99, 25 700, 7; 109,
12; 21; +. 96, 2; 107; 16.
हरिमन्युऽसायकः +. 96, 3.
हरिमाणं 1. 5०, 17; 12.
| इर्षि्मप. र. 964
इरिऽयूषीयांयां ए. 20, 5.
` इरिञ्योगं 1. 56, 7.
हरि ऽयोजंनाय 1. 62, 25.
16..174 0111 11204411 4;
&,6. 110, 41; 19. 2227414
2.;..36, -2; 4;.42.4; "1.10, 65;.92, 4;
471, 3; 44; 10; *1. 79,
04; 912 19
हरिऽवते {11. 52, भ.
हरिऽवः | 239 6 33; 9; 165 3; 164, ; 102,
हरि ऽवतं 2. 96; 2; 7.
हरिऽ्वपैसं 111. 44 3; >. 96, 7.
₹र्ऽ्वान् 1. 81; 4; प. 20, 4; 32 12; >
96; 10,
इरि ऽब्रतं 111. 5, 5.
हरिऽशिप्रः 3. 96, 4"
हरिऽशिप्रं +. 96, 12.
हरि ऽइमशारः >. 96, 8.
हरिऽश्ियं प्रा. 75, 4; 50
रिऽसाचं; २. 94; 72
रिऽस्थाः 1. 191, 10-13; ५1. 10, 2.
रिऽस्यां 111. 49, 2.
ही इतिं 1. 5 4; 6, 2; 7103; 162; 2
©,
के
५
55, ¶;, 65; 2; 873 3; 89, 1-6; 54 2;
इ: 6; ए, 7; 197, 8; 2656 162, 21;
165; 4; 174) 4; 77; 4; 1815; ल.
1, 6 .9.-26.0; 13. 30,
35; 7; 2; 4; 5; 45; 4; 602; 1४. 159
322 15; 335 16; 3% 5; | 27; 2; 43> ४
56; 6; #1. 29 9; 40, 7; 57 3; ४.
19, 6; 36; 4; #11. 7, 25; 2 20; ॐ 1;;
4 वण; 14; 6, 45; 79 15; 25; 28; ग
70 ; 23; 24; 31; 74; 212; 17; 2; 32 29;
33; 71; 34 9; 45 39; 66, 15; 7० 7;
98, 9; >. 25 2; 3; 442; 49 2; 959
94 9; 96, 7; 2; 6-9; 1059 2; 749;
160, 1.
इरी इवेति हरीऽङ्व 1. 28, 7.
इसीणां 1४. 48, 5; ५. 33; 2; ४1 24, 14;
25) 22 ; ध 06.14 ^
हरीणां "1. 24; 17; 32; | 1400. 1
105; 5
दर 12. 64; 14.
ह्रे 1. 25, 7; 113; 5
ह 1. 66.25...
0
ॐ ऊ क्क ह
#
कः
ह्येषु >. 45,
हर्म्येऽस्थाः भा.
इये 1. 27, 4; 44; 7;
50, 16.
2; =. ©, 1; ६1
हर्यत ४ 0 |
1
ह्यत भै 9.3; 8
हर्यतं 11.
क न
॥1
यता + 1. 12, 25;
हयेताभ्यो \ 111. 6, 36.
हयेतायं 1. 7 ह
इयति 1४
क न.
हंयते ~. ५6, 6
ह्येते \'
॥ ^ क
¢,
ध 7; 1
पथय 1. 167, 8.
99
{2 ; ५8, 8
0.14 2:
हथैमाणः पा, 6, 4. 96; 17.
हयेश्च ऽ प्रसूताः 171, 3०, 12.
पा
49; 2; भा 44;
म
| क
हषयन् 1
काः जन्म कक
हषेयंत 1४.
(क हि ' श 1
७७५ भमर जभौ
हसे 1४. 21, 9. | ह
हंस ए. 29, 29; श. 212, 1.
[1
१
हपैमाणः 1४. 38, $.
हधेमाणासः र. 84, 7,
हेय 111. 15, 13; र. 16
#
14; 163; 16,
1.4;
37 2.
ह्या 1. 56, 5; ए. 68, 14.
हपुऽमंतः ४11. 16, 4.
हव॑ः ४111. 15, 31-35; ॐ. 74, 2,
इवते 1. 182, 5; 71. 33, 5; ए, 30)
85; 3.
हवते 1. 105; 77; 1. 20, 7; प, 42 715; भ. | ।
(नि । मिं
20, 2; #1[. 22, 6; 56, 18; 73; ए; "णा.
86, 7; [., 80, 7; द्र, 150, 5.
हव॑नं ए. 52, 7; 54 4
हवन् ऽश्रुत् 1. 33; 15.
[|
हवन् ऽश्युतः 1. 64, 5.
हवनऽच्ुते 1. 10, 20; प्रा. 12, 23.
ण
हवन ऽध्ुतां १. 75, 5.
[ "कि "ति 1
हवनऽश्ुता ४1. 59, 0; पा. 83, 3; पा. 8, 0.
स्यदं 1. 52, 7.
हवना ४1. 69, 4.
हवनानि प्र. 56, 2; 11.34; 4; 35. 8; . णा.
68; 2; +. 87,. 4.
हवनाय ४1. 63, 2. | अ
हव॑नेषु 1. 202, 10; र. 61 3 01
इवत 1. 12; 2 ;
[ "नि क ।
हवन ऽस्य
| भि 1
[ए
इवते 1. 45; 5; 6; 774, 10 602; 6; -4,.12; 9:
हवनऽश्ुतः ए. 52, 70; इ, 64; 6. +, 11
\ 1८ 1
\ 5.49.)
४1. 26; 2; 39, 2 69, 6 ; 82, 9;
1533
क .10,.9;.24; 9
हवते
329 14;
$. 0,
37; 715 72; 34, 4; 66, 1
6; 86, 4; 92, 2०; 93, ॐ; 99 8;
65; 4; ह. 39, उ; 47 1; 64 9; 04; 8
65; 9; 66, 4; 741; 3; 4; 150 22; 71
2; 184, 3.
हवासः प्रा, 24; 8.
हविः 1. 12, 10 ; 72; 71; 24; 78;..26, 6; 34
8; 10; 366; 45 8; 94 3; 101,8; 9
714, 3; [1.1 75; 14; 3 10; 16; ए; 24 | |
12; 26, 2; 32, 7; 37, 6; 1. 4 16;
6; 7; 26, 4; 28, 7; 5 व; 595; [प्र. 49,
ए. 5; 6,5; 2852; 44 3; ४1.758
पा, 13; ५ 75; 7; 59, 9; 10०2 3; 6880
19, 24; 275 22; 60, 14 ; 72 ए; 1.7
34; 5; 60, 28; 44; 6; 85 5; गगः
714, 4; र. 14; 13; 24; 29; 6; 86, 22;
13; 88; 1; 7; 8; 9७6; 97375; 17; 4;
1 71-110.0 -141.4 7.1.704.
१79, 2५1; 1
हविः ऽदः 4761;
हविः ऽअ 1. 264, 9; >. 945. 2.
हविःऽशर्याय 1-11-14 1.11.
हविःऽवृततः ए]. 60, 15; 7०2; 13; >. 66, 6
हविःऽ कृतं 1. 15, 3; 166, 3.
हविःऽकृति >. 97, गय.
हविःऽकृतिं 1. 18, 8 ; 95; 3.
हविःऽदे १1.762 2; 12
हविःऽ पंतिः 1. 12, 8.
विःऽपाः इ. 15; 20.
;. 95, 6; 7.
हवै 1, 2, 7; 1०, 9; 74, 2.22; 8;. 24 19;
30: 8; 45 3; 4# 2; 48; 70 ; 86, 2; 92;
1; 14; तव; वद, 3; 122; 77; 142; 15;
208, 3; 787, ¶; 183, 5; आ. 79, 2; 77, 7;
क 24; 75; 47, 4; 13; ग5; 1. 622; 9.
94 प्45; ५48; 45 ण 460
१4; 10. 04; 1; 28; 5; 87; 8; 9; ४1, 21,
10; 28, 4; 242; 45" प्य; 5० 5; 6; 76;
2, 13; 60, 15; 62, 7; 694; ५. 22, 4;
28, 2; 64; 70; 82, 8 ; 94: 9 ए. 1, 24;
33.14; 18; 0, 18; ;7, 9; 15 7; 22, 12;
26, 10; 33; 9; 35; 13; 38, 8; 42; 22;
45, 18; 50, 5; 5298; 54 5; 4; 61, 16;
66, 12; 472; 5; 10; ¶4; 17; 82; 6; 85; 7;
- ` | 2; 4; 954; =. 69; 58; 376;
39, †;. 629 2; 64 6.; 66, 70; 70, 6
106, 4; 148, 5 ; 1407, र
हव॑मानं 1१. 29, 4; ए. 7, 3०; 5० 4
इव॑मानाः 1. 102, 5.
हव॑मानाय 111. 7, 24.
इव॑मानासंः प्र. 232, 77; पा. 5०4.
हवसा 1. 64> 22; प. 66, 77.
हव॑स्य 17. 36, 6; प्रा. 35; 4.
| हवा 1. 14, 6 ; पा. 29, 3; 62, 5; >. 27, 8.
हवानां ४111. 26, 16.
हवामहे. 1. ¢; 10; 16; 4; : 118, 10; 139, ए;
101 24 १. 404. 10.12.12
00, पा. 83, 9; णा. 7 77; 22; 771; 26; 9;
| 7101. 8; +. 160; 5:64; 2,
हवामटे 1.4.10... 4; 20. 2 7;
॥
24 2; 4; ¢; 10; 3० 7; 36, 78 ; 79, 3;
| 8702; वता 7; 102 9; 1060 व; तः 8;
न 1111.
१ .9..441. 311 1.46 7.2 49 1; -42
4: 9: 1१-33-90 5 49; 5; ॥,
13; .1;. 20, 3; 641; 86.454; -*1.-585:5;
60, 5; :74.;: "1. 3220: 4 7; 82, 4;
94.64.90. 4; १.9, ५4.69
ऊ ॐ
# |
१
ए. 68, 6.
ॐ
हविःऽभिः; 1. 24: 72; 14; 76, .
43, 4; 45 ८४; [1 24: 4:34...
00.404 1114 1.9.04
हविःऽमयीनां ए. 104; 27.
हविःऽवाद् 1. 7% 7.
हविःऽहविः 1२. 14, 3.
हविषः 1.944.151; 6; 640; 1. 3530...
षर, 6०6: णा. २, 4:68, 9; 1 0-9;.|
हविषि -- हव्यऽवाहनः. | मक व, | व क ष
२, € : 28
२, ©+; 2२
(८ । 37, £ । ष 40; 20; 54 4;
2
> 13; 96,8; र. 47; 4; 20 8
"8 ण्य; ए. 5, 6; प्रा. सङग = `:
९. 88, 5; ई. 128. 8
हवेते इतिं 11. 12, 8 इ ५१
4 4; 056; 816; 9०6; 9, || = |
12
2101; 246; 59, 4; 767
168, 4; 174, 3; 6; 174;
इवैभिः ए]. 19, 9. +
हवेषु ए. 27; 35; 38, 0; क. 42; 15
1; 704; 77; 782, 2. | । ए 1
हव॑ऽहवे ए. 47, 77. | २६ ध
ह्व्यऽखत् ४1. 34; 14.
हव्यः 1. 33, 2; 1009 व; ग्ला, 6; 1176, 6; 129, | |
0; 144 3; 1. 23, 73; 37, 2; आ. 53; ` `
49, 3; ए. ५42; ए. य, 4; 39 5; क
18, 6 ; 2297; 46; 7; ए. 22, 0.232.421;
38, 7; प्या. 7, 28 16> 8; 20; 20; 470
82; 74, 15: ०० 7; 96, 21; र. 6, 4; 38, ॥ ५ |
4; ॐ9, 7; 89, 70. 0
हव्यभ्नु्िं 1. 152, 7; ए, 66, ५. ५
1;
हविष्य॑तपैः + 111. 6
हविष्मती 111. 1
हविष्मते 1. 1
437 8; 1255 2
हविष्मत्ऽभिः [1]. 29, 2
हव्य ऽद्[तिये प. 26 4; 575 1; 5; भा. 76, 10; च र ।
48, 2; $. 35, 9; गा, 1 |
हव्यदातिऽभिः [.8, 5; ए, 19, 13; 25;
15; 27.
हव्यभ्दातिं 1. 2, 8; ए. 55, 20; भ. 1..0.;
47, 28; ¶, 26, 9; ॐ. 7, त.
हव्य ४1. 2, 7; णा. 3०, 2; प्रा. 96, 20; न
०,49.16 | | $
हव्यं 1. 156, 7; 11. 3, 2; 10; 71; 42, 6; 111
७1.411: 4; प्र. 212; द,
2
,
ह् विप्मेतः हि 1.4; 9 छ 36, 22 60, ॥ 114, & |
(1.0.00
५, १; *{1. 1४,
न 2 108; 7; 1.94. 9; 222..4,
हविग्म॑तं 1४. 45, 7; ए. 96.
हपिष्मान् {- 12, 9; 127, 10; 150, 6; 262; 22;
स
18, 3; 59; ग; ष. 96; ०6, 4; प्र. 48; |
164, 6 ; 186, 3; 181, 0; 149, 5; 3; 1. 16, 23. 29, 23; 86, 6; ४1. 2, 10; 159 10 ; | ८
&; 41; 1; ४. 10, 6; 16) 46; 19 7; ॥168। 7, 23;..4; 2; -39, 6 ; 0.201.174 १ ५ ४ |
1. 1) 16; 796; 85, 4; ङ. 96, 22;
67, 7; 86, 2; 99, 7; णना. 29, 7; द. (1
5; 12 2; 7455; 16, 9; 52 7; 80, 4; 1 ^ |
1१9 1.4 । 9 1 70
इव्य॑ऽवाद् ए. 6, 5. ल
हव्यऽ्वाद् 1. 22 6; 67, ए; 1. 22; 77, 2; १ |
` आ, 53 ए. 44; 28, 5; पा. 5 |
124; ए.
हव्यवाहः 711. 43, 7. `
हव्य ऽवाहटनं 1. 36, 70; 442
५. 42, 4.
हविषं 1. 162, 4.
1.09, | | 1
हवीषि 1 ५44; 17० 5; 193; 37, 5;
1 पा. 59; णाः, 5 9. 6,
4 १; 12; 70, 8; 70; उठ, 10;
कमे भक : ` च
५६ | इव्यऽवाहनं -- हारियोजनं .
~ ~ --~
इव्यऽवाहनं 7, 47, 19; १.8, 6; 28, 6; ग्वा.
10, 21.
हव्यऽवाहंनीः +. 188, 5
हव्य ऽवा 1, 712, 2; 44; 8; 128, 8; 111. 5 10;
710, 9; ग; 4; 29, 7; ४. 8; 7; #. 1
4; 83 ¶11, 10, 33 77, 45 10.63 ५1.
4403; 10 0; 28; इ, 8,6; 46; 4; 10;
52;.33 228, 9,
हव्य ऽसूदः १ 9३, 72; [४. 50, €.
इव्यां 11. 39, 7; भा. 67, 12,
हव्या 1. 74 6; 75, ए; 97, 4; 95 ग्य; 105, 74;
ग, 8; 228, 7; 139, 3; 49 वण; पय, 4;
५.11; 788, 2012171.
54" 22; [४.95; प्र. 793; 997; 24 7;
76.44; #1.12, 2; 15) 24; 47, 28; 52; तय
4111194 0.2.01 90.14; 904;
+. 9, 77; 20 9; 10; 16; 236; 24,
6; 442 7; 5; 00 715; २. 5 4; 20, 5;
706; 7; 128, 4; 7#6, 2.
हव्या; ए. 21, 7.
हव्यानिं 1. 74 4; 707, 70; 727, 6; 135; 3;
( 4: 1.425.713 ; 188; 10 ; 1. 52, 2; 52; 7;
62.43. 1४.15.31 ४, 70; "1.66, 35;
४. 58, 1; णा. 974; 19, 24; 22; 26
38; 5; 448; 74 3; गना, 7; 0; द, 15
12.4.16, 77; 51; 5 ०
हव्याय 1. 4८, 6; 1, 29, 4; ४. 4 3.
इव्यामु सु ९. 147, 2. |
प्र, 42, 710; प्र. 5, 8. प.
हव्येभिः 1. 153; 7; 10. 429; णा. 8, 7; 84, 7;
+. 26, 3; 24; 6; ॐ. 24; 2.
हव्येः 11. 2, 5; 26, 4; 7 2, 171; [प्र. 2, 7;
४.3.814. पाः, 22; प्या. 3,43.6),
5; 66 4
हसनां 1. 112, 4.
हसाय र. 28, 3.
हस्कतोर 1#.7, 5. 4.3
हस्तऽगुद्य ‰..84; 26; 109; 2.
हस्तऽग्राभस्यं +, 18, 8.
दस्त ऽन्नः ४, 15; 14.
हस्त॑ऽव्युती ए 17. 1, 1.
हस्तंऽच्युतेभिः 12. 11, 5.
हस्तं ४1. 54, 10; ए. 24, 5; र. 44, 4; 85, 36.
हस्तंऽ्यतः प. 45, 7; इ, 76, 9.
हस्तयोः 1. 24; 38, ए; 55 8; 87, 4;
9;. 262, 9; 76, 3; ४1. 3737; 45 8;
1. 18, 4; 90; 7.
हस्तं ऽव॑तं र. 34, 9.
इस्तां 1४. 21, 9; भा. 68, 3.
हस्तांऽङ्व 11. 39, ¢.
हस्तात् 111. 35; 10; -<.18, 9
रस्तन्यां >. 147, १, | ।
इस्तांय ए. 9, 2.
हस्तासः 1४. 58, 4.
हस्तिनः 1. 64 7; [17. 36, 7; 12. 8०,
हस्तिऽभिः ४. 64 7.
हस्ती 1४. 16, 74
हस्ते 1. 67, 2: 402; 7; 114; 5; 728, 65; 7.
१0, 2.1.50: "4.40 719
22.20, 20; 2; 11.28.246.
20; 3:70. ~ 19.70 1. 9.6. ॑
047; 71,
हस्तेन >. 109, 4.
दस्तेभिः 1४. 2, 24.
हस्तेषु 1, 37, 3; 168, 3.
हन्तेः 1. 79, 4-
हस्तो इ. 1, 9.
हस्तो ऽइव 17. 39, 5
हस्यं {, 14, 9.
हवाऽईवं 1. 194; 7...
शः. 920
दारिदरवाश्डव ए. 357
१८१ 0 कणा
सद प.प््न्ा-------- 11. 230,6: प्र 44: 9; भा. 79, & 9
8, 3: 60 3; 70, 9; 84, 4; 86, 19; 108, 76.
हासते 1. 27, 5; 3 ध ; 7; 89; 446; 5, 3;
हासंमाना 1, 169, २. ०3.04; 14310. 2.44 7;
हासमाने इतिं 171. 53, 1. 3; 414; ०5 2-4; 2522; 29, 3; 3०,8
हासयति 111. 3, 23. | 9; 3 12; 346; 548; 35, 3; 4; 44
# ॥
4 त; 45 4; 5० 2; 52 2; 58, ¢; 64,
क ९5 2; 4; 664; 4; 67, 3; 4; 7, 1;
1 ण 71; 2; 074; ध .9 1 4; 747, 1; 82, 2; 2;
57, 6; ए; 1; 92; 9; 6-8; 4 4;
75; 62; 14; 15; 26, 3; 4; 23; 42; 18;
4; 6; 795; 0; 4; 9, 5; 8; 29,
5; 29; 1; 6; 35; 2; ॐ, 7; 44 13; 45;
4: 20; 24; 40, ए; 4 18; 26; 48, 3;
17; 19; 49, 77; 20) 7; 57; ¢; 10; 14;
53 1; 54 3; 5, ( 50, 7; 59, 7; 657; 8; 65, 4; 5; 66 3;
50, 1; 23; 81, 2 7-9 ; $: ध 64, 6; 68, 22; 7156; शा. 3, 3; 4 57;
85) ३; 86, 7; 6; 8 50; 73; 104; 71, 4; 28, 1; 2; 18
21, 6; 8; 22. 6 23; 4; 5; 25; 4; 24; 2;
04, 709, 7-3; 114, 28, 1 3; 4; 32; 2; 24; 33; 1; 37 3;
10, वु; वयक, या; 1206; त 720, 3; 39 4; 40, 4; 5; 464; 48, 5; 539 7; 3;
9; 128 9 3; 14; 131, 2; 2; 6; 56, 2; -50, 2 99, 5; 7; 60; 5; 65; 2;
1536; 7 135 7; 4; 138, 2; 145. 8; 67, 9; 69, 6; 729 2; 74 ग; 82, 8; 84, 5;
441, 9; 142, 4; 144, 6; 149) 9; 154; 5; | 85; 3; 979; .932;2;6;.94 3; 97, 7;
160; 1; 163, 18; 164; 8 ; 29 ; 49; 1659 99, 3; 100, 3; णा. ग, 3; 7; ११,
5-7; 10; 109, 1; 3; 170 4; 171; 2; र 2; 35; 3 ग;.484.4, ब; 5, 16
1035-8; 12; 12; १75 3; 179, 2; 5; 180, 28; 6 16; 14; 4; 7 36; 8.6; 9, 6;
+; 8; 182, 2; 186, 10; 188, 6; ‰; 9; || 18; 10; गक; ग; 33; २4 १.1.
189, 6 ; 186, 2; 11. 1. 16 29 12 ;..5, 4; -:| 18, 4; 5; 24; 20, 3; 714; 22; ॐ, 2;:4;:
6, 7; 94; व; 41; 3; 76 4; 78, || 10; 28; 22, 9; 23 7; 18; 29; 24, 2;
34.0.02 1740; व, 5; 28. 8: 9; 16; 44; 4 ग्ड; 20; 46, 5; 6; 9;
30 965. 34, 1; 5; 9; 36) 3; 35; ||. 29; 24; 20, 4; 10; 17 14; 333 16; 19;
38, 2; 41, 0; न. 1, गा; 13; -2, 6 > 6.1; 39; 7; 3; 40, 3; 4 4; 45; 14;
3४; & त 37; 17, 3; 13,3; 4 91.०2 44> 18; 24; 29; 49; 12; 73; 19; 32; 35;
78, 1; २५, 4; 26, 8; 28 9; 30 2; 4; | 46; 2; 7; 25; 47, 7; 48, 6; 9;
37 12; 32, 22; 36. 9; 39 8;.4.; 416
42, 6; 44; 4; 10; 52 4; 53
` 28; 4 4; 6; 55, फ; 58, 4; पप 7;
19, 2; 20 2; 49, 4; 57, 4; 65; 4; 09;
8; 7०, 9; 78, 4; 79, 3; 81, 2; 85; 2;
` . ` 8, 6; 88, 4; 945; 96 ग्ण; 90 आ; 98;
4.8 64.3 1..2 41;
2; 6; 5, 4; 67; 8, 4; 97; 2125; 14; 4;
7, 10; . 78, 14; 2456; 7; 26,.7; 28, 1;
। (4, 6; 29, 7; 309 2; 12; 32, 7; 54 77; 35
7 375 38, 5 445. 45 4; 46, 0;
4; 1; 58; 1; 9; 61; 22:26; 683 9; 36
11
10; 729 6; 75 5; 75 7; 9; 76 2; 75,
ए 8; 82, 1; 83; 4: 85; 27; 86, 7; 2; 14;
1" 88, 10; 89,16; 99 4; 1०; 955; 95;
96, 2:30 ; 99, 2; 200, 5; 797, 8 ; 1०6,
00.042. 42
14, 21 71,5; 220, 4; 124 4; 126, 2;
13204144... 4-112 3 44; `
| | 3; "44 165, 2.
हिंसति ४, 34, 3
सानां ई. 142, 1
1५ ध | हिसि ष, 5 6. ~`
हि 1
1 हिंसीत् >. 121, 9; 265; ।
हिः 1543 128, 4 26.5.28, 3;
+ ४5; 443; ण. 16. णा. 60, 4;
पा. 6० 4; 93; 8; 100, 2; 1.9, 4; 4;
4 1.53; 24 2; 28; 1; 44; 2; 62, 70; 66
५ १.९ ` 23; 70, 5; 10; 86 13; 98, 2;
„~ 59; 4
श, 10; 714, 16; 136, 4; 140, 3; 186, 3
१
4; 180, 6; 1. 7, 5; 2496; 57" 4; 3०, 7;
10; 7.8; 1१. 4.95.0.6; 48; 4; १
1,6; 27, 6; भा. 45; 2; 12; 15; भा.
32 29; 45, 25; 80, 8; 95: 2; 1
32, 5; 68, 5; 7; 74 4; 115 7;
16, 3; 39, 9; 767; ¢.
हितऽमितः 1. 73, 3.
हितिऽवान् 1. 180, ¢.
हिता 1. 57, 7; णा. 9 4; 25, 7.
हिताः 1. 542 10; ह 21, 4; 9, 27.
हिताःऽइव 1. 166, 3. |
हितानि ४. 42: 3.
हितासंः प. 59, 4.
हिते 1, 46, 2.776.174; 182, 4: 1\/4, 6;
"14117014; 1.39.
53, 2; >. 63; 14; 152, 5.
हिमेन ऽङ्व 1. 57, 1.
हितेषु ए. 7, 5; एता.
हत्वां 12. 97, 45.
हित्वा ४. 535, 74; 2.
हित्वायं >. 14 8.
हित्वी 11. 38, 6; (1. 59, 6; >. 69, 9; >
99; 9. [नि
हिन 7. 48,
हिनिव 2. 95; 14.
कि) 1
हिनु \1. 45; 5० ; [3 . 36, 3
हिनुहि { 143; 4; ण 452 14
हिनोत ४11. 34; 6; इ. 30, 11
हिनोत 11.14, 4; ४. 77, 2; पा. 54
62; 18 97; 4; र 3५ 8; 188, 7
हिनोतं 1. 184,
हिनोति [. 18 4; -1525.3.
हिनोति "1. 104, 24 ।
हिनोमि 1..63,-4:. 22,. 4: पा
16, 5.
165; 5.
9 ॐ
% 1 + \ ५
न
हनन 1 ----------- 1. 66, 5.
हिन्वतु 1. 20, 71,
हिन्वते 1. 72, 1.
हियानः णा. 49, 5; 1. 3०,
1; 98; 2; 107, 20. |
हियानस्य 11. 4, 4.
हिन्वन् ४. 36, 2; [द 102, 7; $. | हियानाः 13. 13, 6. "५
च
हिन्वन् 2. ५6, #.
९, 46, 2.
हिन्वतिं 111. 53, 24; एणा. 6, 2; 1.8, 4;
05, 1; 8; 60, 9; 90, 5; 99, ५; ङ.
| दिरष्यऽअष्ः 1. 35, 8.
| दिरण्यऽसभौशुः ए11. 22, 5. |
हिर॑ण्यऽ्अभीशं ए111. 5, 98.
दिरख्यऽकी 1. 224, 14. ` |
+ 9; + 9; 8; ०65; 6; || सिखन्वेशः 179
3०, 5; 32, 2; 38, 2; 39, 6; 5०, 3; 59, || द्दपस्यऽेर्या ए. 32, ०9. कि
4; 78; 3; 70, 3; 106, 71; 9, 13; | हिरण्य गभः" र. पक, 7. | व |
24; द, 2, 16; तर, 5 हिरण्य ऽ चक्रान् 1. 88, 5.
हिन्वंतु 1. 34, 12; ङ. हिरण्य ऽजित् 12. 78, 4.
हिरण्य ऽनिदः ए. 71, ‰. | ४.८
| हिरण्य ऽत्वक् ४. ¢, $. | | ५ `
हिन्वानः 11. 36, 2; प्ता. 10, 7; 1. 12, ¢; || हिर्णञ्दृतं ए. 2, 3. "4
8; 34 ब; 48, 5; 62, ०; ९5 7; 64 9; || दिरण्य्दाः 17. 35, 10; ॐ. 7107, २.
29 ; 65; 25; 67, 4; 76, 2; 84 4; 90, हिरण्य ऽनिर्निक् 1. 167; 3; ४. 62, 7.
15 97: 32; 105, 2; 107 15; ङ. 139, 5. हिरण्य ऽनेमयः 1, 105, ए,
४. ६, 19, हिरण ऽपद्ं ए. 743; 6.
हिरण्य ऽपः 1. 45, 4.
। हिर्खऽ्पाणिः 1. 35, 9; 7. 54 ग्य; ए], 5०,
| 8; 71, 4.
| दिर॑स्यपाणिऽ्दि ए. }, भा. क
| दिरण्यऽ्पाणिं 1. 22, 5.
| दिरणऽपाणे ए. 38, 2.
|| दिर्ण्यऽपावाः 12. 86, 42. 1;
हिरण्य ऽपिंडान् ४1. 47, 23. 1 ॥ त ५ (
| † हिणय ऽपेशसा पा. 8, 2; 37, 8. ॥ त ४ १
दिर॑ण्यऽप्रउगं 1, 35, 5.
हिरस्यऽ बाहुः ४11. 34, 4.
| हिर्यं 1. 46, 70; 1.15, 9;
¦ हन्ये 1 1. 44} 2, ,
हिमिऽ्वंतः द. 121, 4.
हिमा २. 37, 10,
हिरण्यं 1. 25; 13; 56, 7; 85; 9; 759 2;
11. 34; 9; १. 67, 2; षा. 5693; भ्या
` . 85; णा. 29, 7; 46.24; 68, 3; 69,
। 16 ; र. 5 10; 64; 26; 1719 049.
>. 458, 4 | न
हिरण्ययं परा. 71, 7; 5; पा. 45; 2; १. 7
32; 5 29; 72, 12; 78) 2.
हिर्ण्यऽया ४11. 66; 8 १
हिरण्यया; 1. 180, 7; (1. 20, 9; ४. 87 5.
दिरस्ययांत् 1. 35 70. `
हिरस्ययान् प. 552 6. = `
हिरण्ययांसः 1. 66, 2
हिरण्यय प्रा. 5 29; 33; एण; ~. 758;
93: 19
हिरण्ययी इतिं 1. 144 6; 2. 184, 3.
। | | दिर्ण्ययीः ए. 54 ष ए. 58, 3; णया. 7 25;
1 15, 5; 5
1 हिरण्ययी 111. 38, 8
दहिर्यभ्युः एणा. 3५3; पा. 78,9; 1. 9:
। . . -हिव्य 1, 159, 32; 4; णा. 29 >; णा.
| 24; 20, 8; 25; 229; [द 253; 2
122; 5. ।
5 35 |
हिरण्ययेभिः 1. 64; 71. = ` |
हिष्ण्यऽग्थः प्र. 1, 8
हिरण्यऽग्यं 1. 30. 16.
हिरण्यरथाः प. 7; 7. `
` दिरण्यऽ्खपः 11. 35 10 `
हिरण्यञर्पं 1१.2३, 1; 9. 62 8; इ. 20, 9
हिरण्यऽवत् 1. 3० 77; 92 26; #1. 94 9;
पा. 221; 40). 41. 4, 4; 62
3; 65, 8; 698; 79; 86, 38. .
| | दिर्ण्यऽवतः एना. 3२ 9. |
1 ` दिरण्यऽव॑तं 1. 110, 2.
दिष्णयऽ्वंधुरं 1४, 46, 4; णा. 5, 28
हिरस्य्वगी ए. 38, 2 .
हिरण्ययेन 1 3593 2; [| 44; 4; 5; १.
हिः्णयऽवणा; 11. 35, 9.
रंण्यऽवणैन् 11. 34; 17.
हरस्य ऽ वणौ 11. 67, 2.
हिर्ण्यऽवतैनिः प्रा, 61, 7; पा. 26, 18,
दिर्यवतनी इति दिरण्यऽवतैनी 1. 9 78; 9.75
: 9; "11. 57; 8 3; 805
र्ण्यऽवाशीः ए. 947, 7.
र्ण्यऽवाशीभिः ए. 7, 52.
हिरणवाञ्ञीमत्ऽतम 1. 42, 6.
हिरण्यऽवत् 1. 80; 39. =: ध
हिरण्यऽवीनां पा. 65, 10.
हिरण्य ऽशम्य 1. 35;
हिरण्यऽशिप्राः 1. 34, 3. 4
हिरण्य ऽशंगः 1. 163, 9.
दिर॑णयभ्संदूक् 1. 35, 10.
हिर॑ण्य ऽसंदृशः ए. 16, 38 ; पा. 5, 38.
र्य ऽस्तृपः उ. 149; 5.
रण्यस्य ऽइव 1. 717, 12
हिरण्य ऽहस्तः 1, 35, 10,
हिर्ण्यऽटस्तं 1. 116; 73; 24
हिर्स्या ४. 7; 71; 1. 97, 5
रण्यानां 1४. 32, 19.
हिरण्यानि 1. 162, 76.
दिरस्येन 1. 33, 8.
हिर्णयेः 1. 722, 2; 11. 35, 9; ४.6० 4; ग्व.
00, 6.
दिरिऽशिप्रः 1. 2, 5; 0. 29, 6.
हिरिऽइमध्रुः ४. 7, 7.
रिऽइ्मश्रुं 2. 4 ~ |
हिरीमशः >. ९5, 7: (0
हिसैमान् र. 105, ¢. 0.
दिक् 1. 164 32. | 1
हिषे णा. ¢, 7. ८
हीना -९. 34, 79. | 1,
१।
हीयतां ४. 52, 1; (. 104 16.
दैक रा. ४, 46, 4.
इतासः 0
हरः 1४. 3, 13.
हरःऽचितः {8. 9, गय,
हरःऽ चिं 4.4;
ह्रूक् 1. 12;
वत् 111. 26, 16
हवत ४. 21, 16,
५"
ह्वानः 111. 41,
ष. 7, 3; 39,
हवानाः 1४, 1,
ह्वे 1. 77, 7; 9; 3०, 9; 76, 4; 158, 2; ग
9; 185, 3; 6; 1. 4 उ; 38, 9; ए. 46,
3; 73 2; ४1. 5, ४; 5० ४; ण्या. 42, 2;
61, 6; 6, 4; ए. ३, 10; ‰ 24; 7० (
15; 32१4; 58, 3; 65; 3; 66; ठ; 102, 5.
डः
ईव %, > 6; 23 5; 1174; 119; { 20;
१; 32; 4; 37, 2; 7. 12, 4; 25; ष.
00; 4; 24; 62, 1; "7, 5, 1 32 3;
५; 0, 10; 65, 1; भ. 70, 2; 2;
20, 2; 3, 22; 44; 13; 68, 4;
3 ॥
7
{
9; #. 45; 19,
19, 3; 4० 3; 56, 9; णा. 45, 7; ` 29;
॥ #
॥
76,
| ५4 1012; 302 4; 6; द. 5; 4;
4;. 26; 1;. 61, 45 656,
भ. 66, 1४.
र 180, 10; 184 उ; 1.
४: 40; 6 5- 3४, 76, 26; चय् फ
५; 49,.10; #1, कव, 2; 2; 42; 71;
90; 7; 94, 5; (1) 23; 20; 27; 33;
20; -.. 68, 16; २. 82; ग; 8 0;
126, ‰; 160, 5; 1078, 1.
हदवा ए. 53, 5; ‰.
हूमहे 1. 10, 10; 89, 5 5; ४. 353; प्न
46, 3; 6; प्न. 5, 5; 83, 6
हूयते 1, 34, 10; गा, 6. क,
हूयते 1. 26, 6; 36, 6; 135, =" 091
भा. 82, 5; उ. 57, 7. ` =
हूयते ४1. 76, 8.
हूयमानः +, 04. 9; . 7. 18; 4; श. 20; -4:;
४. 45 5; इ. 28, 3; 7716, 7; 192 5
हूयमानं 1. 25; 3.
हूयमाना 1*. 44, 4; पा. 60, 3; "रा. 68. 8
हूयमानाः 11. 35; प्र 94:60.
हूयसे [11. 4०, 9; प्या. 4, 7.
हूयसे 1.29, 7; ए. 10, 22; 071 714; 82, 4
दणानस्यं 1. 25, 2.
इणायंत 1. 132, 4.
द्णीतां ४111. 103, 72.
णीते ४71. 86, $.
दणीयाः भा. 2 79. `
द्णीयमानः ४. 2, 8.
हृणीषे 11. 33, 75. = `
द्णीषे ए. 104, 14. . |
इतत; >. 77, 6. ¦
त्ऽभिः 1. 116, 7; एवा. 43, 5.
इत्ऽरोगं 1. 5०, 77. |
इत्ऽमु 9168. 4; 129. 4; ष. 6,2.11
0.124.191 4.12;- 49 1.4
2; 2102; 22.
दतससऽ ससंः 1. 84, 16. 9
ददः 7. 243 12; 60, 3; 1. 25; 2; 111. 39,
1.9.419 "11.101, 4; 594.
दुदंऽसनिः 1 67, 74
ददयाह् >. 163, 3
६ ६ र, ४
दये 7. 122; 9; ए. 9, 6; इ. 8४, 4; 13.
हद््यया 2. 157, 4.
इदा 1, 67, 2; 6%, 2; 107 15; 146, 4; 747
2 ४ ता, 26, 8 ; 1४. 58, 6; ४. 4; 104; 56,
2; ए. 16, 44; 28, 5; शा. 98, 2; भा.
` 20, 18 ;- 96, 8; †75.9; 1. 735 2;. >.
(5 "श्रा, 8; उ, 14; 710; 5; 122; 6; 1407; 1,
५ ५.५५ इदि 1. 32, 74; 9, 13; 7. 25; "6; 7
॥ 42 8; 1४. 47; 2; 44 व; 58 | 11.-9॥
529; 6; #11. 86, 8; 2. 73; 8; क. 32, 9;
923 214; 129, 4
ददि ऽस्मुक् 1. 76, ¢.
दि ऽस्यृशंः 2. 25, 2; 47, 7.
इदिऽस्यृशं 1. 10, 7.
हदे 1. 42; 1; 73; 10; 1४. ॐ, 2; प्र. 71, 5;
9१1. 14, 6; 48, 4; 79, 4; 82, 3; 140
5; 1. 12.41; 86, 2; 2. 86, २5; 9;
18 ; 186, 7,
दुद ४, 42, 2. शि
हृद्यां र. 73, 6.
दयात् 7. 58, 5.
(2 षितं 1. 103, 7.
इषीवततः 1. 127, 6.
“+ हषीऽव॑तः 7. 5, 1.
इति २. 86, 7;
हह 30 9 ८
कयः 1. 100, 4; पा. 50 2.
हेर्तारः 1. 62, 6.
हतर णा. 997. 1
| हितिः 1. 35, 14; णा. 78, 10; 28.97; पना
60 421 9..809..125- 65.23 |
;
हेतिं 1. 108; 3; 727, 10; वा. 39, त; ण
| 52, 3; 6% 9; 79, 4; ९ 142, 3
हेती; 11.61; 16.
वृऽ्भिः द. 136; 64 29. = , `
हेम्याऽवान् ए. 2, 8.
हेमनां 17. 97, २.
हेमंतान् 2, 761, 4
देकः 1. 24 24; 94 72; पय 45 प, य;
1१. 7, 4; णा. 62, 8; #*1. 84, 2.
देव्छासि पा, 48, 10.
४11. 62, 4.
हेष ऽ क्रतवः 111. 26, 5.
हेषत ए. 84; 2.
हेषसा ‡. 89, 14.
हेषखतः ४1. 3, 3.
होत॑ः 11. 26; 1४. 4 1; ४. 10, 7; प,
52, 12; *111. 45; 14. 4
होतः 1. 26, 5; 77. 6, 6; 36, 4; [ा. 1, 22;
0, 9०; 6,ग;. ४, 4 13 9 25 0.2;
11, 7; 6; * 11, 74, 23 =. 67, 14; 710, 9.
होतरिति 1. 157; 7. 0, 7; 29, 16; ४. 2, 7.
होतरिति 1. 76, 5; [1. 29; 8; ४. 75 14;
पा. 60, 14.
देतां 1. 7 5; 12, 3; 23; 45 2409; गय; 26,
2; 7; 365; 58, 7; 3; 59, 4; 6 2;
4; 67, 7; 68, 4; 70 4; 76, 2; 77 प;
2; 79; 12; 94; 6; 105 4; 77
124; 10; 128, 74; 739, 10; ग्व 22;
14239 ग; 144 7; 749, 45 5; 155 7; 152,
; 3; 1629 5; 775 2; 5; 1809; त
25; ॐ ग; ॐ; 76; 97; 185.2; 36,
6; [. ॐ 2; 4 4; 16; 54; 6, २9;
10; 7; 175 1; 74; 13 24; 53. 273 7: 4,
557; 1१.85. 9 13 6,.44.4;..5;
7 1; 84; 93; 5 ग; म, 75; ठ, 5;
6.40. 44; ष. 2; 5; 6; 9, 2;
1 2; 133; 4; 76, 2; 24 ८; 4 5;
19.1.11. 1
9,4.11; 2323-5 35.46, 1; 9
10; 23; 27, 4; 49, 9; 5 12; 62 4;
02; 4; ४.1, 64.4.33 2: 8,2; 9.2;
ति
समनु णतःनातसवेध
होताऽङ्व -- द्यामि. । 4
होताः 1४. 48, 2; ए. 8.८; परा (0
1.1.5६ षः
दोबाणिं [1.45 `
होवात् . 36, 7; 30; 79; 4; श. 57, 4
रोताभिः 1. 56, ¢; 122 9; {1.2 8; श्ना
6०, 9; शा. 72 20; 5 प; 54; 6; द
1.4.
होता 1. 22, 79; ए. 1०4, 6; प्रा, 11
8; +. 4० 4; 63, †7.
दो्ायं ए. 11, 7; र. 98, ¢.
होवाऽविदंः ए. 15, 9.
दोताऽविद ए. 8, 3.
टोवि्ं 1, 8, 2.
३; 3; 252; 26, 4; ए. 6, | दीवा. 0 5.
1 ; ॐ; 7; 26, 46; भय. 76 होम 7. 9, 9; 84. 18. |
| ठ; ; +. 9, 3; 23, 7; 1044. होमनि 7177. 6०, ¢; पना. 64;
,
¢ 95 ए; 3; 4; 21, य; 46, 8; 97, 8
20; 446; 7; 16; 60, >; ग; ङ. 1, 5; दोषि ४1. 44 24.
हतः (111. 37, 7.
द्यः पा. 00, 000. 2.9; (६
हदं 1. 52, 7; 1. 45, 3; इ. 45; 7; 1०2, 4.
हदाः >. 142, 8.
हदाःऽइव 1. 36, 8; इ. 771, 7, | ~
देन्चषुः 2.96 ` ` 7
ह्ादुनिं 1. 32 13. | कक 0
हादुनिष्वृतः प. 54 3
हृणाति 1. 166, 72 |
हतः #1. 4, 5; ९. 67, 24, | 5
्वा्दिकाऽवति र. 16, 14. क,
ह्वा्दिके र. 16, 14.
द्य ४. 53 16.
यति =; 40; 4"
द्यति ह 160, 2. ~. (
द्वरे 140...
यतं 1. 102, 6; 1४. 24: 3; 39;
॥ 4; 80, ॐ.
दहयामसि ४1. 26, 7;
होतारा 1. 13, 8 142
(1
7.4, 7; प, 5, 0;
+न # 3
रोत्ारं + 6.5, 19.
होहु: 1. 164, 2; (11. 6, 9; 34; 710; ४. 25;
1 + {1 क ५.) ४ 3 भ, 8, 19 3 94 श् । 10 2
4३6, 11.
होत इभिः {1}. 10, 4; ९ 63, 4
मत् +, 41, 2.
^ इषे (3.14
क
9
त ध र द्ये -- दयां,
163 12; 2,.2; 20
5; 12; 24 78; 74 24; 164 26; ४.
50 ए; 5; +" 36, 7; पाः 7. |
दरः 1. 23; 65 प्र, 20, 2. | -
दते [. 141; ए,
दलयसि ४1. 48, 10; 1. 3; 2; 62, 4; 106, 13
दास 1. 747; 7; 180, 3.
दारे 77. 2, 4.
दायः ए. 2 8.
दायै ४. 9, 4.
न "1 ५
नि
भरूतञऽ््शाः
तृप्र ऽ संशवः
तमक तान तिम
चद्ऽसग्राः
तिःऽखग्राः
गोऽ्॑ग्रान् ` 2 व
तपुःऽखग्राभिः व
गोऽ 9 "४ 1
सारेऽसंधाः | 4.1
॥ 4
सरे ऽसा 1
सं ऽ संक । ,
परिऽ्ंसलयति
सर्वेऽखंग
सुऽ | 8
चतुःऽसंगः 4 क
वीद्ुऽखंगः 1
वीक ऽगं
सुऽ्छगां
सा
शशु
= शीकुभ्चे
गोऽखन॑नासः मेध॑ऽ तिपि प्र ऽअध्वने
| अगं ऽश्नजनि ` मेध्यं ऽअतिचिं सुऽखध्वर
द्रऽसैननी यऽ सुऽसथ्वर
प पृतनां भितऽसतिेः दाशुऽकथ्वरः
सुति ऽजे मेध्यंऽञखतियेः सुऽखध्वरं
संऽ्खञा्ति _ | नीप॑ऽअतिघो जीरऽ खंध्वर
उत्ऽचरजायंत | मेथ्य॑ऽसक्तियो दाशुऽचखैध्नरं
८ संऽर्नासि अनंतिऽदडुता सुऽखथ्नय
4 निःऽखज अव ऽखतिएः ` दाशुऽखथ्वयय
क 0 | सं ऽअज्यसे सवऽ अतिरत् सुऽखधथ्वयसः
पृतनाज्ये परिऽतिष्ठत् मुऽऋश्वरे |
` पृतनाज्येषु | | सधिऽसतिष्टात् कुष्णऽखथ्वा
उह रेह इति दुःऽअचेवू ४
जनुऽसंचः | सामरदः अविऽखनत्
सुऽसंचः „य क्रव्य ऽदः अपऽछन्ती
6 उत्भ्चच॑नः पुरुषञअद॑ः परऽ्चनीक `
| नि ऽअंच॑नं मधरुऽखदः | सुञनीक
| सुऽश्वच ॑ पवऽसदः विऽखनीकः
॥ ५ सुऽचचाः यवस ऽदः चतुःऽसनीकः
संऽखजन् सुहूतऽ खद॑ः तिःऽनीकः
अभिऽंजनं सोमऽखदंः तिग्मऽसनीकं
॥ विऽसरन॑नं हविःऽशदः श॒तऽसंनीकाः
अआऽचज॑नेन | ऊभैऽ्दः सं ऽअनीकेपं
` सज्जनं अन॑द्तीः सयानुते इति
पमण कम न
ेदोिऽनिः ; सरन
क द्शऽ्चतरुष्यात्
च ऽचतु | विष््चैता
` , शुयवलत् ¢ संञा
1 | ध | अ्न॑तान् `
` निःऽसत॑त र -कलतासः
निःऽखत॑तंसतं
वशा ऽ सखंन्नाय
दीथेऽख॑प्साः
वृषभ ऽसंन्नाय
सहस्र ऽअप्साः
ू०यनाः
जनो विभु उद्ना = `
तत्ऽस॑पः अव ऽसअर्भिनत् आऽखअय॑ने |
स्वप; ऽतमः शिव ऽऋभिमशेनः
सखपंःऽत्तमं वंहुल ऽ संनिमानः
आश्च॑पःऽ तेभ्यः । सुऽ्भिषटय॑ः
वु ऽअभि
सु ऽप्यस्य | मुऽ्खभिष्टिः
| अनपत्यानि | मुऽखभिटि
सु ऽअपत्यानिं | | अनभीशुः
रभ्य | सुऽसभीगुः
त्य हिरण्यऽ अभीशुः
दशंभीशु भ्यः
हिरण्य अभीय
खदेमीशू इति सत््मीशु
संऽ्जगणः ।
मुभ्रिः `
तिऽख॑हणः
` विऽख॑रूणाय `
दिऽ अरूषणां
` पुश
षट् ऽस्रे
उक्यऽयकेा
सुऽ अनः
उत्ऽ सर्वे
=
मुऽखनिः
ह ` सखये
न॑ऽ सै
शात ऽखं चैसं
गोऽख॑रौसः
„ भन्व॑ऽखरीसः
| मधु ऽखणेसः
गो ऽशणेसा
गोऽअणेसिं
स्वाद्ःऽ्णोः
“ अलुः खित
त ५.1 करिष्य
दभडय 1
निन्ये
: सथः ऽं
सूषित्ऽसरिनं
सवर्थे इतिं सुऽखर्धं
प्रति ऽअ
प्रतिऽ्खधिं
प्र ञपेणः `
प्रञ्ख
साधु खयोः
अवेशः
गुहत्$ संवद्यं
अनवस
लवा
[वि ,
` अनवद्याः
सनवद्यानिः
सतवद्यासः
७, ऋ आनि $;
संऽखवयत्
| ु ऽस्वेसः
अनसः
सुऽ अवसं
सुऽखवसा
उपऽखव॑सून
निरवस्य
नवाय
अतिऽभपिः
ध्रऽचविता
भगेऽसविता
प्रऽखवितारः
शतुः अविदत्
विश्च
श्मतिऽसविं
संऽ सविव्यक्
ध <
८
पर वोः
सं ऽवृत
चप्ऽअर्वुणोः
ङ्ष्टऽऋश्चः
कून्रऽखश्चः
नीर ञश्च
निंदितिऽसंश्चः
पुषत्ऽअश्चः
सेित्ऽखणश्चः
किऽ
श्यावऽ च्यः
सत् ऽसर्व
ऽश्वः
श्वश्च ऽतमाः
^: क
अजरं
अज ऽसश्च -- अनागाः ऽत्वेन.
माहतऽअश्स्म
वाधरिंऽ सपष्ुस्य
श्यावऽस्चस्य
हरिऽसश्वस्य
मुऽअश्चा
सुऽश्चाः
सरूणञखश्चाः
साशुऽश्चाः
पिशग ऽशाः
पीवःऽखश्वाः
पृपत्ऽसश्चाः
पृपत्भ्सश्चाः
पृष॑त्ऽअश्चान्
विऽस्श्चान्
वधिऽ््चायं
सघऽखंश्वाय
इरिऽखश्चाय
सुऽखश्चासः
सन श्वासः
द्रोणिऽखंश्चासः
पृपत्ऽसश्चासः
वैद सश्चिः
ुजऽ सं
हरिऽखणश्चेन
विऽसखंश्चेभ्यः
पट्ऽ॑शेः वि
शुभस
सुऽश्व्यं
श्यावऽ चश््यस्य
क
अनागाः
च्मवे$ असुं जः
उत्ऽ असृजः
॥
सव्ऽरुनत्
विऽ सस्त
सनुस्थः
नस्या
इ्ाद॑शऽखाकृतिं `
अनागसः |
अनागसं
उपञ्खाग॑हि `
नागाः.
~~ 9१
अनागान् सुऽसाध्य
अर्नागां द्ःऽसाध्यै
संऽ खाच विचा
उद्ऽअाच॑त् संमानन
उपऽघ्राचैरत् ` उत्ऽशचानंट्
उप्*आचरत् अनानत
| उक्त स्नानः
4 अत्ऽ्ाज॑त अननतं
उपऽ्ाजंहु अर्नानतस्य
उत्ऽशाज॑न् अनानतः
पषत्ऽान्य
संऽआंजन् च्ऽ च्ान्
सुऽ्रातितः रौतिऽ्खापः
मुऽखाततं दुःऽखापना
। अनातुरं सीतिऽखापा
अनाहुणः सर्नापिः
जत ऽरखत्मा दवऽ्ापिः
शृत ऽ्ंत्मानं सुप्नेऽ्ापिः
0 द्रेऽ अदिश देवऽ आपिना
| केवलऽ्चादी ` खापी इति सुऽखापी
दुःऽसाधै वृऽ्पे
मुऽ्चाधौः | सु 5 सापे
| द्रेऽआंधीः ` अनाः
सुऽ्चाधीभिः खनाणं
अनाधृष्ट मन॑भपिन्
नृ सतरऽ्ामः
चनानि | सुभ्वः
1 र्तषणनिः अनावः
` ऋअनाृषटासः ५ सुऽभाभूव |
चऋनाधूष् सुऽ्रावां
ध:
इयेनऽस्रभृतः
9२ ` 1. अनागान् -- दीधायो इति दीधेऽ्ायो.
चनिऽच्ायंसेन्या
अनायत:
शंऽजायते
सऽसाय॑न्
सतिऽ
संऽाय॑मुः ॥
विश्वऽखायवे' ॥ ह
सुायतं
सति ऽसखायातं
उपसार्या
अतिऽ्ायांहि
अप्रऽ्ायु
विषरभ्चांयु
डऽखायु
रकञऽ््ायुः
सितिऽ्ायुः
चिऽखयुः
दीषेऽ्ायुः
विश्ठऽ्ायुः
मुऽतायुनः
दौ पायु
दीवायुऽत्वायं
¶-अायुभ्
सुञऽसायुधः
तिग्मऽखयुधः
ऽखायुधं
भ्ायुधसं॑ `
भआआयुधाः 4 ५
तिग्मश्चायुधाः 0 ॥
तिग्मञ्छयुधाय
उत्ऽख्ारः
संऽ्ारत
्षभिऽारं
सनारभणे
५८८
समाराणे इति संऽ्ारारे
गोऽखां्िरः
विऽसाशिरः
द्धिंऽ अशि
यवं ऽस्राशिरः
रसंऽश्राशिरः
गोऽसािरं
यव॑ऽश्राशिरं
सञऽ्खांशिया
सुऽसाशिषं
द्ःऽसाश्ीः
अनाशुना
सनाशोः
पञ्चस `
सनासः
सुऽखास॑ः
चक्रऽसासजः
अधि ऽसाक्षते
उपृऽखासते
संऽसारसते
मुऽ्रासं
सवस स्थ इं सुऽ्भासस्य
तऽ सासुत्िः
भूरिऽखासुतिः
सपिःऽचांमुत्तिः
सपिःऽ ससुत
ृतसुली इति एत॑ ज्रसुतौ
घृतासुती इतिं पृत्तऽरांमुती `
सर्पि॑सुती इतिं सपिःऽखसुती
सपिःऽश्यमुते
वदे
सप्र ऽस्मे
सप्रञ्बस्यिभिः ;4
धुत ऽआहवनं ४
सुतऽयंहवनं तर ए
इरष्कुत ऽ साहार्व
द्रोणं ऽ श्राहावं 1
सुभ्बाहुत ` 9 1 .
सुऽ हुतः १ (
सोम॑ऽाहुतः * ०
सुऽआंहूतं | । अ |
ऊजोभ्चाह्तिः ॥ क
सर्नाहुतिं न 9
द्ःऽइतात् -- खथ्वणा ऽइव.
अभिऽदद्धः
प्रऽरंद्धः
| दुःऽङुत्राय
, आअपरिऽ्डुतासः
आऽड्तासः, |
उप॑ऽ्डतिः
सेम्देणि
| अभिऽईतिं
श्रधिऽ्डुय
सकषरांऽइ्व
खक्षौ इवेषयष्ी ऽईव
अ्ँणऽइव
अग्निःऽरंव
अग्निवान् ऽइव
ग्ने :ऽइव
अग्नो ऽइव
अधरियाऽईव
संकी ऽव
सजाऽइव
संजः पाऽडइव
संजंसाऽङइ्वं
अत्त याःऽ इवं
अत्यः ऽइव
अ्यऽइ्व
अत्याःऽङ्व
सयान्ऽइ्व `
अतैःऽङ्व
अदिंतेःऽइ्व `
अदुगधाःऽ्व
अशाताऽइईव
अभ्रात् ऽइव
भ्नियस्य ऽव
अधिया ऽव
खमा ऽइव
माभूः जते
समृत्तात्ऽइुव
अयां;ऽर्वं
अयोद्धा ऽइव
अरणाःऽदव
अविताऽब क
अवीयऽइ्व
| अशर्निंमान् ऽइव
अशन्याऽङ्व
अश्रा ऽइव
४
सरमा ऽव
अश्रीरःऽडव
अश्यऽडव
सश्चयाऽङ्व
अश्चस्यऽङ्व
स्वां ऽङ्व
सश्वाःऽइव
अश्चाजनीऽड्व
| सखण्चांऽइव
अश्वी ऽव
| अर्च इवेतयशचै ऽइव
असश्चता ऽइव
अमुरःऽइव
ससुवोंऽइ्व
सस्तं ऽङ्व
सस्ताऽड्व `
सस्थ॑यसांऽस्व
सहऽड्व `
अराऽस्व
अहांनिऽइव `
सअहिःऽङ्व
सहोभिः ऽइव ¦
अघाटिभिःऽङ्व
्ंडाऽ्व
चत्माऽइव `
चापैःऽ्व
ताना जतनरातरवातनथसनतत
साशून्ऽईव
इपुकृर्ताऽ्ड्व (4
9
इन्दव =
उाऽडव | १
अवन्ड्व 34
-उग्राऽव 7
उग्राःऽइव
उतऽङव
उदकात्शव =
उद्धीन्ऽईव
उद्न्यनाऽइव
उद्न्या;ऽइ्व १
उदाभ्डुव
उाताभव
उद्वःऽइव
उद्धाऽइव
उदरौऽईव
उपऽड्व
उपधौ इवेयुपधोभ्ड्व
उपमात्ष्व ` <
उपवक्ता्डवव
#
उरूभ्डव
` उदधायंऽ्ड्व
उशिज ऽइव
उषसां ऽइव
उषाःऽइव
उष्टायऽइव
उर्णंऽ्व `
उघ्राऽङव
उ्राःऽ्दव
ऊध्वाऽदव
कर्मे;ऽइव `
उतैःऽइ्व
ऋृजुयाऽइव
ऋशाऽइव
कृतव॑रीःऽइव
रकौ ऽइ्व
रेधाऽडव
करवाःऽड्व
कनी न;ऽइव
कनीनकाश्डव
कन्यां ऽइव
कर््याःऽइव
कपनाव |
कृषोत॑ःऽव
` करेश॑ऽ्डव
क्शौऽडव
। कमीरःऽइव
कपिऽईव
कृशीकाऽव
` कामगरेण॑ऽइ्व |
कगौऽ्टव
किरणांऽइ्व
कीनारंऽइ्व
कुंभिनौ ऽइव
कुख्याः ऽइव
कूच॑क्रेण ऽइव
कू त्ऽडव
` कुरताःऽइव
तव्या; ऽइव
कषटिहाऽईव
छू ऽड्वं
छाम ऽस्वं
क्िप्राऽइव
शुद्रंऽइव
धुद्राऽइव
सुपऽड्व
सेते ऽइव
घोणः ऽइव
छणोतैणऽइव
खगेलांऽइव
खुगलाऽइवं
गंँधारौशां ऽइव
गत ऽ्यारूगिंव
गभैःऽइव
गवा ऽइव
गा;ऽइ्व
` गायंति ऽव
गांऽडइव `
गाव॑ःऽइव
गावांऽङ्व
गिरेः ५इव
गोण्ड्व
मौौऽडव
ग्रावांऽइव
ग्रावांणाऽड्व
अनाऽईव
अमेाऽडव
धुशिंऽड्व
युतं ऽइव
धोषाऽ्ड्व
चक्र ऽईव
चत्रावाकाऽव
चक्राऽडव
चक्रिया ऽइव
चस्मुःऽड्व
च षिऽ्ड्व
चंदरमाःऽङ्व
चदव
चंदराऽडंव
चमसान् ईव
चभ्विंऽड्व
चभेऽइव
चेणी इवेति चमेणीऽइव
चिताऽ्दंव
छायाऽडवं
ज्ञायां ऽइव
जर्र्तीःऽ्ड्व
ननिधाःऽ्ड्व
ननौःऽव
1
जारःऽड्व
जार ऽइव
जारिणी ऽइव
जीमूतस्य ऽइव
|
त्टाऽ्ड्व |
त्स्कयाःऽडव
ध्माता ऽव
नंऽडव
ंडाःऽङ्व | नद्याऽड्व
धिक्रावां ऽइव नभ्यां ऽव
नव्छाः ऽइव
नवख॑ःऽङ्व
नष्टऽडव
नाथ॑मानाऽव
८ र दिष्याण्डषे | नाभिःऽङ्व `
दुमद: । नार्व॑ऽड्व
परिपदाऽ्ड्व
निवनाऽईव
निर्या ड इवं |
नृतू; ऽइव
नुत्यतां ऽइव
सूप इवेति नृपतीऽइ्व
नेतोशाऽ्दव
नोधा ५ इवं
पथाऽइव
पज्ाऽइव
पिनां ऽइव
पणव
पतरो;ऽङइ्व
पतिःऽइव
पर्तिनुष्टाऽङ्व
पल्लीं ऽइव
पयाऽदव
पथ्याऽङइव
पदाऽव
पदे इवे पे ऽइव
पयसाऽइ्व
परशुमान्ऽव
परशोःऽ्दव |
पर्ाऽ उव
परिज्माऽङ्व
परिज्मानंऽड्व
परिञ्माना ऽङ्व
परिधीन्ऽईव
त
५ \ ॥
$
पवैतःऽडव
पैतस्यऽड्व
पवेताःऽङ्व
पव्या्दव
पुष
परशुपाःऽइव
पाव
पालंस्यऽ्व
पातांऽ इव
-पाद् ऽइव
पादोऽइ्व
पितरं ऽइव
पिताऽईव
पितुमती ऽइव
तुमत ऽइव
तूमान्ऽईव
पिच्यस्मऽव `
पिष्युषीऽड्व
पिज्ञाःऽडव `
पीप्मानाऽईव
पुलाय॑ञ्ड्व
चुररताऽ्डव `
पूर्वैगात्वाऽइ्व
पवैषाःऽइव
पूवैन्ऽइ्व
रनानतीऽदव
प्रतिचष्ऽङ्व
प्रधी इवेति प्रधी ऽइव
प्रधीन्ऽइव
प्रयःऽङ्व
प्रवताऽडुव
प्रवासाऽईव
प्रल्लातीःऽइव
स्मरन् इव
प्रायोगाऽड्व
प्रीताःऽईवं
वधंऽइव
वंहिःऽईव
वाहत ऽइव
विसखाःऽङ्व
वीड्व
बृहती इवेति बृहती ऽइव
वृता ऽइव
जदमपुतः ऽव
ज्रब्माऽडव
ब्माणांऽइ्व
भग॑ःऽइव
भंव
भग॑स्यऽइ्व
भति।ऽङइ्व
४ भागंऽइव ४
भीःऽदैव
क्ष
मं दूकाःऽइव
मदन्ऽइ्व
मध्यमशीःऽइव
मनुंषाऽङ्व
ममताव |
मय॑ः ऽव
मरूतोऽ्व `
मयेःऽङ्व
मयैः ऽइव
मयेायऽङ्व
महान्ऽइव
मद्िषाऽडव
महिषाःऽइव
महिषान्ऽइव
मरहिंषीऽडव
महीऽङव
मातराऽङ्व
माताऽईव
मातुमृशाऽङ्वं
माननऽइव
मासाऽइव
मिताऽ्वं
मिताः्डव'
मितःऽइव
मिलंऽव
मिताऽइव
नियस्ृषयां ऽइव
मीष्टहु ष्म ती ऽइव
मुष्षीनयाऽ्ड्व
गुलिः
| बषभ्डव
५।५५७.११९११५.११
1
५
यथां ऽइव
यमाः$ इवं
यमित + स्व
१
यवं ५५ ष
यचसा ऽइव
याताऽइव
रण्यांऽइ्वे
रभिनींऽइव
रयिःऽईव
रथिंऽडव
रश॒नांऽइव
रर्माऽइव
रष्मौन्ऽ इव
रसाऽइव
रहस्ःऽ्ब
य॒ज पुता ऽइव
राजा ऽङ्व
राजानः5 स्व
हक्मःऽइव
रूपाऽ ड्व
रेवान् इव
रेवया ७ङव
ल्किवुना ऽइव
वंशं ऽइव
वंसगाऽइ्व
तीव
व॒त्सःऽईव
वत्सं ऽव
वभूःऽइव
वधूयुःऽइ्व
वनां ऽड्व
वधुराऽ्ड्व
चयुंषीऽड्व
वभांऽइव
वय॑ःऽइव
वयाःऽइव
वर्मीऽईव
व्पस्यऽद्व 3
वसतोऽ्डव
वस्त्रा ऽइव "४
व्रण ऽइव
वाःऽइव `
वाजंऽङ्व
वाजयन्ऽइवं
वाजांऽ्डव `
वाजिनि ऽइव
वानीञ्ड्व व
वाणः ऽइव |
वात॑ःऽइव 1
वातैऽङ्व
वातस्मऽङ्व
वाताऽङव
वाता;ऽङ्व
वायोःऽइव |
वाशीऽइव
वाघ्राऽइव
वाध्राःऽइ्व
वासय॑सिऽइव
विऽदुरव
विजःऽडव
विषुण्डव `
विद्वाविष्ड्व
बिद्ष्याश्डव =
विदुषौ इवेति वुषौऽ्व `
विधर्वाष्व `
धन ८
वृक्षाःऽइव --
ृषाःऽईव शूंगाऽइव ससा ०ईव
वृता$ इव शंगांणिऽइव ससर्तीऽडव
ताऽईव श्येनस्य ऽइव ससुवांसैऽङ्व
श्येनाऽ्दव सदसरैणऽइ्व
वृष श्येनाःऽइव साची ऽइव
५ (1 वृषभाऽ इव ` येनान्ऽइईव | साधारस्याऽइव
| ` वुरघाज्डव ` | श्येनोऽद॑व सामगाःऽइईव
वृष्टिःऽ्डव रर्ये तःऽइव सारधाऽडव |
` पृष्टिमान्ऽईव ुरीवाभईव
वृषटीऽईव ुषटीवानां ऽइव सिंहाःऽइव
`" वृषेःऽव परो्टौऽङ्व सिंचती;ऽ३व
1. शवद्नीऽइ्व सिंभरंःऽइ्व
` पेकऽ्व ्भ्राऽ्डव सिंभुऽङ्व
| त्रनाऽईव श्वानांऽङव सिंधून्ऽइव
व्रततेःऽइव | संशि्चयीःऽ इव सिंधोःऽडव
नताऽदव सदऽड्व सिंीऽइ्व
शकटीः;ऽईव ससव सुदिनांऽइवं
1 शकुनख॑ऽइव ` ससऽय | सुदुषाऽइव |
शकुनाःऽईव घपत्ी;ऽइव सुटुषां ऽइव
। शृतानीकाऽडव सिःऽइ्व सुदूशीऽव
( ध. शनकेःऽइंव म | सिऽइवं सुधिताऽडइ्व
शनेःऽ्डव सप्तं इवेति सम्नीऽइ्व पिणं ऽइव
शफोऽरंव 1 ८ ; ^ समनगाःऽ६व | यःऽ ड्व
, शमिताभ्डैव | ` सम॑नाऽङ्व सू ऽइव
शंयू इवेति शंयऽईव समनाऽईव सूथेस्य ङ्व
1 शर्धासिऽङ्व ह । समिंतोऽङ्व | | सूयाऽङईव
(५ - ; शंहाभ्डव < समुदरःऽहव सू्ोःऽरव | ।
शाक ऽइ समुद्र मूपाचंदृमलोभङ्व
` शासुःऽइव समुरस्य ऽइव सष्य॑वाःऽइव `
शिचिराऽईव समुदराय॑ऽइ्व सयाऽइव
पपी
५५
आरुषी
गोऽ इष्टो
म्रतिऽङ्पं |
भस्तं ऽदने
सं ऽके
नि ऽरधं
मऽखं
समू ऽईंखय
` वाचऽहलयः
वाचं ईंखयं
मऽ
समीची इतिं सं ऽ्ी
संऽईचीः
संऽईचीनाः
संऽईचीनासंः
समी चीने इतिं सं ०ईचीने
संश्श््योः `
ॐ
संऽश्नमानः
संऽङ्धे
मतिं
सभ्य
रिऽ
परेयिवांसं |
परदुः ।
उप्युषः
स
॥
|
/
|
उत्ऽङ्णणाः
चार्टर `
साऽडष॑त् `
रनेऽ्षं
उत््देषितः
उपवे
आाऽडंक्ता
| सुऽखक्तानिं
+ उक्ताय
` सुभडक्य
सयऽउंक्िः
, अच्ोक्तिऽभिः
नमउक्िऽभिः
नम॑ःऽउच्तिं
सुऽयक्तेनं
सुऽउक्तेभिः |
ुःऽखक्तै
= सुभ्जक्
च्छं ऽउन्तो
` बृहत्ऽखंक्यः
ग
4 | | : सनुक्याः
| वृहत्ऽउं क्यात्
वृहत्$ यं | ष
^ ब्रवः
च वृहत्ऽ खसा
संऽ्डसितं `
वि ऽउच्छतिं
विऽउच्छतीं
विऽ उच्छती
विऽडच्छान्
विऽडतं
` विभ्वे .
अनुदक
अपंऽडटकाभिः
वृषाऽङद्रः
अन्यऽङंट्येः
विश्वदाय
अनुदितासः
नुद
अभिऽ उद्तः
विदंति
तिऽउधा १
वातं ऽउपधूतः
द्रेऽ॑पन्यः
(त
सुऽउपृस्याभिः
सुऽ्चपायनः
| ऽउपायना
निऽ्डघ्राः
। अभिऽय्ं
संऽउंम
्रहभ्डरुण॑
खनुस्वं
अनुस्वगेन॑
नक्तोषसां
विऽङरषि र
त्वाऽऊतः
युष्माऽ ऊतः
सुऽऊत्यः
अधित ऽ ऊतयः
चित ऽऊतयः
त्वाऽ कतयः
सद्यः ऽऊतयः
#
स्ःऽऊयः
| इरत्वाऽकताः
त्वाऽकताः
त्वाऽऊतासः
इततःऽ ऊति
अधितिऽकतिः
सच्छिट् ऽऊर्तिः
इतःऽ ऊतिः
उविं ऽ ऊतिः
शात ऊतिः
श॒तं ऽ कतिः
सहसरं ऽकतिः
सहऽ ऊतिः
असितऽ ऊतिं
सं तिंऽकर्तिं
श॒तऽऊ्तिं
श॒तं ऽऊतिं
अनूती
इती इ्तीतःऽ
शत्तंऽऊते ८ ।
सरवर
शतक
अनूनस्य -- दुः ऽरधासः,
पान्त्ःकृषटयः
भराजंत्ऽचष्ट
ये इति निच
एकञ्टका
विंऽरन
भंऽ्रत॑
प्रतिऽरत॑न
खऽर्तवः
अनुऽरुतवे
निःऽश्तवे
परिऽरतवे
अतिंऽ रवे
नुदत
पिभा
1
अपिर
अपिऽरति
परिभ
संऽरतिं
निःऽणु
सरदार
सनेनः
सखङ्कत ऽणनसः
विऽशनसा
अुतऽण्नसां
सनेनाः
विश्श्नी
सभिऽऊगवाना
सतिऽकरभिः
उपकासः
४४ द्ःऽरवैः -- इष्कनिरं-
वृषटिऽञ्ोनसा ` सततीनऽकंकतः
साहं छ | प्रऽकंकताः
सुऽ्रोजाः विऽकंटे
अभिभूतिऽोजाः विऽकेदुकेभिः
अमितऽसोजाः । विऽकंदुकेष
ससंमातिऽसरोजाः अभिऽकनिंक्रदत्
ऋष्वऽश्रोजाः अकनिष्टासः
तत् सजा चतुःऽकपदा
बाह ऽसोजाः दृ्िणतःऽकपदैः
भूरिऽस्रोजाः अभयं ऽकरः
विश्चऽसोजाः ऽकरः
खभूंतिऽसोनाः खजं ऽकरः
दशच॑ऽ्नोणये यतंऽकरः
द्श॑ऽ्रोणिं सताऽकरः
{ऽक दशंऽ्ोर्े वनं ऽकरंणात्
अगिणञ््ोकसः विऽओोद॑ने सुऽ्करै
| तत्ऽसो कसः गोऽ्ोपशा उभयं ऽकरं
संऽखोकसः विऽखोम काचित्ऽकृरं `
` दानऽसोकसं | विऽस्रोमत् - इष्॑रं
ध ^ | ५ तत्ऽखोकसा विऽश्चोमनः सूप्रऽकरसं |
न संस्योवसा विऽद्योौमनि आऽकरामहे
तत्ऽशोकसे रयऽस्ोठट्ह सुतेऽकैणसः
¦ इतेष साज्कर
दरोषाः । आश्रुत्ऽकणे
दुरोषांसः भुत्भ्करौ `
सऽं कृधुऽकरीः
॥ संऽोहे . ुत्ऽक॑सीः |
व रेणु 5 ककाटः चुत्ऽ कशी
| शुतऽकंषः करे
त
दः, शः ॥ ` [~
ह् स्कनेर ¢ मः ` |
स | । सुऽकीतिः
प्ऽ ता सुभ्कीर्
ध ह
ररक
१ | | । क्तं
4 | । द्राकुत्सा
युङ् ऽकुत्सांनी
पु ऽक्रुत्साय
पोर ऽक्ुत्सिं
पौरऽकु्ः
पौरूऽकुत्यसय
भकु्यक्
¢ प्रऽकरुपितान्
मुऽकमाणः अक्तुमारः
विश्चऽकमेणं | | महाऽकुकः
पिश व कमरा | | | आ ऽकूतिः
आऽकू्या
ठुविऽकूमिः
सेमऽकामासः | | हविकूमिऽ तमः
निऽकामासः | हषि ऽकूमिन्
पृवभ्कमे हृषि ऽकूनि
निञ्कनिः इष्वगुध्वं
चाऽकाष्य॑स्य हिङ्ऽकृएवत
मन्म वि; भ्कृरतती
धारया | च्बभ्मयः पुरिकृरवन्
क | हस्कारात् ` छ ` | परिऽकृणंति
केण | चाविःऽकृरबानः `
असंमष्टऽकाव्यः | आाविःऽकृराना
ह मत्ऽ कुतानिं
| अरऽकुते | विऽ्कृतानि
खज्ऽकृत् । दुः ऽकृत स्ताहांऽकृततानि
ज्योतिःऽकृत् मिथुभ्कृतै मंतऽकृत
तनकृत् | ` सुऽ्कृतं | स ऽकृत
पिव इ दष्कृतासः
भृर° द् | ुःऽ वृत परिऽकृत्तासः
श वनक्द् | निःऽकृतं | वषद्ऽकृति
4. यथाऽकृतं इविःऽरकुति
४ | संस्कृतं अरऽकृतिः
ककत ` ` सकृत साकृतिः
१. ` | अनिःऽकृत
वरिवःऽकृत्
इष्कृति $
विनेषऽकृत् नं भ र
भक्त त क
सेयऽकृत् परि 1
स्मोनभ्वृत् ` | ध ध
उरभ्कृत् | वष॑ट् कृं खाक
रऽवृत् |. क
ऽकृत | ५ ~ +.
| | क,
अरऽकृतः | + सरेऽकृते
$शान्कृतः | इः कृत
यितः = | देव शा 1
दुःऽकृतः | की १ तद्मऽकृतत
व वप॑द्ऽवृस्य | मक
व | हीम ˆ ५
बरह्मऽ कृत्तः । | | ध 0 जद्मऽकृतां | 4 ० | ४४ =>
हनि 4 | सुऽकृता ॥ (1
६ ध | सकता
१ ` | सुभ्कृता
स 1
परिष्कृतः 1 || गद
कण
षऽक्रतुः
श॒तऽक्रतुः
सऽ्त्रतुः
विभू ऽत्र
तनूकृत्ऽभ्यः सुऽक्रहु 9
पृथि
सतू ऽक्रतु
अरूलली कृत्य | खहुंतऽक्रु
अरऽकृपं अवायैऽत्रतु
कविऽक्रतु
शतऽत्रु
क्रतुऽययां
शोषिःऽकेशः करहुभ्यसे
इरिऽकेशः क्रतुभ्या
हिरण्यऽ्केश्चः तू इतिं सुक्रतू
पृतऽनैशं अदु क्रतू इयहुतऽ क्रतू
शोचिःऽचेशं शतक्रतू इतिं शतऽग्रतू
रि स)
हरिऽकेशुं सक्रतू इति सञ्क्रतू
वृ्ठऽ्केशाः सक्रतू इति सुऽक्रत
व्ऽनेशान् घक्रतन्
दहिरण्यऽकेश्या अभिऽत्रीतूनां
संस॑तऽकोशं अविहयेत क्रतो इवंविहयेतऽक्रतो `
यामऽकोशाः | कधिक्रतो इति कपिऽऋरतो
वन्ऽक्रघं | विकरे इति हविरो
अवऽक्रधिणं वरेण्य करतो इति वरस्य ऽ क्रतो
पोहऽक्रतः + वृष्तो इति वृष॑ऽ्रतो
सुऽ्कर॑वः “ शतं क्रतो इति शतऽक्रतो
सथाता ^ शतक्रतो इतिं शतऽक्रतो `
हेषभ्करतवः संमृहक्रतो इतिं संभृतञ््रो `
प्ये | सुतो इहि सुऽ
चतुषु | सुक्रतो इति सुशरो
` सुभ््रतुः ` । क. ५ पूतऽक्रतो |
चक्रुः | शतञ्क्रवः
पा ५१५.
4
शु्िऽक्रदं ॥ ५ सऽ अविं ऽशितं
पजेन्यः त्रं धितं
4
निऽक्रमशं
विऽग्रमणं
विऽक्रम॑णेषु | | वरिष्टऽ क्षतो
उर्भ्रमस्यं 9 बाहुऽघदः
उह्श्क्रना „`: अनिऽसूदा
अतिक्रम खादुऽघ् अविंऽशितासः
सभिऽक्रसयं तुवि | | अषि
द्षिशकराः सुञ्छयं उर् ऽति
दधिभ धिऽ रचित
स्धिऽ्करा | उरह्ऽक्षयां धारयत्ऽ धिति
अव् $क्रामतः | उह ऽ सयाः धारयत्छिती इहि धार्यत्ऽ शिते
द्धि क्रावां र्थऽसयाणि तु ऽशित्तीः
द्धिऽक्रावाणं ध उह $ क्येषु मु ऽसिततीनां
द्धिऽक्राय्णंः | | गिरिऽधित
अविंऽ क्रीतः | अषि
प्रशकरोक्छान् ॥ परिऽधिोः
प्रऽत्रीक्िनंः सक्षय | सऽधितों
भिव | ` शवं उर्भधितौ
मुतश्रे ` चरणां वंधुधित्भयः
क्रोशं | अघ् अभिऽक्ठिपन्
संभ्करोशंमानाः | अवऽकिपन्
च्व॑तः | चयावाघानां
अभिभ्यत्ारः | आवाामा
चित्वत | अषुऽ्चिः
बुश्चव = |. उपधिः ¦ |
` मुषारञ्बतः | -अषिम हः
संगच्छमाने इतिं संऽगच्छ॑माने ` सुऽगं्धि
निरगच्छत् | चान॑नऽगंधि
भरत्ऽगण ५ | वाजं ऽगंध्य
मरत्ऽग॑णः | | सुऽग॑भसतयः
सऽ्गणः । | मुऽ्गभस्िः
सुमत्ऽग॑णः | | स्मूम॑ऽ्गभल्तिः
सथैःऽगणां । । पशे ऽगभलिं
मरत्स्गणाः ` | सुऽ्गभ्तिं
पृष॑ऽगणाः; . | स्पूम॑ऽगभसिं
मर्त्ऽगंणे | दठःऽगं
दभत् | फं
संऽगता । | सुशं
भाऽगताः | साऽगमत्
पराऽगताः | | आगमन्
निऽ्गतान् | | संऽगम॑नः
सऽर्गतानि क शं ऽगमनं
साऽ्गतायां | || रं ऽगर्मनी
स ऽगतासः भष ऽगमाभिः
सर ऽग्तिं ‡
आआऽग॑तेन
स्ाऽग॑तो
श
साऽगमिष्टाः
संऽगमे
| ऽगमेषु
शंऽगयः
मदाऽ्गृयं
शंखी
अधिंऽ्गस्य
ऽ गवः
युरःऽगवः
रुशंत्ऽगवि
पुरःऽगृवी
संऽ गवे |
अधिंऽमवे
सुभगं
र्षगयूति
उर्ऽग॑व्युतिः
` इःऽगरहस्य
` दःऽगहां
दःऽगहांकिं
दोःऽगे
दुःऽगा
सुऽ गा
पुरःऽगाः
समन्गाः
मुऽ्गाः
द्ःऽगात्
तुरऽगातु
अरिष्टऽ्गादुः
सुमातुभ्या
शशररगव्
सुऽ्गाधा
सुभ्गान् `
^ इःऽगानिं
| सुऽ गानिं १
तमःऽगां
सुऽगवः- सुऽगोषाः.
अनुंऽ गायतं
उरऽगायस्
उर्भ्गाया
उरऽगायायं
ुभ्गाहेषाः
अधिऽगावः
पृश्परिऽगावः
विभ्गारं
संऽगिररः
संऽगिरं
बृरहत्ऽगिर्यः
सयऽ गिवैदसं
हः ऽगोः
सभि ऽगीतः
§ ग्
# = ।
भि # ॥
अभधिश्गुः
निऽगुततः
रभू
त ध 1 £ .
विश्वऽगूतेः
4
वि्रश्गूते `
खष्ग
` खञ्गृगीः `
` सनिऽगूिः
` विग्गूली इतिं विशचभूहौ
` शपऽमूये
पाद्ऽ्गृद्यं ..
मिभ्गृहं
हस्त ऽग
ऽगे
संऽगे
सखःऽगे
सुऽ गेभिः
दुःऽगेष
५ :
घभिगो इतभ्रिभगौ
भूरिगो इति भूरिंऽ्गो
ते मा (ितनपिनतभमिथनोीजकवमन
सि
दश्चऽग्ं
| स्िधिऽग्वखं
अवद्यगोहना | रतंऽग्वा
1);
रतऽग्वाः .
| दशऽग्वाः
। नवश्ग्वाः
| चि
टङंऽग्वासः
नवऽम्वासः
श्रुष्टि । दशग्विनः
# 1.19 | शतञऽ्ग्विनः |
१ युऽग्मानं | शृततऽग्वनं
नी
तं | सात्िषिऽग्ये
भे 5. ` क |
सपलऽम्री | १
| सपंतिऽप्नी 1
| | पारवतऽ्नीं छ = ४
सुरभये 1
नृ.
` प्रीयञ््े
नः
अर्हिभ््र
स
अथ्मान्यः ।
चा
अश्या्याः
चर्याया
चे
शौ
संज्चकानः
सऽचके न
विचक्र
विऽचक्रः ८५
चनुष्चक्दे ` उरुऽचच॑
खचब्र | नुऽच्छ॑सः
त्व ऽचक्र | सुऽच्षसः |
मु भचर | खपांकञ्चषृसः `
अङुमंऽचत्र नुऽच्सः |
उच्चाऽचक्र सूरऽचक्षसः
रनैऽचत्र ' :| ` उहऽच्॑सं
श॒तऽचंतर नुऽचक्षसं
सप्रऽचंर उपाकऽच्॑सं
विभ्च्रमाणः भ्रूरिञ्चससं
विभ्चक्रमे ` सरस्ंऽचष्सं
उरभ्वक्रयः = ` ` | उह्ऽचक्षसा
चरवक्रयां ` ` नृऽ्चध॑सा
। निभ्चन्रया | ईयभ्चघुसा
शोध॑ऽ्चक्राः ।
भाऽचत्रायः |
पऽच
` हिर॑ण्य ऽचक्रान् ४
उरूऽच्रिः | ५
अश्यानां
श्याऽचक्रिः
सखं;ऽचल्ाः
अभिऽचरछषाणः
म्रतिऽचक्षाणः
विऽ्चघांणः
संऽकल्षाणः
सऽं
सधोरऽचस्ुः
अभिऽच्यं
परिऽचच्य
प्रतिऽचष्या
आआऽचलादं
प्रऽचतां
सऽन्वनाः
खं॑;ऽचनाः
सुऽ
सुभ्व
पुरुऽ्चद्रः `
इहरिऽचंदः
&. ॐ,
पुरूऽचंद्रा
परुभ्व्राः
्र्य॑ऽचटाः
अन्व् .रः
५१५
कष
संस्र
व्च ऽचषेशि
विऽच॑पेणिः
विश्चऽच॑षेशिः
पिऽ्च॑षेशिं
विश्वऽच॑पैशिं
| विच॑पैणी इति विऽ्च॑दैौ
रऽ चेशे
विऽ्च॑पेणे
विऽचेणे
विश्॒ऽचवेणे
४)
अव् ऽचारकशत्
प्र ऽचाकंशत्
विऽचाकशत्
र्वि ऽचाचलिः
सभिश॒स्तिऽचातनः
समीव व ऽ्वातनः
समीवऽचातनं
समीवऽचातनौः
निऽचारयं
सऽचितेः
इरः ऽचित॑ः
निऽचितः
चितं
विपःऽचि
इरःऽ चितं
साऽित
साऽचि्तां
विपःध
विपृःऽ चिता
सपंऽचि्ति
अनि
विपःऽचििं
अचि
पूव ऽचित्तये
सचि्तात्
९४ विऽचृ्ताः-- परिऽचिनाः.
विऽचतताः निऽच॑ताय
प्रचेत इतिं प्रऽचेतः सुऽचेतुनं
भ्वतः ुभचेहना
पुरूऽचेतैनः प्रऽचेतुनं
अविऽचेतनानिं निऽचेरः
म॒ऽचेतयन् रभञ्चोदः |
सुऽ्चेत॑सः | अचोदते |
` चेतसः ऋूषिऽ्चोरदनः
| ` प्रऽचेतसः रभऽचोदेनः
अविं ऽचेतसः कीरिऽचोर्दनं
` प्रऽचेतसः रऽ चोद॑नं ` |
प्रऽचेतसः त्रब्ऽचोद॑नी अनं पऽ्युता
विऽचैतसः प्रऽचोद्रयः मद् ऽध्युता
विभ्चेतसः म्रऽचोदय॑न् घथुताः
परज्चोदर्यता विऽ्च्युताः
प्रऽ्चोदयांत् वृष॑ऽच्युतताः
अचोद्सः च्युतानां
वात्॑ऽ चोदितः च्युतानि
:ऽच्यवनः ॑ अप्रऽच्युतानिं
ुःऽब्यवनेनं ।
गंभीर ऽचेतसा सपऽ्च्यवं
| प्रऽचेतसा उपऽच्यवं
परशचेतसा । परऽच्यवर्यतः
विऽचेतसा पुऽवच्यव॑सः
सञ्चैतसा | भुवनऽच्यवानां
मभ्चैसे | | प्रतिऽच्यवगेयसी
शेः चच्यतश्छुत्
अग्र॑ ऽचेताः | मद्ऽ्युत् |
` दधऽचेताः । : अच्युत ऽच्युत् |
प्रऽ्चैताः : धन्व ऽच्युत
प्वैतञच्युतः
[कि 81
नभ्य
धनंऽनयः
स्रा ऽजरयत्
संऽजयंन्
विऽजर्यत
धनंजयं
प्रऽजयां
संऽ्नया
| व
श्चाऽनगामं विऽज॒याय
सजर
खपऽनगुराणः (= - --
३ऽभगमानं अजरः
संऽजग्मानः -
क खजर
अनरयु इतिं
साभ्जरसायं
विश्चऽ्ननयाः |
प्रतिऽजन्यानि ¦
विश्च ऽज॑न्यां
पांचऽजन्यासु
विश्वज॑नये इतिं विश्च ऽज॑नय
यांच॑ऽजन्येन
सऽन॒भारं
कञ्ज
अभिऽन्ः | | वृष्ठऽ्ं |
बान्जृकरः | पृलष्िभनमदुगः
8, र
यात्यत्ऽन॑नः | विश्वामितनमद्ग्नी इतिं
॥॥॥ [त 8 8 1
छै
द
मन॑ःऽजवसा
मनैःऽजवाः
मन॑ःऽजवेभिः
मनःऽनवेषु
अजस्य
1)
अनस
अजेखः
अजस
जस्या
अज॑स्रा
सजंस्राः
अज॑स्रेण
जसः
्रऽनहितानिं
पुणऽजा
प्रभ्जा
सनऽजा
भवनैः
सनऽना
खट्िऽजाः
सप्ऽजाः
9.
ऋृतऽजाः
ऋतेऽजाः
निरिऽजाः
गोऽजा;
द्विःऽजाः
दिविभ्नाः
ेवऽ्ाः
डिष्जाः
नभःऽजाः |
ध
#
वीरऽ्जातिं
मनःऽजवसा -- मुमत्ऽजानये.
भ्रवातेऽजाः
6
वनेऽजाः
सनःऽजाः
सनऽजाः
सहःऽजाः
सह्ऽजाः
खञ्जाः
खयंऽजाः
ऋतं ऽजातं
५
तुविऽजात्
भियभ्जात
सुजात
४४
तुविऽजातः
पुरूऽजातः
सअआऽजातिः
चृत ऽजतिः
नवंऽजातः
प्रजातिः
सुऽजातः
सुऽजञाततां
सुण्नातं
खन्यऽजतं
नतंऽजातं
प्रजातिं
मनुंऽजातं
देवऽजातस्म
नवंऽजातस्य
मुऽजाता
अाऽजाता
मुऽनाता
विऽ्नाताः
सुऽजाताः
ऋृतऽजाताः
गोऽजातिाः
तुविऽजाताः
देवऽजाताः
वामऽजाताः
सञ्जाताः
सुऽनाताः
सुऽजाताः
सऽजातान्
सुजातान्
अजातान्
देव ऽजाताय
मुऽजाताय
सुऽ्जातासंः
सुऽजाति
सुनि
हुषिऽनातो
सञ्जाय
सऽना्यस्य
सऽजा्ये
सञ्जायेन
तपःऽनान्
रतिऽजानते
मरजानन् `
पिभा
संऽ्नानानाः
उवेशाऽजितें
गो ऽनिते
धन्ऽजिते
नुऽजितें
विषऽनित
सताऽजिते
सःऽ
सऽजित्वसीः
षऽजिर््वानं
सऽजित्वाना
धियेऽनिन्वः
धियंभलन्ं
॥ ।
धयंभनन्ा
विश्वऽजिन्वा
धिरयंऽजिन्वासंः
परजेन्यऽनिन्वितां
सेऽनिहानं
उत्ऽजिहांनाः
१.१
शभनिः `
मध्रुऽजिद्ः
द्रऽनिः
रऽमुजिद्ः
शुचिऽ निदः
दिरुष्यऽजिद्ः
मुऽजिडं
५.2
सए ऽ निद्धाः ~~ सुतऽज्ञाः,
सप्रऽजिंडाः खलु
ठपऽनिद्िका देवऽजु् न
सुऽजिद्धो अनुं
दीषपेऽजिद््यं देवऽजुंश
1. :: ` व्ये मुऽनुशट
(५ । अजीतिं नुत्
(५ गोऽजौप्या सनुंशन्
उपऽ्जीव॑मि सजुंानि । ।
समाऽनुरः सनिः
धियाऽ्नुरः हव्य ऽज
निऽ्नुरः ` देवज
् नुं
ऋत्ऽु भाऽनुरोति
| सनाऽनुं साऽनुदहानः
भुं साऽनुद्हानस्यं
श्राऽनुद्दानाः
खद्विऽजूतः
दिभ्य
ईद्रऽजूतः
दऽसुनूतः
देवऽजूतः
` बाहुभ्बूह
। जब॑ऽनूतः
` बातैऽ्ूत
` स्येनभ्चत
देवभ्नूं
| बात्॑ूल
#
॥
सतद्राः | |
आँद्रासः ` 1 | ४
विभ्नवते क.
अग्निऽ्तः
साऽतर्पः ४
चाष्तष.. . ` `` | +
सग्नितिपःऽनिः
परऽ तपन् | ष
सांऽत॑पनाः ।
पर्टिऽत्ं |
निःऽतपा द
सग्निऽतपेभिः
परमज्या । ाऽतता
॥,,9..।
अधने
दृस्ती
संऽत॑रतं
रंभे
संऽतरेयुः
विभ्वं
५ विऽतुणः
सुऽतमौरं
सुतर
सखऽ्तंवः
खभ्वः
शप्रऽततवसः
सऽतंवसः
+
प्रत॑वसे
( स्व ऽतवसे
५ सखभ्देवान्
अनिंभृष्टऽतविषिः
सं ऽतवीत्वत्
अतव्यान्
विन
< सुऽतं्ः | |
= क्ंऽतस्यानाः
विभ्तस्वानां
संस्थाने इति संभस्पाने
| बतस्विऽ्वासः
चसविव्वासि
॥ ह 2
अप ऽतस्युषः
अहि भतस्यो
उन्तानः
उ्तानां
उत्तानायां
अविं ऽतारिणीं
नितिक्ताः
निऽतिक्ति
मरऽतिरन्
प्र ऽतिरितौ
मृऽतिसते
मरऽतिरतो
प्रऽतिर
विक
अधिऽतिर्ट्यः
अधिऽ तिष्ठन्
उद्तिषन्
विऽतिठन्
उप ऽतिष्ठत
ऽति
उपति
उपऽिष्टमानः
उपऽिष्ठमानां
विश्न
भनी
ऽतीधो
केः
ऽहुकां
ऽहुकाः
रन् |
रभः
विष्चऽूः
स्यत्ःऽभिः
सतरूतुनिं
|
|
7
सुभ्दतः
¶श्द्षा
दौनऽद॑छाः
पून ऽदंछाः
समानऽदंसाः
पूतऽद॑शषान्
मुऽ्द्छिंणः
सुऽद्धविणं
प्रथतऽदसिशं
वज्ज॑ऽ्दध्षिणं `
सरलऽदधिणाः
सद्क्िणासंः
प्रयत्ऽदश्िणसः
प्रथ्दुकषिणित् |
सर्र ऽदध्िणे
एल् दषाः
सतग्निऽद्ग्धाः
क्रिविःऽदती
त्वाऽदत्तः
युवाऽ दलस्य
युष्मा ऽद॑त्स्य
जमदगिनिऽदच्चा
त्वाऽद॑चेभिः
गोऽ
पुर ऽदत
षुत
सदवऽ्या
9०२ ५४ | श्ाऽददिः- भूरिऽदावः.
9 ४५
आऽद्दिः अदंभेभिः उप् ऽद्स्य॑ति
पयशददि अदैः अविदस्य ^
संऽदुदिः ःऽद्भ संऽदहतः ।
दद इति स्रौ । द गन्दा
साऽद्दे ^ आञ्दभ॑त् खश्ऽटाः
| उप्ऽद्द्यमनि ¦ ऽदं आत्मऽ्दाः । +
खाऽदर्धत् | दभा ` ओजः ऽदाः
` निष्दध॑त् | ;ऽद्भांसः गोऽदाः
विष्द्धत् ` चाभ दरविणःदाः
| खाऽ्द्ध॑ते चाऽदभे | धनऽ्दाः
चाऽद्धरैत् रद वलऽ्दाः
शा ऽद्ध्धेति सननुऽ दं भूरि ऽदाः
आऽ्द्धांति - सभितऽ्दभनः वस्त्र ऽदाः
याऽ द्थानः | वाजश्दाः |
प्रत्ऽद्धानः वासःष्दाः
निदधिरे सहःऽदाः
चाभद्धुः सहघरष्दाः ` ॑
निष्दधुः सुष्दाः
वि्द्भुः | सस्तिष्दाः
संश्धुः हिर ऽदाः
खाण््भ भूरिऽ्दाः
अपंश्ात्ऽदश्वने सुदाःऽत्त॑यय
शुचिभदन् ऋश्य ऽदात् |
श्रणिष्दन् त्वाऽदातिं
हिरणयभ्दतं ` चोजःऽदातैमः
सटवभ्दातमं
हव्यऽ्दांत्ये
अब्दा `
दिविःऽदासेभिः
असंऽदितिः
निऽदितं
संऽदितं
निऽदिता
अऽ दिशति
एमं ऽ दिद्यवः
`+ र शः
शे अभिऽदिष्खः -- चनु ऽद्य
चमिऽदिष्खैः सुष्दीदिति संदृक्
भ्रऽदिवंः सपि ऽदीधयु खःऽदूक्
सऽ्दिवः प्रऽदौरध्याना सऽदूङ्
सुऽदिवः | आ ऽद्य आऽ
वृहत्ऽदिवः ॑ सप्र॑ऽदूपितः
` वृहत्ऽरदिवस्प प्रति सदुंपिताय
प्रऽदिवां सिऽदीव्य
यृत्ऽदि्वा अदऽदुग्धः
बृहत्ऽदिवाः अद्धिऽदुग्धाः
| प्रदिवि खप्रऽदुग्धाः
अहःऽदिवि सवषु सदत
विदे कषस चह दृ
मृहत्ऽ दवेषु सवःऽदुघां द्रेऽदुशः
बृहत्ऽदिवः सुश्टुषां यघृऽदूशः
सआाऽदिशंः सवः ऽदुधाः सं ऽदुशः
प्रदिशाः सुऽदुरघाः सुश्दुशः
सवःऽदुर
ष्टौ
सवःश्दुर्धायाः |
मभूदुषे इतिं मथुऽ
सवे इतिं स॒वःऽदचै `
सुहधे इतिं सुऽ
अनिभ्दरोहं
| समहर्षयः शतऽदुरस्य ` सखःऽदुशां
1... संदृशि
ति ध स्मत्ऽदििः । सुऽदटूशौ
५ मणी बि लहरी सऽदशौः ¦
1 सादिन् सुष्दृशैः
दिह
दीतयः
५
८ अभि ऽद्यृश्नाः सद्र॑येतं प्रऽधने
(१ | सुश्च सह्धयाः ` महाऽधने
` त्वेषऽुन्नाय सद्धयाविनः प्रऽधनेषु
तुषिऽुत्नासः अद्ध॑याविनं ; सुऽधनो
| कमष्डुवं॑ षद॑यावी ` स्नः
(` श्कन्दुः सद॑ शतृ
.- (2 सयू | वृकोऽद्वरसः जीवऽरधन्य
इल कृ री कृ न
। सुद्योत्मानं | साऽट्ादुजं जी वऽधन्या
1.“ ` पुहष्टरष्णाः घर ऽद्वा प्रऽधन्यासु
। = नितब्द्रवः रधमानऽधिट् स्विरऽरथन्बने
ण सनृ न
वाजं ऽद्रविणसः | ति षद्विर्षः ` उग्रऽधन्वा
(व. जश्दवि्षः सिप्रऽध॑न्वा
1: रन डि सुऽ्न्वानः
निः निऽधयः
सुभः प्िऽधय |
बः मृध॑ः
1 मतिञ्थयः
| चह निऽधयां
चदु द्वेषः रऽधये
दुहा विश्वेषणं डःऽधरं
ध | खदहा | परिऽद्वेषसः दुःऽधसंतु
, अन॑भिऽदुहा युतद्ैषसः | विधतैरितिं पिऽधतैः
अदु. यवयत्ऽदषसं | विश्पतिं
अनिऽदूरं पिभ्डेषतं ुःऽधवः
भ्दाणा =: वीक्षां विऽति
त््ेषाः |
यवयतश््रैषाः `
शद्धे इति
रत्नधाऽतंमः
ब्रिवः ऽधातेमः
सवेधाऽत॑मः
रतधाऽत॑मं
सवेधाऽतंमं
विधातरि पि ऽधो
चिऽधार्दवः
विश्पं
विऽधातूनि
निऽधातोः
यातुऽधानं
यातुऽधानः
सोमऽ्धानंः
साऽधारन
निऽधानं
यातुऽधानं
विऽधानं
सोमऽधानं
यातुऽधान॑स्य
अपिऽधानां
निऽधानां
यातुऽधानां
विऽधानां
यातुऽधानाः
सोमऽधानाः
यातुऽधानात्
यातुऽधानान्
मडूरऽथानिकीः
अग्नि ऽधानें
यातुऽधान्यः
निऽधानय
रत्वेऽ्धाभिः `
{धां
वयः ऽधां
वरिवःऽधां
विपः
प्रियऽधामाय
कारूऽधायः
| वि्वऽ्धायः ॑
र
०
पणत
1
भूरिधारे इति भूरि ऽधारे
सहस्र॑ऽधारे
विऽ्धार्वतः
सव्ऽधावति
प्रऽधावंति
परिऽ्थाव॑सि
मितऽधित्तये 3 चुतऽधीतयः
नेम ऽधित । अतऽधीतयः
गुव ऽ धिता | ऋूतधीतिऽभिः
सुऽधिता | | जरह्धौ्िं
सुऽधिताः | अपिश्धीन्
;ऽधितान् ‰ | ` इषुऽधीन्
मिऽ्धितानि . 1 निशऽ्धीन्
` सुऽ्धिततानि परिऽधीन्
` वनञ्धितिः | निभ्धीनां
खऽधितिः | | लिऽथीयमानं
वसुंऽधितिं < | प्रतिऽधीयमानं
सखऽधिंतति | | अधीर
वसुधिती इतिं वमुंऽधिती | यज्ञीयः
सुऽधितेभिः ` | आऽधीषमाणायाः
खऽधितो | | गोऽशरुक्
भिधिि ` | शेव्ःऽक्
निभ्चिभिः
नामऽधेयं
भागऽ्धेयं
वध्वः रतभ
खवू = | सतभय
अवश्भूनवानः | रलभ्चेयानि
ुश्धूपितासः ` रत्ेऽ्धेयांय
वयःऽभेरयाय ¦
वयश्च
खऽ्धैनवानां 2
#
सञ्न॑ंडा
आऽ
साऽनंदाः
तनू ईऽनर्पात्
तनूंऽनपात्
तनू नपात्
तनू ई३ऽनपातं
प्रनपादिति प्रऽन॑पान्
सभिऽन्य
सआऽननं
संऽनममानः
सनमस्युः
निऽनेमे
विऽन॒यः
संभनयः
प्र नयेत
म्रऽनयसि
संऽनयानि
संऽनर्यामसि
शिषाऽनरः
खःऽनुर
ख॑ःभनरं
सखःऽनरात्
॥॥
‡ऽनामां
सप्नरऽनामा
सुमुऽनामा
सऽनामाना
अनामि
अहि ऽनास्नां
सुहवीहु ऽना
उपऽ्नायं
` वि्नाशय॑न्
` ईंदरनासत्या
निःऽनिक्
` विऽ्निचै `
षिते तित त निन क स ५५
निः5 निजे यु्माऽनीतः |
त्राऽनिर्दः सवे ऽ नीतं |
| देव ऽनिदः उपंऽनीतं
मु § निधा प्रऽनीतं
आअऽनिनायं मुऽनीतर्यः
प्रऽनिनार्य प्रऽनीतयः
उद्ऽनिनीयः युवाऽनीैतस्य
अनद्यः उपंऽनीता
अनिद्य उत्ऽनौताः |
उपऽनिपद्यमानं अव॑ऽनीताय
केऽनिपानां प्रऽनीतिः
आकऽनिपासः वपैऽनीतिः सऽ्नीव्भिः
श्िंऽनिपेषितासः वामऽनीतिः तुत
ऋतनिऽभ्यः श॒धैऽनीतिः हुल
अनियतः सहच्रऽनीनिः ४
न क क
यृतऽनिंनिक् | १ स छ
चुतंऽनिर्निक् क 1 मि नम्य
चंदूऽनिंनिक् चर््रऽनौतिं हषिभनून्
दिरण्यऽनिर्िक् . असुतो एषिनः
अधिऽनिनिंजः 0. वेषनुम्यः
भि 1 विऽनुम्ं
चरनिनिज ^ त पुरऽ नृम्णाय
१ हुनऽनेज॑नं
प ५ मनति प्रऽनेतः
चाधि प्रनेतरितिं प्रऽनेतः
शा अभिजने
सुऽनिष्काः मभ्नेता `
1 ध प्रशनेता `
व | मरशनेताई
५८
हिरण्य ऽपरं
ऽपसः
विऽपक्षसा
मास्पचन्याः
विभ्पंबाशः
शचि ऽपत्
प्रनाऽपतिः
वसुऽपतिः
चाजंऽ पतिः
सत्ऽ पतिः
स्व ऽपतिः
स्वःऽपतिः
हविःऽपंतिः
बृहस्पतिना
वनस्मतिंऽभिः
वनस्मतिंऽभ्यः
नुऽप्ति
वृह्मि
वरन॑स्पतिं
विश्पतिं
शची ३ऽ पतिं
गणर्प्तिं
गायऽपतिं
गृहऽपतिं
व कर
स्व॑:ऽपरतिं
सदस्पती इतिं
गोप॑ती इति गोऽ्प॑ती `
दंपती इति दंऽपती
नृपती इतिं नृऽपत,
मदपती इति मट्ऽपतप
^ ४ सनि ` दनैः ॥
वनस्यती इतत
शनीपरी इतिं शचऽपती
सत्प॑ती इति सत्ऽ प॑ती
सिंधरुपती इति सिंुंऽपती
सख॑ःपती इति खंःऽपती
वनस्पतीन् `
सत्ऽपतीन्
हभत
गृहऽ्प॑ल्ी
दुली
वाजंऽपत्नी
वीरऽप॑त्री
` नृश्पत्नीः
सुपत्नी इतिं सुऽपल्ौ
विश्पते -- परिऽपंयिनः.
. ___ ~ --------~-------------------~---~----------------------------~--- ~ ` ~~
.विष्पत्नी
सऽपल्ली
सिप
शतपत्ऽनिः
विऽप॑त्मनः
वीकूुपत्॑ऽभिः
जाःऽपय
अधिऽपय्य
गहं ऽपत्यानि
गारऽपत्याय
गाह ऽप्येन
सेव॑ऽपययेषु
शतऽपतः
अद्डितऽपताः
अशु ऽपां
रधुऽ पत्वा
श्येनऽप॑त्वा
रुऽपा्वानः
आऽपंययः
विऽप॑ययः
सुऽपथा
अनुऽपथाः
चखंतःऽपयाः
प्रिऽपदं
भःऽपदं
ऽपां
दिऽ्पदा
अपटुःऽपदा
चतुःऽपदा
1.
अवःऽयदात्
प्रऽपदन्यां
दिऽपदा
अपद्
चपदी इतिं
सुऽपदौ
अष्टाऽपदी |
रक ऽपटपै
यृतप॑दी
चलुः ऽपट्पे
नवेऽ पटौ
अशटऽपदौीभिः
सष्टाऽप॑दी
चतुःऽपद्ीं
पान्तमा
शमितो ोनकृतन् ५९
वात्तापनैन्या
क ष. |
गन पनैन्यो
~ परैः
॥\4
सपाशः
सुरपलाशं
| मुऽपलाशे
कृष्णऽपंविः
श॒तऽपंविताः
वीक्ष विऽभिः
द्दुशानऽपवेः
अनंष्टऽयशुः
सुशत्ऽपशुः
विऽपश्यति
छव् ऽपश्यन्
सऽ पशयन्
प्रऽ पर्यतः
परिपश्यति
सभिऽपश््येती
प्रऽपर्यमानः
संऽपर्यमानाः
वाजंऽपस्यः
वीरऽपस्यः
लि पृस
सश्च॑ऽपस्यं
वाजं ऽपरं
चनुऽपस्पशानं
भिरि
गोपा
तनूऽपा
तपुःऽपा
प्रःश्पा
प्रऽ्पा |
१४
अभिशस्तिऽपाः
ऋृतःऽपाः
ऋूहुऽपाः
कु्कऽपाः
गोपाः
तनूऽ्पाः
पयःऽपाः
परःऽपाः
व्रतञ्पाः
शुक्रपूतपाः
शेवधिभ्याः
सुतऽपाः
सोम ऽपाः
स्तिऽपाः
द्रिभ्पाः
हविःऽपाः
सनुहुऽपाः
चहुभ्पः
शु्रिश्पाः
सुतऽपाः
सोमऽपाः
सोमऽपाः
शृतऽपाकं
पृथुऽपाज॑सः
सहघ्र॑ंऽपानसः
पृथुऽ्पाजंसा
सुऽ्पाणिः
पृथुष्पाणिः
वीक्ुऽपांणिः
र्ण्यऽपाणिः
वीकुषापिऽ्भिः
दरवत्पांणि ऽभिः
हिर्ण्यपाणिऽभिः
मु ऽपाणिं ध
मधुंऽपाणिं
हिरण्य ऽपां
मुषाण इतं सुपाणी
दरवत्याणी इति द्रव॑द्ऽपाणी
वीकरुपांणी इतिं वीट्ुऽ्पाण
सुपाणी इतिं सुऽपाणी
हिर॑ण्य ऽपाणे
पात्
विभ्पात्
दिभपत् `
रकैऽपात् `
चतुःऽपात् `
विश्तैःऽपात्
ससंऽपात्
निऽपातैः
| इद्र पातनः
सोमऽपातमः
सोमऽपात॑मं
सोमऽपातंमा
मधुऽपातना
वृष्या
नृष्पातादः
निऽ्पातिं
चतुःऽपादः
सपादं |
विऽपादं
पंचंऽपाट्ं
सहऽपादं
निऽपादाः
हिऽपाद्
गोपान्
शत्ऽपान्
ईदृऽपानः
देवऽपानः
नृऽपानः
अवऽपानं
ईदरऽपानं
जनऽपानं
क)
[थे
अवऽपानात्
देवऽ्पानानि
वृषऽपानांसः
अवऽपनेषु
वृषपाणेषु
अगरेऽपाभिः
ऋहुऽ्पाभिः
गोपाभिः
कुंडऽपाय्यंः
५
नुऽपाय्य
पूैऽपारयं
बृहुऽपाय्य
बृह् ऽपाय्
अपारः
सुऽपारः
संऽपार्णं
पारं
सुऽपारं
धतिऽपारयः
१.५
सुऽ्पारः
अपाया
सुऽपाणसः
शरपारे
अपारे इतिं
अपारेणं
५.
सोम्ऽपावन्
अभिशस्तिऽपावां
सोमऽपावां
हि्रण्यऽपावाः
सुतऽपाद्नः
सोम ऽपात्रः
सोम ऽपान
सुतऽपा्न
ईद्रपूषर्णा
सोमापूषणा
सोमापूषणो `
सोमापूषभ्यां
इद्र
आऽपु
उप्
विऽपुंक्तः
सं ऽपुंक्ाः
|
` आऽपृचे -- ऋतऽप्रनातां-
कवोयनभसथतनोपिननतिवानथिि 0 ५ +
वीतऽपृष्टाः
सोम॑ऽपृष्ठाय
सोम॑ऽपृष्टासः
` विपृच
विऽपृच्छत
विपृच
८
, ` वंपुभपच्छ॑
। ध \. (6 | ॥ ध साऽपृ्छयं
भरत
(0 ५६ | 7 संऽ्पुचानः
(ता.
ध अपुंशातः
` भृन्
= सआऽपृंतः
ध अरपुणंतः
८. ` पुं
द्यावापृथिवी इतिं
धावापृधिवी इतिं
हू
| व्रिऽ्पृष्टः ` (५
पृत्प्ट
लीलैषप्ः `
चीतभ्पृष्ठः `
` शम
खर्प
सुत्पो
आऽप्या्यमानः
आाऽप्यायमानाः
हिर॑ण्य ऽप्रउगं
कृष्टिऽप्रः
ऽप्रकेतः
ऽपे
ऽप्रकेतेभिः
सोमऽपेर्याय
` तुरःऽपेयं
` नुऽ्पेशंसः
सुऽपेशसः
पुरुपेशसं ¢
` सुभ्वं
अश्च॑ऽ्पेशसं अ
पृथुऽप्रगानं
पृथुऽप्रमामा ध
समिति ४ |
अमिश्प्रच्षे
सुऽप्रचैतसः
वत्सस्प्रचेतसा
1 [ , शि 1
सप्रजाः
वहुभपरनाः
तथ मवतकमतोतन
सुऽप्रनीती
सुभ्मनीते
णां
सुभ््पाने
सभिऽग्रभंगिनंः
वृषल ऽप्रनमे
वृषऽप्रभमौ
अर्देयनतऽप्रमततिः
दशंऽप्रमतिं
1;
वाजऽ प्रमहः
सहऽप्र॑माः
वातंऽप्रभियः
सभिशमुं
पुष्ऽप्रयनः
| देषैऽप्॑यज्यं
उपमयन्
| उप्र
पुरभ्प्रेषाः `
9१
कधृऽप्रियः देवस्स॑रःऽतमं
अभिऽपनियं मधुऽप्छरसः
ऽपि देवऽप्स॑णः
पुरऽभ्रिं सप्सवः
यु ऽप्रिया अर्ण ऽप्सवः
शअरधरऽप्रिया अहूतऽप्सवः
यत्रय ुषित्प्स॑वः
कथऽपिये ष॑ऽप्सवः
पुरुभ्भेये ` विश्व
परिऽग्रीतः अहणस्प्सुः
सुऽप्रीतः विश्वञ्प्सुः
परिश्रिता ` | वृषऽप्सुना
मनुऽप्रीतासः मुषितप्सुऽभिः
उद्धू णऽ
उद् धितम
उप्तं विषण्ु
विश्धुतं तपस् इतयतऽपू
कृष्णभत विश्पसय॑स्य
चंतरिशयुद्ऽभिः विश्ऽप्ल्याय
मपय परप
अभरऽपुषः सुऽफल
तभु चपलाः
परिष
वृ
षृषा
~ आऽवायन्ं
वु
कधऽप्रियः -- वृक्तऽवरहिंषः.
सऽ बेधवः
सुऽवेध॑वे
चछृपिऽवंधवे
दव
सुऽवभ्रः
वि ऽवधुः
तत्ऽ वधुः
मृदयुऽवेधुः
यज्ञऽ्वधुः
शुचिऽवभरुः
सुभव
पूतवभरू इतिं पूतऽ्वेभू `
सरवधू इति स्वभ .
समानवेशू इतिं समानऽवभू
ृष्टवंषो इतिं पृषटथ्वंधो `
सु॑धो इति सुऽवंधो
सुऽवंधोः
देवऽवधोः
विऽवृकषाभि
विऽवभाजं
साऽनभू्ं
सऽ्वभूवं
च बाधमानः
परि बाधमानः
सऽबाधसः
1)
^
उग्रऽबाहुः
| वन्न ऽबाहुः
। विगतैः ऽबाहः
दिरण्यऽबाहुः
चृवाडुऽभ्ा
वन्रेऽ बाहुं
वज्रबाहू इतिं वज्रऽवाह्
°व॒ज्रवाहो इरि चज्रेऽवाहो
सुबाहौ इतिं सुऽ्वाहो
सरघ्रं ऽवाद्
प्रति ऽवुद्धाः
उभ्ःऽ धुः
उपः ऽनु
मरऽवुधां
प्र ऽवुरधि
|, वु
अदिऽवृभः
चंद्रः
वमः
म
थ
दरावृहस्यती इतिं
नरंऽबोध
विऽबोधनं
म्रऽबोधर्यती
प्रऽवोधयंतीः
नि ऽबोधात्
निऽबोधिषत्
श॒तऽज्रशषः
अनव्ऽब्रवः
[सि "1
मुऽजद्मणय
अन्रतां
सुऽब्र्ा
सन्रद्या
कृतऽव्रद्या
सत्र्माणः
सों ऽव्रद्याणः
सुऽब्रद्मांणं
हुविऽत्र्याणं
सतुऽुवाणः
भरच्ुबाणः
ई द्रावृहस्यती इषि
इद्रात्रह्मणस्यती इतिं
५,
जन ऽभः
= धन॒ऽनघषु
५
सुऽभर्गः
` आऽ्नगः
भगृऽत्व
बुशः. ("ह | | सुभसत्ऽ तं
भ्रानि त ५. | आभिञऽ्मा
छ सुऽभग॑स्य ४ (7 | रेऽभोः
ष्मणा | सम्भव्य ` सुऽ्भागाः
ऽग 8 र कः सुऽभागान्
ऽभगांन् । विऽभागे
वमनाय ९ पितुऽभाजंः
सुऽभगांसः
ऽभगासः
ऽभगे
ऽभ॑गे
ऽभगे
सुभगे इति सुऽभगे ,
सुभगे इति सुऽभगे
रत्र ऽभाज॑ः
वाम ऽभाजंः
अभाजः
पै ऽभाजं
परथम्ऽभाजं
& | ातऽभाजां
प्रश्भेगं षै पुष्ट ५ विऽभातिं
अनिऽ्भ॑गायं ` सहःऽ्रिः | | विभ्भातौ
प्रभ्भगी | भणेसं + विभ्मातीः
विहननम् द् ^ | विऽ्ानीनां
ध विऽ्भजतं | चरिऽभानवः
विऽ्भनासि | चितऽ्भानवेः
अभिऽ्भंनतीनां सखऽभनवः
ग्रभभनन् खऽभानवः
क ण क
ल प ११५१५९९
ते
4
11 1 क न 1१ 1
मयःऽभुवः
शंऽसुवः |
सचाऽभुव॑ः | (५
1 क)
साऽ्भुव॑त् ` 1.
चाऽस (7 0
मयःऽपुवं | भ
शं ऽभुवं | 1
सचाऽभरुवं
युनःऽभुवां
मयःऽभुवां
सचाऽभु्वा
शु ऽ्भुषा
पुरर इरि पुरुभू
शभू इति शंश्धू ` | ^
परिऽ्भूः १ ^
युनःऽभूः व ॥
1
भय्^=चुः 1
तजाश्वः
सतयः
प्रश्भूतः
७२२ अभिऽ्भूति -- विश्वऽभोनसा.
५
म ५
| अभिभूति
अभिऽ्भूतिः
पिञ्भूतिः
स -परििभ्मिः |
। विभ्
1 -अपभभूजो
4 व
(1 प्रभूती इति प्रऽभंती |
` चन॑तुऽ्भरूतैः
अनिर
प्रऽभूतो
` श्ाभ्भरू्या
$.
१.
गन्भूभि |
द्यावाभूमी इतिं
` ावाभूमी इति
01 | अभिऽभूयं |
4 अभिऽभूवणी | |
प्रऽभूषणिं ८ 4 |
संहस्रऽभृष्टिं
जलताषऽभेषजः
विश्छऽभेषनः
ज्लाषऽभेषजं
च ऽभषजीः
प्रऽभोः
साऽभोगं
आऽभोगयं
ता
ताया
प तारत
चोद् यत्ऽ
{ऽमतिः
सुऽ मतिः
प्रऽमतिः =
सुमतिऽभिः ४ ^
दःऽमरतिं
मुऽनिं
मतिं ऽम्िं
प्रऽमतिं
सुऽमती
दुःऽमतीः
सुऽमकीः
यातुऽमतीनां
ः०तीना
सुऽमतीना
अनुंऽमते ४ |
चोद्यद्ऽमते
, बृह् मते
महेऽमते
द्ःऽमतो ‹
सुभे
सुऽमव्या
प्रऽम्या 1
अनुंऽमत्याः 4 ४ 8
` समत्ऽसु
सुनिःऽमथां
उपजनः
| निःऽमयितः
धत
षिषभाेते
किरश्राज्मानः
5 भ्रानेमानान् |
सिन् ४ राजतः |
शुचि ऽप्राजाः
शतंऽमघ
तुविऽमधः
| शतऽमघः
| ऽमघं
| श्ुतऽम॑घं
| सहस्र ऽमघं
| ठविऽमध्ं
। महि ऽमधस्य
चरऽमधा
| गोऽमा
| , ५ चितऽ्मधा `
| गोऽम॑षाः
क्रत्वाऽमघासः
१. | दविंऽमधासः
१ | वित्र
£:
|
1
श्नुऽमदेति
सऽ
विऽमदस्ं
गृत्सऽमदाः
^ विऽमदाः
1 चरमा
ध शतुर्न
विऽमदायं
ःऽमदासः
` नुऽमनाः
सुऽमनां
्रुधिंऽमनाः
ऋ 9
गूतेऽमनाः
वोधित्ऽ म॑नाः
विऽमनाः
विश्चऽम॑नाः
वुषऽमनाः
जरडधाऽमनाः
विश्चऽम॑नुषां
समतवं
गृत्सऽ्मदासंः
उत्ऽम॑दिताः
विवदेत
शतुऽमच्यमांनः
सत्यऽमद्वा
1 विकम॑धय
८ ~ अमध्यमासः ` ्
सिद्ठिकऽमध्यमासः
विऽ्म्॑ये |
धृषत्ऽ्मनः
नृष्मनः
विषभ्नुः
प०मनः
भुष्मतसः
विशचऽमेनसः ध
सञ्म॑नसः
अरूमैनसं
विकिनिुभनसं
ोनन्नन
- सञ्मनसा ` क
;ऽभतु
= सुम
विभ्मैः
च्नहुः |
सुमुऽनिः
एं इति पुरऽ
सयऽ्म॑ताः
उप्ऽमंतिश॑ः
` निःऽमंयतः
अधिऽमंय॑नं
अम॑दान्
` म्रम्मुदुः
परभ्दरा
विभरऽमन्मनः `
सुमन्न॑ऽभिः `
ध सुऽमन्मां क
यभा
` अमरिःशावः
1
विऽमन्यवः
वृष॑ऽमन्यवः
समन्यवः
सभ्न्यवः
परिष
अनुत्त ऽमन्युः
पात मन्युः
शत ऽमन्युः
सतीनऽमनयुः
उपभ्मनुं
अनुत्तऽमन्यु
सिऽय
प्राचांमन्यो इति प्राचांऽमन्यो
` पुनःऽ्मन्यो
= मऽम
परिऽममृशुः
पिऽममे
परिमप्नाये इति पृरिभ्मम्नाे
किंऽ्म्यः
| मो म
` मृह्ऽमयं
सनी
सुऽमयं
अषमन्ऽ्मर्यानि =
चश्मन््मयीनां
अश्मन् ऽमयीभिः
= म्रभ्मरखं
१ ॥
ह _ अमय -- अमानुषं.
समं 1
॥ 1 उपऽमाते
सतःऽमहांतः उत
महाऽमंहिन्रतं हविष्या
पिनहीनां पायत्ऽपातत
स्महीयमानं परःऽ
॥ अ सथ मादः
मति "म सोम ऽमाद॑ः
सभऽ्माः देव भानः |
सभ्ऽमात् नुऽमार्दनः
अभिऽमांतयः हेवऽमारदनं
उपंऽमातयः नृष्माद॑नं
अभिऽमातिये इद्रऽमार्दनासः
सुऽमातरः उप ऽमा
गोऽ्मातिरः प्रमाद
पृशिऽमाततरः सधमादं
पृशिऽमातरः सधमादे
स॒ऽमादेपु
अनुऽमाच्ः
+ सधऽमाचः
स्मयं सनुऽमाद॑स्य
ऽभे सथऽ्माचयां
दान इहेदं मर्य | सथभ्मा्ंनि =
भहा गृहः सिधुऽमातरा | चनुऽमार्यासः
चिऽमाततां सधमाद्यासः
हिभ्नत्ता ` विऽमानः
|; सिनः
प्रतिऽमाने
विमान
| | ` शमरतिऽमानं
देवऽमानं छ ।
रिभनानानि
(जनो थतताफीिो ५४
विश्च ऽभिन्यां
विऽमिमानः
1 संऽमिनिचुः
अमानुषीषु
विभ्ाने
| विऽमायं
. संऽमायं | 14 | उपऽमिमीहि
५ ` पुर्ऽमायः हितऽमितः | लिऽमिम्पुः
| र ध ॥ ति
पुरभ्मायं अमित | प्रऽनियं
` = दशंऽ्नायं मितत
दशमाः 6
विऽमयिं
दःऽनायवः
पुरुऽमायसं
अ्हिऽ मायस्य
` सुऽमायाः
अर्हिंऽमायाः
निःऽमांयाः
बुभ्मायाः
` अरहिऽ्मायान्
` . रिंऽमायासः
1. पन्नाः
1. गोऽ्नीयुः
|... ` पुह्ऽनायं
६ ` सुऽमाक्तं
अवऽमाजेनानि
दशभ्माख
दशेभ्मास्मः =
प दपश्नित्
५, अभि“ 5
कमिता 1
1 निभ्नितां
मिह
पुरूऽभितस्यं | संर्भिशः
अमित; । सभि ऽ तमः
व संऽ्भिष्ठाः
चनितत् ~ निऽभिंा
० | संऽनिश्ठासः
;ऽमितासः लिऽमिः
सनिऽमिषः
भनि | निऽभियतः
अभितियां सलिमिपत्०भिः
४. सनिंऽमि्तः
2 सनिऽमिषं
पुऽभिवे | खर्मिऽमिमं |
ना | अनिंऽमिषा # "५
सु त अतिषशाः
सभिथितः लिन
= सनिऽभिभेशं
अमिनती ` :, ननयुभ्तीः
खभिनती इति = (०
समि =>. १ ५ 2 | संऽमील्य 1 १
पणन ` पु भत
पुरुऽमीण्ड्डः
। प्र्मिनानः ६.
चमर ऽमृषयं
मरने
सुऽमेकः
सुऽमेके 110
| सुमेके डिंसुभ्मेके ^
निऽमेधमानः
` निऽमेध॑मानाः
इदृभ्मेषे
नृऽमे्धः
७२
षे
जागृ
अश्व॑ऽमेधस्य
सुऽमेधाः
पिवञ्नेधाः
परिभ्तेधाः
मितऽमेधाभिः
सुभ्नेधां
अशं ऽमेधाय
= गृहऽमेधासः
प्रिय॑ऽमेधासः
परयऽमधासः
गृहमेधीयं
चाश भेे
अश्च॑ऽमेधे
प्रियऽमेः
भमेनान्
साऽमेन्यस्यं
आमेम्यांने इव्याऽमेम्यानि
अनिऽमेषं
मरतिऽमे
विऽमोचन्
। विऽ मोच॑नं
विऽमोच॑नात् `
विऽ्मोच॑ने `
च ऽम्राः
मुरः
कुविऽ्वषः
तुषिर्खकषासः
` अर्बदाः
लिञ्ुच॑ः
सुऽमेधसं -- आऽयत.
अयष्लः
असात ऽयषसात्
५
अनुऽ यच्छमाना
अनुऽयच्छमानाः
` प्रऽयच्छसि
वि ऽयजः
ऽयति
संऽयजंते
सचऽयजं
° यजं
आऽ यजसे
आ ऽय्जाति
जाऽयजिं
साऽयजिष्ः
आयजी इ्यंऽयजी
अ
अयज
मुऽ्यजाः
पितृयज्ञाय
अयश्ियात्
` देव् यज्या
सआऽ्यन्यवः
ध अय॑ज्यवः |
प्रऽय॑ज्यवः
मऽयज्यवः
|
` देवभ्यज्या
पयज्योः
अयञ्धनः
सस्तुतऽयज्नः
अय॑ञ्चनां
यृष्टऽयज्च॑ने `
सम्बपेऽयच
समञ्वानः `
अय॑ञ्धानं
छाञ्यत्
उह्-यत्
संऽयत॑ः
संऽ्यतः
स्ाऽ्यतः
उत्ऽय॑तः
सुऽ्यतः
हस्तं ऽयतः
सं ऽयतं
अनुऽयतं
्ाऽय॑तं
उत्ऽर्यतं
निऽय॑तं
प्रऽयतं
विशयं
प्रऽयतस्य
्
पतिम ४९१ १५९६०१५०१.०८५
(1111
व्िऽयताये
स्व ऽयतासः
परऽ यतामु
प्रऽ्यम्यमानान्
आऽ्यप
निऽययिनं
निभ्यवं
पयवय॑न्
` सुऽयव॑सः
। सुऽयव॑ं
मुऽयवसाः
मुयवसिनी इतिं सुऽयवसिनौ
सुऽय्से
सुयवसमू इति सुभ्यवस्यू
ऽया | खभ्यशः
। सखयंशःऽतरः
स्य॑शःऽतरं
स्वर्थशःऽभिः
खऽ्य॑शसः
खऽ्य॑रसं
दीषैऽय॑शसे `
खऽ्य॑शते
खञ्यशाः `
प्रय॑ता
अवश्याः
परिश्यश्नाप ` | यंत 1. (अश्वः
एक्शन = | पुष्यत 1. | द चहुभ्यानः
क) | | | ` सवद ` | जीवऽयाजं
अिभयानस्ं
` अतुभ्यानाः
0
` अनुभ्यानान्
मज्यानान्
1
अनुऽयातिं अखिदरयामऽभिः `
उपऽ याति ष्ण ऽयामं
पऽ याश चित ऽयामं ।
विश्याति पंच॑ऽयामं ।
अ्याहुः रधुऽयामां
। शतऽ्यातुः इष्ट ऽर्यमा
शयु उ्ऽ्यांमा
| उटलुकञ्याहुं दयुतत्ऽ्यामा (४
कोकऽयातुं ुभरऽयांमा
गृध्रऽयाहु सहस्ऽयामा
शुशुटूक ऽ यातु सुऽ्यामाः
4 शशया तवेषऽ्यामाः
4: | सुपरणेऽयातं दयुतत्ऽयांमानं
. : - . छहिक्वापः ऽयामिपु
उपभ्यायः श॒तऽयास्ना
परिऽ्यायः अनुसर ऽयाघ्च
प्रऽ्यायनं उस्रऽ्यांस्
दी्ैऽयाे रव॑ऽयावः
५ दी्ेऽयायेः एवऽ्यावः
ेवभ्यानं = ` खभ्यावन्
निऽयानं खवयाव॑ऽभिः
पितृयानं प्रातये्व॑ऽभिः
प्रऽयानं: सयाव॑ऽनिः
अश्यानं ्वष्याव॑त
देवयानाः | प्ेतभ्याव॑सी
देवऽ्यानांत् स्ष्यार्वरी
५ देवऽयानान् सऽयाव॑सीः |
` देवञ्यानौः अग्रञ्यावाँ `
ववति: ५0
प्रा्तःऽयावानं
सऽयार्वानं
प्ातःऽयावाना
रयऽयावाना
+
खव ऽयाः
प्रात्ःऽयाघ्चः
बुहुद ऽयांशवः
सुयाशुंऽतण
उपंऽयासि
परिभ्यापि
प्रयियोः
१.५९
५
सुक्
खऽयुक्ताः
सुऽयुक्तान्
अयुंक्तासः
प्रऽयुक्ति
प्रऽयुक्तिः
सखयुंक्तिऽभिः
ऋूतऽयुंक्तिं
1
प्रयुक्तिषु
सरुणयुक्ऽभिः `
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स्वयुक्ऽभिः |
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चतुःऽयुगः
व
मताननोणिषवते०१९११६१।
मऽयुग्वां
1.1
मने; ऽयुनं
५५५
परातेःऽयुजं
मन्ःऽपुजं
युवाऽयुज
रथऽयुनं
तमना) ५
` वियुते इति विथ्युते
नियुत्ऽभिः
ख प्रयुत्वऽभिः
सयुडः
समितऽ्युधः
[शि सि ।
मो षुऽयुधः
9
गोषुभुध
पुरःष्यु्धा `
यवि
सयुष्यः `
अयुंध्यः `
मिष्या =
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चाऽगुपुने `
नःऽयुवानः
भुवन)
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सष्ऽमूपायं `
हरिऽयूपौ यांयां |
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लिनयेधिरिः „1
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दशं ऽयोच्चेभ्यः क
प्रऽयोग
हरिऽयोगं | ५ |
चश्व॑ऽ्योगाः | 4.
रापिऽयोडन
समानऽयोजनः ) ४
हारियोन्े
दश्मोजनेन्बः -; 1
“१.9 1.
पु
8
1 सयोनी इति सऽ्योनी -- सुरभि.
ति)
सयोनी इति सभ्योनौ वानऽरल्नाः मुमत्ऽश्या
कृष्णऽ्योनीः सुऽरल्नान् सुऽरथाः
सयोनीः वान॑ऽसत् अरयाः
० जनऽयोप॑नः सुऽर्त्नासः चंदूऽर्याः
संऽयोप्ैतः पुरऽ््यः ज्योतिःऽरथाः
आऽयोयुंवानः सुऽर्य॑ः विदयुत्ऽरयाः
वि ऽयोषत् अरि्टऽग्यः शुचत्ऽ स्याः
वातऽरहसः चंदरऽरयः दिर्ण्यऽप्याः
वात॑ऽरंहाः ` ज्योिःऽर॑यः । सुऽ्यान्
अरषषः ` सधिंऽरथानि
सखभिऽरघति श्रुतऽरयाय
अभिऽरंति मुऽरयांसः
अभिऽर्॑माणाः . वृषऽर्थासः
अरछ्सः ज सअरयीः
| इ म्भः जोनवे
त ख नत्ऽर॑यः द
| अरससां (^ | प्रियऽरथे
| ४ ऽर्थः ~
अभिऽरलसि व श्रुतऽ्ये
पशुऽर्िः सुऽ | मुऽरथेभिः
1 नानाऽथं घर
। मदे ऽर्धुः पुरः ०रयं | सरभस्यं
अशज्नुऽभिः ह्पिए्य ऽदं परिऽरपः
छधिऽरयं ५
चंद्रऽरंथं ८
` चितं विऽरम्शु
` ज्योगिःऽरयं विररष्शिन्
| वृह्ऽरं विऽर्ष्डिन॑ः
` सुखभ सुनः
सुऽर्थ॑स्य विऽरष्शिनं
दशं ऽरयस्य विऽरश्डिने
भनेऽरयस्य विऽरष्ड
स्यां
शराऽे - सुराधसः. 7 0
व त् १०८५९१9 द, ० [1
#
धाऽगमे स्मूम॑ऽरमौ
ष्पा इग्भ्प रसं
गभेऽर्सा
विऽराजंः
संऽराज॑ः
स्तेऽ राजः
संऽराजः
विऽगज॑तः
विऽराज॑य
संऽरा्जतं
ग्येष्टऽ राज
विऽराजं
संऽ णजं
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अधिः्गज्
प्रऽणजंसि
सयजा
संऽयाना
मित्तसजाना |
विऽराजानि
अराजिनः
संऽराजें
सऽरजें
संऽराजोः
चम्रऽरानो
संऽणजेो
जन् ऽराज्ञः
यमऽराः
दाश्ऽरक्ञे
णः
अवंऽरवंमानः
भराऽरभनं
सृधत्ऽरयः
मह यत्ऽरयिः
मनत्श्ययिः `
बृहत् ऽरयिं
बुहत्ऽरये
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५ का
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सुऽ्यंतयः
स्वादुऽरातयः
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पूषश्रात्तयः
सऽरंतयः
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शमर
५,
अरस्पः
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तुविऽरवान्
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वि रवेण
वात ऽरशनाः
यतऽरश्मयः
घ ऽरइमयः
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~ ~ - । # क
चिती इतिं चितऽराती'
अरोराताप
५ स, , । भ, ` ज
9३४ | | [र अराधसः -- टिस्स्यऽरूपं.
शनातागाकतनकनापातोततकिसववतपाततिितसोतरकीापितातो त ११.
शात्
प्राऽरूजासिं
चाऽसं
निऽर्द्धः
वंऽस््धः
परगाधसंः अरिष्टऽपौतये
अरिष्टऽतांतिभिः
अरिष्ट
अरिष्टाः
अरिष्टान्
रलवश्र ऽधसः
श्चं ऽ धसः
धुष्विऽणभसः
[ हि
>
हुविऽ धसं
सुऽयाथसं
अराधसं
चित ऽस
पं्िऽरधसं
वीतिऽाधसं
५ सुभ्यधा
क्ष्यऽ॑धसे |
१ ।
सुऽ राधा
अरिभिः
अररिं
श्मरिष्टि
अषभिः
सर्रिषटः न
सरिष्यतः
सगोऽरूधाय
निऽरुधय
श्याऽहधानः
निऽहूधानः
निऽहधानासः
साऽरुरुषतः
विऽररुचुः
रिष्यते
संरिहाणे इतिं संरराणे
अरीट्ठदं
` अरकुत्तऽरुक्
` विरूक्म॑तः
स्यऽ्यधाः
स्पाहैऽराधाः
कंभ
1 .-माहऽदभ्य विरक्ता साशं
। भु ट णसं सधि 5 इर्त रूल
निणमिणैः
८: चपीयासः
अगाय्य
र्णवा `
चर॑व्णः |
| ख्ाच्णे ।
अभिऽ्यष्टः
द परऽरिक्ा ०
निर्व्याधिः
पिऽरिषः | ५
अपिशखिय ॥
; चाऽरिशाम॑रे
विरस
पुरुऽरूपः
५.9
सन्यऽरूपः
विहक्नन् `
। सुरुक्मे इतिं सुऽ के
1
पिशंगऽरूपः
प्रतिंऽरूपः
विश्वऽरूपः
विषुंऽरूपः
संस्ञातऽरूपः
अआऽहनः
7
सतता कमत 1
वद्यऽल्पाः
विश्वऽरूपस्य -- प्रवतं.
| सुऽरेतसा
भूरिऽरेतसा'
पर्जन॑ऽरेतसे
मुऽरेताः
सदस्॑ऽरेताः
सरेपसंः
अरेपसं
अरेपसा
1
व
हक्य ऽवंससः
र्कम्" ध् |
प्रञ्वछ्यामंः ` ५
गुिव॑चः ऽतमः
निऽवच॑नं | $
निऽ्वच॑ना 4
निऽवचनानि
विप्रंऽवचसः
छ् ऽव॑चसं
ना १1
` मुऽवचस्मां | ४
गूतैऽवचाः त 1
मधुवचा
सुष्वन
ऽवज्जः
आऽतोधने |
` मयूररेमऽनि
अतिऽयोहति `
चव्ऽ्येहन्
चऽरोहन् (1
| 9३
निभतं
प्रऽवतां
प्रऽवतां
प्रवत्ऽभिः
प्रवत्ऽन्यैः
1 म सं ऽवहसं
ऋत्सभवतस
रशंत्ऽवत्सा
सहऽव॑त्सा
निवन्
अव॑दतः
जराऽवद॑न्
रवृऽवदसखं
महाऽवहूरिणा
धव
अव्यात्
| अवदयानिं
व त,
भराऽवंधः
|
भहाऽवधाद्
तपुःऽवधेभिः
वभ
सप्रऽव॑भये
स्व
सप्रऽ्वधि
संऽवननं
संऽवन॑ना
वृश्ठत्ऽव॑नं
५ | येत्तऽव॑नसः
यज्ञऽव॑नसं
उपनातिऽवनिः
+
निऽवता-- मधुऽ वशैः.
||
शातवनेये
प्रऽवंतवे
व ऽवदैः
लिव
पूेऽवंधुरः
प्रऽवंभुरः
खष्टाऽ्वधरुर
हिरण्य ऽ वशर
विशवे
लिऽवंधुरेणं
प्रऽवरपें
गोऽव॑पुषः
अनकाञ्वं
` संवत इतिं संऽवयेती
चतुः ऽवं
| अभिऽ वयसः
सऽ व॑यसः |
सऽवयसा
विश्व॑या
अाऽवंयाः
नीचाऽवयाः
प्रऽव॑याः
दध ऽव॑याः
.-सवयुनं
| | चा ऽवरः |
निंभ्वरः
संवरणस्य
` संऽवरंणात्
संऽवरणनि
| सं्बरशेषु
भेलावर:
द्रावरूणयोः
भिवावरूणयो
इद्रावरूणा
मित्रावरुणा
इद्रावरूणा
द्रावरूणा
॥ 8 ।
मितावरूणा
मिलावहणा
भिलावरूणार्भ्या
इद्रावरूणो
मिवावरूणो
इद्रवरूणो
इद्रावहूणौ
मिदावर्गौ
विऽवरूयः
लिऽवरूथं
लि ऽवरूयेन
विऽधरे
संऽ वशं
44
प्रें वचसः
सहस्रं ऽवसं
प्रष्टऽवचैसा
समानऽव॑चेसा
द्स्मञऽ्व॑चसां
सुश्वचीः `
अनूनऽवचीः `
दस्मऽव॑चोः
पावकऽप॑चैः
॥।
श् धतम
॥ ।
चः)
न
हिर्ण्यवतेनी इति हिर॑ण्यऽवरैनी
मऽवृतेनान्कः
परिऽवरतमाने
सं ऽवतेयेतः
चा ऽवर्यति
विऽव्यंतीं
उत्,
घोरऽवपेसः
प्रतिनूनिऽवर्पैषः
रि
` भूरिऽवपैसः
पुर ऽवसं |
` इरिऽवपेसं
शररिऽ्वपैसा
3 साऽववततीः
ऋधऽ्व॑पीः
| चिव
श्वः `
सऽवुवृचयत्
विऽवपृभ
उत्ऽकवृषाणः
विव्॑री इति षिऽ्व॑त्री
तत्ऽवशः
याऽवशं
तत्ऽवृशायं
वेमुऽवसः
मऽवसयानिं
सुभसनस्यं
सुऽवसनानिं
सऽवसनेषु
संऽवसानं
संऽवसांनाः
पठ ऽवमुः
खाभरद्ऽ्वसुः
उपंञ्चमुः
गतैऽवसुः
£
धियाऽ्व॑सुः |
वाजिनीऽवमुः `
विदुः ।
विभाऽव॑सुः
भुऽ्वसुः `
विश्चऽ वसुः ,
सऽ वसुः :
खण्व॑सुः |
1 भ
ध
अिंतथ्वमुं
च
निवता
७३४
पुरूवसू इति पुरुऽवसू
` कृत॑सू इतिं कृतऽध॑सू
जेन्यावसू इति
पुनवैमू इतिं पुनःऽबमू
मसू इति परतत्भ्व॑सू
सनावम् इं
महावसू इतिं महाऽव॑सू
` घानिनीवसू इतिं वाजिनीऽवसू
` वृषम् इ वृषभस्
शचीवसू इतिं शचीऽवसू्
सूयावमू इति
आपुणिवसो इर्यायुणिऽवसो
शृतवसो इ्ुंतऽवसो
` दिवावसो इतं दिवावसो
धियावसो इतिं धियाऽवसो
| क `
पुरूवसो इति पुरुऽवसो
पभुवसो इतिं प्रभुऽवसो
रदवसो इतिं रदऽवसो
। , मकि |
वाजिनीवसो इतिं वाजिनीऽवसो
विद्वसो इति पिदत्ऽवसो
विभावसो इतिं विभाऽवसो
भवि कि ।
विश्ववृसो इतिं विश्च ऽवसो
१ [ सि 2
शबीवसो इतिं शचीऽवसो
प्रुऽ्व॑सोः
दोषांऽवस्तः
अर्िष्वस्रा `
अ्रश्वरैतः `
साऽवत
साऽवत
पुरूवस् इति पुरूऽवसू -- अवाताः.
लमःऽवाके
चृत ऽवाकेनं
ू्तऽवाकेनं
धारऽवाकेपु
उप् ऽवाक्य॑ः
द्रोघऽवाच॑ः
दण्यऽवार्चः
सत्यऽवाचः
मुऽवाच॑ः
दुधऽ्वाचः
१
मूभऽ्वांचः
वधिंऽवाचः
विऽ्वाचः
कऋऽर्वाचः
मरऽवाच॑नं
विऽवाचनी
स्यऽवाच
सुऽवाचं
स दरोधऽ वाचं
भृभऽ्वाचं
[1
मुऽवाचंसा
` स्यऽवाचां
ष सुऽवाचां ।
विऽवांवि
` प्रञ्वाचै |
उपुभ्वाचय॑ः
` प्रभवाः
मथ्वाचयै |
सभिऽवाकायं
श॒तऽवाजया
सरस ऽवाजया
हुषिऽवाजाः
भरत्ऽ्वाजाः
चित्र ऽवाजान्
भरत्ऽवांजान्
पुर् ऽवाजाभिः
भरत्ऽवाजाय
अवाजिनं
भरत्ऽर्वाजे
तुविऽ वाजेभिः
भरत्ऽर्वाजेषु
द्िणाऽवाद्
स:
हविःऽवाद्
६
इव्य॑ऽवाद्
अवातः
अवातः
देवऽर्वाहः
इंदरवातऽतमाः
देव्वातऽ तमाः
सवातं
देवऽ्वातं
देवऽ्वतिं
खपिऽवातयंतः
पजेन्यावातां
१
। देवऽवाताः-- बलऽपिज्ञायः,
- [--------_-----------_ _
| चीतरऽ्वारासः
विवार
विश्ववरि इतिं विश्वऽ्वरि
पुरूऽ्वारेभिः 0
विश्चऽवायैः
विश्चऽवर्यिं
सततःऽवाव॑त्
हिरणयऽवाङीः
हिर्ण्यऽवाशीभिः
दिरस्यवाश्शीवत्ऽतम
सथीवासं
समुद्र ऽवांससं
दुः ऽ वाससे
स ऽ वासाः
शुक्रवासाः
नेवंऽ वासवं
सुऽवास्वाः
ईदरऽवार्हः
भशवा
वीरऽवार्हः
सह् ऽवाहः
सुषु ऽवा |
हष्पऽवा्हः
१. प्र ऽवाहः |
वबभ्वाहुः | लोम॑भ्वाहाः
ज्य॑वाहःऽतमं ॥ श ८ ११ . उद्ऽवाहासंः |
हयण्वाहन = | उद्ऽ्वदेनं
्रश्वाहेनः = | इदर्बाहो
दव्वाईनः = पिरि
80
विऽर्विंचन्
चअष्छऽपित्
क्रुऽवित्
येवऽवित्
गावत
गोऽवित् `
दृविणःऽवित्
नभःऽधित् |
मरकलऽवित्
रयिऽवित्
वचःऽवित्
वयुन ०वित्
वरिविःऽवित्
वसुऽषित्
वि्चऽवित्
भरत ऽयित्
संऽवित्
खःऽवित्
रण्यऽपित्
अकषैतऽपित्
विष्ठऽ्वित्
` पितृऽचिच्ः
अतुऽविचः
रुबिद्ऽमः
7 गाहुित्ऽत॑मः
श्षृषि्मं -
मातुवित्ऽतमाः
शषेतवित्ऽत॑रः
विऽविंचन् -- प्रऽविद्वान्.
निऽवषिद्ं
प्रऽविद्
वरिवःऽविद्
कत किनि भ
वसुऽविद।
|,
संऽविद्नाः
संऽविदानासंः
संविदाने इति संऽ्विदाने
स्तःऽविदि
खाऽविदं
दुदयरत्रिभः
खव्रिधया ५
च्रा$ धिध्रामतः
सा$ विवसनां
श्चा ऽपियां सरति
आ्आऽपिषासन्
यादः
1४ विवक्षितः
षा $ पिवामती
॥ 1
| 18
५५८
| 18.
च] ४1
त निनो
सुभ्व `
न
अवीरता
अवीरताये
अवीरते
पुर ऽवीर
सुऽवीरं `
भदाभ्वी 3.
सयत्ऽवपैरं 1
विप्रवीरं (1
सवैऽवीरं | |
सहऽवीरं
क
सर्वैश्वीप्या 1
ह्वीं
ऋष्ववीरस्य र;
छयत्भ्वीरस्य 9
विप्रवीरस्य `
[1
स्पारैऽ्वींयः
पुर्ऽवीराभिः
सुऽवीभिः
स्थारैऽवीणः -- मद्ऽवृद्धः.
विऽ वृक्णाः
वाइ अवृक्तः
पर।ऽवुक्ं
साऽर्वृतः
सं ऽवृत
सरोःऽवृतं
1
पुर् ऽवीपं | ` प्रवृ
सुष्वीसं भ सुऽवृक्तयः
धयत्भ्वीयय सुऽवृक्कि
भदत्ऽवीणय सुऽवृक्किः
भुऽबीय॑सः ~ सुवृक्तिभिः
वीरे । | स्ववृक्तिऽभिः
| सुवीरेण र | मुऽवृक्ि
भुऽवीये | नम॑ः
सुरव सुऽवृजनांमु
दूषटऽवीये पराऽवुनं
5 वीयेस्य परि ऽवृजं
ऽवीयीं स्व ऽवृं
सर्वुजिनाः
्रऽवृज
न
= पृरि्वृण्
साऽ्वृणानः
घाभवृणीमह
प्ऽवृरवतः | परिवृताः
तिष्व ` रवृतः
श्वत आऽवृत्ासः
विषु छर्॑वृति
र
4 अवतु
सालावृकाणां | चाभ्वृततः
शक्ाणि | विवः
„तमान् - (दिभ्य
सवृकाभिः 1 , 1 । अवृतः |
सोमऽवृद्धः-- निवेशनः.
दुऽवु्धा
0
¢ 0
नातऽवेदसुं
जातऽवैदसा ‡
नवैदसा
विश्चऽपेदसा
विश्ऽवैदसा
सऽ्वेदसा 0
जिष्येदसि ८
जातऽवेद्से 1.1.
सुऽवेद् | 4
केतऽवेदाः . १ 4
जातऽ्वैदाः | 1
नर्वेदाः 1
विश्वऽ्वेदाः 1.
घविंऽवेनन् | ह (9
वेनत
अनुवनं 1.
चविंऽ्वेनं ` 4. & यु ४
मुऽ्वेनीः १
मऽवेपनी
गुभीरभवैयरः =
| परूऽ्ेष॑सं =
| गायतऽेपते ॥ | ।
9४४
नि ऽवेशंनं
निवेशनात् `
चनिऽवेशनानो
निवेशनी
निऽवेशंनी
निष्वेशने
भवेन
अस्वं ऽवेशं
प्रतिवेशं
निऽवेशयन्
साऽवेशरयतीं
दासभ्वेजाय
साग्निं ऽवेकिं
निऽवेशे
संऽवेधिषः
महाऽवेलस्पे
प्र ऽवोचति
उपृऽवोचत
पद्ऽव्यः
देवव्यचःऽ तमः
उहव्यच॑; ऽ तमं
सव्ययिऽभिः
सव्यथिषु
अव्ययी;
व्यश्यायं
सवऽव्यय॑न्
सअनंपऽव्ययंतः
व्ययं
सअतिव्रनत्ऽभिः
अभित्रजत्ऽभिः
ष्
दशंऽतव्रजं
अर्मऽव्रजाः
श॒तऽत्रनाः
अश्म॑ऽव्रजानां
| उद् ऽ््रजे
उरऽतरने
दश॑ऽत्रजे
महिव्रत
चिंऽत्रत
शुषिभ््र
4
पुरुभ््रतः `
सुऽ्व्रतः
0 अनुव्रतः
अन्य इ्रतः
दरिऽब्रह
विऽव्र॑तयोः
अन्यऽव्रतस्य
| भूत्तऽ््ेता
| पत्रता
विऽ्रता
शुचिंऽत्रता
| शचिश्तरता
| सऽ््॑ता
इष्टऽव्रतः
धृतऽव्रतः
श्क्रनन्
अपऽव्रतान्
प्रियऽत्रतान्
विशव्र॑तानां
अनुऽत्रतां
अनुऽन्नताय
धुरनिंऽद्रताय
तऽग्रताय
मुऽत्रतास॑ः
अनुऽव्रते
॥.
श
1
ऽध ` अनभिऽशस्ता-- सप्ऽशीष्णी,
तनति
= छ
अनुऽशासनस्य .
प्रश्शासने ४
, दुःऽजञामुः
पनंभिऽशस्ता
` भर्विंऽश्ञस्ता
सप्रऽ्शस्ताः `
कविऽश॒खाः | सपैऽशाः
अनिःऽशस्ताः प्रश्शास्ता _
खप्॑ःशल्तान् प्रञशा््र +
प्रश्शस्तं ` ¦ ` ्ररओक्रात्
मु$ श॒स्ि |
सु्शस्तिः `
अशास्यं | | | सष्रऽशिंवामु
परऽशेस्िः | परतिऽशिंति | ५
सुशस्तिऽभिः विऽशि्ः | निऽ्शिशानाः `
प्शंसतिऽभिः ~ [^ वरूशिखस्म संऽशिशानाः
अशंसत उपऽशिध्रियाराः
(क | सुरशिभिं
साऽशिषः
निऽशिंता | प्रऽ शिषः
सोम॑ऽशिताः 9 नि ऽशिष॑त्
निऽशिंतानि ०
निऽशिंति | |
निऽशित्ती | |
सिप
सुऽ
मुन
सुर्शिष्रः
दिरिऽशिः
यह ॑ ॥ ह, ।
पुरशाकंऽतमा
युरुऽ्शाकाय ` ध
` ज्वेस्शकेभिः
नैचाञ्शाखं 0
` दशंश्शालाभ्यां `
५ संऽशायं . |
क
9 शतऽशारदाय `
, शतश्शंरेन `
४८ ¢ उक्वभ्शासैः
यभ्शसत्
+ अनुशासता ^
^ 92 क
पपात,
थ "त मत५५०. 0
पी"
श्रमणाः
अथ्र॑मासः 0
ति ।
विभ्यति
उपम्ऽश्रवः |
देकः
` चित्रघ्नवःऽतम
सुष्रबःऽतमः |
बितश्र॑वःऽतमः
98
सुश्रवःऽ तमान्
` कुरऽश्रवण
हऽश्रवंणं
पितृऽ्रवेशं
साऽच्रवयति
पषुभ्वसः
उपमऽश्र॑वसः
दीधेऽप्र॑वसः ` 1
प्रऽश्र॑वसः
वृहत्ऽश्र॑वस
वाज॑ऽश्रवसः
सुऽ्रव॑सं
गायऽच्र॑वसं
गृतैऽ्र॑वसं ।
वाऽ प्रवं
सुऽ्रव॑सा
पृथुऽच्रव॑सि
सयऽ प्रैवसि
दशवे
युसरऽ्र॑वसे
स्वस्या
गूतिऽश्र॑वाः
देवऽप्र॑वाः
वृहत्ऽ्रवाः
कुष्वाः
` सुच्वःऽतमान् -- चभि ऽ्वसः.
अशितं
अपचितं
विऽध्िंता
विऽध्िंताः
गृणऽच्िभिः
` सग्निऽधियः
अध्वरऽधि
सभिऽच्ियः
गणऽध्िय॑ः
सुऽधियः
गणऽधियः
स्वर ऽधियं
समिऽभियं
छतऽधियं
पृत् ऽशि
जन् ऽध्य
यज्ञऽधियं
| कि
सर््ऽ्रुतः
सन॑ऽुतः `
सुऽुनः
हवन् श्रुतः
दीयेऽश्चत
देव ऽतं
हवन्ऽधुत
विऽच्ुतं
सर्नऽश्ुतं
सुऽशुता
हवनऽभ्ुता
ट $ श्रुताय
वाजेऽश्रुतासः
उपञश्रुति
उपञ्शचुतिं
यामऽश्रुतेभिः
दीेधरुत्ऽतमः
दीेशरुत्ऽं
देवश्
दीषेभरुत्ऽतंमा
मंतऽशरुं
विष्टि
यात्ऽखेष्टाभिः
उपश्रोता
वोः
सुराश्च न
1 चि
छचमाना ¢
मः
क वन
वदि्सत्
| शुचिऽसत् `
संऽसत्
| चस॑तः = ~ क ४ |
| 1 क
| असता + श
| असनि
|,
प्रस्त 11
निऽसत्तः न 9 ॥
ऽसतं
निऽसंचं 1
निऽसंच्ा | ^
निऽसंत्ताः त
निऽसत
| चतैसत्भिः
। अप्रामिऽसव्य |
4
| | चअतजातऽ सत्याः ८
वकपनभ्सयाः
१ | ममऽसेषु 4
सवयश्सत्वन् `
चखभिऽसंत्वा `
सतीनशस॑वा
ॐ५९ "व ४ 9 | ` भस्त्य ऽ सटः व सु ऽस पिष्ट, ५
शुक्र$ संन
ऽस्य |
सद्ऽसर््याय ॑
उप ऽसद्यांय
जद ऽसा
दऽ सट
नृऽसदा
परि ऽसद्वानः
लिऽसथसय
विऽसधस्वः
विऽसथस्यः [च
न्िऽसभस्णसं | असपतरा
खिऽसषस्यां | युयुनानसंभी इति य॒युनानऽसंपी
ति भ्सधस्य | तिऽ सेः
अर्हऽसन | खसमः
गोऽसनः असमना
मुऽखखननानिं असमने
सुऽसनां | | असमं
पुस निं | समा
वानभ्सनिः अस॑माः
ॐ ®
श्निः = असमातिं
` सुऽसंनित
` मुऽसनिहः
असश्चत
ससंश्चतं
सम॒श्चतां
| असंशंतो
चसंश॑ती इतिं
| आसंशुषी
निभतं
| अस॑संतः
| विभ्सस्िः |
विऽससहि
मिनाति ऽसहं ।
निःऽसर्हमानः ४ क
चतुःऽ सहं ध 0
सञ्स॑हघ्ं ^
भन्वऽ्सहां 4
मर्ह
एयऽसहा
सुऽसहां
भरेविश्यहा
सुऽ्तहाः
| निन्ससादं . ब्रात ऽसहाः
| चाऽसघ्ाणासैः सुऽसहान्
परि्सखनाना = 0
सुऽसंह द्ःऽसहासः 1
सभिमातिऽस्हः चषेणिऽसहें क 1
| ब्भ
| पृतनाऽसरहः
प्रऽसह॑ः
तासे.
सभाभ्सहेनं
विऽसहं 1 +
नृष्सच्य॑ ध
नृरं | 4 |
अभिनातिऽस | ^
| चश्वभ्ताः
` गोऽसाः
धनऽ्साः ५
वृष्याः
व साः
शतसाः
सदाऽताः
७१२
रयि ऽसाचः
रातिऽसाच॑ः
इरिऽसाचः
अर्य्ञऽसाचः
नृऽसाचः
स्मद्रातिऽसाचः
अप्तयऽसाचं
अभिऽतां
द्रौणऽसां
थाम ऽसा
रातिऽसाचं
ष
अश्च ऽसाततमः
वनि ऽसातमः
सरस ऽसात॑मः
वान ऽसतम
सदाऽसातमं
सहस्रऽसातम
वाजऽसातमा
` सहखभ्सातनां
धन॑ऽसातये
भेधऽसातये
वाजंऽसात्ये
केतैऽसाता
गोऽ `
रोकऽस॑ता
नृऽसाता
मेधऽसाता
शरऽ्साता `
रथिऽसाचः-- प्रऽसितयः.
अरऽसातो
तोकऽसातो
धन॑ऽसातो
मेधऽसातो
वाज॑ऽसातो
शूरऽसातो
निऽसादर्यतः
द्सषऽसाध॑नः
प्रऽसाधनः
मन्मऽसाधनः
यज्ञऽसार्धनः
गयऽसाथनं
द्छ्ऽसाधनं
प्रऽसाध॑नं
पशु ऽसाधनौ
यज्ञऽसा्ं
सेवंऽसा्॑सः
सेवऽसा्तं
ऋमिऽसान्
अव्ऽसानं `
वि ऽसानं
उध्वेऽसानुः
पदाङऽसानुः
सद्विसानो इवद्िऽसानो
ऋतऽसाप॑ः
, न; कक
केतऽसापं
उरऽ्सां
उवैगऽसां
वि शि)
स्वःऽसां
विश्चऽसामन्
सुऽसामनि
सुऽसामनिं
सह ऽसांमानं
ऋनं
हस्मिन्युऽसायकः
सुभ्सार्धः
इदरंऽमारथिः
विशो
१
प्रातःऽसावः
मन्युऽसा विनं
मातःऽसाे
सहसऽसावे
परिऽसिक्तः
निऽसिंक्तं
परिऽसिक्तं
परिऽसिक्ता
परिऽसिक्तेभि
वा
परिऽसिच्यमानः
1111 1,
|
71
1
तवति
छट ५ सुतासः
श्रा ऽमुतनिः |
उलुखंलऽमुतानां
मधुमुद्ऽत॑मः
सोममुत्भभिः
` पाकभ्ुवनः `
#
| नानाऽसुयीः
बहऽसूवरी
~
भष | उपऽसुजति- मुऽस्तुतः. |
। स | -- द मातमातनततम्म । १.
उप्ऽसृजंतिं चित्रश्सैनाः ऽस्कभिते
संऽसुजानिं षणऽसेनाः
संऽसुजिं
१
डऽसनाः | |
क छमष्येनान् =
| सम्ब
(वा 4
देवऽसेनान
सखरसृततः
महाऽसेनासः | |
असे भ्या हि
ब्व०मृल
अभिऽसुष्टः
श॒तऽसेयाय
निऽसेवें च स्कुधोयु “2
सनुऽ सेसिंधत् । अभिऽस्तमे
अवऽसे उत्तभिता
धन् ऽसेः उपऽस्तरणं
सुतऽसोमः ह क,
तऽसोमं +
सहस्ऽस्तरीः
विऽस्तारः
मुतसोमवत्ऽनभिः विऽस्तिर॑ः
सं ऽ स्तिरः
व | उपृरस्तिर
` ऋअवऽमृषटन्
| अव्ऽगृष्टासैः
1 # विऽ्तृषटः 4
. .; . पशुभते
म्य
ुभ्ेषतं ब ६२ | .उपनशिर
विसितश्स्तुका
0 9.
सुतसोमाय पृक
मुऽसोमायां | उपस्तुत्
ु्ऽसोनासः परूऽसतुत त
पुरुभ्छुत
9...
इषः ऽस्तु;
अन्नीन: : | दषष्दुक `:
इरोम अरि्लुनः
60 ५ साऽसेच॑नानि
| उपुऽसेच॑नाय
उपृऽ्तेच॑नासः
खऽ्सेतवः
खभ्सेतुः `
` विष्वऽ्सोभग . . | उपञ्सतुत्ः 2
8
1
समापतत ७५)
#
पथुस्तो इति पृथुऽस्तो
सुऽलोः ॥
| प्रऽसतोकः
नित्यऽ्स्तोतः
प्रियऽस्तोतः | ६ । ;:
मरत्ऽस्तोतस्प
परिऽस्तोभया
सहऽस्तोमाः `
यपस्य
सधस्तुती इति सधरसुतो |
सुऽस्तुतीः
युर्निःऽ्स्यः
कूऽस्यः = 1 ध
गोऽ्स्यं 41
ऽवं
उपस
सभं
प्म्यऽस्या
परतिऽस्वा
उपरा ५.
सथश्स्यवां ` ¢ | ५
अनुऽख्याः 1
वश्याः
गिरिऽस्याः ८ |
7ःऽस्थाः
परिऽस्ाः `
पुरनिःऽस्याः
पृथिवीश्स्याः
मंहनेष्स्याः
रयेश्स्याः
रोचनस्था ॑ । ॑
मधस्तू
71
७५
हरम्येऽस्याः
उपऽस्यात्
सथऽस्यात् `
अऽस्यातां
पुःऽस्थाना
भूरिऽस्यातां
रथि ऽस्यानः
` वैऽस्थाने
अधिऽस्यार्े
वेलशऽ्स्यानं
सथऽ्स्यानि
= सुस्थाने इषि सूरस्याने
कनि
शि
यं
नः स्थां
वेऽस्थां
प
पवैतेऽ्स्यां
परिभ
बृहिःभ्स्या
चेऽ
रोचनऽस्पां
हरिष्स्यां
सुर्स्यामां `
पाकंऽस्यामा
पाकऽस्थामानं
| ॥ उपऽस्थायं ८. श
रथेऽस्वायं |
उपस्थां
प्रशस्यावानः `
` इर्म्येऽस्याः -- उपरिस्पृशं.
चपि स्थां
अनुऽस्थितें
उत्थितं
परिऽस्थितं
प्रऽस्थितं
विऽस्थितं
प्रऽस्थितस्य
प्रऽ स्थिता
विऽस्थिता
अभिऽस्थिताः
परि स्थिताः
प्रस्थिताः
विऽस्थिताः
प्रऽस्ितान्
अय॑ःऽस्पृशं
सहस्रं ऽस्थूरं
सहस्र ऽस्थूणे
र,
गौऽस्थे
संऽ्स्पे
उषञ्स्यै |
भयऽसय
सथभ्स्यै
सषस्े इतिं सऽ
स्पेऽस्थनं
सथञ्स्येषु
पृत्खाः
तितिक
सशऽस्मपमाना
सन्म:
॥ 1
भप 9 देस्युऽहत्याय-- रातऽहव्या.
॥.।
दस्युऽहर्वाय
५ रसषःऽहव्याय
` बालैऽहयायः
वृ्रश्टयाय `
५ हिध
क दस्युऽहयय
ण
| शव्रऽ
` एत्वे
4, ` बृम्हयेषु
| शृषणण्हयेषु
मुऽहनांय
इ गहनाय
दूःऽहनायाः
इःऽहनायुवं
:ऽहनावान्
सर्यःऽहनुः
अर्त ऽदहतुः
ृहैनो इति दुः्टनो
वृतह्न्ऽतम
वृतहन् ऽतमः
दस्युहन्ऽ तमं
वृतहन्ऽ तमं
वृतहन्ऽ तमा
वृतं हन्ऽ तमा
निऽहतवे
सवभता
ऽटंव
। >
मुरु
ठ ° हनन्
सशमरन्मऽभिः
सहनः
श.
[र
इद्र हुवन्
सुऽहवांनि
मुऽहर्वा
सुऽहवासः
स्विः
सुऽह्विें
रा्नऽ विपे
खाऽह्वे
विऽ्हषे
पुनःऽहनैः
` शतुऽहनः
अभिमातिऽहनं
अहिऽहनं
` मःभ्हनंः
` दस्युहनं
` रकषषःष्टन॑ |
-चताष्डनं
चबन
दा ~ (9
-स्वन्ना, ,
प
01
अश ऽहा
अखवीरऽहा
अश॒स्िऽहा
अपुर्रहा
अहिञ्ा
गोऽ्हा
दस्युहा
चृञ्हा
पुर ऽहा
2
रणःऽडा
वृ त ५१ हा
॥,
` संऽहिता -प्रऽहोषिणः.
(1 1 18111,
(द
चा ड हुवध्य
पुरूऽ्डूत
| सं ऽहिता
"= निरर्हिताः
ह क
साऽहयेः
~ ‰
सहुणानः |
(1 चिति +. णषु
1; | विऽहितानि 14
४ ` म्रतिंऽहिताभिः
नि्हितासः
|. ` “` अलेर्दितिः
पुरन
पऽः
भह
देवऽहूत॑मः ि,
यामऽदहूतमा
देव्ऽदुत॑मान्
की = वशतः
। “निष इति निभ मरे
परऽदूत
हताः |
उपऽदटूताः
प्ऽ दूताय
देवऽहंतिः
देवहंतिऽभिः
| शुत णिनि ५५
(1 शत ऽहिमाय सहंतिऽभिः | 4.4
इद्र॑ऽदूतिं
थै
सऽतिं
देवहिषु
याम॑ऽद्तिषु ।
सहरी
सहूती इति समहती `
` परे इति पुरऽ
~ पुषिः... ्
(1 अप्तचऽ्हिवः
वंयातऽदेव्छाः
आशुऽहेषसा „^ " प
यडज्होतः
सुहोता व) 0
करवऽ्टोता ५ |
नित्य॑ऽहोता 1 |
सवष्डुतः
पंचं ऽटोत्ता
11
111 1 सान
तेवो